आंतरिक सुरक्षा
बोडोलैंड राज्य आंदोलन
- 19 Oct 2020
- 9 min read
प्रिलिम्स के लिये:ऑल इंडिया बोडो पीपुल्स नेशनल लीग फॉर बोडोलैंड स्टेटहुड, बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल मेन्स के लिये:बोडोलैंड राज्य आंदोलन की पृष्ठभूमि, कारण एवं इस समस्या के समाधान के लिये सरकार द्वारा किये गए प्रयास |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में एक नए संगठन ‘ऑल इंडिया बोडो पीपुल्स नेशनल लीग फॉर बोडोलैंड स्टेटहुड’(All India Bodo People’s National League for Bodoland Statehood) द्वारा ‘बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल’ (Bodoland Territorial Council-BTC) के चुनावों से पहले ‘बोडोलैंड राज्य आंदोलन’ (Bodoland Statehood Movement) की शुरुआत/पुनरुद्धार( Revival ) करने की घोषणा की गई है।
प्रमुख बिंदु:
- बोडोज़ के बारे में: यह असम में अधिसूचित अनुसूचित जनजातियों का सबसे बड़ा समुदाय है। बोडो-कचारी समूह (Larger Umbrella of Bodo-Kachari) के रूप में असम की कुल आबादी में बोडो समुदाय की लगभग 5-6% जनसंख्या निवास करती है।
बोडो राज्य आंदोलन के बारे में:
- वर्ष 1967-68: बोडो राज्य के लिये सर्वप्रथम संगठित मांग असम के राजनीतिक दल ‘मैदानी आदिवासी परिषद’( Plains Tribals Council of Assam) द्वारा की गई।
- वर्ष 1986: ‘सशस्त्र समूह बोडो सिक्योरिटी फोर्स’(The armed group Bodo Security Force) का उदय हुआ, जिसने बाद में स्वयं को ‘नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड’(National Democratic Front of Bodoland-NDFB) में तब्दील कर लिया। इस संगठन को हमलों, हत्याओं एवं लोगों से ज़बरन वसूली में शामिल माना जाता है। बाद में इस गुट का विभाजन हो गया।
- वर्ष 1987: ‘ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन’ (All Bodo Students Union -ABSU) द्वारा बोडो राज्य की मांग फिर से उठाई गई।
- असम आंदोलन (1979-85) जिसकी परिणति ‘असम समझौते’ के रूप में हुई, ने ‘असमिया लोगों’ (Assamese People) के लिये सुरक्षा एवं सुरक्षा उपायों की मांग को संबोधित किया तथा इसने बोडो समुदाय को उनकी पहचान की रक्षा के लिये एक आंदोलन शुरू करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की।
- 1990 का दशक: भारतीय सुरक्षा बलों (Indian security forces) द्वारा NDFB के विरुद्ध व्यापक स्तर पर अभियान चलाया गया, इसने बाद में भूटान की सीमा पर पलायन कर लिया।
- 2000 के प्रारंभिक दशक में NDFB को भूटान में भारतीय सेना (Indian Army) और रॉयल भूटान सेना (Royal Bhutan Army) द्वारा चलाए गए कठोर आतंकवाद विरोधी अभियानों का सामना करना पड़ा।
सरकारी हस्तक्षेप:
- वर्ष 1993 का बोडो समझौता/अकॉर्ड : वर्ष 1987 के ABSU के नेतृत्व वाले आंदोलन का समापन वर्ष 1993 के बोडो समझौते द्वारा हुआ , जिसने ‘बोडोलैंड स्वायत्त परिषद’ (Bodoland Autonomous CounciI-BAC) का मार्ग प्रशस्त किया, लेकिन ABSU द्वारा स्वयं को इस समझौते से बाहर करते हुए फिर से एक अलग राज्य की मांग की गई।
- वर्ष 2003 का बोडो समझौता/अकॉर्ड: 2003 में दूसरा बोडो समझौता चरमपंथी समूह ‘बोडो लिबरेशन टाइगर फोर्स’ (Bodo Liberation Tiger Force- BLTF) एवं केंद्र तथा राज्य सरकार के मध्य संपन्न हुआ जिसे ‘बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल’ (Bodoland Territorial Council- BTC) द्वारा लागू किया गया।
- BTC संविधान की छठी अनुसूची के तहत एक स्वायत्त निकाय है।
- BTC के अंतर्गत आए क्षेत्र को ‘बोडो प्रादेशिक स्वायत्त ज़िला’ (Bodo Territorial Autonomous District- BTAD) कहा जाता है।
- वर्ष 2020 का समझौता: केंद्र सरकार द्वारा बोडो मुद्दे के ‘स्थायी’ समाधान के लिये राज्य सरकार और विभिन्न बोडो समूहों सहित नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (NDFB) के चार गुटों के साथ एक त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किये गए जिसके कुछ मुख्य प्रावधान इस प्रकार हैं:
- यह समझौता ‘BTAD के क्षेत्र में परिवर्तन’ (Alteration of Area of BTAD) एवं ‘BTAD के बाहर बोडो के लिये प्रावधान’ (Provisions for Bodos Outside BTAD) प्रदान करता है।
- BTAD का नाम बदलकर ‘बोडोलैंड टेरिटोरियल रीजन’ (Bodoland Territorial Region-BTR) कर दिया गया।
- यह BTC के लिये अधिक विधायी, कार्यकारी, प्रशासनिक और वित्तीय शक्तियों का प्रावधान करता है।
- NDFB के आत्मसमर्पण कर चुके आतंकवादियों के पुनर्वास की व्यवस्था करना तथा क्षेत्र के विकास के लिये 1500 करोड़ रुपए के एक विशेष विकास पैकेज का प्रावधान।
वर्तमान बोडोलैंड राज्य आंदोलन का पुनरुद्धार:
- नए संगठन के अनुसार, नया समझौता (2020) बोडो लोगों के साथ एक विश्वासघात है। यह समझौता वर्तमान में BTC के तहत निर्धारित क्षेत्र को कम करता है।
- यह समझौता 50% से अधिक गैर-बोडो लोगों को BTR गाँवों से बाहर करने का प्रावधान करता है एवं वर्ष 2003 के समझौते के बाद BTC मानचित्र से बाहर हुए 50% से अधिक बोडो गाँवों के लोगों को शामिल करता है।
आगे की राह:
- इस समझौते में शामिल हस्ताक्षरकर्त्ताओं पर दबाव होगा कि वे समझौते के सफल कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये कोई रास्ता निकालें जिसके लिये प्रासंगिक संगठनों के समर्थन की आवश्यकता होगी।
- इसके अलावा गैर-बोडो समुदायों जैसे- कोच-राजबंगशियों, आदिवासियों तथा धार्मिक एवं भाषायी अल्पसंख्यकों द्वारा नवीनतम समझौते के विरोध ने आशंकाओं को जन्म दिया है। अगर समय रहते उनकी शिकायतों का समाधान नहीं किया जाता है, तो असम में नृजातीय समूहों में विभेदीकरण की समस्या और गंभीर हो जाएगी। इस प्रकार इस समझौते की सफलता BTR में पावर-शेयरिंग व्यवस्था का कार्य करने वाले हितधारकों में निहित होगी जिन्हें ‘आधिपत्य पर विशेषाधिकार’ (Privileges Equity over Hegemony) प्राप्त है ।
- असम के बोडो हार्टलैंड (Bodo Heartland) क्षेत्र में शांति तब तक बनी रहेगी जब तक कि सभी साझा समावेशी शक्तियाँ एवं शासन मॉडल, छठी अनुसूची के प्रावधानों के तहत विकसित नहीं हो जाते हैं।