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भारतीय अर्थव्यवस्था

निर्यात संबंधी नियमों में परिवर्तन

  • 16 Apr 2020
  • 5 min read

प्रीलिम्स के लिये

WMA, CCyB 

मेन्स के लिये

निर्यात संबंधी नियमों में परिवर्तन का भारतीय निर्यात पर प्रभाव

चर्चा में क्यों?

भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India-RBI) ने COVID-19 के कारण अर्थव्यवस्था पर पड़े प्रभाव से निपटने के लिये कुछ उपायों की घोषणा की है, जिसमें निर्यात आय की प्राप्ति तथा स्वदेश भेजने की अवधि में बढ़ोतरी और राज्यों को अधिक ऋण लेने की अनुमति देना शामिल है। 

प्रमुख बिंदु

  • मौजूदा नियमों के अनुसार, निर्यातकों द्वारा वस्तुओं और सॉफ्टवेयरों के निर्यात की पूरी राशि निर्यात की तारीख से 9 महीने के भीतर देश में वापस लाना अनिवार्य होता है।
  • RBI के अनुसार, कोरोनावायरस महामारी के कारण उत्पन्न हो रहे संकट के मद्देनज़र निर्यातों पर आय की प्राप्ति तथा उस आय को स्वदेश भेजने की अवधि 9 महीने से बढ़ाकर 15 महीने कर दी गई है।
  • केंद्रीय बैंक ने राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिये ‘वेज़ और मीन्स एडवांस लिमिट’ (Ways and Means Advances Limit-WMA Limit) की समीक्षा करने के लिये एक सलाहकार समिति का गठन किया है। 
  • RBI के अनुसार, जब तक समिति अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं करती तब तक राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के लिये WMA लिमिट को 30 प्रतिशत तक बढ़ा दिया गया है।
  • WMA लिमिट की संशोधित सीमा 1 अप्रैल, 2020 से लागू होगी और 30 सितंबर, 2020 तक मान्य होगी।
  • इसके अतिरिक्त RBI ने बैंकों के लिये काउंटर साइक्लिकल कैपिटल बफर (Counter Cyclical Capital Buffer-CCyB) के कार्यान्वयन को भी टाल दिया है।
  • RBI के अनुसार, CCyB संकेतकों की समीक्षा और विश्लेषण के आधार पर यह निर्णय लिया गया है कि आगामी एक वर्ष की अवधि के लिये CCyB को सक्रिय करना आवश्यक नहीं है।

महत्त्व

  • भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) का यह निर्णय भारतीय निर्यातकों को विस्तारित अवधि के दौरान COVID-19 महामारी से प्रभावित देशों से निर्यात आय प्राप्त करने में सक्षम बनाएगा। 
  • इसके अलावा यह निर्यातकों को विदेशों में मौजूद खरीदारों के साथ भविष्य के निर्यात अनुबंधों पर बातचीत करने के लिये अधिक समय प्रदान करेगा।

‘वेज़ एंड मीन्स एडवांस’ 

(Ways and Means Advances-WMA)

  • सामान्यतः सरकारें एक पूरे वर्ष के लिये बजट का निर्माण करती हैं और उसमें सरकार की आय तथा प्राप्तियों का निर्धारण किया जाता है, किंतु कई अवसरों पर सरकार की आय उसके व्यय से कम हो जाती है। 
  • ऐसी स्थिति से निपटने के लिये सरकारें बाज़ार से ऋण लेने के स्थान पर प्रत्यक्ष तौर पर RBI से ऋण लेती हैं, जिसे ‘वेज़ और मीन्स एडवांस’ योजना कहा जाता है।
  • RBI द्वारा ‘वेज़ एंड मीन्स एडवांस’ की शुरुआत वर्ष 1997 में की गई थी।

काउंटर साइक्लिकल कैपिटल बफर 

(Counter Cyclical Capital Buffer-CCyB) 

  • कैपिटल बफर वह अनिवार्य पूंजी होती है जिसे वित्तीय संस्थानों को अन्य न्यूनतम पूंजी आवश्यकताओं के अतिरिक्त रखने की आवश्यकता होती है।
  • काउंटर साइक्लिकल कैपिटल बफर (CCyB) के तहत बैंकों के लिये यह अनिवार्य होता है कि वे उस समय अधिक पूँजी धारण करें जब क्रेडिट पूंजी से बढ़ रहा हो, ताकि वित्तीय चक्र में गिरावट आने या अर्थव्यवस्था की वित्तीय स्थिति खराब होने के दौरान प्रतिरोध को कम किया सके।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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