संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद
चर्चा में क्यों?
हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका ने घोषणा की है कि वह संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में पुनः शामिल होगा, उसने वर्ष 2018 में इसे छोड़ दिया था।
- परिषद में एक पूर्ण सदस्य के रूप में चुने जाने के उद्देश्य के साथ संयुक्त राज्य अमेरिका वर्तमान में इसमें एक पर्यवेक्षक के रूप में शामिल होगा।
प्रमुख बिंदु:
परिचय:
- मानवाधिकार परिषद संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के भीतर एक अंतर-सरकारी निकाय है जो विश्व भर में मानवाधिकारों के संवर्द्धन और संरक्षण को मज़बूटी प्रदान करने के लिये उत्तरदायी है।
गठन:
- इस परिषद का गठन वर्ष 2006 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा किया गया था। इसने पूर्ववर्ती संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग का स्थान लिया।
- संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय (OHCHR) मानव अधिकार परिषद के सचिवालय के रूप में कार्य करता है।
- इसका मुख्यालय जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में स्थित है।
सदस्य:
- इसका गठन 47 संयुक्त राष्ट्र सदस्य देशों से मिलकर हुआ है जो संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) द्वारा चुने जाते हैं।
- संयुक्त राष्ट्र संघ मानवाधिकारों के संवर्द्धन और संरक्षण में भागीदार राज्यों के योगदान के साथ-साथ इस संबंध में उनके द्वारा की गई स्वैच्छिक प्रतिज्ञाओं और प्रतिबद्धताओं को भी ध्यान में रखता है।
- परिषद की सदस्यता समान भौगोलिक वितरण पर आधारित है। इसकी सीटों का वितरण निम्नलिखित प्रकार से किया गया है:
- अफ्रीकी देश: 13 सीटें
- एशिया-प्रशांत देश: 13 सीटें
- लैटिन अमेरिकी और कैरेबियन देश: 8 सीटें
- पश्चिमी यूरोपीय और अन्य देश: 7 सीटें
- पूर्वी यूरोपीय देश: 6 सीटें
- परिषद के सदस्यों का कार्यकाल तीन वर्ष का होता है और लगातार दो कार्यकाल की सेवा के बाद कोई भी सदस्य तत्काल पुन: चुनाव के लिये पात्र नहीं होता है।
प्रक्रिया और तंत्र:
- सार्वभौमिक आवधिक समीक्षा: सार्वभौमिक आवधिक समीक्षा (Universal Periodic Review- UPR) यूपीआर सभी संयुक्त राष्ट्र सदस्य देशों में मानवाधिकार स्थितियों का आकलन का कार्य करता है।
- सलाहकार समिति: यह परिषद के "थिंक टैंक" के रूप में कार्य करता है जो इसे विषयगत मानवाधिकार मुद्दों पर विशेषज्ञता और सलाह प्रदान करता है।
- शिकायत प्रक्रिया: यह लोगों और संगठनों को मानवाधिकार उल्लंघन से जुड़े मामलों को परिषद के ध्यान में लाने की अनुमति देता है।
- संयुक्त राष्ट्र की विशेष प्रक्रिया: ये विशेष प्रतिवेदक, विशेष प्रतिनिधियों, स्वतंत्र विशेषज्ञों और कार्य समूहों से बने होते हैं जो विशिष्ट देशों में विषयगत मुद्दों या मानव अधिकारों की स्थितियों की निगरानी, जाँच करने, सलाह देने और सार्वजनिक रूप से रिपोर्ट करने का कार्य करते हैं।
संबंधित मुद्दे
- सदस्यता से संबंधित: कुछ आलोचकों के लिये परिषद की सदस्यता की संरचना एक महत्त्वपूर्ण चिंता का विषय रही है, जिसमें कभी-कभी ऐसे देश भी शामिल होते है जिन्हें व्यापक मानवाधिकार हनन करने वाले देश के रूप में देखा जाता है।
- चीन, क्यूबा, इरिट्रिया, रूस और वेनेजुएला जैसे देश मानवाधिकारों के हनन के आरोप के बावजूद इस परिषद में शामिल रहे हैं।
- असंतुलित फोकस: परिषद द्वारा असंगत रूप से इज़राइल पर ध्यान केंद्रित किये जाने के कारण अमेरिका वर्ष 2018 में इससे बाहर हो गया, गौरतलब है कि किसी भी देश की तुलना में परिषद को इज़राइल के संबंध में सबसे अधिक आलोचनात्मक प्रस्ताव प्राप्त हुए हैं।
भारत और संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद:
- हाल ही में संयुक्त राष्ट्र (यूएन) के विशेष प्रतिवेदकों के एक समूह ने पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) अधिसूचना 2020 के मसौदे के संदर्भ में भारत सरकार को अपनी चिंता से अवगत कराया था।
- वर्ष 2020 में भारत के राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने सार्वभौमिक आवधिक समीक्षा (UPR) प्रक्रिया के तीसरे दौर के एक भाग के रूप में परिषद के समक्ष अपनी मध्यावधि रिपोर्ट को प्रस्तुत किया।
- भारत को 1 जनवरी, 2019 को तीन वर्षों की अवधि के लिये परिषद में चुना गया था।
स्रोत: द हिंदू
ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड और संबंधित दिशा-निर्देश
चर्चा में क्यों?
वैज्ञानिकों द्वारा उत्तराखंड के चमोली ज़िले में आई हालिया बाढ़ के लिये ‘ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड’ (GLOF) को एक बड़ा कारण माना जा रहा है।
- अक्तूबर 2020 में, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) ने ‘ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड’ (GLOF) के कारण होने वाली आपदाओं को कम करने और उनसे निपटने के बारे में विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किये थे।
- NDMA द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के मुताबिक, संभावित रूप से खतरनाक झीलों की पहचान और मैपिंग करके, उनके अचानक फटने या तबाही मचाने को रोकने के लिये संरचनात्मक उपाय करने तथा ऐसी आपात स्थिति में जीवन एवं संपत्ति के नुकसान को बचाने के लिये एक आवश्यक तंत्र स्थापित करने की आवश्यकता है।
प्रमुख बिंदु
- ‘ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड’ (GLOF)
- अर्थ
- यह ऐसी बाढ़ को संदर्भित करता है जिसमें ग्लेशियर या मोराइन (ग्लेशियर की सतह पर गिरी धूल और मिट्टी का जमाव) से पानी अचानक गिरता है।
- जब ग्लेशियर पिघलते हैं, तो यह जल, रेत, कंकड़ और बर्फ के अवशेषों से बने प्राकृतिक बाँध जैसी संरचना यानी ‘मोराइन’ में एकत्रित हो जाता है।
- मिट्टी के बाँधों के विपरीत, ‘मोराइन’ बाँध की कमजोर संरचना के कारण ये प्रायः जल्दी टूट जाते हैं, जिससे निचले इलाकों में तेज़ी से बाढ़ आती है।
- कारण
- राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के मुताबिक, हिंदू-कुश हिमालय के अधिकांश हिस्सों में होने वाले जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लेशियर पिघल रहे हैं और नई ग्लेशियल झीलों का निर्माण हो रहा है, जो कि ‘ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड’ (GLOF) का प्रमुख कारण हैं।
- अर्थ
- ग्लेशियल झीलें
- ग्लेशियल झीलें आमतौर पर एक ग्लेशियर के तल पर बनती हैं।
- जिस प्रकार ग्लेशियर आगे बढ़ते हैं वे अपने चारों ओर की मिट्टी और तलछट का अपक्षरण करते चलते हैं, जिससे आस-पास की भूमि पर गड्ढे बन जाते हैं। इस दौरान ग्लेशियर का पिघला हुआ जल उन गड्ढों को भर देता है, जिससे एक झील का निर्माण होता है।
- प्रकार
- ग्लेशियल झीलों का निर्माण तब होता है जब ग्लेशियर का पिघला हुआ पानी ग्लेशियर द्वारा बनाए गए गड्ढों के अंदर जाता है, और यह प्रक्रिया बर्फ की सतह (सुप्राग्रैशियल झील) पर, ग्लेशियर की सतह से अलग भूमि पर (प्रोग्रैशियल झीलें), या बर्फ की सतह के नीचे के नीचे भी (सबग्रैशियल झीलें) हो सकता है।
- प्रभाव
- ग्लेशियर झीलें बर्फ की सतह पर घर्षण को कम करके बर्फ के प्रवाह को प्रभावित कर सकती हैं, जिससे प्रारंभिक स्खलन/बेसल स्लाइडिंग को बढ़ावा मिलता है।
- प्रोग्रैशियल झीलें खंडन (Calving) का कारण बनती हैं, जो कि ग्लेशियर के द्रव्यमान संतुलन को प्रभावित करता है।
- ग्लेशियर झीलें आपदा की दृष्टि से भी काफी संवेदनशील होती हैं और मोराइन जैसी बाँध संरचना के विफल होने पर गंभीर प्रलय आने की संभावना बढ़ जाती है।
- ग्लेशियल झीलों की बढ़ती संख्या
- हाल के अध्ययनों के अनुसार, ग्लोबल वार्मिंग के परिणामस्वरूप लगातार बढ़ रहे गर्म तापमान के कारण ग्लेशियरों के पिघलने की प्रवृत्ति बढ़ रही है, जिसके कारण व्यापक पैमाने पर बाढ़ और विनाशकारी घटनाओं की संभावना में भी बढ़ोतरी हो रही है।
- उदाहरण के लिये वर्ष 2013 में केदारनाथ त्रासदी में एक बड़ी ग्लेशियल झील का फटना शामिल था।
- वर्ष 2011-15 के दौरान केंद्रीय जल आयोग (CWC) द्वारा प्रायोजित एक अध्ययन के अनुसार सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र बेसिन में क्रमशः 352, 283 तथा 1,393 ग्लेशियल झील एवं जल निकाय हैं।
- जोखिम प्रबंधन संबंधी दिशा-निर्देश
- संभावित खतरनाक झीलों की पहचान
- ज़मीनी दौरे, पूर्व की घटनाओं, झील/बाँध और आस-पास की भू-तकनीकी विशेषताओं तथा अन्य भौतिक स्थितियों के आधार पर संभावित खतरनाक झीलों की पहचान की जा सकती है।
- तकनीक का उपयोग
- मानसून के महीनों के दौरान नई झील संरचनाओं समेत जल निकायों में आने वाले स्वतः परिवर्तनों का पता लगाने के लिये सिंथेटिक-एपर्चर रडार इमेज़री (एक प्रकार का रडार जो द्वि-आयामी छवियों के निर्माण में सहायता करता है) के उपयोग को बढ़ावा दिया जा सकता है।
- अंतरिक्ष से जल निकायों की निगरानी से संबंधित तंत्र और प्रोटोकॉल भी विकसित किया जा सकता है।
- निर्माण गतिविधि के लिये समान संहिता
- संवेदनशील क्षेत्रों में बुनियादी ढाँचे के विकास, निर्माण और उत्खनन के लिये एक व्यापक ढाँचा विकसित किया जाना चाहिये।
- ‘ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड’ (GLOF) के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों में भूमि उपयोग नियोजन के लिये प्रक्रियाओं को मान्यता दिये जाने की आवश्यकता है।
- अर्ली वार्निंग सिस्टम (EWS) में सुधार करना
- भारत समेत विश्व के लगभग सभी देशों में ‘ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड’ (GLOF) से संबंधित अर्ली वार्निंग सिस्टम (EWS) की संख्या बहुत कम है।
- हिमालयी क्षेत्र में, ‘ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड’ (GLOF) को लेकर पूर्व चेतावनी के लिये सेंसर और निगरानी आधारित तकनीकी प्रणालियों के तीन उदाहरण मौजूद हैं, जिसमें से दो नेपाल में तथा एक चीन में है।
- स्थानीय श्रमशक्ति को प्रशिक्षित करना
- आपतकालिक स्थिति में राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (NDRF), भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) और थल सेना जैसे विशेष बलों का प्रयोग करने के साथ-साथ स्थानीय श्रम-शक्ति को भी प्रशिक्षित किया जाना चाहिये।
- यह देखा गया है कि 80 प्रतिशत से अधिक खोज और बचाव कार्य स्थानीय समुदाय द्वारा राज्य मशीनरी तथा विशेष खोज एवं बचाव टीमों के हस्तक्षेप से पूर्व किया जाता है।
- इस प्रणाली के तहत स्थानीय टीमें आपातकालीन आश्रयों की योजना बनाने और स्थापित करने, राहत पैकेज वितरित करने, लापता लोगों की पहचान करने तथा भोजन, स्वास्थ्य देखभाल, पानी की आपूर्ति आदि की ज़रूरतों को पूरा करने में भी सहायता कर सकती हैं।
- अलार्म सिस्टम
- पारंपरिक अलार्म सिस्टम के स्थान पर स्मार्टफोन का उपयोग करने वाली आधुनिक संचार तकनीक प्रणाली का उपयोग किया जा सकता है।
- संभावित खतरनाक झीलों की पहचान
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
वायनाड वन्यजीव अभयारण्य के आस-पास इको-सेंसिटिव ज़ोन
चर्चा में क्यों?
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) द्वारा जारी वायनाड वन्यजीव अभयारण्य के आस-पास के क्षेत्र को पर्यावरण संवेदी क्षेत्र यानि इको-सेंसिटिव ज़ोन (ESZ) घोषित करने से संबंधित मसौदा अधिसूचना के खिलाफ वायनाड (केरल) में विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है।
प्रमुख बिंदु:
- मसौदा अधिसूचना:
- मसौदा अधिसूचना के अनुसार, 118.5 वर्ग किमी क्षेत्र को इको-सेंसिटिव ज़ोन (ESZ) के रूप में चिह्नित किया गया है, जिसमें से 99.5 वर्ग किमी. क्षेत्र अभयारण्य के बाहर है और शेष 19 वर्ग किमी. में अभयारण्य के अंतर्गत आने वाले राजस्व गाँव भी शामिल हैं।
- ESZ के तहत कई मानवीय गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया जाएगा, जिसमें सभी नए और मौजूदा खनन, पत्थर का उत्खनन करने और उन्हें तोड़ने वाली इकाइयों तथा प्रदूषण पैदा करने वाले नए उद्योगों पर प्रतिबंध शामिल है।
- इसमें बड़ी पनबिजली परियोजनाओं की स्थापना और नए आरा मिलों, ईंट भट्टों की स्थापना तथा ESZ के भीतर काष्ठ ईंधन के व्यावसायिक उपयोग पर प्रतिबंध भी शामिल है।
- इसके अलावा, संरक्षित क्षेत्र की सीमा या ESZ की सीमा (जो भी पास हो) तक, 1 किमी. के दायरे में कोई भी नया वाणिज्यिक होटल और रिसॉर्ट खोलने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
- यह अधिसूचना राज्य सरकार के सक्षम प्राधिकारी की पूर्व अनुमति के बिना निजी भूमि में भी वृक्षों की कटाई पर रोक लगाता है।
- अधिसूचना का उद्देश्य:
- यह वन्यजीव अभयारण्य के आस-पास निवास करने वाले लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है क्योंकि वन्यजीवों के हमलों की बढ़ती घटनाओं के कारण वनों की सीमाओं पर रह रहे किसानों को सर्वाधिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
- पिछले 38 वर्षों के दौरान वन्यजीव हमलों के कारण ज़िले में 147 लोगों की मृत्यु हुई है।
- यह वन्यजीव अभयारण्य के आस-पास निवास करने वाले लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है क्योंकि वन्यजीवों के हमलों की बढ़ती घटनाओं के कारण वनों की सीमाओं पर रह रहे किसानों को सर्वाधिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
- मुद्दे:
- वन्यजीव अभयारण्य के भीतर स्थित 57 गाँव इको सेंसिटिव ज़ोन के अंतर्गत आते हैं।
- आलोचकों द्वारा यह तर्क दिया जा रहा है कि मसौदा अधिसूचना ज़िले में कृषि और व्यवसाय दोनों क्षेत्रों को प्रभावित करेगी, क्योंकि यह अधिसूचना वाहनों के आवागमन पर अंकुश लगाती है।
- यह अधिसूचना अभयारण्य सीमाओं पर निवास कर रहे हज़ारों किसानों के जीवन को बुरी तरह से प्रभावित करेगी।
- अभयारण्य के किनारों पर स्थित 29,291 एकड़ निजी भूमि ESZ के अंतर्गत आ जाएगी, परिणामस्वरूप इस क्षेत्र का विकास हमेशा के लिये अवरुद्ध हो जाएगा।
वायनाड वन्यजीव अभयारण्य (Wayanad Wildlife Sanctuary)
- अवस्थिति: केरल राज्य के वायनाड ज़िले में अवस्थित वायनाड वन्यजीव अभयारण्य, मुदुमलाई वन्यजीव अभयारण्य, बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान, नागरहोल राष्ट्रीय उद्यान, मुकुर्थी राष्ट्रीय उद्यान और साइलेंट वैली के साथ नीलगिरि बायोस्फीयर रिज़र्व का हिस्सा है।
- इसका क्षेत्रफल 344.44 वर्ग किमी. है जिसमें चार वन रेंज सुल्तान बथेरी (Sulthan Bathery), मुथांगा (Muthanga), कुरिचिअट (Kurichiat) और थोलपेट्टी (Tholpetty) शामिल हैं।
- यह कर्नाटक के उत्तर-पूर्वी भाग में बांदीपुर टाइगर रिज़र्व और नागरहोल राष्ट्रीय उद्यान जैसे अन्य संरक्षित क्षेत्रों के साथ दक्षिण-पूर्व में तमिलनाडु के मुदुमलाई टाइगर रिज़र्व को पारिस्थितिक और भौगोलिक निरंतरता (Ecological And Geographic Continuity) प्रदान करता है।
- कबिनी नदी (कावेरी नदी की एक सहायक नदी) अभयारण्य से होकर बहती है।
- स्थापना: इसे वर्ष 1973 में वन्यजीव अभयारण्य घोषित किया गया था।
- जैव-विविधता:
- यहाँ पाए जाने वाले वन प्रकारों में दक्षिण भारतीय नम पर्णपाती वन, पश्चिमी तटीय अर्द्ध-सदाबहार वन और सागौन, नीलगिरी तथा ग्रेवेलिया आदि शामिल हैं।
- हाथी, गौर, बाघ, चीता/पैंथर, सांभर, चित्तीदार हिरण, कांकड़ (बार्किंग डियर), जंगली सूअर, सुस्त भालू या स्लॉथ बीयर, नीलगिरि लंगूर, बोनट मकाक, साधारण लंगूर, जंगली कुत्ता, उदबिलाव, मालाबार विशाल गिलहरी आदि यहाँ पाए जाने वाले प्रमुख स्तनधारी हैं।
- पर्यावरण संवेदी क्षेत्र (Eco-Sensitive Zones)
- इको-सेंसिटिव ज़ोन या पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा किसी संरक्षित क्षेत्र, राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभयारण्य के आसपास के अधिसूचित क्षेत्र हैं।
- इको-सेंसिटिव ज़ोन में होने वाली गतिविधियाँ पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत विनियमित होती हैं और ऐसे क्षेत्रों में प्रदूषणकारी उद्योग लगाने या खनन करने की अनुमति नहीं होती है।
- सामान्य सिद्धांतों के अनुसार, इको-सेंसिटिव ज़ोन का विस्तार किसी संरक्षित क्षेत्र के आसपास 10 किमी. तक के दायरे में हो सकता है। लेकिन संवेदनशील गलियारे, कनेक्टिविटी और पारिस्थितिक रूप से महत्त्वपूर्ण खंडों एवं प्राकृतिक संयोजन के लिये महत्त्वपूर्ण क्षेत्र होने की स्थिति में 10 किमी. से भी अधिक क्षेत्र को इको-सेंसिटिव ज़ोन में शामिल किया जा सकता है।
- मूल उद्देश्य राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के आस-पास कुछ गतिविधियों को नियंत्रित करना है, ताकि संरक्षित क्षेत्रों की निकटवर्ती संवेदनशील पारिस्थितिक तंत्र पर ऐसी गतिविधियों के नकारात्मक प्रभाव को कम किया जा सके।
आगे की राह
- मौजूद परिदृश्य को देखते हुए पर्यावरण नीतियों के स्थानीय प्रभावों, नीतियों में स्थानीय भागीदारी के प्रकार एवं संभावनाओं तथा संरक्षण हेतु की जा रही पहलों के आलोक में वैकल्पिक आय सृजन के अवसरों की संभावनाओं आदि पर पुनर्विचार किये जाने की आवश्यकता है।
स्रोत: द हिंदू
दक्षिण चीन सागर विवाद
चर्चा में क्यों?
हाल ही में चीन ने USA को दक्षिण चीन सागर (South China Sea) में पार्सल द्वीप समूह (Paracel Islands) के पास उसके एक युद्धपोत की मौजूदगी पर चेतावनी दी है।
प्रमुख बिंदु
दक्षिण चीन सागर विवाद के विषय में:
- चीन का दावा:
- चीन, पार्सल द्वीप समूह सहित लगभग संपूर्ण दक्षिण चीन सागर पर अपना दावा करता है।
- ताइवान, फिलीपींस, ब्रुनेई, मलेशिया और वियतनाम भी इस क्षेत्र के कुछ हिस्सों पर दावा करते हैं। इस क्षेत्र में प्राकृतिक तेल और गैस के भंडार होने का अनुमान है।
- चीन के अनुसार, अमेरिकी युद्धपोत ने उसकी जल सीमा में बिना अनुमति के प्रवेश किया है। अतः चीन ने अमेरिका पर अपनी संप्रभुता के गंभीर उल्लंघन और क्षेत्रीय शांति को नुकसान पहुँचाने का आरोप लगाया है।
- चीन, पार्सल द्वीप समूह सहित लगभग संपूर्ण दक्षिण चीन सागर पर अपना दावा करता है।
- अमेरिका का पक्ष:
- अमेरिका के अनुसार, उसके युद्धपोत की अवस्थिति दक्षिण चीन सागर में अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुरूप है और वह इस क्षेत्र में नौपरिवहन मार्ग की सुरक्षा में मदद कर रहा है।
- वह दक्षिण चीन सागर पर चीन का मुकाबला करने के अपने निरंतर प्रयासों के साथ तालमेल बैठा रहा है। इसके तहत हाल ही में अमेरिकी नौसेना ने एक विमान वाहक पोत को दक्षिण चीन सागर में भेजा है।
- दक्षिण चीन सागर:
- अवस्थिति: दक्षिण चीन सागर, दक्षिण-पूर्व एशिया में स्थित पश्चिमी प्रशांत महासागर का हिस्सा है। यह चीन के दक्षिण और पूर्व में तथा वियतनाम के दक्षिण में, फिलीपींस के पश्चिम में एवं बोर्नियो द्वीप के उत्तर में स्थित है।
- यह पूर्वी चीन सागर से ताइवान जलसंधि द्वारा और फिलीपीन सागर से लूजॉन (Luzon) जलसंधि से जुड़ा हुआ है।
- सीमावर्ती देश (उत्तर से दक्षिण): चीन, ताइवान, फिलीपींस, मलेशिया, ब्रुनेई, इंडोनेशिया, सिंगापुर और वियतनाम।
- सामरिक महत्त्व: इस सागर का हिंद महासागर और प्रशांत महासागर (मलक्का जलडमरूमध्य) के बीच संपर्क लिंक होने के कारण अत्यधिक रणनीतिक महत्त्व है।
- व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (United Nations Conference on Trade And Development- UNCTAD) के अनुसार, वैश्विक नौपरिवहन का एक-तिहाई हिस्सा इसके अंतर्गत आता है। इस सागर के माध्यम से होने वाला अरबों डॉलर का व्यापार इसे एक महत्त्वपूर्ण भू-राजनीतिक जल निकाय बनाता है।
- अवस्थिति: दक्षिण चीन सागर, दक्षिण-पूर्व एशिया में स्थित पश्चिमी प्रशांत महासागर का हिस्सा है। यह चीन के दक्षिण और पूर्व में तथा वियतनाम के दक्षिण में, फिलीपींस के पश्चिम में एवं बोर्नियो द्वीप के उत्तर में स्थित है।
दक्षिण चीन सागर में विवाद का कारण:
- यहाँ के द्वीपों पर दावा:
- पार्सल द्वीप समूह पर चीन, ताइवान और वियतनाम द्वारा दावा किया जाता है।
- स्प्रैटली द्वीप समूह पर चीन, ताइवान, वियतनाम, ब्रुनेई और फिलीपींस द्वारा दावा किया जाता है।
- स्कारबोरो सोल (Scarborough Shoal) द्वीप पर फिलीपींस, चीन और ताइवान द्वारा दावा किया जाता है।
- चीन का दावा:
- चीन वर्ष 2010 से निर्जन छोटे-छोटे द्वीपों को संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि (UN Convention on the Law of the Sea-UNCLOS) के तहत लाने के लिये कृत्रिम द्वीपों में परिवर्तित कर रहा है ।
- चीन इन द्वीपों के आकार और संरचना को कृत्रिम तरीके से बदल रहा है। इसने पार्सल और स्प्रैटली पर अपनी हवाई पट्टी भी स्थापित की है।
- चीन के मछली पकड़ने वाले बेड़े मछली पकड़ने के वाणिज्यिक उद्यम के बजाय राज्य की ओर से अर्द्धसैनिक काम में लगाए गए हैं।
- अमेरिका इन कृत्रिम द्वीपों के निर्माण की आलोचना करता है और इसे चीन द्वारा बनाई गई 'रेत की एक महान दीवार' के रूप में प्रस्तुत करता है।
- अन्य मुद्दे:
- दक्षिण चीन सागर का अनिश्चित भौगोलिक दायरा।
- विवाद निपटान तंत्र पर असहमति।
- आचार संहिता (Code of Conduct) का कानूनी रूप से अपरिभाषित होना।
- इस मामले को दक्षिण चीन सागर को लेकर देशों का अलग-अलग इतिहास वृतांत तथा समुद्र में बड़े पैमाने पर फैले निर्जन द्वीप समूह और अधिक जटिल एवं बहुआयामी बनाते हैं।
- भारत का पक्ष:
- भारत ने यह सुनिश्चित किया है कि वह दक्षिण चीन सागर विवाद में किसी भी पक्ष में शामिल नहीं है और यहाँ इसकी उपस्थिति चीन को नियंत्रित करने के लिये नहीं है, बल्कि अपने स्वयं के आर्थिक हितों विशेषकर ऊर्जा सुरक्षा की ज़रूरतों को सुरक्षित करने के लिये है।
- दक्षिण चीन सागर में चीन की बढ़ती क्षमता ने भारत को इस मुद्दे पर अपने दृष्टिकोण का पुनर्मूल्यांकन करने के लिये मजबूर कर दिया है।
- भारत ने एक्ट ईस्ट पॉलिसी (Act East Policy) के एक प्रमुख घटक के रूप में दक्षिण चीन सागर में चीन की धमकी की रणनीति का विरोध करने के लिये भारत-प्रशांत क्षेत्र (Indo-Pacific Region) में विवादों का अंतर्राष्ट्रीयकरण का कार्य शुरू कर दिया है।
- भारत अपनी बौद्ध विरासत का उपयोग दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ एक मज़बूत बंधन बनाने के लिये कर रहा है।
- भारत ने दक्षिण चीन सागर में समुद्री मार्ग की सुरक्षा के लिये वियतनाम के साथ अपनी नौसेना को तैनात किया है, जो चीन को विरोध करने का कोई अवसर नहीं देता है।
- भारत, क्वाड पहल (Quad- भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया) तथा इंडो-पैसिफिक क्षेत्र का हिस्सा है। इन पहलों को चीन द्वारा एक नियंत्रण रणनीति के रूप में देखा जाता है।
स्रोत: द हिंदू
मानसिक स्वास्थ्य और पुरुष
चर्चा में क्यों?
सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय (Ministry of Social Justice and Empowerment) से प्राप्त आँकड़ों के अनुसार, सितंबर 2020 में लॉन्च किये गए 'किरण हेल्पलाइन' (Kiran Helpline) पर काॅल करने वालों में 70% कॉलर पुरुष थे। इनमे से ज़्यादातर कॉल युवा वयस्कों (Young Adults) से प्राप्त हुईहैं।
किरण 24/7 टोल-फ्री हेल्पलाइन है जिसके माध्यम से ’चिंता, तनाव, अवसाद, आत्महत्या के विचारों और अन्य मानसिक स्वास्थ्य चिंताओं का सामना कर रहे लोगों को काउंसलिंग सेवा प्रदान की जाती है।
प्रमुख बिंदु:
- डेटा विश्लेषण:
- लैंगिक आधार पर मानसिक स्वास्थ्य: प्राप्त 13,550 नई कॉल्स में से, 70.5% काॅल पुरुषों द्वारा जबकि 29.5% काॅल महिलाओं द्वारा की गई थी।
- कमज़ोर/सुभेद्य आयु समूह: कॉल करने वालों से 15 से 40 वर्ष आयु वर्ग का प्रतिशत सबसे अधिक रहा जिनसे कुल 75.5% काॅल्स प्राप्त हुई , जबकि 41 से 60 आयु वर्ग में 18.1% काॅल्स प्राप्त हुई।
- प्रमुख मुद्दे: कॉल करने वालों की सबसे प्रमुख समस्या चिंता और अवसाद से संबंधित थीं जबकि कुछ अन्य मामलों में महामारी, आत्मघाती प्रवृत्ति, मादक द्रव्यों के सेवन जैसे अन्य मुद्दे शामिल थे।
- पुरुषों के मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित मुद्दे:
- पारंपरिक लैंगिक भूमिका: सामाजिक अपेक्षाएँ और समाज में अपनी महत्त्वपूर्ण पारंपरिक लैंगिक भूमिका के कारण पुरुष अपने मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के बारे में ज़्यादा चर्चा नहीं कर पाते है।
- चेतावनी के लक्षणों की अनदेखी: पुरुषों में मानसिक विकार के संकेतों या लक्षणों में चिड़चिड़ापन, ध्यान केंद्रित करने में परेशानी, थकान या बेचैनी, सिर-दर्द, शराब या नशीली दवाओं का अधिक मात्रा में सेवन करना शामिल है।लेकिन प्राय: इन लक्षणों की अनदेखी कर दी जाती है।
- उचित ध्यान न देना: पुरुषों के स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों पर अनुसंधान को अपेक्षाकृत कम प्राथमिकता दी गई है। धन का अभाव और उचित ध्यान न देने के कारण स्थिति और गंभीर हो जाती है।
- आत्महत्या के मामलों में वृद्धि: वर्ष 2018 में प्रतिदिन लगभग 250 भारतीय पुरुषों ने आत्महत्या की जो महिलाओं द्वारा की गई आत्महत्याओं के मामलों की कुल संख्या के दोगुने से भी अधिक थी।
मानसिक स्वास्थ्य
- मानसिक स्वास्थ्य के बारे में:
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization- WHO) के अनुसार, मानसिक स्वास्थ्य स्वस्थ की एक स्थिति है जिसमें व्यक्ति अपनी क्षमताओं का एहसास करता है, जीवन में सामान्य तनावों का सामना कर सकता है, उत्पादक तरीके से कार्य कर सकता है और अपने समुदाय में अपना योगदान देने में सक्षम होता है। '
- शारीरिक स्वास्थ्य की तरह, मानसिक स्वास्थ्य भी जीवन के प्रत्येक चरण अर्थात् बचपन और किशोरावस्था से वयस्कता के दौरान महत्त्वपूर्ण होता है।
- चुनौतियाँ:
- उच्च सार्वजनिक स्वास्थ्य भार: भारत के नवीनतम राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2015-16 के अनुसार, पूरे देश में अनुमानत: 150 मिलियन लोगों को मानसिक स्वास्थ्य देखभाल की आवश्यकता है।
- संसाधनों का अभाव: भारत में प्रति 100,000 जनसंख्या पर मानसिक स्वास्थ्य कर्मचारियों की संख्या का अनुपात काफी कम है जिनमें मनोचिकित्सक (0.3), नर्स (0.12), मनोवैज्ञानिक (0.07) और सामाजिक कार्यकर्ता (0.07) शामिल हैं।
- स्वास्थ्य सेवा पर जीडीपी का 1 प्रतिशत से भी कम वित्तीय संसाधन पर आवंटित किया जाता है जिसके चलते सस्ती मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंँच में सार्वजनिक बाधा उत्पन्न हई है।
- अन्य चुनौतियाँ: मानसिक बीमारी के लक्षणों के प्रति जागरूकता का अभाव, इसे एक सामाजिक कलंक के रूप में देखना और विशेष रूप से बूढ़े और निराश्रित लोगों में मानसिक बीमार के लक्षणों की अधिकता,रोगी के इलाज हेतु परिवार के सदस्यों में इच्छा शक्ति का अभाव इत्यादि के कारण एक सामाजिक अलगाव की स्थिति उत्पन्न होती है।
- इसके परिणामस्वरूप उपचार में एक बड़ा अंतर देखा गया है। उपचार में आया यह अंतर किसी व्यक्ति की वर्तमान मानसिक बीमारी को और अधिक खराब स्थिति में पहुँचा देता है।
सरकार द्वारा उठाए गए कदम:
- राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (NMHP)
- सरकार द्वारा वर्ष 1982 से राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (National Mental Health Program- NMHP) का क्रियान्वयन किया जा रहा है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में योग्य पेशेवरों की कमी को दूर कर मानसिक विकारों के बोझ को कम करना है।
- वर्ष 2003 में दो योजनाओं को शामिल करने हेतु इस कार्यक्रम को सरकार द्वारा पुनः रणनीतिक रूप से तैयार किया गया, जिसमे राजकीय मानसिक अस्पतालों का आधुनिकीकरण और मेडिकल कॉलेजों/सामान्य अस्पतालों की मानसिक विकारो से संबंधित इकाईयों का उन्नयन शामिल था।
- मानसिक स्वास्थ्यकर अधिनियम, 2017:
- यह अधिनयम प्रत्येक प्रभावित व्यक्ति को सरकार द्वारा संचालित या वित्तपोषित मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं और उपचार तक पहुँच की गारंटी देता है।
- अधिनयम ने आईपीसी की धारा 309 (Section 309 IPC) के उपयोग को काफी कम कर दिया है और केवल अपवाद की स्थिति में आत्महत्या के प्रयास को दंडनीय बनाया गया है।
- मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 की धारा 115 (1) के अनुसार, भारतीय दंड संहिता की धारा 309 में सम्मिलित किसी भी प्रावधान के बावजूद कोई भी व्यक्ति जो आत्महत्या करने का प्रयास करेगा, उसके संबंध में तब तक, यह माना जाएगा कि वह गंभीर तनाव में जब तक कि यह अन्यथा साबित न हो, और साथ ही उसके विरुद्ध मुकदमा नहीं चलाया जाएगा और न ही उसे दंडित किया जाएगा।
आगे की राह:
- कई शोधों में राष्ट्रव्यापी अभियानों के माध्यम से मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित विषयों से जुड़ी सामाजिक कलंक की भावना को समाप्त करने पर ज़ोर दिया गया है।
- यह सुनिश्चित करने के लिये सभी लोगों के मानसिक स्वास्थ्य को गंभीरता से लिया जा रहा है तथा मानसिक स्वास्थ्य गंभीरतापूर्ण एवं सम्मानजनक तरीका से संबोधित किया जा रहा है, एक संवाद शुरु करके, उस संवाद को जारी रखकर पुरातन सामाजिक रिवाजों को चुनोती देने तथा बहिष्कार और भय के बिना लोगों को साथ देने की आवश्यकता है।
- आधुनिक तकनीक जैसे कि वेब-आधारित हस्तक्षेप और इलेक्ट्रॉनिक स्वास्थ्य (ई-स्वास्थ्य) उपकरण विकसित किये जा सकते हैं ये उन लोगों तक पहुंँचने में उपयोगी साबित हो सकते हैं जो अन्यथा मदद नहीं मांग सकते हैं।
स्रोत: द हिंदू
संयुक्त अरब अमीरात का ‘होप’ मिशन
चर्चा में क्यों?
संयुक्त अरब अमीरात (UAE) का पहला इंटरप्लेनेटरी ‘होप’ मिशन हाल ही में सफलतापूर्वक मंगल ग्रह की कक्षा में पहुँच गया है।
प्रमुख बिंदु
- ‘होप प्रोब’ मिशन
- संयुक्त अरब अमीरात (UAE) ने मंगल ग्रह के वातावरण का पहला एकीकृत मॉडल तैयार करने के उद्देश्य से वर्ष 2015 में ‘होप’ नामक ‘मार्स मिशन’ की घोषणा की थी।
- संयुक्त अरब अमीरात (UAE) के वैज्ञानिकों द्वारा ‘होप प्रोब’ को संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) में विकसित किया गया था और इसे जुलाई 2020 में जापान के तानेगाशिमा अंतरिक्ष केंद्र से लॉन्च किया गया था।
- विशेषता
- लगभग 1.5 टन वज़न वाला यह ‘होप प्रोब’ तकरीबन 55 घंटे में मंगल ग्रह का एक चक्कर पूरा करेगा।
- संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) के मंगल मिशन का समग्र जीवनकाल एक ‘मार्टियन वर्ष’ के आस-पास है, जो कि पृथ्वी पर लगभग 687 दिन के बराबर है।
- वैज्ञानिक उपकरण: इस मिशन में मुख्यतः तीन वैज्ञानिक उपकरणों का प्रयोग किया है:
- एमिरेट्स एक्सप्लोरेशन इमेज़र (EXI): एक उच्च-रिज़ॉल्यूशन वाला कैमरा।
- एमिरेट्स मार्स अल्ट्रावॉयलेट स्पेक्ट्रोमीटर (EMUS): एक फॉर-यूवी इमेजिंग स्पेक्ट्रोग्राफ
- एमिरेट्स मार्स इंफ्राड्रेड स्पेक्ट्रोमीटर (EMIRS): यह उपकरण मंगल ग्रह के वातावरण में तापमान, बर्फ, जल वाष्प और धूल आदि की जाँच करेगा।
- अपेक्षित लाभ
- संयुक्त अरब अमीरात (UAE) का मंगल ग्रह संबंधी यह मिशन वहाँ की जलवायु से संबंधित डेटा एकत्र करेगा जिससे वैज्ञानिकों को यह समझने में मदद मिलेगी कि मंगल के वातावरण का अंतरिक्ष में क्षरण क्यों हो रहा है?
- मिशन में शामिल वैज्ञानिक उपकरण मंगल ग्रह पर मौसम और दैनिक परिवर्तनों को मापने के लिये वातावरण से संबंधित अलग-अलग प्रकार के डेटा एकत्र करेंगे।
- इस प्रकार डेटा के माध्यम से वैज्ञानिक यह समझने में सक्षम हो सकेंगे कि ऊर्जा तथा कण जैसे- ऑक्सीजन और हाइड्रोजन आदि मंगल ग्रह के वातावरण में किस प्रकार प्रतिक्रिया करते हैं।
महत्त्व
- मंगल ग्रह की कक्षा में सफलतापूर्वक पहुँचने के साथ ही संयुक्त अरब अमीरात ऐसा करने वाले चार इकाइयों (नासा, सोवियत संघ, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी और भारत) की सूची में पाँचवें स्थान पर शामिल हो गया है।
- इस मिशन की सफलता से संयुक्त अरब अमीरात (UAE) को ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था बनाने में मदद मिलेगी, जिससे विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (STEM) के क्षेत्र में निवेश में भी बढ़ोतरी होगी।
- वर्ष 2021 में ही UAE अपनी स्थापना की 50वीं वर्षगाँठ मना रहा है।
- ‘होप’ मिशन न केवल संयुक्त अरब अमीरात के लिये, बल्कि पूरे अरब जगत के लिये काफी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि यह अरब जगत का भी पहला इंटरप्लेनेटरी मिशन है।
मंगल ग्रह संबंधी अन्य मिशन
- संयुक्त अरब अमीरात के ‘होप’ मिशन अलावा, अमेरिका और चीन के भी मानव रहित अंतरिक्ष यान आगामी दिनों में मंगल पर पहुँचने वाले हैं।
- इन सभी मिशनों को पृथ्वी और मंगल ग्रह के करीबी संरेखण का लाभ उठाने के लिये बीते वर्ष जुलाई माह में लॉन्च किया गया था।
- चीन के मिशन ‘तियानवेन-1’ में लैंडर और ऑर्बिटर दोनों शामिल हैं और इस मिशन का लैंडर मंगल ग्रह की सतह पर उतरकर प्राचीन जीवन के संकेतकों का पता पता लगाएगा।
- ‘पर्सीवरेंस’ नाम से अमेरिका का एक रोवर भी जल्द ही मंगल ग्रह की कक्षा में पहुँचने वाला है। यह एक दशक तक चलने वाली अमेरिका-यूरोपीय परियोजना का पहला चरण होगा, जिसमें मंगल ग्रह की चट्टानों को वापस पृथ्वी पर लाकर वहाँ पर जीवन के साक्ष्य की जाँच की जाएगी।
मंगल ग्रह के अन्वेषण का उद्देश्य
- विश्व भर के वैज्ञानिक और शोधकर्त्ता मंगल ग्रह को लेकर काफी अधिक उत्सुक रहते हैं, क्योंकि ग्रह को लेकर यह संभावना है कि एक समय यह इतना गर्म था कि यहाँ जीवन के मौजूद होने की संभावना है।
- कई मायनों में पृथ्वी से अलग होने के बावजूद दोनों ग्रहों (पृथ्वी और मंगल) में कई समानताएँ हैं- जैसे बादल, ध्रुवीय बर्फ, ज्वालामुखी और मौसम पैटर्न।
- इसके बावजूद अभी तक कोई भी मानव मंगल ग्रह पर नहीं पहुँच पाया है, क्योंकि मंगल पर वायुमंडल बहुत सूक्ष्म है, जिसमें अधिकतर कार्बन डाइऑक्साइड मौजूद है, जिसके कारण अंतरिक्ष यात्रियों के लिये वहाँ जीवित रहना काफी मुश्किल है।
भारत का मंगल ऑर्बिटर मिशन
- ‘मंगलयान’ के नाम से प्रसिद्ध भारत के मंगल ऑर्बिटर मिशन को नवंबर 2013 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा आंध्र प्रदेश के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लॉन्च किया गया था।
- इस मिशन को मंगल ग्रह की सतह और खनिज संरचना के अध्ययन के साथ-साथ मीथेन (मंगल पर जीवन का एक संकेतक) का पता लगाने के उद्देश्य से एक PSLV C25 रॉकेट द्वारा लॉन्च किया गया था।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारत-पोलैंड संबंध
चर्चा में क्यों?
हाल ही में पोलैंड ने भारतीय प्रधानमंत्री को यूरोपीय संघ-भारत शिखर सम्मेलन (मई 2021) और G7 समूह की बैठक के दौरान अपने देश आने हेतु आमंत्रित किया है।
- गौरतलब है कि इस प्रस्तावित यात्रा के दौरान भारत के प्रधानमंत्री यूरोपीय संघ-भारत शिखर सम्मेलन (मई 2021) में हिस्सा लेने के लिये पुर्तगाल और G7 समूह की बैठक में भाग लेने हेतु कॉर्नवाल, यूनाइटेड किंगडम का (जून 2021) का दौरा करेंगे।
- पोलैंड, भारत के साथ COVID-19 महामारी के कारण निलंबित सीधी उड़ानों को फिर से शुरू करने के लिये एक ट्रैवल बबल व्यवस्था (Travel Bubble Arrangement) पर बातचीत कर रहा है।
- ट्रैवल बबल व्यवस्था के अंतर्गत उन देशों या राज्यों को फिर से जोड़ना शामिल है, जिन्होंने घरेलू स्तर पर COVID-19 महामारी से लड़ने में अच्छा प्रदर्शन किया है।
- ट्रैवल बबल की व्यवस्था से ऐसे समूह में देशों को आपसी व्यापार, यात्रा और पर्यटन को पुनः खोलने की सुविधा मिलती है।
प्रमुख बिंदु
- पृष्ठभूमि:
- भारत और पोलैंड के बीच वर्ष 1954 में राजनयिक संबंध स्थापित किये गए जिसके बाद वर्ष 1957 में वारसा में भारतीय दूतावास खोला गया।
- दोनों देशों की वैचारिक धारणाओं में समानता है जो उपनिवेशवाद, साम्राज्यवाद और नस्लवाद के विरोध पर आधारित है।
- पोलैंड के कम्युनिस्ट युग (1944-1989) के दौरान दोनों देशों के बीच उच्च स्तर पर नियमित यात्राओं और राज्य व्यापार संगठनों द्वारा नियोजित व्यापार तथा आर्थिक वार्ताओं के साथ द्विपक्षीय संबंध घनिष्ठ एवं सौहार्दपूर्ण थे।
- वर्ष 1989 में पोलैंड द्वारा लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था को चुनने के बाद भी दोनों देशों की घनिष्ठता बनी हुई है।
- वर्तमान सदी में भारत और पोलैंड के बीच एक सौहार्दपूर्ण राजनीतिक संबंध का उदय देखने को मिला है, विशेष रूप से वर्ष 2004 में पोलैंड के यूरोपीय संघ में शामिल होने के बाद से, जब यह मध्य यूरोप में भारत का एक प्रमुख आर्थिक साझेदार बन गया।
- आर्थिक और वाणिज्यिक संबंध:
- निर्यात:
- पोलैंड, मध्य यूरोप में भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार होने के साथ इस क्षेत्र में भारतीय निर्यात के लिये सबसे बड़ा बाज़ार रहा है। ग़ौरतलब है कि पिछले 10 वर्षों में भारत और पोलैंड के द्विपक्षीय व्यापार में लगभग सात गुना वृद्धि देखने को मिली है।
- भारतीय आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2019 में भारत और पोलैंड के बीच द्विपक्षीय व्यापार का समग्र मूल्य 2.36 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।
- वर्ष 2019 में भारत से पोलैंड को किया गया निर्यात भारत के कुल निर्यात का मात्र 0.48% था और जबकि इससे दौरान भारत के कुल आयात में मात्र 0.15% पोलैंड से संबंधित था।
- आँकड़ों के अनुसार द्विपक्षीय व्यापार में पिछले वर्षों की तुलना में वर्ष 2019 में 2.5% की वृद्धि देखी गई है।
- निवेश:
- पोलैंड में भारतीय निवेश 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक है।
- भारत में कुल पोलिश निवेश लगभग 672 मिलियन अमेरिकी डॉलर है।
- प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI):
- अप्रैल 2000 से मार्च 2019 के बीच भारत को पोलैंड से 672 मिलियन अमेरिकी डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) प्राप्त हुआ, जो इस अवधि में भारत में हुए कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का 0.16% था।
- निर्यात:
- क्षेत्रीय सहयोग:
- कृषि और खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र:
- पोलैंड के पास संरक्षण/भंडारण प्रौद्योगिकियों सहित विश्व स्तर के खाद्य प्रसंस्करण प्रौद्योगिकियों का स्वामित्व है, जबकि भारत कई फलों, डेयरी और कृषि उत्पादों के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक है।
- अप्रैल 2017 में दोनों देशों के बीच तकनीकी और संस्थागत सहयोग के लिये कृषि क्षेत्र से जुड़े एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गए।
- सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) क्षेत्र:
- वर्तमान में लगभग 13 भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी कंपनियाँ पोलैंड में सक्रिय हैं, जो 10,000 से अधिक पेशेवरों को नियुक्त करती हैं और वे भारत से भी अपना यूरोपीय ऑपरेशन चला रही हैं।
- कपड़ा क्षेत्र:
- वर्तमान में कपड़ा क्षेत्र के कुल भारतीय आयात में पोलिश वस्त्रों और परिधानों की हिस्सेदारी मात्र 3.73% (400 मिलियन अमरीकी डॉलर) है।
- अतः भारतीय निर्यातकों के लिये अनुकूल परिस्थितियाँ निर्मित करते हुए इस क्षेत्र के निर्यात में वृद्धि की जा सकती है।
- वर्तमान में भारत द्वारा पोलैंड को निर्यात किया जाने वाला लगभग 30-40% माल इसके द्वारा पुनः अन्य यूरोपीय संघ के देशों में निर्यात किया जाता है।
- खनन/ऊर्जा क्षेत्र:
- पोलैंड के पास प्रतिष्ठित स्वच्छ कोयला तकनीकी ज्ञान है और पोलिश सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों ने भारत में खनन तथा बिजली क्षेत्रों के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई हैं।
- भारत और पोलैंड द्वारा कोयला तथा खनन क्षेत्र में द्विपक्षीय सहयोग बढ़ाने के लिये वर्ष 2019 में एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किये गए।
- दवा और रसायन क्षेत्र:
- पोलैंड की रणनीतिक स्थिति, स्वास्थ्य कर्मियों की कमी तथा पिछले 5 वर्षों में फार्मा बाज़ार में 25% वृद्धि के कारण भारतीय निर्यातकों और निवेशकों के लिये पोलैंड में अच्छे अवसर हैं।
- कृषि और खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र:
- सांस्कृतिक और शैक्षिक संबंध:
- पोलैंड में इंडोलॉजी (Indology) के अध्ययन की एक मज़बूत परंपरा है। पोलिश विद्वानों ने 19वीं शताब्दी में ही संस्कृत के ग्रंथों का अपनी भाषा में अनुवाद कर लिया था।
- पोलिश मिशन द्वारा वर्ष 2019 में महात्मा गांधी की 150वीं वर्षगांठ का आयोजन किया।
- महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के अवसर पर पोलिश पोस्ट (Poczta Polska) ने एक स्मारक डाक टिकट जारी किया।
- पोलैंड के गुरुद्वारा साहिब में गुरु नानक देव जी के 550वें प्रकाश पर्व के अवसर पर पोलिश मिशन और पोलैंड के गुरुद्वारा साहिब ने संयुक्त रूप से समारोह आयोजित किया था।
- 21 जून, 2015 को पोलैंड के 21 शहरों में पहले अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस (International Day of Yoga) का आयोजन किया गया था। इन कार्यक्रमों में लगभग 11000 लोगों ने भाग लिया था।
- भारतीय समुदाय:
- पोलैंड में भारतीय समुदाय की संख्या लगभग लगभग 10,000 हैं, जिसमें विभिन्न क्षेत्रों (वस्त्र, इलेक्ट्राॅनिक्स आदि) से जुड़े व्यापारी (जो साम्यवाद के पतन के बाद आए) और बहुराष्ट्रीय या भारतीय कंपनियों में काम करने वाले पेशेवर तथा सॉफ्टवेयर/आईटी विशेषज्ञ और भारतीय छात्र (जिनकी संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है) शामिल हैं।
स्रोत: द हिंदू