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डेली न्यूज़

  • 10 Sep, 2024
  • 42 min read
इन्फोग्राफिक्स

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन

और पढ़ें: डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन


भारतीय राजव्यवस्था

समान ध्वस्तीकरण दिशा-निर्देशों की मांग

प्रिलिम्स के लिये:

सर्वोच्च न्यायालय, प्रतिकारपरक न्याय, अनुच्छेद 300A, अनुच्छेद 21, जिनेवा कन्वेंशन, विधि का शासन

मेन्स के लिये:

न्यायपालिका, विधि का शासन, ध्वस्तीकरण अभियान और विधि का शासन, ध्वस्तीकरण अभियान के विरुद्ध विधि, निर्णय और मामले।

स्रोत: इंडियन एक्प्रेस 

चर्चा में क्यों? 

भारत के सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने हाल ही में संपत्ति/भवन-ध्वस्तीकरण को विनियमित करने के लिये राष्ट्रव्यापी दिशा-निर्देश जारी करने के अपने उद्देश्य की घोषणा की, यह कदम ‘बुलडोजर न्याय’ की प्रथा पर बढ़ती चिंताओं से प्रेरित है।

  • SC का हस्तक्षेप मनमाने और संभावित रूप से अन्यायपूर्ण ध्वस्तीकरण को रोकने के लिये मानकीकृत उचित प्रक्रिया की बढ़ती आवश्यकता को उजागर करता है।

नोट: 

  • बुलडोजर न्याय, एक शब्द है जो प्रायः अपराधों के आरोपी लोगों की संपत्तियों/भवनों/प्रतिष्ठानों को कभी-कभी उचित कानूनी प्रक्रियाओं का पालन किये बिना ध्वस्त करने की प्रथा को संदर्भित करता है।
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सर्वोच्च न्यायालय संपत्ति-ध्वस्तीकरण पर क्यों विचार कर रहा है?

  • इस निर्णय का संदर्भ: सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय व्यापक रूप से ऐसी रिपोर्टों के बीच आया है कि संपत्ति-ध्वस्तीकरण को दंडात्मक न्याय (जिसे प्रतिशोधात्मक न्याय भी कहा जाता है) के रूप में प्रयोग किया जा रहा है।
    • स्थानीय राज्य सरकारों ने अपराध के आरोपी व्यक्तियों की संपत्ति को ध्वस्त करने के लिये बुलडोजर का सहारा लिया है, जो प्रायः स्थापित कानूनी प्रक्रियाओं को दरकिनार कर देते हैं।
  • सर्वोच्च न्यायालय की प्रतिक्रिया: सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि केवल आरोपों या दोषसिद्धि के आधार पर संपत्ति को ध्वस्त करना उचित प्रक्रिया और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है। इस प्रथा ने इसकी वैधता और निष्पक्षता के संदर्भ में चिंताएँ उत्पन्न की हैं।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने उचित कानूनी प्रक्रियाओं के बिना संपत्ति को ध्वस्त करने की प्रथा की आलोचना की। उन्होंने इस बात पर ज़ोर देते हुए कहा कि दोषसिद्धि भी कानूनी मानदंडों का पालन किये बिना ध्वस्तीकरण को उचित नहीं ठहराती है।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने बताया कि सभी राज्यों में निष्पक्ष और लगातार ध्वस्तीकरण सुनिश्चित करने के लिये दिशा-निर्देशों की आवश्यकता है, विशेषकर अनधिकृत निर्माणों से जुड़े मामलों में।

दिशा-निर्देश ध्वस्तीकरण प्रथाओं को किस प्रकार प्रभावित करेंगे?

  • अखिल भारतीय दिशा-निर्देश: सर्वोच्च न्यायालय ने यह सुनिश्चित करने के लिये देश भर में लागू होने वाले व्यापक दिशा-निर्देश स्थापित करने की योजना बनाई है कि ध्वस्तीकरण कानूनी प्रक्रियाओं के अनुसार किया जाए।
    • ये दिशा-निर्देश नोटिस अवधि, कानूनी प्रतिक्रियाओं के अवसर और दस्तावेज़ीकरण आवश्यकताओं जैसे पहलुओं को कवर करेंगे।
  • मनमाने कार्यों को नियंत्रित करना: दिशा-निर्देशों का उद्देश्य मनमाने ढंग से किये जाने वाले ध्वस्तीकरण जो न्यायेतर कारणों से प्रेरित हो सकते हैं, को रोकना है। प्रक्रियाओं को मानकीकृत करके, सर्वोच्च न्यायालय को ध्वस्तीकरण प्रथाओं के दुरुपयोग को रोकने की उम्मीद है।
  • कानूनी तंत्र पर प्रभाव: सर्वोच्च न्यायालय के प्रस्तावित दिशा-निर्देश ‘बुलडोजर न्याय’ की प्रवृत्ति के खिलाफ एक महत्त्वपूर्ण जाँच के रूप में कार्य कर सकते हैं।
    • उनसे संपत्ति के ध्वस्तीकरण के लिये एक समान कानूनी फ्रेमवर्क प्रदान करने की उम्मीद है, जो उचित प्रक्रिया का पालन सुनिश्चित करता है।

ध्वस्तीकरण अभियान के संदर्भ में क्या चिंताएँ हैं?

  • संवैधानिक:
    • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 300A: इसके अनुसार किसी भी व्यक्ति को कानून के प्राधिकार के बिना उसकी संपत्ति से वंचित नहीं किया जाएगा।। यह प्रावधान इस बात पर ज़ोर देता है कि संपत्ति केवल उचित प्रक्रिया के बाद और वैध कानूनों के तहत ही छीनी जा सकती है।
    • संविधान का अनुच्छेद 21: गारंटी देता है कि किसी भी व्यक्ति को विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अलावा उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाएगा।
      • बिना उचित प्रक्रिया के तत्काल ध्वस्तीकरण, सम्मानजनक जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है।
    • अनुच्छेद 14 (विधि के समक्ष समानता): ऐसे ध्वस्तीकरणों, जो कुछ समुदायों (जैसे झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले लोग) को असमान रूप से प्रभावित करते हैं, भेदभावपूर्ण मानकर चुनौती दी जा सकती है।
    • अनुच्छेद 19 (वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता): असहमति या आलोचना व्यक्त करने वालों को लक्षित करके दंडात्मक ध्वस्तीकरण को मुक्त अभिव्यक्ति अधिकारों के उल्लंघन के रूप में देखा जा सकता है।
    • विधि का शासन: संविधान का एक मौलिक सिद्धांत जो यह अनिवार्य करता है कि राज्य की कार्रवाइयाँ स्थापित कानूनी प्रक्रियाओं और व्यक्तिगत अधिकारों के सम्मान के अनुरूप होनी चाहिये।   
      • न्याय के बजाय दमन और नियंत्रण के लिये कानूनी साधनों का दुरुपयोग विधि के शासन को कमज़ोर करता है। उचित प्रक्रिया के बिना संपत्तियों को ध्वस्त करने की प्रशासनिक प्रथा इस विरोधाभास को दर्शाती है जिसके लिये न्यायिक जाँच और हस्तक्षेप की आवश्यकता है।
  • जिनेवा कन्वेंशन और अंतर्राष्ट्रीय दायित्व: जिनेवा कन्वेंशन का अनुच्छेद 87(3) सामूहिक दंड पर रोक लगाता है। इस तरह के विध्वंस भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51(3) का भी उल्लंघन करते हैं, जिसके अनुसार भारत को अंतर्राष्ट्रीय संधियों और कानूनों का सम्मान करना चाहिये।
    • किसी भी सभ्य समाज की तरह भारतीय संविधान भी सामूहिक दंड की अवधारणा को मान्यता नहीं देता है।
      • किसी आरोपी के घर को ध्वस्त करके उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई करना विधि के शासन के अनुरूप नहीं है। राज्य न्याय की आड़ में दूसरा अपराध करके प्रतिशोध नहीं ले सकता।
  • अपरिवर्तनीय क्षति: घर के ध्वस्त होने से भावनात्मक और वित्तीय नुकसान बहुत अधिक होता है। निर्दोष परिवार के सदस्य, जिनकी कथित अपराधों में कोई भूमिका नहीं होती, अनावश्यक रूप से पीड़ित होते हैं।
  • हाशिये पर पड़े समुदायों को लक्षित करना: यह प्रथा अल्पसंख्यक और हाशिये पर पड़े समुदायों पर असंगत रूप से प्रभाव डालती है तथा सामाजिक विभाजन एवं मौजूदा असमानताओं को बनाए रखती है।
    • बुलडोज़र न्याय के शिकार लोगों को प्रायः पुनर्वास या मुआवजे के बिना छोड़ दिया जाता है, जिससे उनकी पीड़ा तथा हाशिये पर जाने की स्थिति और भी बढ़ जाती है।
  • विश्वास का ह्रास: यह प्रथा स्थापित विधि प्रक्रियाओं को दरकिनार करके राजनीतिक और कानूनी संस्थाओं में जनता के विश्वास को कमज़ोर करती है।

संपत्ति ध्वस्तीकरण से संबंधित अन्य न्यायिक फैसले क्या हैं?

  • मेनका गांधी बनाम भारत संघ मामला, 1978: सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि अनुच्छेद 21 में प्रयुक्त वाक्यांश "कानून की उचित प्रक्रिया" के बजाय "कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया" है, जिसका अर्थ है कि प्रक्रियाएँ मनमानी और तर्कहीनता से मुक्त होनी चाहिये तथा न्यायसंगत, निष्पक्ष व गैर-मनमाना होनी चाहिये। 
    • अतः संदेह या निराधार आरोपों के आधार पर ध्वस्तीकरण, न्याय, निष्पक्षता और मनमानी न करने के सिद्धांतों  का खंडन करता है।
  • ओल्गा टेलिस बनाम बॉम्बे म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन मामला, 1985: सर्वोच्च न्यायालय ने पुष्टि की कि संविधान का अनुच्छेद 21, जो जीवन के अधिकार की गारंटी देता है, उसमें आजीविका और आश्रय का अधिकार शामिल है। इस प्रकार बिना उचित प्रक्रिया के घरों को ध्वस्त करना संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है। 
  • के.टी. प्लांटेशन (P) लिमिटेड बनाम कर्नाटक राज्य मामला, 2011: सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया कि अनुच्छेद 300-A के तहत संपत्ति से वंचित करने का प्रावधान करने वाला कानून न्यायसंगत, निष्पक्ष और उचित होना चाहिये।

स्थानीय कानूनों के तहत ध्वस्तीकरण के लिये दिशा-निर्देश क्या हैं?

  • राजस्थान: राजस्थान में ध्वस्तीकरण राजस्थान नगर पालिका अधिनियम, 2009 और राजस्थान वन अधिनियम, 1953 के तहत विनियमित हैं।
    • उचित प्रक्रिया आवश्यकताएँ: कथित अपराधी को नोटिस दिये जाने की आवश्यकता होती है और संपत्ति जब्ती से पहले लिखित प्रतिनिधित्व करने का अवसर प्रदान किया जाता है।
    • यह निर्दिष्ट करता है कि केवल एक तहसीलदार ही अतिचारियों को बेदखल करने का आदेश दे सकता है, जिससे संपत्ति जब्ती से पहले एक औपचारिक प्रक्रिया सुनिश्चित होती है।
  • मध्य प्रदेश: मध्य प्रदेश नगर पालिका अधिनियम, 1961 द्वारा शासित।
    • उचित प्रक्रिया आवश्यकताएँ: बिना अनुमति के निर्मित इमारतों को ध्वस्त करने की अनुमति देता है, लेकिन किसी भी ध्वस्तीकरण कार्रवाई से पहले मालिक को कारण बताने के लिये पूर्व सूचना देना अनिवार्य करता है।
  • उत्तर प्रदेश: उत्तर प्रदेश शहरी नियोजन और विकास अधिनियम, 1973 के तहत।
    • उचित प्रक्रिया की आवश्यकताएँ: ध्वस्तीकरण से पहले संपत्ति के मालिक को 15 से 40 दिनों की अवधि के भीतर जवाब देने के लिये नोटिस जारी करना आवश्यक है। मालिक को आदेश के विरुद्ध अपील करने का अधिकार है।
  • दिल्ली: दिल्ली नगर निगम अधिनियम, 1957 (DMC अधिनियम) द्वारा विनियमित।
    • उचित प्रक्रिया आवश्यकताएँ: कुछ शर्तों के तहत बिना पूर्व सूचना के अनधिकृत संरचनाओं को हटाने की अनुमति देता है।  
    • इसमें मकान मालिक को ध्वस्तीकरण आदेश को चुनौती देने के लिये उचित अवसर देने का प्रावधान है तथा अपीलीय न्यायाधिकरण के समक्ष अपील की व्यवस्था भी प्रदान की गई है।
  • हरियाणा: हरियाणा नगर निगम अधिनियम, 1994 द्वारा शासित।
    • उचित प्रक्रिया की आवश्यकताएँ: DMC अधिनियम के समान, लेकिन इसमें विध्वंस शुरू करने हेतु कम अवधि (तीन दिन) का प्रावधान है। इसके लिये मालिक को आदेश के विरुद्ध तर्क करने का उचित अवसर की भी आवश्यकता होती है।

आगे की राह

  • कानून के शासन को सुदृढ़ करना: सभी राज्य को अपनी कार्रवाइयों में कानून का सख्ती से पालन करना चाहिये। भावनाओं या राजनीति से प्रेरित मनमाने ढंग से किये गए विध्वंस कानून व्यवस्था और अधिकारों को कमज़ोर करते हैं। न्याय के लिये निष्पक्ष सुनवाई, उचित प्रक्रिया तथा स्थापित कानूनी प्रक्रियाओं की आवश्यकता होती है, न कि त्वरित प्रतिशोध की।
    • राज्य की कार्रवाई व्यक्तिगत अपराधियों पर लक्षित होनी चाहिये, न कि पूरे परिवार या समुदाय पर। कानूनी व्यवस्था को आपराधिक न्याय को सामूहिक दंड से अलग करना चाहिये और निर्दोषता की धारणा को बनाए रखना चाहिये।
  • न्यायिक निगरानी को सुदृढ़ करना: संपत्ति के विध्वंस से संबंधित विवादों को निपटाने के लिये विशेष न्यायाधिकरण या अदालतें स्थापित की जानी चाहिये तथा इन न्यायाधिकरणों के पास सरकारी निर्णयों की समीक्षा करने, निषेधाज्ञा देने और उचित उपाय प्रदान करने का अधिकार होना चाहिये।
  • मौजूदा कानूनों की समीक्षा: संपत्ति अधिकार, शहरी नियोजन और भूमि अधिग्रहण से संबंधित मौजूदा कानूनों और नियमों की व्यापक समीक्षा करना ताकि किसी भी विसंगति या अस्पष्टता की पहचान की जा सके।
    • ध्वस्तीकरण को विनियमित करने के लिये स्पष्ट राष्ट्रीय दिशा-निर्देशों की आवश्यकता है, ताकि उचित सूचना, सुनवाई और अपील के अवसर सुनिश्चित किये जा सकें।
  • वैकल्पिक विवाद समाधान: संपत्ति अधिकारों और विध्वंस से संबंधित विवादों को हल करने के लिये मध्यस्थता और पंचनिर्णय जैसे वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्रों के उपयोग को बढ़ावा देना।
  • पुनर्वास: विध्वंस से प्रभावित व्यक्तियों के लिये व्यापक पुनर्वास योजनाएँ विकसित करना, जिसमें वैकल्पिक आवास, आजीविका सहायता और मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं के प्रावधान शामिल हों।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत में मनमाने ढंग से संपत्ति के विध्वंस से उत्पन्न चुनौतियों और संपत्ति के विध्वंस को विनियमित करने में न्यायपालिका की भूमिका पर चर्चा कीजिये।


भूगोल

अरब सागर में असामान्य चक्रवात

प्रिलिम्स के लिये:

अरब सागर, असना, चक्रवात, अल नीनो, दक्षिणी महासागर

मेन्स के लिये:

महत्त्वपूर्ण भूभौतिकीय घटनाएँ, जलवायु परिवर्तन और चक्रवात गतिशीलता पर इसका प्रभाव

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में अगस्त माह के दौरान अरब सागर में असना नामक एक अप्रत्याशित चक्रवाती घटना घटी, जिसने असामान्य उत्पत्ति और विकास के कारण महत्त्वपूर्ण ध्यान आकर्षित किया।

  • उत्तरी हिंद महासागर जिसमें अरब सागर और बंगाल की खाड़ी शामिल है, वैश्विक महासागरीय क्षेत्रों की तुलना में चक्रवातों के मामले में सामान्यतः कम सक्रिय है। हालाँकि असना के उभरने से इस क्षेत्र में चक्रवातों के निर्माण/साइक्लोजेनेसिस पर जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभाव की ओर ध्यान आकर्षित हुआ है।

नोट: चक्रवातों के निर्माण से तात्पर्य वायुमंडल में चक्रवाती परिसंचरण की वृद्धि या प्रबलता से है, जिसके परिणामस्वरूप प्रायः चक्रवातों का निर्माण होता है तथा मौसम संबंधी घटनाएँ होती हैं।

उत्तरी हिंद महासागर में चक्रवात के निर्माण में योगदान देने वाले कारक क्या हैं?

  • महासागरीय सुरंगें (Oceanic Tunnels): हिंद महासागर में अद्वितीय महासागरीय सुरंगें हैं, जो इसे प्रशांत और दक्षिणी महासागरों से जोड़ती हैं।
    • प्रशांत सुरंग (इंडोनेशियाई थ्रूफ्लो) हिंद महासागर के ऊपरी 500 मीटर तक गर्म जल लाती है, जिससे अरब सागर में समुद्र की सतह का तापमान (SST) बढ़ जाता है, जिससे संवहन और नमी की उपलब्धता में वृद्धि हो सकती है।
      • गर्म समुद्री सतह की पवने चक्रवात के विकास के लिये ऊर्जा प्रदान कर सकती है, लेकिन अन्य कारकों के कारण इसका प्रभाव कम हो सकता है।
    • दक्षिणी महासागर सुरंग 1 किलोमीटर गहराई से नीचे ठंडा जल लाती है, जो निचली महासागर परतों को स्थिर कर सकती है और गर्म सतह के जल के ऊर्ध्वाधर मिश्रण को सीमित कर सकती है।
      • ठंडा जल समुद्र सतही तापमान को भी कम कर सकता है तथा चक्रवात निर्माण के लिये उपलब्ध ऊर्जा को सीमित कर सकता है, जिससे चक्रवाती गतिविधियाँ संभवतः दब सकती हैं।
  • मानसून-पूर्व और मानसून-पश्चात् चक्रवात: अरब सागर और बंगाल की खाड़ी को घेरने वाले उत्तरी हिंद महासागर में दो अलग-अलग चक्रवाती मौसम होते हैं, मानसून-पूर्व (अप्रैल से जून) तथा मानसून-पश्चात् (अक्तूबर से दिसंबर), जबकि अन्य क्षेत्रों में आमतौर पर एक ही चक्रवाती मौसम होता है।
    • इस क्षेत्र की विशिष्ट जलवायु और समुद्र संबंधी परिस्थितियाँ, जिनमें मानसूनी परिसंचरण तथा आकस्मिक मौसमी पवनों के परिवर्तन शामिल हैं, इन द्वैत चक्रवाती मौसमों में योगदान करते हैं।
    • मानसून-पूर्व चक्रवाती मौसम में अरब सागर और बंगाल की खाड़ी दोनों में ऊष्मा एवं बढ़े हुए संवहन के कारण चक्रवात की व्युत्पत्ति हो सकती है।
    • मानसून-पश्चात् चक्रवाती मौसम (अक्तूबर-दिसंबर) में पूर्वोत्तर मानसून और शुष्क महाद्वीपीय पवनें अरब सागर को ठंडा कर देती है, जिससे चक्रवात बनने की संभावना कम हो जाती है, जबकि बंगाल की खाड़ी चक्रवातों के लिये अधिक अनुकूल रहती है।
    • हालाँकि जलवायु परिवर्तन हिंद महासागर में चक्रवातों के स्वरूप और प्रबलता को परिवर्तित कर रहा है।

नोट: 

अरब सागर में बंगाल की खाड़ी की तुलना में चक्रवात की घटना कम होती है, क्योंकि यहाँ ऊर्ध्वाधर पवन का बहाव अधिक होता है और संवहनीय गतिविधि कम होती है।

  • मानसून से पूर्व तेज़ी से उष्मीय प्रभाव के बावजूद, मानसून के दौरान शीत और लगातार निम्न  तापमान चक्रवाती गतिविधि को कम करते हैं।
  • हाल ही में उष्मीय प्रवृत्ति दोनों क्षेत्रों को प्रभावित करती है, लेकिन अरब सागर में चक्रवाती सक्रियता कम होती है।

जलवायु परिवर्तन हिंद महासागर को किस प्रकार प्रभावित करता है?

  • तीव्र उष्मीयता: जलवायु परिवर्तन के कारण हिंद महासागर तीव्रता से गर्म हो रहा है। प्रशांत महासागर में बढ़ती उष्मीयता और दक्षिणी महासागर से आने वाली गर्म जलधारा इस प्रवृत्ति में योगदान करती है।
    • वैश्विक जलवायु परिवर्तनों से प्रेरित वायुमंडलीय पवनों तथा आर्द्रता में परिवर्तन, हिंद महासागर की उष्मीयता को और तीव्र करते हैं।
  • वैश्विक प्रभाव: महासागर की तीव्र उष्मीयता के कारण प्रशांत महासागर की ऊष्मा अवशोषी क्षमता और उत्तरी अटलांटिक महासागर में भारी जल के निक्षेपण (डूबोने की क्षमता) प्रभावित हो रहे हैं। 
    • जलवायु परिवर्तन के दौरान महासागरों के गर्म होने के लिये हिंद महासागर एक समाशोधन गृह (क्लियरिंग हाउस) की तरह कार्य कर रहा है (यह वैश्विक जलवायु परिवर्तनशीलता को नियंत्रित करता है और समग्र ताप संतुलन में योगदान देता है)।
  • साइक्लोजेनेसिस प्रभाव: तीव्र तापमान वृद्धि और उससे संबंधित जलवायु परिवर्तन चक्रवात निर्माण, आवृत्ति एवं व्यवहार को प्रभावित करते हैं, जो वैश्विक तापमान वृद्धि के प्रति क्षेत्र की अद्वितीय प्रतिक्रिया को उजागर करता है।

चक्रवात असना

  • वर्ष 1981 के बाद से अगस्त माह में उत्तरी हिंद महासागर में आने वाला पहला चक्रवात होने के नाते, चक्रवात असना एक दुर्लभ चक्रवात है, जिसने विशेष रूप से ध्यान आकर्षित किया है।
    • असना नाम, जिसका अर्थ है "स्वीकार किया जाने वाला या प्रशंसा योग्य", पाकिस्तान द्वारा दिया गया है।
  • मज़बूत भूमि-आधारित निम्न दबाव प्रणालियाँ आमतौर पर असना जैसे चक्रवातों का स्रोत होती हैं, जो बंगाल की खाड़ी के ऊपर बनते हैं और भारत में मूसलाधार मानसूनी वर्षा करते हैं।
    • यह प्रणाली गर्म अरब सागर में प्रवेश करने पर चक्रवात में परिवर्तित हो गई, जिसे भूमंडलीय ऊष्मीकरण एवं क्षेत्रीय मौसम पैटर्न ने बढ़ावा दिया, जिससे असना को तीव्र होने के लिये आवश्यक ऊर्जा प्राप्त हुई, लेकिन अंततः चक्रवात के परिसंचरण में प्रवेश करने वाली शुष्क रेगिस्तानी हवा के कारण यह समाप्त हो गई।
  • जलवायु परिवर्तन के कारण हिंद महासागर में चक्रवातों की संभावना अधिक अप्रत्याशित हो रही है, वैश्विक तापमान वृद्धि, अल-नीनो और जल के अंदर ज्वालामुखी विस्फोट जैसे कारक भारत में चरम मौसम की घटनाओं में योगदान दे रहे हैं, जहाँ अप्रत्याशित वर्षा प्रणाली के कारण मानसूनी तीव्रता द्वारा अनियमित होता जा रहा है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. उत्तर हिंद महासागर में चक्रवात निर्माण में योगदान करने वाले कारकों और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव की व्याख्या कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)

  1. जेट धाराएँ केवल उत्तरी गोलार्द्ध में उत्पन्न होती हैं।
  2.  केवल कुछ चक्रवातों में ही आँख विकसित होती है।
  3.  चक्रवात की आँख के अंदर का तापमान आसपास के तापमान की तुलना में लगभग 10ºC कम होता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(A) केवल 1
(B) केवल 2 और 3
(C) केवल 2
(D) केवल 1 और 3

उत्तर: (C)


प्रश्न. उष्णकटिबंधीय (ट्रॉपिकल) अक्षांशों में दक्षिणी अटलांटिक और दक्षिण-पूर्वी प्रशांत क्षेत्रों में चक्रवात उत्पन्न नहीं होता। इसका क्या कारण है? (2015)

(a) समुद्री पृष्ठों के ताप निम्न होते हैं
(b) अंतःउष्णकटिबंधीय अभिसारी क्षेत्र (इंटर-ट्रॉपिकल कन्वर्जेंस ज़ोन) विरले ही होता है,
(c) कोरिऑलिस बल अत्यंत दुर्बल होता है
(d) उन क्षेत्रों में भूमि मौजूद नहीं होती

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. उष्णकटिबंधीय चक्रवात मुख्यतः दक्षिण चीन सागर, बंगाल की खाड़ी और मैक्सिको की खाड़ी तक ही सीमित रहते हैं। क्यों? (2014)


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-संयुक्त अरब अमीरात संबंध

प्रिलिम्स के लिये:

न्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (NPCIL), बराक न्यूक्लियर पावर प्लांट, तरलीकृत प्राकृतिक गैस (LNG), इंडिया स्ट्रेटेजिक पेट्रोलियम रिज़र्व लिमिटेड (ISPRL), आई2यू2 ग्रुपिंग, व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता (CEPA), अभ्यास डेज़र्ट साइक्लोन, भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEC), अब्राहम एकॉर्ड , खाड़ी देश। 

मेन्स के लिये :

भारत के लिये संयुक्त अरब अमीरात का महत्त्व तथा भारत-संयुक्त अरब अमीरात संबंधों से जुड़ी चुनौतियाँ।

स्रोत : द हिंदू 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में भारत और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) ने आपसी संबंधों को सुदृढ़  करने तथा अपनी व्यापक सामरिक साझेदारी को बढ़ाने के उद्देश्य से द्विपक्षीय वार्ता की। 

  • अबू धाबी के क्राउन प्रिंस की मेज़बानी भारत के प्रधानमंत्री ने नई दिल्ली के हैदराबाद हाउस में की। दोनों देशों ने ऊर्जा संबंधों को बढ़ाने हेतु कई समझौतों पर हस्ताक्षर किये।

यात्रा के दौरान हस्ताक्षरित प्रमुख समझौते क्या हैं?

  • असैन्य परमाणु सहयोग: भारत और UAE  ने असैन्य परमाणु सहयोग के लिये एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किये।
    • इस समझौते में बराका परमाणु ऊर्जा संयंत्र के संचालन और रख-रखाव के लिये भारतीय परमाणु ऊर्जा निगम लिमिटेड (NPCIL) एवं अमीरात परमाणु ऊर्जा कंपनी (ENEC) शामिल हैं।
    • बराका परमाणु ऊर्जा संयंत्र UAE में अबू धाबी अमीरात के भीतर अल धफरा में स्थित है। यह अरब विश्व का पहला परमाणु ऊर्जा संयंत्र है।
  • ऊर्जा: 
    • LNG आपूर्ति: यूएई और भारत के बीच दीर्घकालिक तरलीकृत प्राकृतिक गैस (LNG) आपूर्ति के लिये एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गए। 
    • सामरिक पेट्रोलियम रिज़र्व (SPR): पेट्रोलियम की आपूर्ति के लिये इंडिया स्ट्रेटेजिक पेट्रोलियम रिज़र्व लिमिटेड (ISPRL) के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गए।
      • SPR कच्चे तेल के भंडार हैं, जिन्हें देशों द्वारा बनाए रखा जाता है, जो भू-राजनीतिक अनिश्चितता या आपूर्ति व्यवधानों के समय में भी कच्चे तेल की स्थिर आपूर्ति सुनिश्चित करते हैं।
  •  फूड पार्क: भारत में फूड पार्कों के विकास पर गुजरात सरकार के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गए। 
    • भारत और यूएई I2U2 समूह का हिस्सा हैं, जिसके तहत गुजरात एवं मध्य प्रदेश में फूड पार्कों की परिकल्पना की गई थी।

यूएई भारत के लिये क्यों महत्त्वपूर्ण है?

  • रणनीतिक राजनीतिक भागीदारी: भारत-यूएई संबंधों को ‘व्यापक रणनीतिक भागीदारी’ के स्तर तक ले जाना और ‘रणनीतिक सुरक्षा वार्ता’ की स्थापना दोनों देशों के बीच बढ़ते राजनीतिक एवं रणनीतिक संरेखण को दर्शाती है।
  • द्विपक्षीय व्यापार: यूएई भारत का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है।
    • वर्ष 2022 में हस्ताक्षरित व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते (CEPA) ने व्यापार को और बढ़ावा दिया है, द्विपक्षीय व्यापार 72.9 बिलियन अमरीकी डॉलर (अप्रैल 2021-मार्च 2022) से बढ़कर 84.5 बिलियन अमरीकी डॉलर (अप्रैल 2022-मार्च 2023) हो गया है, जो प्रतिवर्ष 16% की वृद्धि दर्ज करता है।
  • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI): वित्त वर्ष 2023 के दौरान यूएई भारत में चौथा सबसे बड़ा निवेशक बनकर उभरा है। 
    • वित्त वर्ष 2023 में यूएई से भारत में एफडीआई 2021-22 में 1.03 बिलियन अमरीकी डॉलर से तीन गुना बढ़कर 3.35 बिलियन अमरीकी डॉलर हो गया। 
  • ऊर्जा सुरक्षा: यूएई भारत के लिये एक प्रमुख तेल आपूर्तिकर्ता है और भारत के सामरिक पेट्रोलियम रिज़र्व (SPR) में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जो भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण है।
  • वित्त: UAE में भारत के रुपे कार्ड और यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) की शुरूआत बढ़ते वित्तीय सहयोग को उजागर करती है। 
    • दोनों देश सीमा पार लेनदेन के लिये भारतीय रुपए (INR) और UAE दिरहम (AED) के उपयोग को बढ़ावा देने के लिये एक स्थानीय मुद्रा निपटान प्रणाली (LCS) प्रणाली पर सहमत हुए।
  • अंतरिक्ष अन्वेषण: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) और UAE अंतरिक्ष एजेंसी (UAESA) ने शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिये बाह्य अंतरिक्ष के अन्वेषण व उपयोग में सहयोग के संबंध में एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये।
  • रक्षा और सुरक्षा सहयोग: UAE और भारत ने आतंकवाद-रोधी, खुफिया जानकारी साझा करने तथा संयुक्त सैन्य अभ्यासों पर ध्यान केंद्रित करते हुए अपने रक्षा और सुरक्षा सहयोग को मज़बूत किया है। उदाहरण के लिये, अभ्यास डेजर्ट साइक्लोन।
    • इसके अतिरिक्त इस अवधि के दौरान ब्रह्मोस मिसाइलों, आकाश वायु रक्षा प्रणालियों और तेजस लड़ाकू जेट जैसे भारतीय रक्षा उत्पादों में UAE की रुचि बढ़ी।
  • बहुपक्षीय जुड़ाव: I2U2 समूह (भारत-इज़रायल-यूएई-अमेरिका) का गठन और भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे (IMEC) में UAE की भागीदारी क्षेत्रीय एवं वैश्विक बहुपक्षीय जुड़ाव में UAE के सामरिक व आर्थिक महत्त्व को दर्शाती है।
  • क्षेत्रीय स्थिरता: अब्राहम एकॉर्ड में UAE की भूमिका और इसके बाद इज़रायल के साथ राजनयिक संबंधों का सामान्यीकरण क्षेत्रीय सद्भाव एवं स्थिरता को बढ़ावा देने में UAE के महत्त्व को रेखांकित करता है।
    • मध्य पूर्व में स्थिरता भारत के लिये महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि भारत अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं (तेल और गैस आयात) के लिये खाड़ी देशों पर बहुत अधिक निर्भर है।
  • सांस्कृतिक और प्रवासी/डायस्पोरा संबंध: संयुक्त अरब अमीरात में लगभग 3.5 मिलियन की संख्या वाला विशाल भारतीय प्रवासी समुदाय दोनों देशों के बीच एक महत्त्वपूर्ण कड़ी है।
    • अबू धाबी में पहले हिंदू मंदिर के उद्घाटन जैसी पहल सहिष्णुता और सह-अस्तित्व के साझा मूल्यों को दर्शाती है, जो भारत तथा संयुक्त अरब अमीरात के बीच सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ाती है।
  • कोविड-19 के दौरान सहयोग: कोविड-19 महामारी के दौरान दोनों देशों ने एक-दूसरे को चिकित्सा आपूर्ति, उपकरण और टीके उपलब्ध कराए।
    • स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में इस सहयोग ने उनकी साझेदारी को मज़बूत किया है और संकट के समय एक-दूसरे को समर्थन देने की उनकी प्रतिबद्धता को प्रदर्शित किया है।

भारत-UAE संबंधों में चुनौतियाँ क्या हैं?

  • व्यापार श्रेणियों का सीमित विविधीकरण: CEPA द्वारा समग्र व्यापार को बढ़ावा देने के बावजूद नई श्रेणियों में विस्तार करने में अपर्याप्त प्रगति हुई है।
    • व्यापार अभी भी कुछ क्षेत्रों जैसे रत्न एवं आभूषण, पेट्रोलियम और स्मार्टफोन तक ही सीमित है, जिससे व्यापक आर्थिक लाभ में बाधा आती है तथा व्यापार विविधीकरण में कमी आती है।
  • बढ़ती आयात लागत: UAE से आयात में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जो वित्त वर्ष 2022-23 में वर्ष-दर-वर्ष 19% बढ़कर 53,231 मिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है।
    • आयात में  यह वृद्धि तथा कुछ श्रेणियों पर अत्यधिक निर्भरता व्यापार संतुलन को प्रभावित करती है और भारत के व्यापार अधिशेष पर दबाव डालती है।
  • गैर-टैरिफ बाधाएँ: भारतीय निर्यातकों को अनिवार्य हलाल प्रमाणीकरण जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिससे प्रसंस्कृत वस्तुओं की निर्यात मात्रा कम हो जाती है। ये गैर-टैरिफ बाधाएँ UAE में भारत की बाज़ार पहुँच और प्रतिस्पर्धा को सीमित कर सकती हैं।
  • मानवाधिकार संबंधी चिंताएँ: कफाला प्रणाली से संबंधित मुद्दे, विशेषकर प्रवासी श्रमिकों के अधिकारों से संबंधित मुद्दे, चिंता का विषय हैं।
    • कफाला (प्रायोजन प्रणाली) खाड़ी देशों में नागरिकों और कंपनियों को प्रवासी श्रमिकों के रोज़गार एवं आव्रजन/अप्रवासन स्थिति पर लगभग पूर्ण नियंत्रण प्रदान करती है।
  • राजनयिक संतुलन अधिनियम: क्षेत्रीय संघर्षों, जैसे कि इज़रायल-हमास युद्धर ईरान व अरब देशों के बीच तनाव, से निपटने की आवश्यकता भारत के लिये अतिरिक्त चुनौतियाँ पेश करती है।
  • पाकिस्तान को वित्तीय सहायता: पाकिस्तान को UAE की वित्तीय सहायता भारत विरोधी गतिविधियों के लिये संभावित दुरुपयोग के संदर्भ में चिंताएँ उत्पन्न करती है।
    • यह सहायता भारत और UAE के बीच संघर्ष उत्पन्न कर सकती है, जिससे कूटनीतिक प्रयास जटिल हो सकते हैं।

आगे की राह

  • व्यापार विविधीकरण को बढ़ावा: अधिक संतुलित व्यापार संबंध स्थापित करने और व्यापक आर्थिक लाभों का दोहन करने के लिये प्रौद्योगिकी, नवीकरणीय ऊर्जा एवं फार्मास्यूटिकल्स जैसे उभरते क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।
  • आर्थिक संबंधों का सुदृढ़ीकरण: संयुक्त उद्यमों और साझेदारी के अवसरों की खोज करने की आवश्यकता है, जो आर्थिक सहयोग को बढ़ा सकते हैं और उच्च आयात लागत के प्रभाव को कम कर सकते हैं।
  • मानवाधिकारों पर संवाद बढ़ाना: कफाला प्रणाली से संबंधित चिंताओं को दूर करने के लिये UAE अधिकारियों के साथ चर्चा शुरू की जानी चाहिये। ऐसे सुधारों करने चाहिये जो प्रवासी श्रमिकों के अधिकारों और कार्य स्थितियों, जो अंतर्राष्ट्रीय श्रम मानकों के अनुरूप हों, में सुधार करें।
  • साझा हितों के क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करना: साझा हितों पर तालमेल बिठाने के लिये सक्रिय कूटनीति में शामिल होकर यह सुनिश्चित करना चाहिये कि भू-राजनीतिक तनाव के कारण द्विपक्षीय संबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़ें।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत की विदेश नीति रणनीति में संयुक्त अरब अमीरात (UAE) के महत्त्व का विश्लेषण कीजिये।  

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)   

प्रिलिम्स 

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन 'खाड़ी सहयोग परिषद् (गल्फ कोऑपरेशन काउन्सिल)' का सदस्य नहीं है? (2016)

(a) ईरान
(b) सऊदी अरब
(c) ओमान
(d) कुवैत

उत्तर: (a)


प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2008)

  1. अजमान UAE के सात अमीरातों में से एक है।
  2. रास अल-खैमाह UAE में शामिल होने वाला अंतिम शेख-राज्य था।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (c)


मेन्स 

प्रश्न. भारत की ऊर्जा सुरक्षा का प्रश्न भारत की आर्थिक प्रगति का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भाग है। पश्चिम एशियाई देशों के साथ भारत के ऊर्जा नीति सहयोग का विश्लेषण कीजिये। (2017)

प्रश्न. परियोजना ‘मौसम’ को भारत सरकार की अपने पड़ोसियों के साथ संबंधों की सुदृढ़ करने की एक अद्वितीय विदेश नीति पहल माना जाता है। क्या इस परियोजना का एक रणनीतिक आयाम है? चर्चा कीजिये। (2015)


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