नाइट्रोजन उपलब्धता में असंतुलन
प्रिलिम्स के लिये:नाइट्रोजन, प्रकाश प्रदूषण, आक्रामक प्रजातियांँ, वनाग्नि, कार्बन डाइऑक्साइड। मेन्स के लिये:नाइट्रोजन चक्र का महत्त्व। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही प्रकाशित एक नई रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक स्तर पर नाइट्रोजन की उपलब्धता में असंतुलन देखा जा रहा है। कुछ स्थानों पर इस तत्त्व की अधिकता है तो वही कुछ जगहों पर इसकी कमी बनी हुई है।
प्रमुख बिंदु
कमी के कारण:
- कार्बन डाइऑक्साइड के बढ़ते स्तर और अन्य वैश्विक परिवर्तनों ने पौधों तथा रोगाणुओं में नाइट्रोजन की मांग में वृद्धि की है।
- उच्च कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) सांद्रता के संपर्क में आने पर पौधे तेज़ी से बढ़ते हैं।
- पौधों में CO2 का उच्च स्तर उनमे नाइट्रोजन की मात्रा को कम कर देता है इस प्रकार पौधों में नाइट्रोजन की मांग बढ़ जाती है।
- नाइट्रोजन के स्तर में गिरावट या कमी लाने वाले अन्य कारकों में वनाग्नि सहित ग्लोबल वार्मिंग शामिल हैं।
- विश्व के कई क्षेत्रों जहाँ लोग मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा को बढ़ाने पर ध्यान नहीं देते हैं वहाँ से प्राप्त दीर्घकालिक रिकॉर्ड प्रदर्शित करते हैं कि उन स्थानों पर नाइट्रोजन की उपलब्धता घट रही है जो पौधों और जानवरों के विकास हेतु अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है।
- जीवाश्म ईंधन के दहन, नाइट्रोजन आधारित उर्वरकों के उपयोग और अन्य गतिविधियों से पारिस्थितिक तंत्र में जैविक रूप से उपलब्ध नाइट्रोजन की मात्रा में नाटकीय रूप से वृद्धि हो सकती है।
नाइट्रोजन असंतुलन के परिणाम:
- नाइट्रोजन की कमी:
- नाइट्रोजन के घटते स्तर या कमी को कीट के विनाश/सर्वनाश (Insect Apocalypse) से जोड़कर देखा जा सकता है।
- जलवायु परिवर्तन, कीटनाशकों के उपयोग, शाकनाशी, प्रकाश प्रदूषण, आक्रामक प्रजातियांँ, कृषि और भूमि उपयोग में परिवर्तन के कारण हर साल पृथ्वी से लगभग 1-2% कीट समाप्त हो रहे हैं। इस परिघटना को "कीट सर्वनाश" (Insect Apocalypse)कहा जा रहा है।
- यह टिड्डियों की कुछ प्रजातियों की संख्या बढ़ा सकता है।
- इसके अलावा कम नाइट्रोजन की उपलब्धता वातावरण से CO2 को अवशोषित करने की पौधों की क्षमता को सीमित कर सकती है।
- नाइट्रोजन के घटते स्तर या कमी को कीट के विनाश/सर्वनाश (Insect Apocalypse) से जोड़कर देखा जा सकता है।
- नाइट्रोजन की उच्च मात्रा:
- जब नदियों, अंतर्देशीय झीलों और पानी के तटीय निकायों में अत्यधिक नाइट्रोजन की मात्रा इकट्ठा हो जाती है, तो यह कभी-कभी यूट्रोफिकेशन (Eutrophication) का परिणाम हो सकती है जिससे हानिकारक एल्गी प्रस्फुटन (Algal Blooms) की घटना हो सकती है तथा डेड ज़ोन और मछलियों की मृत्य तक हो जाती है।
- यूट्रोफिकेशन (Eutrophication): जब एक जल निकाय खनिजों और पोषक तत्त्वों से अत्यधिक समृद्ध हो जाती है जो शैवाल या शैवाल के अत्यधिक विकास को प्रेरित करती है। इस स्थिति में उपलब्ध जलीय ऑक्सीजन कम हो जाती जिससे अन्य जीवों की मृत्यु हो जाती है।
- जब नदियों, अंतर्देशीय झीलों और पानी के तटीय निकायों में अत्यधिक नाइट्रोजन की मात्रा इकट्ठा हो जाती है, तो यह कभी-कभी यूट्रोफिकेशन (Eutrophication) का परिणाम हो सकती है जिससे हानिकारक एल्गी प्रस्फुटन (Algal Blooms) की घटना हो सकती है तथा डेड ज़ोन और मछलियों की मृत्य तक हो जाती है।
- भूजल में नाइट्रोजन का उच्च स्तर मनुष्यों में आंँत के कैंसर और गर्भपात जैसी समस्याओं से जुड़ा होता है और शिशुओं के लिये घातक हो सकता है।
नाइट्रोजन की मुख्य विशेषताएंँ:
- नाइट्रोजन सभी जीवित जीवों के अस्तित्व के लिये महत्त्वपूर्ण प्राथमिक पोषक तत्त्वों में से एक है।
- वायुमंडल में नाइट्रोजन गैस की 78% मात्रा पाई जाती है और नाइट्रोजन जीवन के आवश्यक कई अणुओं का हिस्सा है जिनमें प्रोटीन, न्यूक्लिक एसिड (डीएनए और आरएनए) और कुछ विटामिन शामिल हैं।
- नाइट्रोजन अन्य जैविक रूप से महत्त्वपूर्ण यौगिकों जैसे एल्कलॉइड और यूरिया में भी पाया जाता है।
- इस प्रकार नाइट्रोजन सभी जीवों के लिये एक आवश्यक पोषक तत्व है तथा जीवन के लिये ये सभी जीव सीधे वायुमंडलीय नाइट्रोजन का उपयोग करते है।
- यद्यपि नाइट्रोजन गैस (N2) के रूप में वातावरण में नाइट्रोजन प्रचुर मात्रा में है, किंतु जीवों द्वारा इसका उपभोग काफी हद तक दुर्गम है, जिससे अक्सर कई पारिस्थितिक तंत्रों में प्राथमिक उत्पादकता सीमित होती है।
- केवल जब नाइट्रोजन को नाइट्रोजन गैस से अमोनिया (NH3) में परिवर्तित किया जाता है, तो यह पौधों जैसे प्राथमिक उत्पादकों के लिये उपयोग में लाई जा सकती है।
- नाइट्रोजन गैस के प्रमुख परिवर्तन निम्नलिखित प्रक्रिया के माध्यम से होते हैं:
- नाइट्रोजन स्थिरीकरण (अमोनिया हेतु नाइट्रोजन गैस),
- नाइट्रीकरण (अमोनिया से नाइट्राइट और नाइट्रेट),
- डीनाइट्रीकरण (नाइट्रेट से नाइट्रोजन गैसों में)
- नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने वाले सूक्ष्मजीवों द्वारा नाइट्रोजन गैस (N2) को जैविक रूप से उपलब्ध नाइट्रोजन अर्थात् अमोनिया में परिवर्तित करने की प्रक्रिया नाइट्रोजन स्थिरीकरण कहलाती है।
- कुछ नाइट्रोजन-फिक्सिंग जीव (Nitrogen-fixing organisms) मुक्त-जीवित होते हैं, जबकि अन्य सहजीवी नाइट्रोजन-फिक्सर (Nitrogen-fixers) होते हैं, जिन्हें प्रक्रिया को पूरा करने के लिये मेजबान के साथ घनिष्ठ सहयोग की आवश्यकता होती है।
- इनमें से कुछ बैक्टीरिया एरोबिक, जबकि अन्य अवायवीय होते हैं; जिसमे से कुछ प्रकाशपोषी होते हैं तथा कुछ अन्य रसायनपोषी होते हैं (प्रकाश के बजाय रसायनों को उनके ऊर्जा स्रोत के रूप में उपयोग करना)।
- इन सभी में एक समान एंज़ाइम कॉम्प्लेक्स होता है जिसे नाइट्रोजनेज़ (Nitrogenase) कहा जाता है, जो N2 की कमी को NH3 (अमोनिया) में उत्प्रेरित करता है।
विगत वर्षों के प्रश्न (PYQ)प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा/से, मृदा में नाइट्रोजन को बढ़ाता है/बढ़ाते हैं?
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (c)
अतः विकल्प (c) सही उत्तर है। |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
विमान वस्तुओं में हितों के संरक्षण और प्रवर्तन विधेयक 2022 का मसौदा
प्रिलिम्स के लिये:केप टाउन कन्वेंशन एंड प्रोटोकॉल, अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (ICAO), लीग ऑफ नेशंस, निजी कानून के एकीकरण हेतु अंतर्राष्ट्रीय संस्थान (UNIDROIT) मेन्स के लिये:विमान वस्तुओं में हितों के संरक्षण और प्रवर्तन विधेयक, 2022 मसौदा। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने विमान वस्तुओं में हितों के संरक्षण और प्रवर्तन विधेयक (Draft Protection and Enforcement of Interests in Aircraft Objects Bill), 2022 का मसौदा प्रस्तुत किया।
- प्रस्तावित कानून अंतर्राष्ट्रीय विमान पट्टे पर देने वाली कंपनियों को भारतीय एयरलाइन के साथ वित्तीय विवाद के मामले में भारत से बाहर विमानों को स्थानांतरित करने में मदद करेगा, इसके अंतर्गत एक ही समय में कई क्षेत्रीय एयरलाइनों को किराए के लिये विमान लेने से इनकार कर दिया गया है।
- प्रस्तावित कानून भारत के केप टाउन कन्वेंशन में शामिल होने के 14 वर्ष बाद आया है।
मसौदे के प्रमुख बिंदु:
- परिचय: यह विधेयक मोबाइल उपकरण में अंतर्राष्ट्रीय हितों पर कन्वेंशन और विमान उपकरण के लिये विशिष्ट मामलों पर प्रोटोकॉल के प्रावधानों को लागू करता है जिसे वर्ष 2001 में केप टाउन कन्वेंशन में अपनाया गया था।
- भारत ने वर्ष 2008 में दो उपकरणों को स्वीकार किया।
- ये लेनदार के लिये प्राथमिक उपचार और विवादों के लिये कानूनी व्यवस्था बनाने का प्रावधान करते हैं।
- आवश्यकता: यह कानून आवश्यक है क्योंकि कंपनी अधिनियम, 2013 और दिवाला और दिवालियापन संहिता, 2016 जैसे कई भारतीय कानून केप टाउन कन्वेंशन और प्रोटोकॉल के विरोधाभासी हैं।
- जेट एयरवेज के वर्ष 2019 में बंद होने के बाद, अपने विमान के किराए का भुगतान करने में विफल रहा, तो अंतर्राष्ट्रीय पट्टे पर देने वाली कंपनियों को विमानों को वापस लेने और निर्यात करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
- इसके अलावा भारतीय संस्थाओं को नुकसान उठाना पड़ा क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थान कार्यान्वयन कानून की मांग करते हैं।
- उद्देश्य: प्रस्तावित कानून एक विमान वस्तु को वापस लेने या उसकी बिक्री या पट्टे या इसके उपयोग से आय के संग्रह के साथ-साथ डी-पंजीकरण तथा विमानों के निर्यात जैसे उपाय प्रदान करता है।
- यह एक दावे के अंतिम निर्णय के लंबित होने के साथ-साथ अपने भारतीय खरीदार के खिलाफ दिवालिया कार्यवाही के दौरान लेनदार के दावे की सुरक्षा के उपायों का भी सुझाव देता है।
केप टाउन कन्वेंशन तथा प्रोटोकॉल:
- पृष्ठभूमि: मोबाइल संबंधी उपकरण में अंतर्राष्ट्रीय हितों पर कन्वेंशन 16 नवंबर, 2001 को केप टाउन में संपन्न हुआ था, जो कि विमान उपकरण संबंधी विशिष्ट मामलों पर प्रोटोकॉल था।
- कन्वेंशन और प्रोटोकॉल, अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (ICAO) और निजी कानून के एकीकरण के लिये अंतर्राष्ट्रीय संस्थान (UNIDROIT) के संयुक्त तत्वावधान में अपनाया गया था।
- ICAO एक संयुक्त राष्ट्र (यूएन) की विशेष एजेंसी है, जिसे वर्ष 1944 में स्थापित किया गया था, जिसने शांतिपूर्ण वैश्विक हवाई नेविगेशन के लिये मानकों और प्रक्रियाओं की नींव रखी। भारत इसका एक सदस्य देश है।
- उद्देश्य: उच्च मूल्य वाली विमानन संपत्तियों अर्थात् एयरफ्रेम, विमान इंजन और हेलीकॉप्टरों हेतु तथा अवरोध्य अधिकार (Opposable Rights) प्राप्त करने की समस्या को हल करने हेतु कोई निश्चित स्थान नहीं है।
- यह समस्या मुख्य रूप से इस कारण उत्पन्न होती है कि कानूनी प्रणालियों में लीज़ समझौतों के लिये अलग-अलग प्रावधान हैं, जो उधार देने वाले संस्थानों के लिये उनके अधिकारों की प्रभावकारिता के बारे में अनिश्चितता उत्पन्न करता है।
- यह ऐसी विमानन परिसंपत्तियों हेतु वित्तपोषण के प्रावधान को बाधित करता है तथा उधार लेने की राशि को बढ़ाता है।
- कन्वेंशन और प्रोटोकॉल के लाभ:
- पूर्वानुमेयता और प्रवर्तनीयता: कन्वेंशन और प्रोटोकॉल प्रतिभूतियों के विरोध तथा विमानन परिसंपत्तियों के विक्रेताओं के होतों के संबंध में पूर्वानुमेयता (Predictability) में सुधार करते हैं।
- लागत बचत: परिणामी बेहतर कानूनी निश्चितता के माध्यम से कन्वेंशन और प्रोटोकॉल का उद्देश्य लेनदारों के लिये जोखिम और देनदारों को उधार लेने की लागत को कम करना है।
- यह अत्याधुनिक और इस प्रकार अधिक ईंधन कुशल विमानों के अधिग्रहण के लिये ऋण देने को बढ़ावा देता है।
- कन्वेंशन और प्रोटोकॉल को अपनाने वाले राज्यों की एयरलाइंस निर्यात क्रेडिट प्रीमियम पर 10% छूट प्राप्त कर सकती हैं।
निजी कानून के एकीकरण हेतु अंतर्राष्ट्रीय संस्थान (UNIDROIT)
- निजी कानून के एकीकरण हेतु अंतर्राष्ट्रीय संस्थान (UNIDROIT) एक स्वतंत्र अंतर-सरकारी संगठन है जिसका मुख्यालय रोम के विला एल्डोब्रांडिनी में स्थित है।
- इसका उद्देश्य राज्यों और राज्यों के समूहों के बीच निजी और विशेष रूप से वाणिज्यिक कानून के आधुनिकीकरण, सामंजस्य तथा समन्वय हेतु ज़रूरतों एवं विधियों का अध्ययन करना तथा उन उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये समान कानून उपकरणों, सिद्धांतों और नियमों को तैयार करना है।
- इसकी स्थापना वर्ष 1926 में राष्ट्र संघ के अंग के रूप में हुई थी।
- एक बहुपक्षीय समझौते, यूनिड्रोइट कानून (UNIDROIT Statute) के माध्यम से लीग के विघटन के बाद वर्ष 1940 में इसे फिर से स्थापित किया गया था।
- इसके 63 सदस्य देश शामिल हैं, जिसमें भारत की भी भागीदार है।
स्रोत: द हिंदू
भारत में गरीबी की स्थिति पर शोध पत्र: विश्व बैंक
प्रिलिम्स के लिये:विश्व बैंक, आईएमएफ, निर्धनता, एनएसएसओ, निर्धनता से संबंधी पहलें। मेन्स के लिये:महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, भारत में गरीबी और संबंधित मुद्दे। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विश्व बैंक द्वारा 'पावर्टी हैज़ डिक्लाइन ओवर द लास्ट डिकेड बट नॉट अस मच अस यूथ थॉट' (Poverty has Declined over the Last Decade But Not As Much As Previously Thought) शीर्षक से शोध पत्र प्रकाशित किया गया है।
- यह पत्र अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) द्वारा प्रकाशित एक वर्किंग पेपर से समानता रखता है जिसमे जिसमें कहा गया था कि भारत ने राज्य द्वारा वित्त पोषित खाद्य हैंड आउट्स (सार्वजनिक वितरण प्रणाली) के माध्यम से अत्यधिक गरीबी को लगभग समाप्त कर दिया गया है और जिससे 40 वर्षों में उपभोग असमानता अपने निम्नतम स्तर पर पहुँच चुकी है।
रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएंँ:
- अत्यधिक गरीबी में गिरावट: भारत में अत्यधिक गरीबी की स्थिति में वर्ष 2011 की तुलना में वर्ष 2019 में 12.3% अंक की कम आयी है, क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में तुलनात्मक रूप से तेज़ से गिरावट के साथ गरीबी वर्ष 2019 में वर्ष 2011 के स्तर 22.5% से घटकर10.2% हो गई है।
- वर्ष 2011 के बाद से खपत असमानता में मामूली कमी हुई है लेकिन अप्रकाशित राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण-2017 की तुलना में यह अंतर बहुत कम है।
- वर्ष 2015-2019 के दौरान गरीबी में कमी की सीमा राष्ट्रीय लेखा आंँकड़ों में रिपोर्ट किये गए निजी अंतिम उपभोग व्यय में वृद्धि के आधार पर पहले के अनुमानों की तुलना में काफी कम होने का अनुमान है।
- विश्व बैंक ने द्वारा "अत्यधिक गरीबी" (Extreme Poverty) को प्रति व्यक्ति प्रति दिन 1.90 अमेरिकी डाॅलर से कम पर रहने के रूप में परिभाषित किया है।
- ग्रामीण बनाम शहरी गरीबी: शहरी भारत की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी में कमी अधिक थी क्योंकि ग्रामीण गरीबी वर्ष 2011 में 26.3% से घटकर वर्ष 2019 में 11.6% हो गई है, जबकि शहरी क्षेत्रों में इसी अवधि में गिरावट 14.2% से 6.3% तक ही हुई है।
- वर्ष 2011-2019 के दौरान ग्रामीण और शहरी गरीबी में क्रमशः 14.7 और 7.9% की गिरावट आई है।
- वर्ष 2016 में भारत में विमुद्रीकरण के साथ शहरी गरीबी में 2% की बढ़ोत्तरी हुई तथा वर्ष 2019 में ग्रामीण गरीबी में 10% की वृद्धि दर्ज की गई।
- छोटे किसान: छोटे किसानों द्वारा उच्च आय वृद्धि का अनुभव किया गया है। सबसे छोटी जोत वाले किसानों के लिये वास्तविक आय में दो सर्वेक्षण के दौरों (2013 और 2019) के मध्य वार्षिक रूप से 10% की वृद्धि दर्ज की है, जबकि बड़ी जोत वाले किसानों के लिये 2% की वृद्धि हुई है।
- ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे भूमिधारकों की आय में वृद्धि ग्रामीण क्षेत्रों में आय असमानता में कमी को दर्शाती है।
- सबसे छोटे भूमि धारकों में गरीब आबादी का एक बड़ा हिस्सा होता है। इस आय में मज़दूरी, फसल उत्पादन से शुद्ध प्राप्ति, पशु खेती से शुद्ध प्राप्ति तथा गैर-कृषि व्यवसाय से शुद्ध प्राप्ति शामिल है। भूमि को पट्टे पर देने से होने वाली आय पर छूट दी गई है।
रिपोर्ट का महत्त्व:
- विश्व बैंक का यह शोधपत्र महत्त्वपूर्ण है क्योंकि भारत के पास हाल की अवधि का कोई आधिकारिक अनुमान नहीं है। अंतिम व्यय सर्वेक्षण वर्ष 2011 में राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (NSSO) द्वारा जारी किया गया था, जब देश ने गरीबी और असमानता के आधिकारिक अनुमान भी जारी किये थे।
- सेंटर फॉर मॉनिटरिंग द इंडियन इकोनॉमी (CMIE) द्वारा स्थापित एक नए घरेलू पैनल सर्वेक्षण में उपभोक्ता पिरामिड घरेलू सर्वेक्षण का उपयोग करके वर्ष 2011 के बाद से गरीबी और असमानता कैसे विकसित होने पर प्रकाश डाला गया है।
- भारत के प्रमुख गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम:
- एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम (IRDP)
- प्रधानमंत्री आवास योजना
- राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना
- अन्नपूर्णा योजना
- 'महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (मनरेगा), 2005
- दीनदयाल अंत्योदय योजना - राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (DAY-NRLM)
- राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन
- प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना
- प्रधानमंत्री जन-धन योजना;
विश्व बैंक:
- परिचय:
- इसे वर्ष 1944 में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के साथ पुनर्निर्माण और विकास के लिये अंतर्राष्ट्रीय बैंक (IBRD) के रूप में स्थापित किया गया था। बाद में IBRD को ही विश्व बैंक के रूप में जाना गया।
- विश्व बैंक समूह विकासशील देशों में गरीबी को कम करने और साझा समृद्धि का निर्माण करने वाले स्थायी समाधानों के लिये काम कर रहे पाँच संस्थानों की एक अनूठी वैश्विक साझेदारी है।
- सदस्य:
- इसके 189 सदस्य देश हैं।
- भारत भी एक सदस्य देश है।.
- प्रमुख रिपोर्ट
- ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस। (हाल ही में प्रकाशित करना बंद कर दिया)।
- ह्यूमन कैपिटल इंडेक्स।
- वर्ल्ड डेवलपमेंट रिपोर्ट।
- पाँच विकास संस्थान:
- अंतर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण और विकास बैंक (IBRD)
- अंतर्राष्ट्रीय विकास संघ (IDA)
- अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम (IFC)
- बहुपक्षीय निवेश गारंटी एजेंसी (MIGA)
- निवेश विवादों के निपटारे के लिये अंतर्राष्ट्रीय केंद्र (ICSID)
- भारत इसका सदस्य नहीं है।
स्रोत: हिंदुस्तान टाइम
येरुशलम की अल-अक्सा मस्जिद
प्रिलिम्स के लिये:येरुशलम की अल-अक्सा मस्जिद, संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को), विश्व धरोहर स्थल, 1948 का अरब इज़रायल युद्ध, 1967 में छह-दिवसीय युद्ध, अब्राहम समझौता मेन्स के लिये:इज़रायल-फिलिस्तीनी संघर्ष, 1948 का अरब इज़रायल युद्ध, 1967 में छह-दिवसीय युद्ध, अब्राहम समझौता |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में येरुशलम की अल-अक्सा मस्जिद में फिलिस्तीनी और इज़रायली सुरक्षा बलों के बीच हिंसा से फिर तनाव बढ़ गया।
- येरुशलम के पुराने शहर में स्थित यह स्थल दशकों से फिलिस्तीनियों कट्टरपंथी समूहों और इज़रायली सुरक्षा बलों के बीच हिंसा का एक फ्लैशपॉइंट रहा है और ऐतिहासिक दावों के लिये प्रतिस्पर्धा के केंद्र में रहा है।
- ये आवर्ती संघर्ष चल रहे इज़रायल-फिलिस्तीनी संघर्ष का हिस्सा हैं।
अल-अक्सा मस्जिद और संबद्ध संघर्ष क्या है?
- अल-अक्सा मस्जिद येरुशलम के मान्यता प्राप्त स्मारकों में से एक है।
- यह स्थल येरुशलम के पुराने शहर का हिस्सा है, जो ईसाइयों, यहूदियों और मुसलमानों का पवित्र स्थल है।
- संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) ने पुराने शहर येरुशलम और इसकी दीवारों को विश्व धरोहर स्थल के रूप में वर्गीकृत किया है।
- मस्जिद का परिसर इज़रायल और फिलिस्तीन (इस्लाम और यहूदी धर्म) के बीच संघर्ष का कारण है।
- अल-अक्सा मस्जिद इस्लाम के सबसे प्रतिष्ठित स्थानों में से एक है और टेंपल माउंट यहूदी धर्म का सबसे पवित्र स्थल है।
- टेंपल माउंट येरुशलम में पुराने शहर के अंदर एक चारदीवारी वाला परिसर है और यहाँ दो संरचनाएँ हैं:
- उत्तर में डोम ऑफ द रॉक और दक्षिण में अल-अक्सा मस्जिद है।
- टेंपल माउंट के दक्षिण-पश्चिम में, पश्चिमी दीवार, दूसरे मंदिर का अवशेष और यहूदी धर्म का सबसे पवित्र स्थल है।
- इस्लाम में डोम ऑफ द रॉक एक सातवीं शताब्दी की संरचना है, जो एक महत्त्वपूर्ण इस्लामी स्थापत्य है, माना जाता है कि जहाँ पैगंबर मुहम्मद स्वर्ग में चढ़े थे।
- इस क्षेत्र में आधुनिक सीमाओं को तैयार करने से पहले, मुस्लिम पवित्र शहरों मक्का और मदीना के तीर्थयात्री इस मस्जिद में प्रार्थना करने के लिये येरूसलम में रुकते थे।
- यहूदी धर्म में, यह वह स्थान माना जाता है जहाँ भगवान ने आदम को बनाने के लिये धूल इकट्ठी की थी।
- बाइबिल के अनुसार, 1000 ईसा पूर्व में राजा सुलेमान ने इस पहाड़ पर यहूदियों का पहला मंदिर बनवाया था, जिसे बेबीलोन के राजा नबूकदनेस्सर के आदेश पर बेबीलोन के सैनिकों ने लगभग 400 वर्षों बाद तोड़ दिया था।
- पहली शताब्दी ईसा पूर्व में, यहूदी अपने निर्वासन से लौटे और उन्होंने दूसरा मंदिर बनाया।
येरुशलम पर संघर्ष की भू-राजनीति क्या हैं?
- येरुशलम इज़रायल-फिलिस्तीनी संघर्ष के केंद्र में रहा है।
- वर्ष 1947 की मूल संयुक्त राष्ट्र (यूएन) विभाजन योजना के अनुसार, येरुशलम को एक अंतर्राष्ट्रीय शहर के रूप में प्रस्तावित किया गया था।
- हालाँकि वर्ष 1948 के पहले अरब इज़रायल युद्ध में, इज़रायलियों ने शहर के पश्चिमी आधे हिस्से पर कब्जा कर लिया और जॉर्डन ने पुराने शहर सहित पूर्वी भाग पर कब्जा कर लिया, जिसमें हराम अल-शरीफ भी शामिल है।
- 1967 में छह-दिवसीय युद्ध के बाद, इज़रायल और अरब राज्यों के गठबंधन जिसमें मुख्य रूप से जॉर्डन, सीरिया और मिस्र शामिल थे, के बीच एक सशस्त्र संघर्ष के बाद, अल-अक्सा मस्जिद का नियंत्रण रखने वाले जॉर्डन के वक्फ मंत्रालय ने, देखरेख करना बंद कर दिया।
- इज़रायल ने 1967 के छह-दिवसीय युद्ध में जॉर्डन से पूर्वी येरुशलम पर कब्जा कर अपना हिस्सा घोषित कर दिया।
- अपने विलय के बाद से इज़रायल ने पूर्वी येरुशलम में बस्तियों का विस्तार किया है।
- इज़रायल पूरे शहर को अपनी "एकीकृत, शाश्वत राजधानी" के रूप में देखता है, जबकि राजनीतिक स्पेक्ट्रम में फिलिस्तीनी नेतृत्व ने यह सुनिश्चित किया है कि वे भविष्य के फिलिस्तीनी राज्य के लिये किसी भी समझौते के फार्मूले को स्वीकार नहीं करेंगे जब तक कि पूर्वी येरुशलम इसकी राजधानी न हो।
आगे की राह
- बड़े पैमाने पर दुनिया में शांतिपूर्ण समाधान के लिये एक साथ आने की ज़रूरत है लेकिन इज़रायल सरकार और अन्य शामिल दलों की अनिच्छा ने इस मुद्दे को और अधिक जटिल कर दिया है।
- इस प्रकार, एक संतुलित दृष्टिकोण अरब देशों और इज़रायल के बीच अनुकूल संबंधों को बनाए रखने में मदद करेगा।
- इज़रायल और संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, सूडान और मोरक्को के बीच हालिया सामान्यीकरण समझौते, जिन्हें अब्राहम समझौते के रूप में जाना जाता है, इसी दिशा में एक कदम हैं।
- सभी क्षेत्रीय शक्तियों को अब्राहम समझौते के अनुरूप दोनों देशों के बीच शांति की परिकल्पना करनी चाहिये।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
कोलंबो सुरक्षा सम्मेलन
प्रिलिम्स के लिये:कोलंबो सुरक्षा सम्मेलन, सागर विजन, क्वाड ग्रुपिंग, दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संघ (सार्क)। मेन्स के लिये:हिंद महासागर क्षेत्र, सागर: क्षेत्र, भारत और उसके पड़ोस में सभी के लिये सुरक्षा और विकास। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत की राष्ट्रीय जाँच एजेंसी द्वारा कोलंबो सुरक्षा सम्मेलन (Colombo Security Conclave- CSC) का वर्चुअल आयोजन किया गया था।
- प्रतिभागियों ने अपने-अपने देशों में आतंकवाद से संबंधित विभिन्न चुनौतियों पर चर्चा की और आतंकवाद के मामलों के अभियोजन, विदेशी लड़ाकों से निपटने की रणनीति तथा इंटरनेट और सोशल मीडिया के दुरुपयोग का मुकाबला करने में अपने अनुभव साझा किये।
कोलंबो सुरक्षा सम्मेलन (CSC):
- परिचय: CSC का गठन वर्ष 2011 में भारत, श्रीलंका और मालदीव के त्रिपक्षीय समुद्री सुरक्षा समूह के रूप में किया गया था।
- इसमें राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की पाँचवीं बैठक में चौथे सदस्य के रूप में मॉरीशस शामिल किया गया।
- बांग्लादेश और सेशेल्स ने पर्यवेक्षकों के रूप में भाग लिया तथा उन्हें समूह में शामिल होने के लिये आमंत्रित किया गया।
- परिकल्पित लक्ष्य: CSC के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की पाँचवीं बैठक ने निम्नलिखित पाँच स्तंभों में क्षेत्रीय सुरक्षा को बढ़ाने और मज़बूत करने के लिये सहयोग के प्रमुख क्षेत्रों की पहचान की गई:
- सुरक्षा और समुद्री सुरक्षा
- आतंकवाद और कट्टरवाद का मुकाबला
- अवैध व्यापार और अंतर्राष्ट्रीय संगठित अपराध का सामना करना
- साइबर सुरक्षा, महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे और प्रौद्योगिकी की सुरक्षा
- मानवीय सहायता और आपदा राहत
- महत्त्व: CSC को क्षेत्रीय सहयोग और साझा सुरक्षा उद्देश्यों को रेखांकित करने के लिये हिंद महासागर में भारत की पहुँच के रूप में देखा जा रहा है।
- चीन का मुकाबला: CSC रणनीतिक महत्त्व के क्षेत्र में चीन के प्रभाव को प्रतिबंधित करने तथा सदस्य देशों में चीन की उपस्थिति को कम करने की उम्मीद करता है।
- समुद्री सुरक्षा: भारत के पास रणनीतिक चोकपॉइंट के द्वीपों के साथ-साथ लगभग 7500 किलोमीटर की एक बड़ी तटरेखा है। समुद्री सुरक्षा देश के लिये प्राथमिक है, जिसमें CSC महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- सागर विजन के साथ तालमेल: यह समूह भारत के "‘सागर: क्षेत्रों में सभी के लिये सुरक्षा और विकास" और भारत क्वाड ग्रुपिंग का सदस्य होने के दृष्टिकोण के अनुरूप है।
- उभरते उप-क्षेत्रवाद: 6 हिंद महासागर क्षेत्र के देशों का एक सामान्य समुद्री और सुरक्षा मंच पर एक साथ आना उप-क्षेत्रवाद के विकास का संकेत देता है तथा यह व्यापक वैश्विक संदर्भ में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- संबद्ध चुनौती: भले ही छह देशों के रणनीतिक हित हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में संरेखित है परंतु चीन के प्रभाव का मुकाबला करने हेतु CSC को एक संस्था के रूप में ढालने का प्रयास दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संघ (SAARC) को पूरा करना चाहिये।
आगे की राह:
- क्षेत्रीय सहयोग की आवश्यकता: सुरक्षा मुद्दों की बढ़ती प्रासंगिकता और अनिश्चितताओं को देखते हुए IOR में सहयोग की अत्यधिक आवश्यकता है।
- CSC के सफल होने की अधिक संभावना है यदि इस क्षेत्र में बढ़ते चीनी प्रभाव से प्रभाव को सीमित करते हुए यह एक समान रणनीतिक दृष्टि बनाए रखता है।
- अपने पड़ोसी देशों के साथ विवाद के बिंदुओं से बचने के लिये, भारत को यह स्वीकार करना शुरू कर देना चाहिये कि IOR वैश्विक स्तर पर विकसित हो रहा है।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा,विगत वर्षों के प्रश्न (पीवाईक्यू)प्रश्न: हिंद महासागर नौसेना संगोष्ठी (IONS) के संबंध में निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2017)
उपर्युक्त में से कौन सा/से कथन सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b)
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