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डेली न्यूज़

  • 19 Mar, 2022
  • 39 min read
शासन व्यवस्था

पीएमएफबीवाई से संबंधित मुद्दे

प्रिलिम्स के लिये:

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, PMFBY से बाहर निकलने वाले राज्य।

मेन्स के लिये:

सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, किसानों की सहायता में ई-प्रौद्योगिकी, PMFBY से संबंधित मुद्दे, प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष सब्सिडी।

चर्चा में क्यों?

महाराष्ट्र द्वारा प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) से बाहर निकलने का संकेत दिया गया है, उसने कहा है कि यदि उसके द्वारा सुझाए गए परिवर्तनों पर ध्यान नहीं दिया गया तो वह योजना से बाहर हो सकता है।

  • गुजरात, बिहार, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और झारखंड कम दावा अनुपात (Low Claim Ratio) तथा वित्तीय बाधाओं के कारण पहले ही इस योजना से बाहर हो गए हैं।

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY): 

  • यह केंद्र-राज्य की एक संयुक्त योजना है, जिसकी शुरुआत वर्ष 2016-17 के खरीफ सीज़न के दौरान की गई थी।
  • इसका उद्देश्य किसानों को फसल के नुकसान से बचाना है।
  • केंद्र और राज्य सरकारें प्रीमियम राशि का 95% से अधिक भुगतान करती हैं, जबकि किसान प्रीमियम राशि का 1.5-5% वहन करते हैं।
  • चूँकि प्रौद्योगिकी का व्यापक उपयोग किसानों के दावों को एक निर्धारित समयावधि के भीतर निपटाने के लिये किया जाता है, इसलिये किसानों को फसल के नुकसान की रिपोर्ट ऑनलाइन दर्ज़ करने की आवश्यकता होती है और मुआवज़े की राशि सीधे उनके खातों में भुगतान से पहले बीमा कंपनियों द्वारा मान्य होती है।
  • वर्ष 2020 से पहले संस्थागत वित्त प्राप्त करने वाले किसानों के लिये यह योजना अनिवार्य थी, लेकिन इसमें परिवर्तन कर इसे सभी किसानों के लिये स्वैच्छिक बना दिया गया।

PMFBY से संबंधित मुद्दे:

  • राज्यों की वित्तीय बाधाएँ: राज्य सरकारों की वित्तीय बाधाएँ तथा सामान्य मौसम के दौरान कम दावा अनुपात इन राज्यों द्वारा योजना को लागू न करने के प्रमुख कारण हैं।
    • राज्य ऐसी स्थिति से निपटने में असमर्थ हैं जहाँ बीमा कंपनियाँ किसानों को राज्यों और केंद्र से एकत्र किये गए प्रीमियम दर से कम मुआवज़ा देती हैं।
    • राज्य सरकारें समय पर धनराशि जारी करने में विफल रहीं जिसके कारण बीमा क्षतिपूर्ति जारी करने में देरी हुई है।
    • इससे किसान समुदाय को समय पर वित्तीय सहायता प्रदान करने की योजना का मूल उद्देश्य ही विफल हो जाता है।
  • दावा निपटान संबंधी मुद्दे: कई किसान मुआवज़े के स्तर और निपटान में देरी दोनों से असंतुष्ट हैं।
    • ऐसे में बीमा कंपनियों की भूमिका और शक्ति अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है क्योकि कई मामलों में उन्होंने स्थानीय आपदा के कारण हुए नुकसान की जांँच नहीं की जिस वजह से दावों का भुगतान नहीं किया।
  • कार्यान्वयन संबंधी मुद्दे: बीमा कंपनियों द्वारा उन समूहों के लिये बोली लगाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई गई है जो फसल के नुकसान से प्रभावित हो सकते हैं।
    • बीमा कंपनियाँ अपनी प्रकृति के अनुसार यह कोशिश करती हैं कि जब फसल कम खराब हो तो मुनाफा कमाया जाए।
  • पहचान संबंधी मुद्दे: वर्तमान में PMFBY योजना बड़े और छोटे किसानों के बीच अंतर नहीं करती है तथा इस प्रकार पहचान के मुद्दे को भी सामने लाती है। छोटे किसान सर्वाधिक कमज़ोर वर्ग है।

महाराष्ट्र सरकार द्वारा प्रस्तावित बदलाव:

  • प्रीमियम में शेयर/हिस्सेदारी:
    • महाराष्ट्र सरकार द्वारा गैर-भुगतान या सामान्य वर्ष के दौरान बीमा कंपनियों से एकत्र किये गए प्रीमियम में हिस्सेदारी का प्रस्ताव किया है।
  • बीड मॉडल:
    • राज्य सरकार द्वारा बीड मॉडल (Beed Model) का आह्वान किया गया जिसे पहली बार वर्ष 2020 की खरीफ फसलों के दौरान प्रयोग किया गया था।
    • इस मॉडल के तहत बीमा कंपनियांँ एकत्र किये गए प्रीमियम के 110% की सीमा तक कवर प्रदान करती हैं।
      • यदि मुआवज़े की राशि इससे अधिक हो जाती है तो राज्य सरकार द्वारा इसे पूरा किया जाएगा।
    • यदि मुआवज़े की राशि एकत्र किये गए प्रीमियम से कम है, तो कंपनी राज्य सरकार को धनराशि का 80% वापस कर देगी और 20% अपने प्रशासनिक खर्चों के लिये रखेगी।
      • मॉडल को सरकार द्वारा संचालित कृषि बीमा कंपनी (Government-Run Agricultural Insurance Company) द्वारा लागू किया गया था।
  • बीमा कंपनियों के लिये जवाबदेही:
    • राज्य द्वारा बीमा कंपनियों से और अधिक जवाबदेही सुनिश्चित करने की मांग की गई है। 
    • किसान नेताओं ने योजना को लागू करते समय आवश्यक बुनियादी ढांँचे की स्थापना और मानव हस्तक्षेप को खत्म करने में मदद हेतु प्रौद्योगिकी के उपयोग के लिये कहा है।

आगे की राह:

  • बीमा कंपनियों को एक क्लस्टर के लिये करीब तीन साल की बोली लगानी चाहिये ताकि उन्हें अच्छे और बुरे दोनों वर्षों को संभालने का बेहतर मौका मिल सके। खरीफ/रबी सीजन की शुरुआत से पहले बोलियांँ बंद कर दी जानी चाहिये।
  • इसके तहत सब्सिडी देने के बजाय राज्य सरकार को उस धनराशि को नए बीमा मॉडल में निवेश करना चाहिये।
  • बीड मॉडल से राज्य पर सब्सिडी का बोझ कम होगा लेकिन यह देखना होगा कि क्या इससे किसानों को फायदा हो रहा है।

विगत वर्षों के प्रश्न: 

प्रश्न: ‘’आम आदमी बीमा योजना" के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2011)

  1. योजना के तहत बीमा का पात्र सदस्य ग्रामीण भूमिहीन परिवार का मुखिया या परिवार का कमाऊ सदस्य होना चाहिये।
  2. बीमा के पात्र सदस्य की आयु 30 से 65 वर्ष के बीच होनी चाहिये।
  3. बीमित व्यक्ति के अधिकतम दो बच्चों हेतु मुफ्त छात्रवृत्ति का प्रावधान है जो 9वीं से 12वीं कक्षा के छात्र हों।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 
(b) केवल 2 और 3 
(c)  केवल 1 और 3  
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 


शासन व्यवस्था

राष्ट्रीय पर्यटन नीति मसौदा

प्रिलिम्स के लिये:

भारत में पर्यटन, पर्यटन से संबंधित योजनाएँ, राष्ट्रीय पर्यटन नीति मसौदा।

मेन्स के लिये:

सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, भारत में पर्यटन का महत्त्व और चुनौतियाँ।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सरकार ने ग्रीन और डिजिटल पर्यटन पर ध्यान केंद्रित करते हुए राष्ट्रीय पर्यटन नीति का मसौदा तैयार किया है और इसे अनुमोदन के लिये भेजे जाने से पूर्व उद्योग भागीदारों, राज्य सरकारों, अन्य संबद्ध मंत्रालयों को प्रतिक्रिया के लिये भेजा गया है।

  • इससे पहले पर्यटन मंत्रालय ने भारत में ग्रामीण पर्यटन के विकास और MICE उद्योग को बढ़ावा देने हेतु चिकित्सा एवं कल्याण पर्यटन को बढ़ावा देने के लिये रोडमैप के साथ तीन मसौदा रणनीतियाँ तैयार की हैं।

मसौदा नीति संबंधी प्रमुख बिंदु:

  • पर्यटन सेक्टर को उद्योग का दर्जा:
    • इस मसौदे के तहत पर्यटन क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा देने हेतु इस क्षेत्र को उद्योग का दर्जा देने के साथ-साथ होटलों को औपचारिक रूप से बुनियादी अवसंरचना का दर्जा दिये जाने का उल्लेख है।
  • पाँच प्रमुख क्षेत्र:
    • अगले 10 वर्षों में पाँच प्रमुख महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों पर ध्यान दिया जाएगा, जिसमें हरित पर्यटन, डिजिटल पर्यटन, गंतव्य प्रबंधन, आतिथ्य क्षेत्र को कुशल बनाना और सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (MSMEs) से संबंधित पर्यटन का समर्थन करना शामिल है।
  • राहत उपाय और कराधान विराम:
    • पर्यटन उद्योग, जो पिछले दो वर्षों में महामारी के कारण सबसे अधिक प्रभावित रहा है, ने राहत उपायों के साथ-साथ कराधान विराम के लिये सरकारी प्रतिनिधियों को कई अभ्यावेदन भेजे थे।
  • फ्रेमवर्क शर्तें प्रदान करना:
    • यह मसौदा नीति विशिष्ट परिचालन मुद्दों को संबोधित नहीं करता है, हालाँकि इसमें विशेष रूप से महामारी के मद्देनज़र इस क्षेत्र की मदद करने के लिये फ्रेमवर्क प्रस्तुत किया गया है।
    • विदेशी एवं स्थानीय पर्यटकों के अनुभव को बेहतर बनाने के लिये समग्र मिशन एवं विज़न तैयार किया जा रहा है।

भारत में पर्यटन परिदृश्य: 

  • परिचय:
    • भारत ने अतीत में अपनी समृद्धि के कारण बहुत से यात्रियों को आकर्षित किया। चीनी बौद्ध धर्मनिष्ठ ह्वेनसांग की यात्रा इसका एक प्रमुख उदाहरण है।
    • तीर्थयात्रा को तब बढ़ावा मिला जब अशोक और हर्ष जैसे सम्राटों ने तीर्थयात्रियों के लिये विश्राम गृह बनाना शुरू किया।
    • अर्थशास्त्र पुस्तक के तहत राज्य के लिये यात्रा बुनियादी अवसंरचना के महत्त्व को इंगित किया गया है।
    • स्वतंत्रता के बाद पर्यटन लगातार विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं (FYP) का हिस्सा बना रहा।
      • पर्यटन के विभिन्न रूपों जैसे- व्यापार पर्यटन, स्वास्थ्य पर्यटन और वन्यजीव पर्यटन आदि को भारत में सातवीं पंचवर्षीय योजना के बाद शुरू किया गया था।
  • स्थिति:
    • विश्व यात्रा और पर्यटन परिषद की 2019 की रिपोर्ट में विश्व जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) में योगदान के मामले में भारत के पर्यटन क्षेत्र को 10वें स्थान पर रखा गया है।
      • वर्ष 2019 के दौरान सकल घरेलू उत्पाद में यात्रा और पर्यटन का योगदान कुल अर्थव्यवस्था में 13,68,100 करोड़ रुपए का था जो कि सकल घरेलू उत्पाद का 6.8% था (194.30 अरब अमेरिकी डॉलर)।
    • भारत में वर्ष 2021 तक 'विश्व विरासत सूची' के तहत 40 साइट्स सूचीबद्ध हैं। इस मामले में विश्व में भारत का छठा स्थान (32 सांस्कृतिक, 7 प्राकृतिक और 1 मिश्रित स्थल) है।
    • वित्त वर्ष 2020 में भारत में पर्यटन क्षेत्र में 39 मिलियन नौकरियाँ थीं जिनकी देश में कुल रोज़गार में 8.0% हिस्सेदारी थी। वर्ष 2029 तक यह आंँकड़ा लगभग 53 मिलियन नौकरियों तक पँहुचने की उम्मीद है।
  • महत्त्व:
    • सेवा क्षेत्र: 
      • यह सेवा क्षेत्र को गति प्रदान करता है। पर्यटन उद्योग के विकास के साथ एयरलाइन, होटल भूतल परिवहन आदि जैसे सेवा क्षेत्र में लगे व्यवसायों की संख्या में बढ़ोतरी होती है।
    • विदेशी विनिमय:
      • भारत में आने वाले विदेशी यात्रियों से विदेशी मुद्रा की प्राप्ति होती है।
      • वर्ष 2016 से 2019 तक विदेशी मुद्रा आय में 7% की CAGR की बढ़ोतरी हुई लेकिन वर्ष 2020 में COVID-19 महामारी के कारण इसमें गिरावट आई।
    • राष्ट्रीय विरासत का संरक्षण:
      • पर्यटन साइट्स के महत्त्व और उन्हें संरक्षित करने की आवश्यकता पर ध्यान केंद्रित करके राष्ट्रीय विरासत एवं पर्यावरण के संरक्षण में मदद मिल सकती है।
    • सांस्कृतिक गौरव का नवीनीकरण:
      • वैश्विक स्तर पर पर्यटन स्थलों की सराहना होने पर भारतीय निवासियों में गर्व की भावना पैदा होती है।
    • ढांँचागत विकास:
      • आजकल यात्रियों को किसी भी समस्या का सामना न करना पड़े, इसके लिये अनेक पर्यटन स्थलों पर बहु-उपयोगी अवसंरचना विकसित की जा रही है।
    • मान्यता:
      • यह भारतीय पर्यटन को वैश्विक मानचित्र पर लाने, प्रशंसा अर्जित करने, मान्यता प्राप्त करने और सांस्कृतिक आदान-प्रदान की पहल करने में मदद करता है।
    • सांस्कृतिक कूटनीति को बढ़ावा:
      • एक सॉफ्ट पावर के रूप में पर्यटन, सांस्कृतिक कूटनीति को बढ़ावा देने में मदद करता है, लोगों के मध्य जुड़ाव से भारत और अन्य देशों के बीच दोस्ती व सहयोग को बढ़ावा देता है।
  • चुनौतियांँ:
    • बुनियादी ढांँचे में कमी:
      • भारत में पर्यटकों को अभी भी कई बुनियादी सुविधाओं से संबंधित समस्याओं का सामना करना पड़ता है जैसे-खराब सड़कें, पानी, सीवर, होटल और दूरसंचार आदि।
    • बचाव और सुरक्षा:
      • पर्यटकों, विशेषकर विदेशी पर्यटकों की सुरक्षा पर्यटन के विकास में एक बड़ी बाधा है। विदेशी नागरिकों पर हमले अन्य देशों के पर्यटकों का भारत में स्वागत करने की क्षमता पर प्रश्नचिह्न लगाता है।
    • कुशल जनशक्ति की कमी:
      • कुशल जनशक्ति की कमी भारत में पर्यटन उद्योग के लिये एक और चुनौती है।
    • मूलभूत सुविधाओं का अभाव :
      • पर्यटन स्थलों पर पेयजल, सुव्यवस्थित शौचालय, प्राथमिक उपचार, अल्पाहार गृह आदि जैसी मूलभूत सुविधाओं का अभाव।
    • मौसमी:
      • अक्तूबर से मार्च तक छह महीने पर्यटन में मौसमी व्यस्तता सीमित होती है, जबकि नवंबर और दिसंबर में भारी भीड़ होती है।
  • संबंधित पहल:
    • स्वदेश दर्शन योजना: इसके तहत पर्यटन मंत्रालय 13 चिह्नित थीम आधारित सर्किट्स के बुनियादी ढाँचे के विकास हेतु राज्य सरकारों/केंद्रशासित प्रदेशों के प्रशासन को केंद्रीय वित्तीय सहायता (CFA) प्रदान करता है।
    • तीर्थयात्रा कायाकल्प और आध्यात्मिक, विरासत संवर्द्धन अभियान पर राष्ट्रीय मिशन:
      • पर्यटन मंत्रालय द्वारा वर्ष 2014-15 में चिह्नित तीर्थस्थलों के समग्र विकास के उद्देश्य से प्रसाद योजना शुरू की गई थी।
    • प्रतिष्ठित पर्यटक स्थल:
    • बौद्ध सम्मेलन:
      • बौद्ध सम्मेलन भारत को बौद्ध गंतव्य और दुनिया भर के प्रमुख बाज़ारों के रूप में बढ़ावा देने के उद्देश्य से प्रत्येक एक वर्ष के अंतराल में आयोजित किया जाता है।
    • देखो अपना देश' पहल:
      • इसे पर्यटन मंत्रालय द्वारा वर्ष 2020 में शुरू किया गया था ताकि नागरिकों को देश के भीतर व्यापक रूप से यात्रा करने के लिये प्रोत्साहित किया जा सके तथा इस प्रकार घरेलू पर्यटन सुविधाओं एवं बुनियादी ढाँचे के विकास को सक्षम बनाया जा सके।

आगे की राह

  • सभी प्रकार के बुनियादी ढाँचे (भौतिक, सामाजिक और डिजिटल) का तेज़ी से विकास समय की मांग है।
  • पर्यटकों की सुरक्षा प्राथमिक कार्य है, जिसके लिये एक आधिकारिक गाइड प्रणाली शुरू की जा सकती है।
  • भारतीय निवासियों को पर्यटकों के साथ उचित व्यवहार करने के लिये प्रेरित किया जाना चाहिये ताकि पर्यटकों को किसी भी प्रकार की धोखाधड़ी का सामना न करना पड़े।
  • मौसमी समस्या को हल करने के लिये पर्यटन के अन्य रूपों जैसे चिकित्सा पर्यटन, साहसिक पर्यटन आदि को बढ़ावा देना चाहिये, साथ ही ऑफ-सीज़न रियायत इसका दूसरा उपाय हो सकता है।
  • भारत का विशाल आकार और  प्राकृतिक, भौगोलिक, सांस्कृतिक एवं कलात्मक विविधता भारतीय पर्यटन उद्योग को अपार अवसर प्रदान करती है।

 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

पंचायती राज मंत्रालय की आपदा प्रबंधन योजना

प्रिलिम्स के लिये:

पंचायती राज मंत्रालय की आपदा प्रबंधन योजना (DMP-MoPR), आपदा प्रबंधन योजना, आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन नीति 2009, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, पंचायती राज संस्थान।

मेन्स के लिये:

पंचायती राज मंत्रालय (DMP-MoPR) की आपदा प्रबंधन योजना और इसका महत्त्व, आपदा प्रबंधन में भारत के प्रयास और भारत की भेद्यता।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय ग्रामीण विकास और पंचायती राज मंत्री ने पंचायती राज मंत्रालय की आपदा प्रबंधन योजना (DMP-MoPR) का विमोचन किया।

पंचायती राज मंत्रालय की आपदा प्रबंधन योजना:

  • इसे गाँव से लेकर ज़िला पंचायत स्तर तक समुदाय आधारित नियोजन के व्यापक परिप्रेक्ष्य के साथ तैयार किया गया है।
  • योजना के तहत प्रत्येक भारतीय गाँव में एक ‘ग्राम आपदा प्रबंधन योजना’ और प्रत्येक पंचायत की अपनी आपदा प्रबंधन योजना होगी।
  • इसका उद्देश्य पंचायतों के बीच ज़मीनी स्तर पर आपदा लचीलापन बनाना और ग्रामीण क्षेत्रों में आपदा प्रबंधन उपायों को राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के साथ संरेखित करने हेतु एक रूपरेखा स्थापित करना है।
  • इसमें आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन नीति 2009 और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के अनुपालन के अलावा कई नवाचार भी शामिल हैं।

योजना के तहत क्या शामिल है?

  • यह व्यापक रूप से निम्नलिखित क्षेत्रों को कवर करती है:
    • आपदा प्रबंधन हेतु संस्थागत व्यवस्था।
    • जोखिम, सुभेद्यता और क्षमता विश्लेषण।
    • विकास और जलवायु परिवर्तन कार्रवाई में आपदा जोखिम प्रबंधन का समन्वय।
    • आपदा विशिष्ट निवारक एवं शमन उपाय-उत्तरदायी ढाँचा।
    • गाँवों और पंचायतों की समुदाय आधारित आपदा प्रबंधन योजना को मुख्यधारा में लाना।

Disaster-Management-cycle

योजना की आवश्यकता:

  • भारत अपनी अनूठी भू-जलवायु और सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों के कारण कई प्राकृतिक एवं मानव निर्मित आपदाओं केप्रति अलग-अलग स्थिति में संवेदनशील रहा है।
    • प्राकृतिक आपदा में भूकंप, बाढ़, भूस्खलन, चक्रवात, सुनामी, शहरी बाढ़, सूखा शामिल हैं।
    • मानव निर्मित आपदा में परमाणु, जैविक और रासायनिक आपदा को शामिल किया जा सकता है।
  • देश के विभिन्न हिस्से चक्रवात, बाढ़, सूखा, भूकंप, भूस्खलन आदि के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हैं।

इस कदम का महत्त्व:

  • आपदाओं के व्यापक प्रबंधन में सहायक:
    • समुदाय आधारित आपदा प्रबंधन योजनाओं की परिकल्पना, योजना और कार्यान्वयन के लिये अभिसरण तथा सामूहिक कार्रवाई व्यापक रूप से आपदाओं के प्रबंधन में एक गेम चेंजर साबित होगी।
      • पंचायती राज संस्थान (PRI), निर्वाचित प्रतिनिधियों और पंचायतों के पदाधिकारियों आदि सहित सभी हितधारक योजना के नियोजन, कार्यान्वयन, निगरानी व मूल्यांकन में भाग लेंगे।
      • किसी भी आपदा से बचाव के लिये तैयारी की रणनीति में समुदाय की भागीदारी महत्त्वपूर्ण कारक है और ग्रामीण क्षेत्रों में आपदा प्रबंधन से संबंधित गतिविधियों के संचालन और इन गतिविधियों को बनाए रखने के लिये समुदाय की सक्रिय भागीदारी आवश्यक है।
  • भागीदारी योजना प्रक्रिया को सुनिश्चित करने में: 
    • यह योजना DMPs के लिये एक भागीदारी योजना प्रक्रिया सुनिश्चित करने में अत्यंत उपयोगी होगी जो देश भर में आपदाओं का समाधान करने हेतु ग्राम पंचायत विकास योजना (Gram Panchayat Development Plan- GPDP) के साथ एकीकृत है और समुदाय आधारित आपदा प्रबंधन के नए युग की शुरुआत करती है, विभिन्न मंत्रालय/विभागों के कार्यक्रमों तथा योजनाओं के साथ अभिसरण एवं सामूहिक कार्रवाई करती है।

आपदा प्रबंधन हेतु भारत के प्रयास:

  • राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) की स्थापना:
    • भारत ने आपदा प्रबंधन को एक समग्र दृष्टिकोण के रूप में विकसित किया है इसने न केवल आपदा के बाद प्रतिक्रिया की है बल्कि विभिन्न योजनाओं और नीतियों के तहत आपदा संबंधी तैयारियों, शमन व आपदा जोखिम न्यूनीकरण (Disaster Risk Reduction- DRR) को एकीकृत किया है।
    • भारत ने सभी प्रकार की आपदाओं के न्यूनीकरण के संदर्भ में तेज़ी से कार्य किया है तथा आपदा प्रतिक्रिया के लिये समर्पित विश्व के सबसे बड़े बल ‘राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) की स्थापना के साथ सभी प्रकार की आपदाओं की स्थिति में तेज़ी से प्रतिक्रिया की है।
  • अन्य देशों को आपदा राहत प्रदान करने में भारत की भूमिका:
    • भारत एक उभरता हुआ दाता भी है जिसने अन्य देशों को विदेशी आपदा राहत के साथ-साथ विदेशी विकास हेतु सहायता भी पर्याप्त मात्रा में प्रदान की है।
    • भारत की विदेशी मानवीय सहायता में इसकी सैन्य संपत्ति को भी तेज़ी से शामिल किया गया है जिसके तहत आपदा के समय देशों को राहत प्रदान करने के लिये नौसेना के जहाज़ों या विमानों को तैनात किया जाता है।
    • "पड़ोसी पहले" (Neighbourhood First) की अपनी कूटनीतिक नीति के अनुरूप भारत से सहायता प्राप्त करने वाले देश मुख्यतः दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्र के हैं।
      • पिछले दो दशकों में भारत ने अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, मालदीव, म्याँमार, नेपाल, पाकिस्तान, फिलीपींस, श्रीलंका और अन्य देशों को द्विपक्षीय रूप से विदेशी मानवीय सहायता प्रदान की है।
  • क्षेत्रीय आपदा तैयारी में योगदान:
  • जलवायु परिवर्तन संबंधी आपदा प्रबंधन:
    • विश्व स्तर पर पिछले दो दशकों में आपदाएँ मुख्य रूप से जलवायु से संबद्ध रही हैं, जिनमें से बाढ़ सबसे अधिक बार घटित होने वाली आपदा है और तूफान दूसरी सबसे घातक आपदा है।
    • भारत ने सतत् विकास लक्ष्यों (2015-2030), जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते और DRR पर सेंदाई फ्रेमवर्क को अपनाया है, जो जलवायु परिवर्तन अनुकूलन (CCA) तथा सतत् विकास के बीच संबंधों को स्पष्ट करते हैं।
    • भारत उन कई बहुपक्षीय संगठनों का हिस्सा है, जो ऐसे सभी मुद्दों को संबोधित करते हैं।

स्रोत: पी.आई.बी.


जैव विविधता और पर्यावरण

भारत की आर्कटिक नीति

प्रिलिम्स के लिये:

आर्कटिक परिषद, जलवायु परिवर्तन, आर्कटिक क्षेत्र, भारत की आर्कटिक नीति।

मेन्स के लिये:

भारत की आर्कटिक नीति, भारत के लिये आर्कटिक का महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने भारत की आर्कटिक नीति का अनावरण किया है, जिसका शीर्षक है 'भारत और आर्कटिक: सतत् विकास हेतु साझेदारी का निर्माण'।

  • भारत, आर्कटिक परिषद में पर्यवेक्षक का दर्जा रखने वाले 13 देशों में से एक है।
  • आर्कटिक परिषद एक अंतर-सरकारी निकाय है, जो आर्कटिक क्षेत्र के पर्यावरण संरक्षण एवं सतत् विकास से संबंधित मुद्दों पर आर्कटिक देशों के बीच अनुसंधान को बढ़ावा और सहयोग की सुविधा प्रदान करता है।

विगत वर्षों के प्रश्न

निम्नलिखित देशों पर विचार कीजिये: (2014)

1. डेनमार्क
2. जापान
3. रूसी संघ
4. यूनाइटेड किंगडम
5. संयुक्त राज्य अमेरिका

उपर्युक्त में से कौन 'आर्कटिक परिषद' के सदस्य हैं?

(a) केवल 1, 2 और 3 
(b) केवल 2, 3 और 4
(c) केवल 1, 4 और 5 
(d) केवल 1, 3 और 5

उत्तर: (d)

पृष्ठभूमि

  • आर्कटिक के साथ भारत का जुड़ाव तब शुरू हुआ, जब भारत ने वर्ष 1920 में पेरिस में नॉर्वे, अमेरिका, डेनमार्क, फ्राँस, इटली, जापान, नीदरलैंड, ग्रेट ब्रिटेन और आयरलैंड, ब्रिटिश विदेशी डोमिनियन तथा स्वीडन के बीच स्पिट्सबर्गेन को लेकर स्वालबार्ड संधि पर हस्ताक्षर किये।
    • ‘स्पिट्सबर्गेन’ आर्कटिक महासागर में स्वालबार्ड द्वीप समूह का सबसे बड़ा द्वीप है, जो नॉर्वे का हिस्सा है।
    • स्पिट्सबर्गेन, स्वालबार्ड का एकमात्र स्थायी रूप से बसा हुआ हिस्सा है। यहाँ की 50% से अधिक भूमि वर्ष भर बर्फ से ढकी रहती है। ग्लेशियरों के साथ यहाँ पहाड़ और फ्योर्ड भी मौजूद हैं।
  • संधि पर हस्ताक्षर करने के बाद से भारत आर्कटिक क्षेत्र के सभी घटनाक्रमों की बारीकी से निगरानी कर रहा है।
  • भारत ने वर्ष 2007 में इस क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन पर ध्यान केंद्रित करते हुए आर्कटिक अनुसंधान कार्यक्रम शुरू किया था।
    • इसके उद्देश्यों में आर्कटिक जलवायु और भारतीय मानसून के बीच टेलीकनेक्शन का अध्ययन करना, उपग्रह डेटा का उपयोग करके आर्कटिक में समुद्री बर्फ को चिह्नित करना, ग्लोबल वार्मिंग पर प्रभाव का अनुमान लगाना शामिल था।
  • भारत आर्कटिक ग्लेशियरों की गतिशीलता और बड़े पैमाने पर समुद्र के स्तर में परिवर्तन को लेकर अनुसंधान पर भी ध्यान केंद्रित करता है।

भारत की आर्कटिक नीति के प्रमुख प्रावधान:

  • छह केंद्रीय पिलर:
    • विज्ञान एवं अनुसंधान।
    • पर्यावरण संरक्षण।
    • आर्थिक एवं मानव विकास।
    • परिवहन एवं कनेक्टिविटी।
    • शासन एवं अंतर्राष्ट्रीय सहयोग।
    • राष्ट्रीय क्षमता निर्माण।
  • उद्देश्य:
    • इसका उद्देश्य आर्कटिक क्षेत्र के साथ विज्ञान एवं अन्वेषण, जलवायु तथा पर्यावरण संरक्षण, समुद्री व आर्थिक सहयोग में राष्ट्रीय क्षमताओं और दक्षता को मज़बूती प्रदान करना है।
    • यह आर्कटिक में भारत के हित में अंतर-मंत्रालयी समन्वय के माध्यम से सरकार और शैक्षणिक, अनुसंधान तथा व्यावसायिक संस्थानों के अंतर्गत संस्थागत एवं मानव संसाधन क्षमताओं को मज़बूत करना चाहता है।
    • यह भारत की जलवायु, आर्थिक और ऊर्जा सुरक्षा को लेकर आर्कटिक क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव की समझ को बढ़ाने का प्रयास करता है।
    • इसका उद्देश्य वैश्विक शिपिंग मार्गों, ऊर्जा सुरक्षा और खनिज संपदा के दोहन से संबंधित भारत के आर्थिक, सैन्य और रणनीतिक हितों पर आर्कटिक में बर्फ पिघलने के प्रभावों के बेहतर विश्लेषण, भविष्यवाणी और समन्वित नीति निर्माण को बढ़ावा देना है।
    • यह वैज्ञानिक और पारंपरिक ज्ञान के साथ विशेषज्ञता प्राप्त करते हुए विभिन्न आर्कटिक मंचों के तहत ध्रुवीय क्षेत्रों एवं हिमालय के बीच संबंधों का अध्ययन करने व भारत तथा आर्कटिक क्षेत्र के देशों के बीच सहयोग को और अधिक मज़बूत करने का प्रयास करता है।
    • इस नीति में आर्कटिक परिषद में भारत की भागीदारी बढ़ाने तथा आर्कटिक में जटिल शासन संरचनाओं, प्रासंगिक अंतर्राष्ट्रीय कानूनों व क्षेत्र की भू-राजनीति समझ में सुधार करने का भी प्रयास किया गया है।
  • भारत के लिये आर्कटिक की प्रासंगिकता:
    • आर्कटिक क्षेत्र यहाँ से होकर गुज़रने वाले नौवहन मार्गों के कारण महत्त्वपूर्ण है।
    • मनोहर पर्रिकर इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज़ एंड एनालिसिस द्वारा प्रकाशित एक विश्लेषण के अनुसार, आर्कटिक के प्रतिकूल प्रभाव न केवल खनिज और हाइड्रोकार्बन संसाधनों की उपलब्धता को प्रभावित कर रहे हैं बल्कि वैश्विक नौवहन/शिपिंग मार्गों में भी परिवर्तन ला रहे हैं।
      • विदेश मंत्रालय के अनुसार, भारत एक स्थिर आर्कटिक सुनिश्चित करने में निर्माणकारी भूमिका निभा सकता है
    • भू-राजनीतिक दृष्टि से भी यह क्षेत्र अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है क्योंकि वर्ष 2050 तक आर्कटिक के बर्फ मुक्त होने का अनुमान है और विश्व शक्तियाँ प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध इस क्षेत्र का दोहन करने के लिये आगे बढ़ रही हैं।

आर्कटिक के बारे में:

  • आर्कटिक पृथ्वी के सबसे उत्तरी भाग में स्थित एक ध्रुवीय क्षेत्र है।
  • आर्कटिक क्षेत्र के तहत भूमि पर मौसमी रूप से अलग-अलग बर्फ और हिम का आवरण होता है।
  • आर्कटिक के अंतर्गत आर्कटिक महासागर, निकटवर्ती समुद्र और अलास्का (संयुक्त राज्य अमेरिका), कनाडा, फिनलैंड, ग्रीनलैंड (डेनमार्क), आइसलैंड, नॉर्वे, रूस और स्वीडन को  शामिल किया जाता है।

Arctic-Regions

आगे की राह

  • भारत की आर्कटिक नीति समयानुकूल है और इस क्षेत्र के साथ भारत के जुड़ाव की रूपरेखा पर भारत के नीति निर्माताओं को एक दिशा प्रदान करने की संभावना है।
  • यह इस क्षेत्र के साथ भारत के जुड़ाव पर पूर्ण रूप से सरकारी दृष्टिकोण विकसित करने की दिशा में पहला कदम है।
  • इस नीति के माध्यम से भारत और आर्कटिक में कार्यक्रमों, संगोष्ठियों के आयोजन द्वारा दोनों क्षेत्रों (भारत और आर्कटिक में) में आर्कटिक के बारे में जागरूकता बढ़ाए जाने की भी संभावना है।
  • हालाँकि भारत को आधिकारिक तौर पर 'आर्कटिक राजदूत/प्रतिनिधि' भी नियुक्त करना चाहिये जो आर्कटिक मामलों पर भारत के दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करने और इसके विचारों को प्रस्तुत करने का कार्य करेगा।
  • भारत की आर्कटिक नीति की योजना, निगरानी, संचालन, कार्यान्वयन और समीक्षा के लिये एक समर्पित विशेषज्ञ समिति का गठन करने से देश के दृष्टिकोण को बेहतर तरीके से व्यवस्थित करने में मदद मिल सकती है।

विगत वर्षों के प्रश्न

'क्षेत्रीय सहयोग के लिये हिंद महासागर रिम संघ इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन फॉर रीज़नल कोऑपरेशन (IOR_ARC)' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2015)

  1. इसकी स्थापना हाल ही में समुद्री डकैती की घटनाओं और तेल अधिप्लाव (आयल स्पिल्स) की दुर्घटनाओं के प्रतिक्रियास्वरूप की गई है।
  2. यह एक ऐसी मैत्री है जो केवल समुद्री सुरक्षा हेतु है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (d)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


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