भारतीय राजनीति
नेट न्यूट्रलिटी और संबंधित नियम
- 23 Sep 2020
- 7 min read
प्रिलिम्स के लियेनेट न्यूट्रलिटी, इस संबंध में बनाए गए नियम, भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण मेन्स के लियेनेट न्यूट्रलिटी का अर्थ, इसका महत्त्व और आलोचना |
चर्चा में क्यों?
भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (Telecom Regulatory Authority of India-TRAI) ने दूरसंचार विभाग (DoT) को बहु-हितधारक निकाय स्थापित करने की सिफारिश की है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि देश के सभी इंटरनेट सेवा प्रदाता नेट न्यूट्रलिटी (Net Neutrality) के प्रावधानों का पालन करें।
प्रमुख बिंदु
- भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण द्वारा की गई सिफारिशों के अनुसार, इस बहु-हितधारक निकाय में दूरसंचार सेवा प्रदाता, इंटरनेट सेवा प्रदाता, कंटेंट प्रदाता, शोधकर्त्ता, शैक्षणिक एवं तकनीकी समुदाय, नागरिक समाज संगठन और सरकार के प्रतिनिधि शामिल होने चाहिये और यह बहु-हितधारक निकाय एक गैर-लाभकारी संस्था के रूप में स्थापित किया जाना चाहिये।
निकाय का कार्य
- यह बहु-हितधारक निकाय मुख्य तौर पर नेट न्यूट्रलिटी के सिद्धांत की निगरानी और प्रवर्तन में दूरसंचार विभाग (DoT) के लिये सलाहकार की भूमिका अदा करेगा।
- यह निकाय नेट न्यूट्रलिटी (Net Neutrality) के सिद्धांत के उल्लंघन से संबंधित शिकायतों की जाँच भी करेगा।
नेट न्यूट्रलिटी का सिद्धांत
- नेट न्यूट्रलिटी का सिद्धांत मानता है कि इंटरनेट सेवा प्रदाताओं (ISPs) को सभी इंटरनेट गतिविधियों के साथ एक समान रूप से व्यवहार करना चाहिये और उपयोगकर्त्ता, सामग्री, वेबसाइट, प्लेटफॉर्म, एप्लिकेशन, स्रोत, गंतव्य अथवा संचार विधि आदि के आधार पर किसी के साथ भी भेदभाव नहीं करना चाहिये।
- इंटरनेट सेवा प्रदाताओं अथवा कंपनियों को किसी विशिष्ट डेटा के लिये अलग-अलग कीमतें नहीं लेनी चाहिये, चाहे वह डेटा भिन्न वेबसाइटों पर विज़िट करने के लिये हो या फिर अन्य सेवाओं के लिये।
- नेट न्यूट्रैलिटी के सिद्धांत में यह भी स्वीकार किया गया है कि इंटरनेट सर्विस प्रदाताओं (ISP) द्वारा इंटरनेट उपयोगकर्त्ताओं के साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव न करते हुए उन्हें इंटरनेट पर उपलब्ध सभी सामग्री तक पहुँचने में सक्षम बनाना चाहिये।
नेट न्यूट्रैलिटी के पक्ष में तर्क
- नेट न्यूट्रैलिटी का सिद्धांत इंटरनेट की दुनिया को अधिक लोकतांत्रिक बनाता है, क्योंकि टेलीकॉम प्रदाता या इंटरनेट सेवा प्रदाता अलग-अलग वेबसाइटों के लिये अलग-अलग कीमतें नहीं ले सकते हैं, जिससे सभी को एक समान रूप से इंटरनेट पर भाग लेने की अनुमति मिलती है।
- यह सिद्धांत किसी आधिकारिक आदेश के बिना टेलीकॉम प्रदाताओं या इंटरनेट सेवा प्रदाताओं को अपनी इच्छा के मुताबिक इंटरनेट पर मौजूद सामग्री अथवा वेबसाइट को रोकने, उसे नियंत्रित करने, फिल्टर करने या ब्लॉक करने से रोकता है।
- इस प्रकार इंटरनेट की स्वतंत्रता बनी रहती है।
- यह सूचना प्रौद्योगिकी (IT) क्षेत्र की सभी बड़ी और छोटी कंपनियों को एक समान अवसर प्रदान करता है और कुछ चुनिंदा कंपनियों को इंटरनेट पर नियंत्रण स्थापित करने से रोकता है।
नेट न्यूट्रैलिटी के विपक्ष में तर्क
- फेसबुक जैसी कई सोशल मीडिया कंपनियों ने नेट न्यूट्रैलिटी के सिद्धांत का विरोध किया है। नेट न्यूट्रैलिटी या इंटरनेट तटस्थता का सिद्धांत इंटरनेट पर नवाचार को प्रभावित करता है।
- इसके अलावा यह सिद्धांत इंटरनेट सेवा प्रदाताओं को ब्रॉडबैंड सेवाओं में निवेश नहीं करने से रोकता है।
- यह सिद्धांत इंटरनेट के क्षेत्र में प्रतिस्पर्द्धा को समाप्त कर देता है, क्योंकि इसके तहत डेटा पैकेट को एक समान माना जाता है।
संबंधित मामले
- वर्ष 2019 में इंटरनेट की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए केरल उच्च न्यायालय ने फहीमा शिरिन बनाम केरल राज्य के मामले में संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आने वाले निजता के अधिकार और शिक्षा के अधिकार का एक हिस्सा बनाते हुए इंटरनेट तक पहुँच के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित किया है।
- अनुराधा भसीन बनाम भारत संघ वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने इंटरनेट पर मुक्त भाषा और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को संविधान के अनुच्छेद 19(1)(A) के तहत मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता प्रदान की थी।
पृष्ठभूमि
- वर्ष 2016 से वर्ष 2018 के बीच की अवधि में भारत ने नेट न्यूट्रैलिटी या इंटरनेट तटस्थता की दिशा में दो महत्त्वपूर्ण कदम उठाए थे, जिसमें पहला कदम भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (TRAI) द्वारा फरवरी 2016 में उठाया गया और यह तय कर दिया गया कि कोई भी इंटरनेट सेवा प्रदाता अथवा सामग्री प्रदाता, इंटरनेट पर उपलब्ध सामग्री के आधार पर डेटा सेवाओं के लिये भेदभावपूर्ण शुल्क की नीति नहीं अपनाएंगे।
- इस दिशा में दूसरा महत्त्वपूर्ण कदम जुलाई 2018 में लिया गया जब भारत सरकार ने इंटरनेट पर उपलब्ध सामग्री के गैर-भेदभावपूर्ण उपयोग पर सिद्धांतों का एक व्यापक सेट अपनाने का निर्णय लिया था। इस निर्णय के माध्यम से इंटरनेट सेवा प्रदाताओं (ISP) को इंटरनेट की किसी भी सामग्री के साथ किसी भी प्रकार का भेदभावपूर्ण व्यवहार करने से रोक दिया गया।