शासन व्यवस्था
उपभोक्ता संरक्षण विधेयक, 2018 : प्रावधान और प्रभाव
- 24 Feb 2018
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भूमिका
- भूमंडलीकरण और वैश्वीकरण के इस दौर में अधिकतर व्यक्तियों और संस्थाओं का प्रमुख उद्देश्य 'येन-केन-प्रकारेण' अधिक-से-अधिक लाभ कमाना होता जा रहा है।
- उत्पादकों एवं सेवा प्रदान करने वाली संस्थाओं द्वारा ग्राहकों एवं उपभोक्ताओं के साथ अनेक प्रकार के अनैतिक व्यापारिक व्यवहार किये जाते हैं। तकनीकी विकास, आय स्तर में वृद्धि, उत्पादों में दिनोंदिन बढ़ती विविधता, विपणन गतिविधियों की सूक्ष्मता ने उपभोक्ता आंदोलन को आवश्यक बना दिया है।
भारत जैसे विकासशील देशों में व्याप्त विभिन्न सामाजिक-आर्थिक समस्याओं, गरीबी, निरक्षरता और क्रय शक्ति में कमी के कारण उपभोक्ताओं के ठगे जाने, धोखाधड़ी, गुणों के विपरीत सामान दिये जाने आदि की खबरें प्राय: सुनने को मिलती रहती हैं। उपभोक्ताओं में अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता की कमी और शोषण के खिलाफ आवाज़ उठाने के लिये संस्थागत व्यवस्था की कमी इसके प्रमुख कारण है।
चर्चा में क्यों?
- 5 जनवरी, 2018 को लोकसभा में उपभोक्ता संरक्षण विधेयक 2018 पेश किया गया था। यह विधेयक उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 का स्थान लेगा।
- इससे पहले केंद्र सरकार द्वारा अगस्त, 2015 में लोकसभा में उपभोक्ता संरक्षण विधेयक, 2015 पेश किया गया था, जिस पर संसद की स्थायी समिति ने अपनी सिफारिशें भी दी थीं।
- उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय द्वारा 2018 के विधेयक को पेश करने से पहले 2015 के विधेयक को वापस ले लिया गया क्योंकि 2015 वाले विधेयक में कई संशोधन किये जाने हैं।
पृष्ठभूमि
- 15 मार्च, 1962 को अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जे.एफ. कैनेडी ने उपभोक्तावाद की महत्ता पर ज़ोर देते हुए अमेरिकी संसद के समक्ष ‘उपभोक्ता अधिकार बिल’ की रूपरेखा प्रस्तुत की थी। इसलिये प्रत्येक वर्ष 15 मार्च का दिन ‘विश्व उपभोक्ता दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।
- 24 दिसंबर, 1986 को भारत सरकार द्वारा उपभोक्ताओं के हितों के संरक्षण के लिये एक बड़ा कदम उठाते हुए उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम, 1986 पारित किया गया।
- तभी से 24 दिसंबर का दिन राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह अधिनियम जम्मू एवं कश्मीर राज्य को छोड़कर संपूर्ण भारत में समान रूप से लागू है।
- इस अधिनियम के तहत उपभोक्ताओं के अधिकारों के संरक्षण एवं उनके बीच जागरूकता फैलाने हेतु राष्ट्रीय, राज्य एवं ज़िला स्तर पर ‘उपभोक्ता संरक्षण परिषदों’ के गठन का प्रावधान किया गया है, जिसे क्रमशः राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग, राज्य आयोग तथा ज़िला फोरम के रूप में जाना जाता है।
- ज़िला स्तर का न्यायालय 20 लाख तक के दावों से संबंधित मुकदमों पर विचार करता है, राज्य स्तरीय अदालतें 20 लाख से 1 करोड़ तक और राष्ट्रीय स्तर की अदालतें 1 करोड़ से ऊपर की दावेदारी से संबंधित मुकदमों को देखती हैं।
- 1986 के अधिनियम में उपभोक्ताओं को निम्नलिखित अधिकार प्रदान किये गए थे-
संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा प्रदत्त सिद्धांत
- संयुक्त राष्ट्र संघ ने 9 अप्रैल, 1985 को उपभोक्ता नीति के विकास के लिये मार्गदर्शक सिद्धांतों का एक प्रारूप प्रस्तुत किया था और सदस्य देशों से क़ानून बनाकर या नीतियों में बदलाव के ज़रिये इन्हें लागू करने का आग्रह किया था।
- इसमें निम्नलिखित उद्देश्यों को इंगित किया गया था-
► उपभोक्ताओं को संरक्षण व अनुदान देने के लिये देशों की सहायता करना।
►उपभोक्ताओं की आवश्यकताओं व इच्छाओं के अनुरूप उत्पादन व वितरण पद्धति को और अधिक सुविधाजनक बनाना।
►वस्तुओं और सेवाओं के वितरण में लगे व्यक्तियों को उच्च नैतिक आचरण बनाए रखने के लिये प्रोत्साहित करना।
►राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तरों पर सभी उद्योगों द्वारा अपनाई जाने वाली अनुचित व्यापारिक प्रथाओं को रोकने में देशों की सहायता करना।
►स्वतंत्र उपभोक्ता समूहों के विकास में सहायता।
►उपभोक्ता संरक्षण के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना।
►ऐसी बाज़ार आधारित स्थितियों को विकसित करना जिसमें उपभोक्ता कम मूल्य पर बेहतर वस्तुएँ खरीद सके।
प्रस्तावित विधेयक के मुख्य प्रावधान निम्नलिखित हैं:
उपभोक्ता की विस्तृत परिभाषा
- उपभोक्ता वह व्यक्ति है जो अपने इस्तेमाल के लिये कोई वस्तु खरीदता है या सेवा प्राप्त करता है।
- यह विधेयक इलेक्ट्रॉनिक तरीके, टेलीशॉपिंग, मल्टी लेवल मार्केटिंग या सीधे खरीद के ज़रिये किये जाने वाले सभी तरह के ऑनलाइन या ऑफलाइन लेन-देनों को शामिल करता है।
उपभोक्ताओं के अधिकार : इसमें उपभोक्ताओं के निम्नलिखित अधिकार शामिल हैं-
- जीवन और संपत्ति के लिये खतरनाक वस्तुओं और सेवाओं के खिलाफ सुरक्षा का अधिकार।
- वस्तुओं और सेवाओं की गुणवत्ता, मात्रा, शुद्धता, मानक, और मूल्य की जानकारी प्राप्त होना।
- प्रतिस्पर्द्धात्मक मूल्यों पर वस्तु और सेवा उपलब्ध कराने का आश्वासन प्राप्त होना।
- अनुचित या प्रतिबंधित व्यापार की स्थिति में मुआवज़े की मांग करने का अधिकार।
केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (Central Consumer Protection Authority-CCPA)
- उपभोक्ताओं के अधिकारों को बढ़ावा देने, उनका संरक्षण करने और लागू करने के लिये CCPA का गठन किया जाएगा।
- CCPA अनुचित व्यापार प्रथाओं, भ्रामक विज्ञापनों (Misleading Advertisements) तथा उपभोक्ता अधिकारों के उल्लंघन से संबंधित मामलों का विनियमन करेगी। इसके लिये यह विधेयक CCPA को पर्याप्त रूप से सशक्त करता है।
- मुख्य आयुक्त की अध्यक्षता वाले CCPA के आदेश के विरुद्ध कोई भी अपील राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के समक्ष ही की जा सकेगी।
भ्रामक विज्ञापनों के लिये जुर्माना
- CCPA झूठे और भ्रामक विज्ञापनों के लिये विनिर्माता या उत्पाद को एन्डोर्स करने वाली सेलेब्रिटी पर 10 लाख रुपए तक का जुर्माना लगा सकती है और दुबारा अपराध की स्थिति में इसे 50 लाख रुपए तक बढ़ा सकती है।
- विनिर्माता को दो वर्ष तक की कैद और दुबारा अपराध पर पाँच साल की कैद हो सकती है।
- इस विधेयक की मुख्य विशेषता है कि यह किसी उत्पाद या सेवा का विज्ञापन करने से पहले उसके द्वारा किये जा रहे दावे की जाँच का दायित्व उस सेलेब्रिटी पर डालता है जो इसे एन्डोर्स कर रहा है।
- यदि यह विज्ञापन भ्रामक पाया जाता है तो CCPA उस विशेष उत्पाद या सेवा को एक वर्ष तक एन्डोर्स करने से प्रतिबंधित कर सकती है। एक से ज़्यादा बार अपराध करने पर प्रतिबंध की अवधि को तीन वर्ष तक बढाया जा सकता है।
- यह उल्लेखनीय है कि कुछ साल पहले अमिताभ बच्चन, प्रीति जिंटा और माधुरी दीक्षित जैसे बॉलीवुड कलाकार मैगी को एन्डोर्स करने पर तब विवादों में रहे थे जब इस उत्पाद में लेड की मात्रा सामान्य से अधिक पाई गई थी।
उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग
(Consumer Disputes Redressal Commissions-CDRC)
- उपभोक्ताओं की शिकायतों का निवारण करने के लिये ज़िला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग स्थापित किये जाएँगे।
- एक उपभोक्ता अनुचित और प्रतिबंधित तरीके के व्यापार, त्रुटिपूर्ण वस्तु या सेवा, अधिक या गलत तरीके से कीमत वसूले जाने और जीवन या सुरक्षा के लिये खतरनाक वस्तु या सेवा के विरुद्ध इसमे शिकायत कर सकेगा।
- ज़िला CDRCs के आदेश के खिलाफ राज्य CDRCs के समक्ष और राज्य CDRCs के आदेश के खिलाफ राष्ट्रीय CDRCs के समक्ष सुनवाई की जा सकेगी।
- अंतिम अपील उच्चतम न्यायालय के समक्ष ही की जा सकेगी।
CDRCs का क्षेत्राधिकार
- ज़िला CDRC 1 करोड़ रुपए तक के मामलों की, राज्य CDRC 1 करोड़ से अधिक लेकिन 10 करोड़ रुपए से कम वाले मामलों की और राष्ट्रीय CDRC 10 करोड़ रुपए से अधिक के मामलों की सुनवाई करेंगे।
- अनुचित अनुबंध के खिलाफ शिकायत केवल राष्ट्रीय और राज्य CDRC में ही की जा सकेगी। अनुचित अनुबंध में उपभोक्ता से अधिक डिपाज़िट की मांग करना, किसी अनुबंध को एकतरफा समाप्त कर देना आदि शामिल हो सकता है।
प्रोडक्ट लायबिलिटी
- इसका अर्थ है उत्पाद के विनिर्माता अथवा सेवा प्रदाता की ज़िम्मेदारी।
- इन्हें किसी खराब वस्तु या दोषपूर्ण सेवा के कारण होने वाले नुकसान या चोट के लिये उपभोक्ता को मुआवज़ा देना होगा।
मध्यस्थता के लिये संस्थागत व्यवस्था
- यदि ज़िला, राज्य और राष्ट्रीय आयोग को लगता है कि किसी मामले को मध्यस्थता के द्वारा सुलझाया जा सकता है तो वे इसके लिये एक मध्यस्थता सेल की स्थापना कर उसे मामला सौंप सकते हैं।
नए अधिनियम की आवश्यकता क्यों?
- वैश्विक बाज़ार में संरचनात्मक परिवर्तनों के चलते कानून को इन परिवर्तनों के अनुरूप बनाना।
- उपभोक्ता अधिकारों को बढ़ावा देने और इनकी रक्षा करने वाली राष्ट्रीय स्तर की संस्था की कमी।
- खराब या ज़ोखिमकारी वस्तु के मामलें में विनिर्माता को भी दोषी बनाए जाने की आवश्यकता।
- ई-कॉमर्स, टेली-मार्केटिंग आदि के कारण बढ़ते ऑनलाइन खरीदारी करने वाले उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करना।
- भ्रामक विज्ञापनों के मामले में जवाबदेही तय करने की आवश्यकता।