जैव विविधता और पर्यावरण
भारत में वाहनों से होने वाला उत्सर्जन
प्रिलिम्स के लिये:वाहन उत्सर्जन और इससे संबंधित मुद्दे। मेन्स के लिये:वाहनों से होने वाला उत्सर्जन और इसका प्रभाव, इस दिशा में उठाए गए प्रमुख कदम। |
चर्चा में क्यों?
वर्ष 2030 तक भारत में कारों की वार्षिक बिक्री मौजूदा 3.5 मिलियन से बढ़कर लगभग 10.5 मिलियन हो जाने का अनुमान है, जो की तीन गुना अधिक है, जिससे वाहनों से होने वाले उत्सर्जन में वृद्धि होगी।
- भारत वर्ष 2019 तक वाहन पंजीकरण के उच्चतम चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (10%) के साथ पाँचवां सबसे बड़ा वैश्विक कार निर्माता है।
प्रमुख बिंदु:
- भारत में वाहन उत्सर्जन:
- शहरी क्षेत्रों में वायु प्रदूषण का एक प्रमुख कारण वाहनों का उत्सर्जन है।
- आमतौर पर वाहनों से होने वाला उत्सर्जन वायु गुणवत्ता के श्वसन स्तर पर पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) 2.5 का 20-30% योगदान देता है।
- PM2.5 उन कणों को संदर्भित करता है जिनका व्यास 2.5 माइक्रोमीटर से कम होता है (मानव बाल की तुलना में 100 गुना अधिक पतला) और लंबे समय तक निलंबित रहता है।
- अध्ययनों के अनुसार, वाहन हर वर्ष PM2.5 के लगभग 290 गीगाग्राम (Gg) का उत्सर्जन करते हैं।
- साथ ही भारत में कुल ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) उत्सर्जन का लगभग 8% परिवहन क्षेत्र से होता है और दिल्ली में यह 30% से अधिक है।
- वाहन उत्सर्जन (विश्व):
- परिवहन क्षेत्र कुल उत्सर्जन का एक-चौथाई हिस्सा है, जिसमें से सड़क परिवहन तीन-चौथाई उत्सर्जन ( कुल वैश्विक CO2 उत्सर्जन का 15%) के लिये ज़िम्मेदार है।
- इसका सबसे बड़ा हिस्सा यात्री वाहन हैं, जो लगभग 45% CO2 उत्सर्जित करते हैं।
- यदि यही स्थिति बनी रही तो वर्ष 2020 की तुलना में वर्ष 2050 में वार्षिक जीएचजी उत्सर्जन 90% अधिक होगा।
- उत्सर्जन कम करने की दिशा में भारत से संबधित मुद्दे:
- भारत में ईंधन की गुणवत्ता में बदलाव, आंतरिक दहन इंजन (internal Combustion Engines- ICE) की निकास उपचार प्रणाली, वाहन खंडों के विद्युतीकरण और हाइड्रोजन से चलने वाले वाहनों की दिशा में उठाए गए कदमों के साथ वाहन प्रौद्योगिकी तेज़ी से बदल रही है।
- लेकिन ICE वाहनों की वर्ष 2040 तक पर्याप्त हिस्सेदारी होने की संभावना है।
- इसके लिये न केवल उत्सर्जन मानकों को सख्त करने की आवश्यकता है बल्कि विश्व में उत्सर्जन को कम करने हेतु वाहनों के परीक्षण के लिये तकनीकी मानकों में संशोधन की भी आवश्यकता है।
- उत्सर्जन परीक्षण की विधि:
- अधिकांश देशों ने विनिर्माण चरण और उपयोग के दौरान वाहनों के परीक्षण हेतु नियम तैयार किये हैं।
- वाहन प्रमाणन प्रक्रियाओं के तहत प्रयोगशाला में ‘इंजन चेसिस डायनेमोमीटर’ पर इंजन प्रदर्शन परीक्षण और उत्सर्जन अनुपालन शामिल होता है।
- इसके पश्चात् स्वीकार्य परीक्षण परिणाम प्राप्त करने हेतु ‘ड्राइव साइकल’ (गति और समय के निरंतर डेटा बिंदुओं की एक शृंखला जो त्वरण, मंदी और निष्क्रियता के संदर्भ में ड्राइविंग पैटर्न का अनुमान लगाती है) का भी प्रयोग किया जाता है।
- इसके माध्यम से वाहनों की वास्तविक ड्राइविंग स्थिति जानने में मदद मिलती है, जिससे उनसे होने वाले उत्सर्जन के बारे में भी पता चलता है।
- भारत द्वारा तैयार की गई परीक्षण विधियाँ:
- ‘इंडियन ड्राइव साइकल’ (IDC) व्यापक सड़क परीक्षणों के आधार पर भारत में वाहन परीक्षण और प्रमाणन हेतु तैयार किया गया पहला ‘ड्राइविंग साइकल’ था।
- ‘इंडियन ड्राइव साइकल’ एक छोटा सा चक्र था, जिसमें 108 सेकंड के छह ड्राइविंग मोड शामिल थे (त्वरण, मंदी और निष्क्रियता के एक पैटर्न को दर्शाते हुए)।
- किंतु IDC के तहत उन सभी जटिल ड्राइविंग स्थितियों को शामिल नहीं किया गया था, जो प्रायः आमतौर पर भारतीय सड़कों पर देखी जाती हैं।
- इसके बाद IDC में सुधार के रूप में ‘मॉडिफाइड इंडियन ड्राइव साइकल’ (MIDC) को अपनाया गया, जिसमें शामिल मानक ‘न्यू यूरोपियन ड्राइविंग साइकल’ (NEDC) के समान हैं।
- MIDC के तहत व्यापक ड्राइविंग मोड शामिल हैं और यह IDC की तुलना में काफी बेहतर है।
- साथ ही MIDC व्यावहारिक दुनिया में ड्राइविंग के दौरान देखी गईं विभिन्न स्थितियों को काफी बेहतर ढंग से कवर करता है।
- हालाँकि सुधारों के बावजूद, MIDC अभी भी यातायात घनत्व, भूमि उपयोग पैटर्न, सड़क बुनियादी अवसंरचना और खराब यातायात प्रबंधन में भिन्नता के कारण ऑन-रोड स्थितियों के दौरान वाहनों के उत्सर्जन का पर्याप्त रूप से प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता है।
- इसलिये ‘वर्ल्डवाइड हार्मोनाइज़्ड लाइट व्हीकल टेस्ट प्रोसीजर’ (WLTP) को अपनाना आवश्यक हो गया है, जो कि आंतरिक दहन इंजन और हाइब्रिड कारों से प्रदूषकों के स्तर को निर्धारित करने हेतु एक वैश्विक मानक है।
- ‘इंडियन ड्राइव साइकल’ (IDC) व्यापक सड़क परीक्षणों के आधार पर भारत में वाहन परीक्षण और प्रमाणन हेतु तैयार किया गया पहला ‘ड्राइविंग साइकल’ था।
- व्यावहारिक दुनिया में उत्सर्जन का मापन:
- ‘वास्तविक ड्राइविंग उत्सर्जन’ (RDE) परीक्षणों को लेकर यूरोपीय आयोग, संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन का सुझाव है कि ‘ड्राइविंग साइकल’ व प्रयोगशाला परीक्षण वास्तविक ड्राइविंग स्थितियों के दौरान संभावित उत्सर्जन को प्रतिबिंबित नहीं करते हैं, क्योंकि वास्तविक स्थितिययाँ प्रयोगशाला ड्राइविंग परीक्षण की तुलना में अधिक जटिल होती हैं।
- ‘वास्तविक ड्राइविंग उत्सर्जन’ (RDE) ‘वर्ल्डवाइड हार्मोनाइज़्ड लाइट व्हीकल टेस्ट प्रोसीजर’ और समकक्ष प्रयोगशाला परीक्षणों की सीमाओं को समाप्त करने हेतु एक स्वतंत्र परीक्षण है, जिसके तहत माना जाता है कि सार्वजनिक सड़कों पर कोई कार कई तरह की परिस्थितियों का सामना करती है।
- भारत में ऑटोमोटिव टेक्नोलॉजी के लिये अंतर्राष्ट्रीय केंद्र वर्तमान में आरडीई प्रक्रियाओं का विकास कर रहा है, जिनके वर्ष 2023 में लागू होने की संभावना है।
- आरडीई चक्र को देश में प्रचलित स्थितियों, जैसे कम और अधिक ऊँचाई, साल भर तापमान, अतिरिक्त वाहन पेलोड, ड्राइविंग, शहरी और ग्रामीण सड़कों व राजमार्गों के प्रति उत्तरदायी होना चाहिये।
- ‘वास्तविक ड्राइविंग उत्सर्जन’ (RDE) परीक्षणों को लेकर यूरोपीय आयोग, संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन का सुझाव है कि ‘ड्राइविंग साइकल’ व प्रयोगशाला परीक्षण वास्तविक ड्राइविंग स्थितियों के दौरान संभावित उत्सर्जन को प्रतिबिंबित नहीं करते हैं, क्योंकि वास्तविक स्थितिययाँ प्रयोगशाला ड्राइविंग परीक्षण की तुलना में अधिक जटिल होती हैं।
भारत में उत्सर्जन कम करने की पहल:
- भारत स्टेज- IV (BS-IV) से भारत स्टेज-VI (BS-VI) उत्सर्जन मानदंडों में बदलाव:
- भारत चरण (बीएस) उत्सर्जन मानकों को सरकार द्वारा मोटर वाहनों सहित आंतरिक दहन इंजन और स्पार्क-इग्निशन इंजन उपकरण से वायु प्रदूषकों के उत्पादन को विनियमित करने के लिये निर्धारित किया गया है।
- केंद्र सरकार ने अनिवार्य किया है कि वाहन निर्माताओं को 1 अप्रैल 2020 से केवल BS-VI (BS-6) वाहनों का निर्माण, बिक्री और पंजीकरण करना होगा।
- 2025 तक भारत में इथेनॉल सम्मिश्रण का रोडमैप:
- रोडमैप में अप्रैल 2022 तक E10 ईंधन की आपूर्ति करने के लिये इथेनॉल-मिश्रित ईंधन के क्रमिक प्रयोग और अप्रैल 2023 से अप्रैल 2025 तक E20 के चरणबद्ध प्रयोग का प्रस्ताव है।
- हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक वाहन (FAME) योजना का तेज़ी से अंगीकरण और निर्माण:
- FAME India योजना का उद्देश्य सभी वाहन खंडों को प्रोत्साहित करना है।
- योजना के दो चरण:
- चरण I: वर्ष 2015 में शुरू हुआ और 31 मार्च, 2019 को पूरा हुआ
- चरण II: अप्रैल, 2019 से शुरू होकर 31 मार्च, 2024 तक पूरा किया जाएगा।
- राष्ट्रीय हाइड्रोजन ऊर्जा मिशन:
- इसका उद्देश्य प्रौद्योगिकी, नीति और विनियमन में वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं के साथ भारत के प्रयासों को संरेखित करते हुए कार्बन उत्सर्जन में कटौती तथा ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों के उपयोग में वृद्धि करना है।
स्रोत-डाउन टू अर्थ
भारतीय अर्थव्यवस्था
त्रैमासिक रोज़गार सर्वेक्षण
प्रिलिम्स के लिये:अखिल भारतीय त्रैमासिक रोज़गार सर्वेक्षण, आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण, अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन, रोज़गार नीति सम्मेलन। मेन्स के लिये:राष्ट्रीय रोज़गार नीति |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में श्रम और रोज़गार मंत्रालय के श्रम ब्यूरो द्वारा वर्ष 2021 की दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) के लिये त्रैमासिक रोज़गार सर्वेक्षण (Quarterly Employment Survey- QES) के परिणाम जारी किये गए हैं।
- जुलाई-सितंबर 2021 की तिमाही में नौ चुनिंदा क्षेत्रों द्वारा सृजित कुल रोज़गार 3.10 करोड़ था, जो अप्रैल-जून की अवधि की तुलना में 2 लाख अधिक है।
प्रमुख बिंदु
- QES के बारे में:
- त्रैमासिक रोज़गार सर्वेक्षण’ (QES) ‘ऑल-इंडिया क्वार्टरली एस्टेब्लिश्मेंट-बेस्ड एम्प्लॉयमेंट सर्वे’ (All-India Quarterly Establishment-based Employment Survey- AQEES) का हिस्सा है।
- इसमें कुल 9 क्षेत्रों के संगठित खंड में 10 या अधिक श्रमिकों को रोज़गार देने वाले प्रतिष्ठान शामिल हैं।
- ये 9 क्षेत्र हैं- विनिर्माण, निर्माण, व्यापार, परिवहन, शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास एवं रेस्तराँ, आईटी/बीपीओ और वित्तीय सेवा गतिविधियाँ।
- इन क्षेत्रों में गैर-कृषि प्रतिष्ठानों में कुल रोज़गार का बहुमत मौजूद है।
- उद्देश्य: सरकार को ‘रोज़गार पर एक बेहतर राष्ट्रीय नीति’ तैयार करने में सक्षम बनाना।
- अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धता: इस सर्वेक्षण की शुरुआत ‘अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन’ (ILO) के ‘रोज़गार नीति सम्मेलन, 1964’ के भारत के अनुसमर्थन के तहत की गई है।
- इसके तहत अनुसमर्थन करने वाले देशों के लिये ‘पूर्ण, उत्पादक और स्वतंत्र रूप से चुने जाने रोज़गार को बढ़ावा देने हेतु डिज़ाइन की गई एक सक्रिय नीति’ को लागू करने की आवश्यकता है।
- भारत के पास अभी तक ‘राष्ट्रीय रोज़गार नीति’ (NEP) मौजूद नहीं है।
- त्रैमासिक रोज़गार सर्वेक्षण’ (QES) ‘ऑल-इंडिया क्वार्टरली एस्टेब्लिश्मेंट-बेस्ड एम्प्लॉयमेंट सर्वे’ (All-India Quarterly Establishment-based Employment Survey- AQEES) का हिस्सा है।
नोट:
- QES बनाम PLFS: जहाँ एक ओर ‘त्रैमासिक रोजगार सर्वेक्षण’ (QES) श्रम बाज़ार में मांग-पक्ष की तस्वीर पेश करता है, वहीं ‘राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण’ या ‘आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण’ (PLFS) श्रम बाज़ार की आपूर्ति पक्ष की तस्वीर प्रदान करता है।
- साथ ही PLFS का संचालन राष्ट्रीय सांख्यिकी संगठन (NSO), सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) द्वारा किया जाता है।
- अखिल भारतीय त्रैमासिक स्थापना आधारित रोजगार सर्वेक्षण (AQEES):
- श्रम ब्यूरो द्वारा जारी इस अखिल भारतीय त्रैमासिक स्थापना आधारित रोज़गार सर्वेक्षण (AQEES) को नौ चयनित क्षेत्रों के संगठित और असंगठित दोनों क्षेत्रों में रोज़गार एवं प्रतिष्ठानों के बारे में लगातार (तिमाही) अद्यतन सूचना प्रदान करने के लिए शुरू किया गया है।
- AQEES के दो घटक हैं:
- त्रैमासिक रोज़गार सर्वेक्षण (QES) और
- एरिया फ्रेम एस्टाब्लिश्मेंट सर्वे' (AFES)
- QES 10 या अधिक श्रमिकों को रोज़गार देने वाले प्रतिष्ठानों के लिये रोज़गार अनुमान प्रदान करेगा।
- AFES एक नमूना सर्वेक्षण के माध्यम से असंगठित क्षेत्र (10 से कम श्रमिकों के साथ) को कवर करता है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत-चीन-श्रीलंका ट्रायंगल
चर्चा में क्यों?
हाल ही में चीन के विदेश मंत्री (CFM) ने श्रीलंका का दौरा किया है।
- इस बैठक के दौरान चीन के विदेश मंत्री ने हिंद महासागर द्वीपीय राष्ट्रों के लिये एक मंच का प्रस्ताव रखा और यह भी कहा कि किसी भी ‘तृतीय पक्ष’ को चीन-श्रीलंका संबंधों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिये।
- यद्यपि ‘तृतीय-पक्ष’ के नाम का खुलासा नहीं किया गया, किंतु कई जानकार मानते हैं कि यह भारत के लिये कहा गया था।
प्रमुख बिंदु
- श्रीलंका यात्रा की मुख्य विशेषताएँ
- चीन के विदेश मंत्री की यात्रा में ऐतिहासिक ‘रबर-राइस पैक्ट’ (1952) की 70वीं वर्षगांँठ और चीन एवं श्रीलंका के बीच राजनयिक संबंधों की स्थापना की 65वीं वर्षगांँठ के अवसर पर समारोह शुरू करने की परिकल्पना की गई थी।
- रबर-राइस पैक्ट के तहत चीन ने रबड़ और अन्य आपूर्तियों के आयात हेतु प्रतिबद्धता ज़ाहिर की थी, क्योंकि श्रीलंका, जो कि रबड़ का एक प्रमुख निर्यातक है, चावल की कीमत में वृद्धि और रबड़ की कीमत में गिरावट का सामना कर रहा था।
- चीन के विदेश मंत्री द्वारा कोलंबो में कोलंबो पोर्ट सिटी और हंबनटोटा पोर्ट (श्रीलंका में) का जिक्र करते हुए इस बात पर जोर दिया गया कि दोनों पक्षों को इनका सही से उपयोग करना चाहिये।
- उन्होंने श्रीलंका से क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (Regional Comprehensive Economic Partnership- RCEP) की संभावनाओं पर विचार करने और मुक्त व्यापार समझौते पर बातचीत फिर से शुरू करने का आग्रह किया।
- सर्वसम्मति और तालमेल बनाने तथा विकास को बढ़ावा देने के लिये "हिंद महासागर द्वीप देशों के विकास पर एक मंच" भी प्रस्तावित किया गया था।
- चीन के विदेश मंत्री की यात्रा में ऐतिहासिक ‘रबर-राइस पैक्ट’ (1952) की 70वीं वर्षगांँठ और चीन एवं श्रीलंका के बीच राजनयिक संबंधों की स्थापना की 65वीं वर्षगांँठ के अवसर पर समारोह शुरू करने की परिकल्पना की गई थी।
- चीन-श्रीलंका संबंधों के बारे में:
- श्रीलंका का सबसे बड़ा ऋणदाता: चीन श्रीलंका का सबसे बड़ा द्विपक्षीय ऋणदाता है।
- श्रीलंका के सार्वजनिक क्षेत्र को चीन द्वारा प्रदत्त ऋण केंद्र सरकार के विदेशी ऋण का लगभग 15% है।
- श्रीलंका अपने विदेशी ऋण के बोझ को दूर करने के लिये चीनी ऋण पर बहुत अधिक निर्भर है।
- अवसंरचना परियोजनाओं में निवेश: चीन ने वर्ष 2006-19 के बीच श्रीलंका की बुनियादी ढांँचा परियोजनाओं में लगभग 12 अरब अमेरिकी डॉलर का निवेश किया है।
- छोटे राष्ट्रों के हितों में बदलाव: श्रीलंका का आर्थिक संकट इसे अपनी नीतियों को बीजिंग के हितों के साथ संरेखित करने के लिये आगे और बाध्य कर सकता है।
- हिंद महासागर में चीन का प्रभाव: चीन का दक्षिण एशिया और हिंद महासागर में दक्षिण पूर्व एशिया तथा प्रशांत क्षेत्र की तुलना में अधिक प्रभाव है।
- चीन को ताइवान के विरोध में, दक्षिण चीन सागर और पूर्वी एशिया में क्षेत्रीय विवादों व अमेरिका एवं ऑस्ट्रेलिया के साथ असंख्य संघर्षों का सामना करना पड़ रहा है।
- श्रीलंका का सबसे बड़ा ऋणदाता: चीन श्रीलंका का सबसे बड़ा द्विपक्षीय ऋणदाता है।
- भारत की चिंताएँ:
- सागर पहल का विरोध: प्रस्तावित हिंद महासागर द्वीपीय देशों के मंच ने भारत के प्रधानमंत्री की ‘सागर’ (Security and Growth for All in the Region- SAGAR) पहल के विरोध में आवाज उठाई।
- हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में एक सुरक्षा प्रदाता के रूप में भारत की रणनीतिक भूमिका है।
- विकास से संबंधित मुद्दे: 99 वर्ष के पट्टे के हिस्से के रूप में चीन का श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह पर औपचारिक नियंत्रण है।
- श्रीलंका ने कोलंबो बंदरगाह शहर के चारों ओर एक विशेष आर्थिक क्षेत्र और चीन द्वारा वित्तपोषित एक नया आर्थिक आयोग स्थापित करने का निर्णय लिया है।
- भारत के ट्रांस-शिपमेंट कार्गो का 60% कार्य कोलंबो बंदरगाह से होता है।
- हंबनटोटा और कोलंबो पोर्ट सिटी परियोजना को पट्टे पर देने से चीनी नौसेना की लिये हिंद महासागर में स्थायी उपस्थिति लगभग तय हो गई है जो भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये चिंताजनक है।
- भारत को घेरने की चीनी रणनीति को स्ट्रिंग्स ऑफ पर्ल्स स्ट्रैटेजी कहा गया है।
- भारत के पड़ोसियों पर प्रभाव: बांग्लादेश, नेपाल और मालदीव जैसे अन्य दक्षिण एशियाई देश भी बड़े पैमाने पर बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिये चीन की ओर रुख कर रहे हैं।
- सागर पहल का विरोध: प्रस्तावित हिंद महासागर द्वीपीय देशों के मंच ने भारत के प्रधानमंत्री की ‘सागर’ (Security and Growth for All in the Region- SAGAR) पहल के विरोध में आवाज उठाई।
आगे की राह
- सामरिक हितों का संरक्षण: श्रीलंका के साथ नेबरहुड फर्स्ट की नीति को पोषित करना भारत के लिये हिंद महासागर क्षेत्र में अपने रणनीतिक हितों को संरक्षित करने हेतु महत्त्वपूर्ण है।
- क्षेत्रीय मंचों का लाभ उठाना: बिम्सटेक, सार्क, सागर और आईओआरए जैसे प्लेटफार्मों का उपयोग प्रौद्योगिकी संचालित कृषि, समुद्री क्षेत्र के विकास, आईटी एवं संचार बुनियादी ढाँचे आदि जैसे क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा देने के लिये किया जा सकता है।
- चीन के विस्तार को रोकना: भारत को ज़ाफना में कांकेसंतुराई बंदरगाह और त्रिंकोमाली में तेल टैंक फार्म परियोजना पर काम करना जारी रखना होगा ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि चीन श्रीलंका में आगे कोई पैठ नहीं बना सके।
- दोनों देश आर्थिक लचीलापन पैदा करने के लिये निजी क्षेत्र के निवेश को बढ़ाने में भी सहयोग कर सकते हैं।
- भारत की सॉफ्ट पावर का लाभ उठाना: प्रौद्योगिकी क्षेत्र में भारत अपनी आईटी कंपनियों की उपस्थिति का विस्तार करके श्रीलंका में रोज़गार के अवसर पैदा कर सकता है।
- ये संगठन हजारों प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोज़गार पैदा कर सकते हैं तथा द्वीपीय राष्ट्र की सेवा अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दे सकते हैं।
स्रोत- द हिंदू
भारतीय राजव्यवस्था
संवेदनशील गवाहों की रक्षा करना: SC
प्रिलिम्स के लिये:संवेदनशील गवाह जमा केंद्र (VWDC), अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार), भारत के संविधान का अनुच्छेद 141/142। मेन्स के लिये:भारत में गवाह संरक्षण, वैकल्पिक विवाद समाधान (एडीआर), संवेदनशील गवाह जमा केंद्र, धारा 377 आईपीसी, मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने संवेदनशील गवाहों के अर्थ का विस्तार करते हुए इसमें अन्य यौन उत्पीड़न पीड़ितों, मानसिक रूप से बीमार, बोलने या सुनने में अक्षम लोगों को भी शामिल किया है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 1996 और फिर 2004 व 2017 के एक फैसले का हवाला दिया जिसमें उसने इसी तरह के निर्देश पारित किये थे। जब उसने देश के सभी उच्च न्यायालयों को संवेदनशील गवाहों हेतु 2017 में दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा तैयार किये गए दिशा निर्देशों को अपनाने के लिये कहा था।
प्रमुख बिंदु:
- संवेदनशील गवाह: संवेदनशील गवाहों का मतलब केवल बाल गवाहों तक सीमित नहीं होगा। इसमें निम्नलिखित भी शामिल होंगे:
- यौन हमले के शिकार।
- आईपीसी की धारा 377 (अप्राकृतिक अपराध) के तहत यौन उत्पीड़न के शिकार ।
- मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 में परिभाषित मानसिक बीमारी से पीड़ित गवाह।
- खतरो के शिकार गवाह और कोई भी भाषण या श्रवण बाधित व्यक्ति या किसी अन्य विकलांगता से पीड़ित व्यक्ति।
- संवेदनशील गवाह जमा केंद्र (VWDC): सर्वोच्च न्यायालय ने निर्देश दिया कि सभी उच्च न्यायालय (HC) दो महीने की अवधि के भीतर एक संवेदनशील गवाह जमा केंद्र (VWDC) योजना को अपनाएँ और अधिसूचित करें।
- संवेदनशील गवाह जमा केंद्र (Vulnerable Witness Deposition Centre- VWDC)
- VWDC संवेदनशील गवाहों के साक्ष्य दर्ज़ करने के लिये एक सुरक्षित और बाधा मुक्त वातावरण प्रदान करेगा।
- सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय से यह सुनिश्चित करने को कहा कि प्रत्येक ज़िले में एक VWDC हो।
- इन VWDC को वैकल्पिक विवाद समाधान (ADR) केंद्रों के निकट स्थापित किया जाना चाहिये।
- हितधारकों को संवेदनशील बनाना: सर्वोच्च न्यायालय ने VWDC के प्रबंधन के लिये प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करने और बार, बेंच व कर्मचारियों सहित सभी हितधारकों को संवेदनशील बनाने के महत्त्व की ओर भी इशारा किया है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने जम्मू और कश्मीर के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति गीता मित्तल से अखिल भारतीय VWDC प्रशिक्षण कार्यक्रम को डिज़ाइन करने और लागू करने के लिये समिति के अध्यक्ष के रूप में कार्य करने का आग्रह किया।
- सर्वोच्च न्यायालय ने समिति के अध्यक्ष को प्रशिक्षण की योजनाओं हेतु एक प्रभावी इंटरफेस प्रदान करने के लिये राष्ट्रीय और राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरणों के साथ जुड़ने का भी निर्देश दिया।
- साथ ही न्यायालय ने केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को आवश्यक लॉजिस्टिक्स सहायता के समन्वय हेतु एक नोडल अधिकारी की नियुक्ति का निर्देश दिया है।
भारत में गवाह संरक्षण:
- वर्ष 2018 में सर्वोच्च न्यायालय ने ‘गवाह संरक्षण योजना- 2018’ को मंज़ूरी दी थी, जिसका उद्देश्य एक गवाह को निडर और सच्चाई से गवाही देने में सक्षम बनाना है। इसके तहत सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि:
- अदालतों में स्वतंत्र रूप से गवाही देने का गवाहों का अधिकार अनुच्छेद-21 (जीवन का अधिकार) का हिस्सा है।
- यह योजना भारत के संविधान के अनुच्छेद 141 और 142 के तहत एक कानून के तौर पर लागू होगी।
- न्यायपीठ ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को संवेदनशील गवाह केंद्र स्थापित करने को भी कहा है।
- यद्यपि यह योजना अभी तक संसद में लंबित है, सर्वोच्च न्यायालय ने सभी राज्यों में इस योजना को तुरंत लागू करने का आदेश दिया है और स्पष्ट कहा कि यह योजना देश में कानून के तौर पर लागू होगी।
- वर्षों से विधि आयोग की विभिन्न रिपोर्टों और न्यायालय के विभिन्न निर्णयों में गवाहों की रक्षा करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया है।
- गुजरात राज्य बनाम अनिरुद्ध सिंह (1997), 14वें विधि आयोग की रिपोर्ट और मलीमथ समिति की रिपोर्ट ने गवाह संरक्षण योजना की सिफारिश की है।
आगे की राह
- गवाह ‘न्याय की आँख और कान’ होते हैं और ऐसे में यह योजना राष्ट्र की प्रभावी न्याय वितरण प्रणाली की दिशा में एक सही कदम साबित होगी।
- हालाँकि अब तक ऐसे कई तदर्थ कदम उठाए गए हैं, जिसमें संवेदनशील गवाहों हेतु कुछ समर्पित अदालत कक्ष और गवाहों की पहचान छुपाना (आतंकवाद विरोधी आदि जैसे मामलों में) आदि शामिल हैं, किंतु ये अपने लक्ष्यों की प्राप्ति में असफल रहे हैं।
- इसलिये गवाहों से छेड़छाड़ के खिलाफ निषेध पर ज़ोर देने के विधायी उपाय मौजूदा समय की अपरिहार्य आवश्यकता बन गए हैं।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत-दक्षिण कोरिया व्यापार वार्ता
प्रिलिम्स के लिये:दक्षिण कोरिया की अवस्थिति, व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता (CEPA), मुक्त व्यापार समझौते, अन्य देशों के साथ भारत के FTAs । मेन्स के लिये:भारत-दक्षिण कोरिया CECA का महत्त्व, भारत-दक्षिण कोरिया संबंध |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में दक्षिण कोरिया के व्यापार मंत्री ने वाणिज्य एवं उद्योग, उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण और कपड़ा मंत्री के साथ वार्ता की।
प्रमुख बिंदु
- व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते का उन्नयन:
- दोनों देश व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते (CEPA) के उन्नयन संबंधी वार्ता पर चर्चा को नई गति प्रदान करने और दोनों देशों के उद्योग जगत के नेताओं के बीच व्यापार एवं निवेश पर व्यापक ‘B2B’ (व्यवसाय से व्यवसाय) वार्ता को बढ़ावा देने पर सहमत हुए।
- द्विपक्षीय व्यापार लक्ष्य:
- भारत और दक्षिण कोरिया ने वर्ष 2030 से पहले 50 बिलियन अमेरिकी डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार लक्ष्य निर्धारित किया था, जिस पर वर्ष 2018 में आयोजित शिखर बैठक में सहमति व्यक्त की गई थी।
- यह नियमित वार्ता दोनों देशों के व्यापारिक समुदाय की कठिनाइयों और आपूर्ति शृंखला लचीलापन सहित उभरते व्यापार से संबंधित मुद्दों पर चर्चा करने हेतु एक मंच के रूप में कार्य करेगी।
- दोनों पक्षों पारस्परिक लाभ हेतु निष्पक्ष और संतुलित तरीके से विकास करने के लिये द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ावा देने पर सहमत हुए।
- कोरिया में कड़े नियामक मुद्दों के कारण भारतीय कंपनियों को कोरिया में स्टील, इंजीनियरिंग और कृषि उत्पादों जैसे क्षेत्रों में अपने उत्पादों का निर्यात करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।
- व्यापार घाटा वर्ष 2008-09 के 5 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2020-21 में 8 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है।
- भारत और दक्षिण कोरिया ने वर्ष 2030 से पहले 50 बिलियन अमेरिकी डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार लक्ष्य निर्धारित किया था, जिस पर वर्ष 2018 में आयोजित शिखर बैठक में सहमति व्यक्त की गई थी।
व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता:
- परिचय:
- यह एक प्रकार का मुक्त व्यापार समझौता है जिसमें सेवाओं एवं निवेश के संबंध में व्यापार और आर्थिक साझेदारी के अन्य क्षेत्रों पर बातचीत करना शामिल है। यह व्यापार सुविधा एवं सीमा शुल्क सहयोग, प्रतिस्पर्द्धा तथा बौद्धिक संपदा अधिकारों जैसे क्षेत्रों पर बातचीत किये जाने पर भी विचार कर सकता है।
- साझेदारी या सहयोग समझौते मुक्त व्यापार समझौतों की तुलना में अधिक व्यापक हैं।
- CEPA व्यापार के नियामक पहलू को भी देखता है और नियामक मुद्दों को कवर करने वाले एक समझौते को शामिल करता है।
- अन्य देशों के साथ भारत के CEPA:
- भारत ने दक्षिण कोरिया और जापान के साथ CEPA पर हस्ताक्षर किये हैं।
- वर्ष 2021 में भारत और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) ने औपचारिक रूप से भारत-यूएई व्यापक आर्थिक सहयोग तथा भागीदारी समझौते (CEPA) पर वार्ता शुरू की थी।
- भारत बांग्लादेश के साथ भी व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते को आगे बढ़ाना चाहता है।
भारत-दक्षिण कोरिया संबंध:
- राजनीतिक:
- कोरिया युद्ध (वर्ष 1950-53) के दौरान युद्धरत दोनों पक्षों (उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया) के मध्य भारत ने युद्धविराम समझौता कराने में एक प्रमुख भूमिका निभाई। भारत द्वारा प्रायोजित इस संकल्प को स्वीकार कर लिया गया और 27 जुलाई, 1953 को युद्ध विराम की घोषणा हुई।
- मई 2015 में द्विपक्षीय संबंधों को 'विशेष सामरिक भागीदारी’ हेतु उन्नत किया गया।
- भारत ने दक्षिण कोरिया की दक्षिणी नीति में एक अहम भूमिका निभाई है, जिसके तहत कोरिया अपने प्रभावी क्षेत्र के अतिरिक्त अन्य क्षेत्रों में भी संबंधों का विस्तार करना चाहता है।
- दक्षिण कोरिया भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी (Act East Policy) का एक प्रमुख सहयोगी है जिसके अंतर्गत भारत का उद्देश्य आर्थिक सहयोग, सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ावा देना और एशिया-प्रशांत देशों के साथ रणनीतिक संबंधों को विकसित करना है।
- आर्थिक:
- भारत और दक्षिण कोरिया के बीच व्यापार व आर्थिक संबंधों ने हाल के वर्षों में गति पकड़ी है, जिसके तहत वार्षिक द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2018 में 21.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया है और यह पहली बार है जब दोनों देशों के व्यापार ने 20 बिलियन अमेरिकी डॉलर का आँकड़ा पार किया है।
- जनवरी-दिसंबर 2020 में द्विपक्षीय व्यापार 16.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर दर्ज किया गया था।
- वर्ष 2010 के बाद से स्थापित द्विपक्षीय व्यापक आर्थिक सहयोग समझौते (सीईपीए) से व्यापार और निवेश दोनों में वृद्धि हुई है।
- कोरिया से निवेश सुविधा के लिये भारत ने 'इन्वेस्ट इंडिया' के अंतर्गत एक ‘कोरिया प्लस’ पहल को शुरू किया है जो निवेशकों का मार्गदर्शन, सहायता करने और संवर्द्धित करने की सुविधा प्रदान करेगी।
- सितंबर 2020 तक भारत में दक्षिण कोरिया का कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश लगभग 6.94 बिलियन अमेरिकी डॉलर था और यह भारत के प्रमुख निवेशकों में से एक है।
- रक्षा:
- वर्ष 2005 में दोनों पक्षों ने वर्ष 2006 में दोनों तट रक्षकों के बीच सहयोग पर रक्षा और रसद तथा एक अन्य समझौता ज्ञापन (एमओयू) में सहयोग के लिये एक समझौते पर हस्ताक्षर किये।
- अब तक भारतीय और दक्षिण कोरियाई तटरक्षकों ने अंतरसंचालनीयता बढ़ाने के उद्देश्य से पाँच अभ्यास किये हैं।
- इन अभ्यासों में से सबसे हाल ही में चेन्नई के तट पर आयोजित किया गया अभ्यास था, जिसका नाम सहयोग-ह्येब्ल्येओग (Sahyog-Hyeoblyeog) 2018 है।
- सहयोग-ह्येब्ल्येओग हिंद महासागर क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा में सुधार के लिये दो तट रक्षकों के बीच एक समझौता ज्ञापन की प्रस्तावित स्थापना का हिस्सा है।
- मई 2021 में भारतीय रक्षा मंत्री और उनके दक्षिण कोरियाई समकक्ष ने दिल्ली छावनी में एक समारोह में भारत-कोरिया फ्रेंडशिप पार्क का उद्घाटन किया।
- वर्ष 1950-53 के कोरियाई युद्ध के दौरान भारतीय सेना के योगदान को याद करने के लिये पार्क का निर्माण किया गया था।
सांस्कृतिक:
- कोरियाई बौद्ध भिक्षु हाइको या होंग जिआओ ने 723 से 729 ईस्वी के दौरान भारत की यात्रा की और उन्होंने ‘भारत के पाँच साम्राज्यों की तीर्थयात्रा’ नामक यात्रा वृतांत लिखा। यह यात्रा वृतांत भारतीय संस्कृति, राजनीति और समाज का ज्वलंत वर्णन करता है।
- नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर ने 1929 में कोरिया के गौरवशाली अतीत और इसके उज्ज्वल भविष्य के बारे में एक छोटी लेकिन विचारोत्तेजक कविता ‘लैंप ऑफ द ईस्ट’ की रचना की थी।
- भारत तथा कोरिया गणराज्य के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान बढ़ाने के लिये अप्रैल 2011 में सियोल में तथा दिसंबर 2013 में बूसान में भारतीय सांस्कृतिक केंद्र (ICC) का गठन किया गया।
दोनों देशों द्वारा साझा किये गए बहुपक्षीय मंच:
आगे की राह
- भारत-कोरिया गणराज्य (Republic of Korea) संबंधों ने हाल के वर्षों में गति पकड़ी है। वर्तमान में ये संबंध बहुआयामी हो गए हैं, जो हितों के पर्याप्त अभिसरण, आपसी सद्भाव और उच्च स्तरीय आदान-प्रदान से प्रोत्साहित हुए हैं।
- हालाँकि इससे भारत और दक्षिण कोरिया के बीच संबंधों के विस्तार के साथ-साथ एशिया में एक अद्वितीय संबंध बनाने की काफी संभावनाएँ व्यक्त की गई हैं। इसके लिये एक ऐसी राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता है जो विविध क्षेत्रों (जैसे- सांस्कृतिक संबंधों, लोगों के मध्य संपर्क बनाने, लोकतंत्र और उदार मूल्यों का उपयोग करने तथा सभ्यतागत संबंधों) को मजबूत करने की कल्पना करता हो।
स्रोत: पी.आई.बी
सामाजिक न्याय
भारतीय जेलों में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की मान्यता
प्रिलिम्स के लिये:ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 और इसके प्रावधान मेन्स के लिये:भारतीय जेलों में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा से संबंधित मुद्दे, इस दिशा में उठाए गए कदम |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने ट्रांसजेंडर कैदियों की गोपनीयता, गरिमा सुनिश्चित करने के लिये राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के कारागार प्रमुखों को दिशा-निर्देश जारी किये गए हैं।
- राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, वर्ष 2020 में देश भर की जेलों में 70 ट्रांसजेंडर कैदी थे।
- यह एडवाइजरी ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के आलोक में जारी की गई थी, जो जनवरी 2020 से लागू हुई थी।
प्रमुख बिंदु
- जेलों का बुनियादी ढाँचा:
- निजता के अधिकार और कैदियों की गरिमा को बनाए रखने के लिये ट्रांसमेन और ट्रांस वुमन के लिये अलग-अलग वार्ड और अलग शौचालय एवं शॉवर की सुविधा।
- आत्म-पहचान का सम्मान:
- प्रवेश प्रक्रियाओं, चिकित्सा परीक्षण, तलाशी, कपड़े, पुलिस अनुरक्षक की मांग, जेलों के भीतर उपचार और देखभाल के दौरान ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की आत्म-पहचान का हर समय सम्मान किया जाना चाहिये।
- ट्रांसजेंडर व्यक्ति कानून के तहत ट्रांसजेंडर पहचान प्रमाण पत्र प्राप्त करने की प्रक्रिया को सुविधाजनक करना।
- जाँच प्रोटोकॉल:
- जाँच उनके पसंदीदा लिंग के व्यक्ति या किसी प्रशिक्षित चिकित्सा पेशेवर या खोज करने में प्रशिक्षित एक पैरामेडिक द्वारा की जानी चाहिये।
- तलाशी करने वाले व्यक्ति को खोजे जा रहे व्यक्ति की सुरक्षा, गोपनीयता और गरिमा सुनिश्चित करनी चाहिये।
- जेल में प्रवेश:
- पुरुष और महिला के अलावा अन्य श्रेणी के रूप में "ट्रांसजेंडर" को शामिल करने के लिये जेल प्रवेश रजिस्टर को उपयुक्त रूप से संशोधित किया जा सकता है।
- इसी तरह का प्रावधान कारागार प्रबंधन प्रणाली में इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड बनाए रखने के लिये किया जा सकता है।
- स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच:
- ट्रांसजेंडर कैदियों को लैंगिक पहचान के आधार पर बिना किसी भेदभाव के स्वास्थ्य सेवा का समान अधिकार होना चाहिये।
- बाहरी दुनिया के साथ संचार:
- उन्हें परिवीक्षा, कल्याण या पुनर्वास अधिकारियों द्वारा अपने परिवार के सदस्यों, रिश्तेदारों, दोस्तों और कानूनी सलाहकारों व देखभाल के बाद की योजना पर बातचीत करने का अवसर दिया जाना चाहिये।
- कारागार कार्मिकों का प्रशिक्षण और संवेदीकरण:
- यह ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिये लिंग पहचान, मानवाधिकार, यौन अभिविन्यास और कानूनी ढाँचे की समझ विकसित करने हेतु किया जाना चाहिये।
- इसी तरह की जागरूकता का प्रसार अन्य बंदियों में भी किया जाना चाहिये।
ट्रांसजेंडर से संबंधित प्रमुख पहलें
- ट्रांसजेंडर व्यक्ति अधिनियम, 2019:
- यह अधिनियम ट्रांसजेंडर व्यक्ति को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित करता है, जिसका लिंग जन्म के समय दिये गए लिंग से मेल नहीं खाता है। इसमें ट्रांसमेन और ट्रांस-वीमेन, इंटरसेक्स भिन्नता वाले व्यक्ति, लिंग-क्वीर व सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान वाले व्यक्ति जैसे कि किन्नर आदि शामिल हैं।
- सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय
- राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (NALSA) बनाम भारत संघ, 2014: सर्वोच्च न्यायालय ने ट्रांसजेंडर लोगों को ‘थर्ड जेंडर' घोषित किया है।
- भारतीय दंड संहिता (2018) की धारा 377 के प्रावधानों की समाप्ति: सर्वोच्च न्यायालय ने समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया।
- ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) नियम, 2020:
- केंद्र सरकार ने ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 द्वारा प्रदत्त शक्तियों के तहत नियम बनाए हैं।
- ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिये ‘राष्ट्रीय पोर्टल’ ‘ट्रांसजेंडर व्यक्तिय (अधिकारों का संरक्षण) नियम, 2020’ के अनुरूप शुरू किया गया था।
- ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिये ‘आश्रय गृह योजना’:
- ज़रूरतमंद ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को सुरक्षित आश्रय प्रदान करने के लिये सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय उनके लिये 'गरिमा गृह' नामक आश्रय गृह स्थापित कर रहा है।
जेल अधिनियम और ट्रांसपर्सन
- भारत में कारागार अधिनियम, 1894, कारागारों के प्रशासन को विनियमित करने वाला केंद्रीय कानून है।
- यह अधिनियम मुख्य रूप से दीवानी कानून के तहत दोषी ठहराए गए कैदियों को आपराधिक कानून के तहत दोषी ठहराए गए कैदियों से अलग करता है।
- दुर्भाग्य से यह अधिनियम यौन अभिविन्यास और लिंग पहचान (SOGI) के आधार पर यौन अल्पसंख्यकों को कैदियों के एक अलग वर्ग के रूप में भी मान्यता नहीं देता है।
- यह केवल महिलाओं, युवा अपराधियों, विचाराधीन कैदियों, दोषियों, सिविल कैदियों, बंदियों और उच्च सुरक्षा वाले कैदियों जैसी श्रेणियों में कैदियों का वर्गीकरण करता है।
- ‘राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण’ (NALSA) का निर्णय अनुच्छेद-14, 15 और 21 के तहत ट्रांसपर्सन को संवैधानिक संरक्षण प्रदान करते हुए राज्यों को उनके कानूनी और सामाजिक-आर्थिक अधिकारों पर नीतियाँ बनाने का निर्देश देता है।
- यह ट्रांस कैदियों पर भी लागू होता है, क्योंकि जेल और उनका प्रशासन राज्य का विषय है।
- भले ही नालसा के फैसले में दिये गए निर्देश देश के कानून का गठन करते हैं, फिर भी वर्तमान कानूनों में बदलाव लाने की आवश्यकता है।
- हालाँकि जेल अधिनियम, जेल अधिकारियों को उन प्रक्रियाओं का पालन करने की अनुमति देता है जो सख्ती से लिंग-द्विआधारी हैं।
- ये प्रक्रियाएँ न केवल कानून की वैधता को चुनौती देती हैं, बल्कि जेलों के अंदर ट्रांसजेंडर व्यक्तियों पर एक तरह की यातना और अपमानजनक व्यवहार को भी बढ़ावा देती हैं।
- यह सब कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव (CHRI) द्वारा 'लॉस्ट आइडेंटिटी: ट्रांसजेंडर पर्सन्स इनसाइड इंडियन प्रिज़न्स' शीर्षक वाली एक रिपोर्ट से प्रमाणित होता है।
- यह रिपोर्ट भारतीय जेलों में बंद ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के सामने आने वाले मुद्दों पर प्रकाश डालती है।
आगे की राह:
- औपनिवेशिक जेल अधिनियम अप्रचलित हो गया है और यह संवैधानिक नैतिकता की कसौटी पर विफल है जो कि एक बहुलवादी और समावेशी समाज की शुरूआत करता है।
- चूँकि संवैधानिक नैतिकता एक ऐसी चीज़ है जिसे कानून की प्रकृति और लोगों के अधिकारों को ध्यान में रखते हुए विकसित किया जाना चाहिये, वर्तमान कानूनों में यौन अल्पसंख्यकों के अधिकारों के ऐसे प्रगतिशील दृष्टिकोण की कमी है।
- यौन अल्पसंख्यकों, विशेष रूप से ट्रांसजेंडर कैदियों के संदर्भ में सुधारों को संबोधित करने के लिये ज़गरूकता और दस्तावेज़ीकरण दो महत्त्वपूर्ण उपकरण हैं।
- इस प्रकार CHRI उस प्रक्रिया में एक कदम है जो ट्रांसजेंडर कैदियों के इलाज़ के लिये लिंग आधारित दृष्टिकोण की वकालत करता है।
- CHRI की सिफारिशों को केंद्र सरकार द्वारा ट्रांसजेंडर कैदियों की विशेष ज़रूरतों पर एक 'मॉडल पाॅलिसी' लाने के लिये ट्रांस समुदाय के सदस्यों के साथ परामर्श प्रक्रिया के माध्यम से नालसा के फैसले के जनादेश का सम्मान करने हेतु विचार किया जाना चाहिये।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
विश्व व्यापार संगठन (WTO) में भारत की अपील
प्रिलिम्स के लिये:डब्ल्यूटीओ, गन्ना, सब्सिडी और काउंटरवेलिंग उपायों पर डब्ल्यूटीओ का समझौता, कृषि पर डब्ल्यूटीओ का समझौता, व्यापार और टैरिफ पर सामान्य समझौता। मेन्स के लिये:विश्व व्यापार संगठन और इसकी भूमिका, विश्व व्यापार संगठन में चीनी सब्सिडी का मुद्दा, चीनी उद्योग में सब्सिडी का महत्त्व। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत ने विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organisation's- WTO) के व्यापार विवाद निपटान पैनल के एक निर्णय के खिलाफ अपील की है निर्णय दिया गया, जिसमें कहा गया कि चीनी और गन्ने के लिये देश के घरेलू समर्थन उपाय वैश्विक व्यापार मानदंडों के अनुसार नहीं है।
- इससे पूर्व विश्व व्यापार संगठन द्वारा चीन को 'विकासशील देश' का दर्ज़ा दिया गया था, WTO के इस निर्णय पर कई देशों द्वारा चिंता व्यक्त करते हुए आपति दर्ज की गई, साथ ही यह एक विवादास्पद मुद्दा बन गया था।
प्रमुख बिंदु
- भारत की अपील:
- भारत द्वारा विश्व व्यापार संगठन के अपीलीय निकाय में अपील दायर की गई थी, जो इस प्रकार के व्यापार विवादों पर अंतिम प्राधिकरण है।
- पैनल की रिपोर्ट में निहित कुछ "कानून की त्रुटियों या कानूनी व्याख्या के संबंध में भारत ने अपील की है एवं निकाय से "पैनल के निष्कर्षों, निर्णयों और सिफारिशों को उलटने, संशोधित करने या विवादास्पद एवं बिना किसी कानूनी प्रभाव के" घोषित करने का अनुरोध किया है।
- भारत ने पैनल के निष्कर्षों की समीक्षा की मांग की है कि चीनी मिलों को विपणन लागत पर खर्च के लिये सहायता प्रदान करने की योजना, जिसमें हैंडलिंग, उन्नयन और अन्य प्रसंस्करण लागत तथा अंतर्राष्ट्रीय एवं आंतरिक परिवहन की लागत व अधिकतम स्वीकार्य निर्यात मात्रा योजना (Maximum Admissible Export Quantity- MAEQ) की शर्तों के संदर्भ में वर्ष 2019-20 के लिये चीनी के निर्यात पर माल ढुलाई शुल्क शामिल हैं।
- भारत के खिलाफ शिकायत:
- ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील और ग्वाटेमाला का मानना है कि भारत के घरेलू समर्थन और निर्यात सब्सिडी के उपाय कृषि पर डब्ल्यूटीओ के समझौते और सब्सिडी एवं काउंटरवेलिंग मानकों (Agreement on Subsidies and Countervailing Measures-SCM) पर समझौते व प्रशुल्क एवं व्यापार पर सामान्य समझौते (General Agreement on Trade and Tariffs-GATT) के अनुच्छेद XVI के विभिन्न प्रावधानों के साथ असंगत प्रतीत होते हैं।
- तीनों देशों ने शिकायत की है कि भारत गन्ना उत्पादकों को घरेलू समर्थन प्रदान करता है जो गन्ना उत्पादन के कुल मूल्य के 10% के न्यूनतम स्तर से अधिक है तथा कृषि पर हुए समझौते के असंगत था।
- उन्होंने भारत की कथित निर्यात सब्सिडी, उत्पादन सहायता और बफर स्टॉक योजनाओं और विपणन एवं परिवहन योजना के तहत सब्सिडी का मुद्दा भी उठाया।
- ऑस्ट्रेलिया ने भारत पर वर्ष 1995-96 के बाद गन्ने और चीनी के लिये अपने वार्षिक घरेलू समर्थन तथा वर्ष 2009-10 के बाद से अपनी निर्यात सब्सिडी को अधिसूचित करने में "विफल" होने का आरोप लगाया, जो कि एससीएम (SCM) समझौते के प्रावधानों के साथ असंगत था।
- मामले को देखने और अपनी रिपोर्ट की जाँच के लिये डब्ल्यूटीओ के विवाद निपटान निकाय (Dispute Settlement Body -DSB) द्वारा एक पैनल का गठन किया गया था।
सब्सिडी और काउंटरवेलिंग उपायों पर विश्व व्यापार संगठन का समझौता
- एससीएम पर डब्ल्यूटीओ समझौता सब्सिडी के उपयोग को अनुशासित करता है और यह उन कार्यों को नियंत्रित करता है जो देश सब्सिडी के प्रभावों का मुकाबला करने के लिये कर सकते हैं।
- समझौते के तहत कोई देश डब्ल्यूटीओ की विवाद-निपटान प्रक्रिया का उपयोग सब्सिडी को वापस लेने या इसके प्रतिकूल प्रभावों को दूर करने के लिये कर सकता है या देश अपनी जाँच शुरू कर सकता है तथा अंततः सब्सिडी वाले आयातों पर अतिरिक्त शुल्क ("काउंटरवेलिंग ड्यूटी") लगा सकता है जो कि घरेलू उत्पादकों को नुकसान पहुँचा रहे हैं।
कृषि पर विश्व व्यापार संगठन का समझौता
- इसका उद्देश्य व्यापार बाधाओं को दूर करना और पारदर्शी बाज़ार पहुँच तथा वैश्विक बाज़ारों के एकीकरण को बढ़ावा देना है।
- विश्व व्यापार संगठन की कृषि समिति, समझौते के कार्यान्वयन की देखरेख करती है और सदस्यों को संबंधित चिंताओं को दूर करने के लिये एक मंच प्रदान करती है।
शुल्क तथा व्यापार पर सामान्य समझौता
- GATT की उत्पत्ति वर्ष 1944 के ब्रेटन वुड्स सम्मेलन में हुई, जिसने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की वित्तीय प्रणाली की नींव रखी और दो प्रमुख संस्थानों अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) तथा विश्व बैंक की स्थापना की।
- वर्ष 1947 में जिनेवा में 23 देशों द्वारा हस्ताक्षरित GATT के रूप में एक समझौता 1 जनवरी, 1948 को निम्नलिखित उद्देश्यों के साथ लागू हुआ:
- आयात कोटा के उपयोग को समाप्त करना।
- वाणिज्यिक वस्तुओं के व्यापार पर शुल्क को कम करने करना।
- GATT 1948 से अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को संचालित करने वाला एकमात्र बहुपक्षीय साधन (संस्था नहीं) बन गया जब तक कि वर्ष 1995 में विश्व व्यापार संगठन की स्थापना नहीं हुई।
- GATT 1947 को समाप्त कर दिया गया और WTO ने GATT 1994 के रूप में इसके प्रावधानों को संरक्षित रखा तथा माल का व्यापार संचालन जारी रखा।
- उरुग्वे राउंड वर्ष 1987 से वर्ष 1994 तक आयोजित किया गया था जिसके परिणामस्वरूप मारकेश समझौता हुआ, इसने विश्व व्यापार संगठन की स्थापना की।
- भारत का रुख:
- भारत ने कहा कि "शिकायतकर्त्ता यह दिखाने में विफल रहे हैं” कि गन्ने और इसकी विभिन्न योजनाओं के लिये भारत का बाज़ार मूल्य समर्थन कृषि पर समझौते का उल्लंघन करता है।
- इसने यह भी तर्क दिया कि ‘आपूर्ति शृंखला प्रबंधन समझौते के अनुच्छेद 3 की आवश्यकताएँ अभी तक भारत पर लागू नहीं हैं और भारत में आपूर्ति शृंखला प्रबंधन समझौते के अनुच्छेद 27 के अनुसार निर्यात सब्सिडी, यदि कोई हो, को समाप्त करने के लिये 8 वर्ष की चरणबद्ध अवधि है।
- पैनल के निष्कर्ष:
- विवाद निपटान पैनल ने चीनी क्षेत्र में भारत के घरेलू समर्थन और निर्यात सब्सिडी उपायों को अंतर्राष्ट्रीय व्यापार नियमों का उल्लंघन माना है।
- पैनल ने पाया कि वर्ष 2014-15 से वर्ष 2018-19 तक लगातार पाँच चीनी मौसमों के लिये भारत ने गन्ना उत्पादकों को गन्ना उत्पादन के कुल मूल्य के 10% के अनुमत स्तर से अधिक गैर-छूट उत्पाद-विशिष्ट घरेलू समर्थन प्रदान किया।
- भारत ने तर्क दिया कि इसकी "अनिवार्य न्यूनतम कीमतों का भुगतान केंद्र या राज्य सरकारों द्वारा नहीं बल्कि चीनी मिलों द्वारा किया जाता है इसलिये यह बाज़ार मूल्य समर्थन का गठन नहीं करता है", हालाँकि पैनल ने इस तर्क को खारिज कर दिया और कहा कि ‘बाज़ार मूल्य समर्थन के लिये सरकारों को खरीदारी करने की आवश्यकता नहीं होती।’
- पैनल की सिफारिशें:
- भारत को अपने विश्व व्यापार संगठन के नियमों असंगत उपायों को कृषि समझौते और SCM समझौते के तहत अपने दायित्वों के अनुरूप लाना चाहिये।
- भारत को 120 दिनों के भीतर उत्पादन सहायता, बफर स्टॉक और विपणन एवं परिवहन योजनाओं के तहत अपनी कथित सब्सिडी वापस लेनी चाहिये।
विश्व व्यापार संगठन में विवाद निवारण:
- विश्व व्यापार संगठन के नियमों के अनुसार, विश्व व्यापार संगठन के सदस्य जिनेवा स्थित बहुपक्षीय निकाय में मामला दर्ज कर सकते हैं, यदि उन्हें लगता है कि किसी सदस्य देश का कोई विशेष व्यापार उपाय या नीति विश्व व्यापार संगठन के मानदंडों के खिलाफ है।
- किसी विवाद को सुलझाने के लिये द्विपक्षीय परामर्श पहला कदम है। यदि दोनों पक्ष परामर्श के माध्यम से मामले को हल करने में सक्षम नहीं हैं, तो एक विवाद निपटान पैनल की स्थापना की जा सकती है।
- पैनल के फैसले या रिपोर्ट को विश्व व्यापार संगठन के अपीलीय निकाय में चुनौती दी जा सकती है।
- दिलचस्प बात यह है कि इस निकाय में सदस्यों की नियुक्ति के लिये सदस्य देशों के बीच मतभेदों के कारण विश्व व्यापार संगठन का अपीलीय निकाय काम नहीं कर पा रहा है। अपीलीय निकाय के पास पहले से ही 20 से अधिक विवाद लंबित हैं। अमेरिका सदस्यों की नियुक्ति पर रोक लगाता रहा है।