केंद्रीय बजट 2023-24 (भाग- B)
NISAR मिशन
प्रिलिम्स के लिये:नासा, इसरो, एस बैंड रडार, GPS, सिंथेटिक एपर्चर रडार। मेन्स के लिये:NISAR मिशन, विज्ञान और प्रौद्योगिकी क्षेत्र में भारतीयों की उपलब्धियाँ। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका के कैलिफोर्निया स्थित नासा की जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी (JPL) ने NISAR (NASA-ISRO सिंथेटिक एपर्चर रडार) को रवाना किये जाने के संबंध में एक कार्यक्रम आयोजित किया।
- दो अलग-अलग रडार फ्रीक्वेंसी (L-बैंड और S-बैंड) का उपयोग करते हुए NISAR अंतरिक्ष में पृथ्वी को व्यवस्थित रूप से स्कैन करने वाला अपनी तरह का पहला रडार होगा। यह हमारे ग्रह की सतह पर होने वाले एक सेंटीमीटर से कम तक के परिवर्तनों को भी मापेगा।
NISAR मिशन:
- परिचय:
- NISAR को वर्ष 2014 में हस्ताक्षरित एक साझेदारी समझौते के तहत अमेरिका और भारत की अंतरिक्ष एजेंसियों द्वारा तैयार किया गया है।
- उम्मीद है कि इसे जनवरी 2024 में सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से निकट-ध्रुवीय कक्षा में लॉन्च किया जाएगा।
- यह उपग्रह कम-से-कम तीन वर्ष तक काम करेगा।
- यह एक निम्न पृथ्वी कक्षा (Low Earth Orbit -LEO) वेधशाला है।
- यह 12 दिन में पूरे विश्व का मानचित्रण कर लेगा।
- विशेषता:
- यह 2,800 किलोग्राम का उपग्रह है जिसमें L-बैंड और S-बैंड सिंथेटिक एपर्चर रडार (SAR) उपकरण शामिल हैं, जिस कारण इसे दोहरी आवृत्ति इमेजिंग रडार उपग्रह कहा जाता है।
- नासा द्वारा डेटा स्टोर करने के लिये L-बैंड रडार, GPS, एक उच्च क्षमता वाला सॉलिड-स्टेट रिकॉर्डर और एक पेलोड डेटा सब-सिस्टम प्रदान किया गया है, जबकि ISRO ने S-बैंड रडार, जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (GSLV) प्रक्षेपण प्रणाली तथा अंतरिक्ष यान प्रदान किया है।
- S-बैंड रडार 8-15 सेंटीमीटर की तरंगदैर्ध्य (Wavelength) और 2-4 गीगाहर्ट्ज़ की आवृत्ति (frequency) पर काम करते हैं। इस तरंगदैर्ध्य और आवृत्ति के कारण वे आसानी से क्षीण नहीं होते हैं। यह उन्हें निकट एवं दूर के मौसम अवलोकन के लिये उपयोगी बनाता है।
- इसमें 39 फुट का स्थिर एंटीना रिफ्लेक्टर लगा हुआ है, जो सोने की परत वाले तार की जाली से बना है; रिफ्लेक्टर का उपयोग "उपकरण संरचना पर ऊपर की ओर फीड द्वारा उत्सर्जित और प्राप्त रडार सिग्नल" पर केंद्रित करने के लिये किया जाएगा।
- SAR का उपयोग करके NISAR उच्च-रिज़ॉल्यूशन वाली छवियाँ प्रस्तुत करेगा। बादलों का SAR पर कुछ विशेष प्रभाव नहीं पड़ता, ये मौसम की स्थिति की परवाह किये बिना दिन और रात डेटा एकत्र कर सकते हैं।
- नासा को अपने विज्ञान संबंधी वैश्विक संचालन के लिये कम-से-कम तीन वर्षों के लिये L-बैंड रडार की आवश्यकता है। इस बीच इसरो कम-से-कम पाँच वर्षों के लिये S-बैंड रडार का उपयोग करेगा।
NISAR के अपेक्षित लाभ:
- पृथ्वी विज्ञान: NISAR पृथ्वी की सतह में परिवर्तन, प्राकृतिक खतरों और पारिस्थितिकी तंत्र की विकृति के बारे में डेटा एवं जानकारी प्रदान करेगा, जिससे पृथ्वी प्रणाली प्रक्रियाओं तथा जलवायु परिवर्तन की हमारी समझ को बढ़ाने में मदद मिलेगी।
- आपदा प्रबंधन: मिशन तेज़ी से प्रतिक्रिया समय और बेहतर जोखिम आकलन कर भूकंप, सूनामी एवं ज्वालामुखी विस्फोट जैसी प्राकृतिक आपदाओं के प्रबंधन में मदद के लिये महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रदान करेगा।
- कृषि: NISAR डेटा का उपयोग फसल वृद्धि, मृदा की नमी और भूमि उपयोग में बदलाव के बारे में जानकारी प्रदान करके कृषि प्रबंधन एवं खाद्य सुरक्षा में सुधार हेतु किया जाएगा।
- इंफ्रास्ट्रक्चर मॉनिटरिंग: मिशन इंफ्रास्ट्रक्चर मॉनिटरिंग और प्रबंधन हेतु डेटा मुहैया कराएगा, जैसे- तेल रिसाव, शहरीकरण एवं वनों की कटाई की निगरानी।
- जलवायु परिवर्तन: NISAR पिघलते ग्लेशियरों, समुद्र के स्तर में वृद्धि और कार्बन भंडारण में परिवर्तन सहित पृथ्वी की सतह पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों की निगरानी एवं समझने में मदद करेगा।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न:प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2016)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल उत्तर: (c) प्रश्न. भारत की अपना स्वयं का अंतरिक्ष केंद्र प्राप्त करने की क्या योजना है और यह हमारे अंतरिक्ष कार्यक्रम को किस तरह लाभ पहुँचाएगी? (मुख्य परीक्षा, 2019) प्रश्न: अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की उपलब्धियों की चर्चा कीजिये। इस प्रौद्योगिकी का प्रयोग भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास में किस प्रकार सहायक हुआ है? (मुख्य परीक्षा, 2016) |
स्रोत: द हिंदू
भारत में कृषि मशीनरी उद्योग पर NCAER की रिपोर्ट
प्रिलिम्स के लिये:कृषि मशीनरी उद्योग, कृषि शक्ति, विज्ञान और प्रौद्योगिकी (S&T) क्लस्टर कार्यक्रम, मेक इन इंडिया, कृषि यंत्रीकरण योजना पर उप-मिशन। मेन्स के लिये:कृषि मशीनरी उद्योग से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ, कृषि मशीनरी उद्योग को पुनर्जीवित करने के तरीके। |
चर्चा में क्यों?
राष्ट्रीय अनुप्रयुक्त आर्थिक अनुसंधान परिषद (National Council of Applied Economic Research- NCAER) द्वारा 'कृषि कार्य मशीनीकरण उद्योग में भारत को वैश्विक हब बनाने' पर नवीनतम रिपोर्ट जारी की गई।
- NCAER ने गैर-ट्र्रैक्टर कृषि मशीनरी उद्योग से संबंधित मांग और आपूर्ति दोनों पक्षों का गहराई से विश्लेषण किया है। इस क्षेत्र की चुनौतियों को सामने रखने के साथ ही रिपोर्ट में वैश्विक प्रथाओं को बेंचमार्क मानते हुए उपायों और सुधारों की भी सिफारिश की गई है।
कृषि मशीनरी उद्योग:
- कृषि मशीनरी उद्योग एक ऐसा उद्योग क्षेत्र है जो कृषि और खेती की गतिविधियों जैसे- जुताई, रोपण, कटाई आदि में उपयोग की जाने वाली मशीनरी, उपकरणों की एक शृंखला का उत्पादन तथा आपूर्ति करता है।
- इन मशीनों को कृषि की उत्पादकता और दक्षता में सुधार करने के लिये डिज़ाइन किया जाता है तथा इसमें छोटे एवं बड़े पैमाने पर कृषि उपकरणों का निर्माण शामिल है।
- इस उद्योग द्वारा पेश किये जाने वाले उत्पादों के कुछ उदाहरणों में ट्रैक्टर, कंबाइन हार्वेस्टर, सिंचाई प्रणाली, टिलर आदि शामिल हैं।
कृषि मशीनरी उद्योग से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ:
- सीमित घरेलू मांग:
- संगठित कृषि मशीनरी क्षेत्र के उत्पादन और छोटे तथा सीमांत भारतीय किसानों की जरूरतों के बीच सामंजस्य की कमी।
- हालाँकि राज्य-स्तरीय भिन्नता अधिक है, वर्ष 2018-19 में भारत में बमुश्किल 4.4% किसान परिवारों के पास ट्रैक्टर था, 2.4% ने पावर टिलर का इस्तेमाल किया और 5.3% के पास चार मशीनरी वस्तुएँ थीं ।
- गैर-ट्रैक्टर मशीनरी के लिये आयात पर निर्भरता:
- ट्रैक्टर कृषि मशीनरी निर्यात को बढ़ावा देते हैं, जबकि गैर-ट्रैक्टर कृषि मशीनरी आयात को बढ़ावा देती है।
- इसके अलावा व्यापार क्षेत्र में भी संतुलन की कमी है, 53% गैर-ट्रैक्टर कृषि मशीनरी का आयात चीन से हो रहा है।
- पर्याप्त विद्युत का अभाव:
- बोई जाने वाली फसलों की विविधता और सघनता में वृद्धि के साथ प्रतिवर्तन समय (Turnaround Time) काफी कम हो जाता है। उत्पादन एवं उत्पादकता बढ़ाने तथा घाटे को कम करने के लिये समय पर कृषि कार्यों के संचालन हेतु पर्याप्त विद्युत की उपलब्धता बहुत महत्त्वपूर्ण है।
- हालाँकि वर्ष 2018-19 में देश में कृषि हेतु विद्युत की उपलब्धता 2.49 किलोवाट/हेक्टेयर रही जो कोरिया (+7 किलोवाट/हेक्टेयर), जापान (+14 किलोवाट/हेक्टेयर), अमेरिका (+7 किलोवाट/हेक्टेयर) की तुलना में बहुत कम है।
फार्म मशीनरी उद्योग का पुनर्विकास:
- स्थानीय नवाचार को प्रोत्साहन:
- स्थानीय शिक्षा संस्थानों में उद्यमिता पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण और प्रोत्साहन को बढ़ावा देने सहित फार्म मशीनरी फर्मों के साथ भी साझेदारी करने का अवसर प्रदान किया जाना चाहिये।
- पेटेंट पर मदद हेतु ज़िला-स्तरीय पेटेंट कार्यालयों को खोलने और उन्हें मज़बूती प्रदान करने की आवश्यकता है, साथ ही राज्य कृषि विश्वविद्यालयों के पेटेंट कार्यालयों को स्थानीय समुदायों की ज़रूरतों को पूरा करने की आवश्यकता है।
- लाइट फार्म मशीनरी और फ्यूचरिस्टिक सटीक खेती में नवाचारों हेतु अनुसंधान संबद्ध प्रोत्साहन (Research-Linked Incentive- RLI) की भी सिफारिश की गई है।
- गैर-ट्रैक्टर कृषि मशीनरी क्लस्टर:
- विज्ञान और प्रौद्योगिकी (Science & Technology- S&T) क्लस्टर कार्यक्रम के तत्त्वावधान में गैर-ट्रैक्टर कृषि मशीनरी विज्ञान और प्रौद्योगिकी क्लस्टर स्थापित करने की आवश्यकता है।
- भारतीय विनिर्माताओं हेतु समान अवसर:
- भारतीय विनिर्माताओं को जिस अनुचित प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना पड़ रहा है, उसे देखते हुए यह अनिवार्य किया जाना चाहिये कि सरकारी सब्सिडी के तहत सरकारी DBT पोर्टल (केंद्रीय और राज्य दोनों) पर बेची जाने वाली कृषि मशीनरी 'मेक इन इंडिया' सामानों को प्राथमिकता देने के संबंध में संशोधित सार्वजनिक खरीद मानदंडों का पालन करे।
- अंतर्राष्ट्रीय गुणवत्ता मानकों को बनाए रखते हुए स्थानीयकरण को भी बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
- निर्यात हब हेतु विज़न:
- कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय कृषि यंत्रीकरण योजना पर उप-मिशन जैसी विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों के माध्यम से पहले से ही कृषि यंत्रीकरण को बढ़ावा दे रहा है लेकिन भारत को गैर-ट्रैक्टर कृषि मशीनरी हेतु खुद को उत्पादन और निर्यात केंद्र में बदलने के लिये अगले 15 वर्षों हेतु दीर्घकालिक विज़न की आवश्यकता है।
स्रोत: पी.आई.बी.
अफगानिस्तान पर बहुपक्षीय सुरक्षा वार्त्ता
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, अफगानिस्तान पर बहुपक्षीय सुरक्षा वार्त्ता, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का प्रस्ताव 2593, आतंकवाद, चाबहार बंदरगाह। मेन्स के लिये:भारत के लिये अफगानिस्तान का महत्त्व, भारत-अफगानिस्तान संबंध। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSG) ने मॉस्को में आयोजित अफगानिस्तान पर एक बहुपक्षीय सुरक्षा वार्त्ता को संबोधित किया।
- यह वार्त्ता सुरक्षा और मानवीय चुनौतियों सहित अफगानिस्तान से संबंधित मुद्दों के इर्द-गिर्द घूमती है और इसमें रूस, चीन एवं ईरान सहित विभिन्न देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
वार्त्ता की मुख्य विशेषताएँ:
- NSG ने इस बात पर ज़ोर दिया कि किसी भी देश को आतंकवाद को बढ़ावा देने हेतु अफगान क्षेत्र का उपयोग करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिये और ज़रूरत के समय भारत हमेशा अफगानिस्तान के लोगों का समर्थन करेगा।
- NSG ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का संकल्प 2593 के महत्त्व के बारे में भी बात की, जो इस क्षेत्र में आतंकी संगठनों को शरण देने से इनकार करता है।
अफगानिस्तान के साथ भारत के संबंध:
- परिचय:
- सदियों से भारत और अफगानिस्तान के बीच घनिष्ठ ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और आर्थिक संबंध रहे हैं।
- 9/11 की घटना के बाद दोनों देशों के बीच संबंधों में महत्त्वपूर्ण बदलाव आया है और भारत, अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण और विकास में तेज़ी से सक्रिय भूमिका निभा रहा है।
- राजनीतिक संबंध:
- भारत, अफगानिस्तान में लोकतंत्र का प्रबल समर्थक रहा है और लगातार स्थिर, शांतिपूर्ण एवं समृद्ध अफगानिस्तान का समर्थन करता रहा है।
- हालाँकि भारत ने अब तक अफगानिस्तान में तालिबान शासन को मान्यता नहीं दी है और काबुल में एक समावेशी सरकार के गठन का समर्थक रहा है।
- इसके अलावा भारत ने जून 2022 में काबुल में अपनी राजनयिक उपस्थिति फिर से स्थापित की।
- भारत, अफगानिस्तान में लोकतंत्र का प्रबल समर्थक रहा है और लगातार स्थिर, शांतिपूर्ण एवं समृद्ध अफगानिस्तान का समर्थन करता रहा है।
- मानवीय सहायता:
- भारत अफगानिस्तान को मानवीय सहायता प्रदान कर रहा है, जिसमें 40,000 मीट्रिक टन गेहूँ, 60 टन दवाएँ, 5,00,000 कोविड वैक्सीन, सर्दियों के कपड़े और 28 टन आपदा राहत शामिल है।
- भारत ने पिछले दो वर्षों में 300 छात्राओं सहित 2,260 अफगान छात्रों को छात्रवृत्ति भी प्रदान की है।
- आर्थिक संबंध:
- भारत ने सभी 34 अफगान प्रांतों में 400 से अधिक प्रमुख बुनियादी ढाँचा परियोजनाएँ शुरू की हैं और व्यापार एवं द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ाने हेतु रणनीतिक समझौतों पर हस्ताक्षर किये हैं।
- भारत ने वर्ष 2002 से 2021 तक अफगानिस्तान में विकास सहायता के रूप में 4 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश किया, जिसके तहत राजमार्गों, अस्पतालों, संसद भवन, ग्रामीण स्कूलों और विद्युत पारेषण लाइनों जैसी उच्च दृश्यता वाली परियोजनाओं का निर्माण किया गया।
- भारत ने सभी 34 अफगान प्रांतों में 400 से अधिक प्रमुख बुनियादी ढाँचा परियोजनाएँ शुरू की हैं और व्यापार एवं द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ाने हेतु रणनीतिक समझौतों पर हस्ताक्षर किये हैं।
- कनेक्टिविटी:
- भारत चाबहार बंदरगाह को विकसित कर और क्षेत्र में बाज़ारों तक पहुँच प्रदान करके अफगानिस्तान के साथ क्षेत्रीय संपर्क स्थापित करने की दिशा में काम कर रहा है।
भारत के लिये अफगानिस्तान का महत्त्व:
- भू-राजनीतिक स्थिति: अफगानिस्तान मध्य और दक्षिण एशिया के चौराहे पर स्थित है और इसकी स्थिरता एवं सुरक्षा का इस क्षेत्र में भारत के हितों पर सीधा प्रभाव पड़ता है।
- अफगानिस्तान दक्षिण और मध्य एशिया के बीच एक पुल के रूप में कार्य करता है एवं भारत की क्षेत्रीय कनेक्टिविटी तथा आर्थिक एकीकरण हेतु महत्त्वपूर्ण है।
- आतंकवाद का मुकाबला:
- अफगानिस्तान आतंकवाद का गढ़ रहा है, जहाँ से विभिन्न आतंकवादी समूह संचालित होते हैं।
- भारत की सुरक्षा के लिये संभावित खतरों को ध्यान में रखते हुए भारत की मंशा अफगानिस्तान को आतंकवादियों की शरणस्थली बनने से रोकना है।
- अफगानिस्तान आतंकवाद का गढ़ रहा है, जहाँ से विभिन्न आतंकवादी समूह संचालित होते हैं।
- सामरिक लाभ:
- भारत के सामरिक हितों के लिये अफगानिस्तान महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह ऐतिहासिक सिल्क रोड के केंद्र में स्थित है।
- अफगानिस्तान में भारत की उपस्थिति इस क्षेत्र में पाकिस्तान और चीन के प्रभाव को संतुलित करने में मदद करती है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न:प्रिलिम्स:निम्नलिखित देशों पर विचार कीजिये: (2022)
उपर्युक्त में से किसकी सीमाएँ अफगानिस्तान से लगती हैं? (a) केवल 1, 2 और 5 उत्तर: (c) प्रश्न. वर्ष 2014 में अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा सहायता बल (ISAF) की अफगानिस्तान से प्रस्तावित वापसी क्षेत्र के देशों के लिये बड़े खतरों (सुरक्षा उलझनों) भरी है। इस तथ्य के आलोक में परीक्षण कीजिये कि भारत के सामने भरपूर चुनौतियाँ है तथा उसे अपने सामरिक महत्त्व के हितों की रक्षा करने की आवश्यकता है। (मुख्य परीक्षा, 2013) |
स्रोत: द हिंदू
अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संरक्षित क्षेत्र कॉन्ग्रेस
प्रिलिम्स के लिये:भारत में जैविक विविधता, CCAMLR, समुद्री संरक्षित क्षेत्रों पर अभिसमय हेतु पक्षकारों का सम्मेलन। मेन्स के लिये:समुद्री संरक्षित क्षेत्र। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में समुद्री संरक्षित क्षेत्रों (Marine Protected Areas- MPA) के फंडिंग गैप के समाधानों पर चर्चा करने हेतु कनाडा में 5वीं अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संरक्षित क्षेत्र कॉन्ग्रेस (International Marine Protected Areas Congress- IMPAC5) आयोजित की गई।
- यह बैठक महत्त्वपूर्ण है क्योंकि वर्ष 2022 में आयोजित जैविक विविधता अभिसमय के पक्षकारों के 15वें सम्मेलन में वर्ष 2030 तक पृथ्वी की 30% भूमि और महासागरों की रक्षा करने हेतु राष्ट्रों ने सहमति व्यक्त की थी।
नोट: कनाडा तीन महासागरों- प्रशांत, आर्कटिक और अटलांटिक से घिरा हुआ है और इसकी दुनिया में सबसे लंबी तटरेखा है।
प्रमुख बिंदु
- सतत् और लचीला/सुनम्य MPA नेटवर्क:
- कम-से-कम 70% MPA अंडरफंडेड हैं। एक अच्छी तरह से प्रबंधित और पर्याप्त रूप से वित्तपोषित MPA कमज़ोर पारिस्थितिक तंत्र को स्वस्थ पारिस्थितिक तंत्र के रूप में बहाल कर सकता है।
- टिकाऊ और लचीला MPA नेटवर्क प्राप्त करना सुरक्षा, नेतृत्त्व, हितधारकों, संस्थानों, सरकारों तथा संगठनों, स्थानीय लोगों, तटीय समुदायों एवं व्यक्तियों के साथ समावेशी व न्यायसंगत तरीके से महासागर संरक्षण को आगे बढ़ाने की समग्र प्रतिबद्धता पर निर्भर करता है।
- IMPAC5 का उद्देश्य विभिन्न प्रकार के विचारों के आदान-प्रदान के लिये खुले और सम्मानजनक वातावरण में ज्ञान, सफलताओं एवं सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने के लिये एक मंच प्रदान करना है।
- MPA का महत्त्व:
- MPAs अपने स्वयं के प्रबंधन के लिये स्थायी राजस्व उत्पन्न कर सकते हैं।
- पर्यटन कार्यक्रमों के लिये वैधानिक और गैर-सांविधिक MPA शुल्क, मैंग्रोव संरक्षण से उत्पन्न ब्लू कार्बन क्रेडिट एवं वनों की कटाई से बचने के साथ-साथ समुद्री शैवाल की खेती तथा टिकाऊ तटीय मत्स्यपालन से राजस्व उत्पन्न किया जा सकता है।
समुद्री संरक्षित क्षेत्र:
- परिचय:
- MPAs महासागर के निर्दिष्ट क्षेत्र हैं जिसके समुद्री पारिस्थितिक तंत्र और उनकी जैवविविधता की सुरक्षा और संरक्षण किया जा रहा है।
- विशिष्ट संरक्षण, आवास संरक्षण, पारिस्थितिक तंत्र निगरानी अथवा मत्स्य प्रबंधन संबंधी उद्देश्यों को पूरा करने के लिये क्षेत्र के भीतर कुछ गतिविधियाँ सीमित अथवा पूरी तरह से प्रतिबंधित हैं।
- MPA के तहत मछली पकड़ने, अनुसंधान और अन्य मानवीय गतिविधियों को हमेशा प्रतिबंधित नहीं किया जाता है; वास्तव में कई MPAs विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।
- MPAs की स्थापना की आवश्यकता:
- जैवविविधता संरक्षण:
- MPAs समुद्री प्रजातियों की विविधता और उनके आवासों को संरक्षित करने में मदद करते हैं, समुद्री पारिस्थितिक तंत्र के संतुलन और उनके द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं, जैसे कि भोजन और ऑक्सीजन के उत्पादन को संरक्षित करते हैं।
- सतत् मत्स्यपालन:
- MPAs मछली पकड़ने की गतिविधियों को विनियमित करने और ओवरफिशिंग को रोकने में मदद कर सकते हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि मछली की उचित आबादी बनी रहे ताकि सतत् मछली पालन की स्थायी प्रथाओं को सहयोग मिलता रहे।
- जलवायु परिवर्तन शमन:
- MPAs कार्बन सिंक के रूप में काम कर सकते हैं, वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित और संग्रहीत करने में मदद करते हैं तथा समुद्री पारिस्थितिक तंत्र पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करते हैं।
- अनुसंधान और शिक्षा:
- MPAs वैज्ञानिक अनुसंधान और शैक्षिक गतिविधियों के लिये बहुमूल्य अवसर प्रदान कर सकते हैं, समुद्री पर्यावरण के प्रति हमारी समझ बढ़ाने में मदद कर सकते हैं।
- आर्थिक लाभ:
- MPAs पर्यटकों को आकर्षित कर स्थायी पर्यटन और मनोरंजन के अवसर प्रदान करने तथा स्थानीय मछली पकड़ने वाले समुदायों का समर्थन कर स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं में योगदान कर सकते हैं।
- जैवविविधता संरक्षण:
- संधियाँ, अभिसमय और समझौते:
- काला सागर, भूमध्य सागर और सन्निहित अटलांटिक क्षेत्र के केटेशियन के संरक्षण पर समझौता:
- इसका उद्देश्य केटेशियन के संरक्षण के लिये विशेष रूप से संरक्षित क्षेत्रों' का एक नेटवर्क स्थापित करना है। यह राष्ट्रीय जल में केटेशियन की हत्या पर रोक लगाता है।
- बर्न अभिसमय:
- इसे वर्ष 1979 में यूरोपीय समुदाय परिषद के तत्त्वावधान में तैयार किया गया था, यह वर्ष 1982 से लागू है और इसमें यूरोपीय राज्य शामिल हैं।
- CITES:
- वर्ष 1973 में UNEP के तहत तैयार किया गया CITES वर्ष 1975 से दुनिया भर में लागू है। वन्यजीवों एवं वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (CITES) तीन परिशिष्टों में सूचीबद्ध प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को नियंत्रित करता है।
- यूरोपीय संघ आवास निर्देश:
- वर्ष 1992 में यूरोपीय समुदाय परिषद द्वारा तैयार किया गया यूरोपीय संघ आवास निर्देश यूरोपीय संघ के सभी राज्यों पर लागू होता है, जिसमें अज़ोरेस और मदीरा (पुर्तगाल का हिस्सा) तथा कैनरी द्वीप समूह शामिल हैं।
- अंटार्कटिक समुद्री जीवित संसाधनों के संरक्षण के लिये आयोग (CCAMLR):
- समुद्री जीवित संसाधनों की चिंताओं के मद्देनज़र अंटार्कटिक समुद्री जीवित संसाधनों के संरक्षण के लिये आयोग (CCAMLR) एक बहुपक्षीय प्रतिक्रिया है जो दक्षिणी महासागर के वातावरण को प्रभावित करते हुए क्रिल जैसे जीवों की स्थिति को प्रभावित कर सकता है। इससे भोजन के लिये क्रिल पर निर्भर रहने वाले समुद्री पक्षी, सील, व्हेल तथा मछली भी प्रभावित हो सकते हैं।
- काला सागर, भूमध्य सागर और सन्निहित अटलांटिक क्षेत्र के केटेशियन के संरक्षण पर समझौता:
भारत में समुद्री संरक्षित क्षेत्र:
- भारत में वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 के तहत नामित 33 राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभयारण्य हैं जो देश के MPA का निर्माण करते हैं।
- कच्छ की खाड़ी में समुद्री राष्ट्रीय उद्यान और समुद्री अभयारण्य एक इकाई बनाते हैं तथा भितरकनिका राष्ट्रीय उद्यान एवं भितरकनिका अभयारण्य MPA के अभिन्न अंग हैं। इस प्रकार भारत में कुल 31 MPA हैं।
- MPAs भारत के सभी संरक्षित क्षेत्रों के कुल क्षेत्रफल के 4.01% से कम हिस्से को कवर करते हैं।
IMPAC:
- IMPAC कॉन्ग्रेस प्रकृति के संरक्षण के लिये अंतर्राष्ट्रीय संघ (IUCN) और चुने हुए मेज़बान देश के बीच एक सहयोगी प्रयास है।
- MPAs के प्रबंधन में नवीनतम वैज्ञानिक ज्ञान, सर्वोत्तम प्रथाओं और चुनौतियों पर चर्चा करने के लिये कॉन्ग्रेस दुनिया भर के वैज्ञानिकों, नीति निर्माताओं, चिकित्सकों तथा हितधारकों को एक साथ लाती है।
- IMPAC का लक्ष्य विश्व की समुद्री जैवविविधता के संरक्षण और सतत् उपयोग को आगे बढ़ाना है तथा समुद्री संरक्षण एवं प्रबंधन के लिये जैविक विविधता के लक्ष्यों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के कार्यान्वयन का समर्थन करना है।