मन्नार की खाड़ी में कोरल ब्रीच
प्रिलिम्स के लिये:प्रवाल भित्ति, मन्नार की खाड़ी समुद्री राष्ट्रीय उद्यान, समुद्री शैवाल प्रजातियाँ, तमिलनाडु का प्रस्तावित समुद्री शैवाल पार्क, वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972। मेन्स के लिये:भारत में समुद्री शैवाल उत्पादन, प्रवाल से संबंधित मुद्दे। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में मन्नार की खाड़ी समुद्री राष्ट्रीय उद्यान का निर्माण करने वाले 21 निर्जन द्वीपों में से एक कुरुसादाई (तमिलनाडु) के पास मृत प्रवाल भित्तियाँ देखी गई हैं।
- इस क्षति के पीछे प्राथमिक कारण कप्पाफाइकस अल्वारेज़ी है, सीवीड प्रजाति (समुद्री शैवाल) को व्यावसायिक कृषि हेतु लगभग दो दशक पहले पेश किया गया था।
सीवीड:
- परिचय:
- सीवीड समुद्री शैवाल और पौधों की कई प्रजातियों को दिया गया नाम है जो नदियों, समुद्रों एवं महासागरों जैसे जल निकायों में उगते हैं।
- वे आकार में भिन्न होते हैं जो सूक्ष्म से लेकर बड़े जंगलों के रूप में जल के नीचे हो सकते हैं।
- सीवीड दुनिया भर में तटों पर पाया जाता है, लेकिन एशियाई देशों में यह अधिक उगता है।
- महत्त्व:
- सीवीड के कई लाभ हैं, जिसमें औषधीय प्रयोजनों हेतु पोषण का स्रोत, एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटी-माइक्रोबियल एजेंट शामिल हैं।
- यह विनिर्माण में उपयोग के माध्यम से आर्थिक विकास, अतिरिक्त पोषक तत्त्वों का अवशोषण और पारिस्थितिक तंत्र को संतुलित कर जैव संकेतक के रूप में कार्य करता है।
- यह अतिरिक्त लौह एवं भारी धातुओं को अवशोषित और अन्य समुद्री जीवों को ऑक्सीजन तथा पोषक तत्त्वों की आपूर्ति करता है।
- भारत में सीवीड उत्पादन:
- भारत ने वर्ष 2021 में लगभग 34,000 टन सीवीड की खेती की और केंद्र ने वर्ष 2025 तक सीवीड का उत्पादन बढ़ाकर 11.85 मिलियन टन करने हेतु 600 करोड़ रुपए आवंटित किये।
- वर्तमान में तमिलनाडु के रामनाथपुरम के 18 गाँवों में लगभग 750 किसान सीवीड मुख्य रूप से कप्पाफाइकस की खेती में लगे हुए हैं, साथ ही तमिलनाडु के प्रस्तावित सीवीड पार्क में भी इसकी खेती किये जाने की संभावना है।
- राष्ट्रीय अनुसंधान संस्थान और कंपनियाँ कप्पाफाइकस की खेती में वृद्धि हेतु कार्यरत हैं ताकि लाभ एवं आजीविका में सुधार हो सके, इसके अलावा भारत के कप्पा-कैरेजीनन के आयात को कम किया जा सके।
- कप्पाफाइकस अल्वारेज़ी समुद्री शैवाल प्रजातियों का प्रभाव:
- कप्पाफाइकस अल्वारेज़ी समुद्री शैवाल प्रजातियाँ तमिलनाडु में मन्नार की खाड़ी समुद्री राष्ट्रीय उद्यान के 21 द्वीपों में से छह द्वीपों में विस्तारित हैं और इसने कुरुसादाई के पास पाए जाने वाले प्रवाल भित्तियों को काफी क्षति पहुँचाई है।
- इसने हवाई में नारियल द्वीप, वेनेज़ुएला में क्यूबागुआ द्वीप, तंजानिया में ज़ांज़ीबार और पनामा तथा कोस्टा रिका में अल्मीरांटे एवं क्रिस्टोबल को भी काफी नुकसान पहुँचाया है।
- अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ ने कप्पाफाइकस अल्वारेज़ी को विश्व की 100 सबसे आक्रामक प्रजातियों में से एक के रूप में सूचीबद्ध किया है।
मन्नार की खाड़ी:
- मन्नार की खाड़ी (Gulf of Mannar) पूर्वी भारत और पश्चिमी श्रीलंका के बीच हिंद महासागर का एक प्रवेश-द्वार है।
- यह उत्तर-पूर्व में रामेश्वरम (द्वीप), एडम्स (राम) ब्रिज (शोलों की एक शृंखला) और मन्नार द्वीप से घिरी हुई है।
- इसमें कई नदियाँ मिलती हैं जिसमें तांब्रपर्णी (भारत) और अरुवी (श्रीलंका) शामिल हैं।
- यह खाड़ी मोतियों के भंडार और शंख के लिये विख्यात है।
मन्नार की खाड़ी समुद्री राष्ट्रीय उद्यान:
- समुद्री राष्ट्रीय उद्यान की स्थापना वर्ष 1982 में वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के प्रावधानों के तहत की गई थी। इस राष्ट्रीय उद्यान का कुल क्षेत्रफल लगभग 162.89 वर्ग कि.मी. है।
- उपलब्ध प्रमुख पारिस्थितिक तंत्र में प्रवाल भित्तियाँ, मैंग्रोव, मडफ्लैट्स, खाड़ियाँ, समुद्री घास, समुद्री शैवाल, ज्वारनदमुख, रेतीले समुद्र तट, खारे घास के मैदान, दलदली क्षेत्र और चट्टानी किनारे शामिल हैं।
निष्कर्ष:
प्रवाल समुद्री जीवों के लिये महत्त्वपूर्ण आवास प्रदान करते हैं, तूफानों से सुरक्षा और मत्स्यपालन तथा पर्यटन के माध्यम से आजीविका प्रदान करते हैं। इसलिये मन्नार की खाड़ी समुद्री राष्ट्रीय उद्यान और उसके पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा के लिये कप्पाफाइकस अल्वारेज़ी समुद्री शैवाल के प्रसार को रोकना आवश्यक है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न 1. निम्नलिखित स्थितियों में से किस एक में “जैवशैल प्रौद्योगिकी"(बायोरॉक टेक्नोलॉजी) की बातें होती हैं? (2022) (a) क्षतिग्रस्त प्रवाल भित्तियों की बहाली उत्तर: (a) प्रश्न 2. निम्नलिखित समूहों में से किनमें ऐसी जातियाँ होती हैं, जो अन्य जीवों के साथ सहजीवी संबंध बना सकती हैं?
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) प्रश्न 3. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) प्रश्न 4. निम्नलिखित में से किसमें प्रवाल भित्तियाँ हैं? (2014)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2 और 3 उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. उदाहरण सहित प्रवाल जीवन प्रणाली पर ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव का आकलन कीजिये। (2019) |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
भारत में महिला एवं पुरुष, वर्ष 2022
प्रिलिम्स के लिये:लिंगानुपात, लिंग विवरण, प्रजनन दर मेन्स के लिये:भारत में महिला एवं पुरुष, वर्ष 2022 रिपोर्ट |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय ने भारत में महिला एवं पुरुष, वर्ष 2022 रिपोर्ट जारी की है।
प्रमुख बिंदु
- लिंगानुपात:
- वर्ष 2017-2019 में जन्म के समय लिंगानुपात 904 से बढ़कर वर्ष 2018-2020 में तीन अंक की वृद्धि के साथ 907 हो गया।
- वर्ष 2011 के 943 की तुलना में वर्ष 2036 तक भारत में लिंगानुपात (प्रति 1,000 पुरुषों पर महिलाएँ) बढ़कर 952 होने की उम्मीद है।
- श्रम बल में भागीदारी:
- वर्ष 2017-2018 में 15 वर्ष से अधिक आयु वाले श्रम बल की भागीदारी में वृद्धि देखी गई है। हालाँकि इसमें पुरुषों की तुलना में महिलाएँ काफी पीछे हैं।
- वर्ष 2021-2022 में पुरुषों के लिये यह दर 77.2 और महिलाओं के लिये 32.8 थी तथा अनेक वर्षों से इस असमानता में कोई सुधार नहीं देखा गया है।
- कार्यस्थल पर पारिश्रमिक और अवसरों के संदर्भ में सामाजिक कारक, शैक्षिक योग्यता तथा लैंगिक असमानता इस प्रकार की समस्या के प्रमुख कारण हैं।
- जनसंख्या वृद्धि:
- जनसंख्या वृद्धि, जो वर्ष 1971 के 2.2% से लेकर वर्ष 2021 में 1.1% रही पहले से ही नीचे की ओर अग्रसर है, के वर्ष 2036 में 0.58% तक गिरने का अनुमान है।
- पूर्ण आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, 1.2 बिलियन लोगों में महिला जनसंख्या 48.5% थी और वर्ष 2036 में 1.5 बिलियन लोगो में महिला जनसंख्या हिस्सेदारी (48.8%) में मामूली सुधार अपेक्षित है।
- लिंग विन्यास के अनुसार आयु:
- भारत में आयु एवं लिंग संरचना के अनुसार 15 वर्ष से कम आयु की आबादी में गिरावट की और वर्ष 2036 तक 60 वर्ष से अधिक की आबादी में वृद्धि होने की संभावना है।
- इस प्रकार जनसंख्या पिरामिड एक परिवर्तन से गुज़रेगा क्योंकि वर्ष 2036 में पिरामिड का आधार छोटा हो जाएगा, जबकि मध्य का भाग बड़ा हो जाएगा।
- किसी देश में जनसंख्या की आयु एवं लिंग संरचना विभिन्न माध्यमों से लिंग संबंधी मुद्दों को प्रभावित कर सकती है। समाज के विभिन्न पहलुओं को प्रभावित करने वाली आयु संरचना मुख्य रूप से प्रजनन क्षमता और मृत्यु दर के रुझानों से निर्धारित होती है।
- स्वास्थ्य सूचना और सेवाओं तक पहुँच:
- संसाधनों और निर्णय लेने की शक्ति तक पहुँच का अभाव, गतिशीलता पर प्रतिबंध आदि पुरुषों तथा लड़कों की तुलना में महिलाओं व लड़कियों हेतु स्वास्थ्य संबंधी जानकारी एवं सेवाओं तक पहुँच को अधिक कठिन बनाते हैं।
- प्रजनन दर:
- वर्ष 2016 और 2020 के बीच 20-24 वर्ष तथा 25-29 वर्ष आयु वर्ग हेतु आयु-विशिष्ट प्रजनन दर क्रमशः 135.4 एवं 166.0 से घटकर 113.6 व 139.6 हो गई।
- इसकी सबसे अधिक संभावना उचित शिक्षा और रोज़गार के माध्यम से आर्थिक स्वतंत्रता प्राप्त करने का परिणाम हो सकता है।
- यह दर 35-39 आयु वर्ग हेतु वर्ष 2016 के 32.7 से बढ़कर वर्ष 2020 में 35.6 हो गया।
- विवाह हेतु औसत आयु जो कि वर्ष 2017 में 22.1 थी, वर्ष 2020 में बढ़कर 22.7 वर्ष हो गई, जो कि मामूली सुधार है।
- वर्ष 2016 और 2020 के बीच 20-24 वर्ष तथा 25-29 वर्ष आयु वर्ग हेतु आयु-विशिष्ट प्रजनन दर क्रमशः 135.4 एवं 166.0 से घटकर 113.6 व 139.6 हो गई।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. क्या कारण है कि भारत के कुछ अत्यधिक समृद्ध प्रदेशों में महिलाओं के लिये प्रतिकूल स्त्री-पुरुष अनुपात है? अपने तर्क पेश कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2014) |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
अग्रिम जमानत
प्रिलिम्स के लिये:अपराधों के प्रकार, जमानत देने की शक्ति, CrPC, सर्वोच्च न्यायालय का फैसला मेन्स के लिये:विवेकहीन गिरफ्तारी का समाज पर प्रभाव, संवैधानिक संरक्षण |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में एक विधायक को उच्च न्यायालय द्वारा पूर्व-गिरफ्तारी जमानत या अग्रिम जमानत दी गई है, जिसे राज्य लोकायुक्त ने सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी है।
जमानत और इसके प्रकार:
- परिभाषा: जमानत कानूनी हिरासत में रखे गए व्यक्ति को, जब भी आवश्यक हो न्यायालय में उपस्थित होने के वादे के साथ, सशर्त/अनंतिम रिहाई है (ऐसे मामलों जिनमें न्यायालय द्वारा फैसला सुनाया जाना बाकी है)। यह न्यायालय में सिक्यूरिटी/कोलैटरल जमा करने की आवश्यकता को दर्शाता है।
- कानूनी मामलों के अधीक्षक और रिमेंबरेंसर बनाम अमिय कुमार रॉय चौधरी (1973) मामले में कलकत्ता उच्च न्यायालय ने जमानत देने के सिद्धांत की व्याख्या की है।
- भारत में जमानत के प्रकार:
- नियमित जमानत: यह न्यायालय (देश के भीतर किसी भी न्यायालय) द्वारा दिया गया एक निर्देश है जो पहले से ही गिरफ्तार और पुलिस हिरासत में रखे गए व्यक्ति को रिहा करने हेतु उपलब्ध है। ऐसी जमानत के लिये व्यक्ति CrPC की धारा 437 तथा 439 के तहत आवेदन दाखिल कर सकता है।
- अंतरिम जमानत: न्यायालय द्वारा अस्थायी और अल्प अवधि हेतु जमानत दी जाती है, यह जमानत तब तक दी जा सकती है जब तक कि नियमित या अग्रिम जमानत हेतु आवेदन न्यायालय के समक्ष लंबित नहीं होता है।
- अग्रिम जमानत या पूर्व-गिरफ्तारी जमानत: यह एक कानूनी प्रावधान है जो आरोपी व्यक्ति को गिरफ्तार होने से पहले जमानत हेतु आवेदन करने की अनुमति देता है। भारत में पूर्व-गिरफ्तारी जमानत का प्रावधान दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 438 में किया गया है। इसे केवल सत्र न्यायालय और उच्च न्यायालय द्वारा दिया जाता है।
- अग्रिम जमानत का प्रावधान विवेकाधीन है तथा न्यायालय अपराध की प्रकृति और गंभीरता, आरोपी के पूर्ववृत्त एवं अन्य प्रासंगिक कारकों पर विचार करने के बाद जमानत दे सकती है। न्यायालय जमानत देते समय कुछ शर्तें भी लगा सकता है, जिसमें पासपोर्ट ज़ब्त करना, देश छोड़ने पर प्रतिबंध या पुलिस स्टेशन में नियमित रूप से रिपोर्ट करना आदि शामिल हैं।
अग्रिम जमानत की न्यायिक व्याख्या:
- भारत के सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने माना है कि अग्रिम जमानत देने की शक्ति केवल असाधारण मामलों में प्रयोग की जाने वाली एक असाधारण शक्ति है।
- गुरबख्श सिंह सिब्बिया बनाम पंजाब राज्य (1980) का मामला: सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय सुनाया कि धारा 438 (1) की व्याख्या संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा) के आलोक में की जानी चाहिये।
- किसी व्यक्ति के अधिकार के रूप में अग्रिम जमानत हेतु समय-सीमा नहीं होती है।
- न्यायालय मामलों के आधार पर उचित प्रतिबंध लगा सकता है।
- सलाउद्दीन अब्दुलसमद शेख बनाम महाराष्ट्र राज्य (1995) मामला: सर्वोच्च न्यायालय ने अपने पहले के निर्णय को खारिज़ कर दिया और कहा कि "अग्रिम जमानत की एक समय-सीमा होनी चाहिये।"
- एस.एस. म्हात्रे बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य (2010) मामला: सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि "अग्रिम जमानत देने वाले आदेश की अवधि को कम नहीं किया जा सकता है।"
- सुशीला अग्रवाल और अन्य बनाम राज्य (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, दिल्ली) (2020): न्यायालय ने माना कि अग्रिम जमानत एक 'सामान्य नियम' के रूप में एक निश्चित अवधि तक सीमित नहीं होगी।
भारत में अग्रिम जमानत देने की शर्तें:
- अग्रिम जमानत की मांग करने वाले व्यक्ति को यह विश्वास होना चाहिये कि उसे गैर-जमानती अपराध के लिये गिरफ्तार किया जा सकता है।
- न्यायालय मौद्रिक बंधन भी लागू कर सकता है, जिसे अग्रिम जमानत मांगने वाले व्यक्ति को न्यायालय में पेश करने में विफल होने अथवा निर्देशित शर्तों का उल्लंघन करने की स्थिति में भुगतान करना होगा।
- अग्रिम जमानत की मांग करने वाले व्यक्ति को आवश्यकता पड़ने पर जाँच अधिकारी के समक्ष पूछताछ के लिये उपलब्ध रहना होगा।
- अदालत सीमित अवधि के लिये अग्रिम जमानत दे सकती है और इस अवधि के समाप्त होने पर उक्त व्यक्ति को आत्मसमर्पण करना होगा।
- यहाँ ध्यान देना आवश्यक है कि अग्रिम जमानत देना न्यायालय के विवेक पर निर्भर है और यह पूर्ण अधिकार नहीं है। न्यायालय यह तय करने से पहले कि अग्रिम जमानत दी जाए अथवा नहीं, विभिन्न कारकों जैसे कि अपराध की प्रकृति और गंभीरता, अग्रिम जमानत मांगने वाले व्यक्ति के पूर्ववृत्त, व्यक्ति के फरार होने या सबूतों के साथ छेड़छाड़ करने की संभावना पर विचार करेगा।
अग्रिम जमानत रद्द करने के आधार:
- CrPC की धारा 437(5) और 439 अग्रिम जमानत रद्द करने से संबंधित हैं। इनका तात्पर्य यह है कि जिस न्यायालय के पास अग्रिम जमानत देने की शक्ति है, उसे तथ्यों पर उचित विचार कर जमानत को रद्द करने अथवा जमानत से संबंधित आदेश को वापस लेने का भी अधिकार है।
- उच्च न्यायालय या सत्र न्यायालय यह निर्देश दे सकता है कि कोई भी व्यक्ति जिसे उसके द्वारा जमानत पर रिहा किया गया है, गिरफ्तार किया जाए और शिकायतकर्त्ता या अभियोजन पक्ष द्वारा आवेदन दायर करने के बाद हिरासत में लाया जाए। हालाँकि न्यायालय के पास पुलिस अधिकारी द्वारा दी गई जमानत को रद्द करने की शक्ति नहीं है।
- वर्षों से अग्रिम जमानत ने एक ऐसे व्यक्ति की सुरक्षा (सीआरपीसी की धारा 438 के तहत दी गई सुरक्षा) के रूप में कार्य किया है, जिसके खिलाफ झूठे आरोप लगाए गए हों। यह ऐसे झूठे आरोपी व्यक्ति की गिरफ्तारी से पहले ही रिहाई सुनिश्चित करता है।
निष्कर्ष:
- गिरफ्तारी से पहले जमानत एक महत्त्वपूर्ण कानूनी प्रावधान है जो भारत में व्यक्तियों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करता है।
- यह प्रावधान आरोपी व्यक्ति को गैर-जमानती अपराध के लिये गिरफ्तार होने से पहले जमानत हेतु आवेदन करने की अनुमति देता है। न्यायालय अपराध की प्रकृति और गंभीरता, आरोपी की पृष्ठभूमि तथा अन्य प्रासंगिक कारकों पर विचार करने के बाद जमानत दे सकता है। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने अग्रिम जमानत देने के लिये दिशा-निर्देश निर्धारित किये हैं, जिसके लिये न्यायालय को जमानत देते समय विभिन्न कारकों पर विचार करने की आवश्यकता होती है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारत का अंतर्देशीय जल परिवहन
प्रिलिम्स के लिये:मैरीटाइम इंडिया विज़न 2030, जल विकास मार्ग परियोजना (JVMP), अर्थ गंगा, शून्य कार्बन उत्सर्जन। मेन्स के लिये:भारत का अंतर्देशीय जल परिवहन। |
चर्चा में क्यों?
मेरीटाइम इंडिया विज़न (MIV)-2030 के अनुसार, सरकार का लक्ष्य अंतर्देशीय जल परिवहन (IWT) की हिस्सेदारी को 5% तक बढ़ाना है।
अंतर्देशीय जल परिवहन (IWT):
- परिचय:
- अंतर्देशीय जल परिवहन का तात्पर्य नदियों, नहरों, झीलों और जल के अन्य नौगम्य निकायों जैसे जलमार्गों के माध्यम से लोगों, वस्तुओं तथा सामग्रियों के परिवहन से है जो किसी देश की सीमाओं के भीतर स्थित हैं।
- IWT परिवहन का सबसे किफायती तरीका है, विशेष रूप से कोयला, लौह अयस्क, सीमेंट, खाद्यान्न और उर्वरक जैसे बड़े कार्गो के लिये। वर्तमान में भारत के मिश्रित मॉडल में 2% की हिस्सेदारी के साथ इसका बहुत कम उपयोग किया जाता है।
- IWT के सामाजिक-आर्थिक लाभ:
- किफायती परिचालन लागत और अपेक्षाकृत कम ईंधन की खपत
- परिवहन का कम प्रदूषणकारी तरीका
- परिवहन के अन्य साधनों की तुलना में भूमि की कम आवश्यकता
- परिवहन का अधिक पर्यावरण अनुकूल तरीका
- इसके अलावा जलमार्गों का उपयोग नौका विहार और मछली पकड़ने जैसे मनोरंजक उद्देश्यों के लिये किया जा सकता है।
भारत में अंतर्देशीय जलमार्गों का दायरा और चुनौतियाँ:
- परिचय:
- भारत में अंतर्देशीय जलमार्गों का व्यापक नेटवर्क है, जिसमें नदियाँ, नहरें और बैकवाटर शामिल हैं, जिनकी लंबाई 20,000 किलोमीटर से अधिक है। अंतर्देशीय जल परिवहन में यात्रियों और कार्गो दोनों के लिये परिवहन के एक साधन के रूप में भारत में अपार संभावनाएँ हैं।
- जल विकास मार्ग परियोजना (JVMP) के माध्यम से राष्ट्रीय जलमार्ग -1 का प्राथमिक विकास किया गया, जिसमें अर्थ गंगा शामिल है और इससे आगामी पाँच वर्षों में 1,000 करोड़ रुपए का आर्थिक प्रोत्साहन प्राप्त होगा।
- अंतर्देशीय जलमार्ग वर्ष 2070 तक भारत को शून्य-कार्बन उत्सर्जन वाला देश बनाने के प्रधानमंत्री के दृष्टिकोण को साकार करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
- चुनौतियाँ:
- वर्ष भर कोई नौगम्यता नहीं:
- कुछ नदियाँ मौसमी होती हैं और वर्ष भर नौगम्यता प्रदान नहीं करती हैं। चिह्नित 111 राष्ट्रीय जलमार्गों में से लगभग 20 कथित तौर पर अव्यवहार्य पाए गए हैं।
- गहन पूंजी और रख-रखाव ड्रेजिंग:
- सभी चिह्नित जलमार्गों के लिये गहन पूंजी और रखरखाव ड्रेजिंग की आवश्यकता होती है, जिसका स्थानीय समुदाय द्वारा विस्थापन के भय से एवं पर्यावरणीय आधार पर विरोध किया सकता है, इससे कार्यान्वयन संबंधी चुनौतियाँ खड़ी हो सकती हैं।
- जल के अन्य उपयोग:
- जल के कई महत्त्वपूर्ण उपयोग हैं, जैसे- जीवनयापन के साथ-साथ सिंचाई, विद्युत उत्पादन में उपयोग आदि। स्थानीय सरकार/अन्य के लिये इन ज़रूरतों की अनदेखी करना संभव नहीं है।
- केंद्र सरकार का विशेषाधिकार क्षेत्र:
- संसद के एक अधिनियम द्वारा "राष्ट्रीय जलमार्ग" के रूप में नामित केवल अंतर्देशीय नदियाँ शिपिंग और नौवहन के लिये केंद्र सरकार के विशेष अधिकार क्षेत्र के अधीन हैं।
- अन्य जलमार्गों में जहाज़ों का उपयोग/नौकायन, समवर्ती सूची के दायरे के अंतर्गत आता है या फिर यह संबंधित राज्य सरकारों के अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत होता है।
- वर्ष भर कोई नौगम्यता नहीं:
मैरीटाइम इंडिया विज़न 2030:
- परिचय:
- यह समुद्री क्षेत्र के लिये 10 वर्ष का खाका है जिसे प्रधानमंत्री द्वारा नवंबर 2020 में मैरीटाइम भारत शिखर सम्मेलन में जारी किया गया था।
- यह सागरमाला पहल का स्थान लेगा और इसका उद्देश्य जलमार्गों के साथ जहाज़ निर्माण उद्योग को बढ़ावा देना और भारत में क्रूज़ पर्यटन को प्रोत्साहित करना है।
- नीतिगत पहलें और विकास परियोजनाएँ:
- समुद्री विकास निधि: 25,000 करोड़ रुपए की निधि, जो इस क्षेत्र को कम लागत तथा दीर्घकालिक वित्तपोषण प्रदान करेगी, जिसमें केंद्र सात वर्षों में 2,500 करोड़ रुपए का योगदान देगा।
- बंदरगाह नियामक प्राधिकरण: नए भारतीय बंदरगाह अधिनियम (पुराने भारतीय बंदरगाह अधिनियम, 1908 को बदलने के लिये) के तहत एक अखिल भारतीय बंदरगाह प्राधिकरण की स्थापना की जाएगी ताकि प्रमुख और गैर-प्रमुख बंदरगाहों में निगरानी को सक्षम किया जा सके, बंदरगाहों के लिये संस्थागत कवरेज बढ़ाया जा सके और निवेशकों के विश्वास को बढ़ाने के लिये बंदरगाह क्षेत्र के संरचित विकास की व्यवस्था की जा सके।
- पूर्वी जलमार्ग संपर्क परिवहन ग्रिड परियोजना: इसका उद्देश्य बांग्लादेश, नेपाल, भूटान और म्याँमार के साथ क्षेत्रीय संपर्क विकसित करना है।
- नदी विकास निधि (RDF): RDF के समर्थन से अंतर्देशीय जहाज़ों के लिये कम लागत, दीर्घकालिक वित्तपोषण का विस्तार करने और ऐसे जहाज़ों की उपलब्धता बढ़ाने के लिये अंतर्देशीय जहाज़ों हेतु टनभार कर योजना (समुद्री जहाज़ों और ड्रेजर पर लागू) के कवरेज का विस्तार करने का आह्वान करता है।
- पोर्ट शुल्कों का युक्तिकरण: पारदर्शिता बढ़ाने हेतु शिप लाइनर्स द्वारा लगाए गए सभी अप्रत्यक्ष शुल्कों को समाप्त करने के अलावा यह उन्हें और अधिक प्रतिस्पर्द्धी बना देगा।
- जल परिवहन को बढ़ावा: शहरी क्षेत्रों की भीड़-भाड़ को कम करने और शहरी परिवहन के वैकल्पिक साधन के रूप में जलमार्ग विकसित कर जल परिवहन को बढ़ावा देना।
संबंधित सरकारी पहलें:
आगे की राह
- भारत में बढ़ती आबादी एवं बढ़ते यातायात के साथ अंतर्देशीय जलमार्गों का विकास न केवल यात्रा के समय को कम करेगा, लोगों तथा वस्तुओं हेतु निर्बाध आवागमन सुनिश्चित करने के साथ लागत प्रभावी होगा और प्रदूषण के स्तर को कम करेगा। हम एक ऐसी नीति तैयार कर सकते हैं जो सुरक्षा, बुनियादी ढाँचे के समर्थन, अंतर-राज्य समन्वय व परिवहन के अन्य साधनों के साथ एकीकरण को बढ़ावा दे सकती है।
स्रोत: पी.आई.बी.
ICC द्वारा व्लादिमीर पुतिन के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट
प्रिलिम्स के लिये:ICC, ICJ, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद। मेन्स के लिये:महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान। |
चर्चा में क्यों?
अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) ने राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और एक अन्य रूसी अधिकारी पर युद्ध अपराधों के लिये गिरफ्तारी वारंट जारी किया है।
- यह पहली बार है जब ICC ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पाँच स्थायी सदस्यों में से एक के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया है।
ICC द्वारा व्लादिमीर पुतिन के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी करने का कारण:
- ICC ने यूक्रेन के नियंत्रण वाले क्षेत्रों से बच्चों को रूसी संघ में गैरकानूनी रूप से निर्वासित करने एवं स्थानांतरित करने के कथित युद्ध अपराध के लिये रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया।
अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC):
- अधिक न्यायपूर्ण विश्व बनाने की दिशा में 120 देशों द्वारा 17 जुलाई, 1998 को रोम संविधि को अपनाया गया था।
- रोम संविधि 1 जुलाई, 2002 को लागू हुई, 60 राज्यों के अनुसमर्थन के बाद आधिकारिक तौर पर ICC की स्थापना की गई। ICC इस तारीख को या उसके बाद किये गए अपराधों से निपटता है क्योंकि इसका कोई पूर्वव्यापी क्षेत्राधिकार नहीं है।
- रोम संविधि, चार मुख्य अपराधों पर ICC को अधिकार क्षेत्र प्रदान करती है:
- नरसंहार का अपराध
- मानवता के विरुद्ध अपराध
- युद्ध संबंधी अपराध
- आक्रामकता का अपराध
- न्यायालय अराजकता को समाप्त करने की वैश्विक लड़ाई में भाग ले रहा है और अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्याय के माध्यम से यह उन लोगों को उनके अपराधों हेतु ज़िम्मेदार ठहराने एवं भविष्य में होने वाले समान अपराधों को रोकने में मदद करने का समर्थन करता है।
- ICC दुनिया का पहला स्थायी अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय है।
- वर्तमान में रोम संविधि के पक्षकार देशों की संख्या 123 है, हालाँकि भारत, अमेरिका और चीन रोम संविधि के पक्षकार नहीं है।
- किसी देश की अपनी कानूनी मशीनरी के कार्य करने में विफल होने की स्थिति में ICC की स्थापना जघन्यतम अपराधों पर मुकदमा चलाने के लिये की गई थी। अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (International Court of Justice- ICJ), जो देशों और अंतर-राज्यीय विवादों से निपटता है, के विपरीत ICC व्यक्तियों पर मुकदमा दायर करता है।
ICC और ICJ में अंतर:
- अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के विपरीत ICC संयुक्त राष्ट्र प्रणाली का हिस्सा नहीं है बल्कि UN-ICC संबंध एक अलग समझौते द्वारा शासित हैं।
- ICJ, जो संयुक्त राष्ट्र के 6 प्रमुख अंगों में से एक है, मुख्य रूप से राष्ट्रों के बीच विवादों के मामले को सुनता है। यह 1945 में स्थापित किया गया था और इसका मुख्यालय हेग (नीदरलैंड) में स्थित है।
क्या ICC के पास रूस पर अभियोग चलाने की शक्ति है?
- मार्च 2023 तक रूस रोम संविधि का पक्षकार नहीं है और इसलिये ICC के पास अपने क्षेत्र में किये गए अपराधों पर सुनवाई करने का कोई अधिकार नहीं है। हालाँकि ICC अन्य देशों के व्यक्तियों द्वारा किये गए अपराधों की जाँच और उन पर अभियोग शुरू कर सकता है, जिन्होंने रोम संविधि के पक्षकार राष्ट्र के क्षेत्र में कथित अपराध किये हैं।
- यूक्रेन भी रोम संविधि का सदस्य नहीं है, लेकिन संविधि के अनुच्छेद 12(3) के तहत उसने दो बार रोम संविधि के तहत अपने क्षेत्र में हो रहे कथित अपराधों पर ICC के अधिकार क्षेत्र को स्वीकार करने के लिये अपने विकल्पों का प्रयोग किया है।
- अनुच्छेद 12(3) में कहा गया है कि यदि किसी ऐसे राज्य जो कानूनी पक्षकार नहीं है, संबंधित अपराध के लिये रजिस्ट्रार को एक घोषणा करके और बिना किसी देरी या अपवाद के सहयोग कर न्यायालय के अधिकार क्षेत्र को स्वीकार कर सकता है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
नेट न्यूट्रैलिटी
प्रिलिम्स के लिये:सेल्युलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (COAI), भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (TRAI), इंटरनेट सेवा प्रदाता। मेन्स के लिये:नेट न्यूट्रैलिटी। |
चर्चा में क्यों?
सेल्युलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (COAI), जो भारत में तीन प्रमुख दूरसंचार ऑपरेटर- भारती एयरटेल, वोडाफोन आइडिया और रिलायंस जियो का प्रतिनिधित्त्व करता है, ने मांग की है कि यूट्यूब तथा व्हाट्सएप जैसे प्लेटफॉर्म नेटवर्क लागत को पूरा करने हेतु राजस्व का एक हिस्सा भुगतान करें।
- इसने नेट न्यूट्रैलिटी के संदर्भ में चर्चा को फिर से शुरू कर दिया है।
इस मुद्दे के संदर्भ में तर्क और हालिया घटनाक्रम:
- दूरसंचार ऑपरेटर उनके नेटवर्क के व्यापक उपयोग के लिये भुगतान की मांग कर रहे हैं।
- यूरोपीय संघ में दूरसंचार ऑपरेटर भी विषयवस्तु प्रदाताओं से समान उपयोग शुल्क की मांग कर रहे हैं।
- विषयवस्तु प्रदाताओं का तर्क है कि सीमित संख्या में बड़े अभिकर्त्ताओं पर भी इस तरह का शुल्क लगाना, इंटरनेट के स्वरूप का विरूपण है।
- वर्ष 2016 में भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (Telecom Regulatory Authority of India- TRAI) ने नेट न्यूट्रैलिटी के पक्ष में फैसला सुनाया।
- वर्ष 2018 में दूरसंचार विभाग ने एकीकृत लाइसेंस में नेट न्यूट्रैलिटी अवधारणा को स्थापित किया, जिसकी शर्तों से सभी दूरसंचार ऑपरेटर और इंटरनेट प्रदाता बाध्य हैं।
नेट न्यूट्रैलिटी
- नेट न्यूट्रैलिटी सिद्धांत के अनुसार, सभी इंटरनेट ट्रैफिक के साथ बिना किसी भेदभाव या किसी विशेष वेबसाइट, सेवा या ऐप को प्राथमिकता दिये बिना समान व्यवहार किया जाना चाहिये।
- नेट न्यूट्रैलिटी यह सुनिश्चित करती है कि इंटरनेट पर सूचना और सेवाओं तक सभी की समान पहुँच हो, भले ही उनके वित्तीय संसाधन या उनके द्वारा उपयोग की जाने वाली वेबसाइट्स का आकार और शक्ति कुछ भी हो।
- यह एक महत्त्वपूर्ण सिद्धांत है जो इंटरनेट पर एक समान अवसर सुनिश्चित करने में मदद करता है तथा सूचना और विचारों के मुक्त प्रवाह की रक्षा करता है।
- नेट न्यूट्रैलिटी के बिना इंटरनेट सेवा प्रदाता उपयोगकर्त्ताओं को कुछ वेबसाइट्स और सेवाओं की ओर ले जाने या दूसरों तक पहुँच को सीमित करने के लिये संभावित रूप से अपनी बाज़ार शक्ति का उपयोग कर सकते हैं।
इंटरनेट क्षेत्र में विभिन्न हितधारक:
- इंटरनेट क्षेत्र में विभिन्न हितधारक हैं:
- किसी भी इंटरनेट सेवा के उपभोक्ता।
- दूरसंचार सेवा प्रदाता (TSP) या इंटरनेट सेवा प्रदाता (ISP)।
- ओवर-द-टॉप (OTT) सेवा प्रदाता (जो वेबसाइट और ऐप जैसी इंटरनेट एक्सेस सेवाएँ प्रदान करते हैं)।
- सरकार, जो इंटरनेट कंपनियों के बीच संबंधों को विनियमित और परिभाषित कर सकती है।
- इसके अलावा TRAI दूरसंचार क्षेत्र में एक स्वतंत्र नियामक है, जो मुख्य रूप से TSP और उनकी लाइसेंसिंग शर्तों आदि को नियंत्रित करता है।
नेट न्यूट्रैलिटी का विनियमन:
- अब तक नेट न्यूट्रैलिटी को भारत में किसी भी कानून या नीति ढाँचे द्वारा प्रत्यक्ष रूप से विनियमित नहीं किया गया है।
- पिछले वर्षों के दौरान नेट न्यूट्रैलिटी से संबंधित नीति निर्माण में कुछ विकास हुआ है।
- ट्राई डेटा सेवाओं के लिये अलग-अलग मूल्य निर्धारण के साथ-साथ ओवर-द-टॉप सेवाओं (OTT) हेतु नियामक ढाँचे पर काम कर रहा है।
- दूरसंचार विभाग द्वारा गठित एक समिति ने भी नेट न्यूट्रैलिटी के मुद्दे की जाँच की है।
- इसके अलावा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, ब्राज़ील, चिली, नॉर्वे, आदि जैसे देशों में कुछ प्रकार के कानून, व्यवस्था अथवा नियामक ढाँचे हैं जो नेट न्यूट्रैलिटी को प्रभावित करते हैं।
नेट न्यूट्रैलिटी नहीं होने की स्थिति के परिणाम:
- इंटरनेट संबंधी एकाधिकार:
- ISP इससे अधिक लाभ प्राप्त करने के लिये नेट न्यूट्रैलिटी के बिना इंटरनेट ट्रैफिक को संशोधित करने में सक्षम होंगे।
- इससे उन्हें सामान्य वेबसाइट की तुलना में अधिक बैंडविड्थ की खपत करने वाले YouTube और Netflix जैसी कंपनियों को सेवाओं के लिये चार्ज करने की शक्ति मिलेगी।
- ISP इससे अधिक लाभ प्राप्त करने के लिये नेट न्यूट्रैलिटी के बिना इंटरनेट ट्रैफिक को संशोधित करने में सक्षम होंगे।
- हतोत्साहित नवाचार:
- नेट न्यूट्रैलिटी की कमी वेब/इंटरनेट पर नवाचार को काफी हतोत्साहित कर सकती है। त्वरित पहुँच के लिये भुगतान करने में सक्षम स्थापित अभिकर्त्ताओं की तुलना में स्टार्टअप अधिक नुकसान में होंगे।
- एक खुले और विविध पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण की बजाय इसका परिणाम एक ऐसे वेब के रूप में हो सकता है, जिसमें सीमित संख्या में शक्तिशाली संस्थाओं का वर्चस्व हो।
- उपभोक्ताओं के लिये पैकेज प्लान:
- नेट न्यूट्रैलिटी की कमी से सुविधाओं तक निःशुल्क पहुँच के बजाय उपभोक्ताओं के लिये "पैकेज प्लान" की व्यवस्स्था हो सकती है।
- उदाहरण के लिये उपयोगकर्त्ताओं को अपने देश में स्थित वेबसाइट्स की तुलना में अंतर्राष्ट्रीय वेबसाइट्स का उपयोग करने के लिये अधिक भुगतान करना पड़ सकता है। इससे एक स्तरीय इंटरनेट प्रणाली का निर्माण हो सकता है जिसमें अधिक भुगतान करने वाले उपयोगकर्त्ताओं को सामग्री तक बेहतर पहुँच प्राप्त होगी।
- नेट न्यूट्रैलिटी की कमी से सुविधाओं तक निःशुल्क पहुँच के बजाय उपभोक्ताओं के लिये "पैकेज प्लान" की व्यवस्स्था हो सकती है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा/से भारत सरकार का/के “डिजिटल इंडिया” योजना का/के उद्देश्य है/हैं? (2018)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग सही उत्तर चुनिये : केवल 1 और 2 उत्तर: (b) |