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डेली न्यूज़

  • 14 May, 2022
  • 57 min read
शासन व्यवस्था

हाइपरटेंशन

प्रिलिम्स के लिये:

गैर-संचारी रोग, आईएचसीआई, उच्च रक्तचाप।

मेन्स के लिये:

स्वास्थ्य, उच्च रक्तचाप से संबंधित चिंताएंँ।

चर्चा में क्यों? 

भारत उच्च रक्तचाप नियंत्रण (प्रबंधन) पहल (India Hypertension Control Initiative- IHCI) नामक परियोजना के अनुसार, 2.1 मिलियन भारतीयों में से लगभग 23% का रक्तचाप अनियंत्रित (Uncontrolled Blood Pressure) है।

  • 2.5 करोड़ व्यक्तियों के लिये रक्तचाप का प्रबंधन कर अगले 10 वर्षों में हृदय रोग से होने वाली पाँच लाख मौतों को रोका जा सकता है।

हाइपरटेंशन:

  • हाइपरटेंशन के बारे में: 
    • रक्तचाप शरीर की धमनियों (Arteries) द्वारा शरीर की प्रमुख रक्त वाहिकाओं (Blood Vessels) की दीवारों पर परिसंचारी रक्त (Circulating Blood) द्वारा लगाया जाने वाला बल है। 
      • हाइपरटेंशन की स्थिति तब उत्पन्न होती है जब रक्तचाप बहुत अधिक होता है।
    • इसे प्रकुंचन रक्तदाब स्तर 140 mmHg से अधिक या उसके बराबर या संकुचन रक्तदाब स्तर 90 mmHg से अधिक या उसके बराबर या/और रक्तदाब को कम करने के लिये ‘एंटी-हाइपरटेंसिव’ दवा लेने के रूप में परिभाषित किया गया है।
  • प्रसार: 
    • दक्षिणी राज्यों में राष्ट्रीय औसत की तुलना में उच्च रक्तचाप का प्रसार अधिक है।
      • केरल (32.8% पुरुष और 30.9% महिलाएँ) में तेलंगाना के बाद सबसे अधिक ऐसे लोगों की संख्या है।
    • देश में 21.3% महिलाओं और 15 वर्ष से अधिक आयु के 24% पुरुषों में हाइपरटेंशन की समस्या है।
  • WHO की प्रतिक्रिया:
    • यह  दिशा-निर्देश उच्च रक्तचाप के उपचार की शुरुआत के लिये साक्ष्य-आधारित सिफारिशें प्रदान करता है और आगे की कार्रवाई हेतु अनुशंसा करता है।

भारत उच्च रक्तचाप नियंत्रण (प्रबंधन) पहल (IHCI):

  • यह कार्यक्रम नवंबर 2017 में शुरू किया गया था।
  • पहले वर्ष में IHCI ने पाँच राज्यों- पंजाब, केरल, मध्य प्रदेश, तेलंगाना और महाराष्ट्र के 26 ज़िलों को कवर किया।
  • दिसंबर 2020 तक IHCI को दस राज्यों– आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब, तमिलनाडु, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल के 52 ज़िलों में विस्तारित किया गया था।
  • स्वास्थ्य मंत्रालय, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद, राज्य सरकारों और डब्ल्यूएचओ-भारत ने उच्च रक्तचाप की निगरानी एवं उपचार के लिये पाँच वर्षीय पहल शुरू की है।
  • भारत "25 by 25" के अपने  लक्ष्य के लिये प्रतिबद्ध है।
    • यह लक्ष्य वर्ष 2025 तक गैर-संचारी रोगों (NCD) के कारण समय से पहले मृत्यु दर को 25% तक कम करना है।
    • नौ स्वैच्छिक लक्ष्यों में से एक में 2025 तक उच्च रक्तचाप के प्रसार को 25% तक कम करना शामिल है।

स्रोत : द हिंदू


सामाजिक न्याय

वैश्विक खाद्य नीति रिपोर्ट: IFPRI

प्रिलिम्स के लिये:

जलवायु परिवर्तन, अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान (IFPRI),

मेन्स के लिये:

जलवायु परिवर्तन और खाद्य प्रणालियों का मुद्दा।

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान (IFPRI) ने वैश्विक खाद्य नीति रिपोर्ट: जलवायु परिवर्तन और खाद्य प्रणाली जारी की है, जिसमें दर्शाया गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण वर्ष 2030 तक भारत में भूख का जोखिम 23% तक बढ़ सकता है।

निष्कर्ष:

  • भारत: 
    • जलवायु परिवर्तन के कारण वर्ष 2030 तक भारत का खाद्य उत्पादन 16% गिर सकता है तथा भूख के जोखिम वाले लोगों की संख्या 23% तक बढ़ सकती है।
      • यह अनुमान एक ऐसे मॉडल का हिस्सा है जिसका उपयोग खाद्य उत्पादन, खाद्य खपत (प्रति व्यक्ति प्रतिदिन किलो कैलोरी), प्रमुख खाद्य वस्तु समूहों के शुद्ध व्यापार और भूख के जोखिम वाली आबादी पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का समग्र मूल्यांकन करने के लिये किया गया था।
    • वर्ष 2030 में भूख से पीड़ित भारतीयों की संख्या 73.9 मिलियन हो जाने की आशंका है तथा यदि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को शामिल किया जाए, तो यह बढ़कर 90.6 मिलियन हो जाएगी।
    • समान परिस्थितियों में समग्र खाद्य उत्पादन सूचकांक 1.6 से घटकर 1.5 रह जाएगा।
      • खाद्य उत्पादन सूचकांक में उन खाद्य फसलों को शामिल किया जाता है जिन्हें खाने योग्य माना जाता है और जिनमें पोषक तत्त्व होते हैं। कॉफी और चाय को इससे बाहर रखा गया है, क्योंकि खाद्य होने के बावजूद उनका कोई पोषक मूल्य नहीं है।
    • एक सकारात्मक टिप्पणी यह है कि जलवायु परिवर्तन भारतीयों की औसत कैलोरी खपत को प्रभावित नहीं करेगा तथा जलवायु परिवर्तन के परिदृश्य में भी यह वर्ष 2030 तक वर्तमान के समान लगभग प्रति व्यक्ति 2,600 किलो कैलोरी प्रतिदिन रहने का अनुमान है।
    • वर्ष 2100 तक पूरे भारत में औसत तापमान 2.4 डिग्री सेल्सियस से 4.4 डिग्री सेल्सियस के बीच बढ़ने का अनुमान है। इसी प्रकार भारत में गर्मी की लहरों के वर्ष 2100 तक तिगुना होने का अनुमान है।
  • वैश्विक:
    • आधारभूत अनुमानों से संकेत मिलता है कि जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में 2050 तक वैश्विक खाद्य उत्पादन 2010 के स्तर से लगभग 60% बढ़ जाएगा।
    • जनसंख्या और आय में अनुमानित वृद्धि के कारण विकसित देशों की तुलना में विकासशील देशों, विशेष रूप से अफ्रीका में उत्पादन और मांग में वृद्धि  का अनुमान लगाया  है।
    • उच्च आय वाले देश अधिक फल और सब्जियों, प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ तथा पशु-स्रोत खाद्य पदार्थ सहित उच्च आहार मूल्य वाले खाद्य पदार्थों की ओर बढ़ रहे हैं।
    • वर्ष 2030 तक दक्षिण एशिया और पश्चिम तथा मध्य अफ्रीका में मांस का उत्पादन दोगुना एवं  वर्ष 2050 तक तीन गुना होने का अनुमान है।
    • इस वृद्धि के बावजूद विकासशील देशों में प्रति व्यक्ति खपत का स्तर विकसित देशों की तुलना में आधे से भी कम रहेगा।
    • प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों की मांग तिलहनी फसलों के बढ़ते उत्पादन में भी दिखाई देती है: 2050 तक दक्षिण-पूर्व एशिया और पश्चिम व मध्य अफ्रीका में उत्पादन दोगुने से अधिक होने की उम्मीद है।

खाद्य उत्पादन का जलवायु परिवर्तन पर प्रभाव: 

  • खाद्य प्रणाली संबंधी गतिविधियों में खाद्यान्न का उत्पादन, उसका परिवहन और व्यर्थ खाद्यान्न को कचरा -स्थल पर संग्रहीत करना शामिल है, ये गतिविधियाँ ग्रीनहाउस गैस (GHG) का उत्सर्जन कर  जलवायु परिवर्तन में योगदान करती है।
  • ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन स्रोतों में से पशुधन उत्पादन का भी योगदान है, यह मानव गतिविधियों से हुए वैश्विक उत्सर्जन का अनुमानित 14.5% है।
    • जुगाली करने वाले जानवरों का मांस (जैसे मवेशी और बकरियाँ) विशेष रूप से अधिक  उत्सर्जन करती हैं।
  • यदि मांस और डेयरी-उत्पादों के सेवन का वैश्विक रुझान जारी रहता है, तो वैश्विक तापमान को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने की संभावना अभी भी बेहद कम है।
  • यही कारण है कि मांस और डेयरी-उत्पादों की खपत में तत्काल व नाटकीय कमी, ऊर्जा के उपयोग, परिवहन तथा अन्य स्रोतों से ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी, विनाशकारी जलवायु परिवर्तन से बचने के लिये महत्त्वपूर्ण है। 
  • मांस और डेयरी-उत्पादों की प्रति व्यक्ति सबसे अधिक खपत वाले अमेरिका जैसे देशों पर खाद्य शृंखला में  कम अपव्यय की ज़िम्मेदारी तुलनात्मक रूप से सबसे ज़्यादा बनती है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आहार आदतों में बदलाव लाने के लिये उपभोक्ताओं को शिक्षित करने से कहीं अधिक आवश्यकता उन राष्ट्रीय नीतियों में बदलाव करने की होगी जो अधिक पादप-केंद्रित आहार का समर्थन करते हैं।

वैश्विक खाद्य नीति रिपोर्ट की अनुशंसाएँ:  

  • अनुसंधान और विकास में निवेश: 
    • प्रौद्योगिकी नवाचारों के लिये अनुसंधान और विकास में अधिक निवेश की आवश्यकता है, जैसे कि सिंचाई प्रणाली और कोल्ड चेन, जो ‘स्थायी खाद्य प्रणाली’ में परिवर्तन को तेज कर सकते हैं।
    • इस तरह के नवाचारों में सार्वजनिक निवेश को मौजूदा स्तरों से दोगुना किया जाना चाहिये, यह सुनिश्चित करना चाहिये कि निम्न और मध्यम आय वाले देशों की खाद्य प्रणालियों में कम-से-कम 15 बिलियन अमेरिकी डॉलर का कम प्रवाह हो।
  • भूमि और जल संसाधनों का प्रबंधन:
    • भूमि और जल संसाधनों का बेहतर प्रबंधन होना चाहिये।
    • नीति को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि विकास लक्ष्यों में कोई "अवांछनीय व्यापार-बंद" न हो एवं जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन में और योगदान न करते हुए उत्पादकता बढ़ाने के लिये आवश्यक अतिरिक्त ऊर्जा एवं जीवाश्म ईंधन के बीच संतुलन खोजना होगा।
  • स्वस्थ आहार और सतत् खाद्य उत्पादन:
    • स्वस्थ आहार और टिकाऊ खाद्य उत्पादन को भी प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
    • अत्यधिक प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों और ‘रेड मीट’ की खपत को कम करने से पारिस्थितिक पदचिह्न में सुधार होगा।
  • कुशल मूल्य शृंखला: 
    • मूल्य शृंखलाओं को और अधिक कुशल बनाने तथा "मुक्त एवं खुले" व्यापार का समर्थन करने की आवश्यकता है, जिसे रिपोर्ट में "जलवायु-स्मार्ट कृषि व खाद्य नीतियों का एक अभिन्न अंग" कहा गया है।
  • सामाजिक सुरक्षा: 
    • सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों के माध्यम से गरीब ग्रामीण आबादी की रक्षा की जानी चाहिये, जो जलवायु परिवर्तन के सबसे बुरे प्रभावों के खिलाफ कृषि से अपना जीवन यापन करते हैं।
    • ये कार्यक्रम अनिश्चित भविष्य से निपटने का एक तरीका है, जिनसे हम उम्मीद करते हैं।
  • सतत् उत्पादन हेतु वित्तपोषण: 
    • रिपोर्ट आजीविका बढ़ाने के साथ-साथ अधिक टिकाऊ उत्पादन और खपत में बदलाव के लिये पर्याप्त रूप से वित्तपोषण के महत्त्व पर ज़ोर देती है।

अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान (IFPRI):

  • वर्ष 1975 में स्थापित IFPRI विकासशील देशों में गरीबी को कम करने, भूख और कुपोषण को समाप्त करने हेतु अनुसंधान-आधारित नीति समाधान प्रदान करता है।
  • IFPRI का दृष्टिकोण भूख और कुपोषण मुक्त विश्व का निर्माण करना है।
  • यह पांँच रणनीतिक अनुसंधान क्षेत्रों पर केंद्रित है:
    • जलवायु-लोचशीलता और सतत् खाद्य आपूर्ति को बढ़ावा देना।
    • सभी के लिये स्वस्थ आहार एवं पोषण को बढ़ावा देना।
    • समावेशी तथा कुशल बाज़ार, व्यापार प्रणाली और खाद्य उद्योग का निर्माण।
    • कृषि एवं ग्रामीण अर्थव्यवस्थाओं को बदलना।
    • संस्थाओं और शासन को सुदृढ़ बनाना।

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (पीवाईक्यू):

प्रश्न. ग्लोबल हंगर इंडेक्स रिपोर्ट की गणना के लिये IFPRI द्वारा उपयोग किये जाने वाले संकेतक निम्नलिखित में से कौन सा/से है/हैं? (2016) 

  1. अल्पपोषण
  2. 2.चाइल्ड स्टंटिंग
  3. बाल मृत्यु दर

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: 

(a)  केवल 1 
(b) 1, 2 और 3  
(c) केवल 2 और 3
(d)  केवल 1 और 3 

उत्तर: (c) 

व्याख्या: 

  • वर्ष 1975 में अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान (IFPRI) की स्थापना की गई जो विकासशील देशों में गरीबी को कम करने, भूख और कुपोषण को समाप्त करने हेतु अनुसंधान आधारित नीति समाधान प्रदान करता है। 
  • ग्लोबल हंगर इंडेक्स (GHI) को वैश्विक, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर भूख की स्थिति को व्यापक रूप से मापने तथा ट्रैक करने के लिये डिज़ाइन किया गया एक उपकरण है। भूख की स्थिति से निपटने में हुई प्रगति और असफलताओं का आकलन करने हेतु हर वर्ष GHI स्कोर की गणना की जाती है।
  • GHI के आयाम: 
    • अपर्याप्त खाद्य आपूर्ति
    • बाल मृत्यु दर
    • बच्चे का अल्प पोषण
  • GHI के संकेतक:
    • अल्पपोषण (अपर्याप्त खाद्य आपूर्ति), 
    • 5 के तहत मृत्यु दर (बाल मृत्यु दर), 
    • स्टंटिंग,
    • बौनापन (बालक अल्पपोषण), 
    • अत: विकल्प (C) सही है

स्रोत: द हिदू 


कृषि

कृषि, फसल बीमा और ऋण पर रणनीतिक साझेदारी के लिये समझौता ज्ञापन

प्रिलिम्स के लिये :

PMFBY योजना और किसान क्रेडिट कार्ड योजना, यूएनडीपी, आधार सीडिंग।

मेन्स के लिये:

PMFBY योजना और इसके लाभ, किसान क्रेडिट कार्ड योजना, फसल बीमा। 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय (MoA&FW) और संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) ने एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किये हैं।

समझौता ज्ञापन का उद्देश्य:

 PMFBY योजना:

  • परिचय:  
    • यह योजना किसानों को फसल की विफलता (खराब होने) की स्थिति में एक व्यापक बीमा कवर प्रदान करती है, जिससे किसानों की आय को स्थिर करने में मदद मिलती है।
    • अधिसूचित फसलों हेतु फसल ऋण/किसान क्रेडिट कार्ड (KCC) खाते में ऋण लेने वाले किसानों के लिये इस योजना को अनिवार्य बनाया गया है, जबकि अन्य किसान स्वेच्छा से इस योजना से जुड़ सकते हैं।
  • दायरा (Scope): वे सभी खाद्य और तिलहनी फसलें तथा वार्षिक वाणिज्यिक/ बागवानी फसलें, जिनके लिये पिछली उपज के आँकड़े उपलब्ध हैं।
  • बीमा किस्त: इस योजना के तहत किसानों द्वारा दी जाने वाली निर्धारित बीमा किस्त/ प्रीमियम- खरीफ की सभी फसलों के लिये 2% और सभी रबी फसलों के लिये 1.5% है। वार्षिक वाणिज्यिक तथा बागवानी फसलों के मामले में बीमा किस्त 5% है। 
    • किसानों के हिस्से की प्रीमियम लागत का वहन राज्यों और केंद्र सरकार द्वारा सब्सिडी के रूप में बराबर साझा किया जाता है।
    • हालाँकि पूर्वोत्तर भारत के राज्यों में केंद्र सरकार द्वारा इस योजना के तहत बीमा किस्त सब्सिडी का 90% हिस्सा वहन किया जाता है।
  • कवरेज: 
    • इस योजना में प्रतिवर्ष औसतन 5.5 करोड़ से अधिक किसान आवेदन शामिल होते हैं। 
    • आधार सीडिंग (इंटरनेट बैंकिंग पोर्टल के माध्यम से आधार को लिंक करना) ने किसानों के खातों में सीधे दावा निपटान में तेज़ी लाने में मदद की है। 
    • रबी 2019-20 के मौसम में टिड्डी हमले के दौरान राजस्थान राज्य में लगभग 30 करोड़ रुपए का दावा प्रस्तुत किया गया जो एक एक उल्लेखनीय उदाहरण है।
  • प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना 2.0:
  • योजना के अधिक कुशल और प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये केंद्र सरकार द्वारा वर्ष 2020 के खरीफ सीज़न में PMFBY में आवश्यक सुधार किया गया था।
  • इस संशोधित PMFBY को प्रायः PMFBY 2.0 भी कहा जाता है, इसकी कुछ विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
    • पूर्णतः स्वैच्छिक: इसके तहत वर्ष 2020 की खरीफ फसल से सभी किसानों के लिये नामांकन 100% स्वैच्छिक है।
    • सीमित केंद्रीय सब्सिडी: केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इस योजना के तहत गैर-सिंचित क्षेत्रों/फसलों के लिये बीमा किस्त की दरों पर केंद्र सरकार की हिस्सेदारी को 30% और सिंचित क्षेत्रों/फसलों के लिये 25% तक सीमित करने का निर्णय लिया है।
    • राज्यों को अधिक स्वायत्तता: केंद्र सरकार ने राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को PMFBY को लागू करने के लिये व्यापक छूट प्रदान की है और साथ ही उन्हें इसमें किसी भी अतिरिक्त जोखिम कवर/सुविधाओं का चयन करने का विकल्प भी दिया है।
    • आईसीई गतिविधियों में निवेश: अब इस योजना के तहत बीमा कंपनियों द्वारा एकत्र किये गए कुल प्रीमियम का 0.5% सूचना, शिक्षा और संचार (IEC) गतिविधियों पर खर्च करना होगा।

PMFBY के तहत तकनीकी का प्रयोग:

  • फसल बीमा एप: 
    • यह किसानों को आसान नामांकन की सुविधा प्रदान करता है।
    • किसी भी घटना के घटित होने के 72 घंटों के भीतर फसल के नुकसान की आसान रिपोर्टिंग की सुविधा।
  • नवीनतम तकनीकी उपकरण: फसल के नुकसान का आकलन करने के लिये सैटेलाइट इमेजरी, रिमोट-सेंसिंग तकनीक, ड्रोन, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और मशीन लर्निंग का उपयोग किया जाता है।
  • PMFBY पोर्टल: भूमि रिकॉर्ड के एकीकरण के लिये PMFBY पोर्टल की शुरुआत की गई है।

किसान क्रेडिट कार्ड योजना:

  • परिचय:
    • इसे वर्ष 1998 में किसानों को उनकी खेती के लिये आसान और सरल प्रक्रियाओं के साथ तथा अन्य ज़रूरतों जैसे कि बीज, उर्वरक, कीटनाशक आदि कृषि आदानों की खरीद, आहरण एवं उनकी उत्पादन ज़रूरतों हेतु बैंकिंग प्रणाली के माध्यम से पर्याप्त और समय पर नकद ऋण सहायता प्रदान करने हेतु पेश किया गया था।
    • इस योजना को वर्ष 2004 में किसानों की निवेश ऋण आवश्यकता को संबद्ध और गैर-कृषि गतिविधियों के लिये आगे बढ़ाया गया था।  
  • उद्देश्य: 
    • किसान क्रेडिट कार्ड निम्नलिखित उद्देश्यों के साथ प्रदान किया जाता है:
      • फसलों की खेती के लिये अल्पकालिक ऋण आवश्यकताएँ।
      • फसल के बाद का खर्च।
      •  किसान परिवार की खपत आवश्यकताएँ हेतु कृषि-ऋण विपणन।
      • कृषि संपत्ति और कृषि से संबंधित गतिविधियों, जैसे- डेयरी पशु, अंतर्देशीय मत्स्य पालन आदि के रखरखाव के लिये कार्यशील पूंजी।
      • कृषि और संबद्ध गतिविधियों जैसे- पंपसेट, स्प्रेयर, डेयरी पशु आदि के लिये निवेश ऋण की आवश्यकता। 
  • क्रियान्वयन एजेंसी: 
    • किसान क्रेडिट कार्ड योजना वाणिज्यिक बैंकों, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक, लघु वित्त बैंकों और सहकारी समितियों द्वारा कार्यान्वित की जाती है।
    • किसानों को कंबाइन हार्वेस्टर, ट्रैक्टर और मिनी ट्रक की खरीद और परिवार के लिये घर के निर्माण तथा गांव में कोल्ड स्टोरेज सुविधा की स्थापना के लिये अल्पकालिक ऋण सहायता नहीं दी जाती है।

उपलब्धियांँ:

  • आत्मनिर्भर भारत पैकेज के हिस्से के रूप में सरकार ने किसान क्रेडिट कार्ड योजना के तहत 2.5 करोड़ किसानों को दो लाख करोड़ रुपए का साख प्रोत्साहन देने की घोषणा की है।

प्रश्न. किसान क्रेडिट कार्ड योजना के अंतर्गत किसानों को निम्नलिखित में से किस उद्देश्य के लिये अल्पकालिक ऋण सुविधा प्रदान की जाती है? (2020)

  1. कृषि संपत्तियों के रखरखाव के लिये कार्यशील पूंजी
  2. कंबाइन हार्वेस्टर, ट्रैक्टर और मिनी ट्रक की खरीद
  3. खेतिहर परिवारों की उपभोग आवश्यकताएंँ
  4. फसल के बाद का खर्च
  5. पारिवारिक आवास का निर्माण एवं ग्राम कोल्ड स्टोरेज सुविधा की स्थापना

निम्नलिखित कूट की सहायता से सही उत्तर का चयन कीजिये:

(a) केवल 1, 2 और 5
(b) केवल 1, 3 और 4
(c) केवल 2, 3, 4 और 5
(d) 1, 2, 3, 4 और 5

उत्तर: (b)

स्रोत: पी.आई.बी.


कृषि

उर्वरक चुनौती

प्रिलिम्स के लिये:

शून्य बजट खेती, नई यूरिया नीति (एनयूपी) 2015, डीबीटी, एनबीएस योजना

मेन्स के लिये:

उर्वरक चुनौती, उर्वरक आपूर्ति पर महामारी का प्रभाव

चर्चा में क्यों? 

भारत को अपनी उर्वरक आपूर्ति की आवश्यकता को पूरा करने के लिये चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जो कि रूस के यूक्रेन पर आक्रमण के मद्देनज़र खरीफ की बुवाई से पहले बाधित हो गई है। 

प्रमुख बिंदु 

भारत द्वारा कुल उर्वरक की खपत:

  • परिचय 
    • भारत ने पिछले 10 वर्षों में प्रतिवर्ष लगभग 500 एलएमटी (LMT) उर्वरक की खपत की है।
    • केंद्र का उर्वरक सब्सिडी बिल वित्त वर्ष 2011 में बजटीय राशि से 62% से बढ़कर 1.3 लाख करोड़ रुपए हो गया है।
      • चूंँकि गैर-यूरिया (MoP, DAP, कॉम्प्लेक्स) किस्मों की लागत अधिक होती है इसलिये कई किसान वास्तव में आवश्यकता से अधिक यूरिया का उपयोग करना पसंद करते हैं।
      • सरकार ने यूरिया की खपत को कम करने के लिये कई उपाय किये हैं। इसने गैर-कृषि उपयोग हेतु यूरिया के अवैध प्रयोग को कम करने के लिये नीम कोटेड यूरिया की शुरुआत की। जैविक और शून्य-बजट खेती को बढ़ावा दिया है।
    • वर्ष 2018-19 और वर्ष 2020-21 के बीच भारत का उर्वरक आयात 18.84 मिलियन टन से लगभग 8% बढ़कर 20.33 मिलियन टन हो गया।
      • वित्तीय वर्ष 2021 में यूरिया की आवश्यकता का एक-चौथाई से अधिक आयात किया गया था।
    • भारत, यूरिया का शीर्ष आयातक देश है तथा अपने विशाल कृषि क्षेत्र को पोषित करने हेतु  आवश्यक डायमोनियम फॉस्फेट (Diammonium Phosphate- DAP) का एक प्रमुख खरीदार भी है, जो देश के लगभग 60% कार्यबल को रोज़गार प्रदान करता है और 2.7 ट्रिलियन अमेरिकी डाॅलर की अर्थव्यवस्था का 15% हिस्सा है। 
  • अधिक मात्रा में उर्वरकों की आवश्यकता:
    • भारत के कृषि उत्पादन में प्रतिवर्ष वृद्धि हुई है और इसके साथ ही देश में उर्वरकों की मांग भी बढ़ी है। 
    • आयात के बावजूद स्वदेशी उत्पादन लक्ष्य पूरा न होने के कारण मांग और उपलब्धता के बीच अंतर बना हुआ है।

उर्वरक सब्सिडी:

  • उर्वरक सब्सिडी के बारे में: 
    • सरकार उर्वरक उत्पादकों को कृषि में इस महत्त्वपूर्ण घटक को किसानों के लिये वहनीय बनाने हेतु सब्सिडी का भुगतान करती है।
    • इससे किसान बाज़ार से कम कीमतों पर उर्वरकों या खाद की खरीद कर सकेंगे। 
      • उर्वरक के उत्पादन/आयात की लागत और किसानों द्वारा भुगतान की गई वास्तविक राशि के बीच का अंतर सरकार द्वारा वहन की जाने वाली सब्सिडी का हिस्सा होता है।
  • यूरिया पर सब्सिडी:
    • केंद्र सरकार प्रत्येक संयंत्र में उत्पादन लागत के आधार पर उर्वरक निर्माताओं को यूरिया पर सब्सिडी का भुगतान करती है और इकाइयों को सरकार द्वारा निर्धारित अधिकतम खुदरा मूल्य (MRP) पर उर्वरक बेचना आवश्यक है।
  • गैर-यूरिया उर्वरकों पर सब्सिडी:
    • गैर-यूरिया उर्वरकों के उदाहरण: डाई अमोनियम फॉस्फेट (DAP), म्यूरेट ऑफ पोटाश (एमओपी)।
      • सभी गैर-यूरिया आधारित उर्वरकों को पोषक तत्त्व आधारित सब्सिडी योजना के तहत विनियमित किया जाता है। 
      • गैर-यूरिया उर्वरकों की MRP कंपनियों द्वारा नियंत्रित या तय की जाती है। हालाँकि केंद्र इन पोषक तत्त्वों के लिये प्रति टन एक फ्लैट सब्सिडी का भुगतान करता है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि उनकी कीमत "उचित स्तर" पर है।

उर्वरक आपूर्ति पर महामारी का प्रभाव :

  • महामारी ने पिछले दो वर्षों के दौरान दुनिया भर में उर्वरक उत्पादन, आयात और परिवहन को प्रभावित किया है।
  • चीन, जो कि प्रमुख उर्वरक निर्यातक है, ने उत्पादन में गिरावट को देखते हुए अपने निर्यात को धीरे-धीरे कम कर दिया है। 
    • इसका प्रभाव भारत जैसे देश पर देखा गया है, जो चीन से अपने फॉस्फेटिक उर्वरक आवश्यकता का 40-45% आयात करता है।
  • इसके अलावा, यूरोप, अमेरिका, ब्राज़ील और दक्षिण-पूर्व एशिया जैसे क्षेत्रों में मांग में वृद्धि हुई है।
  • मांग बढ़ी है, लेकिन आपूर्ति बाधित है।

सरकारी पहल और योजनाएँ:

  • नीम कोटेड यूरिया (Neem Coated Urea- NCU)
    • उर्वरक विभाग (DoF) ने सभी घरेलू उत्पादकों के लिये शत-प्रतिशत यूरिया का उत्पादन ‘नीम कोटेड यूरिया’ (NCU) के रूप में करना अनिवार्य कर दिया है।
    • ‘नीम कोटेड यूरिया’ के उपयोग के लाभ:
      • मृदा स्वास्थ्य में सुधार।
      • पौध संरक्षण रसायनों के उपयोग में कमी।
      • कीट और रोग के हमले में कमी।
      • धान, गन्ना, मक्का, सोयाबीन, अरहर आदि की उपज में वृद्धि।
      • गैर-कृषि उद्देश्यों के लिये उपयोग में कमी।
      • नाइट्रोजन के धीमे रिसाव के कारण ‘नीम कोटेड यूरिया’ की नाइट्रोजन उपयोग दक्षता (NUE) बढ़ जाती है, जिसके परिणामस्वरूप सामान्य यूरिया की तुलना में ‘नीम कोटेड यूरिया’ में नाइट्रोजन की खपत कम होती है।
  • नई यूरिया नीति 2015:
    • नीति के उद्देश्य हैं-
      • स्वदेशी यूरिया उत्पादन को बढ़ावा देना।
      • यूरिया इकाइयों में ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देना।
      • भारत सरकार पर सब्सिडी के भार को युक्तिसंगत बनाना।
  • नई निवेश नीति, 2012: 
    • सरकार ने जनवरी 2013 में नई निवेश नीति (New Investment Policy- NIP), 2012 की घोषणा की जिसे वर्ष 2014 में यूरिया क्षेत्र में नए निवेश की सुविधा तथा भारत को यूरिया क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिये संशोधित किया गया।
  • सिटी कम्पोस्ट के संवर्द्धन पर नीति:
    • भारत सरकार ने  सिटी कम्पोस्ट के उत्पादन और खपत को बढ़ाने के लिये 1500 रुपए की बाज़ार विकास सहायता (Market Development Assistance) प्रदान करने हेतु वर्ष 2016 में  डीओएफ द्वारा अधिसूचित सिटी कम्पोस्ट को बढ़ावा देने की नीति को मंज़ूरी दी।
    • बिक्री की मात्रा बढ़ाने के लिये सिटी कम्पोस्ट का विपणन करने के इच्छुक खाद निर्माताओं को सीधे किसानों को थोक में सिटी कम्पोस्ट बेचने की अनुमति दी गई थी।
    •  सिटी कम्पोस्ट का विपणन करने वाली उर्वरक कंपनियाँ उर्वरकों के लिये प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (Direct Benefit Transfer- DBT) के अंतर्गत आती हैं।
  • उर्वरक क्षेत्र में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का उपयोग:
    • डीओएफ ने भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (Geological Survey of India) और परमाणु खनिज निदेशालय (Atomic Mineral Directorate) के सहयोग से इसरो के राष्ट्रीय रिमोट सेंसिंग सेंटर (National Remote Sensing Centre) द्वारा “परावर्तन स्पेक्ट्रोस्कोपी एवं पृथ्वी अवलोकन डेटा का उपयोग करके चट्टानी फॉस्फेट के संसाधन का मानचित्रण” (Resource Mapping of Rock Phosphate using Reflectance Spectroscopy and Earth Observations Data) पर तीन वर्ष का प्रारंभिक अध्ययन शुरू किया।
  • पोषक तत्त्व आधारित सब्सिडी योजना:
    • इसे डीओएफ द्वारा अप्रैल 2010 से लागू किया गया है।
    • इस योजना के अंतर्गत वार्षिक आधार पर तय की गई सब्सिडी की एक निश्चित राशि सब्सिडी वाले फॉस्फेटिक और पोटासिक ( Phosphatic & Potassic) उर्वरकों के प्रत्येक ग्रेड पर इसकी पोषक सामग्री के आधार पर प्रदान की जाती है।
    • इसका उद्देश्य उर्वरकों का संतुलित उपयोग सुनिश्चित करना, कृषि उत्पादकता में सुधार, स्वदेशी उर्वरक उद्योग के विकास को बढ़ावा देना और सब्सिडी के बोझ को कम करना है।

प्रश्न. भारत में रासायनिक उर्वरकों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)

  1. वर्तमान में रासायनिक उर्वरकों का खुदरा मूल्य बाज़ार संचालित है और यह सरकार द्वारा नियंत्रित नहीं है।
  2. अमोनिया, जो यूरिया बनाने में काम आता है, प्राकृतिक गैस से उत्पन्न होता है।
  3. सल्फर, जो फॉस्फोरिक अम्ल उर्वरक के लिये एक कच्चा माल है, तेलशोधन कारखानों का उपोत्पाद है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 2
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)

व्याख्या:

  • भारत सरकार उर्वरकों पर सब्सिडी देती है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि किसानों को उर्वरक आसानी से उपलब्ध हो तथा देश कृषि उत्पादन में आत्मनिर्भर बना रहे। यह काफी हद तक उर्वरक की कीमत और उत्पादन की मात्रा को नियंत्रित करके प्राप्त किया जाता है। अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • प्राकृतिक गैस से अमोनिया (NH3) का संश्लेषण किया जाता है। इस प्रक्रिया में प्राकृतिक गैस के अणु कार्बन और हाइड्रोजन में परिवर्तित हो जाते हैं। फिर हाइड्रोजन को शुद्ध किया जाता है तथा अमोनिया के उत्पादन के लिये नाइट्रोजन के साथ प्रतिक्रिया कराई जाती है। इस सिंथेटिक अमोनिया को यूरिया, अमोनियम नाइट्रेट तथा  मोनोअमोनियम या डायमोनियम फॉस्फेट के रूप में संश्लेषण के बाद प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उर्वरक के तौर पर प्रयोग किया जाता है। अत: कथन 2 सही है।
  • सल्फर तेलशोधन और गैस प्रसंस्करण का एक प्रमुख उप-उत्पाद है। अधिकांश कच्चे तेल ग्रेड में कुछ सल्फर होता है, जिनमें से अधिकांश को परिष्कृत उत्पादों में सल्फर सामग्री की सख्त सीमा को पूरा करने के लिये शोधन प्रक्रिया के दौरान हटाया जाना चाहिये। यह कार्य हाइड्रोट्रीटिंग के माध्यम से किया जाता है और इसके परिणामस्वरूप एच 2 एस (H2 S) गैस का उत्पादन होता है जो मौलिक सल्फर में परिवर्तित हो जाती है। सल्फर का खनन भूमिगत, प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले निक्षेपों से भी किया जा सकता है लेकिन यह तेल और गैस से प्राप्त करने की तुलना में अधिक महंगा है तथा  इसे काफी हद तक बंद कर दिया गया है। सल्फ्यूरिक एसिड का उपयोग मोनोअमोनियम फॉस्फेट (Monoammonium Phosphate- M A P) एवं डाइअमोनियम फॉस्फेट (Diammonium Phosphate- DAP) दोनों के उत्पादन में किया जाता है। अत: कथन 3 सही है। 

अतः विकल्प (b) सही है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

क्रिप्टोकरेंसी

प्रिलिम्स के लिये:

क्रिप्टोकरेंसी, बिटकॉइन, ब्लॉकचेन।

मेन्स के लिये:

क्रिप्टोकरेंसी और संबंधित मुद्दे, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में मध्य अफ्रीकी गणराज्य (CAR), अल सल्वाडोर के बाद बिटकॉइन को कानूनी निविदा के रूप में अपनाने वाला दूसरा देश बन गया है।

  • भारत के केंद्रीय बजट 2022-2023 में भी आने वाले वित्तीय वर्ष में एक डिजिटल मुद्रा पेश करने का प्रस्ताव है।
  • यह भी घोषणा की गई कि "किसी भी आभासी डिजिटल संपत्ति के हस्तांतरण से होने वाली किसी भी आय पर 30% की दर से कर लगाया जाएगा।"

क्रिप्टोकरेंसी:

  • क्रिप्टोकरेंसी, जिसे कभी-कभी क्रिप्टो-मुद्रा या क्रिप्टो कहा जाता है, मुद्रा का एक रूप है जो डिजिटल या वस्तुतः मौजूद होती है और यह लेन-देन को सुरक्षित करने के लिये क्रिप्टोग्राफी का उपयोग करती है।
  • क्रिप्टोकरेंसी में मुद्रा जारी करने या विनियमित करने वाला कोई केंद्रीय प्राधिकरण नहीं है। यह लेन-देन को रिकॉर्ड करने और नई इकाइयों को जारी करने के लिये विकेंद्रीकृत प्रणाली का उपयोग करती है।
    • यह एक विकेंद्रीकृत पीयर-टू-पीयर नेटवर्क द्वारा संचालित होता है जिसे ब्लॉकचेन कहा जाता है।

क्रिप्टोकरेंसी के लाभ:

  • तीव्र एवं किफायती लेन-देन: क्रिप्टोकरेंसी में लेन-देन के लिये बैंक या किसी अन्य मध्यस्थ की भूमिका की आवश्यकता नहीं होती है, अतः इस माध्यम से बहुत ही कम खर्च में लेन-देन किया जा सकता है।
  • निवेश गंतव्य: क्रिप्टोकरेंसी की आपूर्ति सीमित है। इसके अलावा पिछले कुछ वर्षों में अन्य वित्तीय साधनों की तुलना में क्रिप्टोकरेंसी की कीमत तेज़ी से बढ़ी है।
    • इसके कारण क्रिप्टोकरेंसी एक पसंदीदा निवेश गंतव्य बन सकता है।
  • मुद्रास्फीति विरोधी मुद्रा: क्रिप्टोकरेंसी की उच्च मांग के कारण इसकी कीमतें काफी हद तक ‘वृद्धिमान प्रक्षेप वक्र’ (Growing Trajectory) द्वारा निर्धारित होती हैं। इस परिदृश्य में लोग इसे खर्च करने की तुलना में अपने पास रखना अधिक पसंद करते हैं।
    • इससे मुद्रा पर अपस्फीतिकारी प्रभाव (Deflationary Effect) उत्पन्न होगा।

CAR जैसे देशों द्वारा कानूनी निविदा के रूप में क्रिप्टोकरेंसी को अपनाने का कारण:

  • मज़बूत और समावेशी विकास: यह उपाय "मज़बूत और समावेशी विकास" को सक्षम बनाएगा तथा अफ्रीकी देशों को "दुनिया के सबसे साहसी और दूरदर्शी देशों के मानचित्र" पर रखेगा।
    • 50 लाख की आबादी के साथ CAR विश्व स्तर पर सबसे गरीब और आर्थिक रूप से सबसे कमज़ोर देशों में से एक है।
      • जुलाई 2021 में उपलब्ध कराए गए विश्व बैंक के अनुमानों के अनुसार,
      • CAR की 71% आबादी अंतर्राष्ट्रीय गरीबी रेखा (प्रति दिन1.90 अमेरिकी डॉलर) से नीचे जीवन यापन कर रही थी।
  • सकारात्मक वृद्धि: मुद्रास्फीति और क्रिप्टोकरेंसी के उपयोग की अनुमति देने वाले देशों के बीच संभावित रूप से सीधा संबंध है।
    • क्रिप्टोकरेंसी में लीगल टेंडर की अपेक्षा मुद्रास्फीति से संबंधित गिरावट को सकारात्मक विकास में बदलने की क्षमता अधिक है।
    • यह संभावित प्रत्यक्ष संबंध CAR के लिये प्रासंगिक होगा। IMF के अनुसार, खाद्य और ईंधन की बढ़ती कीमतों के कारण 2022 में देश में मुद्रास्फीति के 4% तक बढ़ने की उम्मीद है।

भू-राजनीति पर प्रभाव:

  • अन्य देश पर निर्भरता:
    • बिटकॉइन को कानूनी निविदा के रूप में मान्यता प्रदान करने वाले दोनों देशों की अपनी मुद्रा नहीं है।
    • अल साल्वाडोर अमेरिकी डॉलर का उपयोग करता है और CFA फ्रैंक ( CAR’s franc) 14 अफ्रीकी देशों के लिये पारस्परिक मुद्रा है। इन देशों को मिलाकर, जिनमें से अधिकांश कभी फ्रांँसीसी उपनिवेश थे, 'फ्रैंक ज़ोन' (Franc Zone) का निर्माण करते हैं।
    • पेरिस के विनिमय बाज़ार के माध्यम से फ्रैंक का विदेशी मुद्राओं में आदान-प्रदान किया जा सकता है जो यूरोपीय देश पर निर्भरता को बढ़ाता है।
  • प्रतिबंध लगाना और उन्हें लागू करना:
    • अमेरिका द्वारा की गई नाकेबंदी के परिणामस्वरूप क्यूबा जैसे देश वैश्विक वित्तीय प्रणालियों से कट गए हैं तथा डेबिट या क्रेडिट कार्ड जैसे वित्तीय साधनों का अधिग्रहण नहीं कर सकते हैं, बदले में विदेश जाने और बाहर से वस्तुएँ आयातित करने व सेवाओं को प्राप्त करने के लिये संघर्ष कर रहे हैं।

कमियांँ:

  • अत्यधिक अस्थिर: क्रिप्टोकरेंसी अत्यधिक अस्थि संपत्ति हैं तथा यह अपनी अनियमित प्रकृति के कारण लोकप्रिय है। विशेष रूप से कमज़ोर सामाजिक-आर्थिक बुनियादी बातों के साथ इसकी अस्थिरता के जोखिम ने देश की व्यापक आर्थिक स्थिरता पर संभावित प्रभावको लेकर चिंताओं को उत्पन्न किया है।
    • हाल ही में कई देशों ने ऐसे कानूनों को स्थापित करने पर विचार किया है जो क्रिप्टोकरेंसी के उपयोग को विनियमित करते हैं, विशेष रूप से जिनके पास अच्छी तरह से तैयार मुद्रा तंत्र नहीं है और लंबे समय से मुद्रास्फीति से प्रभावित हैं।
  • अनियमित प्रकृति: अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund- IMF) ने अल सल्वाडोर से अनियमित परिसंपत्तियों के दायरे को सीमित करने का भी आग्रह किया था क्योंकि वित्तीय स्थिरता, वित्तीय अखंडता और उपभोक्ता संरक्षण के साथ-साथ संबंधित वित्तीय आकस्मिक देनदारियों पर बिटकॉइन के उपयोग से संबंधित बड़े जोखिम हैं।
  • क्रिप्टोकरेंसी में करों का भुगतान: CRA जैसे देशों के लिये क्रिप्टोकरेंसी में करों का भुगतान करने से संबंधित जोखिम तब उजागर होंगे जब क्रिप्टो परिसंपत्तियों का उपयोग करों के भुगतान के रूप में और व्यय का भुगतान स्थानीय मुद्रा में किया जाए।
    • उदाहरण के लिये सरकार क्रिप्टो मुल्यवर्गों का उपयोग करके 100 डॉलर मूल्य का कर एकत्र करती है लेकिन संपत्ति की गिरावट के कारण खर्च करने के लिये 40 डॉलर ही उपलब्ध होते हैं।
  • निश्चित तंत्र का भाव: इक्विटी या मुद्राओं के विपरीत क्रिप्टो निश्चित तंत्र के अधीन नहीं हैं जिससे यह सट्टा संपत्ति हैं, यही कारण है कि केंद्रीय बैंकों के पास अपनी घरेलू आवश्यकताओं के अनुसार ब्याज दरों को निर्धारित करने के लिये कोई संदर्भ बिंदु नहीं है।
  • प्रतिउत्पादक उपयोगिता: यह ब्लॉकचेन लेन-देन का पता लगाने में मदद करता है किंतु इसमें शामिल पक्षों की नहीं। इसलिये इसका मनी लॉन्ड्रिंग, आतंकवादी वित्तपोषण या अन्य अवैध गतिविधियों के लिये उपयोग किया जा सकता है।

विगत वर्ष के प्रश्न:

प्रश्न. कभी-कभी समाचारों में देखे जाने वाले 'बिटकॉइन्स' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं? (2016)

  1. बिटकॉइन को देशों के केंद्रीय बैंक द्वारा ट्रैक किया जाता है।
  2. बिटकॉइन एड्रेस वाला कोई भी व्यक्ति बिटकॉइन एड्रेस के साथ किसी और से बिटकॉइन भेज और प्राप्त कर सकता है।
  3. ऑनलाइन भुगतान एक-दूसरे की पहचान जाने बिना किया जा सकता है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: B

स्रोत: द हिंदू


भारतीय इतिहास

तमिलनाडु में लोहे का उत्खनन

प्रिलिम्स के लिये:

लौह युग, पुरापाषाण युग, मध्यपाषाण युग, नवपाषाण युग, महापाषाण संस्कृति, कार्बन डेटिंग

मेन्स के लिये:

प्राचीन भारतीय सभ्यताएंँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में तमिलनाडु में हुए उत्खनन कार्य की कार्बन डेटिंग से इस बात के प्रमाण मिले हैं कि भारत में लोहे का प्रयोग 4,200 साल पहले हुआ था।

  • इससे पहले देश में लोहे के प्रयोग का प्रमाण 1900-2000 ईसा पूर्व और तमिलनाडु के लिये 1500 ईसा पूर्व माना जाता था।
  • तमिलनाडु में लोहे के प्रयोग के नवीनतम साक्ष्य 2172 ईसा पूर्व के हैं।

निष्कर्ष:

  • यह उत्खनन तमिलनाडु में कृष्णागिरी के पास मयिलादुम्पराई में हुआ है।
  • मयिलादुम्पराई माइक्रोलिथिक (30,000 ईसा पूर्व) और प्रारंभिक ऐतिहासिक (600 ईसा पूर्व) युग के बीच की सांस्कृतिक सामग्री के साथ एक महत्त्वपूर्ण स्थल है।
  • अन्य महत्त्वपूर्ण निष्कर्षों में इस बात के प्रमाण मिले हैं कि तमिलनाडु में नवपाषाण चरण की शुरुआत 2200 ईसा पूर्व से पहले हुई। यह निष्कर्ष दिनांकित स्तर से नीचे पाए गए 25 सेमी ऊँचाई के सांस्कृतिक निक्षेपों के अध्ययन पर आधारित है।
    • पुरातत्त्वविदों ने यह भी पाया कि काले और लाल रंग के बर्तनों को नवपाषाण काल ​​के अंत में ही पेश किया गया था न कि लौह युग में जैसाकि व्यापक रूप से यह माना जाता है।

ऐतिहासिक महत्त्व:

  • कृषि उपकरणों का उत्पादन:
    • लौह प्रौद्योगिकी के आविष्कार से कृषि औज़ारों और हथियारों का उत्पादन हुआ, जिससे आर्थिक एवं सांस्कृतिक प्रगति से पहले एक सभ्यता हेतु आवश्यक उत्पादन संभव हुआ।
      • जहांँ तांबे का इस्तेमाल पहली बार भारतीयों (1500 ईसा पूर्व) द्वारा किया गया था वही सिंधु घाटी में लोहे के इस्तेमाल होने के कोई ज्ञात रिकॉर्ड या साक्ष्य नहीं हैं।
  • वनों की कटाई में उपयोगी:
    • वनों की कटाई तब हुई जब मानव ने घने जंगलों को साफ करने और कृषि कार्य हेतु भूमि को साफ करने के लिये लोहे के औज़ारों का उपयोग करना शुरू किया क्योंकि घने जंगलों को साफ करने और कृषि भूमि में तांबे के औज़ारों का उपयोग करना मुश्किल होता।
  • सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन:
    • 1500 ईसा पूर्व से 2000 ईसा पूर्व तक के प्राप्त नवीनतम साक्ष्यों के आधार पर यह माना जा सकता है कि लौह युग का सांस्कृतिक उद्भव 2000 ईसा पूर्व में हुआ था।
    • लगभग 600 ईसा पूर्व लौह प्रौद्योगिकी ने बड़े पैमाने पर सामाजिक-आर्थिक परिवर्तनों का आधार निर्मित किया जिससे तमिल ब्राह्मी लिपि का विकास हुआ।
      • माना जाता है कि तमिल ब्राह्मी लिपियों की उत्पत्ति लगभग 300 ईसा पूर्व हुई थी, लेकिन वर्ष 2019 में एक ऐतिहासिक खोज ने इस अवधि को 600 ईसा पूर्व निर्धारित कर दिया।
      • इस डेटिंग या अवधि ने सिंधु घाटी सभ्यता और तमिलगाम/दक्षिण भारत के संगम युग के बीच के अंतर को कम करने का कार्य किया।

पाषाण युग

  • पेलियोलिथिक ( पाषाण काल) युग:
    • मूल रूप से शिकार और भोजन एकत्र करने की संस्कृति।
    • पुरापाषाण काल के औज़ारों में नुकीले पत्थर, चॉपर, हाथ की कुल्हाड़ी, खुरचनी, भाला, धनुष और तीर आदि शामिल हैं तथा ये सामान्यतः हार्ड रॉक क्वार्टजाइट से बने होते हैं।
    • मध्य प्रदेश के भीमबेटका में पाए गए रॉक पेंटिंग एवं नक्काशी में शिकार को मुख्य जीवन निर्वाह गतिविधि के रूप में दर्शाते हैं।
    • भारत में पुरापाषाण काल को तीन चरणों में विभाजित किया गया है: प्रारंभिक या निम्न पुरापाषाण (50,0000-100,000 ईसा पूर्व), मध्य पुरापाषाण (100,000-40,000 ईसा पूर्व) और उत्तर पुरापाषाण (40,000-10,000 ईसा पूर्व)।
    • होमो सेपियन्स उत्तर पुरापाषाण युग में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं।
  • मेसोलिथिक (मध्य पाषाण) युग:
    • प्लीस्टोसिन काल से होलोसीन काल में संक्रमण और जलवायु में अनुकूल परिवर्तनों द्वारा युग को चिह्नित किया गया है।
    • मेसोलिथिक युग के प्रारंभिक काल में शिकार, मछली पकड़ने और भोजन एकत्र करने जैसी गतिविधि होती थी।
    • इस युग में पशुओं का पालन-पोषण शुरू हुआ।
    • माइक्रोलिथ नामक उपकरण छोटे थे जिनकी ज्यामिति में पुरापाषाण युग की तुलना में सुधार हुआ था।
  • निओलिथिक (नव पाषाण) युग:
    • पाषाण युग के अंतिम चरण के रूप में संदर्भित इस युग में खाद्य उत्पादन की शुरुआत हुई।
    • लंबे समय तक एक ही स्थान पर रहना,मिट्टी के बर्तनों का उपयोग और शिल्प का आविष्कार नवपाषाण युग की विशेषता है।
    • नवपाषाण काल के लोग पॉलिशदार पत्थर के औज़ारो एवं हथियारों का प्रयोग करते थे। इस काल के लोग विशेष रूप से पत्थर की बनी कुल्हाड़ियों का प्रयोग करते थे। नवपाषाण काल में हथौड़ा, छेनी एवं बसुली के प्रमाण भी प्राप्त हुए हैं।
  • मेगालिथिक (महापाषाण) संस्कृति:
    • महापाषाण संस्कृति में पत्थर की संरचनाओं के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं, जिनका निर्माण दफन स्थलों के रूप में या स्मारक स्थलों के रूप में किया गया था।
    • भारत में पुरातत्त्वविदों को लौह युग (1500 ईसा पूर्व से 500 ईसा पूर्व) में अधिकांश महापाषाण संस्कृतियों के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं, हालाँकि कुछ साक्ष्यों से लौह युग पूर्व (2000 ईसा पूर्व ) भी इनकी उपस्थिति के प्रमाण मिलते हैं।
    • महापाषाण संस्कृति संपूर्ण प्राचीन भारतीय उपमहाद्वीप में फैली हुई है। हालाँकि उनमें से अधिकांश स्थल प्रायद्वीपीय भारत में पाए जाते हैं, जो महाराष्ट्र (मुख्य रूप से विदर्भ), कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना राज्यों में केंद्रित हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


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