शासन व्यवस्था
श्रेयस योजना
प्रिलिम्स के लिये:श्रेयस, अनुसूचित जाति के लिये राष्ट्रीय प्रवासी योजना, अनुसूचित जाति मेन्स के लिये:भारत में शैक्षिक असमानताओं को कम करने में वित्तीय सहायता और छात्रवृत्ति की भूमिका |
स्रोत: पी.आई.बी.
चर्चा में क्यों?
युवा अचीवर्स हेतु उच्च शिक्षा के लिये छात्रवृत्ति योजना (Scholarships for Higher Education for Young Achievers Scheme - SHREYAS) भारत में अनुसूचित जाति (SC) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुँच प्रदान करके उन्हें सशक्त बनाने की दिशा में भारत द्वारा किये गये के प्रयासों को प्रतिबिंबित करती रही है।
श्रेयस योजना:
- परिचय:
- यह सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के तहत एक व्यापक योजना है।
- इसका उद्देश्य गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा तक पहुँच प्रदान करने के लिये फेलोशिप (वित्तीय सहायता) और विदेश में पढ़ाई के लिये शैक्षिक ऋण पर ब्याज सब्सिडी प्रदान करके अन्य पिछड़ा वर्ग तथा आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग (EBC) के छात्रों का शैक्षिक सशक्तीकरण करना है।
- उप-योजनाएँ:
- "श्रेयस" की अम्ब्रेला योजना में 4 केंद्रीय क्षेत्र की उप-योजनाएँ शामिल हैं।
- अनुसूचित जाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिये निःशुल्क कोचिंग योजना:
- उद्देश्य:
- प्रतिस्पर्द्धी परीक्षाओं और तकनीकी तथा व्यावसायिक संस्थानों में नामांकन के लिये आर्थिक रूप से वंचित अनुसूचित जाति व अन्य पिछड़ा वर्ग को उच्च गुणवत्ता की कोचिंग प्रदान करना।
- आय सीमा: योजना के तहत पारिवारिक आय 8 लाख प्रति वर्ष तय की गई है।
- स्लॉट आवंटन: इसके लिए सालाना 3500 स्लॉट आवंटित किये जाते हैं।
- लिंग समावेशिता: दोनों श्रेणियों में महिलाओं के लिये 30% स्लॉट आरक्षित हैं।
- आवंटन अनुपात: SC: OBC अनुपात 70:30 है, जो समान पहुँच सुनिश्चित करता है।
- परिणाम: वर्ष 2014-15 से वर्ष 2022-23 तक 19,995 लाभार्थियों को इसका लाभ मिला है।
- उद्देश्य:
- अनुसूचित जाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिये निःशुल्क कोचिंग योजना:
- "श्रेयस" की अम्ब्रेला योजना में 4 केंद्रीय क्षेत्र की उप-योजनाएँ शामिल हैं।
- अनुसूचित जाति(SC) के लिये सर्वोत्तम शिक्षा:
- उद्देश्य: 12वीं कक्षा से आगे की पढ़ाई को कवर करते हुए, SC के छात्रों के बीच गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को पहचानना और बढ़ावा देना।
- आय सीमा: पारिवारिक आय सीमा 8 लाख प्रति वर्ष निर्धारित है।
- कवरेज: 266 उच्च शिक्षा संस्थान, जिनमें IIM, IIT और NIT जैसे प्रतिष्ठित संस्थान शामिल हैं।
- छात्रवृत्ति: योजना के तहत शिक्षण शुल्क, वापस न किये जाने वाले शुल्क (Non-refundable charges), शैक्षणिक भत्ता और अन्य खर्च प्रदान किये जाते हैं।
- परिणाम:
- वर्ष 2014-15 से वर्ष 2022-23 तक 21,988 लाभार्थी इससे लाभान्वित हुए हैं।
- अनुसूचित जाति के लिये राष्ट्रीय प्रवासी योजना:
- उद्देश्य: अनुसूचित जाति के लिये राष्ट्रीय प्रवासी योजना के तहत, अनुसूचित जाति के चयनित छात्रों को वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है तथा गैर-अधिसूचित, घुमंतू एवं अर्द्ध-घुमंतू जनजातियों, भूमिहीन खेतिहर मज़दूरों व पारंपरिक कारीगर श्रेणी को विदेश में स्नातकोत्तर और पीएच.डी. स्तर के पाठ्यक्रम करने हेतु वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।
- पात्रता: एक छात्र के परिवार की कुल आय 8 लाख रुपये प्रति वर्ष से कम होनी चाहिये, जिनके पास पात्रता परीक्षा में 60% से अधिक अंक प्राप्त किया हो, उम्र 35 वर्ष से कम हो और जिन्होंने शीर्ष 500 QS रैंकिंग वाले विदेशी संस्थानों/विश्वविद्यालयों में प्रवेश लिया हो।
- छात्रवृत्ति: योजना से लाभ प्राप्त लाभार्थियों को कुल शिक्षण शुल्क, रखरखाव और आकस्मिकता भत्ता, वीज़ा शुल्क, आने-जाने का हवाई मार्ग किराया आदि प्रदान किया जाता है।
- परिणाम: वर्ष 2014-15 से वर्ष 2022-23 तक 950 विद्यार्थियों को इसका लाभ मिला है।
- अनुसूचित जाति के छात्रों के लिये राष्ट्रीय फैलोशिप:
- उद्देश्य: यह फेलोशिप विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) द्वारा मान्यता प्राप्त भारतीय विश्वविद्यालयों/संस्थानों/कॉलेजों में विज्ञान, मानविकी और सामाजिक विज्ञान में एम.फिल/पीएच.डी. डिग्री करने वाले अनुसूचित जाति के छात्रों को सहायता प्रदान करती है।
- पात्रता: वे उम्मीदवार जिन्होंने राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (NET-JRF) या विज्ञान स्ट्रीम में जूनियर रिसर्च फेलो के लिये UGC-काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (UGC-CSIR) संयुक्त परीक्षा उत्तीर्ण की है।
- आवंटन: यह योजना प्रति वर्ष 2000 नए स्लॉट (विज्ञान स्ट्रीम के लिये 500 और मानविकी व सामाजिक विज्ञान के लिये 1500) प्रदान करती है।
भारत में अन्य शिक्षा योजनाएँ:
- प्रौद्योगिकी संवर्धित शिक्षण पर राष्ट्रीय कार्यक्रम
- बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ
- प्रधानमंत्री श्री (SHRI) स्कूल
- राष्ट्रीय साधन सह योग्यता छात्रवृत्ति (NMMS)
- स्वच्छ विद्यालय अभियान
- एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न. भारतीय संविधान के निम्नलिखित में से कौन-से प्रावधान शिक्षा पर प्रभाव डालते हैं? (2012)
निम्नलिखित कूटों के आधार पर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न. भारत की डिजिटल इंडिया में डिजिटल पहल ने किस प्रकार से देश की शिक्षा व्यवस्था के संचालन में योगदान किया है? विस्तृत उत्तर दीजिये। (2021) प्रश्न. जनसंख्या शिक्षा के मुख्य उद्देश्यों की विवेचना करते हुए भारत में इन्हें प्राप्त करने के उपायों पर विस्तृत प्रकाश डालिये। (2021) |
भूगोल
हुंगा टोंगा-हुंगा हापाई ज्वालामुखी
प्रिलिम्स के लिये:हुंगा टोंगा-हुंगा हापाई, पिनातुबो, क्राकाटोआ, टैम्बोरा, समालास, ग्रीनहाउस गैसें, अल-नीनो, पेरिस समझौता, IPCC, कूलिंग क्रेडिट, सन डिमिंग मेन्स के लिये:ग्लोबल वार्मिंग पर ज्वालामुखी का प्रभाव, ज्वालामुखी के प्रकार |
स्रोत: टाइम्स ऑफ इंडिया
चर्चा में क्यों?
वर्ष 2023 में अब तक वैश्विक स्तर पर अभूतपूर्व तापमान वृद्धि दर्ज़ की गई है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इसका एक कारण वर्ष 2022 में दक्षिण प्रशांत में हुंगा टोंगा-हुंगा हापाई ज्वालामुखी का जल के नीचे विस्फोट हो सकता है।
हुंगा टोंगा-हुंगा हापाई ज्वालामुखी के विषय में मुख्य तथ्य:
- हुंगा टोंगा-हुंगा हापाई ज्वालामुखी पश्चिमी दक्षिण प्रशांत महासागर में टोंगा साम्राज्य द्वारा बसे हुए द्वीपों के पश्चिम में है।
- यह टोफुआ आर्क के साथ 12 पुष्ट अंडर-सी ज्वालामुखियों (Submarine Volcanoes) में से एक है, जो बड़े केरमाडेक-टोंगा ज्वालामुखी आर्क का एक खंड है।
- टोंगा-केरमाडेक आर्क का निर्माण इंडो-ऑस्ट्रेलियाई प्लेट के नीचे प्रशांत प्लेट के सबडक्शन के परिणामस्वरूप हुआ।
- यह एक अंडर-सी ज्वालामुखी है जिसमें दो छोटे निर्जन द्वीप, हुंगा-हापाई और हुंगा-टोंगा शामिल हैं।
पृथ्वी के तापमान पर हुंगा टोंगा ज्वालामुखी का प्रभाव:
- सामान्यतः बड़े पैमाने पर ज्वालामुखी विस्फोट तापमान को कम करते हैं क्योंकि वे भारी मात्रा में सल्फर डाइ-ऑक्साइड को उत्सर्जित करते हैं, जो सल्फेट एरोसोल बनाते हैं जो सूर्य के प्रकाश को वापस अंतरिक्ष में प्रतिबिंबित कर पृथ्वी की सतह को अस्थायी रूप से ठंडा कर सकते हैं, जिसे सामान्यतः सन डिमिंग कहा जाता है।
- टोंगा विस्फोट जोकि जल के नीचे हुआ था, का एक और प्रभाव वर्ष 2022 में हुंगा टोंगा-हुंगा हापाई के विस्फोट से 58 किमी ऊँचा उद्गार था और यह अब तक का सबसे बड़ा वायुमंडलीय विस्फोट था।
- हुंगा टोंगा-हुंगा हापाई विस्फोट अजीब है क्योंकि, दशकों में समतापमंडलीय एयरोसोल में सबसे अधिक वृद्धि के अलावा, इसने समतापमंडल में भारी मात्रा में जल वाष्प को भी इंजेक्ट किया।
- जल वाष्प एक प्राकृतिक ग्रीनहाउस गैस है जो सौर विकिरण को अवशोषित करती है और वातावरण में गर्मी को एकत्रित करती है।
- एरोसोल तथा जल वाष्प विपरीत तरीकों से जलवायु प्रणाली को प्रभावित करते हैं, लेकिन कई अध्ययनों में पाया गया है कि ज्वालामुखी विस्फोट से उत्पन्न बड़े और अधिक स्थायी जल वाष्प बादल के कारण सतह पर अस्थायी नेट वार्मिंग प्रभाव देखा जा सकता है।
पिछले ज्वालामुखी विस्फोटों का वैश्विक स्तर पर जलवायु प्रभाव:
- इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) के अनुसार, पिछले 2,500 वर्षों में लगभग आठ बड़े ज्वालामुखी विस्फोट हुए हैं।
- इन ज्वालामुखियों में से एक टैम्बोरा ज्वालामुखी (इंडोनेशिया) है, जिसमें वर्ष 1815 में विस्फोट हुआ, जिसके कारण फ्राँस से संयुक्त राज्य अमेरिका तक फसलें नष्ट हो गईं।
- इससे भी भीषण घटना वर्ष 1257 में घटित हुई थी जब इंडोनेशिया में समलास ज्वालामुखी में विस्फोट के कारण अकाल पड़ा और संभवत: छोटे हिमयुग की शुरुआत हुई, यह असामान्य रूप से शीत काल था जो लगभग 19वीं शताब्दी तक चला।
ज्वालामुखी के प्रकार:
- सामान्यतः ज्वालामुखी को विस्फोट के प्रकार एवं विस्फोट की आवधिकता के आधार पर विभाजित किया जाता है।
- विस्फोट के प्रकार के आधार पर: विस्फोट की प्रकृति मुख्य रूप से मैग्मा की चिपचिपाहट पर निर्भर करती है और दो प्रकार की होती है:
- क्षारीय: क्षारीय मैग्मा बेसाल्ट की तरह गहरे रंग का होता है, इसमें आयरन और मैग्नीशियम की मात्रा अधिक होती है लेकिन सिलिका की मात्रा कम होती है। ये दूर तक प्रवाहित होते हैं और व्यापक शील्ड ज्वालामुखी का निर्माण करते हैं।
- अम्लीय: ये हल्के रंग तथा कम घनत्व वाला होता है जिसमें सिलिका की उच्च प्रतिशतता पाई जाती है और इसलिये ये एक शंक्वाकार ज्वालामुखी बनाते हैं।
- विस्फोट के प्रकार के आधार पर: विस्फोट की प्रकृति मुख्य रूप से मैग्मा की चिपचिपाहट पर निर्भर करती है और दो प्रकार की होती है:
- प्रस्फूटन की आवृत्ति के आधार पर:
- सक्रिय ज्वालामुखी: इनमें निरंतर प्रस्फूटन होता रहता है ये मुख्यतः अग्नि वलय (रिंग ऑफ फायर) के निकट पाए जाते हैं।
- जैसे: माउंट स्ट्रोमबोली एक सक्रिय ज्वालामुखी है और यह इतने सारे गैस के बादल उत्सर्जित करता है कि इसे भूमध्य सागर का प्रकाश स्तंभ कहा जाता है।
- सक्रिय ज्वालामुखी: इनमें निरंतर प्रस्फूटन होता रहता है ये मुख्यतः अग्नि वलय (रिंग ऑफ फायर) के निकट पाए जाते हैं।
- प्रसुप्त ज्वालामुखी: ये ज्वालामखी विलुप्त नहीं हैं लेकिन हाल के इतिहास में इनका उद्गार नहीं हुआ है। भविष्य में प्रसुप्त ज्वालामुखी प्रस्फुटित हो सकते हैं।
- उदाहरण: तंज़ानिया में स्थित माउंट किलिमंजारो, जो अफ्रीका का सबसे ऊँचा पर्वत भी है, प्रसुप्त ज्वालामुखी के रूप में जाना जाता है।
- भू-वैज्ञानिक अतीत में विलुप्त या निष्क्रिय ज्वालामुखी का उद्गार नहीं हुआ था।
- अधिकांश मामलों में ज्वालामुखी का क्रेटर जल से भर जाता है जिससे यह झील बन जाता है। जैसे: डेक्कन ट्रैप्स, भारत।
निष्कर्ष:
- प्रशांत महासागर में अल नीनो की स्थिति से लेकर साइबेरिया में हुई वनाग्नि तक, कोई भी घटना वैश्विक तापमान को प्रभावित कर सकती है।
- हुंगा टोंगा-हुंगा हापाई ज्वालामुखी प्रस्फूटन वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस से ऊपर ले जा सकता है, लेकिन इसका तात्पर्य यह नहीं है कि पेरिस समझौता विफल हो गया है; इस घटना ने प्रदर्शित किया है कि विश्व अपने सहमत निर्णायक बिंदु के कितने निकट है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रश्न. 2021 में घटित ज्वालामुखी विस्फोटों की वैश्विक घटनाओं का उल्लेख करते हुए क्षेत्रीय पर्यावरण पर उनके द्वारा पड़े प्रभावों को बताइए। (2021) |
नीतिशास्त्र
एथिकल AI को प्रोत्साहन
प्रिलिम्स के लिये:एथिकल AI को प्रोत्साहन, एथिकल आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), मशीन लर्निंग (ML), AI फेशियल रिकग्निशन, जेनेरेटिव AI को प्रोत्साहन मेन्स के लिये:एथिकल AI को प्रोत्साहन, एथिकल AI की स्थापना की आवश्यकता |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में कुछ व्यावसायिक नेतृत्वकारों ने एथिकल आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) विकसित करने के लिये सरकारों, उद्योग एवं पारिस्थितिकी तंत्र के ज्ञाताओं के बीच सहयोग की अनिवार्यता पर ज़ोर दिया।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI):
- परिचय:
- AI किसी कंप्यूटर या कंप्यूटर द्वारा नियंत्रित रोबोट की उन कार्यों को करने की क्षमता है जो आमतौर पर मनुष्यों द्वारा किये जाते हैं क्योंकि उनके लिये मानव बुद्धिमत्ता और विवेक की आवश्यकता होती है।
- हालाँकि ऐसा कोई AI विकसित नहीं हुआ है जो एक सामान्य मानव द्वारा किये जाने वाले विभिन्न प्रकार के कार्य कर सके, कुछ AI विशिष्ट कार्यों में मनुष्यों की बराबरी कर सकते हैं।
- AI किसी कंप्यूटर या कंप्यूटर द्वारा नियंत्रित रोबोट की उन कार्यों को करने की क्षमता है जो आमतौर पर मनुष्यों द्वारा किये जाते हैं क्योंकि उनके लिये मानव बुद्धिमत्ता और विवेक की आवश्यकता होती है।
- विशेषताएँ एवं घटक:
- AI की आदर्श विशेषता इसकी तर्कसंगतता और कार्रवाई करने की क्षमता है जिससे किसी विशिष्ट लक्ष्य को प्राप्त करने का सबसे अच्छा अवसर मिलता है। AI का एक उपसमूह मशीन लर्निंग (ML)है।
- मशीन लर्निंग (ML) स्पष्ट रूप से प्रोग्राम किये बिना, कंप्यूटर को डेटा से अधिगम की एक विधि है। इसमें डेटा का विश्लेषण और उससे अंतर्दृष्टि प्राप्त करने के लिये एल्गोरिदम का उपयोग करना और फिर अनुमान लगाने या निर्णय लेने के लिये उन अंतर्दृष्टियों का उपयोग करना शामिल है।
- डीप लर्निंग (DL) तकनीक टेक्स्ट, इमेजेज़ या वीडियो जैसे बड़ी मात्रा में असंरचित डेटा के अवशोषण के माध्यम से इस स्वचालित अधिगम को सक्षम बनाती है।
- AI की आदर्श विशेषता इसकी तर्कसंगतता और कार्रवाई करने की क्षमता है जिससे किसी विशिष्ट लक्ष्य को प्राप्त करने का सबसे अच्छा अवसर मिलता है। AI का एक उपसमूह मशीन लर्निंग (ML)है।
एथिकल AI:
- परिचय:
- एथिकल AI, जिसे नैतिक या ज़िम्मेदार AI के रूप में भी जाना जाता है, AI सिस्टम के विकास और तैनाती को इस तरह से संदर्भित करता है जो नैतिक सिद्धांतों, सामाजिक मूल्यों एवं मानवाधिकारों के साथ संरेखित हो।
- यह AI तकनीक के ज़िम्मेदारीपूर्ण उपयोग पर बल देता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इससे संभावित नुकसान और पूर्वाग्रहों को कम करते हुए व्यक्तियों, समुदायों एवं समाज को समग्र रूप से लाभ हो।
- एथिकल AI के प्रमुख पहलू:
- पारदर्शिता और व्याख्यात्मकता: AI सिस्टम को इस तरह से डिज़ाइन एवं कार्यान्वित किया जाना चाहिये कि उसके संचालन तथा निर्णय लेने की प्रक्रियाएँ उपयोगकर्ताओं और हितधारकों के लिये समझने एवं समझाने योग्य हों। इससे विश्वास तथा जवाबदेही को बढ़ावा मिलता है।
- निष्पक्षता और पूर्वाग्रह शमन: नैतिक AI का उद्देश्य नस्ल, लिंग, जातीयता या सामाजिक- आर्थिक स्थिति जैसे कारकों के आधार पर कुछ व्यक्तियों या समूहों के खिलाफ भेदभाव को रोकने के लिये पूर्वाग्रहों को कम करना और AI एल्गोरिदम एवं मॉडल में निष्पक्षता सुनिश्चित करना है।
- गोपनीयता और डेटा संरक्षण: एथिकल AI व्यक्तियों की निजता के अधिकार को कायम रखता है तथा व्यक्तिगत डेटा के सुरक्षित एवं उत्तरदायी प्रबंधन का समर्थन करता है, प्रासंगिक गोपनीयता कानूनों और विनियमों के साथ सहमति एवं अनुपालन सुनिश्चित करता है।
- जवाबदेही और ज़िम्मेदारी: AI सिस्टम तैनात करने वाले डेवलपर्स तथा संगठनों को अपनी AI प्रौद्योगिकियों के परिणामों के लिये जवाबदेह होना चाहिये। त्रुटियों या हानिकारक प्रभावों को संबोधित करने तथा सुधार हेतु ज़िम्मेदारी सुनिश्चित करना आवश्यक है।
- मज़बूती और विश्वसनीयता: AI प्रणाली मज़बूत, विश्वसनीय और विभिन्न स्थितियों एवं परिस्थितियों में लगातार प्रदर्शन करने वाली होनी चाहिये। AI प्रणाली में हेर-फेर या उसे नष्ट करने जैसे प्रतिकूल प्रयासों से निपटने हेतु उपाय किये जाने चाहिये।
- मानवता को लाभ: AI को विकसित किया जाना चाहिये और इसका उपयोग मानव कल्याण को बढ़ावा देने, सामाजिक चुनौतियों को हल करने तथा समाज, अर्थव्यवस्था व पर्यावरण में सकारात्मक योगदान देने हेतु किया जाना चाहिये।
कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence-AI) से संबंधित नैतिक चिंताएँ:
- बेरोज़गारी का खतरा:
- श्रम का पदानुक्रम मुख्य रूप से स्वचालन से संबंधित है। रोबोटिक्स और AI कंपनियाँ ऐसी बुद्धिमान मशीनें बना रही हैं जो आमतौर पर कम आय वाले श्रमिकों द्वारा किये जाने वाले कार्य करती हैं: कैशियर के बदले स्वयं-सेवा कियोस्क, फील्ड श्रमिकों के बदले फल चुनने वाले रोबोट आदि।
- इसके अलावा वह दिन दूर नहीं जब अकाउंटेंट, वित्तीय व्यापारी और मध्य स्तर के प्रबंधक जैसी कई डेस्क नौकरियाँ भी AI द्वारा खत्म कर दी जाएंगी।
- बढ़ती असमानताएँ:
- AI का उपयोग कर एक कंपनी मानव कार्यबल पर निर्भरता में भारी कटौती कर सकती है और इसका अर्थ है कि राजस्व कम लोगों के पास जाएगा।
- परिणामस्वरूप यह राजस्व AI-संचालित कंपनियों के स्वामित्व तक ही सीमित हो जाएगा। इसके अलावा AI डिजिटल बहिष्करण को जटिल बना सकता है।
- इसके अलावा निवेश उन देशों में स्थानांतरित होने की संभावना है जहाँ AI से संबंधित कार्य पहले से ही स्थापित है, जिससे देशों के बीच अंतर बढ़ जाएगा।
- तकनीकी लत:
- तकनीकी लत मानव निर्भरता की नई सीमा है। AI मानव ध्यान को निर्देशित करने और कुछ कार्यों को ट्रिगर करने में पहले से ही प्रभावी है।
- इसका सही तरीके से उपयोग समाज के लिये अधिक लाभकारी और प्रेरित करने के अवसर के रूप में हो सकता है।
- हालाँकि गलत हाथों में जाने से यह हानिकारक साबित हो सकता है।
- भेदभाव करने वाले रोबोट:
- हमें यह नहीं भूलना चाहिये कि AI सिस्टम मनुष्यों द्वारा बनाए गए हैं, जो पक्षपातपूर्ण और निर्णयात्मक हो सकते हैं।
- यह विभिन्न वर्ण के लोगों और अल्पसंख्यकों के खिलाफ भेदभाव करने के लिये AI फेशियल रिकग्निशन व निगरानी तकनीक को उत्पन्न कर सकता है।
- AI का मानव के खिलाफ होना:
- क्या होगा अगर AI मानव के खिलाफ हो जाए, एक AI प्रणाली की कल्पना कीजिये जिसे विश्व में कैंसर को खत्म करने के लिये कहा जाता है।
- या फिर बहुत सारी गणनाओं के बाद यह एक ऐसे फार्मूले की खोज कर ले जो वास्तव में पृथ्वी पर सभी मनुष्यों के कैंसर का इलाज कर सके, किंतु सभी मनुष्यों को खत्म करके।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस नैतिकता के लिये वैश्विक मानक:
- वर्ष 2021 में UNESCO द्वारा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की नैतिकता पर सिफारिश को अपनाया गया था।
- इसका उद्देश्य मूल रूप से लोगों और AI विकसित करने वाले व्यवसायों तथा सरकारों के बीच शक्ति संतुलन को स्थानांतरित करना है।
- UNESCO के सदस्य यह सुनिश्चित करने के लिये सकारात्मक कार्रवाई का उपयोग करने पर सहमत हुए हैं कि AI डिज़ाइन करने वाली टीमों में महिलाओं और अल्पसंख्यक समूहों का उचित प्रतिनिधित्व हो।
- यह सिफारिश डेटा के उचित प्रबंधन, गोपनीयता और सूचना तक पहुँच के महत्त्व को भी रेखांकित करती है।
- यह सदस्य देशों से यह सुनिश्चित करने का आह्वान करता है कि संवेदनशील डेटा के प्रसंस्करण हेतु उचित सुरक्षा उपाय, प्रभावी जवाबदेही और निवारण तंत्र प्रदान किये जाएँ।
- सिफारिश इस पर कड़ा रुख अपनाती है
- AI सिस्टम का उपयोग सामाजिक स्कोरिंग या सामूहिक निगरानी उद्देश्यों के लिये नहीं किया जाना चाहिये।
- इन प्रणालियों का बच्चों पर पड़ने वाले मनोवैज्ञानिक और संज्ञानात्मक प्रभाव पर ध्यान दिया जाना चाहिये।
- सदस्य देशों को न केवल डिजिटल, मीडिया एवं सूचना साक्षरता कौशल, बल्कि सामाजिक-भावनात्मक और AI नैतिकता कौशल में भी निवेश तथा प्रचार करना चाहिये।
- UNESCO सिफारिशों के कार्यान्वयन में तत्परता का आकलन करने में सहायता के लिये उपकरण विकसित करने की प्रक्रिया में है।
आगे की राह
- AI मॉडल को इस तरह से डिज़ाइन किया जाना चाहिये ताकि उनकी कार्यप्रणाली और निर्णय लेने की प्रक्रियाओं की स्पष्ट समझ विकसित हो सके।
- AI मॉडल को डेटा गोपनीयता पर विशेष ध्यान देने के साथ विकसित किया जाना चाहिये और यह सुनिश्चित करना चाहिये कि व्यक्तियों की संवेदनशील सूचना को सुरक्षित किया जा सके।
- सरकारी स्तर पर उन्नत सोच और जारी चर्चाओं पर ध्यान केंद्रित करते हुए मनमाने कानून के बजाय उद्योगों तथा हितधारकों के सहयोग से विकसित प्रशासनिक मानदंडों को अपनाना आवश्यक है।
- AI सिस्टम में मूलभूत मॉडल और डेटा उपयोग के संबंध में स्पष्टता की आवश्यकता है।
- एथिकल AI एक परिवर्तनकारी शक्ति हो सकती है, जो न केवल भारत में बल्कि विश्व स्तर पर एक अरब से अधिक लोगों के सपनों को साकार करने और डिजिटल विभाजन को पाटने में सक्षम है।
- AI और जेनेरेटिव AI को विभिन्न भाषाओं और क्षेत्रों में सुलभ होते हुए विविध आबादी तक पहुँचना चाहिये।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. विकास की वर्तमान स्थिति में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence) निम्नलिखित में से किस कार्य को प्रभावी रूप से कर सकती है? (2020)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2, 3 और 5 उत्तर: (b) मेन्स:
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भारतीय विरासत और संस्कृति
होयसल मंदिर भारत का 42वाँ विश्व धरोहर स्थल
प्रिलिम्स के लिये:UNESCO की विश्व विरासत सूची, होयसल मंदिर परिसर, होयसल राजवंश मेन्स के लिये:मंदिरों के संरक्षण और संवर्द्धन पर यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर का दर्जा दिए जाने का प्रभाव। |
स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
होयसल के पवित्र समूह, कर्नाटक के बेलूर, हलेबिड और सोमनाथपुर के प्रसिद्ध होयसल मंदिरों को संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (UNESCO) की विश्व विरासत सूची में जोड़ा गया है। यह समावेशन भारत में 42वें UNESCO विश्व धरोहर स्थल का प्रतीक है
- हाल ही में शांतिनिकेतन, जो पश्चिम बंगाल के बीरभूम ज़िले में स्थित है, को UNESCO की विश्व विरासत सूची में भी शामिल किया गया था।
नोट:
- 'होयसल के पवित्र समूह' 15 अप्रैल, 2014 से UNESCO की अस्थायी सूची में हैं। कर्नाटक के अन्य विरासत स्थल जो UNESCO की सूची में शामिल किये गए, वे हैं हम्पी (1986) और पट्टाडकल (1987)।
होयसल मंदिरों के बारे में मुख्य तथ्य:
- बेलूर में चेन्नाकेशव मंदिर:
- इसका निर्माण होयसल राजा विष्णुवर्धन ने 1116 ई. में चोलों पर अपनी विजय के उपलक्ष्य में करवाया था।
- बेलुरु (जिसे पुराने समय में वेलपुरी, वेलूर और बेलापुर के नाम से भी जाना जाता था) यागाची नदी के तट पर स्थित है एवं होयसल साम्राज्य की राजधानियों में से एक था।
- यह एक तारे के आकार का मंदिर है, जो भगवान विष्णु को समर्पित है और बेलूर में मंदिर परिसर में मुख्य मंदिर है।
- इसका निर्माण होयसल राजा विष्णुवर्धन ने 1116 ई. में चोलों पर अपनी विजय के उपलक्ष्य में करवाया था।
- हलेबिड में होयसलेश्वर मंदिर (Hoysaleswara Temple):
- दो-मंदिरों वाला यह मंदिर संभवतः होयसल द्वारा निर्मित सबसे बड़ा शिव मंदिर है।
- यहाँ मूर्तियाँ शिव के विभिन्न पहलुओं के साथ-साथ रामायण, महाभारत और भागवत पुराण के दृश्यों को दर्शाती हैं।
- हलेबिड में एक दीवार वाला परिसर है जिसमें होयसल काल के तीन जैन बसदी (मंदिर) और साथ ही एक सीढ़ीदार कुआँ भी है।
- सोमनाथपुर का केशव मंदिर:
- यह एक सुंदर त्रिकुटा मंदिर है जो भगवान कृष्ण के तीन रूपों- जनार्दन, केशव और वेणुगोपाल को समर्पित है।
- मुख्य केशव की मूर्ति गायब है और जनार्दन तथा वेणुगोपाल की मूर्तियाँ क्षतिग्रस्त हैं।
- यह एक सुंदर त्रिकुटा मंदिर है जो भगवान कृष्ण के तीन रूपों- जनार्दन, केशव और वेणुगोपाल को समर्पित है।
होयसल वास्तुकला के विषय में मुख्य तथ्य:
- परिचय:
- होयसल मंदिर 12वीं और 13वीं शताब्दी ईस्वी के दौरान बनाए गए थे, जो होयसल साम्राज्य की अद्वितीय वास्तुकला और कलात्मक प्रतिभा को प्रदर्शित करते हैं।
- ये तीनों होयसल मंदिर भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (Archaeological Survey of India- ASI) के संरक्षित स्मारक हैं।
- होयसल मंदिर 12वीं और 13वीं शताब्दी ईस्वी के दौरान बनाए गए थे, जो होयसल साम्राज्य की अद्वितीय वास्तुकला और कलात्मक प्रतिभा को प्रदर्शित करते हैं।
- महत्त्वपूर्ण तत्त्व:
- मंडप (Mantapa)
- विमान
- मूर्ति
- विशेषताएँ:
- ये मंदिर न केवल वास्तुशिल्प के चमत्कार हैं, बल्कि होयसल राजवंश की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत के भंडार भी हैं।
- होयसल मंदिरों को कभी-कभी हाइब्रिड या वेसर भी कहा जाता है क्योंकि उनकी अनूठी शैली न तो पूरी तरह से द्रविड़ और न ही नागर, बल्कि कहीं बीच की दिखती है। इन्हें अन्य मध्यकालीन मंदिरों में आसानी से पहचाना जा सकता है।
- होयसल वास्तुकला मध्य भारत में प्रचलित भूमिजा शैली, उत्तरी एवं पश्चिमी भारत की नागर परंपराओं और कल्याणी चालुक्यों द्वारा समर्थित कर्नाटक द्रविड़ शैलियों के विशिष्ट मिश्रण के लिये जानी जाती है।
- इसमें कई मंदिर हैं जो एक केंद्रीय स्तंभ वाले हॉल के चारों ओर समूह में हैं और एक जटिल डिज़ाइन वाले तारे के आकार में बनाए गए हैं।
- ये सोपस्टोन से बने हैं जो अपेक्षाकृत नरम पत्थर है, कलाकार मूर्तियों को बारीकी से तराशने में निपुण थे। इसे विशेष रूप से देवताओं के आभूषणों में देखा जा सकता है जो उनके मंदिर की दीवारों को सुशोभित करते हैं।
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होयसल राजवंश:
- उत्पत्ति और उत्थान:
- होयसलों ने तीन शताब्दियों से अधिक समय तक कर्नाटक और तमिलनाडु तक विस्तृत क्षेत्रों पर शासन किया, जिसमें साल राजवंश के संस्थापक के रूप में कार्यरत थे।
- पहले राजा दोरासमुद्र (वर्तमान हेलेबिड) के उत्तर-पश्चिम की पहाड़ियों से आए थे, जो लगभग 1060 ई. में उनकी राजधानी बनी।
- राजनीतिक इतिहास:
- होयसल कल्याण के चालुक्यों के सामंत थे, जिन्हें पश्चिमी चालुक्य साम्राज्य भी कहा जाता है।
- होयसल राजवंश के सबसे उल्लेखनीय शासक विष्णुवर्धन, वीर बल्लाल द्वितीय और वीर बल्लाल तृतीय थे।
- विष्णुवर्धन (जिन्हें बिट्टीदेव के नाम से भी जाना जाता है) होयसल राजवंश के सबसे महान राजा थे।
- धर्म और संस्कृति:
- होयसल राजवंश एक सहिष्णु और बहुलवादी समाज था जिसने हिंदू, जैन और बौद्ध धर्म जैसे विभिन्न धर्मों को संरक्षण दिया।
- राजा विष्णुवर्धन प्रारंभ में जैन थे लेकिन बाद में संत रामानुज के प्रभाव में वे वैष्णव धर्म में परिवर्तित हो गए।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. नागर, द्रविड़ और बेसर हैं- (2012) (a) भारतीय उपमहाद्वीप के तीन मुख्य जातीय समूह उत्तर: c |
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत-कनाडा संबंधों पर खालिस्तान का प्रभाव
प्रिलिम्स के लिये:भारत-कनाडा संबंधों पर खालिस्तान का प्रभाव, खालिस्तानी आंदोलन, ऑपरेशन ब्लू स्टार (1984), सिख उग्रवाद, कट्टरवाद मेन्स के लिये:भारत-कनाडा संबंधों पर खालिस्तान का साया, द्विपक्षीय संबंधों पर इसका प्रभाव। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत और कनाडा के बीच तनाव तब बढ़ गया जब कनाडा के प्रधानमंत्री ने जून 2023 में सरे में भारत द्वारा आतंकवादी के रूप में नामित एक खालिस्तानी नेता की हत्या में भारत की संलिप्तता का आरोप लगाया।
भारत ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कनाडा पर खालिस्तानी चरमपंथियों को पनाह देने का आरोप लगाया।
खालिस्तान आंदोलन:
- खालिस्तान आंदोलन वर्तमान पंजाब (भारत और पाकिस्तान दोनों) में एक पृथक, संप्रभु सिख राज्य की लड़ाई है।
- यह मांग कई बार उठती रही है, सबसे प्रमुख रूप से वर्ष 1970 और वर्ष 1980 के दशक में हिंसक विद्रोह के दौरान जिसने पंजाब को एक दशक से अधिक समय तक पंगु बना दिया था।
- ऑपरेशन ब्लू स्टार (1984) और ऑपरेशन ब्लैक थंडर (वर्ष 1986 एवं वर्ष 1988) के बाद भारत में इस आंदोलन को कुचल दिया गया था, लेकिन इसने सिख आबादी के कुछ वर्गों, विशेषकर कनाडा, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में सिख प्रवासी लोगों के बीच सहानुभूति और समर्थन जारी रखा है।
कनाडा में हाल की भारत विरोधी गतिविधियाँ:
- हालिया भारत विरोधी गतिविधियाँ:
- ऑपरेशन ब्लूस्टार वर्षगाँठ परेड (जून 2023): ब्रैम्पटन, ओंटारियो में आयोजित एक परेड में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या का जश्न मनाया गया, जिसमें खून से सना हुआ एक चित्र प्रदर्शित किया गया और दरबार साहिब पर हमले का बदला लेने का समर्थन किया गया।
- खालिस्तान समर्थक जनमत संग्रह (2022): खालिस्तान समर्थक संगठन सिख फॉर जस्टिस (SFJ) ने ब्रैम्पटन में खालिस्तान पर एक तथाकथित "जनमत संग्रह" आयोजित किया, जिसमें महत्त्वपूर्ण समर्थन का दावा किया गया।
- साँझ सवेरा पत्रिका (2002): वर्ष 2002 में टोरंटो स्थित पंजाबी भाषा की साप्ताहिक पत्रिका साँझ सवेरा ने इंदिरा गांधी की हत्या का जश्न मनाते हुए ज़िम्मेदार व्यक्तियों का महिमामंडन करते एक कवर चित्रण के साथ उनकी मृत्यु की सालगिरह की बधाई दी।
- पत्रिका को सरकारी विज्ञापन मिले और अब यह कनाडा का एक प्रमुख दैनिक समाचार पत्र है।
- ऐसी गतिविधियों पर भारत की चिंताएँ:
- कनाडा स्थित भारतीय राजनयिकों ने कई अवसरों पर कहा है कि "सिख उग्रवाद" से निपटने में कनाडा की विफलता और खालिस्तानियों द्वारा भारतीय राजनयिकों तथा अधिकारियों का लगातार उत्पीड़न, विदेश नीति का एक प्रमुख तनाव बिंदु है।
- भारतीय प्रधानमंत्री ने नई दिल्ली में G20 शिखर सम्मेलन के मौके पर कनाडा के प्रधानमंत्री से कनाडा में सिख विरोध प्रदर्शन के विषय में कड़ी चिंता जताई।
- कनाडा ने भारत के साथ प्रस्तावित व्यापार संधि पर बातचीत रोक दी है।
खालिस्तानी कट्टरवाद भारत-कनाडा संबंधों प्रभावित करेगा:
- तनावपूर्ण राजनयिक संबंध:
- आरोप-प्रत्यारोप से राजनयिक संबंधों में तनाव उत्पन्न हो सकता है, जिससे दोनों देशों के बीच समग्र संबंध प्रभावित होंगे।
- भरोसा और विश्वास समाप्त हो सकता है, जिससे विभिन्न द्विपक्षीय एवं अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर सहयोग करना मुश्किल हो जाएगा।
- सुरक्षा संबंधी निहितार्थ:
- खालिस्तान आंदोलन को विदेशों में भारत की संप्रभुता के लिये एक सुरक्षा जोखिम के रूप में देखा जाता है।
- भारत ने अप्रैल 2023 में सिख अलगाववादी आंदोलन के एक नेता को कथित तौर पर खालिस्तान की स्थापना के लिये आंदोलन का आह्वान करने पर गिरफ्तार किया ,जिससे पंजाब में हिंसा की आशंका पैदा हो गई।
- इससे पहले वर्ष 2023 में भारत ने इंदिरा गांधी की हत्या को दर्शाने वाली परेड में झाँकी की अनुमति देने के लिये कनाडा का विरोध किया था और इसे सिख अलगाववादी हिंसा का महिमामंडन माना था।
- कनाडा, ब्रिटेन, अमेरिका तथा ऑस्ट्रेलिया में भारतीय राजनयिक मिशनों पर सिख अलगाववादियों एवं उनके समर्थकों द्वारा लगातार प्रदर्शन भारत की संप्रभुता और अखंडता के लिये खतरा बन सकता है जो कि भारत के लिये एक चिंता का विषय है।
- खालिस्तान आंदोलन को विदेशों में भारत की संप्रभुता के लिये एक सुरक्षा जोखिम के रूप में देखा जाता है।
- व्यापार और अर्थव्यवस्था पर प्रभाव:
- व्यापार संबंधों को नुकसान हो सकता है क्योंकि ये आरोप भारत और कनाडा के बीच व्यापारिक साझेदारी और निवेश प्रवाह को प्रभावित कर सकते हैं।
- बढ़ते राजनीतिक तनाव के परिणामस्वरूप, व्यवसाय में अतिरिक्त सावधानी बरत सकते हैं या अपनी भागीदारी पर पुनर्विचार कर सकते हैं।
- भारत-कनाडा के बीच वस्तुओं का द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2022 में लगभग 8.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया, जो वर्ष 2021 की तुलना में 25% की वृद्धि दर्शाता है।
- सेवा क्षेत्र को द्विपक्षीय संबंधों में एक महत्त्वपूर्ण योगदानकर्ता के रूप में ज़ोर दिया गया तथा 2022 में द्विपक्षीय सेवा व्यापार का मूल्य लगभग 6.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।
- प्रमुख मुद्दों पर सहयोग में कमी:
- जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद-रोधी और अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा जैसी महत्त्वपूर्ण वैश्विक चुनौतियों पर सहयोग को लेकर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
- दोनों देशों को अपनी स्थिति को संरेखित करना और मिलकर इन साझा चिंताओं पर प्रभावी ढंग से कार्य करना चुनौतीपूर्ण लग सकता है।
- संभावित यात्रा और लोगों पर प्रभाव:
- बढ़ते तनाव से भारतीय और कनाडाई नागरिकों के बीच यात्रा और बातचीत प्रभावित हो सकती है, जिससे एक-दूसरे के देशों की यात्रा करना अधिक बोझिल या कम आकर्षक हो जाएगा।
- अप्रवासन नीतियों का पुनर्मूल्यांकन:
- ऐसे तत्त्वों को आश्रय देने के बारे में भारत की चिंताओं के जवाब में कनाडा अपनी अप्रवासन नीतियों की समीक्षा कर सकता है या उन्हें सख्त कर सकता है, खासकर खालिस्तानी अलगाववाद से जुड़े व्यक्तियों के संबंध में।
- दीर्घकालिक द्विपक्षीय सहयोग:
- हालिया तनाव का दीर्घकालिक द्विपक्षीय सहयोग और साझेदारी पर स्थायी प्रभाव पड़ सकता है।
- विश्वास का पुनर्निर्माण और रचनात्मक संबंध पुनः स्थापित करने के लिये पर्याप्त प्रयास एवं समय की आवश्यकता हो सकती है।
- भारत ने वर्ष 1947 में कनाडा के साथ राजनयिक संबंध स्थापित किये। भारत और कनाडा के बीच साझा लोकतांत्रिक मूल्यों, दो समाजों की बहु-सांस्कृतिक, बहु-जातीय एवं बहु-धार्मिक प्रकृति व दोनों देशों के लोगों के बीच मज़बूत संपर्कों पर आधारित दीर्घकालिक द्विपक्षीय संबंध हैं।
कनाडा में खालिस्तान आंदोलन और आतंकवाद का इतिहास:
- कनाडा में प्रारंभिक खालिस्तान आंदोलन:
- खालिस्तान आंदोलन की जड़ें सुरजन सिंह गिल द्वारा वर्ष 1982 में वैंकूवर में सीमित स्थानीय सिख समर्थन के साथ 'निर्वासित खालिस्तान सरकार' के कार्यालय की स्थापना से जुड़ी हैं।
- पंजाब में उग्रवाद से संबंध:
- वर्ष 1980 के दशक के दौरान पंजाब में उग्रवाद का असर कनाडा पर पड़ा।
- पंजाब में आतंकवाद के आरोपी तलविंदर सिंह परमार जैसे व्यक्तियों से निपटने के कनाडा के तरीके की भारत ने आलोचना की थी।
- एयर इंडिया पर बमबारी (1985):
- जून 1985 में खालिस्तानी संगठन बब्बर खालसा द्वारा एयर इंडिया के विमान कनिष्क पर बमबारी के साथ कनाडा ने आतंकवाद का एक भयानक कृत्य देखा।
भारत और कनाडा के बीच तनाव के विगत उदाहरण:
- प्रारंभिक तनाव (1948):
- इन दोनों देशों के बीच तनावपूर्ण रिश्ते की शुरुआत सबसे पहले वर्ष 1948 में हुई जब कनाडा ने कश्मीर में जनमत संग्रह का समर्थन किया था।
- वर्ष 1998 का परमाणु परीक्षण:
- भारत द्वारा वर्ष 1998 में किये गए परमाणु परीक्षणों के बाद कनाडा द्वारा भारत में अपने उच्चायुक्त को वापस बुलाना इन दोनों देशों के बीच के संबंधों में कड़वाहट का प्रतीक है।
- हालिया स्थिति:
- कनाडा के प्रधानमंत्री द्वारा किसानों के विरोध प्रदर्शन पर भारत की प्रतिक्रिया पर व्यक्त चिंता और खालिस्तान जनमत संग्रह का समर्थन करने वाली न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी के साथ उनकी लिबरल पार्टी के गठबंधन के आलोक में दोनों देशों के बीच तनाव और बढ़ गया।
आगे की राह
- भारत सरकार को पंजाब के आर्थिक विकास में निवेश करना चाहिये और उनके लिये संसाधनों, अवसरों तथा लाभों का उचित हिस्सा सुनिश्चित करना चाहिये।
- सरकार को पंजाब में व्याप्त बेरोज़गारी, नशीली दवाओं के दुरुपयोग, पर्यावरण क्षरण और कृषि संकट की समस्याओं का भी समाधान करना चाहिये।
- भारत सरकार को खालिस्तान आंदोलन के दौरान हुई हिंसा और मानवाधिकार उल्लंघन के पीड़ितों तथा बचे लोगों के लिये न्याय सुनिश्चित करना चाहिये।
- दोनों देशों को आपसी चिंताओं और शिकायतों पर खुलकर चर्चा करने के लिये सरकार के विभिन्न स्तरों पर संवाद करना चाहिये।
- खालिस्तान मुद्दे का समाधान करने, एक-दूसरे के दृष्टिकोण को स्पष्ट करने और सर्वहित के लिये एक रचनात्मक संवाद करना चाहिये।
भारतीय राजव्यवस्था
संविधान में समाजवादी और पंथनिरपेक्ष शब्दों पर बहस
प्रिलिम्स के लिये:भारत के संविधान की प्रस्तावना, 42वाँ संशोधन अधिनियम, 1976, आपातकाल मेन्स के लिये:संविधान में समाजवादी और पंथनिरपेक्ष शब्दों पर बहस |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में कुछ लोकसभा सदस्यों ने दावा किया है कि भारत के संविधान की प्रस्तावना की नई प्रतियों में "समाजवादी" और "पंथनिरपेक्ष" शब्द हटा दिये गए हैं।
- हमें यह मालूम होना चाहिये कि ये दो शब्द मूल प्रस्तावना का हिस्सा नहीं थे। इन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल के दौरान संविधान (42वाँ संशोधन) अधिनियम, 1976 द्वारा संविधान में जोड़ा गया था।
भारतीय संविधान की प्रस्तावना:
- परिचय:
- प्रत्येक संविधान का एक दर्शन होता है। भारतीय संविधान में अंतर्निहित दर्शन को उद्देश्य संकल्प (Objectives Resolution) में संक्षेपित किया गया था, जिसे 22 जनवरी, 1947 को संविधान सभा द्वारा अपनाया गया था।
- संविधान की प्रस्तावना उद्देश्य संकल्प में निहित आदर्श की व्याख्या करती है।
- यह संविधान के परिचय के रूप में कार्य करता है और इसमें इसके मूल सिद्धांत और उद्देश्य शामिल हैं।
- वर्ष 1950 में लागू की गई प्रस्तावना:
- हम, भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व-संपन्न, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिये तथा उसके समस्त नागरिकों को:
- सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय,
- विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता,
- प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने के लिये तथा
- उन सब में, व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता एवं अखंडता सुनिश्चित कराने वाली, बंधुता बढ़ाने के लिये,
- दृढ़ संकल्पित होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर, 1949 ईस्वी (मिति मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी, संवत दो हज़ार छह विक्रमी) को एतद् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।
- हम, भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व-संपन्न, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिये तथा उसके समस्त नागरिकों को:
- समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष शब्दों का समावेश:
- प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार के समय आपातकाल की अवधि के दौरान संविधान (42वें संशोधन) अधिनियम, 1976 के माध्यम से प्रस्तावना में "समाजवादी" और "पंथनिरपेक्ष" शब्द जोड़े गए थे।
- "समाजवादी" शब्द को शामिल करने का उद्देश्य भारतीय राज्य द्वारा लक्ष्य और दर्शन के रूप में समाजवाद पर बल देना था, जिसमें गरीबी उन्मूलन तथा समाजवाद का एक अनूठा रूप अपनाने पर ध्यान केंद्रित किया गया था जिसमें केवल विशिष्ट एवं आवश्यक क्षेत्रों का राष्ट्रीयकरण शामिल था।
- "पंथनिरपेक्ष" को शामिल करने से एक पंथनिरपेक्ष राज्य के विचार को बल मिला, जिसमें सभी धर्मों के साथ समान व्यवहार, तटस्थता बनाए रखने को प्रोत्साहित किया गया और किसी विशेष धर्म को राज्य धर्म के रूप में समर्थन नहीं दिया गया।
- प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार के समय आपातकाल की अवधि के दौरान संविधान (42वें संशोधन) अधिनियम, 1976 के माध्यम से प्रस्तावना में "समाजवादी" और "पंथनिरपेक्ष" शब्द जोड़े गए थे।
प्रस्तावना से समाजवादी और पंथनिरपेक्ष शब्दों को हटाने पर बहस का कारण:
- राजनीतिक विचारधारा और प्रतिनिधित्व:
- इन शब्दों को हटाने की वकालत करने वालों का तर्क है कि "समाजवादी" और "पंथनिरपेक्ष" शब्द वर्ष 1976 में आपातकाल के दौरान शामिल किये गए थे।
- उनका मानना है कि यह एक विशेष राजनीतिक विचारधारा ढोने जाने जैसा है और यह प्रतिनिधित्व और लोकतांत्रिक निर्णय लेने के सिद्धांतों के खिलाफ है।
- मूल आशय और संविधान का दर्शन:
- आलोचकों का तर्क है कि वर्ष 1950 में अपनाई गई मूल प्रस्तावना में ये शब्द शामिल नहीं थे। वे इस बात पर ज़ोर देते हैं कि संविधान के दर्शन में पहले से ही समाजवाद और पंथनिरपेक्षता का स्पष्ट उल्लेख किये बिना न्याय, समानता, स्वतंत्रता तथा भाईचारे के विचार शामिल हैं।
- उनका तर्क है कि ये मूल्य हमेशा संविधान में निहित थे।
- गलत व्याख्या किये जाने पर चिंता:
- कुछ आलोचकों ने चिंता व्यक्त की है कि "समाजवादी" और "पंथनिरपेक्ष" शब्दों की गलत व्याख्या या दुरुपयोग किया जा सकता है, जिससे संभावित रूप से ऐसी नीतियाँ के निर्माण और गतिविधियाँ होंगी जो उनके मूल इरादे से भटक जाएंगे।
- वे प्रस्तावना में अधिक तटस्थ और लचीले दृष्टिकोण का तर्क देते हैं।
- सामाजिक निहितार्थ:
- इन शब्दों की उपस्थिति या अनुपस्थिति का सार्वजनिक नीति, शासन और सामाजिक विमर्श पर प्रभाव पड़ सकता है।
- धार्मिक विविधता वाले देश में "पंथनिरपेक्ष" शब्द विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है, और इसके हटने से धार्मिक तटस्थता के प्रति राज्य की प्रतिबद्धता को लेकर चिंताएँ बढ़ सकती हैं।
आगे की राह
- प्रस्तावना में इन शर्तों के निहितार्थ पर एक सुविज्ञ तथा समावेशी सार्वजनिक चर्चा को बढ़ावा दें। इसमें विभिन्न दृष्टिकोणों और चिंताओं को समझने के लिये शिक्षा जगत, नागरिक समाज, राजनीतिक दलों एवं नागरिकों को शामिल किया जाना चाहिये।
- प्रस्तावना में "समाजवादी" और "धर्मनिरपेक्ष" शब्दों के महत्त्व, व्याख्या और ऐतिहासिक संदर्भ पर विचार-विमर्श करने के लिये संसद जैसे संवैधानिक निकायों के भीतर एक संरचित बहस की सुविधा प्रदान करें। किसी भी संभावित संशोधन के निहितार्थों का विश्लेषण करने के लिये गहन चर्चा को प्रोत्साहित करें।
- प्रस्तावना में "समाजवादी" और "धर्मनिरपेक्ष" शब्दों के ऐतिहासिक संदर्भ, संवैधानिक दर्शन तथा कानूनी निहितार्थ का अध्ययन करने के लिये संवैधानिक विशेषज्ञों, कानूनी विद्वानों, इतिहासकारों एवं समाजशास्त्रियों की एक स्वतंत्र समिति की स्थापना करें। उनके द्वारा दिये गए निष्कर्ष बहुमूल्य अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकते हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. 26 जनवरी, 1950 को भारत की वास्तविक संवैधानिक स्थिति क्या थी? (2021) (a) एक लोकतांत्रिक गणराज्य उत्तर: B |