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डेली न्यूज़

  • 09 Jun, 2022
  • 63 min read
शासन व्यवस्था

सुशासन

प्रिलिम्स के लिये:

नागरिक केंद्रित शासन, जन समर्थ पोर्टल 

मेन्स के लिये:

सुशासन और संबद्ध चुनौतियों का महत्त्व 

चर्चा में क्यों? 

प्रधानमंत्री ने एकीकृत क्रेडिट पोर्टल 'जन समर्थ' का शुभारंभ करते हुए कहा कि भारत नागरिक-केंद्रित शासन के दृष्टिकोण के साथ आगे बढ़ रहा है, जो कि सुशासन का मूल पहलू है और यह सरकार-केंद्रित दृष्टिकोण को पीछे छोड़ रहा है। 

जन समर्थ पोर्टल: 

  • यह पोर्टल वित्त मंत्रालय की एक पहल है , जो सरकार की एक दर्जन से अधिक क्रेडिट-लिंक्ड योजनाओं के लिये वन-स्टॉप गेटवे है और लाभार्थियों को सीधे उधारदाताओं से जोड़ती है। 
  • यह पोर्टल क्रेडिट-लिंक्ड सरकारी योजनाओं के तहत ऋण आवेदन और प्रसंस्करण के लिये एकल मंच के रूप में कार्य करेगा। 
  • इस पोर्टल से छात्रों, किसानों, व्यापारियों, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम के साथ-साथ उद्यमियों के जीवन में सुधार होगा तथा स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र में भी मदद मिलेगी। 
    • इस पोर्टल को लॉन्च करने का उद्देश्य कई क्षेत्रों में समावेशी वृद्धि और विकास को प्रोत्साहित करना है। 

सुशासन

  • परिचय: 
    • ‘शासन’ निर्णय लेने की एवं जिसके द्वारा निर्णय लागू किये जाते हैं, की प्रक्रिया है। 
      • शासन का उपयोग कई संदर्भों में किया जा सकता है जैसे कि कॉर्पोरेट शासन, अंतर्राष्ट्रीय शासन, राष्ट्रीय शासन और स्थानीय शासन। 
    • सुशासन को ‘विकास के लिये देश के आर्थिक एवं सामाजिक संसाधनों के प्रबंधन में शक्ति का प्रयोग करने के तरीके’ के रूप में परिभाषित किया गया है। 
    • सुशासन की अवधारणा चाणक्य के युग में भी मौज़ूद थी।  
    • उन्होंने अर्थशास्त्र में इसका विस्तार से उल्लेख किया। 
    • नागरिक केंद्रित प्रशासन सुशासन की नींव पर आधारित होता है। 
  • सुशासन के 8 सिद्धांत: 
    • भागीदारी: 
      • लोगों को वैध संगठनों या प्रतिनिधियों के माध्यम से अपनी राय देने में सक्षम होना चाहिये। 
      • इसमें पुरुष एवं महिलाएँ, समाज के कमज़ोर वर्ग, पिछड़े वर्ग, अल्पसंख्यक आदि शामिल हैं। 
      • भागीदारी का तात्पर्य संघ एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से भी है। 
    • कानून का शासन: 
      • कानूनी ढाँचे को निष्पक्ष रूप से लागू किया जाना चाहिये, विशेषकर मानवाधिकार कानूनों के परिप्रेक्ष्य में। 
      • ‘कानून के शासन’ के बिना राजनीति, मत्स्य न्याय (Matsya Nyaya) के सिद्धांत का पालन करेगी जिसका अर्थ है ताकतवर कमज़ोर पर हावी होगा। 
    • सहमति उन्मुख: 
      • सर्वसम्मति उन्मुख निर्णय लेने से यह सुनिश्चित होता है कि भले ही प्रत्येक व्यक्ति, जो वह चाहता है उसे प्राप्त न कर पाए परंतु सभी को सामान्य न्यूनतम संसाधन उपलब्ध कराए जा सकते हैं, जो किसी अन्य के लिये हानिकारक भी नहीं होगा। 
      • यह एक समुदाय के सर्वोत्तम हितों पर व्यापक आम सहमति को पूरा करने के लिये अलग-अलग हितों की मध्यस्थता करता है। 
    • भागीदारी और समावेशिता: 
      • सुशासन एक समतामूलक समाज को बढ़ावा देता है। 
      • लोगों को अपना जीवन-स्तर सुधारने या उसको बनाए रखने के अवसर प्राप्त होने चाहिये। 
    • प्रभावशीलता और दक्षता: 
      • प्रक्रियाओं और संस्थानों को ऐसे परिणाम देने में सक्षम होना चाहिये जो उनके समुदाय की आवश्यकताओं को पूरा करते हों। 
      • अधिकतम उत्पादन के लिये समुदाय के संसाधनों का प्रभावी ढंग से उपयोग किया जाना चाहिये। 
    • जवाबदेही: 
      • सुशासन का उद्देश्य लोगों की बेहतरी है और यह सरकार द्वारा लोगों के प्रति जवाबदेही सुनिश्चित किये बगैर नहीं किया सकता है। 
      • सरकारी संस्थानों, निजी क्षेत्रों और नागरिक समाज संगठनों द्वारा सार्वजनिक एवं संस्थागत हितधारकों के प्रति जवाबदेही सुनिश्चित की जानी चाहिये। 
    • पारदर्शिता: 
      • सूचनाओं की प्राप्ति आम जनता के लिये सुलभ होनी चाहिये और यह उनके समझने और निगरानी योग्य होनी चाहिये। 
      • इसका अर्थ मुक्त मीडिया और उन तक सूचना की समग्र पहुँच भी है। 
    • जवाबदेही: 
      • संस्थानों और प्रक्रियाओं के तहत उचित समयावधि में सभी हितधारकों को सेवा प्रदान कि जानी चाहिये। 

सुशासन क्यों आवश्यक है? 

  • शासन में सुधार विकास प्रक्रिया का एक हिस्सा है। 
  • यह तर्क दिया जाता है कि प्रशासन में भागीदारी, शासन में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित कर शासन में व्यवस्थित परिवर्तन द्वारा भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया जा सकता है। 
  • सुशासन के अधिकार को नागरिकों के अधिकारों का एक अनिवार्य हिस्सा माना जाता है। 
  • रिपोर्टों से पता चला है कि शिक्षा, स्वास्थ्य, पानी, स्वच्छता, ग्रामीण रोज़गार आदि के लिये सार्वजनिक क्षेत्र के परिव्यय में काफी वृद्धि हुई है, जिसके वांछित परिणाम नहीं मिले हैं। इस विरोधाभास के केंद्र में 'पारदर्शी और जवाबदेह शासन' का मुद्दा शामिल है। 
  • सुशासन के बिना कोई भी विकासात्मक योजना नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार नहीं ला सकती है। 
  • लचर शासन व्यवस्था गरीबी उत्पन्न करती है और उसे बढ़ावा भी देती है। इस बात के प्रमाण मिल रहे हैं कि आर्थिक सुधारों का लाभ समान रूप से नहीं मिल रहा है, साथ ही क्षेत्रीय और सामाजिक-सांस्कृतिक असमानताएँ बढ़ी हैं। 

सुशासन के लिये चुनौतियाँ: 

  • सिविल सेवकों की मनोवृत्ति संबंधी समस्याएंँ: द्वितीय ARC रिपोर्ट के अनुसार, सिविल सेवक अनम्य, आत्मकेंद्रित, अंतर्मुखी हो गए हैं। 
  • जवाबदेही की कमी: बहुत कम ही दोषी अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाती है। इस संबंध में कोई प्रदर्शन मूल्यांकन संरचना नहीं है। 
  • लालफीताशाही: नौकरशाही को उन नियमों और प्रक्रियाओं का पालन करना पड़ता है जो सुशासन के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, हालाँकि कभी-कभी ये नियम और प्रक्रियाएँ गलत एवं बोझिल होती हैं तथा वे अपने अस्तित्व के उद्देश्य की पूर्ति नहीं करती हैं। 
  • नागरिकों के अधिकारों और कर्तव्यों के बारे में जागरूकता का निम्न स्तर: अधिकारों और कर्तव्यों के बारे में जागरूकता यह सुनिश्चित करेगी कि अधिकारी एवं अन्य नागरिक अपने कर्तव्यों का प्रभावी तथा ईमानदारी से निर्वहन करें। 
  • कानूनों और नियमों का अप्रभावी कार्यान्वयन: नागरिकों और समाज के कमज़ोर वर्गों के अधिकारों की रक्षा के लिये हमारे पास बड़ी संख्या में कानून हैं, लेकिन इन कानूनों का कमज़ोर कार्यान्वयन सरकारी तंत्र में नागरिकों के विश्वास को कम करता है।  

सिफारिशें: 

  • प्रशासन को अधिक नागरिक-केंद्रित बनाने के लिये द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (2nd ARC) ने निम्नलिखित रणनीतियों, प्रक्रियाओं, उपकरणों और तंत्रों की जाँंच की है। 
    • शासन को 'नागरिक-केंद्रित' बनाने के लिये पुन: अभियांत्रिकी प्रक्रियाएंँ। 
    • उपयुक्त आधुनिक प्रौद्योगिकी को अपनाना। 
    • सूचना का अधिकार। 
    • सिटीज़न चार्टर्स। 
    • सेवाओं का स्वतंत्र मूल्यांकन। 
    • शिकायत निवारण तंत्र। 
    • सक्रिय नागरिक भागीदारी - सार्वजनिक-निजी भागीदारी। 

संबंधित पहल: 

आगे की राह 

  • देश में सुशासन बहाल करने के लिये 'अंत्योदय' के गांधीवादी सिद्धांत को प्रधानता देने हेतु हमारी राष्ट्रीय रणनीति में सुधार करने की आवश्यकता है। 
  • भारत को शासन में ईमानदारी को विकसित करने पर भी ध्यान देना चाहिये, जो शासन को अधिक नैतिक बनाएगा। 
  • सरकार को सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास के आदर्शों पर काम करना जारी रखना चाहिये ताकि समावेशी व सतत् विकास हो सके। 
  • सभी सार्वजनिक कार्यालयों को लोगों के उनके पास आने की प्रतीक्षा करने के बज़ाय लक्षित लाभार्थियों के लिये योजनाएंँ और सुधार पहल करने की आवश्यकता है। 

स्रोत: द हिंदू 


भारतीय अर्थव्यवस्था

बैड बैंक

प्रिलिम्स के लियें:

बैड बैंक, गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ, एनएआरसीएल। 

मेन्स के लिये:

बैड बैंक और संबद्ध चुनौतियाँ। 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में वित्त मंत्रालय ने घोषणा की है कि राष्ट्रीय परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनी (NARCL), भारतीय ऋण समाधान कंपनी (IDRCL) के साथ मिलकर बैंकों के बैड लोन के पहले सेट का समाधान करने का प्रयास करेगी। 

  • पिछले कुछ वर्षों में भारतीय बैंकों की बैलेंसशीट की स्थिति में काफी सुधार हुआ है, उनका सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (GNPA) अनुपात वित्त वर्ष 2018 में 11.2% से घटकर वित्त वर्ष 2022 की दूसरी तिमाही में 6.9% हो गया है। 
  • IDRCL एक सेवा कंपनी/परिचालन इकाई है जो परिसंपत्ति का प्रबंधन करती है और बाज़ार के पेशेवरों तथा विशेषज्ञों को इसमें शामिल करती है। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक (PSB) एवं सार्वजनिक वित्तीय संस्थानों के पास अधिकतम 49% हिस्सेदारी होती है और शेष हिस्सेदारी निजी क्षेत्र के ऋणदाताओं के पास होती है। 
  • सरकार पहले ही NARCL द्वारा जारी की जाने वाली सुरक्षा रसीदों (SR) के लिये 30,600 करोड़ रुपए की संप्रभु गारंटी की घोषणा कर चुकी है, जो बैंकों से 2 लाख करोड़ रुपए के गैर-निष्पादित ऋण की खरीदारी करेगी। 

गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (NPA): 

  • NPA उन ऋणों या अग्रिमों के वर्गीकरण को संदर्भित करता है, जो डिफाॅल्ट हो जाते हैं या जिनके मूलधन या ब्याज़ का अनुसूचित भुगतान बकाया होता है। 
  • अधिकतर मामलों में ऋण को गैर-निष्पादित के रूप में तब वर्गीकृत किया जाता है, जब ऋण का भुगतान न्यूनतम 90 दिनों की अवधि के लिये न किया गया हो। 
  • सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्ति उन सभी ऋणों का योग है जिन्हें वित्तीय संस्थान से ऋण प्राप्त करने वाले व्यक्तियों द्वारा चुकाया नहीं गया है। 
  • शुद्ध गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ वह राशि है जो सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों से ‘प्रोविज़न अमाउंट’ की कटौती के बाद प्राप्त होती है। 

बैड बैंक: 

  • बैड बैंक एक वित्तीय इकाई है जिसे बैंकों से गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (NPA), या बैड लोन खरीदने के लिये स्थापित किया गया है। 
  • बैड बैंक स्थापित करने का उद्देश्य बैंकों को उनकी बैलेंसशीट से बैड लोन को समाप्त कर बोझ को कम करना है और उन्हें बिना किसी बाधा के ग्राहकों को फिर से उधार देना है। 
  • बैंक से बैड लोन की खरीद के बाद बैड बैंक NPA को पुनर्गठित करने और उन निवेशकों को बेचने का प्रयास कर सकता है जो इसे खरीदने में रुचि रखते हैं। 
  • बैड बैंक अपने परिचालन में लाभ कमा सकता है यदि वह वाणिज्यिक बैंक से ऋण प्राप्त करने के लिये भुगतान की तुलना में अधिक कीमत पर ऋण का प्रबंधन करता है। 
  • हालांँकि आमतौर पर एक बैड बैंक का प्राथमिक उद्देश्य लाभ कमाना नहीं होता है, इसका उद्देश्य बैंकों पर बोझ को कम करना, तनावग्रस्त संपत्तियों का रख-रखाव करना और उन्हें अधिक सक्रिय रूप से उधार देना है। 

बैड बैंक के लाभ और हानि: 

  • लाभ: 
    • एकल अनन्य इकाई (Single Exclusive Entity): 
      • यह एक ही अनन्य इकाई के तहत बैंकों के सभी बैड लोन को समेकित करने में मदद कर सकता है। 
      • बैड बैंक के विचार को अतीत में अमेरिका, जर्मनी, जापान और अन्य देशों में आजमाया गया है। 
      • 2008 के वित्तीय संकट के बाद यू.एस. ट्रेज़री द्वारा कार्यान्वित संकटग्रस्त संपत्ति कार्यक्रम, जिसे TRP के रूप में भी जाना जाता है, को एक बैड बैंक के विचार के अंतर्गत तैयार किया गया था। 
    • मुक्त पूंजी उपयोग की स्वतंत्रता: 
      • संकटग्रस्त बैंकों के बही-खाते से डूबे हुए ऋणों को समाप्त कर बैड बैंक 5 लाख करोड़ रुपए से अधिक की मुक्त पूंजी की मदद कर सकता है, जिन्हें इन फँंसे हुए ऋणों के प्रावधानों के रूप में बैंकों द्वारा बंद कर दिया गया है। 
      • इससे बैंकों को अपने ग्राहकों को अधिक ऋण देने के लिये मुक्त पूंजी का उपयोग करने की स्वतंत्रता मिलेगी। 
    • पूंजी बफर में सुधार: 
      • यह कार्य बैंक के भंडार को बढ़ाकर नहीं बल्कि बैंकों के पूंजी बफर में सुधार कर बैंक ऋण प्रदान करने में मदद कर सकता है। 
      • इस हद तक कि सरकार द्वारा स्थापित एक नया बैड बैंक पूंजी को मुक्त करके बैंकों के पूंजी बफर में सुधार कर सकता है, यह अधिक आत्मविश्वास के साथ फिर से उधार देने में बैंकों की मदद कर सकता है। 
  • हानि: 
    • सरकार की एक ईकाई से दूसरी इकाई में संपत्ति का हस्तांतरण: 
      • सरकार द्वारा समर्थित बैड बैंक केवल सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों जो सरकार के स्वामित्व में हैं, के हाथों से बैड एसेट्स को एक बैड बैंक में स्थानांतरित कर देगा, जिस पर फिर से सरकार का स्वामित्व होगा। 
      • यह मानने का कोई कारण नहीं है कि सरकार की एक ईकाई से दूसरी ईकाई में संपत्ति के हस्तांतरण से इन अशोध्य ऋणों का सफल समाधान हो जाएगा, जब इन संस्थाओं के सामने प्रोत्साहन का सेट अनिवार्य रूप से समान है। 
    • स्वामित्व की प्रकृति: 
      • निजी बैंकों के विपरीत, जो उन व्यक्तियों के स्वामित्व में हैं जिनके पास उन्हें अच्छी तरह से प्रबंधित करने के लिये मज़बूत वित्तीय स्थिति है, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का प्रबंधन नौकरशाहों द्वारा किया जाता है, जो अक्सर इन उधारदाताओं की लाभप्रदता सुनिश्चित करने के लिये समान प्रतिबद्धता नहीं रखते हैं। 
      • उस हद तक कि एक बैड बैंक के माध्यम से बैंकों को बाहर निकालने से वास्तव में बैड लोन संकट की मूल समस्या का समाधान नहीं होता है। 
    • नैतिकता: 
      • जिन वाणिज्यिक बैंकों को एक बैड बैंक द्वारा गारंटी दी जाती है, उनके द्वारा अपनी कार्यप्रणाली को सुधारने की बहुत कम संभावना होती है 
      • आखिरकार एक बैड बैंक द्वारा प्रदान किया गया सुरक्षा जाल इन बैंकों को लापरवाही से उधार देने के और अधिक कारण देता है तथा इस प्रकार यह बैड लोन संकट को और बढ़ा देता है। 

चुनौतियाँ: 

  • गतिशील पूंजी: 
    • महामारी-ग्रस्त अर्थव्यवस्था में बैड संपत्ति के लिये खरीदारों को ढूँढना एक चुनौती होगी, खासकर जब सरकारें राजकोषीय घाटे के मुद्दे का सामना कर रही हैं। 
  • अंतर्निहित मुद्दे की अनदेखी: 
    • शासनिक सुधारों के बिना सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक (कुल NPA में से 86% के लिये ज़िम्मेदार हैं) अतीत की तरह व्यवसाय कर सकते हैं और बैड ऋणों को समाप्त कर सकते हैं। 
    • बैड बैंक का विचार सरकारी मद (सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों) से दूसरे (बैड बैंक) को ऋण स्थानांतरित करने जैसा है। 
  • पुनर्पूंजीकरण के माध्यम से निपटने का प्रावधान: 
    • केंद्र सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में बैंकों में पुनर्पूंजीकरण के माध्यम से लगभग 2.6 लाख करोड़ रुपए का निवेश किया है। 
    • बैड बैंक की अवधारणा का विरोध करने वाले लोगों का कहना है कि सरकार द्वारा बैंकों की बैलेंसशीट को ठीक करने के लिये पुनर्पूंजीकरण की व्यवस्था की गई है, इसलिये बैड बैंक की आवश्यकता नहीं है। 
  • बाज़ार से संबंधित मुद्दे: 
    • वाणिज्यिक बैंकों से बैड बैंक में बैड संपत्ति का स्थानांतरण बाज़ार द्वारा निर्धारित नहीं किया जाएगा। 

आगे की राह 

  • जब तक सार्वजनिक क्षेत्र का बैंक प्रबंधन राजनेताओं और नौकरशाहों के प्रति निष्ठावान रहेगा तब तक उनके व्यवसाय में घाटे की स्थिति बनी रहेगी और उनके द्वारा मितव्ययी (Prudential) मानदंडों के आधार पर उधार दिया जाना जारी रहेगा। इसलिये एक बैड बैंक की स्थापना के बारे में बहस को बैंकिंग क्षेत्र में समग्र सुधारों के उचित कार्यान्वयन से पहले किया जाना चाहिये 
  • अतः बैड बैंक एक अच्छा विचार है, लेकिन मुख्य चुनौती बैंकिंग प्रणाली में अंतर्निहित संरचनात्मक समस्याओं से निपटने और उसके अनुसार सुधारों की घोषणा करने में है। 

स्रोत: द हिंदू 


भारतीय अर्थव्यवस्था

न्यूनतम समर्थन मूल्य

प्रिलिम्स के लिये:

MSP और इसकी गणना, खरीफ मौसम, रबी मौसम। 

मेन्स के लिये:

MSP और संबद्ध मुद्दों का महत्त्व। 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में केंद्र ने खरीफ विपणन वर्ष 2022-23 के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को मंज़ूरी दी है, जिसमें कहा गया है कि दरें उत्पादन की औसत लागत का कम-से-कम 1.5 गुना होंगी। 

  • 14 खरीफ फसलों की दरों में 4% से 8% तक की बढ़ोतरी की गई है। 

खरीफ सीज़न: 

  • इस सीज़न में फसलें जून से जुलाई माह तक बोई जाती हैं और कटाई सितंबर-अक्तूबर माह के बीच की जाती है। 
  • फसलें: इसके तहत चावल, मक्का, ज्वार, बाजरा, अरहर, मूँग, उड़द, कपास, जूट, मूँगफली और सोयाबीन आदि शामिल हैं। 
  • राज्य: असम, पश्चिम बंगाल, ओडिशा के तटीय क्षेत्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, केरल और महाराष्ट्र। 

न्यूनतम समर्थन मूल्य: 

  • परिचय: 
    • न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) वह दर है जिस पर सरकार किसानों से फसल खरीदती है और यह किसानों की उत्पादन लागत से कम-से-कम डेढ़ गुना अधिक होती है। 
    • ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’- किसी भी फसल के लिये वह ‘न्यूनतम मूल्य’ है, जिसे सरकार किसानों के लिये लाभकारी मानती है और इसलिये इसके माध्यम से किसानों का ‘समर्थन’ करती है। 
  • MSP के तहत फसलें: 
    • ‘कृषि लागत और मूल्य आयोग’ द्वारा सरकार को 22 अधिदिष्ट फसलों (Mandated Crops) के लिये ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ (MSP) तथा गन्ने के लिये 'उचित और लाभकारी मूल्य' (FRP) की सिफारिश की जाती है। 
      • कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (CACP) कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय का एक संलग्न कार्यालय है। 
    • अधिदिष्ट फसलों में 14 खरीफ फसलें, 6 रबी फसलें और दो अन्य वाणिज्यिक फसलें शामिल हैं। 
    • इसके अलावा लाही और नारियल के न्यूनतम समर्थन मूल्यों (MSPs) का निर्धारण क्रमशः सरसों और सूखे नारियल के न्यूनतम समर्थन मूल्यों (MSPs) के आधार पर किया जाता है। 
  • MSP की सिफारिश संबंधी कारक: 
    • किसी भी फसल के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की सिफारिश करते समय ‘कृषि लागत एवं मूल्य आयोग’ द्वारा कृषि लागत समेत विभिन्न कारकों पर विचार किया जाता है। 
    • यह फसल के लिये आपूर्ति एवं मांग की स्थिति, बाज़ार मूल्य प्रवृत्तियों (घरेलू व वैश्विक), उपभोक्ताओं के निहितार्थ (मुद्रास्फीति), पर्यावरण (मिट्टी तथा पानी के उपयोग) और कृषि एवं गैर-कृषि क्षेत्रों के बीच व्यापार की शर्तों जैसे कारकों पर भी विचार करता है। 
  • तीन प्रकार की उत्पादन लागत: 
    • CACP द्वारा राज्य और अखिल भारतीय दोनों स्तरों पर प्रत्येक फसल के लिये तीन प्रकार की उत्पादन लागतों का अनुमान लगाया जाता है। 
    • ‘A2’ 
      • इसके तहत किसान द्वारा बीज, उर्वरकों, कीटनाशकों, श्रम, पट्टे पर ली गई भूमि, ईंधन, सिंचाई आदि पर किये गए प्रत्यक्ष व्यय को शामिल किया जाता है। 
    • ‘A2+FL’ 
      • इसके तहत ‘A2’ के साथ-साथ अवैतनिक पारिवारिक श्रम का एक अधिरोपित मूल्य शामिल किया जाता है। 
    • ‘C2’ 
      • यह एक अधिक व्यापक लागत है, क्योंकि इसके अंतर्गत ‘A2+FL’ में किसान की स्वामित्त्व वाली भूमि और अचल संपत्ति के किराए तथा ब्याज को भी शामिल किया जाता है। 
    • न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की सिफारिश करते समय CACP द्वारा ‘A2+FL’ और ‘C2’ दोनों लागतों पर विचार किया जाता है। 
      • CACP द्वारा ‘A2+FL’ लागत की ही गणना प्रतिफल के लिये की जाती है। 
      • जबकि ‘C2’ लागत का उपयोग CACP द्वारा मुख्य रूप से बेंचमार्क लागत के रूप में किया जाता है, यह देखने के लिये कि क्या उनके द्वारा अनुशंसित MSP कम-से-कम कुछ प्रमुख उत्पादक राज्यों में इन लागतों को कवर करते हैं। 
  • केंद्र सरकार की आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (CCEA) MSP के स्तर और CACP द्वारा की गई अन्य सिफारिशों पर अंतिम निर्णय लेती है। 
  • MSP की आवश्यकता: 
    • वर्ष 2014 और वर्ष 2015 में लगातार दो सूखे (Droughts) कि घटनाओं के कारण किसानों को वर्ष 2014 के बाद से वस्तु की कीमतों में लगातार गिरावट का सामना करना पड़ा। 
    • विमुद्रीकरण (Demonetisation) और ’वस्तु एवं सेवा कर’ ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था, मुख्य रूप से गैर-कृषि क्षेत्र के साथ-साथ कृषि क्षेत्र को भी, पंगु बना दिया है। 
    • वर्ष 2016-17 के बाद अर्थव्यवस्था में जारी मंदी और उसके बाद कोविड महामारी के कारण अधिकांश किसानों के लिये परिदृश्य विकट बना हुआ है। 
    • डीज़ल, बिजली एवं उर्वरकों के लिये उच्च इनपुट कीमतों ने उनके संकट को और बढ़ाया ही है। 

भारत में MSP व्यवस्था से संबद्ध समस्याएँ: 

  • सीमितता: 23 फसलों के लिये MSP की आधिकारिक घोषणा के विपरीत केवल दो- चावल और गेहूँ की खरीद की जाती है क्योंकि इन्हीं दोनों खाद्यान्नों का वितरण NFSA के तहत किया जाता है। शेष अन्य फसलों के लिये यह अधिकांशतः तदर्थ व महत्त्वहीन ही है। 
  • अप्रभावी रूप से लागू: शांता कुमार समिति ने वर्ष 2015 में अपनी रिपोर्ट में बताया था कि किसानों को MSP का मात्र 6% ही प्राप्त हो सका, जिसका अर्थ यह है कि देश के 94% किसान MSP के लाभ से वंचित रहे हैं। 
  • खरीद मूल्य के रूप में: मौजूदा MSP व्यवस्था का घरेलू बाज़ार की कीमतों से कोई संबंध नहीं है। इसका एकमात्र उद्देश्य NFSA की आवश्यकताओं की पूर्ति करना है, जिससे इसका अस्तित्व न्यूनतम समर्थन मूल्य के बजाय एक खरीद मूल्य के रूप में है। 
  • गेहूँ और धान की प्रमुखता वाली कृषि: चावल और गेहूँ के पक्ष में अधिक झुकी MSP प्रणाली इन फसलों के अति-उत्पादन की ओर ले जाती है तथा किसानों को अन्य फसलों एवं बागवानी उत्पादों की खेती के लिये हतोत्साहित करती है, जबकि उनकी मांग अधिक है तथा वे किसानों की आय में वृद्धि में उल्लेखनीय योगदान कर सकते हैं। 
  • मध्यस्थ-आश्रित व्यवस्था: MSP-आधारित खरीद प्रणाली मध्यस्थों/बिचौलियों, कमीशन एजेंटों और APMC अधिकारियों पर निर्भर है, जिसे छोटे किसान अपनी पहुँच के लिये कठिन व जटिल पाते हैं। 

आगे की राह 

  • एक वास्तविक न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिये आवश्यक है कि सरकार हमेशा तब हस्तक्षेप करे जब भी बाज़ार की कीमतें पूर्वनिर्धारित स्तर से नीचे गिरती हैं, मुख्य रूप से अतिरिक्त उत्पादन और अधिक आपूर्ति के मामले में अथवा जब अंतर्राष्ट्रीय व राष्ट्रीय कारकों के कारण मूल्य में गिरावट आती है। 
  • MSP को उन कई फसलों के लिये प्रोत्साहन मूल्य की तरह भी उपयोग किया जा सकता है जो पोषण सुरक्षा के लिये वांछनीय हैं (जैसे मोटे अनाज, दाल एवं खाद्य तेल) और जिनके लिये भारत आयात पर निर्भर है। 
  • अधिक पोषण गुणवत्ता वाले पशुपालन (मत्स्य पालन सहित) और फलों एवं सब्जियों में अधिक निवेश करना विवेकपूर्ण होगा। 
    • निवेश करने का सबसे अच्छा तरीका निजी क्षेत्र को क्लस्टर दृष्टिकोण के आधार पर कुशल मूल्य शृंखला के निर्माण के लिये प्रोत्साहित करना है। 
  • सरकार को कृषि मूल्य निर्धारण नीति में परिवर्तन लाना चाहिये जहाँ कृषि मूल्य निर्धारण आंशिक रूप से राज्य-समर्थित हो और आंशिक रूप से बाज़ार-प्रेरित। 
    • ऐसा करने का एक तरीका अंतर भुगतान योजना हो सकती है जैसा मध्य प्रदेश सरकार द्वारा ‘भावांतर भुगतान योजना’ (BBY) के रूप में कार्यान्वित की जा रही है। 

विगत वर्ष के प्रश्न: 

प्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)  

  1. सभी अनाजों, दालों और तिलहनों के मामले में भारत के किसी भी राज्य/संघ राज्य क्षेत्र में न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर खरीद असीमित है।  
  2. अनाज और दालों के मामले में MSP किसी भी राज्य / केंद्रशासित प्रदेश में उस स्तर पर तय किया जाता है जहाँ बाज़ार मूल्य कभी नहीं बढ़ेगा। 

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? 

(a) केवल 1  
(b) केवल 2  
(c) 1 और 2 दोनों  
(d) न तो 1 और न ही 2 

उत्तर:D 

व्याख्या:  

  • भारत सरकार कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP) की सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए प्रत्येक वर्ष दोनों फसल मौसमों में 22 प्रमुख कृषि वस्तुओं के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की घोषणा करती है 
  • कुल खरीद मात्रा आमतौर पर उस विशेष वर्ष/मौसम के लिये वस्तु के वास्तविक उत्पादन के 25% से अधिक नहीं होनी चाहिये। 25% की सीमा से अधिक खरीद के लिये कृषि विभाग (DAC) के पूर्व अनुमोदन की आवश्यकता होगी। अतः कथन 1 सही नहीं है। 
  • MSP को विभिन्न राज्यों द्वारा दिये गए MSP प्रस्तावों के औसत के आधार पर केंद्र सरकार द्वारा तय किया जाता है, जिनमें से कुछ प्रस्ताव केंद्र की सिफारिश से अधिक हो सकते हैं। जबकि इनपुट लागत पर आधारित प्रस्ताव अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होते हैं, मूल्य असमानता से बचने के लिये MSP को तय किया जाता है। जब बज़ाार की कीमतें MSP से नीचे के स्तर तक गिर जाती हैं, तो सरकारी एजेंसियाँ किसानों की सुरक्षा के लिये उपज को खरीद लेती हैं। ऐसे में बाज़ार में कीमतें MSP से ऊपर जा सकती हैं। अतः कथन 2 सही नहीं है। अतः विकल्प D सही है। 

प्रश्न. भारत में निम्नलिखित में से किसे कृषि में सार्वजनिक निवेश माना जा सकता है? (2020) 

  1. सभी फसलों की कृषि उपज के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करना
  2. प्राथमिक कृषि ऋण समितियों का कंप्यूटरीकरण
  3. सामाजिक पूंजी का विकास
  4. किसानों को मुफ्त बिजली की आपूर्ति
  5. बैंकिंग प्रणाली द्वारा कृषि ऋण की छूट
  6. सरकारों द्वारा कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं की स्थापना

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: 

(a) केवल 1, 2 और 5 
(b) केवल 1, 3, 4 और 5 
(c) केवल 2, 3 और 6 
(d) 1, 2, 3, 4, 5 और 6 

उत्तर: C 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 


जैव विविधता और पर्यावरण

दिल्ली-एनसीआर में कोयले के उपयोग पर प्रतिवंध

प्रिलिम्स के लिये:

वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग, ग्रीनहाउस गैस, पार्टिकुलेट मैटर, नाइट्रोजन ऑक्साइड, CO2, CO, कोयला, प्राकृतिक गैस 

मेन्स के लिये:

वायु प्रदूषण, पर्यावरण प्रदूषण और अवनयन के प्रभाव 

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) ने 1 जनवरी, 2023 से पूरे दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में औद्योगिक, घरेलू और अन्य विविध अनुप्रयोगों में कोयले के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने के निर्देश जारी किये हैं। 

  • यह कदम दिल्ली एनसीआर में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिये उठाया गया है। 
  • दिल्ली दुनिया के सबसे प्रदूषित राजधानी शहरों में से एक है। 
    • प्रदूषण सूचकांक के अनुसार, राजधानी, उसके पड़ोसी शहरों- गुड़गांँव, नोएडा और गाजियाबाद में औसतन वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) 300-400 के स्तर पर है। 

पहल का महत्त्व: 

  • कोयले की बचत: 
    • प्राकृतिक गैस और बायोमास जैसे स्वच्छ ईंधन का उपयोग न केवल वार्षिक रूप से 1.7 मिलियन टन कोयले की बचत में मदद करेगा, बल्कि पार्टिकुलेट मैटर (PM), नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx), CO2 और कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) सहित अन्य प्रदूषकों को भी कम करने में सहायक होगा। 
  • वायु प्रदूषण से निपटने में मदद: 
    • कोयले से होने वाला भारी प्रदूषण एनसीआर और आसपास के क्षेत्रों में वायु की खराब गुणवत्ता में एक महत्त्वपूर्ण योगदानकर्त्ता है तथा इस प्रकार समय के साथ एक स्वच्छ ईंधन के उपयोग पर बल देने की आवश्यकता महसूस की गई है। 
      • प्रत्येक वर्ष जीवाश्म ईंधन से होने वाला वायु प्रदूषण लाखों लोगों की जान लेता है, मानव में स्ट्रोक, फेफड़ों के कैंसर और अस्थमा के खतरे को बढ़ाता है, जिसके इलाज़ हेतु भारी मात्रा में पैसा खर्च करना पड़ता है। 
  • प्राकृतिक गैस को बढ़ावा: 
    • ईंधन के रूप में कोयले के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने के फैसले से एनसीआर में ईंधन के रूप में प्राकृतिक गैस की संभावनाएँ बढ़ेंगी। 
      • पेट्रोलियम योजना और विश्लेषण प्रकोष्ठ के अनुसार, भारत में 43 घन मीटर की तुलना में वैश्विक प्रति व्यक्ति प्राकृतिक गैस की खपत 496 घन मीटर है। 

वायु प्रदूषण से निपटने के लिये उठाए गए कदम: 

  • स्वच्छ ईंधन को बढ़ावा देना: 
    • CAQM उद्योगों को पाइप्ड प्राकृतिक गैस और अन्य स्वच्छ ईंधन में स्थानांतरित करने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। 
    • एनसीआर में विभिन्न उद्योगों द्वारा सालाना लगभग 1.7 मिलियन टन कोयले की खपत होती है, जिसमें लगभग 1.4 मिलियन टन की खपत अकेले छह प्रमुख औद्योगिक लों में होती है। 
  • सर्वोच्च न्यायालय का आदेश: 
    • दिसंबर 2021 में सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को दिल्ली और एनसीआर में हर साल होने वाले वायु प्रदूषण के खतरे का स्थायी समाधान खोजने का आदेश दिया। 
    • तद्नुसार CAQM ने ऐसे सभी सुझावों और प्रस्तावों पर विचार-विमर्श करने के लिये एक विशेषज्ञ समूह का गठन किया। 
    • विशेषज्ञ समूह ने अत्यधिक प्रदूषणकारी जीवाश्म ईंधन जैसे कोयला और अनिवार्य स्वच्छ ईंधन के उपयोग को यथासंभव सीमा तक चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने की सिफारिश की है। 

वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने हेतु भारत की पहलें: 

कोयले की मुख्य विशेषताएँ: 

  • यह सबसे अधिक मात्रा में पाया जाने वाला जीवाश्म ईंधन है। इसका उपयोग घरेलू ईंधन के रूप में लोहा, इस्पात, भाप इंजन जैसे उद्योगों में और बिजली पैदा करने के लिये किया जाता है। कोयले से उत्पन्न बिजली को ‘थर्मल पावर’ कहते हैं।
  • आज हम जिस कोयले का उपयोग कर रहे हैं, वह लाखों साल पहले बना था, जब विशाल फर्न और दलदल पृथ्वी की परतों के नीचे दब गए थे। इसलिये कोयले को बरीड सनशाइन (Buried Sunshine) कहा जाता है। 
  • दुनिया के प्रमुख कोयला उत्पादकों में चीन, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया और भारत शामिल हैं। 
  • भारत के कोयला उत्पादक क्षेत्रों में झारखंड में रानीगंज, झरिया, धनबाद और बोकारो शामिल हैं। 
  • कोयले को चार श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है: एन्थ्रेसाइट, बिटुमिनस, सबबिटुमिनस और लिग्नाइट। यह रैंकिंग कोयले में मौजूद कार्बन के प्रकार व मात्रा और कोयले की उष्मा ऊर्जा की मात्रा पर निर्भर करती है। 

विगत वर्ष के प्रश्न: 

प्रश्न. निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2010) 

  1. हाइड्रोजन के ऑक्साइड
  2. नाइट्रोजन के ऑक्साइड
  3. सल्फर के ऑक्साइड 

उपर्युक्त में से कौन-सा/से अम्लीय वर्षा का/के कारक है/हैं? 

(a) केवल 1 और 2 
(b) केवल 3 
(c) केवल 2 और 3 
(d) 1, 2 और 3 

उत्तर: C 

व्याख्या:  

  • अम्लीय वर्षा या अम्ल निक्षेपण, एक व्यापक शब्द है जिसमें अम्लीय घटकों के साथ वर्षा का कोई भी रूप शामिल है, जैसे सल्फ्यूरिक या नाइट्रिक एसिड जो नम या शुष्क रूपों में वातावरण से जमीन पर गिरते हैं। इसमें बारिश, बर्फ, कोहरा, ओलावृष्टि या यहाँ तक कि अम्लीय धूल भी शामिल हो सकती है 
  • अम्लीय वर्षा तब होती है जब सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) और नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOX) वायुमंडल में उत्सर्जित होते हैं तथा हवा एवं वायु के माध्यम से वायुमंडल में ही कुछ ऊँचाई पर उपस्थित रहते हैं। 
  • SO2 और NOX पानी, ऑक्सीजन व अन्य रसायनों के साथ प्रतिक्रिया करके सल्फ्यूरिक एवं नाइट्रिक एसिड बनाते हैं। फिर ये ज़मीन पर गिरने से पहले पानी व अन्य सामग्रियों के साथ मिल जाते हैं। अत: 2 और 3 सही हैं। 
  • हाइड्रोजन ऑक्साइड, यानी H2O अपने आप अम्लीय वर्षा नहीं करता है। यह केवल तभी होती है जब इसमें सल्फर या नाइट्रोजन के ऑक्साइड मिल जाते है। अतः 1 सही नहीं है। अतः विकल्प (c) सही उत्तर है। 

प्रश्न. निम्नलिखित पर विचार कीजिये : 

  1. कार्बन मोनोक्साइड 
  2. मीथेन 
  3. ओज़ोन 
  4. सल्फर डाइऑक्साइड 

फसल/जैव मात्रा के अवशेषों के दहन के कारण वायुमंडल में उपर्युक्त में से कौन-से निर्मुक्त होते हैं? 

(a) केवल 1 और 2 
(b) केवल 2, 3 और 4 
(c) केवल 1 और 4 
(d) 1, 2, 3 और 4 

उत्तर:D 

व्याख्या: 

  • बायोमास कार्बनिक पदार्थ है जो पौधों और जानवरों से आता है, यह ऊर्जा का एक नवीकरणीय स्रोत है। बायोमास में सूर्य से संग्रहीत ऊर्जा होती है। पौधे सूर्य की ऊर्जा को प्रकाश संश्लेषण नामक प्रक्रिया में अवशोषित करते हैं। जब बायोमास को जलाया जाता है, तो बायोमास में रासायनिक ऊर्जा ऊष्मा के रूप में निकलती है। 
  • फसल अवशेष और बायोमास जलने (जंगल की आग) को कार्बन डाइऑक्साइड (CO2), कार्बन मोनोऑक्साइड (CO), मीथेन (CH4), वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों (VOC), नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOX) का एक प्रमुख स्रोत माना जाता है। चावल की फसल के अवशेषों को जलाने से वातावरण में सस्पेंडेड पार्टिकुलेट मैटर SO2, NO2 और O3 निकलता है। अतः विकल्प (d) सही उत्तर है। 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

ऑस्ट्रेलिया-भारत जल सुरक्षा पहल

प्रिलिम्स के लिये:

AIWASI  

मेन्स के लिये:

भारत-ऑस्ट्रेलिया संबंध, भारत में जल की स्थिति। 

चर्चा में क्यों? 

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने ऑस्ट्रेलिया-भारत जल सुरक्षा पहल (AIWASI) के लिये तकनीकी सहयोग पर भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच एक समझौता ज्ञापन को मंज़ूरी प्रदान की है। 

ऑस्ट्रेलिया-भारत जल सुरक्षा पहल: 

  • AIWASI विदेश मामलों और व्यापार विभाग (DFAT), ऑस्ट्रेलिया के दक्षिण एशिया जल सुरक्षा पहल (SAWASI) के तहत एक परियोजना है। 
  • इसका उद्देश्य जल संवेदनशील शहर की दिशा में कार्य करना है जो एकीकृत जल चक्र के समग्र प्रबंधन पर आधारित है। 
  • AIWASI भारत के जल प्रशासन को मज़बूत करेगा और ऐसे क्षेत्रों में निवेश करेगा जो निम्नलिखित सेवाएँ प्रदान करते हैं: 
    • शहरी जल सेवाएँ 
    • विश्वसनीय, सुरक्षित पानी और स्वच्छता सेवाओं तक पहुँच स्थापित करने के लिये वंचित समुदायों को समर्थन। 
  • इस परियोजना के तहत जल संवेदनशील शहरी डिज़ाइन (WSUD) प्रदर्शन परियोजना शुरू की जाएगी। 
  • यह AIWASI परियोजना कई शैक्षिक, सामाजिक और पर्यावरणीय लाभों के साथ एक 'जीवंत प्रयोगशाला' भी है, जैसे- छात्रों और समुदाय की जल जागरूकता, हरित स्थानों का निर्माण, नीले-हरे बुनियादी ढांँचे (Blue-Green Infrastructure) के निर्माण से वायु गुणवत्ता में सुधार और अवक्रमित जल निकायों तथा जलभृतों (Aquifers) का कायाकल्प। 

जल सुरक्षा: 

  • संयुक्त राष्ट्र-जल द्वारा प्रस्तावित जल सुरक्षा की परिभाषा - आजीविका को बनाए रखने के लिये स्वीकार्य गुणवत्ता वाले पानी की पर्याप्त मात्रा तक जनसंख्या की पहुँच की स्थायी सुरक्षा, जल-जनित प्रदूषण और जल से संबंधित आपदाओं के खिलाफ सुरक्षा सुनिश्चित करने और शांति एवं राजनीतिक स्थिरता के माहौल में पारिस्थितिक तंत्र को संरक्षित करने के रूप में परिभाषित है। 

भारत में जल सुरक्षा से संबंधित चुनौतियांँ: 

सतत् विकास लक्ष्य रिपोर्ट (2019) के अनुसार: 

  • 4 में से 1 स्वास्थ्य देखभाल सुविधा में बुनियादी जल सेवाओं का अभाव है। 
  • 10 में से 3 लोगों की सुरक्षित रूप से प्रबंधित पेयजल सेवाओं तक पहुंँच नहीं है। 
  • 10 में से 6 लोगों के पास सुरक्षित रूप से प्रबंधित स्वच्छता सुविधाओं तक पहुंँच नहीं है। 
  • कम-से-कम 892 मिलियन लोग अभी भी खुले में शौच करते हैं। 
  • जल परिसर तक पहुँच न होने के बावजूद 80% घरों में जल भंडारण की ज़िम्मेदारी महिलाओं और लड़कियों की है। 
  • अगर जल के अति-दोहन का वर्तमान रुझान जारी रहता है, तो भविष्य में भारत के अत्यधिक जल संकटग्रस्त होने की संभावना है। 
  • तेज़ी से बढ़ती आबादी और शहरीकरण ने पूरे देश में पानी की मांग को बढ़ा दिया है। 
  • जबकि वर्षों के प्रदूषण, खेती के अप्रभावी तरीकों, विकेंद्रीकृत जल प्रशासन, भूजल दोहन और खराब बुनियादी ढाँचे ने जल की आपूर्ति को कम कर दिया है। 
  • नीचे दिया गया नक्शा भारत में आधारभूत जल तनाव की स्थिति को दर्शाता है और यह आसानी से देखा जा सकता है कि देश का अधिकांश भाग जल के अति-दोहन की श्रेणी में आता है। 
    • आधारभूत जल दबाव कुल वार्षिक जल निकासी (नगरपालिका, औद्योगिक और कृषि) को कुल वार्षिक उपलब्ध प्रवाह के प्रतिशत के रूप में व्यक्त करता है। 

Water-Stress

संबंधित पहलें: 

आगे का राह 

  • ऑस्ट्रेलिया के साथ हस्ताक्षरित समझौता ज्ञापन जल को बचाने और इसे सतत् तरीके से उपयोग करने के लिये सर्वोत्तम प्रथाओं को सीखने में मदद करेगा, ताकि जल सुरक्षा हासिल की जा सके। 
  • जल संरक्षण के लिये नए बुनियादी ढांँचे का निर्माण और जनता के बीच जागरूकता पैदा करके अपनी क्षमताओं को बढ़ाने की ज़रूरत है। 
  • सरकारी योजनाओं और रोडमैप के समय पर निष्पादन की आवश्यकता है। 
  • उन देशों के साथ अधिक सहयोग की आवश्यकता है जो पहले से ही जल की कमी का सामना कर चुके हैं, उनसे यह जानने में मदद मिलेगी कि वे इस कमी को कैसे दूर करते हैं। 

स्रोत: पी.आई.बी. 


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

कैंसर के लिये PD1 थेरेपी

प्रिलिम्स के लिये:

PD1 थेरेपी, टी-सेल्स, डोस्टारलिमैब 

मेन्स के लिये:

कैंसर के इलाज़ हेतु PD1 थेरेपी का महत्त्व 

चर्चा में क्यों? 

संयुक्त राज्य अमेरिका में एक चिकित्सा परीक्षण में बिना किसी सर्जरी या कीमोथेरेपी की आवश्यकता के 12 रोगियों को रेक्टल कैंसर से पूरी तरह से ठीक किया गया है। 

  • परीक्षण ने विशेष प्रकार के चरण दो या तीन रेक्टल कैंसर के इलाज़ के लिये छह महीने में हर तीन सप्ताह में मोनोक्लोनल एंटीबॉडी डोस्टारलिमैब (Dostarlimab)का इस्तेमाल किया। 
  • यह अध्ययन न्यूयॉर्क में मेमोरियल स्लोन केटरिंग कैंसर सेंटर के डॉक्टरों द्वारा किया गया। 

प्रमुख बिंदु 

  • परीक्षण से पता चला है कि अकेले इम्यूनोथेरेपी बिना किसी कीमोथेरेपी, रेडियोथेरेपी या सर्जरी के जो कि कैंसर के उपचार के मुख्य आधार रहे हैं, एक विशेष प्रकार के रेक्टल कैंसर के रोगियों को पूरी तरह से ठीक कर सकता है जिसे 'मिसमैच रिपेयर डेफिसिट' कैंसर कहा जाता है। 
    • कोलोरेक्टल, गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल और एंडोमेट्रियल कैंसर में 'मिसमैच रिपेयर डेफिसिट' कैंसर सबसे आम है। इस स्थिति से पीड़ित मरीज़ों में DNA में टाइपो को ठीक करने के लिये ज़ीन की कमी होती है, जबकि कोशिकाएंँ प्रतियांँ बनाती हैं। 
    • इम्यूनोथेरेपी एक ऐसी उपचार प्रणाली है जो कैंसर से लड़ने के लिये किसी व्यक्ति की अपनी प्रतिरक्षा प्रणाली का उपयोग करती है। इम्यूनोथेरेपी प्रतिरक्षा प्रणाली को मज़बूत कर सकती है या बदल सकती है ताकि यह कैंसर कोशिकाओं को खोजकर उनको समाप्त कर सके। 
  • इम्यूनोथेरेपी पीडी 1 ब्लॉकेड नामक एक श्रेणी से संबंधित है, जिसे अब कीमोथेरेपी या रेडियोथेरेपी के बजाय ऐसे कैंसर के इलाज के लिये अनुशंसित किया जाता है। 

PD1 थेरेपी: 

  • PD1 एक प्रकार का प्रोटीन है जो प्रतिरक्षा प्रणाली के कुछ कार्यों को नियंत्रित करता है, जिसमें दबावयुक्त टी कोशिका गतिविधि भी शामिल है और पीडी 1 ब्लॉकेड थेरेपी इस दबाव से टी कोशिकाओं को मुक्त करने के लिये की जाती है। 
    • टी-कोशिकाएँ श्वेत रक्त कोशिकाएँ (WBC) हैं। वे सामान्य रोगजनकों या प्रतिजनों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं। 
  • पहले इस थेरेपी का इस्तेमाल सर्जरी के बाद किया जाता था, लेकिन अध्ययन से पता चला है कि अब इसके लिये सर्जरी की आवश्यकता नहीं है। 
  • यद्यपि चिकित्सा का उपयोग आमतौर पर ऐसे कैंसर के लिये किया जाता है जिनका रूप-परिवर्तन (Metastasi) हो चुका है (जहाँ कैंसर उत्पन्न होता है, इसके बाद वह अन्य स्थानों पर फैलता है), परंतु अब यह सभी प्रकार के कैंसर के लिये अनुशंसित है क्योंकि यह पारंपरिक कीमो और रेडियोथेरेपी की तुलना में जल्दी सुधार व कम विषाक्तता परिणाम वाला है। 
  • अन्य उपचारों को समाप्त करने से प्रजनन क्षमता, यौन स्वास्थ्य और मूत्राशय तथा आंत्र को संरक्षित करके रोगी के जीवन की गुणवत्ता में सुधार हो सकता है। 

भारत में ऐसे उपचार की उपलब्धता: 

  • इम्युनोथैरेपी के साथ समस्या यह है कि भारत में यह ज़्यादातर लोगों के लिये महँगी और पहुँच से बाहर है। एक इम्यूनोथेरेपी उपचार में प्रतिमाह लगभग 4 लाख रुपए खर्च हो सकते हैं एवं रोगियों को छह महीने से एक साल तक उपचार की आवश्यकता होती है। लोग उपचार के लिये अपनी जीवन भर की बचत का उपयोग करते हैं।  
  • सटीक दवाएँ, जैसे कि विशेष प्रकार के कैंसर के लिये विशेष इम्यूनोथेरेपी दवाओं का उपयोग करना, भारत में अभी भी प्रारंभिक अवस्था में है। 
    • सटीक दवा, रोग उपचार और रोकथाम के लिये एक उभरता हुआ दृष्टिकोण है जो प्रत्येक व्यक्ति हेतु पर्यावरण और जीवन शैली में व्यक्तिगत परिवर्तनशीलता को ध्यान में रखता है। यह दृष्टिकोण डॉक्टरों एवं शोधकर्त्ताओं को अधिक सटीक भविष्यवाणी करने की अनुमति देगा कि किसी विशेष बीमारी के लिये कौन सी उपचार और रोकथाम रणनीतियाँं होंगी और वे लोगों के किस समूह  पर काम करती हैं। 

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न: 

प्रश्न. 'ACE2' पद का उल्लेख किस संदर्भ में किया जाता है? 

(a) आनुवंशिक रूप से रूपांतरित पादपों में पुरःस्थापित जीन 
(b) भारत के निजी उपग्रह संचालन प्रणाली का विकास 
(c) वन्य प्राणियों पर निगाह रखने के लिये रेडियो कॉलर 
(d) विषाणुजनित रोगों का प्रसार 

उत्तर: (d) 

व्याख्या: 

  • ACE2' कई प्रकार की कोशिकाओं की सतह पर एक प्रोटीनयुक्त एंजाइम है जो एंजियोटेंसिन कन्वर्टेज एंजाइम-2 के लिये उत्तरदायी है। यह एक एंजाइम है जो छोटे प्रोटीन उत्पन्न करता है और बड़े प्रोटीन एंजियोटेंसिनोजेन को काटकर कोशिका में कार्यों को विनियमित करने के लिये आगे बढ़ता है। 
  • अपनी सतह पर स्पाइक जैसे प्रोटीन का उपयोग करते हुए SARSCoV-2 वायरस ACE2 से कोशिकाओं के प्रवेश और संक्रमण से पहले इस प्रकार बंध जाता है जिस प्रकार एक ताले में चाबी डाली जाती है। इसलिये ACE2 एक सेलुलर द्वार या वायरस के लिये एक रिसेप्टर के रूप में कार्य करता है जो COVID-19 का कारण बनता है।  
  • अतः विकल्प (d) सही है 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 


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