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डेली न्यूज़

  • 17 Jun, 2022
  • 48 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

I2U2 पहल

प्रिलिम्स के लिये:

I2U2 पहल, अब्राहम समझौता, QUAD 

मेन्स के लिये:

समूह और समझौते भारत को शामिल करते हैं और/या भारत के हितों को प्रभावित करते हैं 

चर्चा में क्यों? 

I2U2 पहल के एक भाग के रूप में भारत, इज़रायल, संयुक्त अरब अमीरात और अमेरिका जुलाई 2022 में अपना पहला आभासी शिखर सम्मेलन आयोजित करेंगे। 

Syria

I2U2 पहल: 

  • पृष्ठभूमि: 
    • शुरुआत में I2U2 का गठन अक्तूबर 2021 में इज़रायल और यूएई के बीच अब्राहम समझौते के बाद किया गया था, ताकि इस क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा, बुनियादी ढाँचे और परिवहन से संबंधित मुद्दों से निपटा जा सके। 
      • उस समय इसे 'आर्थिक सहयोग के लिये अंतर्राष्ट्रीय मंच' कहा जाता था। 
      • इसे 'वेस्ट एशियन क्वाड' भी कहा जाता था। 
  • परिचय:  
    • I2U2 पहल भारत, इज़रायल, यूएसए और यूएई का एक नया समूह है। 
    • समूह के नाम में 'I2' का अर्थ भारत और इज़रायल है, जबकि 'U2' का अर्थ संयुक्त राज्य अमेरिका एवं संयुक्त अरब अमीरात है। 
    • यह एक बड़ी उपलब्धि है जो इस क्षेत्र में होने वाले भू-राजनीतिक परिवर्तनों को दर्शाती है। 
    • यह न केवल दुनिया भर में गठबंधन और साझेदारी की प्रणाली को पुनर्जीवित एवं फिर से सक्रिय करेगा, बल्कि उन साझेदारियों को भी जोड़ देगा जो पहले मौजूद नहीं थीं या पूरी तरह से उपयोग नहीं की गई थीं। 
  • महत्त्व: 
    • सुरक्षा सहयोग: 
      • इससे देशों को इन नए समूहों के ढाँचे के भीतर चार देशों के बीच सुरक्षा सहयोग तलाशने में मदद मिलेगी। 
    • तकनीकी केंद्र: 
      • इनमें से प्रत्येक देश एक तकनीकी केंद्र है। 
    • खाद्य सुरक्षा: 
    • विभिन्न क्षेत्रों में एक साथ कार्य: 
      • ये देश कई स्तरों पर सहयोग कर सकते हैं, चाहे वह तकनीक हो, व्यापार हो, जलवायु हो, कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई हो या सुरक्षा। 

भारत के लिये I2U2 का महत्त्व: 

  • अब्राहम समझौते से लाभ: 
    • भारत को संयुक्त अरब अमीरात और अन्य अरब राज्यों के साथ अपने संबंधों को जोखिम में डाले बिना इज़रायल के साथ संबंधों को मज़बूत करने के लिये अब्राहम समझौते (Abraham Accords) का लाभ मिलेगा। 
  • बाज़ार को फायदा: 
    • भारत एक विशाल उपभोक्ता बाज़ार है। यह उच्च तकनीक और अत्यधिक मांग वाले सामानों का भी एक बड़ा उत्पादक स्थान है। इस ग्रुपिंग से भारत को फायदा होगा। 
  • गठबंधन: 
    • यह भारत को राजनीतिक और  सामाजिक गठबंधन निर्मित करने  में मददगार साबित होगा। 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस  


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

टाइप-1 डायबिटीज़

प्रिलिम्स के लिये:

टाइप-1 डायबिटीज़, आईसीएमआर, विश्व डायबिटीज़ दिवस 

मेन्स के लिये:

डायबिटीज़, स्वास्थ्य देखभाल, डायबिटीज़ पर अंकुश हेतु पहल, सरकारी नीतियांँ और हस्तक्षेप 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (IMCR) ने टाइप-1 डायबिटीज़ के निदान, उपचार और प्रबंधन के संबंध में दिशा-निर्देश जारी किये। 

  • यह पहली बार है जब ICMR ने विशेष रूप से टाइप-1 डायबिटीज़ के लिये दिशा-निर्देश जारी किये हैं, जो टाइप-2 की तुलना में दुर्लभ है। 

Diabetes

डायबिटीज़: 

  • परिचय: डायबिटीज़ एक गैर-संचारी (Non-Communicable Disease) रोग है जो किसी व्यक्ति में तब पाया जाता है जब मानव अग्न्याशय (Pancreas) पर्याप्त इंसुलिन (एक हार्मोन जो रक्त शर्करा या ग्लूकोज को नियंत्रित करता है) का उत्पादन नहीं करता है या जब शरीर प्रभावी रूप से उत्पादित इंसुलिन का उपयोग करने में असफल रहता है। 
  • डायबिटीज़ के प्रकार: 
    • टाइप (Type)-1: 
      • इसे ‘किशोर-मधुमेह’ के रूप में भी जाना जाता है (क्योंकि यह ज़्यादातर 14-16 वर्ष की आयु के बच्चों को प्रभावित करता है), टाइप-1 मधुमेह तब होता है जब अग्न्याशय (Pancreas) पर्याप्त इंसुलिन का उत्पादन करने में विफल रहता है। 
      • यह मुख्य रूप से बच्चों और किशोरों में पाया जाता है। हालांँकि इसका प्रसार कम है और टाइप-2 की तुलना में बहुत अधिक गंभीर है। 
    • टाइप (Type)-2:  
      • यह शरीर के इंसुलिन का उपयोग करने के तरीके को प्रभावित करता है, जबकि शरीर अभी भी इंसुलिन निर्माण कर रहा होता है। 
      • टाइप-2 डायबिटीज़ या मधुमेह किसी भी उम्र में हो सकता है, यहांँ तक कि बचपन में भीहालांँकि मधुमेह का यह प्रकार ज़्यादातर मध्यम आयु वर्ग और वृद्ध लोगों में पाया जाता है 
    • गर्भावस्था के दौरान मधुमेह: यह गर्भावस्था के दौरान महिलाओं में तब होता है जब कभी-कभी गर्भावस्था के कारण शरीर अग्न्याशय में बनने वाले इंसुलिन के प्रति कम संवेदनशील हो जाता हैगर्भकालीन मधुमेह सभी महिलाओं में नहीं पाया जाता है और आमतौर पर बच्चे के जन्म के बाद यह समस्या दूर हो जाती है 
  • मधुमेह के प्रभाव: लंबे समय तक बगैर उपचार या सही रोकथाम न होने पर मधुमेह गुर्दे, हृदय, रक्त वाहिकाएँ, तंत्रिका तंत्र और आँखें (रेटिना) आदि से संबंधित रोगों का कारण बनता है। 
  • ज़िम्मेदार कारक: मधुमेह में वृद्धि के लिये ज़िम्मेदार कारक हैं- अस्वस्थ आहार, शारीरिक गतिविधि की कमी, शराब का अत्यधिक सेवन, अधिक वज़न/मोटापा, तंबाकू का उपयोग आदि। 

टाइप (Type)-1 की संभावना:  

  • विश्व में टाइप-1 मधुमेह से पीड़ित 10 लाख बच्चों और किशोरों में से सबसे अधिक संख्या भारत में है 
  • भारत में टाइप-1 मधुमेह से पीड़ित 2.5 लाख लोगों में से 90,000 से 1 लाख लोग 14 वर्ष से कम आयु के हैं। 
  • देश में मधुमेह के सभी अस्पतालों में केवल 2% टाइप-1 के मामले हैं जिनका निदान अधिक बार किया जा रहा है। 

Diabetes-types

मधुमेह में वृद्धि के लिये ज़िम्मेदार कारक: 

  • आनुवंशिक कारक: यह किसी व्यक्ति में टाइप-1 मधुमेह को निर्धारित करने में भूमिका निभाता है। एक बच्चे में मधुमेह का खतरा निम्नलिखित प्रकार से हो सकता है: 
    • माँ के संक्रमित होने पर 3%। 
    • पिता के संक्रमित होने पर 5%। 
    • भाई-बहन के संक्रमित होने पर 8%। 
  • कुछ जीनों की उपस्थिति: यह रोग के साथ भी दृढ़ता से जुड़ा हुआ है। उदाहरण के लिये सामान्य जनसंख्या में 2.4% की तुलना में टाइप-1 मधुमेह के रोगियों में DR3-DQ2 और DR4-DQ8 नामक जीन की व्यापकता 30-40% है। 
    • DR3- DQ2 और DR4-DQ8 का अर्थ है कि रोगी सीलिएक रोग के लिये अनुमेय है और रोग विकसित करने या होने में सक्षम है। 

संभावित उपचार:  

  • ग्लूकोज़ मॉनीटरिंग: निरंतर ग्लूकोज़ मॉनीटरिंग डिवाइस सेंसर की मदद से पूरे 24 घंटे में रक्त में ग्लूकोज़ के स्तर की निगरानी की जा सकती है।                    
  • कृत्रिम अग्न्याशय: यह आवश्यकता पड़ने पर स्वचालित रूप से इंसुलिन प्रवाहित कर सकता है। 

संबंधित पहल: 

  • कैंसर, मधुमेह, हृदय रोग और स्ट्रोक की रोकथाम तथा नियंत्रण के लिये राष्ट्रीय कार्यक्रम (NPCDCS): 
  • प्रमुख NCDs को रोकने और नियंत्रित करने के लिये भारत सरकार द्वारा वर्ष 2010 में आधारभूत संरचना को मज़बूत करने, मानव संसाधन विकास, स्वास्थ्य संवर्द्धन, शीघ्र निदान, प्रबंधन और रेफरल पर ध्यान देने के साथ यह पहल शुरू की गई थी। 
  • विश्व मधुमेह दिवस: 
  • यह प्रत्येक वर्ष4 नवंबर को मनाया जाता है। वर्ष 2022 का दिवस ‘मधुमेह शिक्षा तक पहुंँच पर केंद्रित होगा। 
  • वैश्विक मधुमेह कॉम्पैक्ट: 
  • WHO ने इंसुलिन की खोज की शताब्दी को चिह्नित करते हुए बेहतर तरीके से बीमारी से लड़ने के लिये वैश्विक मधुमेह कॉम्पैक्ट लॉन्च किया। 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस  


भारतीय अर्थव्यवस्था

क्रेडिट कार्ड को UPI से जोड़ना

प्रिलिम्स के लिये:

यूपीआई, फाइनेंशियल इंस्ट्रूमेंट, डिजिटल पेमेंट, आरबीआई। 

मेन्स के लिये:

क्रेडिट कार्ड को UPI से जोड़ना, इसका महत्त्व और चुनौतियाँ, सरकारी नीतियांँ और हस्तक्षेप 

चर्चा में क्यों? 

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने क्रेडिट कार्ड को यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) प्लेटफॉर्म से जोड़ने की अनुमति देने का प्रस्ताव रखा है। 

  • क्रेडिट कार्ड बैंकों द्वारा पूर्व-निर्धारित क्रेडिट सीमा के साथ जारी किया गया एक वित्तीय साधन है, जो कैशलेस लेन-देन में मदद करता है। यह कार्डधारकों को (अर्जित ऋण के आधार पर) व्यापारी से ली गई वस्तुओं और सेवाओं के भुगतान हेतु सक्षम बनाता है। 
  • इसका उद्देश्य उपयोगकर्त्ताओं को अतिरिक्त सुविधा प्रदान करना और डिजिटल भुगतान के दायरे को बढ़ाना है। 

एकीकृत भुगतान प्रणाली (UPI): 

  • UPI के साथ क्रेडिट कार्ड को लिंक करने की आवश्यकता: 
    • UPI समय के साथ भारत में भुगतान का एक लोकप्रिय तरीका बन गया है, जिसमें 26 करोड़ से अधिक अद्वितीय उपयोगकर्त्ता और पांँच करोड़ व्यापारी शामिल हैं।  
    • मई 2022 में इंटरफेस के माध्यम से 10.4 लाख करोड़ रुपए के लगभग 594 करोड़ लेन-देन को संसाधित किया गया था। 
    • वर्तमान में यूपीआई उपयोगकर्त्ताओं के डेबिट कार्ड के माध्यम से बचत/चालू खातों को जोड़कर लेन-देन की सुविधा प्रदान करता है। 

कदम का महत्त्व: 

  • भुगतान के लिये अतिरिक्त विकल्प: 
    • इस व्यवस्था से ग्राहकों को भुगतान के लिये एक अतिरिक्त अवसर मिलने की उम्मीद है जिससे सुविधा में वृद्धि होगी। 
  • क्रेडिट कार्ड का उपयोग बढेगा: 
    • इससे क्रेडिट कार्ड की पहुंँच और उपयोग में बढ़ोत्तरी होगी। 
    • UPI को व्यापक रूप से अपनाने की प्रवृत्ति को देखते हुए यह अनुमान है कि भारत में क्रेडिट कार्ड का उपयोग बढ़ जाएगा। 
  • UPI पर क्रेडिट बनाने का विकल्प: 
    • यह भारत में क्रेडिट कार्ड के माध्यम से यूपीआई द्वारा क्रेडिट बनाने की राह खोलता है, जहांँ पिछले कुछ वर्षों में स्लाइस (Slice), यूनी (Uni), वन (One) आदि जैसे कई स्टार्टअप उभरे हैं। 
  • मर्चेंट साइट्स पर मज़बूत लेन-देन: 
    • इससे  मर्चेंट साइट्स पर अधिक लेन-देन और स्वीकृति को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।.  
    • जो लोग आमतौर पर क्रेडिट कार्ड से भुगतान करना पसंद करते हैं ताकि लंबी पे-बैक अवधि या क्रेडिट-कार्ड बकाया पर ऋण प्राप्त किया जा सके, या जो खरीदारी के समय अपनी बचत को छूना नहीं चाहते हैं, वे यूपीआई के माध्यम से क्रेडिट कार्ड का उपयोग करके भुगतान कर सकते हैं।  
  • कुल खर्च में बढ़ोत्तरी: 
    • इस कदम से क्रेडिट कार्ड के माध्यम से कुल खर्च में उल्लेखनीय वृद्धि होगी। वर्तमान में क्रेडिट कार्ड और डेबिट कार्ड के उपयोग के माध्यम से खर्च औसत खर्च के दोगुने से भी अधिक है। अधिक खर्च आमतौर पर अर्थव्यवस्था के लिये एक बल गुणक है। 
  • वित्तीय लेन-देन के औसत टिकट आकार को बढ़ावा: 
    • डिजिटल लेन-देन में तेज़ी लाने के अलावा, इस उपाय से वित्तीय लेन-देन के औसत आकार के भी प्रभावित होने की उम्मीद है।  
      • वर्तमान में प्रति लेन-देन औसत टिकट का आकार (Average Ticket Size) 1,600 रुपए है, जबकि क्रेडिट कार्ड में यह 4,000 रुपए है। 
    • इसलिये विश्लेषकों का दावा है नए विकास के साथ यूपीआई विनिमय का आकार लगभग 3,000 रुपए से 4,000 रुपए तक जाने की संभावना है। 

चुनौतियाँ: 

  • यह स्पष्ट नहीं है कि क्रेडिट कार्ड के माध्यम से किये गए यूपीआई विनिमय पर ‘मर्चेंट डिस्काउंट रेट’ कैसे लागू होगा। 
    • MDR एक शुल्क है जो एक व्यापारी को उसके जारीकर्त्ता बैंक द्वारा अपने ग्राहकों से क्रेडिट और डेबिट कार्ड के माध्यम से भुगतान स्वीकार करने के लिये लिया जाता है। 
  • जनवरी 2020 से प्रभावी एक मानदंड के अनुसार, UPI और RuPay शून्य-MDR को आकर्षित करते हैं, जिसका अर्थ है कि इन लेन-देन पर कोई शुल्क नहीं लगाया जाता है। 
  • यूपीआई पर ज़ीरो-एमडीआर लागू होने का एक कारण यह भी हो सकता है कि वीज़ा और मास्टरकार्ड जैसे अन्य कार्ड नेटवर्क अभी तक क्रेडिट कार्ड के लिये यूपीआई में शामिल नहीं हुए हैं। 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 


भारतीय अर्थव्यवस्था

विश्व प्रतिस्पर्द्धात्मकता सूचकांक 2022

प्रिलिम्स के लिये:

विश्व प्रतिस्पर्द्धात्मकता सूचकांक, आत्मनिर्भर भारत, COP-26 

मेन्स के लिये:

वृद्धि और विकास, समावेशी विकास 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में प्रबंधन विकास संस्थान (IMD) द्वारा वार्षिक विश्व  प्रतिस्पर्द्धात्मकता सूचकांक 2022 जारी किया गया। 

  • आईएमडी स्विट्रज़लैंड में स्थित एक स्विस फाउंडेशन है, जो अपने कॅरियर के प्रत्येक चरण में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के विकास के लिये समर्पित है 
  • भारत ने एशियाई अर्थव्यवस्थाओं में सबसे तेज़ वृद्धि दर्ज की है, जिसमें भारत 43वें से 37वें स्थान पर पहुँच गया है, जिसका मुख्य कारण आर्थिक प्रदर्शन में वृद्धि है। 

World-Competitiveness-Index

विश्व  प्रतिस्पर्द्धात्मकता सूचकांक 2022: 

  • परिचय: 
    • आईएमडी वर्ल्ड कॉम्पिटिटिवनेस ईयरबुक (WCY) पहली बार 1989 में प्रकाशित हुई, यह एक व्यापक वार्षिक रिपोर्ट और देशों की प्रतिस्पर्द्धा पर विश्वव्यापी संदर्भ बिंदु है। 
    • यह देशों का विश्लेषण और रैंक करता है कि वे दीर्घकालिक मूल्यों को प्राप्त करने के लिये अपनी दक्षताओं का प्रबंधन कैसे करते हैं। 
  • कारक: यह चार कारकों (334 प्रतिस्पर्द्धात्मकता मानदंड) की जाँच करके देशों की समृद्धि और प्रतिस्पर्द्धात्मकता को मापता है: 
    • आर्थिक प्रदर्शन 
    • सरकारी दक्षता 
    • व्यापार दक्षता 
    • आधारभूत संरचना 

सूचकांक की मुख्य विशेषताएँ: 

  • शीर्ष वैश्विक प्रदर्शक: 
    • यूरोप: डेनमार्क पिछले साल के तीसरे स्थान से 63 देशों की सूची में शीर्ष पर पहुँच गया है, जबकि स्विट्रज़लैंड शीर्ष रैंकिंग से दूसरे स्थान पर खिसक गया है और सिंगापुर पाँचवें स्थान से तीसरे स्थान पर आ गया है। 
    • एशिया: शीर्ष प्रदर्शन करने वाली एशियाई अर्थव्यवस्थाएंँ सिंगापुर (3वीं), हॉन्गकॉन्ग (5वीं), ताइवान (7वीं), चीन (17वीं) और ऑस्ट्रेलिया (19वीं) हैं। 
    • अन्य: एकत्र किये गए डेटा की सीमित विश्वसनीयता के कारण इस वर्ष के संस्करण में रूस और यूक्रेन दोनों का मूल्यांकन नहीं किया गया था। 
  • भारत का प्रदर्शन: 
    • चार मानकों पर प्रदर्शन: 
      • आर्थिक प्रदर्शन: यह वर्ष 2021ं के 37वें से सुधरकर वर्ष 2022 में 28वें स्थान पर पहुंँच गया है। 
      • सरकारी दक्षता: यह वर्ष 2021 के 46वें से वर्ष 2022 में 45वें स्थान पर पहुँच गया। 
      • व्यावसायिक दक्षता: इसमें वर्ष 2021 के 32वें स्थान से वर्ष 2022 में 23वें स्थान पर एक बड़ा सुधार देखा गया। 
      • आधारभूत संरचना: दूसरी ओर आधारभूत संरचना में पूर्व वर्ष के 49 वें स्थान में कोई बदलाव नहीं आया। 
    • भारत के अच्छे प्रदर्शन के कारण: 
      • वर्ष 2021 में पूर्वव्यापी करों के संदर्भ में प्रमुख सुधार। 
      • ड्रोन, अंतरिक्ष और भू-स्थानिक मानचित्रण सहित कई क्षेत्रों का पुन: विनियमन। 
      • भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रतिस्पर्द्धात्मकता में उल्लेखनीय सुधार 
      • भारत जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिये वैश्विक आंदोलन में एक प्रेरक शक्ति के रूप में तथा COP26 शिखर सम्मेलन में वर्ष 2070 तक नेट-ज़ीरो की भारत की प्रतिबद्धता भी रैंकिंग में पर्यावरण से संबंधित प्रौद्योगिकियों में अपनी ताकत के अनुरूप है। 
    • भारत के समक्ष चुनौतियाँ: 
      • भारत जिन चुनौतियों का सामना कर रहा है, उनमें व्यापार व्यवधानों और ऊर्जा सुरक्षा का प्रबंधन, महामारी के बाद उच्च सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि को बनाए रखना, कौशल विकास तथा रोज़गार सृजन, परिसंपत्ति मुद्रीकरण एवं बुनियादी ढाँंचे के विकास के लिये संसाधन जुटाना शामिल है। 
    • भारत की शक्ति: 
      • व्यापार के लिये भारतीय अर्थव्यवस्था के शीर्ष पांँच आकर्षक कारक हैं- एक कुशल कार्यबल, लागत प्रतिस्पर्द्धा, अर्थव्यवस्था की गतिशीलता, उच्च शैक्षिक स्तर और खुला एवं  सकारात्मक दृष्टिकोण। 

भारत द्वारा अपनी प्रतिस्पर्द्धात्मका बढ़ाने हेतु हाल ही में उठाए गए कदम:  

  • विनिर्माण क्षमता बढ़ाने की ओर: भारत ने विनिर्माण क्षमता में लचीलापन सुनिश्चित करने हेतु सराहनीय प्रयास किये हैं जैसे- आत्मनिर्भर भारत और मेक इन इंडिया पहल जो घरेलू आपूर्ति शृंखलाओं तथा विनिर्माण केंद्रों में भारी निवेश के उद्देश्य से ही शुरू की गई हैं। 
    • सरकार ने भारत की विनिर्माण क्षमताओं और निर्यात को बढ़ाने के लिये विभिन्न क्षेत्रों में उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (Production-Linked Incentive Scheme-PLI)) योजना शुरू की है। 
  • तकनीकी उन्नति: बढ़ती प्रतिस्पर्द्धात्मक के लिये तकनीकी प्रगति की सुविधा हेतु भारत के दूरसंचार विभाग (DoT) ने 6G तकनीक पर छह टास्क फोर्स का गठन किया है। 
    • विदेश मंत्रालय अपने नए उभरते और सामरिक प्रौद्योगिकी (एनईएसटी) प्रभाग के माध्यम से प्रौद्योगिकी शासन पर अंतर्राष्ट्रीय मंचों में भारत की सक्रिय भागीदारी भी सुनिश्चित कर रहा है। 
      • यह नई और उभरती प्रौद्योगिकियों से संबंधित मुद्दों के लिये मंत्रालय के भीतर नोडल डिवीज़न के रूप में कार्य करता है तथा प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विदेशी भागीदारों के सहयोग से सहायता करता है। 

आगे की राह  

  • एक राष्ट्र जो आर्थिक और सामाजिक प्रगति के बीच संतुलन सुनिश्चित करता है, वह अपनी उत्पादकता को बढ़ाकर प्रतिस्पर्द्धात्मकता और समृद्धि को प्राप्त कर सकता है। 
  • इसलिये एक ऐसा वातावरण बनाना आवश्यक है जो न केवल व्यवसायों को स्थानीय और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में सफलतापूर्वक प्रतिस्पर्द्धा करने के लिये प्रेरित करे, बल्कि यह सुनिश्चित करे कि औसत नागरिक के जीवन स्तर में भी सुधार हो। 
  • सरकारों को कुशल बुनियादी ढांँचे, संस्थानों और नीतियों की विशेषता वाला वातावरण प्रदान करने की आवश्यकता है जो उद्यमों द्वारा स्थायी मूल्य निर्माण को प्रोत्साहित करते हैं। 

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न: 

प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन विश्व के देशों की 'ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स' रैंकिंग ज़ारी करता है? (2017) 

(a) विश्व आर्थिक मंच 
(b) संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद 
(c) UN वुमैना 
(d) विश्व स्वास्थ्य संगठन 

उत्तर: (a) 

व्याख्या: 

  • वैश्विक लैंगिक अंतराल रिपोर्ट, विश्व आर्थिक मंच (World Economic Forum’s- WEF) द्वारा जारी की जाती है, यह स्वास्थ्य, शिक्षा, अर्थव्यवस्था और राजनीति के क्षेत्र में महिलाओं एवं पुरुषों के मध्य सापेक्ष अंतराल में हुई प्रगति का आकलन कर विश्व के देशों की रैंक जारी करता है। वार्षिक मानदंड के माध्यम से प्रत्येक देश के हितधारकों द्वारा विशिष्ट आर्थिक, राजनीतिक व सांस्कृतिक संदर्भ में अपनी प्राथमिकताओं को निर्धारित किया जा सकता है। 
  • वैश्विक लैंगिक अंतराल रिपोर्ट, 2021 ने चार विषयगत आयामों में 156 देशों की लैंगिक समानता की दिशा में उनकी प्रगति का आकलन किया: आर्थिक भागीदारी और अवसर; शिक्षा प्राप्ति, स्वास्थ्य व उत्तरजीविता तथा राजनीतिक अधिकारिता। इसके अलावा इस साल के संस्करण में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) से संबंधित कौशल, लिंग अंतराल का अध्ययन किया गया। 
  • WEF वैश्विक लैंगिक अंतराल रिपोर्ट-2021 में भारत 140वें स्थान पर है। अतः विकल्प (a) सही है।

स्रोत: द हिंदू 


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

24वीं आसियान-भारत बैठक

प्रिलिम्स के लिये:

आसियान, एक्ट ईस्ट पॉलिसी, इंडो-पैसिफिक पर आसियान आउटलुक। 

मेन्स के लिये:

भारत के लिये आसियान का महत्त्व, भारत-आसियान सहयोग के क्षेत्र। 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में 24वीं आसियान-भारत वरिष्ठ अधिकारी बैठक (SoM) का आयोजन दिल्ली में किया गया। 

  • भारत और आसियान ने अपने संवाद संबंधों की 30वीं वर्षगांँठ मनाई।. 
  • इससे पहले भारत के साथ आसियान देशों के डिजिटल मंत्रियों (ADGMIN) की दूसरी बैठक आयोजित की गई तथा इस दौरान क्षेत्र में भविष्य के सहयोग के लिये भारत-आसियान डिजिटल कार्य योजना वर्ष 2022 को अंतिम रूप दिया गया। 

दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ:  

  • परिचय: 
    • यह एक क्षेत्रीय समूह है जो आर्थिक, राजनीतिक और सुरक्षा सहयोग को बढ़ावा देता है। 
    • इसकी स्थापना अगस्त 1967 में बैंकॉक, थाईलैंड में आसियान के संस्थापकों, अर्थात् इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, सिंगापुर एवं थाईलैंड द्वारा आसियान घोषणा (बैंकॉक घोषणा) पर हस्ताक्षर के साथ की गई। 
    • इसके सदस्य राज्यों को अंग्रेज़ी नामों के वर्णानुक्रम के आधार पर इसकी अध्यक्षता वार्षिक रूप से प्रदान की जाती है। 
    • आसियान देशों की कुल आबादी 650 मिलियन है और संयुक्त सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 2.8 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर है। यह लगभग 86.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर के व्यापार के साथ भारत का चौथा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है। 
  • सदस्य: 
    • आसियान दस दक्षिण पूर्व एशियाई देशों- ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्याँमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम को एक एक मंच पर लाता है।  

Asean_grouping

प्रमुख बिंदु 

  • SOM ने आसियान-भारत रणनीतिक साझेदारी और इसकी भविष्य की दिशा की समीक्षा की। 
  • नेताओं ने साझेदारी के तीन स्तंभों- राजनीतिक-सुरक्षा, आर्थिक और सामाजिक-सांस्कृतिक के तहत सहयोग की प्रगति पर अपना आकलन किया। 
  • बैठक में आसियान-भारत कार्ययोजना (2021-2025) के आगे कार्यान्वयन के लिये चरणों पर विचार-विमर्श किया गया। 
  • दोनों पक्षों ने कोविड-19 महामारी और महामारी के बाद के सुधार सहित पारस्परिक हित के क्षेत्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर विचारों का आदान-प्रदान किया 
  • भारत-प्रशांत क्षेत्र के भारत के दृष्टिकोण को रेखांकित करते हुए आसियान-भारत रणनीतिक साझेदारी को मज़बूत करने के लिये आसियान आउटलुक ऑन इंडो-पेसिफिक (AOIP) के सहयोग पर आसियान-भारत संयुक्त वक्तव्य के कार्यान्वयन पर ज़ोर दिया गया। 
  • आसियान ने इस क्षेत्र में आसियान और आसियान के नेतृत्त्व वाले निर्माण के लिये भारत के समर्थन की सराहना की। 

आसियान-भारत संबंध: 

  • परिचय: 
    • आसियान 10 देशों का समूह, दक्षिण-पूर्व एशिया में सबसे प्रभावशाली समूहों में से एक माना जाता है। 
    • भारत और अमेरिका, चीन, जापान और ऑस्ट्रेलिया सहित कई अन्य देश इसके संवाद भागीदार हैं। 
    • आसियान-भारत संवाद संबंध 1992 में एक क्षेत्रीय साझेदारी की स्थापना के साथ शुरू हुए। 
    • यह दिसंबर 1995 में पूर्ण संवाद साझेदारी और 2002 में शिखर-स्तरीय साझेदारी की ओर अग्रसरा हुआ। 
    • परंपरागत रूप से भारत-आसियान संबंधों का आधार साझा ऐतिहासिक और सांस्कृतिक मूल्यों के चलते व्यापार एवं लोगों से लोगों के बीच संबंध रहा है, हालिया क्षेत्रों का अभिसरण का एक और ज़रूरी क्षेत्र चीन के उदय को संतुलित कर रहा है। 
      • भारत और आसियान दोनों का लक्ष्य चीन की आक्रामक नीतियों के विपरीत क्षेत्र में शांतिपूर्ण विकास के लिये एक नियम-आधारित सुरक्षा ढांँचा स्थापित करना है। 
  • सहयोग के क्षेत्र:  
    • आर्थिक सहयोग:  
      • आसियान भारत का चौथा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है। 
      • भारत ने वर्ष 2009 में वस्तु क्षेत्र में मुक्त व्यापार समझौता और 2014 में आसियान के साथ सेवाओं व निवेश में एक एफटीए पर हस्ताक्षर किये।  
      • भारत का आसियान क्षेत्र के विभिन्न देशों के साथ एक व्यापक आर्थिक सहयोग समझौता  है, जिसके परिणामस्वरूप रियायती व्यापार और निवेश में वृद्धि हुई है। 
    • राजनीतिक सहयोग:  
      • आसियान-भारत केंद्र (एआईसी) की स्थापना भारत और आसियान में संगठनों एवं थिंक-टैंक के साथ नीति अनुसंधान, वकालत व नेटवर्किंग गतिविधियों को विकसित करने के लिये की गई थी। 
    • वित्तीय सहायता: 
      • भारत, आसियान-भारत सहयोग कोष, आसियान-भारत विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विकास कोष और आसियान-भारत ग्रीन फंड जैसे विभिन्न तंत्रों के माध्यम से आसियान देशों को वित्तीय सहायता प्रदान करता है। 
    • कनेक्टिविटी: 
      • भारत, भारत-म्याँमार -थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग और कलादान मल्टीमॉडल परियोजना जैसी कई कनेक्टिविटी परियोजनाएँ चला रहा है। 
      • भारत आसियान के साथ एक समुद्री परिवहन समझौता स्थापित करने का भी प्रयास कर रहा है और  नई दिल्ली तथा हनोई के बीच एक रेलवे लिंक की भी योजना बना रहा है। 
    • सामाजिक-सांस्कृतिक सहयोग: 
      • आसियान के माध्यम से लोगों से लोगों की बातचीत को बढ़ावा देने के लिये कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं, जैसे कि आसियान के छात्रों को भारत में आमंत्रित करना, आसियान राजनयिकों के लिये विशेष प्रशिक्षण पाठ्यक्रम, सांसदों का आदान-प्रदान आदि। 
    • रक्षा सहयोग: 
      • संयुक्त नौसेना और सैन्य अभ्यास भारत एवं अधिकांश आसियान देशों के बीच आयोजित किये जाते हैं। 
      • वियतनाम परंपरागत रूप से रक्षा मुद्दों पर घनिष्ठ मित्र रहा है, सिंगापुर भी उतना ही महत्त्वपूर्ण भागीदार है। 

भारत के लिये आसियान का महत्त्व: 

  • भारत को आर्थिक और सुरक्षा कारणों से आसियान देशों के साथ घनिष्ठ राजनयिक संबंध स्थापित करने की आवश्यकता है। 
  • आसियान देशों के साथ जुड़ाव भारत को इस क्षेत्र में अपनी उपस्थिति में सुधार करने की आवश्यकता पर बल देता है। 
    • ये कनेक्टिविटी परियोजनाएंँ पूर्वोत्तर भारत को केंद्र में रखती हैं, जिससे पूर्वोत्तर राज्यों की आर्थिक वृद्धि सुनिश्चित होती है। 
  • आसियान देशों के साथ बेहतर व्यापार संबंधों का अर्थ होगा इस क्षेत्र में चीन की उपस्थिति को भारत के आर्थिक विकास और वृद्धि से प्रतिसंतुलित करना। 
  • आसियान भारत-प्रशांत में नियम-आधारित सुरक्षा में एक केंद्रीकृत स्थिति रखता है, जो भारत के लिये महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसका अधिकांश व्यापार समुद्री सुरक्षा पर निर्भर है। 
  • पूर्वोत्तर में उग्रवाद का मुकाबला करने, आतंकवाद का मुकाबला करने, कर चोरी आदि के लिये आसियान देशों के साथ सहयोग आवश्यक है। 

आगे की राह 

  • चीन के पास भारत की तुलना में दक्षिण-पूर्व एशिया के लिये तीन गुना अधिक वाणिज्यिक उड़ानें हैं, भारत और आसियान देशों के बीच हवाई संपर्क भी सुधार एजेंडे में उच्च प्राथमिकता के साथ शामिल होना चाहिये। 
  • आत्मनिर्भर भारत, मेक इन इंडिया परियोजनाओं के सफलतापूर्वक लागू होने के बाद भारत सैन्य भागीदार बन सकता है। 
  • आसियान देशों को शामिल करने और QUAD+ व्यवस्था बनने के लिये QUAD की अवधारणा का विस्तार करने की आवश्यकता है। 
    • वियतनाम और इंडोनेशिया ने इस क्षेत्र में क्वाड पर सकारात्मक टिप्पणी की है। 
  • दोनों पक्षों द्वारा कुछ रचनात्मक ब्रांडिंग के साथ भारत और आसियान के बीच पर्यटन को प्रोत्साहित किया जा सकता है। 

स्रोत: द हिंदू   


सामाजिक न्याय

पोलियो

प्रिलिम्स के लिये:

पोलियो, वैक्सीन व्युत्पन्न पोलियो वायरस, डब्ल्यूएचओ, सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम. 

मेन्स के लिये:

पोलियो वायरस, टीकाकरण, उन्मूलन। 

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में कोलकाता में ‘सीवेज के नमूनों की पर्यावरण निगरानी’ (Environmental Surveillance Of Sewage Samples) के दौरान ‘वैक्सीन-व्युत्पन्न पोलियो वायरस’ (Vaccine-Derived Poliovirus- VDPV) की उपस्थिति पाई गई। 

  • सबसे अधिक संभावना इस बात की है कि यह प्रतिरक्षा की कमी के कारण कई गुना बढ़ गया है। यह मानव-से-मानव पोलियो स्थानांतरण का मामला नहीं है। 
  • VDPV कमज़ोर पोलियो वायरस का एक प्रकार है, यह शुरू में OPV (ओरल पोलियो वायरस टीके) में शामिल था और जो समय के साथ परिवर्तित हो गया तथा वाइल्ड या स्वाभाविक रूप से होने वाले वायरस की तरह व्यवहार करता है। 

पोलियो क्या है? 

  • परिचय: 
    • पोलियो अपंगता का कारक और एक संभावित घातक वायरल संक्रामक रोग है जो तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करता है। 
    • प्रतिरक्षात्मक रूप से मुख्यतः पोलियो वायरस के तीन अलग-अलग उपभेद हैं: 
      • वाइल्ड पोलियो वायरस 1 (WPV1) 
      • वाइल्ड पोलियो वायरस 2 (WPV2) 
      • वाइल्ड पोलियो वायरस 3 (WPV3) 
    • लक्षणात्मक रूप से तीनों उपभेद समान होते हैं और पक्षाघात तथा मृत्यु का कारण बन सकते हैं। 
    • हालाँकि इनमें आनुवंशिक और वायरोलॉजिकल अंतर पाया जाता है, जो इन तीन उपभेदों के  अलग-अलग वायरस बनाते हैं, जिन्हें प्रत्येक को एकल रूप से समाप्त किया जाना आवश्यक होता है। 
  • प्रसार: 
    • यह वायरस मुख्य रूप से ‘मलाशय-मुख मार्ग’ (Faecal-Oral Route) के माध्यम से या दूषित पानी या भोजन के माध्यम से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में प्रेषित होता है। 
    • यह मुख्यतः 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को प्रभावित करता है। आँत में वायरस की संख्या में बढ़ोतरी होती है, जहाँ से यह तंत्रिका तंत्र पर आक्रमण कर सकता है और पक्षाघात का कारण बन सकता है। 
  • लक्षण: 
    • पोलियो से पीड़ित अधिकांश लोग बीमार महसूस नहीं करते हैं। कुछ लोगों में केवल मामूली लक्षण पाए जाते हैं, जैसे- बुखार, थकान, जी मिचलाना, सिरदर्द, हाथ-पैर में दर्द आदि। 
    • दुर्लभ मामलों में पोलियो संक्रमण के कारण मांसपेशियों के कार्य का स्थायी नुकसान (पक्षाघात) होता है। 
    • यदि साँस लेने के लिये उपयोग की जाने वाली मांसपेशियाँ लकवाग्रस्त हो जाएं या मस्तिष्क में कोई संक्रमण हो जाए तो पोलियो घातक हो सकता है। 
  • रोकथाम और इलाज: 
    • इसका कोई इलाज नहीं है लेकिन टीकाकरण से इसे रोका जा सकता है। 
  • टीकाकरण: 

हाल के प्रकोप: 

  • वर्ष 2019 में पोलियो का प्रकोप फिलीपींस, मलेशिया, घाना, म्याँमार, चीन, कैमरून, इंडोनेशिया और ईरान में दर्ज किया गया था, जो ज़्यादातर वैक्सीन-व्युत्पन्न थे, जिसमें वायरस का एक दुर्लभ स्ट्रेन आनुवंशिक रूप से वैक्सीन में स्ट्रेन से उत्परिवर्तित होता था। 
    • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, यदि वायरस को उत्सर्जित किया जाता है और कम-से-कम 12 महीनों के लिये एक अप्रतिरक्षित या कम-प्रतिरक्षित आबादी में प्रसारित होने दिया जाता है तो यह यह संक्रमण का कारण बन सकता है। 

भारत और पोलियो: 

  • तीन वर्ष के दौरान शून्य मामलों के बाद भारत को वर्ष 2014 में WHO द्वारा पोलियो-मुक्त प्रमाणन प्राप्त हुआ। 
    • यह उपलब्धि उस सफल पल्स पोलियो अभियान से प्रेरित है जिसमें सभी बच्चों को पोलियो की दवा पिलाई गई थी। 
    • देश में वाइल्ड पोलियो वायरस का अंतिम मामला 13 जनवरी, 2011 को सामने आया था। 

पोलियो उन्मूलन उपाय: 

वैश्विक: 

  • वैश्विक पोलियो उन्मूलन पहल:  
    • इसे वर्ष 1988 में वैश्विक पोलियो उन्मूलन पहल (GPEI) के तहत राष्ट्रीय सरकारों और WHO द्वारा शुरू किया गया था। वर्तमान में विश्व की 80% आबादी पोलियो मुक्त है। 
      • पोलियो टीकाकरण गतिविधियों के दौरान विटामिन-A के व्यवस्थित प्रबंधन के माध्यम से अनुमानित 1.5 मिलियन नवजातों की मौतों को रोका गया है। 
  • विश्व पोलियो दिवस: 
    • यह प्रत्येक वर्ष 24 अक्तूबर को मनाया जाता है ताकि देशों को बीमारी के खिलाफ अपनी लड़ाई में सतर्क रहने का आह्वान किया जा सके। 

भारत: 

  • पल्स पोलियो कार्यक्रम: 
    • इसे ओरल पोलियो वैक्सीन के अंतर्गत शत-प्रतिशत कवरेज प्राप्त करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था। 
  • सघन मिशन इंद्रधनुष 2.0: 
    • यह पल्स पोलियो कार्यक्रम (वर्ष 2019-20) के 25 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में शुरू किया गया एक राष्ट्रव्यापी टीकाकरण अभियान था। 
  • सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम: 
    • इसे वर्ष 1985 में 'प्रतिरक्षण के विस्तारित कार्यक्रम’ (Expanded Programme of Immunization) में संशोधन के साथ शुरू किया गया था। 
    • इस कार्यक्रम के उद्देश्यों में टीकाकरण कवरेज में तेज़ी से वृद्धि, सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार, स्वास्थ्य सुविधा स्तर पर एक विश्वसनीय कोल्ड चेन सिस्टम की स्थापना, वैक्सीन उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना आदि शामिल हैं। 

स्रोत: द हिंदू 


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