जैव विविधता और पर्यावरण
सियोल वन घोषणा
प्रिलिम्स के लिये:सियोल फॉरेस्ट डिक्लेरेशन, वर्ल्ड फॉरेस्ट्री कॉन्ग्रेस, SOFO 2022, FAO मेन्स के लिये:भारत में वन संसाधनों की स्थिति और संबंधित चिंताएंँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सियोल वन घोषणा को दक्षिण कोरिया के सियोल में 15वी विश्व वानिकी कॉन्ग्रेस में अपनाया गया।
- इस घोषणापत्र पर 141 देशों ने हस्ताक्षर किये हैं।
- इससे पहले संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन (FAO) द्वारा स्टेट ऑफ द वर्ल्ड्स फॉरेस्ट्स 2022 (SOFO 2022) को जारी किया गया था।
विश्व वानिकी कॉन्ग्रेस के बारे में:
- परिचय:
- इसका आयोजन प्रत्येक छह वर्ष में किया जाता है।
- इस कार्यक्रम को कोरिया गणराज्य एवं FAO द्वारा सह-आयोजित किया गया।
- यह विश्व वानिकी कॉन्ग्रेस एशिया में आयोजित दूसरा कार्यक्रम है।
- पहली कॉन्ग्रेस का आयोजन एशिया में 1978 में हुआ जिसकी मेज़बानी इंडोनेशिया ने की थी।
- विश्व वानिकी कॉन्ग्रेस ने इस क्षेत्र की प्रमुख चुनौतियों और भविष्य के लिये समावेशी चर्चा हेतु एक मंच के रूप में काम किया है।
- वर्ष 2022 हेतु थीम: हरित, स्वस्थ और अनुकूल निर्माण।
- लक्ष्य:
- सतत् विकास के सभी स्तरों पर वनों और वानिकी के भविष्य हेतु नई दृष्टि और कार्य करने के नए तरीके अपनाना।
- वनों और वानिकी में निवेश का अर्थ है लोगों एवं उनकी आजीविका में निवेश और सतत् विकास में निवेश द्वारा वर्ष 2030 तक सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करना।
- सतत् विकास के सभी स्तरों पर वनों और वानिकी के भविष्य हेतु नई दृष्टि और कार्य करने के नए तरीके अपनाना।
घोषणा की मुख्य विशेषताएंँ:
- साझा ज़िम्मेदारी:
- इस घोषणा में यह रेखांकित किया गया कि वन राजनीतिक, सामाजिक और पर्यावरणीय सीमाओं से स्वतंत्र होते हैं जो जैव विविधता एवं ग्रहीय पैमाने पर कार्बन, जल तथा ऊर्जा चक्रों के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
- वनों में निवेश:
- अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सहमत प्रतिबद्धताओं को पूरा करने और निम्नीकृत भूमि को बहाल करने के लक्ष्यों को पूरा करने के लिये विश्व स्तर पर वन एवं वन परिदृश्य बहाली में निवेश को वर्ष 2030 तक तीन गुना करने की आवश्यकता है।
- चक्रीय जैव अर्थव्यवस्था और जलवायु तटस्थता:
- विश्व वानिकी कॉन्ग्रेस के दौरान निकाले गए प्रमुख निष्कर्षों में चक्रीय जैव अर्थव्यवस्था और जलवायु तटस्थता को अपनाने के महत्त्व को भी रेखांकित किया गया है।
- घोषणापत्र में वन संरक्षण, बहाली और संधारणीय उपयोग में निवेश को बढ़ावा देने के लिये नवीन हरित वित्तपोषण तंत्र की आवश्यकता को रेखांकित किया गया एवं अक्षय, पुन: प्रयोज्य और बहुमुखी सामग्री के रूप में स्थायी रूप से वन उत्पादों की क्षमता पर प्रकाश डाला गया।
- भविष्य की महामारी को रोकने के लिये कदम:
- भविष्य की महामारियों के जोखिम को कम करने एवं मनुष्य के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिये तथा अन्य आवश्यक लाभ हेतु स्वास्थ्य प्रदान करने वाले वनों को भी बनाए रखा जाना चाहिये।
- घोषणा में साक्ष्य-आधारित वन एवं भूदृश्य, निर्णय लेने और तंत्र को सक्षम करने के लिये उभरती हुई नवीन तकनीकों व तंत्रों के निरंतर विकास तथा उपयोग हेतु नवीन प्रौद्योगिकी को अपनाने का भी आग्रह किया गया।
15वीं विश्व वानिकी कॉन्ग्रेस की अन्य मुख्य विशेषताएँ:
- अंतर्राष्ट्रीय भागीदारी और सहयोग को बढ़ावा देने के लिये इस कॉन्ग्रेस में की गई अन्य पहलें:
- एकीकृत जोखिम प्रबंधन (AFFIRM) तंत्र के साथ वनों के भविष्य का आश्वासन:
- AFFIRM का उद्देश्य अन्य देशों के लिये उदाहरण के रूप में उपयोग करने के लिये एकीकृत जोखिम प्रबंधन योजनाओं को विकसित कर एक ऐसी पद्धति का निर्माण करना है जो देशों को अशांति जैसे जोखिम का बेहतर ढंग से मूल्यांकन करने में सक्षम बनाने के साथ ही वन्य खतरों तथा वन-संबंधी जोखिमों की बेहतर समझ प्रदान कर सके।
- ‘वन पारिस्थितिकी तंत्र की उत्पादकता को बनाए रखने (SAFE)’ की पहल:
- REDD+ क्षमता निर्माण के लिये मंच:
- REDD+ वन क्षेत्र में गतिविधियों का मार्गदर्शन करने के लिये ‘जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन’ (UNFCCC) पार्टीज़ (COP) द्वारा बनाया गया एक फ्रेमवर्क है, जो वनों की कटाई और वन क्षरण के कारण होने वाले उत्सर्जन को कम करता है, साथ ही वनों का स्थायी प्रबंधन एवं विकासशील देशों में वन कार्बन स्टॉक का संरक्षण और उसमें वृद्धि करता है।
- एकीकृत जोखिम प्रबंधन (AFFIRM) तंत्र के साथ वनों के भविष्य का आश्वासन:
वनों के लिये प्रमुख सरकारी पहल:
- हरित भारत हेतु राष्ट्रीय मिशन:
- यह जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC) के तहत आठ मिशनों में से एक है।
- इसे फरवरी 2014 में देश के जैविक संसाधनों और संबंधित आजीविका को प्रतिकूल जलवायु परिवर्तन के खतरे से बचाने तथा पारिस्थितिक स्थिरता, जैव विविधता संरक्षण व भोजन-पानी एवं आजीविका पर वानिकी के महत्त्वपूर्ण प्रभाव को पहचानने के उद्देश्य से शुरू किया गया था।
- राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम (NAP):
- इसे निम्नीकृत वन भूमि के वनीकरण के लिये वर्ष 2000 से लागू किया गया है।
- इसे पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।
- क्षतिपूरक वनीकरण कोष प्रबंधन एवं योजना प्राधिकरण (CAMPA Funds):
- इसे वर्ष 2016 में लॉन्च किया गया था, इसके फंड का 90% हिस्सा राज्यों को दिया जाता है, जबकि 10% केंद्र द्वारा बनाए रखा जाता है।
- इस धन का उपयोग जलग्रहण क्षेत्रों के उपचार, प्राकृतिक उत्पादन, वन प्रबंधन, वन्यजीव संरक्षण और प्रबंधन, संरक्षित क्षेत्रों में गाँवों के पुनर्वास, मानव-वन्यजीव संघर्षों के प्रबंधन, प्रशिक्षण व जागरूकता पैदा करने, लकड़ी बचाने वाले उपकरणों की आपूर्ति तथा संबद्ध गतिविधियों के लिये किया जा सकता है।
- नेशनल एक्शन प्रोग्राम टू कॉम्बैट डेज़र्टिफिकेशन:
- इसे वर्ष 2001 में मरुस्थलीकरण से संबंधित मुद्दों को संबोधित करने के लिये तैयार किया गया था।
- इसका कार्यान्वयन MoEFCC द्वारा किया जाता है।
- वन अग्नि रोकथाम और प्रबंधन (FFPM):
- यह केंद्र द्वारा वित्तपोषित एकमात्र कार्यक्रम है जो विशेष रूप से जंगल की आग से निपटने में राज्यों की सहायता के लिये समर्पित है।
विगत वर्ष के प्रश्न:प्रश्न. 'वनों पर न्यूयॉर्क घोषणा' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन से सही हैं?
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2 और 4 उत्तर: (A) व्याख्या:
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स्रोत: डाउन टू अर्थ
भारतीय राजनीति
स्थानीय निकाय चुनावों में OBC कोटा
प्रिलिम्स के लिये:OBC आरक्षण, शहरी स्थानीय निकाय। मेन्स के लिये:स्थानीय निकाय चुनावों में OBC आरक्षण का महत्त्व। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने मध्य प्रदेश को स्थानीय निकाय चुनावों में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को आरक्षण प्रदान करने की अनुमति दी, जो आँकड़ों की कमी के कारण कोटा को निलंबित करने वाले पहले के आदेश को संशोधित करता है।
- वर्तमान में मध्य प्रदेश में स्थानीय निकायों में केवल अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और महिलाओं के लिये आरक्षण का प्रावधान है।
- यह पहली बार है कि किसी राज्य सरकार ने स्थानीय निकाय चुनावों में OBC को आरक्षण प्रदान करने के संदर्भ में शीर्ष न्यायालय द्वारा अनिवार्य ट्रिपल टेस्ट फॉर्मूले को मंज़ूरी देने में कामयाबी हासिल की है।
- इससे पहले सर्वोच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र सरकार की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए अपने दिसंबर 2021 के आदेश को वापस लेने का फैसला किया, जिसके माध्यम से स्थानीय निकाय चुनावों में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिये 27% आरक्षण पर रोक लगा दी गई थी।
पृष्ठभूमि:
- वर्ष 2021 में सर्वोच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में स्थानीय निकाय चुनावों में OBC कोटा खत्म कर दिया तथा ओडिशा उच्च न्यायालय ने राज्य में इसी तरह के एक कदम को रद्द कर दिया क्योंकि यह अभ्यास ट्रिपल टेस्ट से नहीं गुज़रा था।
- मार्च 2021 में सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को 2010 में निर्धारित तीन शर्तों का पालन करने के लिये कहा था- ओबीसी जनसंख्या से संबंधित अनुभवजन्य डेटा एकत्र करने के लिये एक समर्पित आयोग की स्थापना, आरक्षण के अनुपात को निर्दिष्ट करना और यह सुनिश्चित करना कि आरक्षित सीटों का संचयी हिस्सा कुल सीटों के 50% की निर्धारित सीमा का उल्लंघन न करे।
निर्णय:
- सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2021 में मध्य प्रदेश द्वारा गठित तीन सदस्यीय अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग की एक रिपोर्ट को स्वीकार करते हुए राज्यों को OBC सीटों को अधिसूचित करने का निर्देश दिया।
- इस आयोग ने राज्य में OBC की आबादी को 48% निर्धारित किया और प्रत्येक नगरपालिका सीट पर अलग-अलग मात्रा में आरक्षण की अनुमति दी, जिसे अधिकतम 35% तक बढ़ाया गया।
- सर्वोच्च न्यायालय ने मध्य प्रदेश राज्य चुनाव आयोग को राज्य सरकार द्वारा पहले से जारी परिसीमन अधिसूचनाओं को ध्यान में रखते हुए संबंधित स्थानीय निकायों के लिये चुनाव कार्यक्रम को अधिसूचित करने की अनुमति दी।
- यह आदेश एक व्यक्ति द्वारा दायर याचिका के बाद पारित किया गया था, जिसने अप्रैल 2022 में मध्य प्रदेश नगरपालिका अधिनियम, 1956; मध्य प्रदेश पंचायत राज और ग्राम स्वराज अधिनियम, 1993 तथा मध्य प्रदेश नगर पालिका अधिनियम, 1961 में संशोधन को चुनौती दी थी।
- इन संशोधनों द्वारा राज्य सरकार ने संबंधित स्थानीय निकायों में वार्डों की संख्या और सीमा निर्धारित करने के निर्णय को अपने अधिकार में ले लिया था।
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 2010 में दिया गया निर्णय:
- के. कृष्णमूर्ति बनाम भारत संघ वाद (2010) में सर्वोच्च न्यायालय के पाँच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने अनुच्छेद 243D(6) और अनुच्छेद 243T(6) की व्याख्या की थी, जो एक कानून के अधिनियमन द्वारा क्रमशः पंचायतों और नगर निकायों में पिछड़े वर्गों के लिये आरक्षण की अनुमति देते हैं। इसमें सर्वोच्च न्ययालय ने यह माना था कि राजनीतिक भागीदारी की बाधाएँ, शिक्षा एवं रोज़गार तक पहुँच को सीमित करने वाली बाधाओं के समान नहीं हैं।
- समान अवसर देने हेतु आरक्षण को वांछनीय माना जाता है, जैसा कि उपरोक्त अनुच्छेदों द्वारा अनिवार्य है जो कि आरक्षण के लिये एक अलग संवैधानिक आधार प्रदान करते हैं, जबकि अनुच्छेद 15(4) और अनुच्छेद 16(4) के तहत शिक्षा व रोज़गार में आरक्षण की परिकल्पना की गई है।
- यद्यपि स्थानीय निकायों को आरक्षण की अनुमति है, किंतु सर्वोच्च न्यायालय ने घोषित किया कि यह आरक्षण स्थानीय निकायों के संबंध में पिछड़ेपन के अनुभवजन्य डेटा के अधीन है।
स्थानीय सरकार:
- स्थानीय स्वशासन ऐसे स्थानीय निकायों द्वारा स्थानीय मामलों का प्रबंधन है जो स्थानीय लोगों द्वारा चुने गए हैं।
- स्थानीय स्वशासन में ग्रामीण और शहरी दोनों निकाय शामिल हैं।
- यह सरकार का तीसरा स्तर है।
- स्थानीय सरकारें दो प्रकार की होती हैं- ग्रामीण क्षेत्रों में पंचायतें और शहरी क्षेत्रों में नगर पालिकाएँ।
विगत वर्ष के प्रश्न:प्रश्न. स्थानीय स्वशासन की सर्वोत्तम व्याख्या यह की जा सकती है कि यह एक प्रयोग है: (2017) (d) संघवाद का उत्तर: B
प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2016)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर; B
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स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी अभिकर्त्ता
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO), राष्ट्रीय अंतरिक्ष परिवहन नीति (NSTP), इन-स्पेस, न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL), इंडियन स्पेस एसोसिएशन (ISPA) मेन्स के लिये:अंतरिक्ष क्रांति की आवश्यकता और उससे संबंधित कदम |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अंतरिक्ष विभाग के राज्य मंत्री (DOS)ने लोकसभा को सूचित किया कि सरकार अंतरिक्ष क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति देने पर विचार कर रही है।
इस कदम से इसरो को प्राप्त होने वाले लाभ:
- अनुसंधान और विकास गतिविधियाँ:
- ये सुधार इसरो को नई प्रौद्योगिकियों, अन्वेषण मिशनों और मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रमों पर अधिक ध्यान केंद्रित करने में सहायता करेंगे।
- कुछ ग्रह अन्वेषण मिशन भी 'अवसर की घोषणा' (Announcement of Opportunity) तंत्र के माध्यम से निजी क्षेत्र के लिये खोले जाएंगे।
- ये सुधार इसरो को नई प्रौद्योगिकियों, अन्वेषण मिशनों और मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रमों पर अधिक ध्यान केंद्रित करने में सहायता करेंगे।
- अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों का उपयोगी प्रसार:
- उद्योगों एवं अन्य जैसे- छात्रों, शोधकर्त्ताओं या अकादमिक निकायों को अंतरिक्ष संपत्तियों तक अधिक पहुँच की अनुमति देने से भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में संसाधनों का बेहतर उपयोग हो पाएगा।
- प्रौद्योगिकी पावरहाउस:
- यह भारतीय उद्योग को वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में एक महत्त्वपूर्ण प्रतिस्पर्द्धी बनने में सक्षम बनाएगा।
- इससे प्रौद्योगिकी क्षेत्र में बड़े पैमाने पर रोज़गार के अवसर उपलब्ध हो सकते हैं, साथ ही भारत वैश्विक स्तर पर अंतरिक्ष क्षेत्र में एक महाशक्ति बन सकता है।
- यह भारतीय उद्योग को वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में एक महत्त्वपूर्ण प्रतिस्पर्द्धी बनने में सक्षम बनाएगा।
- प्रभावी लागत:
- राष्ट्रीय वैमानिकी और अंतरिक्ष प्रशासन (नासा) द्वारा अपने समकक्षों की तुलना में भारत में बेस स्थापित करने तथा अंतरिक्ष उपग्रहों को लॉन्च करने की परिचालन लागत तुलनात्मक रूप से बहुत कम है।
- FDI यह भी सुनिश्चित करेगा कि नई तकनीक कीमत के साथ-साथ दक्षता में अधिक प्रभावी हो।
- सफलता दर:
- असाधारण सफलता दर के साथ इसरो दुनिया की छठी सबसे बड़ी अंतरिक्ष एजेंसी है।
- भारत ने 34 से अधिक देशों के लगभग 342 विदेशी उपग्रहों के सफल प्रक्षेपण द्वारा विश्व-स्तर पर कीर्तिमान स्थापित किया है।
- असाधारण सफलता दर के साथ इसरो दुनिया की छठी सबसे बड़ी अंतरिक्ष एजेंसी है।
विदेशी अभिकर्त्ताओं को लाभ:
- नवीन उपकरण:
- इसरो के पास अत्याधुनिक उपकरण हैं और यह निजी कंपनियों के सहयोग से SSLV (छोटा उपग्रह प्रक्षेपण यान) लॉन्च करने की प्रक्रिया में है।
- यह विदेशी निवेशकों को भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र के साथ साझेदारी करने पर अधिक लाभ प्रदान करेगा।
- उदारीकृत अंतरिक्ष क्षेत्र:
- इसरो ने पिछले कुछ वर्षों में कई औद्योगिक उद्यमों के साथ मज़बूत संबंध विकसित किये हैं, जो भारत में आधार स्थापित करने वाले विदेशी अभिकर्त्ताओं के लिये लाभदायक होगा।
अंतरिक्ष क्षेत्र में सुधार की आवश्यकता:
- क्षेत्र का विस्तार:
- इसरो को केंद्र द्वारा वित्त प्रदान किया जाता है और इसका वार्षिक बजट 14,000-15,000 करोड़ रुपए के बीच है, यह समुद्र में एक बूंँद जैसा है जिसका अधिकांश उपयोग रॉकेट और उपग्रहों के निर्माण में किया जाता है।
- इस क्षेत्र के पैमाने को बढ़ाने के लिये निजी अभिकर्त्ताओं का बाज़ार में प्रवेश करना अनिवार्य है।
- इसरो सभी निजी अभिकर्त्ताओं को ज्ञान और प्रौद्योगिकी जैसे कि रॉकेट एवं उपग्रहों का निर्माण करने की साझा योजना बना रहा है।
- संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोप और रूस के अंतरिक्ष उद्योगों में बोइंग, स्पेसएक्स, एयरबस और वर्जिन गेलेक्टिक जैसे प्रमुख निवेशक हैं।
- निजी अभिकर्त्ताओं में सुधार:
- निजी अभिकर्त्ता अंतरिक्ष आधारित अनुप्रयोगों और सेवाओं के विकास के लिये आवश्यक नवाचार ला सकते हैं।
- इसके अतिरिक्त इन सेवाओं की मांग और भारत के साथ-साथ विश्व भर में बढ़ रही है, अधिकांश क्षेत्रों में उपग्रह आंँकड़े, इमेज़री और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जा रहा है।
- निजी अभिकर्त्ता अंतरिक्षयान के लिये ग्राउंड स्टेशनों की स्थापना में भाग ले सकते हैं जो अंतरिक्ष क्षेत्र के बजट का 48 प्रतिशत है, साथ ही अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग हेतु यह अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था का 45 प्रतिशत है।
अन्य संबंधित पहलें:
- भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्द्धन और प्राधिकरण केंद्र (IN-SPACe):
- भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्द्धन और प्राधिकरण केंद्र (IN-SPACe) को वर्ष 2020 में निजी कंपनियों को भारतीय अंतरिक्ष बुनियादी ढाँचे का उपयोग करने के लिये एक समान अवसर प्रदान करने हेतु अनुमोदित किया गया था।
- यह भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और अंतरिक्ष से संबंधित गतिविधियों में भाग लेने या भारत के अंतरिक्ष संसाधनों का उपयोग करने वाले सभी लोगों के बीच एकल-बिंदु इंटरफेस के रूप में कार्य करता है।
- न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL):
- बजट 2019 में घोषित NSIL का उद्देश्य भारतीय उद्योग भागीदारों के माध्यम से वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिये इसरो द्वारा वर्षों से किये गए अनुसंधान और विकास का उपयोग करना है।
- भारतीय अंतरिक्ष संघ (ISpA):
- ISpA भारतीय अंतरिक्ष उद्योग की सामूहिक अभिव्यक्ति बनेगा। ISpA का प्रतिनिधित्व प्रमुख घरेलू और वैश्विक निगमों द्वारा किया जाएगा जिनके पास अंतरिक्ष एवं उपग्रह प्रौद्योगिकियों में उन्नत क्षमताएँ हैं।
आगे की राह
- भारत के पास दुनिया के सर्वश्रेष्ठ अंतरिक्ष कार्यक्रमों में से एक होने के साथ-साथ अंतरिक्ष में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति देने के भारत के कदम को वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में एक बड़े अभिकर्त्ता के रूप में स्थापित करेगा।
- अंतरिक्ष के क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश विदेशी पक्षों को भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में उद्यम करने की अनुमति देगा, यह भारतीय राष्ट्रीय और विदेशी मुद्रा भंडार में योगदान देगा तथा प्रौद्योगिकी हस्तांतरण व अनुसंधान नवाचारों को बढ़ावा मिलेगा।
- इसके अलावा भारतीय अंतरिक्ष गतिविधि विधेयक की शुरुआत से निजी कंपनियों को अंतरिक्ष क्षेत्र का एक अभिन्न अंग बनने के बारे में अधिक स्पष्टता सुनिश्चित होगी।
विगत वर्ष के प्रश्न:प्रश्न. भारत के उपग्रह प्रक्षेपण यान के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (A) व्याख्या:
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स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
जैव विविधता और पर्यावरण
नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने हेतु संयुक्त राष्ट्र की योजना
प्रिलिम्स के लिये:अक्षय ऊर्जा, प्रदूषण नियंत्रण उपाय, संयुक्त राष्ट्र, ग्रीनहाउस गैसें मेन्स के लिये:नवीकरणीय ऊर्जा की भविष्य की संभावना, भारत सरकार की योजना एवं नीति, संबद्ध चुनौती और चिंता। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र की मौसम एजेंसी विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने बताया कि ग्रीनहाउस गैस सांद्रता, समुद्र में उच्च तापमान, समुद्र के जल स्तर में वृद्धि और समुद्र के अम्लीकरण ने पिछले वर्ष नए रिकॉर्ड बनाए हैं।
- विश्व मौसम विज्ञान संगठन के अनुसार, चरम मौसमी घटनाओं के कारण मृत्यु, बीमारी, प्रवास और आर्थिक नुकसान की स्थिति उत्पन्न हुई है।
- संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, वर्ष 2020 तक चरम मौसम की घटनाओं में दोगुनी वृद्धि हुई है।
- संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने जलवायु परिवर्तन पर वैश्विक ध्यान आकर्षित करने हेतु नवीकरणीय ऊर्जा के व्यापक उपयोग को बढ़ावा देने के लिये पांँच सूत्री योजना शुरू की है।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव का आग्रह:
- संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के साथ-साथ नवीकरणीय प्रौद्योगिकियों के लिये बौद्धिक संपदा सुरक्षा बढ़ाने का समर्थन किया।
- नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकी के लिये आपूर्ति शृंखलाओं का विस्तार किया जाना चाहिये, क्योंकि ये कुछ विकसित देशों के हाथों में ही केंद्रित हैं,जबकि वर्तमान में उच्च स्तर के प्रदूषण की घटनाएँ बढ़ रही हैं जिसके नकारात्मक प्रभाव देखे जा सकते हैं।
- संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने राज्यों से आग्रह किया कि वे अपनी ऊर्जा मांग और आपूर्ति को ऐसे तरीकों से पुनर्गठित करें जो नवीकरणीय ऊर्जा के पक्ष में हों ताकि सौर एवं पवन परियोजनाओं को गति प्रदान की जा सके।
- राज्यों द्वारा जीवाश्म ईंधन पर सब्सिडी को हटा दिया जाना चाहिये।
- नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र में निवेश को सालाना कम-से-कम 4 ट्रिलियन डॉलर बढ़ने के लिये प्रेरित किया जाना चाहिये।
जीवाश्म ईंधन से बचाव:
- जीवाश्म ईंधन के जलने से खतरनाक रसायन जैसे-सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड और अन्य हानिकारक गैसें वातावरण में उत्सर्जित होती हैं।
- सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड अम्ल वर्षा करते हैं: पानी में SO2 एवं NO2 के त्वरित विघटन के परिणामस्वरूप अम्लीय वर्षा होती है।
- प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिये जीवाश्म ईंधन के उपयोग को कम किया जाना चाहिये और ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों के उपयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
- ज़ीवाश्म ईंधन ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन की घटनाओं में वृद्धि करता है जो अंततः चरम मौसमी घटनाओं की ओर ले जाता है।
- ज़ीवाश्म ईंधन निष्कर्षण ने मुख्य निष्कर्षण स्थल के अलावा सड़कों, पाइपलाइनों, प्रसंस्करण सुविधाओं और अपशिष्ट भंडारण जैसे बुनियादी ढांँचे की स्थापना के लिये भूमि के बड़े हिस्से को नष्ट कर दिया।
स्टेट ऑफ द क्लाइमेट रिपोर्ट 2021:
- परिचय:
- स्टेट ऑफ द क्लाइमेट रिपोर्ट, 2021 विश्व मौसम विभाग द्वारा प्रकाशित की गई है।
- प्रमुख विशेषताएँ:
- वर्ष 2021 में तापमान पूर्व-औद्योगिक काल (वर्ष 1850-1900) के औसत की तुलना में 1.11 (±0.13 °C) डिग्री सेल्सियस अधिक आंँका गया है।
- वर्ष 2015 से 2021 तक के पिछले सात वर्षों ने अब तक के सर्वाधिक गर्म वर्ष होने का रिकॉर्ड बनाया है।
- औसत समुद्री जल स्तर वर्ष 2021 में रिकॉर्ड ऊंँचाई पर पहुंँच गया। वर्ष 2013-2021 की अवधि में यह औसतन 4.5 मिलिमीटर प्रतिवर्ष की दर से बढ़ा है।
- संघर्ष, चरम मौसमी घटनाओं तथा कोविड-19 महामारी और आर्थिक झटकों के मिश्रित प्रभाव ने विश्व स्तर पर खाद्य सुरक्षा में सुधार की दिशा में दशकों की प्रगति को कमज़ोर कर दिया।
- जीवाश्म ईंधन के दहन में निरंतर वृद्धि के कारण वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की सांद्रता बढ़ रही है।
- रिपोर्ट के अनुसार, विश्व स्तर पर चरम मौसमी घटनाओं में शामिल हैं:
- तूफान या चक्रवात: तेज़ हवा, भारी बारिश।
- धूल भरी आंँधी: तेज़ हवाएंँ, शुष्क परिस्थितियाँ।
- बाढ़: भारी बारिश।
- ओलावृष्टि: ठंडा या गर्म तापमान, बारिश, बर्फ।
- बर्फीला तूफ़ान: बर्फीली बारिश।
- बवंडर: बादल, तेज़ हवा, बारिश, ओले।
- बर्फीला तूफ़ान: भारी बर्फ, बर्फ, ठंडा तापमान।
- जोखिम और प्रभाव:
- खाद्य सुरक्षा चुनौतियांँ:
- कोविड-19 महामारी के दौरान दुनिया में कुपोषित लोगों की संख्या में काफी वृद्धि हुई, वर्ष 2019 के 650 मिलियन लोगों से बढ़कर यह संख्या वर्ष 2020 में 768 मिलियन हो गई।
- ग्लोबल वार्मिंग ने कम विकसित देशों में खाद्य असुरक्षा के मुद्दों को बढ़ा दिया है।
- मानवीय प्रभाव और जनसंख्या विस्थापन:
- शरणार्थी, आंतरिक रूप से विस्थापित लोग तथा राज्यविहीन लोग अक्सर जलवायु और मौसम संबंधी खतरों के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील होते हैं।
- बहुत से कमज़ोर व्यक्ति जो विस्थापित हो जाते हैं, वे उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में बस जाते हैं, जहाँ वे कई बार जलवायु और मौसम संबंधी खतरों के संपर्क में आते रहते हैं।
- पारिस्थितिक तंत्र पर जलवायु प्रभाव:
- पारिस्थितिक तंत्र एक अभूतपूर्व दर से गिरावट दर्ज कर रहा है, मानव कल्याण संबंधी नीतियाँ उनकी क्षमता को सीमित कर रही हैं और उन्हें लचीला बनाने के लिये उनकी अनुकूली क्षमता को नुकसान पहुँचा रहे हैं।
- जलवायु परिवर्तन का प्रभाव जलवायु संवेदनशील प्रजातियों पर भी पड़ रहा है। इस बात के प्रमाण हैं कि तापमान के प्रति संवेदनशील पौधों में वसंत ऋतु से पहले ही पत्तियों का आना शुरू हो जाता है और बाद में शरद ऋतु में वे अपनी पत्तियों को गिरा देते हैं
- खाद्य सुरक्षा चुनौतियांँ:
कमियाँ:
- स्वच्छ ऊर्जा सस्ता स्रोत नहीं है: यदि हम शुद्ध शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य को प्राप्त करना चाहते हैं, तो हमें पहले अक्षय ऊर्जा को मध्यम आय वाले और गरीब देशों के लिये सस्ता बनाना होगा।
- अमेज़न, अफ्रीका और दक्षिणी एशिया जैसे क्षेत्रों में कार्बन डाइऑक्साइड का त्वरित संचय।
- कार्बन कटौती की प्रतिबद्धता राष्ट्रों द्वारा हासिल नहीं की जाती है। भारत को छोड़कर अन्य राष्ट्र स्कॉटलैंड के ग्लासगो में संयुक्त राष्ट्र की जलवायु बैठक में ली गई कार्बन कटौती प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में सक्षम नहीं हैं।
आगे की राह
- क्षेत्रों की पहचान: अक्षय संसाधन विशेष रूप से वायु हर जगह स्थापित नहीं की जा सकती, उन्हें विशिष्ट स्थान की आवश्यकता होती है।
- इन विशिष्ट स्थानों की पहचान, उन्हें मुख्य ग्रिड के साथ एकीकृत करना और शक्तियों का वितरण- इन तीनों का संयोजन ही भारत को आगे ले जाएगा।
- जीवाश्म ईंधन सब्सिडी: यह सुनिश्चित करने के लिये कि केवल आवश्यक मात्रा में ऊर्जा की खपत हो, जीवाश्म ईंधन सब्सिडी में सुधार किया जाना चाहिये।
- अक्षय ऊर्जा उत्पादन में निवेश को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs):प्रश्न. भारतीय अक्षय ऊर्जा विकास एजेंसी लिमिटेड (IREDA) के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?(2015)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (A) केवल 1 उत्तर: C व्याख्या:
प्रश्न. भारत में सौर ऊर्जा उत्पादन के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (A) केवल 1 उत्तर: D
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स्रोत: द हिंदू
भारतीय राजनीति
अनुच्छेद 142
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति, अनुच्छेद 72, राष्ट्रपति, राज्यपाल मेन्स के लिये:सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पूर्ण न्याय अपनाने में चुनौतियाँ (अनुच्छेद 142), अनुच्छेद 162 |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत पूर्ण न्याय प्रदान करने की अपनी असाधारण शक्तियों का प्रयोग किया और पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी हत्या मामले में एजी पेरारिवलन को रिहा करने का आदेश दिया है।
- न्यायालय ने संघवाद की रक्षा करते हुए कहा कि हत्या के मामलों में दोषियों द्वारा किये गए अनुच्छेद 161 के तहत क्षमा की याचिका के मामले में राज्यों के पास राज्यपाल को सहायता और सलाह देने की शक्ति है।
- अनुच्छेद 161 में यह प्रावधान है कि किसी भी मामले से संबंधित किसी भी कानून के खिलाफ किसी भी अपराध के लिये राज्य द्वारा दिये गए दंड के संबंध में राज्यपाल के पास दंड को निलंबित करने, दंड की अवधि को कम करने, दंड के स्वरूप में परिवर्तन करने की शक्ति होगी।
सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय:
- सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि तमिलनाडु मंत्रिपरिषद द्वारा वर्ष 2018 में राज्यपाल को दी गई क्षमादान की सलाह संविधान के अनुच्छेद 161 (राज्यपाल की क्षमादान की शक्ति) के अंतर्गत राज्यपाल के लिये बाध्यकारी है।
- क्षमा याचिका पर निर्णय लेने की राज्यपाल की अनिच्छा ने न्यायालय को पेरारिवलन के साथ न्याय करने के लिये अनुच्छेद 142 के तहत अपनी संवैधानिक शक्तियों को नियोजित करने के लिये बाध्य किया।
- पेरारिवलन को रिहा करने के लिये सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल किया जो न्यायालय को पूर्ण न्याय प्रदान करने हेतु असाधारण शक्तियाँ प्रदान करता है।
- न्यायालय ने केंद्र के इस तर्क को खारिज कर दिया कि विशेष रूप से केवल राष्ट्रपति के पास भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या) के तहत किसी मामले में क्षमादान प्रदान करने की शक्ति है, सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि यह विवाद अनुच्छेद 161 को एक "मृत्यु पत्र" के समान बना देगा और एक असाधारण स्थिति पैदा कर देगा जो राज्यपालों द्वारा पिछले 70 वर्षों से हत्या के मामलों में दी गई क्षमा को अमान्य कर देगा।
अनुच्छेद 142:
- परिभाषा: अनुच्छेद 142 सर्वोच्च न्यायालय को विवेकाधीन शक्ति प्रदान करता है क्योंकि इसमें कहा गया है कि सर्वोच्च न्यायालय अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुए ऐसी डिक्री पारित कर सकता है या ऐसा आदेश दे सकता है जो उसके समक्ष लंबित किसी भी मामले या मामलों में पूर्ण न्याय करने के लिये आवश्यक हो।
- रचनात्मक अनुप्रयोग: अनुच्छेद 142 के विकास के शुरुआती वर्षों में आमजनता और वकीलों दोनों ने समाज के विभिन्न वंचित वर्गों को पूर्ण न्याय दिलाने या पर्यावरण की रक्षा करने के प्रयासों के लिये सर्वोच्च न्यायालय की सराहना की।
- इसी अनुच्छेद के अंतर्गत ताजमहल की सफाई का निर्णय और कई विचाराधीन कैदियों को न्याय प्रदान किया गया है।
- भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों से संबंधित यूनियन कार्बाइड मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने खुद को संसद या राज्यों की विधानसभाओं द्वारा बनाए गए कानूनों से ऊपर रखते हुए कहा कि न्याय को पूरा करने के लिये वह संसद द्वारा बनाए गए कानूनों की भी अवहेलना कर सकता है।
- हालांँकि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा ‘बार एसोसिएशन बनाम भारत संघ’ मामले में कहा गया कि अनुच्छेद 142 का उपयोग मौज़ूदा कानून को प्रतिस्थापित करने के लिये नहीं, बल्कि एक विकल्प के तौर पर किया जा सकता है|
- न्यायिक अतिरेक के मामले: हाल के वर्षों में सर्वोच्च न्यायालय ने कई ऐसे निर्णय दिये हैं जिनमें यह अनुच्छेद उन क्षेत्रों में भी हस्तक्षेप करता है जिन्हें न्यायालय द्वारा शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत के माध्यम से भुला दिया गया है| उल्लेखनीय है कि ‘शक्तियों के पृथक्करण’ का सिद्धांत भारतीय संविधान के मूल ढाँचे का एक भाग है|
- राष्ट्रीय एवं राज्य राजमार्गों पर शराब की बिक्री पर प्रतिबंध: केंद्र सरकार की अधिसूचना में जहांँ केवल राष्ट्रीय राजमार्गों के किनारे शराब की दुकानों पर प्रतिबंध लगाया गया था, जबकि सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 142 को लागू करते हुए 500 मीटर की दूरी तक प्रतिबंध लगा दिया है।
- इसके अतिरिक्त और किसी भी राज्य सरकार द्वारा इसी तरह की अधिसूचना के अभाव में न्यायालय ने प्रतिबंध को राज्य राजमार्गों पर भी बढ़ा दिया।
- इस तरह के फैसलों ने अनुच्छेद 142 को लागू करने के लिये न्यायालय के विवेक के बारे में अनिश्चितता पैदा कर दी है, जहांँ व्यक्तियों के मौलिक अधिकारों की भी अनदेखी की जा रही है।
आगे की राह
- सर्वोच्च न्यायालय को इस बात पर आत्मनिरीक्षण करने की आवश्यकता है कि क्या अनुच्छेद 142 का शक्ति के स्वतंत्र स्रोत के रूप में उपयोग सख्त दिशा-निर्देशों द्वारा नियंत्रित किया जाना चाहिये।
- एक अन्य विकल्प यह है कि अनुच्छेद 142 को लागू करने वाले सभी मामलों को कम-से-कम पाँच न्यायाधीशों की संविधान पीठ को भेजा जाना चाहिये ताकि विवेक का यह प्रयोग लोगों के जीवन पर इस तरह के दूरगामी प्रभाव वाले मामलों पर काम कर रहे पाँच स्वतंत्र न्यायिक दिमागों का परिणाम मिल सके। .
- उन सभी मामलों में जहांँ अदालत अनुच्छेद 142 को लागू करती है, सरकार को इसकी तारीख से छह महीने या उससे अधिक की अवधि के बाद लाभकारी और साथ ही फैसले के नकारात्मक प्रभावों का अध्ययन करने के लिये एक श्वेतपत्र लाना चाहिये।
राष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति क्या है?
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 72 की न्यायिक शक्ति के तहत अपराध के लिये दोषी करार दिये गए व्यक्ति को राष्ट्रपति क्षमा अर्थात् दंडादेश का निलंबन, प्राणदंड स्थगन, राहत और माफी प्रदान कर सकता है। इन शब्दों का अर्थ इस प्रकार है:
- लघुकरण (Commutation)- सज़ा की प्रकृति को बदलना जैसे मृत्युदंड को कठोर कारावास में बदलना।
- परिहार (Remission)- सज़ा की अवधि को बदलना जैसे 2 वर्ष के कठोर कारावास को 1 वर्ष के कठोर कारावास में बदलना।
- विराम (Respite)- विशेष परिस्थितियों की वजह से सज़ा को कम करना जैसे शारीरिक अपंगता या महिलाओं की गर्भावस्था के कारण।
- प्रविलंबन (Reprieve)- किसी दंड को कुछ समय के लिये टालने की प्रक्रिया जैसे फाँसी को कुछ समय के लिये टालना।
- क्षमा (Pardon)- पूर्णतः माफ़ कर देना, इसका तकनीकी मतलब यह है कि अपराध कभी हुआ ही नहीं।
विगत वर्ष के प्रश्न:प्रश्न. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 142 के अनुसार, सामान्य कानूनों में निहित निषेध या सीमाएं या प्रावधान संवैधानिक शक्तियों पर प्रतिबंध या सीमाओं के रूप में कार्य नहीं कर सकते हैं। निम्नलिखित में से इसका क्या अर्थ हो सकता है? (2019) (A) भारत निर्वाचन आयोग द्वारा अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए लिये गए निर्णयों को किसी भी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है। (B) भारत का सर्वोच्च न्यायालय संसद द्वारा बनाए गए कानूनों द्वारा अपनी शक्तियों के प्रयोग के लिये बाध्य नहीं है। (C) देश में गंभीर वित्तीय संकट की स्थिति में भारत का राष्ट्रपति मंत्रिमंडल से परामर्श किये बिना वित्तीय आपातकाल की घोषणा कर सकता है। (D) संघ विधानमंडल की सहमति के बिना राज्य विधानमंडल कुछ मामलों पर कानून नहीं बना सकते हैं। उत्तर: B
अतः विकल्प (B) सही है |
स्रोत: द हिंदू
सामाजिक न्याय
चाइल्ड ऑनलाइन सेफ्टी टूलकिट
प्रिलिम्स के लिये:एसडीजी, यूएनसीआरसी, यूनिसेफ, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मेन्स के लिये:बच्चों की इंटरनेट के प्रति संवेदनशीलता, बच्चों से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में बच्चों के लिये ऑनलाइन अनुभव को सुरक्षित बनाने के प्रयास में चाइल्ड ऑनलाइन सुरक्षा टूलकिट लॉन्च किया गया है।
टूलकिट से लाभ:
- परिचय:
- यह ऑनलाइन विश्व में बच्चों को सुरक्षित रखने के लिये एक व्यापक, व्यावहारिक मार्गदर्शिका है।
- यह वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय समझौतों और सर्वोत्तम प्रथाओं पर आधारित है, जो विभिन्न पृष्ठभूमि के अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों के परामर्श से विकसित किया गया है।
- इसमें बच्चों की ऑनलाइन सुरक्षा को व्यावहारिक बनाने हेतु ऑनलाइन और प्रिंट दोनों माध्यमों में वर्कशीट और संसाधन उपलब्ध हैं।
- टूलकिट निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय समझौतों और ढांँचे के कार्यान्वयन का समर्थन करता है:
- सतत् विकास लक्ष्य (एसडीजी)
- बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCRC) डिजिटल वातावरण में बच्चों के अधिकारों पर सामान्य समीक्षा संख्या 25 (2021)।
- सामान्य समीक्षा का उद्देश्य यह बताना है कि डिजिटल वातावरण के संबंध में राज्य पार्टियों को बाल अधिकार पर अभिसमय को कैसे लागू करना चाहिये।
- यह अभिसमय के तहत अपने दायित्वों के पूर्ण अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिये डिज़ाइन किये गए प्रासंगिक कानून, नीति और अन्य उपायों पर मार्गदर्शन भी प्रदान करता है।
- सामान्य समीक्षा का उद्देश्य यह बताना है कि डिजिटल वातावरण के संबंध में राज्य पार्टियों को बाल अधिकार पर अभिसमय को कैसे लागू करना चाहिये।
- वी प्रोटेक्ट ग्लोबल अलायंस मॉडल नेशनल रिस्पांस (WeProtect Global Alliance Model National Response):
- वी प्रोटेक्ट ग्लोबल अलायंस 200 से अधिक सरकारों, निजी क्षेत्र की कंपनियों और नागरिक समाज संगठनों का वैश्विक आंदोलन है, जो ऑनलाइन बाल यौन शोषण और दुर्व्यवहार के लिये वैश्विक प्रतिक्रिया में बदलाव के लिये एक साथ काम कर रहा है।
- बाल ऑनलाइन सुरक्षा पर अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ के दिशानिर्देश।
- यह बच्चों और युवाओं के लिये सुरक्षित और सशक्त ऑनलाइन वातावरण बनाने में मदद करने के तरीके पर बच्चों, माता-पिता तथा शिक्षकों, उद्योग व नीति निर्माताओं हेतु सिफारिशों का व्यापक समुच्चय है।
- इसने बच्चों के लिये आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) पर यूनिसेफ के ड्राफ्ट पॉलिसी गाइडेंस का भी इस्तेमाल किया।
- मार्गदर्शन का उद्देश्य सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई ) नीतियों और प्रथाओं में बच्चों के अधिकारों को बढ़ावा देना है, साथ ही इस बारे में जागरूकता बढ़ाना है कि एआई सिस्टम इन अधिकारों को कैसे बनाए रख सकता है या कम कर सकता है।
टूलकिट का महत्त्व:
- सुभेद्यता:
- भारत में 2019 में 34.4% (मुख्य रूप से महामारी के बाद के प्रभाव के रूप में) की तुलना में 2020 में 50% इंटरनेट की पहुंँच देखी गई है।
- इसलिये बच्चों की ऑनलाइन गतिविधियों में वृद्धि स्पष्ट हो जाती है क्योंकि भारत के 749 मिलियन इंटरनेट उपयोगकर्त्ताओं में से 232 मिलियन बच्चे हैं।
- इंटरनेट एक दोधारी तलवार के रूप में कार्य करता है जिसमें एक तरफ कनेक्टिविटी, ज्ञान तक पहुँच और मनोरंजन एवं दूसरी ओर हानिकारक व अनुचित सामग्री के संभावित जोखिम भी हैं।
- बाल यौन शोषण को संबोधित करना:
- न केवल ऑफलाइन बल्कि ऑनलाइन बाल यौन शोषण और दुर्व्यवहार प्रमुख चिंताएँ हैं।
- वर्ष 2020 में संयुक्त राज्य अमेरिका के ‘नेशनल सेंटर फॉर मिसिंग एंड एक्सप्लॉइटेड चिल्ड्रन’ को 65 मिलियन बाल यौन शोषण मामलों की सूचना दी गई थी, जबकि कई अन्य का पता नहीं चला था।
- न केवल ऑफलाइन बल्कि ऑनलाइन बाल यौन शोषण और दुर्व्यवहार प्रमुख चिंताएँ हैं।
- एक डिजिटल वातावरण का निर्माण:
- टूलकिट का तर्क है कि ऑनलाइन सुरक्षा की गारंटी केवल जोखिम और नुकसान के संबंध में नहीं है, इसका मतलब है कि सक्रिय रूप से एक ऐसा डिजिटल वातावरण तैयार करना जो हर बच्चे के लिये सुरक्षित हो।
- 18 वर्ष से कम आयु के तीन में से एक व्यक्ति के ऑनलाइन होने से बच्चों के जीवन में डिजिटल तकनीक की केंद्रीयता का अर्थ है कि इसे उनकी गोपनीयता, सुरक्षा और अधिकारों के साथ डिज़ाइन किया जाना चाहिये।
संबंधित कदम:
- ऑनलाइन शिकायत प्रबंधन प्रणाली:
- राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने एक ऑनलाइन शिकायत प्रबंधन प्रणाली स्थापित की है जो पीड़ितों (या उनके प्रतिनिधियों) के लिये बाल शोषण और यौन उत्पीड़न के मामलों की रिपोर्ट करने हेतु एक गोपनीय मंच को सक्षम बनाता है।
- गृह मंत्रालय ने 'महिलाओं और बच्चों के विरुद्ध साइबर अपराध रोकथाम' योजना को मंजूरी दी है, जिसमें बाल अश्लीलता/बाल यौन शोषण सामग्री, बलात्कार/सामूहिक बलात्कार छवियों या यौन सामग्री के मामलों के लिये एक ऑनलाइन साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल शामिल है।
- बाल शोषण रोकथाम और जाँच इकाई:
- यह अन्य प्रासंगिक कानूनों के अलावा भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पोक्सो) अधिनियम और सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों के तहत आने वाले अपराधों की जाँच करता है।
आगे की राह
- राष्ट्रीय संदर्भों के बीच मतभेद हो सकते हैं, लेकिन यह आवश्यक है कि कानूनों और विनियमों को यथासंभव अधिकतम सीमा तक संरेखित किया जाए तथा सीमा पार सहयोग व समझ को बढ़ाया जाए।
- अंत में यह राष्ट्र या राष्ट्रों के भीतर विद्यमान संगठनों पर निर्भर करता है कि वे बच्चों के लिये ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म पर एक सुरक्षित वातावरण बनाने के लिये टूलकिट का उपयोग करना चाहते हैं, और क्या वे विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों का पालन करने का इरादा रखते हैं; जिनकी उन्होंने पुष्टि की है।
- ऑनलाइन बाल सुरक्षा की व्यापक और महत्त्वपूर्ण प्रकृति बच्चों की सुरक्षा करने वाले नियमों एवं तंत्रों की मांग करती है।
- इस मुद्दे की पर्याप्त समझ सुनिश्चित करने के लिये बच्चे के सर्वोत्तम हितों को बढ़ावा देना और साइबर अपराधों के पीड़ितों के लिये उचित प्रतिपूरक सेवाएँ विकसित करना अनिवार्य है।
- चेतावनी और सलाह, कानून प्रवर्तन एजेंसियों के प्रशिक्षण, साइबर फोरेंसिक सुविधाओं में सुधार आदि के माध्यम से जागरूकता फैलाने की आवश्यकता है।
विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs):प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2016)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (A) केवल 1 उत्तर: (B)
अतः विकल्प (B) सही है। |