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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत और चीन में वायु प्रदूषण से सर्वाधिक मौतें

  • 18 Apr 2018
  • 4 min read

चर्चा में क्यों ?
अमेरिका स्थित ‘हेल्थ इफेक्ट इंस्टीट्यूट’ द्वारा जारी की गई रिपोर्ट में यह बताया गया है कि वायु प्रदूषण के कारण सर्वाधिक मौतें एशिया में होती हैं। वहीं, चीन और भारत पीएम 2.5 (particulate matter 2.5) के कारण होने वाली कुल मौतों के आधे से अधिक हिस्से के लिये ज़िम्मेदार हैं।

प्रमुख बिंदु 

  • रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2016 में दुनिया की 95 प्रतिशत आबादी ऐसे क्षेत्रों में रह रही थी जहाँ पीएम 2.5 का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization) के दिशा-निर्देशों में उल्लिखित सीमा से अधिक था।
  • पीएम 2.5 के कारण वैश्विक स्तर पर होने वाली मौतों में से 51 प्रतिशत भारत और चीन में होती हैं।
  • रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत में 560 मिलियन लोग घरेलू वायु प्रदूषण (household air pollution) के शिकार थे, जबकि चीन में इनकी संख्या 416 मिलियन थी। 
  • भारत में वर्ष 2016 में घरेलू बायोमास दहन के कारण पीएम 2.5 के स्तर में 24 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी।
  • हेल्थ इफेक्ट इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट ‘स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर 2018’ में कहा गया है कि पीएम 2.5 के कारण दिल की बीमारियों और स्ट्रोक, फेफड़े के कैंसर, पुरानी फेफड़ों की बीमारी और श्वसन संक्रमण से वर्ष 2016 में 4.1 मिलियन मौतें हुईं।
  • भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे दक्षिण एशियाई देशों में वायु प्रदूषण में 2010 के बाद तीव्र वृद्धि दर्ज़ की गई है और वर्तमान में ये देश सर्वाधिक पीएम 2.5 सांद्रता वाले देशों में शामिल हैं।
  • भारत के संदर्भ में रिपोर्ट में बताया गया है कि आवासीय बायोमास दहन ने वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों में बड़ा योगदान दिया है। 
  • आवासीय बायोमास दहन के कारण भारत में वर्ष 2015 में 267,700 मौतें हुईं जो पीएम 2.5 से होने वाली मौतों का 25 प्रतिशत था। इस आवासीय दहन में घर के अंदर(indoor) दहन किया जाने वाला बायोमास शामिल नहीं है।
  • कोयला दहन, कृषि संबंधी अवशेषों का खुले में दहन आदि ने भी वायु प्रदूषण के कारण होने वाली मौतों में वृद्धि की है।

क्या होते हैं पर्टिकुलेट मैटर?

  • पीएम-1.0:- इसका आकार एक माइक्रोमीटर से कम होता है। ये छोटे पार्टिकल बहुत खतरनाक होते हैं। इनके कण साँस के द्वारा शरीर के अंदर पहुँचकर रक्तकणिकाओं में मिल जाते हैं। इसे पर्टिकुलेट सैंपलर से मापा जाता है।
  • पीएम-2.5:- इसका आकार 2.5 माइक्रोमीटर से कम होता है। ये आसानी से साँस के साथ शरीर के अंदर जाकर गले में खराश, फेफड़ों को नुकसान, जकड़न पैदा करते हैं। इन्हें एम्बियंट फाइन डस्ट सैंपलर पीएम-2.5 से मापते हैं।
  • पीएम-10:- रिसपाइरेबल पर्टिकुलेट मैटर का आकार 10 माइक्रोमीटर से कम होता है। ये भी शरीर के अंदर पहुँचकर बहुत सारी बीमारियाँ फैलाते हैं। इसका मापन रिसपाइरेबिल डस्ट सैंपलर पीएम-10 उपकरण से किया जाता है।
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