सामाजिक न्याय
कुपोषण: भारत में होने वाले बच्चों की मौत के दो-तिहाई का कारण
- 21 Sep 2019
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चर्चा में क्यों ?
हाल ही में द लैंसेट चाइल्ड एंड अडलसेंट हेल्थ (The Lancet Child & Adolescent Health) द्वारा “द बर्डन ऑफ चाइल्ड एंड मैटरनल मालन्यूट्रिसन एंड ट्रेंड्स इन इट्स इंडीकेटर्स इन द स्टेट्स ऑफ इंडिया : ग्लोबल बर्डन ऑफ डिज़ीज़ स्टडी 1990-2017” (The Burden of Child And Maternal Malnutrition And Trends in its Indicators in the States of India: the Global Burden of Disease Study 1990–2017) नामक एक रिपोर्ट का प्रकाशन किया गया।
प्रमुख बिंदु:
- इंडिया स्टेट-लेवल डिज़ीज़ बर्डन इनिशिएटिव (India State-Level Disease Burden Initiative) स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, ‘इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR)’, ‘पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया’ और ‘इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन’ की एक संयुक्त पहल है। इस पहल में विशेषज्ञों के साथ-साथ 100 से अधिक भारतीय संस्थानों से जुड़े हितधारक तथा कई प्रमुख स्वास्थ्य वैज्ञानिक और नीति निर्माता शामिल हैं।
- रिपोर्ट में कहा गया है कि पांँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की कुल मृत्यु दर और कुपोषण के कारण मृत्यु दर में वर्ष 1990 से 2017 तक गिरावट आई है, लेकिन कुपोषण अभी भी पांँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु का सर्वप्रमुख कारक बना हुआ है।
- अभी भी कुपोषण अधिकांश राज्यों में एकीकृत रूप से सभी उम्र की बीमारियों का सबसे बड़ा जोखिम कारक है।
- इस रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि भारत में पाँच साल से कम उम्र के बच्चों की 1.04 मिलियन मौंतों में से करीब दो-तिहाई मृत्यु का कारण कुपोषण है।
- रिपोर्ट में कहा गया है कि विभिन्न राज्यों के स्तर पर बच्चों में कुपोषण के कारण विकलांगता-समायोजित जीवन वर्ष (Disability Adjusted Life Year-DALY) की दर अलग-अलग है। यह दर राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार और असम में सर्वाधिक है, इसके बाद मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा, नगालैंड और त्रिपुरा का स्थान आता है।
- रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2017 में भारत में चाइल्ड स्टंटिंग का प्रसार 39% था। यह गोवा में 21% से लेकर उत्तर प्रदेश में 49% तक था और आमतौर पर ‘सशक्त कार्रवाई समूह’ राज्यों में सबसे अधिक था। इस समूह के अंतर्गत बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, ओडिशा,, राजस्थान, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश सहित कुल आठ राज्य आते हैं जो सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े राज्यों के रूप में जाने जाते हैं। ये राज्य जनसांख्यिकीय संक्रमण में पिछड़े हुए हैं, साथ ही यहाँ शिशु मृत्यु दर भी सबसे अधिक है।
- रिपोर्ट के अनुसार, भारत में वर्ष 2017 में जन्म के समय कम वज़न (Low Birth Weight) का प्रसार 21% था, जो मिज़ोरम में न्यूनतम 9% और उत्तर प्रदेश में अधिकतम 24% था।
- वर्ष 2017 में भारत में अंडरवेट बच्चों का प्रसार 33% था, जो मणिपुर में न्यूनतम 16% और झारखंड में अधिकतम 42% था।
- वर्ष 2017 में भारत में बच्चों में एनीमिया की व्यापकता 60% थी, जो मिज़ोरम में न्यूनतम 21% और हरियाणा में अधिकतम 74% थी।
- रिपोर्ट में बताया गया है कि कुपोषण के संकेतकों में जन्म के समय कम वज़न (Low Birth Weight) का बीमारियों के बोझ में सबसे बड़ा योगदान है, तत्पश्चात् स्टंटिंग (Stunting) और वेस्टिंग (Wasting) शामिल है।
- साथ ही रिपोर्ट में यह भी खुलासा किया गया है कि, बच्चों के एक उपसमूह के बीच अधिक वज़न सभी राज्यों के लिये एक महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या बनती जा रही है।
- रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2017 में भारत में 54% महिलाओं में एनीमिया का प्रसार पाया गया, जो मिज़ोरम में न्यूनतम 28% और दिल्ली में अधिकतम 60% तक था इसके अतिरिक्त स्तनपान का प्रसार भारत में 53% पाया गया, जो मेघालय में न्यूनतम 34% और छत्तीसगढ़ में अधिकतम 74% था।
वर्तमान में किये जा रहे प्रयास
- पोषण अभियान:
- पोषण अभियान (पूर्ववर्ती राष्ट्रीय पोषण मिशन) के तहत 36 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के सभी ज़िलों को चरणबद्ध तरीके से कवर किया गया है। यह वर्ष 2022 तक कुपोषण मुक्त भारत की प्राप्ति सुनिश्चित करने के लिये एक एकीकृत बहुमंत्रालयी मिशन है।
- समान लक्ष्य प्राप्ति के लिये एकीकृत योजनाओं की विद्यमान कमी को दूर करने हेतु पोषण अभियान प्रारंभ किया गया जिसमें सभी तंत्रों और घटकों को समग्रता से शामिल किया जा रहा है।
- पोषण अभियान का प्रमुख उद्देश्य आंँगनवाड़ी सेवाओं के उपयोग और गुणवत्ता में सुधार करके भारत के चिन्हित ज़िलों में स्टंटिंग को कम करना है। इसके अतिरिक्त गर्भवती महिलाओं और प्रसव के बाद माताओं एवं उनके बच्चों हेतु समग्र विकास तथा पर्याप्त पोषण सुनिश्चित करना है।
राष्ट्रीय पोषण मिशन 2022 के लक्ष्य:
- जन्म के समय कम वज़न (Low Birth Weight) में वर्ष 2017 से 2022 तक प्रतिवर्ष 2 प्रतिशत की कमी लाना।
- स्टंटिंग को वर्ष 2022 तक कम करके 25% के स्तर तक लाना ।
- 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों तथा 15-49 वर्ष की महिलाओं में विद्यमान एनीमिया के स्तर में वर्ष 2017 से 2022 तक 3 प्रतिशत की वार्षिक कमी लाना।
- उपरोक्त प्रयासों के अतिरिक्त विश्व स्वास्थ्य संगठन और यूनिसेफ जैसे वैश्विक संस्थान सतत् विकास लक्ष्य- 2030 के अंतर्गत कुपोषण एवं इससे संबंधित समस्याओं से निपटने के लिये अनेक कदम उठा रहे हैं। इसके तहत निम्नलिखित लक्ष्यों को शामिल किया गया है:
- जन्म के समय कम वज़न के प्रसार में वर्ष 2012 के स्तर से वर्ष 2030 तक 30% तथा चाइल्ड वेस्टिंग में वर्ष 2030 तक 3% की कमी लाना।
- चाइल्ड स्टंटिंग को वर्ष 2012 के स्तर से वर्ष 2030 तक 50% कम करना।
- 5-49 वर्ष की महिलाओं में एनीमिया के स्तर को वर्ष 2012 की तुलना में वर्ष 2030 तक 50% कम करना।
- पहले 6 महीनों में अनन्य स्तनपान के प्रचलन को वर्ष 2030 तक 70% करना।
आगे की राह
- रिपोर्ट के संदर्भ में नीति आयोग ने कहा कि केंद्र सरकार देश भर में कुपोषण को दूर करने के अपने प्रयासों को तेज़ कर रही है। इसके अतिरिक्त राज्य सरकारों को भी कुपोषण के स्तर में कमी लाने हेतु प्रोत्साहित किया जा रहा है।
- रिपोर्ट में किये गए अध्ययन का निष्कर्ष बताता है कि राज्यों के बीच कुपोषण की स्थिति में व्यापक भिन्नता विद्यमान है। इसलिये महत्त्वपूर्ण है कि कुपोषण में कमी की योजना ऐसे तरीके से बनाई जाए जो प्रत्येक राज्य के रुझान और संदर्भ के लिये उपयुक्त हो।