भारतीय राजव्यवस्था
भारतीय लोकतंत्र में संसदीय समितियों की भूमिका
प्रिलिम्स के लिये:संसदीय समितियों के प्रकार, लोकसभा अध्यक्ष, राज्यसभा, लोकसभा मेन्स के लिये: |
चर्चा में क्यों?
संसदीय समितियों का गठन सार्वजनिक मामलों को गहराई से समझने और विशेषज्ञ राय विकसित करने हेतु किया जाता है।
संसदीय समितियाँ (Parliamentary Committees):
- समितियों का विकास:
- संरचित समिति प्रणाली वर्ष 1993 में स्थापित की गई थी, लेकिन स्वतंत्रता के बाद से व्यक्तिगत समितियों का गठन किया गया है।
- उदाहरण के लिये संविधान सभा की कई समितियों में से पाँच महत्त्वपूर्ण समितियाँ निम्नलिखित हैं:
- भारतीय नागरिकता की प्रकृति एवं दायरे पर चर्चा करने हेतु नागरिकता खंड पर तदर्थ समिति का गठन किया गया था।
- पूर्वोत्तर सीमांत (असम) जनजातीय और बहिष्कृत क्षेत्र उप-समिति तथा बहिष्कृत एवं आंशिक रूप से बहिष्कृत क्षेत्र (असम के अलावा) उप-समिति स्वतंत्रता के दौरान महत्त्वपूर्ण समितियाँ थीं।
- संघ संविधान के वित्तीय प्रावधानों पर विशेषज्ञ समिति और अल्पसंख्यकों हेतु राजनीतिक सुरक्षा के विषय पर सलाहकार समिति का गठन क्रमशः कराधान एवं धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिये आरक्षण के उन्मूलन पर सिफारिशें देने हेतु किया गया था।
- परिचय:
- संसदीय समिति का अर्थ है एक समिति जो:
- संसदीय समिति सांसदों का एक पैनल है जिसे सदन द्वारा नियुक्त या निर्वाचित किया जाता है या अध्यक्ष/सभापति द्वारा नामित किया जाता है।
- अध्यक्ष/सभापति के निर्देशन में कार्य करती है।
- अपनी रिपोर्ट सदन या अध्यक्ष/सभापति को प्रस्तुत करती है।
- लोकसभा/राज्यसभा द्वारा प्रदान किया गया सचिवालय है।
- परामर्शदात्री समितियाँ जिनमें संसद के सदस्य भी शामिल हैं, संसदीय समितियाँ नहीं हैं क्योंकि वे उपरोक्त चार शर्तों को पूरा नहीं करती हैं।
- संसदीय समिति का अर्थ है एक समिति जो:
- प्रकार:
- स्थायी समितियाँ: स्थायी (प्रत्येक वर्ष या समय-समय पर गठित) और निरंतर आधार पर कार्य करती हैं।
- स्थायी समितियों को निम्नलिखित छह श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है:
- वित्तीय समितियाँ
- विभागीय स्थायी समितियाँ
- पूछताछ हेतु समितियाँ
- जाँच और नियंत्रण हेतु समितियाँ
- सदन के दिन-प्रतिदिन के कार्य से संबंधित समितियाँ
- हाउस-कीपिंग समितियाँ या सेवा समितियाँ
- स्थायी समितियों को निम्नलिखित छह श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है:
- तदर्थ समितियाँ:
- ये अस्थायी होती हैं और उन्हें सौंपे गए कार्य के पूरा होने पर उनका अस्तित्त्व समाप्त हो जाता है। उदाहरण- संयुक्त संसदीय समिति।
- स्थायी समितियाँ: स्थायी (प्रत्येक वर्ष या समय-समय पर गठित) और निरंतर आधार पर कार्य करती हैं।
- संवैधानिक प्रावधान:
- संसदीय समितियाँ अनुच्छेद 105 (संसद सदस्यों के विशेषाधिकारों पर) और अनुच्छेद 118 (इसकी प्रक्रिया एवं कार्य संचालन को विनियमित करने तथा नियम बनाने के लिये संसद के अधिकार पर) से अपने अधिकार प्राप्त करती हैं।
संसदीय समितियों की भूमिका:
- विधायी विशेषज्ञता प्रदान करना:
- अधिकांश सांसद चर्चा किये जा रहे विषयों के विषय विशेषज्ञ नहीं होते हैं। संसदीय समितियाँ सांसदों को विशेषज्ञता हासिल करने में सहायता और मुद्दों पर विस्तार से विचार करने के लिये समय प्रदान करती हैं।
- लघु-संसद के रूप में कार्य करना:
- ये समितियाँ एक लघु संसद के रूप में कार्य करती हैं क्योंकि उनके पास अलग-अलग दलों का प्रतिनिधित्त्व करने वाले सांसद एकल संक्रमणीय मत प्रणाली के माध्यम से चुने जाते हैं, (संसद में उनकी शक्ति के समान अनुपात में)।
- विस्तृत जाँच का साधन:
- जब बिल इन समितियों को भेजे जाते हैं, तो उनकी गहनता से जाँच की जाती है और जनता सहित विभिन्न बाहरी हितधारकों से उन पर सुझाव मांगा जाता है।
- सरकार पर निगरानी रखने में मदद:
- हालाँकि समिति की सिफारिशें सरकार के लिये कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं होती हैं किंतु उनकी रिपोर्टें परामर्शों का एक सार्वजनिक रिकॉर्ड प्रदान करती हैं और विवादित भागों के प्रति प्रशासन के रुख पर पुनर्विचार करने के लिये दबाव डालती हैं।
- जनता की नज़रों से दूर होने और एक पृथक माहौल में होने के कारण समिति की बैठकों में चर्चाएँ अधिक उत्पादक प्रकृति की होती हैं, साथ ही सांसदों पर मीडिया का दबाव कम होता है।
हालिया समय में संसदीय समितियों की भूमिका पर प्रभाव:
- 17वीं लोकसभा के दौरान केवल 14 विधेयकों को आगे की जाँच के लिये भेजा गया।
- PRS के आँकड़ों के अनुसार, 16वीं लोकसभा में पेश किये गए विधेयकों में से केवल 25% को समितियों को भेजा गया था, जबकि 15वीं और 14वीं लोकसभा में यह आँकड़ा क्रमशः 71% और 60% था।
आगे की राह
- कार्यपालिका को उत्तरदायी बनाने के लिये उन्हें अधिक संसाधन, शक्तियाँ और अधिकार देकर संसदीय समितियों की भूमिका को बढ़ाया जा सकता है।
- विभिन्न दृष्टिकोणों और सूचित निर्णयन सुनिश्चित करने के लिये समिति की कार्यवाही में नागरिक समाज, विशेषज्ञों तथा हितधारकों की अधिक भागीदारी को प्रोत्साहित किया जा सकता है।
- लाइव स्ट्रीमिंग तथा बैठकों की रिकॉर्डिंग एवं रिपोर्ट और सिफारिशों को सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराकर समिति की कार्यवाही में पारदर्शिता व जवाबदेही को सुनिश्चित किया जा सकता है।
- सभी हितधारकों के हितों के प्रतिनिधित्त्व को सुनिश्चित करते हुए अधिक उत्पादक और कुशल विधायी प्रक्रिया को बढ़ावा देने हेतु समितियों के भीतर द्विदलीय आम सहमति-निर्माण की संस्कृति को विकसित करने का प्रयास किया जा सकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. भारत में निम्नलिखित में से कौन दूरसंचार, बीमा, बिजली आदि क्षेत्रों में स्वतंत्र नियामकों की समीक्षा करता है? (2019)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (a) व्याख्या:
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स्रोत: द हिंदू
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर
प्रिलिम्स के लिये:लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर, सर्न (CERN), क्वार्क और ग्लून्स, प्रोटॉन, बिग बैंग, सुपरसिमेट्री एवं अन्य आयाम। मेन्स के लिये: |
चर्चा में क्यों?
लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर (Large Hadron Collider- LHC) को हाल ही में अधिक सटीक एवं संवेदनशील बनाने हेतु अपग्रेड किया गया है तथा यह मई 2023 में डेटा संग्रहण शुरू कर देगा।
- LHC की संवेदनशीलता एवं सटीकता को बढ़ाने हेतु अपग्रेड किया गया है, जिससे वैज्ञानिकों को उच्च ऊर्जा वाले कणों का अध्ययन करने की सुविधा मिलती है।
हैड्रॉन (Hadron):
- हैड्रॉन उप-परमाण्विक कणों के एक वर्ग का सदस्य है जो क्वार्क से निर्मित है तथा इस प्रकार प्रबल बल के माध्यम से प्रतिक्रिया करता है। हैड्रॉन मेसन, बैरियन (जैसे, प्रोटॉन, न्यूट्रॉन और सिग्मा कण) तथा उनके कई अनुनादों से मिलकर बने होते हैं।
लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर (LHC):
- परिचय:
- LHC एक विशाल प्रयोग है जो अत्यधिक उच्च ऊर्जा पर भौतिकी का अध्ययन करने के लिये कणों के दो बीमों को टकराता है। यह विश्व का सबसे बड़ा वैज्ञानिक प्रयोग है तथा CERN (परमाणु अनुसंधान के लिये यूरोपीय संगठन) द्वारा संचालित है।
- LHC एक गोलाकार पाइप है जो 27 किमी. लंबी है तथा फ्रेंको-स्विस सीमा के पास जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में स्थित है।
- इसमें लगभग 9,600 चुंबकों/मैग्नेट्स द्वारा निर्मित दो D-आकार के चुंबकीय क्षेत्र शामिल हैं।
- कार्यप्रणाली:
- प्रोटॉन, जो क्वार्क एवं ग्लून्स से बने उप-परमाणु कण हैं, इन चुंबकों का उपयोग करके LHC के अंदर त्वरित होते हैं।
- क्वार्क एवं ग्लूऑन उप-परमाणु कण हैं जो प्रोटॉन और न्यूट्रॉन का निर्माण करते हैं। क्वार्क छह अलग-अलग "प्रकार" से त्वरित होते हैं: ऊपर, नीचे, आकर्षी, असामान्य, शीर्ष और तल। ग्लूऑन ऐसे कण होते हैं जो शक्तिशाली परमाणु बल के माध्यम से प्रोटॉन एवं न्यूट्रॉन के अंदर क्वार्क को एक साथ "श्लेषित (Glue)" करते हैं।
- प्रोटॉन LHC में त्वरित होने वाले एकमात्र कण नहीं हैं।
- इन्हें चुंबकीय क्षेत्र की दिशा में तीव्र परिवर्तन करके बीम पाइप के माध्यम से प्रोटॉन को त्वरित किया जा सकता है।
- ये अन्य घटक कणों पर ध्यान केंद्रित करने और उन्हें पाइप की दीवारों से टकराने से रोकने में मदद करते हैं।
- प्रोटॉन अंततः प्रकाश की गति के 99.999999% पर गमन करते हैं।
- प्रोटॉन, जो क्वार्क एवं ग्लून्स से बने उप-परमाणु कण हैं, इन चुंबकों का उपयोग करके LHC के अंदर त्वरित होते हैं।
- महत्त्व:
- ऐसी उच्च ऊर्जाओं पर LHC ऐसी स्थितियाँ उत्पन्न कर सकता है जो बिग बैंग के बाद केवल एक सेकंड के अंशों में मौजूद हो।
- त्वरित कणों की परस्पर क्रियाओं का निरीक्षण करने के लिये वैज्ञानिक बीम पाइप के साथ लगे डिटेक्टरों का उपयोग करते हैं, जो पदार्थ और ब्रह्मांड की प्रकृति पर नई अंतर्दृष्टि प्रकट कर सकते हैं।
- LHC ने पहले ही वर्ष 2012 में हिग्स बोसॉन (Higgs boson) की खोज की है तथा वर्ष 2013 में अपने निष्कर्षों की पुष्टि की है जिसमें एक कण अन्य कणों को द्रव्यमान प्रदान करता है।
- LHC सुपरसिमेट्री और अतिरिक्त आयामों (Supersymmetry and Extra Dimensions) जैसे कण भौतिकी के सिद्धांतों का परीक्षण करने में भी सहांयता करता है।
सुपरसिमेट्री और अतिरिक्त आयाम:
- सुपरसिमेट्री:
- यह प्रस्तावित करता है कि ब्रह्मांड में प्रत्येक ज्ञात कण के साथ एक "सुपरपार्टनर" कण है, जिसकी अभी खोज की जानी है, इन कणों में विपरीत घूर्णन और विभिन्न क्वांटम संख्याएँ होंगी।
- इसका अर्थ यह होगा कि ब्रह्मांड के प्रत्येक कण का एक साथी होगा जिसे अभी तक नहीं खोजा गया है और यह कण भौतिकी के वर्तमान मानक मॉडल के साथ कुछ समस्याओं को हल करने में सहांयता कर सकता है, जैसे पदानुक्रम समस्या।
- अतिरिक्त आयाम:
- अतिरिक्त आयामों का मतलब यह है कि ब्रह्मांड में अंतरिक्ष के तीन आयामों और समय के एक आयाम से अधिक है जिससे हम परिचित हैं।
- विचार यह है कि ऐसे अतिरिक्त आयाम हो सकते हैं जो "कर्ल्ड अप" या संकुचित हैं और हमारे वर्तमान प्रयोगों द्वारा पहचाने जाने के लिये बहुत छोटे हैं।
- गुरुत्त्वाकर्षण के कुछ सिद्धांतों में अतिरिक्त आयामों की अवधारणा उत्पन्न होती है जैसे कि स्ट्रिंग सिद्धांत, जो सुझाव देते हैं कि गुरुत्त्वाकर्षण छोटी दूरी पर अपेक्षा से अधिक मज़बूत होता है क्योंकि यह अतिरिक्त आयामों को "महसूस" करता है।
संबंधित चुनौतियाँ:
- LHC कई प्रकार की तकनीकी चुनौतियों का सामना करता है, जैसे मैग्नेट की स्थिरता को बनाए रखना और कणों तथा पाइप की दीवारों के बीच टकराव को रोकना।
- LHC भारी मात्रा में डेटा उत्पन्न करता है। इस डेटा को संभालना और प्रोसेस करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है जिसके लिये उन्नत कंप्यूटिंग और स्टोरेज प्रणाली की आवश्यकता होती है।
- LHC एक अंतर्राष्ट्रीय सहयोग है जिसमें विभिन्न देशों और संस्थानों के हजारों वैज्ञानिक शामिल हैं। इस सहयोग का समन्वय करना और यह सुनिश्चित करना कि सभी प्रतिभागियों के पास आवश्यक डेटा और सुविधाओं तक पहुँच एक चुनौती है।
आगे की राह
- LHC एक उल्लेखनीय वैज्ञानिक उपलब्धि है, लेकिन इसके संचालन के लिये कई लोगों और संस्थानों के समन्वित प्रयास की आवश्यकता होती है। ब्रह्मांड के बारे में हमारी समझ को आगे बढ़ाने हेतु LHC से जुड़ी चुनौतियों का समाधान करना आवश्यक है।
- LHC ने कुछ सिद्धांतों का परीक्षण और खंडन किया है जिसका उद्देश्य मानक मॉडल की सीमाओं की व्याख्या करना है, जिससे भौतिकी क्षेत्र में अनिश्चितता की स्थिति पैदा होती है। साथ ही आगे बढ़ने के लिये दो विचार सामने आए हैं: LHC को इसकी चमक बढ़ाने के लिये अपग्रेड करना और भौतिकी के क्षेत्र में नई खोज की उम्मीद में एक बड़ा और अधिक महँगा संस्करण बनाना।
- जबकि CERN और चीन ने ऐसी मशीन का प्रस्ताव दिया है, जिस पर कुछ भौतिकविद् सवाल उठाते हैं कि गारंटीशुदा परिणामों के साथ कम खर्चीले प्रयोगों पर पैसा बेहतर तरीके से खर्च किया जाएगा या नहीं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्नप्रश्न. निकट अतीत में हिग्स बोसॉन कण के अस्तित्त्व के संसूचन के लिये किये गए प्रयत्न लगातार समाचारों में रहे हैं। इस कण की खोज का क्या महत्त्व है? (2013)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (a) |
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
खुदरा मुद्रास्फीति में 6% की गिरावट
प्रिलिम्स के लिये:RBI, CPI, WPI, कोर इन्फ्लेशन, MPC। मेन्स के लिये:खुदरा मुद्रास्फीति में 6% की गिरावट। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत की खुदरा मुद्रास्फीति दर मार्च 2023 में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के निर्धारित 6% के ऊपरी लक्ष्य से नीचे गिरकर 5.66% तक रही है ऐसा मुख्य रूप से खाद्य कीमतों में कमी (विशेष रूप से सब्जियों) के कारण हुआ है।
- कोर मुद्रास्फीति (जिसमें खाद्य और ईंधन की कीमतें शामिल नहीं होती हैं) फरवरी के 6.12% से गिरकर मार्च में 5.95% रही थी।
इस गिरावट का महत्त्व:
- खुदरा मुद्रास्फीति में कमी आना अर्थव्यवस्था के लिये एक सकारात्मक पहलू है। यह उन उपभोक्ताओं को कुछ राहत प्रदान करता है जो आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं की बढ़ती कीमतों से प्रभावित हैं। इसके अलावा यह RBI को मौद्रिक नीति के निर्धारण में अधिक लचीलापन प्रदान करेगी।
- हालाँकि यह देखा जाना बाकी है कि क्या यह प्रवृत्ति जारी रहेगी और क्या आरबीआई इसी अनुसार ब्याज दरों को समायोजित करेगी।
खुदरा मुद्रास्फीति:
- खुदरा मुद्रास्फीति [जिसे उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) मुद्रास्फीति के रूप में भी जाना जाता है] वह दर है जिस पर उपभोक्ताओं द्वारा व्यक्तिगत उपयोग के लिये खरीदी जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में समय के साथ वृद्धि होती है।
- इसमें खाद्य पदार्थ, कपड़े, आवास, परिवहन और चिकित्सा देखभाल सहित आमतौर पर लोगों द्वारा खरीदी जाने वाली वस्तुओं एवं सेवाओं की लागत में परिवर्तन को मापा जाता है।
- यह भोजन, कपड़े, आवास, परिवहन और चिकित्सा देखभाल सहित आमतौर पर परिवारों द्वारा खरीदी जाने वाली वस्तुओं तथा सेवाओं की संपूर्ण लागत में परिवर्तन को मापता है।
- CPI के चार प्रकार निम्न हैं:
- औद्योगिक श्रमिकों के लिये CPI (IW)
- कृषि मज़दूरों के लिये CPI (AL)
- ग्रामीण मज़दूरों के लिये CPI (RL)
- शहरी गैर-मैनुअल कर्मचारियों (UNME) के लिये CPI
- इनमें से पहले तीन को श्रम और रोज़गार मंत्रालय के श्रम ब्यूरो द्वारा संकलित किया गया है। चौथा सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय में NSO द्वारा संकलित किया गया है।
- CPI के लिये आधार वर्ष 2012 है।
- वर्ष 2020 में श्रम और रोज़गार मंत्रालय ने आधार वर्ष 2016 के साथ औद्योगिक श्रमिकों के लिये उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI-IW) की नई शृंखला जारी की।
- मौद्रिक नीति समिति (MPC) मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिये CPI डेटा का उपयोग करती है। अप्रैल 2014 में RBI ने CPI को मुद्रास्फीति के अपने प्रमुख उपाय के रूप में अपनाया।
अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति की निगरानी की आवश्यकता:
- मूल्य स्थिरता:
- मुद्रास्फीति की निगरानी कर नीति निर्माता मूल्य स्थिरता बनाए रखने के लिये कदम उठा सकते हैं, जो आर्थिक विकास और स्थिरता को बढ़ावा देता है।
- उपभोक्ता और व्यापार हेतु विश्वनीय:
- जब मुद्रास्फीति कम और स्थिर होती है, तो इससे उपभोक्ताओं और व्यवसायों का अर्थव्यवस्था में विश्वास मज़बूत होता है, यह उन्हें खर्च करने एवं निवेश करने के लिये प्रोत्साहित करती है।
- ब्याज दर:
- मुद्रास्फीति ब्याज दरों को प्रभावित करती है, जो बदले में उधार लेने और देने के निर्णयों, निवेश निर्णयों तथा समग्र आर्थिक विकास को प्रभावित करती है।
- मुद्रास्फीति की निगरानी करके नीति निर्माता यह सुनिश्चित करने के लिये ब्याज दरों को समायोजित कर सकते हैं कि अर्थव्यवस्था स्थायी रूप से बढ़ रही है।
- अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्द्धात्मकता:
- उच्च मुद्रास्फीति की दर किसी देश के निर्यात को और अधिक महँगा बना सकती है, जिससे इसकी अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्द्धात्मकता कम हो सकती है।
- मुद्रास्फीति की निगरानी नीति निर्माताओं को मुद्रास्फीति को नियंत्रण में रखने में मदद कर सकती है, जो देश की आर्थिक प्रतिस्पर्द्धात्मकता का समर्थन कर सकती है।
थोक मूल्य सूचकांक:
- यह थोक व्यवसायों द्वारा अन्य व्यवसायों को बेची जाने वाली वस्तुओं की कीमतों में बदलाव को मापता है।
- इसे वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय (Ministry of Commerce and Industry) के आर्थिक सलाहकार (Office of Economic Adviser) के कार्यालय द्वारा प्रकाशित किया जाता है।
- यह भारत में सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाने वाला मुद्रास्फीति संकेतक (Inflation Indicator) है।
- इस सूचकांक की सबसे प्रमुख आलोचना यह की जाती है कि आम जनता थोक मूल्य पर उत्पाद नहीं खरीदती है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा,विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में मांग-जन्य मुद्रास्फीति निम्नलिखित में से किसके कारण बढ़ सकती है?
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2 और 4 उत्तर: (a) प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (a) |
स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
भारतीय रक्षा अंतरिक्ष संगोष्ठी
प्रिलिम्स के लिये:सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची, रक्षा क्षेत्र में पहल, भारतीय रक्षा अंतरिक्ष संगोष्ठी। मेन्स के लिये:मिशन डिफस्पेस, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, प्रौद्योगिकी का स्वदेशीकरण, रक्षा के स्वदेशीकरण का महत्त्व और संबंधित चुनौतियाँ। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय अंतरिक्ष संघ (ISpA) ने रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) के सहयोग से भारतीय रक्षा अंतरिक्ष (डेफस्पेस) संगोष्ठी का आयोजन किया जो अंतरिक्ष डोमेन में सरकार और सैन्य फोकस के बढ़ते दृष्टिकोण पर केंद्रित है तथा भारत की अंतरिक्ष क्षमताओं को बढ़ाने के तरीकों की पड़ताल करता है।
- यह कार्यक्रम 'मिशन डेफस्पेस' के तहत के हिस्से के रूप में आयोजित किया गया था, जो भारतीय उद्योग और स्टार्ट-अप के माध्यम से अंतरिक्ष क्षेत्र में अभिनव समाधान विकसित करने के लिये भारत के प्रधानमंत्री द्वारा शुरू किया गया एक महत्त्वाकांक्षी प्रयास है।
वॉरफेयर के परिवर्तन की आवश्यकता:
- वॉरफेयर की प्रकृति बड़े परिवर्तन के संक्रमण परिदृश्य में है और अंतरिक्ष का उपयोग भूमि, समुद्र और साइबर डोमेन में युद्धक क्षमताओं को बढ़ाने के लिये किया जा रहा है।
- संगोष्ठी अत्याधुनिक तकनीक के साथ दोहरे उपयोग वाले प्लेटफॉर्म विकसित करने और अंतरिक्ष क्षेत्र में आक्रामक तथा रक्षात्मक क्षमताओं जैसे- लागत और चुनौतियों को कम करने के लिये उपग्रहों और पुन: प्रयोज्य लॉन्च प्लेटफार्मों के मिनीएचराइज़ेशन (सैटेलाइट लॉन्च की लागत को अनुकूलित करने का एक नया तरीका) क्षेत्र का पता लगाने, की आवश्यकता पर ज़ोर देती है।
- DRDO ने अंतरिक्ष स्थितिजन्य जागरूकता क्षमता को बढ़ाने, काउंटर स्पेस क्षमताओं के साथ अंतरिक्ष संपत्ति की सुरक्षा करने और अंतरिक्ष-आधारित बुनियादी ढाँचे में लचीलापन तथा अतिरेक बनाने की आवश्यकता पर बल दिया।
- यह नौसैनिक परिदृश्य के विस्तार के तरीकों की भी पड़ताल करता है, त्वरित अंतरिक्ष-आधारित खुफिया जानकारी, निगरानी और टोही (ISR) पर ज़ोर देता है और सुरक्षित उपग्रह-सहायता प्राप्त संचार सुनिश्चित करता है।
- संगोष्ठी में ट्रांस-डोमेन हथियारों की उपस्थिति, हवा से या आंतरिक अंतरिक्ष से बाह्य अंतरिक्ष तक लक्षित करने तथा भविष्य के अंतरिक्ष-आधारित निगरानी नेटवर्क को एकीकृत करने की आवश्यकता पर भी चर्चा की गई।
अंतरिक्ष के सैन्यीकरण पर भारत का दृष्टिकोण:
- वर्तमान परिदृश्य में बदलती ध्रुवीयता/शक्ति संतुलन: भारत में, ऐतिहासिक रूप से, अंतरिक्ष अपनी नागरिक अंतरिक्ष एजेंसी, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) का एकमात्र अधिकार क्षेत्र रहा है। अंतरिक्ष के शस्त्रीकरण और सैन्यीकरण का विरोध करते हुए भारत ने हमेशा अंतरिक्ष सुरक्षा के प्रति शांतिवादी दृष्टिकोण रखा है।
- पिछले एक दशक से, बाह्य अंतरिक्ष के प्रति भारत का दृष्टिकोण बदल रहा है और अब यह राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं से प्रेरित है। नैतिक रूप से संचालित नीति को चुनने के बजाय, भारत बाह्य अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण उपयोग पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।
- हालाँकि भारत ने अभी भी गैर-शस्त्रीकरण (Non-Weaponization) की अपनी नीति को नहीं छोड़ा है, लेकिन उसने महसूस किया है कि उसकी निष्क्रियता तथा बाह्य अंतरिक्ष में समकालीन विकास की अनदेखी उसकी अंतरिक्ष संपत्ति के लिये कई तरह के खतरों के प्रति संवेदनशील बना सकती है।
- पिछले एक दशक से, बाह्य अंतरिक्ष के प्रति भारत का दृष्टिकोण बदल रहा है और अब यह राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं से प्रेरित है। नैतिक रूप से संचालित नीति को चुनने के बजाय, भारत बाह्य अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण उपयोग पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।
- हाल के घटनाक्रम: वर्ष 2019 में भारत ने चीन के खतरों पर नज़र रखने के साथ अपना पहला सिम्युलेटेड अंतरिक्ष युद्ध अभ्यास (IndSpaceX) आयोजित किया और इसी वर्ष एक एंटी-सैटेलाइट हथियार (मिशन शक्ति) का सफलतापूर्वक परीक्षण किया।
- साथ ही, त्रि-सेवा रक्षा अंतरिक्ष एजेंसी (DSA) के लॉन्च ने सेना को नागरिक अंतरिक्ष की पृष्ठभूमि से संक्रमणीय रूप से दूर कर दिया है।
- भारत ने DSA के लिये अंतरिक्ष-आधारित हथियार विकसित करने में मदद के लिये रक्षा अंतरिक्ष अनुसंधान एजेंसी (DSRA) की भी स्थापना की है। वर्तमान में अंतरिक्ष को एक सैन्य क्षेत्र के रूप में उतना ही मान्यता प्राप्त है जितनी कि भूमि, जल, वायु और साइबर।
- वर्ष 2020 में, भारत सरकार ने अंतरिक्ष डोमेन में निजी भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिये अंतरिक्ष विभाग के तहत एक स्वतंत्र नोडल एजेंसी इन-स्पेस की स्थापना निर्माण को मंज़ूरी दी।
- साथ ही, त्रि-सेवा रक्षा अंतरिक्ष एजेंसी (DSA) के लॉन्च ने सेना को नागरिक अंतरिक्ष की पृष्ठभूमि से संक्रमणीय रूप से दूर कर दिया है।
मिशन डेफस्पेस
- यह भारतीय उद्योग और स्टार्ट-अप के माध्यम से अंतरिक्ष क्षेत्र में तीनों सेवाओं (भारतीय वायु सेना, नौसेना और सेना) के लिये अभिनव समाधान विकसित करने का एक महत्त्वाकांक्षी प्रयास है।
- अंतरिक्ष क्षेत्र में रक्षा आवश्यकताओं के आधार पर नवीन समाधान प्राप्त करने के लिये 75 चुनौतियों का निराकरण किया जा रहा है।
- स्टार्टअप्स, इनोवेटर्स और निजी क्षेत्र को समस्याओं के समाधान खोजने के लिये आमंत्रित किया जाएगा जिसमें आक्रामक और रक्षात्मक दोनों क्षमताएँ शामिल होंगी।
- इसका उद्देश्य अंतरिक्ष युद्ध के लिये सैन्य अनुप्रयोगों की एक शृंखला विकसित करना और निजी उद्योगों को भविष्य की आक्रामक और रक्षात्मक आवश्यकताओं के लिये सशस्त्र बलों के समाधान की पेशकश करने में सक्षम बनाना है।
- अंतरिक्ष में रक्षा अनुप्रयोगों से न केवल भारतीय सशस्त्र बलों को मदद मिलेगी बल्कि विदेशी मित्र राष्ट्रों तक भी इसका विस्तार किया जा सकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सहिंद महासागर नौसेना संगोष्ठी (IONS) के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b) व्याख्या:
अतः विकल्प (b) सही उत्तर है। मेन्सQ. रक्षा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) को अब स्वतंत्र बनाया जाना तय है: लघु और दीर्घावधि में भारतीय रक्षा और अर्थव्यवस्था पर इसका क्या प्रभाव पड़ने की उम्मीद है? (2014) |
स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
नेशनल क्रेडिट फ्रेमवर्क
प्रिलिम्स के लिये:विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, नेशनल क्रेडिट फ्रेमवर्क (NCrF), नेशनल स्कूल एजुकेशन क्वालिफिकेशन फ्रेमवर्क, राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP)। मेन्स के लिये:राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) और नेशनल क्रेडिट फ्रेमवर्क (NCrF) के प्रावधान। |
चर्चा में क्यों?
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा भारत के सभी नियामक संगठनों और विश्वविद्यालयों के लिये नेशनल क्रेडिट फ्रेमवर्क (NCrF) के कार्यान्वयन की घोषणा की गई है।
- इसे स्कूली शिक्षा, उच्च शिक्षा, व्यावसायिक और कौशल शिक्षा के माध्यम से अर्जित क्रेडिट को एकीकृत करने और आजीवन सीखने के अवसर प्रदान करने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
नेशनल क्रेडिट फ्रेमवर्क:
- परिचय:
- इसके अनुसार एक शैक्षणिक वर्ष को किसी छात्र द्वारा उपयोग किये गए घंटों की संख्या के आधार पर परिभाषित किया जाएगा और इसी आधार पर शैक्षणिक वर्ष के अंत में इन्हें क्रेडिट प्रदान किया जाएगा।
- NCrF में तीन आयाम शामिल हैं:
- नेशनल स्कूल एजुकेशन क्वालिफिकेशन फ्रेमवर्क (NSEQF)
- नेशनल हायर एजुकेशन क्वालिफिकेशन फ्रेमवर्क (NHEQF)
- नेशनल स्किल क्वालिफिकेशन फ्रेमवर्क (NSQF)
- प्रावधान:
- शैक्षिक और व्यावसायिक शिक्षा का एकीकरण:
- शैक्षिक और व्यावसायिक शिक्षा के एकीकरण पर राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) द्वारा महत्त्व दिया जाता है तथा यह NCrF द्वारा प्रदान की जाती है।
- यह तंत्र दो शिक्षा धाराओं के अंदर और उनके बीच समानता सुनिश्चित करता है।
- क्रेडिट प्रणाली:
- क्रेडिट के असाइनमेंट के लिये कुल ‘नोशनल लर्निंग आवर्स इन ए ईयर’ 1200 घंटे होंगे। छह महीने के प्रति सेमेस्टर में 20 क्रेडिट के साथ प्रत्येक वर्ष 1200 घंटे सीखने के लिये न्यूनतम 40 क्रेडिट अर्जित किये जा सकते हैं।
- सांकेतिक घंटे उस समय को संदर्भित करते हैं जो औसत छात्र को सभी कक्षाओं में भाग लेने, परीक्षणों के लिये अध्ययन करने और असाइनमेंट तथा होमवर्क करने की आवश्यकता होगी।
- संपूर्ण स्कूली शिक्षा अवधि के दौरान एक छात्र द्वारा कुल 160 क्रेडिट अर्जित होंगे।
- तीन वर्षीय स्नातक डिग्री पाठ्यक्रम के अंत तक छात्र 120 क्रेडिट अर्जित कर चुका होगा।
- जब कोई छात्र पीएचडी को पूरा कर लेता है, तो अर्जित क्रेडिट 320 होगा।
- कॉलेज में पढ़ाई के दौरान छात्रों को ओलंपियाड, साइंस क्विज, इंटर्नशिप और नौकरी करने के लिये क्रेडिट भी मिलेगा।
- क्रेडिट के असाइनमेंट के लिये कुल ‘नोशनल लर्निंग आवर्स इन ए ईयर’ 1200 घंटे होंगे। छह महीने के प्रति सेमेस्टर में 20 क्रेडिट के साथ प्रत्येक वर्ष 1200 घंटे सीखने के लिये न्यूनतम 40 क्रेडिट अर्जित किये जा सकते हैं।
- क्रेडिट स्तर:
- NCrF ने स्तर 1 से 8 तक इस ढाँचे के भीतर कई स्तरों का प्रस्ताव दिया है।
- स्कूली शिक्षा पूरी होने के बाद प्राप्त किया जा सकने वाला क्रेडिट स्तर, यानी ग्रेड 5वीं स्तर 1 होगा, ग्रेड 8वीं स्तर 2 होगा, ग्रेड 10वीं स्तर 3 होगा, और ग्रेड 12वीं स्तर 4 होगा।
- उच्च शिक्षा क्रेडिट स्तर 4.5 से स्तर 8 तक होगा।
- स्कूली शिक्षा के लिये NCrF क्रेडिट स्तर स्तर 4 तक है।
- व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण के लिये स्तर 1 से स्तर 8 तक।
- NCrF ने स्तर 1 से 8 तक इस ढाँचे के भीतर कई स्तरों का प्रस्ताव दिया है।
- आधार-सक्षम छात्र पंजीकरण: आधार-सक्षम छात्र पंजीकरण होगा। छात्र पंजीकरण के बाद एक शैक्षणिक क्रेडिट बैंक (ABC) खाता खोला जाएगा।
- डिग्री और क्रेडिट की राशि उन खातों में जमा होगी। डिजिलॉकर की तर्ज पर एक नॉलेज लॉकर भी होगा।
- शैक्षिक और व्यावसायिक शिक्षा का एकीकरण:
- चुनौतियाँ:
- मानकीकरण: NCrF में NSEQF, NHEQF और NSQF जैसे विभिन्न कार्यक्षेत्र शामिल हैं। प्रत्येक कार्यक्षेत्र की अनूठी ज़रूरतों को पूरा करते हुए इन कार्यक्षेत्रों में मानकीकरण सुनिश्चित करना एक चुनौती हो सकती है।
- डेटा सुरक्षा और गोपनीयता: छात्र डेटा स्टोर करने के लिये आधार-सक्षम छात्र पंजीकरण और एक अकादमिक बैंक ऑफ क्रेडिट (ABC) खाते का उपयोग सुरक्षा तथा गोपनीयता जोखिम पैदा कर सकता है।
- NCrF के सफल कार्यान्वयन के लिये डेटा की सुरक्षा और गोपनीयता सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण होगा।
निष्कर्ष:
NCrF का उद्देश्य भारत में विभिन्न शिक्षा धाराओं के बीच निर्बाध क्षैतिज और लंबवत गतिशीलता प्रदान करना है। हालाँकि NCrF के सफल कार्यान्वयन को क्रियान्वयन, मानकीकरण, स्वीकृति और अंगीकार कर लेने जैसी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। इन चुनौतियों का समाधान करने हेतु विभिन्न हितधारकों के सहयोगात्मक प्रयास की आवश्यकता होगी ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि यह ढाँचा भारत में शिक्षा प्रणाली की बदलती ज़रूरतों को पूरा करने के लिये अद्यतन, प्रासंगिक एवं प्रभावी है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्नप्रश्न. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, धारणीय विकास लक्ष्य- 4 (2030) के अनुरूप है। उसका ध्येय भारत में शिक्षा प्रणाली की पुनः संरचना और पुनः स्थापना है। इस कथन का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (2020) |