डेली न्यूज़ (08 Oct, 2020)



भारत-जापान के विदेश मंत्रियों की रणनीतिक वार्ता

प्रिलिम्स के लिये

इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT), कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), क्वाड (Quad), मालाबार अभ्यास, भारत और जापान के बीच संयुक्त युद्धाभ्यास

मेन्स के लिये

भारत-जापान संबंध, साइबर सुरक्षा और भारत, क्वाड की भूमिका 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत-जापान के विदेश मंत्रियों की 13वीं रणनीतिक वार्ता के दौरान दोनों देशों ने साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में सहयोग ज्ञापन (MoC) पर हस्ताक्षर करने हेतु सहमति व्यक्त की है, जो कि भारत और जापान के बीच 5जी तकनीक, इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा देगा।

  • ध्यातव्य है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भी भारत और जापान के बीच साइबर सुरक्षा को लेकर इस सहयोग ज्ञापन (MoC) पर हस्ताक्षर को मंज़ूरी दे दी है।

वार्ता के प्रमुख बिंदु

  • साइबर सुरक्षा के लिये सहयोग ज्ञापन
    • यह सहयोग समझौता (MoC) दोनों देशों के पारस्परिक हित के क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने में मदद करेगा, जिसमें साइबरस्पेस क्षेत्र में क्षमता निर्माण, महत्त्वपूर्ण अवसंरचना की सुरक्षा, उभरती प्रौद्योगिकियों में सहयोग, साइबर सुरक्षा खतरों/घटनाओं के बारे में जानकारी साझा करने तथा उनका मुकाबला करने के लिये आवश्यक उपाय, सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (ICT) की अवसंरचना की सुरक्षा से संबंधित साइबर खतरों से निपटने के लिये एक संयुक्त तंत्र का विकास करना आदि शामिल है।
  • सहयोग ज्ञापन का महत्त्व
    • कोरोना वायरस महामारी ने विश्व भर की कंपनियों को डिजिटल प्रोद्योगिकी और तकनीक पर काफी अधिक निर्भर बना दिया है, जिससे साइबर हमलों का खतरा भी काफी बढ़ गया है।
    • ऐसे में यदि भारतीय कंपनियों पर योजनाबद्ध तरीके से साइबर हमले किये जाते हैं, तो यह न केवल उन कंपनियों के लिये नुकसानदायक होगा, बल्कि इससे भारतीय अर्थव्यवस्था को भी खासा नुकसान झेलना पड़ सकता है। अतः इस प्रकार के समझौते भारत की सुरक्षा और विकास की दृष्टि से काफी महत्त्वपूर्ण हैं।
    • केंद्रीय मंत्रिमंडल ने साइबर सुरक्षा को लेकर जापान के साथ समझौते को एक ऐसे समय में मंज़ूरी दी है, जब भारत और चीन के बीच सीमा पर गतिरोध चल रहा है और संभावित साइबर हमले को रोकने की दृष्टि से सरकार ने चीन के 100 से अधिक मोबाइल एप्लीकेशन्स पर प्रतिबंध लगा दिया है।
    • यह समझौता भारत में 5-जी तकनीक की दृष्टि से भी काफी महत्त्वपूर्ण है, कई जानकार मान रहे हैं कि भारत-चीन सीमा पर गतिरोध के कारण संभवतः चीन की कंपनियों को भारत के 5-जी क्षेत्र में शामिल होने से रोक दिया जाए और यदि ऐसा होता है तो जापान की कंपनियों के माध्यम से उस खाली स्थान को भरा जा सकता है।

साइबर सुरक्षा का अर्थ?

  • सरल शब्दों में साइबर सुरक्षा का अभिप्राय किसी कंप्यूटर, सर्वर, मोबाइल डिवाइस, इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम, नेटवर्क, प्रोग्राम या किसी अन्य उपकरण को किसी संभावित साइबर अपराध या हमले से बचाने की प्रक्रिया से है।
  • साइबर अपराध के मामलों में अपराधी किसी कंप्यूटर या अन्य उपकरण का उपयोग, उपयोगकर्त्ता की व्यक्तिगत जानकारी, गोपनीय व्यावसायिक जानकारी, सरकारी जानकारी या किसी डिवाइस को अक्षम करने के लिये कर सकता है। 
    • उपरोक्त सूचनाओं को ऑनलाइन बेचना या खरीदना भी एक साइबर अपराध ही है।
  • इस प्रकार के हमलों को प्रायः अवैध रूप से किसी संवेदनशील डेटा तक पहुँचने, उसे नष्ट करने या उससे पैसे प्राप्त करने के लिये डिज़ाइन किया जाता है।
  • इंडो-पैसिफिक क्षेत्र पर चर्चा
    • भारत और जापान के विदेश मंत्रियों की रणनीतिक वार्ता के दौरान दोनों देशों के लिये इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के महत्त्व पर भी चर्चा की गई।
    • ध्यातव्य है कि भारत और जापान दोनों की इंडो-पैसिफिक नीति और विज़न में काफी समानताएँ हैं, इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के प्रति दोनों देशों के दृष्टिकोण कानून के शासन और संप्रभुता तथा क्षेत्रीय अखंडता के प्रति सम्मान पर आधारित हैं।
    • भारत और जापान दोनों ही देशों के लिये इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन की बढ़ती आक्रामकता का मुकाबला करना आवश्यक है।
    • भारत ने नवंबर 2019 में पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में हिंद-प्रशांत महासागर पहल (IPOI) का शुभारंभ किया था, अब जापान ने इस पहल में अग्रणी साझेदार बनने और संयुक्त रूप से इंडो-पैसिफिक के लिये दोनों देशों के दृष्टिकोणों को आगे ले जाने पर सहमति व्‍यक्‍त की है।

भारत-जापान संबंध में हालिया घटनाक्रम

  • ध्यातव्य है कि बीते दिनों भारत और जापान ने एक रसद समझौते पर हस्ताक्षर किये थे, जिसका उद्देश्य दोनों देशों के सशस्त्र बलों के मध्य सेवाओं और आपूर्ति में समन्वय स्थापित करना था।
  • भारत और जापान दोनों ही ‘क्वाड’ (Quad) पहल का हिस्सा हैं।
    • ‘चतुर्भुज सुरक्षा संवाद’ (Quadrilateral Security Dialogue) अर्थात् क्वाड भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के बीच अनौपचारिक रणनीतिक वार्ता मच है। 
    • हाल ही में भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका के विदेश मंत्रियों की बैठक टोक्यो (जापान) में आयोजित की गई है।
  • अक्तूबर 2018 में भारत के प्रधानमंत्री की जापान यात्रा के दौरान ‘भारत-जापान डिजिटल साझेदारी’ (India-Japan Digital Partnership) की शुरुआत की गई।
  • अगस्त 2011 में भारत-जापान व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते (India-Japan Comprehensive Economic Partnership Agreement- CEPA) को लागू किया गया जो वस्तुओं, सेवाओं, निवेश, बौद्धिक संपदा अधिकार, सीमा शुल्क प्रक्रिया तथा व्यापार से संबंधित अन्य मुद्दों को कवर करता है।
  • भारत व जापान के बीच जिमैक्स (JIMEX), शिन्यु मैत्री (SHINYUU Maitri) तथा धर्म गार्जियन (Dharma Guardian) नामक द्विपक्षीय सैन्य अभ्यासों का आयोजन किया जाता है।
  • दोनों देश संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ मालाबार अभ्यास (Malabar Exercise) में भी भाग लेते हैं।

आगे की राह

  • बीते कुछ दशकों में जापान नवाचार और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अग्रणी भूमिका में आ गया है और यही कारण है कि यदि भारत को आधुनिक तकनीक के क्षेत्र में विकास करना है तो उसे जापान के साथ यथासंभव सहयोग करना होगा। 
  • कई जानकर मेक इन इंडिया (Make in India) को लेकर भारत और जापान के संबंधों में संभावनाएँ तलाश रहे हैं। भारतीय कच्चे माल और श्रम के साथ जापानी डिजिटल तकनीक का विलय कर संयुक्त उद्यम लगाए जा सकते हैं।
  • एशिया एवं इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन की बढ़ती आक्रामकता से निपटने के लिये भारत और जापान दोनों के लिये एक-दूसरे के साथ सहयोग करना आवश्यक है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 


विरोध प्रदर्शन के अधिकार पर उच्चतम न्यायालय का निर्णय

प्रिलिम्स के लिये:

मौलिक अधिकार, अनुच्छेद-19

मेन्स के लिये: 

लोकतंत्र और असहमति का अधिकार, भारतीय लोकतंत्र में उच्चतम न्यायालय की भूमिका 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने एक मामले की सुनवाई के दौरान स्पष्ट किया कि विरोध प्रदर्शन करने के लिये सार्वजनिक मार्गों या स्थलों पर पर कब्ज़ा नहीं किया जा सकता।

प्रमुख बिंदु:

  • उच्चतम न्यायालय की तीन सदस्यीय पीठ ने नागरिकता संशोधन अधिनियम के विरोध में दिल्ली के शाहीन बाग में प्रदर्शनकारियों द्वारा सार्वजनिक सड़क पर कब्ज़ा करने की घटना को अस्वीकरणीय बताया।
  • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि शाहीन बाग में आयोजित प्रदर्शन सार्वजनिक मार्ग की नाकाबंदी थी, जिससे यात्रियों को भारी असुविधा का सामना करना पड़ा।  

पृष्ठभूमि: 

  • उच्चतम न्यायालय का यह फैसला एक याचिका की सुनवाई के दौरान आया है, जिसमें राजधानी दिल्ली के शाहीन बाग में प्रदर्शनकारियों को हटाए जाने की मांग की गई थी।
  • गौरतलब है कि दिल्ली के शाहीन बाग इलाके में दिसंबर 2019 से मार्च 2020 के बीच नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 के खिलाफ धरना प्रदर्शन का आयोजन किया गया था।
  • 14 जनवरी, 2020 को इस मामले में दायर एक याचिका की सुनवाई करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने कोई विशेष आदेश दिये बिना मामले को बंद कर दिया। 
  • दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि दिल्ली पुलिस के पास किसी भी विरोध या आंदोलन की स्थिति में जनता के हित को देखते हुए यातायात को नियंत्रित करने के लिये सभी शक्तियाँ और अधिकार हैं।

नेतृत्त्व का अभाव:  

  • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि देश में COVID-19 महामारी की शुरुआत के बाद भी प्रदर्शनकारी प्रदर्शन स्थल पर बने रहे। न्यायालय के अनुसार, इस बात की भी संभावना अधिक है कि  प्रदर्शनकारियों को COVID-19 की गंभीरता का अनुमान नहीं था।  
  • उच्चतम न्यायालय ने इस विरोध प्रदर्शन में नेतृत्त्व के अभाव को रेखांकित किया, साथ ही न्यायालय ने इसे आधुनिक समय में आमतौर पर डिजिटल मीडिया से उत्पन्न होने वाले  नेतृत्वविहीन असंतोष का उदाहरण बताया।    
  • किसी नेतृत्व के अभाव और कई समूहों की उपस्थिति में इस प्रदर्शन में कई प्रभावकारी लोग खड़े हो गए और प्रदर्शन का कोई एक उद्देश्य नहीं रह गया था।
  • उच्चतम न्यायालय ने ऐसे बड़े प्रदर्शनों में सोशल मीडिया और तकनीकी की भूमिका तथा इसके दुष्प्रभावों को भी रेखांकित किया। 
  • वर्तमान में डिज़िटल इंफ्रास्ट्रक्चर के उपयोग के माध्यम से बहुत ही कम समय में किसी आंदोलन को अत्यधिक बड़ा बनाया जा सकता है, इसके कारण अक्सर कई नेतृत्त्वविहीन आंदोलन आवश्यक सेंसरशिप से बच जाते हैं।
  • उच्चतम न्यायालय ने सोशल मीडिया चैनलों के माध्यम से ध्रुवीकृत वातावरण के निर्माण जैसे खतरों पर चिंता व्यक्त की।

अधिकारों की सीमाएँ:   

  • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि मौलिक अधिकार समाज से अलग नहीं हैं, विरोधकर्त्ताओं के अधिकारों का यात्रियों के अधिकारों के साथ संतुलन आवश्यक है। दोनों को परस्पर सम्मान के साथ रहना होगा।
  • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि वह याचिकाकर्त्ताओं (जिन्होंने प्रदर्शनकारियों के बचाव में मामले में हस्तक्षेप करने की मांग की थी) की दलील को नहीं स्वीकार सकता कि वे जब भी विरोध करना चाहें,एक अनिश्चित संख्या में लोग इकट्ठा हो सकते हैं। 
  • इस प्रकार के विरोध प्रदर्शन के लिये सार्वजनिक मार्ग (संबंधित मामले में या कई और भी) पर कब्ज़ा पूर्णरूप से अस्वीकार्य है और प्रशासन को ऐसे मामलों में अतिक्रमण या अवरोध हटाने के लिये आवश्यक कार्रवाई करनी चाहिये। 

प्रशासन और उच्च न्यायालय की भूमिका पर प्रश्न:   

  • उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि दिल्ली उच्च न्यायालय को मामले को ऐसे ही न छोड़ते हुए याचिका प्राप्त करने के बाद सकारात्मक हस्तक्षेप करना चाहिये था, साथ ही प्रशासन को भी प्रदर्शनकारियों से बात करनी चाहिये थी। 
  • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि यह पूरी तरह से प्रशासन की ज़िम्मेदारी है कि वह सार्वजनिक स्थानों पर अतिक्रमण को रोके और इसके लिये उसे न्यायालय द्वारा उपयुक्त आदेश पारित करने की प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिये। 

लोकतंत्र और असहमति: 

(Democracy and Dissent)

  • उच्चतम न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि लोकतंत्र और असहमति साथ-साथ चलते हैं, परंतु असहमति व्यक्त करने वाले विरोध प्रदर्शन सिर्फ निर्धारित स्थानों पर ही होने चाहिये।  
  • स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भारतीयों में विरोध और असंतोष व्यक्त करने के बीज बोए गए थे। परंतु औपनिवेशिक शासन के खिलाफ असंतोष को स्व-शासित लोकतंत्र में असंतोष के साथ नहीं जोड़ा जा सकता है। 
  • संविधान के तहत सभी को विरोध और असंतोष व्यक्त करने का अधिकार प्राप्त है परंतु इसके साथ कुछ कर्तव्यों के प्रति हमारे कुछ दायित्व भी हैं।   
  • संविधान के अनुच्छेद-19 के तहत नागरिकों को दो महत्त्वपूर्ण अधिकार प्रदान किये गए हैं-
    • अनुच्छेद-19 (1)(a) के तहत बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार 
    • अनुच्छेद-19 (1)(b) के तहत बिना हथियार किसी स्थान पर शांतिपूर्वक इकट्ठा होने का अधिकार।
    • ये अधिकार एक साथ मिलकर नागरिकों को शांति से इकट्ठा होने और राज्य की कार्रवाई या निष्क्रियता के खिलाफ विरोध करने में सक्षम बनाते हैं।
  • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि लोकतंत्र में बोलने की स्वतंत्रता और शांतिपूर्ण विरोध के अधिकार को बहुमूल्य माना जाता है अतः इन्हें प्रोत्साहित और सम्मानित किया जाना चाहिये
  • परंतु ये अधिकार संप्रभुता, अखंडता और सार्वजनिक व्यवस्था के हित के लिये लगाए गए उचित प्रतिबंधों के अधीन भी हैं [अनुच्छेद-19(2) के तहत]।

पूर्व के मामले:  

  • उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली के जंतर-मंतर पर प्रदर्शनों से संबंधित ‘मज़दूर किसान शक्ति संगठन बनाम भारत संघ’ के अपने 2018 के फैसले और एक अन्य मामले का भी उल्लेख किया। 
  • उच्चतम न्यायालय ने अपने निर्णय में प्रदर्शनकारियों और स्थानीय लोगों के हितों को लेकर संतुलन स्थापित करने का प्रयास किया तथा पुलिस को शांतिपूर्ण विरोध और प्रदर्शनों के लिये क्षेत्र के सीमित उपयोग हेतु एक उचित तंत्र तैयार करने एवं इसके लिये अन्य मापदंड निर्धारित करने का निर्देश दिया।
  • उच्चतम न्यायालय ने सरकारों को नागरिकों के ‘बोलने की स्वतंत्रता और शांतिपूर्ण विरोध के अधिकार’ को प्रोत्साहित तथा सम्मानित करने का सुझाव दिया 

स्रोत: द हिंदू


स्टॉकहोम कन्वेंशन के तहत सूचीबद्ध सात स्थायी कार्बनिक प्रदूषकों के सत्यापन को मंज़ूरी

प्रिलिम्स के लिये:

स्टॉकहोम कन्वेंशन, वैश्विक पर्यावरण सुविधा, स्‍थायी कार्बनिक प्रदूषक, 

मेन्स के लिये:

स्थायी कार्बनिक प्रदूषक तथा स्टॉकहोम कन्वेंशन और कन्वेंशन के तहत सूचीबद्ध स्थायी कार्बनिक प्रदूषकों के सत्यापन का महत्त्व

चर्चा  में क्यों?

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने स्‍थायी कार्बनिक प्रदूषकों (Persistent Organic Pollutants- POPs) के बारे में स्टॉकहोम समझौते में सूचीबद्ध सात रसायनों के सत्‍यापन की मंज़ूरी दे दी है। इसके अलावा मंत्रिमंडल ने घरेलू नियमों के तहत विनियमित की गई प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने के उद्देश्‍य से POPs के संबंध में अपनी शक्तियाँ केंद्रीय विदेश मंत्रालय (Ministry of External Affairs-MEA) और पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Ministry of Environment, Forest and Climate Change-MoEFCC) को सौंप दी हैं।

प्रमुख बिंदु:

स्‍थायी कार्बनिक प्रदूषक (POPs): POPs चिह्नित रसायनिक पदार्थ हैं, जिनकी विशेषता इस प्रकार है-

  • पर्यावरण में दीर्घकाल तक उपस्थिति
  • सजीवों के फैटी एसिड में जैव-संचय
  • मानव स्वास्थ्य तथा पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव
    • POPs के संपर्क में आने से कैंसर हो सकता है, केंद्रीय और परिधीय तंत्रिका तंत्र को नुकसान पहुँचता है, प्रतिरक्षा प्रणाली संबंधी बीमारियाँ होती है, प्रजनन संबंधी विकार उत्पन्न होते हैं और सामान्य शिशुओं एवं बच्‍चों का विकास बाधित हो सकता है।
  • ये लॉन्ग रेंज एनवायरमेंटल ट्रांसपोर्ट (LERT) की प्रकृति रखते हैं।

स्टॉकहोम कन्वेंशन:

(Stockholm Convention)

  • यह मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण को POPs से बचाने के लिये एक वैश्विक संधि है।
  • यह समझौता स्टॉकहोम (स्वीडन) में वर्ष 2001 में हस्ताक्षर के लिये आमंत्रित किया गया था और वर्ष 2004 में प्रभावी हो गया।
  • सदस्य देशों के बीच गहन वैज्ञानिक अनुसंधान, विचार-विमर्श और वार्ता के बाद स्टॉकहोम कन्वेंशन के विभिन्न अनुलग्नकों में POPs को सूचीबद्ध किया गया है।
  • यह अभिसमय एक दर्ज़न खराब रसायनों/Dirty Dozen Chemicals (प्रमुख POPs) में से नौ पर प्रतिबंध लगाने, DDT का उपयोग मलेरिया नियंत्रण तक सीमित करने और डायोक्सिन एवं फ़्यूरेन के असावधानीपूर्वक किये जाने वाले उत्पादन पर अंकुश लगाने के लिये लाया गया है। यह अभिसमय/समझौता/कन्वेंशन बारह अलग-अलग रसायनों को तीन श्रेणियों में सूचीबद्ध करता है:
    • आठ कीटनाशक (एल्ड्रिन, क्लोर्डेन, डीडीटी, डाइड्रिन, एंड्रीन, हेप्टाक्लोर, मिरेक्स और टॉक्सैफिन)
    • दो औद्योगिक रसायन (पॉली क्लोरीनेटिड बाइफिनाइल और हेक्साक्लोरोबेंज़ेन)
    • क्लोरीन निहित कई औद्योगिक प्रक्रियाओं के दो अनभिप्रेत उप-उत्पाद, उदाहरण के तौर पर-अपशिष्ट भस्मीकरण (Waste Incineration), रासायनिक एवं कीटनाशक उत्पादक तथा लुगदी और पेपर ब्लीचिंग (पॉली क्लोरीनेटिड डिबेंज़ो-पी-डाइऑक्सिन एवं डाइबेंज़ोफ्यूरेन, आमतौर पर इन्हें डाइऑक्सिन और फ्यूरेन के रूप में जाना जाता है)।

उद्देश्य:

  • सुरक्षित विकल्पों के संक्रमण का समर्थन करना।
  • कार्रवाई के लिये अतिरिक्त POPs को लक्षित करना।
  • POPs युक्त पुराने स्टॉकपाइल्स और उपकरण की सफाई करना।
  • POP-मुक्त भविष्य के लिये मिलकर काम करना।

भारत द्वारा समझौते की पुष्टि:

  • भारत ने अनुच्छेद 25 (4) के अनुसार, 13 जनवरी, 2006 को स्टॉकहोम समझौते की पुष्टि की थी जिसने इसे स्वयं को एक डिफ़ॉल्ट "ऑप्ट-आउट" स्थिति में रखने के लिये सक्षम बनाया, ताकि समझौते के विभिन्न अनुलग्नकों में संशोधन तब तक लागू न हो सकें जब तक कि सत्‍यापन/स्वीकृति/अनुमोदन या मंज़ूरी का प्रपत्र स्पष्ट रूप से संयुक्त राष्ट्र के न्यासी/धरोहर स्थान (Depositary) में जमा न हो जाए।

मंत्रिमंडल का हालिया निर्णय: 

  • केंद्रीय मंत्रिमंडल ने स्टॉकहोम कन्वेंशन के तहत सूचीबद्ध सात रसायनों के अनुसमर्थन को मंज़ूरी दी है। इन रसायनों को POPs के लिये निम्नलिखित घरेलू प्रावधान के तहत विनियमित किया जाता है:
  • सुरक्षित वातावरण प्रदान करने और मानव स्वास्थ्य जोखिमों को दूर करने की दिशा में अपनी प्रतिबद्धता को ध्‍यान में रखते हुए, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने पर्यावरण (संरक्षण) कानून, 1986 के प्रावधानों के अंतर्गत 5 मार्च, 2018 को ‘दीर्घकालिक/स्थायी जैविक प्रदूषकों के विनियमन' को अधिसूचित किया था।
  • अन्‍य बातों के अलावा विनियमन में निम्नलिखित सात रसायनों के उत्‍पादन, व्यापार, उपयोग, आयात और निर्यात को प्रतिबंधित कर दिया था, जो स्टॉकहोम समझौते के अंतर्गत POPs के रूप में पहले से ही सूचीबद्ध हैं: 
    1. क्‍लोरडीकोन (Chlordecone)
    2. हेक्‍साब्रोमोडीफिनाइल (Hexabromobiphenyl)
    3. हेक्‍साब्रोमोडीफिनाइल इथर और हेप्टाब्रोमोडीफिनाइल (कमर्शियल पेंटा-बीडीई) [Hexabromodiphenyl ether and Hepta Bromodiphenyl Ether (Commercial octa-BDE)]
    4. टेट्राब्रोमोडीफिनाइल इथर और पेंटाब्रोमोडीफिनाइल [Tetrabromodiphenyl ether and Pentabromodiphenyl ether (Commercial penta-BDE)]
    5. पेंटाक्‍लोरोबेंजीन (Pentachlorobenzene)
    6. हेक्‍साब्रोमोसाइक्‍लोडोडीकेन (Hexabromocyclododecane)
    7. हेक्‍साक्‍लोरोबूटाडीन (Hexachlorobutadiene)

निर्णय का महत्त्व:

  • POPs के सत्‍यापन के लिये कैबिनेट की मंज़ूरी पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य की रक्षा के संबंध में अपने अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों को पूरा करने की भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। 
  • यह नियंत्रण उपायों को लागू करने, अनजाने में उत्पादित रसायनों के लिये कार्य योजनाओं को विकसित और कार्यान्वित करने, रसायनों के भंडार के आविष्कारों को विकसित करने तथा समीक्षा करने के साथ-साथ अपनी राष्ट्रीय कार्यान्वयन योजना (NIP) को अद्यतन करने के लिये POPs पर सरकार के संकल्प को भी दर्शाता है।
  • सत्‍यापन प्रक्रिया भारत को NIP को आधुनिक बनाने में वैश्विक पर्यावरण सुविधा (GEF) वित्तीय संसाधनों तक पहुँचने में सक्षम बनाएगी।

वैश्विक पर्यावरण सुविधा:

(Global Environment Facility- GEF)

  • GEF की स्थापना वर्ष 1992 के रियो पृथ्वी  शिखर सम्मेलन (Rio Earth Summit) के दौरान हुई थी।
  • इसका मुख्यालय वाशिंगटन डी.सी., अमेरिका में है।
  • GEF का प्रबंधन संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP), विश्व बैंक और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) द्वारा संयुक्त रूप से किया जाता है।
  • इस वित्तीय तंत्र की स्थापना हमारे ग्रह की सबसे व्यापक पर्यावरणीय समस्याओं से निपटने में मदद करने के लिये की गई थी।
  • यह जलवायु परिवर्तन, जैव-विविधता, ओज़ोन परत आदि से संबंधित परियोजनाओं के लिये विकासशील देशों और संक्रमण अर्थव्यवस्थाओं को निधि उपलब्ध कराता है।
  • यह 5 प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण सम्मेलनों के लिये एक वित्तीय तंत्र उपलब्ध कराता है:

स्रोत: पी.आई.बी.


SRP ‘एश्योरेंस स्कीम’ तथा ‘इकोलेबल’

प्रिलिम्स के लिये:

सस्टेनेबल राइस प्लेटफॉर्म, इकोलेबल, एश्योरेंस स्कीम, SRP- VERIFIED लेबल, IRRI, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम, GLOBALG.A.P, NEPCon-Preferred by Nature, International Food Policy Research Institute

मेन्स के लिये:

धान के पर्यावरणीय प्रभाव तथा इसके नियंत्रण में SRP ‘एश्योरेंस स्कीम’ तथा ‘इकोलेबल’ की भूमिका

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सस्टेनेबल राइस प्लेटफॉर्म (Sustainable Rice Platform- SRP) ने उपभोक्ताओं तथा वैश्विक रूप से धान के हितधारकों के लिये एक नई ‘एश्योरेंस स्कीम’ तथा ‘इकोलेबल’ लॉन्च किया है जिससे उपभोक्ताओं तथा दुकानदारों को संवहनीय रूप से उत्पादित धान की पहचान करने में मदद मिलेगी।

"SRP- VERIFIED” लेबल

  • सस्टेनेबल राइस प्लेटफॉर्म (SRP) ने "SRP- VERIFIED” लेबल विकसित किया है जिसका उद्देश्य विश्व में सर्वाधिक उगाई जाने वाली फसलों में से एक के पर्यावरणीय प्रभाव को कम करना है।

सस्टेनेबल राइस प्लेटफॉर्म (SRP)

  • सस्टेनेबल राइस प्लेटफॉर्म (SRP) की स्थापना दिसंबर 2011 में की गई थी। 
  • संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) और अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (IRRI) के नेतृत्व में यह एक वैश्विक बहु-हितधारक गठबंधन है, जिसमें एक साथ 100 से अधिक सार्वजनिक, निजी, अनुसंधान, वित्तीय संस्थान और नागरिक समाज संगठन शामिल हैं। 
  • इसका उद्देश्य वैश्विक चावल क्षेत्र में व्यापार प्रवाह, उत्पादन एवं खपत के संचालन और आपूर्ति शृंखलाओं में संसाधन दक्षता एवं निरंतरता को बढ़ावा देना है।

SRP-Verified

  • नए लेबल के साथ, उपभोक्ता चावल उत्पादन के मूल देश का पता लगाने में सक्षम होंगे। इस योजना से पूरे चावल उद्योग को भी लाभ होगा। 
  • SRP-सत्यापित चावल का स्टॉक करके, खुदरा विक्रेता संवहनीयता संबंधी प्रतिबद्धताओं और जलवायु परिवर्तन लक्ष्यों में महत्त्वपूर्ण योगदान कर सकते हैं। उद्योग के अभिकर्त्ता भी SRP-सत्यापित आपूर्तिकर्त्ताओं के माध्यम से सोर्सिंग द्वारा अपनी आपूर्ति शृंखलाओं के जोखिम को कम करने और संवहनीयता सुनिश्चित करने में सक्षम होंगे।

न्यू एश्योरेंस स्कीम

(New Assurance Scheme)

  • नई एश्योरेंस स्कीम, संवहनीय धान कृषि के लिये SRP मानक (SRP Standard for Sustainable Rice Cultivation) पर आधारित है, जो चावल/धान के लिये विश्व का स्वैच्छिक संवहनीयता मानक है। इसे सिद्ध सर्वोत्तम प्रथाओं द्वारा रेखांकित किया गया है और अनुपालन का आकलन करने के लिये एक विज्ञान-आधारित प्रक्रिया निर्धारित की गई है। 
  • धान की खेती में सर्वोत्तम प्रथाओं को लागू करने से जल के उपयोग में 20% की कमी हो सकती है और बाढ़ वाले धान के खेतों से मीथेन उत्सर्जन में 50% तक की कमी हो सकती है।
  • इस योजना का प्रबंधन जर्मनी स्थित ग्लोबल जी.ए.पी. (GLOBALG.A.P) द्वारा किया जाएगा, जो SRP मानक के अनुसार उत्पादकों के निरीक्षण के लिये उत्तरदायी योग्य सत्यापन निकायों के अनुमोदन की निगरानी करेगा। 
    • डेनमार्क-आधारित गैर-लाभकारी संगठन NEPCon-Preferred by Nature- जो बेहतर भूमि प्रबंधन तथा व्यावसायिक प्रथाओं का समर्थन करता है, पहला संगठन है जिसे SRP सत्यापन ऑडिट करने के लिये अनुमोदित किया गया है।

ग्लोबल जी.ए.पी.

  • ग्लोबल जी.ए.पी. (GLOBALG.A.P.) एक एक वैश्विक संगठन है जिसका प्रमुख उद्देश्य विश्व भर में सुरक्षित एवं सतत्/संवहनीय कृषि को बढ़ावा देना है। यह विश्व भर में कृषि उत्पादों के प्रमाणीकरण के लिये स्वैच्छिक मानकों का निर्धारण करता है तथा उनका संचालन करता है।
  • GLOBALG.A.P. की शुरुआत वर्ष 1997 में EUREPGAP के रूप में शुरू हुईं, जो कि यूरो-रिटेलर वर्किंग ग्रुप से संबंधित खुदरा विक्रेताओं की एक पहल है।
  • अपनी वैश्विक पहुँच और अग्रणी अंतर्राष्ट्रीय G.A.P. (Good Agricultural Practice) मानक को दर्शाने के लिये EUREPGAP ने वर्ष 2007 में अपना नाम बदलकर GLOBALG.A.P. कर लिया।

आगे की राह

  • विश्व भर में 3.5 बिलियन से अधिक लोग एक दैनिक भोज्य पदार्थ के रूप में चावल पर निर्भर हैं, लेकिन निर्विवाद रूप से यह फसल पर्यावरण को प्रभावित करती है। धान की खेती विश्व में ताज़े जल के संसाधनों का एक-तिहाई तक उपभोग करती है और एक अत्यंत प्रभावशाली ग्रीनहाउस गैस मीथेन का उत्सर्जन करती है। धान के खेतों से होने वाले मीथेन का यह उत्सर्जन वैश्विक रूप मानवजनित उत्सर्जन का 20% तक होता है। 
  • अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान (International Food Policy Research Institute) के अनुसार, वैश्विक रूप से बढ़ते तापमान के कारण यह जीवनदायी फसल भी प्रभावित होगी तथा जलवायु परिवर्तन के कारण वर्ष 2050 तक इसके उत्पादन में 15% तक की गिरावट आने की संभावना है।
  • विश्व के 144 मिलियन चावल उत्पादकों में से 90% या तो गरीबी रेखा पर या इसके आस-पास जीवन-यापन कर रहे हैं ऐसे में SRP प्रणालियों को अपनाने से किसानों की शुद्ध आय 10-20% तक बढ़ सकती है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण हेतु UNCDF की पहल

प्रिलिम्स के लिये:

वूमेंस वर्ल्ड बैंकिंग, बीजिंग घोषणा, सतत् विकास लक्ष्य

मेन्स के लिये:  

महिला सशक्तीकरण में संयुक्त राष्ट्र की भूमिका, वित्तीय समावेशन हेतु सरकार के प्रयास 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र पूंजी विकास कोष (United Nations Capital Development Fund- UNCDF) और ‘वूमेंस वर्ल्ड बैंकिंग’ (Women’s World Banking) ने विश्व के उभरते हुए बाज़ारों एवं अल्प विकसित देशों में महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण को बढ़ावा देने के लिये एक रणनीतिक साझेदारी  की घोषणा की है।

प्रमुख बिंदु:

  • UNCDF और वूमेंस वर्ल्ड बैंकिंग की इस साझेदारी के माध्यम से विश्व भर में नीति निर्माताओं और वित्तीय सेवा प्रदाताओं से वित्तीय संसाधनों तक महिलाओं की पहुँच को बढ़ाने पर विशेष ध्यान देने की मांग की गई है।
  • वर्तमान में वैश्विक स्तर पर 1 बिलियन से अधिक महिलाएँ औपचारिक वित्तीय प्रणाली की पहुँच से बाहर हैं ।

आवश्यकता और महत्त्व :

  • एक अनुमान के अनुसार, वर्तमान वैश्विक अर्थव्यवस्था में महिलाओं के असंगठित क्षेत्र में काम करने की संभावनाएँ अधिक हैं। 
  •  COVID-19 महामारी के कारण लैंगिक समानता के क्षेत्र में हुई प्रगति के दशकों पीछे चले जाने का खतरा उत्पन्न हुआ है। 
  • महिलाओं के औपचारिक वित्तीय प्रणाली और संगठित क्षेत्र के रोज़गार से न जुड़े होने के कारण उनके लिये COVID-19 से उत्पन्न  चुनौतियों से निपटना बहुत ही कठिन होगा।
  • सतत् विकास और वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं में लचीलापन लाने के लिये महिलाओं का वित्तीय समावेशन एक महत्त्वपूर्ण अवसर प्रदान करता है।

महिलाओं के वित्तीय समावेशन हेतु साझा प्रयास:     

  • डिजिटल वित्तीय समाधानों और नवोन्मेषी वित्त प्रणाली में अपनी सामूहिक शक्तियों के समायोजन के साथ-साथ वैश्विक पहुँच के माध्यम से UNCDF तथा  ‘वूमेंस वर्ल्ड बैंकिंग’ द्वारा महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण एवं विश्व के सबसे चुनौतीपूर्ण बाज़ारों में उनकी भागीदारी में आने वाली बाधाओं को दूर करने का प्रयास किया जाएगा।
  • इसके तहत महिला उद्यमियों के लिये वित्तपोषण को बढ़ाने हेतु निवेश के साधनों पर विशेष ध्यान दिया जाएगा।
  • साथ ही वित्तीय समावेशन का विस्तार करने हेतु डिजिटल वित्तीय समाधानों का उपयोग करना और उन्हें आगे बढ़ाने जैसे प्रयास भी शामिल किये जाएंगे। 
  • COVID-19 के कारण उत्पन्न चुनौतियों को देखते हुए UNCDF और वूमेंस वर्ल्ड बैंकिंग द्वारा वित्तीय सेवाओं तक महिलाओं की पहुँच सुनिश्चित करने के लिये समाधान, अवसरों और साझेदारियों की पहचान करने पर विशेष ध्यान दिया जाएगा।
  • साथ ही इस क्षेत्र में कार्य करने के लिये प्रतिबद्ध अन्य संस्थाओं को सहभागिता के लिये आमंत्रित किया जाएगा, इसमें सरकार, विकास वित्त संस्थान, वित्तीय सेवा प्रदाता, फिनटेक (FinTech) और निवेशक आदि शामिल हैं।  

लाभ:     

  • इस पहल के माध्यम से अल्प विकसित देशों में महिलाओं और लड़कियों का वित्तीय समावेशन (Financial Inclusion) और उन तक डिजिटल वित्तीय सेवाओं की पहुँच को बढ़ाया जाएगा।
  • इस साझेदारी के माध्यम से COVID-19 के कारण उत्पन्न हुई आर्थिक चुनौती से निपटने के साथ सतत् विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals-SDGs) को प्राप्त करने में सहायता मिलेगी।
    • गौरतलब है कि  SDG के तहत निर्धारित 17 लक्ष्यों में 5वाँ लक्ष्य लैंगिक समानता प्राप्त करने के साथ ही महिलाओं और लड़कियों को सशक्त बनाना है।

महिला सशक्तीकरण और भारत  :  

  • हाल ही में बीजिंग घोषणा (Beijing Declaration)  और प्लेटफॉर्म फॉर एक्शन (Platform for Action) की 25वीं वर्षगांँठ पर संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करते हुए केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री ने लैंगिक समानता के लिये भारत के प्रयासों और उपलब्धियों को रेखांकित किया।
  • भारत द्वारा महिला सशक्तीकरण हेतु स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिये आरक्षण और बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ जैसी योजनाएँ तथा औपचारिक बैंकिंग प्रणाली के तहत "200 मिलियन से अधिक महिलाओं" को जोड़ने जैसी कई महत्त्वपूर्ण पहलों की शुरुआत की गई है।
  • इसके साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं को प्रत्यक्ष वित्तीय प्रणाली से जोड़ने में ‘प्रधानमंत्री जन धन योजना’ (Pradhan Mantri Jan Dhan Yojana- PMJDY) की भूमिका भी महत्त्वपूर्ण रही है।
    • ध्यातव्य है कि PMJDY के तहत खोले गए लगभग 40.35 करोड़ बैंक खातों में से 63.6% ग्रामीण क्षेत्रों से हैं और इस योजना में महिलाओं की भागीदारी 55.2% रही है।  

वूमेंस वर्ल्ड बैंकिंग (Women’s World Banking): 

  • ‘वूमेंस वर्ल्ड बैंकिंग’ एक गैर-लाभकारी संस्था है।
  • इसकी स्थापना वर्ष 1979 में की गई थी।
  • यह संस्था महिलाओं, उनके परिवार और समुदाय की आर्थिक स्थिरता एवं समृद्धि सुनिश्चित करने के लिये उभरते बाज़ारों में वित्तीय समस्याओं का समाधान, संस्थानों और नीतिगत वातावरण की अभिकल्पना के साथ इनमें निवेश करने का कार्य करती है।
  • यह संस्था वर्तमान में 28 देशों में 51 संस्थानों के साथ काम करते हुए कम आय वाली महिलाओं को वित्तीय सेवाओं से जोड़ती है जिससे उनके वित्तीय समावेशन और आर्थिक सशक्तीकरण को प्रोत्साहित किया जा सके।
  • वूमेंस वर्ल्ड बैंकिंग का मुख्यालय न्यूयॉर्क (संयुक्त राज्य अमेरिका) में स्थित है।

संयुक्त राष्ट्र पूंजी विकास कोष

(United Nations Capital Development Fund- UNCDF):

  • संयुक्त राष्ट्र पूंजी विकास कोष (UNCDF) अल्पविकसित देशों में वित्तीय कार्य करने की विशेषज्ञता वाली संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी है।
  • इसकी स्थापना वर्ष 1966 में संयुक्त राष्ट्र के अंतर्गत एक स्वायत्त संगठन के रूप में की गई थी। 
  • UNCDF सार्वजनिक और निजी संसाधनों के माध्यम से गरीबी को कम करने और स्थानीय आर्थिक विकास को बढ़ावा देने का कार्य करता है। 
  • UNCDF का मुख्यालय न्यूयॉर्क में स्थित है।

स्रोत:  डाउन टू अर्थ


प्राकृतिक गैस के विपणन में सुधार

प्रीलिम्स के लिये

भारत में प्राकृतिक गैस के उत्पादन की स्थिति

मेन्स के लिये

भारत में प्राकृतिक गैस के उत्पादन की स्थिति तथा इसके मूल्य निर्धारण से संबंधित विभिन्न विषय

चर्चा में क्यों?

प्रधानमंत्री की अध्‍यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने गैस आधारित अर्थव्‍यवस्‍था की दिशा में एक और महत्त्वपूर्ण कदम उठाते हुए ‘प्राकृतिक गैस मार्केटिंग (विपणन) सुधारों’ को मंज़ूरी दे दी है।

प्रमुख बिंदु:

  • विशेषज्ञों के अनुसार, कुल उत्पादित प्राकृतिक गैस की 75-80 प्रतिशत मात्रा का मूल्य निर्धारण सरकार द्वारा प्रशासित मूल्य निर्धारण प्रणाली के तहत होता है। 
  • इस नीति का उद्देश्‍य पारदर्शी और प्रतिस्पर्द्धात्मक प्रक्रिया के माध्यम से प्राकृतिक गैस की बिक्री की बोली प्रक्रिया में संबंधित गैस उत्‍पादकों को भाग लेने की अनुमति देना है।
  • इस नीति का एक अन्य उद्देश्‍य ई-बिडिंग (e-bidding) के माध्यम से ठेकेदारों द्वारा की जाने वाली बिक्री हेतु दिशा-निर्देश जारी कर बाज़ार मूल्‍य का पता लगाने के लिये पारदर्शी और प्रतिस्पर्द्धात्मक तरीके से मानक कार्यपद्धति का निर्माण करना है।

संबंधित नीति के बारे में:

  • इस नीति के माध्यम से खुली, पारदर्शी और इलेक्‍ट्रॉनिक बोली को ध्‍यान में रखते हुए संबंधित कंपनियों को बोली प्रक्रिया में भाग लेने की इजाज़त दी गई है। 
  • यदि संबद्ध गैस उत्‍पादक ही इसमें भाग लेते हैं और कोई अन्‍य बोलीकर्त्ता नहीं है तो दोबारा बोली लगानी होगी।
  • नई नीति उन ब्लॉकों की क्षेत्र विकास योजनाओं (Field Development Plans- FDPs) को विपणन की स्वतंत्रता प्रदान करेगी, जिनमें उत्पादन साझाकरण अनुबंध (Production Sharing Contracts) के माध्यम से पहले से ही मूल्य निर्धारण की स्वतंत्रता है।
  • गैस उत्पादक कंपनी द्वारा खुद की गैस को खरीदने के मामले पर रोक जारी रहेगी ताकि इसमें किसी तरह का एकाधिकार प्राप्त न हो सके। हालांकि इन कंपनियों की अनुषंगी कंपनियों को गैस मूल्य निर्धारण के लिये होने वाली नीलामी में बोली लगाने की अनुमति होगी। 

ये सुधार पिछले कुछ वर्षों में सरकार द्वारा किये गए परिवर्तनकारी सुधारों पर आधारित हैं। प्राकृतिक गैस के क्षेत्र में ये सुधार प्रभावी रूप से परिवर्तनकरी होंगे और निम्‍नलिखित क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियों को प्रोत्‍साहित करेंगे-

  1. उत्‍पादन से जुड़ी नीतियों की संपूर्ण पारिस्थितिकी प्रणाली, प्राकृतिक गैस के बुनियादी ढाँचे और विपणन को अधिक पारदर्शी बनाया गया है जिसमें कारोबार को सुगम बनाने पर विशेष ध्‍यान दिया गया है।
  2. ये सुधार प्राकृतिक गैस के घरेलू उत्‍पादन में निवेश को बढ़ावा देकर और आयात निर्भरता को कम करके आत्‍मनिर्भर भारत के लिये काफी महत्त्वपूर्ण साबित होंगे।
  3. ये सुधार निवेश को प्रोत्‍साहित कर गैस आधारित अर्थव्‍यवस्‍था की ओर बढ़ने में मील का पत्‍थर साबित होंगे तथा बढ़े हुए गैस उत्‍पादन का उपभोग पर्यावरण संरक्षण में मदद करेगा।
  4. ये सुधार सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग से संबंधित क्षेत्रों सहित गैस उपभोग के क्षेत्र में रोज़गार के अवसर पैदा करने में मदद करेंगे।
  5. प्राकृतिक गैस का घरेलू उत्‍पादन शहरी गैस वितरण और संबंधित उद्योगों जैसे डाउनस्‍ट्रीम उद्योगों में निवेश बढ़ाने में मदद करेगा।

सरकार के प्रयास:

  • सरकार ने कारोबार को सुगम बनाने पर ध्‍यान केंद्रित करते हुए निवेश को आसान बनाने के लिये अपस्‍ट्रीम क्षेत्र में परिवर्तनकारी सुधारों की शुरुआत की है। ओपन एकरेज लाइसेंसिंग पॉलिसी (Open Acreage Licensing Policy- OALP) जो कि निवेशक चालित क्षेत्रफल आधारित नीलामी प्रक्रिया है,  ने देश में गैस ब्लॉकों के क्षेत्रफल में पर्याप्त वृद्धि की है। 
  • वर्ष 2010-2017 के बीच किसी ब्‍लॉक का आवंटन नहीं किया गया जिससे घरेलू उत्‍पादन की दीर्घकालिक व्‍यवहार्यता प्रभावित हुई। वर्ष 2017 के बाद से 105 अन्‍वेषण ब्‍लॉकों के अंतर्गत 1.6 लाख वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र आवंटित किया गया है। इससे आने वाले समय में घरेलू उत्‍पादन की स्थिरता सुनिश्चित होगी।
  • सरकार गैस क्षेत्र में अनेक सुधार लेकर आई है और इसके परिणामस्‍वरूप पूर्वी तट में 70,000 करोड़ रुपए से अधिक का निवेश किया गया है। पूर्वी तट पर गैस उत्‍पादन में वृद्धि देश की बढ़ती हुई ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा कर आत्‍मनिर्भर भारत के निर्माण में योगदान देगी।
  • फरवरी 2019 में सरकार ने अपस्‍ट्रीम क्षेत्र में बड़े सुधारों को लागू किया और अधिकतम उत्‍पादन पर ध्‍यान देकर सुधारवादी परिवर्तन किये।
  • घरेलू गैस उत्‍पादन में 28 फरवरी, 2019 के बाद मंज़ूर सभी अन्‍वेषण और क्षेत्र विकास योजनाओं को पूर्ण रूप से बाज़ार  मूल्‍य निर्धारित करने की आज़ादी है।

भारत में प्राकृतिक गैस के उत्पादन की वर्तमान स्थिति:

  • भारत वर्तमान में प्राकृतिक गैस का 84 MMSCMD (Million Metric Standard Cubic Meter per Day) उत्पादन करता है और लगभग इतनी ही मात्रा का आयात करता है।
  • इन नए सुधारों के माध्यम से प्राकृतिक गैस के स्थानीय उत्पादन में लगभग 40 MMSCMD की वृद्धि होगी।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस


अफगानिस्तान-ताजिकिस्तान: पारिस्थितिकी संरक्षण समझौता

प्रिलिम्स के लिये

आमू दरिया नदी, पंज नदी

मेन्स के लिये

हालिया समझौते का महत्त्व तथा भारत द्वारा पर्यावरण और जलवायु परिवर्तित की दिशा में किये गए प्रयास

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अफगानिस्तान और ताजिकिस्तान ने पंज तथा आमू दरिया नदी बेसिन के अद्वितीय पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण हेतु किये जाने वाले प्रयासों को मज़बूती प्रदान करने के लिये एक द्विपक्षीय समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किये हैं।

प्रमुख बिंदु

  • ताजिकिस्तान की राजधानी दुशांबे में हस्ताक्षरित इस समझौते की अवधि पाँच वर्ष है और यह मुख्यतः पाँच क्षेत्रों पर केंद्रित है-
    • जलवायु परिवर्तन अनुकूलन
    • जैव विविधता संरक्षण
    • जल गुणवत्ता की निगरानी
    • पर्यावरणीय आकलन
    • पारिस्थितिकी तंत्र प्रबंधन संबंधी ज्ञान और विशेषज्ञता का साझाकरण
  • साथ ही इस समझौते के तहत दोनों देशों ने विकास संबंधी संयुक्त परियोजनाओं के पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) और सीमाओं पर पर्यावरणीय प्रभावों से संबंधित मामलों में एक-दूसरे को सूचित करने की प्रतिबद्धता व्यक्त की है।

समझौते का कार्यान्वयन 

  • समझौते के तहत निर्धारित उद्देश्यों की पूर्ति के लिये दोनों पक्ष निम्नलिखित कार्य करेंगे:
    • संयुक्त तौर पर पर्यावरण संरक्षण से संबंधित सहकारी कार्यक्रमों और गतिविधियों के विकास एवं कार्यान्वयन के लिये उत्तरदायी एक तकनीकी कार्यसमूह (TWG) का गठन करेंगे, जो कि इस समझौते के कार्यान्वयन की रूपरेखा निर्धारित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा।
    • पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन से संबंधित शैक्षणिक एवं तकनीकी कार्यक्रमों का आयोजन करेंगे।
    • पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन जैसे मामलों पर अंतर्राष्ट्रीय संगठनों, निजी क्षेत्र और गैर-सरकारी क्षेत्रों के साथ मिलकर कार्य करेंगे।

महत्त्व

  • अफगानिस्तान और ताजिकिस्तान के बीच हुआ हालिया समझौता दोनों देशों के मध्य भविष्य में अवसंरचना, खनन एवं व्यापार आदि से संबंधित निवेश परियोजनाओं के पर्यावरणीय प्रभावों को कम करने और स्थानीय समुदायों को स्थायी प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन प्रथाओं को अपनाने में मदद करेगा जिससे क्षेत्र विशेष के पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण हेतु प्रयासों को और मज़बूत करने में मदद मिलेगी।
  • यह समझौता अफगानिस्तान और ताजिकिस्तान को जलवायु परिवर्तन एवं जैव विविधता के नुकसान को रोकने हेतु समाधान खोजने के लिये एक संरचित ढाँचा प्रदान करेगा। 

पृष्ठभूमि

  • पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण को लेकर अफगानिस्तान और ताजिकिस्तान के बीच वार्ता की शुरुआत असल में वर्ष 2012 में हुई थी, जिसके परिणामस्वरूप वर्ष 2014 में पंज-अमु दरिया के लिये हाइड्रोलॉजिकल डेटा के आदान-प्रदान पर एक समझौता ज्ञापन की पुष्टि की गई और वर्ष 2015 से इस समझौते का कार्यान्वयन शुरू हुआ।
    • इस समझौता ज्ञापन के माध्यम से दोनों देशों के बीच 1,000 किलोमीटर लंबी साझा नदी सीमा पर हाइड्रोलॉजिकल स्टेशनों की स्थापना की गई और नदी प्रवाह से संबंधित आँकड़ों के आदान-प्रदान की भी शुरुआत हुई।
  • इस प्रकार अफगानिस्तान और ताजिकिस्तान के बीच हुआ हालिया समझौता दोनों देशों के मध्य चल रही पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र संबंधी वार्ता का दूसरा चरण है।

आमू दरिया नदी 

  • तकरीबन 2540 किलोमीटर की लंबाई के साथ आमू दरिया नदी मध्य एशिया की सबसे बड़ी नदियों में से एक है। 
  • इस नदी का जल मुख्य तौर पर अफगानिस्तान, किर्गिज़स्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज़्बेकिस्तान द्वारा साझा किया जाता है।
    • ध्यातव्य है कि आमू दरिया नदी का अधिकांश जल प्रवाह ताजिकिस्तान (72.8 प्रतिशत) से होता है, जबकि अफगानिस्तान और उज़्बेकिस्तान में इसका जल प्रवाह क्रमशः 14.6 प्रतिशत और 8.5 प्रतिशत है।
  • अनुमान के मुताबिक, आमू दरिया नदी आस-पास के क्षेत्रों में रहने वाले तकरीबन 43 मिलियन लोगों की आजीविका के लिये काफी महत्त्वपूर्ण है और इस नदी के जल का उपयोग मुख्य रूप से कृषि, जलविद्युत उत्पादन, औद्योगिक और घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये किया जाता है।
  • पंज नदी
    • 1125 किलोमीटर लंबी पंज नदी (Panj River) आमू दरिया नदी की सहायक नदी है और यह अफगानिस्तान-ताजिकिस्तान की सीमा से होकर बहती है।
    • इस नदी का उद्गम किला-ए-पंजा गाँव के पास पामीर एवं वखान नदी के संगम से होता है और यहाँ से यह पश्चिम की ओर बहती हुई अफगानिस्तान-ताजिकिस्तान की सीमा बनाती है। इसके बाद आगे चलकर यह नदी आमू दरिया नदी में मिल जाती है।

Kazakhstan

    स्रोत: डाउन टू अर्थ