ऋणग्रस्त हैं आधे कृषक परिवार: नाबार्ड
चर्चा में क्यों?
राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) द्वारा हाल ही में किये गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, देश में आधे से अधिक कृषक परिवारों पर ऋण बकाया है और उनका औसत बकाया ऋण उनके औसत वार्षिक आय की तुलना में ज़्यादा है।
प्रमुख बिंदु
- नाबार्ड द्वारा किये गए इस अखिल भारतीय ग्रामीण वित्तीय समावेशन सर्वेक्षण 2016-17 में 40,327 ग्रामीण परिवारों के 1.88 लाख लोगों को शामिल किया गया था।
- इनमें से केवल उन्हीं 48% परिवारों को कृषक परिवार के रूप में परिभाषित किया गया है, जिनका कम-से-कम एक सदस्य कृषि में स्व-नियोजित है और जिन्हें पिछले वर्ष में कृषि गतिविधियों से उपज के मूल्य के रूप में 5,000 रुपए से अधिक प्राप्त हुआ है, चाहे उनके पास कोई ज़मीन हो या न हो।
- नाबार्ड ने पाया कि 52.5% कृषक परिवारों पर सर्वेक्षण की तारीख तक कम-से-कम एक ऋण बकाया था और इस प्रकार उन्हें ऋणी माना गया। ग्रामीण भारत में 42.8% गैर-कृषक परिवारों के पास कम-से-कम एक ऋण बकाया था।
उच्च देयता
- गैर-कृषक परिवारों की तुलना में कोई भी ऋण बकाया रखने वाले कृषक परिवारों के पास उच्च ऋण देयता थी। ऋणग्रस्त गैर-कृषक परिवारों के 76,731 रुपए की तुलना में ऋणग्रस्त कृषक परिवारों का औसत ऋण 1,04,602 रुपए था।
- इस सर्वेक्षण के अनुसार, कृषक परिवारों की औसत वार्षिक आय 1.07 लाख रुपए है जो कि उनके औसत बकाया ऋण से मात्र 2,500 रुपए अधिक है।
- सर्वेक्षण में यह पाया गया कि सर्वेक्षण के समय तक केवल 10.5% कृषक परिवारों को वैध किसान क्रेडिट कार्ड मिल गया था। इस योजना का उद्देश्य किसानों को सरलीकृत और लचीली सिंगल-विंडो प्रक्रिया के तहत बैंकों से ऋण उपलब्ध कराना है। रिपोर्ट में कहा गया है कि जिन परिवारों के पास किसान क्रेडिट कार्ड है उन्होंने स्वीकृत क्रेडिट सीमा का 66% उपयोग किया था।
- कृषक परिवारों द्वारा ऋण लेने का सबसे बड़ा कारण कृषि उद्देश्यों के लिये पूंजीगत व्यय था, जो कि उनके द्वारा लिये गए सभी ऋणों का एक-चौथाई था। जबकि 19% ऋण कृषि उद्देश्यों के लिये चल रहे खर्चों को पूरा करने और 19% ऋण घरेलू ज़रूरतों के लिये लिया गया था। आवास और चिकित्सा खर्च के लिये क्रमशः 11% और 12% ऋण लिये गए।
- जबकि किसानों के सभी वर्ग ऋणग्रस्त थे, वहीं ऋणग्रस्तता के सर्वाधिक मामले उस वर्ग में हैं जिस वर्ग में किसानों के पास दो हेक्टेयर से अधिक भूमि थी। इस श्रेणी के 60% परिवार कर्ज़ में हैं।
- 0.4 हेक्टेयर से कम भूमि धारण करने वाले छोटे और सीमांत किसानों के 50% से कम परिवार ऋणग्रस्त थे। अधिक भूमि वाले लोगों की कई प्रकार के ऋण लेने की अधिक संभावना थी।
राज्य संबंधित आँकड़े
- दक्षिण भारतीय राज्य तेलंगाना (79%), आंध्र प्रदेश (77%) और कर्नाटक (74%) में कृषक परिवारों की ऋणग्रस्तता का उच्चतम स्तर देखा गया। इसके बाद अरुणाचल प्रदेश (69%), मणिपुर (61%), तमिलनाडु (60%), केरल (56%) और ओडिशा (54%) सर्वाधिक ऋणग्रस्त कृषक परिवार वाले राज्य हैं।
- जुलाई 2015 से जून 2016 के बीच लिये गए ऋणों के संदर्भ में इस सर्वेक्षण में पाया गया कि कृषक परिवारों ने अपने आधे से भी कम ऋण अर्थात् 46% ऋण वाणिज्यिक बैंकों से लिया था। इसके अतिरिक्त 10% ऋण स्वयं सहायता समूहों से, लगभग 40% ऋण गैर-संस्थागत स्रोतों जैसे- रिश्तेदारों, दोस्तों, साहूकारों और ज़मींदारों से लिया गया था।
- जबकि रिश्तेदारों और दोस्तों से प्राप्त ऋण ब्याज से मुक्त हो सकते हैं और समुदायों में सामाजिक एकीकरण को प्रदर्शित कर सकते हैं फिर भी सर्वेक्षण में पाया गया है कि 11.5% परिवारों के बड़े वर्ग ने स्थानीय साहूकारों और ज़मींदारों पर ऋण निर्भरता प्रदर्शित की, जो उन्हें अत्यधिक ब्याज का भुगतान करके शोषण के लिये बाध्य करता है।
- स्थानीय साहूकारों का सहारा लेने वाले व्यक्तियों में अक्सर अशिक्षित या बेहद गरीब लोग शामिल होते हैं जो औपचारिक संस्थानों से ऋण के लिये पात्र नहीं होते हैं, या फिर ऐसे परिवार होते हैं जिनके पास मज़बूत सामाजिक संजाल नहीं होता जो कि आवश्यकता के समय उनकी मदद कर सके।
नाबार्ड (NABARD)
- नाबार्ड कृषि एवं ग्रामीण विकास के लिये एक शीर्ष बैंक है। इसकी स्थापना शिवरमन समिति की सिफारिशों के आधार पर संसद के एक अधिनियम द्वारा 12 जुलाई, 1982 को की गई थी।
- इसका कार्य कृषि, लघु उद्योग, कुटीर एवं ग्रामीण उद्योग, हस्तशिल्प और अन्य ग्रामीण शिल्पों के संवर्द्धन और विकास के लिये ऋण प्रवाह को उपलब्ध कराना है।
- इसके साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों के अन्य संबद्ध आर्थिक क्रियाओं को समर्थन प्रदान कर गाँवों का सतत् विकास करना है।