विश्व खाद्य दिवस
प्रिलिम्स के लिये:विश्व खाद्य दिवस, भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण, ट्रांस फैट, खाद्य एवं कृषि संगठन मेन्स के लिये:कुपोषण एवं खाद्य सुरक्षा |
चर्चा में क्यों?
16 अक्तूबर, 2020 को केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री ने 'विश्व खाद्य दिवस' (World Food Day) के अवसर पर भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (Food Safety and Standards Authority of India - FSSAI) द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम की अध्यक्षता की।
थीम:
- वर्ष 2020 के लिये 'विश्व खाद्य दिवस' की थीम ‘ग्रो, नौरिश, सस्टेन टूगेदर’ (Grow, Nourish, Sustain Together) है।
प्रमुख बिंदु:
- इस अवसर पर FSSAI के ‘ईट राइट इंडिया’ अभियान का उल्लेख करते हुए कहा गया कि इस अभियान का लक्ष्य पर्यावरण की दृष्टि से एक स्थिर तरीके से सभी के लिये सुरक्षित एवं स्वास्थ्यवर्द्धक भोजन को बढ़ावा देना है।
- यह सभी नागरिकों को सुरक्षित और पौष्टिक भोजन प्रदान करने के अधिकार का एक हिस्सा है। इससे खाद्य सुरक्षा पारिस्थितिकी तंत्र में सुधार होगा।
वर्ष 2022 तक भारत को ट्रांस फैट (Trans Fats) से मुक्त करना:
- भारत सरकार ने वर्ष 2022 तक भारत को ट्रांस फैट मुक्त बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया है जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा निर्धारित लक्ष्य से एक वर्ष पहले ही हासिल कर लिया जाएगा।
ट्रांस फैट (Trans Fats) से नुकसान:
- आंशिक रूप से हाइड्रोजनीकृत वनस्पति तेलों (Partially Hydrogenated Vegetable Oils- PHVOs) जैसे- वनस्पति (Vanaspati), शॉर्टनिंग (Shortening), मार्जरीन (Margarine) आदि में तले हुए खाद्य पदार्थों में एक खाद्य टॉक्सिन ट्रांस फैट (Trans Fats) देश में गैर संचारी बीमारियों के बढ़ने का प्रमुख कारक है।
- ट्रांस फैट (Trans Fats) कार्डियोवस्कुलर बीमारियों (Cardiovascular Diseases) के लिये एक परिवर्तनीय जोखिम कारक है।
- गौरतलब है कि भारत सरकार ने वर्ष 2022 तक भारत को ट्रांस फैट से मुक्त करने का लक्ष्य निर्धारित किया है।
ईट राइट क्रिएटिविटी चैलेंज:
- इस अवसर पर स्कूलों के लिये ‘ईट राइट क्रिएटिविटी चैलेंज’ की शुरुआत की गई।
- यह एक पोस्टर एवं फोटोग्राफी प्रतियोगिता है जिसका उद्देश्य स्वस्थ आहार आदतों को बढ़ावा देना है।
ईट स्मार्ट सिटी चैलेंज:
- इस अवसर पर ‘स्मार्ट सिटी मिशन’ और द फूड फाउंडेशन, यू.के (The Food Foundation, UK) के साथ साझेदारी में FSSAI के 'ईट स्मार्ट सिटी' चैलेंज का भी शुभारंभ किया गया।
- इससे भारत के स्मार्ट शहरों में सही भोजन प्रक्रियाओं एवं आदतों हेतु माहौल तैयार करने में मदद मिलेगी।
खाद्य और कृषि संगठन (FAO) का 75वाँ स्थापना दिवस:
- खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) के 75वें स्थापना दिवस पर भारतीय प्रधानमंत्री ने हाल ही में विकसित फसलों की 17 किस्मों जैसे-एमएसीएस 4028 गेहूँ, मधुबन गाजर आदि को राष्ट्र को समर्पित किया।
- भारत में कुपोषण को दूर करने के लिये एमएसीएस-4028 किस्म को संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (United Nations Children's Fund- UNICEF) द्वारा सराहा गया है और यह नई किस्म भारत की राष्ट्रीय पोषण रणनीति: कुपोषण मुक्त भारत- 2022 को बढ़ावा देने में सहायक हो सकती है।
- प्रत्येक वर्ष वैश्विक स्तर पर खाद्य और कृषि संगठन (FAO) के स्थापना दिवस को चिह्नित करने के लिये 16 अक्तूबर को विश्व खाद्य दिवस (World Food Day) के रूप में मनाया जाता है।
- खाद्य और कृषि संगठन (FAO) संयुक्त राष्ट्र संघ की सबसे बड़ी विशेषज्ञता प्राप्त एजेंसियों में से एक है जिसकी स्थापना वर्ष 1945 में कृषि उत्पादकता और ग्रामीण आबादी के जीवन निर्वाह की स्थिति में सुधार करते हुए पोषण तथा जीवन स्तर को उन्नत बनाने के उद्देश्य के साथ की गई थी।
- FAO ने विश्व खाद्य कार्यक्रम का आरंभ डॉ बिनय रंजन सेन (Dr Binay Ranjan Sen) के नेतृत्त्व में शुरू किया था।
- FAO ने वर्ष 2023 को अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष (International Year of Millets) घोषित करने के भारत के प्रस्ताव का समर्थन किया है।
- इससे पोषण युक्त खाद्य पदार्थों के उपयोग में वृद्धि होगी और इसकी उपलब्धता बढ़ाने से छोटे किसानों को लाभ पहुँचेगा। .
- उल्लेखनीय है कि छोटे एवं मध्यम किसान जल की कमी और ज़मीन की कम उपजाऊ क्षमता जैसी समस्याओं के कारण मोटे अनाजों की खेती करते हैं। इससे न सिर्फ भारत बल्कि दुनिया को लाभ पहुँचेगा।
भारत में कुपोषण की समस्या:
- स्वस्थ आहार, भोजन और पोषण आपूर्ति हेतु एक आवश्यक तत्त्व है।
- भारत में पिछले कुछ सालों में काफी हद तक खाद्य उपभोग के पैटर्न में बदलाव आया है जहाँ पहले खाद्य उपभोग में विविधता के लिये पारंपरिक अनाज (ज्वार, जौ, बाजरा आदि) उपयोग में लाया जाता था, वहीँ वर्तमान में इनका उपभोग कम हो गया है।
- पारंपरिक अनाज, फल और अन्य सब्जियों के उत्पादन में कमी के कारण इनकी खपत भी कम हुई जिससे खाद्य और पोषण सुरक्षा प्रभावित हुई।
- हालाँकि आज़ादी के बाद से खाद्यान्न उत्पादन में 5 गुना बढ़ोतरी हुई है। लेकिन कुपोषण का मुद्दा अभी भी चुनौती बना हुआ है।
कुपोषण खत्म करने के लिये भारत सरकार द्वारा उठाए गए कदम:
- कुपोषण को खत्म करने के लिये भारत सरकार द्वारा शुरू किये गए कार्यक्रमों में राष्ट्रीय पोषण मिशन (पोषण अभियान), स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत शौचालय का निर्माण, मिशन इंद्रधनुष, जल जीवन मिशन और सस्ती दर पर सैनिटेशन पैड उपलब्ध कराना इत्यादि शामिल हैं।
- इसके अतिरिक्त कुपोषण को खत्म करने के लिये प्रोटीन, आयरन, ज़िंक इत्यादि पोषक तत्त्वों से समृद्ध खाद्यान्न अनाजों को प्रोत्साहित किया गया।
स्रोत: पीआईबी
कला संस्कृति विकास योजना
प्रिलिम्स के लियेकला संस्कृति विकास योजना मेन्स के लियेकला संस्कृति विकास योजना के विभिन्न घटक |
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय (Ministry of Culture) ने केंद्रीय क्षेत्र की कला संस्कृति विकास योजना (Kala Sanskriti Vikas Yojana- KSVY) के विभिन्न घटकों के तहत आभासी/ऑनलाइन मोड में सांस्कृतिक कार्यक्रम/गतिविधियाँ आयोजित करने के लिये दिशा-निर्देश जारी किये हैं।
प्रमुख बिंदु:
- COVID-19 के प्रकोप का व्यापक प्रभाव मंचन कलाओं और सांस्कृतिक क्षेत्र पर पड़ा है जिसके कारण इनसे जुड़े कई कार्यक्रम या तो रद्द करने पड़े या उन्हें स्थगित करना पड़ा। मौजूदा स्थितियों में कलाकारों और निष्पादन कलाओं को डिजिटल प्लेटफॉर्मों के माध्यम से प्रस्तुति देने के लिये वैकल्पिक या अतिरिक्त अवसर प्रदान करने हेतु संस्कृति मंत्रालय के संस्थानों द्वारा गहन प्रयास किये जाते रहे हैं।
- केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय (प्रदर्शन कला ब्यूरो) ने अपनी कला संस्कृति विकास योजना के तहत कई योजनाएँ शुरू की हैं जिनके तहत ऐसे कार्यक्रम/गतिविधियाँ आयोजित करने के लिये अनुदान स्वीकृत किया जाताहै, जिसमें बड़ी संख्या में दर्शक शामिल होते हैं।
- जहाँ हाल ही में सीमित संख्या में दर्शकों वाले सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करने की अनुमति दी गई है, वहीं मौजूदा परिस्थितियों को देखते हुए संस्कृति मंत्रालय ने उन कलाकारों/संगठनों को वर्चुअल तरीके से अपनी प्रस्तुतियाँ देने के लिये दिशा-निर्देश भी जारी किये हैं जिनके लिये पहले से ही कला संस्कृति विकास योजना के विभिन्न घटकों के तहत अनुदान मंज़ूर किया जा चुका है।
- नए दिशा- निर्देशों के अनुसार, ऐसे कलाकार और संगठन पहले की तरह भौतिक तरीके से कार्यक्रमों का मंचन करने में सक्षम न होने के बावजूद योजना के तहत मिलने वाले लाभ प्राप्त कर सकेंगे, जिससे वर्तमान संकट से निपटने के लिये उन्हें निरंतर वित्तीय मदद मिलती रहेगी।
नई व्यवस्था के तहत प्रावधान:
- नई व्यवस्था के तहत पहले से ही अनुदान प्राप्त कर चुके कलाकारों/संगठनों को योजनाओं के विभिन्न घटकों के तहत कला और शिल्प से संबंधित फेसबुक और यूट्यूब आदि जैसे सोशल मीडिया माध्यमों के ज़रिये वर्चुअल कार्यशालाएँ आयोजित करने, व्याख्यान-सह-प्रदर्शन, वेबिनार, ऑनलाइन कार्यक्रम/त्योहार आदि मनाने के लिये प्रोत्साहित किया गया है।
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योजना का लाभ लेने के लिये इसके तहत समाहित गतिविधियों से संबंधित दस्तावेज़ों की हार्ड कॉपी प्रस्तुत करने की ज़रूरत को फिलहाल निलंबित रखा गया है और अनुदान की मंज़ूरी के लिये सॉफ्ट कॉपी स्वीकार की जा रही है।
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जो संगठन वर्चुअल तरीके से कार्यक्रमों का आयोजन कर रहे हैं, वे अगर कार्यक्रम के विवरण से संबधित वीडियो लिंक/रिकॉर्डिंग प्रस्तुत कर देते हैं तो उन्हें इनके प्रमाण के तौर पर कार्यक्रम के बारे में समाचार-पत्रों में छपी खबरों के एकत्रीकरण से छूट मिल सकती है। विवरण में डिजिटल माध्यम से ऐसे कार्यक्रम की पहुँच कितने दर्शकों तक हुई इसका उल्लेख भी करना ज़रूरी है।
- उपयोग प्रमाणपत्र (Utilization Certificate- UC) में खर्च का जो ब्योरा दिया गया है, वह आभासी माध्यम से संपन्न किये गए कार्यक्रम के संदर्भ में तर्कसंगत होना चाहिये।
योजना से संबंधित विभिन्न अनुदान/कार्यक्रम:
- रिपोर्टरी ग्रांट (Repertory Grant):
रिपोर्टरी ग्रांट के तहत कलाकारों का उनके संबंधित प्रशिक्षकों द्वारा प्रशिक्षण और सांस्कृतिक गतिविधियों का प्रदर्शन ऑनलाइन आयोजित किया जा सकता है। उपयोगिता प्रमाणपत्र के लिये हॉल, पोशाक, प्रकाश, डिज़ाइन, कलाकारों की पारिश्रमिक की रसीदें, रिपोर्टरी ग्रांट से संबंधित अनुदान जारी करने के लिये स्वीकार की जाएंगी। - राष्ट्रीय उपस्थिति (National Presence):
राष्ट्रीय उपस्थिति कार्यक्रम के तहत कला और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिये राष्ट्रीय स्तर पर सांस्कृतिक कार्यक्रम/ त्योहार/ सेमिनार आदि ऑनलाइन आयोजित किये जा सकते हैं। उपयोगिता प्रमाणपत्र के लिये हॉल, थिएटर, कलाकारों को पारिश्रमिक, उपकरणों की खरीद आदि के लिये किराए की रसीदें, योजनाओं के घटकों को संचालित करने से संबंधित विभिन्न अन्य गतिविधियों के प्रदर्शन के लिये किये गए व्यय को योजना के दिशा-निर्देशों के तहत अनुदान जारी करने हेतु स्वीकार किया जाएगा। - सांस्कृतिक समारोह और उत्पादन अनुदान (Cultural Function & Production Grant- CFPG):
CFPG के तहत सेमिनार, कॉन्फ्रेंस, रिसर्च, वर्कशॉप, फेस्टिवल, प्रदर्शनियाँ, संगोष्ठियाँ, डांस प्रोडक्शन, ड्रामा-थिएटर, संगीत आदि और भारतीय संस्कृति के विभिन्न पहलुओं पर छोटे शोध प्रोजेक्ट संचालित किये जा सकते हैं। ऑनलाइन उपयोगिता प्रमाणपत्र के लिये हॉल, थिएटर, कलाकारों को पारिश्रमिक, उपकरणों की खरीद आदि के लिये किराया रसीदें, योजनाओं के घटकों को संचालित करने से संबंधित विभिन्न अन्य गतिविधियों के प्रदर्शन के लिये किये गए खर्च को योजना के दिशा-निर्देशों के तहत अनुदान जारी करने के लिये स्वीकार किया जाएगा। - हिमालयी धरोहर (Himalayan Heritage):
हिमालय की सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण और विकास हेतु वित्तीय सहायता के तहत अध्ययन और अनुसंधान, संरक्षण और प्रलेखन, ऑडियो विज़ुअल कार्यक्रम के माध्यम से प्रसार, पारंपरिक कला और ‘फोल्ड आर्ट’ (Fold Art) में ऑनलाइन प्रशिक्षण आयोजित किया जा सकता है। उपयोगिता प्रमाणपत्र के लिये हिमालय योजना के इन घटकों से संबंधित गतिविधियों को अनुदान जारी करने हेतु स्वीकार किया जाएगा। - बौद्ध/तिब्बती (Buddhist / Tibetan):
बौद्ध/तिब्बती कला के विकास के लिये वित्तीय सहायता के तहत अनुसंधान परियोजना, पुस्तकों की खरीद, प्रलेखन और कैटलॉगिंग, भिक्षुओं को छात्रवृत्ति, विशेष पाठ्यक्रमों और संस्कृति की धारणा, ऑडियो-विज़ुअल रिकॉर्डिंग/प्रलेखन, मठवासियों के लिये आईटी आधारित प्रशिक्षण सहायता, शिक्षकों का वेतन आदि को ऑनलाइन किया जा सकता है। उपयोगिता प्रमाणपत्र के लिये बौद्ध योजना के इन घटकों से संबंधित गतिविधियों को अनुदान जारी करने हेतु स्वीकार किया जाएगा। - छात्रवृत्ति/फैलोशिप (Scholarship/Fellowship):
कला और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिये छात्रवृत्ति और फैलोशिप योजना के तहत भारतीय शास्त्रीय संगीत, भारतीय शास्त्रीय नृत्य, रंगमंच, स्वांग, दृश्य कला, पारंपरिक और स्वदेशी कला तथा सरल शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में भारत के भीतर उन्नत प्रशिक्षण और ऑनलाइन अनुसंधान किया जा सकता है एवं रिपोर्ट की सॉफ्ट कॉपी भी प्रस्तुत की जा सकती है।
स्रोत-पीआईबी
पहला'हर घर जल' राज्य
प्रिलिम्स के लिये:जल जीवन मिशन, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम, स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) मेन्स के लिये:'हर घर जल' के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये गोवा राज्य द्वारा किये गए प्रयासों का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में गोवा, ग्रामीण क्षेत्रों में 2.30 लाख ग्रामीण परिवारों को सफलतापूर्वक 100% कार्यात्मक घरेलू नल कनेक्शन (Functional Household Tap Connections- FHTCs) उपलब्ध कराकर देश का पहला 'हर घर जल'( Har Ghar Jal) का लक्ष्य प्राप्त करने वाला राज्य बन गया है।
प्रमुख बिंदु:
- प्रारंभिक उपलब्धि: राज्य सरकार की प्रतिबद्धता एवं तेज़ प्रयासों के कारण समय से पहले (राष्ट्रीय स्तर पर वर्ष 2024 तक निर्धारित) इस लक्ष्य को सफलतापूर्वक प्राप्त कर लिया गया है।
- वार्षिक कार्ययोजना: गोवा द्वारा वर्ष 2021 तक ग्रामीण क्षेत्रों में 100% कार्यात्मक घरेलू नल कनेक्शन उपलब्ध करने के लिये एक वार्षिक कार्ययोजना (Annual Action Plan- AAP) तैयार की गई थी।
- गोवा राज्य द्वारा ‘जल जीवन मिशन’ (Jal Jeevan Mission-JJM) से प्राप्त होने वाले सभी लाभों का उपयोग किया गया जिनका उद्देश्य जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना एवं ग्रामीण समुदायों के लिये 'आसानी से जीवन यापन' (Ease-of-living) की सुविधा उपलब्ध कराना है।
- इसके लिये वर्ष 2020-21 में केंद्र सरकार द्वारा गोवा को वितरित की जाने वाली धनराशि को बढ़ाकर 12.40 करोड़ रुपए कर दिया गया।
- योजनाओं का रुपांतरण: पेयजल स्रोतों, जल आपूर्ति, ग्रे वाटर (सीवेज को छोड़कर किसी भी प्रकार का घरेलू अपशिष्ट जल) के उपचार एवं उसके पुन: उपयोग एवं संचालन के लिये राज्य द्वारा महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम MGNREGA), स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण), ग्रामीण स्थानीय निकायों के लिये 15वांँ वित्त आयोग की सिफारिश इत्यादि द्के माध्यम से विभिन्न कार्यक्रमों का संचालन किया जा रहा है ।
- जल परीक्षण सुविधाएँ: राज्य में जल परीक्षण को और बेहतर बनाने के लिये राज्य सरकार 14 जल गुणवत्ता परीक्षण प्रयोगशालाओं (Water Quality Testing Laboratories) के लिये ‘ गुणवत्ता राष्ट्रीय प्रत्यायन बोर्ड फॉर टेस्टिंग एंड कैलिब्रेशन लेबोरेटरीज़’( National Accreditation Board for Testing and Calibration Laboratories- NABL) से मान्यता प्राप्त करने की प्रक्रिया में है।
- जल जीवन मिशन के तहत प्रत्येक गाँव में 5 व्यक्तियों को प्रशिक्षित किया जाता है विशेषकर महिलाओं को ‘फील्ड टेस्ट किट’(Field Test Kits) का उपयोग करने के लिये प्रशिक्षित किया जाता है, ताकि गाँवों में पानी का परीक्षण किया जा सके।
जल जीवन मिशन:
- जल जीवन मिशन (Jal Jeevan Mission-JJM) वर्ष 2024 तक कार्यात्मक घरेलू नल कनेक्शन के माध्यम से प्रत्येक ग्रामीण घर में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 55 लीटर पानी की आपूर्ति की परिकल्पना करता है।
- JJM स्थानीय स्तर पर पानी की एकीकृत मांग एवं आपूर्ति प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करता है।
- सरकारी कार्यक्रमों/योजनाओं के अंतर्गत वर्षा जल संचयन, भूजल पुनर्भरण और पुन: उपयोग के लिये घरेलू अपशिष्ट जल का प्रबंधन, आदि के लिये स्थानीय बुनियादी ढांँचे का निर्माण एक आवश्यक शर्त है।
- यह मिशन सामुदायिक दृष्टिकोण पर आधारित है एवं इस मिशन के प्रमुख घटक के रूप में व्यापक स्तर पर सूचना, शिक्षा और संचार शामिल हैं।
- JJM जल संरक्षण के लिये एक जनांदोलन है जो जल के लिये प्रत्येक व्यक्ति की प्राथमिकता को सुनिश्चित करता है।
- वित्तपोषण: केंद्र और राज्यों के बीच वित्तीय विभाजन इस प्रकार है:
- हिमालयी और पूर्वोत्तर राज्यों के लिये केंद्र एवं राज्यों का अंश 90:10 है।
- अन्य राज्यों के लिये 50:50।
- केंद्रशासित प्रदेशों के मामले में केंद्र द्वारा 100% वित्तीय आवंटन का प्रावधान है।
- योजना के लिये आवंटित कुल धनराशि तीन लाख करोड़ रुपए से अधिक है ।
आगे की राह:
- लोगों की जल तक सार्वभौमिक पहुँच सुनिश्चित करने के बाद राज्य अब एक सेंसर-आधारित (Sensor-Based), सेवा वितरण निगरानी प्रणाली(Service Delivery Monitoring System) की योजना बना रहा है ताकि पीने योग्य पानी की पर्याप्त मात्रा एवं गुणवत्ता की निगरानी की जा सके।
- गोवा द्वारा निर्धारित समय से पूर्व प्रत्येक ग्रामीण घर में नल कनेक्शन उपलब्ध कराने के इस लक्ष्य को प्राप्त करना अन्य राज्यों के लिये अनुकरणीय है।
- विशेष रूप से COVID-19 महामारी के दौरान, जब घरों के भीतर सुरक्षित जल आपूर्ति सुनिश्चित करना बेहद ज़रूरी है।
- मौन क्रांति के रूप में ग्रामीण भारत में घरेलू नल कनेक्शन से जल उपलब्ध कराने वाली यह पहल भारत को ‘न्यू इंडिया ’(New India) बनाने की दिशा में एक प्रगतिशील कदम साबित होगी ।
स्रोत:पीआईबी
वैश्विक भुखमरी सूचकांक- 2020
प्रिलिम्स के लिये:वैश्विक भुखमरी सूचकांक- 2020, कुपोषण के प्रकार मेन्स के लिये:वैश्विक भुखमरी सूचकांक- 2020 |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘वैश्विक भुखमरी सूचकांक’ (Global Hunger Index- GHI)- 2020 जारी किया गया।
प्रमुख बिंदु:
- 'वैश्विक भुखमरी सूचकांक', भुखमरी की समीक्षा करने वाली वार्षिक रिपोर्ट है, जो वैश्विक, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक रूप से भुखमरी की स्थिति का मापन करती है।
भारत की स्थिति:
- 'वैश्विक भुखमरी सूचकांक- 2020 में भारत 107 देशों में 94वें स्थान पर रहा है।
- वर्ष 2019 में भारत 117 देशों में से 102वें स्थान पर रहा था, जबकि वर्ष 2018 में भारत 103वें स्थान पर था।
- भारत भुखमरी सूचकांक में 27.2 के स्कोर के साथ 'गंभीर' (Serious) श्रेणी में है।
वैश्विक परिदृश्य:
- कुल 107 देशों में से केवल 13 देश भारत से खराब स्थिति में हैं, जिनमें रवांडा (97वें), नाइजीरिया (98वें), अफगानिस्तान (99वें), लाइबेरिया (102वें), मोजाम्बिक (103वें), चाड (107वें) आदि देश शामिल हैं।
- GHI- 2020 के स्कोर के अनुसार, 3 देश- चाड, तिमोर-लेस्ते और मेडागास्कर भुखमरी के खतरनाक स्तर पर हैं।
- GHI- 2020 के अनुसार दुनिया भर में भुखमरी की स्थिति ‘मध्यम’ स्तर पर है।
क्षेत्रीय परिदृश्य:
- भारत इस सूचकांक में श्रीलंका (64वें), नेपाल (73वें), पाकिस्तान (88वें), बांग्लादेश (75वें), इंडोनेशिया (70वें) जैसे अन्य देशों से पीछे है।
प्रमुख संकेतकों पर भारत का प्रदर्शन:
- भारत की 14 प्रतिशत आबादी ‘अल्पपोषित’ (Undernourishment) है।
- इसका निर्धारण अपर्याप्त कैलोरी लेने की मात्रा के आधार पर किया जाता है।
- भारत में बच्चों में ‘स्टंटिंग’ (Stunting) की दर 37.4 प्रतिशत दर्ज की गई है।
- यह उम्र की तुलना में कम ऊँचाई को दर्शाता है तथा यह स्थायी/क्रोनिक कुपोषण को दर्शाता है। यह आमतौर पर गरीब, सामाजिक-आर्थिक स्थितियों, कमज़ोर मातृ स्वास्थ्य और पोषण से जुड़ा होता है।
- भारत में ‘बाल मृत्यु’ (Child Mortality) दर में सुधार हुआ है, जो अब 3.7 प्रतिशत है।
- बाल मृत्यु दर पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर को बताता है।
- चाइल्ड ‘वेस्टिंग’ (Wasting) में भारत की स्थिति में गिरावट देखी गई है। भारत का स्कोर 17.3 प्रतिशत रहा है।
- इसमें ऊँचाई की तुलना में कम वजन होता है तथा यह ‘तीव्र’/एक्यूट (Acute) कुपोषण को दर्शाता है। तीव्र कुपोषण, कुपोषण का सबसे चरम और दृश्य रूप (जो शरीर के बाहर से दिखाई देता है) होता है।
रिपोर्ट संबंधी प्रमुख निष्कर्ष:
- स्टंटिंग मुख्यत: बच्चों के बीच केंद्रित है। गरीबी, आहार की विविधता का अभाव, मातृ शिक्षा का निम्न स्तर सहित कई प्रकार की वंचनाओं का होना इसका मुख्य कारण हैं।
- बहुत से देशों की स्थिति में धीरे-धीरे सुधार हो रहा है, जबकि कई देशों की स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है।
- नवीनतम GHI अनुमानों से पता चलता है कि 37 देश वर्ष 2030 तक भुखमरी (सतत् विकास लक्ष्य'- 2) को नियंत्रित करने में असफल रहेंगे।
COVID-19 महामारी का प्रभाव:
- रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक स्तर पर लगभग 690 मिलियन लोग कुपोषित हैं। COVID-19 महामारी, वैश्विक स्तर पर भुखमरी और गरीबी को कम करने की दिशा में हुई प्रगति को प्रभावित कर सकती है।
- COVID-19 ने इस बात को और अधिक स्पष्ट कर दिया है कि वर्तमान में हमारी खाद्य प्रणालियाँ, 'ज़ीरो हंगर' स्थिति प्राप्त करने करने के लिये अपर्याप्त हैं।
वैश्विक भुखमरी सूचकांक (GHI):
- ‘वैश्विक भुखमरी सूचकांक’ को आयरलैंड स्थित एक एजेंसी ‘कंसर्न वर्ल्डवाइड’ (Concern Worldwide) और जर्मनी के एक संगठन ‘वेल्ट हंगर हिल्फे’ (Welt Hunger Hilfe) द्वारा संयुक्त रूप से तैयार किया जाता है।
- GHI स्कोर, चार घटक संकेतकों के आधार पर निकाला जाता है:
- अल्पपोषण
- चाइल्ड वेस्टिंग
- चाइल्ड स्टंटिंग
- बाल मृत्यु दर
- इन चार संकेतकों के मूल्यों के आधार पर 0 से 100 तक के पैमाने पर भुखमरी को निर्धारित किया जाता है जहाँ 0 सबसे अच्छा संभव स्कोर (भूख नहीं) है और 100 सबसे खराब है।
- प्रत्येक देश के GHI स्कोर को निम्न से अत्यंत खतरनाक स्थिति के रूप वर्गीकृत किया जाता है।
GHI गंभीरता स्केल (GHI Severity Scale)
कम (Low) |
मध्यम (Moderat) |
गंभीर (Serious) |
खतरनाक |
बेहद चिंताजनक |
≤ 9.9 |
10.0–19.9 |
20.0–34.9 |
35.0-49.9 |
≥ 50.0 |
निष्कर्ष:
- GHI-2020 में भारत के प्रदर्शन को देखते हुए मौजूदा कुपोषण स्थिति में सुधार की दिशा में किये जा रहे प्रयासों में महत्त्वपूर्ण बदलाव करने की आवश्यकता है। गौरतलब है कि भारत ने वर्ष 2022 तक ‘कुपोषण मुक्त भारत’ के लिये एक कार्ययोजना विकसित की है। वर्तमान रिपोर्ट को ध्यान में रखते हुए इस योजना में अपेक्षित सुधार किया जाना चाहिये।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
थाईलैंड में सरकार विरोधी प्रदर्शन
प्रिलिम्स के लियेथाईलैंड की अवस्थिति मेन्स के लियेसरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों का कारण, थाईलैंड में तख्तापलट का इतिहास |
चर्चा में क्यों?
थाईलैंड में हो रहे सरकार विरोधी प्रदर्शनों के मद्देनज़र थाईलैंड की सरकार ने राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा करते हुए सार्वजनिक स्थानों पर लोगों के एकत्र होने पर प्रतिबंध लगा दिया है और मीडिया पर भी सेंसरशिप लागू कर दी है।
प्रमुख बिंदु
- प्रदर्शनकारियों ने सरकार द्वारा लागू किये गए आपातकालीन प्रतिबंधों को खारिज करते हुए सरकार विरोधी प्रदर्शनों को जारी रखने का आह्वान किया है।
आंदोलन की शुरुआत- कारण
- असल में थाईलैंड में सरकार विरोधी प्रदर्शनों की शुरुआत वर्ष 2019 में तब हुई थी, जब थाईलैंड की अदालत ने वहाँ के प्रधानमंत्री और पूर्व आर्मी चीफ प्रयुत चान-ओ-चा की सत्ता का विरोध कर रही ‘फ्यूचर फॉरवर्ड पार्टी’ पर प्रतिबंध लगा दिया था।
- जब वैश्विक स्तर पर कोरोना वायरस ने महामारी का रूप लिया तो इसके प्रसार को रोकने के लिये विरोध प्रदर्शनों को भी रोक दिया गया, किंतु जुलाई ये प्रदर्शन एक बार फिर तेज़ होने लगे और देश भर में छात्र इस प्रदर्शन का हिस्सा बनने लगे।
- हालाँकि इन्हें थाईलैंड में हो रहे विरोध प्रदर्शनों का तात्कालिक कारण ही माना जा सकता है, जबकि इन विरोध प्रदर्शनों का मुख्य कारण तो थाईलैंड की तख्तापलट की संस्कृति में छिपा हुआ है।
आंदोलन की पृष्ठभूमि
- थाईलैंड की जनता के वर्तमान असंतोष को वर्ष 2014 में हुए सैन्य तख्तापलट से जोड़कर देखा जा सकता है, जिसके परिणामस्वरूप पूर्व आर्मी चीफ प्रयुत चान-ओ-चा (Prayut Chan-O-Cha) थाईलैंड की सत्ता के शीर्ष पर पहुँचे थे।
- आर्मी चीफ प्रयुत चान-ओ-चा के सत्ता में आने के बाद से वे लगातार अपनी पकड़ को मज़बूत करने का प्रयास कर रहे हैं और आम जनता पर अधिक-से-अधिक प्रतिबंध लगाए जा रहे हैं।
- कई सरकार विरोधी कार्यकर्त्ता, जो कि तख्तापलट के दौरान थाईलैंड के पड़ोसी देशों में चले गए थे, अब लापता हो गए हैं और किसी को उनके बारे में कोई खबर नहीं है।
- वर्ष 2017 में प्रयुत चान-ओ-चा के नेतृत्त्व में सेना ने एक नया संविधान पेश किया, जिसने सेना को 250 सदस्यीय सीनेट नियुक्त करने की शक्ति दी और यह थाईलैंड के प्रधानमंत्री के चयन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।
- इसके अलावा थाईलैंड के राजा की विदेश यात्रा के दौरान एक राज-प्रतिनिधि नियुक्त करने की आवश्यकता भी समाप्त कर दी गई।
- वर्ष 2019 में थाईलैंड में संसदीय चुनावों का भी आयोजन किया गया था, लेकिन सत्ता की कमान फिर भी पूर्व आर्मी चीफ प्रयुत चान-ओ-चा के पास ही रही।
- इस तरह सरकार में सेना के बढ़ते प्रभाव के परिणामस्वरूप आम जनता के बीच सैन्य तानाशाह को लेकर आक्रोश बढ़ता गया।
प्रदर्शनकारियों की मांग
- अगस्त माह में प्रदर्शनकारियों ने थाईलैंड के राजतंत्र में सुधार का आह्वान किया था, जिसके बाद प्रदर्शनकारियों द्वारा राजतंत्र में सुधार करने और सही मायने में लोकतंत्र स्थापित करने के लिये 10 मांगों की एक सूची जारी की गई, जिसमें शामिल हैं-
- संविधान के अनुच्छेद 6 को निरस्त करना, जो यह निर्धारित करता है कि कोई भी व्यक्ति थाईलैंड के राजा के बारे में कानूनी शिकायत नहीं कर सकता है। साथ ही राजा की शक्तियों पर ‘चेक एंड बैलेंस’ की प्रणाली लागू करने के लिये संसद को शक्ति प्रदान करना।
- संविधान के अनुच्छेद 112 (यानी ‘लेज़ मेजस्टे’ कानून) को समाप्त करना, जिसमें कहा गया है कि कोई भी राजा, रानी अथवा उनके उत्तराधिकारी की आलोचना नहीं कर सकता है। कानून का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति को 3-15 वर्ष तक की सज़ा हो सकती है। इस तरह लोगों को राजतंत्र की आलोचना करने के लिये स्वतंत्रता प्रदान करना।
- राजा की व्यक्तिगत संपत्ति को शाही बजट से अलग करना, जो कि थाईलैंड के करदाताओं का धन है।
- देश की आर्थिक स्थिति के अनुसार शाही बजट में कटौती करना।
- अनावश्यक निकायों जैसे- प्रिवी काउंसिल (Privy Council) को समाप्त करना, साथ ही राजा की सैन्य शक्तियों को समाप्त करना।
- शाही खर्च की निगरानी के लिये ‘चेक एंड बैलेंस’ की प्रणाली लागू करना।
- यह निर्धारित करना की राजा अपने राजनीतिक दृष्टिकोण को सार्वजनिक नहीं करेगा।
- राजशाही को आवश्यकता से अधिक आदर्श बताने वाले शैक्षिक पाठ्यक्रम को समाप्त करना।
- ऐसे नागरिकों की हत्या के मामलों की जाँच करना जो राजशाही की आलोचना से संबंधित हैं।
- राजा सैन्य तख्तापलट का समर्थन नहीं करेगा।
- इसके अलावा थाईलैंड में सरकार विरोधी प्रदर्शनकारियों द्वारा वहाँ के प्रधानमंत्री और पूर्व आर्मी चीफ प्रयुत चान-ओ-चा के इस्तीफे की भी मांग की जा रही है। प्रदर्शनकारी स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों की भी मांग कर रहे हैं।
थाईलैंड की तख्तापलट संस्कृति
- विशेषज्ञों के अनुसार, यदि कोई देश एक बार तख्तापलट का सामना करना करता है तो वहाँ भविष्य में तख्तापलट की संभावना काफी बढ़ जाती है।
- आँकड़ों की मानें तो थाईलैंड में वर्ष 1932 के बाद से अब तक कुल 13 सफल और 9 असफल सैन्य तख्तापलट हुए हैं।
- इस प्रकार थाईलैंड में तख्तापलट की संस्कृति विकसित हो गई है, यानी अब थाईलैंड में प्रत्येक राजनीतिक संकट को हल करने के लिये तख्तापलट को एक विकल्प के रूप में देखा जाता है।
- कारण
- थाईलैंड में सैन्य तख्तापलट का इतिहास बताता है कि यहाँ के सैन्य प्रमुखों के लिये तख्तापलट काफी कम जोखिम वाली गतिविधि है और तख्तापलट करने वाले किसी भी सैन्य प्रमुख पर कभी कोई कार्यवाही नही होती है।
- थाईलैंड में सैन्य तख्तापलट का एक मुख्य कारण यह भी है कि यहाँ तख्तापलट करने वाले लोगों को बड़े पूंजीपतियों, उद्योगपतियों और प्रतिष्ठित लोगों का काफी समर्थन मिलता है, उदाहरण के लिये थाईलैंड के वर्तमान राजा पर वर्ष 2014 में तख्तापलट करने वाले पूर्व आर्मी चीफ प्रयुत चान-ओ-चा को समर्थन देने का आरोप लगाया जाता है।
थाईलैंड के बारे में
- दक्षिण-पूर्व एशिया के केंद्र में स्थित थाईलैंड एक विविध पारिस्थितिक तंत्र वाला देश है, जहाँ पहाड़ी वन क्षेत्रों से लेकर मैदानी इलाके, पठार और समुद्री तट तक सब कुछ पाया जाता है।
- तकरीबन 5,13,115 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले इस देश की आबादी लगभग 69 मिलियन है।
- थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक है और यह एक बहु-जातीय राष्ट्र है, हालाँकि यहाँ अधिकांशतः बौद्ध धर्म को मानने वाले लोग पाए जाते हैं।
- ‘थाई’ (Thai) थाईलैंड की राष्ट्रीय और आधिकारिक भाषा है।
स्रोत: द हिंदू
महिलाओं के खिलाफ हिंसा पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय
प्रिलिम्स के लिये:घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनयम, 2005, सर्वोच्च न्यायालय मेन्स के लिये:महिला अधिकारों के संरक्षण में सर्वोच्च न्यायालय के वर्तमान निर्णय का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनयम, 2005 पर चर्चा करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने भारत में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों को एक ‘कभी न खत्म होने वाले चक्र’ (Never-Ending Cycle) के रूप में परिभाषित किया। महिलाओं के विरुद्ध हिंसा तथा अपराध की घटनाएँ निरंतर जारी हैं, जो भारत जैसे प्रगतिशील राष्ट्र के समक्ष गंभीर चिंता का कारण बनी हुई है।
प्रमुख बिंदु:
- निर्णय: सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह निर्णय घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनयम, 2005 (Protection of Women from Domestic Violence Act, 2005) पर विस्तार से चर्चा करने के बाद दिया गया।
- यह कानून घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं को ’साझा घर’ (Shared Household) में रहने का अधिकार प्रदान करता है, भले ही पीड़ित महिला के पति के पास घर का कोई कानूनी अधिकार न हो तथा यह घर ससुर या सास के स्वामित्व में हो।
- अधिनियम को व्यापक बनाना: न्यायालय के अनुसार, यदि आपराधिक न्यायालय (Criminal Court) द्वारा घरेलू हिंसा के कानून के तहत किसी विवाहित महिला को निवास का अधिकार (यहाँ ऐसे निवास स्थल की बात की गई है जहाँ महिला एवं पुरुष दोनों साथ रह रहे हैं) दिया गया है तो इस प्रकार की राहत प्रदान करने का निर्णय लिया जाना प्रासंगिक है, साथ ही ससुराल में हिंसा से पीड़ित महिला को बेदखल करने की स्थिति में नागरिक कार्यवाही (Civil Proceedings) पर भी विचार किया जा सकता है।
- पत्नी को घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के तहत संयुक्त परिवार में ‘साझा घर’ (Shared Household) पर दावा करने का अधिकार प्राप्त होगा।
- घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 2 (s) 'साझा संपत्ति’ (Shared Property) को परिभाषित करती है, जो महिला के पति या संयुक्त परिवार के स्वामित्व वाली संपत्ति के रूप में होती है और जिसमे महिला का पति भी शामिल है ।
- पूर्व निर्णय को पलटना: दिसंबर 2006 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गए पूर्व निर्णय, एस. आर. बत्रा बनाम तरुणा बत्रा ( SR Batra v Taruna Batra) मामले को न्यायालय द्वारा उलट दिया गया है. अपने पूर्व के निर्णय में न्यायालय द्वारा पत्नी को पति के घर में रहने की अनुमति देने से इनकार कर दिया गया था क्योंकि यह घर पति की माँ के स्वामित्व में था।
- न्यायालय द्वारा पूर्व निर्णय/आदेश को गलत माना गया है क्योंकि यह निर्णय पूरी तरह वर्ष 2005 के अधिनियम के प्रावधानों के अनुरूप नहीं था।
- क्रूर/हिंसक व्यवहार की कम-से-कम रिपोर्ट: न्यायालय ने कहा है कि वर्ष 2005 के अधिनियम के अनुपालन के बाद भी भारत में घरेलू हिंसा की घटनाओं में अभी तक कमी नहीं आई है। न्यायालय ने कहा कि भारत में एक महिला को पुत्री, बहन, पत्नी, माँ, साथी या एकल महिला के रूप में घेरलू हिंसा एवं भेदभाव का सामना करना पड़ता है, जो कि चिंतनीय है।
- राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण -4 (2015-16) (NFHS-4) के अनुसार, भारत में 15-49 आयु वर्ग की 30% लड़कियाँ एवं महिलाएँ शारीरिक हिंसा की पीड़ित हैं।
- UN वुमन (United Nations Entity for Gender Equality and the Empowerment of Women-UN Women) के अनुसार, विश्व स्तर पर वर्ष 2019-20 में 243 मिलियन लड़कियाँ और महिलाएंँ (15-49 वर्ष की आयु) अपने साथी द्वारा यौन या शारीरिक हिंसा की शिकार हुई हैं।
- हिंसा की शिकार महिलाओं में से 40% से कम महिलाएँ किसी भी प्रकार की मदद मांगती हैं या हिंसा/अपराध की रिपोर्टिंग करती हैं।
- मदद मांगने वाली इन महिलाओं में से 10% पुलिस के पास शिकायत दर्ज कराती हैं।
- कारण: महिलाओं द्वारा अपने साथ होने वाले दुर्व्यवहार का दृढ़ता के साथ विरोध न करने या किसी ठोस कार्यवाही के लिये कदम न उठा पाने के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं:
- बड़े पैमाने पर महिला अधिकारों को संबोधित करने वाले कानूनों की अनुपस्थिति।
- मौजूदा कानूनों की अनदेखी।
- सामाजिक दृष्टिकोण, कलंक एवं परिस्थितियों के चलते भी महिलाओं द्वारा घरेलू हिंसा के प्रति कोई ठोस कदम नहीं उठाया जाता है जो महिलाओं के प्रति हिंसक मामलों की शिकायत न करने का मुख्य कारक है।
- परिस्थितियों के चलते समाज में इस अवधारणा को बल मिला है कि अधिकांश महिलाएँ चुप रहकर परिस्तिथियों के साथ समझौता करना पसंद करती हैं बजाय अपने खिलाफ हुए हिंसा का विरोध करने के।
घरेलू हिंसा अधिनियम:
- अधिनियम का संक्षिप्त नाम घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनयम, 2005 है।
- शारीरिक हिंसा, जैसे- थप्पड़ मारना, धक्का देना एवं पीटना।
- यौन हिंसा जैसे- जबरन संभोग एवं अन्य रूप। (बलात्कार)
- भावनात्मक (मनोवैज्ञानिक) दुरुपयोग, जैसे- अपमान, विश्वासघात, निरंतर अपमान करना, डराना, नुकसान पहुँचाने की धमकी, बच्चों को दूर करने की धमकी देना इत्यादि।
- किसी व्यक्ति को उसके परिवार एवं दोस्तों से अलग करना, व्यक्ति के कही आने-जाने पर निगरानी रखना उसके वित्तीय संसाधनों, रोज़गार, शिक्षा या चिकित्सा देखभाल तक पहुँच को प्रतिबंधित करना इत्यादि।
आगे की राह:
- महिलाओं के खिलाफ उन हिंसक मामलों को तत्काल प्रभाव से निपटाने की ज़रूरत है जिनका सामना वे आर्थिक सहायता और प्रोत्साहन पैकेज के अभाव में भेदभाव के कई रूपों में करती हैं।
- ज़मीनी स्तर पर महिलाओं के हितों के लिये कार्य करने वाले संगठनों एवं समुदायों को दृढ़ता से समर्थन करने की आवश्यकता है।
- सामाजिक सहायता का विस्तार करने के साथ-साथ फोन या इंटरनेट का उपयोग न करने वाली महिलाओं तक इनकी पहुँच सुनिश्चित करने के लिये तकनीक आधारित समाधानों जैसे- एसएमएस, ऑनलाइन टूल एवं नेटवर्क का उपयोग करते हुए हेल्पलाइन, साइकोसोशल सपोर्ट और ऑनलाइन काउंसलिंग को बढ़ावा दिया जाना चाहिये ।
- पुलिस और न्याय सेवाओं को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि किसी भी आपराधिक घटना के साथ-साथ महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ हुई हिंसक घटनाओं को भी अन्य हिंसक एवं आपराधिक घटनाओं के साथ उच्च प्राथमिकता दी जाए।
स्रोत: द हिंदू
डिजिटल मीडिया संस्थानों के लिये पीआईबी मान्यता
प्रिलिम्स के लियेपीआईबी मान्यता प्राप्त कार्ड मेन्स के लियेभारत में पत्रकारिता के विकास में डिजिटल मीडिया की भूमिका |
चर्चा में क्यों?
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय (I&B Ministry) द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार, केंद्र सरकार निकट भविष्य में डिजिटल करेंट अफेयर्स और समाचार मीडिया संस्थाओं को अन्य पारंपरिक मीडिया संस्थानों की तरह ही लाभ प्रदान करने पर विचार कर रही है।
प्रमुख बिंदु
- इन लाभों के तहत डिजिटल मीडिया संस्थानों के पत्रकारों, कैमरामैन और वीडियोग्राफरों को पीआईबी मान्यता (PIB Accreditation) प्रदान की जाएगी, जिससे उन पत्रकारों और अन्य मिडियाकर्मियों को सरकार से अधिक विश्वसनीय सूचना प्राप्त करने और आधिकारिक कार्यक्रमों जैसे- प्रेस कॉन्फ्रेंस आदि में हिस्सा लेने का अवसर मिलेगा।
- इसके अलावा सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय (I&B Ministry) ने कहा कि प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में स्व-विनियमन निकायों की तरह ही डिजिटल मीडिया की इकाइयाँ भी अपने हितों को आगे बढ़ाने और सरकार के साथ बातचीत के लिये स्वयं-विनियमन निकाय बना सकती हैं।
- लाभ
- इसके माध्यम से इन मिडियाकर्मियों को केंद्रीय सरकार स्वास्थ्य योजना (Central Government Health Scheme-CGHS) का भी लाभ मिल सकेगा और साथ ही वे रेल किराये में रियायत प्राप्त करने के भी हकदार होंगे।
- इस निर्णय के लागू होने से डिजिटल मीडिया संस्थान भारत सरकार के ब्यूरो ऑफ आउटरीच एंड कम्युनिकेशन के तहत सरकारी विज्ञापन प्राप्त करने के लिये पात्र हो जाएंगे।
- ब्यूरो ऑफ आउटरीच एंड कम्युनिकेशन सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (PSUs) समेत भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों एवं संगठनों द्वारा विज्ञापन के लिये भारत सरकार की नोडल एजेंसी है।
पृष्ठभूमि
- सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय (I&B Ministry) का यह कदम केंद्र सरकार के उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (DPIIT) के एक निर्णय के अनुरूप है, जिसमें डिजिटल करेंट अफेयर्स और समाचार मीडिया संस्थाओं के लिये सरकार के अनुमोदन के तहत 26 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की सीमा निर्धारित की गई थी।
- अब सरकार ने यह भी निर्धारित किया है कि ऐसे मीडिया संस्थानों का मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) का भारतीय होना आवश्यक है, साथ ही ऐसे संस्थानों में 60 दिनों से अधिक समय तक काम करने वाले सभी विदेशी कर्मचारियों को सरकार से सुरक्षा मंज़ूरी की आवश्यकता होगी।
- ध्यातव्य है कि इससे पूर्व भारत में डिजिटल मीडिया संस्थानों के लिये प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) संबंधी कोई नीति नहीं थी, वहीं प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में FDI की सीमा क्रमशः 26 प्रतिशत और 49 प्रतिशत निर्धारित की गई है।
पीआईबी कार्ड और उसका महत्त्व
- पीआईबी मान्यता प्राप्त कार्ड केवल उन पत्रकारों को दिया जाता है जो दिल्ली या उसके आस-पास के क्षेत्रों में रहते हैं और एक ऐसे मीडिया संस्थान के साथ कार्यरत हैं जो कम-से-कम एक वर्ष से लगातार कार्य कर रहा है और उनके द्वारा प्रदान किया जा रहा 50 प्रतिशत कंटेंट सामान्य जनहित की खबरों से संबंधित हो।
- साथ ही उनके द्वारा दी जाने वाली खबरों में भारत सरकार के मंत्रालयों और संगठनों की खबरें भी शामिल होनी चाहिये।
- पीआईबी मान्यता प्राप्त कार्ड हासिल करने के लिये एक पत्रकार अथवा कैमरामैन को न्यूनतम पाँच वर्ष का अनुभव होना चाहिये अथवा एक फ्रीलांसर के तौर पर न्यूनतम 15 वर्ष का अनुभव होना अनिवार्य है।
लाभ
- राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और अन्य केंद्रीय मंत्रियों आदि से संबंधित कुछ सार्वजनिक आयोजनों में केवल PIB मान्यता प्राप्त पत्रकारों को ही प्रवेश दिया जाता है।
- पीआईबी से मान्यता प्राप्त पत्रकार और उनके परिवार के सदस्य केंद्र सरकार के कर्मचारियों की तरह ही केंद्रीय सरकार स्वास्थ्य योजना (CGHS) के तहत सब्सिडी वाली स्वास्थ्य सेवाओं को प्राप्त करने के लिये पात्र हैं।
- पीआईबी मान्यता प्राप्त कार्ड पत्रकारों को उनके पेशेवर दायित्त्व को पूरा करने में मदद करता है। इस प्रकार कार्ड के माध्यम से पत्रकारों को उनके स्रोत की गोपनीयता बनाए रखने में मदद मिलती है।