इन्फोग्राफिक्स
भारतीय अर्थव्यवस्था
खाद्य मुद्रास्फीति
प्रिलिम्स के लिये:मुद्रास्फीति, खाद्य मुद्रास्फीति, खाद्य मूल्य सूचकांक, सीपीआई, एमएसपी मेन्स के लिये:खाद्य मुद्रास्फीति और मुद्दे, वृद्धि एवं विकास |
चर्चा में क्यों?
संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन का खाद्य मूल्य सूचकांक (FFPI) जुलाई, 2022 में औसतन 140.9 अंक रहा, जो पिछले महीने के स्तर से 8.6% कम है और अक्तूबर, 2008 के बाद से सबसे तीव्र मासिक गिरावट है।
- यह उम्मीद की जाती है कि खाद्य मुद्रास्फीति अपेक्षा से अधिक तेज़ी से कम हो सकती है।
खाद्य मूल्य सूचकांक (FFPI):
- परिचय:
- यह खाद्य वस्तुओं की टोकरी/समूह/बास्केट की अंतर्राष्ट्रीय कीमतों में मासिक परिवर्तन को प्रदर्शित करता है।
- इसमें वर्ष 2014-2016 (आधार वर्ष) में प्रत्येक समूह के औसत निर्यात शेयरों द्वारा भारित पाँच कमोडिटी समूह मूल्य सूचकांकों का औसत शामिल है।
- इसे वर्ष 1996 में वैश्विक कृषि कमोडिटी बाज़ारों में विकास की निगरानी में मदद करने के लिये सार्वजनिक वस्तु के रूप में पेश किया गया था।
- FFPI की प्रवृत्ति:
- फरवरी, 2022 में यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के बाद मार्च, 2022 में FFPI 159.7 अंक के सर्वकालिक उच्च स्तर पर था।
- नवीनतम इंडेक्स रीडिंग (जुलाई, 2022) अभी भी चल रहे युद्ध से पहले जनवरी, 2022 के 135.6 अंकों के बाद से सबसे कम है।
- मार्च, 2022 और जुलाई, 2022 के बीच FFPI में संचयी रूप से 11.8% की गिरावट आई है।
FFPI में गिरावट के कारण:
- वैश्विक:
- काला सागर व्यापार मार्ग:
- काला सागर व्यापार मार्ग को खोलने के लिये संयुक्त राष्ट्र समर्थित समझौता रूसी खाद्य और उर्वरकों के निर्बाध शिपमेंट की अनुमति देता है।
- अकेले रूस से वर्ष 2022-23 (जुलाई-जून) में 40 मिलियन टन (mt) निर्यात किया जाने की उम्मीद है, जो पिछले साल के 33 मिलियन टन से अधिक है।
- पाम ऑइल पर प्रतिबंध हटा:
- इंडोनेशिया ने मई, 2022 के अंत से पाम ऑयल के निर्यात से प्रतिबंध हटा लिया है।
- सोयाबीन की फसलें:
- अमेरिका, ब्राज़ील, अर्जेंटीना और पराग्वे में सोयाबीन की बंपर फसल उत्पादन की संभावना है।
- महामारी का प्रभाव:
- प्रवासियों की आवाजाही और खाद्य फसलों के उत्पादन में वृद्धि के साथ कोविड-19 महामारी की वजह से आपूर्ति में व्यवधान भी कम हो रहा है।
- काला सागर व्यापार मार्ग:
- घरेलू:
- वर्षा:
- जून, 2022 से अगस्त, 2022 तक मौजूदा मानसून मौसम के दौरान संचयी वर्षा इस अवधि के ऐतिहासिक दीर्घकालिक औसत से 5.7% अधिक रही है।
- उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल को छोड़कर लगभग सभी कृषि-महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में अब तक अच्छी बारिश हुई है।
- दक्षिण प्रायद्वीप, मध्य और उत्तर-पश्चिम भारत में औसत से अधिक वर्षा ने इस खरीफ (मानसून) मौसम में अधिकांश फसलों के रकबे में वृद्धि की है।
- जून, 2022 से अगस्त, 2022 तक मौजूदा मानसून मौसम के दौरान संचयी वर्षा इस अवधि के ऐतिहासिक दीर्घकालिक औसत से 5.7% अधिक रही है।
- वर्षा:
वर्तमान खाद्य मुद्रास्फीति का कारण:
- मौसम:
- इसमें यूक्रेन (2020-21) और दक्षिण अमेरिका (2021-22) में सूखा शामिल था, जिसने विशेष रूप से सूरजमुखी एवं सोयाबीन की आपूर्ति को प्रभावित किया तथा मार्च-अप्रैल 2022 की गर्मी की लहर ने भारत में गेहूँ की फसल को बर्बाद कर दिया।
- कोविड-19 महामारी:
- महामारी का मलेशिया के पाम ऑयल बागानों में आपूर्ति-पक्ष पर सबसे अधिक प्रभाव महसूस किया गया जहाँ ताज़े फलों के गुच्छों की कटाई मुख्य रूप से इंडोनेशिया एवं बांग्लादेश के प्रवासी मज़दूरों द्वारा की जाती है।.
- कोविड-19 के परिणामस्वरूप कई मज़दूर वापस चले गए और कोई नया वर्कपरमिट जारी नहीं किया गया जिससे दुनिया के दूसरे सबसे बड़े पाम ऑयल उत्पादक तथा निर्यातक देशों का उत्पादन कम हो गया।
- महामारी का मलेशिया के पाम ऑयल बागानों में आपूर्ति-पक्ष पर सबसे अधिक प्रभाव महसूस किया गया जहाँ ताज़े फलों के गुच्छों की कटाई मुख्य रूप से इंडोनेशिया एवं बांग्लादेश के प्रवासी मज़दूरों द्वारा की जाती है।.
- रूस-यूक्रेन युद्ध:
- इसने दोनों देशों से होने वाली आपूर्ति में व्यवधान पैदा किया, जो कि वर्ष 2019-20 (युद्ध-रहित, गैर-सूखा वर्ष) में दुनिया के गेहूँ का 28.5%, मक्का का 18.8%, जौ का 34.4% तथा सूरजमुखी तेल का 78.1% निर्यात करते थे।
- निर्यात नियंत्रण:
- दिसंबर, 2020 में रूस द्वारा पहली बार नियंत्रण लगाया गया था, जो रिकॉर्ड गर्म तापमान के कारण उत्पन्न होने वाली घरेलू खाद्य मुद्रास्फीति की आशंकाओं से प्रेरित था।
- घरेलू आपूर्ति की चिंताओं के कारण मार्च-मई 2022 के दौरान इंडोनेशिया (दुनिया का नंबर 1 उत्पादक-सह-निर्यातक) ने पाम ऑयल पर और भारत द्वारा गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध लगाया गया।
- दिसंबर, 2020 में रूस द्वारा पहली बार नियंत्रण लगाया गया था, जो रिकॉर्ड गर्म तापमान के कारण उत्पन्न होने वाली घरेलू खाद्य मुद्रास्फीति की आशंकाओं से प्रेरित था।
खाद्य की वैश्विक कीमतों का घरेलू कीमतों पर प्रभाव:
- घरेलू खाद्य कीमतों के लिये वैश्विक मुद्रास्फीति का संचरण मूल रूप से इस बात पर निर्भर करता है कि किसी देश की खपत/उत्पादन का कितना आयात/निर्यात किया जाता है।
- इस संचरण का प्रभाव खाद्य तेलों और कपास के रूप में स्पष्ट है जिसमें भारत अपनी खपत का 2/3 और उत्पादन का 1/5 हिस्सा क्रमशः आयात तथा निर्यात करता है।
- गेहूँ के मामले में मार्च, 2022 के मध्य से गर्मी की लहर ने पैदावार को गंभीर रूप से प्रभावित किया, सार्वजनिक स्टॉक और समग्र घरेलू उपलब्धता दोनों पर दबाव देखा गया, यहाँ तक कि खुले बाज़ार की कीमतें निर्यात समता स्तर तक बढ़ गई हैं।
- केंद्र सरकार ने अपनी प्रमुख मुफ्त अनाज योजना के तहत गेहूँ आवंटन को कम करने तथा अधिक चावल देने का निर्णय लिया है।
- चीनी एक ऐसी वस्तु है जिसमें मिलों द्वारा रिकॉर्ड निर्यात के बावजूद खुदरा कीमतें ज़्यादा नहीं बढ़ी हैं।
- इसकी वजह अधिक उत्पादन होना भी है।
आगे की राह
- आयात नीति में एकरूपता होनी चाहिये क्योंकि यह अग्रिम रूप से उचित बाज़ार संकेत प्रदान करती है।
- आयात शुल्क के माध्यम से हस्तक्षेप करना कोटा से बेहतर है जिसमें अधिक नुकसान होता है। यह उपग्रह, रिमोट सेंसिंग और जीआईएस तकनीकों का उपयोग करके अधिक सटीक फसल पूर्वानुमानों की भी मांग करता है ताकि फसल वर्ष में बहुत पहले ही कमी/अधिशेष का संकेत मिल सके।
- इसके अलावा एक दशक पुराना उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) आधार वर्ष 2011-12, जो खाद्य पदार्थों को लगभग आधा भारांक देता है, को संशोधित और अद्यतन करने की आवश्यकता है ताकि भोजन की आदतों एवं आबादी की जीवनशैली में बदलाव को प्रतिबिंबित किया जा सके।
- बढ़ते मध्यम वर्ग के साथ गैर-खाद्य वस्तुओं पर खर्च में वृद्धि हुई है तथा इसे सीपीआई में बेहतर ढंग से प्रतिबिंबित करने की आवश्यकता है, जिससे आरबीआई मुद्रास्फीति को बेहतर ढंग से लक्षित किया जा सके।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs):प्रारंभिक परीक्षा:प्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (a) व्याख्या:
अतः विकल्प (a) सही है। मेन्स:प्रश्न. एक मत यह भी है कि राज्य अधिनियमों के तहत गठित कृषि उत्पाद बाज़ार समितियों (APMCs) ने न केवल कृषि के विकास में बाधा डाली है, बल्कि यह भारत में खाद्य मुद्रस्फीति का कारण भी रही है। समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (2014) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
इज़रायल और फिलिस्तीन के बीच युद्धविराम
प्रिलिम्स के लिये:इज़रायल और फिलिस्तीन का भूगोल, वर्ष 1948 का अरब इज़रायल युद्ध, अब्राहम समझौता, यरुशलम की अल-अक्सा मस्जिद मेन्स के लिये:इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष, 1948 का अरब-इज़रायल युद्ध, वर्ष 1967 में छह-दिवसीय युद्ध, अब्राहम समझौता |
चर्चा में क्यो?
इज़रायल और फिलिस्तीन के बीच तीन दिनों तक हिंसा, जिसके कारण दोनों देशों में दर्जनों लोगों की मृत्यु हो गई, के बाद हाल ही में युद्धविराम हो गया।
- इस वर्ष की शुरुआत में भी यरुशलम की अल-अक्सा मस्जिद में फिलिस्तीनियों और इज़राली पुलिस के बीच तनाव बढ़ गया था।
- ये आवर्ती संघर्ष चल रहे इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष का ही हिस्सा हैं।
वर्तमान संघर्ष :
- संघर्ष का कारण:
- इज़रायली विमानों ने गाजा में ठिकानों (इस्लामिक जिहाद के नेताओं) को निशाना बनाया।
- जवाब में ईरान समर्थित फिलिस्तीनी जिहाद आतंकवादी समूह ने इज़रायल पर सैकड़ों रॉकेट दागे।
- इस्लामिक जिहाद में हमास की तुलना में कम लड़ाके और समर्थक हैं।
- इज़रायली विमानों ने गाजा में ठिकानों (इस्लामिक जिहाद के नेताओं) को निशाना बनाया।
- इज़रायली कार्रवाई:
- इज़रायल ने इस्लामिक जिहाद के एक नेता पर हमले के साथ अपना अभियान शुरू किया और हमले की नीयत से एक अन्य दूसरे प्रमुख नेता पीछा किया।
- गाजा की कार्रवाई:
- इज़रायली सेना के अनुसार गाजा में आतंकवादियों ने इज़रायल की ओर लगभग 580 रॉकेट दागे।
- इज़रायल ने उनमें से कई को रोक दिया तथा दो को मार गिराया गया जिन्हें यरूशलम की ओर दागा गया था।
- यूएनएससी की बैठक:
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने हिंसा को लेकर एक आपातकालीन बैठक निर्धारित की।
- चीन जो कि अगस्त 2022 के लिये परिषद की अध्यक्षता करेगा, ने संयुक्त अरब अमीरात के अनुरोध के जवाब में सत्र निर्धारित किया, यह परिषद में अरब देशों का प्रतिनिधित्व करता है, साथ ही इसमें चीन, फ्राँस, आयरलैंड और नॉर्वे भी शामिल होंगे।
इज़रायल और फिलिस्तीन के बीच विवाद:
- यरुशलम पर विवाद:
- यरुशलम इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष के केंद्र में रहा है।
- वर्ष 1947 की संयुक्त राष्ट्र (UN) मूल विभाजन योजना के अनुसार, यरूसलम को एक अंतर्राष्ट्रीय शहर के रूप में प्रस्तावित किया गया था।
- हालाँकि वर्ष 1948 के प्रथम अरब इज़रायल युद्ध में इज़रायलियों ने शहर के आधे पश्चिमी हिस्से पर कब्ज़ा कर लिया और प्राचीन शहर सहित पूर्वी भाग, जहाँ हरम अल-शरीफ़ अवस्थित है, पर जॉर्डन ने कब्ज़ा कर लिया।
- वर्ष 1967 में छह-दिवसीय युद्ध के बाद इज़रायल और अरब राज्यों के गठबंधन के बीच एक सशस्त्र संघर्ष हुआ जिसमें मुख्य रूप से जॉर्डन, सीरिया और मिस्र शामिल थे, जॉर्डन का वक्फ मंत्रालय, जो तब तक अल-अक्सा मस्जिद पर नियंत्रण रखता था, ने इस मस्जिद की देखरेख करना बंद कर दिया।
- इज़रायल ने वर्ष 1967 के छह-दिवसीय युद्ध में जॉर्डन के नियंत्रण वाले पूर्वी यरूशलम पर कब्ज़ा कर उसका विलय कर लिया।
- विलय के बाद से इज़रायल ने पूर्वी यरूशलम में बस्तियों का विस्तार किया।
- इज़रायल पूरे शहर को अपनी "एकीकृत, शाश्वत राजधानी" के रूप में देखता है, जबकि फिलिस्तीनी नेतृत्व ने यह सुनिश्चित किया है कि वह भविष्य के फिलिस्तीनी राज्य के लिये किसी भी समझौते को तब तक स्वीकार नहीं करेगा जब तक कि पूर्वी यरूशलम को उसकी राजधानी के रूप में मान्यता प्रदान नहीं कर दी जाती है।
- हालिया गतिविधि:
- अल-अक्सा मस्जिद और शेख जर्राह:
- मई 2021 में इज़रायली सशस्त्र बलों ने यरूशलम में ज़ायोनी राष्ट्रवादियों द्वारा वर्ष 1967 में शहर के पूर्वी हिस्से पर इज़रायल के कब्ज़े को स्मरण करते हुए निकाले जाने वाले मार्च से पहले यरूशलम के हरम अल-शरीफ में अल-अक्सा मस्जिद पर हमला किया था।
- शेख जर्राह द्वारा पूर्वी यरूशलम में दर्जनों फ़िलिस्तीनी परिवारों को बेदखल करने की धमकी ने संकट को और बढ़ा दिया।
- वेस्ट बैंक सेटलमेंट:
- इज़रायल के सर्वोच्च न्यायालय ने कब्ज़े वाले वेस्ट बैंक के ग्रामीण हिस्से के 1,000 से अधिक फिलिस्तीनी निवासियों को उस क्षेत्र में बेदखल करने के खिलाफ एक याचिका को खारिज कर दिया है जिसका चयन इज़रायल ने सैन्य अभ्यास के लिये किया है।
- इस निर्णय ने हेब्रोन के पास एक चट्टानी, शुष्क क्षेत्र में आठ छोटे गाँवों को ध्वस्त करने का मार्ग प्रशस्त किया, जिन्हें फिलिस्तीनियों द्वारा मासाफर यट्टा और इज़रायलियों को दक्षिण हेब्रोन हिल्स के रूप में जाना जाता है।
- इज़रायल के सर्वोच्च न्यायालय ने कब्ज़े वाले वेस्ट बैंक के ग्रामीण हिस्से के 1,000 से अधिक फिलिस्तीनी निवासियों को उस क्षेत्र में बेदखल करने के खिलाफ एक याचिका को खारिज कर दिया है जिसका चयन इज़रायल ने सैन्य अभ्यास के लिये किया है।
- अल-अक्सा मस्जिद और शेख जर्राह:
- संकट पर भारत का रुख:
- भारत हाल के वर्षों में इज़रायल और फिलिस्तीन के मध्य संबंधों को बनाए रखने के लिये एक डि-हाईफेनेशन नीति का पालन कर रहा है।
- दुनिया में सबसे लंबे समय तक चलने वाले संघर्ष को लेकर भारत की नीति पहले चार दशकों के लिये स्पष्ट रूप से फिलिस्तीन समर्थक थी लेकिन इज़रायल के साथ तीन दशक से मैत्रीपूर्ण संबंधों के चलते फिलिस्तीन से संबंधों में तनावपूर्ण स्थिति उत्पन्न हो गई है।
- वर्ष 2017 में एक अभूतपूर्व कदम के तहत भारत के प्रधानमंत्री ने केवल इज़रायल का दौरा किया न कि फिलिस्तीन का।
- प्रधानमंत्री की हाल की फिलिस्तीन (वर्ष 2018), ओमान और संयुक्त अरब अमीरात की यात्रा फिर से इसी तरह की नीति की निरंतरता है।
- भारत हाल के वर्षों में इज़रायल और फिलिस्तीन के मध्य संबंधों को बनाए रखने के लिये एक डि-हाईफेनेशन नीति का पालन कर रहा है।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs):प्रश्न: दक्षिण-पश्चिम एशिया का निम्नलिखित में से कौन सा देश भूमध्य सागर की तरफ नहीं खुलता है? (2015) (a) सीरिया उत्तर: (b) व्याख्या:
अतः विकल्प (b) सही है। प्रश्न. 'आवश्यकता से कम नकदी, अत्यधिक राजनीति ने यूनेस्को को जीवन रक्षण की स्थिति में पहुँचा दिया है।' अमेरिका द्वारा सदस्यता का परित्याग करने और सांस्कृतिक संस्था पर 'इज़रायल विरोधी पूर्वाग्रह' होने का दोषरोपण करने के प्रकाश में इस कथन की विवेचना कीजिये। ( मुख्य परीक्षा, 2019) प्रश्न. "इज़रायल के साथ भारत के संबंधों ने हाल ही में एक ऐसी गहराई और विविधता हासिल की है, जिसकी पुनर्वापसी नहीं की जा सकती है।" विवेचना कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2018) |
स्रोत: द हिंदू
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
लक्षद्वीप में समुद्री तापीय ऊर्जा रूपांतरण संयंत्र
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय महासागर प्रौद्योगिकी संस्थान, समुद्री तापीय ऊर्जा रूपांतरण संयंत्र, डीप सी माइनिंग, डीप ओशन मिशन, डीएनए बैंक। मेन्स के लिये:जलवायु परिवर्तन से निपटने में महासागरीय तापीय ऊर्जा के उपयोग का महत्त्व। |
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (MoES) के तहत स्वायत्त राष्ट्रीय समुद्र प्रौद्योगिकी संस्थान, लक्षद्वीप के कवरत्ती में 65 किलोवाट (kW) की क्षमता वाला एक समुद्री तापीय ऊर्जा रूपांतरण संयंत्र स्थापित किया जा रहा है।
- यह संयंत्र एक लाख लीटर प्रतिदिन की क्षमता के साथ कम तापमान वाले तापीय विलवणीकरण संयंत्र को बिजली की आपूर्ति करेगा, जो अनुपयोगी समुद्री जल को पीने योग्य जल में परिवर्तित करेगा।
- यह दुनिया में अपनी तरह का पहला संयंत्र है क्योंकि यह स्वदेशी तकनीक, हरित ऊर्जा और पर्यावरण के अनुकूल प्रक्रियाओं का उपयोग करेगा।
समुद्री तापीय ऊर्जा रूपांतरण संयंत्र:
- परिचय:
- समुद्री तापीय ऊर्जा रूपांतरण (OTEC) समुद्र की सतह के जल और गहरे समुद्र के जल के बीच विद्यमान तापांतर का उपयोग कर ऊर्जा उत्पादन करने की एक प्रक्रिया है।
- महासागर विशाल ऊष्मा भंडार हैं क्योंकि ये पृथ्वी की सतह का लगभग 70% भाग कवर करते हैं।
- शोधकर्त्ता दो प्रकार की OTEC प्रौद्योगिकियों पर ध्यान केंद्रित करते हैं:
- बंद चक्र विधि: जहाँ एक तरल पदार्थ (अमोनिया) को वाष्पीकरण के लिये हीट एक्सचेंजर के माध्यम से पंप किया जाता है और उससे उत्पन्न वाष्प-शक्ति से टरबाइन चलती है।
- समुद्र की गहराई में पाए जाने वाले ठंडे जल द्वारा वाष्प को वापस द्रव (संघनन) में बदल दिया जाता है, जहाँ यह हीट एक्सचेंजर में वापस आ जाता है।
- खुला चक्र विधि जहाँ गर्म सतह के जल पर एक निर्वात कक्ष में दबाव डाला जाता है और उसे वाष्प में परिवर्तित किया जाता है जो टरबाइन को चलाता है, पुनः गहराई से ठंडे समुद्री जल का उपयोग करके भाप को संघनित किया जाता है।
- बंद चक्र विधि: जहाँ एक तरल पदार्थ (अमोनिया) को वाष्पीकरण के लिये हीट एक्सचेंजर के माध्यम से पंप किया जाता है और उससे उत्पन्न वाष्प-शक्ति से टरबाइन चलती है।
- समुद्री तापीय ऊर्जा रूपांतरण (OTEC) समुद्र की सतह के जल और गहरे समुद्र के जल के बीच विद्यमान तापांतर का उपयोग कर ऊर्जा उत्पादन करने की एक प्रक्रिया है।
- ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य:
- भारत ने वर्ष 1980 में तमिलनाडु तट पर एक OTEC संयंत्र स्थापित करने की योजना बनाई थी। हलाँकि विदेशी विक्रेता द्वारा संचालन बंद करने के साथ इसे रोकना पड़ा।
- समुद्री तापीय ऊर्जा रूपांतरण के क्षेत्र में भारत की क्षमता:
- चूँकि भारत भौगोलिक रूप से दक्षिणी तट जिसकी लंबाई लगभग 2000 किलोमीटर है, समुद्री तापीय ऊर्जा उत्पन्न करने के लिये अच्छी अवस्थिति में है, जहाँ पूरे वर्ष 20 डिग्री सेल्सियस से ऊपर का तापमान अंतर पाया जाता है।
- सकल बिजली के 40% ऊर्जा क्षति को शामिल करते हुए भारत भर में कुल OTEC क्षमता 180,000 मेगावाट होने का अनुमान है।
OTEC संयंत्र की कार्यप्रणाली:
- परिचय:
- जैसे सूर्य की ऊर्जा समुद्र के सतही जल को गर्म करती है। उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में सतही जल गहरे जल की तुलना में अधिक गर्म हो सकता है।
- इस तापमान अंतर का उपयोग बिजली के उत्पादन और समुद्र के जल को विलवणीकृत करने के लिये किया जा सकता है।
- OTEC प्रणाली बिजली उत्पादन के लिये टर्बाइन को बिजली देने हेतु तापमान अंतर (कम-से-कम 77 डिग्री फारेनहाइट) का उपयोग करती है।
- जब गर्म जल का प्रवाह OTEC गैस चेंबर में होता है तब गैस द्वारा समुद्री जल की ऊष्मा का अवशोषण किये जाने के कारण गतिज ऊर्जा में वृद्धि होती है, इस गतिज ऊर्जा के कारण टर्बाइन चलता है।
- फिर वाष्पीकृत द्रव को कंडेनसर में वापस तरल में बदल दिया जाता है जिसे ठंडे समुद्र के जल से ठंडा करके समुद्र में गहराई से पंप किया जाता है।
- OTEC प्रणाली में समुद्री जल को तरल पदार्थ के रूप में उपयोग किया जाता है और विलवणीकृत जल का उत्पादन करने के लिये संघनित जल का उपयोग कर सकते हैं।
- महत्त्व:
- OTEC के दो सबसे बड़े लाभ हैं- यह स्वच्छ पर्यावरण के अनुकूल अक्षय ऊर्जा का उत्पादन करती है और सौर संयंत्रों के विपरीत जो रात में काम नहीं कर सकते हैं एवं पवन टर्बाइन जो केवल वायु में काम करते हैं, जबकि OTEC संयंत्र हर समय ऊर्जा का उत्पादन कर सकता है।
सरकार की संबंधित हालिया पहलें:
- डीप सी माइनिंग (Deep Sea Mining):
- MoES मध्य हिंद महासागर से 5,500 मीटर की गहराई पर गहरे समुद्र के संसाधनों जैसे पॉलीमेटेलिक नोड्यूल्स के खनन के लिये प्रौद्योगिकियों का विकास कर रहा है।
- मौसम पूर्वानुमान:
- मंत्रालय समुद्र के स्तर में वृद्धि के कारण जलवायु जोखिम मूल्यांकन के लिये समुद्री जलवायु परिवर्तन सलाहकार सेवाएँ शुरू करने पर भी काम कर रहा है जैसे चक्रवात की तीव्रता और आवृत्ति, तूफानी लहरें तथा तीव्र पवन, जैव-भू-रसायन, भारत के तटीय जल में एल्गी ब्लूम को रोकना।
- डीप ओशन मिशन:
- MoES डीप ओशन मिशन के तहत 6,000 मीटर तक जल की गहराई के लिये रेटेड प्रोटोटाइप क्रू सबमर्सिबल को डिज़ाइन और विकसित करने का प्रयास कर रहा है।
- इसमें जल के नीचे के वाहनों और जल के भीतर रोबोटिक्स के लिये प्रौद्योगिकियाँ शामिल होंगी।
- डीएनए बैंक:
- दूरस्थ संचालित वाहन का उपयोग करके व्यवस्थित नमूने के माध्यम से उत्तरी हिंद महासागर के बेंटिक जीवों का पता लगाने, नमूने लेने और डीएनए भंडारण में सुधार करने के प्रयास किये जा रहे हैं।
राष्ट्रीय समुद्र प्रौद्योगिकी संस्थान
- पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अंतर्गत NIOT की स्थापना नवंबर 1993 में तत्कालीन महासागर विकास विभाग (Department of Ocean Development) द्वारा एक स्वायत्त निकाय के रूप में की गई थी।
- इसका मुख्य उद्देश्य भारतीय अनन्य आर्थिक क्षेत्र (Exclusive Economic Zone-EEZ), जो भारत के भूमि क्षेत्र का लगभग दो-तिहाई हिस्सा है, के निर्जीव एवं सजीव संसाधन, के उपयोग से संबंधित विभिन्न प्रौद्योगिकी समस्याओं को सुलझाने के लिये विश्वसनीय देशी तकनीक विकसित करना है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न:प्रश्न. निम्न तापमान तापीय विलवणीकरण सिद्धांत के आधार पर प्रतिदिन एक लाख लीटर मीठे पानी का उत्पादन करने वाला भारत में पहला विलवणीकरण संयंत्र कहाँ स्थापित किया गया था? (2008) (A) कवरत्ती उत्तर: A व्याख्या:
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स्रोत : डाउन टू अर्थ
भारतीय अर्थव्यवस्था
विद्युत संशोधन विधेयक, 2022
प्रिलिम्स के लिये:विद्युत संशोधन विधेयक, सातवीं अनुसूची मेन्स के लिये:पावर सेक्टर का महत्त्व, बिजली बिल के तहत संशोधन, सब्सिडी की भूमिका |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विरोध के बीच विद्युत (संशोधन) विधेयक 2022 को संसद में पेश किया गया और बाद में इसे आगे के विचार-विमर्श हेतु स्थायी समिति के पास भेजा गया।
- तमिलनाडु, तेलंगाना, राजस्थान और अन्य राज्यों में कई विद्युत इंजीनियरों ने इस विधेयक का विरोध किया।
विद्युत संशोधन विधेयक, 2022
- परिचय:
- विद्युत संशोधन विधेयक, 2022 का उद्देश्य कई अभिकर्त्ताओं को बिजली आपूर्तिकर्त्ताओं के वितरण नेटवर्क तक खुली पहुँच प्रदान करना और उपभोक्ताओं को किसी भी सेवा प्रदाता को चुनने की अनुमति देना है।
- निहितार्थ:
- विधेयक में विद्युत अधिनियम 2003 में संशोधन करने का प्रयास किया गया है:
- प्रतिस्पर्द्धा को सक्षम बनाने, उपभोक्ताओं हेतु सेवाओं में सुधार करने और बिजली क्षेत्र की स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये वितरण लाइसेंसधारियों की दक्षता बढ़ाने के उद्देश्य से गैर-भेदभावपूर्ण "खुली पहुँच" के प्रावधानों के तहत सभी लाइसेंसधारियों द्वारा वितरण नेटवर्क के उपयोग को सुविधाजनक बनाना।
- वितरण लाइसेंसधारी के वितरण नेटवर्क तक गैर-भेदभावपूर्ण खुली पहुँच की सुविधा प्रदान करना।
- आयोग द्वारा अधिकतम सीमा और न्यूनतम प्रशुल्क के अनिवार्य निर्धारण के अलावा वर्ष में प्रशुल्क में श्रेणीबद्ध संशोधन का प्रावधान करना।
- दंड की दर को कारावास या जुर्माने से अर्थदंड में परिवर्तित करना।
- नियामकों द्वारा निर्वहन किये जाने वाले कार्यों को मज़बूत करना।
- विधेयक में विद्युत अधिनियम 2003 में संशोधन करने का प्रयास किया गया है:
विधेयक के खिलाफ विरोधकर्त्ताओं के तर्क:
- संघीय संरचना:
- संविधान की सातवीं अनुसूची की समवर्ती सूची III के आइटम 38 के रूप में 'बिजली' को सूचीबद्ध करता है, इसलिये केंद्र और राज्य दोनों सरकारों के पास इस विषय पर कानून बनाने की शक्ति है।
- प्रस्तावित संशोधनों भारत के संविधान के संघीय ढाँचे एवं 'मूल ढाँचे' का उल्लंघन किया जा रहा है।
- संविधान की सातवीं अनुसूची की समवर्ती सूची III के आइटम 38 के रूप में 'बिजली' को सूचीबद्ध करता है, इसलिये केंद्र और राज्य दोनों सरकारों के पास इस विषय पर कानून बनाने की शक्ति है।
- विद्युत सब्सिडी:
- किसानों और गरीबी रेखा से नीचे की आबादी के लिये मुफ्त बिजली अंततः खत्म हो जाएगी।
- विभेदक वितरण:
- केवल सरकारी डिस्कॉम या वितरण कंपनियों के पास सार्वभौमिक बिजली आपूर्ति दायित्व होंगे।
- इसलिये यह संभावना है कि निजी लाइसेंसधारी औद्योगिक और वाणिज्यिक उपभोक्ताओं को लाभ वाले क्षेत्रों में बिजली की आपूर्ति करना पसंद करेंगे।
- ऐसा होने पर सरकारी डिस्कॉम से मुनाफा वाले क्षेत्र छीन लिये जाएंगे और वह घाटे में चल रही कंपनी बन जाएगी।
- ऐसा होने पर सरकारी डिस्कॉम से मुनाफा वाले क्षेत्र छीन लिये जाएंगे और वह घाटे में चल रही कंपनी बन जाएगी।
- इसलिये यह संभावना है कि निजी लाइसेंसधारी औद्योगिक और वाणिज्यिक उपभोक्ताओं को लाभ वाले क्षेत्रों में बिजली की आपूर्ति करना पसंद करेंगे।
- केवल सरकारी डिस्कॉम या वितरण कंपनियों के पास सार्वभौमिक बिजली आपूर्ति दायित्व होंगे।
विधेयक का विद्युत कर्मचारियों और उपभोक्ताओं पर प्रभाव:
- निजी आपूर्तिकर्त्ताओं का एकाधिकार:
- इससे सरकारी वितरण कंपनियों को बड़ा नुकसान होगा और अंततः देश के विद्युत क्षेत्र में कुछ निजी पार्टियों को एकाधिकार स्थापित करने में मदद मिलेगी।
- परिचालन मुद्दा:
- आपूर्ति की लागत का लगभग 80% विद्युत खरीद में खर्च होता है, जो एक क्षेत्र में काम कर रहे सभी वितरण लाइसेंसधारियों के लिये समान होगी।
- अलग-अलग खुदरा विक्रेता होने से परिचालन संबंधी समस्याएँ बढ़ जाएंगी।
- अधिक खुदरा विक्रेताओं या वितरण लाइसेंसधारियों को लाने से सेवा की गुणवत्ता या कीमत में सुधार नहीं होगा।
- उपभोक्ताओं को नुकसान:
- यूके के लेखा परीक्षकों की एक रिपोर्ट के अनुसार, ऐसे दोषपूर्ण मॉडलों को अपनाने के कारण उपभोक्ताओं को 2.6 बिलियन पाउंड से अधिक का भुगतान करना पड़ा।
- ऐसे अंतरण की लागत सामान्य उपभोक्ता से वसूल की जाती थी।
- जब निजी कंपनियाँ विफल होती हैं तो उपभोक्ताओं को सबसे अधिक नुकसान होता है।
- ऐसे अंतरण की लागत सामान्य उपभोक्ता से वसूल की जाती थी।
- यूके के लेखा परीक्षकों की एक रिपोर्ट के अनुसार, ऐसे दोषपूर्ण मॉडलों को अपनाने के कारण उपभोक्ताओं को 2.6 बिलियन पाउंड से अधिक का भुगतान करना पड़ा।
विधेयक को लेकर सरकार का तर्क:
- सरकार ने यह सुनिश्चित किया है कि विधेयक में कोई प्रावधान विद्युत वितरण क्षेत्र को विनियमित करने, बिजली सब्सिडी का भुगतान करने के लिये राज्यों की शक्तियों को कम नहीं करता है।
- सरकार ने संकेत दिया है कि एक ही क्षेत्र में कई डिस्कॉम पहले से मौज़ूद हो सकते हैं और विधेयक केवल प्रक्रिया को सरल बनाता है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि प्रतिस्पर्द्धा बेहतर संचालन और सेवा सुनिश्चित करे।
- सरकार ने कहा है कि उसने हर राज्य और कई संघ राज्यों से लिखित में सलाह ली है, जिसमें कृषि मंत्रालय का एक अलग लिखित आश्वासन भी शामिल है कि बिल में किसान विरोधी कुछ भी नहीं है।
- यह बिल एक क्षेत्र में औद्योगिक और वाणिज्यिक उपयोगकर्त्ताओं से एकत्र की गई अतिरिक्त क्रॉस-सब्सिडी के उपयोग की अनुमति देता है ताकि अन्य क्षेत्रों में गरीबों को सब्सिडी दी जा सके।
- भारत ने वर्ष 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा से अपनी स्थापित बिजली क्षमता का 50% हासिल करने का लक्ष्य रखा है, सरकार का मानना है कि बिल में उल्लिखित नवीकरणीय खरीद दायित्वों (RPO) का बढ़ावा भारत की बिजली की मांग को बढ़ाएगा, जो पेरिस एवं ग्लासगो समझौतों के अनुसार निर्धारित हरित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये आगे बढ़ते हुए अगले आठ वर्षों में दोगुना होने की उम्मीद है।
आगे की राह
- भारतीय संविधान की समवर्ती सूची का विषय होने के कारण विधेयक के प्रावधानों के प्रभावी कार्यान्वयन के लिये राज्यों की सिफारिशों को ध्यान में रखा जाना चाहिये।
- किसी भी प्रकार के भ्रम/संघर्ष को समाप्त करने के लिये सब्सिडी से संबंधित प्रावधान को विस्तृत तरीके से प्रस्तुत किया जाना चाहिये।
- अंतर-वितरण की स्थिति से बचने हेतु निजी कंपनियों के लिये नियम बनाए जाने चाहिये।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा वर्ष के प्रश्न (PYQs):निम्नलिखित में से कौन सरकार की ‘उदय’ योजना का एक उद्देश्य है? (2016)। (a) ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों के क्षेत्र में स्टार्ट-अप उद्यमियों को तकनीकी और वित्तीय सहायता प्रदान करना। उत्तर: (d) व्याख्या:
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स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
भारत का सौर ऊर्जा लक्ष्य
प्रिलिम्स के लिये:अक्षय ऊर्जा, उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन (पीएलआई), घरेलू सामग्री की आवश्यकता (डीसीआर) मेन्स के लिये:भारतीय सौर ऊर्जा उद्योग की चुनौतियाँ और उन्हें हल करने के लिये सरकार की पहल, अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में भारत की उपलब्धियाँ, भारत के अक्षय ऊर्जा लक्ष्य। |
चर्चा में क्यों?
भारत सरकार ने वर्ष 2030 तक भारत की अक्षय ऊर्जा स्थापित क्षमता को 500 GW तक विस्तारित करने का लक्ष्य रखा है।
- भारत ने वर्ष 2030 तक देश के कुल अनुमानित कार्बन उत्सर्जन को 1 बिलियन टन तक कम करने, दशक के अंत तक देश की अर्थव्यवस्था की कार्बन तीव्रता को 45% से कम करने, वर्ष 2070 तक नेट-जीरो कार्बन उत्सर्जन प्राप्ति का लक्ष्य निर्धारित किया है।
- वर्ष 2010 में 10 मेगावाट से भी कम क्षमता के साथ भारत ने पिछले एक दशक में महत्त्वपूर्ण फोटोवोल्टिक क्षमता को प्राप्त किया है, जो वर्ष 2022 में 50 गीगावाट से अधिक है।
भारत में अक्षय ऊर्जा की वर्तमान स्थिति:
- भारत में अक्षय ऊर्जा की कुल स्थापित क्षमता 151.4 गीगावाट है।
- अक्षय ऊर्जा के लिये कुल स्थापित क्षमता का विवरण निम्नलिखित है:
- पवन ऊर्जा: 40.08 गीगावाट
- सौर ऊर्जा: 49.34 गीगावाट
- बायोपावर: 10.61 गीगावाट
- लघु जल विद्युत: 4.83 गीगावाट
- लार्ज हाइड्रो: 46.51 गीगावाट
- वर्तमान सौर ऊर्जा क्षमता:
- भारत में कुल 37 गीगावाट क्षमता के 45 सौर पार्कों को मंज़ूरी दी गई है।
- पावागढ़ (2 गीगावाट), कुरनूल (1 गीगावाट) और भादला- II (648 मेगावाट) में सौर पार्क देश में 7 GW क्षमता के शीर्ष 5 परिचालित सोलर पार्कों में शामिल हैं।
- गुजरात में 30 गीगावाट क्षमता वाली सौर-पवन हाइब्रिड परियोजना का दुनिया का सबसे बड़ा अक्षय ऊर्जा पार्क स्थापित किया जा रहा है।
- भारत में कुल 37 गीगावाट क्षमता के 45 सौर पार्कों को मंज़ूरी दी गई है।
- अक्षय ऊर्जा के लिये कुल स्थापित क्षमता का विवरण निम्नलिखित है:
चुनौतियाँ:
- आयात पर अत्यधिक निर्भरता:
- भारत के पास पर्याप्त मॉड्यूल और पीवी सेल निर्माण क्षमता नहीं है।
- वर्तमान सौर मॉड्यूल निर्माण क्षमता प्रतिवर्ष 15 गीगावाट तक सीमित है, जबकि घरेलू उत्पादन केवल 3.5 गीगावाट के आसपास है।
- इसके अलावा मॉड्यूल निर्माण क्षमता के 15 गीगावाट में से केवल 3-4 गीगावाट मॉड्यूल तकनीकी रूप से प्रतिस्पर्द्धी हैं और ग्रिड-आधारित परियोजनाओं में परिनियोजन के योग्य हैं।
- वर्तमान सौर मॉड्यूल निर्माण क्षमता प्रतिवर्ष 15 गीगावाट तक सीमित है, जबकि घरेलू उत्पादन केवल 3.5 गीगावाट के आसपास है।
- भारत के पास पर्याप्त मॉड्यूल और पीवी सेल निर्माण क्षमता नहीं है।
- आकार और प्रौद्योगिकी:
- अधिकांश भारतीय उद्योग M2 प्रकार के वफर आकार पर आधारित है, लगभग 156x156 mm2, जबकि वैश्विक उद्योग पहले से ही M10 और M12 आकार की ओर बढ़ रहा है, जो 182x182 mm2 और 210x210 mm2 हैं।
- बड़े आकार का वफर फायदेमंद है क्योंकि यह लागत प्रभावी है तथा इसमें कम विद्युत की हानि होती है।
- अधिकांश भारतीय उद्योग M2 प्रकार के वफर आकार पर आधारित है, लगभग 156x156 mm2, जबकि वैश्विक उद्योग पहले से ही M10 और M12 आकार की ओर बढ़ रहा है, जो 182x182 mm2 और 210x210 mm2 हैं।
- कच्चे माल की आपूर्ति:
- सबसे महँगा कच्चा माल सिलिकॉन वेफर का निर्माण भारत में नहीं होता है।
- यह वर्तमान में 100% सिलिकॉन वेफर्स और लगभग 80% सेल का आयात करता है।
- इसके अलावा विद्युत से संपर्क स्थापित करने के लिये चांदी और एल्युमीनियम धातु के पेस्ट जैसे अन्य प्रमुख कच्चे माल का भी लगभग 100% आयात किया जाता है।
सरकार की पहल:
- विनिर्माण को समर्थन हेतु पीएलआई योजना:
- इस योजना में ऐसे सौर पीवी मॉड्यूल की बिक्री पर उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन (पीएलआई) प्रदान करके उच्च दक्षता वाले सौर पीवी मॉड्यूल की एकीकृत विनिर्माण इकाइयों की स्थापना का समर्थन करने के प्रावधान हैं।
- घरेलू सामग्री की आवश्यकता (DCR):
- नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) की कुछ मौज़ूदा योजनाओं के तहत केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम (CPSU) योजना चरण- II, पीएम-कुसुम, और ग्रिड से जुड़े रूफटॉप सौर कार्यक्रम चरण- II, जिसमें सरकारी सब्सिडी दी जाती है , इसे घरेलू स्रोतों से सौर पीवी सेल एवं मॉड्यूल के स्रोत के लिये अनिवार्य किया गया है।
- इसके अलावा सरकार ने ग्रिड से जुड़ी राज्य / केंद्र सरकार की परियोजनाओं के लिये केवल निर्माताओं की स्वीकृत सूची (एएलएमएम) से मॉड्यूल खरीदना अनिवार्य कर दिया है।
- नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) की कुछ मौज़ूदा योजनाओं के तहत केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम (CPSU) योजना चरण- II, पीएम-कुसुम, और ग्रिड से जुड़े रूफटॉप सौर कार्यक्रम चरण- II, जिसमें सरकारी सब्सिडी दी जाती है , इसे घरेलू स्रोतों से सौर पीवी सेल एवं मॉड्यूल के स्रोत के लिये अनिवार्य किया गया है।
- सौर पीवी सेल और मॉड्यूल के आयात पर मूल सीमा शुल्क का अधिरोपण:
- सरकार ने सोलर पीवी सेल और मॉड्यूल के आयात पर बेसिक कस्टम ड्यूटी (BCD) लगाने की घोषणा की है।
- इसके अलावा इसने मॉड्यूल के आयात पर 40% और सेल के आयात पर 25% शुल्क लगाया है।
- मूल सीमा शुल्क एक विशिष्ट दर पर वस्तु के मूल्य पर लगाया गया शुल्क है।
- सरकार ने सोलर पीवी सेल और मॉड्यूल के आयात पर बेसिक कस्टम ड्यूटी (BCD) लगाने की घोषणा की है।
- संशोधित विशेष प्रोत्साहन पैकेज योजना (एम-एसआईपीएस):
- यह इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय की एक योजना है।
- यह योजना मुख्य रूप से PV सेल और मॉड्यूल पर पूंजीगत व्यय के लिये सब्सिडी प्रदान करती है- विशेष आर्थिक क्षेत्रों (SEZ) में निवेश के लिये 20% तथा गैर-SEZ में 25%।
- यह इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय की एक योजना है।
आगे की राह
- चूँकि भारत सौर PV मॉड्यूल के विकास में महत्त्वपूर्ण प्रगति कर रहा है, लेकिन इसके लिये विनिर्माण केंद्र बनने हेतु इसे अधिक नीतिगत हस्तक्षेप की आवश्यकता होगी, जैसे घरेलू विकसित प्रौद्योगिकियों को विकसित करना जो अल्पावधि में उद्योग के साथ काम कर सकें। उन्हें प्रशिक्षित मानव संसाधन, प्रक्रिया सीखने, सही परीक्षण के माध्यम से मूल-कारण विश्लेषण एवं लंबी अवधि में भारत की अपनी प्रौद्योगिकियों का विकास करना शामिल है।
- इसके लिये कई समूहों में पर्याप्त निवेश की आवश्यकता होगी जो उद्योग की तरह काम करने और प्रबंधन की स्थितियों, उपयुक्त परिलब्धियों और स्पष्ट वितरण का काम कर सकें।
विगत वर्षों के प्रश्नप्रश्न: 'घरेलू सामग्री की आवश्यकता' शब्द को कभी-कभी समाचारों में देखा जाता है, यह किस संदर्भ में है? (2017) (a) हमारे देश में सौर ऊर्जा उत्पादन का विकास करना उत्तर: A व्याख्या:
प्रश्न. भारत में सौर ऊर्जा की प्रचुर संभावनाएँ हैं, हालाँकि इसके विकास में क्षेत्रीय भिन्नताएँँ हैं। विस्तृत वर्णन कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2020) |