भारतीय अर्थव्यवस्था
रक्षा परीक्षण अवसंरचना योजना
प्रिलिम्स के लिये:रक्षा औद्योगिक गलियारे, कंपनी अधिनियम 2013, मेन्स के लिये:रक्षा परीक्षण अवसंरचना योजना के प्रमुख प्रावधान एवं उद्देश्य |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में रक्षा मंत्रालय द्वारा यह घोषणा की गई है कि वह जल्द ही निजी क्षेत्र के साथ साझेदारी में देश में आठ रक्षा परीक्षण सुविधाओं की स्थापना हेतु अनुरोध प्रस्ताव (Requests For Proposal-RFPs) जारी करेगा।
- ये RFPs रक्षा परीक्षण अवसंरचना योजना (Defence Testing Infrastructure Scheme- DTIS) के तहत जारी किये जाएंगे।
- RFP एक व्यावसायिक दस्तावेज़ है जिसके तहत किसी परियोजना की घोषणा, उसका वर्णन करने के साथ ही इसे पूरा करने के लिये बोली/नीलामी हेतु निविदाएंँ आमंत्रित की जाती हैं।
प्रमुख बिंदु
पृष्ठभूमि:
- मेक इन इंडिया के तहत भारत ने देश में रक्षा और एयरोस्पेस क्षेत्रों में आयात पर निर्भरता को कम करने हेतु विनिर्माण आधार के विकास को उच्च प्राथमिकता दी है।
- इसके लिये उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में रक्षा औद्योगिक गलियारे (Defence Industrial Corridors- DICs) स्थापित करने की घोषणा की गई है।
- नवाचार तथा प्रौद्योगिकी विकास को बढ़ावा देने और भारतीय उद्योग को एयरोस्पेस तथा रक्षा क्षेत्रों में निवेश को प्रोत्साहित करने के लिये संशोधित मेक- II प्रक्रियाएँ, रक्षा उत्कृष्टता के लिये नवाचार (iDEX) और रक्षा निवेशक सेल की स्थापना जैसी कई पहलें की गई हैं।
- इस क्षेत्र में निवेश के अवसरों, प्रक्रियाओं और नियामक आवश्यकताओं से संबंधित प्रश्नों को संबोधित करने सहित सभी आवश्यक जानकारी प्रदान करने के लिये रक्षा निवेशक प्रकोष्ठ की स्थापना की गई थी।
DTIS के बारे में:
- यह योजना 8 मई, 2020 को शुरू की गई थी और इसकी अवधि पांँच वर्ष तक होगी।
- इसमें 6-8 ग्रीनफील्ड रक्षा परीक्षण अवसंरचना सुविधाओं की स्थापना की परिकल्पना की गई है जो रक्षा और एयरोस्पेस से संबंधित उत्पादन के लिये आवश्यक हैं।
- इसमें निजी उद्योग के साथ साझेदारी में परीक्षण सुविधाएंँ स्थापित करने की भी परिकल्पना की गई है।
उद्देश्य:
- सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय (MSMEs) और स्टार्टअप की भागीदारी पर विशेष ध्यान देने के साथ ही स्वदेशी रक्षा उत्पादन को बढ़ावा देना, देश में रक्षा परीक्षण बुनियादी ढांँचे के अंतराल को कम करना।
- आसान पहुंँच प्रदान करना और घरेलू रक्षा उद्योग की परीक्षण आवश्यकताओं को पूरा करना।
- स्वदेशी रक्षा उत्पादन को सुगम बनाना, फलस्वरूप सैन्य उपकरणों के आयात को कम करना और देश को आत्मनिर्भर बनाने में मदद करना।
वित्त और सहयोग:
- इस योजना की पांँच वर्ष की अवधि में अत्याधुनिक परीक्षण और बुनियादी ढांँचे के निर्माण हेतु 400 करोड़ रुपए का परिव्यय निर्धारित किया गया है।
- योजना के तहत परियोजनाओं को 'अनुदान-सहायता' के रूप में 75 प्रतिशत तक सरकारी वित्तपोषण प्रदान किया जाएगा।
- परियोजना लागत का शेष 25 प्रतिशत स्पेशल प्रोपज़ल व्हीकल (SPVs) घटकों द्वारा वहन किया जाएगा, जिनमें भारतीय निजी संस्थाएंँ और राज्य सरकारें शामिल होंगी।
- केवल भारत में पंजीकृत निजी संस्थाएंँ और राज्य सरकार की एजेंसियांँ ही योजना के लिये कार्यान्वयन एजेंसी का निर्माण करने की हकदार होंगी।
- योजना के तहत SPVs को कंपनी अधिनियम 2013 के तहत पंजीकृत किया जाएगा।
स्रोत: पीआईबी
आंतरिक सुरक्षा
मेघालय में अस्थिरता
प्रिलिम्स के लियेखासी समुदाय, पूर्वोत्तर की भौगोलिक अवसंरचना मेन्स के लियेपूर्वोत्तर राज्यों में विद्रोह: पृष्ठभूमि, कारण और प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘हन्नीवट्रेप नेशनल लिब्रेशन काउंसिल’ (HNLC) का एक पूर्व आतंकवादी पुलिस मुठभेड़ में मारा गया, जिससे मेघालय में सुरक्षा संकट और अस्थिरता की स्थिति पैदा हो गई है।
- इस मुठभेड़ को पूर्वी खासी हिल्स और पूर्वी जयंतिया हिल्स की पुलिस टीम द्वारा अंजाम दिया गया।
प्रमुख बिंदु
पृष्ठभूमि
- मेघालय, बांग्लादेश के साथ सीमा साझा करता है और यहाँ पड़ोसी देश के साथ-साथ भारत के अन्य हिस्सों जैसे- बंगाल, पंजाब और बिहार के प्रवासी मौजूद हैं।
- इस प्रवास ने स्वदेशी और स्थानीय समुदायों के बीच गंभीर चिंता को जन्म दिया तथा ‘बाहरी लोगों’ की आमद के कारण इन समुदायों के बीच ‘अपनी मातृभूमि में अल्पसंख्यक’ बनने का डर उत्पन्न हो गया।
- इन्हीं ‘बाहरी-विरोधी भावनाओं’ की परिणति थी, जिसके कारण वर्ष 1992 में मेघालय के पहले उग्रवादी समूह ‘हन्नीवट्रेप अचिक नेशनल लिब्रेशन काउंसिल’ (HALP) का गठन हुआ।
- हन्नीवट्रेप ने खासी और जयंतिया समुदायों का प्रतिनिधित्व किया, जबकि अचिक ने गारो समुदाय का प्रतिनिधित्व किया।
- ‘हन्नीवट्रेप अचिक नेशनल लिब्रेशन काउंसिल’ का बाद में विभाजन हो गया और ‘हन्नीवट्रेप नेशनल लिब्रेशन काउंसिल’ अस्तित्व में आया, जो खासी और जयंतिया समुदायों का प्रतिनिधित्व करता था और ‘अचिक मातग्रिक लिबरेशन आर्मी’ जो गारो समुदाय का प्रतिनिधित्व करती थी।
- ‘अचिक मातग्रिक लिबरेशन आर्मी’ को बाद में ‘अचिक नेशनल वालंटियर्स काउंसिल’ (ANVC) में बदल दिया गया।
- HNLC ने केवल खासी समुदायों के हितों का प्रतिनिधित्व करने का दावा किया, जबकि ‘अचिक मातग्रिक लिबरेशन आर्मी’ ने गारो समुदाय के लिये एक अलग राज्य की मांग की।
मेघालय में उग्रवाद की वर्तमान स्थिति:
- वर्ष 2004 में ANVC ने सरकार के साथ एक विस्तारित युद्धविराम समझौता कर लिया था, जबकि HNLC सरकार के साथ सशर्त शांति वार्ता करने की कोशिश कर रहा है।
- पिछले कई वर्षों में, मेघालय में उग्रवाद में गिरावट देखी गई है।
- वर्ष 2018 में उग्रवाद से संबंधित घटनाओं में 80% की गिरावट के बाद केंद्र सरकार ने मेघालय से ‘सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम’ (AFSPA) को लगभग 27 वर्षों के बाद वापस ले लिया था।
अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में विद्रोह
- नगालैंड: नगा विद्रोह
- मिज़ोरम: मिज़ो आंदोलन
- असम विद्रोह: वर्ष 1979 में अवैध प्रवासियों के निर्वासन के लिये ‘यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम’ (ULFA) का गठन किया गया था।
- मणिपुर: मणिपुर के स्थानीय लोगों के खिलाफ भेदभाव को समाप्त करने के उद्देश्य से वर्ष 1964 में ‘यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट’ का गठन किया गया था।
- अरुणाचल प्रदेश: अरुणाचल प्रदेश में स्वदेशी विद्रोह आंदोलन का एकमात्र मामला ‘अरुणाचल ड्रैगन फोर्स’ (ADF) का उदय था, जिसे वर्ष 2001 में ‘ईस्ट इंडिया लिबरेशन फ्रंट’ (EALF) के रूप में पुनर्गठित किया गया था।
- मौतें:
- पूर्वोत्तर में नागरिकों और सुरक्षा बलों दोनों की ही बहुत बड़ी संख्या में मौतें हुई हैं।
- भारत की पूर्वोत्तर आर्थिक नीतियों में बाधा:
- तेल समृद्ध असम में आतंकवादियों द्वारा समय-समय पर तेल और गैस पाइपलाइनों को लक्ष्य बनाया जाता है, उनका यह आरोप है कि भारत इस राज्य के प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर रहा है।
- उग्रवादियों के हमलों के बाद राष्ट्रीय परियोजनाएंँ या तो ठप हो जाती हैं या धीमी गति से आगे बढ़ी हैं। पर्यटन, जो बेहद खुबसूरत पूर्वोत्तर राज्यों में फल-फूल सकता था, क्षेत्र में अस्थिरता के कारण इसे काफी नुकसान हुआ है।
- भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी में बाधा:
- आतंकवाद ने पूर्वोत्तर राज्यों की अर्थव्यवस्था को पड़ोसी दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों से जोड़ने की संभावना को भी रोक दिया है
- शिक्षा में बाधा:
- शिक्षा क्षेत्र भी उग्रवाद से प्रभावित हुआ है। त्रिपुरा के आंतरिक क्षेत्रों में कई स्कूल बंद कर दिये गए हैं क्योंकि शिक्षक आतंकवादी हमलों के डर के कारण उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में जाने से बचते हैं।
विद्रोह का मुकाबला करने हेतु उपाय:
- सैन्य अभियान और विशेष अधिनियम:
- 1990 के दशक में असम में ULFA उग्रवादीयों के खिलाफ दो सैन्य अभियान, ऑपरेशन राइनो और बजरंग शुरू किये गए थे।
- AFSPA (सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम) के तहत सशस्त्र बलों को आपातकालीन स्थितियों से निपटने हेतु विशेष शक्तियांँ प्रदान की गई थीं। यह पूरे असम, नगालैंड, अधिकांश मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में लागू है।
- शांति वार्ता:
- आज इस क्षेत्र के लगभग सभी प्रमुख विद्रोही समूहों मैइतेई विद्रोहियों को छोड़कर संघ और/या राज्य सरकारों के साथ युद्धविराम या सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन (Suspension of Operation- SoO) समझौतों में शामिल हो गए हैं ।
- वे शांति वार्ता में लगे हुए हैं और कुछ ने तो अपने सशस्त्र कैडरों को भी भंग कर दिया है।
- इनर लाइन परमिट (ILP):
- मिज़ोरम, नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश के स्थायी लोगों की मूल पहचान को बनाए रखने के लिये इन राज्यों में बाहरी लोगों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया गया है, बाहरी लोगों को ILP के बिना राज्य में प्रवेश की अनुमति नहीं है।
- पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय (DoNER):
- यह क्षेत्र के सामाजिक-आर्थिक विकास की गति को तीव्र करने के लिये पूर्वोत्तर क्षेत्र में विकास योजनाओं और परियोजनाओं के निष्पादन और निगरानी से संबंधित मामलों हेतु ज़िम्मेदार है।
खासी समुदाय
- खासी उत्तर-पूर्वी भारत में मेघालय का एक स्वदेशी जातीय समूह है। इसकी एक विशिष्ट संस्कृति है और यह मेघालय की सबसे बड़ी जनजाति है।
- संपत्ति का उत्तराधिकार और आदिवासी कार्यालय का उत्तराधिकार दोनों ही महिलाओं के माध्यम से चलते हैं। खासी आदिवासी परिवार की सबसे छोटी बेटी परिवार में काफी महत्त्व रखती है।
- खासी ऑस्ट्रोएशियाटिक स्टॉक (Austroasiatic Stock) की मोन-खमेर (Mon-Khmer) भाषा बोलते हैं।
- वे कई कुलों में विभाजित हैं। गीला चावल (धान) उनके निर्वाह हेतु मुख्य भोजन है जिसकी खेती घाटी के तल में और पहाड़ियों पर बने छत के बगीचों में की जाती है।
गारो समुदाय
- गारो, जो खुद को आचिक (A·chiks) कहते हैं, मेघालय की दूसरी सबसे बड़ी जनजाति है।
- गारो की एक मज़बूत परंपरा है क्योंकि वे तिब्बत से आए हैं। उनकी कई बोलियाँ और सांस्कृतिक समूह हैं। उनमें से प्रत्येक मूल रूप से गारो हिल्स के एक विशेष क्षेत्र और बाहरी मैदानी भूमि पर बस गए।
- हालाँकि आधुनिक गारो समुदाय की संस्कृति ईसाई धर्म से काफी प्रभावित रही है। इसमें सभी बच्चों को माता-पिता द्वारा समान देखभाल, अधिकार और महत्व दिया जाता है।
- गारो विवाह दो महत्त्वपूर्ण कानूनों द्वारा नियंत्रित होता है जैसे- बहिर्विवाह और आकिम (A·Kim) एक ही कबीले से संबंधित हैं, एक ही कबीले के बीच विवाह की अनुमति नहीं है।
आगे की राह
- मुख्य भूमि के साथ क्षेत्र के बेहतर एकीकरण के लिये सरकार को संचार और कनेक्टिविटी, बुनियादी ढाँचे में सुधार करना चाहिये।
- उग्रवादियों के हमले के त्वरित निपटान के लिये सख्त कानून और तेज़ आपराधिक न्याय प्रणाली लागू की जानी चाहिये।
- सरकार को बेहतर सामरिक प्रतिक्रिया और देश के बाकी हिस्सों के साथ अधिक-से-अधिक वार्ताओं के माध्यम से सांस्कृतिक एवं सामाजिक-आर्थिक विकास के लिये केंद्रीय बलों व राज्य बलों के बीच अधिक समन्वय को बढ़ावा देना चाहिये ताकि समग्र समावेशी विकास सुनिश्चित हो।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
सामाजिक न्याय
भारत का जल संकट और महिलाएँ
प्रिलिम्स के लियेकेंद्रीय भूजल बोर्ड मेन्स के लियेजल संसाधन और संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
बदलते मौसम परिस्थितियों और बार-बार सूखे की वजह से भारत जल संकट से जूझ रहा है और इस संकट की सबसे ज़्यादा शिकार महिलाएँ होती हैं।
- भारत में पानी की कमी की स्थिति और खराब होने की आशंका है क्योंकि वर्ष 2050 तक कुल जनसंख्या के 1.6 बिलियन तक बढ़ने की उम्मीद है।
प्रमुख बिंदु:
जल संकट:
- हालाँकि भारत में दुनिया की आबादी का 16% हिस्सा है, लेकिन भारत के पास दुनिया के फ्रेशवाटर संसाधनों का केवल 4% हिस्सा ही है।
- हाल के दिनों में भारत में जल संकट की समस्या बहुत गंभीर है, जिसने पूरे भारत में लाखों लोगों को प्रभावित किया है।
- हाल के केंद्रीय भूजल बोर्ड के आँकड़ों (2017 से) के अनुसार, भारत के 700 में से 256 ज़िलों में भूजल स्तर के 'गंभीर' या 'अत्यधिक दोहन' की सूचना है।
- भारत के तीन-चौथाई ग्रामीण परिवारों की पाइप के पीने योग्य पानी तक पहुँच नहीं है और उन्हें असुरक्षित स्रोतों पर निर्भर रहना पड़ता है।
- भारत दुनिया का सबसे बड़ा भूजल दोहन करने वाला देश बन गया है, जो कुल जल का 25% हिस्सा है। हमारे लगभग 70% जल स्रोत दूषित हैं और हमारी प्रमुख नदियाँ प्रदूषण के कारण सूख रही हैं।
जल संकट का कारण:
- जनसंख्या वृद्धि:
- जनसंख्या वृद्धि के परिणामस्वरूप प्रति व्यक्ति पानी की अपर्याप्तता।
- भारत में उपयोग करने योग्य पानी की कुल मात्रा 700 से 1,200 बिलियन क्यूबिक मीटर (बीसीएम) के बीच होने का अनुमान लगाया गया है।
- एक देश को जल-तनावग्रस्त माना जाता है यदि उसके पास प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष जल की मात्रा 1,700 क्यूबिक मीटर से कम है।
- खराब पानी की गुणवत्ता:
- भारत में अधिकांश नदियों का पानी पीने के लायक नहीं है और कई हिस्सों में तो नहाने लायक भी नहीं है।
- पानी की खराब गुणवत्ता शहरी जल उपचार सुविधाओं में अपर्याप्त और विलंबित निवेश का परिणाम है।
- इसके अलावा औद्योगिक अपशिष्ट मानकों को लागू नहीं किया जाता है क्योंकि राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों के पास अपर्याप्त तकनीक और मानव संसाधन हैं।
- घटती भूजल आपूर्ति:
- किसानों द्वारा अधिक दोहन के कारण भूजल आपूर्ति घट रही है।
- कुछ क्षेत्रों में कम बारिश के कारण भी भूजल कम हो रहा है।
- टिकाऊ खपत:
- कुएँ, तालाब और टैंक सूखने की स्थिति में हैं क्योंकि भूजल संसाधनों पर अति-निर्भरता और निरंतर खपत के कारण उन पर दबाव बढ़ रहा है।
- पानी का असमान वितरण, प्रदूषण के कारण स्थानीय जल निकायों का दूषित होना / कमी और उचित जल उपचार सुविधा न होना आदि स्थितियाँ भारत में जल संकट को बढ़ा रही है।
महिलाओं पर प्रभाव:
- महिलाओं की संवेदनशीलता:
- जल संकट महिलाओं को उच्च जोखिम के कारण संवेदनशील बनाता है। भारत में पानी लाना सदियों से महिलाओं का काम माना जाता रहा है।
- विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएँ निकटतम स्रोत से पानी लेने के लिये मीलों पैदल चलकर आती हैं।
- स्वच्छता तक कम पहुँच:
- महिलाओं का हाशिये पर होना तथा उनके लिये विशिष्ट शौचालय की कमी के कारण स्थिति और भी गंभीर हो जाती है।
- इस संपूर्ण व्यवस्था के कारण उन्हें जल वाहक बनने के लिये मज़बूर किया जा रहा है, जिसके कारण उनके पास अपने लिये बहुत कम समय होता है। यह महिलाओं के लिये स्वच्छता, बेहतर शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य तक पहुँच को और कम करता है।
- वाटर-वाइफ
- महिलाओं द्वारा समग्र जल प्रबंधन के चलते महाराष्ट्र के एक सूखाग्रस्त गाँव में विवाह की एक नई व्यवस्था ने जन्म लिया है। इसमें पानी इकट्ठा करने के लिये एक से अधिक जीवनसाथी का होना शामिल है। व्यवस्था को 'वाटर-वाइफ' कहा जाता है।
- यह निस्संदेह प्रतिगामी सोच का एक उदाहरण है, जहाँ महिलाओं को पानी के पाइप या टैंकरों के विकल्प के रूप में देखा जा रहा है।
- महिलाओं द्वारा समग्र जल प्रबंधन के चलते महाराष्ट्र के एक सूखाग्रस्त गाँव में विवाह की एक नई व्यवस्था ने जन्म लिया है। इसमें पानी इकट्ठा करने के लिये एक से अधिक जीवनसाथी का होना शामिल है। व्यवस्था को 'वाटर-वाइफ' कहा जाता है।
संबंधित सरकारी पहलें:
- जल क्रांति अभियान।
- राष्ट्रीय जल मिशन।
- राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम।
- नीति आयोग का समग्र जल प्रबंधन सूचकांक।
- जल जीवन मिशन।
- जल शक्ति अभियान।
- अटल भू-जल योजना।
आगे की राह
- लैंगिक समानता प्राप्त करने और दुनिया की आधी आबादी की क्षमता को अनलॉक करने में पानी, स्वच्छता और स्वच्छता आवश्यकताओं को संबोधित किया जाना एक महत्त्वपूर्ण चालक है। जल संकट महिलाओं का मुद्दा है और नारीवादियों को इस विषय पर बात करने की ज़रूरत है।
- नदी के पानी को दूषित होने से बचाने के लिये बाढ़ के जल स्तर को नदी के जल स्तर से काफी ऊपर रखने की आवश्यकता है।
- जैविक खाद्य वनों या फलों के ऐसे वृक्षों को लगाकर बाढ़ के मैदानों को सुरक्षित किया जा सकता है जो अधिक पानी की मांग या उपभोग नहीं करते हैं।
- जल प्रबंधन में निगमों को अपने कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) प्रयासों का उपयोग करने के लिये नवाचार और जल संरक्षण तथा जल पुनर्भरण की दिशा में अधिक सक्रिय भूमिका निभानी चाहिये।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
जैव विविधता और पर्यावरण
सुंदरबन में प्लास्टिक से संबंधित समस्या
प्रिलिम्स के लिये:प्लास्टिक प्रदूषण, उष्णकटिबंधीय तूफान, सुंदरबन, सुपोषण मेन्स के लिये:प्लास्टिक प्रदूषण से उत्पन्न समस्याएँ, संबंधित पहलें |
चर्चा के क्यों?
सुंदरबन में चक्रवात प्रभावित क्षेत्रों में राहत सामग्री के अनियंत्रित प्रवाह के परिणामस्वरूप प्लास्टिक जमा होने के कारण एक नया संकट उत्पन्न हो गया है।
- प्लास्टिक से उत्पन्न खतरा सुंदरबन के लिये एक बहुत गंभीर समस्या है क्योंकि इस क्षेत्र में लगातार उष्णकटिबंधीय तूफान आ रहे हैं जो इस क्षेत्र के विनाश का कारण बन सकते हैं।
प्रमुख बिंदु:
प्लास्टिक प्रदूषण:
- प्लास्टिक प्रदूषण पर्यावरण में प्लास्टिक कचरे के जमा होने के कारण होता है।
- इसे प्राथमिक प्लास्टिक (Primary Plastics) जैसे- सिगरेट बट्स और बॉटल कैप्स या फिर सेकेंडरी प्लास्टिक (Secondary Plastics), जो प्राथमिक प्लास्टिक के क्षरण के परिणामस्वरूप होता है, के रुप में वर्गीकृत किया जाता है।
सुंदरबन में प्लास्टिक जमा होने का कारण:
- चक्रवात:
- इस क्षेत्र में लगातार चक्रवात आ रहे हैं, जिनके बाद राहत और निवासियों के पुनर्वास की आवश्यकता होती है।
- भूगोल में किसी स्थान का उभार/उच्चावच उसकी उच्चतम और निम्नतम ऊँचाई के बीच का अंतर होता है।
- सुंदरबन में चक्रवात अम्फान (मई 2020) के बाद वितरित राहत सामग्री की वजह से इक्कठा हुआ प्लास्टिक कचरा पर्यावरण के प्रति संवेदनशील क्षेत्र को नुकसान पहुंँचा सकता है।
- इससे पहले इस क्षेत्र में चक्रवात फानी (मई 2019) और बुलबुल (नवंबर 2019) आए थे।
- इस क्षेत्र में लगातार चक्रवात आ रहे हैं, जिनके बाद राहत और निवासियों के पुनर्वास की आवश्यकता होती है।
- पर्यटन:
- इस क्षेत्र में हाल में आए चक्रवातों के अलावा पर्यटकों ने भी प्लास्टिक कचरा फैलाने में योगदान दिया है क्योंकि वे अपने पीछे प्लास्टिक कचरे का ढेर छोड़ जाते हैं जो पूरे जंगल में बिखरा हुआ है।
चिंताएँ:
- विषाक्तता में बढ़ोतरी:
- खारे जल में प्लास्टिक की मौजूदगी से जल की विषाक्तता में बढ़ोतरी हो जाती है जो पानी में सुपोषण (Eutrophication) की क्रिया को बढ़ा सकता है।
- यूट्रोफिकेशन वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा जल क्षेत्र या उसके किसी हिस्से में खनिजों और पोषक तत्त्वों की मात्रा में वृद्धि होती है।
- इससे जल में घुलनशील ऑक्सीजन की मात्रा में कमी आती है।
- चूँकि सुंदरबन क्षेत्र समुद्र से लगा हुआ है, इसलिये क्षेत्र में प्लास्टिक के बढ़ने से प्लास्टिक कचरा समुद्र में प्रवेश कर सकता है।
- खारे जल में प्लास्टिक की मौजूदगी से जल की विषाक्तता में बढ़ोतरी हो जाती है जो पानी में सुपोषण (Eutrophication) की क्रिया को बढ़ा सकता है।
- खाद्य प्रणाली के लिये खतरा:
- पानी में प्लास्टिक के टूटने से माइक्रोप्लास्टिक की मात्रा में वृद्धि होगी, जिसके बाद खाद्य शृंखला में इसके प्रवेश का खतरा है।
- आजीविका पर प्रभाव:
- सुंदरबन काफी हद तक मत्स्य पालन और जलीय कृषि पर निर्भर है तथा पारिस्थितिकी तंत्र में कोई भी नाज़ुक बदलाव न केवल पारिस्थितिकी के लिये बल्कि आजीविका के विनाश का भी कारण बन सकता है।
कुछ संबंधित पहलें:
- वर्ष 2019 में केंद्र सरकार ने वर्ष 2022 तक भारत को एकल उपयोग वाले प्लास्टिक से मुक्त करने हेतु देश भर में एकल उपयोग प्लास्टिक के उपयोग को हतोत्साहित करने के लिये एक बहु-मंत्रालयी योजना तैयार की थी।
- प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के अनुसार, उत्पादों से उत्पन्न कचरे को इकट्ठा करने की ज़िम्मेदारी उन उत्पादों के उत्पादकों और ब्रांड मालिकों को सौंपी गई है।
सुंदरबन का महत्त्व
- सुंदरबन पारिस्थितिकी क्षेत्र गंगा-ब्रह्मपुत्र-मेघना (GBM) बेसिन के ज्वारीय सक्रिय निचले डेल्टा मैदान में स्थित है।
- यह सबसे बड़े मैंग्रोव वन और विश्व में एकमात्र मैंग्रोव बाघ निवास स्थान की मेज़बानी करता है।
- मैंग्रोव वन कई पारिस्थितिकी कार्य करते हैं जैसे कि बहुमूल्य लकड़ी हेतु पेड़ों का उत्पादन, आवास की व्यवस्था, फिनफिश एवं शेलफिश के लिये भोजन और प्रजनन स्थल (Spawning Ground), पक्षियों व अन्य महत्त्वपूर्ण जीवों हेतु आवास का प्रावधान, नई भूमि के निर्माण के लिये सुरक्षित तटरेखाओं तथा तलछट की अभिवृद्धि।
- बांग्लादेश और भारत के कुछ हिस्सों में फैले, वनाच्छादित क्षेत्रों के भीतर संरक्षित क्षेत्रों (PA) को संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) द्वारा दोनों देशों में विश्व धरोहर स्थलों के रूप में नामित किया गया है।
- दोनों देशों में 10,000 वर्ग किलोमीटर में फैले प्राकृतिक क्षेत्र भी रामसर साइट या अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की आर्द्रभूमि हैं।
- दोनों देशों में वन क्षेत्र को साफ कर अब वहाँ सामूहिक रूप से 7.5 मिलियन से अधिक लोगों के आवास हैं।
- यह क्षेत्र जीवों की विस्तृत शृंखला के लिये जाना जाता है, जिसमें 260 पक्षी प्रजातियाँ शामिल हैं और यह कई दुर्लभ एवं विश्व स्तर पर खतरे में पड़ी वन्यजीव प्रजातियों जैसे- एस्टुअरीन क्रोकोडाइल, रॉयल बंगाल टाइगर, वाटर मॉनिटर छिपकली, गंगा डॉल्फिन और ओलिव रिडले कछुओं का निवास स्थान है।
आगे की राह
- सरकार को सुंदरबन बायोस्फीयर रिज़र्व और सुंदरबन टाइगर रिज़र्व के प्रवेश द्वारों की मज़बूत सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित करनी चाहिये।
- गैर-सरकारी संगठनों (NGO) और स्थानीय लोगों को प्लास्टिक अपशिष्ट को इकट्ठा करने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये तथा उसका पुनर्नवीनीकरण भी किया जाना चाहिये।
- साथ ही सुंदरबन से प्लास्टिक हटाने के लिये सरकार को सफाई अभियान चलाना चाहिये।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय इतिहास
महाराजा रणजीत सिंह
प्रिलिम्स के लियेमहाराजा रणजीत सिंह मेन्स के लियेमहाराजा रणजीत सिंह का योगदान |
चर्चा में क्यों?
वर्ष 2019 में पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के ‘लाहौर किले’ में स्थापित महाराजा रणजीत सिंह की प्रतिमा को हाल ही में एक धार्मिक कट्टरपंथी संगठन ‘तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान’ (TLP) के सदस्य द्वारा तोड़ दिया गया।
प्रमुख बिंदु
प्रारंभिक जीवन
- उनका जन्म 13 नवंबर, 1780 को गुजरांवाला में हुआ था, जो कि अब पाकिस्तान में है।
- वह ‘महा सिंह’ की इकलौती संतान थे, जिनकी मृत्यु के बाद वर्ष 1792 में रणजीत सिंह एक सिख समूह ‘शुक्रचकियों’ के प्रमुख बने।
- उनकी रियासत में गुजरांवाला शहर और आसपास के गाँव शामिल थे, जो अब पाकिस्तान में हैं।
योगदान
- सिख साम्राज्य के संस्थापक:
- उन्होंने ‘मिस्लों’ को समाप्त कर सिख साम्राज्य की स्थापना की थी।
- उस समय पंजाब पर शक्तिशाली सरदारों का शासन था, जिन्होंने इस क्षेत्र को ‘मिस्लों’ में विभाजित किया था।
- मिस्ल, सिख संघ के संप्रभु राज्यों को संदर्भित करता है जो 18वीं शताब्दी के दौरान भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी भाग में पंजाब क्षेत्र में मुगल साम्राज्य के पतन के बाद उभरे थे।
- उन्होंने 19वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में उत्तर-पश्चिमी भारतीय उपमहाद्वीप पर शासन किया।
- लाहौर (उनकी राजधानी) को अफगान आक्रमणकारियों से मुक्त करने में उनकी सफलता के लिये उन्हें ‘पंजाब का शेर’ (शेर-ए-पंजाब) की उपाधि दी गई थी।
- उन्होंने ‘मिस्लों’ को समाप्त कर सिख साम्राज्य की स्थापना की थी।
- सेना का आधुनिकीकरण
- उन्होंने उस समय की एशिया की सबसे शक्तिशाली स्वदेशी सेना को और मज़बूत करने के लिये युद्ध में ‘पश्चिमी आधुनिक हथियारों’ के साथ पारंपरिक खालसा सेना को एकीकृत किया।
- उन्होंने अपने सैनिकों को प्रशिक्षित करने के लिये बड़ी संख्या में यूरोपीय अधिकारियों, विशेष रूप से फ्राँसीसी अधिकारियों को नियुक्त किया।
- उन्होंने अपनी सेना के आधुनिकीकरण के लिये एक फ्राँसीसी जनरल को नियुक्त किया था।
- विस्तृत साम्राज्य:
- रणजीत सिंह के अंतर-क्षेत्रीय साम्राज्य (कई राज्यों में फैले) में काबुल, पेशावर के अलावा लाहौर और मुल्तान के पूर्व मुगल प्रांत शामिल थे।
- इनके साम्राज्य की सीमाएँ लद्दाख तक थीं जो उत्तर-पूर्व में खैबर दर्रा (भारत पर आक्रमण करने के लिये विदेशी शासकों द्वारा अपनाया गया मार्ग) और दक्षिण में पंजनाद (जहाँ पंजाब की पाँच नदियाँ सिंधु में मिलती हैं) तक थीं।
विरासत:
- महाराजा अपने न्यायपूर्ण और धर्मनिरपेक्ष शासन के लिये जाने जाते थे। उनके दरबार में हिंदू और मुस्लिम दोनों को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया था।
- उन्होंने अमृतसर में हरमंदिर साहिब को सोने से ढककर स्वर्ण मंदिर में परिवर्तित किया दिया।
- उन्हें महाराष्ट्र के नांदेड़ में गुरु गोबिंद सिंह के अंतिम विश्राम स्थल पर हजूर साहिब गुरुद्वारे के वित्तपोषण का श्रेय भी दिया जाता है।
मृत्यु:
- एक विजेता के रूप में लाहौर शहर में प्रवेश करने के लगभग 40 साल बाद जून 1839 में लाहौर में उनकी मृत्यु हो गई।
- उनकी मृत्यु के छह वर्ष बाद ही उनके द्वारा स्थापित सिख राज्य ध्वस्त हो गया जिसका प्रमुख कारण प्रमुख प्रतिद्वंद्वी समूहों के बीच आंतरिक संघर्ष था।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान:
- वर्ष 2016 में फ्रांँस के सेंट ट्रोपेज़ शहर में सम्मान के प्रतीक के रूप में महाराजा की कांस्य प्रतिमा का अनावरण किया।
- उनके सिंहासन को लंदन के विक्टोरिया और अल्बर्ट संग्रहालय में प्रमुख रूप से प्रदर्शित किया गया है।
- वर्ष 2018 में लंदन ने एक प्रदर्शनी की मेज़बानी की जो सिख साम्राज्य के इतिहास और महाराजा द्वारा बनाए गए अंतर्राष्ट्रीय संबंधों पर केंद्रित थी
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय अर्थव्यवस्था
वित्तीय समावेशन सूचकांक
प्रिलिम्स के लियेभारतीय रिज़र्व बैंक, वित्तीय समावेशन सूचकांक, प्रधानमंत्री जन धन योजना मेन्स के लियेवित्तीय समावेशन का संक्षिप्त परिचय तथा इससे संबंधित लाभ एवं हानि, वित्तीय समावेशन से संबंधित प्रमुख पहलें |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने पहले समग्र वित्तीय समावेशन सूचकांक (FI-Index) की शुरुआत की।
- मार्च 2021 को समाप्त हुए वित्तीय वर्ष में वार्षिक FI-सूचकांक 53.9 है, जबकि मार्च 2017 की समाप्ति के दौरान यह 43.4 था।
प्रमुख बिंदु
परिचय :
- वित्तीय समावेशन सूचकांक की अवधारणा एक व्यापक सूचकांक के रूप में की गई है जिसमें सरकार और क्षेत्रीय नियामकों के परामर्श से बैंकिंग, बीमा, निवेश, डाक तथा पेंशन क्षेत्र का विवरण शामिल है।
- इसका वार्षिक प्रकाशन प्रत्येक वर्ष जुलाई में किया जाता है।
- FI-Index का निर्माण बिना किसी 'आधार वर्ष' (Base Year) के किया गया है और इस तरह यह वित्तीय समावेशन (Financial Inclusion) की दिशा में वर्षों से सभी हितधारकों के साझा प्रयासों को दर्शाता है।
लक्ष्य :
- देश भर में वित्तीय समावेशन की सीमा को मापने के लिये एक समग्र वित्तीय समावेशन सूचकांक का निर्माण करना।
मापदंड :
- यह सूचकांक 0 और 100 के बीच की एकल संख्या में वित्तीय समावेशन के विभिन्न पहलुओं पर जानकारी प्राप्त करता है, जहाँ 0 पूर्ण वित्तीय अपवर्जन का प्रतिनिधित्व करता है, वहीं 100 पूर्ण वित्तीय समावेशन को दर्शाता है।
- इसमें तीन व्यापक पैरामीटर (भार कोष्ठक में दर्शाए गए हैं) अर्थात् एक्सेस (35%), उपयोग (45%) और गुणवत्ता (20%) शामिल हैं, जिनमें से प्रत्येक में विभिन्न आयाम शामिल हैं, जिनकी गणना कुछ संकेतकों के आधार पर की जाती है।
- यह सूचकांक सेवाओं की पहुँच, उपलब्धता एवं उपयोग तथा सेवाओं की गुणवत्ता मापने में आसानी के लिये अनुक्रियाशील है, जिसमें सभी 97 संकेतक शामिल हैं।
वित्तीय समावेशन सूचकांक का महत्त्व:
- समावेशन का आकलन: यह सूचकांक वित्तीय समावेशन के स्तर के बारे में जानकारी प्रदान करता है और आंतरिक नीति निर्माण में उपयोग के लिये वित्तीय सेवाओं का आकलन प्रस्तुत करता है।
- विकास संकेतक: इसका उपयोग प्रत्यक्ष विकास संकेतकों में एक समग्र उपाय के रूप में किया जा सकता है।
- G20 संकेतकों को पूरा करता है: यह G20 वित्तीय समावेशन संकेतक आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम है।
- G20 संकेतक राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर वित्तीय समावेशन एवं डिजिटल वित्तीय सेवाओं की स्थिति का आकलन करते हैं।
- शोधकर्त्ताओं के लिये महत्त्वपूर्ण: यह शोधकर्त्ताओं को वित्तीय समावेशन और अन्य व्यापक आर्थिक चरों के प्रभाव का अध्ययन करने की सुविधा प्रदान करता है।
संबंधित पहलें:
- प्रधानमंत्री जन धन योजना:
- अगस्त 2014 में इस योजना की घोषणा की गई थी, जो वित्तीय समावेशन के लिये एक स्थिर साधन साबित हुई।
- अब तक देश में लगभग 43 करोड़ गरीब लाभार्थियों के पास योजना के तहत एक मूल बैंक खाता है।
- डिजिटल पहचान (आधार):
- इसने वित्तीय सेवाओं के वितरण में समावेश और नवाचार को उत्प्रेरित किया है।
- वित्तीय शिक्षा के लिये राष्ट्रीय केंद्र (NCFE):
- भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने वित्तीय रूप से जागरूक एवं सशक्त भारत के निर्माण हेतु वित्तीय शिक्षा के लिये राष्ट्रीय रणनीति: 2020-2025 (National Strategy for Financial Education: 2020-2025) जारी की है।
- वित्तीय साक्षरता केंद्र (CFL) परियोजना:
- RBI द्वारा 2017 में CFL परियोजना को ब्लॉक स्तर पर वित्तीय साक्षरता के लिये एक अभिनव और भागीदारी दृष्टिकोण के रूप में संकल्पित किया गया है जिसमें चुनिंदा बैंक और गैर-सरकारी संगठन ((NGOs) शामिल हैं।
- शुरुआत में पायलट आधार पर 100 ब्लॉकों में स्थापित इस परियोजना को अब मार्च 2024 तक चरणबद्ध तरीके से पूरे देश के हर ब्लॉक में बढ़ाया जा रहा है।