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जैव विविधता और पर्यावरण

महासागरों में घटता ऑक्सीजन स्तर

  • 09 Dec 2019
  • 6 min read

प्रीलिम्स के लिये

समुद्र में ऑक्सीजन स्तर घटने के कारण, IUCN क्या है?

मेन्स के लिये

समुद्री पारिस्थितिकी पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रकृति संरक्षण के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय स्तर के निकाय IUCN (International Union for the Conservation of Nature) ने अपने अध्ययन में कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण महासागरों में ऑक्सीजन की मात्रा में लगातार कमी हो रही है जिसका महासागरीय जीवों, तथा अन्य तटीय जीवों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।

मुख्य बिंदु:

  • IUCN के अनुसार, वैश्विक स्तर पर लगभग ऐसे 700 समुद्री स्थानों की पहचान की गई है जहाँ ऑक्सीजन का स्तर कम है। वर्ष 1960 में ऐसे स्थानों की संख्या मात्र 45 थी।
  • इसी अवधि के दौरान विश्व में एनॉक्सिक वाटर (Anoxic Water) की मात्रा में चार गुना बढ़ोतरी हुई है।

एनॉक्सिक वाटर (Anoxic Water): जिस पानी में ऑक्सीजन की मात्रा बिलकुल नगण्य हो।

  • इस अध्ययन द्वारा बताया गया कि समुद्रों में डीऑक्सीकरण (Deoxygenation) की वजह से उन समुद्री जीवों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है जिन्हें अधिक ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है।
  • समुद्री तटों पर पाए जाने वाले बायोम, जहाँ विश्व की सभी मछलियों का पांचवां हिस्सा पाया जाता है, की तरफ आने वाली समुद्री जलधाराओं में ऑक्सीजन की मात्रा में लगातार कमी हुई है।
  • IUCN ने इसी वर्ष जारी एक अध्ययन में विश्व के प्राकृतिक अधिवासों के संदर्भ में कहा था कि मानवीय गतिविधियों की वजह से विश्व के 10 लाख जीव-जंतु विलुप्ति के कगार पर हैं।
  • इसके अलावा विश्व मौसम संगठन (World Meterological Organization) ने भी अपने हालिया रिपोर्ट में यह कहा है कि मानवजनित कारणों की वजह से समुद्रों की अम्लीयता (Acidification) में पूर्व-औद्योगिक काल की तुलना में 26 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

प्रभाव:

  • जीवाश्म ईंधन जनित विश्व के कुल उत्सर्जन का लगभग एक-चौथाई हिस्सा महासागरों द्वारा अवशोषित किया जाता है लेकिन ईंधन की बढ़ती मांग से यह आशंका जताई जा रही है कि आने वाले समय में विश्व के अधिकांश समुद्र संतृप्त अवस्था (Saturation Point) में पहुँच जाएंगे।
  • यदि वर्तमान स्थिति बनी रही तो महासागर वर्ष 2100 तक अपने कुल ऑक्सीजन का 3-4 प्रतिशत ऑक्सीजन खो देंगे। ऑक्सीजन में होने वाली यह कमी मुख्य तौर पर समुद्र की ऊपरी सतह में 1000 मीटर तक होती है जो कि जैव-विविधता के लिहाज़ से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
  • समुद्री प्रजातियों में शार्क, मर्लिन तथा टूना आदि, जिनका आस्तित्व जोखिम में है, ऑक्सीजन की कमी को लेकर बेहद संवेदनशील हैं। बड़े शरीर तथा अधिक उर्जा की मांग की वजह से इन्हें ऑक्सीजन की आवश्यकता अधिक होती है।

आगे की राह:

  • महासागरों में हो रहे ऑक्सीजन की कमी को रोकने के लिये आवश्यक है कि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी की जाए।
  • समुद्री तटों पर कृषि एवं अन्य स्रोतों द्वारा होने वाले न्यूट्रियेन्ट पॉल्यूशन (Nutrient Pollution) की रोकथाम के लिये आवश्यक है कि समुद्री जल में मिलने से पूर्व इनका उपचार किया जाए।

न्यूट्रियेन्ट पॉल्यूशन (Nutrient Pollution) या सुपोषण (Eutrophication):

  • घरेलू कचरे, औद्योगिक इकाइयों तथा कृषि से उत्सर्जित अपशिष्ट, जिसमें फास्फोरस और नाइट्रोजन उर्वरक मौजूद होते हैं, को नदियों में बहाया जाता है। फास्फोरस व नाइट्रोजन जैसे तत्त्वों के पानी में मौजूद होने के कारण इसकी उर्वरता बढ़ जाती है।
  • इससे जल में शैवाल एवं अन्य वनस्पतियों का अत्यधिक विकास हो जाता है तथा इसके प्रत्युत्तर में जल में ऑक्सीजन की मात्रा में कमी हो जाती है।
  • समुद्री पारिस्थितिकी के संरक्षण के लिये देशों को वर्तमान में स्पेन की राजधानी मैड्रिड में चल रहे COP25 में एक वृहत रणनीति बनाने की आवश्यकता है जिससे समुद्रों को गर्म तथा अम्लीय होने से बचाया जा सके।
  • जून, 2020 में विश्व के प्रतिनिधि IUCN की विश्व संरक्षण कॉन्ग्रेस (World Conservation Congress) के लिये फ्राँस के शहर मर्से (Marseille) में एकत्रित होंगे जहाँ इस समस्या से निपटने के लिये देशों को आपस में व्यापक सहमति बनाने की आवश्यकता है।

स्रोत: द हिंदू

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