जैव विविधता और पर्यावरण
अंटार्कटिक में समुद्री संरक्षित क्षेत्र
- 05 Oct 2021
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चर्चा में क्यों?
भारत ने अंटार्कटिक पर्यावरण की रक्षा के लिये और पूर्वी अंटार्कटिक एवं वेडेल सागर को समुद्री संरक्षित क्षेत्रों (MPA) के रूप में नामित करने के यूरोपीय संघ के प्रस्ताव को सह-प्रायोजित करने के लिये अपना समर्थन दिया है।
- दक्षिणी महासागर, जिसे अंटार्कटिक महासागर भी कहा जाता है, पृथ्वी के कुल महासागर क्षेत्र के लगभग सोलहवें हिस्से को कवर करता है।
प्रमुख बिंदु
- समुद्री संरक्षित क्षेत्र:
- सामान्य शब्दों में समुद्री संरक्षित क्षेत्र (MPA), समुद्री क्षेत्र के प्राकृतिक संसाधनों को सुरक्षा प्रदान करता है।
- एक MPA के भीतर विशिष्ट संरक्षण, आवास संरक्षण, पारिस्थितिकी तंत्र की निगरानी या मत्स्य प्रबंधन उद्देश्यों को पूरा करने के लिये कुछ गतिविधियाँ सीमित या पूरी तरह से प्रतिबंधित होती हैं।
- कई MPA बहुउद्देश्यीय क्षेत्र की भाँति होते हैं जो आवश्यक रूप से मछली पकड़ने, अनुसंधान या अन्य मानवीय गतिविधियों को प्रतिबंधित नहीं करते हैं।
- अंटार्कटिक समुद्री जीवित संसाधनों के संरक्षण के लिये आयोग (CCAMLR) ने एक ढाँचे पर सहमति व्यक्त की है जो MPA की स्थापना हेतु उद्देश्यों और आवश्यकताओं का वर्णन करता है।
- अंटार्कटिक में MPA:
- वर्तमान में दक्षिणी महासागर का केवल 5% हिस्सा ही संरक्षित है। वर्ष 2009 में दक्षिण ओर्कनेय द्वीप समूह और वर्ष 2016 में रॉस सागर क्षेत्र में MPA स्थापित किये गए थे।
- MPA के अन्य तीन प्रस्तावों के संबंध में पूर्वी अंटार्कटिक, वेडेल सागर और अंटार्कटिक प्रायद्वीप पर विचार किया जा रहा है।
- MPA प्रस्ताव संरक्षण और सतत् उपयोग सिद्धांतों द्वारा संचालित होते हैं तथा वैश्विक सहयोग ढाँचे (जैसे सतत् विकास लक्ष्य, महासागरों का संयुक्त राष्ट्र दशक, जैव विविधता पर सम्मेलन आदि) का अनुपालन करते हैं।
- भारत इन सम्मेलनों या समझौतों का हस्ताक्षरकर्त्ता है।
- भारत ने अंटार्कटिक समुद्री जैविक संसाधनों के संरक्षण पर आयोग (CCAMLR) के सदस्य देशों से यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया कि वे भविष्य में भी MPA के निर्माण, अनुकूलन और कार्यान्वयन तंत्र से जुड़े रहें।
- MPA स्थापित करने की आवश्यकता:
- दक्षिणी महासागर का स्वास्थ्य स्वयं महासागर में परिवर्तन द्वारा संचालित होता है- जैसे:
- महासागर अम्लीकरण
- समुद्री-बर्फ की सांद्रता में परिवर्तन
- जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न होने वाली घटनाएँ जैसे हीट वेब और चरम मौसम।
- ये परिवर्तन अंटार्कटिक क्षेत्र के समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र और प्रजातियों को प्रभावित करते हैं।
- इसके अलावा इन प्रभावों से दक्षिणी महासागर में नई और आक्रामक प्रजातियों के खतरे के साथ ही पेंगुइन जैसी स्थानिक समुद्री प्रजातियों हेतु खतरा बढ़ रहा है।
- इसके अलावा अंटार्कटिक में ग्लेशियरों के पिघलने में तेज़ी से वृद्धि हो रही है। उदाहरण के लिये थ्वाइट्स ग्लेशियर।
- अध्ययनों से पता चलता है कि MPA मछली पकड़ने जैसे अतिरिक्त तनावों को समाप्त करके कमज़ोर पारिस्थितिकी तंत्र को जलवायु परिवर्तन के प्रति लचीलापन बनाने में मदद कर सकते हैं।
- इसके अलावा वे अपेक्षाकृत अबाधित जल के अध्ययन के लिये एक प्राकृतिक प्रयोगशाला प्रदान करते हैं कि कैसे समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र एक गर्म और अम्लीय महासागर की दशाओं के साथ अभिक्रिया करते हैं।
- दक्षिणी महासागर का स्वास्थ्य स्वयं महासागर में परिवर्तन द्वारा संचालित होता है- जैसे:
- अंटार्कटिक समुद्री जीवित संसाधनों के संरक्षण पर अभिसमय (CCAMLR) के बारे में:
- CCAMLR समुद्री जीवित संसाधनों की चिंताओं के मद्देनज़र एक बहुपक्षीय प्रतिक्रिया है जो दक्षिणी महासागर के वातावरण को प्रभावित करते हुए क्रिल जैसे जीवों की दशा को प्रभावित कर सकते हैं। इससे भोजन के लिये क्रिल पर निर्भर रहने वाले समुद्री पक्षी, सील, व्हेल और मछली भी प्रभावित हो सकते हैं।
- CCAMLR की स्थापना अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन द्वारा वर्ष 1982 में अंटार्कटिक समुद्री जीवन के संरक्षण के उद्देश्य से की गई थी।
- CCAMLR की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता संरक्षण के लिये पारिस्थितिकी तंत्र दृष्टिकोण है, जिसके लिये आवश्यक है कि समुद्री संसाधनों के संचयन के प्रबंधन में पारिस्थितिकी तंत्र पर पड़ने वाले प्रभावों को ध्यान में रखा जाए।
- इसका सचिवालय ऑस्ट्रेलिया के तस्मानिया राज्य के होबार्ट शहर में स्थित है।
भारत के अंटार्कटिक मिशन
- भारत अंटार्कटिक में अपने बुनियादी ढाँचे के विकास का विस्तार कर रहा है।
- वर्ष 2015 में मान्यता प्राप्त नवीनतम आधार भारती (Bharati) है।
- भारत अपने दूसरे केंद्र मैत्री (Maitri) का पुनर्निर्माण कर रहा है, ताकि इसे और बड़ा बनाया जा सके तथा कम-से-कम 30 और वर्षों तक चलाया जा सके।
- दक्षिण गंगोत्री भारतीय अंटार्कटिक कार्यक्रम के एक भाग के रूप में अंटार्कटिक में स्थापित पहला भारतीय वैज्ञानिक अनुसंधान बेस स्टेशन था। यह क्षतिग्रस्त हो गया है और सिर्फ आपूर्ति का आधार बन गया है।
अंटार्कटिक संधि प्रणाली
- कुछ संबंधित समझौते हैं जो अंटार्कटिक संधि प्रणाली बनाते हैं, इस प्रकार हैं:
- अंटार्कटिक संधि के लिये पर्यावरण संरक्षण पर प्रोटोकॉल (मैड्रिड, 1991)
- अंटार्कटिक सीलों के संरक्षण के लिये अभिसमय (CCAS, लंदन, 1972)
- अंटार्कटिक समुद्री जीवन संसाधनों के संरक्षण पर अभिसमय (CCAMLR, कैनबरा, 1980)