रावण का विमानन मार्ग
प्रीलिम्स के लिये:थेरवाद, रावण-1, दांडू मोनारा मेन्स के लिये:श्रीलंका में सांस्कृतिक प्रभुत्त्व का उभार और भारत के हित |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में श्रीलंका के विमानन प्राधिकरण ने कहा है कि वह एक पौराणिक चरित्र रावण के ‘विमानन मार्गों’ (Ravana’s Aviation Routes) का अध्ययन करने के लिये एक शोध परियोजना का नेतृत्व करेगा।
प्रमुख बिंदु:
- सिंहल में एक हालिया अखबार के विज्ञापन में श्रीलंका के नागरिक उड्डयन प्राधिकरण (Civil Aviation Authority of Sri Lanka) ने ‘राजा रावण और अब खो चुके हवाई मार्गों के प्राचीन प्रभुत्त्व’ विषय पर शोध करने के लिये जनता से कोई भी प्रासंगिक दस्तावेज़ एवं साहित्य की मांग की है और उनसे ईमेल एवं फोन नंबर पर संपर्क करने के लिये कहा है।
- यह विज्ञापन श्री लंका के पर्यटन एवं विमानन मंत्रालय (Ministry of Tourism and Aviation) द्वारा जारी किया गया था।
- श्रीलंकाई सरकार का मानना है कि रावण ने 5000 वर्ष पहले उड़ान भरी थी और वह दुनिया का पहला विमान चालक था। श्री लंका प्राचीन काल में उड़ान भरने के लिये इस्तेमाल किये जाने वाले तरीकों की खोज करना चाहता है।
- अनुसंधान में पहले चरण के रूप में श्रीलंका के नागरिक उड्डयन प्राधिकरण ने राजा रावण से संबंधित दस्तावेज़, किताबें एवं अन्य ऐतिहासिक सामग्री एकत्र करना शुरू किया है।
महत्त्व:
1. रामायण से संबंधित तथ्य:
- भारतीय धर्मग्रंथ रामायण के अनुसार, रावण ने पुष्पक विमान (Pushpak Vimana) नामक एक विमान का उपयोग किया था और इसे विश्वकर्मा ने बनाया था।
2. रावण-1 (Ravana-1):
- श्रीलंका ने अपना पहला उपग्रह रावण-1 (Ravana-1) नामित किया जिसे जून 2019 में प्रक्षेपित किया गया था।
3. दांडू मोनारा (Dandu Monara):
- वर्ष 2016 में कोलंबो में एक सम्मेलन में नागरिक उड्डयन विशेषज्ञों को संबोधित करते हुए तत्कालीन श्री लंका के परिवहन एवं नागरिक उड्डयन मंत्री निमल सिरिपाला डी सिल्वा (Nimal Siripala de Silva) ने टिप्पणी की थी कि वैश्विक उड्डयन का आधुनिक इतिहास राइट ब्रदर्स (Wright Brothers) के साथ शुरू हुआ किंतु श्रीलंका में किंवदंती है कि रावण नामक एक राजा ने न केवल देश के भीतर बल्कि आस पास के क्षेत्र में भी उड़ान भरने के लिये ‘दांडू मोनारा’ (Dandu Monara) नामक एक उड़ने वाली मशीन का इस्तेमाल किया था।
4. सिंहला-बौद्ध समुदाय (Sinhala-Buddhits community):
- श्रीलंका का बहुसंख्यक सिंहला-बौद्ध समुदाय राजा रावण का गुणगान करता है और यह समूह खुद को ‘रावण बलाया’ (Ravana Balaya) कहता है।
5. भारत से संबंध:
- तमिलनाडु में राजनीतिक द्रविड़ियन दलों ने रावण को श्रीलंका के बौद्ध समुदाय की तरह ‘बहादुर राजा’ के रूप में स्वीकार किया है।
6. पर्यटन:
- उल्लेखनीय है कि श्रीलंका का पर्यटन क्षेत्र भारत के पर्यटकों के लिये 'रामायण पदचिन्ह' (Ramayana Trail) को बढ़ावा देता है। भारत, श्रीलंका के सबसे बड़े पर्यटन बाज़ारों में से एक है।
सिंहला-बौद्ध समुदाय:
- यह समुदाय बौद्ध धर्म की थेरवाद शाखा पर केंद्रित है जो श्रीलंका के अधिकांश सिंहलियों की बहुसंख्यक विश्वास प्रणाली है।
- सिंहली श्री लंका में सबसे बड़ा जातीय समूह है।
- यह ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा श्रीलंका के औपनिवेशीकरण की प्रतिक्रिया में उत्पन्न हुआ और श्री लंका की स्वतंत्रता के बाद तेज़ी से मुखर हुआ।
- वर्ष 1948 में ब्रिटिश औपनिवेशिक वर्चस्व की समाप्ति के बाद सिंहली बहुसंख्यक द्वारा तमिल अल्पसंख्यक के खिलाफ भेदभाव से श्रीलंका में जातीय संघर्ष हुए।
थेरवाद:
- वर्तमान में यह बौद्ध धर्म की सबसे प्राचीन शाखा है।
- यह भगवान बुद्ध की मूल शिक्षाओं के सबसे करीब है।
- थेरवाद बौद्ध धर्म श्रीलंका में विकसित हुआ और बाद में शेष दक्षिण-पूर्व एशिया में फैल गया।
- यह कंबोडिया, लाओस, म्यांमार, श्रीलंका और थाईलैंड में बुद्ध धर्म का प्रमुख रूप है।
- भारत में, बौद्ध धर्म की इस शाखा का प्रतिनिधित्त्व डॉ. बी. आर. अंबेडकर के अनुयायियों द्वारा किया जाता है। जिन्हें ‘अंबेडकर बौद्ध’ के रूप में जाना जाता है।
स्रोत: द हिंदू
कोरोनावायरस वैक्सीन के विकास में प्राथमिक सफलता
प्रीलिम्स के लिये:टी सेल (T Cell), एंटीबॉडी, COVID-19 मेन्स के लिये:COVID-19 महामारी से निपटने के प्रयास, संक्रामक रोग और प्रतिरोधक क्षमता से संबंधित प्रश्न |
चर्चा में क्यों?
ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय (Oxford University) के वैज्ञानिकों द्वारा संचालित एक प्रायोगिक कोरोनावायरस वैक्सीन के शुरूआती परीक्षण के दौरान सैकड़ों लोगों में सुरक्षात्मक प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया (Protective Immune Response) में वृद्धि देखने को मिली है।
प्रमुख बिंदु:
- 20 जुलाई, 2020 को ‘लैंसेट’ (Lancet) जर्नल में प्रकाशित एक शोध के अनुसार, वैज्ञानिकों ने अपने परीक्षण में पाया कि यह प्रायोगिक वैक्सीन 18 से 55 वर्ष की आयु के लोगों में एक दोहरी प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया उत्पन्न करती है।
- इस वैक्सीन के उपयोग से परीक्षण में शामिल लगभग सभी लोगों में एक अच्छी प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया देखने को मिली है।
- ब्रिटिश शोधकर्त्ताओं ने सबसे पहले अप्रैल 2020 में लगभग 1000 लोगों पर इस वैक्सीन का परीक्षण प्रारंभ किया था, जिनमें से आधे लोगों को इस वैक्सीन के टीके दिये गए थे।
- सामान्यतः इस तरह के शुरूआती परीक्षणों का उद्देश्य वैक्सीन की सुरक्षा का मूल्यांकन करना होता है, परंतु इस परीक्षण के दौरान विशेषज्ञ इस बात का भी अध्ययन कर रहे थे कि यह वैक्सीन किस प्रकार की प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को प्रेरित करती है।
- इस परीक्षण के दौरान लोगों को चार सप्ताह के अंतराल पर इस वैक्सीन की दो खुराक दी गई।
कार्य प्रणाली:
- इस परीक्षण के दौरान देखा गया कि यह वैक्सीन लोगों में प्रतिरक्षा प्रणाली को सक्रिय/प्रेरित करती है।
- परीक्षण में पाया गया कि किसी व्यक्ति को यह वैक्सीन दिये जाने के बाद उसमें लगभग 56 दिनों तक यह मज़बूत एंटीबॉडी और टी-सेल प्रतिरक्षा प्रतिक्रियाओं को प्रेरित करती है।
- वैज्ञानिकों के अनुसार, संक्रमण को रोकने में टी-सेल की भूमिका बहुत ही महत्त्वपूर्ण है।
टी सेल (T Cell):
- टी सेल, एक प्रकार की श्वेत रक्त कोशिका होती है।
- टी सेल मानव प्रतिरक्षा प्रणाली का हिस्सा हैं और ये अस्थि मज्जा (Bone Marrow) में स्टेम सेल (Stem cell) से विकसित होती हैं।
- यह शरीर को संक्रमण से लड़ने में सहायता करती है।
- टी सेल शरीर में संक्रमित कोशिकाओं को ढूंढकर उन्हें नष्ट कर देती हैं।
लाभ:
- वैज्ञानिकों के अनुसार, हाल के दिनों में इस बात के अनेक प्रमाण मिले हैं कि COVID-19 को नियंत्रित करने में टी-सेल और एंटीबॉडी की प्रतिक्रिया क्षमता अत्यंत महत्त्वपूर्ण साबित हो सकती है।
- इस वैक्सीन के प्रभाव से परीक्षण में शामिल लोगों में COVID-19 से ठीक हुए मरीज़ों के समान ही एंटीबाडी का विकास देखने को मिला।
- वैज्ञानिकों के सुझाव के अनुसार, इस वैक्सीन की दूसरी खुराक के बाद प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया में वृद्धि देखने को मिल सकती है।
- इस वैक्सीन के माध्यम से COVID-19 तथा इसके प्रसार को रोकने में बड़ी सफलता प्राप्त हो सकती है।
- ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा वैश्विक स्तर पर इस दवा के निर्माण के लिये ‘एस्ट्राज़ेनेका’ (AstraZeneca) नामक दवा निर्माता कंपनी के साथ साझेदारी की है।
- ‘एस्ट्राज़ेनेका ने पहले ही इस वैक्सीन की 2 अरब खुराक बनाने की प्रतिबद्धता ज़ाहिर की है।
चुनौतियाँ:
- वर्तमान में वैश्विक स्तर पर कोरोनावायरस के बढ़ते मामलों के बीच बिना किसी वैक्सीन के इस बीमारी को नियंत्रित करना एक बड़ी चुनौती होगी।
- कोरोनावायरस को नियंत्रित करने के लिये कई खुराक की आवश्यकता को देखते हुए कहा जा सकता है कि वर्तमान में इस वैक्सीन की 2 अरब खुराक भी पर्याप्त नहीं होगी।
अन्य प्रयास:
- जर्मनी, फ्रांस, नीदरलैंड, इटली, संयुक्त राज्य अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम (UK) ने इस वैक्सीन को प्राप्त करने के लिये समझौतों पर हस्ताक्षर किये हैं, हालाँकि अभी इस वैक्सीन को बाज़ार में लाने की अनुमति नहीं प्राप्त है।
- पिछले सप्ताह अमेरिकी शोधकर्त्ताओं ने घोषणा की थी कि अमेरिका में किये गए पहले वैक्सीन परीक्षण में वैज्ञानिकों की उम्मीदों के अनुरूप ही लोगों की प्रतिरक्षा प्रणाली में बढ़ावा देखने को मिला, अब इस वैक्सीन को अंतिम चरण के परीक्षण के लिये भेजा जाएगा।
- इस वैक्सीन को ‘राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान’ (National Institutes of Health) और ‘मॉडर्ना’ (Moderna) नामक कंपनी के सहयोग से विकसित किया गया है।
- इसके अतिरिक्त चीन, यूरोप और अमेरिका जैसे देशों में लगभग 12 अलग-अलग प्रायोगिक वैक्सीन पर मानव परीक्षण या तो प्राथमिक स्तर पर हैं या इनके परीक्षण की तैयारी की जा रही है।
- ब्रिटिश सरकार ने ‘फाईज़र’ (Pfizer) और अन्य कंपनियों द्वारा विकसित की जा रही COVID-19 की प्रायोगिक वैक्सीन की 90 मिलियन खुराक खरीदने के लिये समझौते किये हैं।
निष्कर्ष:
COVID-19 महामारी की शुरुआत के बाद से व्यक्तिगत सुरक्षा के साथ वैक्सीन को इस बीमारी के नियंत्रण के हेतु अंतिम विकल्प बताया जाता रहा है। ऐसे में प्रायोगिक परीक्षणों के सकारात्मक परिणामों से इस महामारी को रोकने की उम्मीदें बढ़ी हैं। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा विकसित वैक्सीन यदि भविष्य में भी अन्य सभी आवश्यक परीक्षणों में भी सफल होती है तो यह COVID-19 महामारी को रोकने की दिशा में एक बड़ी सफलता होगी।
आगे की राह:
- ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा विकसित वैक्सीन के सकारात्मक परिणाम COVID-19 की अनिश्चितता को कुछ सीमा तक दूर करने में सफल रहे है, परंतु अभी भी इस वैक्सीन को बाज़ार में उपलब्ध होने में लंबा समय लग सकता है।
- साथ ही इस वैक्सीन के प्रभाव की अवधि या किसी दुष्प्रभाव आदि का पता लगाने के लिये अभी कई शोध आवश्यक होंगे।
- अतः लोगों को विशेषज्ञों की सलाह के अनुरूप ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ और स्वच्छता जैसे नियमों का पालन करते हुए इस महामारी के प्रसार को रोकने में अपना योगदान देना चाहिये।
स्रोत: द हिंदू
PASSEX नौसैनिक मार्ग अभ्यास
प्रीलिम्स के लिये:PASSEX मेन्स के लिये:भारत अमेरिका के बीच सैन्य अभ्यासों का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय नौसेना के जहाज़ों ने अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के पास अमेरिकी नौसेना के ‘USS निमित्ज कैरियर स्ट्राइक ग्रुप’ के साथ एक मार्ग अभ्यास (PASSEX) का आयोजन किया। जब भी अवसर मिलता है, पूर्व नियोजित समुद्री ड्रिल के विपरीत, एक पैसेज अभ्यास का आयोजन किया जाता है। हाल ही में भारतीय नौसेना ने जापानी नौसेना और फ्राँसीसी नौसेना के साथ एक ऐसे ही PASSEX का संचालन किया था।
प्रमुख बिंदु
- PASSEX:
- चार फ्रंटलाइन भारतीय नौसैनिक जहाज़ों में INS शिवालिक, INS सह्याद्री, INS कामोर्ता और INS राणा शामिल थे, जिन्होंने अभ्यास का संचालन करने के लिये ‘कैरियर USS निमित्ज’ और तीन अन्य अमेरिकी जहाज़ों के साथ मिलकर काम किया।
- USS निमित्ज अमेरिकी नौसेना का सबसे बड़ा विमान वाहक है।
- लक्ष्य:
- अमेरिकी और भारतीय समुद्री बलों के बीच सहयोग को बेहतर बनाना, एवं प्रशिक्षण तथा अंतर्समन्वयता को बढ़ावा देना, जिसमें वायु रक्षा भी शामिल है।
- प्रभाव:
- यह समुद्री डकैती से लेकर हिंसक अतिवाद तक, समुद्री क्षेत्र में मौजूद संकट का सामना करने के लिये दोनों पक्षों की क्षमता को बढ़ाएगा।
- एक स्वतंत्र और खुला समुद्री क्षेत्र, अंतर्राष्ट्रीय नियमों पर आधारित आदेश को बढ़ावा देता है जिसमें प्रत्येक देश राष्ट्रीय संप्रभुता का त्याग किये बिना अपनी क्षमता का पूर्ण उपयोग करने में सक्षम होता है।
- यह संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत के बीच पहले से मौजूद मज़बूत संबंधों को और दृढ़ बनाएगा और दोनों देशों को एक-दूसरे से सीखने के अवसर भी देगा।
- यह समुद्री डकैती से लेकर हिंसक अतिवाद तक, समुद्री क्षेत्र में मौजूद संकट का सामना करने के लिये दोनों पक्षों की क्षमता को बढ़ाएगा।
- चीनी संदर्भ:
- वर्तमान में भारत लद्दाख क्षेत्र में चीन के साथ सीमाई गतिरोध का सामना कर रहा है, ऐसे में हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में भारतीय नौसेना द्वारा PASSEX का आयोजन काफी अहम् है।
- इस अभ्यास का आयोजन ऐसे समय पर किया गया है जब दक्षिण चीन सागर में तनाव बढ़ता जा रहा है, और अमेरिकी नौसेना ने USS निमित्ज और USS रोनाल्ड रीगन को शामिल करते हुए एक प्रमुख अभ्यास का भी आयोजन किया है।
- भारतीय नौसेना IOR में चीनी नौसैनिक जहाज़ों की आवाजाही पर कड़ी नज़र रख रही है, एंटी-पायरेसी गश्ती के नाम पर पिछले कुछ वर्षों में इस क्षेत्र में चीन की गतिविधियों में काफी वृद्धि हुई है।
- वर्ष 2017 में चीन ने हॉर्न ऑफ अफ्रीका में जिबूती में अपना पहला विदेशी सैन्य अड्डा खोला था।
- वर्तमान में भारत लद्दाख क्षेत्र में चीन के साथ सीमाई गतिरोध का सामना कर रहा है, ऐसे में हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में भारतीय नौसेना द्वारा PASSEX का आयोजन काफी अहम् है।
स्रोत-द हिंदू
गरीबी के संदर्भ में UNDP रिपोर्ट
प्रीलिम्स के लिये:गरीबी, बहुआयामी गरीबी सूचकांक, UNDP, OPHI, क्षेत्र विशेष से संबंधित भारत सरकार की प्रमुख योजनाएँ मेन्स के लिये:गरीबी उन्मूलन हेतु सरकार के प्रयास |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम’ (United Nations Development Programme-UNDP) तथा ‘ऑक्सफोर्ड पॉवर्टी एंड ह्यूमन डवलपमेंट इनीशिएटिव’ (Oxford Poverty and Human Development Initiative- OPHI) द्वारा ‘वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक’ (Global Multidimensional Poverty Index, 2020-GMPI) से संबंधित आँकड़े जारी किये गए हैं।
प्रमुख बिंदु:
- बहुआयामी गरीबी से संबंधित इस अध्ययन का शीर्षक ‘चार्टिंग पाथवे आउट ऑफ मल्टीडायमेंशनल पावर्टी: अचिएविंग द एसडीजी’ (Charting pathways out of multidimensional poverty: Achieving the SDGs’ ) है।
- यह अध्ययन वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक पर आधारित था, जो प्रत्येक वर्ष व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से गरीब लोगों के जीवन की जटिलताओं की माप करता है।
रिपोर्ट का सार:
- प्रकाशित आँकड़ों के अनुसार, 107 विकासशील देशों में, 1.3 बिलियन लोग बहुआयामी गरीबी से प्रभावित हैं।
- बच्चों में बहुआयामी गरीबी की उच्च दर देखी गई है:
- बहुआयामी गरीबी आयु से ग्रसित गरीब लोगों (644 मिलियन) में आधे 18 वर्ष से कम आयु के बच्चे हैं।
- सब-सहारा अफ्रीका (558 मिलियन) और दक्षिण एशिया (530 मिलियन) में लगभग 84.3 प्रतिशत बहुआयामी गरीब लोग रहते हैं।
- बहुआयामी गरीबी से प्रभावित 67 प्रतिशत लोग मध्यम आय वाले देशों से संबंधित हैं। जहाँ बहुआयामी गरीबी का प्रभाव राष्ट्रीय स्तर पर 0 प्रतिशत से 57 प्रतिशत और उप-राष्ट्रीय स्तर पर 0 प्रतिशत से 91 प्रतिशत तक है।
- प्रकाशित आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2000 से वर्ष 2019 के मध्य 75 में से 65 देशों में बहुआयामी गरीबी के स्तर में कमी देखी गई है।
- इस अध्ययन में पूर्व, मध्य और दक्षिण एशिया, यूरोप, लैटिन अमेरिका और कैरिबियन, उप-सहारा अफ्रीका और प्रशांत के 75 देशों को शामिल किया गया है।
- इस अध्ययन में वैश्विक स्तर पर पाँच अरब लोगों की बहुआयामी गरीबी की एक व्यापक तस्वीर प्रस्तुत की गई है।
- आँकड़ों के अनुसार, 65 देश ऐसे हैं जिनके ‘बहुआयामी गरीबी सूचकांक’ के स्तर में कमी आई है।
- 65 देशों में 50 ऐसे देश हैं जहाँ गरीबी में रहने वाले लोगों की संख्या में भी उल्लेखनीय कमी देखी गई है।
- आँकड़ों के अनुसार, भारत समेत चार देशों ने 5.5 से 10.5 वर्षों में अपनी वैश्विक बहुआयामी गरीबी को कम करके आधा कर लिया है।
- चीन में वर्ष 2010 से वर्ष 2014 के मध्य 70 मिलियन लोग तथा भारत के एक अन्य पड़ोसी देश बांग्लादेश में वर्ष 2014 से वर्ष 2019 के मध्य 19 मिलियन लोग बहुआयामी गरीबी के कुचक्र से बाहर निकलने में कामयाब हुए हैं।
सतत विकास लक्ष्य और वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक
- यह सूचकांक वर्ष 2030 से 10 वर्ष पहले ही वैश्विक गरीबी की एक व्यापक और गहन तस्वीर प्रदान करता है , जो कि सतत विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goal-SDG) को प्राप्त करने की नियत वर्ष है, जिसका पहला लक्ष्य हर जगह अपने सभी रूपों में गरीबी को समाप्त करना है।
GMPI 2020 : आयाम, संकेतक
- यह बताता है कि लोग तीन प्रमुख आयामों में किस प्रकार पीछे रह जाते हैं: स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर, जिसमें 10 संकेतक शामिल हैं। जो लोग इन भारित संकेतकों में से कम से कम एक तिहाई में अभाव का अनुभव करते हैं, वे बहुआयामी रूप से गरीब की श्रेणी में आते हैं।
भारत की स्थिति:
- अध्ययन के अनुसार, बहुआयामी गरीबी से बाहर निकलने वाले लोगों की सर्वाधिक संख्या भारत में देखी गई है।
- भारत में वर्ष 2005-06 से वर्ष 2015-16 के मध्य 27.3 करोड़ लोग गरीबी के कुचक्र से बाहर निकलने में सफल हुए हैं।
- अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2005-06 में भारत में 55.1 प्रतिशत लोग बहुआयामी गरीबी के अधीन थे जबकि वर्ष 2015-16 में यह स्तर घटकर 27.9 प्रतिशत हो गया है।
- वर्ष 2018 तक भारत में लगभग 37.7 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी से ग्रसित थे।
- वर्ष 2015-16 तक, लोगों के पास बुनियादी ज़रूरतों के अभाव की प्रतिशतता 43.9 थी, जबकि वर्ष 2015-16 में 8.8 प्रतिशत जनसंख्या गंभीर बहुआयामी गरीबी के कुच्रक में शामिल थी।
- वर्ष 2016 तक, भारत में 21.2 प्रतिशत लोग पोषण से वंचित थे।
- 26.2 प्रतिशत लोग के पास भोजन पकाने के ईंधन का अभाव रहा।
- 24.6 प्रतिशत लोग स्वच्छता और 6.2 प्रतिशत लोग पेयजल से वंचित रहे।
- 8.6 प्रतिशत लोग बिजली के अभाव में एवं 23.6 प्रतिशत लोग आवास के अभाव में रहे हैं ।
- भारत तथा निकारगुआ द्वारा क्रमश पिछले 10 वर्षों एवं 10.5 वर्षों के दौरान बच्चों के बहुआयामी गरीबी सूचकांक को भी आधा कर लिया गया है।
- रिपोर्ट के अनुसार तीन दक्षिण एशियाई देश - भारत, बांग्लादेश और नेपाल - अपने MPI मूल्य को तीव्रता से कम करने वाले उन 16 देशों में शामिल है जिन्होंने सबसे तीव्र गति से MPI के मूल्य को कम किया है।
‘ऑक्सफोर्ड पॉवर्टी एंड ह्यूमन डवलपमेंट इनीशिएटिव’ (OPHI):
- यह ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में अंतर्राष्ट्रीय विकास विभाग के तहत स्थापित एक आर्थिक अनुसंधान और नीति केंद्र है।
- इसकी स्थापना वर्ष 2007 में की गई थी।
- OPHI का उद्देश्य लोगों के अनुभवों और मूल्यों के आधार पर बहुआयामी गरीबी को कम करने के लिये एक अधिक व्यवस्थित पद्धति एवं आर्थिक ढाँचे का निर्माण एवं प्रगति करना है।
- इस अध्ययन में कोरोना महामारी के संदर्भ में भी ज़िक्र किया गया है
- इसमे यह बताने की कोशिश की गई है कि यह अध्ययन महामारी के बाद दुनिया भर में गरीबी के बढ़ने का अनुमान नहीं लगा सकता परंतु यदि हम इस वैश्विक महामारी संकट को छोड़ दें तो आने वाले 3 से 10 वर्षों में 70 विकासशील देश पुनः वैश्विक प्रगति पर वापस आ सकते हैं।
प्रतिरक्षा:
- अध्ययन में बहुआयामी गरीबी और टीकाकरण के बीच संबंधों पर भी प्रकाश डाला गया है।
- डिप्थीरिया, टेटनस और पर्टुसिस टीकों की तीन खुराक प्राप्त करने वाले बच्चों का प्रतिशत इस बात का सूचक था कि विभिन्न देशों द्वारा नियमित टीकाकरण को कितनी गंभीरता से लिया जा रहा है।
- अध्ययन के अनुसार, 10 देशों में 60 प्रतिशत बच्चों में डिप्थीरिया, टेटनस और पर्टुसिस के लिये टीकाकरण नहीं हुआ है।
- अध्ययन में इस बात का अनुमान लगाया गया है कि घनी आबादी वाले विकासशील देशों में उच्च प्रतिरक्षण कवरेज होने के बावजूद बड़ी संख्या में ऐसे बच्चों की संख्या मौजूद है जो टीकाकरण से छूट सकते हैं।
- अध्ययन में भारत को एक उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया गया है जहाँ 2.6 मिलियन बच्चे टीकाकरण से वंचित हैं।
बहुआयामी गरीबी:
- ‘ऑक्सफोर्ड पॉवर्टी एंड ह्यूमन डवलपमेंट इनीशिएटिव’ के अनुसार, बहुआयामी गरीबी के निर्धारण में लोगों द्वारा दैनिक जीवन में अनुभव किये जाने वाले सभी अभावों/कमी को समाहित किया जाता है।
- अध्ययन के अनुसार, ये वो गरीब एवं वंचित लोग हैं जो जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय गिरावट से सबसे अधिक पीड़ित हैं, यही वजह है कि वे एक ‘दोहरा बोझ’ उठाते हैं।
- वे पर्यावरण में गिरावट, वायु प्रदूषण, स्वच्छ पानी की कमी और अस्वस्थ स्वच्छता की स्थिति के प्रति कमज़ोर/ भेद्य हैं जिन्हें पर्याप्त पोषण या उचित आवास सुविधाएँ भी प्राप्त नहीं हैं।
- इसके निर्धारण में खराब स्वास्थ्य, शिक्षा की कमी, जीवन स्तर में अपर्याप्तता, काम की खराब गुणवत्ता, हिंसा का खतरा तथा ऐसे क्षेत्रों में रहना जो पर्यावरण के लिये खतरनाक होते हैं जैसे कारकों को शामिल किया जाता है।
गरीबी:
गरीबी से आशय उस सामाजिक अवस्था से है जब समाज के एक वर्ग के लोग अपने जीवन की बुनियादी ज़रूरतों को पूरा नहीं कर पाते हैं।
गरीबी के प्रकार:
गरीबी को 2 रूपों में देखा जा सकता है- सापेक्ष गरीबी तथा निरपेक्ष गरीबी।
1. सापेक्ष गरीबी
- सापेक्ष गरीबी यह स्पष्ट करती है कि विभिन्न आय वर्गों के बीच कितनी असमानता विद्यमान है।
- सापेक्ष गरीबी के निर्धारण के लिये लॅारेंज वक्र विधि तथा गिन्नी गुणांक विधि का प्रयोग किया जाता है।
- लॅारेंज वक्र विधि के माध्यम से आय तथा जनसंख्या के संचयी प्रतिशत को अभिव्यक्त किया जाता है।
- यदि सभी की आय बराबर हो अर्थात 10% लोगों के पास 10% हिस्सा हो तो एक विशेष प्रकार का लॅारेंज वक्र प्राप्त होगा जिसे निरपेक्ष समता रेखा कहते है।
- लॅारेंज वक्र निरपेक्ष समता रेखा से जितनी दूर होगा लोगों के बीच आय में असमानता उतनी ही अधिक होगी और यह वक्र निरपेक्ष समता रेखा के जितने पास होगा आय में असमानता उतनी ही कम होगी।
- गिनी गुणांक विधि का प्रयोग आय या संपत्ति की असमानता को मापने के लिये किया जाता है।
- गिनी गुणांक लारेंज वक्र, निरपेक्ष समता रेखा (45 डिग्री) के बीच का क्षेत्रफल होता है।
- गिनी गुणांक का मूल्य 0 से 1 के बीच होता है जहाँ 1 निरपेक्ष असामनता की स्थिति तथा 0 निरपेक्ष समानता को स्थिति को दर्शाता है।
2. निरपेक्ष गरीबी:
- निरपेक्ष गरीबी न्यूनतम आय अथवा उपभभोक्ता स्तर पर आधारित होती है।
- इसका निर्धारण करते समय मनुष्यों की पोषण आवश्यकताओं तथा अनिवार्यताओं के आधार पर आय या उपभोग व्यय के न्यूनतम स्तर को ज्ञात किया जाता है।
- इस न्यूनतम निर्धारित स्तर से कम व्यय करने वाले व्यक्ति को गरीब या गरीबी रेखा से नीचे रहने वाला कहा जाता है।
- गरीबी के इस प्रतिमान में हेड काउंट अनुपात (Head Count Ratio- HCR) का प्रयोग किया जाता है।
- हेड काउंट अनुपात समाज में लोगों का वह अनुपात या प्रतिशत है जिनकी आय या खर्च गरीबी रेखा से नीचे रहती है।
गरीबी उन्मूलन हेतु भारत सरकार के प्रयास:
भारत सरकार द्वारा गरीबी उन्मूलन के लिये कई योजनाएँ क्रियान्वित की जा रही हैं जिनमे से कुछ इस प्रकार हैं-
- प्रधानमंत्री जन धन योजना (Pradhan Mantri Jan Dhan Yojana-PMJDY):
- प्रधानमंत्री जन धन योजना का उद्देश्य समाज के वंचित वर्गो एवं कमज़ोर वर्गों को विभिन्न वित्तीय सेवाएँ यथा- मूल बचत बैंक खाते की उपलब्धता, आवश्यकता आधारित ऋण की उपलब्धता, विप्रेषण सुविधा, बीमा तथा पेंशन उपलब्ध कराना सुनिश्चित करना है।
- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (Mahatma Gandhi Employment Guarantee Act-MGNREGA):
- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम के अंतर्गत प्रत्येक ग्रामीण परिवार के एक वयस्क सदस्य को स्वेच्छा से मांगने पर 100 दिनों का अकुशल रोज़गार प्रदान करने की गारंटी दी गई है।
- इनके अलावा ग्रामीण श्रम रोज़गार गारंटी कार्यक्रम (Rural Landless Employment Guarantee Programme- RLEGP), राष्ट्रीय पारिवारिक लाभ योजना (National Family Benefit Scheme-NFBS), प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना (Pradhan Mantri Gramin Awaas Yojana) आदि योजनाओं के माध्यम से गरीबी उन्मूलन हेतु प्रयास किये जा रहे हैं।
- वर्ष 2017 में नीति आयोग द्वारा गरीबी दूर करने के लिये एक विज़न डॉक्यूमेंट प्रस्तावित किया था जिसके अनुसार भारत में वर्ष 2032 तक गरीबी दूर करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
आगे की राह:
रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रत्येक चुनौती को संबोधित करने के लिए एक अलग दृष्टिकोण की अपनाने की आवश्यकता होती है, जिनमें से कई चुनौतियों के समाधान के लिये लोगों की आय में सुधार करके समाप्त किया जा सकता है, ।
स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स
तीसरी G-20 FMCBG बैठक
प्रीलिम्स के लिये:G-20, तीसरी G-20 FMCBG बैठक मेन्स के लिये:G-20 कार्ययोजना |
चर्चा में क्यों?
18 जुलाई को भारत ने सऊदी अरब की अध्यक्षता में आयोजित हुई G-20 के वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंक गवर्नरों (Finance Ministers and Central Bank Governors-FMCBG) की तीसरी बैठक में हिस्सा लिया। इस दौरान COVID-19 महामारी संकट के बीच वैश्विक आर्थिक दृष्टिकोण के साथ ही साल 2020 के लिये अन्य G20 वित्तीय प्राथमिकताओं पर भी बात की गई। पहली बैठक फरवरी 2020 में रियाद, सऊदी अरब में आयोजित हुई थी।
प्रमुख बिंदु
- G-20 कार्ययोजना:
- G-20 कार्य योजना के महत्त्व और प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला गया।
- G-20 कार्ययोजना का 15 अप्रैल, 2020 को आयोजित बैठक में समर्थन किया गया था।
- G-20 कार्ययोजना में स्वास्थ्य प्रतिक्रिया, आर्थिक कदम, मज़बूत और सतत् रिकवरी और अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय समन्वय के स्तंभों के तहत सामूहिक प्रतिबद्धताओं की एक सूची प्रस्तुत की गई, जिसका उद्देश्य महामारी से लड़ने में G-20 के प्रयासों में समन्वय स्थापित करना है।
- भारत की प्रतिक्रिया:
- भारत ने COVID-19 के जवाब में आपूर्ति पक्ष और मांग के उपायों को संतुलित करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया।
- भारत ने रेटिंग एजेंसियों द्वारा क्रेडिट रेटिंग डाउनग्रेड करने की नीति और विशेष रूप से इमर्जिंग मार्केट इकोनॉमी (ईएमई) जैसे नीतिगत विकल्पों पर इसके हानिकारक प्रभाव के बारे में भी चर्चा की।
- COVID-19 लॉकडाउन से संबंधित एक्ज़िट रणनीतियों के दुष्प्रभावों को संबोधित करने में आवश्यक अंतर्राष्ट्रीय समन्वय पर भी चर्चा की गई।
- G-20 वित्तीय ट्रैक डिलिवरेबल्स (Finance Track deliverables): FMCBG ने सऊदी अरब प्रेसीडेंसी के तहत G-20 फाइनेंस ट्रैक डिलिवरेबल्स के घटनाक्रम पर चर्चा की। भारत ने ऐसे दो डिलिवरेबल्स पर चर्चा की:
- पहला, महिलाओं, युवाओं और SME के लिये अवसरों तक पहुँच बढ़ाना और पहुँच के लिये नीतिगत विकल्पों का एक मेन्यू तैयार करना।
-
दूसरा, अंतर्राष्ट्रीय कराधान के एजेंडे और डिजिटल कराधान से संबंधित चुनौतियों का समाधान सरल, समावेशी और एक मज़बूत आर्थिक प्रभाव के आकलन पर आधारित हो।
- महामारी से लड़ने के लिये भारत सरकार द्वारा उठाए गए कुछ नीतिगत कदमों को भी साझा किया गया, जिनमें प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण, कृषि और MSME क्षेत्रों को विशेष सहायता, ग्रामीण रोजगार गारंटी उपाय, आदि शामिल हैं।
- भारत ने इस बात पर विशेष बल दिया कि भारत ने राष्ट्रव्यापी डिजिटल पेमेंट ढाँचे (जो भारत ने पिछले पाँच वर्षों में तैयार किया है) का दोहन कर प्रौद्योगिकी आधारित वित्तीय समावेशन को सफलतापूर्वक नियोजित किया है।
- यह संयुक्त राज्य व्यापार प्रतिनिधि (United States Trade Representative-USTR) के हालिया निर्णय के अनुरूप है, जिसमें नेटफ्लिक्स, Airbnb आदि अमेरिकी डिजिटल सेवा कंपनियों के राजस्व के संबंध में भारत सहित 10 देशों के विचाराधीन अथवा स्वीकृत कर के विषय में जाँच शुरू करने का निर्णय लिया गया है।
- डिजिटल कंपनियों के व्यवसाय पर कराधान इसलिये कठिन होता है क्योंकि सामान्यतः जिस अर्थव्यवस्था में ये व्यवसाय कर रही होती हैं वहाँ पर इनकी भौतिक रूप से उपस्थिति नहीं होती है।
- ये प्रायः कम कर प्रणालियों में (कम कर वाले देशों में) पंजीकृत होती हैं, जिससे ये अर्थव्यवस्था को लगातार प्रभावित करती रहती हैं अर्थात् अधिक व्यवसायिक लाभ प्राप्त करने के बाद भी उपरोक्त अर्थव्यवस्था में कम कर का भुगतान करती हैं।
- वर्तमान समय में विश्व की बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियाँ बहुत कम कर भुगतान कर रही हैं जो चिंता का विषय बना हुआ है।
G-20
- G-20 समूह की स्थापना वर्ष 1999 में 7 देशों-अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, जर्मनी, जापान, फ्राँस और इटली के विदेश मंत्रियों द्वारा की गई थी।
- सामूहिक रूप से G-20 सदस्य विश्व के आर्थिक उत्पादन का लगभग 80 प्रतिशत, वैश्विक जनसंख्या का दो-तिहाई और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का तीन-चौथाई प्रतिनिधित्व करते हैं।
- G-20 का उद्देश्य वैश्विक वित्त को प्रबंधित करना था। संयुक्त राष्ट्र (United Nation), अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) तथा विश्व बैंक (World Bank) के स्टाफ स्थायी होते हैं और इनके हेड क्वार्टर भी होते हैं, जबकि G20 का न तो स्थायी स्टाफ होता है और न ही हेड क्वार्टर, यह एक फोरम मात्र है।
- वर्ष 2020 में G20 की अध्यक्षता सऊदी अरब कर रहा है।
- वर्ष 2021 में इसका आयोजन इटली में किया जाएगा।
उत्पत्ति
- वर्ष 1997 के वित्तीय संकट के पश्चात् यह निर्णय लिया गया कि दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं को एक मंच पर एकत्रित होना चाहिये।
सदस्य:
- इस फोरम में भारत समेत 19 देश तथा यूरोपीय संघ भी शामिल है। जिनमें अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, कनाडा, चीन, यूरोपियन यूनियन, फ्राँस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, मेक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण कोरिया, तुर्की, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैं।
G20 समूह के उद्देश्य:
- वैश्विक आर्थिक स्थिरता और सतत् आर्थिक संवृद्धि हासिल करने हेतु सदस्यों के मध्य नीतिगत समन्वय स्थापित करना।
- वित्तीय विनियमन (Financial Regulations) को बढ़ावा देना जो कि जोखिम (Risk) को कम करते हैं तथा भावी वित्तीय संकट (Financial Crisis) को रोकते हैं।
- एक नया अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय आर्किटेक्चर बनाना।
स्रोत: PIB
मातृ मृत्यु अनुपात में गिरावट
प्रीलिम्स के लिये:मातृ मृत्यु अनुपात, विश्व स्वास्थ्य संगठन मेन्स के लिये:भारत में मातृ मृत्यु दर की स्थिति |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में रजिस्ट्रार जनरल के सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (Office of the Registrar General’s Sample Registration System-SRS) के कार्यालय ने भारत में वर्ष 2016-18 में मातृ मृत्यु दर (Maternal Mortality Ratio-MMR) पर एक विशेष बुलेटिन जारी किया है।
मातृ मृत्यु क्या है?
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, MMR गर्भावस्था या उसके प्रबंधन से संबंधित किसी भी कारण से (आकस्मिक या अप्रत्याशित कारणों को छोड़कर) प्रति 100,000 जीवित जन्मों में मातृ मृत्यु की वार्षिक संख्या है।
- मातृ मृत्यु दर दुनिया के सभी देशों में प्रसव के पूर्व या उसके दौरान या बाद में माताओं के स्वास्थ्य और सुरक्षा में सुधार के प्रयासों के लिये एक प्रमुख प्रदर्शन संकेतक है।
रजिस्ट्रार जनरल का कार्यालय
(The Office of the Registrar General)
- यह गृह मंत्रालय के अधीन कार्य करता है।
- जनसंख्या की गणना करने और देश में मृत्यु और जन्म के पंजीकरण के कार्यान्वयन के अलावा, यह नमूना पंजीकरण प्रणाली (Sample Registration System-SRS) का उपयोग करके प्रजनन और मृत्यु दर के संबंध में अनुमान प्रस्तुत करता है।
- SRS देश का सबसे बड़ा जनसांख्यिकीय नमूना सर्वेक्षण है जिसमें अन्य संकेतक राष्ट्रीय प्रतिनिधि नमूने के माध्यम से मातृ मृत्यु दर का प्रत्यक्ष अनुमान प्रदान करते हैं।
- वर्बल ऑटोप्सी (Verbal Autopsy-VA) उपकरणों को नियमित आधार पर SRS के तहत दर्ज मौतों के लिए प्रबंधित किया जाता है, ताकि देश में एक विशिष्ट कारण से होने वाली मृत्यु दर का पता लगाया जा सके।
प्रमुख बिंदु
- देश में मातृ मृत्यु दर (Maternal Mortality Ratio):
- MMR वर्ष 2015-17 के 122 और वर्ष 2014-2016 के 130 के स्तर से घटकर वर्ष 2016-18 में 113 रह गई है।
विभिन्न राज्यों का MMR:
- असम (215), उत्तर प्रदेश (197), मध्य प्रदेश (173), राजस्थान (164), छत्तीसगढ़ (159), ओडिशा (150), बिहार (149), और उत्तराखंड (99)।
- दक्षिणी राज्यों में निम्न MMR दर्ज की गई हैं- कर्नाटक (92), आंध्र प्रदेश (65), तमिलनाडु (60), तेलंगाना (63) और केरल (43)।
- MMR में कमी के कारण
- पिछले एक दशक में किये गए सुधारों की वजह से MMR में लगातार कमी आई है। इसके अंतर्गत देश के सबसे पिछड़े तथा सीमान्त क्षेत्रों में संस्थागत प्रसव, आकांक्षी ज़िलों पर विशेष ध्यान तथा अंतर-क्षेत्रक कार्यक्रमों का विशेष योगदान रहा है।
- भारत में ऊँची मातृत्व मृत्यु दर के कारण
- भारत में मातृ मृत्यु दर के प्रमुख कारणों में असुरक्षित गर्भपात, प्रसव-पूर्व और प्रसवोपरांत रक्त स्राव, अरक्तता, विघ्नकारी प्रसव वेदना, उच्च रक्त चापीय विकार तथा प्रसवोत्तर विषाक्ता आदि शामिल हैं। इसके अतिरिक्त
- बाल विवाह,
- निर्धनता,
- अशिक्षा, अज्ञानता तथा रूढ़िवादिता
- दो संतानों के मध्य कम अंतर होना, अविवेकपूर्ण मातृत्व
- अस्वास्थ्यकर सामाजिक कुरीतियाँ,
- देश में चिकित्सालयों तथा मातृत्व केंद्रों की कमी
- समाज में स्त्रियों की उपेक्षा तथा कल्याणकारी संस्थाओं का अभाव, आदि प्रमुख कारण हैं।
- भारत में मातृ मृत्यु दर के प्रमुख कारणों में असुरक्षित गर्भपात, प्रसव-पूर्व और प्रसवोपरांत रक्त स्राव, अरक्तता, विघ्नकारी प्रसव वेदना, उच्च रक्त चापीय विकार तथा प्रसवोत्तर विषाक्ता आदि शामिल हैं। इसके अतिरिक्त
- सामाजिक-आर्थिक और पर्यावरणीय कारकों की भूमिका
- संयुक्त राष्ट्र के सतत् विकास लक्ष्यों के अनुरूप नवजात और मातृ स्वास्थ्य में सुधार के लिये भारत में सामूहिक प्रयास तेज़ हुए हैं।
- हालाँकि अभी भी चुनौतियाँ बनी हुई हैं, खासकर छोटे और पृथक आबादी, विशेष रूप से महिलाएँ और बच्चों को स्वास्थ्य देखभाल की आवश्यकता होती है।
- सरकार की पहलें:
- स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता तथा उसकी व्यापक पहुँच में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन जैसी सरकारी योजनाओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है।
- इसके अंतर्गत लक्ष्य (LaQshya), पोषण अभियान, प्रधान मंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान, जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम, जननी सुरक्षा योजना, प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना तथा हाल ही में लॉन्च सुरक्षित मातृत्व आश्वासन इनिशिएटिव (SUMAN) योजना आदि शामिल है।
- अस्पतालों में प्रसव को बढ़ावा देने के लिये नकद सहायता उपलब्ध कराने की योजना बनाई गई है, इसके सफल कार्यान्वयन के लिये राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत जननी सुरक्षा योजना शुरू की गई।
- प्रधानमंत्री सुरक्षा मातृत्व अभियान (PMSMA) के तहत ‘प्रत्येक माह की 9 तारीख’ को सभी गर्भवती महिलाओं को सार्वभौमिक तौर पर सुनिश्चित, व्यापक एवं उच्च गुणवत्ता युक्त प्रसव-पूर्व देखभाल प्रदान कराए जाने का प्रावधान है।
- स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता तथा उसकी व्यापक पहुँच में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन जैसी सरकारी योजनाओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है।
निष्कर्ष
यद्यपि पिछले दो दशकों में मातृ मृत्यु दर को कम करने के लिये भारत ने वैश्विक औसत से काफी बेहतर प्रदर्शन किया है लेकिन MMR के नज़रिये से अभी लंबा सफर तय करना होगा। इस दिशा में भारत सरकार ने बहुत सी महत्त्वपूर्ण योजनाएँ और पहलें शुरू की हैं तथापि इस दिशा में समाज को भी संवेदनशील तरीके से सोचना होगा। मातृ मृत्यु के अभिशाप को खत्म करना और मातृत्व हक का सम्मान करना हमारी व्यवस्था के साथ-साथ सामाजिक संरचना का भी प्रमुख उत्तरदायित्व है।
स्रोत-द हिंदू
बचपन बचाओ आंदोलन
प्रीलिम्स के लियेबचपन बचाओ आंदोलन मेन्स के लियेबच्चों से संबंधित, न्यायिक सक्रियता और NGO की भूमिका |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने बाल कल्याण केंद्रों से जुड़ी एक याचिका के संदर्भ में दिल्ली सरकार से जवाब मांगा है। कोविड-19 के प्रकोप को देखते हुए ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ (Bachpan Bachao Andolan-BBA) द्वारा दायर इस याचिका में कहा गया है कि बाल गवाहों के बयानों को न्यायालय में बुलाने के बजाय वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से बाल कल्याण केंद्रों पर ही दर्ज कराना चाहिये।
प्रमुख बिंदु
- बचपन बचाओ आंदोलन:
- यह बाल अधिकारों के संघर्ष करने वाला देश का सबसे लंबा आंदोलन है।
- नोबल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी द्वारा ने इसकी शुरुआत वर्ष 1980 में की गई थी।
- मिशन: बच्चों को बाल सुलभ समाज प्रदान करने के लिये रोकथाम, प्रत्यक्ष हस्तक्षेप, सामूहिक प्रयास और कानूनी कार्रवाई के माध्यम से बच्चों को दासता से मुक्त कराना, उन्हें पुन:स्थापित करना, शिक्षित करना।
- कार्य: एक गैर-सरकारी संगठन (Non Government Organisation-NGO) है जो मुख्यतः बंधुआ मज़दूरी, बाल श्रम, मानव व्यापार की समाप्ति के साथ- साथ सभी बच्चों के लिये शिक्षा के समान अधिकार की मांग करता है।
- यह ‘विश्व बाल श्रम निषेध दिवस’ (World Day Against Child Labour) यानी 12 जून के दिन ‘बाल पंचायत’ का आयोजन करता है।
- नोबल पुरस्कार विजेता (Nobel Prize Winner): वर्ष 2014 में कैलाश सत्यार्थी एवं मलाला युसुफजई को बाल शिक्षा के क्षेत्र में उनके अतुलनीय योगदान के लिये संयुक्त रूप से शांति के नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
स्रोत- द हिंदू
तमिलनाडु शीर्ष निवेश गंतव्य राज्य
प्रीलिम्स के लिये:शीर्ष निवेश गंतव्य राज्य, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश मेन्स के लियेभारत में निवेश की स्थिति |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘प्रोजेक्ट्स टुडे’ जो कि देश में निवेश परियोजनाओं पर नज़र रखने वाली एक स्वतंत्र फर्म है, के अनुसार तमिलनाडु इस वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में देश के शीर्ष निवेश गंतव्य राज्य के रूप में उभरा है।
प्रमुख बिंदु:
- प्रोजेक्ट्स टुडे के अनुसार तमिलनाडु की पहली तिमाही में देश में 97,859 करोड़ रुपए की कुल 1,241 परियोजनाओं को निष्पादित/संचालित करने में 18.63% की हिस्सेदारी है।
- वर्तमान में COVID-19 महामारी के कारण लॉकडाउन की अवधि के दौरान भारत में समग्र निवेश घोषणाएँ पिछले पाँच वर्षों में सबसे कम हो गई हैं।
- खास बात यह है कि इस तिमाही के हर माह में तमिलनाडु में निवेश का स्तर बढ़ा है।
- अप्रैल में पूर्ण लॉकडाउन के पहले माह में, 1, 20,181.6 करोड़ की 260 नई परियोजनाओं की घोषणा की गई थी।
- मई में 22 37,922 करोड़ की 436 नई परियोजनाओं की ओर घोषणा की गई।
समझौतों पर हस्ताक्षर:
- तमिलनाडु सरकार द्वारा मई, 2020 में निवेशकों के साथ 17 समझौतों पर हस्ताक्षर किये गए थे, जिनमें अप्रैल से जून के मध्य तिमाही में निवेशकों द्वारा 18,236 करोड़ रुपए निवेश किया गया।
- चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में सबसे बड़ी घोषित परियोजना 3,000 करोड़ रूपए की गैस आधारित बिजली परियोजना थी।
- पवन चक्की उपकरण और सेमीकंडक्टर चिप्स के उत्पादन के लिये राज्य में 2,900 करोड़ रुपए की दो निजी क्षेत्र की परियोजनाएँ संचालित हैं।
अन्य राज्यों की स्थिति:
- महाराष्ट्र 11,228.8 करोड़ के नए निवेश प्रस्ताव के साथ दूसरे स्थान पर है।
- महाराष्ट्र ने सिंगापुर, दक्षिण कोरिया और यू.एस. की कई निवेशक फर्मों के साथ एक आभासी महाराष्ट्र शिखर सम्मेलन के माध्यम से 12 समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किये थे।
- तमिलनाडु और महाराष्ट्र जैसे राज्यों ने निवेशकों से मुलाकात की और एमओयू पर हस्ताक्षर किये
- उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और कर्नाटक ने श्रम कानूनों को फिर से लागू किया, है और विदेशी कंपनियों को अपने राज्यों में निवेश के लिये आमंत्रण भेजा है।
राज्य में नया निवेश:
- मई माह में प्रोजेक्ट्स टुडे द्वारा 39% प्रतिभागियों के साथ कराए गए सर्वे के अनुसार, स्वास्थ्य सेवा और फार्मा सेक्टर में निवेश बढ़ाने की उम्मीद की गई है।
- अर्थव्यवस्था में 1.0 अनलॉक की घोषणा के साथ ही जून माह में नई परियोजनाओं की संख्या में और वृद्धि देखी गई है जिसके चलते जून माह में 39,755.43 करोड़ के कुल निवेश के साथ 545 और नई परियोजनाओं की घोषणा की गई है।
आगे की राह:
भारत में ऑटोमोबाइल, स्मार्टफोन, इलेक्ट्रॉनिक आइटम, पूंजीगत सामान, खाद्य प्रसंस्करण, फार्मास्यूटिकल्स, रसायन आदि क्षेत्रों में दुनिया का अनुबंध निर्माता होने की अपार संभावनाएँ हैं। इन क्षेत्रों में प्रचुर मात्रा में आवश्यक श्रम शक्ति भी शामिल है।
हालांकि, देश की धीमी गति से चलने वाली आधिकारिक मशीनरी, पुरातन भूमि और श्रम कानून कुछ ऐसे मुद्दे हैं जो विदेशी कंपनियों को भारत में अपनी तकनीक और पूंजी निवेश करने से रोकती हैं ऐसे में आवश्यकता है कि केंद्र एवं राज्य सरकारों को अपने-अपने स्तर पर जल्द से जल्द इन मुद्दों को हल करने के लिये प्रयास करने चाहिये ।
स्रोत-द हिंदू
राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष
प्रीलिम्स के लिये:राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष, आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 मेन्स के लिये:राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष का आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
केंद्र सरकार ने आपदा प्रबंधन के प्रयोजन से आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा 46(1)(b) के अनुसार, किसी व्यक्ति अथवा संस्था से राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष में अंशदान/अनुदान प्राप्त करने की प्रक्रिया निर्धारित की है।
प्रमुख बिंदु
- गठन:
- इसे आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा 46 में परिभाषित किया गया है।
- वर्ष 2005 में आपदा प्रबंधन अधिनियम के अधिनियमन के साथ राष्ट्रीय आपदा आकस्मिकता निधि (National Calamity Contingency Fund-NCCF) का नाम बदलकर राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष (National Disaster Response Fund-NDRF) कर दिया गया।
- इसे भारत सरकार के ‘लोक लेखा’ (Public Account) में शामिल किया गया है।
- लोक लेखा: इसका गठन संविधान के अनुच्छेद 266 (2) के तहत किया गया था। जहाँ सरकार केवल एक बैंकर के रूप में कार्य कर रही होती है ऐसे लेन-देन के लिये इसका प्रयोग किया जाता है। उदाहरण के लिये; भविष्य निधि, छोटी बचत, आदि।
- इससे होने वाले व्यय को संसद द्वारा अनुमोदित किये जाने की आवश्यकता नहीं है।
- भूमिका:
- इसे किसी भी आपदा की स्थिति या आपदा के कारण आपातकालीन प्रतिक्रिया, राहत और पुनर्वास के खर्चों को पूरा करने के लिये केंद्र सरकार द्वारा प्रबंधित किया जाता है।
- यह गंभीर प्राकृतिक आपदा के मामले में राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष (State Disaster Response Fund-SDRF) की सहायता करता है, बशर्ते SDRF में पर्याप्त धनराशि उपलब्ध न हो।
- SDRF, राज्य सरकार के पास अधिसूचित आपदाओं के लिये उपलब्ध प्राथमिक निधि है, तत्काल राहत प्रदान करने के लिये इसका प्रयोग किया जाता है।
- केंद्र सामान्य श्रेणी के राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिये SDRF आवंटन का 75% और विशेष श्रेणी के राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों (उत्तर पूर्वी राज्यों, सिक्किम, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और जम्मू और कश्मीर) के लिये 90% योगदान देता है।
वित्तीयन:
- कुछ वस्तुओं पर उपकर लगाकर तथा उत्पाद शुल्क और सीमा शुल्क से इसका वित्त पोषण होता है और वित्त विधेयक के माध्यम से प्रतिवर्ष अनुमोदित किया जाता है।
- वर्तमान में, NDRF को वित्त प्रदान करने के लिये एक राष्ट्रीय आपदा आकस्मिक शुल्क (National Calamity Contingent Duty-NCCD) लगाया जाता है और आवश्यक होने पर अतिरिक्त बजटीय सहायता भी प्रदान की जाती है।
- NCCD को सातवीं अनुसूची (निर्मित या उत्पादित माल) में निर्दिष्ट वस्तुओं पर आरोपित किया जाता है।
- नियंत्रण/निगरानी: कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के तहत कृषि एवं सहकारिता विभाग सूखा, ओलावृष्टि, कीटों के हमलों और शीत लहर/ठंढ से जुड़ी आपदाओं के लिये निर्धारित राहत गतिविधियों की निगरानी करता है जबकि प्राकृतिक आपदाओं की निगरानी गृह मंत्रालय (MHA) द्वारा की जाती है।
- नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) NDRF के खातों को ऑडिट करता है।
स्रोत-द हिंदू
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019
प्रीलिम्स के लिये:उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 मेन्स के लिये:उपभोक्ताओं के अधिकार संबंधी अधिनियम |
चर्चा में क्यों?
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 20 जुलाई 2020 से लागू हो गया है। यह उपभोक्ताओं को सशक्त बनाएगा और इसके विभिन्न अधिसूचित नियमों और प्रावधानों के माध्यम से उनके अधिकारों की रक्षा करने में उनकी मदद करेगा।
प्रमुख बिंदु:
- नया अधिनियम पुराने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की तुलना में अधिक तीव्रता से और कम समय में कार्यवाही करेगा। पहले के उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 में न्याय के लिये एकल बिंदु पहुँच दी गई थी जिसमें काफी समय लग जाता है।
- पुराने अधिनियम में त्रिस्तरीय उपभोक्ता विवाद निवारण तंत्र [राष्ट्रीय (राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग), राज्य और ज़िला स्तर पर] की व्यवस्था मौजूद थी।
नए अधिनियम की विशेषताएँ
- उपभोक्ता संरक्षण विधेयक, 2019 केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (Central Consumer Protection Authority-CCPA) के गठन का प्रस्ताव करता है। विधेयक के अनुसार, CCPA के पास निम्नलिखित अधिकार होंगे:
- उपभोक्ता अधिकारों के उल्लंघन और संस्थान द्वारा की गई शिकायतों की जाँच करना।
- असुरक्षित वस्तुओं और सेवाओं को वापस लेना एवं उचित कार्यवाही करना।
- भ्रामक विज्ञापनों पर रोक लगाना।
- भ्रामक विज्ञापनों के निर्माताओं और प्रसारकों पर ज़ुर्माना लगाना।
ई-कॉमर्स और अनुचित व्यापार व्यवहार पर नियम:
- सरकार उपभोक्ता संरक्षण (ई-कॉमर्स) नियम, 2020 को अधिनियम के तहत अधिसूचित करेगी जिसके व्यापक प्रावधान निम्नलिखित हैं:
- प्रत्येक ई-कॉमर्स इकाई को अपने मूल देश समेत रिटर्न, रिफंड, एक्सचेंज, वारंटी और गांरटी, डिलीवरी एवं शिपमेंट, भुगतान के तरीके, शिकायत निवारण तंत्र, भुगतान के तरीके, भुगतान के तरीकों की सुरक्षा, शुल्क वापसी संबंधित विकल्प आदि के बारे में सूचना देना अनिवार्य है।
- ये सभी सूचनाएँ उपभोक्ता को अपने प्लेटफॉर्म पर खरीददारी करने से पहले उपयुक्त निर्णय लेने में सक्षम बनाने के लिये ज़रूरी है।
- ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स को 48 घंटों के भीतर उपभोक्ता को शिकायत प्राप्ति की सूचना देनी होगी और शिकायत प्राप्ति की तारीख से एक महीने के भीतर उसका निपटारा करना होगा।
- नया अधिनियम उत्पाद दायित्व की अवधारणा को प्रस्तुत करता है और मुआवज़े के किसी भी दावे के लिये उत्पाद निर्माता, उत्पाद सेवा प्रदाता और उत्पाद विक्रेता को इसके दायरे में लाता है।
- उपभोक्ता संरक्षण (ई-कॉमर्स) नियम, 2020 अनिवार्य हैं, ये केवल परामर्श नहीं हैं।
- प्रत्येक ई-कॉमर्स इकाई को अपने मूल देश समेत रिटर्न, रिफंड, एक्सचेंज, वारंटी और गांरटी, डिलीवरी एवं शिपमेंट, भुगतान के तरीके, शिकायत निवारण तंत्र, भुगतान के तरीके, भुगतान के तरीकों की सुरक्षा, शुल्क वापसी संबंधित विकल्प आदि के बारे में सूचना देना अनिवार्य है।
- उत्पाद दायित्व (Product Liability):
- यदि किसी उत्पाद या सेवा में दोष पाया जाता है तो उत्पाद निर्माता/विक्रेता या सेवा प्रदाता को क्षतिपूर्ति के लिये ज़िम्मेदार माना जाएगा। विधेयक के अनुसार, किसी उत्पाद में निम्नलिखित आधारों पर दोष हो सकता है:
- उत्पाद/सेवा के निर्माण में दोष।
- डिज़ाइन में दोष।
- उत्पाद की घोषित विशेषताओं से वास्तविक उत्पाद का अलग होना।
- निश्चित वारंटी के अनुरूप नहीं होना।
- प्रदान की जाने वाली सेवाओं का दोषपूर्ण होना।
- यदि किसी उत्पाद या सेवा में दोष पाया जाता है तो उत्पाद निर्माता/विक्रेता या सेवा प्रदाता को क्षतिपूर्ति के लिये ज़िम्मेदार माना जाएगा। विधेयक के अनुसार, किसी उत्पाद में निम्नलिखित आधारों पर दोष हो सकता है:
- मिलावटी/नकली सामान के निर्माण या बिक्री के संदर्भ में सज़ा:
- इस अधिनियम में एक सक्षम न्यायालय द्वारा मिलावटी नकली सामानों के निर्माण या बिक्री के लिये सज़ा का प्रावधान है। पहली बार दोषी पाए जाने की स्थिति में संबंधित अदालत दो साल तक की अवधि के लिये व्यक्ति को जारी किये गए किसी भी लाइसेंस को निलंबित कर सकती है और दूसरी बार या उसके बाद दोषी पाए जाने पर उस लाइसेंस को रद्द कर सकती है।
- मध्यस्थता के लिये संस्थागत व्यवस्था:
- नए अधिनियम में मध्यस्थता का एक वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र प्रदान किया गया है। ये इस अधिनिर्णय प्रक्रिया को सरल करेगा।
- जहाँ भी शुरुआती निपटान की गुंजाइश मौजूद हो और सभी पक्ष सहमत हों, वहां मध्यस्थता के लिये उपभोक्ता आयोग द्वारा एक शिकायत उल्लिखित की जाएगी। उपभोक्ता आयोगों के तत्त्वावधान में स्थापित किये जाने वाले मध्यस्थता प्रकोष्ठों में मध्यस्थता आयोजित की जाएगी।
- मध्यस्थता के माध्यम से होने वाले निपटान के खिलाफ कोई अपील नहीं होगी।
- उपभोक्ता विवाद समायोजन प्रक्रिया का सरलीकरण:
- राज्य और ज़िला आयोगों का सशक्तीकरण करना ताकि वे अपने स्वयं के आदेशों की समीक्षा कर सकें।
- उपभोक्ता को इलेक्ट्रॉनिक रूप से शिकायत दर्ज करने और उन उपभोक्ता आयोगों में शिकायत दर्ज करने में सक्षम करना जिनके अधिकार क्षेत्र में व्यक्ति के आवास का स्थान आता है।
- सुनवाई के लिये वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग और अगर 21 दिनों की निर्दिष्ट अवधि के भीतर स्वीकार्यता का सवाल तय नहीं हो पाए तो शिकायतों की स्वीकार्यता को मान लिया जाएगा।
- अन्य नियम और विनियम:
- उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के नियमों के अनुसार, 5 लाख रुपए तक का मामला दर्ज करने के लिये कोई शुल्क नहीं लगेगा।
- इलेक्ट्रॉनिक रूप से शिकायतें दर्ज करने के लिये भी इसमें प्रावधान है, न पहचाने जाने वाले उपभोक्ताओं की देय राशि को उपभोक्ता कल्याण कोष (Consumer Welfare Fund -CWF) में जमा किया जाएगा।
- नौकरियों, निपटान, लंबित मामलों और अन्य मसलों पर राज्य आयोग हर तिमाही केंद्र सरकार को जानकारी देंगे।
- उक्त सामान्य नियमों के अलावा, केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण परिषद (Central Consumer Protection Council-CCPC) के गठन के लिये नियम भी प्रदान किये गए हैं।
- ये परिषद उपभोक्ता मुद्दों पर एक सलाहकार निकाय होगा, जिसकी अध्यक्षता केंद्रीय उपभोक्ता मामलों, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्री द्वारा की जाएगी और उपाध्यक्ष के रूप में संबंधित राज्य मंत्री और विभिन्न क्षेत्रों से 34 अन्य सदस्य होंगे।
- इस परिषद का कार्यकाल तीन वर्ष का होगा, और इसमें उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम और NER, प्रत्येक क्षेत्र से दो राज्यों के उपभोक्ता मामलों के प्रभारी मंत्री शामिल होंगे। विशिष्ट कार्यों के लिये इन सदस्यों के बीच कार्य समूह का भी प्रावधान है।
- इस नए अधिनियम के तहत सामान्य नियमों के अलावा उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग नियम, राज्य/ज़िला आयोग में अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति के नियम, मध्यस्थता नियम, मॉडल नियम, ई-कॉमर्स नियम और उपभोक्ता आयोग प्रक्रिया विनियम, मध्यस्थता विनियम और राज्य आयोग एवं ज़िला आयोग पर प्रशासनिक नियंत्रण संबंधी विनियम भी निहित हैं।
स्रोत-पीआइबी
घाटे के वित्तीयन का एक उपकरण: प्रत्यक्ष मौद्रीकरण
प्रीलिम्स के लिये:प्रत्यक्ष मौद्रीकरण, अर्थोपाय अग्रिम मेन्स के लिये:प्रत्यक्ष विमौद्रीकरण |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘भारतीय स्टेट बैंक’ (State Bank of India- SBI) की एक रिपोर्ट में केंद्र सरकार के घाटे के वित्तपोषण के संभावित तरीके के रूप में ‘प्रत्यक्ष मौद्रीकरण’ (Direct Monetisation) को अपनाए जाने की सिफारिश की है।
प्रमुख बिंदु:
- रिपोर्ट SBI की ‘अर्थशास्त्र अनुसंधान टीम’ द्वारा तैयार की गई है।
- रिपोर्ट में तर्क दिया गया है कि वर्तमान में देश के आर्थिक विकास पर राजकोषीय संरक्षण (घाटे का प्रबंधन) उपायों की तुलना में अधिक महत्त्व दिया जाना चाहिये।
प्रत्यक्ष मौद्रीकरण (Direct Monetisation):
- मौद्रीकरण से तात्पर्य है कि ‘भारतीय रिज़र्व बैंक’ (Reserve Bank of India-RBI) सीधे तौर पर केंद्र सरकार के घाटे को पूरा करता है। वर्ष 1997 तक सरकार प्रतिभूतियों को सीधे RBI को बिक्री करती थी।
- यह सरकार के बजट घाटे को पूरा करने के लिये तकनीकी रूप से समतुल्य मुद्रा को छापने की अनुमति देता है।
- वर्ष 1997 के बाद में इसके मुद्रास्फीति प्रभाव तथा राजकोषीय प्रबंधन को बेहतर करने के लिये इसका प्रयोग बंद कर दिया गया।
- यह RBI द्वारा अपनाई जाने वाली 'अप्रत्यक्ष मौद्रीकरण' से उपायों जैसे; ‘खुला बाज़ार परिचालन’ (Open Market Operations- OMOs) या द्वितीयक बाज़ार के संबंध में अपनाई जाने वाली बॉन्ड खरीद प्रक्रियाओं से भिन्न है।
- वर्ष 1997 में सरकार की प्राप्तियों और भुगतान में अस्थायी अंतर को पूरा करने के लिये ‘अर्थोपाय अग्रिम’ (Ways and Means Advances) उपायों को प्रारंभ किया गया।
अर्थोपाय अग्रिम (Ways and Means Advances):
- प्रथम, अर्थोपाय अग्रिम (WMA) उपाय बजट के घाटे के वित्तीयन के स्रोत नहीं है। यह केवल सरकार की प्राप्तियों और भुगतान में दिन-प्रतिदिन के बेमेल (Mismatch) को कवर करने के लिये एक तंत्र है।
- द्वितीय, WMA पर राशि तथा समय की सीमा तय होती है।
- तृतीय, WMA को बाज़ार से संबंधित ब्याज दर पर लिया जाता है।
प्रत्यक्ष मौद्रीकरण के लाभ:
- घाटे के मौद्रीकरण से केंद्र सरकार बॉन्ड बाज़ारों पर दबाव डाले बिना कम लागत पर धन जुटा सकेगी जिससे निजी क्षेत्र के वित्तीयन पर अधिक प्रभाव नहीं पड़ेगा।
- सरकार द्वारा बाज़ार से कोई तरलता अवशोषित नहीं की जाती है, अत: ब्याज दर पर प्रत्यक्ष विमौद्रीकरण का कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं होगा।
प्रत्यक्ष मौद्रीकरण से नुकसान:
- आदर्श रूप से प्रत्यक्ष मौद्रीकरण उस समय समग्र मांग को बढ़ावा देने का अवसर प्रदान करता है जब निजी मांग में गिरावट आई है, परंतु यह मुद्रास्फीति तथा सरकारी ऋण के स्तर को बढ़ाता है जिससे मैक्रोइकॉनॉमिक अस्थिरता उत्पन्न हो सकती है।
- पूर्व में भारत सरकार द्वारा वर्ष 1991 के बाद प्रत्यक्ष मौद्रीकरण उपायों को अपनाया गया परंतु वर्ष 1997 में इस सुविधा को समाप्त कर दिया गया।
प्रत्यक्ष मौद्रीकरण और FRBM अधिनियम:
- ‘राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन’ (Fiscal Responsibility and Budget Management- FRBM) अधिनियम कुछ असाधारण परिस्थितियों में घाटे के प्रत्यक्ष मौद्रीकरण की अनुमति देता है।
- COVID-19 महामारी से उत्पन्न परिस्थिति भी असाधरण है, अत: प्रत्यक्ष मौद्रीकरण को अनुमति दी जा सकती है।
राजकोषीय घाटा बनाम आर्थिक वृद्धि:
- हाल ही में भारत की ‘सकल घरेलू उत्पाद’ (GDP) वृद्धि दर में गिरावट दर्ज की गई है। GDP पतन से ऋण-से-जीडीपी अनुपात के कम-से-कम 4% तक बढ़ने की संभावना है।
- वित्त वर्ष 2021 में भारत का ऋण-से-जीडीपी अनुपात वित्त वर्ष 2020 के 72.2% (146.9 लाख करोड़ रुपए) से बढ़कर लगभग 87.6% (170 लाख करोड़ रुपए) होने का अनुमान है।
- अधिकांश आर्थिक एजेंसियों के पूर्वानुमान बताते हैं कि वर्ष 2020 में भारत की GDP में 5 प्रतिशत तक या इससे अधिक की गिरावट देखने को मिल सकती है।
- बढ़ता ऋण-से-जीडीपी अनुपात इस बात की ओर संकेत करता है कि ऐसी परिस्थितियों में सरकार को राजकोषीय संरक्षण (घाटे को बढ़ने से रोकना) के स्थान पर आर्थिक विकास पर मुख्य ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
निष्कर्ष:
- किसी भी देश के ऋण की स्थिरता के लिये कम ब्याज दर और उच्च जीडीपी का होना महत्त्वपूर्ण हैं। अत: वर्तमान COVID-19 महामारी संकट में प्रत्यक्ष मौद्रीकरण देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने का कारगर उपाय हो सकता है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
छोटे हथियारों के आयात पर चिंता
प्रीलिम्स के लिये:INSAS, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश मेन्स के लिये:आत्मनिर्भर भारत की भूमिका और संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में छोटे हथियारों के घरेलू निर्माताओं ने भारत सरकार द्वारा छोटे हथियारों के आयात को जारी रखने पर अपनी चिंता व्यक्त की है।
प्रमुख बिंदु
- घरेलू निर्माताओं के लिये कोई बड़ा ऑफर नहीं:
- पिछले कुछ वर्षों में कई भारतीय कंपनियों ने छोटे हथियारों के क्षेत्र में निवेश किया है। सरकार ने छोटे हथियारों की बड़ी मांग एवं आवश्यकता को देखते हुए गोला-बारूद क्षेत्र में निजी क्षेत्र के प्रवेश को भी अनुमति दे रखी है।
- भारत सरकार ने 74% तक के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की अनुमति दे रखी है और कुछ विशिष्ट मामलों में यह 100% भी है।
- भारतीय कंपनियाँ 50% से अधिक स्वदेशी सामग्री के साथ छोटे हथियार बनाने में सक्षम हैं और इनकी कीमत तथा निर्माण एवं आपूर्ति की समय-सीमा भी मांग के अनुरूप हैं।
- हालाँकि किसी भी बड़े ऑर्डर की कमी में, भारतीय कंपनियाँ अब पुलिस और केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (CAPF) के छोटे ऑर्डर की तलाश कर रही हैं।
- इसके अलावा भारतीय कंपनियों को फास्ट ट्रैक प्रोक्योरमेंट (Fast Track Procurement- FTP) के माध्यम से होने वाले सौदों में शामिल नहीं किया जाता है, वर्तमान में ऐसे सभी सौदे विदेशी विक्रेताओं तक ही सीमित है।
- पिछले कुछ वर्षों में कई भारतीय कंपनियों ने छोटे हथियारों के क्षेत्र में निवेश किया है। सरकार ने छोटे हथियारों की बड़ी मांग एवं आवश्यकता को देखते हुए गोला-बारूद क्षेत्र में निजी क्षेत्र के प्रवेश को भी अनुमति दे रखी है।
- छोटे शस्त्रों का आयात:
- हाल ही में भारतीय सेना ने दूसरी बार संयुक्त राज्य अमेरीका के सिग सॉयर को 72,400 SIG-716 असॉल्ट राइफलों का ऑर्डर दिया है।
- सेना स्वदेशी भारतीय राष्ट्रीय लघु शस्त्र प्रणाली (Indian National Small Arms System-INSAS) राइफल को आधुनिक राइफल से बदलने का प्रयास कर रही है।
- इससे पहले, फरवरी 2019 में रक्षा मंत्रालय ने फास्ट ट्रैक प्रोक्योरमेंट के माध्यम से संयुक्त राज्य अमेरीका के सिग सॉयर से 72,400 SIG-716 असॉल्ट राइफलें खरीदी थीं, जिनमें से अधिकांश सेना के लिये थीं।
- 7 लाख से अधिक राइफलों की शेष मांग को आयुध निर्माणी बोर्ड (Ordnance Factory Board-OFB) के साथ संयुक्त उद्यम के माध्यम से भारत में रूसी AK-203 राइफल्स के लाइसेंस प्राप्त निर्माण के माध्यम से पूरा किया जाना था। हालाँकि मूल्य निर्धारण के मुद्दे पर अंतिम सौदा पूरा नहीं हो सका।
- हाल ही में भारतीय सेना ने दूसरी बार संयुक्त राज्य अमेरीका के सिग सॉयर को 72,400 SIG-716 असॉल्ट राइफलों का ऑर्डर दिया है।
- घरेलू निर्माताओं की मांग:
- घरेलू कंपनियाँ अपने उत्पादों का प्रदर्शन करने और मेक इन इंडिया का समर्थन करने के लिये विदेशी कंपनियों के समान अवसर प्रदान करने का आग्रह कर रहे हैं।
आगे की राह
- अपने घरेलू विनिर्माण को समर्थन प्रदान करके, भारत छोटे हथियारों के क्षेत्र में उत्कृष्टता का केंद्र बन सकता है। यह हथियारों और गोला-बारूद के आयात पर देश की निर्भरता को भी कम करेगा।
- छोटे हथियारों के घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देना, सरकार के आत्मनिर्भर भारत के सपने के अनुरूप है।
- हथियारों के घरेलू विनिर्माण से भारतीयों के लिये रोज़गार के नए अवसर पैदा होंगे।
स्रोत: द हिंदू
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 21 जुलाई, 2020
मुख्यमंत्री घर-घर राशन योजना
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में डोर स्टेप राशन डिलीवरी योजना को मंजूरी दे दी है। इस योजना का नाम 'मुख्यमंत्री घर-घर राशन योजना' होगा। इस योजना के तहत अब लोगों को राशन की दुकान पर नहीं जाना पड़ेगा। सरकार के द्वारा लोगों के दरवाजे पर सम्मानपूर्वक राशन पहुँचाने की व्यवस्था की जाएगी। इस योजना के अंतर्गत भारतीय खाद्य निगम के गोदाम से गेहूँ लिया जाएगा और उसे पिसवाया जाएगा, चावल और चीनी आदि की भी पैकिंग की जाएगी और उसे लोगों के घर-घर तक पहुँचाया जाएगा। जिस दिन दिल्ली में राशन की होम डिलीवरी शुरू होगी उसी दिन केंद्र सरकार की 'वन नेशन वन राशन कार्ड' की योजना दिल्ली में लागू कर दी जाएगी। लोगों को यह विकल्प दिया जाएगा कि जो परिवार दुकान पर जाकर राशन लेना चाहेगा, वह दुकान पर जाकर ले सकता है और यदि कोई होम डिलीवरी चाहता है तो वह उसका विकल्प इस्तेमाल कर सकते हैं।
ज़ोरम मेगा फूड पार्क
केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री श्रीमती हरसिमरत कौर बादल ने आज वर्चुअल सम्मेलन के माध्यम से मिज़ोरम के कोलासिब में ज़ोरम मेगा फूड पार्क लिमिटेड का उद्घाटन किया। लगभग 75 करोड़ रुपये की लागत से निर्मित और 55 एकड़ में फैले फूड पार्क से प्रत्यक्ष तौर पर 25,000 किसानों को लाभ होगा और इस क्षेत्र के 5,000 से अधिक लोगों को रोज़गार के अवसर मिलेंगे। उत्तर–पूर्व विकास राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. जितेंद्र सिंह ने ज़ोरम मेगा फूड पार्क के उद्घाटन का स्वागत करते हुए कहा कि इससे बिचौलियों को दूर कर क्षेत्र के किसानों की आय दोगुनी करने में मदद मिलेगी। उन्होंने क्षेत्र में किसी प्रसंस्करण इकाई के अभाव में लगभग 40 प्रतिशत फलों की बर्बादी का उल्लेख करते हुए कहा कि समृद्ध और उच्च किस्म के फलों को भारत के प्रमुख महानगरीय शहरों में शुद्ध पैकेज्ड जूस के रूप में बेचा जा सकता है। उन्होंने कहा कि पूर्वोत्तर क्षेत्र में अपनी समृद्ध खेती और बागवानी उत्पादों के कारण दुनिया का जैविक केंद्र बनने की क्षमता है।
आध्यात्मिक त्रिकोण ‘महेश्वर, मांडु और ओंकारेश्वर’
भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय ने देखो अपना देश श्रृंखला के तहत आध्यात्मिक त्रिकोण ‘महेश्वर, मांडु और ओंकारेश्वर’ पर 42वें वेबिनार का आयोजन किया। इस वेबिनार में मध्य प्रदेश में स्थित महेश्वर, मांडु और ओंकारेश्वर के आध्यात्मिक त्रिकोण के तहत आने वाले गंतव्यों के मनोहारी प्राकृतिक छटाओं की समृद्धि का प्रदर्शन किया गया और इस तरह दर्शकों को इन मनोरम स्थानों से परिचित कराया गया। देखो अपना देश वेबिनार श्रृंखला ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ के तहत भारत की समृद्ध विविधता को प्रदर्शित करने का एक प्रयास है और यह वर्चुअल मंच के माध्यम से लगातार एक भारत श्रेष्ठ भारत की भावना का प्रसार कर रहा है। इस आध्यात्मिक त्रिकोण का पहला पड़ाव महेश्वर या महिष्मती है जो ऐतिहासिक महत्व के साथ मध्य प्रदेश के शांत और मनोरम स्थलों में से एक है। इस शहर का नाम शहर का नाम भगवान शिव/महेश्वर के नाम पर पड़ा है जिसका उल्लेख महाकाव्य रामायण और महाभारत में भी मिलता है। ओंकारेश्वर में 33 देवता हैं और दिव्य रूप में 108 प्रभावशाली शिवलिंग हैं और यह नर्मदा के उत्तरी तट पर स्थित एकमात्र ज्योतिर्लिंग है। ओंकारेश्वर इंदौर से 78 किलोमीटर दूर मध्य प्रदेश का एक आध्यात्मिक शहर है। मध्य प्रदेश राज्य के धार जिले में स्थित मांडू को मांडवगढ़, शादियाबाद (आनंद का शहर) के नाम से भी जाना जाता है। मांडू मुख्य रूप से सुल्तान बाज बहादुर और रानी रूपमती की प्रेम कहानी के लिये जाना जाता है।
लालजी टंडन
हाल ही में मध्यप्रदेश के पूर्व राज्यपाल व भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता लालजी टंडन का निधन हो गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लालजी टंडन के निधन पर दुख व्यक्त किया। प्रधानमंत्री ने ट्वीट कर लिखा कि लालजी टंडन को उनकी समाज सेवा के लिये याद किया जाएगा। उन्होंने भारतीय जनता पार्टी को उत्तर प्रदेश में मजबूत बनाने में अहम भूमिका निभाई। लालजी टंडन का जन्म 12 अप्रैल 1935 को लखनऊ में हुआ था। लालजी टंडन ने राजनीतिक सफर की शुरुआत वर्ष 1960 में की थी। वर्ष 1978 से 1984 और वर्ष 1990 से 96 तक लालजी टंडन दो बार उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य भी रहे। लालजी टंडन जुलाई 2019 में मध्यप्रदेश के 22वें राज्यपाल के रूप में नियुक्त हुए थे। इससे पूर्व उन्होंने बिहार के राज्यपाल के रूप में भी सेवाएँ दी थी।