माउंट किलिमंजारो में भयानक आग

प्रिलिम्स के लिये

माउंट किलिमंजारो, ज्वालामुखी शंकु

मेन्स के लिये

वनाग्नि की समस्या, कारण प्रभाव और उपाय

चर्चा में क्यों?

अफ्रीकी महाद्वीप की सबसे ऊँची चोटी माउंट किलिमंजारो (Mount Kilimanjaro) भयानक आग का सामना कर रही है।

प्रमुख बिंदु

  • माउंट किलिमंजारो 
    • तंज़ानिया में अवस्थित माउंट किलिमंजारो (Kilimanjaro) अफ्रीका महाद्वीप का सबसे ऊँचा पर्वत है, जिसकी ऊँचाई लगभग 5,895 मीटर है। 
    • माउंट किलिमंजारो पूर्वी अफ्रीका में तंज़ानिया के उत्तर-पूर्व में लगभग भूमध्य रेखा पर अवस्थित है। 
    • अफ्रीका का सबसे ऊँचा पर्वत होने के साथ-साथ माउंट किलिमंजारो (Kilimanjaro) विश्व के सात सबसे ऊँचे पर्वतों में से एक है। 
    • माउंट किलिमंजारो को पर्वतारोहियों के बीच काफी लोकप्रिय माना जाता है, क्योंकि इस पर चढ़ाई करना विश्व के सबसे ऊँचे सात पर्वतों में सबसे आसान है।
  • फ्री-स्टैंडिंग माउंटेन
    • ध्यातव्य है कि माउंट किलिमंजारो विश्व का सबसे ऊँचा ‘फ्री-स्टैंडिंग माउंटेन’ है, जिसका अर्थ है कि यह किसी भी पर्वत शृंखला का हिस्सा नहीं है।
      • अधिकांश ऊँचे पर्वत किसी-न-किसी पर्वत शृंखला का हिस्सा होते है, जैसे माउंट एवरेस्ट हिमालय पर्वत शृंखला का हिस्सा है।
    • भू-वैज्ञानिक मानते हैं कि माउंट किलिमंजारो का निर्माण अनुमानतः 460,000 वर्ष पूर्व ज्वालामुखी गतिविधि के कारण हुआ था। 
      • इस पर्वत पर तीन ज्वालामुखी शंकु [किबो (Kibo), शिरा (Shira) एवं मावेंज़ी (Mawenzi)] हैं जिनमें किबो ज्वालामुखी सबसे ऊँचा है।

ज्वालामुखी शंकु (Volcanic Cone):

Volcanic-Cone

  • ज्वालामुखी शंकु सबसे साधारण ज्वालामुखी भू-आकृतियों में से एक हैं। इनका निर्माण ज्वालामुखी उद्गार के समय निकास नलिका से निकले पदार्थ के निकास नली के चारों ओर शंक्वाकार रूप में जमने से होता है, जबकि इस शंकु का मध्य भाग एक गर्त के रूप में विकसित होता है।
  • इस तरह माउंट किलिमंजारो एक स्ट्रैटोज्वालामुखी है। जहाँ माउंट किलिमंजारो के शिरा और मावेंज़ी ज्वालामुखी तो विलुप्त हो चुके हैं यानी अब इनके नीचे किसी भी प्रकार की गतिविधि नहीं होती है, वहीं किबो ज्वालामुखी अभी विलुप्त नहीं हुआ है, बल्कि यह निष्क्रिय है, इस तरह इसमें कभी भी विस्फोट हो सकता है।
    • यद्यपि किबो ज्वालामुखी में बीते 10000 वर्षों में विस्फोट नहीं हुआ है परंतु वैज्ञानिकों का मानना है कि इसमें किसी भी समय विस्फोट हो सकता है। 

इतिहास

  • जहाँ माउंट किलिमंजारो के भू-वैज्ञानिक इतिहास का तो पता लगाया जा चुका है, वहीं इस पर्वत के नाम के इतिहास को लेकर अभी तक कोई आम सहमति नहीं बन पाई है।
  • यूरोपीय खोजकर्त्ताओं ने वर्ष 1860 में ‘किलिमंजारो’ नाम को अपनाया था और उनका मानना था कि यह शब्द तंज़ानिया की स्‍वाहि‍ली भाषा का शब्द है।
  • लेकिन वर्ष 1907 में प्रकाशित एक पुस्तक में कहा गया कि इस पर्वत का नाम असल में ‘किलिमा-नजारो’ था, जिसमें ‘किलिमा’ स्वाहिली भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है पर्वत और ‘नजारो’ उत्तरी तंज़ानिया में बोली जाने वाली चग्गा (Chagga) भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है ‘सफेदी’।
  • माउंट किलिमंजारो पर पहली बार वर्ष 1889 में एक जर्मन भूविज्ञानी हैंस मेयर (Hans Meyer), एक ऑस्ट्रियाई पर्वतारोही लुडविग पुर्श्चेलेर (Ludwig Purtscheller) और एक स्थानीय गाइड योहानी किनाला द्वारा चढ़ाई की गई थी। ध्यातव्य है कि जर्मन भूविज्ञानी हैंस मेयर ने इससे पहले भी दो बार प्रयास किये थे, किंतु वे असफल रहे थे।

Tanzania

वनाग्नि की समस्या

  • बीते वर्ष सितंबर माह में शुरू हुई ऑस्ट्रेलिया की भीषण वनाग्नि ने वहाँ काफी बड़े पैमाने पर विनाश किया था, इस वनाग्नि में मुख्य रूप से ऑस्ट्रेलिया के न्यू साउथ वेल्स और क्वींसलैंड जैसे क्षेत्र प्रभावित हुए थे।
  • ब्राज़ील स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्पेस रिसर्च (National Institute for Space Research-INPE) के आँकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2019 में ब्राज़ील के अमेज़न वनों (Amazon Forests) ने कुल 74,155 बार आग का सामना किया। साथ ही यह बात भी सामने आई थी कि अमेज़न वन में आग की घटनाएँ वर्ष 2018 से 85 प्रतिशत तक बढ़ गई हैं।
  • विश्व भर में वनाग्नि की घटनाएँ लगातार बढ़ती जा रही हैं और भारत भी इन घटनाओं से बच नहीं पाया है। भारत में प्रतिवर्ष देश के अलग-अलग हिस्सों में वनाग्नि की घटनाएँ दर्ज की जाती हैं।
  • कारण
    • अलग-अलग क्षेत्रों में वनाग्नि के भिन्न-भिन्न कारण होते हैं, जिसमें प्राकृतिक कारणों के साथ-साथ मानवीय कारण भी शामिल हैं। 
    • आकाशीय बिजली वनाग्नि के प्राकृतिक कारणों में सबसे प्रमुख है, जिसकी वजह से पेड़ों में आग लगती है और धीरे-धीरे आग पूरे जंगल में फैल जाती है। इसके अतिरिक्त उच्च वायुमंडलीय तापमान और कम आर्द्रता वनाग्नि के लिये अनुकूल परिस्थिति प्रदान करती हैं।
    • वहीं विश्व भर में देखे जानी वाली वनाग्नि की अधिकांश घटनाएँ मानव निर्मित होती हैं। वनाग्नि के मानव निर्मित कारकों में कृषि हेतु नए खेत तैयार करने के लिये वन क्षेत्र की सफाई, वन क्षेत्र के निकट जलती हुई सिगरेट या कोई अन्य ज्वलनशील वस्तु छोड़ देना आदि शामिल हैं।
  • प्रभाव
    • जंगलों में लगने वाली आग के कारण उस क्षेत्र विशिष्ट की प्राकृतिक संपदा और संसाधनों को काफी नुकसान का सामना करना पड़ता है।
    • वनाग्नि के कारण जानवरों के रहने का स्थान नष्ट हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप नए स्थान की खोज में वे शहरों की ओर जाते हैं और शहरों की संपत्ति को नुकसान पहुँचाते हैं।
    • अमेज़न जैसे बड़े जंगलों में वनाग्नि के कारण जैव विविधता और पौधों तथा जानवरों के विलुप्त होने का खतरा बढ़ जाता है।

आगे की राह

  • यद्यपि तंज़ानिया अवस्थित माउंट किलिमंजारो में ऐसे समय में आग लगी है जब पर्यटन सीज़न समाप्त हो रहा है, किंतु यदि इस आग को जल्द-से-जल्द नहीं बुझाया गया तो यह और अधिक गंभीर रूप धारण कर सकती है, जिसका प्रभाव माउंट किलिमंजारो पर आने वाले पर्यटकों और पर्वतारोहियों की संख्या पर पड़ेगा।
  • विश्लेषण बताता है कि विश्व भर के जंगलों और वनों में भयानक आग की घटनाएँ अधिकांशतः मानवीय कारणों से प्रेरित होती हैं, अतः इन पर आसानी से नियंत्रण पाया जा सकता है।
  • आवश्यक है कि वनाग्नि प्रबंधन के लिये विभिन्न नवीन विचारों की खोज की जाए, इस संबंध में वनाग्नि प्रबंधन को लेकर अलग-अलग देशों द्वारा अपनाए जा रहे मॉडल की समीक्षा की जा सकती है और अपनी परिस्थितियों के अनुकूल उनमें परिवर्तन किया जा सकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


इंडिया एनर्जी मॉडलिंग फोरम

प्रीलिम्स के लिये

यूएस-इंडिया स्ट्रेटजिक एनर्जी पार्टनरशिप, नीति आयोग, यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट,, इंडिया एनर्जी मॉडलिंग फोरम

मेन्स के लिये

भारत-अमेरिका ऊर्जा सहयोग

चर्चा में क्यों?

यूएस-इंडिया स्ट्रेटजिक एनर्जी पार्टनरशिप’ (US–India Strategic Energy Partnership) के तहत नीति आयोग और ‘यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट’ (United States Agency for International Development- USAID) द्वारा इंडिया एनर्जी मॉडलिंग फोरम (India Energy Modelling Forum- IEMF) के गठन की दिशा में नीति आयोग ने 8 अक्तूबर,2020 को इसकी प्रशासनिक संरचना को घोषित कर दिया।

प्रमुख बिंदु:

  • यूएस-इंडिया स्ट्रेटजिक एनर्जी पार्टनरशिप के तहत सतत् विकास स्तंभों के तौर पर  IEMF का लक्ष्य भारतीय शोधकर्त्ताओं, ज्ञान संपदा साझेदारों, थिंक टैंक, राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय सरकारी एजेंसियों और विभागों को मॉडलिंग एवं दीर्घकालिक ऊर्जा योजना से जोड़ना है

IEMF की प्रशासनिक संरचना:

  •  IEMF की प्रशासनिक संरचना में एक अंतर-मंत्रालयी और एक संचालन समिति शामिल है। अंतर-मंत्रालयी समिति की बैठक नीति आयोग द्वारा बुलाई जाएगी और इसकी अध्यक्षता मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) करेगा।
  • इसमें पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय (The Ministry of Petroleum & Natural Gas), विद्युत मंत्रालय (The Ministry of Power), नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (The Ministry of New and Renewable Energy-MNRE) कोयला मंत्रालय (The Ministry of Coal), पर्यावरण,  वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (The Ministry of Environment, Forest and Climate Change- MoEFCC) और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Science and Technology) के वरिष्ठ अधिकारी शामिल होंगे। 
  • संचालन समिति इन प्रतिनिधियों से मिलकर बनेगी-
    • सरकार (वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, नवीन एवं नवीकरण ऊर्जा मंत्रालय, सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय, तकनीक सूचना पूर्वानुमान एवं मूल्यांकन काउंसिल, कोयला संग्राहक संगठन, पेट्रोलियम नियोजन एवं विश्लेषण कोष्ठ, केंद्रीय बिजली प्राधिकरण और नीति आयोग) के प्रतिनिधि।
    • उद्योग संगठन (फिक्की एवं भारतीय उद्योग परिसंघ)
    • अकादमिक क्षेत्र (आईआईटी बॉम्बे, अहमदाबाद और दिल्ली)
    • नीतिगत शोध संस्थान, थिंक टैंक और फंडिंग एजेंसी

समिति के कार्य:

  • यह समिति अध्ययन हेतु नीतिगत मुद्दों की खोज करेगी और विशिष्ट अध्ययनों/मॉडलिंग अभ्यासों के आधार पर विभिन्न कार्यबल (टास्क फोर्स) का भी गठन कर सकेगी।
  • इस समिति के संयोजक को दो वर्ष के लिये रोटेशनल आधार पर चुना जाएगा जो अंतर-मंत्रालयी व संचालन समितियों और कार्यकारी समूहों/कार्यबलों के बीच संपर्क बिंदु के रूप में काम करेगा। 
  • पुणे स्थित प्रयास समूह (Prayas Energy Group) संचालन समिति का पहला संयोजक होगा।
  • यह समिति अध्ययन/मॉडलिंग गतिविधियों की समीक्षा करेगी और अनुसंधान को दिशा देने के साथ नए क्षेत्र भी उपलब्ध कराएगी।

भारत-अमेरिका ऊर्जा सहयोग:

  • ऊर्जा क्षेत्र में भारत और अमेरिका की दीर्घकालिक स्थायी साझेदारी है।
  • यूएस-इंडिया स्ट्रेटजिक एनर्जी पार्टनरशिप के चार सतत् विकास स्तंभों में से एक सतत् विकास स्तंभ की अध्यक्षता नीति आयोग और USAID मिलकर कर रहे हैं।
  • यह स्तंभ भारत और अमेरिका के शोधकर्त्ताओं एवं निर्णयकर्त्ताओं को ऊर्जा डेटा प्रबंधन; एनर्जी मॉडलिंग और कम कार्बन उत्सर्जन वाली प्रौद्योगिकियों को प्रोत्साहन जैसे तीन प्रमुख क्षेत्रों में सहयोग करने के लिये एक साथ जोड़ता हैI
  • IEMF को ऊर्जा मॉडलिंग के क्षेत्र के तहत शुरू किया गया था।
  • IEMF को स्टैनफोर्ड एनर्जी मॉडलिंग फोरम (Stanford Energy Modelling Forum) और यूरोप के एनर्जी मॉडलिंग प्लेटफॉर्म ( Modelling Forum and Energy Modelling Platform for Europe) जैसी ग्लोबल एनर्जी मॉडलिंग फोरम के साथ साझेदारी से श्रेष्ठ कार्य व्यवहार साझा करने और सीखने की उम्मीद है।

स्रोत- पीआईबी


केरल में हाई-टेक क्लासरूम

प्रिलिम्स के लिये

फर्स्ट बेल कार्यक्रम, नमथ बसई कार्यक्रम

मेन्स के लिये

केरल सरकार के शिक्षा संबंधी कार्यक्रम, भारत के सरकारी विद्यालयों की स्थिति और उनकी समस्याएँ

चर्चा में क्यों?

केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने हाल ही में घोषणा की है कि केरल देश का पहला ऐसा राज्य बन गया है, जहाँ सरकार द्वारा संचालित और सहायता प्राप्त सभी विद्यालय हाई-टेक क्लासरूम या हाई-टेक लैब से सुसज्जित हैं।

प्रमुख बिंदु

  • परियोजना की प्रमुख उपलब्धियाँ 
    • राज्य के विद्यालयों को आधुनिक तकनीक से सुसज्जित करने के लिये केरल सरकार द्वारा शुरू की गई योजना के तहत प्राथमिक से उच्च माध्यमिक स्तर तक के 16,027 विद्यालयों को 3.74 लाख डिजिटल गैजेट्स प्रदान किये गए हैं।
    • राज्य के हाईस्कूल और उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों में 40,000 कक्षाओं को स्मार्ट कक्षाओं में परिवर्तित किया गया है।
    • राज्य के 12,678 विद्यालयों में हाई स्पीड ब्रॉडबैंड इंटरनेट सुविधा सुनिश्चित की गई है। साथ ही राज्य के विद्यालयों में तकरीबन 2 लाख लैपटॉप वितरित किये गए हैं।
    • केरल सरकार की इस परियोजना का कार्यान्वयन केरल इन्फ्रास्ट्रक्चर एंड टेक्नोलॉजी फॉर एजुकेशन (KITE) द्वारा किया जा रहा था, जो कि राज्य में संचार और सूचना प्रौद्योगिकी (ICT) के माध्यम से शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करने के लिये एक नोडल एजेंसी है। वहीं इस परियोजना का वित्तपोषण केरल इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट फंड बोर्ड (KIIFB) द्वारा किया जा रहा था।

  • केरल सरकार के शिक्षा संबंधी अन्य कार्यक्रम
    • केरल सरकार ने देशव्यापी लॉकडाउन के कारण विद्यालयों के बंद होने के बाद राज्य के 41 लाख छात्रों को शिक्षा प्रदान करने के लिये 'फर्स्ट बेल' नामक ऑनलाइन कार्यक्रम द्वारा नियमित कक्षाएँ प्रारंभ की थीं।
      • इस ऑनलाइन पहल के अंतर्गत केरल इन्फ्रास्ट्रक्चर एंड टेक्नोलॉजी फॉर एजुकेशन (KITE) द्वारा नए शैक्षणिक सत्र हेतु कक्षाओं का राज्य सरकार के शैक्षणिक टीवी चैनल विक्टर्स (Victers) पर प्रसारण किया जा रहा है।
    • इसके अलावा केरल सरकार जनजातीय बच्चों को उनकी मातृभाषा में पढ़ाने के लिये नमथ बसई (Namath Basai) नाम से एक कार्यक्रम का भी संचालन कर रही है।
      • नमथ बसई (Namath Basai) कार्यक्रम को ‘समग्र शिक्षा केरल’ (SSK) द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।
      • इस कार्यक्रम के माध्यम से सैकड़ों की संख्या में आदिवासी बच्चों को उनकी मातृभाषा में शिक्षा प्रदान करने की व्यवस्था की गई है। 

भारत में सरकारी स्कूलों से संबंधित समस्याएँ

  • एक अनुमान के अनुसार, भारत में 10 लाख से अधिक सरकारी विद्यालय हैं। वर्ष 2017 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में सरकारी विद्यालयों में जाने वाले बच्चों की कुल संख्या लगभग 52.2 प्रतिशत है, जो कि वर्ष 1978 में तकरीबन 74.1 प्रतिशत थी। 
  • चुनौतियाँ
    • वित्तपोषण की कमी: कोठारी आयोग (1964-1966) ने सार्वजनिक शिक्षा पर देश की GDP का कुल 6 प्रतिशत हिस्सा खर्च करने की सिफारिश की थी, किंतु आँकड़े बताते हैं कि वित्तीय वर्ष 2018-19 में भारत ने शिक्षा क्षेत्र पर अपनी GDP का केवल 3 प्रतिशत हिस्सा ही खर्च किया था। यह भारत में सार्वजनिक शिक्षा के वित्तपोषण की कमी को दर्शाता है, जिसके कारण सुधार की संभावना काफी कम हो जाती है।
    • शैक्षणिक संसाधनों की कमी: वित्तपोषण में कमी के कारण भारत के सरकारी विद्यालयों को शैक्षणिक संसाधनों की कमी जैसी समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है। कई सरकारी विद्यालयों में ब्लैकबोर्ड, किताबें, स्टेशनरी और डेस्क जैसे बुनियादी संसाधनों की भी कमी देखी जाती है, जिसका प्रभाव विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चों के सीखने की क्षमता पर पड़ता है।
    • अध्यापकों की कमी: शिक्षकों और प्रशिक्षकों की कमी भी देश के सार्वजनिक विद्यालयों की एक बड़ी समस्या है, देश में खास तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसे कई विद्यालय हैं, जहाँ पर्याप्त संख्या में शिक्षक मौजूद नहीं हैं। इसके अलावा कई बार शिक्षकों को गैर-शैक्षणिक कार्य (जैसे चुनाव) में नियुक्त कर दिया जाता है, जिसके कारण उन पर अतिरिक्त बोझ पड़ता है।
    • विद्यार्थियों की अत्यधिक संख्या: भारत में जनसंख्या और गरीबी दोनों में ही वृद्धि हो रही है, जिसके कारण सरकारी विद्यालयों में दाखिला लेने वाले विद्यार्थियों की संख्या में भी बढ़ोतरी हो रही है। देश में अधिकांश सरकारी विद्यालय ऐसे हैं जहाँ क्षमता से अधिक विद्यार्थी पढ़ रहे हैं, जिसके कारण शिक्षकों के लिये सभी विद्यार्थियों पर ध्यान केंद्रित करना अपेक्षाकृत चुनौतीपूर्ण हो जाता है।

आगे की राह

  • हाल ही में केंद्र सरकार ने नई शिक्षा नीति 2020 को मंज़ूरी दी है, जिसमें छात्रों में रचनात्मक सोच, तार्किक निर्णय और नवाचार की भावना को प्रोत्साहित करने पर बल दिया गया है। 
  • साथ ही इस शिक्षा नीति के तहत केंद्र व राज्य सरकार के सहयोग से शिक्षा क्षेत्र पर देश की जीडीपी के 6 प्रतिशत हिस्से के बराबर निवेश का लक्ष्य रखा गया है।
  • उम्मीद है कि नई शिक्षा नीति से भारत की सार्वजनिक शिक्षा पद्धति में परिवर्तन आएगा और वित्तपोषण, शैक्षणिक संसाधनों तथा अध्यापकों की कमी जैसी समस्याओं को समाप्त किया जा सकेगा।
  • देश के सरकारी विद्यालयों के लिये केरल और दिल्ली द्वारा स्थापित शिक्षा मॉडलों की समीक्षा की जा सकती है और परिस्थितियों के अनुकूल उनमें परिवर्तन किया जा सकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग, किशोर न्याय अधिनियम, 2015,

मेन्स के लिये:

भारत में बाल अधिकारों के संरक्षण हेतु संवैधानिक प्रावधान, बाल देखभाल गृहों के संदर्भ में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की भूमिका 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय’ (Supreme Court) द्वारा आठ राज्यों के बाल देखभाल गृहों/केयर होम्स (Care Homes) में रहने वाले बच्चों को तत्काल उनके परिवारों को प्रत्यावर्तन/सौंपने से संबंधित  अपने अनुरोध पर ‘राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग’ (National Commission for Protection of Child Rights-NCPCR) से प्रतिक्रिया मांगी गई है।

प्रमुख बिंदु:

  • प्रत्यावर्तन अनुरोध (Repatriation Request): बाल प्रत्यावर्तन के संबंध में NCPCR द्वारा तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, मिज़ोरम, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र एवं मेघालय राज्य से सिफारिश की गई थी।
    • इन राज्यों में संयुक्त रूप से 1.84 लाख बच्चे बाल देखभाल गृहों में हैं।
    • इन  देखभाल गृहों में 70% से अधिक बच्चों को रखने की क्षमता है।
  • न्यायिक सक्रियता:  देश भर में महामारी के दौरान देखभाल गृहों में रखे गए बच्चों की स्थिति और कल्याण के निरीक्षण के लिये अदालत द्वारा सुओ-मोटो (Suo Motu) के तहत निगरानी की जा रही है।
    • नागरिकों के अधिकारों को सुरक्षित रखने एवं संविधान के संरक्षण के लिये न्यायपालिका की सक्रिय भूमिका, जो कि कार्यकारी या विधायी क्षेत्र में भी न्यायिक सक्रियता के रूप में जानी जाती है।
    • न्यायालय द्वारा सवाल तलब किया गया है कि क्या NCPCR बच्चों के माता-पिता की सहमति एवं उनकी वित्तीय स्थिति पर विचार किये बिना बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा के संबंध में राज्यों को इस प्रकार के सामान्य निर्देश जारी कर सकता है?
  • व्यक्तिगत आधार पर:  बच्चे की सुरक्षा के लिये प्रत्यावर्तन को व्यक्तिगत आधार  माना जाना चाहिये।
    • एमिकस क्यूरिया (Amicus Curiae) जिसे ‘न्यायालय के सहयोगी’ के रूप में देखा जाता है  तथा जो कानून या तथ्यों के बारे में एक सहायक के तौर पर अदालत को सलाह देता है, के अनुसार चूँकि महामारी एक बच्चे को घरेलू दुर्व्यवहार या हिंसा के प्रति अधिक संवेदनशील बना देती है, अत: NCPCR द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के ज़रिये किशोर न्याय अधिनियम, 2015 (Juvenile Justice Act of 2015) का उल्लंघन किया गया है।
    • किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम [The Juvenile Justice (Care and Protection of Children) Act] व्यापक रूप से बच्चों को कानूनी विवादों से संरक्षण प्रदान करता है, यह बच्चों की देखभाल एवं सुरक्षा के लिये आवश्यक है।
    • शक्तियों के प्रयोग एवं किशोर न्याय अधिनियम, 2015 के तहत बच्चों की देखभाल एवं सुरक्षा के संबंध में समितियों को कर्तव्यों का निर्वहन करने के लिये अधिनियम की धारा 27 (1) के अनुसार, राज्य सरकार द्वारा प्रत्येक ज़िले के लिये आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचना द्वारा ‘बाल कल्याण समितियों’ (Child Welfare Committees-CWCs) का गठन किये जाने का प्रावधान किया गया है।
  • NCPCR का रुख: NCPCR द्वारा बच्चों के विकास के लिये उन्हें पारिवारिक वातावरण प्रदान किये जाने की आवश्यकता का सुझाव दिया गया है ।
    • इसके अलावा अदालत द्वारा अप्रैल 2020 के आदेश में जुवेनाईल ऑथोरिटी (Juvenile Authorities) को निर्देशित करते हुए कहा गया कि वे इस बात पर अच्छी तरह से विचार करें कि क्या बच्चों के बेहतर स्वास्थ्य एवं सुरक्षा चिंताओं को ध्यान में रखते हुए उन्हें बाल देखभाल संस्थानों में रखा जाना चाहिये।
  • बाल देखभाल गृह: जिन बच्चों को बाल देखभाल गृह/चाइल्ड केयर होम में रखा जा रहा है, उनमें न केवल अनाथ/परित्यक्त बच्चे बल्कि दलित/आर्थिक रूप से कमज़ोर परिवारों से आने वाले बच्चे भी शामिल होते हैं।
    • इस प्रकार अगर कोई बच्चा जो या तो एकल माता-पिता द्वारा लाया गया है या ऐसे परिवार से है जो बच्चे की ठीक से परवरिश करने में सक्षम नहीं है,  वह देखभाल गृह की सभी सुविधाओं का लाभ प्राप्त कर सकता है।
    • बच्चों के लिये व्यक्तिगत बिस्तर, उचित पोषण और आहार, खिलौने, स्वच्छता तथा सीसीआई /होम्स के रखरखाव, पर्याप्त पानी, स्वास्थ्य जाँच, उम्र के आधार पर शैक्षिक सुविधाएँ और बच्चे की विशेष आवश्यकताओं के लिये सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाती हैं।
    • इन देखभाल गृहों में सभी बच्चों को पास के सरकारी स्कूलों में पढ़ना आवश्यक है।

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग:

  • NCPCR का गठन मार्च 2007 में ‘कमीशंस फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स’ (Commissions for Protection of Child Rights- CPCR) अधिनियम, 2005 के तहत एक वैधानिक निकाय के रूप में किया गया है।
  • यह महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में कार्यरत है।
  • आयोग का अधिदेश (mandate) यह सुनिश्चित करता है कि सभी कानून, नीतियाँ, कार्यक्रम और प्रशासनिक तंत्र भारत के संविधान में निहित बाल अधिकार के प्रावधानों के साथ-साथ संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन के बाल अधिकारों के अनुरूप भी हों।
  • यह शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009(Right to Education Act, 2009) के तहत एक बच्चे के लिये मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा के अधिकार से संबंधित शिकायतों की जाँच करता है।
  • यह लैंगिक अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम, 2012 [ Protection of Children from Sexual Offences(POCSO) Act, 2012] के कार्यान्वयन की निगरानी करता है।

आगे की राह:

  • व्यक्तिगत मामलों को प्रत्यावर्तन  के आधार पर शुरू करना इस संदर्भ में एक उचित कदम/पहल है, इसके साथ ही उचित सुविधाओं के संबंध में बाल देखभाल संस्थानों की आवश्यक निगरानी की जानी चाहिये ।
  • बाल देखभाल गृहों के कर्मचारियों के प्रशिक्षण में संवेदनशीलता के मुद्दों को भी शामिल किया जा सकता है ताकि वे बच्चों की ज़रूरतों को समझ सकें।

स्रोत: द हिंदू


‘द ह्यूमन कॉस्ट ऑफ डिज़ास्टर्स 2000-2019’ रिपोर्ट

प्रिलिम्स के लिये:

द ह्यूमन कॉस्ट ऑफ डिज़ास्टर्स 2000-2019, सेंदाई फ्रेमवर्क 2015-30

मेन्स के लिये:

चरम मौसमी घटनाओं से बदलता आपदा परिदृश्य  

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र ने ‘द ह्यूमन कॉस्ट ऑफ डिज़ास्टर्स 2000-2019’ (The Human Cost of Disasters 2000-2019) नामक एक नई रिपोर्ट में कहा है कि पिछले 20 वर्षों में जलवायु परिवर्तन के कारण प्राकृतिक आपदाओं की संख्या में लगभग दोगुनी वृद्धि हुई है।

प्रमुख बिंदु: 

  • आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिये संयुक्त राष्ट्र ने कहा कि वर्ष 2000 और वर्ष 2019 के बीच 7348 प्रमुख आपदा घटनाएँ हुईं जिसमें 1.23 मिलियन लोगों की मृत्यु हुई है तथा 4.2 बिलियन लोग प्रभावित हुए और लगभग $2.97 ट्रिलियन का वैश्विक आर्थिक नुकसान हुआ है।   
  • यह आँकड़ा वर्ष 1980 और वर्ष 1999 के बीच दर्ज की गई 4212 प्रमुख प्राकृतिक आपदाओं से भिन्न है।
  • जलवायु परिवर्तन में तीव्र वृद्धि काफी हद तक जलवायु से संबंधित आपदाओं में वृद्धि के लिये ज़िम्मेदार थी जिसमें बाढ़, सूखा एवं तूफान जैसी चरम मौसमी घटनाएँ शामिल हैं।
    • पिछले 20 वर्षों में बाढ़ की संख्या दोगुनी से अधिक जबकि तूफानों की संख्या 1457 से बढ़कर 2034 हो गई है।
    • चीन के बाद भारत बाढ़ से दूसरा सबसे प्रभावित देश है।
    • अत्यधिक गर्मी विशेष रूप से घातक साबित हो रही है। भारत में वर्ष 2015 में हीटवेव्स के परिणामस्वरूप 2248 मौतें हुईं।

क्षेत्र आधारित आँकड़े:

  • आँकड़ों से पता चलता है कि एशिया में पिछले 20 वर्षों में 3068 ऐसी घटनाओं के साथ सबसे अधिक आपदाएँ हुई हैं, इसके बाद अमेरिका (1756) और अफ्रीका (1192) का स्थान आता है।
    • आपदा प्रभावित देशों के मामले में चीन 577 घटनाओं के साथ शीर्ष पर है इसके बाद संयुक्त राज्य अमेरिका (467), भारत (321) का स्थान आता है। 

पिछले 20 वर्षों में प्रमुख आपदाएँ:

  • पिछले 20 वर्षों में सबसे गंभीर आपदा वर्ष 2004 में हिंद महासागर में आई सुनामी थी जिसमें 226,400 लोगों की मृत्यु हुईं थी।
  • इसके बाद वर्ष 2010 में हैती (Haiti) में आया भूकंप जिसमें 222,000 लोगों की जान चली गई थी। 

प्राकृतिक आपदाएँ एवं भू-भौतिकी घटनाएँ:

  • हालाँकि एक जलवायु में परिवर्तन के कारण इस तरह की आपदाओं की संख्या एवं तीव्रता में वृद्धि हुई है वहीँ भूकंप एवं सुनामी जैसी भू-भौतिकी घटनाओं में भी वृद्धि हुई है जो जलवायु से संबंधित नहीं हैं।
  • आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिये संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (UN Office for Disaster Risk Reduction) ने कहा है कि यह एकमात्र निष्कर्ष है जब पिछले 20 वर्षों में आपदा की घटनाओं की समीक्षा की जा सकती है। 
    • इसके अतिरिक्त उसने विभिन्न राष्ट्रों की सरकारों पर जलवायु खतरों को रोकने के लिये पर्याप्त उपाय न करने का आरोप लगाया और आपदाओं को कम करने के लिये बेहतर तैयारी का आह्वान किया।
  • गौरतलब है कि इस रिपोर्ट में जैविक खतरों (Biological Hazards) और कोरोनोवायरस महामारी जैसी बीमारी से संबंधित आपदाओं को शामिल नहीं किया गया है, जिससे पिछले नौ महीनों में एक मिलियन से अधिक लोगों की मृत्यु हुई है और 37 मिलियन से अधिक लोग संक्रमित हुए हैं।

‘इंटरनेशनल डे फॉर डिज़ास्टर रिस्क रिडक्शन’

(International Day for Disaster Risk Reduction):

  • प्रत्येक वर्ष 13 अक्तूबर को जोखिम-जागरूकता एवं आपदा में कमी की वैश्विक संस्कृति को बढ़ावा देने के लिये ‘इंटरनेशनल डे फॉर डिज़ास्टर रिस्क रिडक्शन’ मनाया जाता है।
  • वर्ष 2020 के लिये ‘इंटरनेशनल डे फॉर डिज़ास्टर रिस्क रिडक्शन’ की थीम ‘आपदा जोखिम शासन’ (Disaster Risk Governance) है।
  • इस दिवस को मनाने की शुरुआत वर्ष 1989 में संयुक्त राष्ट्र महासभा के एक आह्वान के बाद हुई थी।
  • जापान के सेंदाई में आपदा जोखिम न्यूनीकरण पर तीसरा संयुक्त राष्ट्र विश्व सम्मेलन वर्ष 2015 में आयोजित किया गया था।
  • 13 अक्तूबर, 2020 को ‘इंटरनेशनल डे फॉर डिज़ास्टर रिस्क रिडक्शन’ (International Day for Disaster Risk Reduction) के अवसर पर ‘आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिये संयुक्त राष्ट्र कार्यालय’ (UN Office for Disaster Risk Reduction- UNDRR) द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट इस बात की पुष्टि करती है कि 21वीं शताब्दी का आपदा परिदृश्य किस प्रकार  चरम मौसमी घटनाओं से प्रभावित है?
    • इस रिपोर्ट के आँकड़े इमरजेंसी इवेंट्स डेटाबेस (Emergency Events Database- EMDAT) द्वारा संकलित किये गए हैं जो ‘सेंटर फॉर रिसर्च ऑन द एपिडेमियोलॉजी ऑफ डिज़ास्टर्स’ (Centre for Research on the Epidemiology of Disasters- CRED) द्वारा दर्ज की गई आपदाओं पर आधारित है।
  • ‘सेंटर फॉर रिसर्च ऑन द एपिडेमियोलॉजी ऑफ डिज़ास्टर्स’ (CRED) निम्नलिखित घटकों के आधार पर किसी भी घटना को आपदा के रूप में दर्ज करता है:
    • दस या अधिक लोगों की मृत्यु हुई हो।
    • 100 या अधिक लोग प्रभावित हुए हों।
    • आपातकाल की घोषित स्थिति या अंतर्राष्ट्रीय सहायता के लिये आह्वान।     

स्रोत: द हिंदू


खपत और पूंजीगत व्यय में वृद्धि हेतु योजनाओं की घोषणा

प्रिलिम्स के लिये: 

अवकाश यात्रा रियायत, आत्मनिर्भर भारत योजना 

 मेन्स के लिये:

आर्थिक क्षेत्र पर COVID-19 का प्रभाव, COVID-19 से निपटने हेतु सरकार के प्रयास 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा COVID-19 महामारी के कारण अर्थव्यवस्था में आई गिरावट से निपटने और उपभोक्ता मांग तथा पूंजीगत व्यय को बढ़ाने के लिये कुछ महत्त्वपूर्ण योजनाओं की घोषणा की गई है।

प्रमुख बिंदु:

  • केंद्रीय वित्त मंत्री के अनुसार, हाल के कुछ महीनों में अर्थव्यवस्था में आपूर्ति से जुड़ी बाधाओं को कम करने में सफलता प्राप्त हुई है परंतु उपभोक्ता मांग में अभी भी भारी गिरावट बनी हुई है।
  • केंद्र सरकार द्वारा इन योजनाओं के माध्यम से मार्च 2021 के अंत तक 1 लाख करोड़ रुपए से अधिक के त्वरित व्यय का अनुमान लगाया गया है। 
  • केंद्र सरकार द्वारा घोषित योजनाओं को दो भागों में विभाजित किया गया है- उपभोक्ता व्यय और पूंजीगत व्यय।

अवकाश यात्रा रियायत नकद बाउचर योजना: 

  • अवकाश यात्रा रियायत (Leave Travel Concession- LTC):
    • गौरतलब है कि केंद्र सरकार के कर्मचारियों को चार वर्ष के ब्लॉक के लिये (Block of Four Years) LTC का लाभ मिलता है, जिसके तहत वे दो बार अपने गृह नगर या एक बार गृह नगर की और एक  बार भारत में किसी अन्य स्थान की यात्रा कर सकते हैं।

    • इस दौरान कर्मचारियों को उनके वेतनमान के अनुसार, हवाई या रेल किराए की प्रतिपूर्ति की जाती है और साथ ही उन्हें 10 दिनों के अवकाश का भुगतान (वेतन + डीए) भी किया जाता है।
    • अवकाश यात्रा रियायत नकद बाउचर योजना के तहत सरकार द्वारा केंद्र सरकार के कर्मचारियों को (वर्ष 2018-21 के ब्लॉक के लिये) बिना यात्रा किये LTC पर मिलने वाली कर छूट का लाभ प्रदान किया जाएगा।
    • हालाँकि इस योजना का लाभ लेने के लिये कर्मचारियों को LTC किराए का तीन गुना ऐसी वस्तुओं को खरीदने के लिये खर्च करना होगा जिन पर 12 प्रतिशत या उससे अधिक जीएसटी (GST) लागू होती है।
    • कर्मचारियों द्वारा इस खरीदारी के लिये डिजिटल माध्यम से किया गया भुगतान ही मान्य होगा, साथ ही इस योजना का लाभ लेने के लिये कर्मचारियों को जीएसटी पंजीकृत विक्रेता से ही सामान खरीदना होगा। 

विशेष त्योहार अग्रिम योजना

(Special Festival Advance Scheme): 

  • गौरतलब है कि छठे वेतन आयोग तक एक त्योहार अग्रिम योजना लागू थी, जिसके तहत प्रति गैर-राजपत्रित अधिकारी को अधिकतम 4,500 रुपए अग्रिम भुगतान के रूप में दिये जाने की व्यवस्था थी, जिसे सातवें वेतन आयोग द्वारा समाप्त कर दिया गया था।
  • केंद्र सरकार ने वर्तमान आर्थिक परिस्थितियों को देखते हुए इस योजना को पुन शुरू (मात्र एक बार के लिये) किया है।
  • हालाँकि यह योजना केवल गैर-राजपत्रित अधिकारियों तक सीमित नहीं होगी, इसके तहत सभी केंद्रीय कर्मचारियों (बिना रैंक के भेदभाव के) को 10,000 रुपए का अग्रिम भुगतान प्रदान किया जाएगा, जो 31 मार्च, 2021 तक वैध होगा।  
  • इसके तहत सभी लाभार्थियों को किसी भी त्योहार में खर्च करने के लिये एक ब्याज मुक्त अग्रिम के रूप में एक ‘रूपे कार्ड’ (RuPay card) प्रदान किया जाएगा। 
  • लाभार्थियों को इस कार्ड में प्राप्त राशि को अपनी इच्छानुसार कहीं भी खर्च करने की छूट (जीएसटी पंजीकृत विक्रेता की बाध्यता के बगैर) होगी, परंतु वे इससे किसी अन्य डेबिट कार्ड की तरह नकद राशि नहीं निकाल सकेंगे।
  • लाभार्थियों को इस अग्रिम भुगतान को 10 किश्तों में लौटाने की सुविधा भी प्रदान की जाएगी।
  • केंद्र सरकार द्वारा इस योजना के तहत 4000 करोड़ रुपए जारी किये जाने का अनुमान है।
  • यदि राज्य सरकारें भी इसी प्रकार का अग्रिम प्रदान किया जाता है, तो इसके तहत अतिरिक्त 8,000 करोड़ रुपए का वितरण सुनिश्चित किया जा सकता है।

अवसंरचना और संपत्ति निर्माण पर पूंजीगत व्यय: 

  • केंद्र सरकार द्वारा राज्यों को 50 वर्ष की अवधि के लिये 1200 करोड़ रुपए की ब्याज मुक्त ऋण की सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी।
  • यह योजना तीन भागों में क्रियान्वित की जाएगी।
  • पहला भाग:  
    • पहले चरण के तहत पूर्वोत्तर भारत के आठ राज्यों को 1,600 करोड़ रुपए (प्रत्येक के लिये 200 करोड़ रुपए) और उत्तराखंड तथा हिमाचल प्रदेश को 450-450 करोड़ रुपए प्रदान किये जाएंगे। 
  • दूसरा भाग: 
    • इस योजना के दूसरे भाग के तहत बचे हुए बाकी सभी राज्यों के लिये  7,500 करोड़ रुपए जारी किये जाएंगे। 
    • राज्यों के बीच इस राशि को 15 वें वित्त आयोग (15th Finance Commission) द्वारा निर्धारित नियमों के अनुरूप विभाजित किया जाएगा। 
      • इसके तहत राज्यों को पहले निर्धारित राशि का 50% हिस्सा ही प्रदान किया जाएगा और निर्धारित राशि अगला 50% पहली किश्त के उपयोग कर लेने के बाद जारी किया जाएगा।    
      • गौरतलब है कि यह योजना 31 मार्च, 2021 तक ही वैध होगी ऐसे में राज्यों की इसी समय-सीमा के अंदर अपने हिस्से की कुल राशि को खर्च करना होगा। 
  • तीसरा भाग: 
    • इस योजना के तीसरे भाग के तहत 2000 करोड़ रुपए ऐसे राज्यों के लिये निर्धारित किये गए हैं जो केंद्र सरकार द्वारा मई 2020 में घोषित आत्मनिर्भर भारत राहत पैकेज के तहत निर्धारित 4 में 3 सुधारों (जैसे-एक देश एक राशन कार्ड) को लागू करने में सफल रहे हैं।
    • केंद्रीय वित्त मंत्री के अनुसार, राज्यों द्वारा इस राशि का प्रयोग नई अथवा पहले से चल रही योजनाओं के साथ वर्तमान में किसी बकाया भुगतान के लिये किया जा सकेगा।

केंद्र सरकार द्वारा पूंजीगत व्यय को बढ़ावा:

  • केंद्र सरकार द्वारा देश में अवसंरचना विकास के लिये 25,000 करोड़ रुपए   (वितीय वर्ष 2020-21 के बजट के तहत घोषित 4,13,000 करोड़ रुपए के अतिरिक्त) खर्च किये जाने की घोषणा की गई है।
  • इस राशि का उपयोग सड़क, शहरी विकास, जल आपूर्ति, रक्षा बुनियादी ढाँचा आदि के लिये किया जाएगा।

लाभ:

  • केंद्र सरकार के अनुसार, इन योजनाओं के माध्यम से 31 मार्च, 2021 तक मांग में 73,000 करोड़ रुपए की वृद्धि का अनुमान है, जिसमें 36,000 करोड़ रुपए की अतिरिक्त उपभोक्ता मांग और 37,000 करोड़ रुपए का पूंजीगत व्यय शामिल है।
  • यदि निजी क्षेत्र के संस्थान भी LTC नकद बाउचर योजना में शामिल होते हैं तो इससे 28,000 करोड़ रुपए की अतिरिक्त वृद्धि का अनुमान है।    

सरकार की आय में वृद्धि:

  • COVID-19 महामारी के कारण चालू वित्तीय वर्ष की पहली छमाही में सरकार को GST के रूप में प्राप्त होने वाली आय में भारी गिरावट देखने को मिली है। 
  • LTC नकद बाउचर के माध्यम से केंद्र और राज्य सरकार के कर्मचारियों द्वारा खपत में वृद्धि से चालू वित्तीय वर्ष की दूसरी तिमाही में सरकार के जीएसटी संग्रह में वृद्धि होगी। 
  • यदि निजी क्षेत्र के कर्मचारी भी इस योजना में शामिल होते हैं, तो इससे खपत में वृद्धि होगी और फलस्वरूप जीएसटी संग्रह  भी बढ़ेगा। 

चुनौतियाँ:   

  • इन योजनाओं के माध्यम से सरकार का उद्देश्य उन क्षेत्रों में खपत को बढ़ावा देना हैं जहाँ COVID-19 के कारण लॉकडाउन के दौरान मांग में भारी गिरावट हुई है, परंतु कई तरह की सीमाओं (12% GST, 31 मार्च तक का समय आदि) के निर्धारण के कारण ग्राहकों की स्वतंत्रता को सीमित कर दिया गया है। 
  • सरकार द्वारा अवसंरचना परियोजनाओं पर पूंजीगत व्यय से निश्चित ही लाभ होगा परंतु चालू वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में अर्थव्यवस्था में हुई भारी गिरावट (लगभग 23%) और आने वाले दिनों में इस गिरावट के जारी रहने के अनुमान के बीच सरकार द्वारा घोषित राशि कोई बड़ा परिवर्तन  लाने के लिये बहुत ही कम है। 
    • गौरतलब है कि भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा वितीय वर्ष 2020-21 के लिये देश की जीडीपी में 9.5% की गिरावट का अनुमान जारी किया गया है परंतु  अतिरिक्त राजकोषीय खर्च के मामले में केंद्रीय वित्त मंत्री द्वारा घोषित राशि जीडीपी की मात्र 0.2%  है।
  • पर्यटन और आतिथ्य COVID-19 के दौरान सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों में से एक था, आगामी त्योहारों के दौरान इस क्षेत्र में कुछ सुधार देखे जाने की उम्मीद थी, परंतु सरकार द्वारा LTC नकद बाउचर  के तहत LTC के लाभ को अन्य क्षेत्रों में खर्च करने की सुविधा देने से पर्यटन और आतिथ्य को भारी क्षति होने का अनुमान है।

आगे की राह:

  • पिछले कुछ हफ्तों के दौरान COVID-19 के नए मामलों में गिरावट और लॉकडाउन में राहत से आर्थिक गतिविधियों को पुनः शुरू करने का प्रयास किया गया है। आगामी त्योहारों के दौरान सरकार के प्रयासों के माध्यम से खपत में वृद्धि के साथ-साथ सरकार की आय में बढ़ोतरी होने का अनुमान है।
  • सरकार की इन योजनाओं का अधिकांश लाभ सरकारी नौकरियों और संगठित क्षेत्र के कर्मचारियों तक ही सीमित रहेगा, ऐसे में असंगठित क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करने के लिये विशेष प्रयासों पर ध्यान देना होगा।     

स्रोत: द हिंदू


कोशिकीय विषाक्तता में अतिसूक्ष्म प्रदूषक कणों की भूमिका

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानक, पार्टिकुलेट मैटर

मेन्स के लिये:

वायु प्रदूषण के मानवीय कारक, वायु प्रदूषण से उत्पन्न चुनौतियाँ 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, दिल्ली द्वारा प्रकाशित एक अध्ययन में मानव फेफड़ों की कोशिकाओं में ‘कोशिकीय विषाक्तता’ (Cytotoxicity) की वृद्धि के लिये वायु में उपस्थित अतिसूक्ष्म कणों (Ultrafine Particles) को उत्तरदायी बताया गया है। 

प्रमुख बिंदु: 

  • इस अध्ययन के लिये जनवरी-दिसंबर 2017 के दौरान IIT, Delhi में स्थापित एक ‘कैसकेड इंपैक्टर मेज़र्मेंट डिवाइस’ (Cascade Impactor Measurement Device) के माध्यम से प्रत्येक माह 6 बार डेटा इकट्ठा किया गया।
  • इस अध्ययन के दौरान वायु में उपस्थित पाँच कणों (2.5, 1, 0.5, 0.25 माइक्रोमीटर और 0.25 माइक्रोमीटर से कम) को फिल्टर के माध्यम से एकत्र किया गया। 
  • अध्ययन के परिणाम के आधार पर विशेषज्ञों ने वायु में 0.25 माइक्रोमीटर से छोटे कणों की नियमित निगरानी की आवश्यकता पर ज़ोर दिया है।

अध्ययन का परिणाम: 

  • इस अध्ययन के अनुसार, दिल्ली की वायु में वर्ष भर पार्टिकुलेट मैटर 2.5 (Particulate Matter or PM2.5) में 0.25 माइक्रोमीटर से छोटे कणों की मात्रा अन्य प्रदूषक कणों की तुलना में अधिक पाई गई।
    • अध्ययन के दौरान पाया गया कि मानसून के बाद के समय में PM 2.5 के स्तर में 0.25 माइक्रोमीटर से छोटे कणों की मात्रा 40% से अधिक और मार्च से मई के बीच सर्दियों तथा मानसून से पहले की अवधि के दौरान इनकी मात्रा 30% से अधिक रही। 
    • जबकि जून से सितंबर के बीच मानसून के दौरान PM 2.5 के स्तर में 0.25 माइक्रोमीटर से छोटे कणों की मात्रा 50% से अधिक पाई गई।
  • मानसून के बाद अक्तूबर से दिसंबर के बीच और सर्दियों (जनवरी-फरवरी) के समय 2.5µm , 1.0µm, 0.5µm और <0.25µm तक के आकार के पार्टिकुलेट मैटर (PM) के कणों की संचयी औसत द्रव्यमान सांद्रता का मान सर्वाधिक पाया गया।

कारण:

  • अध्ययन के अनुसार, मानसून के बाद और सर्दियों में दिल्ली की वायु में पार्टिकुलेट मैटर के उच्च स्तर का एक बड़ा कारण दिवाली के दौरान होने वाली आतिशबाजी और हरियाणा तथा पंजाब जैसे पड़ोसी राज्यों में किसानों द्वारा पराली का जलाया जाना है।
  • साथ ही सर्दियों में रात के समय कम तापमान और उच्च आर्द्रता ‘कोहरा-धुंध-कोहरा’ (Fog-Smog-Fog) चक्र में वृद्धि करता है, जिससे पूर्व-मानसून और दक्षिण-पश्चिम मानसून काल की तुलना में इस अवधि के दौरान पार्टिकुलेट मैटर (PM) की सांद्रता में 2-3 गुना वृद्धि होती है। 

कोशिकीय विषाक्तता में वृद्धि: 

  • शोधकर्त्ताओं के अनुसार, 0.25 माइक्रोमीटर से छोटे अतिसूक्ष्मकणों के संपर्क में आने से (दूसरे आकार के कणों की तुलना में) कोशिकीय विषाक्तता के मामलों में दोगुनी वृद्धि देखी गई।
    • इस अध्ययन के दौरान सबसे अधिक विषाक्तता जनवरी-फरवरी 2017 के बीच देखी गई।

चुनौतियाँ:

  • शोधकर्त्ताओं के अनुसार, PM 2.5 के स्तर और 0.25 माइक्रोमीटर से छोटे कणों (PM<0.25) के स्तर में कोई संबंध नहीं है। अर्थात् PM 2.5 के स्तर में गिरावट को PM <0.25 के स्तर में कमी से जोड़कर नहीं देखा जा सकता।
  • राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानक (National Ambient Air Quality Standard) में PM2.5 के लिये एक सीमा निर्धारित की गई है (24 घंटे के लिये 60 µg/m3 और वार्षिक रूप से 40 µg/m3), जबकि इसके तहत अतिसूक्ष्म कणों के संदर्भ में कोई विशिष्ट नीति नहीं शामिल की गई है।

आगे की राह: 

  • इस अध्ययन के माध्यम से मानव स्वास्थ्य पर PM 0.25 के कारण पड़ने वाले दुष्प्रभावों को कम करने में सहायता प्राप्त होगी।
  • प्रदूषण नियंत्रण के प्रयासों को बढ़ावा दिये जाने के साथ-साथ PM 0.25 और ऐसे ही अन्य हानिकारक कणों की नियमित निगरानी पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिये।
  • साथ ही PM 2.5 की तरह ही वायु में PM 0.25 और इससे छोटे कणों की उपस्थिति की सीमा निर्धारित की जानी चाहिये, जिससे वायु में इनकी अधिकता होने पर समय रहते आवश्यक सुरक्षा उपायों को अपनाया जा सके। 

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस


कारक-D प्रोटीन: COVID- 19

प्रिलिम्स के लिये:

कारक D प्रोटीन, स्पाइक प्रोटीन, ACE2 प्रोटीन

मेन्स के लिये:

COVID-19 और शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली

चर्चा में क्यों ?

'जॉन्स हॉपकिन्स मेडिसिन' (Johns Hopkins Medicine) के शोधकर्त्ताओं द्वारा किये गए एक नए अध्ययन में पता चला है कि मानव प्रोटीन के कारक-D (Factor D) को अवरुद्ध किये जाने से यह कोरोनोवायरस (SARS-CoV-2) के कारण होने वाली प्रतिक्रियाओं को कम कर सकता है।

प्रमुख बिंदु:

विधि: नए अध्ययन में सामान्य मानव रक्त के सीरम और SARS-CoV-2 स्पाइक प्रोटीन के तीन सब यूनिट्स का इस्तेमाल किया गया, ताकि यह पता लगाया जा सके कि वायरस प्रतिरक्षा प्रणाली को कैसे नियंत्रित करता है और सामान्य कोशिकाओं को खतरे में डालता है।

फोकस: शोध दल द्वारा मुख्यत: 2 प्रोटीन कारकों H (Factor H) और D (Factor D), जिन्हें 'पूरक' प्रोटीन के रूप में जाना जाता है, पर ध्यान केंद्रित किया गया है। ये प्रोटीन शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

निष्कर्ष: शोधकर्त्ताओं ने पाया कि COVID-19 के स्पाइक प्रोटीन कारक-D की प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया की अतिउद्दीप्त (Overstimulate) का कारण बनते हैं, जो बदले में कारक-H को उस प्रतिक्रिया की मध्यस्थता (Mediating) करने से रोकता है।

स्पाइक प्रोटीन: SARS-CoV-2 की सतह पर स्पाइक प्रोटीन पाए जाते हैं जिनके माध्यम से यह संक्रमण के लिये लक्षित कोशिकाओं से जुड़ जाता है। ये स्पाइक्स 'हेपरान सल्फेट' नामक कोशिकीय कणों से जुड़े रहते हैं।

  • हेपरान सल्फेट, वृहद् एवं जटिल शर्करा युक्त अणु होते हैं जो फेफड़ों, रक्त वाहिकाओं और चिकनी मांसपेशियों में कोशिकाओं की सतह पर पाये जाते हैं और अधिकांश अंगों का निर्माण करते हैं।

हेपरान सल्फेट, SARS-CoV-2 के साथ अपने शुरुआती संबंध से परिचित होने के बाद  एक अन्य कोशिका-सतह घटक का उपयोग करता है, जिसे ‘एंजियोटेंसिन-परिवर्तित एंज़ाइम-2’ (Angiotensin-Converting Enzyme 2- ACE2) के रूप में जाना जाता है।

  • ACE2 कई प्रकार की कोशिकाओं की सतह पर स्थित एक प्रोटीन है।
  • जब SARS-CoV-2 मानव शरीर में अधिक कोशिकाओं को फैलाने और संक्रमित करने के लिये ACE2 रिसेप्टर्स पर हमला करता है, तो यह कारक-H को कोशिकाओं के साथ जुड़ने के लिये शर्करा अणु का उपयोग करने से रोकता है।
  • कारक-H का मुख्य कार्य उन रासायनिक संकेतों को विनियमित करना है जो प्रतिरक्षा प्रणाली को स्वस्थ कोशिकाओं को नुकसान पहुँचाने से रोकते हैं।
  • शोध दल ने पाया कि कारक-D को अवरुद्ध करके वे SARS-CoV-2 द्वारा शुरू की गई घटनाओं की विनाशकारी शृंखला को रोकने में सक्षम थे।

महत्त्व:

  • इस शोध कार्य ने COVID- 19 से निपटने हेतु अनुसंधान के लिये एक निश्चित दिशा प्रदान की है।
  • इस अध्ययन के आधार पर अन्य बीमारियों के लिये दवाओं के विकास में भी मदद मिल सकती है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस