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डेली न्यूज़

  • 11 Sep, 2023
  • 55 min read
भूगोल

भारतीय जलाशयों के जल स्तर में गिरावट

प्रिलिम्स के लिये:

केंद्रीय जल आयोग, अल नीनो, हिंद महासागर द्विध्रुव

मेन्स के लिये:

भारत के जलाशयों का महत्त्व, जल की कम उपलब्धता का परिणाम, अल नीनो, MJO और IOD का भारत के मानसून पैटर्न एवं वर्षा पर प्रभाव

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों? 

भारत, मानसूनी बारिश पर बहुत अधिक निर्भर देश है, अगस्त 2023 में बारिश में अभूतपूर्व कमी के कारण इसे अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ा।

  • इसके परिणामस्वरूप देश के प्रमुख जलाशयों के जल स्तर में भारी गिरावट के कारण घरों, उद्योगों तथा विद्युत उत्पादन के लिये जलापूर्ति चिंता का विषय बन गई है।
  • सामान्यतः अगस्त एक ऐसा महीना होता है जिसमें भारत के जलाशयों में जल भंडारण का स्तर काफी बढ़ जाता है लेकिन वर्ष 2023 का अगस्त इस संदर्भ में एक अपवाद था क्योंकि यह महीना पिछले 120 से अधिक वर्षों में सबसे शुष्क रहा। अपेक्षित 255 मिमी. वर्षा के बजाय देश में केवल 162 मिमी. वर्षा हुई, जिसके परिणामस्वरूप 36% वर्षा कम हुई।

भारतीय जलाशयों की स्थिति:

  • केंद्रीय जल आयोग (Central Water Commission- CWC) के अनुसार, 31 अगस्त, 2023 तक  भारत के 150 जलाशयों की लाइव स्टोरेज 113.417 बिलियन क्यूबिक मीटर थी, जो उनकी कुल स्टोरेज क्षमता का 63% थी।
    • यह वर्ष 2022 की इसी अवधि के भंडारण से लगभग 23% कम और पिछले 10 वर्षों के औसत से लगभग 10% कम थी।
  • विभिन्न क्षेत्रों और नदी घाटियों में जलाशयों में जल का स्तर भिन्न-भिन्न पाया गया। दक्षिणी क्षेत्र, जहाँ अगस्त में 60% कम वर्षा हुई, उसका भंडारण स्तर 49% यानी उसकी संयुक्त क्षमता के अनुसार सबसे कम था।
  • पूर्वी क्षेत्र, जहाँ सामान्य वर्षा हुई, उसका भंडारण स्तर 82% यानी उसकी संयुक्त क्षमता के अनुसार उच्चतम था।
  • कुछ नदी घाटियाँ जिनमें जल स्तर अत्यधिक कम अथवा न्यून था:
    • अत्यधिक कम:
      • कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में पेन्नार बेसिन
      • छत्तीसगढ़ और ओडिशा में महानदी बेसिन
    • कम:
      • झारखंड, पश्चिम बंगाल और ओडिशा में सुवर्णरेखा, ब्राह्मणी तथा वैतरणी बेसिन
      • कर्नाटक और तमिलनाडु में कावेरी बेसिन
      • पश्चिमी भारत में माही बेसिन
      • महाराष्ट्र, कर्नाटक और तेलंगाना में कृष्णा बेसिन
  • उत्तरी क्षेत्र को छोड़कर पूर्वी, पश्चिमी, मध्य और दक्षिणी क्षेत्रों के जलाशयों में जल भंडारण पिछले वर्ष (2022) की तुलना में कम है।

टिप्पणी:

  • CWC के अनुसार, नदी बेसिन में 20% की कमी सामान्य के निकट है।
  • यदि कमी 20% से अधिक और 60% से कम या उसके बराबर हो तो एक बेसिन में गिरावट के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
  • 60% से अधिक की कमी को अत्यधिक गिरावट कहा जाता है।

इस जल संकट के परिणाम:

  • कृषि: 
    • जलाशय फसलों की सिंचाई हेतु जल उपलब्ध कराते हैं, विशेषकर रबी मौसम के दौरान। जल की कम उपलब्धता फसल उत्पादन और किसानों की आय को प्रभावित कर सकती है।
  • ऊर्जा: 
    • जलाशय जलविद्युत उत्पादन के लिये भी जल की आपूर्ति करते हैं, जो भारत में कुल विद्युत ऊर्जा उत्पादन का 12% से अधिक है।
      • शुष्क अगस्त के कारण मुख्य रूप से सिंचाई उद्देश्यों के लिये विद्युत ऊर्जा की मांग में अप्रत्याशित वृद्धि हुई।
        • अगस्त में विद्युत ऊर्जा उत्पादन रिकॉर्ड ऊँचाई पर पहुँच गया, जिससे जलाशयों में जल के अनिश्चित स्तर के कारण कोयला आधारित विद्युत ऊर्जा संयंत्रों से अतिरिक्त विद्युत ऊर्जा उत्पादन की आवश्यकता महसूस की गई।
  • पर्यावरण:
    • जलाशय जैवविविधता और पारिस्थितिकी तंत्र व्यवस्थाओं, जैसे बाढ़ नियंत्रण, भूजल- पुनर्भरण, मत्स्यपालन और मनोरंजन का भी समर्थन करते हैं। निम्न जल स्तर इन कार्यों को प्रभावित कर सकता है और पारिस्थितिक क्षति का कारण बन सकता है।
  • जल आपूर्ति पर प्रभाव:
    • भारत की वार्षिक वर्षा मुख्य रूप से दक्षिण-पश्चिम मानसून के मौसम पर निर्भर होती है, जिससे इन जलाशयों से वर्ष भर जल की आपूर्ति की जाती है। जल भंडारण की कमी घरेलू कार्यों को खतरे में डालती है।

अल्प वर्षा के कारण:

  • अल-नीनो: 
    • अल-नीनो एक जलवायु संबंधी घटना है जो मध्य और पूर्वी प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह का तापमान सामान्य से ऊपर बढ़ने पर घटित होती है।
      • यह वैश्विक मौसम पैटर्न को प्रभावित करती है तथा मानसून के मौसम के दौरान भारत में वर्षा को कम करती है।
      • भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार, अल-नीनो अगस्त 2023 के दौरान मौजूद था तथा सितंबर तक इसके बने रहने की उम्मीद थी।
      • IMD ने अनुमान लगाया है कि सितंबर में बारिश 10% से कम नहीं होगी।
        • हालाँकि भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में अल-नीनो का मंडराता खतरा, जो अभी भी बढ़ रहा है, भारत के जल संसाधनों के लिये एक गंभीर खतरा है।
  • हिंद महासागर द्विध्रुव (IOD):
    • हिंद महासागर द्विध्रुव (IOD) को दो क्षेत्रों (अथवा ध्रुवों, अतः द्विध्रुव) के मध्य समुद्र की सतह के तापमान में अंतर से परिभाषित किया जाता है, वे दो क्षेत्र, अरब सागर (पश्चिमी हिंद महासागर) में पश्चिमी ध्रुव तथा पूर्वी हिंद महासागर के दक्षिण में इंडोनेशिया का पूर्वी ध्रुव हैं।
    • IOD ऑस्ट्रेलिया तथा हिंद महासागर बेसिन के आसपास के अन्य देशों की जलवायु को प्रभावित करता है एवं इस क्षेत्र में वर्षा की परिवर्तनशीलता में महत्त्वपूर्ण योगदानकर्ता है।
      • IMD के अनुसार, IOD के इस वर्ष मानसूनी वर्षा के लिये अनुकूल होने की उम्मीद थी, लेकिन इसका ज़्यादा प्रभाव नहीं पड़ा।

आगे की राह

  • ड्रिप सिंचाई हेतु वर्षा जल संचयन तकनीकों को अपनाने सहित कृषि में कुशल जल प्रबंधन प्रथाओं को बढ़ावा देना चाहिये।
    • जल-गहन खेती पर निर्भरता को कम करने के लिये फसल विविधीकरण तथा सूखा प्रतिरोधी फसलों की खेती को प्रोत्साहित करना चाहिये। 
  • अलवणीकरण, अपशिष्ट जल उपचार, स्मार्ट जल प्रौद्योगिकी और जलवायु-लचीली कृषि जैसी जल नवाचार पहल, जल आपूर्ति व  दक्षता बढ़ाने तथा जल चुनौतियों एवं अनिश्चितताओं से निपटने में मदद कर सकती है।
  • विशेष रूप से शुष्क अवधि के दौरान जलविद्युत उत्पादन पर निर्भरता कम करने के लिये सौर और पवन ऊर्जा जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में निवेश करना चाहिये ।
  • जल के उपयोग और संरक्षण के महत्त्व के विषय में जनता के बीच जागरूकता बढ़ाना।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. भारतीय मानसून का पूर्वानुमान करते समय कभी-कभी समाचारों में उल्लिखित ‘इंडियन ओशन डाइपोल (IOD)’ के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2017)

  1. IOD परिघटना, उष्णकटिबंधीय पश्चिमी हिंद महासागर एवं उष्णकटिबंधीय पूर्वी प्रशांत महासागर के बीच सागर पृष्ठ तापमान के अंतर से विशेषित होती है।
  2. IOD परिघटना मानसून पर अल-नीनो के असर को प्रभावित कर सकती है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न: आप कहाँ तक सहमत हैं कि मानवीकारी दृश्यभूमियों के कारण भारतीय मानसून के आचरण में परिवर्तन होता रहा है। चर्चा कीजिये। (2015)

प्रश्न.  'जलवायु परिवर्तन' एक वैश्विक समस्या है। जलवायु परिवर्तन से भारत कैसे प्रभावित होगा? भारत के हिमालयी और तटीय राज्य जलवायु परिवर्तन से कैसे प्रभावित होंगे? (2017)


जैव विविधता और पर्यावरण

रोगाणुरोधी प्रतिरोध के लिये बायोमाॅनीटरिंग कारक के रूप में यूरोपीय मधुमक्खियाँ

प्रिलिम्स के लिये:

यूरोपीय मधुमक्खियाँ, मधुमक्खियों का व्यवहार, IUCN रेड लिस्ट

मेन्स के लिये:

रोगाणुरोधी प्रतिरोध और इसके प्रभाव

स्रोत: डाउन टू अर्थ

चर्चा में क्यों? 

हालिया एक नए अध्ययन में पाया गया है कि शहरी क्षेत्रों में रोगाणुरोधी प्रतिरोध (Antimicrobial Resistance- AMR) के प्रसार की निगरानी के लिये यूरोपीय मधुमक्खियों को बायोमाॅनीटरिंग कारक के रूप में उपयोग करना एक अनूठा और प्रभावी तरीका हो सकता है।

अध्ययन के प्रमुख बिंदु:

  • चूँकि भोजन की तलाश के दौरान यूरोपीय मधुमक्खियाँ मृदा, धूल, वायु, जल और पराग जैसे विभिन्न शहरी तत्त्वों में मौजूद दूषित पदार्थों के संपर्क में आती हैं, ये प्रभावी रूप से डेटा "क्राउडसोर्सिंग" के लिये एक विशिष्ट पर्यावरणीय विकल्प के रूप में काम करती हैं।
    • चूँकि उनका जीवनकाल लगभग 4 सप्ताह तक का होता है, वे पर्यावरण में रोगाणुरोधी प्रतिरोध के स्तर संबंधी त्वरित जानकारी प्रदान करने में मदद कर सकती हैं।
  • शोधकर्ताओं ने मानव स्वास्थ्य के लिये खतरनाक प्रदूषण की पहचान करने में इन मधुमक्खियों के महत्त्व पर पर प्रकाश डाला है। उन्होंने 144 मधुमक्खियों के आँतों के बैक्टीरिया की जाँच के बाद AMR की निगरानी के लिये एक सार्वभौमिक मार्कर के रूप में क्लास 1 इंटेग्रोन्स (intI1) की खोज की।
    • खोज में पाया गया कि शहरी क्षेत्र की 52% मधुमक्खियाँ intI1 पॉज़िटिव थीं।
    • इंटेग्रोन्स नामक गतिशील DNA तत्त्व जीन (विशेष रूप से एंटीबायोटिक प्रतिरोध के लिये उत्तरदायी जीन) को एकत्रित करने और उन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान ले जाने में सक्षम होता है।
  • इसके अलावा शोधकर्ताओं ने ग्रेटर सिडनी, ऑस्ट्रेलिया में नागरिक-वैज्ञानिक मधुमक्खी पालकों के स्वामित्व वाले 18 छत्तों में से प्रत्येक से आठ मधुमक्खियों की जाँच की।
    • सभी छत्तों में से 80% मधुमक्खियों का एक या अधिक AMR लक्ष्यों के लिये सकारात्मक परीक्षण किया गया।
    • बाँधों और झीलों जैसे जल निकायों के पास इनकी उच्च सांद्रता देखी गई।

यूरोपीय मधुमक्खियाँ:

  • परिचय
    • यूरोपीय मधुमक्खियाँ (Apis mellifera) जिन्हें सामान्यतः पश्चिमी मधुमक्खी कहा जाता है, उनके दो जोड़े पंख होते हैं और काले या भूरे रंग के साथ उनके पेट/उदर पर विशिष्ट पीली धारियाँ देखी जाती हैं।
      • वे खोखले पेड़ या घर की दीवार जैसी किसी गुहा में घोंसला बनाना पसंद करते हैं।
    • IUCN रेड लिस्ट में उनका मूल्यांकन "डेटा की कमी" के रूप में किया गया है।
  • वितरण:
    • यह प्रजाति मुख्य रूप से पूरे यूरोप में प्रबंधित मधुमक्खी कॉलोनियों में रहती है, हालाँकि विभिन्न प्रकार के आवासों में संभावित रूप से जंगली मधुमक्खी कालोनियाँ पाई जाती हैं।
      • सामान्यतः यह प्रजाति समशीतोष्ण वनों, घास के मैदानों और यहाँ तक कि अर्द्ध-रेगिस्तानों में भी पाई जा सकती है।

मधुमक्खी की सामाजिक संरचना और व्यवहार: 

  • सामाजिक संरचना:
    • उनमें से रानी मधुमक्खियाँ ही केवल ऐसी मादा मधुमक्खी है जो प्रजनन करती है और आकार में बड़ी  होती है।
    • ड्रोन (पुंमक्षिका), जो कि नर होते हैं, मादा मधुमक्खी की तुलना में यह मध्यम आकार के होते हैं विशेष रूप से इनकी आँखें बड़ी होती हैं।
    • श्रमिक मधुमक्खियाँ, छोटी बंध्य मादाएँ हैं जिनमें काँटेदार डंक होते हैं तथा इनके पास पराग की टोकरियों के रूप में उपयोग किये जाने वाले विशिष्ट पश्च पाद (hind legs) होते हैं।
  • व्यवहार:
    • संचार: वे खाद्य स्रोतों और छत्ते की स्थितियों के बारे में जानकारी प्रसारित करने के लिये "वैगल डांस" (दोलन नृत्य) नामक नृत्य की एक जटिल प्रणाली के माध्यम से संवाद करती हैं।
    • छत्ते का निर्माण: मधुमक्खियाँ शहद, पराग को संग्रहीत करने और प्रजनन के लिये मोम से बनी जटिल षटकोणीय छत्ते की संरचनाओं का निर्माण करती हैं।
    • परागण: शहद और पराग की खोज करते समय, मधुमक्खियाँ अनजाने में कई पौधों की प्रजातियों को परागित कर देती हैं, जिससे पौधों के प्रजनन में सहायता मिलती है।

रोगाणुरोधी प्रतिरोध: 

नोट: फरवरी 2023 में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की रिपोर्ट में चेतावनी दी गई थी कि AMR की अनियंत्रित वृद्धि से वर्ष 2050 तक वार्षिक रूप से 10 मिलियन व्यक्तियों की मौत हो सकती है।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा जीव अपने सगे-संबंधियों को अपने खाद्य के स्रोत की दिशा और दूरी इंगित करने के लिये दोलन नृत्य (वैगल डांस) करता है?(2023)

(a) तितली  
(b) 
व्याध पतंग (ड्रैगन फ्लाई )
(c) मधुमक्खी
(d) बर्र

उत्तर: C


प्रश्न. जीवों के निम्नलिखित प्रकारों पर विचार कीजिये: (2012) 

  1. चमगादड़
  2. मधुमक्खी
  3. पक्षी

उपर्युक्त में से कौन-सा/से परागणकारी है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन भारत में माइक्रोबियल रोगजनकों में बहु-दवा प्रतिरोध की घटना के कारण हैं? (2019)

  1. कुछ लोगों की आनुवंशिक प्रवृत्ति 
  2. बीमारियों को ठीक करने के लिये एंटीबायोटिक दवाओं की गलत खुराक लेना 
  3. पशुपालन में एंटीबायोटिक का प्रयोग 
  4. कुछ लोगों में कई पुरानी बीमारियाँ

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1, 3 और 4
(d) केवल 2, 3 और 4

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न: क्या एंटीबायोटिकों का अति-उपयोग और डॉक्टरी नुस्खे के बिना मुक्त उपलब्धता, भारत में औषधि-प्रतिरोधी रोगों के अविर्भाव के अंशदाता हो सकते हैं? अनुवीक्षण एवं नियंत्रण की क्या क्रियाविधियाँ उपलब्ध हैं? इस संबंध में विभिन्न मुद्दों पर समालोचनापूर्वक चर्चा कीजिये। (2014)


शासन व्यवस्था

सेवा शुल्क पर दिल्ली उच्च न्यायालय का आदेश

प्रिलिम्स के लिये:

फेडरेशन ऑफ होटल एंड रेस्तराँ एसोसिएशन ऑफ इंडिया, दिल्ली उच्च न्यायालय, केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण

मेन्स के लिये:

सेवा शुल्क पर दिल्ली उच्च न्यायालय का आदेश, सेवा शुल्क से संबंधित मुद्दे

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक अंतरिम आदेश जारी किया है जिसमें फेडरेशन ऑफ होटल एंड रेस्तराँ एसोसिएशन ऑफ इंडिया (FHRAI) के सदस्यों को 'सेवा शुल्क (Service Charge)' शब्द के स्थान पर 'कर्मचारी योगदान (Staff Contribution)' का उपयोग करने का निर्देश दिया गया है और यह भी कि चार्ज की जाने वाली राशि कुल बिल का 10% से अधिक नहीं होनी चाहिये। 

मामला:

  • पृष्ठभूमि:
    • यह आदेश नेशनल रेस्तराँ एसोसिएशन ऑफ इंडिया (NHRAI) और FHRAI द्वारा दायर याचिकाओं को ध्यान में रखते हुए पारित किया गया था, इन याचिकाओं में केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (Central Consumer Protection Authority- CCPA) द्वारा जारी जुलाई 2022 के दिशा-निर्देशों को चुनौती दी गई थी। ये दिशा-निर्देश केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण द्वारा उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 की धारा 18(2)(1) के तहत जारी किये गए थे।
    • CCPA दिशा-निर्देशों में कहा गया है कि उपभोक्ताओं से किसी अन्य नाम से सेवा शुल्क नहीं लिया जाना चाहिये और ये शुल्क वैकल्पिक एवं स्वैच्छिक होने चाहिये।
    • उनके पास विकल्प होना चाहिये कि वे बिल से सेवा शुल्क हटाने का अनुरोध कर सकें।
      • ई-दाखिल पोर्टल के माध्यम से किसी प्रकार के अनुचित व्यापार प्रथाओं के खिलाफ शिकायत शीघ्र निवारण अथवा अन्य उद्देश्यों के लिये उपभोक्ता आयोग के पास इलेक्ट्रॉनिक रूप से भी दर्ज की जा सकती है।
    • इन दिशा-निर्देशों में उपभोक्ताओं को सूचित किये बिना बिल में स्वचालित रूप से सेवा शुल्क जोड़ने या शामिल करने पर भी रोक लगा दी गई है। 
    • ये दिशा-निर्देश उपभोक्ताओं की शिकायतों के जवाब में पेश किये गए थे, क्योंकि कई रेस्तराँ और होटल स्पष्ट रूप से यह बताए बिना कि भुगतान स्वैच्छिक था, सेवा शुल्क लगा रहे थे।
    • CCPA द्वारा उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 की धारा 18(2)(1) के तहत दिशा-निर्देश जारी किये गए थे।

नोट: अधिनियम की धारा 18(2)(1) के तहत CCPA ने होटल और रेस्तराँ पर सेवा शुल्क लगाने के संबंध में अनुचित व्यापार प्रथाओं को रोकने और उपभोक्ता हितों की सुरक्षा के लिये दिशा-निर्देश जारी किये हैं।

  • न्यायालय का प्रारंभिक स्थगन:
    • जुलाई 2022 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने CCPA दिशा-निर्देशों पर इस शर्त के अधीन रोक लगा दी थी कि एसोसिएशन मेनू या अन्य जगहों पर सेवा शुल्क का स्पष्ट प्रदर्शन सुनिश्चित करें, साथ ही ग्राहकों को इसे भुगतान करने के दायित्व के विषय में सूचित करें।
    • शुरुआत में इस पर स्टे अवधि को बढ़ा दिया गया था।
  • न्यायालय द्वारा विकसित निर्देश:
    • अप्रैल 2023 में न्यायालय ने स्पष्ट किया कि अंतरिम आदेश से उपभोक्ताओं को गुमराह नहीं किया जाना चाहिये। न्यायालय ने भ्रम को रोकने के लिये "सेवा शुल्क" हेतु वैकल्पिक शब्दावली तलाशने का भी सुझाव दिया।
    • न्यायालय ने याचिकाकर्ताओं को यह सूचना देने का आदेश दिया कि उनके कितने प्रतिशत सदस्यों ने अनिवार्य रूप से सेवा शुल्क लगाया है और क्या इसका नाम बदलने पर कोई आपत्ति है।
  • न्यायालय का हालिया निर्णय:
    • FHRAI ने "सेवा शुल्क" का नाम बदलकर "कर्मचारी योगदान" करने की इच्छा व्यक्त की। हालाँकि NRAI ने पिछले निर्णयों और इस तथ्य का हवाला देते हुए इस बदलाव का विरोध किया कि उसके सदस्यों के एक महत्त्वपूर्ण प्रतिशत ने सेवा शुल्क लगाया था।
    • न्यायालय ने सेवा शुल्क लगाने के संबंध में FHRAI की सदस्यता में एकरूपता की कमी पर ध्यान दिया।
    • परिणामस्वरूप उच्च न्यायालय ने FHRAI सदस्यों को 'कर्मचारी योगदान' शब्द को अपनाने और इसे कुल बिल राशि का 10% तक सीमित करने का निर्देश दिया।   
  • 2017 दिशा-निर्देशों से संबंध:
    • वर्ष 2022 के सेवा शुल्क दिशा-निर्देशों का उद्देश्य केंद्र सरकार द्वारा जारी वर्ष 2017 के दिशा-निर्देशों के पूरक के रूप में कार्य करना था, न कि इसे प्रतिस्थापित करना था। वर्ष 2017 के इन दिशा-निर्देशों ने अनुचित व्यापार प्रथाओं के विषय में चिंताओं को संबोधित करते हुए ग्राहकों की स्पष्ट सहमति के बिना होटल और रेस्तराँ द्वारा सेवा शुल्क लगाए जाने पर रोक लगा दी थी।
    • निष्कर्षतः 10% की सीमा के साथ 'सेवा शुल्क' का नाम बदलकर 'कर्मचारी योगदान' करने का दिल्ली उच्च न्यायालय का हालिया निर्णय उद्योग संघों और उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरणों के बीच चल रही कानूनी लड़ाई में एक महत्त्वपूर्ण विकास का प्रतिनिधित्व करता है।
      • यह मामला भारत के उपभोक्ता संरक्षण नियमों के अनुरूप रेस्तराँ बिलिंग प्रथाओं में पारदर्शिता और उपभोक्ता की पसंद के महत्त्व पर प्रकाश डालता है।

नोट:

  • FHRAI, आतिथ्य उद्योग का प्रतिनिधित्व करने वाले चार क्षेत्रीय संघों का सर्वोच्च निकाय है।
  • नेशनल रेस्तराँ एसोसिएशन ऑफ इंडिया (NRAI) भारतीय रेस्तराँ उद्योग की आवाज़ है। वर्ष 1982 में स्थापित NRAI भारतीय खाद्य सेवा क्षेत्र को बढ़ावा देने और मज़बूत करने की इच्छा रखता है।

सेवा शुल्क:

  • परिचय:
    • सेवा शुल्क एक ऐसा शुल्क है जो कभी-कभी व्यवसायों द्वारा बिल या चालान में जोड़ा जाता है, विशेष रूप से रेस्तराँ, होटल और बैंक्वेट हॉल जैसे आतिथ्य उद्योग में।
    • इसका उद्देश्य वेटर्स, सर्वर और अन्य सेवा कर्मियों सहित कर्मचारियों द्वारा प्रदान की गई सेवा की लागत को कवर करना है।
    • इसे ग्राहक सेवा शुल्क या रखरखाव शुल्क भी कहा जा सकता है।
      • रेस्तराँ तथा होटल आमतौर पर खाने के बिल पर 10% सेवा शुल्क लगाते हैं।
  • समस्याएँ:
    • पारदर्शिता की कमी: सेवा शुल्क के संदर्भ में प्राथमिक मुद्दों में से एक पारदर्शिता की कमी है। ग्राहकों को अक्सर बिल प्राप्त होने तक सेवा शुल्क शामिल करने के बारे में सूचित नहीं किया जाता है। अग्रिम जानकारी के अभाव के कारण भ्रम तथा असंतोष पैदा हो सकता है।
    • अनिवार्य प्रकृति: कई मामलों में सेवा शुल्क अनिवार्य होते हैं, जिसका अर्थ है कि ग्राहकों को उन्हें प्राप्त सेवा की गुणवत्ता की परवाह किये बिना भुगतान करना पड़ता है। यह अनिवार्य पहलू समस्याग्रस्त हो सकता है खासकर यदि सेवा, ग्राहक की अपेक्षाओं से निम्न है
    • सेवा की गुणवत्ता: चूँकि सेवा शुल्क कर्मचारियों को अतिरिक्त आय की गारंटी देता है, इसलिये यह असाधारण सेवा प्रदान करने के लिये सेवा कर्मियों के प्रोत्साहन को कम कर सकता है। इससे संतुष्टि मिल सकती है लेकिन सेवा की समग्र गुणवत्ता में कमी आ सकती है।
    • विवशता: ग्राहक सेवा शुल्क का भुगतान करने के लिये मजबूरी अथवा दबाव महसूस कर सकते हैं, भले ही वे सेवा से असंतुष्ट हों। इस बाध्यता के परिणामस्वरूप ग्राहक को असुविधा तथा असंतोष हो सकता है।

सीसीपीए (CCPA):

  • इसकी स्थापना वर्ष 2019 के उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम (CPA) के तहत की गई थी।
  • इसे उपभोक्ता अधिकारों के दुरुपयोग, अनुचित व्यापार प्रथाओं तथा जनता के हित के लिये हानिकारक झूठी अथवा भ्रामक मार्केटिंग को विनियमित करने का अधिकार है।
  • इसके पास CPA, 2019 की धारा 18 के तहत उपभोक्ताओं के अधिकारों की सुरक्षा, प्रचार और सबसे महत्त्वपूर्ण कि रक्षा करने एवं अधिनियम के तहत उनके अधिकारों के उल्लंघन को रोकने का अधिकार है।
  • इसके अलावा यह उपभोक्ता अधिकारों को बढ़ावा देता है और यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी व्यक्ति अनुचित व्यापार प्रथाओं में संलग्न न हो तथा इसे उपभोक्ताओं के अधिकारों को लागू करने के लिये दिशा-निर्देश जारी करने का भी अधिकार है।


शासन व्यवस्था

पश्चिम बंगाल में नई शिक्षा नीति

प्रिलिम्स के लिये:

पश्चिम बंगाल में नई शिक्षा नीति, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, समवर्ती विषय, क्षेत्रीय स्वायत्तता, परख (समग्र विकास के लिये कार्य-प्रदर्शन आकलन, समीक्षा और ज्ञान का विश्लेषण)

मेन्स के लिये:

पश्चिम बंगाल में नई शिक्षा नीति, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के बारे में राज्यों द्वारा व्यक्त चिंताएँ

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में पश्चिम बंगाल सरकार ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के कुछ पहलुओं को कम करते हुए वर्ष 2023 के लिये अपनी राज्य शिक्षा नीति की घोषणा की है।

  • केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे कई राज्यों ने भी राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को पूरी तरह से अपनाने से इनकार कर दिया है।

पश्चिम बंगाल शिक्षा नीति के प्रमुख बिंदु:

  • 5+4+2+2 पैटर्न पहले की ही तरह लागू: 
    • राज्य स्कूली शिक्षा के लिये मौजूदा 5+4+2+2 पैटर्न को बनाए रखेगा।
    • यह संरचना पूर्व-प्राथमिक शिक्षा के एक वर्ष पहले से शुरू होती है, इसके बाद चार वर्ष की प्राथमिक शिक्षा (कक्षा 4 तक), चार वर्ष की उच्च प्राथमिक शिक्षा (कक्षा V से VIII), दो वर्ष की माध्यमिक शिक्षा और अंततः, दो वर्ष की उच्चतर माध्यमिक शिक्षा के रूप में लागू होती है।
      • NEP के अनुसार, स्कूल प्रणाली 5+3+3+4 पैटर्न में होनी चाहिये, जिसमें कक्षा 9-12 के छात्रों को विषय संबंधी विकल्प मिलने शुरू हो जाते हैं, लेकिन पश्चिम बंगाल राज्य सरकार ने इसे अस्वीकार कर दिया है।
  • त्रिभाषा सूत्र: 
    • यह नीति कक्षा V से VIII तक के छात्रों के लिये त्रि-भाषा फॉर्मूला शुरू करने की सिफारिश करती है।
    • पहली भाषा, जिसे "मातृभाषा" कहा जाता है, शिक्षा का माध्यम होगी।
      • उदाहरण के लिये नेपाली-माध्यम स्कूलों में, शिक्षा का माध्यम नेपाली होगी, संथाली-माध्यम स्कूलों में संथाली तथा इसी तरह अन्य भाषाएँ अन्य माध्यमों के लिये।
      • दूसरी भाषा अंग्रेज़ी अथवा पहली भाषा के अतिरिक्त कोई भी भाषा हो सकती है, यह छात्र की पसंद पर निर्भर करता है।
      • तीसरी भाषा पहली और दूसरी भाषा से भिन्न, छात्र द्वारा चुनी गई कोई भी भाषा हो सकती है।
  • एक विषय के रूप में 'बांग्ला' का परिचय: 
    • शिक्षा के माध्यम के रूप में बांग्ला के अलावा अन्य भाषाओं वाले स्कूलों में छात्र-छात्राओं के लिये कक्षा I से कक्षा XII तक बांग्ला को एक विषय के रूप में पेश किया जाएगा।
    • हालाँकि इसे प्रथम भाषा के रूप में अनुशंसित नहीं किया गया है।
  • उच्चतर माध्यमिक स्तर पर सेमेस्टर प्रणाली:
    • उच्च माध्यमिक शिक्षा (कक्षा XI और XII) में इसने स्कूल से विश्वविद्यालय तक सहज परिवर्तन की सुविधा के लिये एक सेमेस्टर प्रणाली शुरू की है।
      • सेमेस्टर परीक्षाओं में बहुविकल्पीय प्रश्नों (MCQs) और वर्णनात्मक प्रश्नों का संयोजन शामिल हो सकता है।

पश्चिम बंगाल द्वारा NEP, 2020 को लागू करने के बदले स्वयं की शिक्षा नीति:

  • स्वायत्तता और क्षेत्रीय आवश्यकताएँ:
    • इसके प्राथमिक कारणों में से एक पश्चिम बंगाल की विशिष्ट आवश्यकताओं और प्राथमिकताओं के अनुसार शिक्षा प्रणाली को आकार देने में स्वायत्तता की इच्छा है।
    • भारत में शिक्षा एक समवर्ती विषय है, जिसका अर्थ है कि केंद्र और राज्य दोनों सरकारें इस पर कानून बना सकती हैं। राज्य प्रायः अपने सांस्कृतिक, भाषायी तथा सामाजिक-आर्थिक संदर्भों के अनुरूप शैक्षिक नीतियों को अनुकूलित करना चाहते हैं।
  • ग्रामीण छात्रों को हानि:
    • NEP 2020 द्वारा सुझाए गए स्नातक पाठ्यक्रमों के लिये एक सामान्य प्रवेश परीक्षा के प्रस्ताव ने बंगाल में चिंता बढ़ा दी है।
    • राज्य सरकार को डर है कि इससे ग्रामीण छात्रों को नुकसान हो सकता है और सभी के लिये निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिये विकेंद्रीकृत प्रवेश दृष्टिकोण को प्राथमिकता दी जाती है।
  • ऐतिहासिक और सांस्कृतिक कारक:
    • पश्चिम बंगाल में समृद्ध सांस्कृतिक और भाषायी विविधता है, जिसमें बांग्ला प्रमुख भाषा है।
    • राज्य ने महसूस किया है कि अपनी शिक्षा नीति के माध्यम से बांग्ला भाषा और संस्कृति को संरक्षित करना और बढ़ावा देना महत्त्वपूर्ण है।
    • इससे NEP में भिन्नता आ सकती है, जो पूरे देश में एक समान नीति लागू करने का प्रयास करती है।
    • विवाद का एक अन्य मुद्दा NEP द्वारा शिक्षा में निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित करना है।
      • बंगाल इस बारे में सतर्क रहता है और समान एवं सुलभ शिक्षा के अवसर सुनिश्चित करने के लिये सार्वजनिक क्षेत्र की मज़बूत भूमिका का समर्थन करता है।
  • विकल्पों पर विचार: 
    • पश्चिम बंगाल सरकार ने वैकल्पिक दृष्टिकोण प्रस्तावित करने के लिये महाराष्ट्र और केरल जैसे राज्यों में शैक्षिक पहलों का विश्लेषण करने के अपने इरादे का संकेत दिया है। 
    • यह विभिन्न मॉडलों का पता लगाने तथा अन्य राज्यों से सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाने की उसकी इच्छा का संकेत देता है।

एनईपी (NEP) 2020:

  • परिचय:
    • NEP 2020 का लक्ष्य "भारत को एक वैश्विक ज्ञान महाशक्ति (Global Knowledge Superpower)" बनाना है। स्वतंत्रता के बाद से यह भारत के शिक्षा ढाँचे में तीसरा बड़ा सुधार है।
      • पहले की दो शिक्षा नीतियाँ वर्ष 1968 और 1986 में लाई गई थीं।
  • मुख्य विशेषताएँ: 
    • प्री-प्राइमरी स्कूल से कक्षा 12 तक स्कूली शिक्षा के सभी स्तरों पर सार्वभौमिक पहुँच सुनिश्चित करना।
    • 3-6 वर्ष के बीच के सभी बच्चों के लिये गुणवत्तापूर्ण प्रारंभिक बचपन की देखभाल और शिक्षा सुनिश्चित करना।
    • नई पाठ्यचर्या और शैक्षणिक संरचना (5+3+3+4) क्रमशः 3-8, 8-11, 11-14 एवं 14-18 वर्ष के आयु समूहों से सुमेलित है।
      • इसमें स्कूली शिक्षा के चार चरण शामिल हैं: मूलभूत चरण (5 वर्ष), प्रारंभिक चरण (3 वर्ष), मध्य चरण (3 वर्ष) और माध्यमिक चरण (4 वर्ष)।
    • कला तथा विज्ञान के बीच, पाठ्यचर्या व पाठ्येतर गतिविधियों के बीच, व्यावसायिक और शैक्षणिक धाराओं के बीच कोई सख्त अलगाव नहीं।
    • बहुभाषावाद और भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने पर ज़ोर।
    • एक नए राष्ट्रीय मूल्यांकन केंद्र, परख (प्रदर्शन मूल्यांकन, समीक्षा एवं समग्र विकास के लिये ज्ञान का विश्लेषण) की स्थापना।
    • वंचित क्षेत्रों और समूहों के लिये एक भिन्न लैंगिक समावेशन निधि और विशेष शिक्षा क्षेत्र।

NEP 2020 से संबंधित समस्याएँ:

  • आकार और विविधता:
    • भारत का शिक्षा क्षेत्र विशाल और विविधतापूर्ण है, जिससे संपूर्ण देश में एक समान नीतियाँ लागू करना चुनौतीपूर्ण हो गया है।
    • देश की विशाल आबादी, कई भाषाएँ तथा भिन्न-भिन्न  सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों के कारण शिक्षा के लिये स्थानीयकृत दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है, जिसे NEP का वन साइज़ फिट्स ऑल दृष्टिकोण पर्याप्त रूप से संबोधित नहीं कर सकता है।
  • क्षमता सीमा:
    • NEP 2020 स्कूल स्तर से लेकर उच्च शिक्षा तक शिक्षा क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण बदलाव का प्रस्ताव करता है।
    • हालाँकि कई राज्यों तथा नियामक निकायों में ऐसे व्यापक परिवर्तनों को प्रभावी ढँग से लागू करने के लिये आवश्यक आंतरिक क्षमताओं एवं संसाधनों की कमी है।
  • भाषा और पाठ्यक्रम:
    • मातृभाषा में पढ़ाई जाने वाली पाठ्यक्रम सामग्री को अपनाना NEP 2020 की एक प्रमुख विशेषता है।
    • हालाँकि 22 आधिकारिक भाषाओं और कई बोलियों के साथ भारत की भाषायी विविधता NEP के लिये एक महत्त्वपूर्ण चुनौती खड़ी करती है।
    • राज्य इस पहलू को लागू करने की व्यावहारिकता तथा कई भाषाओं में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करने को लेकर चिंतित हैं।
  • डिजिटल डिवाइड: 
    • NEP ई-लर्निंग और डिजिटलीकरण सहित शिक्षा में प्रौद्योगिकी के उपयोग पर ज़ोर देती है।
    • हालाँकि भारत डिजिटल विभाजन का सामना कर रहा है जहाँ आबादी के एक बड़े हिस्से के पास स्मार्टफोन और कंप्यूटर तक पहुँच नहीं है।
    • इस विभाजन के कारण शैक्षिक संसाधनों और अवसरों, वंचित समुदायों तक असमान पहुँच हो सकती है।
  • सीमित संसाधन:
    • NEP में सकल घरेलू उत्पाद के 6% का लक्ष्य रखते हुए शिक्षा के लिये संसाधनों के आवंटन में पर्याप्त वृद्धि का आह्वान किया गया है।
    • स्वास्थ्य देखभाल, बुनियादी ढाँचे और सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों जैसे सरकारी वित्त पर प्रतिस्पर्द्धी मांगों को देखते हुए इस स्तर की फंडिंग हासिल करना मुश्किल हो सकता है। राज्यों को NEP उद्देश्यों को पूरा करने के लिये पर्याप्त संसाधन आवंटित करने में संघर्ष करना पड़ सकता है।
  • स्थानीय स्वायत्तता: 
    • कुछ राज्य NEP की शिक्षा नीति और निर्णय लेने के कथित केंद्रीकरण के विषय को लेकर चिंतित हैं।
    • उनका मानना है कि यह उनकी विशिष्ट आवश्यकताओं और प्राथमिकताओं के अनुरूप शिक्षा नीतियों को डिज़ाइन और लागू करने की उनकी स्वायत्तता का उल्लंघन करता है।

आगे की राह

  • राज्य सरकारों, शिक्षकों, अभिभावकों और छात्रों सहित सभी हितधारकों के साथ सार्थक परामर्श को प्रोत्साहित करना। चिंताओं को दूर करने और NEP में आवश्यक समायोजन के लिये फीडबैक और इनपुट प्राप्त करना।
  • भारत के शिक्षा परिदृश्य की विविधता को पहचानना और उसका सम्मान करना। राज्यों को उनके विशिष्ट भाषायी, सांस्कृतिक एवं सामाजिक-आर्थिक संदर्भों को पूरा करने के लिये नीतियों को लागू करने में लचीलेपन की अनुमति देना। NEP के प्रावधानों को क्षेत्रीय रूप से अधिक प्रासंगिक बनाने के लिये अपनाना।
  • NEP को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिये शिक्षा मंत्रालय, नियामक निकायों और शिक्षकों की क्षमता निर्माण में निवेश करना। शिक्षा प्रणाली में बदलाव हेतु चुनौतियों को देखते हुए उन्हें तैयार करने के लिये प्रशिक्षण और संसाधन प्रदान करना।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत के संविधान के निम्नलिखित में से किस प्रावधान का शिक्षा पर प्रभाव है? (2012)

  1. राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांत
  2. ग्रामीण और शहरी स्थानीय निकाय
  3. पाँचवीं अनुसूची
  4. छठी अनुसूची
  5. सातवीं अनुसूची

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: 

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3, 4 और 5 
(c) केवल 1, 2 और 5
(d) 1, 2, 3, 4 और 5

उत्तर: (d)


मेन्स:

प्रश्न. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, धारणीय विकास लक्ष्य- 4 (2030) के अनुरूप है। उसका ध्येय भारत में शिक्षा प्रणाली की पुनः संरचना और पुनः स्थापना है। इस कथन का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (2020)


जैव विविधता और पर्यावरण

भारत में ई-अपशिष्ट प्रबंधन

प्रिलिम्स के लिये:

इंडियन सेल्युलर एंड इलेक्ट्रॉनिक्स एसोसिएशन (ICEA), सर्कुलर इकॉनमी, ई-अपशिष्ट प्रबंधन, विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR), ई-अपशिष्ट (प्रबंधन) नियम, 2022

मेन्स के लिये:

भारत में ई-अपशिष्ट प्रबंधन की स्थिति

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों? 

 इंडियन सेल्युलर एंड इलेक्ट्रॉनिक्स एसोसिएशन (ICEA) ने 'भारतीय इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर में सर्कुलर इकॉनमी के रास्ते' शीर्षक से एक व्यापक रिपोर्ट जारी की है।

  • यह रिपोर्ट ई-अपशिष्ट प्रबंधन पर पुनर्विचार करने और इसकी क्षमता का दोहन करने के अवसरों का पता लगाने की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश डालती है।
  • रिपोर्ट बताती है कि यह परिवर्तन अतिरिक्त 7 बिलियन अमेरिकी डॉलर के बाज़ार का अवसर खोल सकता है।

रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु:

  • भारत में ई-अपशिष्ट परिदृश्य:
    • ICEA रिपोर्ट के अनुसार, भारत में ई-अपशिष्ट प्रबंधन मुख्य रूप से अनौपचारिक है, लगभग 90% ई-अपशिष्ट संग्रह और 70% रीसाइक्लिंग का प्रबंधन प्रतिस्पर्द्धी अनौपचारिक क्षेत्र द्वारा किया जाता है।
      • अनौपचारिक क्षेत्र पुराने इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को स्पेयर पार्ट्स को सहेजने और लाभप्रद ढंग से मरम्मत करने में उत्कृष्टता प्राप्त है।
    • मुरादाबाद जैसे औद्योगिक केंद्र सोने और चाँदी जैसी मूल्यवान सामग्री निकालने के लिये प्रिंटेड सर्किट बोर्ड (PCB) के प्रसंस्करण में विशेषज्ञ हैं।
  • सर्कुलर इकॉनमी प्रिंसिपल्स: 
    • रिपोर्ट में ई-अपशिष्ट प्रबंधन के दृष्टिकोण को एक सर्कुलर इकॉनमी स्थापित करने की दिशा में बदलने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया है।
      • चीन एक उदाहरण के रूप में कार्य करता है, जो वर्ष 2030 तक नए उत्पादों के निर्माण में 35% माध्यमिक कच्चे माल का उपयोग करने का लक्ष्य रखता है, जो सर्कुलर इकॉनमी दृष्टिकोण को दर्शाता है।
    • ई-अपशिष्ट में सर्कुलर इकॉनमी हेतु प्रस्तावित रणनीतियाँ: ICEA रिपोर्ट भारत में ई-अपशिष्ट के लिये सर्कुलर इकॉनमी की शुरुआत करने हेतु कई प्रमुख रणनीतियों की रूपरेखा प्रस्तुत करती है:
      •   सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP): रिवर्स आपूर्ति शृंखला स्थापित करने की लागत को वितरित करने के लिये सरकारी निकायों और निजी उद्यमों के बीच सहयोग आवश्यक है।
        • इस जटिल प्रयास में उपयोगकर्त्ताओं से उपकरण एकत्र करना, व्यक्तिगत डेटा को मिटाना और उन्हें आगे की प्रक्रिया और रीसाइक्लिंग के लिये चैनल करना शामिल है।
      • ऑडिटेबल डेटाबेस: रिवर्स सप्लाई चेन प्रक्रिया के माध्यम से एकत्र की गई सामग्रियों के पारदर्शी और ऑडिटेबल डेटाबेस का निर्माण जवाबदेही एवं ट्रेसेबिलिटी को बढ़ा सकता है।
      • भौगोलिक क्लस्टर: भौगोलिक क्लस्टर स्थापित करना जहाँ बेकार पड़े उपकरणों को एकत्रित किया जाता है और नष्ट किया जाता है, रीसाइक्लिंग प्रक्रिया को अनुकूलित किया जा सकता है, जिससे यह अधिक कुशल तथा लागत प्रभावी बन जाती है।
      • 'उच्च-उत्पादन' पुनर्चक्रण केंद्रों को प्रोत्साहित करना: उच्च-उत्पादन पुनर्चक्रण सुविधाओं के विकास को प्रोत्साहित करने से अर्द्धचालकों में दुर्लभ पृथ्वी धातुओं सहित इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों से मूल्यवान निष्कर्षण को अधिकतम करने में मदद मिल सकती है।
      • मरम्मत और उत्पाद की दीर्घायु को बढ़ावा देना: नीतिगत सिफारिशों में मरम्मत को प्रोत्साहित करना और उत्पादों को लंबे समय तक संचालित होने में सक्षम बनाना शामिल है।
        • इसमें उपयोगकर्त्ता के मरम्मत के अधिकार का समर्थन करना, इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट के पर्यावरणीय बोझ को कम करना शामिल हो सकता है।

नोट: एक चक्रीय अर्थव्यवस्था में त्यक्त इलेक्ट्रॉनिक्स को या तो स्टैंड-अलोन उपकरणों के रूप में या उनके घटकों और कीमती धातुओं को नए हार्डवेयर में पुन: पेश करके एक नया जीवन दिया जा सकता है।

  • इससे पृथ्वी पर उत्पादित सभी सामग्रियों को अपशिष्ट के बजाय मूल्यवान संसाधनों के रूप में आयाम मिलेगा।

भारत में ई-अपशिष्ट प्रबंधन की स्थिति:

  • ई-अपशिष्ट का परिचय: 
    • ई-अपशिष्ट में सीसा, कैडमियम, पारा और निकल जैसी धातुओं सहित कई ज़हरीले रसायन होते हैं।
    • भारत में ई-अपशिष्ट  की मात्रा में वर्ष 2021-22 में 1.6 मिलियन टन की उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है।
    • भारत के 65 शहर कुल उत्पन्न ई-अपशिष्ट  का 60% से अधिक उत्पन्न करते हैं जबकि 10 राज्य समस्त ई-अपशिष्ट का 70% उत्पन्न करते हैं।
    • इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट (ई-अपशिष्ट), एक सामान्य शब्द है जिसका उपयोग सभी प्रकार के पुराने, खराब हो चुके या बेकार पड़े बिजली और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों, जैसे घरेलू उपकरण, कार्यालय सूचना और संचार उपकरण आदि का वर्णन करने के लिये किया जाता है।
    • भारत वर्तमान में वैश्विक स्तर पर ई-अपशिष्ट  के सबसे बड़े उत्पादक/जनक के रूप में चीन और अमेरिका के बाद तीसरे स्थान पर है।
  • भारत में ई-अपशिष्ट प्रबंधन:
    • भारत में इलेक्ट्रॉनिक कचरे के प्रबंधन को पर्यावरण और वन खतरनाक अपशिष्ट (प्रबंधन और हैंडलिंग/निगरानी) 2008 विनियम के ढाँचे के अंतर्गत संबोधित किया गया था।
    • वर्ष 2011 में पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 द्वारा शासित, 2010 के ई-अपशिष्ट (प्रबंधन और हैंडलिंग) विनियमों से संबंधित एक महत्त्वपूर्ण नोटिस जारी किया गया था।
    • ई-अपशिष्ट (प्रबंधन) नियम, 2016 को वर्ष 2017 में अधिनियमित किया गया था, जिसमें नियम के दायरे में 21 से अधिक उत्पाद (अनुसूची- I) शामिल थे। इसमें कॉम्पैक्ट फ्लोरोसेंट लैंप (CFL) तथा अन्य पारा युक्त लैंप, साथ ही ऐसे अन्य उपकरण शामिल थे।
    • वर्ष 2018 में वर्ष 2016 के नियमों में एक संशोधन हुआ जिसने प्राधिकरण और उत्पाद प्रबंधन को बढ़ावा देने पर ज़ोर देते हुए उनके दायरे को व्यापक बना दिया।
      • उत्पाद प्रबंधन एक अवधारणा और दृष्टिकोण है जो किसी उत्पाद के निर्माण से लेकर उसके निपटान अथवा पुनर्चक्रण तक के पूरे जीवन चक्र के लिये उत्पादकों, निर्माताओं एवं अन्य हितधारकों की ज़िम्मेदारी पर ज़ोर देता है।
    • भारत सरकार ने ई-अपशिष्ट प्रबंधन प्रक्रिया को डिजिटल बनाने और दृश्यता बढ़ाने के प्रमुख उद्देश्य के साथ ई-अपशिष्ट (प्रबंधन) नियम, 2022 अधिसूचित किया।
      • यह विद्युत तथा इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के निर्माण में खतरनाक पदार्थों (जैसे सीसा, पारा और कैडमियम) के उपयोग को भी प्रतिबंधित करता है जो मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं।

ई-अपशिष्ट में कमी और इसके प्रभावी पुनर्चक्रण की दिशा में भारत के प्रयास:

  • ई-अपशिष्ट संग्रह को औपचारिक बनाना: पुनर्चक्रण प्रक्रिया को औपचारिक और मानकीकृत करने के लिये ई-अपशिष्ट संग्रह के लिये एक संपूर्ण विनियामक ढाँचे के निर्माण की आवश्यकता है, जिसमें संग्रह केंद्रों तथा पुनर्चक्रणकर्त्ताओं का अनिवार्य पंजीकरण और लाइसेंसिंग शामिल है।
  • विनिर्माताओं के लिये ई-अपशिष्ट टैक्स क्रेडिट: एक टैक्स क्रेडिट प्रणाली लागू करना जो इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माताओं को अधिक समय तक उपयोगी और मरम्मत योग्य सुविधाओं वाले उत्पादों को डिज़ाइन करने के लिये प्रोत्साहन प्रदान करता है।
    • यह रणनीति पर्यावरण-अनुकूल डिज़ाइन तकनीकों को बढ़ावा देने का प्रयास करती है।
  • ई-अपशिष्ट एटीएम: सार्वजनिक स्थानों पर ई-अपशिष्ट एटीएम स्थापित करना, जहाँ कोई व्यक्ति पुराने इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को जमा कर सकता है और बदले में उसे सार्वजनिक परिवहन अथवा आवश्यक वस्तुओं के लिये छोटे वित्तीय प्रोत्साहन या वाउचर प्रदान किये जा सकें।
    • इन एटीएम में शैक्षिक प्रदर्शन/डिस्प्ले भी हो सकते हैं जो ई-अपशिष्ट पुनर्चक्रण के बारे में जागरूकता बढ़ाने में मदद कर सकें।
  • ई-अपशिष्ट ट्रैकिंग और प्रमाणन: इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के संपूर्ण जीवनचक्र को ट्रैक करने के लिये ब्लॉकचेन-आधारित प्रणाली

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