शासन व्यवस्था
वैश्विक सतत् विकास रिपोर्ट, 2022
प्रिलिम्स के लिये:वैश्विक सतत् विकास रिपोर्ट, 2022, TERI, एसडीजी। मेन्स के लिये:पर्यावरण प्रदूषण और गिरावट, भारत के सतत् विकास लक्ष्य और इसकी उपलब्धियांँ। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में वैश्विक सतत् विकास रिपोर्ट, 2022 जारी की गई।
- इस रिपोर्ट में 163 देशों में भारत 121वें स्थान पर है। यह वर्ष 2020 में 117वें और 2021 में 120वें स्थान पर था।
- इससे पहले फरवरी 2022 में प्रधानमंत्री ने ऊर्जा और संसाधन संस्थान (TERI) विश्व सतत् विकास शिखर सम्मेलन को संबोधित किया था।
सतत् विकास रिपोर्ट:
- परिचय:
- यह सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में देशों की प्रगति का एक वैश्विक मूल्यांकन है।
- यह सतत् विकास समाधान नेटवर्क (SDSN) में स्वतंत्र विशेषज्ञों के एक समूह द्वारा प्रकाशित की गई है।
- सतत् विकास के क्षेत्र में व्यावहारिक समस्याओं के समाधान को बढ़ावा देने और सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) को लागू करने के लिये वैश्विक स्तर पर वैज्ञानिक और तकनीकी विशेषज्ञता जुटाने के लिये SDSN द्वारा इसे वर्ष 2012 में शुरू किया गया था।
- इसे अपनाने के बाद SDSN अब राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर SDG के कार्यान्वयन का समर्थन करने के लिये प्रतिबद्ध है।
- रैंकिंग:
- देशों के समग्र स्कोर के आधार पर उन्हें रैंक प्रदान की जाती है।
- समग्र स्कोर सभी 17 सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) को प्राप्त करने की दिशा में कुल प्रगति को मापता है।
- स्कोर की व्याख्या SDG उपलब्धि के प्रतिशत के रूप में व्यक्त की जाती है।
- 100 का स्कोर इंगित करता है कि सभी सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त कर लिया गया है।
- देशों का प्रदर्शन:
- SDG इंडेक्स, 2022 में फिनलैंड सबसे ऊपर है, इसके बाद क्रमशः तीन नॉर्डिक देश-डेनमार्क, स्वीडन और नॉर्वे हैं।
- पूर्व और दक्षिण एशिया क्षेत्र ने वर्ष 2015 में SDG को अपनाने के बाद से सबसे अधिक प्रगति की है।
- बांग्लादेश और कंबोडिया दो ऐसे देश हैं जिन्होंने वर्ष 2015 के बाद से SDG पर सबसे अधिक प्रगति की है।
- इसके विपरीत वेनेज़ुएला ने वर्ष 2015 में इसे अपनाए जाने के बाद से SDG इंडेक्स में सबसे ज़्यादा गिरावट दर्ज की है।
रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएंँ:
- विश्व:
- स्वास्थ्य संबंधी विविधतापूर्ण एवं शमानात्मक उपचारों में कमी, जलवायु, जैवविविधता, भू-राजनीतिक और सैन्य-संकट विश्व स्तर पर सतत् विकास के लिये प्रमुख अवरोध हैं।
- SDG इंडेक्स के विश्व औसत में वर्ष 2021 में लगातार दूसरे वर्ष गिरावट आई है, जिसका मुख्य कारण SDG-1 (कोई गरीब नहीं) और SDG-8 (सभ्य कार्य एवं आर्थिक विकास) पर महामारी का प्रभाव तथा SDG11-15 (जलवायु जैवविविधता व सतत् शहरी विकास लक्ष्य) का खराब प्रदर्शन है।
- भारी मानवीय क्षति के अलावा सैन्य संघर्ष, यूक्रेन में युद्ध सहित अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खाद्य सुरक्षा संकट और ऊर्जा की कमी आदि जलवायु और जैवविविधता संकट के कारण बढ़ रहे हैं।
- भारत :
- भारत की तैयारी में कमी:
- भारत संयुक्त राष्ट्र द्वारा अनिवार्य सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) को प्राप्त करने के लिये अच्छी स्थिति में नहीं है और अन्य देशों की तुलना में इसकी तैयारी में पिछले कुछ वर्षों में कमी देखी गई है।
- प्रमुख चुनौतियांँ:
- भारत को 17 SDG में से 11 लक्ष्यों को हासिल करने में बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिसके कारण SDG तैयारियों पर वैश्विक रैंकिंग में गिरावट देखी जा रही है।
- उत्कृष्ट कार्य सुनिश्चित करना (SDG 8) अधिक चुनौतीपूर्ण हो गया है।
- रिपोर्ट के अनुसार, भारत जलवायु कार्रवाई पर SDG 13 को हासिल करने की राह पर है।
- हालांँकि स्टेट ऑफ इंडियाज़ एन्वायरनमेंट रिपोर्ट, 2022 ने संकेत दिया है कि देश इस क्षेत्र में बड़ी चुनौतियों का सामना कर रहा है।
- जलवायु कार्रवाई पर भारत के प्रदर्शन (SDG 13) में वर्ष 2019-2020 की तुलना में गिरावट आई है।
- भारत के समग्र प्रदर्शन में यह गिरावट मुख्य रूप से आठ राज्यों- बिहार, तेलंगाना, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, पंजाब और झारखंड के कारण है, जिनके स्कोर में SDG 13 के तहत दो वर्षों से गिरावट देखी जा रही है।
- भारत की तैयारी में कमी:
- प्रगति:
- इनमें से लगभग 10 लक्ष्यों में प्रगति वर्ष 2021 के समान है।
- इनमें भुखमरी समाप्त करना- SDG 2, स्वास्थ्य सुनिश्चित करना- SDG-3 और शुद्ध जल एवं स्वच्छता- SDG 6 शामिल हैं।
- इनमें से लगभग 10 लक्ष्यों में प्रगति वर्ष 2021 के समान है।
सिफारिशें:
- नई साझेदारी और नवाचारों को बढ़ावा:
- वैज्ञानिक सहयोग और डेटा सहित कोविड-19 महामारी के दौरान उभरी नई साझेदारी और नवाचारों को एसडीजी का समर्थन करने के लिये बढ़ाया जाना चाहिये।
- विज्ञान और तकनीकी नवाचार:
- विज्ञान, तकनीकी नवाचार और डेटा सिस्टम संकट के समय समाधानों की पहचान करने में मदद कर सकते हैं तथा वर्तमान समय की प्रमुख चुनौतियों का समाधान करने के लिये निर्णायक योगदान कर सकते हैं।
- ये सांख्यिकीय क्षमताओं, अनुसंधान एवं विकास और शिक्षा व कौशल में दीर्घकालिक निवेश पर बल देते हैं।
- निवेश में वृद्धि:
- SDG लक्ष्य हासिल करना मूल रूप से भौतिक बुनियादी ढांँचे (नवीकरणीय ऊर्जा, डिजिटल प्रौद्योगिकियों सहित) और मानव पूंजी (स्वास्थ्य, शिक्षा सहित) में निवेश हेतु एक एजेंडा है।
- अब भी दुनिया के सबसे गरीब आधी जनसंख्या के पास स्वीकार्य शर्तों पर पूंजी तक बाज़ार पहुंँच नहीं है।
- गरीब और कमज़ोर देशों को इन संकटों के कारण बहुत नुकसान हुआ है।
- SDG लक्ष्य हासिल करना मूल रूप से भौतिक बुनियादी ढांँचे (नवीकरणीय ऊर्जा, डिजिटल प्रौद्योगिकियों सहित) और मानव पूंजी (स्वास्थ्य, शिक्षा सहित) में निवेश हेतु एक एजेंडा है।
सतत् विकास लक्ष्य (SDG):
- सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) को वैश्विक लक्ष्यों के रूप में भी जाना जाता है, वर्ष 2015 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा गरीबी को समाप्त करने, ग्रह की रक्षा करने और वर्ष 2030 तक सभी की शांति और समृद्धि को सुनिश्चित करने के लिये इसे एक सार्वभौमिक आह्वान के रूप में अपनाया गया था।
- 17 SGDs एकीकृत हैं- इन लक्ष्यों के अंतर्गत एक क्षेत्र में की गई कार्रवाई दूसरे क्षेत्र के परिणामों को प्रभावित करेगी और इनके अंतर्गत सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय रूप से स्थिर/वहनीय विकास होगा।
- यह पिछड़े देशों को विकास क्रम में प्राथमिकता प्रदान करता है। SDGs को गरीबी, भुखमरी, एड्स और महिलाओं के खिलाफ भेदभाव को समाप्त करने के लिये बनाया गया है।
विगत वर्ष के प्रश्न:प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2016)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: B व्याख्या:
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स्रोत: डाउन टू अर्थ
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत-वियतनाम साझेदारी
प्रिलिम्स के लिये:वियतनाम और पड़ोसी देश। मेन्स के लिये:भारत और वियतनाम संबंधों का महत्त्व एवं हाल के दिनों में दोनों देशों के बीच रुचि के सामान्य क्षेत्र। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के रक्षा मंत्री ने वियतनाम का दौरा किया, जहांँ उन्होंने कुछ रक्षा समझौतों पर हस्ताक्षर किये, जो मौजूदा रक्षा सहयोग के दायरे और पैमाने को महत्त्वपूर्ण रूप से बढ़ाएंगे।
- भारत और वियतनाम द्विपक्षीय राजनयिक संबंधों की स्थापना के 50 वर्ष पूरे कर रहे हैं।
- इससे पहले भारत एवं वियतनाम ने डिजिटल मीडिया के क्षेत्र में सहयोग करने के लिये एक आशय पत्र (LOI) पर हस्ताक्षर किये, जिससे दोनों देशों के बीच साझेदारी को और मज़बूत करने का मार्ग प्रशस्त हुआ।
प्रमुख बिंदु:
- 2030 की दिशा में भारत-वियतनाम रक्षा साझेदारी:
- दोनों रक्षा मंत्रियों ने द्विपक्षीय रक्षा सहयोग को मज़बूत करने के लिये '2030 की दिशा में भारत-वियतनाम रक्षा साझेदारी पर संयुक्त विज़न स्टेटमेंट' पर हस्ताक्षर किये।
- डिफेंस लाइन ऑफ क्रेडिट:
- दोनों मंत्रियों ने वियतनाम को दी गई 500 मिलियन अमेरिकी डाॅलर की डिफेंस लाइन ऑफ क्रेडिट को अंतिम रूप देने पर सहमति व्यक्त की, इसके तहत परियोजनाओं के कार्यान्वयन के साथ वियतनाम की रक्षा क्षमताओं में काफी वृद्धि हुई है और इसने सरकार के 'मेक इन इंडिया, मेक फॉर द वर्ल्ड' के दृष्टिकोण को आगे बढ़ाया है।
- म्युचुअल लॉजिस्टिक्स सपोर्ट:
- दोनों ने म्युचुअल लॉजिस्टिक्स सपोर्ट को लेकर एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किये।
- यह पारस्परिक रूप से लाभकारी लॉजिस्टिक्स सपोर्ट के लिये प्रक्रियाओं को सरल बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है और यह पहला ऐसा प्रमुख समझौता है जिस पर वियतनाम ने किसी देश के साथ हस्ताक्षर किये हैं।
- भारत ने 2016 में अमेरिका के साथ लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट के साथ शुरुआत करते हुए सभी क्वाड देशों, फ्राँंस, सिंगापुर और दक्षिण कोरिया सहित कई लॉजिस्टिक्स समझौतों पर हस्ताक्षर किये।
- लॉजिस्टिक्स समझौते प्रशासनिक व्यवस्थाएंँ हैं जो ईंधन के आदान-प्रदान के लिये सैन्य सुविधाओं तक पहुंँच प्रदान करती हैं और आपसी समझौते पर प्रावधान, लॉजिस्टिक्स सपोर्ट को सरल बनाने तथा भारत के बाहर संचालन के समय सेना के परिचालन में वृद्धि को बढ़ाती हैं।
- सिमुलेटर और मौद्रिक अनुदान:
- भारत वियतनामी सशस्त्र बलों के क्षमता निर्माण के लिये वायु सेना अधिकारी प्रशिक्षण स्कूल में भाषा और सूचना प्रौद्योगिकी प्रयोगशाला की स्थापना के लिये दो सिमुलेटर एवं मौद्रिक अनुदान प्रदान करेगा।
भारत-वियतनाम संबंध:
- पृष्ठभूमि:
- यद्यपि रक्षा सहयोग, वर्ष 2016 में दोनों देशों द्वारा शुरू की गई ‘व्यापक रणनीतिक साझेदारी’ के सबसे महत्त्वपूर्ण स्तंभों में से एक रहा है, किंतु दोनों देशों के बीच संबंध काफी पुराने माने जाते हैं।
- वर्ष 1956 में भारत ने हनोई (वियतनाम की राजधानी) में अपने महावाणिज्य दूतावास की स्थापना की थी।
- वियतनाम ने वर्ष 1972 में भारत में अपने राजनयिक मिशन की स्थापना की।
- भारत, वियतनाम में अमेरिकी हस्तक्षेप के विरुद्ध आवाज़ उठाने में वियतनाम के साथ खड़ा था, जिसका भारत-अमेरिका संबंधों पर काफी प्रभाव पड़ा था।
- वर्ष 1990 के दशक के शुरुआती वर्षों में दक्षिण-पूर्व एशिया और पूर्वी एशिया के साथ आर्थिक एकीकरण तथा राजनीतिक सहयोग के विशिष्ट उद्देश्य से भारत द्वारा अपनी ‘लुक ईस्ट नीति’ की शुरुआत के चलते भारत एवं वियतनाम के संबंध और भी मज़बूत हुए।
- सहयोग के क्षेत्र:
- सामरिक भागीदारी:
- भारत और वियतनाम ने भारत की ‘हिंद-प्रशांत सागरीय पहल’ (Indo-Pacific Oceans Initiative- IPOI) और हिंद-प्रशांत के संदर्भ में आसियान के दृष्टिकोण (‘क्षेत्र में सभी के लिये साझा सुरक्षा, समृद्धि और प्रगति’) को ध्यान में रखते हुए अपनी रणनीतिक साझेदारी को मज़बूत करने पर सहमति व्यक्त की।
- आर्थिक सहयोग:
- ‘आसियान-भारत मुक्त व्यापार संधि’ पर हस्ताक्षर किये जाने के बाद से भारत और वियतनाम के बीच आर्थिक क्षेत्र में सहयोग पर काफी प्रगति देखने को मिली है।
- भारत को पता है कि वियतनाम दक्षिण-पूर्व एशिया में राजनीतिक स्थिरता और पर्याप्त आर्थिक विकास के साथ एक संभावित क्षेत्रीय शक्ति है।
- भारत द्वारा ‘त्वरित प्रभाव परियोजनाओं’ (Quick Impact Projects- QIP) के माध्यम से वियतनाम में विकास और क्षमता सहयोग में निवेश किया जा रहा है, इसके साथ ही वियतनाम के मेकांग डेल्टा क्षेत्र में जल संसाधन प्रबंधन, ‘सतत् विकास लक्ष्य’ (SDG), डिजिटल कनेक्टिविटी के क्षेत्र में भी भारत द्वारा निवेश किया गया है।
- व्यापार सहयोग:
- वित्तीय वर्ष 2020-2021 के दौरान भारत और वियतनाम के बीच द्विपक्षीय व्यापार 11.12 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया।
- इस दौरान वियतनाम को भारतीय निर्यात 4.99 बिलियन अमेरिकी डॉलर और वियतनाम से भारतीय आयात 6.12 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा।
- वित्तीय वर्ष 2020-2021 के दौरान भारत और वियतनाम के बीच द्विपक्षीय व्यापार 11.12 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया।
- सामरिक भागीदारी:
- रक्षा सहयोग:
- भारत रणनीतिक क्षेत्र में शांति बनाए रखने के लिये अपने दक्षिण-पूर्व एशियाई भागीदारों की रक्षा क्षमताओं को पर्याप्त रूप से विकसित करने में रुचि रखता है, जबकि वियतनाम अपने सशस्त्र बलों के आधुनिकीकरण में रुचि रखता है।
- वियतनाम भारत के ध्रुव उन्नत हल्के हेलीकाप्टरों, सतह से हवा में मार करने वाली आकाश प्रणाली और ब्रह्मोस मिसाइलों में रुचि रखता है।
- इसके अलावा रक्षा संबंधों में क्षमता निर्माण, सामान्य सुरक्षा चिंताओं से निपटना, कर्मियों का प्रशिक्षण और रक्षा अनुसंधान एवं विकास में सहयोग शामिल हैं।
- भारतीय नौसेना के जहाज़ आईएनएस किल्टन ने मध्य वियतनाम (मिशन सागर III) के लोगों के लिये बाढ़ राहत सामग्री पहुँचाने हेतु वर्ष 2020 में हो ची मिन्ह सिटी का दौरा किया।
- इसने वियतनाम पीपुल्स नेवी के साथ PASSEX अभ्यास में भी भाग लिया।
- चीन कारक भी भारत और वियतनाम के रणनीतिक संबंध में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है।
- दोनों देशों ने चीन के साथ युद्ध लड़े हैं और इनके चीन के साथ सीमा संबंधी विवाद भी हैं। चीन आक्रामक तरीके से दोनों देशों के क्षेत्रों में अतिक्रमण कर रहा है।
- इसलिये चीन की आक्रामक कार्रवाइयों को रोकने के लिये दोनों देशों का साथ आना स्वाभाविक है।
- कई मंचों पर सहयोग:
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत और वियतनाम दोनों वर्ष 2021 से अस्थायी सदस्यों के रूप में समवर्ती रूप से सेवा कर रहे हैं।
- भारत और वियतनाम पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन, मेकांग गंगा सहयोग, एशिया यूरोप बैठक (ASEM) जैसे विभिन्न क्षेत्रीय मंचों में घनिष्ठ सहयोग करते हैं।
- पीपल-टू -पीपल (P2P) संपर्क:
- वर्ष 2019 को आसियान-भारत पर्यटन वर्ष के रूप में मनाया गया। दोनों देशों ने द्विपक्षीय पर्यटन को बढ़ावा देने के लिये अपने वीज़ा व्यवस्था को सरल बनाया है।
- भारतीय दूतावास ने वर्ष 2018-19 में महात्मा@150 को मनाने के लिये विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किये। इनमें जयपुर कृत्रिम अंग शिविर शामिल हैं, जो भारत सरकार की 'मानवता के लिये भारत' पहल के तहत वियतनाम के चार प्रांतों में आयोजित किये गए, जिससे उस देश में लगभग 1000 लोग लाभान्वित हुए।
आगे की राह
- वर्ष 2016 में 15 वर्षों में पहली बार किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने वियतनाम का दौरा किया और यह संकेत दिया कि भारत अब चीन की परिधि में अपनी उपस्थिति का विस्तार करने में संकोच नहीं कर रहा है।
- भारत की विदेश नीति में भारत को एशिया और अफ्रीका में शांति, समृद्धि तथा स्थिरता के लिये प्रमुख भूमिका निभाने की परिकल्पना की गई है, वियतनाम के साथ संबंधों को सुदृढ़ करने से ही यह और मज़बूत होगा।
- चूँकि भारत और वियतनाम भौगोलिक रूप से उभरते हिंद-प्रशांत क्षेत्र के केंद्र में स्थित हैं, दोनों इस रणनीतिक योजना में प्रमुख भूमिका निभाएंगे जो प्रमुख शक्तियों के बीच शक्ति और प्रभाव के लिये प्रतिस्पर्द्धा हेतु एक मुख्य मंच है।
- व्यापक भारत-वियतनाम सहयोग ढाँचे के तहत रणनीतिक साझेदारी भारत की 'एक्ट ईस्ट' नीति के तहत निर्धारित दृष्टिकोण के निर्माण की दिशा में महत्त्वपूर्ण होगी, जो पारस्परिक रूप से सकारात्मक जुड़ाव का विस्तार करना चाहती है और इस क्षेत्र में सभी के लिये समावेशी विकास सुनिश्चित करती है।
- वियतनाम के साथ संबंधों को मज़बूत करने से अंततः SAGAR (सिक्योरिटी एंड ग्रोथ ऑल इन द रीजन) पहल को साकार करने की दिशा में प्रोत्साहन मिलेगा।
- भारत और वियतनाम दोनों ही ब्लू इकॉनमी और समुद्री सुरक्षा के क्षेत्र में एक-दूसरे को लाभ पहुँचा सकते हैं।
विगत वर्षों के प्रश्न:प्रश्न. मेकांग-गंगा सहयोग जो कि छह देशों की एक पहल है, में निम्नलिखित में से कौन-सा/से देश प्रतिभागी नहीं है/हैं? (2015)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (c)
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स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय अर्थव्यवस्था
सस्टेनेबल फैशन
प्रिलिम्स के लिये:'स्लो एन्वायरनमेंट’ आंदोलन, संयुक्त राष्ट्र, सतत् विकास लक्ष्य (SDG)। मेन्स के लिये:स्वस्थ और समावेशी वातावरण के लिये सस्टेनेबल फैशन की आवश्यकता। |
चर्चा में क्यों?
संयुक्त राष्ट्र का सतत् विकास लक्ष्य 12 (संवहनीय खपत और उत्पादन) ‘स्लो फैशन' आंदोलन के चलते एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा बन गया है, यह विशेषतः वर्ष 2013 में बांग्लादेश में ‘राणा प्लाज़ा त्रासदी' के बाद से अधिक महत्त्वपूर्ण विषय बनकर उभरा है।
- 24 अप्रैल, 2013 को बांग्लादेश के ढाका में राणा प्लाज़ा की इमारत के ढहने से (जिसमें पाँच कपड़ा कारखाने थे) कम-से-कम 1,132 लोग मारे गए और 2,500 से अधिक घायल हो गए। इसने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय एवं उपभोक्ताओं का ध्यान श्रमिकों की स्थिति और ‘सस्टनेबल फैशन’ की ओर दिलाया।
स्लो फैशन:
- स्लो फैशन कपड़ों के उत्पादन के लिये एक दृष्टिकोण है जो आपूर्ति शृंखला के सभी पहलुओं को ध्यान में रखता है और ऐसा करने का उद्देश्य लोगों, पर्यावरण एवं जानवरों का सम्मान करना है।
- इसका मतलब यह भी है कि डिज़ाइन प्रक्रिया पर अधिक समय देना तथा यह सुनिश्चित करना कि परिधान का प्रत्येक भाग गुणवत्तापूर्ण हो।
- फास्ट फैशन खुदरा विक्रेताओं ने मोर इज़ बेटर (More is better) की अवधारणा को जन्म दिया है और इस अवधारणा ने बड़ी मात्रा में खपत को बढ़ावा दिया है। फास्ट फैशन उद्योग गुणवत्ता को कम कर रहा है, सस्ते वस्त्र बनाने के लिये पर्यावरण और श्रमिकों का शोषण कर रहा है जो संधारणीय नहीं हैं।
- स्लो फैशन इसके ठीक विपरीत है। यह गुणवत्तापूर्ण कार्य के आधार पर विचारशील, क्यूरेटेड फैशन का संग्रह है।
सस्टेनेबल फैशन का महत्त्व:
- कपड़े वैश्विक विनिर्माण में 2.4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का योगदान करते हैं।
- यह दुनिया भर में मूल्य शृंखला के साथ 300 मिलियन लोगों को रोगार प्रदान करता है, जिनमें महिलाएँ भी शामिल हैं।
- यह दुनिया के 2-6% ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के लिये ज़िम्मेदार है।
- यह प्रतिवर्ष लगभग 215 बिलियन लीटर पानी की खपत करता है।
- कम उपयोग के कारण इसे 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर की वार्षिक सामग्री की हानि का सामना करना पड़ता है।
- समुद्र में होने वाले प्रदूषण के लगभग 9 प्रतिशत के लिये वस्त्रों के माइक्रोप्लास्टिक्स ज़िम्मेदार हैं।
सस्टेनेबल फैशन पहल:
- वैश्विक स्तर पर:
- सस्टेनेबल फैशन के लिये संयुक्त राष्ट्र गठबंधन:
- यह संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों और संबद्ध संगठनों की एक पहल है जिसे फैशन क्षेत्र में समन्वित कार्रवाई के माध्यम से सतत् विकास लक्ष्यों में योगदान करने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
- विशेष रूप से गठबंधन फैशन में काम कर रहे संयुक्त राष्ट्र निकायों के बीच समन्वय का समर्थन करने और परियोजनाओं एवं नीतियों को बढ़ावा देने के लिये काम करता है जो सुनिश्चित करता है कि फैशन मूल्य शृंखला सतत् विकास लक्ष्यों की उपलब्धि में योगदान देती है।
- सस्टेनेबल गारमेंट और फुटवियर के लिये अभिगम्यता:
- इस पहल के हिस्से के रूप में UNECE (यूरोप के लिये संयुक्त राष्ट्र आर्थिक आयोग) ने "द सस्टेनेबिलिटी प्लेज" लॉन्च किया है, जिसमें सरकारों, परिधान और जूते निर्माताओं तथा उद्योग के हितधारकों को कार्यवाही हेतु उपायों को लागू करने एवं पर्यावरण और नैतिक साख क्षेत्र में सुधार की दिशा में सकारात्मक कदम उठाने के लिये आमंत्रित किया गया है।
- विश्व कपास दिवस (7 अक्तूबर): यह अल्प विकसित देशों से कपास और कपास से संबंधित उत्पादों के लिये बाज़ार पहुंँच की आवश्यकता के बारे में जागरूकता पैदा करता है, स्थायी व्यापार नीतियों को बढ़ावा देता है तथा विकासशील देशों को कपास मूल्य शृंखला के हर चरण से अधिक लाभ उठाने में सक्षम बनाता है।
- सस्टेनेबल फैशन के लिये संयुक्त राष्ट्र गठबंधन:
- राष्ट्रीय स्तर पर:
- प्रोजेक्ट SU.RE: SU.RE का तात्पर्य ‘सस्टेनेबल रिज़ॉल्यूशन’ (Sustainable Resolution) से है। यह भारतीय परिधान उद्योग द्वारा भारतीय फैशन उद्योग के लिये एक स्थायी मार्ग निर्धारित करने हेतु प्रतिबद्धता है। इसे वर्ष 2020 में लॉन्च किया गया था।
- उद्देश्य: भारतीय फैशन उद्योग हेतु स्वच्छ वातावरण के निर्माण में योगदान देना।
- खादी प्रोत्साहन: खादी और ग्रामोद्योग आयोग (KVIC) खादी उत्पादों को बढ़ावा देता है। इसने प्रमुख अग्रणी ब्रांँडों- अरविंद मिल्स और रेमंड्स के साथ करार किया है तथा खादी उत्पादों को बढ़ावा देने के लिये एयर इंडिया के साथ भी काम कर रहा है।
- बांँस प्रोत्साहन: नीति आयोग के पूर्वोत्तर मंच ने उत्तर-पूर्व के विकास में बांँस की भूमिका पर प्रकाश डाला है। भारत का 60% से अधिक बांँस उत्तर-पूर्व में उगाया जाता है।
- ब्राउन कॉटन: ब्राउन कॉटन, देसी कॉटन की एक स्थानीय (कर्नाटक के लिये) किस्म है जो अपने प्राकृतिक भूरे रंग के लिये जानी जाती है। यह प्रयास एक बड़ा समावेशी अभ्यास है जिसमें पर्यावरण, अर्थव्यवस्था के साथ-साथ स्थानीय समुदाय भी शामिल हैं।
- प्रोजेक्ट SU.RE: SU.RE का तात्पर्य ‘सस्टेनेबल रिज़ॉल्यूशन’ (Sustainable Resolution) से है। यह भारतीय परिधान उद्योग द्वारा भारतीय फैशन उद्योग के लिये एक स्थायी मार्ग निर्धारित करने हेतु प्रतिबद्धता है। इसे वर्ष 2020 में लॉन्च किया गया था।
सस्टेनेबल फैशन से जुड़ी चुनौतियांँ:
- आर्थिक और वित्तीय बाधाएंँ।
- बाधाओं का नया वर्गीकरण: मानवीय धारणाएंँ, संसाधन की कमी और कमज़ोर कानून।
- मानक निर्माण प्रक्रिया के लिये पर्यावरण के अनुकूल और नैतिक विकल्प खोजने से संबंधित मुद्दे।
- तकनीकी लाभ का अभाव।
- पर्यावरण को बचाने के प्रयासों हेतु निवेश में वृद्धि और श्रमिकों की मज़दूरी में वृद्धि के कारण विनिर्माण लागत में वृद्धि।
आगे की राह
- पर्यावरण जागरूकता: दुनिया भर के लोगों को जागरूक किया जाना चाहिये कि जलवायु परिवर्तन एक वास्तविकता है, न कि एक धोखा, इसलिये उन्हें पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण की अपनी ज़िम्मेदारी को समझना चाहिये।
- सार्वजनिक अभियान: पर्यावरणविदों द्वारा उन कंपनियों के खिलाफ सार्वजनिक अभियान चलाया जाना चाहिये जो पर्यावरण मानकों का पालन नहीं करती हैं और उनके द्वारा निर्मित किसी भी उत्पाद को खरीदने से बचना चाहिये।
- कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) में वृद्धि: दुनिया भर की सरकारों को CSR में वृद्धि करनी चाहिये जिसमें पर्यावरण को नुकसान पहुंँचाने पर कंपनियों को भुगतान करने की आवश्यकता होती है। यह उन्हें स्थायी प्रथाओं को अपनाने के लिये प्रेरित करेगा।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
भारत का पहला बायोटेक स्टार्टअप एक्सपो 2022
प्रिलिम्स के लिये:भारत का पहला बायोटेक स्टार्टअप एक्सपो 2022, बायोटेक्नोलॉजी। मेन्स के लिये:बायोटेक क्षेत्र और इससे संबद्ध चुनौतियाँ। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में प्रधानमंत्री ने ‘बायोटेक स्टार्टअप एक्सपो 2022’ का उद्घाटन किया।
- यह देश में बायोटेक क्षेत्र के व्यापक विकास का प्रतिबिंब है।
प्रमुख बिंदु:
- परिचय:
- बायोटेक स्टार्टअप एक्सपो 2022 निवेशकों, उद्यमियों, वैज्ञानिकों, शोधकर्त्ताओं, उद्योग जगत के नेतृत्त्वकर्त्ताओं, निर्माताओं, जैव-इनक्यूबेटरों, नियामकों और सरकारी अधिकारियों को जोड़ने के लिये एक साझा मंच प्रदान करेगा।
- एक्सपो का आयोजन जैव प्रौद्योगिकी विभाग और जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद (BIRAC) द्वारा BIRAC की स्थापना के 10 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में किया जा रहा है।
- यह स्वास्थ्य, कृषि, जीनोमिक्स, स्वच्छ ऊर्जा, बायोफार्मा, औद्योगिक जैव प्रौद्योगिकी और अपशिष्ट-से-मूल्य (Waste-to-Wealth) सहित विभिन्न क्षेत्रों में जैव प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोगों को प्रदर्शित करेगा।
- थीम: 'बायोटेक स्टार्टअप इनोवेशन: टुवर्ड्स आत्मनिर्भर भारत'।
जैव प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग:
- जैव प्रौद्योगिकी वह तकनीक है जो विभिन्न उत्पादों को विकसित करने या बनाने के लिये जैविक प्रणालियों, जीवित जीवों या इसके कुछ हिस्सों का उपयोग करती है।
- ब्रूइंग और बेकिंग ब्रेड उन प्रक्रियाओं के उदाहरण हैं जो जैव प्रौद्योगिकी (वांछित उत्पाद का उत्पादन करने के लिये खमीर (जीवित जीव) का उपयोग) की अवधारणा के अंतर्गत आते हैं।
- इस तरह की पारंपरिक प्रक्रियाएँ आमतौर पर जीवित जीवों को उनके प्राकृतिक रूप (या प्रजनन द्वारा विकसित) में उपयोग करती हैं, जबकि जैव प्रौद्योगिकी के अधिक आधुनिक रूप में आमतौर पर जैविक प्रणाली या जीव का अधिक उन्नत संशोधन शामिल होगा।
- जैव प्रौद्योगिकी आनुवंशिक रूप से संशोधित रोगाणुओं, कवक, पौधों और जानवरों का उपयोग करके बायोफार्मास्यूटिकल और जैविक औद्योगिक पैमाने पर उत्पादन से संबंधित है।
- जैव प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोगों में चिकित्सा विज्ञान, निदान, कृषि के लिये आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलें, प्रसंस्कृत भोजन, जैव उपचार, अपशिष्ट उपचार और ऊर्जा उत्पादन शामिल हैं।
जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र की स्थिति:
- परिचय:
- भारत विश्व स्तर पर जैव प्रौद्योगिकी के शीर्ष 12 गंतव्यों में से एक है और एशिया प्रशांत क्षेत्र में तीसरा सबसे बड़ा जैव प्रौद्योगिकी गंतव्य है।
- भारत पुनः संयोजक हेपेटाइटिस बी वैक्सीन का दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक और बीटी कपास (आनुवंशिक रूप से संशोधित कीट प्रतिरोधी पौधा कपास) का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है।
- भारत के बायोटेक क्षेत्र को जैव-चिकित्सा जैव-औद्योगिक, जैव कृषि, जैव सूचना प्रौद्योगिकी और जैव सेवाओं में वर्गीकृत किया गया है।
- जैव-सेवाओं के भीतर भारत अनुबंध निर्माण, अनुसंधान और नैदानिक परीक्षणों में एक मज़बूत क्षमता प्रदान करता है तथा अमेरिका के बाहर विश्व स्तर पर अमेरिका के खाद्य एवं औषधि प्रशासन द्वारा अनुमोदित अधिकांश संयंत्रों का घर है।
- आँकड़े:
- भारतीय जैव अर्थव्यवस्था वर्ष 2019 में 62.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2020 में 70.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गई, जो 12.3% की वृद्धि दर को दर्शाती है।
- भारतीय जैव प्रौद्योगिकी उद्योग, जो वर्ष 2019 में 63 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, के वर्ष 2025 तक 150 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है, यह 16.4% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) को दर्शाता है।
- वर्ष 2025 तक वैश्विक जैव प्रौद्योगिकी बाज़ार में भारतीय जैव प्रौद्योगिकी उद्योग का योगदान 19% तक बढ़ने की उम्मीद है।
- वर्ष 2021 तक भारत का जैव प्रौद्योगिकी उद्योग का वार्षिक राजस्व में लगभग 12 बिलियन अमेरिकी डॉलर का योगदान था।
- जैव प्रौद्योगिकी की क्षमता:
- बहुआयामी डोमेन: जैव प्रौद्योगिकी कृषि, चिकित्सा उद्योग, वैज्ञानिक खोजों आदि में अनुप्रयोगों को शामिल करने वाला एक बहुआयामी डोमेन है। जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र को मोटे तौर पर पाँच प्रमुख खंडों में विभाजित किया जा सकता है:
- जैव-चिकित्सा
- जैव कृषि
- जैव सेवाएँ
- जैव-औद्योगिक अनुप्रयोग
- जैव सूचना प्रौद्योगिकी
- जैव प्रौद्योगिकी स्टार्टअप में वृद्धि: जैव प्रौद्योगिकी में भारत की अग्रणी उपलब्धियों में से एक के रूप में यह बौद्धिक वर्ग को रोज़गार प्रदान करता है और जेनेरिक एवं सस्ती दवाओं के विकास में योगदान देता है।
- वर्तमान में 2,700 से अधिक बायोटेक स्टार्टअप हैं और वर्ष 2024 तक 10,000 का आँकड़ा छूने की उम्मीद है।
- BIRAC की भूमिका: वर्ष 2012 में जैव प्रौद्योगिकी विभाग के तहत स्थापित जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद (BIRAC), भारत में जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।
- BIRAC इनोवेटर और निवेशक को एक मंच पर लाता है तथा उनके विचारों को वास्तविकता प्रदान करने में उन्हें सक्षम बनाता है एवं तकनीकी प्रगति की सुविधा प्रदान कर मानव की प्रगति को संभव बनाता है।
- अन्य कारक:
- जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र द्वारा भारत को अवसर की संभावित भूमि के रूप में देखा जाता है
- इन कारकों में एक विविध आबादी, विविध जलवायु, एक प्रतिभाशाली कार्यबल, कॉर्पोरेट नियमों में ढील देने की पहल और जैव वस्तुओं की बढ़ती मांग शामिल है।
- बहुआयामी डोमेन: जैव प्रौद्योगिकी कृषि, चिकित्सा उद्योग, वैज्ञानिक खोजों आदि में अनुप्रयोगों को शामिल करने वाला एक बहुआयामी डोमेन है। जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र को मोटे तौर पर पाँच प्रमुख खंडों में विभाजित किया जा सकता है:
- संबद्ध चुनौतियांँ:
- संरचनात्मक मुद्दे: यह देखते हुए कि जैव चिकित्सा क्षेत्र विनिर्माण पूंजी गहन है, पूंजी तक सीमित पहुंँच, अपर्याप्त बुनियादी ढांँचे और जटिल तथा निरंतर विकसित होने वाले नियामक ढांँचे के कारण भारत में इस तरह के निवेश आवश्यकता से कम रहा है।
- जैव प्रौद्योगिकी उत्पादों और समाधानों के रूप में अक्सर नैतिक एवं नियामक मंज़ूरी की आवश्यकता होती है, जिससे प्रक्रिया लंबी, महंँगी और बोझिल हो जाती है।
- इसके अलावा वैज्ञानिकों के कम पारिश्रमिक (विकसित अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में) तथा कुछ संस्थागत अनुसंधान केंद्रों ने जैव प्रौद्योगिकी में अधिक रोज़गार पैदा करने में मदद नहीं की है।
- भारी सार्वजनिक क्षेत्र का प्रभुत्व: विकसित अर्थव्यवस्थाओं (संयुक्त राज्य अमेरिका) की तुलना में भारत में जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान मुख्य रूप से सरकारी खजाने द्वारा वित्तपोषित है।
- जब तक निजी क्षेत्र अनुप्रयुक्त अनुसंधान का समर्थन करना शुरू नहीं करता और शैक्षणिक संस्थानों के साथ संलग्न नहीं होता, तब तक अनुसंधान एवं अंतरित जैव प्रौद्योगिकी में नवाचार न्यूनतम रहेगा।
- नवाचार की कमी: नवाचार, उद्यमिता और प्रौद्योगिकी निर्माण के मामले में जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र को वर्षों के अनुभव, परिष्कृत उपकरणों के साथ प्रयोगशालाओं तक पहुंँच, नवाचार करने के लिये निरंतर और दीर्घकालिक वित्तपोषण की आवश्यकता होती है।
- हालांँकि भारत ने नवोन्मेष संस्कृति में सुधार के लिये पर्याप्त रूप से अच्छा प्रदर्शन नहीं किया है।
- संरचनात्मक मुद्दे: यह देखते हुए कि जैव चिकित्सा क्षेत्र विनिर्माण पूंजी गहन है, पूंजी तक सीमित पहुंँच, अपर्याप्त बुनियादी ढांँचे और जटिल तथा निरंतर विकसित होने वाले नियामक ढांँचे के कारण भारत में इस तरह के निवेश आवश्यकता से कम रहा है।
संबंधित पहल :
- UNATI अटल जय अनुसंधान मिशन कार्यक्रम
- जैव प्रौद्योगिकी पार्क और इनक्यूबेटर
- राष्ट्रीय बायोफार्मा मिशन
- 'उम्मीद' पहल
- ज़ीनोम इंडिया
- LOTUS-HR प्रोजेक्ट
- बायोटेक-किसान
आगे की राह
- भारत में रोगों के लंबे इतिहास को देखते हुए देश ने उनकी रोकथाम और उपचार के लिये वर्षों का अनुभव एवं वैज्ञानिक ज्ञान संचित किया है। भारत 'मेक इन इंडिया' और 'स्टार्टअप इंडिया' जैसे विभिन्न प्रमुख कार्यक्रमों के तहत जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र को बढ़ावा देने का काम कर रहा है।
- बायोटेक इन्क्यूबेटरों की संख्या में वृद्धि से अनुसंधान और स्टार्टअप के विकास को बढ़ावा मिलेगा, जो भारतीय बायोटेक उद्योग की सफलता के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- बायोटेक हब का अनुकूल स्थान अनुसंधान और प्रौद्योगिकी विकास क्षमता, बाज़ार, उद्योग नीतियों, बुनियादी ढांँचे, निवेश जैसे महत्त्वपूर्ण कारकों पर निर्भर करेगा।
- एकीकृत बायोटेक हब स्थापित करने से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) बढ़ेगा, निवेशकों का विश्वास बढ़ेगा, गुणवत्ता वाले उत्पादों के लिये भारतीय निर्यात क्षमता में वृद्धि होगी, आयात प्रतिस्थापन की दिशा में आंतरिक क्षमता को बढ़ावा मिलेगा, साथ ही भारत के लिये अधिक आईपी उत्पन्न करने हेतु नवाचारों का पोषण और समर्थन प्राप्त होगा।
विगत वर्ष के प्रश्न:प्रश्न. कवकमूलीय (माइकोराइज़ल) जैव प्रौद्योगिकी को निम्नीकृत स्थलों के पुनर्वासन में उपयोग में लाया गया है, क्योंकि कवकमूल के द्वारा पौधों में- (2013)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (d)
अतः विकल्प (D) सही है। |