शासन व्यवस्था
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना
प्रिलिम्स के लिये:कृषि से संबंधित योजनाएँ, केंद्रीय क्षेत्र की योजना, परिशुद्ध सिंचाई प्रणाली, त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम, हर खेत को पानी, परिशुद्ध सिंचाई प्रणाली मेन्स के लिये:प्रधानमंत्री किसान सिंचाई योजना, इसके उद्देश्य और महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (CCEA) ने 93,068 करोड़ रुपए के परिव्यय के साथ वर्ष 2026 तक प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (Pradhan Mantri Krishi Sinchayee Yojna- PMKSY) के विस्तार को मंज़ूरी दी।
सरकार ने त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम (AIBP), हर खेत को पानी (HKKP) और PMKSY के वाटरशेड विकास घटकों को चार वर्ष (2021-22 से 2025-26) तक के लिये मंज़ूरी दे दी है।
प्रमुख बिंदु
- प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के बारे में:
- यह वर्ष 2015 में शुरू की गई एक केंद्र प्रायोजित योजना (कोर योजना) है। केंद्र-राज्य की हिस्सेदारी 75:25 प्रतिशत में होगी। उत्तर-पूर्वी क्षेत्र और पहाड़ी राज्यों के मामले में यह अनुपात 90:10 रहेगा।
- इससे ढाई लाख अनुसूचित जाति और दो लाख अनुसूचित जनजाति के किसानों सहित लगभग 22 लाख किसानों को लाभ होगा।
- जल शक्ति मंत्रालय ने वर्ष 2020 में PMKSY के तहत परियोजनाओं के घटकों की जियो-टैगिंग हेतु एक मोबाइल एप्लिकेशन लॉन्च किया।
- इसके तीन मुख्य घटक हैं- त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम (AIBP), हर खेत को पानी (HKKP) और वाटरशेड डेवलपमेंट।
- वर्ष 1996 में AIBP को राज्यों की संसाधन क्षमताओं से अधिक सिंचाई परियोजनाओं के कार्यान्वयन में तेज़ी लाने के उद्देश्य से शुरू किया गया था।
- HKKP का उद्देश्य लघु सिंचाई के माध्यम से नए जल स्रोत निर्मित करना है। जल निकायों की मरम्मत, बहाली और नवीनीकरण, पारंपरिक जल स्रोतों की वहन क्षमता को मज़बूत करना, वर्षा जल संचयन संरचनाओं का निर्माण।
- इसके उप घटकों में शामिल हैं: कमान क्षेत्र विकास (CAD), भूतल लघु सिंचाई (SMI), जल निकायों की मरम्मत, नवीनीकरण और बहाली (RRR), भूजल विकास।
- वाटरशेड डेवलपमेंट में अपवाह जल का प्रभावी प्रबंधन और मिट्टी और नमी संरक्षण गतिविधियों में सुधार जैसे कि रिज क्षेत्र उपचार, ड्रेनेज़ लाइन 5 ट्रीटमेंट, वर्षा जल संचयन, इन-सीटू नमी संरक्षण और वाटरशेड के आधार पर अन्य संबद्ध गतिविधियाँ शामिल हैं।
- यह वर्ष 2015 में शुरू की गई एक केंद्र प्रायोजित योजना (कोर योजना) है। केंद्र-राज्य की हिस्सेदारी 75:25 प्रतिशत में होगी। उत्तर-पूर्वी क्षेत्र और पहाड़ी राज्यों के मामले में यह अनुपात 90:10 रहेगा।
- उद्देश्य:
- क्षेत्रीय स्तर पर सिंचाई में निवेश का अभिसरण,
- सुनिश्चित सिंचाई के तहत खेती योग्य क्षेत्र का विस्तार करना (हर खेत को पानी),
- पानी की बर्बादी को कम करने के लिये ऑन-फार्म जल उपयोग दक्षता में सुधार,
- ‘जलभृत’ (Aquifers) के पुनर्भरण को बढ़ाने के लिये और पेरी-अर्बन कृषि के लिये उपचारित नगरपालिका आधारित पानी के पुन: उपयोग की व्यवहार्यता की खोज करके स्थायी जल संरक्षण प्रथाओं को शुरू करना और एक परिशुद्ध सिंचाई प्रणाली में अधिक-से-अधिक निजी निवेश को आकर्षित करना।
- ‘जलभृत’ भू-जल से संतृप्त चट्टान या तलछट का एक निकाय है। वर्षा का जल मिट्टी के रिसाव के कारण भूजल एक जलभृत में प्रवेश करता है। यह जलभृत के माध्यम से आगे बढ़ता है और झरनों तथा कुओं के माध्यम से फिर से सतह पर आ जाता है।
- ‘पेरी-अर्बन कृषि’ शहर के नज़दीक कृषि इकाईयों को संदर्भित करती है, जो सब्जियों और अन्य बागवानी को विकसित करने, मुर्गियों तथा अन्य पशुओं को पालने और दूध तथा अंडे का उत्पादन करने के लिये गहन अर्द्ध या पूरी तरह से वाणिज्यिक खेतों का संचालन करती हैं।
- परिशुद्ध सिंचाई एक नवीन तकनीक है, जो जल के बेहतर उपयोग से संबंधित है और किसानों को कम-से-कम पानी में उच्च स्तर की फसल उपज प्राप्त करने में मदद करती है।
- निरूपण: इसे निम्नलिखित योजनाओं को मिलाकर तैयार किया गया था:
- त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम (AIBP)- जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय (अब जल शक्ति मंत्रालय)।
- एकीकृत वाटरशेड प्रबंधन कार्यक्रम (IWMP)- भूमि संसाधन विभाग, ग्रामीण विकास मंत्रालय।
- ऑन-फार्म जल प्रबंधन (OFWM)- कृषि और सहकारिता विभाग (DAC)।
- कार्यान्वयन: राज्य सिंचाई योजना और ज़िला सिंचाई योजना के माध्यम से विकेंद्रीकृत कार्यान्वयन।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
अमेरिका द्वारा चीन पर नए प्रतिबंध
प्रिलिम्स के लिये:उइगर मुस्लिम, शिंजियांग की अवस्थिति, उइगर मुसलमानों के लिये घोषणा मेन्स के लिये:चीन की कई बायोटेक और निगरानी एजेंसियों पर प्रतिबंध, विश्व में मानवाधिकारों का उल्लंघन, उइगर मुसलमानों से जुड़े मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
चीन के शिनजियांग क्षेत्र में उइगर मुस्लिमों के मानवाधिकारों के हनन को लेकर अमेरिका चीन की कई बायोटेक और निगरानी एजेंसी एवं सरकारी संस्थाओं पर नए प्रतिबंध लगा रहा है।
- शिंजियांग तकनीकी रूप से चीन भू-भाग में एक स्वायत्त क्षेत्र है - इसका सबसे बड़ा क्षेत्र, खनिजों में समृद्ध तथा भारत, पाकिस्तान, रूस और अफगानिस्तान सहित आठ देशों के साथ सीमा साझा करता है।
प्रमुख बिंदु
- अमेरिकी प्रतिबंध:
- अमेरिकी वाणिज्य विभाग चीन की सैन्य चिकित्सा विज्ञान अकादमी और उसके 11 शोध संस्थानों को लक्षित कर रहा है जो चीनी सेना का समर्थन करने के लिये जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग करने पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
- अमेरिकी ट्रेजरी विभाग भी कई चीन की संस्थाओं के खिलाफ पेनाल्टी जारी करने की तैयारी कर रहा है।
- यह कदम अमेरिकी कंपनियों को बिना लाइसेंस के इकाइयों को कलपुर्जे बेचने से रोकेगा।
- अमेरिकी प्रशासन ने द्वारा बाइपार्टिसन/द्विदलीय कानून का समर्थन किया गया जो शिनजियांग से यू.एस. में आयात पर प्रतिबंध लगाता है जब तक कि कंपनियों द्वारा इस बात की पुष्टि नहीं की जा सकती कि माल का उत्पादन करने में जबरन श्रम शक्ति का प्रयोग नहीं हुआ था।
- इससे पूर्व वर्ष 2020 में यूनाइटेड स्टेट्स हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव ने उइगर मुसलमानों के उत्पीड़न के लिये ज़िम्मेदार चीनी अधिकारियों पर प्रतिबंध लगाने हेतु एक कानून को मंज़ूरी दी थी।
- विधेयक चीन के शिनजियांग प्रांत में उइगरों और अन्य मुस्लिम समूहों के दमन के लिये ज़िम्मेदार लोगों के खिलाफ प्रतिबंध लगाने का आह्वान करता है।
- विधेयक संयुक्त राज्य अमेरिका की कंपनियों या शिनजियांग क्षेत्र में कार्य करने वाले व्यक्तियों हेतु यह सुनिश्चित करने के लिये लाया गया है कि उनके उत्पादों में उइगरों के जबरन श्रम का उपयोग शामिल नहीं हैं।
- अमेरिकी वाणिज्य विभाग चीन की सैन्य चिकित्सा विज्ञान अकादमी और उसके 11 शोध संस्थानों को लक्षित कर रहा है जो चीनी सेना का समर्थन करने के लिये जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग करने पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
- उइगर मुसलमानों के लिये घोषणा:
- हाल ही में 43 देशों ने चीन से शिनजियांग में मुस्लिम उइघुर समुदाय के लिये कानून के शासन हेतु पूर्ण सम्मान सुनिश्चित करने के लिये एक घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किये हैं।
- इस उद्घोषणा पर अमेरिका और अन्य देशों ने चीन पर मानवाधिकारों के उल्लंघन तथा उइगर मुसलमानों के खिलाफ नृजातीय संहार का आरोप लगाते हुए हस्ताक्षर किये थे।
- वर्ष 2019 और 2020 में इसी तरह की घोषणाओं ने शिनजियांग में अपनी नीतियों के लिये चीन की निंदा की, जहाँ संयुक्त राज्य अमेरिका ने बीजिंग पर नरसंहार करने का आरोप लगाया है।
- इसने मानवाधिकारों की रक्षा के लिये शिनजियांग तक संयुक्त राष्ट्र के उच्चायुक्त सहित स्वतंत्र पर्यवेक्षकों की पहुँच स्थापित करने का भी आह्वान किया।
- इसने शिनजियांग उइगर स्वायत्त क्षेत्र में 'राजनीति संबंधी शिक्षा' शिविरों के एक बड़े नेटवर्क के अस्तित्त्व का उल्लेख किया, जहाँ एक लाख से अधिक लोगों को मनमाने ढंग से हिरासत में लिया गया है।
- हालाँकि चीन अपने शिविरों के 'शैक्षिक केंद्र' होने का दावा करता है, जहाँ उइगरों को व्यावसायिक कौशल सिखाकर उनके चरमपंथी विचारों को परिवर्तित किया जा रहा है।
- चीन का पक्ष:
- चीन का दावा है कि उइगर समूह एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना करना चाहते हैं और उइगरों के अपने पड़ोसी नेताओं के साथ सांस्कृतिक संबंधों के कारण उन्हें डर है कि पाकिस्तान शिनजियांग में अलगाववादी आंदोलन का समर्थन कर सकता है।
- चीन ने किसी भी तरह के नृजातीय संहार के आरोपों से इनकार किया है और कहा है कि आतंकवाद और अलगाववादी आंदोलन का मुकाबला करने के लिये उसने जो कदम उठाए हैं, वे ज़रूरी हैं।
- भारत का पक्ष:
- उइगर संकट पर भारत सरकार ने लगभग चुप्पी साध रखी है।
उइगर मुस्लिम
- परिचय:
- उइगर मुख्य रूप से मुस्लिम अल्पसंख्यक तुर्क जातीय समूह हैं, जिनकी उत्पत्ति मध्य एवं पूर्वी एशिया से मानी जाती है।
- उइगरों की भाषा काफी हद तक तुर्की भाषा के समान है और उइगर स्वयं को सांस्कृतिक एवं जातीय रूप से मध्य एशियाई देशों के करीब पाते हैं।
- उइगर मुस्लिमों को चीन में आधिकारिक तौर पर मान्यता प्राप्त 55 जातीय अल्पसंख्यक समुदायों में से एक माना जाता है।
- हालाँकि चीन उइगर मुस्लिमों को केवल एक क्षेत्रीय अल्पसंख्यक के रूप में मान्यता देता है और यह अस्वीकार करता है कि वे स्वदेशी समूह हैं।
- वर्तमान में उइगर जातीय समुदाय की सबसे बड़ी आबादी चीन के शिनजियांग क्षेत्र में रहती है।
- उइगर मुस्लिमों की एक महत्त्वपूर्ण आबादी पड़ोसी मध्य एशियाई देशों जैसे- उज़्बेकिस्तान, किर्गिज़स्तान और कज़ाखस्तान में भी रहती है।
- उइगर मुख्य रूप से मुस्लिम अल्पसंख्यक तुर्क जातीय समूह हैं, जिनकी उत्पत्ति मध्य एवं पूर्वी एशिया से मानी जाती है।
- उइगरों का उत्पीड़न:
- बहुसंख्यक हान समुदाय की घुसपैठ: पिछले कुछ दशकों में चीन के शिनजियांग प्रांत की आर्थिक समृद्धि में काफी बढ़ोतरी हुई है और इसी के साथ इस प्रांत में चीन के हान समुदाय के लोगों की संख्या में भी काफी वृद्धि हुई है।
- ये लोग इस क्षेत्र में बेहतर रोज़गार कर रहे हैं, जिसके कारण उइगर मुस्लिमों के समक्ष आजीविका एवं अस्तित्व का संकट उत्पन्न हो गया है।
- इसी वजह से वर्ष 2009 में दोनों समुदायों के बीच हिंसा भी हुई, जिसके कारण शिनजियांग प्रांत की राजधानी उरुमकी में 200 से अधिक लोग मारे गए, जिनमें अधिकतर चीन के हान समुदाय से संबंधित थे।
- राज्य द्वारा दमन: उइगर मुस्लिम दशकों से उत्पीड़न, ज़बरन नज़रबंदी, गहन जाँच, निगरानी और यहाँ तक कि गुलामी जैसे तमाम तरह के दुर्व्यवहारों का सामना कर रहे हैं।
- उइगर मुस्लिमों को दबाने हेतु व्यवस्थित प्रयास: अमेरिकी खुफिया एजेंसी की मानें तो चीन ने शिनजियांग प्रांत में एक उच्च तकनीक निगरानी प्रणाली स्थापित की है, जो बायोमेट्रिक चेहरे की पहचान का उपयोग करती है और शिनजियांग में 12 से 65 वर्ष की आयु के सभी निवासियों से डीएनए नमूने एकत्र किये हैं।
- चीन इन तकनीकों का उपयोग अपने लोगों पर नियंत्रण और जातीय एवं धार्मिक अल्पसंख्यक समूहों के सदस्यों के दमन के लिये कर रहा है।
- बहुसंख्यक हान समुदाय की घुसपैठ: पिछले कुछ दशकों में चीन के शिनजियांग प्रांत की आर्थिक समृद्धि में काफी बढ़ोतरी हुई है और इसी के साथ इस प्रांत में चीन के हान समुदाय के लोगों की संख्या में भी काफी वृद्धि हुई है।
आगे की राह
- सभी देशों को उइगर मुस्लिमों को लेकर अपनी स्थिति पर पुनर्विचार करना चाहिये और शिनजियांग प्रांत में मुस्लिमों के साथ हो रहे उत्पीड़न को रोकने के लिये चीन से तत्काल आग्रह करना चाहिये।
- चीन को सही मायने में बहुसंस्कृतिवाद की अवधारणा को अपनाना चाहिये और उइगरों तथा चीन के अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों को चीन के सामान्य नागरिक की तरह स्वीकार करना चाहिये।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
बैंकों का निजीकरण
प्रीलिम्स के लिये:भारत में बैंकिंग और संबंधित कानून, भारतीय रिज़र्व बैंक, ‘एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी’ (बैड बैंक), मेन्स के लिये:बैंकों का निजीकरण, इसका महत्त्व और संबंधित मुद्दे, बैंकों का राष्ट्रीयकरण |
प्रमुख बिंदु
हाल ही में सरकार ने बैंकिंग कानून (संशोधन) विधेयक 2021 के कुछ प्रमुख पहलुओं पर फिर से विचार करने का निर्णय लिया है, जिसका उद्देश्य संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान दो सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (PSB) का निजीकरण करना है।
- पिछले सत्र में सरकार ने इस संबंध में एक विधेयक पारित किया था, जो सामान्य बीमा व्यवसाय (राष्ट्रीयकरण) संशोधन विधेयक, 2021 के माध्यम से राज्य के स्वामित्त्व वाली सामान्य बीमा कंपनियों के निजीकरण की अनुमति देता है।
बैंकिंग कानून (संशोधन विधेयक) 2021
- केंद्रीय बजट 2021-22 में वित्त मंत्री द्वारा बताए गए विनिवेश लक्ष्यों को पूरा करने के लिये दो सार्वजनिक क्षेत्रक बैंकों के निजीकरण हेतु विधेयक का उद्देश्य वर्ष 1970 और वर्ष 1980 के बैंकिंग कंपनियों के अधिग्रहण और हस्तांतरण कानूनों तथा बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 में संशोधन करना है।
- इन्हीं कानूनों के माध्यम से बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया था, ऐसे में निजीकरण का मार्ग प्रशस्त करने हेतु इन कानूनों के प्रासंगिक प्रावधानों को बदलना आवश्यक है।
- इस कदम से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में न्यूनतम सरकारी हिस्सेदारी 51% से कम होकर 26% हो जाएगी।
प्रमुख बिंदु
- परिचय
- निजीकरण
- सरकार से निजी क्षेत्र में स्वामित्व, संपत्ति या व्यवसाय के हस्तांतरण को निजीकरण कहा जाता है। इसके तहत सरकार इकाई या व्यवसाय की स्वामी नहीं रह जाती है।
- निजीकरण को कंपनी में अधिक दक्षता और निष्पक्षता लाने की दृष्टि से अधिक महत्त्वपूर्ण माना जाता है।
- भारत वर्ष 1991 के ऐतिहासिक सुधार के बाद निजीकरण की ओर आगे बढ़ा था, जिसे 'नई आर्थिक नीति या एलपीजी नीति' के रूप में भी जाना जाता है।
- राष्ट्रीयकरण
- राष्ट्रीयकरण निजी तौर पर नियंत्रित कंपनियों, उद्योगों या संपत्तियों को सरकार के नियंत्रण में रखने की प्रक्रिया है।
- ऐसा अक्सर विकासशील देशों में होता है और संपत्ति को नियंत्रित करने या विदेशी स्वामित्व वाले उद्योगों पर अपने प्रभुत्व का दावा करने की देश की इच्छा को प्रतिबिंबित करता है।
- निजीकरण
- पृष्ठभूमि
- केंद्र सरकार ने वर्ष 1969 में देश के 14 सबसे बड़े निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण करने का निर्णय लिया था, इस निर्णय का उद्देश्य बैंकिंग क्षेत्र को तत्कालीन सरकार के समाजवादी दृष्टिकोण के साथ संरेखित करना था।
- भारतीय स्टेट बैंक (SBI) का वर्ष 1955 में और देश के बीमा क्षेत्र का वर्ष 1956 में राष्ट्रीयकरण कर दिया गया था।
- पिछले 20 वर्षों में विभिन्न सरकारें सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण के विरुद्ध रही हैं। वर्ष 2015 में सरकार ने निजीकरण का सुझाव प्रस्तुत किया था, हालाँकि भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के तत्कालीन गवर्नर इस विचार के पक्ष में नहीं थे।
- बैंकों द्वारा पूर्ण स्वामित्व वाली एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी (बैड बैंक) की स्थापना के साथ निजीकरण के वर्तमान प्रयास वित्तीय क्षेत्र में चुनौतियों से निपटने के लिये बाज़ार आधारित समाधान खोजने के दृष्टिकोण का नेतृत्त्व करते हैं।
- केंद्र सरकार ने वर्ष 1969 में देश के 14 सबसे बड़े निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण करने का निर्णय लिया था, इस निर्णय का उद्देश्य बैंकिंग क्षेत्र को तत्कालीन सरकार के समाजवादी दृष्टिकोण के साथ संरेखित करना था।
- निजीकरण के कारण
- सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की खराब वित्तीय स्थिति:
- केंद्र सरकार द्वारा वर्षों तक पूंजीगत निवेश और शासन व्यवस्था में सुधार किये जाने के बाद भी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की वित्तीय स्थिति में उल्लेखनीय सुधार नहीं हो पाया है।
- इनमें से कई सार्वजानिक बैंकों की तनावग्रस्त संपत्तियाँ निजी बैंकों की तुलना में काफी अधिक हैं और साथ ही उनकी लाभप्रदता, बाज़ार पूंजीकरण और लाभांश भुगतान रिकॉर्ड भी अच्छा नहीं है।
- दीर्घकालिक परियोजना का हिस्सा
- दो सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण से एक दीर्घकालिक परियोजना की शुरुआत होगी, जिसके तहत भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में कुछ चुनिंदा सार्वजनिक बैंकों की परिकल्पना की गई है।
- सरकार की प्रारंभिक योजना चार बैंकों के निजीकरण की थी। पहले दो बैंकों के सफल निजीकरण के बाद सरकार आने वाले वित्तीय वर्षों में अन्य दो या तीन बैंकों के विनिवेश पर ज़ोर दे सकती है।
- यह निर्णय सरकार, जो कि बैंकों में सबसे बड़ी हिस्सेदार है, को बैंकों को वर्ष-प्रतिवर्ष वित्तीय सहायता प्रदान करने के दायित्व से मुक्त करेगा।
- बीते कुछ वर्षों में सरकार द्वारा उठाए गए कदमों के परिणामस्वरूप अब सरकार के पास केवल 12 सार्वजनिक बैंक मौजूद हैं, जिनकी संख्या पूर्व में कुल 28 थी।
- दो सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण से एक दीर्घकालिक परियोजना की शुरुआत होगी, जिसके तहत भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में कुछ चुनिंदा सार्वजनिक बैंकों की परिकल्पना की गई है।
- बैंकों को मज़बूती प्रदान करना
- सरकार बड़े बैंकों को और अधिक मज़बूत बनाने का प्रयास कर रही है तथा निजीकरण के माध्यम से बैंकों की संख्या में भी कमी की जा रही है।
- अलग-अलग समितियों की सिफारिशें
- कई समितियों ने सार्वजनिक बैंकों में सरकारी हिस्सेदारी को 51% तक सीमित करने का प्रस्ताव रखा है:
- नरसिम्हन समिति ने हिस्सेदारी को 33% तक सीमित करने की बात की थी।
- पी.जे. नायक समिति ने हिस्सेदारी को 50% से कम करने का सुझाव दिया था।
- हाल ही में RBI के एक कार्यकारी समूह ने बैंकिंग क्षेत्र में बड़े व्यावसायिक घरानों के प्रवेश का सुझाव दिया है।
- कई समितियों ने सार्वजनिक बैंकों में सरकारी हिस्सेदारी को 51% तक सीमित करने का प्रस्ताव रखा है:
- बड़े बैंकों का निर्माण:
- निजीकरण का एक उद्देश्य बड़े बैंक बनाना भी है। जब तक निजीकृत सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का मौजूदा बड़े निजी बैंकों में विलय नहीं किया जाता है, तब तक वे उच्च जोखिम लेने की क्षमता और उधार देने की क्षमता विकसित नहीं कर सकते हैं।
- ऐसे में निजीकरण एक बहुआयामी कार्य है, जिसमें कई चुनौतियों से निपटने और नए विचारों की खोज करने के लिये सभी दृष्टिकोण पर विचार किया जाता है, लेकिन यह सभी हितधारकों को लाभान्वित करने के लिये एक अधिक सतत् और मज़बूत बैंकिंग प्रणाली विकसित करने का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।
- सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की खराब वित्तीय स्थिति:
- मुद्दे:
- क्रोनी कैपिटलिज्म को बढ़ावा:
- सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का निजीकरण बैंकों को निजी कंपनियों को बेचने के समान है, जिनमें से कई ने PSBs के ऋण को वापस नहीं किया है जिससे क्रोनी पूँजीवाद को बढावा मिला है।
- नौकरी के नुकसान:
- निजीकरण से बेरोज़गारी, शाखा बंद होना और वित्तीय बहिष्करण जैसी गतिविधियाँ प्रभावित होंगी।
- निजीकरण से अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिये रोज़गार के अवसरों को कम होंगे क्योंकि निजी क्षेत्र कमज़ोर वर्गों के लिये आरक्षण नीतियों का पालन नहीं करता है।
- कमज़ोर वर्गों का वित्तीय बहिष्करण:
- निजी क्षेत्र के बैंक अधिक संपन्न वर्गों और महानगरीय/शहरी क्षेत्रों की आबादी पर अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं, जिससे समाज के कमज़ोर वर्गों, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में वित्तीय बहिष्कार होता है।
- सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक बैंकिंग को ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुँच और वित्तीय समावेशन को सुनिश्चित करते है। इन्होंने आशंका जताई है कि अगर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का निजीकरण किया गया तो इन लाभों पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है।
- बेलआउट ऑपरेशन:
- बैंक यूनियनों ने निजीकरण प्रक्रिया को कॉरपोरेट डिफॉल्टरों के लिये "बेलआउट ऑपरेशन" का नाम दिया है।
- बड़े पैमाने पर फँसे ऋण के लिये निजी क्षेत्र ज़िम्मेदार है और उन्हें इस अपराध की सज़ा मिलनी चाहिये। लेकिन सरकार बैंकों को निजी क्षेत्र के हवाले कर उन्हें पुरस्कृत कर रही है।
- शासन के मुद्दे:
- इंडस्ट्रियल क्रेडिट एंड इनवेस्टमेंट कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (ICICI) बैंक के एमडी और सीईओ को कथित तौर पर संदिग्ध ऋण देने के आरोप में बर्खास्त कर दिया गया था।
- यस बैंक के सीईओ को आरबीआई ने एक्सटेंशन नहीं दिया और अब विभिन्न एजेंसियों की जाँच का सामना करना पड़ता है ।
- लक्ष्मी विलास बैंक को परिचालन संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ा और हाल ही में इसे डीबीएस बैंक ऑफ सिंगापुर के साथ विलय कर दिया गया।
- क्रोनी कैपिटलिज्म को बढ़ावा:
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बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949
- यह भारत में बैंकिंग फर्मों को नियंत्रित करता है। इसे बैंकिंग कंपनी अधिनियम 1949 के रूप में पारित किया गया था।
- यह अधिनियम भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) को अधिकार देता है:
- वाणिज्यिक बैंकों को लाइसेंस जारी करना, शेयरधारकों की हिस्सेदारी और वोटिंग अधिकारों को विनियमित करना, बोर्डों और प्रबंधन की नियुक्ति का पर्यवेक्षण करना, बैंकों के संचालन को नियंत्रित करना, ऑडिट के लिये निर्देश देना, नियंत्रण स्थगन, विलय और परिसमापन, जन कल्याण के हित में बैंकों को निर्देश जारी करना, बैंकिंग नीति और यदि आवश्यक हो तो बैंकों पर जुर्माना लगाना आदि ।
- सरकार ने वर्ष 2020 में बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 में संशोधन के लिये एक अध्यादेश पारित किया, जिससे सभी सहकारिताएँ रिज़र्व बैंक की निगरानी में आ गईं, ताकि जमाकर्त्ताओं के हितों की ठीक से रक्षा की जा सके।
आगे की राह:
- बैंक ऋणों पर विलफुल डिफॉल्ट (Wilful Defaults) को "आपराधिक कृत्य" मानने के लिये एक उपयुक्त वैधानिक ढाँचा लाने की तत्काल और अनिवार्य आवश्यकता है।
- उधार देने और गैर-निष्पादित आस्तियों के प्रभावी समाधान के लिये विवेकपूर्ण मानदंडों का पालन करने की आवश्यकता है।
- PSBs के शासन और प्रबंधन में सुधार करना होगा। ऐसा करने का एक उपाय पी.जे. नायक समिति द्वारा सुझाया गया था, जहाँ सरकार और शीर्ष सार्वजनिक क्षेत्र नियुक्तियों (जिसके संबंध में सारे कार्य बैंक बोर्ड ब्यूरो को करने थे लेकिन वह अक्षम रहा) के बीच दूरी रखने की अनुशंसा की गई थी।
- अंधाधुंध निजीकरण के बजाय PSBs को जीवन बीमा निगम (LIC) जैसे निगम में रूपांतरित किया जा सकता है । सरकारी स्वामित्व बनाए रखते हुए इनका निगमीकरण PSBs को अधिक स्वायत्तता प्रदान करेगा।
स्रोत:द हिन्दू
सामाजिक न्याय
महिलाओं के लिये विवाह की कानूनी आयु में वृद्धि
प्रिलिम्स के लिये:महिलाओं के लिये विवाह की कानूनी उम्र बढ़ाना, बाल विवाह, जया जेटली टास्क फोर्स, महिला अधिकारिता और लैंगिक समानता। मेंस के लिये:पुरुषों और महिलाओं की विवाह योग्य आयु में एकरूपता लाने के प्रस्ताव के पक्ष और विपक्ष में तर्क। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पुरुषों और महिलाओं की विवाह योग्य आयु में एकरूपता लाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी।
- बाल विवाह निषेध अधिनियम (PCMA), 2006 और अन्य पर्सनल लॉ में संशोधन कर महिलाओं की विवाह की कानूनी उम्र 18 से बढ़ाकर 21 साल की जाएगी।
- यह निर्णय समता पार्टी की पूर्व प्रमुख जया जेटली के नेतृत्व में गठित चार सदस्यीय टास्क फोर्स की सिफारिश पर आधारित है।
नोट:
टास्क फोर्स का गठन विवाह की उम्र और स्वास्थ्य एवं सामाजिक सूचकांकों जैसे- शिशु मृत्यु दर, मातृ मृत्यु दर और माताओं तथा बच्चों के पोषण स्तर के साथ इसके संबंध की फिर से जाँच करने के लिये किया गया था।
प्रमुख बिंदु
- विवाह के लिये न्यूनतम आयु के कानूनी ढांँचे के बारे में:
- पृष्ठभूमि:
- भारत में विवाह की न्यूनतम आयु पहली बार शारदा अधिनियम, 1929 द्वारा निर्धारित की गई थी। बाद में इसका नाम परिवर्तित कर बाल विवाह प्रतिबंध अधिनियम (CMRA), 1929 कर दिया गया।
- वर्ष 1978 में, लड़कियों के लिये विवाह की न्यूनतम आयु 18 वर्ष और लड़कों के लिये 21 वर्ष करने के लिये कानून में संशोधन किया गया था।
- यह स्थिति बाल विवाह निषेध अधिनियम (PCMA), 2006 नामक नए कानून में भी बनी हुई है, जिसने CMRA, 1929 को प्रतिस्थापित किया।
- विभिन्न धर्मों में विवाह की न्यूनतम आयु:
- हिंदुओं के लिये, हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 लड़की की न्यूनतम आयु 18 वर्ष और लड़के की न्यूनतम आयु 21 वर्ष निर्धारित करता है।
- इस्लाम में युवावस्था प्राप्त कर चुके नाबालिग की शादी को वैध माना जाता है।
- विशेष विवाह अधिनियम, 1954 और बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 भी क्रमशः महिलाओं और पुरुषों के लिये विवाह की न्यूनतम आयु 18 और 21 वर्ष निर्धारित करते हैं।
- विवाह की नई उम्र लागू करने के लिये इन कानूनों में संशोधन की संभावना है।
- पृष्ठभूमि:
- महिलाओं के लिये विवाह की न्यूनतम आयु बढ़ाने के लाभ:
- महिला एवं बाल कल्याण: माता का गरीब होना उसके बच्चे और कुपोषण के संबंध में एक बड़ी भूमिका निभाते हैं ।
- विवाह की कम उम्र और इसके परिणामस्वरूप जल्दी गर्भधारण भी माताओं और उनके बच्चों के पोषण स्तर एवं उनके समग्र स्वास्थ्य और मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।.
- महिला सशक्तिकरण और लिंग समानता: बच्चे के जन्म के समय माँ की उम्र उसके शैक्षिक स्तर, रह-सहन और स्वास्थ्य स्थिति, महिलाओं की निर्णय लेने की शक्ति को प्रभावित करती है।
- बाल विवाह की समस्या का समाधान: वैश्विक स्तर पर भारत में सबसे अधिक कम उम्र में विवाह होते हैं। यह कानून बाल विवाह के खतरे को रोकने में मदद करेगा।
- महिला एवं बाल कल्याण: माता का गरीब होना उसके बच्चे और कुपोषण के संबंध में एक बड़ी भूमिका निभाते हैं ।
- महिलाओं के विवाह हेतु न्यूनतम आयु बढ़ाने के विपक्ष में तर्क:
- बाल विवाह की समस्या: बाल विवाह कानून का क्रियान्वयन कठिन है।
- प्रमाण बताते हैं कि जब कानून का इस्तेमाल किया जाता है, तो यह ज़्यादातर युवा वयस्कों को स्व-व्यवस्थित विवाह के लिये दंडित करने हेतु होता है।
- बाल विवाह रोकने वाला कानून ठीक से कार्यान्वित नहीं करता।
- राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस)-5 के अनुसार, बाल विवाह में गिरावट आई है, लेकिन यह मामूली है: वर्ष 2015-16 में 27% से गिरकर वर्ष 2019-20 में 23% हो गई।
- 70% कम उम्र के विवाह अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति जैसे वंचित समुदायों में होते हैं और कानून इन विवाहों को रोकने के बजाय उन्हें भूमिगत कर देता है।
- बड़ी संख्या में विवाहों का अपराधीकरण: यह परिवर्तन उन भारतीय महिलाओं के विशाल बहुमत को छोड़ देगा, जिन्होंने 21 वर्ष की आयु से पहले शादी की है, बिना कानूनी सुरक्षा के जो उनके परिवारों को आपराधिक बना देगा।
- शिक्षा की कमी एक बड़ी समस्या है: यूएनएफपीए द्वारा ‘स्टेट ऑफ द वर्ल्ड रिपोर्ट’ 2020 के अनुसार, भारत में, बिना शिक्षा वाली 51% युवा महिलाओं और केवल प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने वालों में से 47% ने 18 साल की उम्र में शादी कर ली थी।
- इसके अलावा ‘इंटरनेशनल सेंटर फॉर रिसर्च ऑन वीमेन’ के एक अध्ययन में पाया गया है कि स्कूल से बाहर लड़कियों की शादी होने की संभावना 3.4 गुना अधिक है या उनकी शादी उन लड़कियों की तुलना में पहले ही तय हो गई है जो अभी भी स्कूल में हैं।
- बाल विवाह की समस्या: बाल विवाह कानून का क्रियान्वयन कठिन है।
आगे की राह
- शिक्षा को बढ़ावा देना: कार्यकर्त्ताओं का कहना है कि बाल विवाह में देरी का जवाब शिक्षा तक पहुँच सुनिश्चित करने में है क्योंकि यह प्रथा एक सामाजिक और आर्थिक मुद्दा है।
- स्कूलों में स्किल और बिज़नेस ट्रेनिंग और सेक्स एजुकेशन से भी मदद मिलेगी।
- स्कूलों तक पहुँच बढ़ाना: सरकार को दूर-दराज़ के क्षेत्रों से लड़कियों की स्कूलों और कॉलेजों तक पहुँच बढ़ाने पर ध्यान देने की ज़रूरत है।
- जन जागरूकता कार्यक्रम: विवाह की उम्र में वृद्धि पर बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान की आवश्यकता है और नए कानून की सामाजिक स्वीकृति को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।