इन्फोग्राफिक्स
कृषि
पराली दहन
प्रिलिम्स के लिये:बायो-डीकंपोज़र, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR), स्टबल बर्निंग, टर्बो हैप्पी सीडर (THS) मशीन। मेन्स के लिये:पराली दहन के प्रभाव। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में दिल्ली सरकार ने घोषणा की है कि वह शहर में 5,000 एकड़ से अधिक धान के खेतों में पूसा बायो-डीकंपोज़र का मुफ्त छिड़काव करेगी क्योंकि इससे सर्दियों के दौरान पराली दहन और वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी।
पूसा बायो-डीकंपोज़र:
- विषय:
- यह अनिवार्य रूप से एक कवक-आधारित तरल घोल है जो कठोर ठूंठ को इस हद तक नरम कर सकता है कि इसे खाद के रूप में कार्य करने के लिये आसानी से खेत में मिट्टी के साथ मिलाया जा सकता है।
- यह कवक 30-32 डिग्री सेल्सियस पर पनपता है, जो कि धान की कटाई और गेहूँ की बुवाई के लिये प्रचलित तापमान है।
- यह धान के भूसे में सेल्यूलोज, लिग्निन और पेक्टिन को पचाने योग्य एंज़ाइम का उत्पादन करता है।
- यह भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) द्वारा विकसित किया गया है और दिल्ली के पूसा स्थित ICAR परिसर के नाम पर रखा गया है।
- यह फसल अवशेष, पशु अपशिष्ट, गोबर और अन्य कचरे को तेज़ी से जैविक खाद में परिवर्तित करता है।
- यह कृषि अपशिष्ट और फसल अवशेष प्रबंधन के लिये एक सस्ती और प्रभावी तकनीक है।
- यह अनिवार्य रूप से एक कवक-आधारित तरल घोल है जो कठोर ठूंठ को इस हद तक नरम कर सकता है कि इसे खाद के रूप में कार्य करने के लिये आसानी से खेत में मिट्टी के साथ मिलाया जा सकता है।
- फायदे:
- यह डीकंपोज़र मिट्टी की उर्वरता और उत्पादकता में सुधार करता है क्योंकि ठूंठ फसलों के लिये खाद के रूप में काम करते हैं, इससे भविष्य में कम उर्वरक की आवश्यकता होती है।
- पराली दहन से मिट्टी अपनी उपजाऊपन खो देती है और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के अलावा यह मिट्टी में मौजूद उपयोगी बैक्टीरिया तथा फंगस को भी नष्ट कर देती है।
- यह पराली को दहन से रोकने के लिये एक कुशल और प्रभावी, सस्ती, साध्य एवं व्यावहारिक तकनीक है।
- यह पर्यावरण के अनुकूल और पर्यावरण की दृष्टि से उपयोगी तकनीक है तथा स्वच्छ भारत मिशन को प्राप्त करने में सहायक सिद्ध होगी।
- यह डीकंपोज़र मिट्टी की उर्वरता और उत्पादकता में सुधार करता है क्योंकि ठूंठ फसलों के लिये खाद के रूप में काम करते हैं, इससे भविष्य में कम उर्वरक की आवश्यकता होती है।
पराली दहन (Stubble Burning):
- परिचय:
- पराली दहन, अगली फसल बोने के लिये फसल के अवशेषों को खेत में आग लगाने की क्रिया है।
- इसी क्रम में सर्दियों की फसल (रबी की फसल) की बुवाई हरियाणा और पंजाब के किसानों द्वारा कम अंतराल पर की जाती है तथा अगर सर्दी की छोटी अवधि के कारण फसल बुवाई में देरी होती है तो उन्हें काफी नुकसान हो सकता है, इसलिये पराली दहन पराली की समस्या का सबसे सस्ता और तीव्र तरीका है।
- पराली दहन की यह प्रक्रिया अक्तूबर के आसपास शुरू होती है और नवंबर में अपने चरम पर होती है, जो दक्षिण-पश्चिम मानसून की वापसी का समय भी है।
- पराली दहन का प्रभाव:
- प्रदूषण:
- खुले में पराली दहन से वातावरण में बड़ी मात्रा में ज़हरीले प्रदूषक उत्सर्जित होते हैं जिनमें मीथेन (CH4), कार्बन मोनोऑक्साइड (CO), वाष्पशील कार्बनिक यौगिक (VOC) और कार्सिनोजेनिक पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन जैसी हानिकारक गैसें होती हैं।
- वातावरण में छोड़े जाने के बाद ये प्रदूषक वातावरण में फैल जाते हैं, भौतिक और रासायनिक परिवर्तन से गुज़र सकते हैं तथा अंततः स्मॉग (धूम्र कोहरा) की मोटी चादर बनाकर मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं।
- मिट्टी की उर्वरता:
- भूसी को ज़मीन पर दहन से मिट्टी के पोषक तत्त्व नष्ट हो जाते हैं, जिससे इसकी उर्वरकता कम हो जाती है।
- गर्मी उत्पन्न होना:
- पराली दहन से उत्पन्न गर्मी मिट्टी में प्रवेश करती है, जिससे नमी और उपयोगी रोगाणुओं को नुकसान होता है।
- प्रदूषण:
- पराली दहन के विकल्प:
- पराली का स्व-स्थाने (In-Situ) प्रबंधन: ज़ीरो-टिलर मशीनों और जैव-अपघटकों के उपयोग द्वारा फसल अवशेष प्रबंधन।
- इसी प्रकार बाह्य-स्थाने (Ex-Situ) प्रबंधन: जैसे मवेशियों के चारे के रूप में चावल के भूसे का उपयोग करना।
- प्रौद्योगिकी का उपयोग: उदाहरण के लिये टर्बो हैप्पी सीडर (Turbo Happy Seeder-THS) मशीन, जो पराली को जड़ समेत उखाड़ फेंकती है और साफ किये गए क्षेत्र में बीज भी बो सकती है। इसके बाद पराली को खेत के लिये गीली घास के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
- फसल पैटर्न बदलना: यह गहरा और अधिक मौलिक समाधान है।
- बायो एंज़ाइम-पूसा: भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (Indian Agriculture Research Institute) ने बायो एंज़ाइम-पूसा (bio enzyme-PUSA) के रूप में एक परिवर्तनकारी समाधान पेश किया है।
- यह अगले फसल चक्र के लिये उर्वरक के खर्च को कम करते हुए जैविक कार्बन और मृदा स्वास्थ्य में वृद्धि करता है।
- अन्य कार्ययोजना:
- पंजाब, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) राज्यों और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (GNCTD) ने कृषि पराली दहन की समस्या से निपटने हेतु वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग द्वारा दी गई रूपरेखा के आधार पर निगरानी के लिये विस्तृत कार्ययोजना तैयार की है।
आगे की राह
- जैसा कि हम जानते हैं, पराली दहन से उपयोगी कच्चा माल नष्ट हो जाता है, हवा प्रदूषित हो जाती है, श्वसन संबंधी बीमारियाँ उत्पन्न हो जाती हैं और ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन बढ़ जाता है। इसलिये समय की मांग है कि पराली का पशु आहार के रूप में रचनात्मक उपयोग किया जाए तथा टर्बो-हैप्पी सीडर मशीन एवं बायो-डीकंपोज़र आदि जैसे विभिन्न विकल्पों को सक्षम करके प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जाए।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न:प्रश्न. कृषि में शून्य जुताई का/के क्या लाभ है/हैं? (2020)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: d व्याख्या:
अतः विकल्प (d) सही उत्तर है। प्रश्न. दिल्ली में बढ़ते वायु प्रदूषण के कारण और प्रभाव क्या हैं? इस दिशा में सरकार द्वारा किये गए उपायों तथा उनकी प्रभावशीलता का वर्णन कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2021) |
स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
AIBD की 47वीं वार्षिक सभा
प्रिलिम्स के लिये:एशिया-पैसिफिक इंस्टीट्यूट फॉर ब्रॉडकास्टिंग डेवलपमेंट (AIBD), 47वीं AIBD वार्षिक सभा। मेन्स के लिये:कोविड-19 महामारी के दौरान मीडिया की भूमिका। |
चर्चा में क्यों?
प्रतिष्ठित एशिया-पैसिफिक इंस्टीट्यूट ऑफ ब्रॉडकास्टिंग डेवलपमेंट (AIBD) की भारत की अध्यक्षता को एक और वर्ष के लिये बढ़ा दिया गया है।
- नई दिल्ली में आयोजित संस्थान की दो दिवसीय वार्षिक सभा में AIBD के सदस्य देशों द्वारा सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया गया।
एशिया-पैसिफिक इंस्टीट्यूट ऑफ ब्रॉडकास्टिंग डेवलपमेंट (AIBD):
- परिचय:
- एशिया-पैसिफिक इंस्टीट्यूट फॉर ब्रॉडकास्टिंग डेवलपमेंट (AIBD) की स्थापना वर्ष 1977 में संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को/UNESCO) के तत्त्वावधान में हुई थी।
- यह इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के विकास के क्षेत्र में एशिया और प्रशांत के लिये संयुक्त राष्ट्र आर्थिक एवं सामाजिक आयोग (UN-ESCAP) के देशों की सेवा करने वाला अद्वितीय क्षेत्रीय अंतर-सरकारी संगठन है।
- इसका सचिवालय कुआलालंपुर में स्थित है और इसकी मेज़बानी मलेशिया सरकार करती है।
- उद्देश्य:
- AIBD नीति और संसाधन विकास के माध्यम से एशिया-प्रशांत क्षेत्र में एक जीवंत और संगठित इलेक्ट्रॉनिक मीडिया वातावरण प्रदान करने के लिये अनिवार्य है।
- संस्थापक सदस्य:
- अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ (ITU), संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) और संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) तथा एशिया-प्रशांत प्रसारण संघ (ABU) संस्थान के संस्थापक संगठन हैं और वे आम सम्मेलन के गैर-मतदाता सदस्य है।
- सदस्य:
- भारत सहित एशिया प्रशांत क्षेत्र के 26 देशों के प्रसारणकर्त्ता संगठन के पूर्ण सदस्य हैं।
- 47वीं AIBD वार्षिक सभा:
- 47वीं AIBD वार्षिक सभा/20वाँ AIBD आम सम्मेलन और संबद्ध बैठकें नई दिल्ली में आयोजित की गईं।
- इसमें विशेष रूप से "महामारी के बाद की अवधि में प्रसारण के क्षेत्र में एक मज़बूत भविष्य का निर्माण" विषय पर ध्यान केंद्रित करते हुए कई चर्चाओं, प्रस्तुतियों और विचारों का आदान-प्रदान किया गया।
- सहकारी गतिविधियों और विनिमय कार्यक्रमों के लिये एक पंचवर्षीय योजना को भी अंतिम रूप दिया गया।
- सभी भाग लेने वाले देशों और सदस्य प्रसारकों ने एक स्थायी प्रसारण वातावरण, नवीनतम प्रौद्योगिकी जानकारी, बेहतरीन सूचना सामग्री के लिये मिलकर काम करने का संकल्प लिया।
कोविड-19 महामारी युग में AIBD का महत्त्व:
- AIBD के नेतृत्व ने सदस्य देशों को कोविड-19 महामारी के दौरान ऑनलाइन जोड़े रखा और इस बात पर भी निरंतर संवाद बनाए रखा कि मीडिया किस प्रकार महामारी के प्रभाव को कम कर सकता है।
- सदस्य देशों को चिकित्सा क्षेत्र में नवीनतम विकास, कोरोना योद्धाओं के सकारात्मक परिणामों और महामारी से भी ज़्यादा तेज़ी से फैल रही फर्ज़ी खबरों का मुकाबला करने के बारे में जानकारी साझा किये जाने से अत्यधिक लाभ हुआ।
- AIBD ने लॉकडाउन के दौरान भी अपना प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण कार्यक्रम जारी रखा। अकेले वर्ष 2021 में 34 प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किये गए थे और पारंपरिक मुद्दों के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन, हरित प्रौद्योगिकियों, सतत् विकास, तेज़ रिपोर्टिंग, बच्चों के लिये प्रोग्रामिंग आदि जैसे उभरते मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया गया था।
- प्रसारण क्षेत्र में इंटरनेट के उपयोग में वृद्धि के साथ साइबर सुरक्षा पत्रकारिता में पत्रकारों का प्रशिक्षण अनिवार्य हो गया है।
- AIBD अपने प्रशिक्षण कार्यक्रमों के हिस्से के रूप में इसे शामिल करने वाला पहला समूह है।
- यह मीडिया ही है जिसने कठिन दौर में दुनिया को एक मंच प्रदान किया और एक वैश्विक परिवार की भावना को मज़बूत किया।
स्रोत: पी.आई.बी.
शासन व्यवस्था
गन वायलेंस
प्रिलिम्स के लिये:शस्त्र (संशोधन) अधिनियम, 2019 मेन्स के लिये:समाज से संबंधित चुनौतियाँ और मुद्दे, शस्त्र (संशोधन) अधिनियम, 2019 |
चर्चा में क्यों?
गन वायलेंस एक ऐसा मुद्दा है जिस पर विभिन्न देशों में अक्सर गरमा-गरम बहस होती रहती है।
- बंदूक (Gun) विरोधी कार्यकर्त्ताओं ने अक्सर सार्वजनिक स्थानों पर सामूहिक गोलीबारी में निर्दोष लोगों की हत्या की ओर ध्यान आकर्षित किया है तथा अमेरिका में नागरिकों द्वारा बंदूक की खरीद पर प्रतिबंध लगाने का आह्वान किया है, साथ ही भारत में बढ़ती बंदूक की संस्कृति पर भी चिंता जताई है।
बंदूक तक पहुँच के पक्ष में तर्क:
- कुछ लोगों का मानना है कि बंदूक वास्तव में अपराध करने की लागत बढ़ाकर अपराध की संभावना को कम कर सकती हैं। उनका मानना है कि बंदूक रखने वाले नागरिकों द्वारा संभावित रूप से बचाए गए जीवन की संख्या का आकलन करना मुश्किल है (केवल उन अपराधों को छोड़कर जो कभी नहीं हुए क्योंकि संभावित पीड़ितों के पास बंदूक थी)।
- कुछ शोधकर्त्ताओं ने पाया है कि अमेरिका में अश्वेतों के बीच आग्नेयास्त्रों की पहुँच और लिंचिंग की घटनाओं के बीच एक मज़बूत नकारात्मक संबंध है। इसका तात्पर्य है कि आग्नेयास्त्रों तक पहुँच ने अश्वेतों को लिंचिंग की घटनाओं से बेहतर ढंग से बचाने में मदद की।
भारत में बंदूक रखने वालों की स्थिति:
- वर्ष 2018 के स्मॉल आर्म्स सर्वे ने दावा किया कि भारत में असैन्य बंदूक का स्वामित्व आश्चर्यजनक रूप से 70 मिलियन है, जो अमेरिका के बाद दूसरे स्थान पर है।
- यह आँकड़ा अजीब लगता है, यह देखते हुए कि भारत में बंदूक लाइसेंसों की संख्या सिर्फ 3.4 मिलियन है, उनमें से एक-तिहाई से अधिक उत्तर प्रदेश में हैं।
- वर्ष 2016 में भारत बंदूक से की गई हत्याओं के मामले में तीसरे स्थान पर था, जिसमें 90% से अधिक मामलों में बिना लाइसेंस वाले हथियारों का प्रयोग शामिल था जो इंगित करता है कि अवैध बंदूकों की ज़ब्ती, एक बड़ी समस्या के लिये कम प्रभावशाली कदम है।
- राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की वर्ष 2020 की रिपोर्ट के अनुसार, उस वर्ष लगभग 75,000 आग्नेयास्त्रों को ज़ब्त किया गया था, जिनमें से लगभग आधे उत्तर प्रदेश से थे, जो व्यापक रूप से अवैध हथियारों के निर्माण के केंद्र के रूप में जाना जाता है।
भारत में शस्त्र नियंत्रण कानून:
- शस्त्र अधिनियम, 1959:
- परिचय: इसका उद्देश्य भारत में हथियारों और गोला-बारूद के अधिग्रहण, कब्ज़े, निर्माण, बिक्री, आयात, निर्यात एवं परिवहन से संबंधित सभी पहलुओं को शामिल करना है।
- भारत में बंदूक का लाइसेंस प्राप्त करने के लिये अर्हताएँ:
- भारत में बंदूक लाइसेंस प्राप्त करने के लिये न्यूनतम आयु सीमा 21 वर्ष है।
- आवेदन करने से पांँच वर्ष पूर्व आवेदक को हिंसा या नैतिकता से जुड़े किसी भी अपराध का दोषी नहीं ठहराया गया हो, वह 'विकृत दिमाग' का न हो, न ही सार्वजनिक सुरक्षा और शांति के लिये खतरा हो।
- संपत्ति योग्यता बंदूक लाइसेंस प्राप्त करने के लिये एक मानदंड नहीं है।
- कोई आवेदन प्राप्त होने पर लाइसेंसिंग प्राधिकरण (अर्थात, गृह मंत्रालय), निकटतम पुलिस स्टेशन के प्रभारी अधिकारी को निर्धारित समय के भीतर पूरी तरह से जांँच के बाद आवेदक के बारे में एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिये कहता है।
- अधिनियम की अन्य विशेषताएंँ:
- यह 'निषिद्ध हथियार' को उन हथियारों के रूप में परिभाषित करता है जो या तो कोई भी हानिकारक तरल या गैस छोड़ते हैं, या ऐसे हथियार जिन्हें चलाने के लिये ट्रिगर दबाने की आवश्यकता होती है।
- यह फसल सुरक्षा या खेल के लिये कम-से-कम 20 इंच के बैरल के साथ चिकनी बोर बंदूक के उपयोग की अनुमति देता है।
- किसी भी संस्था को ऐसी किसी भी प्रकार की बंदूक को बेचने या स्थानांतरित करने की अनुमति नहीं है, जिस पर निर्माता का नाम, निर्माता का नंबर या कोई मुहर लगी पहचान चिह्न नहीं है।
- आयुध संशोधन अधिनियम, 2019:
- 2019 में संशोधित आयुध अधिनियम में एक व्यक्ति द्वारा खरीदी जा सकने वाले आग्नेयास्त्रों की संख्या को 3 से घटाकर 2 किया गया।
- लाइसेंस की वैधता को वर्तमान के 3 वर्ष से बढ़ाकर 5 वर्ष कर दिया गया है।
- यह सामाजिक सद्भाव सुनिश्चित करने के लिये लाइसेंस प्राप्त हथियारों के उपयोग को कम करने के लिये विशिष्ट प्रावधानों को भी सूचीबद्ध करता है।
- बिना लाइसेंस के प्रतिबंधित गोला-बारूद के अधिग्रहण, हथियाने या ले जाने के अपराध के लिये जुर्माने के साथ-साथ कारावास की सज़ा को 7 से 14 साल के बीच कर दिया गया है।
- यह बिना लाइसेंस के आग्नेयास्त्रों की एक श्रेणी को दूसरी श्रेणी में बदलने पर रोक लगाता है।
- गैरकानूनी निर्माण, बिक्री और हस्तांतरण के लिये कम-से-कम सात साल के कैद की सज़ा दी जा सकती है, जिसे ज़ुर्माने के साथ-साथ आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है।
आगे की राह
- एक तरीका यह है कि सख्त़ बंदूक नियंत्रण लागू किया जाए और गंभीरता के साथ प्रतिबंधित किया जाए कि कौन हथियार खरीद सकता है। इस संबंध में अमेरिकी कानून बहुत लचीले और उदार हैं।
- भारत को भी आग्नेयास्त्रों के अधिग्रहण और कब्ज़े से संबंधित कानूनों की समीक्षा करने और उन्हें कड़ा करने की आवश्यकता है।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
IBBI विनियमों में संशोधन
हाल ही में भारतीय दिवाला और दिवालियापन बोर्ड (IBBI) ने तनावग्रस्त कंपनियों के मूल्य को बढ़ावा देने के लिये अपने नियमों में संशोधन किया है।
- IBBI (कॉरपोरेट्स के लिये दिवाला समाधान प्रक्रिया) विनियम, 2016 में संशोधन संकल्प में मूल्य को अधिकतम करने के लिये किया गया है।
- यह अन्य परिवर्तनों के अलावा दिवाला समाधान प्रक्रिया से गुज़र रही इकाई की एक या अधिक संपत्तियों की बिक्री की अनुमति देगा।
संशोधित नियम:
- लेनदारों की समिति (Committee of Creditors-CoC) अब जाँच कर सकती है कि परिसमापन अवधि के दौरान कॉरपोरेट देनदार (CD) के लिये समझौता या व्यवस्था की जा सकती है या नहीं।
- जून 2022 तक 1,703 कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रियाएँ (CIRPs) समाप्त हो गईं।
- नियामक ने समाधान पेशेवर और CoC को संबंधित कॉरपोरेट देनदार की एक या अधिक संपत्तियों की बिक्री की तलाश करने की अनुमति दी है, जहाँ पूरे व्यवसाय के लिये कोई समाधान योजना नहीं है।
- समाधान योजना जिसमें एक या एक से अधिक CD परिसंपत्तियों की बिक्री शामिल है, एक या एक से अधिक सफल समाधान आवेदकों को शेष संपत्तियों के उचित उपचार के साथ उपलब्ध कराई जाएगी।
- समाधान पेशेवर (Resolution Professional-RP) को संबंधित कंपनी के ज्ञात (खातों की पुस्तिका के आधार पर) लेनदारों से सक्रिय रूप से दावों की जानकारी प्राप्त करनी होगी जो ऋण उपलब्ध कराने में मदद करेंगे।
- RPs को CIRP के शुरू होने के 75 दिनों के भीतर इस बारे में राय देनी होगी कि क्या कंपनी ऋण भुगतान लेनदेन के अधीन है।
- RP को अब यह आकलन और रिपोर्ट करने की आवश्यकता होगी कि क्या कंपनी ने दिवाला कार्यवाही से पहले धन की निकासी के लिये कोई लेन-देन किया है।
- विनियमों में कहा गया है कि RP द्वारा की गई किसी भी नियुक्ति हेतु पारदर्शी प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिये।
- अंतरण से बचने के लिये दायर किसी भी आवेदन का विवरण समाधान योजना प्रस्तुत करने से पहले आवेदकों को उपलब्ध कराया जाएगा और आवेदक उन्हें अपनी योजनाओं में संबोधित कर सकते हैं।
- सूचना के ज्ञापन में भौतिक जानकारी का शामिल होना आवश्यक है जो चुनौती के रूप में उन्हें स्थिति का आकलन करने में मदद करेगा, न कि केवल संपत्ति की जानकारी के बारे में, जिससे बाज़ार की महत्त्वपूर्ण आवश्यकता को संबोधित किया जा सकेगा।
संशोधित विनियमों का महत्त्व:
- प्रावधान हितधारकों को खोए हुए मूल्य को वापस पाने की अनुमति देंगे और हितधारकों को इस तरह के लेन-देन करने से हतोत्साहित करेंगे।
- ये संशोधन बाज़ार में परिसंपत्ति को दीर्घ अवधि तक उपलब्ध रहने की अनुमति देते हैं।
- इन संशोधनों से दिवाला समाधान के लिये उचित बाज़ार आधारित समाधानों को प्रोत्साहन मिलेगा।
- यह सुनिश्चित करेगा कि दिवालिया कंपनी और उसकी संपत्ति के बारे में बेहतर गुणवत्ता की जानकारी संभावित समाधान आवेदकों सहित बाज़ार के लिये समय पर उपलब्ध हो।
भारतीय दिवाला और शोधन अक्षमता बोर्ड:
- भारतीय दिवाला और शोधन अक्षमता बोर्ड की स्थापना वर्ष 2016 में दिवाला और शोधन अक्षमता नियम, 2016 द्वारा की गई थी।
- यह इस नियम के कार्यान्वयन के लिये उत्तरदायी परितंत्र का एक प्रमुख स्तंभ है। यह उद्यमिता को बढ़ावा देने, ऋण की उपलब्धता और सभी हितधारकों के हितों को संतुलित करने के लिये कॉरपोरेट्स, साझेदारी फर्मों तथा लोगों के पुनर्गठन और दिवाला समाधान से संबंधित कानूनों को समयबद्ध तरीके से समेकित एवं संशोधित करता है ताकि ऐसे व्यक्त्तियों की संपत्ति के मूल्य को अधिकतम किया जा सके।
- यह एक अद्वितीय नियामक है क्योंकि यह पेशे के साथ-साथ प्रक्रियाओं को भी नियंत्रित करता है।
- यह दिवाला पेशेवरों, दिवाला व्यावसायिक एजेंसियों, दिवाला व्यावसायिक संस्थाओं और सूचना उपयोगिताओं का नियामक पर्यवेक्षण करता है।
- इसे देश में मूल्यांकनकर्त्ताओं के पेशे के विनियमन और विकास के लिये कंपनियाँ (पंजीकृत मूल्यकार और मूल्यांकन नियम), 2017 के तहत 'प्राधिकरण' के रूप में भी नामित किया गया है।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन हाल ही में समाचारों में देखे गए 'तनावग्रस्त आस्तियों की सतत् संरचना के लिये योजना (S4A)' का सबसे अच्छा वर्णन करता है? (2017) (a) यह सरकार द्वारा तैयार की गई विकासात्मक योजनाओं की पारिस्थितिक लागत पर विचार करने की एक प्रक्रिया है। उत्तर: b व्याख्या:
अतः विकल्प b सही उत्तर है। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
ई-सिम प्रौद्योगिकी
प्रिलिम्स के लिये:ई-सिम (eSIMs) प्रौद्योगिकी, दूरसंचार से संबंधित प्रौद्योगिकी। मेन्स के लिये:ई-सिम प्रौद्योगिकी के फायदे और नुकसान। |
चर्चा में क्यों?
अमेरिकी बहुराष्ट्रीय प्रौद्योगिकी कंपनी एप्पल इंक मोबाइल नेटवर्क तक पहुँच हेतु भौतिक सिम स्लॉट के बिना या ई- सिम (eSIMs) बाज़ार में उतारने जा रहा है।
ई-सिम (eSIM):
- eSIM को पहली बार वर्ष 2012 में उपयोग किया गया था।
- यह एम्बेडेड सिम है, जो एक नियमित सिम कार्ड चिप के समान हार्डवेयर में स्थायी रूप से एम्बेडेड होता है।
- पारंपरिक सिम कार्ड की तरह, eSIM में भी कुछ घटक होते हैं, जो फोन के आंतरिक भागों का हिस्सा होते हैं और वे भी उसी तरह कार्य करते हैं, दूरसंचार ऑपरेटरों तथा अन्य उपभोक्ताओं के लिये एक विशिष्ट पहचानकर्त्ता के रूप में कार्य करते हुए जब वे कॉल करते हैं या टेक्स्ट भेजते हैं तो आपके सटीक स्मार्टफोन तक पहुँचे जाते हैं।
- हालाँकि मदरबोर्ड से जुड़ा होने से री-प्रोग्रामिंग की भी अनुमति होती है, जिससे उपयोगकर्त्ता किसी भी भौतिक सिम कार्ड को प्रतिस्थापित किये बिना ऑपरेटरों को स्विच कर सकते हैं।
फायदे:
- सुरक्षा:
- eSIM के खोने का ज़ोखिम कम होता है, साथ ही किसी भी प्रकार के भौतिक नहीं होने के कारण इसे किसी उपकरण से निकालने जैसी कोई समस्या नहीं होती।
- खो जाने के बाद भी आपके सोशल मीडिया या बैंक खातों में सेंध लगाने के लिये हमलावर आपके फोन का उपयोग नहीं कर सकते।
- अनावश्यक छिद्र की कमी:
- अनावश्यक छिद्र के अभाव से फोन को धूल अथवा जल से क्षति होने की संभावना कम होती है।
- इससे फोन के अंदरूनी भाग में थोड़ी जगह बचती है जिसका उपयोग किसी अन्य काम के लिये किया जा सकता है।
नुकसान:
- आपातकाल में:
- यदि आपका फोन काम करना बंद कर देता है या गिर जाता है और स्क्रीन टूट जाती है, बैटरी खत्म हो जाती है तो आपका संचार eSIM के साथ पूरी तरह से ठप हो जाता है। जबकि ऐसे में पारंपरिक सिम को टूटे फोन से निकालकर दूसरे बैकअप डिवाइस या सेकेंडरी फोन में जल्दी से लगाया जा सकता है।
- eSIM को सपोर्ट न करने वाले देशों में अनुपयोगी:
- eSIM फोन का उपयोग उस देश में नहीं किया जा सकता है जहाँ दूरसंचार ऑपरेटर अभी तक तकनीक का समर्थन नहीं करते हैं।
- उस स्थिति में कोई समस्या नहीं उत्पन्न होती है यदि आपका फोन eSIM और पारंपरिक सिम दोनों का समर्थन करता है, लेकिन यूएस-संस्करण iPhone 14 जो केवल eSIM का समर्थन करता है जैसे उपकरणों में यह समस्या देखी गई है।
- दूरसंचार कंपनियों का अधिक नियंत्रण:
- एक eSIM दूरसंचार ऑपरेटर के स्टोर से प्राप्त किया जा सकता है, लेकिन किसी को अपना फोन स्विच करते समय ऑपरेटर पर निर्भर रहना पड़ता है।
- भविष्य में ऑपरेटर eSIM प्लान या फोन स्विच करने के लिये अतिरिक्त शुल्क ले सकते हैं।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
नीतिशास्त्र
सामाजिक क्षेत्र की योजनाओं का सामाजिक लेखापरीक्षा
मेन्स के लिये:सामाजिक क्षेत्र की योजनाओं और उसके लाभों की सामाजिक लेखापरीक्षा |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राजस्थान सरकार ने योजनाओं का सामाजिक लेखापरीक्षा करने के लिये एक विशेष सामाजिक और प्रदर्शन लेखापरीक्षा प्राधिकरण स्थापित करने का निर्णय लिया है, जो देश में अपनी तरह का पहला प्राधिकरण होगा।
इस निर्णय का महत्त्व:
- सार्वजनिक जवाबदेही सुनिश्चित करना:
- प्राधिकरण सरकारी योजनाओं, कार्यक्रमों और सेवाओं के कार्यान्वयन में सार्वजनिक जवाबदेही, पारदर्शिता एवं नागरिकों की भागीदारी सुनिश्चित करेगा तथा कार्यान्वयन एजेंसियों का प्रदर्शन मूल्यांकन भी करेगा।
- गुणवत्तापूर्ण सेवा वितरण का आकलन करना:
- यह प्राधिकरण सरकारी योजनाओं और कार्यक्रमों द्वारा गुणवत्तापूर्ण सेवा वितरण का भी आकलन करेगा।
- यह विभिन्न योजनाओं के परिणाम का पता लगाने के लिये लोगों की संतुष्टि का सर्वेक्षण भी करेगा।
- सामाजिक लेखापरीक्षा और निष्पादन लेखापरीक्षा की योजना बनाना:
- यह प्राधिकरण राजस्थान राज्य में सरकारी विभागों, उपक्रमों, योजनाओं (केंद्रीय और राज्य), कार्यक्रमों, परियोजनाओं तथा गतिविधियों की सामाजिक लेखापरीक्षा एवं प्रदर्शन लेखापरीक्षा के लिये योजना निर्माण, उसके संचालन व अंतिम रूप देने का काम करेगा।
- यह सेवाओं के वितरण की कुशलता और प्रभावशीलता के साथ-साथ जनता के पैसे के सही ढंग से खर्च की जाँच करेगा।
- यह प्राधिकरण राजस्थान राज्य में सरकारी विभागों, उपक्रमों, योजनाओं (केंद्रीय और राज्य), कार्यक्रमों, परियोजनाओं तथा गतिविधियों की सामाजिक लेखापरीक्षा एवं प्रदर्शन लेखापरीक्षा के लिये योजना निर्माण, उसके संचालन व अंतिम रूप देने का काम करेगा।
- सिविल सेवा संगठनों की पहचान तथा क्षमता निर्माण:
- यह विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों के प्रभावी कार्यान्वयन के लिये तकनीकी सहायता प्रदान करेगा; वार्षिक योजनाओं और परिणामों (outcome) के साथ ही बजट के सुदृढ़ीकरण के लिये वित्त और योजना विभाग को तकनीकी सहायता प्रदान करना तथा ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में विकास और बुनियादी ढाँचे के कार्यों के गुणवत्ता मानकों का आकलन करना।
सामाजिक लेखापरीक्षा:
- परिचय:
- यह सरकार और लोगों (विशेष रूप से वे लोग जो योजना से प्रभावित हैं) द्वारा संयुक्त रूप से किसी योजना के क्रियान्वयन का मूल्यांकन है।
- सोशल ऑडिट वित्तीय ऑडिट से अलग है जिसमें किसी संगठन के लाभ, हानि और वित्तीय स्थिरता की सही तस्वीर प्रदान करने के लिये वित्तीय लेन-देन से संबंधित दस्तावेजों का निरीक्षण और मूल्यांकन करना शामिल है।
- सामाजिक लेखापरीक्षा और मनरेगा:
- मनरेगा की धारा 17 के तहत कार्यक्रम के अंतर्गत निष्पादित सभी कार्यों को एक सामाजिक लेखापरीक्षा से गुज़रना होगा।
- प्रत्येक सामाजिक लेखापरीक्षा इकाई पिछले वर्ष में राज्य द्वारा किये गए मनरेगा व्यय के 0.5% के बराबर धन की हकदार है।
- ऑडिट में मनरेगा के तहत बनाए गए बुनियादी ढाँचे की गुणवत्ता जाँच, मज़दूरी में वित्तीय हेराफेरी और किसी भी प्रक्रियात्मक विचलन की जाँच शामिल है।
- केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय (MoRD) द्वारा हाल ही में 'सामाजिक लेखापरीक्षा कैलेंडर बनाम पूर्ण लेखापरीक्षा' शीर्षक वाली रिपोर्ट जारी की गई थी, जिसमें बताया गया है कि वर्ष 2021-2022 में नियोजित लेखापरीक्षा का केवल 14.29% ही पूरा हुआ है।
- मंत्रालय ने यह भी माना कि राज्यों द्वारा महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (MGNREGS) का सामाजिक लेखापरीक्षा करने में विफलता के लिये धन की रोकथाम सहित कार्रवाई की जाएगी।
- हालाँकि केंद्र (जो इन सामाजिक लेखापरीक्षा इकाइयों की प्रशासनिक लागत वहन करता है) द्वारा धन जारी करने में अत्यधिक देरी ने इनमें से कई नकदी-संकट वाली इकाइयों को लगभग पंगु बना दिया है।
- मनरेगा की धारा 17 के तहत कार्यक्रम के अंतर्गत निष्पादित सभी कार्यों को एक सामाजिक लेखापरीक्षा से गुज़रना होगा।
- चुनौतियांँ:
- प्रशासनिक इच्छाशक्ति का अभाव:
- भ्रष्टाचार को रोकने के लिये सामाजिक लेखापरीक्षा को संस्थागत बनाने में पर्याप्त प्रशासनिक और राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी का मतलब है कि देश के कई हिस्सों में सामाजिक लेखापरीक्षा कार्यान्वयन एजेंसियों से प्रभावित है।
- केरल, तेलंगाना, हिमाचल प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे कुछ राज्यों की सामाजिक लेखापरीक्षा इकाइयों को वह प्रशासनिक धन प्राप्त नहीं हुआ था जो केंद्र ने उन्हें दिया था। इसलिये लेखा परीक्षकों के वेतन में तीन महीने से एक वर्ष तक की देरी हुई है।
- प्रतिरोध और धमकी:
- ग्राम सामाजिक अंकेक्षण सुविधादाताओं सहित सामाजिक लेखापरीक्षा इकाइयों को प्रतिरोध और धमकी का सामना करना पड़ रहा है तथा सत्यापन हेतु प्राथमिक अभिलेखों तक पहुंँचने में भी मुश्किल हो रही है।
- जनभागीदारी का अभाव:
- आम जनता के बीच शिक्षा, जागरूकता और क्षमता निर्माण की कमी के कारण लोगों की भागीदारी नगण्य रही है।
- स्वतंत्र एजेंसी की अनुपस्थिति:
- सामाजिक लेखापरीक्षा के निष्कर्षों की जांँच और कार्रवाई करने हेतु एक स्वतंत्र एजेंसी का अभाव है।
- प्रशासनिक इच्छाशक्ति का अभाव:
आगे की राह
- नागरिक समूहों को सामाजिक लेखापरीक्षा को मज़बूत करने हेतु अभियान चलाने और राजनीतिक कार्यकारी तथा इसकी कार्यान्वयन एजेंसियों को जवाबदेह बनाने की आवश्यकता है।
- प्रत्येक ज़िले में सामाजिक अंकेक्षण विशेषज्ञों की टीम गठित की जानी चाहिये जो सामाजिक लेखापरीक्षा समिति के सदस्यों (हितधारकों) के प्रशिक्षण हेतु ज़िम्मेदार हो।
- सामाजिक अंकेक्षण के तरीकों पर प्रशिक्षण कार्यक्रम तैयार किये जाने चाहिये जैसे कि सामाजिक लेखापरीक्षा रिपोर्ट तैयार करना और अंकेक्षण करना एवं उसे ग्राम सभा में प्रस्तुत करना।
- सामाजिक अंकेक्षण की प्रणाली को एक संस्थागत ढांँचे की स्थापना करने के लिये सहक्रियात्मक समर्थन और अधिकारियों द्वारा किसी भी निहित स्वार्थ के बिना प्रोत्साहित किये जाने की आवश्यकता होती है।
स्रोत: द हिंदू
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत-सऊदी अरब संबंध
प्रिलिम्स के लिये:सऊदी अरब के पड़ोसी देश, सऊदी अरब के साथ व्यापार मेन्स के लिये:भारत-सऊदी अरब संबंध |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग, उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण तथा कपड़ा मंत्री ने भारत-सऊदी अरब रणनीतिक साझेदारी परिषद की मंत्रिस्तरीय बैठक में भाग लेने के लिये सऊदी अरब का दौरा किया।
बैठक के प्रमुख निष्कर्ष:
- फरवरी 2019 में सऊदी अरब द्वारा किये गए भारत में 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर के निवेश की घोषणा को साकार करने के प्रयासों को सुव्यवस्थित करना।
- तकनीकी टीमों द्वारा 4 व्यापक क्षेत्रों के तहत पहचाने गए सहयोग के 41 क्षेत्रों का समर्थन:
- कृषि और खाद्य सुरक्षा
- ऊर्जा
- प्रौद्योगिकी और सूचना प्रौद्योगिकी
- उद्योग और बुनियादी ढाँचा
- प्राथमिकता वाली परियोजनाओं का समयबद्ध तरीके से क्रियान्वयन करने का संकल्प। इसमें शामिल सहयोग के प्राथमिकता वाले क्षेत्र हैं:
- सऊदी अरब में यूपीआई और रुपे कार्ड के संचालन के माध्यम से डिजिटल फिनटेक क्षेत्र में सहयोग।
- पश्चिमी तट पर एक रिफाइनरी का निर्माण, तरलीकृत प्राकृतिक गैस (LNG) बुनियादी ढाँचे में निवेश और भारत में सामरिक पेट्रोलियम भंडारण सुविधाओं के विकास सहित संयुक्त परियोजनाओं में निरंतर सहयोग की दोबारा पुष्टि।
- चर्चा में कुछ और प्रमुख बिंदु शामिल थे:
- दोनों देशों के एक्ज़िम बैंकों का संस्थागत गठजोड़
- मानकों की पारस्परिक मान्यता
- स्टार्टअप और इनोवेशन ब्रिज की स्थापना
- बुनियादी ढाँचे के विकास में सहयोग को मज़बूत करना, विशेष रूप से निर्माण के क्षेत्र में
- रेलवे आदि।
भारत-सऊदी अरब रणनीतिक साझेदारी परिषद
- सामरिक भागीदारी परिषद की स्थापना अक्तूबर, 2019 में भारत के प्रधानमंत्री की सऊदी अरब की यात्रा के दौरान की गई थी।
- इसके दो मुख्य स्तंभ हैं:
- राजनीतिक, सुरक्षा, सामाजिक और सांस्कृतिक समिति
- अर्थव्यवस्था और निवेश पर समिति
- ब्रिटेन, फ्राँस और चीन के बाद भारत चौथा देश है जिसके साथ सऊदी अरब ने इस तरह की रणनीतिक साझेदारी की है।
सऊदी अरब के साथ भारत के संबंध:
- तेल और गैस:
- सऊदी अरब वर्तमान में भारत को कच्चे तेल का दूसरा सबसे बड़ा आपूर्तिकर्त्ता है (इराक शीर्ष आपूर्तिकर्त्ता है)।
- भारत अपनी कच्चे तेल की आवश्यकता का लगभग 18% और अपनी तरलीकृत पेट्रोलियम गैस (Liquified Petroleum Gas-LPG) आवश्यकता का लगभग 22% सऊदी अरब से आयात करता है।
- सऊदी अरामको, संयुक्त अरब अमीरात के एडनोक और भारतीय सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियों द्वारा महाराष्ट्र के रायगढ़ में दुनिया की सबसे बड़ी ग्रीनफील्ड रिफाइनरी की स्थापना के लिये अध्ययन किया जा रहा है।
- सऊदी अरब वर्तमान में भारत को कच्चे तेल का दूसरा सबसे बड़ा आपूर्तिकर्त्ता है (इराक शीर्ष आपूर्तिकर्त्ता है)।
- द्विपक्षीय व्यापार:
- सऊदी अरब भारत का चौथा सबसे बड़ा व्यापार भागीदार (अमेरिका, चीन और जापान के बाद) है।
- वित्त वर्ष 2021-22 में द्विपक्षीय व्यापार8 अरब अमेरिकी डॉलर का था।
- सऊदी अरब से भारत का आयात 34.01 अरब डॉलर और सऊदी अरब को 8.76 अरब डॉलर का निर्यात हुआ। वर्ष 2021 की तुलना में 49.5% की वृद्धि हुई।
- वित्त वर्ष 2021-22 में सऊदी अरब के साथ व्यापार भारत के कुल व्यापार का 4.14% है।
- भारतीय प्रवासी:
- सऊदी अरब में 6 मिलियन भारतीय प्रवासी समुदाय सऊदी का सबसे बड़ा प्रवासी समुदाय है और उनकी विशेषज्ञता, अनुशासन की भावना, कानून का पालन करने और शांतिप्रिय प्रकृति के कारण 'सबसे पसंदीदा समुदाय' है।
- सांस्कृतिक संबंध:
- हज यात्रा भारत और सऊदी अरब के बीच द्विपक्षीय संबंधों का एक अन्य महत्त्वपूर्ण घटक है।
- नौसेना अभ्यास:
- वर्ष 2021 में भारत और सऊदी अरब ने अल-मोहद अल-हिंदी अभ्यास नामक अपना पहला नौसेना संयुक्त अभ्यास शुरू किया।
आगे की राह
- भारत, सऊदी अरब के साथ अपने मैत्रीपूर्ण संबंधों का उपयोग इसे अफगानिस्तान में तालिबान को नियंत्रित करने के लिये पाकिस्तान पर अपने प्रभाव का प्रयोग करने के लिये राजी करने में कर सकता है।
- दोनों अर्थव्यवस्थाओं का एक संयुक्त सहयोगात्मक प्रयास दक्षिण-पश्चिम एशिया के उप-क्षेत्रों में परिवर्तन लाने का कार्य करेगा।
- वर्तमान में सऊदी अरब के साथ भारत का व्यापार घाटा 25.25 बिलियन डॉलर का है। भारत को विभिन्न क्षेत्रों में निर्यात को बढ़ावा देने पर अधिक ध्यान देना चाहिये। यह हमें स्वस्थ व्यापार संबंधों का निर्माण करते हुए राज्य के साथ व्यापार संतुलन बनाए रखने में सक्षम बनाएगा।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न:प्रिलिम्सप्रश्न. निम्नलिखित में से कौन 'खाड़ी सहयोग परिषद' का सदस्य नहीं है? (2016) (a) ईरान उत्तर: (a)
अत: विकल्प (a) सही उत्तर है। मेन्सप्रश्न. भारत की ऊर्जा सुरक्षा का प्रश्न भारत की आर्थिक प्रगति का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भाग है। पश्चिम एशियाई देशों के साथ भारत के ऊर्जा नीति सहयोग का विश्लेषण कीजिये। (2017) |
स्रोत: पी.आई.बी.
भारतीय राजव्यवस्था
आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग (EWS) के लिये आरक्षण
प्रिलिम्स के लिये:आरक्षण, भारत के महान्यावादी, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, सकारात्मक कार्रवाई, बुनियादी संरचना सिद्धांत। मेन्स के लिये:आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग (EWS) के लिये आरक्षण के निहितार्थ। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के महान्यायवादी ने स्पष्ट किया कि समाज के आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों (EWS) के लिये 10% आरक्षणअनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों या अन्य पिछड़े वर्गों के अधिकारों का हनन नहीं करता है।
सरकार का दृष्टिकोण:
- अन्य वर्गों के आरक्षण का हनन नहं: EWS आरक्षण पिछड़े वर्गों, यानी अनुसूचित समुदायों और ओबीसी के लिये पहले से मौजूद 50% आरक्षण के अलावा स्वतंत्र रूप से दिया गया था।
- महान्यायवादी ने याचिकाकर्त्ताओं के तर्कों को खारिज कर दिया कि EWS आरक्षण से पिछड़े वर्गों का बहिष्कार भेदभाव के समान है, क्योंकि उन्हें सकारात्मक कार्रवाई के माध्यम से आरक्षण प्राप्त हुआ है।उदाहरण के लिये अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदायों के सदस्यों को संविधान के तहत कई लाभ दिये गए हैं, जिनमें अनुच्छेद 16 (4) (A) (पदोन्नति के लिये विशेष प्रावधान), अनुच्छेद 243 D (पंचायत और नगरपालिका सीटों में आरक्षण), अनुच्छेद 330 (लोकसभा में आरक्षण) और अनुच्छेद 332 (राज्य विधानसभाओं में आरक्षण) शामिल हैं।
- कमज़ोर वर्ग के उत्थान के लिये आवश्यक: पिछड़े वर्गों (OBC) के लिये आरक्षण और अब EWS आरक्षण को न्यायालय द्वारा "समाज के कमज़ोर वर्गों के उत्थान के लिये राज्य के एकल दृष्टिकोण" के रूप में माना जाना चाहिये।
- सामान्य श्रेणी में कुल जनसंख्या का 18.2% EWS से संबंधित था और नीति आयोग द्वारा उपयोग किये जाने वाले बहु-आयामी गरीबी सूचकांक को संदर्भित करता है, जो जनसंख्या का लगभग 350 मिलियन (3.5 करोड़) है।
- संविधान प्रदत्त: OBC, SC और ST के लिये आरक्षण EWS आरक्षण के अलावा अलग-अलग ढाँचे के अंतर्गत आता है और यह संविधान के मूल ढाँचे का उल्लंघन नहीं करता है।
- उदाहरण: सरकार द्वारा प्रस्तुत लिखित प्रस्तुतियों के अनुसार, शीर्ष न्यायालय ने बच्चों के निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार अधिनियम, 2009 की वैधता प्रदान किया था।
- न्यायालय ने माना था कि 2009 का अधिनियम वित्तीय और मनोवैज्ञानिक बाधाओं सहित सभी बाधाओं को दूर करने का प्रयास करता है, जो कमज़ोर वर्ग एवं वंचित समूह के एक बच्चे को प्रवेश की मांग करते समय सामना करना पड़ता है तथा संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत इसे बरकरार रखा।
याचिकाकर्त्ताओं के तर्क:
- संशोधन संवैधानिक योजना के विपरीत हैं जहाँ उपलब्ध सीटों/पदों का कोई भी खंड केवल आर्थिक मानदंडों के आधार पर आरक्षित नहीं किया जा सकता है।
- याचिका में कहा गया था कि यह संविधान संशोधन वर्ष 1992 में इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गए निर्णय के विपरीत है, जिसमें न्यायालय ने स्पष्ट तौर पर कहा था कि ‘पिछड़े वर्ग का निर्धारण केवल आर्थिक कसौटी के संदर्भ में नहीं किया जा सकता है।’
- याचिकाकर्त्ताओं का एक मुख्य तर्क यह भी था कि सरकार द्वारा आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग (EWS) के लिये लागू किये गए आरक्षण के प्रावधान सर्वोच्च न्यायालय द्वारा लागू की गई 50 प्रतिशत की सीमा का उल्लंघन करते हैं।
आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग (EWS) के लिये आरक्षण:
- परिचय:
- 10% EWS कोटा 103वें संविधान (संशोधन) अधिनियम, 2019 के तहत अनुच्छेद 15 और 16 में संशोधन करके पेश किया गया था।
- संशोधन के माध्यम से भारतीय संविधान में अनुच्छेद 15 (6) और अनुच्छेद 16 (6) सम्मिलित किया गया।
- यह आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों (EWS) हेतु शिक्षा संस्थानों में नौकरियों और प्रवेश में आर्थिक आरक्षण के लिये है।
- यह अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और सामाजिक एवं शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों (SEBC) के लिये 50% आरक्षण नीति द्वारा कवर नहीं किये गए गरीबों के कल्याण को बढ़ावा देने हेतु अधिनियमित किया गया था।
- यह केंद्र और राज्यों दोनों को समाज के EWS को आरक्षण प्रदान करने में सक्षम बनाता है।
- 10% EWS कोटा 103वें संविधान (संशोधन) अधिनियम, 2019 के तहत अनुच्छेद 15 और 16 में संशोधन करके पेश किया गया था।
- महत्त्व:
- असमानता को संबोधित करता है:
- 10% कोटे का विचार प्रगतिशील है और भारत में शैक्षिक तथा आय असमानता के मुद्दों को संबोधित कर सकता है क्योंकि नागरिकों के आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों को उनकी वित्तीय अक्षमता के कारण उच्च शिक्षण संस्थानों एवं सार्वजनिक रोज़गार में भाग लेने से बाहर रखा गया है।
- आर्थिक पिछड़ों को मान्यता:
- पिछड़े वर्ग के अलावा बहुत से लोग या वर्ग हैं जो भूख और गरीबी की परिस्थितियों में जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
- संवैधानिक संशोधन के माध्यम से प्रस्तावित आरक्षण उच्च जातियों के गरीबों को संवैधानिक मान्यता प्रदान करेगा।
- जाति आधारित भेदभाव में कमी:
- इसके अलावा यह धीरे-धीरे आरक्षण से जुड़े कलंक को हटा देगा क्योंकि आरक्षण का ऐतिहासिक रूप से जाति से संबंध रहा है और अक्सर उच्च जाति उन लोगों को देखती है जो आरक्षण के माध्यम से आते हैं।
- असमानता को संबोधित करता है:
- चिंताएँ:
- डेटा की अनुपलब्धता:
- EWS कोटे में उद्देश्य और कारण के बारे में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि नागरिकों के आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों को आर्थिक रूप से अधिक विशेषाधिकार प्राप्त व्यक्तियों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने के लिये उनकी वित्तीय अक्षमता के कारण उच्च शिक्षण संस्थानों व सार्वजनिक रोज़गार के अवसरों में भाग लेने से बाहर रखा गया है।
- इस प्रकार के तथ्य संदिग्ध हैं क्योंकि सरकार ने इस बात का समर्थन करने के लिये कोई डेटा तैयार नहीं किया है।
- मनमाना मानदंड:
- इस आरक्षण हेतु पात्रता तय करने के लिये सरकार द्वारा उपयोग किये जाने वाले मानदंड अस्पष्ट हैं और यह किसी डेटा या अध्ययन पर आधारित नहीं है।
- यहाँ तक कि सर्वोच्च न्यायालय ने भी सरकार से सवाल किया कि क्या राज्यों ने EWS आरक्षण देने के लिये मौद्रिक सीमा तय करते समय हर राज्य के लिये प्रति व्यक्ति जीडीपी की जाँच की है।
- आँकड़े बताते हैं कि भारत के राज्यों में प्रति व्यक्ति आय व्यापक रूप से भिन्न है- जैसे गोवा की प्रति व्यक्ति आय सबसे अधिक 4 लाख है तो वहीं बिहार की प्रति व्यक्ति आय 40,000 रुपए है।
- डेटा की अनुपलब्धता:
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न:प्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित में से किसे "कानून का शासन" की मुख्य विशेषताएँ माना जाता है? (2018)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 3 उत्तर: c व्याख्या:
अतः विकल्प (c) सही है। प्रश्न: क्या राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) धार्मिक अल्पसंख्यक संस्थानों में अनुसूचित जातियों के लिये संवैधानिक आरक्षण के कार्यान्वयन को लागू कर सकता है? परीक्षण कीजिये। (मुख्य परीक्षा 2018) |