मोगलमारी मध्यकालीन बौद्ध मठ
चर्चा में क्यों :
हाल ही में पश्चिम बंगाल के पश्चिम मेदिनीपुर ज़िले के मोगलमारी में हुई खुदाई से प्राप्त मिट्टी की बनी तख्तियों पर लिखे गए अभिलेखों के प्रारंभिक अध्ययन में मध्ययुगीन काल के दो बौद्ध मठों की पुष्टि की गई है।
प्रमुख बिंदु
- मोगलमारी से प्राप्त इस मठों की पहचान मुगलयिकविहारिका (Mugalayikaviharika) और यज्ञपींडिकमहाविहार (Yajñapindikamahavihara) के रूप में की गयी है।
- मोगलमारी से प्राप्त ये मठ छठीं शताब्दी से 12वीं शताब्दी तक कार्यात्मक थे। एक ही परिसर में एक ही अवधि के दो मठों की उपस्थिति पूर्वी भारत में अद्वितीय है।
- ह्वेनसांग के रूप में प्रसिद्ध चीनी यात्री जुआनज़ैंग, (Xuanzang) जिन्होंने 7वीं शताब्दी ईस्वी में भारत की यात्रा की, ताम्रलिप्ता (निकटवर्ती पूर्ब मेदिनीपुर ज़िले में स्थित वर्तमान तामलुक) की सीमा के भीतर 'दस बौद्ध मठों' की उपस्थिति का उल्लेख किया था।हालाँकि उसने किसी विशिष्ट नाम या स्थान का उल्लेख नहीं किया था।
- ह्वेनसांग द्वारा उल्लेखित मठों में से कम-से-कम दो की पहचान बौद्ध मठों के रूप में की जा सकती है क्योंकि यह बौद्ध ग्रंथों से ज्ञात है कि बौद्ध मठों में एक निश्चित पदानुक्रम है- महाविहार, विहार और विहारिका, जो प्राप्त शिलालेखों में परिलक्षित होता है।
- खुदाई के दौरान उत्कीर्ण मुहरों के छह छोटे टुकड़े प्राप्त किये गए जिनमें से प्रत्येक पर हिरण-धर्म-चक्र प्रतीकों के साथ अक्षरों का एक समूह उत्कीर्ण था।
- प्राप्त शिलालेख संस्कृत लिपि में हैं जो बाद की उत्तर भारतीय ब्राह्मी लिपि और प्रारंभिक सिद्धमातृका लिपि के बीच एक संक्रमणकालीन चरण में है।
- मुगलयिकविहारिका का नाम आधुनिक मोगलमरी से समानता रखता है तथा यज्ञपिंडिकामहाविहार का पहला नाम, यज्ञीय रूप से 'यज्ञ का स्थान' है के रूप में महत्त्व रखता है।
ब्राह्मी और सिद्धमातृका लिपि
- सबसे पुराना शिलालेख 4वीं शताब्दी ईसा पूर्व के अंत का है जो ब्राह्मी और खरोष्ठी लिपि में है।
- इनमें मौर्यकालीन सम्राट अशोक के शिलालेख शामिल हैं, जिनके अधिकांश शिलालेख प्राकृत भाषा और ब्राह्मी लिपि में हैं।
- छठीं शताब्दी के उतरार्द्ध में, ब्राह्मी एक गुप्त लिपि के रूप में विकसित हुई, जिसे सिद्धमातृका या कुटलिया के नाम से जाना जाता है।