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प्रारंभिक परीक्षा

लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान

  • 27 Jan 2022
  • 5 min read

हाल ही में ‘भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन’ (इसरो) के अध्यक्ष ने अप्रैल 2022 में ‘SSLV-D1 माइक्रो सैट’ के प्रक्षेपण का उल्लेख किया है।

  • SSLV (स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल) का उद्देश्य छोटे उपग्रहों को पृथ्वी की निम्न कक्षा में लॉन्च करना है। हाल के वर्षों में विकासशील देशों, विश्वविद्यालयों के छोटे उपग्रहों और निजी निगमों की आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु ‘स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल’ काफी महत्त्वपूर्ण हो गया है।

प्रमुख बिंदु

  • स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल:
    • यह अपेक्षाकृत छोटे वाहन होते हैं, जिनका वजन मात्र 110 टन होता है। इन्हें एकीकृत होने में केवल 72 घंटे लगते हैं, जबकि एक प्रक्षेपण यान के लिये यह अवधि लगभग 70 दिन के आसपास होती है।
    • यह 500 किलोग्राम वजन के उपग्रहों को पृथ्वी की निचली कक्षा में ले जा सकता है, जबकि ‘ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान’ (PSLV) 1000 किलोग्राम वज़न के उपग्रहों को प्रक्षेपित कर सकता है।
      • SSLV एक तीन चरणों वाला ठोस वाहन है और इसमें 500 किलोग्राम के उपग्रह को ‘लो अर्थ ऑर्बिट’ (LEO) और ‘सन सिंक्रोनस ऑर्बिट’ (SSO) में लॉन्च करने की क्षमता है।
    • यह एक समय में कई माइक्रोसेटेलाइट लॉन्च करने हेतु पूरी तरह से अनुकूल है और कई प्रकार की ‘ऑर्बिटल ड्रॉप-ऑफ’ का समर्थन करता है।
    • SSLV की प्रमुख विशेषताओं में कम लागत, लो टर्न-अराउंड टाइम, कई उपग्रहों को समायोजित करने में लचीलापन, मांग व्यवहार्यता और न्यूनतम लॉन्च इंफ्रास्ट्रक्चर (launch on demand feasibility) इत्यादि शामिल हैं।
    • सरकार ने तीन उड़ानों (एसएसएलवी-डी1, एसएसएलवी-डी2 और एसएसएलवी-डी3) के माध्यम से वाहन प्रणालियों के विकास, योग्यता और उड़ान प्रदर्शन सहित विकास परियोजना के लिये कुल 169 करोड़ रुपए की मंज़ूरी दी है।
    • इसरो के अध्यक्ष डॉ. सोमनाथ को वर्ष 2018 से तिरुवनंतपुरम में विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र के निदेशक के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान एसएसएलवी (SSLV) को डिज़ाइन और विकसित करने का श्रेय दिया जाता है।
      • SSLV की पहली उड़ान जुलाई 2019 में शुरू होने वाली थी, लेकिन कोविड-19 और अन्य मुद्दों के कारण इसकी उड़न में देरी हो रही है।
  • SSLV का महत्त्व:
    • SSLV के विकास और निर्माण से अंतरिक्ष क्षेत्र एवं निजी भारतीय उद्योगों के बीच अधिक तालमेल बनाने की उम्मीद है जो अंतरिक्ष मंत्रालय का एक प्रमुख उद्देश्य है।
      • भारतीय उद्योग के पास पीएसएलवी (PSLV) के उत्पादन हेतु एक सहायता संघ है और एक बार परीक्षण के बाद एसएसएलवी (SSLV) का उत्पादन करने के लिये इन्हें एक साथ आना चाहिये।
    • नव-निर्मित इसरो की वाणिज्यिक शाखा न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) के जनादेशों में से एक है- प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के माध्यम से भारत में निजी क्षेत्र के साथ साझेदारी में SSLV और अधिक शक्तिशाली PSLV का बड़े पैमाने पर उत्पादन और निर्माण करना।
      • इसका उद्देश्य भारतीय उद्योग भागीदारों के माध्यम से वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिये इसरो द्वारा वर्षों से किये गए अनुसंधान और विकास कार्यों का उपयोग करना है।
    • अब तक छोटे उपग्रहों को ‘ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान’ (PSLV) जो कि 50 से अधिक सफल प्रक्षेपणों की उडान के साथ इसरो का वर्क-हॉर्स (ISRO’s Work-Horse) है, के माध्यम से बड़े उपग्रहों के साथ ही लॉन्च किया जाता था, जिसके कारण छोटे उपग्रहों का प्रक्षेपण, बड़े उपग्रहों के प्रक्षेपण पर निर्भर रहता था।

SSLV

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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