डेली न्यूज़ (11 Dec, 2020)



जनसंख्या और विकास पहल में भागीदार

चर्चा में क्यों

हाल ही में केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री ने जनसंख्या और विकास भागीदारों (Partners in Population and Development) द्वारा आयोजित अंतर-मंत्रालयी सम्मेलन को डिजिटल रूप में संबोधित किया।

प्रमुख बिंदु:

  • जनसंख्या और विकास में भागीदार:
    • उद्देश्य: यह एक अंतर-सरकारी पहल है जिसके गठन का उद्देश्य विशेष रूप से प्रजनन स्वास्थ्य, जनसंख्या और विकास के क्षेत्र में दक्षिण-दक्षिण सहयोग (South-South Cooperation) को बढ़ावा देना तथा इसमें सुधार करना है।
    • लॉन्च: PPD को जनसंख्या और विकास पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन (International Conference on Population and Development), 1994 में तब लॉन्च किया गया था, जब काहिरा प्रोग्राम ऑफ एक्शन (Cairo Program of Action) को लागू करने में सहायता हेतु एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के दस विकासशील देशों ने एक अंतर-सरकारी गठबंधन तैयार किया था।
      • काहिरा कार्यक्रम 179 देशों द्वारा समर्थित है, यह देशों के अंदर और उनके बीच प्रजनन स्वास्थ्य (Reproductive Health) तथा परिवार नियोजन (Family Planning) के अनुभवों का आदान-प्रदान कर विकास को बढ़ावा देने हेतु एक तंत्र स्थापित करने की आवश्यकता पर बल देता है।
    • सदस्य: यह 27 विकासशील देशों का गठबंधन है, भारत भी इसका एक सदस्य है।
    • सचिवालय: ढाका (बांग्लादेश)।
  • PPD द्वारा आयोजित अंतर-मंत्रालयी सम्मेलन:
    • इसका आयोजन PPD, चीन के राष्ट्रीय स्वास्थ्य आयोग और संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष द्वारा संयुक्त रूप से किया गया था।
    • उद्देश्य:
      • थ्री ज़ीरो (Three Zeros) की उपलब्धि (2030 तक) में कोविड-19 महामारी के प्रभावों को संबोधित करने के लिये अधिवक्ता और राजनैतिक समर्थन तथा निवेश सुनिश्चित करने हेतु इसे नैरोबी शिखर सम्मेलन, 2019 के तहत अंतिम रूप दिया गया।
      • भारत ने प्रजनन स्वास्थ्य, जनसंख्या और विकास के प्रमुख क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा देने के लिये PPD के प्रयासों की सराहना की।
  • भारत द्वारा उठाए गए कदम:
    • नैरोबी शिखर सम्मेलन में की गई प्रतिबद्धताओं की पुन: पुष्टि में निरंतरता।
    • अपने प्रमुख कार्यक्रम आयुष्मान भारत के माध्यम से सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज सुनिश्चित करने के लिये की गई प्रतिबद्धता।
    • सरकार ने प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिये 2020 तक 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर खर्च करने का वादा किया है।
    • सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल की आकांक्षा के साथ भारत की राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, 2017 का उद्देश्य सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय को सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product - GDP) के 2.5% तक बढ़ाना है।
    • गर्भ निरोधकों की सीमा को बढ़ाकर और परिवार नियोजन सेवाओं की पहुँच तथा गुणवत्ता में सुधार कर गर्भनिरोधक की आवश्यकता को कम करने के लिये निरंतर प्रयास करना।
    • मातृ मृत्यु दर (Maternal Mortality Rate) को 2030 तक 70 से कम करने और सतत् विकास लक्ष्य (Sustainable Development Goal) प्राप्त करने के लिये सुरक्षित मातृत्व आश्वासन’ (Surakshit Matritva Aashwasan-SUMAN) योजना का कार्यान्वयन।
    • भारत लिंग आधारित हिंसा को संबोधित करने और महिलाओं तथा लड़कियों के खिलाफ सभी प्रकार के अत्याचारों को समाप्त करने के लिये कठोर कानून बना रहा है।
    • यह वर्ष 2030 तक स्थायी विकास की स्थिति प्राप्त करने के लिये समय पर गुणवत्तापूर्ण और अलग-अलग (Disaggregated) डेटा की प्राप्ति, डिजिटल स्वास्थ्य नवाचारों में निवेश तथा डेटा सिस्टम में सुधार करने के लिये प्रतिबद्ध है।
      • राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन (National Digital Health Mission) का उद्देश्य देश के एकीकृत डिजिटल स्वास्थ्य ढाँचे के हेतु आवश्यक आधार विकसित करना है।
    • परिवार नियोजन सहित समुदाय आधारित हस्तक्षेप भी विभिन्न सेवाओं का हिस्सा है।
    • वैकल्पिक सेवा वितरण तंत्र को टेलीमेडिसिन सेवाओं, प्रशिक्षण के लिये डिजिटल प्लेटफ़ॉर्मों, वित्त में सुधार और आपूर्ति शृंखला प्रणालियों को सुव्यवस्थित करने के लिये बढ़ावा देना।
    • कोविड-19 को विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation- WHO) द्वारा महामारी घोषित किये जाने से पहले ही भारत ने इसको लेकर  प्रतिक्रिया शुरू कर दी थी।

आगे की राह

  • वर्तमान समय में उन सभी स्वास्थ्य संस्थानों, शिक्षाविदों और अन्य भागीदारों के एकीकृत और समन्वित प्रयासों की आवश्यकता है जो इन सेवाओं को सुलभ, सस्ती और स्वीकार्य बनाने के लिये प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं से जुड़े हैं। PPD उच्चतम स्तर पर ‘Health for All’ के एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिये ऐसे संवाद को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

स्रोत: PIB


उत्सर्जन गैप रिपोर्ट, 2020

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (United Nations Environment Programme- UNEP) द्वारा  उत्सर्जन गैप रिपोर्ट, 2020 (Emissions Gap Report, 2020) जारी की गई है।

  • UNEP की वार्षिक रिपोर्ट अनुमानित उत्सर्जन और स्तरों के मध्य अंतर को मापती है ताकि पेरिस समझौते के लक्ष्यों के अनुरूप इस सदी में वैश्विक तापमान वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तर (Pre-Industrial level) से 2 डिग्री सेल्सियस कम रखा जा सके।

प्रमुख बिंदु:

वर्ष 2019 के लिये विश्लेषण:

  • रिकॉर्ड उच्च ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन: 
    • यदि रिपोर्ट में दिये आँकड़ों पर गौर करें तो लगातार तीसरे वर्ष ग्लोबल ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में वृद्धि दर्ज की गई है। जो वर्ष 2019 में बढ़कर अब तक के रिकॉर्ड स्तर 59.1 गीगाटन (ग्रीन हाउस गैस + भूमि उपयोग में आया परिवर्तन) पर पहुँच चुकी है।
    • ऐसे कुछ संकेत मिले हैं जो कि वैश्विक GHG उत्सर्जन में धीमी वृद्धि को दर्शाते हैं।
      • हालाँकि आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (Organisation of Economic Cooperation and Development- OECD) अर्थव्यवस्थाओं में GHG उत्सर्जन में गिरावट आ रही है, जबकि गैर- OECD अर्थव्यवस्थाओं में वृद्धि हो रही है। 
  • दर्ज कार्बन उत्सर्जन:
    • जीवाश्म कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) उत्सर्जन (जीवाश्म ईंधन और कार्बोनेट से) कुल GHG उत्सर्जन में अधिक है।
    • वर्ष 2019 में जीवाश्म CO2 उत्सर्जन रिकॉर्ड 38.0 GtCO2 तक पहुँच गया।
  • वनाग्नि के कारण GHG उत्सर्जन में वृद्धि :
    • वर्ष 2010 के बाद से वैश्विक GHG उत्सर्जन औसतन प्रतिवर्ष 1.4% बढ़ा है, वर्ष 2019 में वनाग्नि की घटनाओं में वृद्धि के कारण इसमें 2.6% अधिक की  वृद्धि हुई है।
  • G20 देशों द्वारा भारी मात्रा में उत्सर्जन: 
    • पिछले एक दशक में शीर्ष चार उत्सर्जक देशों (चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका, EU27 + यूनाइटेड किंगडम और भारत) ने भूमि उपयोग में परिवर्तन (Land Use Changes -LUC) के बिना कुल GHG उत्सर्जन में 55% का योगदान दिया है।
    • शीर्ष सात उत्सर्जकों (रूसी संघ, जापान और अंतर्राष्ट्रीय ट्रासंपोर्ट सहित) ने 65% योगदान दिया है, जिसमें G20 सदस्यों का 78% हिस्सा है। 
      • प्रति व्यक्ति उत्सर्जन को शामिल करने पर देशों की रैंकिंग बदल जाती है।
  • खपत-आधारित उत्सर्जन: 
    • दोनों प्रकार के उत्सर्जन में समान दरों पर गिरावट आई है
    • एक सामान्य प्रवृत्ति है कि समृद्ध देशों में क्षेत्र-आधारित उत्सर्जन की तुलना में  खपत-आधारित उत्सर्जन (उत्सर्जन उस देश को आवंटित किया जाता है जहाँ वस्तुओं का उत्पादन न करके उनका क्रय और उपभोग किया जाता है) उच्च होता है, क्योंकि उनके यहाँ आमतौर पर क्लीनर उत्पादन, अपेक्षाकृत अधिक सेवाएँ और प्राथमिक तथा माध्यमिक उत्पादों का आयात अधिक होता है।

महामारी का प्रभाव:

  • उत्सर्जन स्तर: गैर-CO2 के कम प्रभावित होने की संभावना के चलते GHG उत्सर्जन में गिरावट की आशा के साथ वर्ष 2019 के उत्सर्जन स्तरों की तुलना में वर्ष 2020 में CO2 उत्सर्जन में लगभग 7% की कमी आ सकती है।
  • GHG जैसे- मीथेन (CH4) और नाइट्रस ऑक्साइड (N2O) उत्सर्जन के परिणामस्वरूप वायुमंडलीय सांद्रता में वर्ष 2019 और 2020 में वृद्धि जारी रही।
  • महामारी के कारण उत्सर्जन में सबसे कम गिरावट दर्ज करने वाले क्षेत्र:
    • सबसे बड़ा बदलाव सीमित गतिशीलता के चलते ट्रांसपोर्ट के क्षेत्र में हुआ है, हालाँकि अन्य क्षेत्रों में भी कटौती हुई है।

मुद्दे और संभावित समाधान:

  • विश्व अभी भी इस सदी में 3°C से अधिक तापमान वृद्धि की ओर बढ़ रहा है।
    • पेरिस समझौते के महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य 2°C के लिये मौजूदा कोशिशों के मुक़ाबले कार्यवाही को तिगुना और 1.5°C के लक्ष्य हेतु प्रयासों में पाँच गुना तीव्रता होनी चाहिये।
  • वैश्विक तापमान में 3 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि दुनिया भर में मौसम से संबंधित भयावह घटनाओं का कारण बन सकता है।
    • संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों का मानना है कि कोविड-प्रेरित आर्थिक मंदी का सामना कर रहे देशों के लिये इससे बचने का तरीका ग्रीन रिकवरी नीतियों और कार्यक्रमों  को प्रोत्साहित करना है।
    • संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, ग्रीन रिकवरी में शून्य उत्सर्जन तकनीक और बुनियादी ढाँचे में निवेश, जीवाश्म ईंधन सब्सिडी को कम करना, नए कोयला संयंत्रों पर रोक तथा प्रकृति आधारित समाधानों को बढ़ावा देना शामिल है।
    • इस तरह की कार्रवाई वर्ष 2030 तक अनुमानित उत्सर्जन में 25% तक की कटौती कर सकती है और पेरिस संधि में निर्धारित 2°C के दीर्घकालिक लक्ष्य को प्राप्त करने की संभावना में 66% की वृद्धि कर सकती है।

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम:

  • यह संयुक्त राष्ट्र की एक एजेंसी है। इसकी स्थापना वर्ष 1972 में मानव पर्यावरण पर स्टॉकहोम में आयोजित संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के दौरान हुई थी। 
  • इस संगठन का उद्देश्य मानव पर्यावरण को प्रभावित करने वाले सभी मामलों में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ाना तथा पर्यावरण संबंधी जानकारी का संग्रहण, मूल्यांकन एवं पारस्परिक सहयोग सुनिश्चित करना है।
  • UNEP पर्यावरण संबंधी समस्याओं के तकनीकी एवं सामान्य निदान हेतु एक उत्प्रेरक के रूप में कार्य करता है। UNEP अन्य संयुक्त राष्ट्र निकायों के साथ सहयोग करते हुए सैकड़ों परियोजनाओं पर सफलतापूर्वक कार्य कर चुका है।
  • मुख्यालय: नैरोबी (केन्या) में है।
  • प्रमुख रिपोर्ट: उत्सर्जन गैप रिपोर्ट (Emission Gap Report), वैश्विक पर्यावरण आउटलुक (Global Environment Outlook), फ्रंटियर्स (Frontiers), इन्वेस्ट इनटू हेल्दी प्लेनेट (Invest into Healthy Planet)।
  • प्रमुख अभियान: बीट प्रदूषण (Beat Pollution), UN75, विश्व पर्यावरण दिवस (World Environment Day), वाइल्ड फॉर लाइफ (Wild for Life)।

स्रोत: DTE


आसियान रक्षा मंत्रियों की बैठक-प्लस (ADMM-PLUS)

चर्चा में क्यों

हाल ही में भारत के रक्षा मंत्री ने वियतनाम के हनोई में ऑनलाइन आयोजित 14वें आसियान रक्षा मंत्रियों की बैठक-प्लस (ASEAN Defence Ministers’ Meeting Plus: ADMM-PLUS) में भाग लिया।

  • यह ADMM-PLUS फोरम की स्थापना का 10वाँ वर्ष है।
  • दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों का संगठन (Association of South East Asian Nations-ASEAN), एक क्षेत्रीय संगठन है जो एशिया-प्रशांत के उपनिवेशी राष्ट्रों में बढ़ते तनाव के बीच राजनीतिक और सामाजिक स्थिरता को बढ़ावा देने के लिये स्थापित किया गया था।

ADMM

प्रमुख बिंदु

  • आसियान के रक्षा मंत्रियों की बैठक के बारे में:
    • स्थापना: वर्ष 2007 में सिंगापुर में आयोजित ADMM की दूसरी बैठक में ADMM-Plus के गठन की बात की गई।
      • ADMM-Plus की पहली बैठक का आयोजन वर्ष 2010 में हनोई (वियतनाम) में किया गया।
    • उद्देश्य: ADMM-Plus आसियान और इसके आठ संवाद सहयोगी देशों के सुरक्षा संबंधी रणनीतिक संवाद और सहयोग को बढ़ावा देने के लिये उपयुक्त मंच प्रदान करता है।
    • सदस्यता: वर्तमान में  ADMM-Plus में दस आसियान सदस्य देशों के अलावा ऑस्ट्रेलिया, चीन, भारत, जापान, न्यूज़ीलैंड, कोरिया गणराज्य, रूसी संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैं।
    • अध्यक्ष: ADMM-Plus की अध्यक्षता ADMM के सदस्य देशों द्वारा की जाती है।
      • इस वर्ष बैठक की अध्यक्षता वियतनाम ने की
    • उद्देश्य: इसका उद्देश्य अधिक-से-अधिक संवाद और पारदर्शिता के माध्यम से रक्षा प्रतिष्ठानों के बीच आपसी विश्वास और समन्वय को बढ़ावा देना है।
    • सहयोग के क्षेत्र: इसमें समुद्री सुरक्षा, आतंकवाद विरोधी कार्रवाई, मानवीय सहायता और आपदा राहत, शांति अभियानों और सैन्य चिकित्सा क्षेत्र शामिल हैं।
  • वर्तमान बैठक उस समय हुई है जब भारत और चीन लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर आमने-सामने हैं, साथ ही दक्षिण चीन सागर में भी तनाव है।
  • बैठक में भारत का रुख:
    • भविष्य: दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के भविष्य को स्वतंत्रता, समावेशिता और स्पष्टता के मूल सिद्धांतों के आधार पर क्षेत्र में मौजूद चुनौतियों के सामूहिक समाधान की उनकी क्षमता द्वारा परिभाषित किया जाएगा।
    • कोविड-19: महामारी से निपटने के लिये सामूहिक और सहयोगी होने की आवश्यकता है।
    • चुनौतियाँ: नियम-आधारित आदेश, समुद्री सुरक्षा, साइबर संबंधी अपराध और आतंकवाद का खतरा।
      • ट्रांस बाउंड्री चुनौतियाँ तेज़ी से बढ़ती जा रही हैं, जिसके लिये ADMM-Plus देशों के मध्य सैन्य बातचीत और सहयोग की आवश्यकता है।
    • सहयोग हेतु उपाय: ADMM-Plus देशों के मध्य क्षेत्रीय प्रशिक्षण और टेबल-टॉप अभ्यास का संचालन एक-दूसरे को समझने, सुरक्षा बढ़ाने तथा क्षेत्र में शांति बनाए रखने के उद्देश्य से महत्त्वपूर्ण उपाय है।
      • उदाहरण: मैत्री (MAITREE) जो एक वार्षिक प्रशिक्षण कार्यक्रम है, इसे वर्ष 2006 से वैकल्पिक रूप से भारत तथा थाईलैंड में आयोजित किया जाता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


मानवाधिकार दिवस

चर्चा में क्यों?

विश्व भर में प्रतिवर्ष 10 दिसंबर को मानवाधिकार दिवस का आयोजन किया जाता है। ज्ञात हो कि इसी दिन संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 1948 में मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा (UDHR) को अपनाया था।

  • मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा (UDHR) के तहत मानवीय दृष्टिकोण और राज्य तथा व्यक्ति के बीच संबंध को लेकर कुछ सामान्य बुनियादी मूल्यों का एक सेट स्थापित किया है।
  • वर्ष 2020 की थीम: रिकवर बेटर- स्टैंड अप फॉर ह्यूमन राइट्स

प्रमुख बिंदु

मानवाधिकार

  • सरल शब्दों में कहें तो मानवाधिकारों का आशय ऐसे अधिकारों से है जो जाति, लिंग, राष्ट्रीयता, भाषा, धर्म या किसी अन्य आधार पर भेदभाव किये बिना सभी को प्राप्त होते हैं।
  • मानवाधिकारों में मुख्यतः जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार, गुलामी और यातना से मुक्ति का अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार तथा काम एवं शिक्षा का अधिकार, आदि शामिल हैं।
  • मानवाधिकारों के संबंध में नेल्सन मंडेला ने कहा था, ‘लोगों को उनके मानवाधिकारों से वंचित करना उनकी मानवता को चुनौती देना है।’

अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कन्वेंशन और निकाय

  • मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा (UDHR)
    • इसके अंतर्गत अधिकारों और स्वतंत्रताओं से संबंधित कुल 30 अनुच्छेदों को सम्मिलित किया गया है, जिसमें जीवन, स्वतंत्रता और गोपनीयता जैसे नागरिक और राजनीतिक अधिकार तथा सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकार शामिल हैं।
      • भारत ने मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा (UDHR) के प्रारूपण में सक्रिय भूमिका अदा की थी।
    • यह किसी भी प्रकार की संधि नहीं है, अतः यह प्रत्यक्ष तौर पर किसी भी देश के लिये कानूनी दायित्त्व निर्धारित नहीं करता है।
    • मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा (UDHR), इंटरनेशनल कान्वेंट ऑन सिविल एंड पॉलिटिकल राइट्स, इंटरनेशनल कान्वेंट ऑन इकोनॉमिक, सोशल एंड कल्चर राइट तथा इसके दो वैकल्पिक प्रोटोकॉल्स को संयुक्त रूप से ‘अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार विधेयक’ (International Bill of Human Rights) के रूप में जाना जाता है। 
  • अन्य कन्वेंशन
    • इसमें शामिल हैं:
    • ध्यातव्य है कि भारत इन सभी कन्वेंशन्स का हिस्सा है। 
  • मानवाधिकार परिषद
    • मानवाधिकार परिषद संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के भीतर एक अंतर-सरकारी निकाय है जो कि मानव अधिकारों के संवर्द्धन और संरक्षण की दिशा में कार्य करती है।  यह संयुक्त राष्ट्र के 47 सदस्य देशों से मिलकर बनी है, जिनका चयन संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा किया जाता है।
    • सार्वभौमिक आवधिक समीक्षा (UPR) प्रकिया को मानवाधिकार परिषद का सबसे अनूठा प्रयास माना जाता है। इस अनूठे तंत्र के अंतर्गत प्रत्येक चार वर्ष में एक बार संयुक्त राष्ट्र के सभी 192 सदस्य देशों के मानवाधिकार रिकॉर्ड की समीक्षा की जाती है।
  • एमनेस्टी इंटरनेशनल 
    • यह मानवाधिकारों की वकालत करने वाले कुछ स्वयंसेवकों का अंतर्राष्ट्रीय संगठन है। यह संगठन पूरी दुनिया में मानवाधिकारों के उल्लंघन पर स्वतंत्र रिपोर्ट प्रस्तुत करता है।
    • इसकी स्थापना वर्ष 1961 में पीटर बेन्सन नामक एक ब्रिटिश वकील द्वारा की गई थी और इसका मुख्यालय लंदन में स्थित है।

भारत में मानवाधिकार

संवैधानिक प्रावधान

  • मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा (UDHR) में उल्लिखित लगभग सभी अधिकारों को भारतीय संविधान में दो हिस्सों (मौलिक अधिकार और राज्य के नीति-निर्देशक सिद्धांत) में शामिल किया गया है।
  • मौलिक अधिकार: संविधान के अनुच्छेद 12 से 35 तक। इसमें समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, शोषण के विरुद्ध अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार, संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार तथा संवैधानिक उपचारों का अधिकार शामिल है।
  • राज्य के नीति-निर्देशक सिद्धांत: संविधान के अनुच्छेद 36 से 51 तक। इसमें सामाजिक सुरक्षा का अधिकार, काम का अधिकार, रोज़गार चयन का अधिकार, बेरोज़गारी के विरुद्ध सुरक्षा, समान काम तथा समान वेतन का अधिकार, मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार तथा मुफ्त कानूनी सलाह का अधिकार आदि शामिल हैं।

सांविधिक प्रावधान

  • मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 में केंद्रीय स्तर पर एक राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के गठन की बात कही गई है, जो कि संविधान में प्रदान किये गए मौलिक अधिकारों के संरक्षण और उससे संबंधित मुद्दों के लिये राज्य मानवाधिकार आयोगों और मानवाधिकार न्यायालयों का मार्गदर्शन करेगा।

हालिया घटनाक्रम

  • अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद जम्मू-कश्मीर की मौजूदा स्थिति और नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के कारण भारत पुनः मानवाधिकार को लेकर अंतर्राष्ट्रीय चर्चा के केंद्र में आ गया है।
  • वर्ष 2014 से अब तक सरकार विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम (Foreign Contribution Regulation Act) के तहत 14,000 से अधिक गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) का पंजीकरण रद्द कर चुकी है और इस कार्यवाही के तहत मुख्य तौर पर सरकार के आलोचकों को लक्षित किया गया है।
  • बीते कई वर्षों से मुस्लिमों और अन्य धार्मिक अल्पसंख्यक समूहों के साथ-साथ दलितों तथा आदिवासियों के विरुद्ध बड़ी संख्या में लिंग व जाति आधारित अपराध की घटनाएँ दर्ज की जा रही हैं।
  • ‘फ्रीडम इन द वर्ल्ड 2020’ रिपोर्ट में भारत को तिमोर-लेस्ते (Timor-Leste) और सेनेगल (Senegal) के साथ 83वें स्थान पर रखा गया है। इस वर्ष भारत का स्कोर चार अंक गिरकर 71 हो गया, जो इस वर्ष विश्व के 25 सबसे बड़े लोकतंत्रों के स्कोर में सबसे अधिक गिरावट है।
  • सरकार द्वारा किये गए उपाय:
    • कोरोना वायरस महामारी के दौरान सरकार ने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के माध्यम से प्रत्येक व्यक्ति के लिये आवश्यक भोजन सुनिश्चित करने का प्रयास किया है, ताकि कोई भी भूखा न रहे।
    • इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में श्रमिकों के सशक्तीकरण के लिये मनरेगा के तहत किये गए काम की मज़दूरी दर में भी वृद्धि की गई है। सरकार ने महामारी से प्रभावित प्रवासी मज़दूरों के अधिकारों को सुनिश्चित करने और जीवनयापन में उनकी सहायता करने के लिये उनके बैंक खातों में प्रत्यक्ष धन हस्तांतरण की व्यवस्था की है।

आगे की राह

  • मानवाधिकारों को सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) का केंद्रबिंदु माना जाता है, क्योंकि मानवीय गरिमा के अभाव में कोई भी व्यक्ति सतत् विकास की उम्मीद नहीं कर सकता है।
  • कोरोना वायरस संकट के कारण गरीबी तथा असमानता को कम करने और मानवाधिकारों के उल्लंघन को रोकने की दिशा में हो रहे प्रयासों पर गहरा प्रभाव पड़ा है तथा गरीबी, असमानता, भेदभाव जैसे मुद्दों ने और भी गंभीर रूप धारण कर लिया है। इन अंतरालों को कम करने तथा मानवाधिकारों को बढ़ावा देने के प्रयासों के माध्यम से ही अधिक बेहतर और सतत् विश्व का निर्माण सुनिश्चित किया जा सकता है।

स्रोत: पी.आई. बी.


मोरक्को और इज़राइल के सामान्य होते संबंध

चर्चा में क्यों?

हाल ही में मोरक्को और इज़राइल ने संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) की मध्यस्थता में अपने संबंधों को सामान्य करने पर सहमति व्यक्त की है।

Morocco

प्रमुख बिंदु:

समझौते की मुख्य विशेषताएँ:

  • मोरक्को, इज़राइल के साथ पूर्ण राजनयिक संबंध स्थापित करेगा और आधिकारिक संपर्क फिर से शुरू करेगा, साथ ही वह रबात (मोरक्को की राजधानी) और तेल अवीव (इज़राइल का एक शहर) में अपने संपर्क कार्यालयों को फिर से खोल देगा ताकि दूतावासों की शुरुआत की जा सके और इज़राइल तथा मोरक्को की कंपनियों के मध्य आर्थिक सहयोग बढ़ाया जा सके।
  • मोरक्को, इज़राइल के पर्यटकों के लिये मोरक्को से इज़राइल और इज़राइल से मोरक्को के लिये सीधी उड़ानों की सुविधा देना चाहता है।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका ने अपनी बहुकालीन नीति को बदल दिया है और पश्चिमी सहारा पर मोरक्को की संप्रभुता को मान्यता दे दी है।
    • वर्ष 2007 के बाद से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UN Security Council), जिसमें संयुक्त राज्य अमेरिका एक वीटो-सक्षम स्थायी सदस्य है, ने मोरक्को और पोलिसारियो को "पारस्परिक रूप से स्वीकार्य राजनीतिक समाधान" के लिये पूर्व शर्त के बिना वार्ता में शामिल होने का आह्वान किया है जो पश्चिमी सहारा के लोगों के आत्मनिर्णय के लिये होगा। ”

लाभ:

  • USA, ईरान के खिलाफ एकजुट मोर्चा खोलने और तेहरान के क्षेत्रीय प्रभाव को कम करने के प्रयासों में लगा हुआ है।
  • इसे एक संप्रभु कदम माना जा सकता है और यह क्षेत्र में स्थिरता, समृद्धि एवं स्थायी शांति के लिये सार्वजनिक अनुसंधान सुनिश्चित करने में योगदान देगा
  • यह समझौता पश्चिम के साथ मोरक्को के जुड़ाव को और मज़बूत करेगा तथा इज़राइल के उस प्रयोजन को भी बढ़ावा देगा, जिसके चलते इसने फिलिस्तीनियों के साथ किसी भी प्रकार की प्रगति के अभाव में अफ्रीका एवं अरब जगत के उन देशों के साथ संबंध स्थापित करने को प्राथमिकता दी जो कि पूर्व में इसके प्रतिरोधी हुआ करते थे।

प्रतिक्रिया:

  • फिलिस्तीन ने इस समझौते के संबंध में कहा है कि यह सामान्यीकरण तभी संभव है जब इज़राइल वर्ष 2002 की अरब शांति पहल के अनुसार, फिलिस्तीन और अरब भूमि पर से अपना कब्ज़ा खत्म कर लेगा
  • मिस्र और संयुक्त अरब अमीरात ने मोरक्को के फैसले का स्वागत किया है।
    • मिस्र और इज़राइल ने वर्ष 1979 में एक शांति संधि पर हस्ताक्षर किये थे।
  • पोलिसारियो मोर्चे ने USA की नीति में किये गए बदलाव पर 'अत्यधिक अफसोस" जताया है, जिसे उसने "अजीब लेकिन आश्चर्यजनक नहीं" कहा। उसका मानना है कि यह समझौता संघर्ष की वास्तविक स्थिति और पश्चिमी सहारा के लोगों के आत्मनिर्णय के अधिकार को नहीं बदलेगा।

पश्चिमी सहारा

Western-Sahara

  • पश्चिमी सहारा एक रेगिस्तानी इलाका है, जो पूर्व में एक स्पेनिश उपनिवेश था और वर्ष 1975 में मोरक्को द्वारा इसे हड़प लिया गया था।
  • यह इसकी स्वतंत्रता के समर्थक पोलिसारियो मोर्चा के नेतृत्व में मोरक्को और उसके स्वदेशी सहरावी लोगों के मध्य लंबे समय से चले आ रहे क्षेत्रीय विवाद का विषय रहा है।
  • मोरक्को का कहना है कि यह सदैव उसके क्षेत्र का हिस्सा रहा है, जबकि अफ्रीकी संघ इसे एक स्वतंत्र राज्य के रूप में मान्यता देता है।
  • वर्ष 1991 में संयुक्त राष्ट्र की युद्धविराम मध्यस्थता समझौते के कारण 16 वर्षों से चले आ रहे उग्रवाद का अंत तो हो गया परंतु स्वतंत्रता के लिये जनमत संग्रह हेतु किया गया वादा अभी  पूर्ण होना बाकी है।
  • USA ने मोरक्को और पोलिसारियो मोर्चे के मध्य संघर्ष विराम का समर्थन किया।
  • नवंबर 2020 में पोलिसारियो उस समझौते से बाहर हो गया और उसने पुनः सशस्त्र संघर्ष की घोषणा कर दी।
  • पश्चिमी सहारा पर संप्रभुता के लिये मोरक्को के दावे के संबंध में USA का समर्थन एक बड़ी बात है क्योंकि यह उन लोगों को निराश कर देगा जो दशकों से उस क्षेत्र की स्वतंत्रता की महत्त्वाकांक्षा रखते हैं

आगे की राह:

  • राष्ट्रपति जो बिडेन इस दुविधा में पड़ सकते हैं कि क्या पश्चिमी सहारा पर USA के समझौते को स्वीकार करना चाहिये, क्योंकि अब तक किसी अन्य पश्चिमी देश ने  ऐसा कदम नहीं उठाया है।
  • बिडेन को उम्मीद है कि वह USA की विदेश नीति में "अमेरिका फर्स्ट" की स्थिति को बदलेंगे। वह इज़राइल, अरब और मुस्लिम राष्ट्रों के मध्य "अब्राहम समझौते" के लक्ष्य को जारी रखेंगे।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस