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डेली न्यूज़

  • 15 Nov, 2023
  • 50 min read
जैव विविधता और पर्यावरण

बाघों की संख्या में वैश्विक वृद्धि, दक्षिण-पूर्व एशिया में प्राकृतिक वास को खतरा

प्रिलिम्स के लिये:

बाघ, ग्लोबल टाइगर रिकवरी प्रोग्राम (GTRP), लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (CITES), अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस, विश्व बैंक, WWF, सेंट पीटर्सबर्ग घोषणा, टाइगर रेंज देश (TRC), इंटरनेशनल टाइगर फोरम, ग्लोबल टाइगर इनिशिएटिव (GTI), टाइगर कंज़र्वेशन लैंडस्केप (TCL)।

मेन्स के लिये:

बाघों सहित अन्य वन्यजीवों के संरक्षण में देशों के समक्ष विद्यमान मुद्दे, भारत में प्रोजेक्ट टाइगर की उपलब्धियाँ और संबंधित अधिगम, मानव-वन्यजीव संघर्ष।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

चर्चा में क्यों?

देशों ने ग्लोबल टाइगर रिकवरी प्रोग्राम (GTRP) और GTRP 2.0 के तहत लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (CITES) में वर्ष 2010-2022 तक बाघों की आबादी/संख्या प्रस्तुत की, जिसका उद्देश्य वर्ष 2023-2034 तक बाघ संरक्षण का मार्ग प्रशस्त करना है।

  • वर्ष 2010 में सेंट पीटर्सबर्ग घोषणा में 13 बाघ रेंज वाले देशों ने प्रजातियों की आबादी में गिरावट को रोकने  और वर्ष 2022 तक उनकी संख्या को दोगुना करने के लिये प्रतिबद्धता जताई।

विश्व में बाघ संरक्षण की स्थिति क्या है?

  • दक्षिण एशिया और रूस में जंगली बाघों की स्थिति अच्छी है, लेकिन दक्षिण-पूर्व एशिया में तस्वीर गंभीर है, जो वैश्विक स्तर पर बाघों की आबादी में सुधार के लिये चुनौतियाँ उत्पन्न करता है।
  • बाघों की आबादी में कुल 60% की वृद्धि हुई है, जिससे इनकी संख्या 5,870 हो गई है।
    • हालाँकि भूटान, म्याँमार, कंबोडिया, लाओ-पीपुल्स डेमोक्रेटिक रिपब्लिक (Lao-PDR) और वियतनाम जैसे देशों में बाघों की आबादी में गिरावट देखी गई, जिससे दक्षिण-पूर्व एशिया के टाइगर रेंज देशों (TRC) में स्थिति "गंभीर" हो गई।
  • उत्तर-पूर्व एशिया में चीन तथा रूस सहित दक्षिण एशिया में बांग्लादेश, भूटान, भारत व नेपाल जैसे देशों की सफलता का श्रेय आवास संरक्षण और सुरक्षा के लिये उठाए गए प्रभावी उपायों को दिया जाता है।
    • वर्ष 2022 में भारत में जंगली बाघों की आबादी 3,167 देखी गई। नेपाल में बाघों की आबादी तीन गुना वृद्धि हुई है।

ग्लोबल टाइगर रिकवरी प्रोग्राम 2.0 (2023-34) क्या है?

  • ग्लोबल टाइगर रिकवरी प्रोग्राम (GTRP) 2.0 को 29 जुलाई को अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस 2023 पर थिम्पू में भूटान की शाही सरकार के विदेश मंत्री द्वारा जारी किया गया था।
    • GTRP को टाइगर रेंज देशों (TRC) की प्रतिबद्धताओं के साथ वर्ष 2022 तक जंगली बाघों की आबादी को दोगुना करने के लिये ग्लोबल टाइगर इनिशिएटिव (GTI) के तहत वर्ष 2010 में विश्व बैंक द्वारा लॉन्च किया गया था।
    • ग्लोबल टाइगर फोरम (GTF) की स्थापना बाघ संरक्षण हेतु कार्यान्वयन निकाय के रूप में की गई थी।
  • GTRP 2.0 को वर्ल्ड वाइल्ड फंड फॉर नेचर (World Wildlife Fund for Nature- WWF) जैसे सहयोगियों के साथ ग्लोबल टाइगर फोरम के अंतर-सरकारी मंच के माध्यम से बाघ रेंज वाले देशों द्वारा मज़बूत किया गया है।
    • GTRP 2.0 मानव-वन्यजीव संघर्ष जैसी समकालीन चुनौतियों का समाधान करते हुए बाघों के लिये  प्रशासन प्रणाली को मज़बूत करने, संसाधनों और सुरक्षा को बढ़ाने पर ज़ोर देता है।
  • नए संस्करण में लुप्तप्राय जंगली बाघों के संरक्षण  के एक अलग दृष्टिकोण हेतु नए कार्यों के साथ-साथ संचालित कई आदर्श कार्रवाइयों को बरकरार रखा गया है।

विश्व में बाघों की आबादी के लिये खतरा:

  • बाघ का अवैध शिकार: बाघ के अवैध शिकार के साथ-साथ अपर्याप्त गश्त, वन्यजीव निगरानी की खराब स्थिति, वाणिज्यिक ज़रूरतों के लिये वनों को नुकसान पहुँचाना, वन्यजीव व्यापार केंद्रों से निकटता एवं बुनियादी ढाँचे के तेज़ी से विकास ने स्थिति को चुनौतीपूर्ण बना दिया है, जिसके परिणामस्वरूप विखंडन की स्थिति देखी जा रही है।
  • वन्यजीव संरक्षण में कम निवेश: निगरानी की खराब स्थिति और वन्यजीव संरक्षण में कम निवेश जैसे कारक बाघों की आबादी में गिरावट के अन्य कारण हैं।
  • पर्यावास की हानि और विखंडन: मानवजनित कारकों की वजह से जैवविविधता में कमी के साथ-साथ निवास स्थान की हानि और विखंडन, बाघ संरक्षण के लिये खतरा पैदा करने वाली एक और चिंता है।
    • रिपोर्ट में पाया गया कि दक्षिण-पूर्व एशिया में तेज़ी से गिरावट के साथ इसकी सीमाओं में वनों का नुकसान एक प्रमुख कारक है।
  • बाघों के आवास का क्षरण: वनों की कटाई, बुनियादी ढाँचे के विकास और गैरकानूनी लॉगिंग (वृक्षों को काटने, प्रसंस्करण और परिवहन के लिये किसी स्थान पर ले जाने की प्रक्रिया) के कारण बाघों के आवास में गिरावट देखी गई है। रिपोर्ट में कुछ हिस्सों में शिकार की आबादी बढ़ाने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया है।

रिपोर्ट में दिये गए सुझाव:

  • आनुवंशिक रूप से व्यवहार्य बाघ आबादी की आवश्यकता: रिपोर्ट में कहा गया है कि "जनसांख्यिकीय और आनुवंशिक रूप से व्यवहार्य बाघों की आबादी के लिये उनके निवास स्थान के नुकसान, शिकार की कमी तथा बाघ के अवैध शिकार की मौजूदा प्रवृत्ति में बदलाव लाने हेतु कदम उठाए जाने की आवश्यकता है।"
    • यदि बाघों के संरक्षण हेतु उचित कदम नहीं उठाए गए, तो दक्षिण-पूर्व एशिया में बाघों की अधिकांश आबादी और दक्षिण एशिया के कुछ हिस्सों में छोटी आबादी नष्ट हो जाएगी।
  • बाघ परिदृश्य में मानव-पर्यावरणीय तनाव को संबोधित करना: टाइगर कंज़र्वेशन लैंडस्केप (TCL) को चल रहे मानव-पर्यावरणीय तनाव की निरंतरता के परिप्रेक्ष्य से देखने की ज़रूरत है।
    • कई TCL में कृषि-पशुपालन के साथ-साथ अन्य मानव-प्रेरित बदलाव भी किये जा रहे हैं। इस तरह के तनाव शाकाहारी प्रमुख जंगली जानवरों के कल्याण हेतु किये जा रहे कार्यों को प्रभावित करते हैं और इस तरह बाघ सहित प्रमुख मांसाहारी जानवरों की सापेक्ष बहुतायत को प्रभावित करते हैं।
  • मज़बूत नीतिगत कार्रवाई की आवश्यकता: गंभीर स्थिति राजनीतिक इच्छाशक्ति द्वारा समर्थित एक मज़बूत नीति ढाँचे की मांग करती है, बाघों की आबादी में कुल मिलाकर 60 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जिससे इनकी संख्या 5,870 हो गई है।
    • हालाँकि रिपोर्ट बाघों के सामने आने वाली चुनौतियों और खतरों पर भी प्रकाश डालती है, खासकर दक्षिण-पूर्व एशिया में, जहाँ स्थिति गंभीर है।

बाघ संरक्षण हेतु की गई पहल:

  • वैश्विक मंच पर:
    • बाघ संरक्षण पर सेंट पीटर्सबर्ग घोषणा:
      • यह प्रस्ताव नवंबर 2010 में रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में अंतर्राष्ट्रीय टाइगर फोरम में 13 बाघ रेंज वाले देशों (TRC) के नेताओं द्वारा अपनाया गया था।
        • 13 TRC हैं: बांग्लादेश, भूटान, कंबोडिया, चीन, भारत, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्याँमार, नेपाल, रूस, थाईलैंड और वियतनाम।
      • इस पहल के कार्यान्वयन तंत्र को ग्लोबल टाइगर रिकवरी प्रोग्राम कहा जाता है जिसका व्यापक लक्ष्य वर्ष 2022 तक जंगली बाघों की संख्या को लगभग 3,200 से दोगुना करके 7,000 से अधिक करना था।
    • ग्लोबल टाइगर फोरम:
      • GTF एकमात्र अंतर-सरकारी अंतर्राष्ट्रीय निकाय है जिसकी स्थापना इच्छुक देशों के सदस्यों द्वारा बाघ की रक्षा के लिये एक वैश्विक अभियान शुरू करने हेतु की गई है। यह नई दिल्ली, भारत में स्थित है।
      • इसका गठन नई दिल्ली, भारत में बाघ संरक्षण पर एक अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी की सिफारिशों के आधार पर किया गया था।
      • 13 बाघ रेंज वाले देशों में से सात वर्तमान में GTF के सदस्य हैं: बांग्लादेश, भूटान, कंबोडिया, भारत, म्याँमार, नेपाल और वियतनाम के अलावा गैर-बाघ रेंज वाला देश यू.के.।
    • ग्लोबल टाइगर इनिशिएटिव (GTI):
      • GTI को वर्ष 2008 में विश्व बैंक, ग्लोबल एन्वायरनमेंट फैसिलिटी (GEF), स्मिथसोनियन इंस्टीट्यूशन, सेव द टाइगर फंड तथा इंटरनेशनल टाइगर कोलिश्‌न (40 से अधिक गैर-सरकारी संगठनों का प्रतिनिधित्वकर्त्ता) के संस्थापक भागीदारों द्वारा लॉन्च किया गया था।
      • GTI का नेतृत्व 13 टाइगर रेंज वाले देशों द्वारा किया जाता है। यह सरकारों, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों, नागरिक समाज, संरक्षण तथा वैज्ञानिक समुदाय एवं निजी क्षेत्र का एक वैश्विक गठबंधन है जो जंगली बाघों को विलुप्त होने से बचाने के लिये एक साझा एजेंडे पर मिलकर कार्य करने के लिये प्रतिबद्ध हैं।
      • विश्व बैंक में स्थित GTI सचिवालय योजना, समन्वय एवं निरंतर संचार के माध्यम से 13 टाइगर रेंज वाले देशों को उनकी संरक्षण रणनीतियों को पूरा करने तथा वैश्विक बाघ संरक्षण एजेंडा चलाने में सहायता प्रदान करता है।
  • भारतीय पहलें:

आगे की राह 

  • बाघों की वैश्विक आबादी में वृद्धि आशाजनक है किंतु दक्षिण-पूर्व एशियाई बाघों के समक्ष आने वाली चुनौतियों का व्यापक संरक्षण रणनीतियों के माध्यम से समाधान करने की आवश्यकता है।
  • इस अनूठी प्रजाति की निरंतर पुनर्प्राप्ति तथा कल्याण सुनिश्चित करने हेतु प्रभावी नीतियों एवं निरंतर संसाधनों द्वारा निर्देशित राष्ट्रों का सहयोगात्मक प्रयास आवश्यक है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स: 

प्रश्न. निम्नलिखित बाघ आरक्षित क्षेत्रों में "क्रांतिक बाघ आवास (Critical Tiger Habitat)" के अंतर्गत सबसे बड़ा क्षेत्र किसके पास है? (2020) 

(a) कॉर्बेट
(b) रणथंभौर
(c) नागार्जुनसागर-श्रीशैलम
(d) सुंदरबन

उत्तर: (c) 

  • “क्रांतिक बाघ आवास (Critical Tiger Habitat), जिसे टाइगर रिज़र्व कोर क्षेत्र भी कहा जाता है, की पहचान वन्य जीवन संरक्षण अधिनियम, 1972 के अंतर्गत की गई है। वैज्ञानिक प्रमाणों के आधार पर अनुसूचित जनजाति या ऐसे अन्य वनवासियों के अधिकारों को प्रभावित किये बिना ऐसे क्षेत्रों को बाघ संरक्षण के लिये सुरक्षित रखा जाना आवश्यक है। 
  • CTH को राज्य सरकार द्वारा इस उद्देश्य के लिये गठित विशेषज्ञ समिति के परामर्श से अधिसूचित किया जाता है।
  • कोर/क्रांतिक बाघ आवास क्षेत्र:
  • कॉर्बेट (उत्तराखंड): 821.99 वर्ग किमी.
  • रणथंभौर (राजस्थान): 1113.36 वर्ग किमी.
  • सुंदरबन (पश्चिम बंगाल): 1699.62 वर्ग किमी.
  • नागार्जुनसागर श्रीशैलम (आंध्र प्रदेश का हिस्सा): 2595.72 वर्ग किमी.

अतः विकल्प (c) सही है।


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

आपातकालीन चेतावनी प्रणाली

प्रिलिम्स के लिये:

भारत में आपातकालीन चेतावनी प्रणालियाँ, चक्रवात, बाढ़, भूस्खलन, भूकंप

मेन्स के लिये:

भारत की आपातकालीन चेतावनी प्रणालियों के समक्ष आने वाली चुनौतियाँ, आपदा और आपदा प्रबंधन

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में 3 नवंबर, 2023 को नेपाल में आए 6.4 तीव्रता के भूकंप तथा उसके बाद के झटके (आफ्टरशॉक) ने दिल्ली तथा उसके आसपास आपातकालीन चेतावनी प्रणालियों की गंभीर कमियों को उजागर किया है।

  • संबद्ध क्षेत्र में भूकंप के झटके के दौरान सरकारी एवं निजी चेतावनी तंत्र भूकंप वाले क्षेत्रों के लोगों को सचेत करने में असफल रहे।
  • आपातकालीन चेतावनी प्रणालियाँ ऐसी व्यवस्थाएँ हैं जो भूकंप, चक्रवात, बाढ़, भूस्खलन आदि जैसी आसन्न अथवा चल रही आपदाओं की प्रारंभिक चेतावनी एवं अधिसूचना प्रदान करती हैं।

भारत में आपातकालीन चेतावनी प्रणालियाँ क्या हैं?

  • गूगल की एंड्रॉइड भूकंप पूर्व चेतावनी प्रणाली: 
    • यह एक ऐसी सुविधा है जो भूकंपीय गतिविधि का पता लगाने तथा संभावित भूकंपों के बारे में उपयोगकर्त्ताओं को सचेत करने के लिये एंड्रॉइड स्मार्टफोन में सेंसर का उपयोग करती है।
      • यह भूकंप का पता लगाने एवं विश्लेषण को बेहतर बनाने के लिये डेटा एकत्र कर उसे भूकंप विज्ञान एजेंसियों के साथ साझा करती है।
    • Google ने राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) तथा पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र (NCS) के सहयोग से भारत में यह सुविधा सितंबर 2023 में लॉन्च की थी।
    • Google की चेतावनी प्रणाली संशोधित मरकली तीव्रता (Modified Mercalli Intensity- MMI) परिमापक के माध्यम से कार्य करती है, जो रिक्टर स्केल का एक विकल्प है।
      • MMI परिमापक किसी विशिष्ट स्थान पर भूकंप के प्रभाव को मापता है। यह भूकंप के प्रभावों का वर्णन करता है, जिसमें लोगों के अनुभव के साथ इमारतों व वस्तुओं की स्थिति शामिल होती है।
        • MMI परिमापक रिक्टर स्केल से भिन्न होता है तथा इसकी रेंज 1 से 12 तक होती है।
  • सेल ब्रॉडकास्ट अलर्ट सिस्टम (CBAS): 
    • CBAS अत्याधुनिक तकनीक का प्रतिनिधित्व करता है जो निर्दिष्ट भौगोलिक क्षेत्रों के अंदर सभी मोबाइल उपकरणों पर महत्त्वपूर्ण और संवेदनशील आपदा प्रबंधन संदेशों को समय पर प्रसारित करने का अधिकार देता है, भले ही प्राप्तकर्त्ता निवासी हों या आगंतुक।
    • सेल ब्रॉडकास्ट के सामान्य अनुप्रयोगों में आपातकालीन अलर्ट जैसे गंभीर मौसम की चेतावनी (जैसे- सुनामी, अचानक बाढ़, भूकंप), सार्वजनिक सुरक्षा संदेश, निकासी नोटिस और अन्य महत्त्वपूर्ण जानकारी देना शामिल है।
    • इसे दूरसंचार विभाग (DOT) और NDMA तथा अन्य एजेंसियों के सहयोग से विकसित किया गया है ताकि लोगों को अलर्ट किया जा सके।
  • पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय का राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र (NCS)
    • यह भारत और उसके पड़ोसी देशों में भूकंपीय गतिविधि की निगरानी तथा रिपोर्टिंग के लिये ज़िम्मेदार एजेंसी है।
    • यह पूरे देश में भूकंपीय वेधशालाओं का एक नेटवर्क संचालित करता है और भूकंप एवं सुनामी पर वास्तविक समय डेटा तथा जानकारी प्रदान करता है।
    • यह जनता को भूकंप की चेतावनी और अपडेट प्रदान करने के लिये भूकैंप (BhooKamp) नामक एक वेबसाइट तथा एक मोबाइल एप भी संचालित करता है।

आपातकालीन चेतावनी प्रणालियों की कमियाँ और चुनौतियाँ क्या हैं?

  • समन्वय और एकीकरण का अभाव:
    • भारत में एकल, मानकीकृत आपातकालीन चेतावनी प्रणाली का अभाव है, जिसके परिणामस्वरूप जनता और अधिकारियों दोनों को असंगत एवं अविश्वसनीय जानकारी मिलती है।    
      • कई एजेंसियाँ और प्लेटफॉर्म स्वतंत्र रूप से कार्य करते हैं, जिससे भ्रम, दोहराव के साथ अलर्ट करने में देरी होती है।
    • दिल्ली के आसपास हाल के झटकों के दौरान NCS वेबसाइट और एप क्रैश हो गए, जिससे ट्रैफिक में अचानक वृद्धि का सामना करना पड़ा, जबकि झटकों को लेकर वास्तविक समय की जानकारी महत्त्वपूर्ण थी।
      • यह घटना आपातकालीन स्थितियों के प्रबंधन में महत्त्वपूर्ण समन्वय चुनौतियों पर प्रकाश डालती है।
  • सटीकता और समयबद्धता का अभाव:
    • भारत में आपातकालीन चेतावनी प्रणालियाँ आपदाओं के स्थान, परिमाण, तीव्रता और प्रभाव के विषय में सटीक तथा समय पर जानकारी प्रदान करने में सक्षम नहीं हैं।
      • यह डेटा संग्रह, विश्लेषण और ट्रांसमिशन में सीमाओं के कारण है।
  • जागरूकता और तैयारी की कमी:
    • जनता और अधिकारियों के बीच जागरूकता और तैयारियों की कमी के कारण भारत में आपातकालीन चेतावनी प्रणालियाँ प्रभावी ढंग से जनता तक पहुँचने और उन्हें सूचित करने में सक्षम नहीं हैं।
      • बहुत से लोग नहीं जानते कि अलर्ट तक कैसे पहुँच प्राप्त करें, कैसे व्याख्या करें और उस पर प्रतिक्रिया दें तथा अक्सर उन्हें गलत अलार्म के रूप में अनदेखा या खारिज़ कर देते हैं।
    • आपदा जोखिमों और शमन उपायों तथा प्रतिक्रिया तंत्र को लेकर सार्वजनिक शिक्षा तथा जागरूकता अभियानों की कमी देखी गई है।

आगे की राह

    • SMS, वॉयस कॉल, सोशल मीडिया और पारंपरिक माध्यमों जैसे कई चैनलों को शामिल करते हुए एक एकीकृत आपातकालीन चेतावनी प्रणाली विकसित करना।
      • MoES, DoT, NDMA, IMD और NCS जैसी प्रमुख एजेंसियों के साथ निर्बाध समन्वय तथा एकीकरण स्थापित करना।
    • डेटा संग्रह, विश्लेषण और ट्रांसमिशन को बढ़ाने के लिये उपग्रहों तथा कृत्रिम बुद्धिमत्ता जैसी उन्नत प्रौद्योगिकियों का लाभ लेना।
    • भूकंपीय वेधशालाओं का विस्तार करके अतिरिक्त सेंसर तैनात करना और कंप्यूटिंग क्षमताओं को उन्नत करके बुनियादी ढाँचे को मज़बूत करना।
      • आपदा के स्थान, परिमाण और प्रभाव पर विस्तृत विवरण प्रदान करते हुए तत्काल अलर्ट जारी करने का लक्ष्य तय करना।
    • जनता को आपदा जोखिमों, शमन उपायों और आपातकालीन चेतावनी प्रणालियों की कार्यक्षमता के बारे में सूचित और संलग्न करना।
    • चेतावनी प्रणालियों और प्रतिक्रिया तंत्रों का परीक्षण एवं परिशोधन के लिये हितधारकों एवं समुदायों को शामिल करते हुए लगातार अभ्यास करना।

      सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

    प्रश्न. आपदा प्रबंधन में प्रतिक्रियात्मक उपागम से हटते हुए भारत सरकार द्वारा आरंभ किये गए अभिनूतन उपायों की विवेचना कीजिये। (2020)


    विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

    FSSAI के पास आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों पर डेटा का अभाव

    प्रिलिम्स के लिये:

    FSSAI के पास आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों पर डेटा का अभाव, सूचना का अधिकार (RTI), भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI), आनुवंशिक रूप से संशोधित जीव (GMO)

    मेन्स के लिये:

    FSSAI के पास आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों पर डेटा का अभाव, आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों (GMO) का मानव स्वास्थ्य के संदर्भ में निहितार्थ। 

    स्रोत: डाउन टू अर्थ

    चर्चा में क्यों?

    हाल ही में RTI की एक जाँच में पाया गया है कि भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) के पास पिछले पाँच वर्षों के दौरान आयातित उत्पादों में आनुवंशिक रूप से संशोधित जीव (GMO) के डेटा का अभाव है। इससे बेचे जाने वाले फलों और सब्जियों में GM किस्मों की संभावना के विषय में चिंताएँ उत्पन्न होती हैं।

    • RTI से यह भी पता चला है कि FSSAI के पास ऐसी किस्मों की उपस्थिति की जाँच के लिये किये गए परीक्षणों के विषय में जानकारी नहीं है।

    आनुवंशिक रूप से संशोधित जीव (GMO) क्या है?

    • परिचय:
      • आनुवंशिक रूप से संशोधित जीव (GMO) का आशय ऐसे जीवों (चाहे वह जंतु, पादप या सूक्ष्मजीव हो) से है जिनके DNA में आनुवंशिक इंजीनियरिंग विधियों का उपयोग करके संशोधन किया जाता है।
      • चयनात्मक प्रजनन के माध्यम से मक्का जैसी फसलों, मवेशियों एवं कुत्तों जैसे पालतू जानवरों में विशिष्ट लक्षण विकसित किये गए हैं। हाल के दशकों में जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हुई प्रगति ने शोधकर्त्ताओं को सूक्ष्मजीवों, पौधों एवं जानवरों की आनुवंशिक संरचना में प्रत्यक्ष रूप से हेर-फेर करने में सक्षम बनाया है।
    • आनुवंशिक संशोधन:
      • इसमें विशिष्ट लक्षणों या विशेषताओं को प्राप्त करने के क्रम में किसी जीव के DNA को संशोधित करना शामिल है। आनुवंशिक संशोधन में कई तकनीकों का उपयोग किया जाता है, जिनमें से प्रत्येक के अपने फायदे और अनुप्रयोग हैं। 
    • विश्व स्तर पर GMO का उपयोग:
      • विश्व स्तर पर लगभग एक दर्जन GMO प्रजातियों की बड़े पैमाने पर खेती की जा रही है। लंदन स्थित वैज्ञानिकों की फेलोशिप, द रॉयल सोसाइटी की एक रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 28 देश इन GMO फसलों की बड़े पैमाने पर खेती की अनुमति देते हैं।
      • भारत में खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006, FSSAI की मंज़ूरी के बिना GM खाद्यान्न के आयात, निर्माण, उपयोग या बिक्री पर प्रतिबंध लगाता है।
      • अब तक भारत ने केवल एक GMO, कपास- एक गैर-खाद्य फसल की खेती और आयात की अनुमति दी है।
        • वर्ष 2022 में भारत ने GM सरसों की व्यावसायिक खेती की भी अनुमति दी, लेकिन इस कदम को चुनौती दी गई है और यह सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है।
    • भारत में GMO का आयात:
      • GMO की खेती के तहत भूमि के मामले में अमेरिका, ब्राज़ील और अर्जेंटीना शीर्ष तीन देश हैं। वे भारत में खाद्य पदार्थों के प्रमुख निर्यातक भी हैं।
      • वर्ष 2022-23 में अर्जेंटीना और ब्राज़ील भारत के डीगम्ड सोयाबीन तेल के शीर्ष दो स्रोत हैं।
        • केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के अनुसार, कुल मिलाकर पिछले एक दशक में भारत में ताज़े फल और सब्जियों का आयात 25% बढ़ गया है।

    RTI जाँच से उत्पन्न चिंताएँ क्या हैं?

    • खाद्य सुरक्षा संबंधी चिंताएँ:
      • आयातित उपज में GM की उपस्थिति के बारे में अनिश्चितता उपभोक्ताओं के लिये सुरक्षा और स्वास्थ्य संबंधी प्रभावों के बारे में चिंता पैदा करती है।
      • यदि GM उत्पाद मौजूद हैं और अनजाने में उपभोग किये जाते हैं, तो यह GMO के दीर्घकालिक स्वास्थ्य प्रभावों के बारे में अनिश्चितता को ध्यान में रखते हुए संभावित स्वास्थ्य जोखिम बढ़ाता है।
    • नियामक अस्पष्टता:
      • GM किस्मों पर स्पष्टता और डेटा की कमी के कारण आनुवंशिक रूप से संशोधित फलों तथा सब्जियों के आयात एवं बिक्री को विनियमित करने व निगरानी करने में अस्पष्टता की स्थिति पैदा हो सकती है।
      • यह GM उपज के आयात और बिक्री के संबंध में FSSAI के नियामक निरीक्षण की प्रभावशीलता पर सवाल उठाता है।
    • जनता का भरोसा:
      • यह खाद्य आयात से संबंधित निरीक्षण और सुरक्षा उपायों में जनता के विश्वास को कम कर सकता है, संभावित रूप से उपभोक्ता की पसंद तथा खाद्य सुरक्षा नियमों में विश्वास को प्रभावित कर सकता है।

    FSSAI क्या है?

    • परिचय:
      • FSSAI खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम (FSS अधिनियम), 2006 के तहत स्थापित एक स्वायत्त वैधानिक निकाय है।
      • भारत सरकार का स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय FSSAI का प्रशासनिक मंत्रालय है।
      • FSSAI के अध्यक्ष एवं मुख्य कार्यकारी अधिकारी की नियुक्ति भारत सरकार द्वारा पहले ही निर्धारित होती है। इसका अध्यक्ष भारत सरकार का सचिव होता है।
    • मुख्यालय: इसका मुख्यालय दिल्ली में स्थित है।
    • FSSAI के कार्य: 
      • खाद्य सुरक्षा मानकों एवं दिशा-निर्देशों को निर्धारित करने के लिये नियमों का निर्धारण।
      • FSSAI खाद्य व्यवसायों के लिये लाइसेंस और प्रमाणन प्रदान करना।
      • खाद्य व्यवसायों में कार्यरत प्रयोगशालाओं हेतु प्रक्रिया एवं दिशा-निर्देश निर्धारित करना।
      • नीति निर्माण में सरकार को सलाह देना।
      • खाद्य उत्पादों में संदूषकों के बारे में डेटा एकत्र करना, उभरते जोखिमों की पहचान करना और त्वरित चेतावनी प्रणाली शुरू करना।
      • खाद्य सुरक्षा के संबंध में देश भर में एक सूचना नेटवर्क तैयार करना।
      • खाद्य सुरक्षा एवं खाद्य मानकों के संबंध में सामान्य जागरूकता को बढ़ाना।

      UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

    प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

    1. खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 ने खाद्य अपमिश्रण निवारण अधिनियम, 1954 का स्थान लिया। 
    2. भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय में स्वास्थ्य सेवाओं के महानिदेशक के प्रभार में है।

    उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?  

    (a) केवल 1
    (b) केवल 2
    (c) 1 और 2 दोनों
    (d) न तो 1 और न ही 2

    उत्तर: (a)


    जैव विविधता और पर्यावरण

    प्रोडक्शन गैप रिपोर्ट 2023

    प्रिलिम्स के लिये:

    प्रोडक्शन गैप रिपोर्ट, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP), पेरिस समझौता, भारत का NDC

    मेन्स के लिये:

    प्रोडक्शन गैप रिपोर्ट, पर्यावरण प्रदूषण और गिरावट, खनिज और ऊर्जा संसाधन

    स्रोत: द हिंदू

    चर्चा में क्यों? 

    हाल ही में स्टॉकहोम एन्वायरनमेंट इंस्टीट्यूट (SEI), क्लाइमेट एनालिटिक्स, E3G, इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट (IISD) और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) द्वारा प्रोडक्शन गैप रिपोर्ट 2023 प्रकाशित की गई है।

    • रिपोर्ट पेरिस समझौते के तापमान लक्ष्य के अनुरूप वैश्विक स्तर के मुकाबले कोयला, तेल और गैस के सरकार के नियोजित तथा अनुमानित उत्पादन का आकलन करती है।
    • प्रोडक्शन गैप सरकारों के नियोजित जीवाश्म ईंधन उत्पादन और ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस या 2 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के अनुरूप वैश्विक उत्पादन स्तर के बीच का अंतर है।

    प्रोडक्शन गैप रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?

    •  जीवाश्म ईंधन उत्पादन में अनुमानित वृद्धि: सरकारें वर्ष 2030 में 1.5°C वार्मिंग सीमा के अनुकूल जीवाश्म ईंधन से दोगुना उत्पादन करने की योजना बना रही हैं।
      • यह अनुमान 2 डिग्री सेल्सियस लक्ष्य से 69% अधिक है, जो अधिक महत्त्वाकांक्षी जलवायु कार्रवाई की तत्काल आवश्यकता पर बल देता है।
      • कुल मिलाकर सरकारी योजनाओं और अनुमानों से वर्ष 2030 तक वैश्विक कोयला उत्पादन में वृद्धि होगी तथा कम-से-कम वर्ष 2050 तक वैश्विक तेल तथा गैस उत्पादन में वृद्धि होगी।
      • यह पेरिस समझौते के तहत सरकार की प्रतिबद्धताओं की इस उम्मीद के साथ टकराव है कि नई नीतियों के बिना भी कोयला, तेल और गैस की वैश्विक मांग इस दशक में चरम पर होगी।
    • प्रमुख उत्पादक देशों ने शुद्ध-शून्य उत्सर्जन हासिल करने का वादा किया है और जीवाश्म ईंधन उत्पादन से उत्सर्जन को कम करने के लिये पहल शुरू की है, लेकिन किसी ने भी वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के अनुरूप कोयला, तेल तथा गैस उत्पादन को कम करने हेतु प्रतिबद्धता नहीं व्यक्त की है।

    भारत विशिष्ट निष्कर्ष:

    • भारत के अद्यतन NDC:
      • उत्सर्जन में कमी: भारत के NDC का लक्ष्य वर्ष 2030 तक उत्सर्जन तीव्रता में वर्ष 2005 के स्तर की तुलना में 45%  तक की कमी करना है।
      • नवीकरणीय ऊर्जा हिस्सेदारी: इसका लक्ष्य वर्ष 2030 तक 50% गैर-जीवाश्म विद्युत क्षमता प्राप्त करना है।
      • दीर्घकालिक दृष्टिकोण: अद्यतन NDC वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन लक्ष्य की ओर एक कदम है।

    • जीवाश्म ईंधन उत्पादन पर सरकार का रुख:
      • राष्ट्रीय पैमाने के साथ निम्न-कार्बन संक्रमण: COP-27 के दौरान जारी दीर्घकालिक-निम्न उत्सर्जन विकास रणनीति (LT-LEDS) कम-कार्बन बदलाव के लिये प्रतिबद्ध है जो आवश्यक विकास सुनिश्चित करती है।
        • इसमें ऊर्जा सुरक्षा, पहुँच और रोज़गार बनाए रखने पर ज़ोर दिया गया है।
      • घरेलू जीवाश्म ईंधन हेतु समर्थन: आत्मनिर्भरता पर ज़ोर देने तथा राज्य की आय और रोज़गार के अवसर पैदा करने हेतु कोयला उत्पादन के विस्तार की आवश्यकता है।
        • योजनाओं में बढ़ती मांग को पूरा करने के लिये घरेलू तेल और गैस की खोज को बढ़ाना शामिल है क्योंकि वर्ष 2030 तक देश में गैस की मांग 500% से अधिक बढ़ने की संभावना है।
        • सरकार ने घरेलू कोयला उत्पादन बढ़ाने के लिये खनन ब्लॉकों की रोलिंग इलेक्ट्रॉनिक नीलामी की व्यवस्था की है और तेल तथा गैस क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को प्रोत्साहित कर रही है।
      • हरित ऊर्जा में निवेश करते समय भारत जीवाश्म ईंधन, मुख्य रूप से कोयले के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को बनाए रख सकता है।
      • भारत की राष्ट्रीय तेल कंपनी की सहायक कंपनी ONGC विदेश लिमिटेड (OVL) की 15  देशों (ONGC विदेश, 2023) में 33 तेल और गैस परियोजनाओं में हिस्सेदारी है।

    इसकी सिफारिशें क्या हैं?

    • योजनाओं में पारदर्शिता: सरकारों को जीवाश्म ईंधन उत्पादन के लिये अपनी योजनाओं, पूर्वानुमानों तथा समर्थन के साथ-साथ राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय जलवायु लक्ष्यों के साथ इनके संतुलन के बारे में और अधिक पारदर्शी होना चाहिये।
    • जीवाश्म ईंधन कटौती लक्ष्य अपनाना: सरकारों को अन्य जलवायु शमन लक्ष्यों को पूरा करने और परित्यक्त परिसंपत्तियों के जोखिम को कम करने के लिये जीवाश्म ईंधन उत्पादन एवं उपयोग में निकट/अल्पकालिक तथा दीर्घकालिक कटौती लक्ष्यों को अपनाने की अत्यधिक आवश्यकता है।
    • जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करना: देशों को वर्ष 2040 तक कोयला उत्पादन तथा इसके उपयोग की चरणबद्ध समाप्ति करने का लक्ष्य रखना चाहिये एवं तेल और गैस के कुल उत्पादन व उपयोग में वर्ष 2020 के स्तर से वर्ष 2050 तक तीन-चौथाई की कमी करने का प्रयास करना चाहिये।
    • जीवाश्म ईंधन उत्पादन से दूर एक न्यायसंगत परिवर्तन के लिये प्रत्येक राष्ट्र के अद्वितीय दायित्वों और क्षमताओं को पहचानना आवश्यक है। अधिक परिवर्तन क्षमता वाली सरकारों को अधिक महत्त्वाकांक्षी कटौती का लक्ष्य रखना चाहिये एवं सीमित क्षमता वाले देशों में परिवर्तन प्रक्रियाओं को वित्तपोषित करने में मदद करनी चाहिये।

    सामाजिक न्याय

    शैक्षिक केन्द्रों में आत्महत्या के मामले

    प्रिलिम्स के लिये:

    शैक्षणिक केंद्रों में आत्महत्या के मामलों का मुद्दा, आत्महत्याएँ, लोकनीति-सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज़ (CSDS), अवसाद, चिंता और द्विध्रुवी विकार, मनोदर्पण

    मेन्स के लिये:

    शैक्षणिक केंद्रों में आत्महत्या के मामले, भारतीय समाज की मुख्य विशेषताएँ।

    स्रोत: द हिंदू

    चर्चा में क्यों?

    हाल ही में लोकनीति-सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज़ (CSDS) ने एक सर्वेक्षण किया है, जिसमें कोटा में बढ़ती छात्र आत्महत्याओं के चिंताजनक मुद्दे पर प्रकाश डाला गया है। 

    • लोकनीति-CSDS सर्वेक्षण को हिंदी में एक संरचित प्रश्नावली का उपयोग करके आमने-सामने आयोजित किया गया था, जिसमें अक्तूबर 2023 में 1,000 से अधिक छात्र शामिल थे। सैंपल में 30% लड़कियाँ शामिल थीं।  
    • कोटा के कोचिंग सेंटरों में पढ़ने वाले अधिकांश छात्र बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश से आते हैं। उनमें से लगभग आधे छोटे शहरों और कस्बों से हैं; केवल 14% गाँवों से आते हैं।

    अधिक छात्रों के कोटा जाने के क्या कारण हैं?

    • परिवार और रिश्तेदारों का प्रभाव:
      • बड़ी संख्या में छात्रों के परिवार के सदस्य या रिश्तेदार कोटा में पढ़ते हैं, जिससे कोटा आने का उनका निर्णय प्रभावित हुआ।
      • सोशल मीडिया और दोस्तों तथा माता-पिता की सिफारिशें भी उनके निर्णय में भूमिका निभाती हैं।
    • प्रवेश परीक्षा पर फोकस:
      • कोटा में छात्र मुख्य रूप से NEET (मेडिकल प्रवेश परीक्षा) और JEE (इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा) की तैयारी करते हैं।
        • NEET लड़कियों के बीच अधिक लोकप्रिय है, जबकि JEE को लड़कों द्वारा पसंद किया जाता है।
    • नियमित उपस्थिति के बिना प्रतिरूपी  स्कूल: 
      • प्रवेश परीक्षा के लिये बोर्ड परीक्षा उत्तीर्ण करना एक शर्त है। कोटा में अधिकांश छात्र 'प्रतिरूपी स्कूलों' में नामांकित हैं, जिन्हें नियमित उपस्थिति की आवश्यकता नहीं होती है और केवल बोर्ड परीक्षा में बैठने की सुविधा होती है।

    NCRB की ADSI रिपोर्ट 2021 के अनुसार भारत में आत्महत्याओं की स्थिति क्या है?

    • समग्र आत्महत्या स्थिति:
      • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (National Crime Records Bureau- NCRB) के भारत में आकस्मिक मृत्यु और आत्महत्याएँ (ADSI) 2021 के अनुसार, वर्ष 2021 के दौरान देश में कुल 1,64,033 आत्महत्याएँ हुईं, जो वर्ष 2020 की तुलना में 7.2% की वृद्धि दर्शाती हैं।
      • वर्ष 2021 में भारत में आत्महत्या की दर 12.0% थी।

    • छात्रों में आत्महत्या की स्थिति:
      • भारत में वर्ष 2021 में प्रतिदिन 35 से अधिक की दर से 13,000 से अधिक छात्रों की मृत्यु हुई, वर्ष 2020 में 12,526 मृत्यु के साथ 4.5% की वृद्धि हुई, 10,732 आत्महत्याओं में से 864 मामलों में परीक्षा में विफलता ज़िम्मेदार है।
      • रिपोर्ट से यह भी पता चला है कि वर्ष 2021 में छात्राओं की आत्महत्या का प्रतिशत पाँच वर्ष के निचले स्तर यानी 43.49% पर था, जबकि छात्रों के मामले में यह कुल छात्र आत्महत्याओं का 56.51% थी।
        • वर्ष 2017 में 4,711 छात्राओं ने आत्महत्या की, जबकि वर्ष 2021 में यह आँकड़ा  बढ़कर 5,693 हो गया।

    शैक्षणिक संस्थानों में आत्महत्या के जोखिम को बढ़ाने वाले कारक कौन-से हैं?

    • शैक्षणिक दबाव:
      • माता-पिता, शिक्षकों और समाज की उच्च अपेक्षाओं के अनुरूप परीक्षा में अच्छा प्रदर्शन करने के लिये अत्यधिक तनाव और दबाव इसका कारण बन सकता है।
      • असफल होने का यह दबाव कुछ छात्रों पर भारी पड़ सकता है, जिससे असफलता और निराशा की भावना पैदा होती है।
    • मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्या:  
      • अवसाद, चिंता और बाईपोलर विकार जैसी मानसिक स्वास्थ्य समस्याएँ छात्रों द्वारा आत्महत्या करने का कारण हो सकती हैं।
        • ये स्थितियाँ तनाव, अकेलापन और समर्थन की कमी से और भी बदतर हो सकती हैं।
    • अलगाव और अकेलापन:  
      • शैक्षिक केंद्रों में कई छात्र दूर-दूर से आते हैं और अपने परिवार तथा दोस्तों से दूर रहते हैं।
      • यह अलगाव और अकेलेपन की भावना को जन्म दे सकता है, जो एक अपरिचित और प्रतिस्पर्द्धी माहौल में विशेष रूप से कठिन परिस्थिति उत्पन्न कर सकता है।
    • वित्तीय चिंताएँ:  
      • वित्तीय कठिनाइयाँ, जैसे ट्यूशन फीस या रहने का खर्च वहन करने में सक्षम न होना, छात्रों के लिये बहुत अधिक तनाव और चिंता पैदा कर सकता है।
      • इससे निराशा और हताशा की भावना पैदा हो सकती है। 
    • समर्थन की कमी:  
      • शिक्षण संस्थानों में कई छात्र कठिनाइयों का सामना करते समय सहायता लेने में संकोच करते हैं। 
        • यह मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों, अपमान या न्याय के डर के कारण हो सकता है। 
      • समर्थन की इस कमी से निराशा और हताशा की भावना पैदा हो सकती हैं। 
    • विफलता की निंदा:
      • भारतीय समाज में प्रतियोगी परीक्षाओं में असफलता के चलते अक्सर विद्यार्थियों की निंदा की जाती है। छात्रों को अपने संघर्षों को स्वीकार करने या अपने मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों पर चर्चा करने में शर्म महसूस हो सकती है, जिससे उन्हें समर्थन की कमी महसूस हो सकती है।

    आत्महत्याओं को कम करने हेतु कौन-सी पहलें की गई हैं?

    • वैश्विक पहल: 
      • विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस (WSPD): यह प्रत्येक वर्ष 10 सितंबर को मनाया जाता है, WSPD की स्थापना वर्ष 2003 में WHO के साथ मिलकर इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर सुसाइड प्रिवेंशन (IASP) द्वारा की गई थी। यह स्टिग्मा को कम करता है और संगठनों, सरकार एवं जनता के बीच जागरूकता बढ़ाता है, साथ ही यह संदेश देता है कि आत्महत्या को रोका जा सकता है।
      • विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस: 10 अक्तूबर को प्रत्येक वर्ष विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस के रूप में मनाया जाता है। विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस का समग्र उद्देश्य दुनिया भर में मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ाना और मानसिक स्वास्थ्य के समर्थन में प्रयास करना है। 
    • भारतीय पहल:
      • मानसिक स्वास्थ्य देखरेख अधिनियम (MHA), 2017: MHA 2017 का उद्देश्य मानसिक बीमारी वाले व्यक्तियों के लिये मानसिक स्वास्थ्य सेवा प्रदान करना है।
      • किरण (KIRAN): सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने चिंता, तनाव, अवसाद, आत्महत्या के विचार और अन्य मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं से परेशान लोगों को सहायता प्रदान करने के लिये 24/7 टोल-फ्री हेल्पलाइन "किरण" शुरू की है।
      • मनोदर्पण पहल: मनोदर्पण आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत शिक्षा मंत्रालय की एक पहल है।
        • इसका उद्देश्य छात्रों, परिवार के सदस्यों और शिक्षकों को कोविड-19 के दौरान उनके मानसिक स्वास्थ्य एवं तंदुरुस्ती के लिये मनोसामाजिक सहायता प्रदान करना है।
      • राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीति:
        • वर्ष 2023 में घोषित राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीति देश में अपनी तरह की पहली योजना है, जो वर्ष 2030 तक आत्महत्या मृत्यु दर में 10% की कमी लाने के लिये समयबद्ध कार्ययोजना और बहु-क्षेत्रीय सहयोग है। यह रणनीति आत्महत्या की रोकथाम के लिये विश्व स्वास्थ्य संगठन दक्षिण पूर्व-एशिया क्षेत्र रणनीति के अनुरूप है।

    आगे की राह

    • छात्रों को मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं, परामर्श सेवाओं, सहायता समूहों और मनोरोग सेवाओं जैसे संसाधनों तक पहुँच प्रदान करने से आत्महत्या को रोकने में मदद मिल सकती है। इसके अतिरिक्त स्कूलों और विश्वविद्यालयों को मानसिक स्वास्थ्य प्राथमिक चिकित्सा में शिक्षकों, कर्मचारियों एवं छात्रों को प्रशिक्षित करना चाहिये।
    • मानसिक स्वास्थ्य और आत्महत्या के बारे में खुली चर्चा के माध्यम से मानसिक स्वास्थ्य और मदद मांगने के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण को भी बढ़ावा देना चाहिये।
    • छात्रों के समग्र कल्याण में सुधार और तनाव, चिंता एवं अवसाद को कम करने हेतु गरीबी, बेघर तथा बेरोज़गारी जैसे सामाजिक-आर्थिक कारकों को संबोधित किया जाना चाहिये

      UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

    मेन्स:

    प्रश्न. भारतीय समाज में नवयुवतियों में आत्महत्या क्यों बढ़ रही है? स्पष्ट कीजिये। (2023)


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