विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
हरित हाइड्रोजन पर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग
प्रारंभिक परीक्षा:हरित हाइड्रोजन पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन (ICGH-2024), G-20 राष्ट्र, पेरिस समझौता, हरित हाइड्रोजन, अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA), ग्रे हाइड्रोजन, इलेक्ट्रोलिसिस, ईंधन कोशिकाएँ, दुर्लभ मृदा तत्त्व, हाइड्रोजन परिषद, होराइजन यूरोप, वैश्विक हाइड्रोजन गठबंधन। मुख्य परीक्षा:हरित हाइड्रोजन के उत्पादन को बढ़ाने के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग। |
स्रोत: लाइव मिंट
चर्चा में क्यों?
हाल ही में प्रधानमंत्री ने भारत मंडपम, नई दिल्ली में आयोजित दूसरे हरित हाइड्रोजन पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन (ICGH-2024) को वर्चुअली संबोधित किया।
- प्रधानमंत्री ने हरित हाइड्रोजन उत्पादन बढ़ाने, लागत कम करने तथा अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देने के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता पर ज़ोर दिया।
ICGH-2024 की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
- भारत की उपलब्धियाँ: भारत हरित ऊर्जा पर पेरिस समझौते की प्रतिबद्धताओं को पूरा करने वाले पहले G20 देशों में से एक है। भारत की प्रतिबद्धताएँ वर्ष 2030 के लक्ष्य से 9 वर्ष पहले ही पूरी हो गईं।
- भारत ने वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता को 500 गीगावाट तक बढ़ाने तथा कुल अनुमानित कार्बन उत्सर्जन को 1 बिलियन टन तक कम करने का संकल्प लिया।
- पिछले दशक में भारत में स्थापित गैर-जीवाश्म ईंधन क्षमता में लगभग 300% की वृद्धि हुई है।
- हरित हाइड्रोजन का उभरता महत्त्व: हरित हाइड्रोजन को वैश्विक ऊर्जा परिदृश्य में एक प्रमुख घटक के रूप में पहचाना जाता है, जिसमें रिफाइनरियों, उर्वरकों, इस्पात और भारी-भरकम परिवहन जैसे विद्युतीकरण में कठिन क्षेत्रों को कार्बन मुक्त करने की क्षमता है।
- यह अधिशेष नवीकरणीय ऊर्जा के भंडारण समाधान के रूप में भी कार्य कर सकता है।
- अनुसंधान में निवेश: सम्मेलन में अत्याधुनिक अनुसंधान और विकास में निवेश, उद्योग तथा शिक्षा जगत के बीच साझेदारी एवं ग्रीन हाइड्रोजन के स्टार्ट-अप एवं उद्यमियों को प्रोत्साहन देने का आह्वान किया गया।
- प्रधानमंत्री ने क्षेत्र के विशेषज्ञों और वैज्ञानिक समुदाय से हरित हाइड्रोजन को अपनाने में अग्रणी भूमिका निभाने का आग्रह किया।
- G-20 शिखर सम्मेलन की अंतर्दृष्टि: प्रधानमंत्री ने नई दिल्ली G-20 भागीदारों के घोषणा-पत्र को रेखांकित किया, जिसमें हाइड्रोजन पर पाँच उच्चस्तरीय स्वैच्छिक सिद्धांतों को अपनाया गया है, जो एकीकृत रोडमैप के निर्माण में सहायता कर रहे हैं।
- महत्त्वपूर्ण प्रश्न: प्रधानमंत्री ने इलेक्ट्रोलाइजर की दक्षता में सुधार करने, उत्पादन के लिये समुद्री जल और नगरपालिका अपशिष्ट जल का उपयोग करने तथा सार्वजनिक परिवहन, शिपिंग व जलमार्गों में हरित हाइड्रोजन की भूमिका का पता लगाने की पद्धतियों के विषय में पूछा।
नोट:
- भारत ने नवंबर 2024 में आयोजित होने वाले यूरोपीय हाइड्रोजन सप्ताह के साथ एक विशेष साझेदारी की घोषणा की है।
- यह यूरोपीय संघ के हरित नियमों को संबोधित करने की भारत की इच्छा को उजागर करता है।
- इसके अतिरिक्तभारतीय रेलवे जनवरी 2025 में पहली हाइड्रोजन ईंधन वाली ट्रेन के क्षेत्रीय परीक्षण की योजना बना रहा है।
- परीक्षण के लिये 1200 किलोवाट डीज़ल इलेक्ट्रिक मल्टीपल यूनिट (DEMU) को हाइड्रोजन ईंधन सेल आधारित वितरित पावर रोलिंग स्टॉक (DPRS) में परिवर्तित किया जाएगा।
हरित हाइड्रोजन को बढ़ावा देने में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता क्यों है?
- उच्च उत्पादन लागत: अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) के अनुसार, हरित हाइड्रोजन के उत्पादन की लागत 3 से 8 अमेरिकी डॉलर प्रति किलोग्राम तक हो सकती है, जो जीवाश्म ईंधन से उत्पादित ग्रे हाइड्रोजन की तुलना में काफी अधिक है।
- प्रौद्योगिकी और अवसंरचना निवेश: वर्ष 2014 और 2019 के बीच क्षारीय इलेक्ट्रोलाइज़र की लागत में 40% की कमी आई है, लेकिन हरित हाइड्रोजन को प्रतिस्पर्धी बनाने के लिये लागत में और कटौती की आवश्यकता है।
- इलेक्ट्रोलिसिस लागत: ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन इलेक्ट्रोलिसिस के माध्यम से किया जाता है, जिसके लिये पर्याप्त मात्रा में विद्युत की आवश्यकता होती है। वर्ष 2023 तक पारंपरिक हाइड्रोजन की तुलना में ग्रीन हाइड्रोजन की उत्पादन लागत अधिक बनी हुई थी।
- इलेक्ट्रोलाइज़र की दक्षता: भारत के नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के अनुसार, वर्तमान इलेक्ट्रोलाइज़र अभी इतने कुशल नहीं हैं कि उन्हें व्यापक रूप से अपनाया जा सके। दक्षता में सुधार और लागत कम करने के लिये अनुसंधान एवं विकास की आवश्यकता है।
- संसाधन उपलब्धता: यूरोपीय आयोग के अनुसार, इलेक्ट्रोलाइज़र तथा ईंधन कोशिकाओं के लिये दुर्लभ मृदा तत्त्वों की उपलब्धता एक और चुनौती प्रस्तुत करती है।
- प्लैटिनम और इरीडियम जैसी धातुओं की आवश्यकता हरित हाइड्रोजन प्रौद्योगिकियों की मापनीयता को बाधित कर सकती है।
- उत्पादन बढ़ाना: वैश्विक मांग को पूरा करने के लिये उत्पादन बढ़ाना एक महत्त्वपूर्ण चुनौती है।
- यूरोपीय संघ का हाइड्रोजन रोडमैप इंगित करता है कि हरित हाइड्रोजन उत्पादन के लिये आवश्यक पैमाने को प्राप्त करने हेतु उद्योगों और सरकारों में समन्वित प्रयासों की आवश्यकता है।
हरित हाइड्रोजन के प्रोत्साहन में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग किस प्रकार मदद कर सकता है?
- उत्पादन में वृद्धि: हाइड्रोजन काउंसिल की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2030 तक एशिया को हाइड्रोजन परियोजनाओं में 90 बिलियन अमेरिकी डॉलर के निवेश की आवश्यकता है।
- IEA के अनुसार, संयुक्त उद्यम और सीमा पार सहयोग विविध तकनीकी क्षमताओं एवं विनिर्माण संसाधनों का लाभ उठाकर हरित हाइड्रोजन उत्पादन प्रौद्योगिकियों के विस्तार में काफी तेज़ी ला सकते हैं।
- पैमाने की अर्थव्यवस्थाएँ: यूरोपीय आयोग ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि संयुक्त अंतर्राष्ट्रीय पहलों से साझा निवेश और सामग्रियों की थोक खरीद के माध्यम से लागत में कमी लाई जा सकती है।
- उदाहरण के लिये, 30 अग्रणी यूरोपीय ऊर्जा कंपनियों के एक समूह ने आधिकारिक तौर पर ‘हाइडील एम्बिशन’ लॉन्च किया, जिसका उद्देश्य समग्र यूरोप में 1.5 यूरो/किलोग्राम की कम लागत पर 100% हरित हाइड्रोजन की आपूर्ति सुनिश्चित करना है।
- साझा अवसंरचना: हरित हाइड्रोजन उत्पादन, भंडारण और वितरण के लिये साझा अवसंरचना निवेश से लागत में कमी आ सकती है, जो प्रौद्योगिकी को अधिक आर्थिक रूप से व्यवहार्य बना सकता है।
- एशिया-प्रशांत हाइड्रोजन एसोसिएशन के क्षेत्रीय नेटवर्क जैसी सहयोगात्मक अवसंरचना परियोजनाएँ दर्शाती हैं कि साझा सुविधाएँ किस प्रकार लागत कम कर सकती हैं।
- साझेदारी के माध्यम से नवाचार: वैश्विक साझेदारियाँ विविध अनुसंधान परिप्रेक्ष्यों और वित्तपोषण स्रोतों को एक साथ लाकर नवाचार को बढ़ावा देती हैं।
- उदाहरण के लिये, वैश्विक हाइड्रोजन गठबंधन एक ऐसे मंच का प्रमुख उदाहरण है, जो हाइड्रोजन प्रौद्योगिकियों में नवाचार को बढ़ावा देने के लिये सरकारों, उद्योग जगत के अभिकर्त्ताओं और अनुसंधान संस्थानों को एक साथ लाता है।
- एकीकृत नीतियाँ और विनियमन: अंतर्राष्ट्रीय सहयोग से हरित हाइड्रोजन विकास का समर्थन करने वाली सुसंगत नीतियों और विनियमों को विकसित करने में मदद मिलती है।
- भारत की अध्यक्षता में G20 शिखर सम्मेलन- 2023 में हरित हाइड्रोजन के लिये स्वैच्छिक सिद्धांतों को अपनाया गया, जिससे एक साझा रोडमैप बनाने में मदद मिलेगी।
- निवेश और वित्तपोषण: संयुक्त वित्तपोषण पहल और अंतर्राष्ट्रीय स्रोतों से निवेश अनुसंधान एवं क्रियान्वयन में तेज़ी ला सकता है।
- उदाहरण के लिये हाइड्रोजन पर कई शोध और नवाचार परियोजनाएँ, यूरोपीय संघ के शोध एवं नवाचार फ्रेमवर्क कार्यक्रम, होराइज़न यूरोप के अंतर्गत चल रही हैं।
- इन परियोजनाओं का प्रबंधन स्वच्छ हाइड्रोजन साझेदारी (वर्ष 2021-2027) के माध्यम से किया जाता है, जो यूरोपीय आयोग द्वारा समर्थित एक संयुक्त सार्वजनिक-निजी भागीदारी है।
- उदाहरण के लिये हाइड्रोजन पर कई शोध और नवाचार परियोजनाएँ, यूरोपीय संघ के शोध एवं नवाचार फ्रेमवर्क कार्यक्रम, होराइज़न यूरोप के अंतर्गत चल रही हैं।
निष्कर्ष
हरित हाइड्रोजन को प्रोत्साहन के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग आवश्यक है। राष्ट्र प्रौद्योगिकी साझा करके, नीतियों में सामंजस्य स्थापित करके और निवेशों को एकत्रित करके, उत्पादन एवं बुनियादी ढाँचे की चुनौतियों पर नियंत्रण पा सकते हैं। सहयोगात्मक प्रयास कुशल वैश्विक आपूर्ति शृंखला सुनिश्चित करते हैं, लागत कम करते हैं और सार्वजनिक स्वीकृति को बढ़ावा देते हैं। एकीकृत वैश्विक कार्रवाई एक सतत् ऊर्जा भविष्य की ओर संक्रमण को गति देती है तथा हरित हाइड्रोजन की क्षमता को अधिकतम करती है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. अंतर्राष्ट्रीय सहयोग एक स्थायी ऊर्जा स्रोत के रूप में हरित हाइड्रोजन के प्रचार और विकास में किस प्रकार योगदान दे सकता है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न. निम्नलिखित भारी उद्योगों पर विचार कीजिये: (2023)
उपर्युक्त में से कितने उद्योगों के विकार्बनन में हरित हाइड्रोजन की महत्त्वपूर्ण भूमिका होने की अपेक्षा है? (a) केवल एक उत्तर: (c) प्रश्न. हरित हाइड्रोजन के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2023)
उपर्युक्त में से कितने कथन सही हैं? (a) केवल एक उत्तर: (c) प्रश्न. हाइड्रोजन ईंधन सेल वाहन "निकास" के रूप में निम्नलिखित में से एक का उत्पादन करते हैं (2010) (a) NH3 उत्तर: (c) |
भारतीय विरासत और संस्कृति
साँची स्तूप: अशोक काल से वर्तमान तक का सफर
प्रिलिम्स के लिये:साँची स्तूप का पूर्वी द्वार, साँची स्तूप, तोरण, बुद्ध, सातवाहन राजवंश, जातक कथाएँ, शालभंजिका, मानुषी बुद्ध, ज्ञानोदय, शुंग काल, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) मेन्स के लिये:भारत के विरासत स्थलों का महत्त्व और संरक्षण, बौद्ध धर्म |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के विदेश मंत्री ने जर्मनी के बर्लिन में हम्बोल्ट फोरम संग्रहालय के सामने स्थित साँची स्तूप के पूर्वी द्वार की प्रतिकृति का दौरा किया।
- यह मूल संरचना की 1:1 प्रतिकृति है, जो लगभग 10 मीटर ऊँचा और 6 मीटर चौड़ा है तथा इसका वज़न लगभग 150 टन है।
साँची स्तूप के पूर्वी द्वार से यूरोप की यात्रा
- साँची स्तूप के पूर्वी द्वार का प्लास्टर लेफ्टिनेंट हेनरी हार्डी कोल द्वारा 1860 के दशक के अंत में विक्टोरिया और अल्बर्ट संग्रहालय के लिये किया गया था।
- बाद में इस ढाँचे की कई प्रतियाँ बनाई गईं और पूरे यूरोप में प्रदर्शित की गईं।
- मूल द्वार की एक प्लास्टर कास्ट प्रतिकृति वर्ष 1886 से कोनिग्लिचेस संग्रहालय फर वोल्करकुंडे बर्लिन के प्रवेश कक्ष में प्रदर्शित किया गया था।
- इस संरक्षित प्रति की एक कास्ट वर्ष 1970 में कृत्रिम पत्थर से बनाया गई थी।
- मूल द्वार की एक प्लास्टर कास्ट प्रतिकृति वर्ष 1886 से कोनिग्लिचेस संग्रहालय फर वोल्करकुंडे बर्लिन के प्रवेश कक्ष में प्रदर्शित किया गया था।
- नवीनतम बर्लिन प्रतिकृति का भी उद्गम इसी मूल ढाँचे से माना जाता है।
- इसे 3डी स्कैनिंग, आधुनिक रोबोट, कुशल जर्मन और भारतीय मूर्तिकारों तथा सहायता के लिये मूल तोरण के विस्तृत चित्रों की सहायता से बनाया गया था।
साँची स्तूप के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं?
- साँची स्तूप का निर्माण: इसका निर्माण अशोक ने तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में करवाया था।
- इसके निर्माण की देखरेख अशोक की पत्नी देवी ने की थी, जो पास के व्यापारिक शहर विदिशा से थीं।
- साँची परिसर के विकास को विदिशा के व्यापारिक समुदाय से संरक्षण प्राप्त हुआ।
- विस्तार: दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व (शुंग काल) के दौरान, स्तूप को बलुआ पत्थर की पट्टियों, एक परिक्रमा पथ और एक छत्र (छाता) के साथ एक हर्मिका के साथ विस्तारित किया गया था।
- पहली शताब्दी ईसा पूर्व से दूसरी शताब्दी ईस्वी तक चार पत्थर के प्रवेश द्वार या तोरण बनाए गए, जो बौद्ध प्रतिमा विज्ञान और कहानियों को दर्शाती विस्तृत नक्काशी से सुसज्जित थे।
- साँची स्तूप की पुनः खोज: वर्ष 1818 में जब ब्रिटिश अधिकारी हेनरी टेलर ने इसकी खोज की थी तब यह पूरी तरह खंडहर अवस्था में था।
- अलेक्जेंडर कनिंघम ने वर्ष 1851 में साँची में प्रथम औपचारिक सर्वेक्षण और उत्खनन का नेतृत्व किया।
- संरक्षण के प्रयास: वर्ष 1853 में भोपाल की सिकंदर बेगम ने महारानी विक्टोरिया को साँची के प्रवेशद्वार भेजने की पेशकश की, लेकिन वर्ष 1857 के विद्रोह और परिवहन संबंधी समस्याओं के कारण प्रवेशद्वार हटाने की योजना में देरी हुई।
- वर्ष 1868 में बेगम ने फिर से प्रस्ताव दिया, लेकिन औपनिवेशिक अधिकारियों ने इसे अस्वीकार कर दिया और यथास्थान संरक्षण का विकल्प चुना। इसके बजाय पूर्वी प्रवेशद्वार का प्लास्टर कास्ट बनाया गया।
- इस स्थल को इसकी वर्तमान स्थिति में 1910 के दशक में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के महानिदेशक जॉन मार्शल द्वारा निकटवर्ती भोपाल की बेगमों से प्राप्त धनराशि से पुनः स्थापित किया गया था।
- मार्शल के प्रयासों से वर्ष 1919 में उस स्थान पर कलाकृतियों को संरक्षित करने और संरक्षण का प्रबंधन करने के लिये एक संग्रहालय का निर्माण किया गया।
- साँची स्तूप की वास्तुकला:
- अण्ड: यह धरती पर बना एक अर्द्धगोलाकार टीला है।
- हर्मिका: टीले के ऊपर चतुर्भुज रेलिंग है। ऐसा माना जाता है कि यह भगवान का निवास स्थान है।
- छत्र: यह गुम्बद के शीर्ष पर बनी छतरी है।
- यष्टि: यह केंद्रीय स्तंभ है, जो छत्र नामक तिहरे छत्रनुमा संरचना को सहारा देता है।
- रेलिंग: यह स्तूप के चारों ओर लगी होती है, पवित्र क्षेत्र को सीमांकित करती है तथा पवित्र स्थान और बाहरी वातावरण के बीच एक भौतिक सीमा प्रदान करती है।
- प्रदक्षिणापथ (परिक्रमा पथ): यह स्तूप के चारों ओर एक पैदल मार्ग है, जो भक्तों को पूजा के रूप में दक्षिणावर्त दिशा में चलने की अनुमति देता है।
- तोरण: तोरण बौद्ध स्तूप वास्तुकला में एक स्मारकीय प्रवेश द्वार या प्रवेश संरचना है।
- मेधी: यह उस आधार को संदर्भित करता है, जो एक मंच बनाता है जिस पर स्तूप की मुख्य संरचना खड़ी होती है।
- यूनेस्को मान्यता: साँची स्तूप को वर्ष 1989 में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में अंकित किया गया था।
साँची स्तूप के प्रवेशद्वार की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
- निर्माण: चार दिशाओं की ओर उन्मुख चार प्रवेशद्वार (तोरण) का निर्माण पहली शताब्दी ईसा पूर्व में किया गया था।
- सातवाहन राजवंश के शासन के दौरान कुछ दशकों की अवधि में प्रवेशद्वारों का निर्माण किया गया था।
- संरचना : ये प्रवेशद्वार दो वर्गाकार स्तंभों से बने हैं, जो सर्पिलाकार किनारे वाले तीन घुमावदार वास्तुशिल्प (या बीम) से युक्त एक अधिरचना को सहारा देते हैं।
- उत्कीर्णन: स्तंभों और वास्तुशिल्प को सुंदर उभरी हुई आकृतियों तथा मूर्तियों से सुसज्जित किया गया है, जिनमें बुद्ध के जीवन के दृश्य, जातक कथाओं एवं अन्य बौद्ध प्रतिमाओं को दर्शाया गया है।
- इसमें शालभंजिका (एक प्रजनन प्रतीक जिसे वृक्ष की शाखा को पकड़ती हुई यक्षी द्वारा दर्शाया गया है), हाथी, पंख वाले शेर और मोर शामिल हैं।
- हालाँकि ये द्वार बुद्ध के मानव रूप का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं।
- दार्शनिक महत्त्व: तीन घुमावदार आर्किट्रेव (या बीम) का निम्नलिखित दार्शनिक महत्त्व है।
- ऊपरी प्रस्तरपाद: यह सात मानुषी बुद्धों (बुद्ध के पिछले अवतार) का प्रतिनिधित्व करता है।
- मध्य वास्तुशिल्प: इसमें महाप्रयाण के दृश्य को दर्शाया गया है, जब राजकुमार सिद्धार्थ ज्ञान की खोज में एक तपस्वी के रूप में रहने के लिये कपिलवस्तु छोड़ देते हैं।
- निचला प्रस्तरपाद: इसमें सम्राट अशोक को बोधि वृक्ष के पास जाते हुए दिखाया गया है जिसके नीचे बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था।
निष्कर्ष
साँची स्तूप प्राचीन बौद्ध वास्तुकला और भक्ति का एक स्मारकीय प्रमाण है। यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में, स्तूप अतीत को समकालीन वैश्विक प्रशंसा के साथ जोड़ते हुए, श्रद्धा एवं विद्वानों की रुचि को प्रेरित करता है। वर्तमान उदाहरण, जैसे जर्मनी द्वारा साँची स्तूप के पूर्वी द्वार की प्रतिकृति का निर्माण, ऐसे स्मारकों को संरक्षित करने के सार्वभौमिक मूल्य को रेखांकित करता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: साँची स्तूप के स्थापत्य विकास और ऐतिहासिक महत्त्व पर चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्सप्रश्न. निम्नलिखित ऐतिहासिक स्थानों पर विचार कीजिये: (2013)
उपर्युक्त स्थानों में से कौन-सा/से भित्ति चित्रों के लिये भी जाना जाता है/जाने जाते हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b) प्रश्न: कुछ बौद्ध रॉक-कट गुफाओं को चैत्य कहा जाता है, जबकि अन्य को विहार कहा जाता है। दोनों के बीच क्या अंतर है? (2013) (a) विहार पूजा स्थल होता है, जबकि चैत्य बौद्ध भिक्षुओं का निवास स्थान है। उत्तर: (b) मेन्सप्रश्न. भारतीय दर्शन और परंपरा ने भारतीय स्मारकों की कल्पना तथा आकार देने एवं उनकी कला में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। चर्चा कीजिये। (2020) प्रश्न. प्रारंभिक बौद्ध स्तूप कला, लोक वर्ण्य विषयों और कथानकों को चित्रित करते हुए बौद्ध आदर्शों की सफलतापूर्वक व्याख्या करती है। विशदीकरण कीजिये। (2016) |
भूगोल
ला नीना का पूर्वानुमान
प्रिलिम्स के लिये:ला नीना, अल नीनो दक्षिणी दोलन (ENSO), पूर्वी प्रशांत, व्यापारिक पवनें, जलवायु परिवर्तन, राष्ट्रीय महासागरीय और वायुमंडलीय प्रशासन (NOAA), मौसम विज्ञान ब्यूरो (BoM), भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD), मैडेन जूलियन दोलन (MJO), अरब सागर, चक्रवात। मेन्स के लिये:अल नीनो और ला नीना के बीच अंतर, भारतीय मौसम की स्थिति पर इसका प्रभाव। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय मौसम विज्ञान संगठनों द्वारा वर्ष 2024 में ला नीना पर किये गए पूर्वानुमान स्पष्ट रूप से अपेक्षाओं से कम रहे हैं।
- भारत ने अगस्त-सितंबर 2024 के दौरान अधिक वर्षा होने के लिये इस महत्त्वपूर्ण जलवायु घटना पर विश्वास प्रदर्शित किया था।
ला नीना क्या है?
- ला नीना जिसका स्पेनिश में अर्थ "छोटी लड़की"होता है, अल नीनो दक्षिणी दोलन (ENSO) का एक चरण है, एक ऐसी घटना जो वैश्विक प्राकृतिक जलवायु परिवर्तनशीलता को महत्त्वपूर्ण रूप से संचालित करती है।
- ENSO की विशेषता उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह के तापमान में उतार-चढ़ाव है, जो ऊपर वायुमंडलीय विविधताओं के परिणामस्वरूप होता है।
- ये परिवर्तन वैश्विक वायुमंडलीय परिसंचरण को बाधित करते हैं और विश्व भर में मौसम के पैटर्न पर व्यापक प्रभाव डालते हैं।
- ENSO दो से सात वर्षों तक के अनियमित चक्रों में घटित होता है और इसमें तीन चरण: गर्म (अल नीनो, या स्पेनिश में "द लिटिल बॉय"), ठंडा (ला नीना) और तटस्थ होते हैं।
- तटस्थ चरण के दौरान, पूर्वी प्रशांत (दक्षिण अमेरिका के उत्तर-पश्चिमी तट के पास) पश्चिमी प्रशांत (फिलीपींस और इंडोनेशिया के आसपास) की तुलना में ठंडा होता है।
- यह तापमान अंतर पृथ्वी के घूर्णन से प्रेरित प्रचलित व्यापारिक पवनों के कारण उत्पन्न होता है, जो भूमध्य रेखा के 30 डिग्री उत्तर और दक्षिण के बीच पूर्व से पश्चिम की ओर चलती हैं, तथा गर्म सतही जल को पश्चिम की ओर धकेलती हैं।
- परिणामस्वरूप, विस्थापित गर्म जल की जगह लेने के लिये नीचे से ठंडा जल सतह पर आ जाता है।
- अल नीनो चरण के दौरान व्यापारिक पवनें कमज़ोर हो जाती हैं, जिसके परिणामस्वरूप अमेरिकी तटों पर गर्म जल का विस्थापन कम हो जाता है, जिससे पूर्वी प्रशांत महासागर सामान्य से अधिक गर्म हो जाता है।
- ला नीना चरण में व्यापारिक पवनें मज़बूत हो जाती हैं, जिससे जल की बड़ी मात्रा पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र की ओर बढ़ जाती है, जिससे पूर्वी प्रशांत क्षेत्र में तापमान ठंडा हो जाता है।
- भारत में अल नीनो आमतौर पर मानसून के मौसम में कम वर्षा से संबंधित होता है, जबकि ला नीना मानसून की गतिविधि को बढ़ाता है।
- सबसे हालिया अल नीनो घटना जून 2023 और मई 2024 के बीच घटित हुई, जो सबसे लंबे समय तक दर्ज किये गए ला नीना प्रकरणों में से एक के बाद आई, जो वर्ष 2020 से वर्ष 2023 तक चली।
- भारत में अल नीनो आमतौर पर मानसून के मौसम में कम वर्षा से संबंधित होता है, जबकि ला नीना मानसून की गतिविधि को बढ़ाता है।
- अल नीनो और ला नीना से संबंधित खतरों, जिनमें अत्यधिक तापमान, अधिक वर्षा और सूखा शामिल होते हैं, का प्रभाव मानवजनित जलवायु परिवर्तन के कारण तीव्र हो गया है।
वैश्विक मौसम मॉडल ने वर्ष 2024 में क्या भविष्यवाणी की?
- रिकॉर्ड पर सबसे मज़बूत अल नीनो घटनाओं में से एक जून 2024 में समाप्त हो गई, जिसके बाद ENSO एक तटस्थ चरण में प्रवेश कर गया।
- कई वैश्विक मौसम मॉडलों के शुरुआती पूर्वानुमानों में जुलाई के आसपास ला नीना की स्थिति की शुरुआत की भविष्यवाणी की गई थी। हालाँकि जुलाई के मध्य तक यह स्पष्ट हो गया कि ला नीना में देरी होगी।
- अमेरिका स्थित NOAA ने संकेत दिया कि तटस्थ से सकारात्मक समुद्री सतह के तापमान में परिवर्तन, जो ENSO तटस्थ से ला नीना में बदलाव का संकेत है, संभवतः अगस्त और अक्तूबर के बीच होगा।
- इसी प्रकार ऑस्ट्रेलिया में मौसम विज्ञान ब्यूरो (BoM) ने जुलाई 2024 में ला नीना पर "निगरानी" जारी रखी है तथा वर्ष के उत्तरार्ध में सामान्य से अधिक ठंडी समुद्री सतह की स्थिति विकसित होने की भविष्यवाणी की है।
- मध्य अप्रैल में जारी अपने प्रारंभिक दीर्घावधि पूर्वानुमान के बाद से ही भारतीय मौसम विभाग (IMD) लगातार ला नीना के उभरने का अनुमान लगा रहा था।
- महत्त्वपूर्ण रूप से ला नीना के कारण अगस्त और सितंबर 2024 में वर्षा बढ़ने की उम्मीद थी, मौसमी भविष्यवाणी ला नीना के विकास पर निर्भर थी, जिसके परिणामस्वरूप अंतिम दो मानसून महीनों के दौरान 'सामान्य से अधिक' वर्षा होने का अनुमान था।
प्रारंभिक पूर्वानुमान गलत क्यों रहा?
- मौसम वैज्ञानिकों द्वारा ला नीना के आगमन की भविष्यवाणी में हुई त्रुटि का कारण इसकी अपेक्षित हल्की तीव्रता बताया गया है।
- मौसम मॉडल प्रबल ला नीना (या अल नीनो) चरण के दौरान संकेतों को अधिक सटीकता से पहचान लेते हैं, किंतु कमज़ोर चरण के दौरान कम सटीक होते हैं ।
- इसके अतिरिक्त विभिन्न कारक प्रशांत महासागर की सतह और उपसतह स्थितियों को प्रभावित करते हैं, जिनमें वायुमंडलीय स्थितियों, पवनों और दबाव में अंतर-मौसमी परिवर्तनशीलता शामिल है।
- ये मैडेन जूलियन ऑसिलेशन (MJO) की गति से निकटता से जुड़े हुए हैं, जो वर्षा लाने वाली पवनों और बादलों का एक पूर्व दिशा में बढ़ने वाला बैंड है।
- इन विभिन्न मौसम प्रणालियों की परस्पर क्रिया से पूर्वानुमान में जटिलता उत्पन्न हो रही है।
- हाल के पूर्वानुमानों से पता चलता है कि ला नीना के आगमन के पहले संकेत संभवतः सितम्बर के अंत या अक्तूबर के आरम्भ में दिखाई देंगे, और साथ ही ला नीना नवम्बर में चरम पर होगा तथा उत्तरी गोलार्ध में संपूर्ण शीतकाल तक जारी रहेगा।
ला नीना का भारतीय मौसम पर क्या प्रभाव होगा?
- भारत के दक्षिण-पश्चिम मानसून के दौरान होने वाली अधिक वर्षा आमतौर पर ला नीना से जुड़ी होती है।
- हालाँकि 2024 की मानसूनी अवधि लगभग समाप्त हो चुकी है और साथ ही भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में ला नीना की स्थिति अभी भी विकसित नहीं हुई है, इसलिये यह जलवायु घटना वर्तमान में देश की वर्षा को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित नहीं करेगी।
- यदि ला नीना सितंबर के अंत या अक्तूबर तक शुरू होता है, तब यह उत्तर-पूर्वी मानसून की (अक्तूबर से दिसंबर) अवधि में होने वाली वर्षा को प्रभावित कर सकता है, जो मुख्य रूप से तमिलनाडु, तटीय आंध्र प्रदेश, रायलसीमा, दक्षिणी आंतरिक कर्नाटक और केरल को प्रभावित करता है।
- जलवायु विज्ञान की दृष्टि से, ला नीना उत्तर-पूर्वी मानसूनी वर्षा के लिये अनुकूल नहीं है, हालाँकि अतीत में इसके अपवाद भी रहे हैं।
- बंगाल की खाड़ी एवं अरब सागर सहित उत्तरी हिंद महासागर बेसिन में आमतौर पर मार्च से मई और अक्तूबर से दिसंबर के दौरान चक्रवात विकसित होते हैं और साथ ही मई और नवंबर में इनकी गतिविधि चरम पर होती है।
- ला नीना वर्षों के दौरान चक्रवातजनन (cyclogenesis) की अधिक संभावना होती है तथा चक्रवात अधिक तीव्र एवं दीर्घकालिक होते हैं।
- ऐतिहासिक रूप से ला नीना वर्ष अधिक कठोर और ठंडी सर्दियों से जुड़ा हुआ है।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: ला-नीना की घटना और भारतीय मानसून पर इसके प्रभाव पर चर्चा कीजिये। भारत की जलवायु पर इसके प्रभाव के संदर्भ में यह अल-नीनो से किस प्रकार भिन्न है? |
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न. आस्ट्रेलिया में हाल में आयी बाढ़ ‘‘ला-नीना’’ के कारण आयी थी। ‘‘ला-नीना’’ ‘‘अल-नीनो’’ से कैसे भिन्न है? (2011)
उपर्युक्त में से कौन-सा/कौन-से कथन सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (D) मेन्सप्रश्न. सूखे को इसके स्थानिक विस्तार, अस्थायी अवधि, धीमी शुरुआत और कमज़ोर वर्गों पर स्थायी प्रभाव को देखते हुए एक आपदा के रूप में मान्यता दी गई है। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के सितंबर 2010 के दिशा-निर्देशों पर ध्यान केंद्रित करते हुए, भारत में संभावित अल नीनो और ला नीना नतीजों से निपटने के लिये तैयारियों के तंत्र पर चर्चा कीजिये। (2014) |