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डेली न्यूज़

  • 13 Jun, 2020
  • 56 min read
जैव विविधता और पर्यावरण

चक्रवात अम्फान का सुंदरबन पर प्रभाव

प्रीलिम्स के लिये:

अम्फान, सुंदरबन, विश्व पर्यावरण दिवस, डैम्पियर हॉजज़ लाइन, मैंग्रोव

मेन्स के लिये:

चक्रवात अम्फान का सुंदरबन पर प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में आए चक्रवात ‘अम्फान’ (Amphan) के कारण ‘सुंदरबन’ (Sunderbans) का 28% से अधिक हिस्सा क्षतिग्रस्त हो गया है। 

प्रमुख बिंदु: 

  • अम्फान के कारण लगभग 1200 वर्ग किमी. में फैले मैंग्रोव वन क्षतिग्रस्त हुए हैं। मुख्य वन संरक्षक के अनुसार, ज्यादातर क्षति दक्षिण 24 परगना के पथारप्रतिमा और कुलतली इलाकों में हुई है। भारतीय क्षेत्र में स्थित सुंदरबन को अत्यधिक क्षति हुई है, जबकि बांग्लादेश की तरफ कम क्षति हुई है।
  • गौरतलब है कि विश्व पर्यावरण दिवस (World Environment Day- WED) के अवसर पर पश्चिम बंगाल में ‘मैंग्रोव’ और अन्य पेड़ लगाने हेतु अभियान भी चलाया जा रहा है।  
  • पश्चिम बंगाल सरकार ने वन विभाग को 14 जुलाई, 2020 तक मैंग्रोव के 3.5 करोड़ पौधे लगाने हेतु तैयारी करने के निर्देश दिये हैं। 
  • गौरतलब है कि ‘डैम्पियर हॉजज़ लाइन’ (Dampier Hodges line) के दक्षिण में स्थित भारतीय सुंदरबन 9630 वर्ग किमी. क्षेत्र में फैला हुआ है जिसमें से मैंग्रोव वन 4263 वर्ग किमी. में फैले हुए हैं। 
    • ‘डैम्पियर हॉजज़ लाइन’ (Dampier-Hodges line)- यह एक काल्पनिक रेखा है जो 24 परगना दक्षिण और उत्तरी ज़िलों से होकर गुजरती है और ज्वार-भाटा से प्रभावित एश्चुअरी ज़ोन की उत्तरी सीमा को इंगित करती है। 
  • बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण के बाद भी क्षतिग्रस्त मैंग्रोव वन की पुनर्स्थापना में वर्षों लग सकते हैं। 
  • विशेषज्ञों का मानना है कि मैंग्रोव न केवल हवा की गति को कम करते हैं बल्कि चक्रवात के दौरान समुद्री लहरों की गति को भी कम करते हैं।  

मैंग्रोव परितंत्र (Mangrove Ecosystem): 

  • मैंग्रोव सामान्यतः वे वृक्ष होते हैं जो उष्णकटिबंधीय और उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों के तटों, ज्वारनदमुख, ज्वारीय कीक्र, बैकवाटर (Backwater), लैगून एवं पंक जमावों में विकसित होते हैं। 
  • मैंग्रोव शब्द की उत्पत्ति पुर्तगाली शब्द ‘मैग्यू’ तथा अंग्रेजी शब्द ‘ग्रोव’ से मिलकर हुई है। 
  • ऐसा समझा जाता है कि मैंग्रोव वनों का सर्वप्रथम उद्गम भारत के मलय क्षेत्र में हुआ और आज भी इस क्षेत्र में विश्व के किसी भी स्थान से अधिक मैंग्रोव प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
  • यह धारणा कि मैंग्रोव केवल खारे पानी में उग सकते हैं सही नहीं है। ये ताज़े पानी वाले स्थानों पर भी उग सकते हैं लेकिन तब इनकी वृद्धि सामान्य से कम होती है। 
  • किसी मैंग्रोव क्षेत्र में पौधों की प्रजातियों की संख्या तथा उनके घनत्व को नियंत्रित करने वाला मुख्य कारक उस क्षेत्र की वनस्पतियों के खारे पानी को सहन करने की क्षमता तथा तापमान है।

मैंग्रोव की विशेषताएँ:

  • मैंग्रोव प्रजातियाँ बहुत अधिक सहनशील होती हैं और प्रतिदिन खारे पानी के बहाव को झेलती हैं।
  • सभी मैंग्रोव पौधे अपनी जड़ों से पानी का अवशोषण करते समय नमक की कुछ मात्रा को अलग कर देते हैं, साथ ही ये पौधे दूसरे पौधों की अपेक्षा नमक की अधिक मात्रा अपने ऊतकों में सहन कर सकते हैं।
  • मैंग्रोव पौधे अस्थिर भूमि में उगते हैं। इनकी विलक्षण जड़ें इन्हें न केवल स्थायित्त्व प्रदान करती हैं बल्कि धाराओं के तेज़ बहाव और तूफानों में भी मज़बूती से खड़ा रखती हैं और श्वसन में सहायता करती हैं।
  • मैंग्रोव पौधों में विशेष श्वसन जड़ों का विकास होता है जिनके माध्यम से ये पौधे ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड का आदान-प्रदान करते हैं। इन जड़ों को ‘न्यूमेटोफोर्स’ कहते हैं।  

भारत में मैंग्रोव वनस्पति:

  • भारत वन स्थिति रिपोर्ट- 2017 (India State of Forest Report-ISFR) के अनुसार,  देश में मैंग्रोव वनस्पति का क्षेत्र 4921 वर्ग किमी. है, जिसमें वर्ष 2015 के आकलन की तुलना में कुल 181 वर्ग किमी. की वृद्धि हुई है।
  • मैंग्रोव वनस्पति वाले सभी 12 राज्यों में पिछले आकलन की तुलना में सकरात्मक बदलाव देखा गया है।

राज्य/संघ क्षेत्र 

कच्छ वनस्पति स्थल 

पश्चिम बंगाल 

सुंदरबन

ओडिशा 

भीतरकनिका, महानदी, स्वर्णरेखा, देवी-कोड़ा ,धामरा,     

आंध्रप्रदेश 

कोरिंगा, पूर्वी गोदावरी, कृष्णा

तमिलनाडु 

पिचवरम, मुथुपेट, पुलीकट, काजुवेली   

अंडमान एवं निकोबार 

उत्तरी अंडमान, निकोबार  

केरल 

वेम्बनाड, कन्नूर (उत्तरी केरल)

कर्नाटक 

कुंडापुर, दक्षिण कन्नड/होनावर, कारवार, मंगलौर  

गोवा 

गोवा 

महाराष्ट्र 

अचरा-रत्नागिरी, देवगढ़ -विजय दुर्ग, वेलदुर 

गुजरात 

कच्छ की खाड़ी, खंभात की खाड़ी  

सुंदरबन (Sunderbans):

  • सुंदरबनयूनेस्को विश्व धरोहर स्थल’ (UNESCO World Heritage site) है जो कोलकाता से लगभग 110 किलोमीटर दूर 24 परगना ज़िले के दक्षिण पूर्वी सिरे पर स्थित है।
  • यह भारत और बांग्लादेश दोनों में फैला दलदलीय वन क्षेत्र है तथा यहाँ पाए जाने वाले सुंदरी नामक वृक्षों के कारण प्रसिद्ध है।
  • सुंदरबन दुनिया के सबसे बड़े डेल्टा का एक हिस्सा है जो गंगा, ब्रह्मपुत्र और मेघना नदियों से मिलकर बना है।
  • सुंदरबन का जंगल भारत और बांग्लादेश में लगभग 10000 वर्ग किमी. में फैला हुआ है, जिसमें से 40% भाग भारत में स्थित है।
  • वर्ष 1973 में इसे टाइगर रिज़र्व घोषित किया गया तथा वर्ष 1984 में इसे सुंदरबन राष्ट्रीय उद्यान बनाया गया। 

स्रोत: द हिंदू


भारतीय राजव्यवस्था

संविधान की नौवीं अनुसूची

प्रीलिम्स के लिये

संविधान की नौवीं अनुसूची

मेन्स के लिये

न्यायिक समीक्षा का महत्त्व, नौवीं अनुसूची की प्रासंगिकता

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने आरक्षण संबंधी मामले में अनुच्छेद-32 के तहत दायर याचिका पर कार्यवाही करने से इंकार करते हुए स्पष्ट किया कि ‘आरक्षण एक मौलिक अधिकार’ नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय के साथ ही आरक्षण संबंधी कानूनों को संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल करने की मांग एक बार पुनः चर्चा में आ गई है।

पृष्ठभूमि

  • ध्यातव्य है कि तमिलनाडु के तमाम राजनीतिक दलों ने सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष याचिका दायर कर राज्य के मेडिकल पाठ्यक्रम में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के अभ्यर्थियों को 50 प्रतिशत आरक्षण ने देने के केंद्र सरकार के फैसले को चुनौती दी थी। साथ ही याचिका में संबंधित अभ्यर्थियों के लिये आरक्षण की मांग भी की गई थी।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने याचिका की सुनवाई करते हुए कहा कि संविधान के अनुच्छेद-32 का उपयोग केवल मौलिक अधिकारों के उल्लंघन की स्थिति में किया जा सकता है। साथ ही न्यायालय ने प्रश्न किया कि मौजूदा मामले में किसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया जा रहा है?
  • सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले के बाद आरक्षण संबंधी प्रावधानों को संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल करने से संबंधित मांग की जा रही है, ताकि उन्हें न्यायिक समीक्षा से संरक्षण प्रदान किया जा सके।

संविधान की 9वीं अनुसूची

  • 9वीं अनुसूची में केंद्र और राज्य कानूनों की एक ऐसी सूची है, जिन्हें न्यायालय के समक्ष चुनौती नहीं दी जा सकती। वर्तमान में संविधान की 9वीं अनुसूची में कुल 284 कानून शामिल हैं, जिन्हें न्यायिक समीक्षा संरक्षण प्राप्त है अर्थात इन्हें अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती है। 
  • 9वीं अनुसूची को वर्ष 1951 में प्रथम संविधान संशोधन अधिनियम के माध्यम से भारतीय संविधान में शामिल किया गया था। यह पहली बार था, जब संविधान में संशोधन किया गया था।
  • उल्लेखनीय है कि संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल विभिन्न कानूनों को संविधान के अनुच्छेद 31B के तहत संरक्षण प्राप्त होता है।
  • ध्यातव्य है कि नौवीं अनुसूची प्रकृति में पूर्वव्यापी (Retrospective) है, अर्थात न्यायालय द्वारा असंवैधानिक घोषित होने के बाद भी यदि किसी कानून को नौवीं अनुसूची में शामिल किया जाता है तो वह उस तारीख से संवैधानिक रूप से वैध माना जाएगा।
  • पहले संविधान संशोधन के माध्यम से नौवीं अनुसूची में कुल 13 कानून शामिल किये गए थे, जिसके पश्चात् विभिन्न संविधान संशोधन किये गए और अब कानूनों की संख्या 284 हो गई है।

9वीं अनुसूची की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि 

  • भारतीय संविधान की 9वीं अनुसूची ऐतिहासिक रूप से भारत में हुए भूमि सुधार कानूनों से जुड़ी हुई है। भूमि सुधार का तात्पर्य भूमि के स्थायित्त्व और प्रबंधन के मौजूदा पैटर्न को बदलने हेतु किये गए संस्थागत सुधारों से है।
  • जब भारत में भूमि सुधार शुरू हुए तो उन्हें मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार के न्यायालयों में चुनौती दी गई, जिसमें से बिहार में न्यायालय ने इसे अवैध घोषित कर दिया था। 
  • इस विषय परिस्थिति से बचने और भूमि सुधारों को जारी रखने के लिये सरकार ने प्रथम संविधान संशोधन करने का फैसला किया।
  • 8 मई, 1951 को तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु ने अनंतिम संसद में प्रथम संविधान संशोधन विधेयक प्रस्तुत किया, जिसके पश्चात् 16 मई, 1951 को यह विधेयक चयन समिति को भेज दिया गया।
  • चयन समिति की रिपोर्ट के बाद 18 जून, 1951 को राष्ट्रपति की मंज़ूरी के साथ ही यह विधेयक अधिनियम बन गया।

समीक्षा के दायरे में नौवीं अनुसूची

  • 24 अप्रैल, 1973 को सर्वोच्च न्यायालय के केशवानंद भारती मामले में आए निर्णय के बाद संविधान की 9वीं  अनुसूची में शामिल किये गए किसी भी कानून की न्यायिक समीक्षा हो सकती है। 
    • न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि नौवीं अनुसूची के तहत कोई भी कानून यदि मौलिक अधिकारों या संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन करता है तो उसकी न्यायिक समीक्षा की जा सकेगी। 
  • इस संविधान पीठ ने व्यवस्था दी कि किसी भी कानून को बनाने और इसकी वैधानिकता तय करने की शक्ति किसी एक संस्था पर नहीं छोड़ी जा सकती।
  • संसद द्वारा बनाए गए कानूनों की व्याख्या न्यायपालिका को करनी है और उनकी वैधानिकता की जाँच संसद के बजाय न्यायालय ही करेगा।
  • हालाँकि न्यायिक समीक्षा तभी संभव है जब कोई कानून मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करेगा या फिर संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन करता हो।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


सामाजिक न्याय

विश्व बाल श्रम निषेध दिवस- 2020

प्रीलिम्स के लिये:

विश्व बाल श्रम निषेध दिवसबाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन,  ILO के आठ कोर कन्वेंशन 

मेन्स के लिये:

भारत में बाल श्रम 

चर्चा में क्यों?

‘विश्व बाल श्रम निषेध दिवस’ (World Day Against Child Labour) प्रतिवर्ष 12 जून को मनाया जाता है। इस वर्ष के ‘विश्व बाल श्रम निषेध दिवस’ को 'आभासी अभियान' (Virtual Campaign) के रूप में आयोजित किया गया है।

प्रमुख बिंदु:

  •  विश्व बाल श्रम निषेध दिवस-2020, ‘COVID-19 महामारी का वैश्विक बाल श्रम पर प्रभाव’ विषय पर केंद्रित है।
  • बाल श्रम पर  'आभासी अभियान' का आयोजन ‘अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन’ (International Labour Organization- ILO) द्वारा 'ग्लोबल मार्च अगेंस्ट चाइल्ड लेबर' तथा 'इंटरनेशनल पार्टनरशिप फॉर कोऑपरेशन इन चाइल्ड लेबर इन एग्रीकल्चर' के साथ मिलकर किया जा रहा है।

पृष्ठभूमि:

  • विश्व बाल श्रम निषेध दिवस की शुरुआत ‘अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन’ (ILO) द्वारा वर्ष 2002 में की गई थी।
  • इस दिवस के आयोजन का मुख्य उद्देश्य बाल श्रम की वैश्विक स्थिति पर ध्यान केंद्रित करना तथा बाल श्रम को पूरी तरह से समाप्त करने के लिये आवश्यक प्रयास करना है।
  • प्रत्येक वर्ष 12 जून को विश्व में बाल श्रमिकों की दुर्दशा को उजागर करने के लिये सरकारों, नियोक्ताओं और श्रमिक संगठनों, नागरिक समाज के साथ-साथ दुनिया भर के लाखों लोगों को एक साथ लाने के लिये इस दिवस का आयोजन किया जाता है।

बाल श्रम की परिभाषा:

  • सामान्यत: बाल श्रम को ऐसे पेशे या कार्य के रूप में परिभाषित किया जाता है जो बच्चे के लिये खतरनाक तथा नुकसानदायक हो। जो कार्य बच्चों को स्कूली शिक्षा से वंचित करता है या जिस कार्य में बच्चों को स्कूली शिक्षा और काम के दोहरे बोझ को संभालने की आवश्यकता होती है।
    • इसमें वे बच्चे शामिल हैं जिन्हें अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार, राष्ट्रीय कानून द्वारा परिभाषित न्यूनतम कानूनी उम्र से पहले  किसी व्यावसायिक कार्य में लगाया जाता है।
    • गुलामी (Slavery) या गुलामी के समान प्रथा, वेश्यावृत्ति या अवैध गतिविधियों के लिये बच्चे का उपयोग बाल श्रम के सबसे निकृष्टतम  रूप हैं।

कार्य जो बाल श्रम नहीं हैं:

  • ऐसे कार्य जो बच्चों या किशोरों के स्वास्थ्य एवं व्यक्तिगत विकास को प्रभावित नहीं करते हैं या जिन कार्यों का उनकी स्कूली शिक्षा पर कोई कुप्रभाव नही पड़ता हो।
    • स्कूल के समय के अलावा या स्कूल की छुट्टियों के दौरान पारिवारिक व्यवसाय में सहायता करना;
    • ऐसी गतिविधियाँ जो बच्चों के विकास में सहायक होती है तथा उनके वयस्क होने पर उन्हें समाज का उत्पादक सदस्य बनने के लिये तैयार होने में मदद करती हैं, यथा परंपरागत कौशल आधारित पेशा। 

'बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन'

(UN Convention on the Rights of the Child- UNCRC):

  • 20 नवंबर, 1989 को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 'बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन' (UNCRC) को अपनाया गया था, जो 18 वर्ष की आयु के सभी बच्चों की किसी भी प्रकार के व्यवसाय में लगाने पर प्रतिबंध आरोपित करती है। 
  • यह कन्वेंशन बच्चों को आर्थिक शोषण से बचाने के लिये उन कार्यों की पहचान करके मान्यता देती है जो बच्चों के लिये खतरनाक हो सकते हैं तथा जिनसे बच्चों की शिक्षा प्रभावित हो सकती है। 

भारत तथा UNCRC:

  • भारत द्वारा UNCRC को वर्ष 1992 में अनुमोदित किया गया था। हालाँकि भारत में 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों को सभी प्रकार के कार्य करने से प्रतिबंधित नहीं किया गया है। भारत में 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों पर सभी प्रकार के व्यावसायिक कार्यों में लगाने से प्रतिबंधित किया गया है। जबकि 14 से 18 वर्ष से किशोरों पर केवल ‘खतरनाक व्यवसायों’ (Hazardous Occupations) में कार्यों में लगाने पर प्रतिबंध लगाया गया है।

बाल श्रम की वैश्विक स्थिति:

  • बाल श्रम में अनुमानित 152 मिलियन बच्चे कार्यरत हैं, जिनमें से 73 मिलियन बच्चे आजीविका के लिये खतरनाक उद्योगों में काम करते हैं।
  • बाल श्रम मुख्य रूप से कृषि क्षेत्र (71%) में केंद्रित है - इसमें मछली पकड़ना, वानिकी, पशुधन पालन और जलीय कृषि शामिल है। सेवाओं में 17% और खनन सहित औद्योगिक क्षेत्र में 12% बाल श्रमिक संलग्न हैं। 

भारत में बाल श्रमिक:

  • राष्ट्रीय जनगणना 2011 के अनुसार, 5-14 वर्ष की आयु वर्ग की भारत में कुल जनसंख्या लगभग 260 मिलियन है। इनमें से कुल बाल आबादी का लगभग 10 मिलियन (लगभग 4%) बाल श्रमिक हैं जो मुख्य या सीमांत श्रमिकों के रूप में कार्य करते हैं।
  • 15-18 वर्ष की आयु के लगभग 23 मिलियन बच्चे विभिन्न कार्यों में लगे हुए हैं।

भारत सरकार की पहल:

  • गुरुपद्स्वामी समिति (Gurupadswamy committee) के निष्कर्षों तथा सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए, केंद्र सरकार द्वारा ‘बाल श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम’ (Child Labour (Prohibition and Regulation) Act)- 1986 बनाया गया।
  • हाल ही में, भारत ने 'अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन’ (International Labour Organization- ILO) के कन्वेंशन संख्या- 138 (रोज़गार के लिये न्यूनतम आयु) और कन्वेंशन संख्या- 182 (बाल श्रम के सबसे बुरे रूप) का अनुसमर्थन किया है।
    • इन दो प्रमुख ILO कन्वेंशनों के अनुसमर्थन के साथ ही भारत  ILO के आठ  प्रमुख कन्वेंशनों में से 6 का अनुसमर्थन कर चुका है। चार अन्य कन्वेंशन बलात श्रम उन्मूलन, 1930 (कन्वेंशन संख्या- 29), बलात श्रम उन्मूलन, 1957 (कन्वेंशन संख्या- 105), समान कार्य के लिये समान पारिश्रमिक, 1951 (कन्वेंशन संख्या- 100), रोजगार तथा भेदभाव (रोजगार और व्यवसाय) कन्वेंशन, 1958 (कन्वेंशन संख्या- 111) हैं।
  • बाल श्रम (निषेध और रोकथाम) संशोधन अधिनियम, (Child labour (Prohibition and Prevention) Amendment Act)- 2016 को लागू किया गया। 
    • यह अधिनियम 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों के सभी प्रकार के व्यावसायिक कार्यों मे लगाने पर प्रतिबंध तथा  14 से 18 वर्ष के  किशोरों पर ‘खतरनाक व्यवसायों’ (Hazardous Occupations) में कार्यों में लगाने पर प्रतिबंध लगाता है।
    • नए कानून में बच्चों के लिये रोज़गार की आयु को ‘अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम’ (Right to Education Act- RTE), 2009 के तहत अनिवार्य शिक्षा की उम्र से जोड़ा गया है।

संवैधानिक प्रावधान:

  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद-23 मानव दुर्व्यापार, बेगार तथा  बंधुआ मज़दूरी की प्रथा का उन्मूलन करता है। जबकि अनुच्छेद-24 किसी फैक्ट्री, खान, अन्य संकटमय गतिविधियों यथा-निर्माण कार्य या रेलवे में 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों के नियोजन का प्रतिषेध करता है।

आगे की राह:

  • सरकार आम तौर पर बाल श्रमिकों के तत्काल बचाव पर ध्यान केंद्रित करती है न कि दीर्घकालिक स्थिति या रोकथाम के आयाम पर। अत: रोकथाम के आयाम पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। 
  • बाल श्रम को सामाजिक रूप से बड़े पैमाने पर स्वीकार किया जाता है अत: बच्चों का लगातार शोषण जारी रहता है। अत:बाल श्रम के प्रति समाज में 'शून्य सहिष्णुता' (Zero Tolerance) को अपनाने की आवश्यकता है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-लाओस संबंध

प्रीलिम्स के लिये:

लाओस की अवस्थिति,  लाओस के वट फु (Vat Phu) स्थित प्राचीन शिव मंदिर

मेन्स के लिये:

भारत-लाओस संबंध 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय प्रधानमंत्री तथा लाओस के प्रधानमंत्री द्वारा फोन पर COVID-19 महामारी के कारण उत्पन्न स्वास्थ्य तथा आर्थिक चुनौतियों पर विचारों का आदान-प्रदान किया गया।

प्रमुख बिंदु:

  • भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा लाओस में महामारी के प्रसार को रोकने की दिशा में लाओस की ‘लाओ पीपुल्स डेमोक्रेटिक रिपब्लिक’ (Lao People’s Democratic Republic- Lao PDR) सरकार द्वारा उठाए गए कदमों की सराहना की गई।
  • दोनों देशों के शीर्ष नेताओं ने अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता तथा COVID-19 महामारी के प्रबंधन की दिशा में सर्वोत्तम प्रथाओं तथा अनुभवों को साझा करने पर सहमति व्यक्त की है। 
  • वार्ता के दौरान दोनों देशों के शीर्ष नेताओं द्वारा ऐतिहासिक तथा सांस्कृतिक संबंधों की भी चर्चा की गई ।

लाओस:

Laos

  • लाओस, दक्षिण पूर्व एशिया में एकमात्र स्थलबद्ध (Landlocked) देश है।
  • मेकांग नदी यहाँ के कार्गो तथा यात्रियों के परिवहन का प्रमुख मार्ग है। 
  • लाओस वर्ष 1953 में फ्रांँसीसी शासन की समाप्ति के बाद स्वतंत्र हुआ। परंतु लंबे समय तक साम्यवाद से प्रभावित रहा। 
  • लाओस वर्ष 1997 में ‘दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के संगठन’ (Association of Southeast Asian Nations- ASEAN) का तथा वर्ष 2013 में ‘विश्व व्यापार संगठन’ (World Trade Organisation- WTO) का सदस्य बना।
  • लाओस एक गरीब देश है जिसकी 80% जनसंख्या कृषि संबंधित कार्यों में संलग्न हैं। हालाँकि यहाँ जल विद्युत की अपार संभावना होने के कारण लाओस स्वयं को ‘दक्षिण पूर्व एशिया की बैटरी' (Battery of Southeast Asia) के रूप में देखता है।

भारत-लाओस संबंध:

  • राजनीतिक:
    • फरवरी, 1956 में दोनों देशों के मध्य राजनीतिक संबंधों की स्थापना के बाद दोनों देशों के बीच शीर्ष नेताओं द्वारा कई बार उच्च स्तरीय यात्राएँ की गई है।
    • सितंबर 2016 में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा वियतनाम की यात्रा की गई थी। इसके बाद जनवरी, 2018 में लाओस के प्रधानमंत्री द्वारा भारत की राजनीतिक यात्रा की गई।
    • 19-20 जुलाई, 2018 से ‘दिल्ली संवाद’ के 10वें  संस्करण में लाओस के उप विदेश मंत्री द्वारा हिस्सा लिया गया।
    • लाओ पीडीआर (Lao PDR) के प्रतिनिधिमंडल द्वारा 'ब्लू इकोनॉमी' पर भारत द्वारा आयोजित कार्यशाला में भाग लिया गया।
  • सुरक्षा:
    • वर्ष 1994 से 'भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग' (Indian Technical and Economic Cooperation- ITEC) समझौते के तहत दो सदस्यीय भारतीय सेना प्रशिक्षण दल ने लाओस के रक्षा कर्मियों के लिये प्रशिक्षण आयोजित कर रहा है।
  • आर्थिक:
    • दोनों देशों द्वारा लाओस के लिये कृषि क्षेत्र से जुड़ी तीन त्वरित प्रभाव परियोजनाओं (Quick Impact Projects- QIP) के समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया गया है।
    • भारत द्वारा वर्तमान में लाओस की अनेक परियोजनाओं के लिये ऋण देकर समर्थन दिया जा रहा है।

व्यापारिक:

व्यापार 

वर्ष 2017-2018 (मिलियन डॉलर में)

भारत का निर्यात 

25.00

भारत का आयात 

168.63

कुल व्यापार 

193.63

सांस्कृतिक संबंध:

  • भारत सरकार विभिन्न योजनाओं के तहत प्रतिवर्ष लगभग 120 प्रकार की छात्रवृत्ति प्रदान कर रहा है।
  • वर्ष 2007 में दोनों देशों द्वारा लाओस के वट फु (Vat Phu) में स्थित एक प्राचीन शिव मंदिर; जो कि 'यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल' सूची में शामिल है, की पुर्नबहाली करने के लिये भारत सरकार के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गए थे। 
  • दोनों देश प्रचीन बौद्ध सभ्यता को साझा करते हैं। लाओ पीडीआर के राष्ट्रीय प्रतीक, थलंग लुपा स्तूप (That Luang Stupa); जो भगवान बुद्ध से संबंधित है, की पुर्नबहाली करने के लिये भी एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गए थे। 

आगे की राह:

  • लाओस भारत के विस्तारित पड़ोस (Extended Neighborhood) का एक हिस्सा है क्योंकि केवल म्यांमार, लाओस को भारत के उत्तर-पूर्व राज्यों से अलग करता है।
    • इसलिये हमें यह सुनिश्चित करना चाहिये कि लाओस के लिये हमारी प्रस्तावित परियोजनाएँ समय पर पूरी हो।
  • भारतीय कंपनियाँ जो कृषि एवं कृषि प्रसंस्करण के लिये निवेश करना चाहती हैं, उनके लिये लाओस एक बेहतर देश है। 

स्रोत: पीआईबी


शासन व्यवस्था

सहकार मित्र: इंटर्नशिप कार्यक्रम पर योजना

प्रीलिम्स के लिये: 

सहकार मित्र: इंटर्नशिप कार्यक्रम पर योजना, राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम

मेन्स के लिये:

युवाओं को आत्मनिर्भर बनाने हेतु सरकार द्वारा किये गए प्रयास

चर्चा में क्यों:

हाल ही में ‘कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय’ (Ministry of Agriculture & Farmers Welfare) द्वारा ‘राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम’ (National Cooperative Development Corporation- NCDC) की पहल ‘सहकार मित्र: इंटर्नशिप कार्यक्रम पर योजना’ (Sahakar Mitra: Scheme on Internship Programme)  का शुभारंभ किया गया।

प्रमुख बिंदु:

  • देश को ‘आत्मनिर्भर भारत’ बनाने के प्रधानमंत्री के आह्वान के तहत स्‍वदेशी उत्‍पादों के प्रचार से संबंधी मुद्दों को ध्यान में रखते हुए ‘सहकार मित्र: इंटर्नशिप कार्यक्रम पर योजना का शुभारंभ किया गया है। 
  • गौरतलब है कि ‘सहकार मित्र: इंटर्नशिप कार्यक्रम पर योजना’ के तहत ‘राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम (NCDC)’ ने क्षमता विकास, युवाओं को सवेतन इंटर्नशिप और स्टार्ट-अप मोड में युवा सहकारी कार्यकर्त्ताओं को उदार शर्तों पर सुनिश्चित परियोजना ऋणों के माध्‍यम से सहकारी क्षेत्र संबंधी उद्यमिता विकास परिवेश में अनेक पहलें की हैं। 
  • ‘सहकार मित्र: इंटर्नशिप कार्यक्रम पर योजना’ शैक्षणिक संस्थानों के पेशेवरों को ‘किसान उत्पादक संगठनों’ (Farmers Producers Organizations- FPO) के रूप में सहकारी समितियों के माध्यम से नेतृत्त्व और उद्यमशीलता की भूमिकाओं को विकसित करने का अवसर प्रदान करेगी। 
  • सहकार मित्र योजना युवा पेशेवरों के नवीन विचारों तक सहकारी संस्थाओं की पहुँच बनाने में मददगार साबित हो सकती है। इसके साथ ही युवाओं को ‘फिल्ड वर्क’ (क्षेत्र में कार्य करना) का अनुभव प्राप्‍त होगा जो उन्‍हें आत्मनिर्भर होने का विश्वास दिलाएगा। 
  • NCDC ने सहकार मित्र सवेतन इंटर्नशिप कार्यक्रम हेतु अलग से धनराशि आवंटित की है जिसके तहत प्रत्येक इंटर्न को 4 माह की इंटर्नशिप अवधि के दौरान वित्तीय सहायता दी जाएगी।
  • NCDC ने स्टार्ट-अप सहकारी उपक्रमों को बढ़ावा देने के लिये एक पूरक योजना की भी शुरुआत की है। 

पात्रता:

  • कृषि एवं संबद्ध क्षेत्रों और आईटी जैसे विषयों के पेशेवर स्नातक ‘इंटर्नशिप’ के लिये पात्र होंगे।
  • कृषि-व्यवसाय, सहयोग, वित्त, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, वानिकी, ग्रामीण विकास, परियोजना प्रबंधन, इत्‍यादि में एमबीए की डिग्री के लिये पढ़ाई कर रहे या अपनी पढ़ाई पूरी कर चुके युवा भी इसके लिये पात्र होंगे।

उद्देश्य:

  • NCDC और सहकारी समितियों के कामकाज से युवाओं को व्यावहारिक अनुभव प्राप्‍त करने एवं सीखने का अवसर मिलेगा।
  • युवाओं को आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए ‘सहकार मित्र: इंटर्नशिप कार्यक्रम पर योजना’ का शुभारंभ किया गया है।

राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम (National Cooperative Development Corporation- NCDC)

  • राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम की स्थापना वर्ष 1963 में संसद के एक अधिनियम द्वारा कृषि एवं कि‍सान कल्‍याण मंत्रालय के अंतर्गत एक सांविधिक निगम के रुप में की गई थी।
  • एनसीडीसी का उद्देश्य कृषि उत्पादन, खाद्य पदार्थों, औद्योगिक वस्तुओं, पशुधन और सहकारी सिद्धांतों पर उत्पादित कुछ अन्य अधिसूचित वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन, प्रसंस्करण, विपणन, भंडारण, निर्यात और आयात तथा इससे संबंधित या आकस्मिक मामलों के लिये कार्यक्रमों की योजना बनाना और उनका संवर्द्धन करना है।

स्रोत: पीआईबी


भारतीय अर्थव्यवस्था

‘राइट्स इश्यू’ और महामारी का संकट

प्रीलिम्स के लिये

राइट्स इश्यू

मेन्स के लिये

मौजूदा परिदृश्य में ‘राइट्स इश्यू’ का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में रिलायंस इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड (Reliance Industries Limited) ने ‘राइट्स इश्यू’ (Rights Issue) तंत्र का प्रयोग करते हुए 53,124 करोड़ रुपए की पूंजी प्राप्त की है। इसके अतिरिक्त महिंद्रा फाइनेंस और टाटा पॉवर जैसी कई अन्य कंपनियाँ भी ‘राइट्स इश्यू’ के माध्यम से अतिरिक्त पूंजी जुटाने का विचार कर रही हैं।

‘राइट्स इश्यू’ का अर्थ

  • ‘राइट्स इश्यू’ का अभिप्राय एक ऐसे तंत्र से होता है जिसके द्वारा कंपनियाँ अपने मौजूदा शेयरधारकों से अतिरिक्त पूंजी जुटा सकती हैं।
  • इस तंत्र का प्रयोग स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध कंपनियों द्वारा किया जाता है और इसके ज़रिये कंपनी अपने शेयरधारकों को अतिरिक्त शेयर खरीदने का मौका देती हैं।
  • विशेषज्ञ के अनुसार, ‘राइट्स इश्यू’ तंत्र फंड जुटाने के लिये एक अधिक लोकतांत्रिक दृष्टिकोण है क्योंकि यह मौजूदा शेयरधारकों को कंपनी में पहले निवेश करने का अधिकार देता है।
  • ‘राइट्स इश्यू’ के लिये एक तारीख निर्धारित की जाती है, जिसकी घोषणा स्वयं कंपनी द्वारा की जाती है, इस निश्चित तारीख पर ही अतिरिक्त शेयर खरीदने का अवसर दिया जाता है।

मौजूदा समय में ‘राइट्स इश्यू’ का महत्त्व

  • नियमों के अनुसार, किसी भी कंपनी को ‘राइट्स इश्यू’ तंत्र का प्रयोग कर धन जुटाने के लिये शेयरधारकों की बैठक की आवश्यकता नहीं होती है और केवल निदेशक मंडल (Board of Directors) से अनुमोदन प्राप्त करना ही काफी होता है।
  • इसीलिये इस तंत्र के माध्यम से पूंजी जुटाना अपेक्षाकृत काफी आसान होता है और इसमें अधिक समय भी नहीं लगता है, जो कि मौजूदा परिस्थितियों के अनुकूल है, जबकि पूंजी जुटाने के अन्य माध्यमों के अंतर्गत शेयरधारकों के अनुमोदन की आवश्यकता होती है, जिसके लिये काफी समय की आवश्यकता होती है।
  • इस प्रकार हम ‘राइट्स इश्यू’ को पूंजी जुटाने का एक अधिक कुशल तंत्र कह सकते हैं।

‘राइट्स इश्यू’ से संबंधित सुधार

  • गौरतलब है कि बीते एक वर्ष में SEBI ने ‘राइट्स इश्यू’ प्रक्रिया में सुधार के लिये कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाए हैं। जहाँ एक ओर SEBI द्वारा इस तंत्र को लेकर कुछ स्थायी सुधार किये गए हैं, वहीं कुछ सुधार मौजूदा COVID-19 महामारी के कारण किये गए हैं, जो कि अस्थायी हैं।
  • COVID-19 के मद्देनज़र लिये गए निर्णय
    • कंपनियों के लिये मौजूदा संकट के दौरान धन जुटाने की प्रक्रिया को आसान बनाने के उद्देश्य से SEBI ने 31 मार्च, 2021 या उससे पूर्व ‘राइट्स इश्यू’ प्रक्रिया को शुरू करने वाली कंपनियों के लिये दिशा-निर्देशों को कुछ शिथिल किया है।
    • सार्वजनिक शेयरधारिता के औसत बाज़ार पूंजीकरण की पात्रता आवश्यकता को 250 करोड़ रुपए से घटाकर 100 करोड़ रुपए कर दिया गया है।
    • इसके अतिरिक्त ‘राइट्स इश्यू’ के माध्यम से 25 करोड़ रुपए तक की धनराशि एकत्रित करने वाली सूचीबद्ध संस्थाओं को अब SEBI के समक्ष ड्राफ्ट ऑफर डॉक्यूमेंट (Draft Offer Document) को दाखिल करने की आवश्यकता नहीं है। 
    • ‘ड्राफ्ट ऑफर डॉक्यूमेंट’ का अभिप्राय उस पहले दस्तावेज़ से होता है, जो ‘राइट्स इश्यू’ अथवा किसी अन्य प्रक्रिया के माध्यम से धन जुटाने के लिये किसी कंपनी द्वारा SEBI तथा स्टॉक एक्सचेंज के समक्ष अनुमोदन के लिये प्रस्तुत किया जाता है। इस दस्तावेज़ में इस प्रक्रिया का विवरण शामिल होता है।
  • ‘राइट्स इश्यू’ के संबंध में स्थायी सुधार
    • बीते वर्ष नवंबर माह में SEBI ने ‘राइट्स इश्यू’ की प्रक्रिया में लगने वाले समय को 55 दिनों से घटाकर 31 कर दिया था, जिससे समय में कुल 40 प्रतिशत की कटौती हुई थी। इस कदम का लक्ष्य ‘राइट्स इश्यू’ प्रक्रिया को और अधिक कुशल बनाना था।
    • ‘राइट्स इश्यू’ की प्रक्रिया में लगने वाले समय को कम करने के लिये SEBI ने स्टॉक एक्सचेंजों को दी जाने वाली अग्रिम सूचना की अवधि को सात दिनों से घटाकर तीन दिन कर दिया था।
    • 22 जनवरी, 2020 को SEBI ने ‘राइट्स इश्यू’ की प्रक्रिया को बेहतर बनाने और शेयर एंटाइटलमेंट फ्रेमवर्क (Rights Entitlement Framework) को पेपररहित बनाने के लिये एक विस्तृत प्रक्रिया जारी की थी।

‘राइट्स इश्यू’ का उद्देश्य

  • कंपनियाँ पूंजी जुटाने के लिये ‘राइट्स इश्यू’ प्रक्रिया का प्रयोग करती हैं।
  • साथ ही कंपनियाँ अपने व्यवसाय का विस्तार करने और किसी अन्य कंपनी का अधिग्रहण करने हेतु पैसे जुटाने के लिये भी ‘राइट्स इश्यू’ का प्रयोग करती हैं।
  • इसके अतिरिक्त कुछ कंपनियाँ अपने कर्ज को कम करने के लिये भी ‘राइट्स इश्यू’ का प्रयोग करती हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

राजस्व गिरावट एवं जीएसटी परिषद

प्रीलिम्स के लिये: 

गुड्स एंड सर्विसेज़ टैक्स, उपकर 

मेन्स के लिये 

वर्तमान परिदृश्य में जीएसटी अधिनियम का महत्त्व 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘गुड्स एंड सर्विसेज़  टैक्स  काउंसिल’ ( Goods and Services Tax- GST Council) द्वारा केंद्र तथा राज्यों के मध्य बड़े पैमाने पर आई राजस्व में कमी को लेकर जुलाई में ‘एकल-बिंदु एजेंडा’ (Single-Point Agenda) बैठक को आयोजित करने का निर्णय लिया गया है

प्रमुख बिंदु:

  • इस बैठक में परिषद द्वारा धन जुटाने तथा  गुड्स एंड सर्विसेज़ टैक्स के नुकसान की भरपाई करने के तरीकों में से एक, बाज़ार ऋण को लेने पर चर्चा की जाएगी। 
  • जीएसटी अधिनियम’ में इस बात की गारंटी दी गई है कि जीएसटी कार्यान्वयन (2017-2022) के पहले पाँच वर्षों में राजस्व में किसी भी नुकसान की भरपाई को उपकर (Cess) के माध्यम से पूरा किया जाएगा।
    • उपकर कर के ऊपर लगाया जाने वाला कर है। सामान्यत: इसे किसी विशिष्ट उद्देश्यों की पूर्ति के लिये लगाया जाता है।
  • जीएसटी अधिनियम के तहत यदि राज्यों का वास्तविक राजस्व अनुमानित राजस्व से कम संग्रहित होता है, तो इस अंतर की भरपाई की जाएगी।
  • आधार वर्ष 2015-16 पर राज्यों के लिये अनुमानित राजस्व में हर वर्ष 14 प्रतिशत की वृद्धि होती है।
  • चालू वित्त वर्ष (2020-21) के पहले दो माह  में, राज्यों तथा केंद्र द्वारा जीएसटी द्वारा कुल राजस्व संग्रह मासिक लक्ष्य का केवल 45 प्रतिशत ही रहा है।
  • राज्यों द्वारा संग्रहित राजस्व लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए वर्ष 2020-21 के लिये, संयुक्त मासिक जीएसटी राजस्व लक्ष्य अनुमानित बजट अनुमान का 1.21 लाख करोड़ रुपये निर्धारित किया गया है।
  • वर्ष 2017 में आयोजित  GST काउंसिल की 8 वीं बैठक में राज्यों द्वारा ऋण लेने के विकल्प पर चर्चा की गई।
  • इस बैठक में राज्यों द्वारा बाज़ार से उधार लेने तथा अतिरिक्त संसाधन जुटाने के तरीकों को जीएसटी परिषद द्वारा निश्चित किया जाना तय किया गया। जिसकी वापसी छठे वर्ष या उसके बाद के वर्षों में उपकर के संग्रह द्वारा की जा सकती है। 
  • जीएसटी क्षतिपूर्ति कानून में प्रावधान है कि परिषद द्वारा अनुशंसित अन्य राशियों को उपकर की कमी के लिये प्रदान किया जाएगा।
  • राज्यों को मुआवज़ा उस उपकर राशि से प्रदान किया जाना है जो क्षतिपूर्ति कोष में जमा होती है।

वर्तमान परिदृष्य में जीएसटी परिषद का निर्णय:

  • जीएसटी परिषद द्वारा 5 करोड़ रुपए  तक के टर्नओवर वाले छोटे करदाताओं को रिटर्न दाखिल करने से संबंधित राहत प्रदान की गई है।
  • छोटे करदाताओं द्वारा फरवरी, मार्च तथा अप्रैल माह में जीएसटी रिटर्न दाखिल करने में हुई देरी के बावज़ूद 9 प्रतिशत तक कम दर पर किया गया है, बशर्ते रिटर्न सितंबर 2020 तक दाखिल किया जाना चाहिये। 
  • बिना किसी ब्याज या विलंब शुल्क के मई, जून और जुलाई माह के लिये रिटर्न भरने की समय सीमा को सितंबर तक बढ़ा दिया गया है।

आगे की राह: 

वर्तमान समय में राज्यों के राजस्व संग्रह में आई कमी परिस्थितिजन्य अधिक है अतः इस क्षतिपूर्ति के समाधान पर चर्चा जुलाई में होने वाली बैठक का मुख्य मुद्दा होगा। 

हालांकि सरकार द्वारा राज्यों के हितों को ध्यान में रखते हुए इस दिशा में कुछ कदम उठाए  गए है जिनके चलते सरकार द्वारा जीएसटी के मोर्चे पर कुछ राहत प्रदान की गई है जैसे-.जीएसटी रिटर्न फाइलिंग में ढील दी, बड़ी कंपनियों को विलंब शुल्क तथा जुर्माने से छूट इत्यादि।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 13 जून, 2020

अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायालय के अधिकारियों पर प्रतिबंध 

हाल ही में अमेरिकी प्रशासन ने अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायालय (International Criminal Court-ICC) के उन कर्मचारियों के विरुद्ध प्रतिबंधों की घोषणा की है, जो अमेरिकी सैनिकों और खुफिया अधिकारियों तथा इज़रायल समेत संबद्ध राष्ट्रों की अफगानिस्तान एवं अन्य जगहों पर संभावित युद्ध अपराधों की जाँच कर रहे हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस संबंध में घोषणा करते हुए कहा कि हेग (Hague) स्थित अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायालय (ICC) अमेरिका की प्रभुता को तोड़ने की कोशिश कर रहा है। अमेरिकी प्रशासन के इस आदेश के माध्यम से उन लोगों की अमेरिकी संपत्ति जब्त कर ली जाएगी जो ICC की जाँच में सहायता कर रहे हैं। वहीं ऐसे लोगों एवं इनके परिवारजनों को अमेरिका से बाहर जाने की अनुमति भी नहीं दी जाएगी। वहीं अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायालय (ICC) ने इस संबंध में अपनी प्रतिक्रिया देते हुए स्पष्ट किया कि ‘संपत्ति जब्त करने और यात्रा पर रोक लगाने जैसे प्रतिबंध मानवाधिकार उल्लंघनकर्त्ताओं के लिये होते हैं, न कि पीड़ितों को न्याय दिलाने वालों के लिये।’ हेग स्थित अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायालय विश्व की शीर्ष वैधानिक संस्था है जिसके पास नरसंहार, मानवता के विरुद्ध अपराधों तथा युद्ध अपराधों के मामलों में अभियोग चलाने का स्थायी अंतर्राष्ट्रीय न्यायाधिकार है। इसकी स्थापना ‘रोम संविधि’ (Rome Statute) के अंतर्गत वर्ष 1998 में हुई थी।

भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण

सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के अधीन भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (National Highway Authority of India- NHAI) यूनिक क्लाउड आधारित एवं आर्टिफिासियल इंटेलीजेंस (AI) द्वारा संचालित बिग डाटा एनालिटिक्स प्लेटफॉर्म एवं प्रोजेक्ट मैनेजमेंट साफ्टवेयर के लॉन्च के साथ पूर्ण रूप से डिजिटल संगठन बन गया है। NHAI का समस्त कार्य अब ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से किया जा रहा है। सभी परियोजना दस्तावेज़ीकरण, अनुबंधात्मक निर्णय एवं मंज़ूरी अब केवल पोर्टल के माध्यम से ही किये जा रहे हैं। NHAI का डिजिटलीकरण निर्माण कार्य को त्वरित करने के अतिरिक्त, यह सटीक एवं सही समय पर निर्णय लिये जाने को भी सुगम बनाएगा। उल्लेखनीय है कि मौजूदा COVID-19 महामारी के परिदृश्य में लगभग सभी संगठनों का कामकाज लगभग पूरी तरह से रुक गया है, ऐसे में पूर्ण रूप से डिजिटल होना भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) को बिना किसी असुविधा के कार्य करने के लिये प्रेरित करेगा। भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) का गठन भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण अधिनियम, 1988 के तहत राष्ट्रीय राजमार्गों के विकास, अनुरक्षण एवं प्रबंधन को ध्यान में रखते हुए किया गया था। भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण को अन्य छोटी परियोजनाओं सहित, राष्ट्रीय राजमार्ग विकास परियोजना का कार्य सौंपा गया है।

बिश्वजीत दासगुप्ता

हाल ही में वाइस एडमिरल बिश्वजीत दासगुप्ता (Biswajit Dasgupta) ने पूर्वी नौसेना कमान (Eastern Naval Command-ENC) में चीफ ऑफ स्टाफ (Chief of Staff) के रूप में कार्यभार संभाला है। वह वाइस एडमिरल एस. एन. घोरमाडे (S N Ghormade) का स्थान लेंगे। वाइस एडमिरल बिश्वजीत दासगुप्ता राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (National Defence Academy) के पूर्व छात्र रहे हैं। उन्हें वर्ष 1985 में भारतीय नौसेना में तैनाती मिली थी और वह नौवहन और डायरेक्शन (Navigation and Direction) में विशेषज्ञ हैं। वाइस एडमिरल बिश्वजीत दासगुप्ता ने मिसाइल वाहक INS निशंक, INS कार्मुक, INS ताबर और विमान वाहक युद्धपोत INS विराट समेत चार अग्रणी जहाज़ों का नेतृत्त्व किया है। वर्ष 2017-18 के दौरान उन्होंने विशाखापट्टनम में प्रतिष्ठित ईस्टर्न फ्लीट (Eastern Fleet) की कमान संभाली थी और उसके बाद उन्हें NCC मुख्यालय में अतिरिक्त महानिदेशक के तौर पर नियुक्त किया गया था। एडमिरल बिश्वजीत दासगुप्ता को उनकी विशिष्ट सेवा के लिये अति विशिष्ट सेवा पदक (AVSM) और विशिष्ट सेवा पदक (VSM) प्राप्त हो चुका है।

गुलज़ार देहलवी

हाल ही में प्रसिद्ध उर्दू शायर गुलज़ार देहलवी (Gulzar Dehlavi) का 93 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है। गुलज़ार देहलवी का असली नाम आनंद मोहन जुत्शी (Anand Mohan Zutshi) था, गुलज़ार देहलवी का जन्म 07 जुलाई, 1926 को पुरानी दिल्ली के गली कश्मीरियां (Gali Kashmirian) में हुआ था। गुलज़ार देहलवी ने दिल्ली विश्वविद्यालय (DU) से MA और LLB की पढ़ाई की थी। भारतीय स्वतंत्रता के पश्चात् जब भारत सरकार ने अंग्रेज़ी में साइंस रिपोर्टर (Science Reporter) और हिंदी में विज्ञान प्रगति (Vigyan Pargati) नाम से पत्रिकाएँ शुरू कीं, तो गुलज़ार देहलवी ने ही उर्दू में विज्ञान पत्रिका शुरू करने के पक्ष में आवाज़ उठाई और तत्कालीन शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने भी उनकी इस मांग का समर्थन किया था। वर्ष 1975 में भारत सरकार ने उर्दू में विज्ञान की पहली पत्रिका ‘साइंस की दुनिया' (Science ki Duniya) शुरू की और गुलज़ार देहलवी को बाद में उस पत्रिका का संपादक भी नियुक्त किया गया। गुलज़ार देहलवी का संबंध दिल्ली में बसे कश्मीरी पंडितों से हैं।


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