भारत-विश्व
विशेष: गिलगित-बाल्टिस्तान: पाकिस्तान की नापाक कोशिश और भारत का विरोध
- 02 Jun 2018
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संदर्भ एवं पृष्ठभूमि
हाल ही में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री खाकान अब्बासी ने एक शासकीय ऑर्डर जारी कर गिलगित-बाल्टिस्तान स्वायत्तशासी क्षेत्र के प्रशासन के सभी अधिकार समाप्त कर दिये। गिलगित-बाल्टिस्तान स्वायत्तशासी क्षेत्र के अधिकारों को सीमित करने के पीछे माना यह जा रहा है कि पाकिस्तान इसे अपना पाँचवां प्रांत बनाने जा रहा है। भारत ने कड़ा विरोध करते हुए इसे गैर-कानूनी तरीके से पाकिस्तान में मिलाने की साजिश बताया और कहा कि पूरा जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और गिलगित-बाल्टिस्तान उसी प्रांत का एक हिस्सा है। जम्मू-कश्मीर का हिस्सा रहे इस क्षेत्र पर पाकिस्तान ने अनधिकृत तौर पर कब्ज़ा किया हुआ है।
क्या है इस आदेश में?
- पाकिस्तान की कैबिनेट ने 21 मई को गिलगित-बाल्टिस्तान संबंधी आदेश को मंज़ूरी दी थी और क्षेत्र की विधानसभा ने भी इसका समर्थन किया।
- गिलगित-बाल्टिस्तान (जीबी) ऑर्डर 2018 के आर्टिकल 77(2) के मुताबिक, गिलगित-बाल्टिस्तान की अदालतों के पास अब न तो इतनी शक्ति है और न ही क्षमता कि वे देश के प्रधानमंत्री से जवाब मांग सकें। इस आर्टिकल के तहत प्रधानमंत्री को कानून से भी ऊपर रखा गया है।
- नए कानून ने 'गिलगित-बाल्टिस्तान सशक्तीकरण और स्वशासन आदेश 2009' का स्थान लिया है, जिसके तहत गिलगित-बाल्टिस्तान की स्थानीय परिषद खनिज, जलविद्युत और पर्यटन से संबंधित कानून बनाती थी और इस पर फैसला लेती थी।
- अब ये फैसले गिलगित-बाल्टिस्तान की विधानसभा लेगी।
- नए कानून के तहत अब इस इलाके के लोगों को पाकिस्तान के अन्य चार प्रांतों की तरह अधिकार हासिल होंगे।
अभी क्या है स्थिति?
- बलूचिस्तान, खैबर-पख्तूनख्वा, पंजाब और सिंध पाकिस्तान के चार प्रांत हैं।
- पाक अधिकृत कश्मीर और गिलगित-बाल्टिस्तान दोनों अलग-अलग इलाके हैं, जबकि भारत इन्हें जम्मू-कश्मीर का एक हिस्सा मानता है।
- इन दोनों क्षेत्रों की अपनी विधानसभाएँ हैं और तकनीकी रूप से यह पाकिस्तान संघ का हिस्सा नहीं है।
- पाकिस्तान कश्मीर के लिये एक विशेष मंत्री और संयुक्त परिषदों के ज़रिये उनका शासन करता है।
- प्रत्यक्षतः दोनों क्षेत्र स्वतंत्र हैं, लेकिन विदेश और रक्षा मामले पाकिस्तान के नियंत्रण में हैं।
- अभी तक गिलगित-बाल्टिस्तान स्वायत्त क्षेत्र है, जहाँ प्रादेशिक असेंबली के अलावा एक चुना हुआ मुख्यमंत्री भी है।
- इसका कुल क्षेत्रफल 72,971 वर्ग किमी. है और इसका प्रशासनिक केंद्र गिलगित शहर है, जिसकी जनसंख्या लगभग ढाई लाख है।
- कुल लगभग 20 लाख की जनसंख्या में 14% शहरी आबादी वाले गिलगित-बाल्टिस्तान में शिया मुस्लिमों की संख्या अधिक है।
- पाकिस्तान ने 1963 में पाक अधिकृत कश्मीर की 5 हजार वर्गमील वाली शक्सगाम घाटी का इलाका चीन को दे दिया था, जिससे होकर चीन ने कराकोरम राजमार्ग बना लिया।
- 1970 में पाकिस्तान ने गिलगित एजेंसी, बाल्टिस्तान, हुंजा और नगर इलाकों को मिलाकर नार्दन एरियाज़ का गठन किया था।
- गिलगित-बाल्टिस्तान में कुल 7 ज़िले हैं, जिनमें से 5 गिलगित में और 2 बाल्टिस्तान में हैं तथा गिलगित और स्कर्दू से इनका प्रशासन चलाया जाता है।
- पाकिस्तान ने एक योजना के तहत गिलगित-बाल्टिस्तान सशक्तीकरण और स्वशासन आदेश जारी कर 2009 में गिलगित-बाल्टिस्तान में विधानसभा बनाई थी, ताकि इस क्षेत्र को अलग प्रांत बनाया जा सके।
- गिलगित-बाल्टिस्तान की सीमाएँ पश्चिम में खैबर-पख्तूनख्वा से, उत्तर में अफगानिस्तान के वाखान गलियारे से, उत्तर-पूर्व में चीन के शिन्जियांग प्रांत से, दक्षिण में पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर और दक्षिण-पूर्व में भारतीय जम्मू-कश्मीर राज्य से लगती हैं।
क्यों बनाना चाहता है पाँचवां प्रांत?
चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) इसी इलाके से होकर बनाया जा रहा है। चूँकि यह इलाका विवादित है, इसलिये चीन चाहता है कि इस कॉरीडोर के तैयार होने से पहले इसके तमाम कानूनी पहलू पूरे कर लिये जाएँ। अगर गिलगित-बाल्टिस्तान को पाकिस्तान के पाँचवें प्रांत का दर्जा दिया जाता है तो भारत के लिये परेशानी यह होगी कि पाकिस्तान कानूनी तौर पर इस इलाके पर अपना दावा मज़बूत कर लेगा और चीनी सेना की यहाँ मौजूदगी भी हो जाएगी।
भारत की चिंता
- यह इलाका पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) से लगा हुआ है और अपनी भौगोलिक स्थिति की वज़ह से भारत के लिये सामरिक दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण है।
- इसके पश्चिम में पाकिस्तान का खैबर पख्तूनख्वा प्रांत, उत्तर में चीन और अफगानिस्तान तथा पूर्व में भारत है, जिसमें दुनिया का सबसे ऊँचा युद्धस्थल और क्षेत्र में सामरिक रूप से महत्त्वपूर्ण सियाचिन भी शामिल है।
- भारत इस विवादित क्षेत्र से CPEC के गुजरने को लेकर चीन के समक्ष कई बार विरोध दर्ज करा चुका है।
- पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर की सीमा से लगे गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र को पाँचवां प्रांत घोषित करने की पाकिस्तान की किसी भी कोशिश को भारत नकारता है।
- भारत पूरे जम्मू-कश्मीर को अपना अभिन्न अंग मानता है जिसमें पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर और गिलगित-बाल्टिस्तान दोनों आते हैं, इसलिये पाकिस्तान को जम्मू-कश्मीर के किसी भी हिस्से को एक अलग पाकिस्तानी प्रांत बनाने का कोई अधिकार नहीं है।
पाकिस्तान के लिये ज़रूरी है CPEC
- अप्रैल 2015 में चीन और पाकिस्तान के बीच इस बहुचर्चित गलियारे को लेकर समझौता हुआ था। इस गलियारे से चीन को हिंद महासागर में प्रवेश करने का मौका मिल गया है।
- इसके माध्यम से चीन ने भारत और उसके पड़ोसी देशों के अलावा पश्चिम एशिया में अपना राजनैतिक और सैनिक प्रभुत्व बनाए रखने के लिये एक उपनिवेश स्थापित कर लिया है।
- चीन-पाकिस्तान के इस आर्थिक गलियारे ने पारंपरिक उत्तर-दक्षिण व्यापार पथ को पलटकर रख दिया है।
- पाकिस्तान ने ऐसे आर्थिक और भौगोलिक मार्ग को चुना है, जिसका नक्शा अब चीन तय करता रहेगा।
क्या है CPEC?
- चीन के सहयोग से 51 बिलियन डॉलर की लागत वाली इस परियोजना पर तेज़ी से काम चल रहा है।
- इसका उद्देश्य पाकिस्तानी अवसंरचना को बढ़ाना और उसे समुन्नत करना है तथा साथ ही पाकिस्तान और चीन के बीच आर्थिक संबंधों को और मज़बूत करना भी है।
- यह परियोजना दक्षिण-पश्चिम में पाकिस्तान के ग्वादर को चीन के उत्तर-पश्चिम के शिनजियांग प्रांत से एक राजमार्ग और रेलवे के वृहत् नेटवर्क से जोड़ेगी।
- इस परियोजना के तहत 1,100 किलोमीटर का लंबा राजमार्ग कराची और लाहौर के बीच में बनाया जाएगा।
कराकोरम हाईवे: इसके अलावा रावलपिंडी और चीनी सीमा के बीच कराकोरम हाईवे को पूरी तरह से नया बनाया जाएगा। पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र के हुंजा इलाके में एक गाँव है सुस्त, जो चीनी सीमा के पहले कराकोरम राजमार्ग पर अंतिम गाँव है। यहीं से चीन के मालवाहक कंटेनर कराकोरम हाईवे से होकर गिलगित-बाल्टिस्तान में प्रवेश करेंगे।
- CPEC के तहत पाकिस्तान के रेल नेटवर्क को चीन के दक्षिणी शिनजियांग रेलवे, काशगर से जोड़ा जाएगा।
- प्राकृतिक गैस और अन्य पेट्रोलियम पदार्थों के परिवहन के लिये पाइपलाइन का एक बड़ा नेटवर्क भी इस परियोजना के तहत बनाया जाएगा।
- इसमें 2.5 बिलियन डॉलर की लागत से ग्वादर और नवाबशाह के बीच बनने वाली पाइपलाइन भी शामिल है जिसे ईरान से आने वाली गैस को लाने के लिये बनाया जाएगा।
- चीन द्वारा बनाया जा रहा यह कॉरीडोर गिलगिट-बाल्टिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से होकर गुजरेगा।
- पाकिस्तान के अनुसार इस परियोजना से 2015-2030 के बीच 7 लाख रोज़गार उत्पन्न होंगे।
- इससे पाकिस्तान के आर्थिक विकास में 2 से 2.5 प्रतिशत वार्षिक की वृद्धि हो सकती है।
- चीन का यह निवेश 2002 से अब तक पाकिस्तान को अमेरिका से मिली कुल आर्थिक सहायता से भी ज़्यादा है।
(टीम दृष्टि इनपुट)
चीन के कब्ज़े वाला अक्साई चिन भी जम्मू-कश्मीर का हिस्सा है
- भारत और चीन के बीच एक लंबी सीमा है और इस क्षेत्र में सीमा सुरक्षा भारत के लिये हमेशा से एक जटिल मुद्दा रहा है। कभी-कभी इस क्षेत्र में चीनी सेना द्वारा अतिक्रमण की खबरें भी आती रहती हैं।
- जम्मू-कश्मीर में चीन के साथ भारत का विवाद अक्साई चिन क्षेत्र को लेकर रहता है। इसे भारत जम्मू-कश्मीर के लद्दाख क्षेत्र का हिस्सा मानता है, जबकि इस पर वास्तविक नियंत्रण चीन का है और यह उसके स्वायत्तशासी प्रांत शिनजियांग का हिस्सा है।
- 1962 के भारत-चीन युद्ध के समय चीन ने तत्कालीन ‘नॉर्थ-ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी’ (NEFA) के लगभग आधे क्षेत्र पर कब्ज़ा कर लिया था और चीनी सेना तेज़पुर तक पहुँच गई थी।
- 21 नवंबर, 1962 को चीन ने एकतरफा युद्धविराम लागू करके पूरे पश्चिमी अरुणाचल प्रदेश से अपनी सेना हटा ली और इस क्षेत्र में युद्ध से पूर्व की स्थिति को बहाल कर दिया था।
- चीन ने लद्दाख के जिस क्षेत्र पर कब्ज़ा कर लिया था, उसे अपने नियंत्रण में बनाए रखा, जो आज भी चीन के नियंत्रण में है। इसी क्षेत्र को अक्साई चिन (Aksai Chin) कहते हैं।
- भारत का कहना है कि चीन ने 1962 की लड़ाई में अक्साई चिन के 38 हज़ार वर्गमील इलाके पर कब्ज़ा कर लिया था।
अंतरराष्ट्रीय जगत का क्या है कहना?
- गिलगित-बाल्टिस्तान पर पाकिस्तान का कब्ज़ा पूरी तरह अवैध है; न केवल ब्रिटिश संसद इसे कश्मीर का हिस्सा मानती है, बल्कि यूरोपीय संघ भी इसे कश्मीर का ही हिस्सा बताता है।
- ब्रिटेन की संसद में पिछले वर्ष कंज़र्वेटिव संसद बॉब ब्लैकमैन ने एक प्रस्ताव रखा था जिसमें गिलगित-बाल्टिस्तान पर पाकिस्तान के कब्ज़े को अवैध बताया गया था।
- इस प्रस्ताव में कहा गया था कि पाकिस्तान ने गिलगित-बाल्टिस्तान पर अवैध कब्ज़ा कर रखा है, जबकि यह क्षेत्र उसका है ही नहीं।
क्या है इस क्षेत्र का इतिहास?
- पहले इसे उत्तरी (शुमाली) इलाका अर्थात् नॉर्दन एरियाज़ कहा जाता था। अपनी भौगोलिक संरचना की वज़ह से यह इलाका भारत, चीन और पाकिस्तान, तीनों के लिये सामरिक दृष्टि से बेहद महत्त्वपूर्ण है।
विवादित लीज़ डीड: डोगरा शासकों ने अंग्रेजों के साथ हुई लीज़ डीड को 1 अगस्त, 1947 को रद्द करते हुए क्षेत्र पर अपना नियंत्रण कायम कर लिया। दरअसल, जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने 1935 में एक लीज़ डीड के तहत ब्रिटिश शासकों को 60 साल तक के लिये इस क्षेत्र का नियंत्रण दे दिया था।
- 1947 में भारत विभाजन के समय यह क्षेत्र, जम्मू-कश्मीर की तरह न भारत का हिस्सा रहा और न ही पाकिस्तान का।
- महाराजा हरि सिह को गिलिगित स्काउट के स्थानीय कमांडर कर्नल मिर्जा हसन खान के विद्रोह का सामना करना पड़ा, जिसने 2 नवंबर, 1947 को गिलगित-बाल्टिस्तान की आजादी का ऐलान कर दिया।
- इससे दो दिन पहले 31 अक्तूबर को कश्मीर के महाराजा ने रियासत के भारत में विलय को मंजूरी दी थी।
- 21 दिन बाद पाकिस्तान इस क्षेत्र में दाखिल हुआ और उसने सैन्य बलों तथा कबाइलियों के बल पर इस क्षेत्र पर कब्ज़ा कर लिया।
- अप्रैल 1949 तक यह इलाका पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर का हिस्सा माना जाता रहा।
- 28 अप्रैल, 1949 को पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर की सरकार के साथ एक समझौता हुआ, जिसके तहत गिलगित के मामलों को सीधे पाकिस्तान की केंद्र सरकार के तहत कर दिया गया।
- इस करार को कराची समझौते के नाम से जाना जाता है और क्षेत्र का कोई भी नेता इस करार में शामिल नहीं था।
- विवादित गिलगित-बाल्टिस्तान में दो स्वतंत्रता दिवस मनाए जाते हैं--एक 14 अगस्त को, जब पाकिस्तान अपना स्वतंत्रता दिवस मनाता है और दूसरा 1 नवंबर को, जब यह इलाका 1947 में हासिल की गई अपनी उस आज़ादी को याद करता है, जो केवल 21 दिन तक टिक पाई थी।
- कालांतर में पाकिस्तान ने गिलगित-बाल्टिस्तान के सुदूर उत्तर में स्थित एक इलाके को कराकोरम राजमार्ग के निर्माण के लिये चीन को दे दिया।
- पाकिस्तान का कहना है कि डोगरा राजतंत्र ने क्षेत्र पर नियंत्रण को खत्म कर दिया था और जम्मू-कश्मीर के अंतिम राजा महाराजा हरि सिंह का लगभग 73 हज़ार वर्ग किलोमीटर में फैले इस क्षेत्र पर कोई अधिकार नहीं था। लेकिन ऐसे में सवाल उठता है कि पाकिस्तान को इस क्षेत्र का नियंत्रण कैसे मिल गया?
- पाकिस्तान भारत के इस दावे को यह कहकर नकारता है कि डोगरा शासकों ने 1846 में इस इलाके को जम्मू-कश्मीर में शामिल कर लिया था, अन्यथा यह कभी भी इस रियासत का हिस्सा नहीं रहा।
- अपने दावे के पक्ष में पाकिस्तान 1935 की उपरोक्त लीज़ डीड का उल्लेख करता है, जिसने ब्रिटिश शासकों को 60 साल तक के लिये इस क्षेत्र का नियंत्रण दे दिया था।
(टीम दृष्टि इनपुट)
निष्कर्ष: भारत का दावा है कि गिलगित-बाल्टिस्तान 1947 तक अस्तित्व में रही जम्मू-कश्मीर रियासत का हिस्सा रहा था, इसलिये यह पाकिस्तान के साथ क्षेत्रीय विवाद का हिस्सा है। पाकिस्तान इस क्षेत्र को विवादित कश्मीर के क्षेत्र से पृथक मानता है और इस पर अपने कब्ज़े के बाद उसने चीन के सहयोग से इस क्षेत्र के खनिजों और जलविद्युत संसाधनों के दोहन के लिये बड़े पैमाने पर निवेश किया है। चीन के साथ मिलकर पाकिस्तान यहाँ आर्थिक कॉरीडोर तथा अन्य बड़ी परियोजनाओं पर काम कर रहा है। इस विवादित क्षेत्र में चीन की पहुँच और पाकिस्तान के दमनकारी शासन के मानवाधिकार उल्लंघन ने इलाके में अलगाववादी आंदोलन को जन्म दिया, लेकिन इस आंदोलन की कम ही जानकारी मिलती है। बेहद कड़े संघीय कानून इस क्षेत्र तक विदेशियों और मीडिया की पहुँच को लगभग असंभव बनाते रहे हैं। जब भी पाकिस्तान और चीन की गतिविधियों का यहाँ के लोग विरोध करते हैं तो सेना इसे कुचल देती है। स्थानीय लोग इसका विरोध करते हैं, क्योंकि उन्हें डर है कि पाकिस्तान का उद्देश्य क्षेत्र के जनसांख्यिकीय चरित्र को बदलना है। यहाँ के स्थानीय निवासी चाहते हैं कि भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर विवाद के हल की प्रक्रिया में उन्हें भी हिस्सा बनाया जाए।