डेली न्यूज़ (16 Oct, 2020)



नीलगिरी हाथी कॉरिडोर

प्रिलिम्स के लिये: 

प्रोजेक्ट एलीफेंट, अनुच्छेद 51A (G), मुदुमलाई राष्ट्रीय उद्यान  

मेन्स के लिये

पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में बढ़ती विकासात्मक गतिविधियाँ

चर्चा में क्यों?

14 अक्तूबर, 2020 को उच्चतम न्यायालय ने नीलगिरी हाथी कॉरिडोर (Nilgiris Elephant Corridor) पर मद्रास उच्च न्यायालय के वर्ष 2011 के एक आदेश को बरकरार रखा जो हाथियों से संबंधित 'राइट ऑफ पैसेज' (Right of Passage) और क्षेत्र में होटल/रिसॉर्ट्स को बंद करने की पुष्टि करता है।

प्रमुख बिंदु: 

  • मद्रास उच्च न्यायालय ने जुलाई, 2011 में घोषित किया था कि तमिलनाडु सरकार को केंद्र सरकार के 'प्रोजेक्ट एलीफेंट' (Project Elephant) के साथ-साथ राज्य के नीलगिरी ज़िले में हाथी कॉरिडोर को अधिसूचित करने के लिये भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51A (G) के तहत पूरी तरह से अधिकार प्राप्त है। 
    • यह हाथी कॉरिडोर नीलगिरी ज़िले में मुदुमलाई राष्ट्रीय उद्यान (Mudumalai National Park) के पास मसिनागुड़ी (Masinagudi) क्षेत्र में अवस्थित है।

हाथी कॉरिडोर:

  • यह भूमि का वह सँकरा गलियारा या रास्ता होता है जो हाथियों को एक वृहद् पर्यावास से जोड़ता है। यह जानवरों के आवागमन के लिये एक पाइपलाइन का कार्य करता है।
  • वर्ष 2005 में 88 हाथी गलियारे चिन्हित किये गए थे, जो आगे बढ़कर 101 हो गए। हालाँकि कई कारणों से ये कॉरिडोर खतरे में हैं।
  • विकास कार्यों के कारण हाथियों के प्राकृतिक आवास नष्ट हो रहे हैं। कोयला खनन तथा लौह अयस्क का खनन हाथी गलियारे को नुकसान पहुँचाने वाले दो प्रमुख कारक हैं।

हाथी कॉरिडोर की आवश्यकता क्यों?

  • हाथियों को चरने के लिये एक वृहद् मैदान की आवश्यकता होती है किंतु अधिकांश रिज़र्व इस आवश्यकता की पूर्ति नहीं कर पाते हैं। यही कारण है कि हाथी अपने आवास से बाहर से निकल आते हैं, जिससे मनुष्य के साथ हाथियों का संघर्ष बढ़ जाता है।
  • उच्चतम न्यायालय की एक बेंच ने ‘हॉस्पिटेलिटी एसोसिएशन ऑफ मुदुमलाई एवं अन्य (Hospitality Association of Mudumalai and Others) द्वारा मद्रास उच्च न्यायालय के वर्ष 2011 के फैसले के खिलाफ दायर याचिका को खारिज़ कर दिया है। 
    • उच्चतम न्यायालय ने हाथी कॉरिडोर के संदर्भ में रिसॉर्ट मालिकों एवं निजी भूमि मालिकों की व्यक्तिगत आपत्तियों पर सुनवाई के लिये एक समिति के गठन की भी अनुमति दी जिसमें उच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश एवं दो अन्य व्यक्ति शामिल होंगे।
    • कई याचिकाकर्त्ताओं ने तर्क दिया कि उनके पास अपने रिसॉर्ट्स को संचालित करने के लिये उचित अनुमति थी जो आवासीय स्थानों पर अवस्थित थे।
      • तब उच्च न्यायालय ने सभी याचिकाकर्त्ताओं की शिकायतों को देखने के लिये एक तीन-सदस्यीय जाँच समिति नियुक्त करने का निर्णय लिया जिससे यह पता लगाया जा सके किन प्रतिष्ठानों को ध्वस्त किया जाए और किसे स्थानांतरित किया जाए।

वर्ष 2018 में उच्चतम न्यायालय का आदेश:  

  • उच्चतम न्यायालय ने अगस्त, 2018 में तमिलनाडु सरकार को 48 घंटों के भीतर नीलगिरी पहाड़ी क्षेत्र में हाथी कॉरिडोर पर बने 11 होटलों एवं रिसॉर्ट्स को सील करने या बंद करने का निर्देश दिया था।
    • न्यायमूर्ति मदन बी. लोकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह भी निर्देश दिया था कि वैध परमिट वाले रिसॉर्ट एवं होटल को 24 घंटे के भीतर ज़िला कलेक्टर को अपने दस्तावेज़ पेश करने होंगे।
      • कलेक्टर दस्तावेज़ों को सत्यापित करेगा और यदि वह इस निष्कर्ष पर पहुँचता है कि पूर्व अनुमोदन के बिना एक रिसॉर्ट या होटल का निर्माण किया गया है तो उसे 48 घंटे के भीतर बंद किया जाएगा।
  • गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय ने जनवरी, 2020 में नीलगिरी ज़िले में हाथी कॉरिडोर से संबंधित मामले की अंतिम सुनवाई के दौरान कहा था कि ‘नीलगिरी ज़िले का मसिनागुड़ी (Masinagudi) क्षेत्र एक संवेदनशील पारिस्थितिकी तंत्र है जहाँ हाथियों को रास्ता दिया जाना चाहिये।’

भारत में हाथी कॉरिडोर की स्थिति एवं इससे संबंधित समझौते:

  • वर्ष 2019 में एशियाई हाथी समझौते के तहत पाँच गैर-सरकारी संगठनों द्वारा एक अंब्रेला पहल (Umbrella Initiative) की शुरुआत की गई है जिसमें भारत के 12 राज्यों में हाथियों के लिये मौजूदा 101 गलियारों में से 96 गलियारों को एक साथ सुरक्षित किये जाने का प्रावधान किया गया है। 
    • एक सर्वेक्षण के दौरान देश में सात हाथी गलियारों की स्थिति बहुत खराब पाई गई है।   

    • इस समझौते के तहत गलियारों के लिये आवश्यक भूमि (Land) प्राप्त करने में आने वाली बाधाओं हेतु धन जुटाने का प्रयास किया जा रहा है।
    • इस समझौते में वाइल्डलाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया के साथ ‘NGO एलीफेंट फैमिली’ (NGOs Elephant Family), इंटरनेशनल फंड फॉर एनिमल वेलफेयर (International Fund for Animal Welfare), IUCN नीदरलैंड और वर्ल्ड लैंड ट्रस्ट (World Land Trust) शामिल हैं।

मुदुमलाई राष्ट्रीय उद्यान (Mudumalai National Park):

Mudumalai-National-Park

  • ‘मुदुमलाई’ नाम का अर्थ है ‘प्राचीन पहाड़ी श्रृंखला’। वास्तव में यह 65 मिलियन वर्ष पुराना है जब पश्चिमी घाट का निर्माण हुआ था।
  • मुदुमलाई राष्ट्रीय उद्यान एवं वन्यजीव अभयारण्य को एक टाइगर रिज़र्व भी घोषित किया गया है जो तमिलनाडु राज्य के नीलगिरी ज़िले में तीन राज्यों कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु के ट्राई-जंक्शन पर अवस्थित है।
  • इस अभयारण्य को पाँच श्रेणियों में विभाजित किया गया है- मसिनागुड़ी, थेपकाडु, मुदुमलाई, करगुडी और नेल्लोटा।
  • यह नीलगिर बायोस्फीयर रिज़र्व (भारत में प्रथम बायोस्फीयर रिज़र्व) का एक हिस्सा है जिसके पश्चिम में वायनाड वन्यजीव अभयारण्य (केरल), उत्तर में बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान (कर्नाटक), दक्षिण में मुकुर्थी राष्ट्रीय उद्यान एवं साइलेंट वैली अवस्थित है।
  • यहाँ लंबी घास की मौजूदगी है जिसे आमतौर पर 'एलीफेंट ग्रास' (Elephant Grass) कहा जाता है।

'प्रोजेक्ट एलीफेंट' (Project Elephant):

  • प्रोजेक्ट एलिफेंट एक केंद्र प्रायोजित योजना है और इसे फरवरी, 1992 में हाथियों के आवास एवं गलियारों की सुरक्षा के लिये लॉन्च किया गया था।
  • यह मानव-वन्यजीव संघर्ष और घरेलू हाथियों के कल्याण जैसे मुद्दों का समाधान करने के उद्देश्य से शुरू की गई है।
  • केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, प्रोजेक्ट एलिफेंट के माध्यम से देश में प्रमुख हाथी रेंज वाले राज्यों को वित्तीय एवं तकनीकी सहायता प्रदान करता है।

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 51A (g):

  • अनुच्छेद 51A(g) में कहा गया है कि भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्त्तव्य होगा कि वह वनों, झीलों, नदियों और वन्य जीवन सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और सुधार कार्य करेगा तथा जीवित प्राणियों के प्रति दया का भाव रखेगा।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


जिनेवा कन्वेंशन

प्रिलिम्स के लिये: 

रेड क्रॉस की अंतर्राष्ट्रीय समिति, जिनेवा कन्वेंशन 

मेन्स के लिये

वर्तमान परिदृश्य में भारत-चीन के संदर्भ में जिनेवा कन्वेंशन का महत्त्व 

चर्चा में क्यों?

जून, 2020 में लद्दाख में गलवान (भारत-चीन) संघर्ष के बाद, रेड क्रॉस की अंतर्राष्ट्रीय समिति (International Committee for the Red Cross- ICRC) द्वारा भारत एवं चीन दोनों देशों की सरकारों से आग्रह किया गया है कि वे जिनेवा कन्वेंशन (Geneva Conventions) की शर्तों का पालन करे, जिनके दोनों देश हस्ताक्षरकर्ता हैं।

प्रमुख बिंदु:

  • जिनेवा कन्वेंशन (1949) तथा इसके अन्य प्रोटोकॉल वे अंतर्राष्ट्रीय संधियाँ है जिसमें युद्ध की बर्बरता को सीमित करने वाले सबसे महत्त्वपूर्ण नियम शामिल हैं।
  • ये संधियाँ/प्रोटोकॉल उन लोगों को सुरक्षा प्रदान करते हैं जो युद्ध में भाग नहीं लेते हैं, जैसे- नागरिक, मेडिक्स, सहायता कार्यकर्ता तथा जो युद्ध करने की स्थिति में नहीं होते जैसे- घायल, बीमार और जहाज़ पर सवार सैनिक तथा युद्धबंदी
    • पहला जिनेवा कन्वेंशन, युद्ध के दौरान घायल एवं बीमार सैनिकों को सुरक्षा प्रदान करता है।
    • दूसरा जिनेवा कन्वेंशन, युद्ध के दौरान समुद्र में घायल, बीमार एवं जहाज़ पर मौजूद सैन्य कर्मियों की सुरक्षा प्रदान करता है।
    • तीसरा जिनेवा कन्वेंशन, युद्ध के दौरान बंदी बनाए गए लोगों पर लागू होता है।
    • चौथा  जिनेवा कन्वेंशन, कब्जे वाले क्षेत्र सहित नागरिकों को संरक्षण प्रदान करता है।
  •  जिनेवा कन्वेंशन का  अनुच्छेद-3 सामान्य है जो गैर-अंतर्राष्ट्रीय सशस्त्र संघर्षों की स्थितियों को शामिल करता है।
    • इनमें पारंपरिक गृह युद्ध, आंतरिक सशस्त्र संघर्ष शामिल हैं जिनका प्रभाव अन्य राज्यों/देशों तक होता है या वो आंतरिक संघर्ष में शामिल होते हैं जिसमें एक तीसरा राज्य या एक बहुराष्ट्रीय बल, सरकार के साथ हस्तक्षेप करता है।
  • वर्ष 1977 के दो प्रोटोकॉल: वर्ष 1949 के चार जिनेवा कन्वेंशन के अतिरिक्त वर्ष 1977 में दो जिनेवा  प्रोटोकॉल को अपनाया गया।
    • ये दोनों प्रोटोकॉल अंतर्राष्ट्रीय और गैर-अंतर्राष्ट्रीय सशस्त्र संघर्षों के पीड़ितों की सुरक्षा को मज़बूती प्रदान करते हैं एवं युद्ध करने के तरीकों की सीमा निर्धारित करते हैं।
  • वर्ष 2005 में, लाल क्रिस्टल (Red Crystal) प्रतीक के रूप में एक तीसरे अतिरिक्त प्रोटोकॉल को अपनाया गया है। जिसे रेड क्रॉस ( Red Cross )और रेड क्रिसेंट प्रतीक/चिन्ह (Red Crescent Emblems)  के समान ही अंतर्राष्ट्रीय दर्जा प्राप्त है।
  • रेड क्रॉस के लिये अंतर्राष्ट्रीय समिति (International Committee for the Red Cross-ICRC), एक अंतर्राष्ट्रीय मानवीय संगठन है जो इस बात की निगरानी करता है कि हस्ताक्षरकर्ता देशों द्वारा संघर्ष की स्थितियों में नियमों का पालन किया जाता है या नहीं।
    • वर्ष 1863 में स्थापित, ICRC विश्व स्तर पर संघर्ष एवं सशस्त्र हिंसा से प्रभावित लोगों की मदद करता है साथ ही यह युद्ध के दौरान पीड़ितों की रक्षा करने वाले कानूनों को बढ़ावा देता है।
    • यह एक स्वतंत्र और तटस्थ संगठन है जिसका मुख्यालय जिनेवा, (स्विट्ज़रलैंड) में स्थित है।
    • ICRC मुख्य रूप से सरकारों और राष्ट्रीय रेड क्रॉस और रेड क्रिसेंट सोसाइटियों से प्राप्त स्वैच्छिक अनुदान द्वारा वित्त पोषित है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


‘अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन’की तीसरी बैठक

प्रिलिम्स के लिये: 

अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन, एशिया विकास बैंक 

मेन्स के लिये:

 नवीनीकरण ऊर्जा के अनुप्रयोगों के संदर्भ में  ‘अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन, का महत्त्व 

चर्चा में क्यों

हाल ही में संपन्न ‘अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन’ (International Solar Alliance-ISA) की तीसरी आभासी बैठक में भारत एवं फ्राँस को अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन के अध्यक्ष और सह-अध्यक्ष के रूप में फिर से चुना गया है।

प्रमुख बिंदु:

  • अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन की तीसरी बैठक में ‘अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन’ में शामिल 34 देशों के मंत्रियों ने भाग लिया है। 
  • कुल 53 सदस्य देश , 5 हस्ताक्षरकर्ता एवं संभावित सदस्य देशों ने इस आभासी बैठक में भाग लिया।
  • 14 अक्तूबर को आयोजित तीसरी आभासी बैठक में भारत और फ्राँस का चुनाव दो वर्ष के कार्यकाल के लिये किया गया है ।
  • ISA के चार क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने के लिये चार नए उपाध्यक्ष का चुनाव भी इस बैठक में किया गया जो इस प्रकार है:
    • एशिया प्रशांत क्षेत्र के प्रतिनिधि के रूप में फिजी और नौरु 
    • अफ्रीका क्षेत्र के लिये मॉरीशस और नाइजर
    •  यूरोप एवं अन्य क्षेत्र के लिये यूके और नीदरलैंड,
    • लैटिन अमेरिका और कैरिबियन क्षेत्र के लिये क्यूबा और गुयाना, को उपाध्यक्ष के रूप में चुना गया।
  • इस बैठक में ‘असेंबली फॉर सस्टेनेबल क्लाइमेट एक्शन’(Coalition for Sustainable Climate Action-CSCA) के माध्यम से निजी और सार्वजनिक कॉरपोरेट क्षेत्र के साथ ISA के संस्थागत रूप को स्थापित करने के लिये ISA सचिवालय की पहल को भी मंज़ूरी प्रदान कर दी है।
    • भारत के दस सार्वजनिक क्षेत्र के संगठनों द्वारा इस बैठक में 1 मिलियन अमेरिकी डॉलर राशि प्रदान करने की पेशकश की गई है ।
  • पिछले 5 वर्षों में सौर ऊर्जा के क्षेत्र ने एक लंबा सफर तय किया है जो अब विश्व स्तर पर सबसे तेज़ी से बढ़ते ऊर्जा स्रोत के रूप में उभरा है। 
    • वर्तमान में वैश्विक बिजली उत्पादन में सौर ऊर्जा का लगभग 2.8% योगदान है, और यदि 2030 तक इसके प्रति यही रुझान जारी रहता है, तो सौर ऊर्जा दुनिया के बड़े हिस्से में बिजली उत्पादन के लिये ऊर्जा का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत/विकल्प बन जाएगा।

ISA के तहत नई परियोजनाएँ:

  • सौर ऊर्जा के विभिन्न पहलुओं को शामिल करते हुए छह कार्यक्रम एवं दो परियोजनाएंँ संचालित की जा रही हैं। 
    • ISA के उन सदस्य देशों के लिये जो, आधुनिक ऊर्जा सेवाओं से अभी तक काफी हद तक वंचित है, के लिये प्रकाश, सिंचाई, पीने का पानी एवं उत्पादक ऊर्जा की आवश्यकता को पूरा करने के लिये सौर ऊर्जा अनुप्रयोगों हेतु 5 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक की एक मज़बूत परियोजना शुरू की गईं हैं।
    • ISA द्वारा 22 सदस्य देशों में 270,000 से अधिक सोलर पंपों की मांग की गई है, 11 देशों में 1 GW से अधिक सोलर रूफटॉप और 9 देशों में 10GW से अधिक सोलर मिनी-ग्रिडों (Solar Mini-grids) की मांग की गई है।
  • हाल ही में ISA द्वारा 47 मिलियन होम पॉवर सिस्टम (Home Power Systems) के लिये कार्यक्रम शुरू किये गये हैं जिससे न केवल ग्रामीण घरों की निर्वाह ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा किया जा सकेगा बल्कि स्वास्थ्य सेवाओं एवं प्रयोग में आने वाले जल की उपलब्धता भी सुनिश्चित होगी।
  • ISA द्वारा विशेष रूप से विकासशील देशों में, नवीकरणीय ऊर्जा के पुनर्निर्देशन में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया गया है।
  • फ्राँस की भागीदारी: ISA के सदस्य देशों में फ्राँस की भागीदारी यह इंगित करती है कि फ्राँस वर्ष 2022 तक ISA के सदस्य देशों में सौर परियोजनाओं के लिये 1.5 बिलियन यूरो के वित्तपोषण के लिये प्रतिबद्ध है जिनमे 1.15 बिलियन यूरो की वित्त परियोजनाओं को ठोस रूप प्रदान करने पर खर्च किया जाएगा।
    • फ्राँस द्वारा विश्व बैंक के साथ वित्त पोषण में सहयोग करने के लिये भी अपना समर्थन दिया गया है।
    • फ्राँस और यूरोपीय संघ के समर्थन से शुरु ‘सतत् नवीकरणीय जोखिम न्यूनीकरण पहल’ (Sustainable Renewables Risk Mitigation Initiative-SRMI) जिसे मोजाम्बिक में लॉन्च किया जा रहा है, इससे 10 से अधिक गीगावाट वाली सौर परियोजनाओं के वित्त पोषण के लिये निजी निवेश के माध्यम से 18 बिलियन यूरो जुटाने में मदद मिलेगी।
    •  ISA के ‘स्टार-सी कार्यक्रम’ के तहत , ‘फ्रेंच नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर सोलर एनर्जी’ (French National Institute for Solar Energy-INES) द्वारा शीघ्र ही प्रशांत के छोटे द्वीप राज्यों के लिये एक विशेष कार्यक्रम शुरू किया जाएगा 
  • इस बैठक में जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिये यूनाइटेड किंगडम (UK) की प्रतिबद्धता को याद किया गया। 
  • UK द्वारा अगले पाँच वर्षों में कोयले के प्रयोग को समाप्त करने एवं वर्ष 2050 तक सभी ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को शून्य स्तर पर लाने की योजना बनाई गई है।
    • इस बैठक में ISA द्वारा यूके की तीन प्रतिबद्धताओं पर बल दिया गया जिनमें:
      1. COP-26 के दौरान एलायंस/गठबंधन के लिये एक मंच प्रदान करना।
      2. विश्व सौर बैंक के कार्यान्वयन पर व्यवहार्यता अध्ययन का समर्थन करना।
      3. मानव और वित्तीय संसाधन प्रदान करके ‘वन सन, वन वर्ल्ड, वन ग्रिड’( One Sun One World One Grid) पहल के कार्यान्वयन पर ISA सचिवालय की सहायता करना।

अन्य बिंदु:

  • ISA समझौते की शुरुआत के बाद पहली बार, सौर क्षेत्रों में कार्य करने वाले देशों के साथ-साथ सौर/सूर्य पर काम करने वाले संस्थानों को भी सौर पुरस्कारों से सम्मानित किया गया ।
    • ISA द्वारा सम्पन्न इस बैठक में ‘विश्वेश्वरैया पुरस्कारों’(Visvesvaraya Awards) का वितरण किया गया , जो ISA के चार क्षेत्रों में से प्रत्येक में अधिकतम/त्वरित सौर क्षमता वाले देशों को प्रदान किया जाता है।
    • एशिया प्रशांत क्षेत्र के लिये यह पुरस्कार जापान को एवं यूरोप और अन्य क्षेत्र के लिये नीदरलैंड को प्रदान किया गया ।
  • हरियाणा सरकार द्वारा भारतीय मूल की अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री के नाम पर ‘कल्पना चावला पुरस्कार’ की घोषणा की गई , जिसे आईआईटी दिल्ली (भारत) के भीम सिंह और दुबई बिजली और जल प्राधिकरण (संयुक्त अरब अमीरात) के डॉ शेषेश अलनुआमी को प्रदान किया गया ।
    • यह पुरस्कार सौर ऊर्जा के क्षेत्र में काम करने वाले वैज्ञानिकों और इंजीनियरों को उनके उत्कृष्ट योगदान के लिये दिया गया।
  • कर्नाटक सरकार द्वारा भारत रत्न ‘एम विश्वेश्वरैया’ के नाम पर पुरस्कार वितरण की घोषणा की गई। 
    • जिसे एशिया और प्रशांत क्षेत्र के लिये  जापान को तथा  यूरोप एवं अन्य क्षेत्र के लिये नीदरलैंड को प्रदान किया गया ।
    •  इस पुरस्कार के तहत 12,330 अमेरिकी डॉलर की राशि, एक शाॅल  और एक प्रमाण पत्र प्रदान किये जाते हैं।
  •  ISA द्वारा स्थापित ‘दिवाकर पुरस्कार’ पेन्सिलवेनिया विश्वविद्यालय द्वारा ‘अर्पन इंस्टीट्यूट’ (हरियाणा) और अरुशी सोसाइटी को प्रदान किया गया, इसके अलावा भारत के रेलवे और वाणि‍ज्‍य एवं उद्योग मंत्री श्री पीयूष गोयल द्वारा पेनसिल्वेनिया यूनिवर्सिटी से 25,000 अमेरिकी डॉलर की राशि को भी प्राप्त किया गया। 
    • यह पुरस्कार उन संगठनों और संस्थानों को दिया जाता है जो अलग-अलग लोगों के लाभ/हितों के लिए कार्य कर रहे हैं तथा उनके द्वारा मेज़बान देश में सौर ऊर्जा के अधिकतम उपयोग को सुनिश्चित किया गया है।

ISA द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट के मुख्य बिंदु:

  • ISA की इस बैठक में ‘वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट’ (World Resources Institute- WRI) द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट को भी प्रस्तुत  किया गया है।
    • प्रस्तुत रिपोर्ट में सौर निवेश को बढ़ावा देने के लिये धन, अवसरों एवं सौर निवेश में आने वाली बाधाओं के स्रोतों की पहचान की गई है तथा ISA के सदस्य देशों में ISA के योगदान को इंगित किया गया।
  • वर्ष 2030 तक WRI तथा ISA द्वारा मिलकर 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर जुटाने के लक्ष्य हेतु रोड मैप/प्रारूप विकसित करने की कदम की सराहना बैठक में की गई। 
    • इस प्रारूप को विकसित करने के लिये नीदरलैंड (Netherlands), ब्लूमबर्ग फिलनथ्रॉफी (Bloomberg Philanthropies), ब्लूमबर्ग न्यू एनर्जी फाइनेंस एंड क्लाइमेट वर्क्स फाउंडेशन ( Bloomberg New Energy Finance and Climate Works Foundation) आवश्यक वित्तीय एवं तकनीकी सहायता प्रदान करेंगे।
    • इस प्रारूप के अंतर्गत सौर ऊर्जा परियोजनाओं के अलावा परिवहन और हीटिंग एंड कू‍लिंग में सौर ऊर्जा के उपयोग में निवेश की संभावनाओं का भी विश्लेषण किया जाएगा ताकि 'वन सन, वन वर्ल्ड, वन ग्रिड'(One Sun, One World, One Grid) के दृष्टिकोण को कार्यान्वित किया जा सके।

ISA CARES की स्थापना:

  • वैश्विक महामारी को ध्यान में रखते हुए ISA द्वारा आईएसए केयर्स (ISA CARES) पहल की स्थापना की गई है जो सबसे कम विकसित देशों, छोटे द्वीपीय विकासशील सदस्य देशों के स्‍वास्‍थ्‍य सेवा क्षेत्र में सौर ऊर्जा के लिये समर्पित एक पहल है। 
    • इस पहल के तहत लक्षित सदस्य देशों के प्रत्येक ज़िले में एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र को सौर ऊर्जा द्वारा संचालित किया जाना है। 
  • ऑस्ट्रेलिया द्वारा प्रशांत क्षेत्र में स्वास्थ्य केंद्रों पर चल रही विश्वसनीय सौर ऊर्जा ‘आईएसए केयर्स’ पहल के लिये  92,000 ऑस्ट्रेलियाई डॉलर प्रदान किये गए हैं।
    • इसके द्वारा दूरदराज़ के द्वीप पर रहने वाले समुदायों की महंगे डीज़ल एवं इसके आयात की अनिश्चितता पर निर्भरता कम होगी ।

ISA का महत्त्व:

  • वैश्विक स्तर पर कूलिंग एवं हीटिंग यूटिलिटीज़ की बढती मांग को देखते हुए ISA सचिवालय ने सोलराइजिंग हीटिंग एंड कूलिंग सिस्टम पर सातवाँ कार्यक्रम शुरू किया है जो पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों पर केंद्रित है।
    • वर्ष 2017 में केवल कूलिंग के लिये मौजूदा मांग/सौर ऊर्जा से अधिक दर्ज की गई अतः हीटिंग एंड कूलिंग सिस्टम में प्रत्यक्ष रूप से सौर विकिरण का इस्‍तेमाल करने एवं उच्च दक्षता हासिल करने की गुंजाइश है।
  • सम्मेलन के दौरान प्रस्तुत की गईं अन्य पहलों में 4.7 करोड़ ‘सोलर होम सिस्टम’(Solar Home Systems) एवं ISA सदस्य देशों में अगस्त 2020 में शुरु की गई 25 करोड़ ‘एलईडी लैंप’( LED Lamps) वितरित करने की पहल शामिल हैं।

अन्य संगठनों के साथ सहयोग:

  • ISA के सदस्‍य देशों एवं पाँच संभावित सदस्‍यों के लिये 5 लाख अमेरिकी डॉलर की सार्क डेवलपमेंट फंड टेक्निकल असिस्‍टेंस (SAARC Development Fund Technical Assistance) को एशियाई विकास बैंक (Asian Development Bank) के साथ मिलकर संयुक्त रूप से लागू करने का प्रस्ताव है।
  • ISA के ‘सोलर पंप कार्यक्रम’ के तहत UNDP के साथ साथ मिलकर ISA के सदस्‍य देशों में ‘सोलर वाटर पंप सिस्‍टम’ को कार्यान्वित करने वाली परियोजनाओं के लिये 20 लाख अमेरिकी डॉलर की आईबीएसए फैसिलिटी टेक्निकल असिस्टेंस (IBSA Facility Technical Assistance ) उपलब्ध कराने का प्रावधान।

ISA और उसकी सदस्यता:

  • वर्ष 2019 में आयोजित ISA के दूसरे सम्मेलन के बाद से ISA के सदस्य देशों की संख्या लगातार बढ़ रही है। 
    • ISA को अब तक 68 सदस्य देश अपना समर्थन दे चुके हैं तथा 20 अन्य देश सदस्यता ग्रहण करने की प्रक्रिया में शामिल हैं।
  • हाल ही में ISA द्वारा विश्व बैंक एवं भारत सरकार के साथ एक त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किये गए हैं।
    • इस समझौते के तहत ISA, विश्व बैंक एवं भारत सरकार तीनों एक साथ मिलकर 'वन सन, वन वर्ल्ड, वन ग्रिड' पहल के सक्रिय कार्यान्वयन में शामिल हैंI
  • वर्ष 2020 में ISA सचिवालय ने ‘संयुक्त राष्ट्र औद्योगिक विकास संगठन’ (United Nations Industrial Development Organization- UNIDO) के साथ मिलकर काम करते हुए आईएस सोलर टेक्‍नोलॉजी एंड एप्लिकेशन रिसोर्स सेंटर’ (ISA Solar Technology and Application Resource Centre- ISA STAR C) नेटवर्क के संचालन पर ध्यान केंद्रित किया है

ISA के बारे में:

  •  ISA भारत के प्रधानमंत्री और फ्राँस के राष्ट्रपति द्वारा 30 नवंबर, 2015 को फ्राँस की राजधानी पेरिस में आयोजित कोप-21 (COP-21) के दौरान शुरू की गई पहल है।
  • ISA का उद्देश्य ISA सदस्य देशों में सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिये प्रमुख चुनौतियों का साथ मिलकर समाधान निकलना है। 
  • इसका उद्देश्य वित्तीय लागत एवं प्रौद्योगिकी लागत को कम करने के लिये आवश्यक संयुक्त प्रयास करना, बड़े पैमाने पर सौर ऊर्जा उत्पाद के लिये आवश्यक निवेश जुटाना तथा भविष्य की प्रौद्योगिकी के लिये उचित मार्ग तैयार करना है। 
  • वर्तमान में ISA उन परिस्थितियों एवं योजनाओं के सुचारु क्रियान्वयन की स्थिति में है जिनके द्वारा सौर ऊर्जा में बड़े पैमाने पर पर निवेश करना संभव है तथा जिनके द्वारा सौर उर्जा के अनुप्रयोगों में आसानी हो।
  • ISA को वर्ष 2030 तक सतत् विकास लक्ष्यों को हासिल करने और जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते के उद्देश्यों को प्राप्त करने की दिशा में कार्य करने वाला एक प्रमुख संगठन माना जाता है।
  • ISA का पहला सम्मेलन 2 से 5 अक्तूबर, 2018 में ग्रेटर नोएडा (भारत) में आयोजित किया गया था। उसका उद्घाटन भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी और संयुक्त राष्ट्र महासचिव श्री एंटोनियो गुटेरेस द्वारा किया गया था।
  • ISA के दूसरे सम्मेलन का आयोजन 30 अक्तूबर से 1 नवंबर, 2019 तक नई दिल्ली(भारत ) में सम्पन्न हुआ। इस सम्मेलन में 78 देशों ने भाग लिया था। 
  • ISA के तीसरे सम्मेलन का आयोजन वर्चुअल/आभासी तरीके से 14 से 16 अक्तूबर, 2020 के दौरान हो रहा है।

आगे की राह:

  • दूसरे सम्मेलन के बाद से ISA द्वारा ‘स्टार सी परियोजना’(STAR-C project) का संचालन शुरू किया गया जिसमें ‘स्टार सी परियोजना’ को रेखांकित करने वाले परिचालन ढाँचे एवं परियोजना दस्तावेज़ को विकसित करने के लिये ‘संयुक्त राष्ट्र औद्योगिक विकास संगठन’ के साथ मिलकर कार्य करना शामिल है।
  •  इसके अलावा 25 से 27 फरवरी 2020 तक पेरिस में ISA, स्टार सी परियोजना के विकास पर एक परामर्श कार्यशाला का आयोजन किया गया जिसकी मेजबानी फ्राँस सरकार द्वारा की गई। 
  • COVID-19 के दौरान ISA सदस्यों के क्षमता विकास में मदद करने के लिये ‘स्‍टार सी वेबिनार-द सोलिनर्स’ (STAR C Webinars-The Solinars) के लिये कार्यक्रम और सत्रों को तैयार किया गया। इसके तहत अब तक लगभग 450 लोगों से संपर्क किया जा चुका है।

स्रोत-पीआईबी


पाकिस्तान UNHRC के लिये फिर से निर्वाचित

प्रिलिम्स के लिये:

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद

मेन्स के लिये:

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पाकिस्तान को 1 जनवरी, 2021 को शुरू होने वाले 'संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद' (United Nations Human Rights Council- UNHRC) के तीन वर्ष के कार्यकाल के लिये एक सदस्य के रूप में पुन: निर्वाचित किया गया है। यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि पाकिस्तान वर्तमान में 1 जनवरी, 2018 से इस संस्थान में सेवा दे रहा है। 

प्रमुख बिंदु:

  • वर्तमान में UNHRC के 47 सदस्य हैं और सीटों का बंँटवारा भोगौलिक आधार पर होता है। हाल ही में परिषद में कुल पंद्रह सदस्य देश चुने गए हैं, जिनमें से रूस और क्यूबा निर्विरोध चुने गए है। पाकिस्तान, उज्बेकिस्तान, नेपाल और चीन एशिया-प्रशांत क्षेत्र से चुने गए हैं।
  • पाकिस्तान को मानवाधिकारों के गंभीर उल्लंघन पर मानवाधिकार कार्यकर्त्ता समूहों द्वारा किये जाने वाले विरोध के बावजूद फिर से चुना गया है। 
    • यह पाँचवीं बार है जब पाकिस्तान को UNHRC के लिये चुना गया है।
  • ब्रिटिश सरकार के 'विदेश और राष्ट्रमंडल कार्यालय' की 'मानवाधिकार और लोकतंत्र' रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2019 में पाकिस्तान में मानव अधिकारों के उल्लंघन के गंभीर मामले सामने आए थे। 
    • इसमें नागरिक स्थानों/सिविल स्पेस और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध, असहिष्णुता, अल्पसंख्यकों के प्रति प्रत्यक्ष एवं खुले भेदभाव जैसे मामले शामिल हैं।

चिंता के विषय:

संदिग्ध रिकॉर्ड वाले देश: 

  • मानव अधिकारों के संबंध में संदिग्ध रिकॉर्ड रखने वाले कई देशों का UNHRC में निर्वाचित होना, परिषद में प्रवेश की वर्तमान प्रणाली में सुधार की आवश्यकता उजागर करता है।
  • चीन और रूस जैसे देशों का परिषद में चुनाव UNHRC की गरिमा को नुकसान पहुँचाता है। यह 'अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार समिति' की आंतरिक संरचना और उसकी बाहरी भूमिका दोनों स्थितियों में लागू है।

गैर-प्रतिस्पर्द्धी चुनाव: 

  • विपक्ष के बिना परिषद के सदस्यों का चुनाव भी एक प्रमुख समस्या है। उदाहरण के लिये पूर्वी यूरोपीय समूह में दो सीटें उपलब्ध थीं लेकिन उन पदों को भरने के लिये केवल दो देशों को नामांकित किया गया था, जिसका मतलब है कि इन स्थानों के लिये कोई प्रतियोगिता नहीं थी। एशिया-प्रशांत क्षेत्र में प्रतियोगिता को छोड़कर अन्य सभी क्षेत्रीय समूहों में सदस्य देश निर्विरोध चुने गए थे।

अन्य पक्ष: 

  • संदिग्ध मानवाधिकार रिकॉर्ड वाले देशों के चुनाव के साथ कुछ सकारात्मक पहलू भी जुड़े हैं। संदिग्ध मानवाधिकार रिकॉर्ड वाले देशों का परिषद के लिये चुने जाने की एक सिल्वर लाइनिंग है- “मानवाधिकारों के प्रति अभिभावक के रूप में उनकी स्थिति उनके अपने स्वयं के मानवाधिकारों के हनन को छिपाना कहीं अधिक कठिन बनाती है।”

आगे की राह:

  • संयुक्त राज्य अमेरिका ने वर्ष 2018 में UNHRC के संबंध में अप्रभावशीता और पूर्वाग्रह का हवाला देते हुए खुद को इससे अलग कर लिया है। भारत के लिये यह एक परीक्षण का समय है क्योंकि पाकिस्तान को मानवाधिकारों के बारे में संदिग्ध स्थिति के बावजूद फिर से चुना गया है।
  • भारत वैश्विक शासन संस्थानों का सम्मान करता है तथा अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के प्रति अपनी प्रतिबद्धता सिद्धांतों को आधार बनाकर बिना उचित कारणों के सदस्यता छोड़ने के बजाय ऐसी घटनाओं के खिलाफ आवाज़ उठाने तथा सुधारों का समर्थन करता है।

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC):

  • UNHRC की स्थापना वर्ष 2006 में हुई थी, जिसका मुख्यालय: जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में स्थित है।
  • सदस्यों का चुनाव तीन वर्षों की अवधि के लिये किया जाता है, जिसमें अधिकतम दो कार्यकाल लगातार हो सकते हैं। 

उद्देश्य: 

  • दुनिया भर में मानवाधिकारों का प्रचार करना और उनकी रक्षा करना, साथ ही साथ कथित मानवाधिकारों के उल्लंघन की जाँच करना।

विशेषताएँ: 

  • UNHRC में 5 समूहों से क्षेत्रीय समूह के आधार पर तीन वर्ष के लिये 47 सदस्य चुने गए हैं।

सदस्यता: 

  • सदस्य बनने के लिये एक देश को संयुक्त राष्ट्र महासभा के 191 देशों में से कम -से-कम 96 देशों (पूर्ण बहुमत) के मत प्राप्त करने आवश्यक हैं। 
  • संकल्प 60/251 के अनुसार, जिसके तहत परिषद का निर्माण किया गया था, के अनुसार, परिषद सदस्यों को संयुक्त राष्ट्र महासभा के बहुमत द्वारा सीधे गुप्त मतदान द्वारा चुना जाता है। 
  • सदस्यता को भौगोलिक रूप से समान रूप से वितरित किया गया है।

सदस्यता के लिये पाँच क्षेत्रीय समूह: 

  • अफ्रीका, एशिया-प्रशांत, लैटिन अमेरिका एवं कैरेबियन, पश्चिमी यूरोप और पूर्वी यूरोप।

सत्र: 

  • मार्च, जून और सितंबर में तीन बार नियमित सत्र आयोजित किये जाते हैं।

महत्त्व:

  • परिषद द्वारा संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देशों की 'सार्वभौमिक आवधिक समीक्षा' (Universal Periodic Review) की जाती है, जो 'नागरिक समाज समूहों' को सदस्य देशों द्वारा किये जाने वाले मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोपों को संयुक्त राष्ट्र के ध्यान में लाने का अवसर देता है।

स्रोत: द हिंदू


नवीन वाहन स्क्रैपेज/कबाड़ नीति

प्रिलिम्स के लिये:

विस्तारित निर्माता ज़िम्मेदारी

मेन्स के लिये:

नवीन वाहन स्क्रैपेज/कबाड़ नीति

चर्चा में क्यों?

 हाल ही में 'विज्ञान और पर्यावरण केंद्र' (Centre for Science and Environment- CSE) द्वारा पुराने वाहनों के संबंध में प्रभावी स्क्रैपेज नीति और बुनियादी ढाँचे के निर्माण पर एक रिपोर्ट जारी की गई।

प्रमुख बिंदु:

  • ‘विज्ञान और पर्यावरण केंद्र’ (CSE) नई दिल्ली स्थित एक सार्वजनिक हित में अनुसंधान और समर्थन करने वाला गैर-लाभकारी संगठन है।
  • वर्तमान में सरकार पुराने वाहनों के बेहतर निपटान के लिये ‘नवीन वाहन कबाड़/परिमार्जन नीति’ को लागू करने की योजना बना रही है। 

नीति की आवश्यकता:

  • वर्ष 2025 तक भारत में लगभग दो करोड़ से अनुपयोगी पुराने वाहन होंगें। इन वाहनों के अलावा अन्य अनुपयुक्त वाहन भारी प्रदूषण और पर्यावरणीय क्षति का कारण बनेंगे।
  • भारत को ‘हरित अर्थव्यवस्था’ की दिशा में आगे ले जाने के लिये कबाड़ नीति को एक साधन के रूप में प्रयोग करने का सुअवसर है।
  • भारत स्टेज VI’ (बीएस-VI) उत्सर्जन मानकों और इलेक्ट्रिक वाहन प्रोत्साहन नीतियों को लागू किया जा रहा है, जिससे पुराने वाहनों के उचित प्रबंधन की आवश्यकता है।
  • प्रदूषित नगरों में 'राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम' (National Clean Air Programme- NCAP) के तहत पुराने वाहनों को 'स्वच्छ वायु कार्रवाई' के हिस्से के रूप में बाहर किया जाना है।

CSE प्रमुख सिफारिश: 

अवसंरचना की स्थापना: 

  • नवीन नीति के तहत पुराने वाहनों के अधिकतम उपयोग का लाभ उठाना चाहिये और इसके लिये वाहनों के पुन: उपयोग और पुनर्चक्रण अवसंरचना को स्थापित किये जाने की आवश्यकता है।  
  •  'वाहन कबाड़/परिमार्जन के निपटान के लिये पर्यावरणीय रूप से अनुकूलित बुनियादी  अवसंरचना को बढ़ाया जाना चाहिये। वाहनों से स्टील, एल्यूमीनियम और प्लास्टिक जैसी सामग्री की पुनर्प्राप्ति के लिये देश-व्यापी स्तर पर आवश्यक अवसंरचना को स्थापित किया जाना चाहिये।

राजकोषीय प्रोत्साहन (Fiscal Stimulus):

  • नवीन परिमार्जन नीति को भारत स्टेज VI वाहनों से पुराने वाहनों को प्रतिस्थापित करने की नीति तथा आर्थिक सुधार एवं राजकोषीय प्रोत्साहन उपायों को जोड़ने की आवश्यकता है।
  • परिमार्जन नीति में उन प्रोत्साहन उपायों को अपनाए जाने की आवश्यकता है जो पुरानी कारों और दोपहिया वाहनों को इलेक्ट्रिक वाहनों के प्रतिस्थापन को बढ़ावा।

विनिर्मंताओं को जिम्मेदारियां:

  • नीति का निर्माण इस प्रकार किया जाना चाहिये कि यह वाहन विनिर्माताओं पर पुराने वाहनों के न्यूनतम 80-85 प्रतिशत भाग को पुन: प्रयोज्य, पुनर्प्राप्ति योग्य, पुनर्चक्रण (Reusable, Recyclable,  Recoverable- 3R) करने के लिये बाध्य करती हो।
  • वाहनों के निर्माण में सीसा, पारा, कैडमियम या हेक्सावैलेंट क्रोमियम जैसी ज़हरीली धातुओं का उपयोग नहीं किया जाना चाहिये।
  • नीति में 'विस्तारित निर्माता ज़िम्मेदारी' (Extended Producer Responsibility- EPR) जैसे प्रावधानों को शामिल किया जाना चाहिये, नियमों का निर्माण इस प्रकार किया जाना चहिये कि ये कानूनी रूप से बाध्यकारी हो। 

क्लस्टर आधारित दृष्टिकोण:

  • नीति के तहत बंदरगाहों के पास पुनर्चक्रण क्लस्टर स्थापित किये जाने की योजना है जो देश में ऑटोमोबाइल विनिर्माण उद्योग को बढ़ावा देगी।

नीति का महत्त्व:

  • ऑटोमोबाइल उद्योग के लिये कच्चा माल सस्ते दामों पर उपलब्ध होगा, क्योंकि नवीन वाहनों के उत्पादन में इन पुराने वाहनों से निकले प्लास्टिक, रबर तथा एल्यूमीनियम, ताँबा जैसी धातुओं का प्रयोग किया जाएगा। 
  • वाहन-जनित प्रदूषण में पुराने वाणिज्यिक वाहनों का हिस्सा बहुत अधिक (लगभग 65% तक) है। इन पर प्रतिबंध लगाने से वायु की गुणवत्ता में सुधार होगा।
  • इस नीति के लागू होने से नवीन वाहनों के उत्पादन में वृद्धि होने की उम्मीद है। इससे भारतीय ऑटोमोबाइल उद्योग का आकार बढ़ाने में मदद मिलेगी।

निष्कर्ष:

  • पर्यावरणीय नुकसान और उत्सर्जन को कम करने तथा COVID-19 महामारी के बाद के समय में भारत को ‘हरित अर्थव्यवस्था’ बनाने के हिस्से के रूप में कबाड़ से सामग्री को पुनर्प्राप्त करने के लिये एक अच्छी तरह से डिज़ाइन की हुई नवीन परिमार्जन/कबाड़ नीति की आवश्यकता है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


सामाजिक-आर्थिक मोर्चे पर भारत और बांग्लादेश

प्रिलिम्स के लिये

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक, वैश्विक लैंगिक अंतराल सूचकांक, मानव विकास सूचकांक

मेन्स के लिये

समाजिक-आर्थिक मोर्चे पर भारत और बांग्लादेश की तुलना

चर्चा में क्यों?

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के अनुमानानुसार, कोरोना वायरस महामारी से बुरी तरह प्रभावित भारतीय अर्थव्यवस्था में इस वर्ष तकरीबन 10.3 प्रतिशत संकुचन हो सकता है। 

  • हालाँकि अर्थव्यवस्था में संकुचन की अपेक्षा यह तथ्य नीति निर्माताओं के लिये चिंताजनक है कि वर्ष 2020 में एक औसत बांग्लादेशी नागरिक की प्रति व्यक्ति आय एक औसत भारतीय नागरिक की औसत प्रति व्यक्ति आय से अधिक होगी। 

क्या बताते हैं आँकड़े?

  • विश्व बैंक द्वारा हाल ही में जारी किया गया ‘वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक’ बताता है कि इस वर्ष भारतीय अर्थव्यवस्था में महामारी के प्रभाव के कारण तकरीबन 10.3 प्रतिशत की कमी हो सकती है, जबकि इससे पूर्व जून माह में जारी अपनी रिपोर्ट में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने कहा था कि इस वर्ष भारतीय अर्थव्यवस्था में केवल 4.5 प्रतिशत का ही संकुचन होगा। 
  • हालिया ‘वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक’ रिपोर्ट के अनुसार, इस वर्ष वैश्विक अर्थव्यवस्था में तकरीबन 4.4 प्रतिशत के संकुचन का अनुमान है, जबकि इससे पूर्व जून माह में यह मात्र 0.8 प्रतिशत था। 
    • ध्यातव्य है कि भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने भी वित्तीय वर्ष 2020-21 में भारतीय अर्थव्यवस्था में 9.5 प्रतिशत के संकुचन का अनुमान लगाया है। 
  • भारत-बांग्लादेश की तुलना
    • रिपोर्ट में कहा गया है कि इस वर्ष भारत की प्रति व्यक्ति GDP 1,876.53 डॉलर रह सकती है, जो कि बांग्लादेश की प्रति व्यक्ति (GDP 1,887.97 डॉलर) से कम है। वहीं वर्ष 2020 में चीन की प्रति व्यक्ति GDP 10,839.43 डॉलर रहने का अनुमान है।
    • हालाँकि अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के ही आँकड़े बताते हैं कि बीते पाँच वर्ष के दौरान भारत की प्रति व्यक्ति GDP बांग्लादेश की तुलना में औसतन 24 प्रतिशत अधिक रही है। 
    • भारत के अन्य पड़ोसियों में नेपाल और श्रीलंका की प्रति GDP क्रमशः 1,115.56 डॉलर और 3,69.4.89 डॉलर अनुमानित है।

कारण

  • आम तौर पर दो देशों की तुलना करने के लिये GDP वृद्धि दर अथवा संपूर्ण GDP जैसे मानक प्रयोग किये जाते हैं। दोनों देशों (भारत-बांग्लादेश) के आज़ाद होने के बाद से भारतीय अर्थव्यवस्था का प्रयास सदैव बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था से बेहतर रहा है।
    • आँकड़ों के अनुसार, भारतीय अर्थव्यवस्था आज़ादी के बाद से बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था के आकार से औसतन 10 गुना अधिक रही है, और प्रतिवर्ष उसमें बढ़ोतरी हो रही है।
  • इसके बावजूद भी इस वर्ष भारतीय अर्थव्यवस्था प्रति व्यक्ति GDP के मामले में बांग्लादेश से पीछे हो गई है, इसके मुख्यतः तीन कारण हो सकते हैं-
    • सर्वप्रथम तो यह कि बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था वर्ष 2004 के बाद से ही काफी तेज़ गति से विकास कर रही है, हालाँकि इसके बावजूद भी भारत और बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था में तुलनात्मक रुप से कोई विशिष्ट परिवर्तन नहीं आया है, क्योंकि भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास गति बांग्लादेश से भी तेज़ रही है, किंतु वर्ष 2017 से इस स्थिति में परिवर्तन आने लगा और इस वर्ष भारत की अर्थव्यवस्था में तेज़ी से गिरावट आई, किंतु बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था में वृद्धि जारी रही, जिसका परिणाम इस रूप में सामने आया है।
    • दूसरा कारण यह कि बीते 15 वर्ष में जहाँ एक ओर भारत की आबादी 21 प्रतिशत की दर से बढ़ी है, वहीं बांग्लादेश की आबादी में 18 प्रतिशत की दर से बढ़ोतरी हुई है और किसी देश की प्रति व्यक्ति GDP को उस देश आबादी काफी अधिक प्रभावित करती है। यही कारण है कि दोनों देशों के बीच महामारी की शुरुआत से पूर्व ही प्रति व्यक्ति GDP का अंतर काफी कम हो गया था।
    • इस घटना का तीसरा और सबसे महत्त्वपूर्ण कारक कोरोना वायरस महामारी और दोनों देशों की अर्थव्यवस्था पर उसके सापेक्ष प्रभाव को माना जा सकता है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के ही आँकड़ों के अनुसार, जहाँ एक ओर महामारी के प्रभाव के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था में 10.3 प्रतिशत का संकुचन होगा, वहीं बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था में 3.8 प्रतिशत की दर से बढ़ोतरी होगी। 
      • सरल शब्दों में हम कह सकते हैं कि भारत महामारी के कारण सबसे अधिक प्रभावित देशों में से एक है, वहीं बांग्लादेश महामारी के दौरान आर्थिक मोर्चे पर सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाले देशों में से एक है। 

पहले भी हुआ है यह

  • वर्ष 1991 में जब भारत एक गंभीर संकट के दौर से गुजर रहा था और भारतीय अर्थव्यवस्था में केवल 1 प्रतिशत की दर से वृद्धि हो रही थी तब भी बांग्लादेश प्रति व्यक्ति GDP के मामले में भारत से आगे निकल गया था, हालाँकि इसके बाद भारत ने पुनः अपनी बढ़त प्राप्त कर ली थी।
  • कुछ इस प्रकार की स्थिति एक बार फिर देखने को मिल सकती है, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) का अनुमान है कि वित्त वर्ष 2021-2022 में भारतीय अर्थव्यवस्था में तेज़ी से विकास होगा और भारत प्रति व्यक्ति GDP के मामले में पुनः आगे निकल जाएगा। 
  • हालाँकि बांग्लादेश की कम जनसंख्या वृद्धि दर और अधिक आर्थिक विकास के कारण प्रति व्यक्ति GDP के मामले में दोनों देशों के बीच का अंतर काफी अस्थिर रह सकता है।

बांग्लादेश की आर्थिक वृद्धि के कारण?

  • ज्ञात हो कि पाकिस्तान के साथ अपनी स्वतंत्रता के शुरुआती वर्षों में बांग्लादेश ने काफी धीमी गति से विकास किया था। हालाँकि पाकिस्तान से अलग होने के कारण बांग्लादेश को अपनी राजनीतिक और आर्थिक नीतियों को पुनः परिभाषित करने का अवसर मिला, जिसका फायदा उठाते हुए बांग्लादेश ने अपने नियम-कानूनों को और अधिक विकास अनुकूल बनाया।
  • उदाहरण के लिये उस समय बांग्लादेश के श्रमबल में महिलाओं की भूमिका अनवरत बढ़ रही थी, जिसे देखते हुए बांग्लादेश ने अपने श्रम कानूनों को महिलाओं के अनुकूल बनाया, जिसका परिणाम यह हुए कि महिला श्रम बल ने बांग्लादेश के कपड़ा उद्योग को वैश्विक बाज़ार में एक महत्त्वपूर्ण बढ़त दिला दी।
  • बांग्लादेश ने अपनी अर्थव्यवस्था को एक ऐसे स्वरूप में बदलने का प्रयास किया जहाँ आर्थिक विकास औद्योगिक क्षेत्र और सेवा क्षेत्र पर निर्भर था।
    • ये दोनों ही क्षेत्र रोज़गार का सृजन करने की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं और साथ ही इनमें कृषि क्षेत्र की तुलना में पारिश्रमिक भी अधिक होता है।
  • वहीं दूसरी ओर भारत अपने औद्योगिक क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिये संघर्ष कर रहा था और अभी भी अधिकांश जनसंख्या कृषि क्षेत्र पर निर्भर थी।
  • बीते दो दशक में बांग्लादेश के आर्थिक विकास का एक अन्य कारण यह भी है कि इसने स्वास्थ्य, स्वच्छता, वित्तीय समावेशन और महिलाओं के राजनीतिक प्रतिनिधित्व जैसे कई सामाजिक और राजनीतिक मामलों में काफी सुधार किया है।
    • उदाहरण के लिये बांग्लादेश में असुरक्षित पेयजल और स्वच्छता की कमी के कारण मातृत्त्व मृत्यु दर में होने वाली बढ़ोतरी भारत की तुलना में काफी कम है।
    • वित्तीय समावेशन की बात करें तो विश्व बैंक के आँकड़ों के अनुसार, जहाँ बांग्लादेश की एक छोटी से आबादी के पास ही बैंक खाते हैं, वहीं यहाँ भारत की तुलना में निष्क्रिय खातों की संख्या काफी कम है।
    • लैंगिक समानता के मामले भी बांग्लादेश भारत से काफी आगे है, वैश्विक लैंगिक अंतराल सूचकांक 2020 में भारत 154 देशों में 112वें स्थान पर है, जबकि इसी सूचकांक में बांग्लादेश 50वें स्थान पर है।

बांग्लादेशी अर्थव्यवस्था की चुनौतियाँ

  • बीते 15 वर्ष में वैश्विक पटल पर बांग्लादेश की स्थिति में काफी बदलाव आया है, इसने आर्थिक-सामाजिक-राजनीतिक मोर्चे पर पाकिस्तान को पीछे छोड़ दिया है और अपने देश में एक लोकतांत्रिक व्यवस्था स्थापित की है। हालाँकि बांग्लादेश की प्रगति अभी भी अनिश्चितओं से भरी पड़ी है और कई मोर्चों पर संघर्ष कर रही है।
  • उदाहरण के लिये, बांग्लादेश में गरीबी की दर भारत की तुलना में काफी अधिक है। विश्व बैंक के अनुसार, ‘अल्पावधि में बांग्लादेश की गरीबी में वृद्धि होने का अनुमान है, जिसका सबसे अधिक प्रभाव वहाँ के दैनिक और स्व-नियोजित श्रमिकों पर देखने को मिलेगा।
  • इसके अलावा यह बुनियादी शिक्षा के मामले में भी भारत से काफी पीछे है, जो कि मानव विकास सूचकांक (HDI) में इसकी कम रैंकिंग से स्पष्ट है। 
  • बांग्लादेश का कपड़ा उद्योग, जो कि विकास की दृष्टि से काफी महत्त्वपूर्ण है, अपने लचीले श्रम कानूनों के लिये काफी प्रसिद्ध है और खराब स्वास्थ्य परिस्थितियों के कारण श्रमिकों के स्वास्थ्य पर काफी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।  
  • कई जानकार बांग्लादेश के आर्थिक विकास के लिये यहाँ की राजनीति को एक बड़ा खतरा मानते हैं, यहाँ के प्रमुख राजनीतिक दलों पर नियमित रूप से हिंसा और उत्पीड़न के आरोप लगते रहते हैं, और आम लोगों के जीवन में कदम-कदम पर भ्रष्टाचार है।
  • इसके अलावा कट्टरपंथी धार्मिक विचार भी बांग्लादेश के आर्थिक और समाजिक विकास को काफी प्रभावित कर रहा है।

आगे की राह

  • यद्यपि प्रति व्यक्ति GDP के मामले में बांग्लादेश की बढ़त एक अल्पकालिक घटना हो सकती है, किंतु भारत को अपने बुनियादी ढाँचे को मज़बूत करने के साथ-साथ सामाजिक-आर्थिक नवाचार पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है। इस संबंध में बांग्लादेश की नीतियों से भी सीख ली जा सकती है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


क्षतिपूर्ति मुआवज़े का नया विकल्प

प्रिलिम्स के लिये

राजकोषीय घाटा, एशियाई विकास बैंक, विश्व बैंक, वस्तु एवं सेवा कर

मेन्स के लिये

क्षतिपूर्ति मुआवज़े के भुगतान के लिये ऋण की आवश्यकता, भुगतान का नया विकल्प और उसका कार्यान्वयन

चर्चा में क्यों?

वित्त मंत्रालय की हालिया घोषणा के अनुसार, केंद्र सरकार राज्यों के GST क्षतिपूर्ति मुआवज़े का भुगतान करने के लिये स्वयं बाज़ार से 1.1 लाख करोड़ रुपए का उधार लेगी, जिसे मुआवज़े के तौर पर राज्यों के बीच वितरित किया जाएगा।

प्रमुख बिंदु

  • केंद्र सरकार द्वारा राज्यों के लिये लिया जा रहा यह ऋण भारत सरकार के राजकोषीय घाटे (Fiscal Deficit) पर कोई प्रभाव नहीं डालेगा, बल्कि इसे राज्य सरकारों की पूंजीगत प्राप्तियों (Capital Receipts) के रूप में दर्शाया जाएगा।
  • कार्यान्वयन
    • राज्यों को क्षतिपूर्ति के रूप में मिलने वाला यह ऋण अंतर्राष्ट्रीय बहुपक्षीय संस्थानों जैसे- विश्व बैंक और एशियाई विकास बैंक (ADB) आदि से मिलने वाले ऋण की तरह ही वितरित किया जाएगा, जहाँ केंद्र सरकार पहले उधार लेती है फिर राज्यों के बीच उसे वितरित कर देती है।
    • इस तरह राज्यों द्वारा छोटे-छोटे ऋण लेने के बजाय केंद्र सरकार द्वारा बड़ी मात्रा में ऋण लिया जाएगा, जिससे राज्यों के लिये ऋण संबंधी प्रक्रिया काफी आसान हो जाएगी।
    • यहाँ सबसे मुख्य तथ्य यह है कि केंद्र सरकार द्वारा जिस ब्याज दर पर ऋण लिया जाएगा, वही ब्याज दर राज्यों को भी हस्तांतरित कर दी जाएगी।
  • निहितार्थ
    • केंद्र सरकार के इस निर्णय से GST क्षतिपूर्ति को लेकर केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच चल रहे गतिरोध को समाप्त किया जा सकेगा।
    • ध्यातव्य है कि केरल और पश्चिम बंगाल जैसे राज्य लगातार GST क्षतिपूर्ति के मुआवज़े के भुगतान के लिये राज्य सरकार द्वारा ऋण लिये जाने की मांग कर रहे थे, जबकि कुल 21 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने केंद्र सरकार द्वारा दिये गए विकल्पों पर अपनी सहमति व्यक्त कर दी है।
    • यह उन राज्यों को विशेष तौर पर राहत प्रदान करेगा, जो उच्च राजकोषीय घाटे का सामना कर रहे हैं, और यदि वे बाज़ार से उधार लेते हैं तो अधिक ब्याज दर का भुगतान करना पड़ सकता है।
  • मुआवज़े के लिये ऋण की आवश्यकता क्यों?
    • वित्त मंत्रालय के अनुमान के मुताबिक इस वर्ष महामारी समेत अन्य कारणों के परिणामस्वरूप GST राजस्व में कुल 3 लाख करोड़ रुपए की कमी आ सकती है, जबकि इस वर्ष क्षतिपूर्ति उपकर संग्रह का अनुमान केवल 65,000 करोड़ रुपए है, इसका अर्थ है कि राज्यों को मुआवज़े का भुगतान करने के लिये केंद्र सरकार के पास कुल 2.35 लाख करोड़ रुपए की अनुमानित कमी हो सकती है।
    • वित्त मंत्रालय की गणना के अनुसार, GST मुआवज़े में GST कार्यान्वयन के कारण मात्र 97,000 करोड़ रुपए की कमी हुई है, जबकि शेष कमी COVID-19 के प्रभाव के कारण हुई है। हालाँकि केंद्र सरकार ने बाद में इसे 1.1 लाख करोड़ रुपए कर दिया था। 

पृष्ठभूमि

  • अगस्त माह में जीएसटी परिषद की 41वीं बैठक में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने राज्यों को अनुमानित मुआवज़े की कमी के विवादास्पद मुद्दे को हल करने के लिये दो विकल्प प्रस्तुत किये।
  • पहला विकल्प
    • वित्त मंत्रालय द्वारा राज्यों को दिये गए पहले विकल्प के तहत भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के परामर्श से राज्यों को उचित ब्याज़ दर पर अनुमानित GST कमी, जो कि लगभग 97,000 करोड़ रुपए (बाद में 1.1 लाख करोड़ रुपए) थी, को ऋण के रूप में लेने के लिये एक विशेष विंडो प्रदान करने का प्रस्ताव किया गया था।
    • राज्य सरकारों द्वारा यह धनराशि उपकर संग्रह के माध्यम से जीएसटी कार्यान्वयन के 5 वर्ष बाद (यानी वर्ष 2022 के बाद) चुकाई जा सकती थी।
  • दूसरा विकल्प
    • राज्य को प्रस्तुत किये गए दूसरे विकल्प के अंतर्गत राज्य सरकारें मौजूदा वित्तीय वर्ष में GST राजस्व में आई संपूर्ण कमी को उधार के रूप में ले सकती थीं, जो कि तकरीबन 2.35 लाख करोड़ रुपए है।
    • यहाँ यह समझाना महत्त्वपूर्ण है कि पहले विकल्प में केवल GST कार्यान्वयन के कारण आई राजस्व की कमी को शामिल किया गया था, जबकि दूसरे विकल्प में कार्यान्वयन के साथ-साथ महामारी के कारण आई राजस्व में कमी को शामिल किया गया था।

GST राजस्व में कमी

  • ऐतिहासिक वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम 1 जुलाई, 2017 को लागू हुआ था, नियमों के अनुसार, वर्ष 2022 तक यानी GST कार्यान्वयन के पाँच वर्षों तक GST राजस्व में कमी होने के कारण राज्यों को क्षतिपूर्ति की गारंटी दी गई थी।
  • हालाँकि GST की शुरुआत के बाद से ही GST मुआवज़े के भुगतान का मुद्दा केंद्र और राज्य के बीच गतिरोध का विषय रहा है।
  • हालाँकि आँकड़े बताते हैं कि इस वर्ष अगस्त माह में बीते वर्ष इसी अवधि की अपेक्षा GST राजस्व संग्रह में 11.96 प्रतिशत की कमी आई है।
    • आँकड़ों के अनुसार, अगस्त, 2020 में GST राजस्व संग्रह 86,449 करोड़ रुपए के आस-पास रहा है, जबकि अगस्त 2019 में यह लगभग 98,202 करोड़ रुपए था।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस