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डेली न्यूज़

  • 14 Apr, 2022
  • 66 min read
भारतीय इतिहास

बी आर अंबेडकर जयंती

प्रिलिम्स के लिये:

डॉ. बी आर अंबेडकर, गोलमेज सम्मेलन।

मेन्स के लिये:

महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व, आधुनिक भारतीय इतिहास।

चर्चा में क्यों?

14 अप्रैल, 2022 को राष्ट्र द्वारा बी आर अंबेडकर (B R Ambedkar) की 131वीं जयंती मनाई गई।

  • डॉ. अंबेडकर एक समाज सुधारक, न्यायविद, अर्थशास्त्री, लेखक, बहुभाषाविद (कई भाषाओं के जानकर), विद्वान और विभिन्न धर्मों के विचारक थे।

B-R-Ambedkar

प्रमुख बिंदु 

  • जन्म: 
    • बाबासाहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर का जन्म वर्ष 1891 में महू, मध्य प्रांत (अब मध्य प्रदेश) में हुआ था।
  • संक्षिप्त परिचय:
    • उन्हें भारतीय संविधान का जनक (Father of the Indian Constitution) माना जाता है और वह भारत के पहले कानून मंत्री थे।
    • वह संविधान निर्माण की मसौदा समिति के अध्यक्ष (Chairman of the Drafting Committee) थे।
    • वह एक प्रसिद्ध राजनेता थे जिन्होंने दलितों और अन्य सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों के अधिकारों के लिये लड़ाई लड़ी।
  • योगदान:
    • उन्होंने मार्च 1927 में उन हिंदुओं के खिलाफ महाड़ सत्याग्रह (Mahad Satyagraha) का नेतृत्व किया जो नगरपालिका बोर्ड के फैसले का विरोध कर रहे थे।
      • 1926 में म्युनिसिपल बोर्ड ऑफ महाड़ (महाराष्ट्र) ने सभी समुदायों को तालाबों  का उपयोग करने से संबंधित आदेश पारित किया। इससे पहले महाड़ में अछूतों को तालाब के पानी का उपयोग करने की अनुमति नहीं थी।
    • उन्होंने तीनों गोलमेज सम्मेलनों (Three Round Table Conferences) में भाग लिया।
    • वर्ष 1932 में डॉ. अंबेडकर ने महात्मा गांधी के साथ पूना समझौते पर हस्ताक्षर किये, जिससे उन्होंने दलित वर्गों (सांप्रदायिक एवार्ड) हेतु पृथक निर्वाचन मंडल की मांग के विचार को छोड़ दिया।
      • हालाँकि प्रांतीय विधानमंडलों में दलित वर्गों के लिये सुरक्षित सीटों की संख्या 71 से बढ़ाकर 147 कर दी गई तथा केंद्रीय विधानमंडल (Central Legislature) में दलित वर्गों की सुरक्षित सीटों की संख्या में 18 प्रतिशत की वृद्धि की गई। 
    •  हिल्टन यंग कमीशन (Hilton Young Commission) के समक्ष प्रस्तुत उनके विचारों ने भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) की नींव रखने का कार्य किया।

चुनाव और पद:

  • वर्ष 1936 में वे विधायक (MLA) के रूप में बॉम्बे विधानसभा (Bombay Legislative Assembly) के लिये चुने गए।
  • वर्ष 1942 में उन्हें एक कार्यकारी सदस्य के रूप में वायसराय की कार्यकारी परिषद में नियुक्त किया गया था।
  • वर्ष 1947 में डॉ. अंबेडकर ने स्वतंत्र भारत के पहले मंत्रिमंडल में कानून मंत्री बनने हेतु प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के निमंत्रण को स्वीकार किया।

बौद्ध धर्म को अपनाना:

  • हिंदू कोड बिल (Hindu Code Bill) पर मतभेद को लेकर उन्होने वर्ष 1951 में कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया।
  • उन्होंने बौद्ध धर्म को स्वीकार कर लिया तथा  6 दिसंबर, 1956 (महापरिनिर्वाण दिवस) को उनका निधन हो गया।
    • चैत्य भूमि मुंबई में स्थित है जो बी आर अंबेडकर स्मारक के रूप में जानी जाती है।
  • वर्ष 1990 में उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया था।

महत्त्वपूर्ण कार्य:

  • पत्रिकाएँ: 
    • मूकनायक (1920)
    • बहिष्कृत भारत'  (1927)
    • समता (1929)
    • जनता (1930)
  • पुस्तकें:
    • जाति प्रथा का विनाश
    • बुद्ध या कार्ल मार्क्स
    • अछूत: वे कौन थे और अछूत कैसे बन गए 
    • बुद्ध और उनके धम्म
    • हिंदू महिलाओं का उदय और पतन
  • संगठन:
    • बहिष्कृत हितकारिणी सभा (1923)
    • स्वतंत्र लेबर पार्टी (1936)
    • अनुसूचित जाति फेडरेशन (1942)

वर्तमान समय में अंबेडकर की प्रासंगिकता:

  • भारत में जाति आधारित असमानता अभी भी कायम है। हालाँकि दलितों ने आरक्षण के माध्यम से एक राजनीतिक पहचान हासिल की है तथा स्वयं के राजनीतिक दलों का गठन किया है लेकिन इन सबके बावजूद वे अब भी सामाजिक (स्वास्थ्य और शिक्षा) और आर्थिक क्षेत्र में पिछड़े हैं।
  • सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के साथ ही राजनीति में सांप्रदायीकरण का उदय हुआ है। अत: अंबेडकर की संवैधानिक नैतिकता द्वारा धार्मिक नैतिकता को एक सुरक्षित आधार प्रदान कर भारतीय संविधान की स्थायी क्षति को रोका जा सकता है।

गोलमेज सम्मेलन:

  • प्रथम गोलमेज सम्मेलन: इसका आयोजन 12 नवंबर, 1930 को  लंदन में किया गया था लेकिन कॉन्ग्रेस ने इसमें भाग नहीं लिया था।
    • मार्च 1931 में महात्मा गांधी और लॉर्ड इरविन (भारत के वायसराय 1926-31) के मध्य गांधी-इरविन समझौता (Gandhi-Irwin Pact) संपन्न हुआ। इसमें कॉन्ग्रेस द्वारा सविनय अवज्ञा आंदोलन को समाप्त करने तथा निकट भविष्य में होने वाले गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने पर सहमति व्यक्त की गई।
  • द्वितीय गोलमेज सम्मेलन: इसका आयोजन 7 सितंबर, 1931 को लंदन में हुआ। 
  • तृतीय गोलमेज सम्मेलन: समय-समय पर गठित विभिन्न उप-समितियों की रिपोर्टों पर विचार करने हेतु  17 नवंबर, 1932 को लंदन में तीसरे गोलमेज़ सम्मेलन का आयोजन किया गया  जिसकी परिणति अंततः भारत शासन अधिनयम, 1935 के रूप में हुई।
    • कॉन्ग्रेस ने तीसरे गोलमेज सम्मेलन में भाग नहीं लिया क्योकि कॉन्ग्रेस के अधिकांश प्रमुख नेता उस समय जेल में थे।

विगत वर्षों के प्रश्न:

प्रश्न. निम्नलिखित में से किन दलों की स्थापना डॉ. बी आर अंबेडकर ने की थी? (2012)

  1. द पीजेंट्स एंड वर्कर्स पार्टी ऑफ इंडिया
  2. अखिल भारतीय अनुसूचित जाति संघ
  3. स्वतंत्र लेबर पार्टी

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c)
केवल 1 और 3
(d)
1, 2 और 3

उत्तर: (B)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय राजनीति

भारतीय राष्ट्रपति का चुनाव

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रपति, भारतीय चुनाव आयोग और चुनाव से संबंधित संवैधानिक प्रावधान।

मेन्स के लिये:

राष्ट्रपति का चुनाव और महाभियोग।

चर्चा में क्यों?

भारत के वर्तमान राष्ट्रपति का कार्यकाल जुलाई 2022 में समाप्त होने वाला है, इसके साथ ही उसके उत्तराधिकारी का चुनाव करने के लिये देश में 16वें राष्ट्रपति चुनाव आयोजित किये जाएंगे।

राष्ट्रपति का चुनाव कैसे होता है?

  • परिचय:
    • भारतीय राष्ट्रपति का चुनाव एक निर्वाचक मंडल प्रणाली के माध्यम से किया जाता है, जिसमें राष्ट्रीय और राज्य स्तर के सांसदों द्वारा वोट डाले जाते हैं।
    • चुनाव का आयोजन भारतीय चुनाव आयोग (EC) द्वारा किया जाता है।
    • संबंधित संवैधानिक प्रावधान:
      • अनुच्छेद 54: राष्ट्रपति का चुनाव।
      • अनुच्छेद 55: राष्ट्रपति के चुनाव की प्रक्रिया।
      • अनुच्छेद 56: राष्ट्रपति के पद का कार्यकाल।
      • अनुच्छेद 57: पुनर्निर्वाचन हेतु पात्रता।
      • अनुच्छेद 58: राष्ट्रपति के रूप में चुनाव हेतु योग्यता।
  • प्रक्रिया:
    • मतदान से पूर्व नामांकन चरण आता है, जहाँ उम्मीदवार चुनाव में खड़े होने का इरादा प्रस्तुत करता है और 50 प्रस्तावकों एवं 50 समर्थकों की हस्ताक्षरित सूची के साथ नामांकन दाखिल करता है।
    • ये प्रस्तावक और समर्थक राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर के निर्वाचक मंडल के सदस्यों में से कोई भी हो सकते हैं।
      • 50 प्रस्तावकों और समर्थकों की आवश्यकता से संबंधित नियम तब लागू किया गया जब चुनाव आयोग ने 1974 में देखा कि कई ऐसे उम्मीदवारों, जिनमें से कई के जीतने की संभावना भी कम थी, द्वारा चुनाव लड़ने के लिये नामांकन दाखिल किया गया।
    • एक मतदाता एक से अधिक उम्मीदवारों के नामांकन का प्रस्ताव या समर्थन नहीं कर सकता है।

प्रत्येक वोट का मूल्य क्या है और इसकी गणना कैसे की जाती है?

  • प्रत्येक सांसद या विधायक द्वारा डाले गए वोट की गणना एक वोट के रूप में नहीं की जाती है।
  • राज्यसभा और लोकसभा के प्रत्येक सांसद के वोट का मूल्य 700 निश्चित है।
  • विधायकों के वोट का मूल्य अलग-अलग राज्यों की जनसंख्या पर निर्भर करता है।
    • संविधान (84वाँ संशोधन) अधिनियम 2001 के अनुसार, वर्तमान में राज्यों की जनसंख्या वर्ष 1971 की जनगणना के आँकड़ों पर आधारित है जिसमें बदलाव वर्ष 2026 के बाद की जनगणना के आँकड़े प्रकाशित होने के बाद किया जाएगा।
  • प्रत्येक विधायक के वोट का मूल्य राज्य की विधानसभा में विधायकों की संख्या से विभाजित करके तथा प्राप्त भागफल को 1000 से विभाजित करके निर्धारित किया जाता है।
    • उदाहरण के लिये उत्तर प्रदेश में प्रत्येक विधायक के लिये सबसे अधिक वोट मूल्य 208 है। महाराष्ट्र में एक विधायक का वोट मूल्य 175 है, जबकि अरुणाचल प्रदेश में यह सिर्फ 8 है।

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जीत सुनिश्चित करने के लिये क्या आवश्यक है?

  • एक मनोनीत उम्मीदवार साधारण बहुमत के आधार पर जीत हासिल नहीं करता है बल्कि वोटों के एक विशिष्ट कोटे को हासिल करने की प्रणाली के माध्यम से जीत सुनिश्चित होती है। मतगणना के दौरान चुनाव आयोग द्वारा मतपत्रों के माध्यम से निर्वाचक मंडल द्वारा डाले गए सभी वैध मतों का योग किया जाता है तथा जीत के लिये उम्मीदवार को डाले गए कुल मतों का 50% + 1 प्राप्त करना होता है।
  • आम चुनावों के विपरीत यहाँ मतदाता एक पार्टी के उम्मीदवार के लिये वोट करते है तथा निर्वाचक मंडल के मतदाता मतपत्र पर उम्मीदवारों के नाम वरीयता क्रम में लिखे जाते हैं।
  • राष्ट्रपति का चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अनुसार एकल संक्रमणीय मत पद्धति द्वारा होता है तथा गुप्त मतदान की प्रक्रिया अपनाई जाती है।

राष्ट्रपति पर महाभियोग:

  • अनुच्छेद 61 के अनुसार, राष्ट्रपति को उसके कार्यकाल की समाप्ति से पहले केवल ‘संविधान के उल्लंघन (Violation Of The Constitution) के आधार पर पद से हटाया जा सकता है।
  • हालाँकि भारतीय संविधान में 'संविधान का उल्लंघन' वाक्यांश के अर्थ को परिभाषित नहीं किया गया है।
  • राष्ट्रपति पर महाभियोग की प्रक्रिया (Impeachment Process) संसद के किसी भी सदन में शुरू की जा सकती है।
  • राष्ट्रपति के विरुद्ध प्रस्ताव पर सदन के कम-से-कम एक-चौथाई सदस्यों के हस्ताक्षर होना आवश्यक है।
  • राष्ट्रपति पर महाभियोग का प्रस्ताव मूल सदन (Originating House) में विशेष बहुमत (दो-तिहाई) द्वारा पारित किया जाना चाहिये।
  • इसके बाद प्रस्ताव को दूसरे सदन में विचार हेतु भेजा जाता है। दूसरा सदन एक निरीक्षक के रूप में कार्य करता है। राष्ट्रपति पर लगे आरोपों की जांँच के लिये एक प्रवर समिति का गठन किया गया है।
  • प्रक्रिया के दौरान राष्ट्रपति को अधिकृत वकील के माध्यम से अपना बचाव करने का अधिकार है। वह अपना बचाव करने का विकल्प चुन सकता है या ऐसा करने के लिये भारत के किसी व्यक्ति/वकील या अटॉर्नी जनरल को नियुक्त कर सकता है।

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्षों के प्रश्न:

प्रश्न. भारत के राष्ट्रपति के चुनाव के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. प्रत्येक विधायक के वोट का मूल्य अलग-अलग राज्यों में भिन्न होता है।
  2. लोकसभा सांसदों के वोट का मूल्य राज्यसभा के सांसदों के वोट मूल्य से अधिक होता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1और न ही 2

उत्तर: (a)

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

सहकारिता नीति पर राष्ट्रीय सम्मेलन

प्रिलिम्स के लिये:

सहकारिता नीति पर राष्ट्रीय सम्मेलन, सहकारिता, सहकारिता मंत्रालय, 97वाँ संशोधन, मौलिक अधिकार, राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत।

मेन्स के लिये:

सरकारी नीतियांँ और हस्तक्षेप, भारत में सहकारिता मंत्रालय और इसका महत्त्व, सहकारिता।

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में सहकारिता नीति पर राष्ट्रीय सम्मेलन (National Conference on Cooperation Policy) का आयोजन नई दिल्ली में संपन्न हुआ।

प्रमुख बिंदु 

सम्मेलन की मुख्य विशेषताएंँ:

  • सम्मेलन छह महत्त्वपूर्ण विषयों पर केंद्रित था जिसमें न केवल सहकारी समितियों के पूरे जीवन चक्र को शामिल किया गया था बल्कि उनके व्यवसाय और शासन के सभी पहलुओं को भी शामिल किया गया।
  • पैनल चर्चा निम्नलिखित विषयों पर आयोजित की गई है:
    • वर्तमान कानूनी ढांँचा, नियामक नीति की पहचान, संचालन संबंधी बाधाएंँ और उन्हें दूर करने हेतु आवश्यक उपाय जिससे व्यापार करने में आसानी हो एवं सहकारी समितियों तथा अन्य आर्थिक संस्थाओं को एक समान अवसर प्रदान किया जा सके।
    • सहकारी सिद्धांतों, लोकतांत्रिक सदस्य नियंत्रण, सदस्यों की बढ़ती भागीदारी, पारदर्शिता, नियमित चुनाव, मानव संसाधन नीति, अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं का लाभ उठाने, खाता रखने एवं लेखा परीक्षा सहित शासन को मज़बूत करने हेतु सुधार करना।
    • बुनियादी ढांँचे को मज़बूत करने, इक्विटी आधार को मज़बूत करने, पूंजी तक पहुंँच, गतिविधियों का विविधीकरण, उद्यमिता को बढ़ावा देने, ब्रांडिंग, विपणन, व्यवसाय योजना विकास, नवाचार, प्रौद्योगिकी अपनाने और निर्यात को बढ़ावा देकर बहु ​​सहकारी जीवंत आर्थिक संस्थाओं को बढ़ावा देना।
    • प्रशिक्षण, शिक्षा, ज्ञान साझा करना और जागरूकता निर्माण जिसमें सहकारी समितियों को मुख्यधारा में लाना, प्रशिक्षण को उद्यमिता से जोड़ना महिलाओं, युवा और कमज़ोर वर्गों को शामिल करना शामिल है।
    • नई सहकारी समितियों को बढ़ावा देना, निष्क्रिय लोगों को पुनर्जीवित करना, सहकारी समितियों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना, सदस्यता बढ़ाना, सामूहिकता को औपचारिक बनाना, सतत विकास के लिए सहकारी समितियों का विकास करना, क्षेत्रीय असंतुलन को कम करना और नए क्षेत्रों की खोज करना।
    • सामाजिक सहकारिता को बढ़ावा देना और सामाजिक सुरक्षा में सहकारी समितियों की भूमिका को बढ़ाना।
  • मंत्रालय विभिन्न हितधारकों के साथ इस तरह के सम्मेलनों की एक शृंखला आयोजित करने की भी योजना बना रहा है, इसके अलावा जल्द ही सभी सहकारी संघों के साथ एक और कार्यशाला आयोजित की जाएगी।
  • ‘सहकार से समृद्धि’ के विज़न को साकार करने के लिये देश में सहकारिता आधारित आर्थिक मॉडल को मज़बूत करने के लिये प्रोत्साहन देने हेतु इन प्रयासों की परिणति एक नई मज़बूत राष्ट्रीय सहयोग नीति के निर्माण में होगी।

सहकारिता मंत्रालय:

  • परिचय:
    • भारत सरकार ने प्रधानमंत्री के मार्गदर्शन में 6 जुलाई, 2021 को एक नए सहकारिता मंत्रालय का गठन किया था, जिसका उद्देश्य सहकारी क्षेत्र के विकास को नए सिरे से गति प्रदान करना और ‘सहकार से समृद्धि’ के दृष्टिकोण को साकार करना था।
    • मंत्रालय नई योजनाओं और नई सहकारिता नीति के निर्माण से सहकारी क्षेत्र के विकास के लिये लगातार काम कर रहा है।
  • महत्त्व: 
    • यह देश में सहकारिता आंदोलन को मज़बूत करने के लिये एक अलग प्रशासनिक, कानूनी और नीतिगत ढाँचा प्रदान करेगा।
    • यह सहकारी समितियों को ज़मीनी स्तर तक पहुँच प्रदान कर उन्हें एक जन आधारित आंदोलन के रूप में मज़बूत करने में मदद करेगा।
    • यह सहकारी समितियों के लिये 'ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस' हेतु प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने और बहु-राज्य सहकारी समितियों (MSCS) के विकास को सक्षम करने पर काम करेगा।

भारत में सहकारिता:

  • परिचय:
    • अंतर्राष्ट्रीय सहकारी गठबंधन (ICA) सहकारिता को "संयुक्त स्वामित्व वाले और लोकतांत्रिक रूप से नियंत्रित उद्यम के माध्यम से अपनी आम आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक ज़रूरतों व आकांक्षाओं को पूरा करने हेतु स्वेच्छा से एकजुट व्यक्तियों के एक स्वायत्त संघ" के रूप में परिभाषित करता है।

Cooperative-Society

संवैधानिक प्रावधान:

  • संविधान (97वाँ संशोधन) अधिनियम, 2011 द्वारा भारत में कार्यरत सहकारी समितियों के संबंध में एक नया भाग IXB जोड़ा गया।
    • संविधान के भाग-III के अंतर्गत अनुच्छेद 19 (1)(c) में "यूनियन (Union) और  एसोसिएशन (Association)" के बाद "सहकारिता" (Cooperative) शब्द जोड़ा गया था। 
      • यह सभी नागरिकों को मौलिक अधिकार प्रदान कर सहकारी समितियाँ के गठन में सक्षम बनाता है।
    • राज्य के नीति निदेशक तत्त्वों (Directive Principles of State Policy-भाग IV) में "सहकारी समितियों के प्रचार" के संबंध में एक नया अनुच्छेद 43B जोड़ा गया था।
  • ‘सहकारी समिति’ का विषय संविधान की सातवीं अनुसूची में सूची- II (राज्य सूची) के मद 32 में शामिल एक राज्य का विषय है।

आगे की राह

  • प्रौद्योगिकी की प्रगति के साथ नए क्षेत्र उभर रहे हैं और सहकारी समितियाँ लोगों को उन क्षेत्रों तथा प्रौद्योगिकियों से परिचित कराने में एक बड़ी भूमिका निभा सकती है।
  • सहकारिता आंदोलन का सिद्धांत गुमनाम रहते हुए भी सभी को एकजुट करना है। सहकारिता आंदोलन में लोगों की समस्याओं को हल करने की क्षमता है।
  • हालाँकि सहकारी समितियों में अनियमितताएँ हैं जिन्हें रोकने के लिये नियमों का और अधिक सख्त कार्यान्वयन होना चाहिये।
  • सहकारी समितियों को मज़बूत करने के लिये किसानों के साथ-साथ इनका भी बाज़ार से संपर्क होना चाहिये।

स्रोत: पी.आई.बी.


शासन व्यवस्था

CBA अधिनियम, 1957 के तहत अर्जित भूमि के उपयोग हेतु नीति

प्रिलिम्स के लिये:

CBA अधिनियम, आत्मनिर्भर भारत, कोयला गैसीकरण

मेन्स के लिये:

कोयला क्षेत्र एवं संबंधित चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने कोयला क्षेत्र (अधिग्रहण एवं विकास) अधिनियम, 1957 [CBA अधिनियम] के तहत अधिग्रहीत भूमि के उपयोग हेतु नीति को मंज़ूरी दी है।

  • इस नीति में कोयला एवं ऊर्जा से संबंधित बुनियादी ढाँचे के विकास और स्थापना के उद्देश्य से ऐसी भूमि के उपयोग का प्रावधान है।

CBA अधिनियम, 1957:

  • कोयला क्षेत्र (अधिग्रहण और विकास) अधिनियम, 1957 में कोयले के भंडार वाली या संभावित भूमि के अधिग्रहण और उससे जुड़े मामलों का प्रावधान है।
  • इस अधिनियम के प्रावधानों के तहत सरकारी कंपनियों द्वारा केवल कोयला खनन एवं खनन उद्देश्यों के लिये प्रासंगिक गतिविधियों हेतु भूमि का अधिग्रहण किया जाता है।
  • अन्य आवश्यकताओं जैसे- स्थायी आधारभूत संरचना, कार्यालय, निवास आदि के लिये भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 के तहत भूमि का अधिग्रहण किया जाता है।
  • विभिन्न अधिनियमों के तहत खनन अधिकार एवं भूमि के अधिकार का अधिग्रहण नहीं किया जा सकता है।

प्रस्तावित नीति के प्रावधान क्या हैं?

  • भूमि उपयोग हेतु रूपरेखा:
    • यह नीति CBA अधिनियम के तहत अधिग्रहीत निम्न प्रकार की भूमि के उपयोग के लिये स्पष्ट नीतिगत ढाँचा प्रदान करती है:
      • कोयला खनन गतिविधियों के लिये भूमि अब उपयुक्त या आर्थिक रूप से व्यवहार्य नहीं है; या
      • जिन भूमि क्षेत्रों से समग्र कोयला निकाला लिया गया है।
  • कोल इंडिया लिमिटेड (CIL) के पास भूमि का स्वामित्व बरकरार रहेगा:
    • सरकारी कोयला कंपनियाँ, जैसे- कोल इंडिया लिमिटेड (CIL) और इसकी सहायक कंपनियाँ CBA अधिनियम के तहत अधिग्रहीत इन भूमि की मालिक बनी रहेंगी।
  • निर्दिष्ट अवधि के लिये भूमि को पट्टे पर देना:
    • जिस सरकारी कंपनी के पास भूमि है, वह ऐसी भूमि को नीति के तहत दी गई विशिष्ट अवधि के लिये पट्टे पर दे सकेगी।
    • लीजिंग हेतु संस्थाओं का चयन एक पारदर्शी, निष्पक्ष और प्रतिस्पर्द्धी बोली प्रक्रिया तथा तंत्र के माध्यम से किया जाएगा ताकि इष्टतम मूल्य प्राप्त किया जा सके।
    • भूमि को वाशरीज़ (Washeries), कोयला गैसीकरण और कोयले-से-रासायनिक संयंत्रों की स्थापना तथा ऊर्जा से संबंधित बुनियादी ढाँचे की स्थापना करने जैसी गतिविधियों के लिये विचार किया जाएगा।

नीति का महत्त्व:

  • रोज़गार उत्पन्न करना:
    • सरकारी कंपनियों से स्वामित्व के हस्तांतरण के बिना विभिन्न कोयला और ऊर्जा संबंधी बुनियादी ढाँचे की स्थापना से बड़ी संख्या में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोज़गार का सृजन होगा।
      • जिन भूमि का खनन किया गया है या जो कोयला खनन के लिये व्यावहारिक रूप से अनुपयुक्त हैं, उन पर अनधिकृत अतिक्रमण तथा सुरक्षा एवं रखरखाव पर परिहार्य व्यय का खतरा है।
  • ऑपरेटर की लागत को कम करना:
    • अन्य उद्देश्यों के लिये गैर-खनन योग्य भूमि के उपयोग से भी सीआईएल (CIL) को अपने संचालन की लागत को कम करने में मदद मिलेगी क्योंकि यह कोयले से संबंधित बुनियादी ढाँचे और अन्य परियोजनाओं जैसे- निजी क्षेत्र के साथ साझेदारी में अलग-अलग बिज़नेस मॉडल अपनाकर अपनी ज़मीन पर सोलर प्लांट को स्थापित करने में सक्षम होगा।
    • यह कोयला गैसीकरण परियोजनाओं को व्यवहार्य बनाएगा क्योंकि कोयले को दूर स्थानों पर ले जाने की आवश्यकता नहीं होगी।
  • भूमि का उचित उपयोग सुनिश्चित करना:
    • पुनर्वास उद्देश्य के लिये भूमि का उपयोग करने का प्रस्ताव; भूमि का उचित उपयोग सुनिश्चित करेगा, महत्त्वपूर्ण भूमि संसाधन के अपव्यय को समाप्त करेगा, परियोजना प्रभावित परिवारों के पुनर्वास के लिये नए भूखंडों के अधिग्रहण से बचाएगा तथा परियोजनाओं पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ को समाप्त कर लाभ में वृद्धि करेगा।
  • विस्थापित परिवारों की मांग को संबोधित करना:
    • यह विस्थापित परिवारों की मांग को भी पूरा करेगा क्योंकि वे हमेशा अपने मूल आवासीय स्थानों करीब रहना पसंद करते हैं।
    • इससे कोयला परियोजनाओं के लिये स्थानीय समर्थन प्राप्त करने में भी मदद मिलेगी तथा यह राज्य सरकार द्वारा कोयला खनन के लिये दी गई वन भूमि के बदले में राज्य सरकार को वनरोपण के लिये भूमि उपलब्ध कराएगा।
  • आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य को साकार करने में सहायक:
    • यह नीति घरेलू विनिर्माण को प्रोत्साहित कर,, आयात निर्भरता को कम कर, रोज़गार सृजन आदि द्वारा आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य को साकार करने में मदद करेगी।
      • यह नीति विभिन्न कोयला और ऊर्जा अवसंरचना विकास गतिविधियों हेतु भूमि का उपयोग कर देश के पिछड़े क्षेत्रों में निवेश को प्रोत्साहित करेगी।
      • पहले से अधिग्रहीत भूमि के उपयोग से भूमि के नए अधिग्रहण और संबंधित विस्थापन को भी रोका जा सकेगा जिससे स्थानीय विनिर्माण एवं उद्योगों को बढ़ावा मिलेगा

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न:

प्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)

  1. इंदिरा गांधी सरकार में भारत सरकार द्वारा कोयला क्षेत्र का राष्ट्रीयकरण किया गया था।
  2. वर्तमान में लाटरी के आधार पर कोयला ब्लॉकों का आवंटन किया जाता है।
  3. अब तक भारत घरेलू आपूर्ति की कमी को पूरा करने के लिये कोयले का आयात करता था, लेकिन अब भारत कोयला उत्पादन में आत्मनिर्भर है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (a)

  • वर्ष 1972 में इंदिरा गांधी सरकार के तहत कोयला क्षेत्र का दो चरणों में राष्ट्रीयकरण किया गया था। अत: कथन 1 सही है।
  • कोयला ब्लॉकों का आवंटन नीलामी के माध्यम से किया जाता है, न कि लॉटरी के आधार पर। अत: कथन 2 सही नहीं है।
  • कोयला क्षेत्र भारत में एकाधिकार क्षेत्र है। भारत के पास विश्व का 5वांँ सबसे बड़ा कोयला भंडार है, लेकिन एकाधिकार प्राप्त फर्मों की कोयला उत्पादन अक्षमता के कारण कोयले की घरेलू आपूर्ति की कमी को पूरा करने के लिये यह कोयले का आयात करता है। अत: कथन 3 सही नहीं है।

स्रोत: पी.आई.बी.


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

वर्णांधता (कलर ब्लाइंडनेस)

प्रिलिम्स के लिये:

सर्वोच्च न्यायालय का फैसला, भारतीय फिल्म और टेलीविज़न संस्थान, वर्णांधता

मेन्स के लिये:

वर्णांधता, स्वास्थ्य

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय फिल्म और टेलीविज़न संस्थान (FTII) को वर्णांधता (कलर ब्लाइंडनेस) से पीड़ित उम्मीदवारों को फिल्म निर्माण और संपादन पर अपने पाठ्यक्रमों से बाहर करने की बजाय इसके पाठ्यक्रम में बदलाव करने का निर्देश दिया है।

Color-Blindness

वर्णांधता/कलर ब्लाइंडनेस:

  • परिचय: वर्णांधता का तात्पर्य सामान्य तरीके से रंगों को देखने में असमर्थता से है। वर्णांधता में व्यक्ति आमतौर पर हरा और लाल तथा कभी-कभी नीले रंगों के बीच अंतर नहीं कर पाते हैं।
    • इसे रंग की कमी के रूप में भी जाना जाता है।
  • शरीर रचना (एनाटॉमी): रेटिना में दो प्रकार की कोशिकाएँ प्रकाश का पता लगाती हैं:
    • छड़ (Rods): ये प्रकाश और अँधेरे के बीच अंतर करने में मदद करते हैं।
    • शंकु (Cones): ये रंग का पता लगाने में मदद करते हैं।
    • अनुमानतः तीन प्राथमिक रंगों (Primary Colours) लाल, हरानीले से संबंधित तीन प्रकार के शंकु (Cones) पाए जाते हैं तथा हमारा दिमाग इन कोशिकाओं की जानकारी का उपयोग रंगों को देखने के लिये करता है।
    • वर्णांधता इन शंकु कोशिकाओं में से एक या अधिक की अनुपस्थिति या उनके ठीक से कार्य करने में विफलता का परिणाम हो सकती है।
  • विभिन्न प्रकार: वर्णांधता विभिन्न प्रकार और डिग्री की हो सकती है।
    • ऐसी स्थिति में जहाँ तीनों शंकु कोशिकाएँ मौज़ूद हों, लेकिन उनमें से एक खराब हो रही हो, तो  हल्का वर्णांधता हो सकती है।
    • माइल्ड कलर ब्लाइंड/वर्णांधता से ग्रसित लोग अक्सर सभी रंगों को ठीक से तभी देख पाते हैं जब रोशनी की उचित मात्रा हो।
    • वर्णांधता की सबसे गंभीर स्थिति में दृष्टि श्वेत-श्याम ( Black-And-White) होती है अर्थात् सब कुछ धूसर रंग की छाया के रूप में दिखाई देता है। यह सामान्य स्थिति नहीं है।
  • कारण
    • जन्मजात वर्णांधता: ज़्यादातर लोगों में वर्णांधता की स्थिति (जन्मजात कलर ब्लाइंडनेस) उनके जन्म के साथ ही होती है। जन्मजात वर्णांधता की स्थिति सामान्यत: आनुवंशिक होती है।
      • इस प्रकार की वर्णांधता में आमतौर पर दोनों ऑंखें प्रभावित होती हैं और जब तक व्यक्ति जीवित रहता है तब तक यह स्थिति लगभग समान रूप से बनी रहती है।
    • चिकित्सीय स्थितियांँ: वर्णांधता की समस्या जो कि जन्म के बाद उत्पन्न होती है, बीमारी, आघात या अंतर्ग्रहण विषाक्त पदार्थों का परिणाम हो सकती है।
      • यदि वर्णांधता की स्थिति किसी बीमारी के कारण उत्पन्न होती है, तो एक आँख दूसरी से भिन्न रूप से प्रभावित हो सकती है और समय के साथ स्थिति और भी गंभीर हो सकती है।
      • जिन चिकित्सीय स्थितियों से वर्णांधता का खतरा बढ़ सकता है, उनमें ग्लूकोमा, मधुमेह, अल्ज़ाइमर, पार्किंसन, शराब, ल्यूकेमिया और सिकल सेल एनीमिया शामिल हैं।
  • उपचार:  वर्णांधता का अभी तक कोई इलाज नहीं है या इस पर नियंत्रण पाया जा सकता है।
    • हालांकि विशेष कॉन्टैक्ट लेंस या कलर फिल्टर ग्लास पहनकर इसे कुछ हद तक ठीक किया जा सकता है।
    • कुछ शोधों में पाया गया है कि जीन रिप्लेसमेंट थेरेपी (Gene Replacement Therapy) इस स्थिति को परिवर्तित करने में मदद कर सकती है।
  • लिंग भेद: महिलाओं की तुलना में पुरुष वर्णांधता से अधिक पीड़ित होते हैं।
    • दुनिया भर में हर दसवें पुरुष का किसी-न-किसी रूप में वर्णांधता से ग्रसित होने का अनुमान है।
    • उत्तरी यूरोपीय मूल के पुरुषों को वर्णांधता के प्रति विशेष रूप से सुभेद्य माना जाता है।
  • नौकरियों में प्रतिबंध: वर्णांधता/कलर ब्लाइंडनेस कुछ खास तरह के काम करने की क्षमता को कम कर देता है, जैसे कि पायलट या सशस्त्र बलों में शामिल होना आदि।
    • हालाँकि यह वर्णांधता की गंभीरता एवं विभिन्न न्यायाक्षेत्रों में लागू नियमों पर निर्भर करता है।
    • दुनिया में अनुमानित 300 मिलियन लोग ‘वर्णांधता’ से प्रभावित हैं।
  • सरकार द्वारा की गई पहल: जून 2020 में भारत के सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने केंद्रीय मोटर वाहन नियम 1989 में संशोधन किया था, ताकि हल्के से मध्यम ‘कलर ब्लाइंडनेस’ से प्रभावित नागरिकों को ड्राइविंग लाइसेंस प्राप्त करने में सक्षम बनाया जा सके।

भारतीय फिल्म एवं टेलीविज़न संस्थान:

  • भारतीय फिल्म और टेलीविज़न संस्थान (FTII) की स्थापना वर्ष 1960 में भारत सरकार द्वारा पुणे में तत्कालीन प्रभात स्टूडियो के परिसर में की गई थी।
  • प्रभात स्टूडियो फिल्म निर्माण के व्यवसाय में अग्रणी था और वर्ष 1933 में कोल्हापुर से पुणे स्थानांतरित हो गया।
  • यह केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त निकाय है। 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


सामाजिक न्याय

मध्याह्न भोजन योजना

प्रिलिम्स के लिये:

मध्याह्न भोजन योजना (एमडीएमएस, पीएम पोषण शक्ति निर्माण या पीएम पोषण, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए), 2013।

मेन्स के लिये:

बच्चों से संबंधित मुद्दे, मध्याह्न भोजन योजना और इससे संबंधित मुद्दे।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कर्नाटक राज्य द्वारा स्कूली बच्चों के लिये मध्याह्न भोजन योजना (Midday Meal Scheme- MDMS) के तहत अंडे उपलब्ध कराने की योजना तैयार की गई है। MDMS गर्म पके हुए भोजन के माध्यम से स्कूल जाने वाले बच्चों के पोषण स्तर को बढ़ाने के लिये विश्व की सबसे बड़ी पहलों में से एक है।

  • हालांँकि अंडों को शामिल करना अक्सर विवादास्पद मुद्दा रहा है।

प्रमुख बिंदु

मध्याह्न भोजन योजना:

  • मध्याह्न भोजन योजना के बारे में: यह दुनिया में अपनी तरह का सबसे बड़ा स्कूल फीडिंग प्रोग्राम है, जिसमें कक्षा 1 से 8 तक के सरकारी स्कूलों में नामांकित छात्रों को शामिल किया गया है।
    • इस योजना का मूल उद्देश्य स्कूलों में नामांकन को बढ़ाना है।
  • नोडल मंत्रालय: शिक्षा मंत्रालय।
  • पृष्ठभूमि: यह कार्यक्रम पहली बार वर्ष 1925 में मद्रास नगर निगम में वंचित बच्चों के लिये शुरू किया गया था।
    • वर्ष 1995 में केंद्र सरकार ने कक्षा 1 से 5 तक के बच्चों के लिये प्रायोगिक आधार पर केंद्र प्रायोजित योजना के रूप में शुरुआत की।
    • अकटूबर 2007 तक MDMS को कक्षा 8 तक के लिये बढ़ा दिया गया था।
  • वर्तमान स्थिति: वर्ष 2021 में इस कार्यक्रम का नाम परिवर्तित कर पीएम पोषण शक्ति निर्माण या पीएम पोशन कर दिया गया।
  • कवरेज का पैमाना: इस योजना में कक्षा 1 से 8 (6 से 14 आयु वर्ग) के 11.80 करोड़ बच्चे शामिल हैं।
  • कानूनी अधिकार: यह केवल एक योजना नहीं है, बल्कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA), 2013 के माध्यम से प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक कक्षाओं के सभी बच्चों का कानूनी अधिकार है।
    • पीपल्स यूनियन ऑफ सिविल लिबर्टीज़ बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (2001) वाद में सर्वोच्च न्ययालय के फैसले से भी इसकी पुष्टि हुई।
  • संघीय व्यवस्था: नियमों के तहत प्रति बच्चा 4.97 रुपए प्रतिदिन (प्राथमिक कक्षाएँ) और 7.45 रुपए (उच्च प्राथमिक) का आवंटन राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों के साथ 60:40 के अनुपात में और पूर्वोत्तर राज्यों, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश एवं उत्तराखंड के साथ 90:10 के अनुपात में साझा किया जाता है, जबकि केंद्र विधायिका के बिना केंद्रशासित प्रदेशों में लागत का 100% केंद्र सरकार वहन करती है।

mid-day-meal

अंडे को लेकर क्या है मामला?

  • भारत में जातिगत कठोरता, धार्मिक रूढ़िवाद एवं क्षेत्रीय मतभेदों के कारण आहार विकल्प एक गहन रूप से विवादित विषय है।
  • नतीजतन राज्य सरकारों के वैज्ञानिक अध्ययनों सहित जिसमें बच्चों को अंडे देने के लाभ दिखाए गए हैं, कई राज्य स्कूल लंच मेनू में अंडे शामिल करने के अनिच्छुक रहे हैं।

संबद्ध मुद्दे और चुनौतियाँ

  • भ्रष्ट आचरण: कई अवसरों पर नमक के साथ सादे चपाती परोसे जाने, दूध में पानी मिलाने, फूड पॉइज़निंग आदि के उदाहरण सामने आए हैं।
  • जातिगत पूर्वाग्रह एवं भेदभाव: भोजन जाति व्यवस्था का केंद्र है, इसलिये कई स्कूलों में बच्चों को उनकी जाति की स्थिति के अनुसार अलग-अलग बैठाया जाता है।
  • कुपोषण का खतरा: राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के अनुसार, देश भर के कई राज्यों ने पाठ्यक्रम में बदलाव कर दिया है तथा बाल कुपोषण के बिगड़ते स्तर को दर्ज किया है।
    • भारत दुनिया के लगभग 30% अविकसित बच्चों तथा पाँच वर्ष से कम उम्र के लगभग 50% गंभीर रूप से कमज़ोर बच्चों का घर है।
  • वैश्विक पोषण रिपोर्ट-2021: हाल ही में जारी वैश्विक पोषण रिपोर्ट, 2021 (Global Nutrition Report) के अनुसार, भारत ने एनीमिया (Anaemia) और चाइल्डहुड वेस्टिंग (Childhood Wasting) की स्थिति में सुधार के मामले में कोई प्रगति नहीं की है।
    • 15-49 वर्ष आयु वर्ग की आधी से अधिक भारतीय महिलाएँ एनीमिया (Anaemia) से पीड़ित हैं।
  • वैश्विक भुखमरी सूचकांक (GHI) 2021: वैश्विक भुखमरी सूचकांक (GHI) 2021 में भारत को 116 देशों में से 101वाँ स्थान प्राप्त हुआ है। वर्ष 2020 में भारत 94वें स्थान पर था।

आगे की राह:

  • प्रारंभिक पहचान और देखभाल: महिलाओं और युवतियों के माँ बनने से पहले के वर्षों में मातृत्व क्षमता और शिक्षा या जागरूकता में सुधार के उपायों को लागू किया जाना चाहिये।
  • स्वास्थ्य का समग्र दृष्टिकोण: बौनापन (Stunting) के खिलाफ लड़ाई में अक्सर छोटे बच्चों के लिये पोषण बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया जाता है, लेकिन पोषण विशेषज्ञों ने लंबे समय से तर्क दिया जाता रहा है कि मातृत्व स्वास्थ्य और कल्याण बच्चों में बौनेपन को कम करने की कुंजी है।
  • मध्याह्न भोजन योजना (MDMS) के मेनू में सुधार: अंतर-पीढ़ीगत लाभों के लिये मध्याह्न भोजन योजना के विस्तार एवं सुधार की आवश्यकता है। जैसे-जैसे भारत में लड़कियाँ स्कूल स्तर की पढ़ाई पूरी करती हैं, उनकी शादी हो जाती है और कुछ ही वर्षों के बाद वे संतान को जन्म देती हैं, इसलिये स्कूल-आधारित हस्तक्षेप वास्तव में मदद कर सकता है।

स्रोत:इंडियन एक्सप्रेस


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

चौथा भारत- यूएस '2+2' संवाद

प्रिलिम्स के लिये:

'2+2' संवाद, लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट (LEMOA), कम्युनिकेशंस कम्पैटिबिलिटी एंड सिक्योरिटी एग्रीमेंट (COMCASA), बेसिक एक्सचेंज एंड कोऑपरेशन एग्रीमेंट (BECA)।

मेन्स के लिये:

द्विपक्षीय समूह एवं समझौते, इंडो-पैसिफिक, भारत-अमेरिका संबंध।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच चौथा '2+2' संवाद अमेरिका के वाशिंगटन डीसी में आयोजित किया गया। इस दौरान भारत के विदेश मंत्री एवं रक्षा मंत्री ने अपने अमेरिकी समकक्षों से मुलाकात की।

  • यह बैठक भारत के प्रधानमंत्री एवं अमेरिका के राष्ट्रपति के बीच एक आभासी बैठक के मौके पर आयोजित की गई थी।

बैठक संबंधी प्रमुख बिंदु

  • अंतरिक्ष स्थितिजन्य जागरूकता व्यवस्था: भारत और अमेरिका ने द्विपक्षीय अंतरिक्ष स्थितिजन्य जागरूकता व्यवस्था समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं।
    • यह अंतरिक्ष में अधिक सहयोग के लिये एक आधार तैयार करता है।
  • ‘रक्षा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस डायलॉग’ का उद्घाटन: संयुक्त साइबर प्रशिक्षण एवं अभ्यास का विस्तार करते हुए एक ‘रक्षा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस डायलॉग’ शुरू करने पर भी सहमति व्यक्ति की गई।
  • सैन्य आपूर्ति शृंखला सहयोग: अमेरिका ने ज़ोर देकर कहा कि वह भारत-प्रशांत में रक्षा उद्योग के नेता तथा क्षेत्र में सुरक्षा के शुद्ध प्रदाता के रूप में भारत का समर्थन करता है।
    • इस संदर्भ में नए आपूर्ति शृंखला सहयोग उपाय शुरू किये गए जो दोनों देशों को एक-दूसरे की प्राथमिकता वाली रक्षा आवश्यकताओं का अधिक तेज़ी से समर्थन करेंगे।
  • यूक्रेन संकट का अवलोकन: वे मानवीय सहायता प्रयासों सहित यूक्रेन संकट पर निकट परामर्श बनाए रखने पर सहमत हुए तथा नागरिकों के खिलाफ क्रूर हिंसा की स्वतंत्र जाँच का समर्थन किया।

अमेरिका के साथ भारत की 2+2 वार्ता की स्थिति:

टू-प्लस-टू वार्ता:

  • 2+2 मंत्रिस्तरीय वार्ता दोनों देशों के बीच उच्चतम स्तरीय संस्थागत तंत्र (Highest-Level Institutional Mechanism) है।.
  • यह संवाद का एक प्रारूप है जहांँ रक्षा/विदेश मंत्री या सचिव दूसरे देश के अपने समकक्षों से मिलते हैं।
  • भारत का चार प्रमुख रणनीतिक साझेदारों- अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान और रूस के साथ 2+2 संवाद है।
    • रूस के अलावा अन्य तीन देश भी क्वाड में भारत के भागीदार हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय इतिहास

महावीर जयंती

प्रिलिम्स के लिये:

भगवान महावीर, जैन धर्म।

मेन्स के लिये:

महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व, प्राचीन भारतीय इतिहास।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रधानमंत्री ने भगवान महावीर के उपदेशों विशेष रूप से शांति, करुणा और भाईचारे पर ज़ोर देते हुए लोगों को महावीर जयंती की बधाई दी है।

महावीर जयंती:

  • महावीर जयंती के बारे में:
    • महावीर जयंती जैन धर्म के सबसे प्रमुख त्योहारों में से एक है।
    • महावीर जयंती वर्धमान महावीर (Vardhamana Mahavira) के जन्म का प्रतीक है। वर्धमान महावीर जैन धर्म के 24वें एवं अंतिम तीर्थंकर थे जो 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ (Parshvanatha) के उत्तराधिकारी थे।
    • जैन ग्रंथों के अनुसार, भगवान महावीर का जन्म चैत्र महीने में अर्द्धचंद्र के 13वें दिन हुआ था।
      • ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार, यह दिन प्रायः मार्च या अप्रैल माह में आता है।
    • इस दिन भगवान महावीर की मूर्ति के साथ एक जुलूस यात्रा का आयोजन किया जाता है, जिसे ‘रथ यात्रा’ (Rath Yatra) कहा जाता है।
    • स्तवन या जैन प्रार्थनाओं (Stavans or Jain Prayers) के साथ भगवान की प्रतिमाओं को औपचारिक स्नान कराया जाता है, जिसे ‘अभिषेक’ (Abhishek) कहा जाता है।
  • भगवान महावीर:
    • भगवान महावीर का जन्म 540 ईसा पूर्व में ‘वज्जि साम्राज्य’ में कुंडग्राम के राजा सिद्धार्थ और लिच्छवी राजकुमारी त्रिशला के यहाँ हुआ था। वज्जि संघ आधुनिक बिहार में वैशाली क्षेत्र के अंतर्गत आता है।
    • भगवान महावीर ‘इक्ष्वाकु वंश’ (Ikshvaku dynasty) से संबंधित थे।
    • ऐसे कई इतिहासकार हैं जो मानते हैं कि उनका जन्म अहल्या भूमि नामक स्थान पर हुआ था।
    • बचपन में भगवान महावीर का नाम वर्धमान था यानी ‘जो बढ़ता है’।
    • उन्होंने 30 वर्ष की आयु में सांसारिक जीवन को त्याग दिया और 42 वर्ष की आयु में उन्हें 'कैवल्य' यानी सर्वज्ञान की प्राप्ति हुई।
    • महावीर ने अपने शिष्यों को अहिंसा, सत्य, अस्तेय (चोरी न करना), ब्रह्मचर्य (शुद्धता) तथा अपरिग्रह (अनासक्ति) का पालन करने की शिक्षा दी और उनकी शिक्षाओं को ‘जैन आगम’ (Jain Agamas) कहा गया।
    • प्राकृत भाषा के प्रयोग के कारण प्रायः आम जनमानस भी महावीर और उनके अनुयायियों की शिक्षाओं एवं उपदेशों को समझने में समर्थ थे।
    • महावीर को बिहार में आधुनिक राजगीर के पास पावापुरी नामक स्थान पर 468 ईसा पूर्व में 72 वर्ष की आयु में निर्वाण (जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति) प्राप्त हुआ।

जैन धर्म:

  • जैन शब्द की उत्पत्ति ‘जिन’ शब्द से हुई है, जिसका अर्थ है ‘विजेता’।
  • ‘तीर्थंकर’ एक संस्कृत शब्द है, जिसका प्रयोग संसार सागर से पार लगाने वाले ‘तीर्थ’ के प्रवर्तक के लिये किया जाता है।
  • जैन धर्म में अहिंसा को अत्यधिक महत्त्व दिया गया है।
  • यह 5 महाव्रतों (5 महान प्रतिज्ञाओं) का प्रचार करता है:
    • अहिंसा
    • सत्य
    • अस्तेय (चोरी न करना)
    • अपरिग्रह (अनासक्ति)
    • ब्रह्मचर्य (शुद्धता)
  • इन 5 शिक्षाओं में ब्रह्मचर्य (ब्रह्मचर्य/शुद्धता) को महावीर द्वारा जोड़ा गया था।
  • जैन धर्म के तीन रत्नों या त्रिरत्न में शामिल हैं:
    • सम्यक दर्शन (सही विश्वास)।
    • सम्यक ज्ञान (सही ज्ञान)।
    • सम्यक चरित्र (सही आचरण)।
  • जैन धर्म अपनी सहायता स्वयं ही करने पर बल देता है।
    • इसके अनुसार, कोई देवता या आध्यात्मिक प्राणी नहीं हैं, जो मनुष्य की सहायता करेंगे।
    • यह वर्ण व्यवस्था की निंदा नहीं करता है।
  • बाद के समय में यह दो संप्रदायों में विभाजित हो गया:
    • स्थलबाहु के नेतृत्व में ‘श्वेतांबर’ (श्वेत-पाद)।
    • भद्रबाहु के नेतृत्व में ‘दिगंबर’ (आकाश-मंडल)
  • जैन धर्म में महत्त्वपूर्ण विचार यह है कि संपूर्ण विश्व सजीव है: यहाँ तक कि पत्थरों, चट्टानों और जल में भी जीवन है।
  • जीवित प्राणियों, विशेष रूप से मनुष्यों, जानवरों, पौधों और कीटों के प्रति अहिंसा का भाव जैन दर्शन का केंद्र बिंदु है।
  • जैन शिक्षाओं के अनुसार, जन्म और पुनर्जन्म का चक्र कर्मों से निर्धारित होता है।
  • कर्म के चक्र से स्वयं और आत्मा की मुक्ति के लिये तपस्या एवं त्याग की आवश्यकता होती है।
  • ‘संथारा’ जैन धर्म का एक अभिन्न हिस्सा है।
  • यह आमरण अनशन की एक अनुष्ठान विधि है। श्वेतांबर जैन इसे ‘संथारा’ कहते हैं, जबकि दिगंबर इसे ‘सल्लेखना’ कहते हैं।

विगत वर्षों के प्रश्न:

प्रश्न. भारत में धार्मिक प्रथाओं के संदर्भ में "स्थानकवासी" संप्रदाय का संबंध है: (2018)

(a) बौद्ध धर्म
(b) जैन धर्म
(c) वैष्णववाद
(d) शैववाद

उत्तर: (b)


प्रश्न. भारत के धार्मिक इतिहास के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)

  1. सौत्रन्तिक और सम्मितीय जैन मत के सम्प्रदाय थे।
  2. सर्वास्तिवादियों की मान्यता थी कि दृग्विषय (फिनोमिया) के अवश्व पूर्णतः क्षणिक नहीं हैं, अपितु अव्यक्त रूप में सदैव विद्यमान रहते हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (b)


प्रश्न. प्राचीन भारतीय इतिहास के संदर्भ में निम्नलिखित मे से कौन-सा/से बौद्ध धर्म और जैन धर्म दोनों में समान रूप से विद्यमान था/थे?

  1. तप और भोग की अति का पारिहार
  2. वेद-प्रमाण्य के प्रति अनास्था
  3. कर्मकाण्डों की फलवत्ता का निषेघ

निम्नलिखित कूटों के आधार पर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)


प्रश्न. अनेकांतवाद निम्नलिखित में से किसका एक प्रमुख सिद्धांत और दर्शन है? (2009)

(a) बौद्ध धर्म
(b) जैन धर्म
(c) सिख धर्म
(d) वैष्णववाद

उत्तर: (b)

स्रोत: पी.आई.बी.


शासन व्यवस्था

राष्ट्रीय ग्राम स्वराज अभियान

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय ग्राम स्वराज अभियान, सतत् विकास लक्ष्य (SDG)।

मेन्स के लिये:

पंचायती राज संस्थान (PRI), 15वाँ वित्त आयोग, ई-पंचायत पर मिशन मोड प्रोजेक्ट, ई-गवर्नेंस, सतत् विकास लक्ष्य (SDG)।

चर्चा में क्यों?

आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने 1 अप्रैल, 2022 से 31 मार्च, 2026 की अवधि के दौरान कार्यान्वयन हेतु ‘राष्ट्रीय ग्राम स्वराज अभियान’ (RGSA) की संशोधित केंद्र प्रायोजित योजना को जारी रखने की मंज़ूरी दी है।

  • यह योजना अब 15वें वित्त आयोग की रिपोर्ट की अवधि के साथ समाप्त होगी।
  • इस योजना का उद्देश्य पंचायती राज संस्थाओं (PRI) की शासन क्षमताओं को विकसित करना है।

राष्ट्रीय ग्राम स्वराज अभियान (RGSA) क्या है?

  • पृष्ठभूमि: इस योजना को पहली बार वर्ष 2018 में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा वर्ष 2018-19 से वर्ष 2021-22 तक की अवधि के लिये मंज़ूरी दी गई थी।
  • कार्यान्वयन एजेंसी: पंचायती राज मंत्रालय।
  • घटक: मुख्य केंद्रीय घटकों में पंचायतों को प्रोत्साहन देना एवं केंद्रीय स्तर पर अन्य गतिविधियों सहित ई-पंचायत पर मिशन मोड परियोजना को लागू करना है।
    • राज्य घटकों में मुख्य रूप से क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण (CB&T) गतिविधियाँ, CB&T के लिये संस्थागत तंत्र के साथ-साथ सीमित स्तर पर अन्य गतिविधियाँ शामिल हैं।
  • उद्देश्य: इसमें सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) को पूरा करने के लिये पंचायती राज संस्थानों (PRIs) की शासन क्षमताओं को विकसित करने की परिकल्पना की गई है।
    • SDGs के प्रमुख सिद्धांत, यानी किसी को पीछे नहीं छोड़ना, सबसे पहले एवं सार्वभौमिक कवरेज तक पहुँचना, लैंगिक समानता के साथ-साथ प्रशिक्षण, प्रशिक्षण मॉड्यूल और सामग्री सहित सभी क्षमता निर्माण हस्तक्षेपों को डिज़ाइन में शामिल किया जाएगा।
    • मुख्य रूप से राष्ट्रीय महत्त्व के विषयों को प्राथमिकता दी जाएगी, अर्थात्:
      • गाँवों में गरीबी से मुक्ति एवं आजीविका में बढ़ोतरी
      • स्वस्थ गाँव
      • बच्चों के अनुकूल गाँव
      • जल पर्याप्त गाँव
      • स्वच्छ और हरा-भरा गाँव
      • गाँव में आत्मनिर्भर बुनियादी ढाँचा
      • सामाजिक रूप से सुरक्षित गाँव
      • सुशासन वाला गाँव
      • ग्राम विकास में बढ़ोतरी।
  • फंडिंग पैटर्न: संशोधित RGSA में केंद्र एवं राज्य के घटक शामिल होंगे। योजना के केंद्रीय घटकों को पूरी तरह से भारत सरकार द्वारा वित्तपोषित किया जाएगा।
    • राज्य घटकों के लिये वित्तपोषण पैटर्न केंद्र और राज्यों के बीच क्रमशः 60:40 के अनुपात में होगा, वहीं पूर्वोत्तर के राज्यों, जम्मू-कश्मीर और पहाड़ी राज्यों में केंद्र और राज्य का हिस्सा 90:10 होगा।
    • साथ ही अन्य केंद्रशासित प्रदेशों के लिये केंद्रीय हिस्सा 100% होगा।
  • विज़न: यह "सबका साथ, सबका गांँव, सबका विकास" (Sabka Sath, Sabka Gaon, Sabka Vikas) हासिल करने की दिशा में एक प्रयास है।
  • महत्त्व:
    • सामाजिक-आर्थिक न्याय: चूंँकि पंचायतों में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और महिलाओं का प्रतिनिधित्व होता है और वे ज़मीनी स्तर के सबसे करीब संस्थान हैं, पंचायतों को मज़बूत करने से सामाजिक न्याय व समुदाय के आर्थिक विकास के साथ-साथ समानता तथा समावेशिता को बढ़ावा मिलेगा।
    • बेहतर लोक सेवा उपलब्ध कराना: पंचायती राज संस्थाओं द्वारा ई-गवर्नेंस के बढ़ते उपयोग से बेहतर सेवा वितरण और पारदर्शिता हासिल करने में मदद मिलेगी।
    • PIR का विकास: यह पर्याप्त मानव संसाधन और बुनियादी ढांचे के साथ राष्ट्रीय, राज्य और ज़िला स्तर पर PIR के क्षमता निर्माण हेतु संस्थागत ढांँचे की स्थापना करेगा।
  • लाभार्थी: RGSA की स्वीकृत योजना से 2.78 लाख से अधिक ग्रामीण स्थानीय निकायों को मदद मिलेगी।
    • देश भर में पारंपरिक निकायों सहित ग्रामीण स्थानीय निकायों के लगभग 60 लाख निर्वाचित प्रतिनिधि, पदाधिकारी और अन्य हितधारक इस योजना के प्रत्यक्ष लाभार्थी होंगे।
  • विस्तार: इस योजना का विस्तार देश के सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों तक है तथा भाग IX में शामिल क्षेत्रों के आलावा ग्रामीण स्थानीय सरकार की संस्थाएँ भी शामिल होंगी, जहाँ पंचायतें मौजूद नहीं हैं।

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न: (पीवाईक्यू):

प्रश्न.. पंचायती राज व्यवस्था का मूल उद्देश्य निम्नलिखित में से किसे सुनिश्चित करना है? (2015)

  1. विकास में लोगों की भागीदारी।
  2. राजनीतिक जवाबदेही।
  3. लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण।
  4. वित्त जुटाना।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 2 और 4
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (c)

व्याख्या:

  • पंचायती राज व्यवस्था का सबसे मौलिक उद्देश्य विकास और लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण में लोगों की भागीदारी को सुनिश्चित करना है।
  • पंचायती राज संस्थाओं की स्थापना स्वतः ही राजनीतिक उत्तरदायित्व की ओर नहीं ले जाती है।
  • वित्त जुटाना पंचायती राज का मूल उद्देश्य नहीं है, हालांँकि यह ज़मीनी स्तर पर सरकार को वित्त और संसाधनों को हस्तांतरित करने में सहायक है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


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