सामाजिक न्याय
दुर्लभ रोगों के लिये क्राउडफंडिंग
चर्चा में क्यों?
हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय को ड्यूशेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी नामक एक दुर्लभ रोग से पीड़ित दो बच्चों की सहायता के लिये क्राउडफंडिंग की संभावना का पता लगाने का आदेश दिया है।
प्रमुख बिंदु
- संबंधित संवैधानिक प्रावधान
- दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि ‘स्वास्थ्य और स्वास्थ्य देखभाल का अधिकार’ एक मौलिक अधिकार है, जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत ‘जीवन के अधिकार’ का एक हिस्सा माना है।
- समाज और प्राधिकरण के लिये निर्देश
- उच्च न्यायालय ने समाज और मुख्य तौर पर प्राधिकरणों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि ऐसे दुर्लभ रोगों से पीड़ित बच्चों के जीवन से किसी भी प्रकार का समझौता न किया जाए, भले ही उनके जीवित रहने की संभावना अथवा उनके जीवन की गुणवत्ता में सुधार की संभावना कम ही क्यों न हो।
- न्यायालय ने स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय को निर्देश दिया कि वह जल्द-से-जल्द दुर्लभ रोगों के लिये मसौदा स्वास्थ्य नीति, 2020 के कार्यान्वयन को अंतिम रूप दे। ज्ञात हो कि इस मसौदे में उच्च लागत वाले दुर्लभ रोगों के उपचार के लिये क्राउडफंडिंग से संबंधित प्रावधान किये गए हैं।
क्राउडफंडिंग का अर्थ
- क्राउडफंडिंग का आशय बड़ी संख्या में व्यक्तिगत निवेशकों/दानदाताओं के सामूहिक प्रयास से पूंजी जुटाने की एक विधि से है।
- क्राउडफंडिंग के बारे लोगों में जागरूकता बढ़ाने के लिये ऑनलाइन प्लेटफॉर्म जैसे- सोशल मीडिया और क्राउडफंडिंग प्लेटफॉर्म आदि का उपयोग किया जाता है, परिणामतः धन इकट्ठा करने के पारंपरिक तरीकों की तुलना में अधिक दाताओं तक पहुँच प्राप्त होती है।
प्रकार
- दान-आधारित क्राउडफंडिंग: यह धनराशि एकत्रित करने की वह विधि है, जिसमें बड़ी संख्या में योगदानकर्त्ताओं को व्यक्तिगत रूप से एक छोटी राशि दान करने के लिये कहा जाता है। इसमें योगदानकर्त्ताओं को टोकन रिवॉर्ड दिया जाता है और इसके तहत बहुत कम धनराशि एकत्र होने की संभावना होती है।
- पुरस्कार-आधारित क्राउडफंडिंग: पुरस्कार-आधारित क्राउडफंडिंग के तहत दी गई राशि के बदले योगदान करने वाले को ‘रिवॉर्ड’ दिया जाता है, जो कि प्रायः किसी उत्पाद अथवा सेवा के रूप में हो सकता है। यद्यपि इस विधि के तहत योगदानकर्त्ताओं को पुरस्कार प्रदान किया जाता है, किंतु इसके बावजूद इस विधि को दान-आधारित क्राउडफंडिंग का ही एक हिस्सा माना जाता है, क्योंकि इसमें किसी भी प्रकार का वित्तीय रिटर्न शामिल नहीं होता है।
- इक्विटी-आधारित क्राउडफंडिंग: इस विधि के तहत निवेश के बदले एक व्यवसाय में कई निवेशकों को हिस्सेदारी बेची जाती है। यह स्टॉक एक्सचेंज या उद्यम पूंजी पर सामान्य स्टॉक को कैसे खरीदा या बेचा जाता है, के विचार के सामान है। इक्विटी मालिकों के रूप में योगदानकर्त्ताओं को अपने निवेश पर वित्तीय रिटर्न और अंततः लाभांश प्राप्त होता है।
लाभ
- विशाल नेटवर्क: सोशल मीडिया और क्राउडफंडिंग प्लेटफॉर्म के विशाल नेटवर्क का उपयोग कर हज़ारों निवेशकों और दानदाताओं तक आसानी से पहुँचा जा सकता है तथा उन्हें अपने अभियान के बारे में सूचित किया जा सकता है।
- प्रस्तुतिकरण: क्राउडफंडिंग संबंधी अभियान के माध्यम से कंपनी के इतिहास, उसके प्राथमिक कार्य, बाज़ार और बाज़ार मूल्य के बारे में आसानी से लोगों को समझाया जा सकता है।
- विचार को मान्यता: क्राउडफंडिंग के माध्यम से किसी अवधारणा अथवा विचार को आम जनता के सामने प्रस्तुत किया जाने से उसे लेकर आम जनता के बीच बनी राय को आसानी से परखा जा सकता है।
- कार्यक्षमता: क्राउडफंडिंग का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह विधि धन एकत्रित करने के प्रयासों को केंद्रीकृत और कार्यकुशल बना देती है।
दुर्लभ रोग
- दुर्लभ रोग उस स्वास्थ्य स्थिति को इंगित करता है, जिसका प्रसार अन्य बीमारी या रोगों की तुलना में कम होता है तथा जो सामान्य आबादी में अन्य प्रचलित बीमारियों की तुलना में बहुत कम लोगों को प्रभावित करती है।
- हालाँकि, दुर्लभ रोगों की कोई सार्वभौमिक स्वीकृत परिभाषा नहीं है तथा विभिन्न देशों में इसकी परिभाषा आमतौर पर भिन्न-भिन्न होती है।
- 80 प्रतिशत दुर्लभ बीमारियाँ आनुवंशिक होती हैं और इसलिये बच्चों पर इनका विपरीत प्रभाव पड़ता है।
- भारत में लगभग 56-72 मिलियन लोग दुर्लभ रोगों से प्रभावित हैं।
ड्यूशेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी
(Duchenne Muscular Dystrophy- DMD)
- यह एक आनुवंशिक विकार है जिसमें डायस्ट्रोफिन नामक प्रोटीन (मांसपेशियों की कोशिकाओं को बनाए रखने में मदद करता है) के बदलने या परिवर्तित होने के कारण प्रगतिशील मांसपेशियों में विकृति और कमज़ोरी उत्पन्न हो जाती है
- लक्षण:
- मांसपेशियों में कमज़ोरी
- पिंडली विरूपण
- वाडलिंग गैट (चाल बतख के समान हो जाती है)
- मेरुवक्रता या रीढ़ वक्रता (Lumbar Lordosis)
स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
भारतीय रेल वित्त निगम: IPO
चर्चा में क्यों?
भारतीय रेल वित्त निगम (Indian Railway Finance Corporation- IRFC) के ‘इनीशियल पब्लिक ऑफरिंग’ (Initial Public Offering- IPO) को जारी होने के पहले दिन 65% अंशदान मिला है।
- इससे पहले ‘इंडियन रेलवे कैटरिंग एंड टूरिज़्म कॉर्पोरेशन लिमिटेड’ ने वर्ष 2019 में ‘नेशनल स्टॉक एक्सचेंज’ पर एक IPO जारी किया था।
प्रमुख बिंदु:
पहला IPO:
- यह वर्ष 2021 में जारी पहला IPO है जिसे गैर-बैंकिंग वित्तीय रेलवे कंपनी द्वारा पहली बार सार्वजनिक रूप से जारी किया गया।
एकत्रित राशि:
- IPO के माध्यम से केंद्र सरकार एवं IRFC के प्रवर्तक, कंपनी में 13.6% हिस्सेदारी की बिक्री करेंगे।
- 26 रुपए प्रति शेयर के उच्च मूल्य पर सरकार 3,243 करोड़ रुपए जुटाएगी और कंपनी का मार्केट कैप 23,845 करोड़ रुपए होगा।
उद्देश्य:
- IRFC अपने पूंजी आधार और सामान्य कॉर्पोरेट उद्देश्यों को बढ़ावा देने के लिये नए सिरे से IPO की आय का उपयोग करेगा।
रेलवे की क्षमता बढ़ाने के लिये अन्य सरकारी प्रयास:
- फ्रेट कॉरिडोर का विकास
- उच्च गति की रेलों का संचालन
- एलीवेटिड गलियारा
भारतीय रेल वित्त निगम
- यह भारतीय रेलवे की एक सहायक कंपनी है जो कि भारतीय रेलवे की एक समर्पित बाज़ार उधार शाखा भी है।
स्थापना:
- इसे वर्ष 1986 में निगमित किया गया था।
वित्तीय मॉडल:
- यह रोलिंग स्टॉक (Rolling Stock) परिसंपत्तियों के अधिग्रहण के वित्तपोषण के लिये एक वित्तीय लीज़िंग मॉडल का अनुसरण करता है, जिसमें लोकोमोटिव, कोच, वैगन्स, ट्रक, फ्लैट, इलेक्ट्रिक मल्टीपल यूनिट, कंटेनर, क्रेन, ट्रॉली आदि शामिल हैं।
- वित्तीय लीज़िंग मॉडल
- लीज़िंग मॉडल के माध्यम से राजस्व प्राप्त करने में आमतौर पर तीन पक्ष शामिल होते हैं: विक्रेता, खरीदार (पट्टेदार) और फाइनेंसर।
- भुगतान के बदले किसी समझौते का स्वामित्त्व (आमतौर पर उपकरण) विक्रेता से पट्टेदार को हस्तांतरित किया जाता है।
- पट्टेदार आवधिक शुल्क के बदले वस्तु के उपयोग के लिये तीसरे पक्ष के साथ अनुबंध करता है।
- एक बार लीज़िंग अनुबंध समाप्त हो जाने के बाद विक्रेता संबंधित समझौते के स्वामित्व को समाप्त कर सकता है या नहीं भी कर सकता है।
अंशदान
- यह भारतीय रेलवे की क्षमता वृद्धि में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जो अपने वार्षिक योजना परिव्यय में वृद्धि के अनुपात में वित्तपोषण करके दीर्घकालिक व्यापार सुगमता सुनिश्चित करता है।
अन्य कार्य:
- यह रेलवे अवसंरचना परिसंपत्तियों और भारत सरकार की राष्ट्रीय परियोजनाओं (परियोजना परिसंपत्तियों) को पट्टे पर देने और रेल मंत्रालय के तहत अन्य संस्थाओं को ऋण देने में भी सक्षम है।
‘इनीशियल पब्लिक ऑफरिंग’
परिभाषा:
- IPO प्राथमिक बाज़ार में सार्वजनिक रूप से प्रतिभूतियों की बिक्री है।
- प्राथमिक बाज़ार पहली बार जारी की जा रही नई प्रतिभूतियों की बिक्री से संबंधित है। इसे ‘न्यू इश्यू मार्किट’ (New Issues Market) के रूप में भी जाना जाता है।
- यह द्वितीयक बाज़ार से अलग है जहाँ पहले से मौजूद प्रतिभूतियों को खरीदा और बेचा जाता है। इसे शेयर बाज़ार या स्टॉक एक्सचेंज के रूप में भी जाना जाता है।
- यह तब जारी होता है जब एक गैर-सूचीबद्ध कंपनी या तो प्रतिभूतियों को पहली बार बिक्री के लिये जारी करती है या अपनी मौजूदा प्रतिभूतियों को या दोनों को पहली बार जनता के सम्मुख पेश करती है।
- गैर-सूचीबद्ध कंपनियाँ वे होती हैं जो स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध नहीं हैं।
- आमतौर पर इनका उपयोग ऐसे नए और मध्यम आकार की फर्मों द्वारा किया जाता है जिन्हें अपने व्यवसाय को विकसित और विस्ताररित करने के लिये फंड की ज़रुरत होती है।
लाभ
- IPO द्वारा जुटाई गई धनराशि कंपनी को नए पूंजीगत उपकरणों और बुनियादी ढाँचे में निवेश करने में सहायता प्रदान करती है।
- एक IPO स्टॉक एक्सचेंज बाज़ार में इसके जारीकर्त्ता की प्रतिभूतियों की सूची प्रस्तुत करता है और व्यापार के लिये मार्ग प्रशस्त करता है।
- IPO एक कंपनी की उच्च प्रतिभाओं को आकर्षित करने में सहायता प्रदान करता है क्योंकि यह अपने कर्मचारियों को अतिरिक्त विकल्प प्रदान कर सकता है। यह शुरू में कंपनी को अपने अधिकारियों को कम वेतन का भुगतान करने में सक्षम बनाता है परंतु बदले में कर्मचारियों को कुछ समय बाद IPO से नकदी निकालने का विकल्प देता है।
स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस
शासन व्यवस्था
रूफटॉप सौर योजना
चर्चा में क्यों?
हाल ही में नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (Ministry of New and Renewable Energy- MNRE) ने रूफटॉप सौर योजना (Rooftop Solar Scheme) के संबंध में परामर्श जारी किया है।
प्रमुख बिंदु:
उद्देश्य:
- घरों की छत पर सौर पैनल स्थापित कर सौर ऊर्जा उत्पन्न करने हेतु नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ग्रिड से जुड़ी रूफटॉप सौर योजना (द्वितीय चरण) को लागू कर रहा है।
ग्रिड से जुड़ी रूफटॉप सौर योजना (द्वितीय चरण):
- इस परियोजना का लक्ष्य वर्ष 2022 तक रूफटॉप सौर योजना से 40,000 मेगावाट की संचयी सौर ऊर्जा क्षमता हासिल करना है।
- इसमें ग्रिड से जुड़ी छत या छोटी सौर फोटोवोल्टिक (Solar Photovoltaic- SPV) प्रणाली, जिसमें SPV पैनल से उत्पन्न DC करंट, को पावर कंडीशनिंग यूनिट का उपयोग करके AC करंट में परिवर्तित किया जाता है और ग्रिड को संचालित किया जाता है।
- कार्यक्रम के प्रमुख उद्देश्य में शामिल हैं:
- रिहायशी, सामुदायिक, संस्थागत, औद्योगिक और वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों के मध्य ग्रिड से जुड़े एसपीवी रूफटॉप और छोटे एसपीवी बिजली उत्पादन को बढ़ावा देना।
- जीवाश्म ईंधन आधारित बिजली उत्पादन पर निर्भरता को कम करना तथा पर्यावरण अनुकूल सौर बिजली उत्पादन को प्रोत्साहित करना।
- निजी क्षेत्र, राज्य सरकार और व्यक्तियों द्वारा सौर ऊर्जा क्षेत्र में निवेश के लिये सहयोगात्मक वातावरण निर्मित करना।
- छत और छोटे पौधों की सहायता से ग्रिड तक सौर ऊर्जा की आपूर्ति हेतु एक सक्षम वातावरण निर्मित करना।
- राज्य में इस योजना का क्रियान्वयन वितरण कंपनियों (Distribution Companies-DISCOMs) द्वारा किया जा रहा है।
- इस योजना के तहत मंत्रालय पहले 3 किलोवाट के लिये 40 प्रतिशत सब्सिडी तथा 3 किलोवाट से अधिक और 10 किलोवाट तक के लिये 20 प्रतिशत की सब्सिडी प्रदान कर रहा है।
- आवासीय उपभोक्ता को सब्सिडी राशि घटाकर विक्रेताओं को रूफटॉप सोलर प्लांट की कीमत चुकानी होगी।
सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिये अन्य योजनाएँ:
- किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान-कुसुम (PM-KUSUM):
- इस योजना में ग्रिड-कनेक्टेड रिन्यूएबल एनर्जी पावर प्लांट (0.5- 2 मेगावाट)/सोलर वाटर पंप/ग्रिड कनेक्टेड अग्रीकल्चर पंप शामिल हैं।
- अल्ट्रा मेगा रिन्यूएबल एनर्जी पावर पार्कों के विकास हेतु योजना:
- यह मौजूदा सोलर पार्क योजना के तहत ही अल्ट्रा मेगा रिन्यूएबल एनर्जी पावर पार्कों (Ultra Mega Renewable Energy Power Parks- UMREPPs) को विकसित करने की योजना है।
- राष्ट्रीय पवन-सौर हाइब्रिड नीति:
- राष्ट्रीय पवन-सौर हाइब्रिड नीति, 2018 का मुख्य उद्देश्य पवन और सौर संसाधनों, बुनियादी ढांँचे और भूमि के इष्टतम और कुशल उपयोग के लिये ग्रिड कनेक्टेड विंड-सोलर पीवी सिस्टम (Wind-Solar PV Hybrid Systems) को बढ़ावा देने के लिये एक रूपरेखा प्रस्तुत करना है।
- पवन-सौर पीवी हाइब्रिड सिस्टम अक्षय ऊर्जा उत्पादन में परिवर्तनशीलता को कम करने तथा बेहतर ग्रिड स्थिरता प्राप्त करने में सहायक होगा।
- इस नीति का उद्देश्य उन नई प्रौद्योगिकियों और तरीकों को प्रोत्साहित करना है जिसमें पवन और सौर पीवी संयंत्रों का संयुक्त संचालन शामिल है।
- अटल ज्योति योजना (AJAY):
- AJAY योजना को सितंबर 2016 में ग्रिड पावर (2011 की जनगणना के अनुसार) में 50% से कम घरों वाले राज्यों में सौर स्ट्रीट लाइटिंग (Solar Street Lighting- SSL) सिस्टम की स्थापना के लिये शुरू किया गया था।
- अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन: आईएसए, भारत की एक पहल है जिसे 30 नवंबर, 2015 को पेरिस, फ्रांँस में भारत के प्रधानमंत्री और फ्रांँस के राष्ट्रपति द्वारा पार्टियों के सम्मेलन (COP-21) में शुरू किया गया था। इस संगठन के सदस्य देशों में वे 121 सौर संसाधन संपन्न देश शामिल हैं जो पूर्ण रूप से या आंशिक रूप से कर्क और मकर रेखा के मध्य स्थित हैं।
- वन सन, वन वर्ल्ड, वन ग्रिड (OSOWOG): यह वैश्विक सहयोग को सुविधाजनक बनाने हेतु एक रूपरेखा पर केंद्रित है, जो परस्पर नवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों (मुख्य रूप से सौर ऊर्जा) के वैश्विक पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण कर उसे साझा करता है।
- राष्ट्रीय सौर मिशन (जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में राष्ट्रीय कार्य योजना का एक हिस्सा)
- सूर्यमित्र कौशल विकास कार्यक्रम: इसका उद्देश्य सौर प्रतिष्ठानों की निगरानी हेतु ग्रामीण युवाओं को कौशल प्रशिक्षण प्रदान करना है।
स्रोत: पी.आई.बी.
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत -श्रीलंका
चर्चा में क्यों?
हाल ही में श्रीलंका में भारत के उच्चायुक्त द्वारा व्यक्त चिंता के बाद श्रीलंका सरकार ने जाफना विश्वविद्यालय (Jaffna University) में एक ध्वस्त स्मारक के पुनर्निर्माण का निर्णय लिया है।
- वर्ष 2009 में लिट्टे और श्रीलंकाई सेना के बीच गृह युद्ध के दौरान मारे गए तमिल नागरिकों को श्रद्धांजलि देने के लिये स्थापित स्मारक के विध्वंस ने भारत-श्रीलंकाई संबंधों में फिर से श्रीलंकाई अल्पसंख्यक तमिलों के अधिकारों के अप्रिय मुद्दों पर ध्यान आकर्षित किया है।
प्रमुख बिंदु:
श्रीलंका में तमिलों के मुद्दे
- नागरिकता दिये जाने से इनकार: श्रीलंकाई तमिलों की समस्या 1950 के दशक से पहले शुरू हो गई थी। वर्ष 1948 में आज़ादी मिलने के बाद श्रीलंकाई सरकार ने महसूस किया कि तमिल लोग श्रीलंकाई न होकर भारतीय वंशावली से संबंधित हैं।
- तमिलों की बहुसंख्यक आबादी को श्रीलंका की नागरिकता से वंचित कर दिया गया, जिसके कारण अधिकांश तमिलों को श्रीलंका के चाय बागानों में गरीबी की स्थिति में रहना पड़ा।
- भाषायी भेदभाव: श्रीलंका में सिंहली और तमिलों के बीच संघर्ष वर्ष 1956 में तब शुरू हुआ जब श्रीलंका के राष्ट्रपति ने सिंहली को आधिकारिक भाषा बनाया और तमिलों के खिलाफ बड़े पैमाने पर भेदभाव किया जाने लगा।
- धार्मिक भेदभाव: 1960 के दशक के दौरान तमिल आबादी के खिलाफ भेदभाव जारी रहा क्योंकि बौद्ध धर्म को राज्य में प्राथमिक स्थान दिया गया था और राज्य द्वारा नियोजित उच्च शिक्षा संस्थानों में की जाने वाली भर्ती में तमिलों की संख्या को सीमित कर दिया गया।
- तीव्र आंदोलन: इस अवधि के दौरान सिंहलियों द्वारा किये गए उत्पीड़न के जवाब में तमिलों ने राजनीतिक व अहिंसक विरोध के माध्यम से आंदोलन को जारी रखा, हालाँकि 1970 के दशक में तमिल अलगाववाद और उग्रवाद के प्रति रुझान बढ़ा जिसने LTTE जैसे आतंकवादी संगठन को जन्म दिया।
- लिबरेशन टाइगर ऑफ तमिल ईलम/ लिट्टे(LTTE): तमिलों और सिंहलियों के बीच जातीय तनाव और संघर्ष बढ़ने के बाद वर्ष 1976 में वेलुपिल्लई प्रभाकरन के नेतृत्व में लिबरेशन टाइगर ऑफ तमिल ईलम/ लिट्टे (Liberation Tiger of Tamil Eelam-LTTE) का गठन किया गया और इसने उत्तरी एवं पूर्वी श्रीलंका, जहाँ अधिकांश तमिलभाषी लोग निवास करते थे, में ‘एक तमिल मातृभूमि’ के लिये प्रचार करना प्रारंभ कर दिया।
- विशेष रूप से सिंहलियों के खिलाफ श्रीलंका में कई आतंकवादी गतिविधियों के साथ ही इसने राजीव गांधी (भारत के पूर्व प्रधानमंत्री) की हत्या को अंजाम दिया।
- लंबे संघर्ष और लाखों लोगों के मारे जाने के बाद वर्ष 2009 में LTTE के साथ गृह युद्ध समाप्त हुआ। भारत ने श्रीलंका के इस गृह युद्ध को ख़त्म करने में सक्रिय भूमिका निभाई और श्रीलंका के संघर्ष को एक राजनीतिक समाधान प्रदान करने के लिये वर्ष 1987 में भारत-श्रीलंका समझौते पर हस्ताक्षर किये।
भारत की चिंता:
- शरणार्थियों का पुनर्वास: श्रीलंकाई गृह युद्ध (2009) से बचकर भारत आए श्रीलंकाई तमिलों की एक बड़ी संख्या तमिलनाडु में शरण लेने की मांग कर रही है। वे लोग श्रीलंका में फिर से निशाना बनाए जाने के डर से वहाँ वापस नहीं लौट रहे हैं। भारत के लिये उनका पुनर्वास करना एक बड़ी चुनौती है।
- तमिलों की अनदेखी: श्रीलंका के साथ अच्छे संबंध बनाए रखने हेतु श्रीलंकाई तमिलों की दुर्दशा को नज़रअंदाज़ करने के लिये भारत सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर इसकी आलोचना की जाती है।
- सामरिक हित बनाम तमिल मुद्दा: अक्सर भारत को अपने पड़ोसी के आर्थिक हितों की रक्षा और हिंद महासागर में चीनी प्रभाव का मुकाबला करने के लिये रणनीतिक मुद्दों पर अल्पसंख्यक तमिलों के अधिकारों के मुद्दों को लेकर समझौता करना पड़ता है।
भारत-श्रीलंका के बीच निम्नलिखित बिंदुओं पर विश्वास बनाए रखना:
- मुद्रा विनिमय समझौता: भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ाने और देश की वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए श्रीलंका के साथ 400 मिलियन अमेरिकी डॉलर का मुद्रा विनिमय समझौता किया था।
- उच्च स्तरीय यात्राएँ: भारत और श्रीलंका के बीच राजनीतिक संबंधों को नियमित अंतराल पर होने वाली उच्च स्तरीय यात्राओं के आदान-प्रदान द्वारा चिह्नित किया गया है।
- आतंकवाद के खिलाफ भारत का समर्थन: गृह युद्ध के दौरान भारत ने आतंकवादी ताकतों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिये श्रीलंका सरकार का समर्थन किया।
- भारत का ‘हाउसिंग प्रोजेक्ट’: यह भारत सरकार की श्रीलंका के विकास में सहायता प्रदान करने हेतु प्रमुख परियोजना है। इसकी आरंभिक प्रतिबद्धता गृह युद्ध से प्रभावित लोगों के साथ-साथ बागान श्रमिकों के लिये 50,000 घरों का निर्माण करना है।
- मछुआरों से संबंधित मुद्दा: दोनों देशों के प्रादेशिक जल क्षेत्र की निकटता को देखते हुए, विशेष रूप से पाक जलडमरूमध्य और मन्नार की खाड़ी में मछुआरों के भटकने की घटनाएँ आम हैं।
- दोनों देशों ने अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा को पार करने वाले मछुआरों की विवादित स्थिति से निपटने के लिये कुछ व्यावहारिक व्यवस्थाओं पर सहमति व्यक्त की है।
- हाल के वर्षों में दोनों देशों के बीच विभिन्न क्षेत्रों में द्विपक्षीय सहयोग में महत्त्वपूर्ण प्रगति देखने को मिली है।
- व्यापार और निवेश के साथ दोनों देशों के बीच अवसंरचना विकास, शिक्षा, संस्कृति तथा रक्षा सहयोग में वृद्धि हुई है।
- दोनों देश अंतर्राष्ट्रीय मामलों के कई महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर व्यापक आपसी समझ साझा करते हैं।
- ध्यातव्य है कि भारत एवं श्रीलंका सार्क (SAARC) और बिम्सटेक (BIMSTEC) के सदस्य हैं और सार्क देशों में भारत का व्यापार श्रीलंका के साथ सबसे अधिक है।
- दिसंबर 1998 में एक अंतर-सरकारी पहल के माध्यम से ‘भारत-श्रीलंका फाउंडेशन’ (India-Sri Lanka Foundation) की स्थापना की गई। इसका उद्देश्य दोनों देशों के बीच वैज्ञानिक, तकनीकी, शैक्षिक, सांस्कृतिक आदि क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा देना है।
- भारत और श्रीलंका के बीच द्विपक्षीय व्यापार लगभग 4.5 बिलियन डॉलर का है, जिसमें भारत द्वारा श्रीलंका को किया गया निर्यात लगभग 3.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर और श्रीलंका से भारत को किया गया निर्यात लगभग 900 मिलियन अमेरिकी डॉलर का रहा।
- दोनों देशों की सेनाओं के बीच संयुक्त सैन्य अभ्यास ‘मित्र शक्ति’ (Mitra Shakti) और संयुक्त नौसैनिक अभ्यास ‘स्लिनेक्स’ (SLINEX) का आयोजन किया जाता है।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय राजव्यवस्था
जाँच में देरी पर CVC के निर्देश
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) ने हाल ही में केंद्र सरकार के सभी मंत्रालयों/विभागों को सतर्कता संबंधी मामलों में अनुशासनात्मक कार्यवाही के विभिन्न चरणों के लिये समयसीमा का सख्ती से पालन करने का निर्देश दिया है, क्योंकि इस प्रकार की देरी से आरोपित अधिकारियों को या तो अनुचित लाभ प्राप्त हो रहा है या फिर उन्हें उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है।
प्रमुख बिंदु
मुद्दा
- केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) ने पहले भी चिंता व्यक्त की है कि आयोग और कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग द्वारा जारी स्पष्ट दिशा-निर्देशों के बावजूद जाँचकर्त्ता निर्धारित समयसीमा का पालन नहीं कर रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप जाँच में अधिक समय लगता है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने भी कुछ विशिष्ट मामलों को छोड़कर किसी भी न्यायालय द्वारा जारी ‘स्टे आदेश’ की अवधि को छह माह तक सीमित कर दिया है।
कारण
- न्यायालय द्वारा जारी किया गया ‘स्टे आदेश’।
- न्यायपालिका के समक्ष लंबित मामले।
- अधिकारी द्वारा सेवा समाप्त किये जाने के बाद से मामला यथावत रखा जाना।
प्रभाव
- अनुचित उदाहरण
- अनुचित देरी के कारण भ्रष्ट लोक सेवकों को अनुचित गतिविधियों में लिप्त होने का अधिक अवसर मिलता है, जिससे अन्य लोक सेवकों के समक्ष एक खराब उदाहरण प्रस्तुत होता है।
- ईमानदार अधिकारियों का हतोत्साहन
- सतर्कता संबंधी मामलों के निपटान में होने वाली देरी के कारण प्रायः उन ईमानदार लोक सेवकों को उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है, जो ऐसे मामलों में शामिल होते हैं।
केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC)
- केंद्रीय सतर्कता आयोग (Central Vigilance Commission-CVC) एक शीर्ष सतर्कता संस्थान है जो किसी भी कार्यकारी प्राधिकारी के नियंत्रण से मुक्त होता है तथा केंद्र सरकार के अंतर्गत सभी सतर्कता गतिविधियों की निगरानी करता है।
- यह केंद्रीय सरकारी संगठनों में विभिन्न प्राधिकारियों को उनके सतर्कता कार्यों की योजना बनाने, उनके निष्पादन, समीक्षा एवं सुधार के संबंध में सलाह भी देता है।
संरचना
- केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) की स्थापना केंद्र सरकार द्वारा वर्ष 1964 में के. संथानम की अध्यक्षता वाली समिति की सिफारिशों के आधार पर की गई थी।
- वर्ष 2003 में आयोग को वैधानिक दर्जा देते हुए संसद द्वारा केंद्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम पारित किया गया।
कार्य
- CVC भ्रष्टाचार या कार्यालय के दुरुपयोग से संबंधित शिकायतें सुनता है और इस दिशा में उपयुक्त कार्रवाई की सिफारिश करता है। निम्नलिखित संस्थाएँ, निकाय या व्यक्ति CVC के पास अपनी शिकायत दर्ज करा सकते हैं:
- केंद्र सरकार
- लोकपाल
- सूचना प्रदाता/मुखबिर/सचेतक (Whistleblower)
- विदित हो कि केंद्रीय सतर्कता आयोग कोई अन्वेषण एजेंसी नहीं है। यह या तो CBI के माध्यम से या सरकारी कार्यालयों में मुख्य सतर्कता अधिकारियों (CVO) के माध्यम से मामले की जाँच/अन्वेषण कराता है।
शासन
- केंद्रीय सतर्कता आयोग के पास स्वयं का सचिवालय, मुख्य तकनीकी परीक्षक खंड (CTE) और विभागीय जाँच आयुक्त खंड (CDI) है। वहीं अन्वेषण कार्य के लिये CVC दो बाहरी स्रोतों- CBI और मुख्य सतर्कता अधिकारियों (CVO) पर निर्भर रहता है।
- संरचना
- केंद्रीय सतर्कता आयोग एक बहु-सदस्यीय आयोग है, जिसमें एक केंद्रीय सतर्कता आयुक्त (अध्यक्ष) और अधिकतम दो सतर्कता आयुक्त (सदस्य) होते हैं।
- केंद्रीय सतर्कता आयुक्त और सतर्कता आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा एक समिति की सिफारिश पर की जाती है, जिसमें प्रधानमंत्री (अध्यक्ष), गृह मंत्री (सदस्य) और लोकसभा में विपक्ष का नेता (सदस्य) शामिल होता है।
- मुख्य सतर्कता अधिकारी (CVO)
- विभिन्न सरकारी विभागों और संगठनों में सतर्कता संबंधी कार्यों का नेतृत्त्व मुख्य सतर्कता अधिकारियों (CVOs) द्वारा किया जाता है और सतर्कता संबंधी मामलों की जाँच से संबंधित आयोग की गतिविधियों का संचालन भी इन्ही अधिकारियों के माध्यम से होता है।
- सभी विभागों/संगठनों में मुख्य सतर्कता अधिकारियों की नियुक्ति आयोग से पूर्व-परामर्श के बाद की जाती है।
- कार्यकाल
- CVO का कार्यकाल 4 वर्ष अथवा 65 वर्ष की आयु (जो भी पहले हो) तक होता है।
- निष्कासन
- केंद्रीय सतर्कता आयुक्त या किसी सतर्कता आयुक्त को राष्ट्रपति के आदेश द्वारा केवल कदाचार साबित होने या असमर्थता की स्थिति में हटाया जा सकता है।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
उत्तर-पूर्व उद्यमिता कोष
चर्चा में क्यों?
हाल ही में पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय (DoNER) ने उत्तर-पूर्व उद्यमिता कोष (North East Venture Fund- NEVF) योजना पर एक अपडेट जारी किया है।
प्रमुख बिंदु
फंड के संबंध में:
- उत्तर-पूर्व उद्यमिता कोष योजना की शुरुआत पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय (DoNER) के सहयोग से उत्तर-पूर्वी विकास वित्त निगम लिमिटेड (NEDFi) द्वारा सितंबर 2017 में की गई थी।
- NEVF पूर्वोत्तर क्षेत्र का पहला और एकमात्र समर्पित उद्यमिता कोष है।
- उधमिता पूंजी, निजी इक्विटी का एक प्रकार है जिसके तहत निवेशकों द्वारा उन स्टार्टअप कंपनियों और छोटे व्यवसायों का वित्तपोषण किया जाता है जिनके बारे में माना जाता है कि उनमें दीर्घकालिक विकास क्षमता है। उधमिता पूंजी की व्यवस्था आमतौर पर प्रतिष्ठित निवेशकों, निवेश बैंकों और किसी भी अन्य वित्तीय संस्थानों द्वारा की जाती है।
- उत्तर-पूर्व उद्यमिता कोष की स्थापना 100 करोड़ रुपए की शुरुआती धनराशि के साथ की गई थी।
- उद्देश्य:
- इसका उद्देश्य पूर्वोत्तर क्षेत्र में व्यावसायिक गतिविधियों और कौशल विकास को बढ़ावा देना है।
- इसके अलावा नए उद्यमियों को संसाधन प्रदान करने के उद्देश्य से स्टार्ट-अप और नए व्यावसायिक अवसरों में निवेश करना है।
- उत्तर-पूर्व उद्यमिता कोष का मुख्य ध्यान ज़्यादातर खाद्य प्रसंस्करण, हेल्थ केयर, पर्यटन, सेवाओं के पृथक्करण, आईटी आदि के क्षेत्र में शामिल उद्यमों पर है।
- धन की सीमा:
- इस उद्यमिता कोष योजना में पाँच से दस साल की लंबी अवधि वाली समय-सीमा के साथ निवेश की राशि 25 लाख रुपए से लेकर10 करोड़ रुपए के बीच होती है।
पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकास के लिये अन्य पहलें:
- उत्तर-पूर्व ग्रामीण आजीविका परियोजना (NELRP):
- इसकी शुरुआत वर्ष 2012 में की गई थी। NERLP एक विश्व बैंक सहायता प्राप्त, बहु-राज्य परियोजना है जो पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय (DoNER) के अधीन है।
- इस परियोजना को मिज़ोरम, नगालैंड, त्रिपुरा तथा सिक्किम के 11 ज़िलों में लागू किया गया था।
- इसका उद्देश्य चार पूर्वोत्तर राज्यों के ग्रामीण इलाकों में महिलाओं, बेरोज़गार युवकों और वंचितों की आजीविका में सुधार लाना है।
- इस परियोजना में मुख्य रूप से सामाजिक सशक्तीकरण, आर्थिक सशक्तीकरण, साझेदारी विकास परियोजना प्रबंधन तथा आजीविका एवं मूल्य शृंखला विकास पर ध्यान दिया गया है।
- उत्तर-पूर्वी क्षेत्र विज़न 2020 दस्तावेज़ (North Eastern Region Vision 2020 Document) उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के विकास के लिये एक व्यापक रूपरेखा प्रदान करता है।
- उत्तर-पूर्व क्षेत्र में विज्ञान और प्रौद्योगिकी हस्तक्षेप (STINER):
- STINER का उद्देश्य शैक्षिक, वैज्ञानिक और अनुसंधान संस्थानों के माध्यम से विकसित प्रासंगिक प्रौद्योगिकियों को कारीगरों और किसानों खासकर महिलाओं तक पहुँचाना है।
- उत्तर-पूर्वी क्षेत्र विद्युत प्रणाली सुधार परियोजना (NERPSIP):
- इस परियोजना को दिसंबर 2014 में विद्युत मंत्रालय की एक केंद्रीय क्षेत्रक योजना के रूप में मंज़ूरी प्रदान की गई थी।
- इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के समग्र आर्थिक विकास को बढ़ावा देना और इस क्षेत्र में अंतर-राज्यीय ट्रांसमिशन एवं वितरण संरचना को मज़बूत बनाना है।
- डेस्टिनेशन नॉर्थ ईस्ट फेस्टिवल (Destination North East festival):
- इस कार्यक्रम का उद्देश्य पूर्वोत्तर भारत का शेष भारत के साथ संपर्क एवं संबंध स्थापित करना है। यह कार्यक्रम मुख्य रूप से पर्यटन पर केंद्रित है। इस कार्यक्रम में पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय, पूर्वोत्तर परिषद, उत्तर-पूर्वी क्षेत्र सामुदायिक संसाधन प्रबंधन परियोजना (NERCORMP) और कृषि विकास के लिये अंतर्राष्ट्रीय कोष (IFAD) संयुक्त रूप से कार्य कर रहे हैं।
स्रोत: PIB
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत-नेपाल संयुक्त आयोग की बैठक
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत-नेपाल संयुक्त आयोग (India-Nepal Joint Commission) की छठी बैठक का आयोजन किया गया, जिसमें नेपाल ने भारत के साथ कालापानी सीमा विवाद के मुद्दे को उठाया। इस बैठक के दौरान दोनों पक्षों ने बिजली, तेल, गैस, जल संसाधन, क्षमता निर्माण और पर्यटन जैसे विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर चर्चा की।
- भारत ने संयुक्त आयोग में सीमा विवाद के मुद्दे पर चर्चा से स्वयं को दूर रखा क्योंकि सीमा विवादों पर चर्चा के लिये दोनों देशों के बीच पहले से ही एक समर्पित विदेश सचिव स्तरीय तंत्र मौजूद है।
प्रमुख बिंदु:
- इस बैठक के दौरान COVID-19 महामारी से निपटने के लिये नेपाल की वैक्सीन ज़रूरत के बारे में चर्चा की गई, क्योंकि नेपाल द्वारा पुणे स्थित सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की कोवीशील्ड वैक्सीन को मंज़ूरी दी जा चुकी है।
- दोनों देशों के प्रतिनिधियों ने विकास साझेदारी की समीक्षा की और बीरगंज तथा बिराटनगर (नेपाल) में एकीकृत चेक पोस्ट (ICP) के फायदे पर चर्चा की। इन चौकियों या चेक पोस्ट्स ने दोनों देशों के बीच लोगों के निर्बाध आवागमन और व्यापार संचालन में सहायता की है।
- तीसरे और चौथे ICP के विकास का कार्य क्रमशः नेपालगंज और भैरहवा में शुरू किया जाना है।
- भारत द्वारा अनुदान सहायता के माध्यम से नेपाल में 'पशुपतिनाथ रिवरफ्रंट डेवलपमेंट’ और पाटन दरबार में ‘भंडारखाल गार्डन रेस्टोरेशन’ नामक दो सांस्कृतिक विरासत परियोजनाओं का निर्माण किया जाएगा।
- इस मौके पर नेपाल के विदेश मंत्री ने 'विश्व मामलों की भारतीय परिषद’ (ICWA) को संबोधित किया।
- 'विश्व मामलों की भारतीय परिषद’ की स्थापना वर्ष 1943 में एक थिंक टैंक के रूप में हुई थी। यह विशेष रूप से अंतर्राष्ट्रीय संबंधों और विदेशी मामलों के अध्ययन के लिये समर्पित है। भारत का उपराष्ट्रपति ICWA का पदेन अध्यक्ष है।
भारत-नेपाल संबंध:
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
- नेपाल, भारत का एक महत्त्वपूर्ण पड़ोसी है और यह सदियों से चले आ रहे भौगोलिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और आर्थिक संबंधों के कारण भारत की विदेश नीति में विशेष महत्त्व रखता है।
- भारत और नेपाल हिंदू तथा बौद्ध धर्म के संदर्भ में कई समानताएँ साझा करते हैं, जैसे कि भगवान बुद्ध का जन्मस्थान लुंबिनी वर्तमान में नेपाल में स्थित है।
- दोनों देश न सिर्फ एक खुली सीमा और लोगों की निर्बाध आवाजाही को साझा करते हैं, बल्कि उनके बीच विवाह और पारिवारिक संबंधों के माध्यम से घनिष्ठ संबंध भी हैं, जिसे 'रोटी-बेटी के रिश्ते' के रूप में जाना जाता है।
- वर्ष 1950 की भारत-नेपाल शांति और मित्रता संधि ने भारत और नेपाल के बीच मौजूद विशेष संबंधों की आधारशिला रखी।
- भारत के संदर्भ में भारत-नेपाल संबंधों के महत्त्व को दो अलग-अलग स्तरों पर समझा जा सकता है: a. भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये इसका रणनीतिक महत्त्व और b. अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में भारत की भूमिका में इसका महत्त्व।
- नेपाल से निकलने वाली नदियाँ भारत की बारहमासी नदी प्रणालियों में महत्त्वपूर्ण योगदान (पारिस्थितिकी और जलविद्युत क्षमता के संदर्भ में) देती हैं।
व्यापार और आर्थिक संबंध:
- भारत, नेपाल का सबसे बड़ा व्यापार साझेदार होने के साथ विदेशी निवेश का सबसे बड़ा स्रोत है, इसके अतिरिक्त यह नेपाल के लगभग एक-तिहाई व्यापार के लिये पारगमन सुविधा प्रदान करता है।
संपर्क:
- नेपाल एक लैंडलॉक देश है और यह भारत से तीन तरफ से घिरा हुआ है, हालाँकि इसकी एक सीमा तिब्बत की ओर खुलती है, परंतु वहाँ वाहनों की पहुँच बहुत ही सीमित है।
- भारत-नेपाल द्वारा दोनों देशों के लोगों के बीच संपर्क को मज़बूत करने, आर्थिक प्रगति और विकास को बढ़ावा देने के लिये विभिन्न कनेक्टिविटी कार्यक्रमों की शुरुआत की गई है।
- काठमांडू (नेपाल) और रक्सौल (भारत) को इलेक्ट्रिक रेल ट्रैक के माध्यम से जोड़ने के लिये दोनों देशों की सरकारों के बीच एक ‘समझौता ज्ञापन’ (MoU) पर हस्ताक्षर किये गए हैं।
- भारत द्वारा व्यापार और पारगमन व्यवस्था के ढाँचे के तहत अंतर्देशीय जलमार्ग के विकास पर विचार किया जा रहा है, जो नेपाल को समुद्र तक अतिरिक्त पहुँच प्रदान करेगा इसे भारत द्वारा ‘लिंकिंग सागरमाथा (माउंट एवरेस्ट) विथ सागर (हिंद महासागर)’ [linking Sagarmatha (Mt. Everest) with Sagar (Indian Ocean)] की संज्ञा दी गई है।
रक्षा सहयोग:
- द्विपक्षीय रक्षा सहयोग में उपकरण और प्रशिक्षण के प्रावधान के माध्यम से नेपाली सेना के आधुनिकीकरण में सहायता प्रदान करना शामिल है।
- भारतीय सेना के गोरखा रेजीमेंट में आंशिक रूप नेपाल के पहाड़ी ज़िलों से भर्ती किये गए युवाओं को शामिल किया जाता है।
- वर्ष 2011 से भारत प्रतिवर्ष नेपाल के साथ एक संयुक्त सैन्य अभ्यास का आयोजन करता है जिसे सूर्य किरण के नाम से जाना जाता है।
सांकृतिक संबंध:
- कला, संस्कृति, शिक्षा तथा मीडिया के क्षेत्र में भारत और नेपाल के बीच लोगों के बीच संपर्क को बढ़ावा देने के लिये नेपाल के विभिन्न स्थानीय निकायों के साथ कई पहलों की शुरुआत की गई है।
- भारत ने नेपाल के साथ सांस्कृतिक आदान-प्रदान, ज्ञान और विशेषज्ञता को साझा करने एवं लोगों के बीच संपर्क को बढ़ावा देने के लिये तीन ‘सिस्टर सिटी समझौतों’ (Sister City Agreements) पर हस्ताक्षर किये हैं। ये हैं- काठमांडू-वाराणसी, लुम्बिनी-बोधगया और जनकपुर-अयोध्या।
मानवीय सहायता:
- नेपाल एक संवेदनशील पारिस्थितिक क्षेत्र में आता है जहाँ भूकंप और बाढ़ जैसी आपदाओं की प्रवणता देखी जाती है, साथ ही इन आपदाओं के कारण जीवन और धन दोनों की भारी क्षति होती है, जिससे यह भारत से मानवीय सहायता प्राप्तकर्त्ता/लाभार्थी सबसे बड़ा देश बना हुआ है।
बहुपक्षीय साझेदारी:
- भारत और नेपाल कई बहुपक्षीय मंचों को साझा करते हैं, जैसे- BBIN (बांग्लादेश, भूटान, भारत और नेपाल), बिम्सटेक (BIMSTEC), गुट निरपेक्ष आंदोलन (NAM) और दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (The South Asian Association for Regional Cooperation-SAARC) आदि।
विवाद और चुनौतियाँ:
- चीन का हस्तक्षेप:
- एक Landlocked देश होने के नाते नेपाल वर्षों तक भारतीय आयात पर निर्भर रहा और भारत ने नेपाल के मामलों में सक्रिय भूमिका निभाई।
- हालाँकि हाल के वर्षों में नेपाल भारत के प्रभाव से दूर हुआ है तथा चीन ने धीरे-धीरे निवेश, सहायता व ऋण के माध्यम से इस रिक्त स्थान को भरने का प्रयास किया है।
- चीन, नेपाल को अपने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) में एक प्रमुख भागीदार मानता है और वैश्विक व्यापार को बढ़ावा देने के लिये अपनी व्यापक योजनाओं के तहत नेपाल के बुनियादी ढाँचे में निवेश करना चाहता है।
- नेपाल और चीन के बीच द्विपक्षीय सहयोग में हो रही वृद्धि भारत तथा चीन के बीच नेपाल की एक बफर राज्य की भूमिका को कमज़ोर कर सकता है।
- वहीं दूसरी ओर चीन नेपाल में रह रहे तिब्बतियों में चीन विरोधी विचारधारा को पनपने से बचना चाहता है।
- सीमा विवाद:
- यह मुद्दा नवंबर 2019 में उस समय भड़क उठा जब नेपाल द्वारा अपने देश का एक नया राजनीतिक मानचित्र जारी किया गया, जिसमें उत्तराखंड के कालापानी, लिंपियाधुरा और लिपुलेख को नेपाल के अधिकार क्षेत्र का हिस्सा बताया गया। इस मानचित्र में सुस्ता (पश्चिम चंपारण ज़िला, बिहार) क्षेत्र को भी देखा जा सकता है।
आगे की राह:
- भारत को 'सीमा-पार जल विवाद के मामले में अंतर्राष्ट्रीय कानून' के तहत नेपाल के साथ सीमा विवाद को सुलझाने के लिये कूटनीतिक रूप से बातचीत करनी चाहिये। इस संदर्भ में भारत और बांग्लादेश के बीच हुए सीमा विवाद समाधान को एक मॉडल के रूप में लिया जा सकता है।
- भारत को नागरिक संपर्क, राजनयिक और राजनीतिक संबंधों के माध्यम से नेपाल के साथ अधिक सक्रिय रूप से जुड़ना चाहिये।
- किसी छोटे मतभेद को विवाद में नहीं बदलने देना चाहिये बल्कि दोनों देशों को शांति से ऐसे मुद्दों के समाधान हेतु मिलकर कार्य करना चाहिये।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
बैड बैंक
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India) के गवर्नर एक बैड बैंक (Bad Bank) बनाने के प्रस्ताव पर विचार करने के लिये सहमत हुए हैं।
प्रमुख बिंदु
बैड बैंक के विषय में:
- बैड बैंक एक आर्थिक अवधारणा है जिसके अंतर्गत आर्थिक संकट के समय घाटे में चल रहे बैंकों द्वारा अपनी देयताओं को एक नए बैंक को स्थानांतरित कर दिया जाता है।
- तकनीकी रूप से बैड बैंक एक परिसंपत्ति पुनर्गठन कंपनी (Asset Reconstruction Company- ARC) या परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनी (Asset Management Company- AMC) है जो वाणिज्यिक बैंकों के बैड ऋणों को अपने नियंत्रण में लेकर उनका प्रबंधन और समय के साथ धन की वसूली करती है।
- बैड बैंक ऋण देने और जमा स्वीकार करने की प्रकिया का भाग नहीं होता है, लेकिन वाणिज्यिक बैंकों की बैलेंस शीट ठीक करने में मदद करता है।
- अमेरिका स्थित मेल्लोन बैंक (Mellon Bank) द्वारा वर्ष 1988 में पहला बैड बैंक बनाया गया था, जिसके बाद स्वीडन, फिनलैंड, फ्राँस और जर्मनी सहित अन्य देशों ने इस अवधारणा में अपनाया।
- अमेरिका में इसके लिये तनावग्रस्त परिसंपत्ति राहत कार्यक्रम (Troubled Asset Relief Programme- TARP) व्यवस्था की गई है।
- आयरलैंड में वित्तीय संकट से उभरने के लिये वर्ष 2009 में राष्ट्रीय परिसंपत्ति प्रबंधन एजेंसी (National Asset Management Agency) की स्थापना की गई थी।
बैड बैंक की भारत में ज़रूरत:
- आर्थिक सुधार हेतु:
- RBI ने आशंका जताई है कि बैंकिंग क्षेत्र में महामारी के कारण बैड ऋणों में वृद्धि हो सकती है।
- सरकारी सहायता:
- निजी उधारदाताओं द्वारा वित्तपोषित और सरकार द्वारा समर्थित व्यावसायिक रूप से संचालित बैड बैंक, गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (Non-Performing Asset) से निपटने के लिये एक प्रभावी तंत्र हो सकता है।
- इस बैंक में सरकार की भागीदारी को बैड ऋण से निपटने की प्रक्रिया को तेज करने के साधन के रूप में देखा जाता है।
- बढ़ता NPA:
- वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (Financial Stability Report): RBI ने आपनी इस रिपोर्ट में उल्लेख किया है कि बैंकिंग क्षेत्र का सकल NPA सितंबर 2020 की तुलना में 7.5% से बढ़कर सितंबर 2021 में 13.5% तक हो सकता है।
- के वी कामथ कमेटी: भारत के कॉरपोरेट क्षेत्र में कोविड-19 महामारी के बाद 15.52 लाख करोड़ रुपए के कर्ज़ के कारण तनाव की स्थिति देखी जा रही है, हालाँकि इस क्षेत्र पर महामारी के पहले से ही 22.20 लाख करोड़ रुपए का कर्ज़ था।
- समिति ने कहा कि खुदरा व्यापार, थोक व्यापार, सड़क और वस्त्र जैसे क्षेत्रों में कंपनियों को तनाव का सामना करना पड़ रहा है।
- कोविड महामारी से पहले से ही तनाव ग्रस्त क्षेत्रों में गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (Non-Banking Financial Company), बिजली, स्टील, रियल एस्टेट और निर्माण शामिल हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय उदाहरण: वित्तीय प्रणाली में तनाव की समस्या से निपटने के लिये कई अन्य देशों ने संस्थागत तंत्र की स्थापना की थी।
चुनौतियाँ:
- गतिशील पूंजी:
- महामारी-ग्रस्त अर्थव्यवस्था में बैड संपत्ति के लिये खरीदारों को ढूँढ़ना एक चुनौती होगी, खासकर जब सरकारें राजकोषीय घाटे के मुद्दे का सामना कर रही हैं।
- अंतर्निहित मुद्दे की अनदेखी:
- शासनिक सुधारों के बिना सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक (कुल NPA में से 86% के लिये ज़िम्मेदार हैं) अतीत की तरह व्यवसाय कर सकते हैं और बैड ऋणों को समाप्त कर सकते हैं।
- बैड बैंक का विचार सरकारी जेब (सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों) से दूसरे (बैड बैंक) को ऋण स्थानांतरित करने जैसा है।
- पुनर्पूंजीकरण के माध्यम से निपटने का प्रावधान:
- केंद्र सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में बैंकों में पुनर्पूंजीकरण के माध्यम से लगभग 2.6 लाख करोड़ रुपए का निवेश किया है।
- बैड बैंक की अवधारणा का विरोध करने वाले लोगों का कहना है कि सरकार द्वारा बैंकों की बैलेंस शीट को ठीक करने के लिये पुनर्पूंजीकरण की व्यवस्था की गई है, इसलिये बैड बैंक की आवश्यकता नहीं है।
- बाज़ार से संबंधित मुद्दे:
- वाणिज्यिक बैंकों से बैड बैंक में बैड संपत्ति का स्थानांतरण बाज़ार द्वारा निर्धारित नहीं किया जाएगा।
- नैतिक जोखिम:
- RBI के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कहा था कि बैड बैंक NPA को कम करने की प्रतिबद्धता के बिना एक नैतिक खतरा पैदा कर सकता है और बैंकों द्वारा दिये जाने वाले उधार को जारी रख सकता है।
पूर्व के प्रस्ताव:
- भारतीय बैंकों के संघ (Indian Banks’ Association) के नेतृत्व में बैंकिंग क्षेत्र ने सरकार और बैंकों से निष्पक्ष (Equity) योगदान का प्रस्ताव करते हुए NPA समस्या के समाधान के लिये एक बैड बैंक स्थापित करने का प्रस्ताव प्रस्तुत किया था।
- आर्थिक सर्वेक्षण, 2017 में भारतीय बैंकों से उच्च मूल्य के NPA खरीदने के लिये सार्वजनिक क्षेत्र की परिसंपत्ति पुनर्वास एजेंसी (Public Sector Asset Rehabilitation Agency- PARA) का सुझाव दिया गया है।
आगे की राह
- समग्र सुधार:
- जब तक सार्वजनिक क्षेत्र का बैंक प्रबंधन राजनेताओं और नौकरशाहों के प्रति निष्ठावान रहेगा तब तक उनके व्यवसाय में घाटे की स्थिति बनी रहेगी और उनके द्वारा मितव्ययी (Prudential) मानदंडों के आधार पर उधार दिया जाना जारी रहेगा। इसलिये एक बैड बैंक की स्थापना के बारे में बहस को बैंकिंग क्षेत्र में समग्र सुधारों के उचित कार्यान्वयन से पहले किया जाना चाहिये, जैसा कि वर्ष 2015 में शुरू की गई इंद्र धनुष (Indra Dhanush) योजना के तहत परिकल्पित था।
- टेलर मेड अप्रोच:
- यह एक चुनौती है जिसे कई मोर्चों पर सुधार की आवश्यकता है। सिर्फ बैड बैंक की स्थापना कर देना सुधार के लिये पर्याप्त नहीं हो सकता है। भारत के विभिन्न हिस्सों में मौजूद बैड लोन की समस्या का समाधान टेलर मेड अप्रोच (Tailor Made Approach) के माध्यम से करना और बैड बैंक का उपयोग अन्य सभी तरीकों के असफल होने पर ही अंतिम उपाय के रूप में किया जाना चाहिये।