डायमर-भाषा बांध अनुबंध
प्रीलिम्स के लिये:डायमर-भाषा बांध मेन्स के लिये:सिंधु-जल समझौता |
चर्चा में क्यों?
हाल में पाकिस्तान तथा चीन सरकार द्वारा ‘डायमर-भाषा बांध’ (Diamer-Bhasha Dam); जिसका बड़ा हिस्सा ‘गिलगित-बाल्टिसतान’ में स्थित है, के प्रोजेक्ट पर हस्ताक्षर किये गए।
प्रमुख बिंदु:
- हस्ताक्षरित अनुबंध में मुख्य बांध तथा 21MW की जलविद्युत परियोजना का निर्माण तथा अन्य कुछ प्रोजेक्ट शामिल हैं।
- प्रोजेक्ट को पाकिस्तान में वर्ष 2010 में ही मंज़ूरी दे दी गई थी, लेकिन अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियाँ जो प्रोजेक्ट को वित्तपोषित कर रही थीं, भारत के विरोध के कारण पीछे हट गई।
डायमर-भाषा बांध:
- डायमर-भाषा बांध खैबर पख्तूनख्वा (Khyber Pakhtunkhwa) के कोहिस्तान और गिलगित-बाल्टिस्तान के डायमर ज़िलों के बीच सिंधु नदी पर अवस्थित होगा।
- बांध लगभग 8 मिलियन एकड़ फीट (MAF) जलाशय क्षेत्र में विस्तृत है। बांध की ऊँचाई 272 मीटर होगी। यह दुनिया का सबसे लंबा रोलर कॉम्पैक्ट कंक्रीट (Roller Compact Concrete- RCC) बांध होगा
- पाकिस्तान द्वारा इस बहुउद्देश्यीय परियोजना को दो प्रमुख घटकों में विभाजित करने का निर्णय लिया गया।
- बांध का निर्माण सार्वजनिक क्षेत्र के वित्तपोषण द्वारा किया जाएगा।
- जबकि ऊर्जा परियोजना का निर्माण ‘स्वतंत्र बिजली उत्पादक’ (Independent Power Producer- IPP) मोड में विकसित किया जाना है।
भारत के लिये चिंता का विषय:
- डायमर-भाषा बांध का कुछ क्षेत्र गिलगित-बाल्टिस्तान में पड़ेगा।
- चीन इस प्रोजेक्ट को 'चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा' (China Pakistan Economic Corridor- CPEC) में शामिल करना चाहता है।
- जम्मू-कश्मीर क्षेत्र में चीन द्वारा लगातार दखल दिया जा रहा है। भारत-तथा पाकिस्तान के मध्य हस्ताक्षरित सिंधु-जल समझौते में चीन लगातार तीसरा पक्षकार बनने की कोशिश कर रहा है।
भारत को ऐसे समय में क्या करना चाहिये?
- भारत ने अभी भी सिंधु जल समझौते में आवंटित पश्चिमी नदियों (झेलम, चिनाब और सिंधु) में पानी के हिस्से का पूरी तरह से दोहन नहीं किया है।
- भारत को पाक अधिकृत कश्मीर (PoK) तथा गिलगित-बाल्टिस्तान में अपनी संप्रभुता के दावे को मज़बूती से रखना चाहिये।
सिंधु प्रणाली:
- सिंधु प्रणाली में मुख्यतः सिंधु, झेलम, चिनाब, रावी, ब्यास और सतलज नदियाँ शामिल हैं। इन नदियों के बहाव वाले क्षेत्र को मुख्यत: भारत और पाकिस्तान साझा करते हैं।
सिंधु जल समझौता (Indus Water Treaty):
- सिंधु जल समझौते के अनुसार, तीन पूर्वी नदियों (रावी, ब्यास और सतलज) के पानी पर भारत को पूरा हक दिया गया।
- शेष 3 पश्चिमी नदियों (झेलम, चिनाब, सिंधु) के पानी के बहाव को बाधारहित पाकिस्तान को देना तय किया गया था परंतु पश्चिमी नदियों के संबंध में भारत को निम्नलिखित कार्यों की छूट दी गई।
- भारत पश्चिमी नदियों पर केवल रन ऑफ द रिवर प्रोजेक्ट (जिनके तहत पानी को रोका नहीं जाता है) जलविद्युत परियोजनाएँ बना सकता है।
- भारत पश्चिमी नदियों के जल का केवल 20 प्रतिशत हिस्सा भंडारित अथवा उपयोग कर सकता है।
स्रोत: द हिंदू
सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना
प्रीलिम्स के लियेसेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना, उसकी भौगोलिक स्थिति मेन्स के लियेसेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना का महत्त्व तथा उससे उत्पन्न मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में कई पूर्व नौकरशाहों ने सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना (Central Vista redevelopment project) को लेकर अपनी चिंताएँ व्यक्त की हैं।
प्रमुख बिंदु
- वर्ष 2019 में आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय द्वारा सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना की परिकल्पना की गई थी।
- इस पुनर्विकास परियोजना में एक नए संसद भवन का निर्माण प्रस्तावित है। जो आकार में त्रिकोणीय होगा।
- इसके साथ ही एक केंद्रीय सचिवालय भी निर्मित किया जाएगा।
- इंडिया गेट से लेकर राष्ट्रपति भवन तक जाने वाली सड़क ‘राजपथ’ में भी परिवर्तन प्रस्तावित है।
- सेंट्रल विस्टा क्षेत्र में नॉर्थ व साउथ ब्लॉक को संग्रहालय में बदल दिया जाएगा और इसके स्थान पर नए भवनों का निर्माण किया जाएगा।
- इसके अतिरिक्त, इस क्षेत्र में स्थित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (Indira Gandhi National Centre for the Arts) को भी स्थानांतरित करने का प्रस्ताव है।
- इस क्षेत्र में विभिन्न मंत्रालयों व उनके विभागों के लिये कार्यालयों का भी निर्माण किया जाएगा।
- इस पुनर्विकास परियोजना में लगभग 20,000 करोड़ रुपए के व्यय होने की संभावना है।
सरकार का पक्ष
- संसद भवन की सुविधाएँ और बुनियादी ढाँचा मौजूदा मांग को पूरा करने के लिये अपर्याप्त है। ध्यातव्य है कि वर्ष 2026 के बाद लोकसभा व राज्यसभा में जनसंख्या के अनुसार, निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या में वृद्धि होनी है, ऐसे में मौज़ूदा संसद भवन आकार में छोटा है।
- केंद्र सरकार के मंत्रालय व उनके विभाग अन्य क्षेत्रों में फैले हैं, जिससे अंतर-विभागीय दायित्वों के निर्वहन में अनावश्यक विलंब होता है।
- मौज़ूदा भवन वर्ष 1911 में निर्मित हैं, जिनमें अधिकांश अपने संरचनात्मक जीवन को पूर्ण कर चुके हैं।
चिंताएँ
- इस पुनर्विकास परियोजना में बहुत बड़ी धनराशि की आवश्यकता पड़ेगी। वैश्विक महामारी के दौरान इतनी बड़ी राशि व्यय करना अच्छा निर्णय नहीं है।
- व्यापक पैमाने पर भवन निर्माण से क्षेत्र में पर्यावरण प्रदूषण बढ़ने की संभावना है।
- मंत्रालयों व विभागों के कार्यालय स्थापित होने से यह क्षेत्र आम जनता के लिये प्रतिबंधित हो जाएगा।
क्या है सेंट्रल विस्टा?
- दिल्ली में स्थित राष्ट्रपति भवन, संसद भवन, नार्थ ब्लॉक, साउथ ब्लॉक, इंडिया गेट और अन्य राष्ट्रीय अभिलेखागार जिस क्षेत्र में स्थित हैं, उसे सामूहिक रूप से सेंट्रल विस्टा कहते हैं। इसकी लंबाई लगभग 3.2 कि.मी है।
- दिसंबर 1911 में, किंग जॉर्ज पंचम ने भारत की राजधानी को कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित करने की घोषणा की। इसके उपरांत ही राजपथ के आस-पास के क्षेत्र में इन भवनों का निर्माण किया गया।
- इन भवनों के निर्माण का उत्तरदायित्व एडविन लुटियंस (Edwin Lutyens) व हर्बर्ट बेकर (Herbert Baker) को दिया गया।
स्रोत: द हिंदू
बेलारूस: ‘सामाजिक दूरी’ को न अपनाने वाला एकमात्र यूरोपीय देश
प्रीलिम्स के लिये:बेलारूस की भौगोलिक अवस्थिति मेन्स के लिये:COVID-19 और वैश्विक देशों की बदलती, आर्थिक-राजनीतिक स्थिति |
चर्चा में क्यों?
बेलारूस एकमात्र यूरोपीय देश है, जिसने COVID-19 महामारी के दौरान सामाजिक दूरी जैसे उपायों को नहीं अपनाया है। 2 मई, 2020 तक इस देश में COVID-19 से संक्रमित लोगों की संख्या 15,000 थी। पिछले 10 दिनों में यह संख्या दोगुनी हो गई है।
प्रमुख बिंदु:
- दक्षिण अमेरिकी देश ब्राज़ील जहाँ के राष्ट्रपति कोरोनोवायरस के जोखिमों को अनदेखा कर रहे हैं, की तुलना में बेलारूस में COVID-19 संक्रमित लोगों की संख्या तीन गुना अधिक है।
- बेलारूस में COVID-19 के नए मामलों की दैनिक संख्या 900 से अधिक है परिणामस्वरूप COVID-19 से यहाँ प्रति दिन लगभग 93 मौतें होती हैं।
- बेलारूस के उत्तर में राजधानी मिन्स्क (Minsk) और विटेबस्क (Vitebsk) शहर COVID-19 से सबसे अधिक प्रभावित हैं।
- बेलारूस एवं ब्राज़ील के अलावा निकारागुआ एवं तजाकिस्तान भी COVID-19 के जोखिमों को नज़रअंदाज़ कर रहे हैं।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization- WHO) के अनुसार, स्वच्छता एवं परीक्षण के उपायों के साथ-साथ सामाजिक दूरी COVID-19 से निपटने का सबसे प्रभावी उपकरण है।
- सर्वेक्षण से पता चलता है कि 70% बेलारूस निवासी पर्याप्त अलगाव से संबंधित उपायों के पक्ष में हैं। जबकि ब्राज़ील में यह संख्या 52% है।
- 28 अप्रैल, 2020 को WHO की एक रिपोर्ट में बेलारूस में COVID-19 महामारी की स्थिति को ‘चिंताजनक’ बताया गया और तुरंत ‘एक व्यापक रणनीति के कार्यान्वयन’ की मांग की गई जिसमें सामाजिक दूरी, परीक्षण प्रणालियों का उन्नयन और अंतर्राष्ट्रीय प्रवेश बिंदुओं में मानकीकृत प्रक्रियाएँ शामिल थी।
राजनीतिक संदर्भ:
- वर्ष 1991 में ‘सोवियत संघ रूस’ के विघटन के तीन वर्ष बाद 1994 में अलेक्जेंडर लुकाशेंको (Alexander Lukashenko) ने बेलारूस की सत्ता हासिल की। जिन्हें यूरोपीय महाद्वीप में ‘अंतिम यूरोपियन तानाशाह’ के नाम से संदर्भित किया जाता है।
- यद्यपि रूस उनका (अलेक्जेंडर लुकाशेंको) मुख्य राजनयिक एवं वाणिज्यिक साझेदार है किंतु दोनों देशों के एकीकरण के लिये राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन द्वारा हाल के दबाव के कारण इन दोनों देशों के संबंधों में खटास आई है।
- फरवरी 2020 में रूस ने ‘सस्ती ऊर्जा के बदले में बेलारूस का समावेश करने’ की शर्त बेलारूस के सामने रखी थी।
- गौरतलब है कि बेलारूस की अर्थव्यवस्था पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस पर निर्भर करती है जो रूस के द्वारा प्रदान की जाती है। इसलिये रूस के इस प्रस्ताव को ‘आर्थिक ब्लैकमेल’ के रूप में देखा गया था।
- ‘समावेशन प्रस्ताव’ को न मानने के कारण रूस ने बेलारूस को होने वाली ऊर्जा आपूर्ति में कटौती की परिणामतः बेलारूस को अपनी ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने के लिये अन्य देशों से संपर्क स्थापित करना पड़ रहा है।
COVID-19 और बेलारूस की अर्थव्यवस्था:
- स्थानीय प्रेस के अनुसार, अर्थव्यवस्था की बिगड़ती स्थिति के कारण बेलारूस ने COVID-19 के दौरान सामाजिक दूरी जैसे उपायों को नहीं अपनाया है।
- राष्ट्रपति के अनुसार, बेरोज़गारी दर को 0.5% से नीचे रखने के साथ-साथ GDP में लगातार तीन वर्षों तक वृद्धि ही एकीकरण प्रस्ताव के खिलाफ मुख्य कारक हैं।
- बेलारूस की मुद्रा (बेलारूसियन रूबल) ऊर्जा संकट एवं चीन को होने वाले निर्यात में गिरावट के कारण वर्ष 2020 की शुरुआत के बाद से इसमें 20 फीसदी की गिरावट आई है।
आगामी चुनाव:
- बेलारूस में आगामी 30 अगस्त, 2020 को राष्ट्रपति पद के लिये चुनाव होने वाले हैं जिनमें बिगड़ती अर्थव्यवस्था मुख्य मुद्दा बन गई है।
- यदि इस चुनाव में लुकाशेंको को जीत मिलती है तो यह उनका छठा कार्यकाल होगा।
वैश्विक संगठनों द्वारा वित्तीय मदद:
- 25 अप्रैल, 2020 को ‘अंतर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण और विकास बैंक’ (International Bank for Reconstruction and Development-IBRD) ने बेलारूस को लगभग 100 मिलियन डॉलर उधार दिये थे।
- बेलारूस अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से भी 5.4 बिलियन डॉलर प्राप्त करने की कोशिश कर रहा है।
COVID-19 से निपटने के लिये उठाये गए कुछ कदम:
- राजनीतिक कार्यकर्त्ता एवं बेलारूस के विपक्षी नेताओं ने 23 मार्च से 30 अप्रैल के बीच ‘पीपुल्स क्वारंटाइन’ अभियान का आयोजन किया था। यह अभियान यातायात एवं भौतिक संपर्क को कम करने के लिये था ताकि वायरस के प्रसार से बचा जा सके।
- सर्वेक्षण से पता चलता है कि इस अवधि में मिन्स्क मेट्रो पर यात्रियों की संख्या में 25 फीसदी की गिरावट आई। जबकि रेस्त्रां के राजस्व में 80 फीसदी और गैर खाद्य पदार्थों की बिक्री में 20 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई।
- बेलारूस की सरकार ने देश में उड़ानों की संख्या को कम कर दिया है और महामारी के कारण विदेशियों के लिये विस्तारित वीज़ा का विस्तार किया है।
- स्वरोज़गार, सूक्ष्म उद्यमी, मौसमी मज़दूर, छात्र, ग्रामीण श्रमिक एवं सेवानिवृत्त कर्मचारी COVID-19 से कम असुरक्षित हैं क्योंकि इनमें से कई लोगों ने सोवियत संघ के दौरान निर्मित अपने घरों (सोवियत कम्यून), ग्रामीण इलाकों में क्वारंटाइन करने का विकल्प चुना है।
- यदि संक्षेप में कहा जाए तो बेलारूस की जनता अपने बलबूते पर COVID-19 से निपटने के लिये विभिन्न तरीके अपना रही है।
भारत और बेलारूस संबंध:
- वर्ष 2017 में बेलारूस और भारत ने अपने राजनयिक संबंधों की स्थापना की 25वीं सालगिरह मनाई।
- भारत और बेलारूस ने तेल एवं गैस सहित विभिन्न क्षेत्रों जैसे- शिक्षा एवं खेल में सहयोग को बढ़ावा देने के लिये अपने द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत बनाने की दिशा में कार्य कर रहे हैं।
- दोनों देश संयुक्त राष्ट्र और विशेषत: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार किये जाने की आवश्यकता पर बल देते हैं ताकि इसे समसामयिक वास्तविकताओं को अधिक प्रतिनिधित्त्वकारी बनाया जा सके तथा उभरती चुनौतियों एवं संकटों पर अधिक प्रभावी तरीके से निपटा जा सके।
- बेलारूस ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट के लिये भारत की उम्मीदवारी को अपने सुदृढ़ समर्थन की पुन:पुष्टि की।
- हाल के वर्षों में, बेलारूस भारत के लिये पोटाश उर्वरक के एक अच्छे स्रोत के रूप में उभरा है जो कृषि क्षेत्र के लिये लाभदायक है।
- भारत से बेलारूस के लिये औषधियों का निर्यात होता है, भारतीय कंपनियाँ बेलारूस में भेषजिक क्षेत्र में प्रौद्योगिकी एवं निवेश उपलब्ध कराकर एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।
आगे की राह:
- उल्लेखनीय है कि COVID-19 के कारण जहाँ एक तरफ वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंदी छाई है तो वहीं दूसरी तरफ वैश्विक राजनीति भी परिवर्तन की ओर अग्रसर है।
- इस दशा में बेलारूस के सामने जहाँ एक ओर COVID-19 से अपने देश के लोगों को बचाना है तो वहीं दूसरी ओर ‘रूस के समावेशन प्रस्ताव’ से बचने के लिये अपनी अर्थव्यवस्था को मज़बूत करना है जिससे देश को आर्थिक एवं राजनीतिक गतिरोध से बचाया जा सके।
बेलारूस: एक तथ्यात्मक विवरण
- सोवियत संघ के विघटन से पहले बेलारूस को रूसी नाम ‘बेलोरूसिया’ से जाना जाता था। यह पूर्वी यूरोप में स्थित एक भू-आबद्ध देश है।
- यह उत्तर-पूर्व में रूस, दक्षिण में यूक्रेन, पश्चिम में पोलैंड और उत्तर-पश्चिम में लिथुआनिया एवं लातविया से घिरा हुआ है।
- इसकी राजधानी और सर्वाधिक जनसंख्या वाला नगर मिन्स्क है। यहाँ के कुल क्षेत्रफल का लगभग 40% हिस्सा वनों से आच्छादित है।
- इस देश की तीन प्रमुख नदियाँ नेमान (Neman), प्रिप्याट (Pripyat) एवं नीपर (Dnieper) हैं। नेमान नदी पश्चिम की ओर बहते हुए बाल्टिक सागर में गिरती है जबकि प्रिप्याट नदी पूर्व दिशा में बहती है और नीपर में मिल जाती है। नीपर नदी दक्षिण की ओर बहते हुए काला सागर में गिरती है।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
आर्थिक पैकेज के दूसरे भाग की घोषणा
प्रीलिम्स के लियेआत्मनिर्भर भारत अभियान, एक राष्ट्र एक राशन कार्ड योजना, शिशु मुद्रा ऋण, क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी योजना, कैम्पा फंड मेन्स के लियेCOVID-19 जनित आर्थिक संकट से निपटने के लिये सरकार द्वारा किये गए उपाय |
चर्चा में क्यों?
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने COVID-19 के कारण प्रवासी मज़दूरों, शहरी गरीबों, छोटे व्यापारियों और छोटे किसानों आदि के समक्ष मौजूद कठिनाइयों को दूर करने के लिये आर्थिक पैकेज के दूसरे भाग की घोषणा की है।
प्रमुख बिंदु
- उल्लेखनीय है कि 12 मई, 2020 को प्रधानमंत्री ने ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ का आह्वान करते हुए 20 लाख करोड़ रुपए के विशेष आर्थिक और व्यापक पैकेज की घोषणा की थी।
- साथ ही उन्होंने ‘आत्मनिर्भर भारत’ के पाँच स्तंभों यथा अर्थव्यवस्था, अवसंरचना, प्रौद्योगिकी, गतिशील जनसांख्यिकी और मांग को भी रेखांकित किया था।
- प्रधानमंत्री ने अपने वक्तव्य में COVID-19 महामारी से पहले तथा बाद के समय पर चर्चा करते हुए कहा कि 21वीं सदी के भारत के सपने को साकार करने के लिये देश को ‘आत्मनिर्भर’ बनाना आवश्यक है।
- ध्यातव्य है कि ‘आत्मनिर्भर भारत’ के निर्माण में वैश्वीकरण का बहिष्करण नहीं किया जाएगा अपितु स्वयं के विकास के माध्यम से विश्व के विकास में मदद की जाएगी।
- इसी अभियान के तहत कुछ ही दिनों पूर्व वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आर्थिक पैकेज के पहले भाग की घोषणा की थी, जिसमें MSME की परिभाषा में बदलाव जैसे विभिन्न उपाय शामिल थे।
वित्त मंत्री द्वारा घोषित आर्थिक पैकेज का दूसरा भाग
- प्रवासियों को 2 महीने के लिये मुफ्त खाद्यान्न की आपूर्ति
- प्रवासी कामगारों के लिये सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को प्रति कामगार दो महीनों अर्थात् मई और जून, 2020 के लिये प्रति महीने प्रति कामगार 5 किलोग्राम की दर से खाद्यान्न और प्रति परिवार 1 किलोग्राम चना का मुफ्त आवंटन किया जाएगा।
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के दायरे में नहीं आने वाले अथवा राज्य/ केंद्र शासित प्रदेशों में बिना राशन कार्ड वाले ऐसे प्रवासी कामगार भी इस योजना के पात्र होंगे, जो वर्तमान में किसी क्षेत्र में फंसे हुए हैं।
- राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को इस योजना के तहत लक्षित वितरण के लिये एक तंत्र विकसित करने का परामर्श दिया जाएगा।
- इसके लिये 8 लाख मीट्रिक टन (Lakh Metric Tonnes-LMT) खाद्यान्न और 50,000 मीट्रिक टन (MT) चने का आवंटन किया जाएगा। इस योजना पर होने वाला कुल 3,500 करोड़ रुपए के व्यय का वहन भारत सरकार द्वारा किया जाएगा।
- ‘एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड’ योजना का विस्तार
- राशन कार्डों की पोर्टेबिलिटी की पायलट योजना (‘एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड’ योजना) का 23 राज्यों तक विस्तार किया जाएगा।
- इसके माध्यम से अगस्त, 2020 तक राशन कार्डों की राष्ट्रीय स्तर पर पोर्टेबिलिटी के द्वारा लगभग 67 करोड़ लाभार्थियों यानी PDS के तहत आने वाली 83 प्रतिशत आबादी को इसके दायरे में लाया जाएगा।
- 100 प्रतिशत राष्ट्रीय पोर्टेबिलिटी के लक्ष्य को मार्च, 2021 तक प्राप्त कर लिया जाएगा।
- इस योजना से एक प्रवासी कामगार और उनके परिवार के सदस्य देश की किसी भी ‘फेयर प्राइस शॉप’ (Fair Price Shops) से PDS का लाभ प्राप्त करने में सक्षम हो जाएंगे। इससे स्थान परिवर्तन करने वाले प्रवासी कामगार देश के किसी भी हिस्से में PDS लाभ लेने में सक्षम हो जाएंगे।
- सस्ते किराए के आवास परिसरों की योजना
- केंद्र सरकार प्रवासी श्रमिकों और शहरी गरीबों के लिये सस्ते किराए पर रहने की सुविधा प्रदान करने हेतु एक योजना शुरू करेगी। सस्ते किराए के ये आवासीय परिसर प्रवासी श्रमिकों, शहरी गरीबों और छात्रों आदि को सामाजिक सुरक्षा और गुणवत्तापूर्ण जीवन प्रदान करेंगे।
- वित्त मंत्री के अनुसार, यह कार्य शहरों में सरकारी वित्त पोषित मकानों को रियायती माध्यम से सार्वजनिक निजी भागीदारी (PPP) मॉडल के तहत सस्ते किराए के आवासीय परिसरों के रूप में परिवर्तित करके किया जाएगा।
- शिशु मुद्रा ऋण के तहत ब्याज की छूट
- भारत सरकार 50,000 रुपए से कम शिशु मुद्रा ऋण लेने वालों में शीघ्र भुगतान करने वाले लोगों को 12 महीने की अवधि के लिये 2 प्रतिशत की ब्याज छूट प्रदान करेगी।
- शिशु मुद्रा ऋण लेने वाले लोगों को इस शोषण के तहत लगभग 1,500 करोड़ रुपए की राहत मिलेगी।
- स्ट्रीट वेंडरों के लिये 5,000 करोड़ रुपए की ऋण सुविधा
- उल्लेखनीय है कि स्ट्रीट वेंडरों पर मौजूदा स्थिति का सर्वाधिक प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है, उनको ऋण तक आसान पहुँच की सुविधा प्रदान करने के लिये एक महीने के भीतर एक विशेष योजना शुरू की जाएगी ताकि उन्हें अपने व्यवसायों को फिर से शुरू करने में सक्षम बनाया जा सके।
- इस योजना के तहत प्रत्येक उद्यम के लिये 10,000 रुपए की प्रारंभिक कार्यशील पूंजी की बैंक ऋण सुविधा दी जाएगी। ज्ञात हो कि यह योजना शहर के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों के विक्रेताओं को भी कवर करेगी जो आसपास के शहरी इलाकों में व्यवसाय करते हैं।
- अनुमान के अनुसार, 50 लाख स्ट्रीट वेंडर इस योजना के तहत लाभान्वित होंगे और उन तक 5,000 करोड़ रुपए का ऋण प्रवाहित होगा।
- क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी योजना (Credit Linked Subsidy Scheme) का विस्तार
- मध्यम आय समूह के लिये (6 से 18 लाख रुपए के मध्य वार्षिक आय) क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी योजना (Credit Linked Subsidy Scheme) का मार्च 2021 तक विस्तार किया जाएगा।
- उल्लेखनीय है कि क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी स्कीम (CLSS) प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY) का एक घटक है जिसके तहत ऋण सब्सिडी प्रदान की जाती हैं। केंद्र सरकार द्वारा इस योजना की शुरुआत मुख्य रूप से मध्यम आय समूह वाले लोगों के लिये वर्ष 2017 में की गई थी। इस योजना का उद्देश्य आम लोगों को होम लोन (Home Loan) के लिये प्रोत्साहन देना था, ताकि लोग अपना घर खरीद सकें और आवासन क्षेत्र में अधिकाधिक निवेश हो सके।
- इससे वित्तीय वर्ष 2020-21 के दौरान 2.5 लाख मध्यम आय वाले परिवारों को लाभ होगा और आवासन क्षेत्र (Housing Sector) में 70,000 करोड़ रुपए से अधिक का निवेश होगा।
- आवास क्षेत्र को बढ़ावा देकर ये बड़ी संख्या में नौकरियाँ पैदा करेगा और इस्पात, सीमेंट, परिवहन व अन्य निर्माण सामग्री की मांग को प्रोत्साहित करेगा, जिससे अर्थव्यवस्था को पुनः पटरी पर लाने में मदद मिलेगी।
- मध्यम आय समूह के लिये (6 से 18 लाख रुपए के मध्य वार्षिक आय) क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी योजना (Credit Linked Subsidy Scheme) का मार्च 2021 तक विस्तार किया जाएगा।
- रोज़गार सृजन के लिये कैम्पा फंड (CAMPA Funds) का उपयोग
- क्षतिपूरक वनीकरण कोष प्रबंधन एवं योजना प्राधिकरण (Compensatory Afforestation Management & Planning Authority-CAMPA) के अंतर्गत लगभग 6000 करोड़ रुपए की राशि का प्रयोग शहरी क्षेत्रों सहित वनीकरण एवं वृक्षारोपण कार्यों, वन प्रबंधन, मृदा एवं आर्द्रता संरक्षण कार्यों, वन सरंक्षण, वन एवं वन्यजीव संबंधी बुनियादी सुविधाओं के विकास, वन्यजीव संरक्षण एवं प्रबंधन आदि में किया जाएगा।
- किसानों के लिये 30,000 करोड़ रुपए की अतिरिक्त आपातकालीन कार्यशील पूंजी
- ग्रामीण सहकारी बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की फसल ऋण संबंधी आवश्यकता को पूरा करने के लिये राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (NABARD) द्वारा 30,000 करोड़ रुपए की अतिरिक्त पुनर्वित्तीयन सहायता प्रदान की जाएगी।
- देश भर में इससे लगभग 3 करोड़ किसानों को फायदा होगा, जिनमें अधिकांश छोटे और सीमांत किसान शामिल हैं, इससे किसानों की रबी की फसल कटाई के बाद और खरीफ फसल की मौजूदा ज़रूरते पूरी होंगी।
स्रोत: पी.आई.बी.
ऊर्जा संक्रमण सूचकांक- 2020
प्रीलिम्स के लिये:ऊर्जा संक्रमण सूचकांक- 2020 मेन्स के लिये:ऊर्जा संक्रमण की दिशा में भारत की स्थिति |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘विश्व आर्थिक मंच’ (World Economic Forum- WEF) द्वारा ‘ऊर्जा संक्रमण सूचकांक’ (Energy Transition Index- ETI)- 2020 जारी किया गया। इसमें दुनिया के 115 देशों की ऊर्जा प्रणाली के प्रदर्शन स्तर पर सर्वेक्षण किया गया है।
प्रमुख बिंदु:
- यह सूचकांक ऊर्जा क्षेत्र में 115 देशों 'नेट-शून्य उत्सर्जन' (Net-Zero Emissions) की दौड़ में अग्रणी देशों तथा उनकी स्थिति का विश्लेषण करती है।
- ‘नेट-शून्य उत्सर्जन’ उस स्थिति को कहा जाता है मानव द्वारा उत्सर्जित ‘ग्रीनहाउस गैस’ (Greenhouse Gas- GHG) को वायुमंडल से हटाकर संतुलित कर दिया जाए।
- विश्व आर्थिक मंच वर्ष 1971 में स्थापित एक गैर-लाभकारी संस्था है।
सूचकांक के आयाम:
- ऊर्जा संक्रमण की दिशा में देशों की तैयारी की गणना निम्नलिखित 6 संकेतकों के आधार पर की जाती है:
- पूंजी और निवेश;
- विनियमन और राजनीतिक प्रतिबद्धता;
- संस्थान और शासन;
- संस्थान और अभिनव व्यावसायिक वातावरण;
- मानव पूंजी एवं उपभोक्ता भागीदारी;
- ऊर्जा प्रणाली संरचना;
महत्त्वपूर्ण प्रणालियों का प्रदर्शन मापन:
- इसका मापन ऊर्जा त्रिकोण (Energy Triangle) के निम्नलिखित संकेतकों के आधार पर किया जाता है।
- आर्थिक विकास और वृद्धि;
- ऊर्जा की पहुँच और सुरक्षा;
- पर्यावरणीय स्थिरता;
शीर्ष प्रदर्शनकर्त्ता देश:
- स्वीडन लगातार तीसरे वर्ष समग्र ETI रैंकिंग में शीर्ष पर स्थान पर रहा है, उसके बाद स्विट्जरलैंड और फिनलैंड का स्थान हैं।
- शीर्ष स्थान पर वे देश रहे हैं जिन्होंने अपने ऊर्जा आयात तथा ऊर्जा सब्सिडी में कमी की है तथा राष्ट्रीय जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने की दिशा में मज़बूत राजनीतिक प्रतिबद्धता व्यक्त की है।
- G-20 देशों में से केवल यूनाइटेड किंगडम और फ्रांँस ही शीर्ष 10 में शामिल हैं, जबकि शेष अन्य छोटे राष्ट्र हैं।
प्रमुख देशों की रैंकिंग:
देश |
ऊर्जा संक्रमण सूचकांक- 2020 में स्थान |
चीन |
78 |
अमेरिका |
32 |
भारत |
74 |
- वर्ष 2015 के बाद से 115 देशों में से केवल 11 देशों के ETI स्कोर में लगातार सुधार देखा गया है। अर्जेंटीना, चीन, भारत और इटली ऊर्जा संक्रमण की दिशा में लगातार सुधार करने वाले प्रमुख देशों में से हैं।
- अमेरिका पहली बार शीर्ष 25 देशों की सूची से बाहर रहा है क्योंकि अमेरिका की ‘ऊर्जा संक्रमण नीतियों’ में हाल ही में अनिश्चितता देखी गई है।
भारत की रैंकिंग और कारण:
- भारत ने ऊर्जा त्रिभुज के तीनों आयामों में सुधार किया है तथा भारत ETI-2019 के 76 वें स्थान से दो स्थानों का सुधार करके 74 वें स्थान पर आ गया है।
- भारत सरकार वर्ष 2027 तक 275 GW नवीनीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य प्राप्ति की दिशा में उठाए गए कदमों के कारण ही भारत की रैंकिंग में सुधार देखा गया है।
COVID-19 महामारी का प्रभाव:
- COVID-19 महामारी के ऊर्जा क्षेत्र को निम्नलिखित तरीकों से प्रभावित किया है:
- वैश्विक ऊर्जा मांग में लगभग एक तिहाई की गिरावट;
- ऊर्जा निवेश तथा परियोजनाओं का रूकना या विलंबित होना;
- ऊर्जा क्षेत्र से जुड़े लोगों के रोजगार का प्रभावित होना;
- परंतु भविष्य की ऊर्जा की ज़रूरतों को कैसे पूरा किया जाए, महामारी इस पर पुनर्विचार करने का अवसर प्रदान करता है।
आगे की राह:
- वैश्विक ऊर्जा संकटों से निपटने की दिशा में ऊर्जा नीतियों, रोडमैप तथा शासन की रूपरेखा को अधिक मज़बूती के साथ लागू करने की आवश्यकता है।
- महामारी संकट ऊर्जा बाज़ारों में अपरंपरागत हस्तक्षेप पर विचार करने तथा ऊर्जा संक्रमण की दिशा में वैश्विक सहयोग करने का अवसर प्रदान करता है।
- COVID-19 महामारी से उभरने के बाद सतत् ‘पृथ्वी 2.0’ के निर्माण की दिशा में सामूहिक रूप से कार्य करने की आवश्यकता है।
विश्व आर्थिक मंच की अन्य महत्त्वपूर्ण रिपोर्ट/सूचकांक:
स्रोत: द हिंदू
वैश्विक वन संसाधन मूल्यांकन, 2020
प्रीलिम्स के लियेवैश्विक वन संसाधन मूल्यांकन, 2020 मेन्स के लियेवनीकरण के उपाय और इस संदर्भ में किये जा रहे प्रयास |
चर्चा में क्यों?
वैश्विक वन संसाधन मूल्यांकन (Global Forest Resources Assessment-FRA) 2020 के अनुसार, वर्ष 2015 से वर्ष 2020 के मध्य वैश्वक स्तर पर वनों की कटाई की दर में गिरावट आई है, जो कि स्पष्ट तौर पर दुनिया भर में स्थायी प्रबंधन हेतु अपनाए जा रहे उपायों का एक परिणाम है।
प्रमुख बिंदु
- वैश्विक वन संसाधन मूल्यांकन (FRA), 2020 के अनुसार, वर्ष 2015-20 में वनों की कटाई की दर 10 मिलियन हेक्टेयर (Million Hectares-MHA) तक पहुँच गई है, जो कि वर्ष 2010-15 में 12 मिलियन हेक्टेयर (MHA) थी।
- रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 1990 के बाद से दुनिया में 178 मिलियन हेक्टेयर (MHA) वनों को नष्ट कर दिया गया है, जो कि स्वयं लीबिया के आकार का क्षेत्र है।
- हालाँकि, वर्ष 1990-2020 के दौरान कुछ देशों में वनों की कटाई में कमी के कारण शुद्ध वन हानि की दर (Net Forest Loss Rate) में काफी कमी आई है, साथ ही कई अन्य देशों में वनीकरण और वनों के प्राकृतिक विस्तार के कारण वन क्षेत्र में वृद्धि हुई है।
- शुद्ध वन हानि की दर 1990 के दशक में 7.8 MHA प्रति वर्ष से घटकर वर्ष 2000-2010 में 5.2 MHA प्रति वर्ष और 2010-20 में 4.7 MHA प्रति वर्ष हो गई।
- विश्व के विभिन्न क्षेत्रों की बात करें तो अफ्रीका में वर्ष 2010-2020 के दौरान शुद्ध वन हानि की दर सर्वाधिक (3.9 MHA) है, जिसके बाद 2.6 MHA के साथ दक्षिण अमेरिका का स्थान है।
- वहीं दूसरी ओर वर्ष 2010-20 के दौरान एशिया में वन क्षेत्रों में सर्वाधिक वृद्धि दर्ज की गई, जिसके पश्चात् ओशिनिया और यूरोप का स्थान है।
- रिपोर्ट के अनुसार, विश्व का कुल वन क्षेत्र 4.06 बिलियन हेक्टेयर (BHA) है, जो कि कुल भूमि क्षेत्र का तकरीबन 31 प्रतिशत है। ध्यातव्य है कि यह क्षेत्र प्रति व्यक्ति 0.52 हेक्टेयर के समान है। विश्व के वनों का सबसे बड़ा अनुपात उष्णकटिबंधीय (45 प्रतिशत) वनों का है।
- विश्व के 54 प्रतिशत से अधिक वन केवल पाँच देशों (रूस, ब्राज़ील, कनाडा, अमेरिका और चीन) में ही मौजूद हैं।
वैश्विक वन संसाधन मूल्यांकन
(Global Forest Resources Assessment-FRA)
- वैश्विक वन संसाधन मूल्यांकन (FRA) विश्व के वन संसाधनों की स्थिति और रुझानों पर रिपोर्ट प्रदर्शित करता है।
- वैश्विक वन संसाधन मूल्यांकन (FRA) का प्रकाशन संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (Food and Agriculture Organization-FAO) के तहत वानिकी विभाग (Forestry Department) द्वारा किया जाता है।
- FRA के अंतर्गत विश्व के वन क्षेत्र संबंधी आँकड़ों के साथ-साथ कई अन्य तथ्य जैसे- भूमि का स्वामित्त्व, भूमि तक पहुँच का अधिकार, स्थायी वन प्रबंधन, वन संरक्षण के लिये कानूनी और संस्थागत ढाँचे और वनों के स्थाई उपयोग आदि की भी रिपोर्ट करता है।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
डायरेक्ट सीडिंग ऑफ राइस
प्रीलिम्स के लिये:डायरेक्ट सीडिंग ऑफ राइस मेन्स के लिये:डायरेक्ट सीडिंग ऑफ राइस से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में अब पारंपरिक रोपाई (Conventional Transplanting) के स्थान पर 'डायरेक्ट सीडिंग ऑफ राइस' (Direct Seeding of Rice- DSR) तकनीक को अपनाने के लिये किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा है।
प्रमुख बिंदु:
- उल्लेखनीय है कि COVID-19 की वज़ह से पलायन के कारण प्रवासी किसानों को मज़दूरों की कमी का सामना करना पड़ रहा है।
- एक अनुमान के अनुसार, पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों को आगामी खरीफ मौसम में धान की रोपाई हेतु लगभग 10 लाख मज़दूरों की कमी का सामना करना पड़ सकता है। ये सभी मज़दूर (अत्यधिक उत्तर प्रदेश और बिहार के निवासी) जुलाई की शुरुआत में धान की रोपाई हेतु पंजाब और हरियाणा राज्यों में आते हैं।
पारंपरिक रोपाई (Conventional Transplanting):
- पारंपरिक रोपाई के तहत सबसे पहले किसानों द्वारा नर्सरी (संपूर्ण खेत का 5-10% क्षेत्र) तैयार कर धान के बीज की बुआई की जाती है।
- 25-35 दिनों के पश्चात् इन धान के छोटे-छोटे पौधों को नर्सरी से हटाकर कर पूरे खेत में बुआई की जाती है।
- बारिश ने होने की स्थिति में धान में लगभग 4-5 सेमी. पानी की गहराई बनाए रखने हेतु लगभग रोजाना सिंचाई करनी पड़ती है।
- जलमग्न अवस्था में ऑक्सीजन की कमी के कारण खेत में खर-पतवारों की वृद्धि नहीं होती है, जबकि ‘एरेंचिमा ऊतक’ (Aerenchyma Tissues) के कारण धान की जड़ों में वायु पहुँचती रहती है। अतः जल धान के लिये एक दवा के रूप में कार्य करता है।
डायरेक्ट सीडिंग ऑफ राइस
(Direct Seeding of Rice- DSR):
- ‘डायरेक्ट सीडिंग ऑफ राइस’ के तहत नर्सरी तैयार करने की आवश्यकता नहीं होती है।
- इसके तहत ट्रैक्टर द्वारा संचालित मशीनों की मदद से खेत में बीज़ों की बुआई की जाती है।
- इस विधि के तहत किसानों को बीज़ों की बुआई से पूर्व जमीन को समतल तथा एक बार सिंचाई करनी होती है।
- खेत की मृदा में आवश्यक नमी प्राप्त होने के पश्चात् दो बार जुताई करनी होती है जिसके बाद बीजों की बुआई और तृणनाशक दवाओं का छिड़काव किया जाता है।
- दरअसल तृणनाशक (Herbicides) एक ऐसी दवा है जो खरपतवार को नियंत्रित करने में सहायक साबित होती है। ‘डायरेक्ट सीडिंग ऑफ राइस’ विधि के तहत इसका दो बार छिड़काव किया जाता हैं-
- धान के अंकुरण से पूर्व।
- बुआई के 20-25 दिन पश्चात्।
- उल्लेखनीय है कि पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (Punjab Agricultural University) ने एक ‘लकी सीड ड्रिल’ भी विकसित किया है जिसकी मदद से बीज की बुआई एवं खरपतवारों को नियंत्रित करने हेतु तृणनाशक (हर्बिसाइड्स) का छिड़काव एक साथ किया जा सकता है।
डायरेक्ट सीडिंग ऑफ राइस के लाभ:
- पानी की बचत।
- कम संख्या में मज़दूरों की आवश्यकता।
- श्रम लागत में कमी।
डायरेक्ट सीडिंग ऑफ राइस की खामियाँ:
- बाज़ार में तृणनाशक की कमी।
- ‘डायरेक्ट सीडिंग ऑफ राइस’ तकनीक के तहत धान की रोपाई में प्रति एकड़ 8-10 किग्रा. बीज की आवश्यकता होती है, जबकि पारंपरिक रोपाई में मात्र 4-5 किग्रा. बीज की ही आवश्यकता होती है।
- बुआई से पूर्व जमीन को समतल की आवश्यकता के कारण प्रति एकड़ 1000 रुपए का अतिरिक्त खर्च आता है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
पार्किंसंस रोग हेतु तकनीक
प्रीलिम्स के लिये:पार्किंसंस रोग मेन्स के लिये:पार्किंसंस रोग की गई अध्ययन से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान- भारतीय खनि विद्यापीठ, धनबाद (Indian Institute of Technology- Indian School of Mines) और वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद- भारतीय रासायनिक जीव विज्ञान संस्थान, कोलकाता (Council of Scientific & Industrial Research- Indian Institute of Chemical Biology, Kolkata) ने एक तकनीक विकसित की है जो पार्किंसंस रोग (Parkinson’s disease) के अध्ययन में मददगार साबित हो सकती है।
प्रमुख बिंदु:
- पार्किंसंस रोग (Parkinson’s disease):
- पार्किंसंस रोग एक ऐसी बीमारी है, जिसमें तंत्रिका तंत्र लगातार कमज़ोर होते जाते हैं। इस बीमारी का अब तक कोई इलाज़ उपलब्ध नहीं है।
- सामान्यतः 60 वर्ष से अधिक आयु के लोगों में पार्किंसंस रोग के लक्षण दिखते हैं किंतु यह रोग किसी भी उम्र में हो सकता है।
- लक्षण:
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शरीर में कंपन, जकड़न, शिथिल गतिशीलता, झुककर चलना, याद्दाश्त संबंधी समस्याएँ और व्यवहार में बदलाव।
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पार्किंसंस रोग पर अध्ययन:
- पार्किंसंस रोग से पीड़ित लोगों के मस्तिष्क के मध्य (सब्सटेनटिया नाइग्रा- Substantia Nigra) भाग में अल्फा सिन्यूक्लिन (alpha synuclein- ASyn) नामक प्रोटीन अत्यधिक मात्रा में एकत्रित हो जाती है।
- दुनियाभर के शोधकर्त्ताओं का मत है कि अल्फा सिन्यूक्लिन नामक प्रोटीन का एकत्रीकरण पार्किंसंस रोग की वृद्धि में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- दुनियाभर के कई शोधकर्त्ता पार्किंसंस रोग से संबंधित यह अध्ययन कर रहे हैं कि प्रोटीन कैसे एकत्रित होती है और किस प्रकार यह एकत्रीकरण न्यूरोनल कोशिकाओं को खत्म कर देता है।
- अल्फा सिन्यूक्लिन नामक प्रोटीन (एकत्रीकरण) के अंतिम बिंदु पर छोटे पतले फाइबर या ‘फाइब्रिल्स’ (Fibrils) का निर्माण होता है
- इस ‘फाइब्रिल्स’ में प्रोटीन की एक संरचना होती है जिसे क्रॉस बीटा फोल्ड (Cross Beta Fold) कहा जाता है।
- फाइब्रिल्स का विस्तृत अध्ययन एक डाई थियोफ्लेविन टी (Dye Thioflavin T) की मदद से किया गया है। यह डाई क्रॉस-बीटा संरचना को जोड़ती है और प्रकाश उत्सर्जित करती है।
- इन अध्ययनों की मदद से दवा विकसित की गई लेकिन ये दवाएँ नैदानिक परीक्षणों में सफल नहीं हो पाई।
- इन विफलताओं ने शोधकर्त्ताओं को यह सोचने पर मज़बूर कर दिया है कि शायद उन्हें न केवल फ़िब्रिल्स को समझने की आवश्यकता है, बल्कि प्रोटीन एकत्रीकरण की प्रक्रिया से पूर्व उत्पन्न होने वाले विभिन्न मध्यवर्तियों को भी समझना आवश्यक है।
- भारतीय शोधकर्त्ताओं द्वारा विकसित की गई तकनीक:
- भारतीय शोधकर्त्ताओं ने जेड-स्कैन (Z-scan) तकनीक विकसित की है। इस तकनीक का उपयोग करते हुए बायोमैटिरियल्स के असमान व्यवहार का अध्ययन किया जा सकता है।
- शोधकर्त्ताओं ने पाया कि जेड-स्कैन तकनीक पार्किंसंस रोग पर अध्ययन में मददगार साबित हो सकती है।
- यह तकनीक अल्फा सिन्यूक्लिन नामक प्रोटीन के एकत्रीकरण के शुरुआती और बाद के दोनों चरणों की निगरानी में मदद कर सकती है।
- शोधकर्त्ताओं ने पाया कि प्रोटीन में मोनोमेरिक स्थिति से लेकर फाइब्रिलर संरचना तक असमानता है। साथ ही शोधकर्त्ताओं ने इससे संबंधित तथ्य भी प्रस्तुत किये हैं-
- प्रोटीन के अन्य अनुरूपों की तुलना में फाइब्रिल्स की विषमता की ताकत अत्यधिक होती है।
- एकत्रीकरण के विभिन्न चरणों में एक विशिष्ट विषमता है जिसे इस तकनीक की सहायता से लक्षित किया जा सकता है।
- लगभग 24 घंटों की देरी से बनाने वाले ऑलिगोमर्स जो विषमता में बदलाव के संकेत देते हैं।
- अल्फा सिन्यूक्लिन में सबसे खतरनाक देर से बनने वाले ऑलिगोमर्स को माना जाता है। अतः इस तकनीक की मदद से इस प्रोटीन पर आसानी से नज़र रखा जा सकता है जो दवा विकसित करने में कारगर साबित हो सकती है।
स्रोत: पीआईबी
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 15 मई, 2020
‘होप’ पोर्टल
हाल ही में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने राज्य कुशल तथा अकुशल कामगार युवाओं का डाटा बेस तैयार करने के उद्देश्य से ‘होप’ (HOPE- Helping Out People Everywhere) नाम से एक पोर्टल की शुरुआत की है। इस पहल का प्रमुख उद्देश्य युवाओं को रोज़गार के साधन उपलब्ध कराना है। विदित हो कि कुछ दिन राज्य के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मुख्यमंत्री स्वरोज़गार योजना का शुभारंभ किया था, इस योजना के सुचारु कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने और योजना के साथ समन्वय स्थापित करने में यह पोर्टल महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। उत्तराखंड सरकार का यह पोर्टल राज्य के कुशल तथा अकुशल कामगार युवाओं और उत्तराखंड के कौशल विकास विभाग के माध्यम से प्रशिक्षण प्राप्त करने के इच्छुक लोगों के लिये एक सेतु के रूप में कार्य करेगा। इस पोर्टल के डाटा बेस का उपयोग राज्य के सभी विभागों तथा अन्य रोज़गार प्रदाताओं द्वारा युवाओं को स्वरोज़गार/रोज़गार से जोड़ने के लिये किया जाएगा। इस पोर्टल का निर्माण राज्य के IT विभाग, कौशल विकास विभाग, नियोजन विभाग एवं राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (National Informatics Centre-NIC) द्वारा आपसी समन्वय के माध्यम से किया गया है। उल्लेखनीय है कि कोरोनावायरस के कारण भारत समेत विश्व के लगभग सभी देश प्रभावित हुए हैं, साथ ही इसके प्रसार को रोकने के लिये देश भर में लॉकडाउन भी लागू किया है, इस लॉकडाउन के कारण दैनिक आजीविका के अभाव में कई लोग अपने राज्य वापस लौट रहे हैं, ऐसे में इन लोगों को आजीविका का उचित साधन उपलब्ध कराना राज्य सरकार के लिये काफी महत्त्वपूर्ण चुनौती बन गई है।
उद्धव ठाकरे
महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और आठ अन्य उम्मीदवारों को राज्य विधान परिषद के लिये निर्विरोध निर्वाचित घोषित किया गया है। ध्यातव्य है कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने 28 नवंबर, 2019 को राज्य विधानमंडल के किसी भी सदन का सदस्य हुए बिना राज्य के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली थी। किंतु संविधान के अनुच्छेद 164 (4) के अनुसार, उन्हें 27 मई से पूर्व राज्य विधानमंडल के किसी भी सदन में निर्वाचित होना अनिवार्य था, यदि ऐसा नहीं होता तो मुख्यमंत्री के तौर पर उनका कार्यकाल समाप्त हो जाता। वहीं चुनाव आयोग ने पहले ही COVID-19 महामारी के मद्देनज़र राज्यसभा चुनाव, उपचुनाव और नागरिक निकाय चुनाव स्थगित कर दिये थे, जिसके कारण महाराष्ट्र सरकार और उद्धव ठाकरे के समक्ष बड़ा राजनीतिक और संवैधानिक संकट उत्पन्न हो गया था। अनुच्छेद 164 (4) के अनुसार, कोई मंत्री यदि निरंतर 6 माह की अवधि तक राज्य के विधानमंडल का सदस्य नहीं होता है तो उस अवधि की समाप्ति पर मंत्री का कार्यकाल भी समाप्त हो जाएगा, इस स्थिति में संविधान का यही प्रावधान महाराष्ट्र सरकार के समक्ष चुनौती उत्पन्न कर रहा था।
अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस
प्रत्येक वर्ष 15 मई को वैश्विक स्तर पर अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस (International Day of Families) मनाया जाता है। इस दिवस के आयोजन का मुख्य उद्देश्य संयुक्त परिवार के महत्त्व और सामाजिक, आर्थिक एवं जनसांख्यिकीय प्रगति से संबंधित मुद्दों को लेकर जागरुकता बढ़ाना है। ध्यातव्य है कि परिवार एक प्रकार से समाज की मूल इकाई है, जिसके अभाव में समाज की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। संयुक्त परिवार के महत्त्व को बनाए रखने के लिये वर्ष 1993 में संयुक्त राष्ट्र महासभा (United Nations General Assembly) ने प्रत्येक वर्ष 15 मई को अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की थी, जिसके पश्चात् सर्वप्रथम वर्ष 1996 में अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस का आयोजन किया गया था। ध्यातव्य है कि आधुनिक समाज में परिवारों का विघटन ही अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस मनाने का मुख्य कारण है। संयुक्त परिवार से उन्नति के रास्ते खुलते हैं जबकि एकल परिवार और अकेलेपन से विकास की गति धीमी रहती है। अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस का मूल उद्देश्य युवाओं को परिवार के प्रति जागरूक करना है।
प्रोफेसर अनिसुज्जमन
पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित और बांग्लादेश के राष्ट्रीय प्रोफेसर (National Professor) अनीसुज्जमान का 83 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है। ध्यातव्य है कि प्रोफेसर अनिसुज्जमन ने शोध और लेखन के माध्यम से बांग्ला भाषा और साहित्य में अतुल्य योगदान दिया। भारत ने उन्हें बांग्ला साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में उनके विशिष्ट योगदान को देखते हुए उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया था। वर्ष 2015 में उन्हें साहित्य में उनके योगदान के लिये बांग्लादेश सरकार द्वारा सर्वोच्च नागरिक सम्मान, ‘स्वाधीनता पुरस्कार’ (Swadhinata Puraskar) से सम्मानित किया गया था। फरवरी 1937 में कोलकाता में जन्मे, प्रोफेसर अनिसुज्जमन और उनका परिवार वर्ष 1947 में विभाजन के पश्चात् बांग्लादेश चले गए थे। वर्ष 1952 के भाषा आंदोलन से लेकर 1972 में लिबरेशन वॉर तक सभी लोकतांत्रिक आंदोलनों में प्रोफेसर अनिसुज्जमन ने महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। प्रोफेसर अनिसुज्जमन को वर्ष 2018 में बांग्लादेश सरकार द्वारा राष्ट्रीय प्रोफेसर (National Professor) के रूप में नामित किया गया था।