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डेली न्यूज़

  • 13 Jul, 2024
  • 40 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

कॉर्पोरेट्स में महिलाओं का प्रतिनिधित्व

प्रिलिम्स के लिये:

भारत रोज़गार रिपोर्ट 2024, बेरोज़गारी दर, मानव विकास संस्थान (IHD), अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO), श्रम बल भागीदारी दर (LFPR)

मेन्स के लिये:

भारत रोज़गार रिपोर्ट 2024: ILO, भारत में बेरोज़गारी से संबंधित प्रमुख मुद्दे।

स्रोत: बिज़नेस स्टैण्डर्ड 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च (NCAER) की एक रिपोर्ट से पता चला है कि भारत में शीर्ष प्रबंधन और कंपनी बोर्डों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ा है, लेकिन अभी भी यह वैश्विक औसत से काफी कम है।

  • विश्व बैंक के एक अन्य अध्ययन में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि भारत को ऋण तक आसान पहुँच के लिये महिलाओं के नेतृत्व वाले ग्रामीण उद्यमों के लिये एक विशिष्ट प्राथमिकता क्षेत्र का दर्जा देने की आवश्यकता है।

राष्ट्रीय अनुप्रयुक्त आर्थिक अनुसंधान परिषद (NCAER)

  • यह भारत का अग्रणी स्वतंत्र आर्थिक अनुसंधान संस्थान है। वर्ष 1956 में स्थापित यह सर्वेक्षण और डेटा संग्रह के माध्यम से व्यावहारिक आर्थिक विश्लेषण पर ध्यान केंद्रित करता है।

प्राथमिक क्षेत्र में योगदान:

  • RBI ने बैंकों को अपने फंड का एक निश्चित हिस्सा कृषि, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME), निर्यात ऋण, शिक्षा, आवास, सामाजिक बुनियादी ढाँचा तथा नवीकरणीय ऊर्जा जैसे अन्य क्षेत्रों को ऋण प्रदान का आदेश दिया है।
    • सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों और विदेशी बैंकों (भारत में एक बड़ी उपस्थिति के साथ) को इन क्षेत्रों को ऋण प्रदान करने के लिये अपने समायोजित शुद्ध बैंक ऋण (ANDC) का 40% अलग रखना अनिवार्य है।
    • क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों, सहकारी बैंकों और लघु वित्त बैंकों को ANDC का 75% PSL को आवंटित करना होगा।
  • इसके पीछे यह सुनिश्चित करना है कि पर्याप्त संस्थागत ऋण अर्थव्यवस्था के कमज़ोर क्षेत्रों तक पहुँचे, जो अन्यथा लाभप्रदता के दृष्टिकोण से बैंकों के लिये आकर्षक नहीं हो सकते हैं।

भारतीय कॉर्पोरेट्स में महिलाओं के प्रतिनिधित्व पर NCAER के प्रमुख निष्कर्ष क्या हैं?

  • शीर्ष प्रबंधन पदों पर महिलाओं की हिस्सेदारी वित्त वर्ष 2014 में लगभग 14% से बढ़कर वित्त वर्ष 2023 में लगभग 22% हो गई।
  • भारत में कंपनी बोर्ड में महिलाओं की हिस्सेदारी वित्त वर्ष 2014 में लगभग 5% से बढ़कर वित्त वर्ष 2023 में लगभग 16% हो गई।
  • भारत में मध्यम और वरिष्ठ प्रबंधन भूमिकाओं में महिलाओं की हिस्सेदारी केवल 20% है, जबकि वैश्विक औसत 33% है।
  • NSE सूचीबद्ध फर्मों में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की हिस्सेदारी:
    • अध्ययन की गई लगभग 60% फर्मों, जिनमें बाज़ार पूंजीकरण के हिसाब से शीर्ष 10 NSE-सूचीबद्ध फर्मों में से 5 शामिल हैं, की मार्च 2023 तक उनकी शीर्ष प्रबंधन टीमों में कोई महिला नहीं थी।
    • लगभग 10% फर्मों में मात्र एक महिला थी।

नोट:

  • विश्व बैंक के आँकड़ों के अनुसार, महिलाओं की वैश्विक श्रम शक्ति भागीदारी दर (LFPR) 50% से थोड़ी अधिक है, जबकि पुरुषों की 80% है।
  • श्रम शक्ति भागीदारी दर (LFPR) कुल श्रम शक्ति को कुल कार्यशील आयु वर्ग की आबादी से विभाजित करने का अनुपात है। जो कार्यशील आयु वर्ग की आबादी 15 से 64 वर्ष की आयु के लोगों को संदर्भित करती है।
    • भारत में महिलाओं की LFPR वर्ष 2017 में 23% से बढ़कर वर्ष 2023 में लगभग 37% हो गई है।

भारत में महिलाओं के लिये रोज़गार के अवसर बढ़ाने पर विश्व बैंक की प्रमुख सिफारिशें क्या हैं?

  • महिलाओं के नेतृत्व वाले ग्रामीण उद्यमों हेतु प्राथमिकता क्षेत्र का टैग प्रदान करना: विश्व बैंक के अध्ययन में पाया गया कि महिलाओं के सूक्ष्म उद्यमों को दिये जाने वाले ऋणों को अलग से प्राथमिकता नहीं दी जाती है।
    • यह उच्च विकास क्षमता वाले महिलाओं के स्वामित्व वाले उद्यमों को विशेष रूप से पूरा करने के लिये सूक्ष्म उद्यम क्षेत्र के भीतर एक नवीन उप-श्रेणी निर्माण का सुझाव देता है।
  • डिजिटल विभाजन को कम करना: रिपोर्ट ने महिला उद्यमियों को डिजिटल साक्षरता से युक्त करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया, जिसमें उनकी वित्तीय प्रबंधन क्षमताओं को बढ़ाने के लिये डिजिटल बहीखाता और भुगतान प्रणालियों के लिये प्रशिक्षण कार्यक्रम शामिल हैं।
  • स्थायी विकास हेतु स्नातक कार्यक्रम: रिपोर्ट में सूक्ष्म ऋणकर्त्ताओं को मुख्यधारा के वाणिज्यिक वित्त में मदद करने के लिये स्नातक कार्यक्रमों को लागू करने का सुझाव दिया गया है।
    • यह ग्रामीण भारत में महिलाओं की उद्यमिता को प्रभावी ढंग से बढ़ावा देने और सूचित निर्णय लेने के लिये बैंकों सहित हितधारकों द्वारा ज़िला-स्तरीय डेटा एनालिटिक्स के रणनीतिक उपयोग का भी समर्थन करता है।
  • संस्थागत पारिस्थितिकी तंत्र को मज़बूत करना: रिपोर्ट में मेंटरशिप और व्यावसायिक सहायता के लिये ग्रामीण क्षेत्रों में इनक्यूबेशन केंद्रों को विकेंद्रीकृत करने की सिफारिश की गई है।
    • यह समुदाय और सहकर्मी प्रशिक्षण को बढ़ावा देने के लिये महिला उद्यमी संघों को विकसित करने का भी सुझाव देता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: भारतीय कॉर्पोरेट जगत में महिलाओं की कार्यबल भागीदारी की स्थिति पर चर्चा कीजिये। कार्यबल में उनकी भागीदारी बढ़ाने के उपाय भी सुझाइये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. प्रछन्न बेरोज़गारी का सामान्यतः अर्थ होता है, कि (2013)

(a) लोग बड़ी संख्या में बेरोज़गार रहते हैं
(b) वैकल्पिक रोज़गार उपलब्ध नहीं है
(c) श्रमिक की सीमांत उत्पादकता शून्य है
(d) श्रमिकों की उत्पादकता नीची है

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न. भारत में सबसे ज़्यादा बेरोज़गारी प्रकृति में संरचनात्मक है। भारत में बेरोज़गारी की गणना के लिये अपनाई गई पद्धति का परीक्षण कीजिये और सुधार के सुझाव दीजिये। (2023)


भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत की महत्त्वाकांक्षी विमानपत्तन विस्तार योजना

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण, उड़ान योजना, नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (DGCA), 

मेन्स के लिये:

भारत में विमानन उद्योग की स्थिति, भारत में विमानन क्षेत्र को पुनर्जीवित करने के उपाय, विज़न 2047

स्रोत: लाइव मिंट

चर्चा में क्यों? 

भारत की योजना वर्ष 2047 तक अपने परिचालन हेतु विमानपत्तन/हवाई अड्डों की संख्या को दोगुना करके 300 तक करने की है, जो यात्री यातायात में आठ गुना वृद्धि के कारण संभव होगा। इस महत्त्वाकांक्षी विस्तार में देश भर में मौजूदा हवाई पट्टियों का विकास एवं नए हवाई अड्डों का निर्माण शामिल है।

इस विस्तार को प्रेरित करने वाले कारक क्या हैं?

  • मौजूदा हवाई पट्टियों का विकास: भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण(AAI) 70 हवाई पट्टियों को A320 या B737 जैसे संकीर्ण अवसंरचना वाले विमानों को संभालने में सक्षम हवाई अड्डों के रूप में विकसित करने की योजना बना रहा है।
    • मांडवी (गुजरात), सुल्तानपुर (उत्तर प्रदेश), तुरा (मेघालय) और छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) में मौजूदा हवाई पट्टियों को छोटे विमानों के लिये उन्नत किया जा सकता है। छोटे विमानों को समायोजित करने हेतु लगभग 40 हवाई पट्टियाँ विकसित की जानी हैं।
    • यदि मौजूदा हवाई पट्टियों का विकास नहीं किया जा सकता है अथवा 50 किलोमीटर के भीतर कोई नागरिक हवाई अड्डा नहीं है तो नए हवाई अड्डे बनाए जाएंगे।
    • नए ग्रीनफील्ड हवाई अड्डे कोटा (राजस्थान), परंदूर (तमिलनाडु), कोट्टायम (केरल), पुरी (ओडिशा), पुरंदर (महाराष्ट्र), कार निकोबार एवं मिनिकॉय (अंडमान और निकोबार द्वीप समूह) में बनाए जा सकते हैं।
  • अनुमानित यात्री यातायात वृद्धि: वर्ष 2047 तक यात्री यातायात में आठ गुना वृद्धि होने की आशा है, जो 376 मिलियन से बढ़कर 3-3.5 बिलियन वार्षिक हो जाएगा। इस वृद्धि में अंतर्राष्ट्रीय यातायात का योगदान 10-12% प्राप्त सकता है।
    • यह योजना विज़न 2047 का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य हवाई यात्रा की मांग में भारी वृद्धि को समायोजित करना है।

  • उड़ान योजना कार्यान्वयन: उड़ान (उड़े देश का आम नागरिक) जैसी योजनाओं के माध्यम से टियर-II और टियर-III शहरों में कनेक्टिविटी में सुधार करना।
    • वर्ष 2014 में, 74 परिचालन हवाई अड्डे थे, जो अब बढ़कर 148 हो गए हैं। उड़ान योजना के तहत, 58 हवाई अड्डों, 8 हेलीपोर्ट तथा 2 जल हवाई अड्डों सहित 68 कम सेवा वाले/असेवित गंतव्यों को जोड़ा गया है। इसने 29 से अधिक राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को हवाई कनेक्टिविटी विकसित हुई है। 
    • भारत का विमानन अवसंरचना हवाई अड्डों पर अत्यधिक भीड़भाड़ वाला है। हवाई यात्रा की मांग में वृद्धि के साथ, देश भर के प्रमुख हवाई अड्डे अपनी निर्धारित क्षमता से अधिक परिचालन कर रहे हैं।

  • आय का बढ़ता स्तर: वर्ष 2047 तक भारत की अर्थव्यवस्था में उल्लेखनीय वृद्धि होने का अनुमान है, प्रति व्यक्ति आय 18,000 से 20,000 अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की आशा है। यह आर्थिक वृद्धि विमानन विस्तार को बढ़ावा देने वाला एक महत्त्वपूर्ण कारक भी है।
    • अधिक व्यय योग्य आय के कारण जनसंख्या के एक बड़े भाग के लिये हवाई यात्रा अधिक किफायती हो जाती है।
    • बढ़ता हुआ मध्यम वर्ग व्यवसाय और अवकाश दोनों के लिये अन्य परिवहन साधनों की अपेक्षा हवाई यात्रा को प्राथमिकता देगा।
    • आर्थिक विकास के परिणामस्वरूप बढ़ी हुई व्यावसायिक गतिविधियाँ तथा पर्यटन से हवाई यात्रा की मांग में और वृद्धि होगी। 

  • एयर कार्गो में प्रत्याशित वृद्धि: हालाँकि यात्री के यातायात का ध्यान देना प्राथमिक है, लेकिन विस्तृत होते एयर कार्गो क्षेत्र को भी ध्यान में रखा गया है।
    • ई-कॉमर्स का विकास कुशल हवाई माल ढुलाई सेवाओं की मांग को बढ़ा रहा है।
    • भारत का लक्ष्य वैश्विक एयर कार्गो बाज़ार में एक प्रमुख अभिकर्त्ता बनना है।
    • नए और विस्तारित हवाई अड्डों में कार्गो-हैंडलिंग क्षमता में वृद्धि होगी।
  • प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय केंद्रों का विकास: भारत का लक्ष्य अपने प्रमुख हवाई अड्डों को अंतर्राष्ट्रीय केंद्रों के रूप में स्थापित करना है, ताकि वे मध्य पूर्व और दक्षिण पूर्व एशिया के स्थापित केंद्रों के साथ प्रतिस्पर्द्धा कर सकें।
    • यह आकांक्षा मौजूदा हवाई अड्डों के विस्तार और आधुनिकीकरण के साथ-साथ नए हवाई अड्डों के विकास को भी प्रेरित कर रही है, ताकि अधिकाधिक अंतर्राष्ट्रीय एयरलाइनों तथा यात्रियों को आकर्षित किया जा सके, पारगमन यातायात में वृद्धि हो एवं भारत में पर्यटन और व्यावसायिक यात्रा को बढ़ावा मिले।
  • हवाई यात्रा की कम पहुँच: भारत का विमानन बाज़ार विश्व के सबसे बड़े बाज़ारों में से एक है, लेकिन विकसित देशों की तुलना में भारत में हवाई यात्रा की पहुँच अभी भी कम है। 
    • AAI का आकलन अन्य प्रमुख बाज़ारों के साथ दिलचस्प तुलना प्रदान करता है: 
      • चीन (2019): प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष 0.47 यात्राएँ (प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद: 10,144 अमेरिकी डॉलर), USA: प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष 1.2-1.3 यात्राएँ (प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद: 20,000 अमेरिकी डॉलर) और वर्ष 2047 के लिये भारत का अनुमान: प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष 1 यात्रा (प्रति व्यक्ति अनुमानित सकल घरेलू उत्पाद: 18,000-20,000 अमेरिकी डॉलर)। 
    • इससे विकास के लिये अत्यधिक अवसर पैदा होंगे, क्योंकि आय का स्तर बढ़ेगा और हवाई यात्रा अधिक सुलभ होगी तथा मांग में भी तेज़ी आने की उम्मीद है।
    • विस्तार योजना हवाई यात्रा अपनाने में अपेक्षित वृद्धि का पूर्वानुमान लगाने और उसके लिये तैयारी करने हेतु तैयार की गई है।

भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (AAI)

  • भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (Airports Authority of India- AAI) भारत सरकार के नागरिक उड्डयन मंत्रालय के नागरिक उड्डयन महानिदेशालय के अंतर्गत एक सांविधिक निकाय है। इसका गठन वर्ष 1995 में राष्ट्रीय हवाई अड्डा प्राधिकरण और भारतीय अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा प्राधिकरण को मिलाकर किया गया था।
  • यह भारतीय हवाई क्षेत्र और आस-पास के समुद्री क्षेत्रों में हवाई यातायात प्रबंधन सेवाएँ भी प्रदान करता है।
  • AAI के कार्यों में हवाई अड्डे का विकास, हवाई क्षेत्र नियंत्रण, यात्री और कार्गो टर्मिनल प्रबंधन तथा संचार एवं नेविगेशन सहायता का प्रावधान शामिल हैं।
  • AAI 2.8 मिलियन वर्ग समुद्री मील हवाई क्षेत्र में हवाई नेविगेशन सेवाएँ प्रदान करता है।

भारत में हवाई अड्डों के विस्तार के लिये चुनौतियाँ क्या हैं?

  • भूमि की कमी: बढ़ते शहरीकरण के कारण भूमि की कमी बढ़ती जा रही है, खासतौर पर बड़े शहरों और कस्बों में। भूमि की लागत और उपलब्धता कई हवाईअड्डा परियोजनाओं की व्यवहार्यता को प्रभावित कर सकती है।
  • अधिक निवेश की आवश्यकताएँ: भारत को वर्ष 2047 तक हवाईअड्डा विकास के लिये 40 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक की आवश्यकता होगी।
    • हवाई क्षेत्र के बुनियादी ढाँचे और ज़मीनी परिवहन के उन्नयन को शामिल करने पर कुल व्यय 70-80 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच सकता है।
  • बुनियादी ढाँचा संबंधी बाधाएँ: मुंबई जैसे महत्त्वपूर्ण केंद्रों सहित कई मौजूदा हवाई अड्डे संतृप्ति की ओर बढ़ रहे हैं या पहुँच चुके हैं। कई शहरों को तत्काल नवीन हवाई अड्डों या मौजूदा हवाई अड्डों के महत्त्वपूर्ण विस्तार की आवश्यकता है; यह नवीन हवाई अड्डों के विकास की प्रक्रिया में बाधा डाल सकता है।
  • एयर नेविगेशन सर्विसेज़ (ANS) संबंधी बुनियादी ढाँचा: ANS तकनीक के लिये लोगों और उनके प्रशिक्षण में महत्त्वपूर्ण निवेश (संभवतः 6-7 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक) की आवश्यकता है।
  • भूतल परिवहन: हवाई अड्डों तक भूतल परिवहन में आवश्यक निवेश लगभग उतना ही हो सकता है जितना कि हवाई अड्डों के निर्माण में।
    • पर्याप्त सतही संपर्क की कमी नवीन हवाई अड्डों की व्यवहार्यता और सुविधा को प्रभावित कर सकती है।
  • पर्यावरण संबंधी चिंताएँ: हवाई अड्डों के विस्तार को प्रायः संभावित पर्यावरणीय प्रभावों, जिसमें ध्वनि प्रदूषण और आवास व्यवधान शामिल हैं, के कारण विरोध का सामना करना पड़ता है।

आगे की राह

  • एकीकृत भूमि उपयोग योजना: "एयरोट्रोपोलिस" अवधारणा के अनुरूप हवाई अड्डों के आस-पास विशेष आर्थिक क्षेत्र का निर्माण करना, जो हवाई अड्डे को व्यवसाय, रसद और आवासीय क्षेत्रों के साथ जोड़ता है। यह भूमि अधिग्रहण को उचित ठहराने और आर्थिक लाभ को अधिकतम करने में सहायक हो सकता है।
  • मल्टी-मॉडल परिवहन एकीकरण: फ्रैंकफर्ट हवाई अड्डे के साथ लंबी दूरी के ट्रेन स्टेशन जैसे एकीकृत परिवहन केंद्र विकसित करना, जो हवाई अड्डे को सीधे राष्ट्रीय रेल नेटवर्क से जोड़ता हो। यह सतही परिवहन चुनौतियों का समाधान करता है और हवाई अड्डे की पहुँच को बढ़ाता है।
  • ग्रीन एयरपोर्ट डिज़ाइन: सतत् एवं पर्यावरण के अनुकूल हवाई अड्डे के डिज़ाइन को प्राथमिकता देना। सतत् सामग्री और अन्य पर्यावरण के अनुकूल तकनीकों का उपयोग करने के लिये ओस्लो एयरपोर्ट के दृष्टिकोण को अपनाना।
    • नॉर्वे में ओस्लो एयरपोर्ट नॉर्डिक के कठोर शीतकाल से निपटने के लिये बायोमास हीटिंग सिस्टम का उपयोग करता है, गर्मी के लिये जैविक सामग्रियों का उपयोग करता है।
    • भविष्य के विस्तार और आवश्यकताओं एवं परिवर्तित विमानन रुझानों के अनुकूलन हेतु लचीलेपन के साथ हवाई अड्डों को डिज़ाइन करना।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP): निवेश और विशेषज्ञता को आकर्षित करने के लिये PPP मॉडल का लाभ उठाना। निर्माण - परिचालन - हस्तांतरण (BOT) मॉडल के समान एक मज़बूत PPP ढाँचा विकसित करना। इससे कुशल संचालन सुनिश्चित करते हुए बड़े पैमाने पर निवेश आवश्यकताओं को पूरा करने में सहायता मिल सकती है।
  • मौजूदा हवाई अड्डों की क्षमता में वृद्धि: तकनीकी और परिचालन सुधारों के माध्यम से क्षमता को अधिकतम करना। इसमें उन्नत हवाई यातायात प्रबंधन प्रणालियों को लागू करना और नवीन रनवे निर्मित किये बिना क्षमता बढ़ाने के लिये रनवे के उपयोग को अनुकूलित करना शामिल है।
  • स्मार्ट एयरपोर्ट तकनीक: दक्षता और यात्री अनुभव को बढ़ाने के लिये आधुनिक तकनीकों का लाभ उठाना। परिचालन दक्षता और क्षमता में सुधार हेतु बायोमेट्रिक बोर्डिंग तथा स्वचालित बैगेज हैंडलिंग सिस्टम जैसी तकनीकों को अपनाना।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. हवाई अड्डे के बुनियादी ढाँचे के विस्तार के लिये भारत के विज़न 2047 पर चर्चा कीजिये, इसका उद्देश्य यात्री यातायात में अनुमानित वृद्धि को कैसे पूरा करना है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न. सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल के अधीन संयुक्त उपक्रमों के माध्यम से भारत में विमान पत्तनों के विकास का परीक्षण कीजिये। इस संबंध में प्राधिकरणों के समक्ष कौन-सी चुनौतियाँ हैं? (2017)


भारतीय अर्थव्यवस्था

हाइब्रिड इलेक्ट्रिक वाहनों के लिये प्रोत्साहन

प्रिलिम्स के लिये:

बैटरी इलेक्ट्रिक वाहन (BEV), हाइब्रिड वाहन, इलेक्ट्रिक वाहनों को तेज़ी से अपनाना और उनका विनिर्माण (फेम) योजना II, राष्ट्रीय इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन योजना (NEMMP), परिवर्तनकारी गतिशीलता और बैटरी स्टोरेज़ पर राष्ट्रीय मिशन, गो इलेक्ट्रिक अभियान, उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (PLI) योजना

मेन्स के लिये:

इलेक्ट्रिक वाहनों के विकल्प के रूप में हाइब्रिड वाहन, इलेक्ट्रिक वाहन विनिर्माण और अपनाना- चुनौतियाँ और अवसर, EV और नेट ज़ीरो उत्सर्जन के वैश्विक लक्ष्य।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार ने स्ट्रांग हाइब्रिड और प्लग-इन हाइब्रिड इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) के लिये पंजीकरण शुल्क माफ करने की घोषणा की।

  • यह कदम उत्तर प्रदेश को तमिलनाडु और चंडीगढ़ के साथ जोड़ता है, जो पेट्रोल तथा डीज़ल वाहनों के स्वच्छ विकल्पों को बढ़ावा देने के लिये प्रोत्साहन प्रदान करते हैं।

हाइब्रिड इलेक्ट्रिक वाहन (HEV) क्या है? 

इलेक्ट्रिक वाहन के संबंध में:

  • इलेक्ट्रिक वाहन (EV) को ऐसे वाहन के रूप में परिभाषित किया जाता है जिसे इलेक्ट्रिक मोटर द्वारा संचालित किया जा सकता है जो बैटरी से बिजली खींचता है और बाहरी स्रोत से चार्ज होने में सक्षम होता है।

इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) के प्रकार:

  • बैटरी इलेक्ट्रिक वाहन (BEV): ये पूरी तरह से बिजली से चलते हैं। ये हाइब्रिड और प्लग-इन हाइब्रिड की तुलना में ज़्यादा कुशल होते हैं।
  • फ्यूल सेल इलेक्ट्रिक वाहन (FCEV): इलेक्ट्रिक वाहनों के लिये विद्युत ऊर्जा रासायनिक ऊर्जा से उत्पन्न होती है। उदाहरण के लिये, हाइड्रोजन FCEV।
  • हाइब्रिड इलेक्ट्रिक वाहन (HEV): इसे स्ट्रॉन्ग हाइब्रिड EV भी कहा जाता है। यह वाहन आंतरिक दहन (आमतौर पर पेट्रोल) इंजन और बैटरी से चलने वाले मोटर पावरट्रेन दोनों का उपयोग करता है।
    • पेट्रोल इंजन का इस्तेमाल ड्राइव करने और बैटरी खत्म होने पर चार्ज करने के लिये किया जाता है। ये वाहन पूरी तरह से इलेक्ट्रिक या प्लग-इन हाइब्रिड वाहनों की तरह कुशल नहीं हैं।

  • प्लग-इन हाइब्रिड इलेक्ट्रिक वाहन (PHEV): ये एक आंतरिक दहन इंजन और एक बाहरी सॉकेट से चार्ज की गई बैटरी (इनमें प्लग होता है) दोनों का उपयोग करते हैं।
    • PHEV., HEV से अधिक कुशल हैं, लेकिन BEV से कम कुशल हैं।
    • PHEV कम-से-कम 2 मोड में चल सकते हैं:
      • ऑल-इलेक्ट्रिक मोड, जिसमें मोटर और बैटरी कार की सारी ऊर्जा प्रदान करते हैं।
      • हाइब्रिड मोड, जिसमें बिजली और पेट्रोल/डीज़ल दोनों का उपयोग होता है।
      • वाहन की बैटरी को केवल बाहरी बिजली स्रोत से ही चार्ज किया जा सकता है, इंजन से नहीं।

  • हाइब्रिड इलेक्ट्रिक वाहनों का महत्त्व:
    • मध्यम अवधि में व्यावहारिकता (5-10 वर्ष): चूँकि उन्हें बाहरी चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर की आवश्यकता नहीं होती है, इसलिये हाइब्रिड को मध्यम अवधि के लिये एक व्यावहारिक और व्यवहार्य विकल्प के रूप में देखा जाता है क्योंकि भारत धीरे-धीरे अपने वाहनों के समूह के पूर्ण विद्युतीकरण की ओर बढ़ रहा है। इस बदलाव में 5-10 वर्ष लगने की संभावना है।
    • स्वामित्व लागत परिप्रेक्ष्य: हाइब्रिड को लागत प्रभावी माना जाता है क्योंकि कई राज्य सरकारें पंजीकरण शुल्क, RTO शुल्क आदि पर छूट दे रही हैं।
      • उदाहरण के लिये, उत्तर प्रदेश सरकार ने मज़बूत हाइब्रिड वाहनों के लिये पंजीकरण शुल्क पर 100% छूट की घोषणा की है, जिससे खरीदारों को संभावित रूप से 3.5 लाख रुपए तक की बचत होगी।
      • पारंपरिक ईंधन गाड़ियों की तुलना में हाइब्रिड कारों की ईंधन अर्थव्यवस्था बेहतर होती है, जिससे समय के साथ चालकों की लागत बचत होती है।
    • डीकार्बोनाइज़ेशन अभियान के लिये महत्त्वपूर्ण: हाइब्रिड वाहन भारत के डीकार्बोनाइज़ेशन प्रयासों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हाइब्रिड वाहनों में समान आकार के वाहनों के लिये इलेक्ट्रिक और पारंपरिक ICE वाहनों की तुलना में कुल (वेल-टू-व्हील या WTW) कार्बन उत्सर्जन कम होता है।
      • हाइब्रिड वाहन 133 ग्राम/किमी. CO2 उत्सर्जित करते हैं, जबकि इलेक्ट्रिक वाहन 158 ग्राम/किमी. CO2 उत्सर्जित करते हैं। इसका अर्थ है कि हाइब्रिड वाहन अपने समकक्ष इलेक्ट्रिक वाहन की तुलना में 16% कम प्रदूषण करते हैं।
      • पेट्रोल वाहनों के लिये यह 176 ग्राम/किमी. तथा डीज़ल वाहनों के लिये 201 ग्राम/किमी. है।

नोट: 

  • फरवरी 2023 में, तमिलनाडु सरकार ने मज़बूत हाइब्रिड के लिये रोड टैक्स, पंजीकरण और परमिट शुल्क छूट के रूप में प्रोत्साहन की घोषणा की।
  • चंडीगढ़ प्रशासन 20 लाख रुपए से कम कीमत वाले मज़बूत हाइब्रिड वाहनों पर रोड टैक्स छूट भी प्रदान करता है।

EV अपनाने को बढ़ावा देने के लिये भारत सरकार की पहल क्या हैं?

भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने में चुनौतियाँ क्या हैं?

  • उच्च लागत: पारंपरिक आंतरिक दहन इंजन (ICE) वाहनों की तुलना में इलेक्ट्रिक वाहनों के लिये उच्च अग्रिम लागत एक प्राथमिक बाधा है। बैटरी की लागत, जो EV की कीमत का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है, उच्च बनी हुई है, जिससे कई उपभोक्ताओं के लिये EVs कम किफायती हो जाते हैं, विशेषरूप से भारत जैसे मूल्य-संवेदनशील बाज़ार में।
  • स्वच्छ ऊर्जा का अभाव: भारत की अधिकांश विद्युत, कोयले से उत्पन्न की जाती है, इस प्रकार सभी EV के लिये विद्युत उत्पन्न करने हेतु कोयले पर निर्भर रहने से EV अपनाने के माध्यम से कार्बन उत्सर्जन को कम करने का उद्देश्य विफल हो जाएगा। 
  • आपूर्ति शृंखला के मुद्दे: लिथियम-आयन बैटरियों हेतु वैश्विक आपूर्ति शृंखला के मुद्दे महत्त्वपूर्ण हैं, 90% से अधिक लिथियम उत्पादन चिली, अर्जेंटीना, बोलीविया, ऑस्ट्रेलिया एवं चीन जैसे देशों में केंद्रित है।
    • भारत में इन बैटरियों की मांग वर्ष 2030 तक वार्षिक रूप से 30% से अधिक की वृद्धि की आशा है, जिसके लिये EV बैटरी उत्पादन हेतु 50,000 टन से अधिक लिथियम की आवश्यकता होगी। यह निर्भरता भारत को कुछ देशों से आयात पर अत्यधिक रूप से निर्भर बनाती है।
  • अविकसित चार्जिंग अवसंरचना: भारत का मौजूदा चार्जिंग अवसंरचना EV की बढ़ती मांग के लिये पर्याप्त नहीं है, केवल 12,146 सार्वजनिक EV चार्जिंग स्टेशन मुख्यतः शहरी क्षेत्रों में हैं, यह चीन से काफी पीछे है, जहाँ 1.8 मिलियन इलेक्ट्रिक चार्जिंग स्टेशन हैं।
    • विश्व बैंक (WB) के एक विश्लेषण के अनुसार अग्रिम खरीद प्रोत्साहन,चार्जिंग अवसंरचना  में निवेश करना EV को अपनाने की दिशा में चार से सात गुना अधिक प्रभावी होगा।
  • सब-ऑप्टिमल बैटरी टेक्नोलॉजी: मौजूदा EV बैटरियों की वोल्टेज क्षमता सीमित है, जो ड्राइविंग क्षमता में बाधा उत्पन्न करती है। सीमित चार्जिंग स्टेशन, वायुगतिकीय प्रतिरोध एवं वाहन के वज़न के साथ-साथ, ड्राइवरों के लिये बिना रिचार्ज के लंबी दूरी की यात्रा करना कठिन हो जाता है।
  • परिवर्तन के प्रति लगातार प्रतिरोध: दीर्घकालिक आर्थिक और पर्यावरणीय लाभों के बावजूद, भारतीय उपभोक्ता जागरूकता की कमी के साथ-साथ नई प्रौद्योगिकियों को अपनाने के प्रति सामान्य अनिच्छा के कारण, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, EV को अपनाने का लगातार विरोध करते हैं।

हाइब्रिड वाहनों की बिक्री में वृद्धि:

  • बिक्री के आँकड़ों से पता चलता है कि भारत में HEV अपनाने में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। FY23 तथा FY24 के बीच कुल बाज़ार हिस्सेदारी में स्ट्रॉन्ग हाइब्रिड की हिस्सेदारी 0.5% से बढ़कर 2.2% हो गई।
  • यह प्रवृत्ति वैश्विक अवलोकनों के अनुरूप है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हाइब्रिड की बिक्री में वृद्धि हो रही है, विशेषरूप से अमेरिका तथा यूरोप में, जहाँ वे BEV वृद्धि को पीछे छोड़ रहे हैं।

आगे की राह 

  •  लागत संबंधी चिंताओं का समाधान: 
    • सरकार को मांग प्रोत्साहन और लक्षित सब्सिडी प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है, विशेष रूप से मध्यम आय एवं बजट क्षेत्रों के लिये, चार्जिंग समय को कम करने और रेंज की चिंता को दूर करने के लिये बैटरी स्वैपिंग स्टेशनों का एक नेटवर्क विकसित करना तथा बड़ा EV उपयोगकर्त्ता आधार बनाने के लिये इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहनों को अपनाने को बढ़ावा देने पर अधिक ध्यान केंद्रित करना।
  • चार्जिंग से संबंधित बुनियादी ढाँचे को बढ़ाना:
    • प्रमुख राजमार्गों और शहरी केंद्रों पर फास्ट-चार्जिंग स्टेशनों की स्थापना को प्राथमिकता देने और सौर तथा पवन ऊर्जा जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को एकीकृत करने की आवश्यकता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इलेक्ट्रिक वाहन उत्सर्जन को कम करने में योगदान देना।
    • बैटरी प्रौद्योगिकी और आपूर्ति शृंखला को बढ़ावा देना:
    • आयात पर निर्भरता कम करने के लिये घरेलू लिथियम-आयन सेल विनिर्माण सुविधाओं की स्थापना को प्रोत्साहित करने तथा पर्यावरणीय चिंताओं को दूर करने और नवीन कच्चे माल पर निर्भरता कम करने के लिये कुशल बैटरी रीसाइक्लिंग कार्यक्रमों को लागू करने की आवश्यकता है।
  • उपभोक्ता जागरूकता और शिक्षा को बढ़ावा देना:
    • गलतफहमियों को दूर करने और इलेक्ट्रिक वाहनों के लाभों को उजागर करने के लिये लक्षित जन जागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिये। कृषि और परिवहन आवश्यकताओं के लिये इलेक्ट्रिक दोपहिया और तिपहिया वाहनों को अपनाने को बढ़ावा देने के लिये ग्रामीण क्षेत्रों में पहुँच कार्यक्रमों पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. हमारे देश के शहरों में वायु गुणवत्ता सूचकांक के परिकलन करने में साधारणतया निम्नलिखित वायुमंडलीय गैसों में से किनको विचार में लिया जाता है? (2016)

  1. कार्बन डाइऑक्साइड 
  2.  कार्बन मोनोक्साइड 
  3.  नाइट्रोजन डाइऑक्साइड 
  4.  सल्फर डाइऑक्साइड 
  5.  मेथैन

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 2, 3 और 4
(c) केवल 1, 4 और 5
(d) 1, 2, 3, 4 और 5

उत्तर: (b) 


प्रश्न. वर्ष 2015 में पेरिस में UNFCCC की बैठक में हुए समझौते के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2016)

  1. समझौते पर संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देशों ने हस्ताक्षर किये थे और यह वर्ष 2017 में प्रभावी होगा।
  2.  समझौते का उद्देश्य ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को सीमित करना है ताकि इस सदी के अंत तक औसत वैश्विक तापमान में वृद्धि पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 2 डिग्री सेल्सियस या 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक न हो।
  3.  विकसित देशों ने ग्लोबल वार्मिंग में अपनी ऐतिहासिक ज़िम्मेदारी को स्वीकार किया और विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद करने के लिये वर्ष 2020 से प्रतिवर्ष $1000 बिलियन दान करने के लिये प्रतिबद्ध हैं।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 3
(b) केवल 2
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न: दक्ष और किफायती (ऐफोर्डेबल) शहरी सार्वजनिक परिवहन किस प्रकार भारत के तीव्र आर्थिक विकास की कुंजी है? (2019)


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