डेली न्यूज़ (08 May, 2024)



मसौदा विस्फोटक विधेयक, 2024

प्रिलिम्स के लिये:

पेट्रोलियम एवं विस्फोटक सुरक्षा संगठन, उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग, विस्फोटक अधिनियम 1884, शस्त्र अधिनियम, 1959

मेन्स के लिये:

विस्फोटकों का विनियमन, राष्ट्रीय सुरक्षा को बढ़ाना और विस्फोटकों से जुड़े जोखिमों को कम करना

स्रोत: बिज़नेस स्टैंडर्ड 

चर्चा में क्यों ?

भारत सरकार का उद्देश्य विस्फोटक अधिनियम, 1884 को नए विस्फोटक विधेयक, 2024 से परिवर्तित करना है।

प्रस्तावित विस्फोटक विधेयक, 2024 के प्रमुख प्रावधान क्या हैं?

  • लाइसेंसिंग प्राधिकारी का पदनाम: प्रस्तावित विधेयक के तहत, केंद्र सरकार लाइसेंस देने, लाइसेंस  को निलंबित अथवा रद्द करने के लिये ज़िम्मेदार प्राधिकारी को नामित करेगी। 
  • लाइसेंसों में निर्दिष्ट मात्रा: लाइसेंस में विस्फोटकों की मात्रा निर्दिष्ट होगी जिसका कोई लाइसेंसधारक एक निश्चित अवधि के लिये निर्माण, स्वामित्व, बिक्री, परिवहन, आयात या निर्यात कर सकता है।
  • उल्लंघन के लिये दंड: प्रस्तावित विधेयक में उल्लंघनों के लिये सख्त दंड की रूपरेखा निर्धारित की गई है। नियमों का उल्लंघन करके विस्फोटकों के निर्माण, आयात अथवा निर्यात के लिये अपराधियों को तीन वर्ष तक की कैद, 1,00,000 रुपए का ज़ुर्माना अथवा दोनों सकते हैं।
    • नियमों का उल्लंघन करके विस्फोटकों को रखने, उपयोग करने, विक्रय अथवा परिवहन करने पर दो वर्ष तक की कैद, 50,000 रुपए का ज़ुर्माना अथवा दोनों हो सकते हैं, हालाँकि इसके लिये मौज़ूदा ज़ुर्माना 3,000 रुपए है।
  • सुव्यवस्थित लाइसेंसिंग प्रक्रियाएँ: लाइसेंसिंग प्रक्रियाओं की दक्षता को बढ़ाने के प्रयास चल रहे हैं, जिससे व्यवसायों के लिये कड़े सुरक्षा मानकों को बनाए रखते हुए आवश्यक परमिट प्राप्त करना सरल हो जाएगा।

पेट्रोलियम तथा विस्फोटक सुरक्षा संगठन: 

  • PESO, जिसे पहले विस्फोटक विभाग के नाम से जाना जाता था, वर्ष 1898 में अपनी स्थापना के पश्चात से विस्फोटक, संपीड़ित गैस और पेट्रोलियम जैसे हानिकारक पदार्थों की सुरक्षा को विनियमित करने हेतु एक नोडल एजेंसी के रूप में देश की सेवा कर रहा है।
  • PESO का प्रमुख कार्य विस्फोटक अधिनियम 1884 और पेट्रोलियम अधिनियम, 1934 के तहत सौंपी गई ज़िम्मेदारियों का प्रबंधन करना है तथा नियम विस्फोटक, पेट्रोलियम उत्पादों तथा संपीड़ित गैसों के निर्माण, आयात, निर्यात, परिवहन, कब्ज़े, बिक्री व उपयोग से संबंधित नियमों को बनाना है।
  • यह DPIIT, वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के तहत संचालित होता है।
  • संगठन ने कानून प्रवर्तन, सुरक्षा और सुरक्षा जाँच कर्मियों को विस्फोटकों को सुरक्षित रूप से संभालने हेतु प्रशिक्षण प्रदान किया है, यह राष्ट्र के प्रशिक्षण बुनियादी ढाँचे में मौज़ूद एक महत्त्वपूर्ण कमी को दूर करने में सहायक होगाI 

विस्फोटक अधिनियम, 1884 क्या है?

  • ऐतिहासिक संदर्भ: ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान अधिनियमित, 1884 के विस्फोटक अधिनियम का उद्देश्य विस्फोटकों के विभिन्न पहलुओं को विनियमित करना था।
  • सुरक्षा विनियम: अधिनियम विभिन्न प्रकार के विस्फोटकों पर लागू होता है, जिनमें बारूद, डायनामाइट, नाइट्रोग्लिसरीन और अन्य विस्फोटक पदार्थ शामिल हैं।
    • इस अधिनियम में विस्फोटकों से संबंधित जोखिमों को कम करने के लिये सुरक्षा मानकों और प्रक्रियाओं को अनिवार्य किया गया है, जिसमें दुर्घटनाओं को नियंत्रित करने के लिये हैंडलिंग, परिवहन एवं भंडारण दिशानिर्देश शामिल हैं।
    • यह अधिनियम केंद्र सरकार को विस्फोटकों के निर्माण, कब्ज़े, उपयोग, बिक्री, परिवहन, आयात एवं निर्यात को विनियमित करने के लिये नियम बनाने का अधिकार देता है।
      • ये नियम लाइसेंस जारी करने, शुल्क, शर्तों और छूट को नियंत्रित करते हैं।
  • खतरनाक विस्फोटकों का निषेध:
    • केंद्र सरकार सार्वजनिक सुरक्षा के हित में विशेष रूप से खतरनाक विस्फोटकों को तैयार करने, कब्ज़े या आयात पर नियंत्रण लगा सकती है।
  • अधिनियम से छूट:
    • यह अधिनियम शस्त्र अधिनियम, 1959 के प्रावधानों को प्रभावित नहीं करता है तथा विस्फोटक अधिनियम के तहत जारी किये गए लाइसेंस के लिये शस्त्र अधिनियम में लाइसेंस के प्रभाव के प्रावधान किये गए हैं।
      • शस्त्र अधिनियम, 1959 गोला-बारूद एवं आग्नेयास्त्रों के कब्ज़े, अधिग्रहण और इसे साथ ले जाने को नियंत्रित करता है। इसका उद्देश्य अवैध हथियारों और हिंसा पर अंकुश लगाना भी है। इस अधिनियम ने वर्ष 1878 के भारतीय शस्त्र अधिनियम का स्थान भी ले लिया।
  • विकास तथा संशोधन: समय के साथ विस्फोटक अधिनियम में तकनीकी प्रगति और उभरती चुनौतियों के अनुकूल हेतु कई संशोधन किये गए, मुख्य रूप से सुरक्षा मानकों एवं नियामक तंत्र को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया गया।

नोट: 

  • कर्नाटक के कोडागु (कूर्ग) ज़िले की एक मार्शल जाति, कोडावा, भारत की उन कुछ जनजातियों में से एक है, जिन्हें बिना लाइसेंस के बंदूक रखने की अनुमति है।
    • वर्ष 1834 से भारतीय शस्त्र अधिनियम के नियमों से स्वतंत्र कोडावा, टीपू सुल्तान के विरूद्ध अंग्रेज़ों को दिये गए समर्थन के लिये जाने जाते हैं तथा उन्हें सरकार से छूट प्रमाणपत्र प्राप्त करना आवश्यक है।

प्रचलित विस्फोटक:

  • डायनामाइट:
    • डायनामाइट एक प्रकार का विस्फोटक है जो मुख्य रूप से नाइट्रोग्लिसरीन को मिट्टी जैसे अवशोषक पदार्थ के साथ मिलाकर बनाया जाता है।
      • यह मिश्रण अत्यधिक अस्थिर नाइट्रोग्लिसरीन की मात्रा को स्थिर करता है, जिससे इसे नियंत्रित करना और इसका परिवहन करना सुरक्षित हो जाता है।
  • अमोनियम नाइट्रेट:
    • अमोनियम नाइट्रेट एक अकार्बनिक यौगिक है जिसमें अमोनियम आयन (NH4) और नाइट्रेट आयन (NO3) शामिल हैं।
      • सामान्यतः इसका उपयोग कृषि उर्वरक के रूप में किया जाता है, परंतु कुछ स्थितियों में इसका उपयोग विस्फोटकों के रूप में भी किया जा सकता है, विशेषतः जब इसे ईंधन स्रोत के साथ जोड़ दिया जाता है।
  • TNT (ट्राई-नाइट्रो टालुइन):
    • TNT एक कार्बनिक यौगिक है जो टालूइन नामक एक सुगंधित हाइड्रोकार्बन से प्राप्त होता है।
      • एक पीला, गंधहीन एवं स्थिर ठोस पदार्थ है जो घर्षण के प्रति अक्रियाशील है, यह विशेषता इसे सैन्य एवं औद्योगिक उपयोग तथा जल के अंदर विस्फोट में प्रयुक्त होने वाले विस्फोटक के रूप में एक लोकप्रिय विकल्प बनाता है।
  • TNE (ट्राईनाइट्रोएथिलीनर):
    • TNE एक कार्बनिक नाइट्रेट यौगिक है। जिसका उपयोग विस्फोटक के रूप में किया जाता है, परंतु TNT जैसे अन्य विस्फोटकों की तुलना में यह कम प्रचलित है।
  • RDX (रॉयल डिमोलिशन एक्सप्लोसिव):
    • RDX एक कार्बनिक यौगिक है, जो दिखने में सफेद पाउडर जैसा होता है। इसकी उच्च विस्फोटक शक्ति एवं स्थिरता के कारण यह विस्फोटक सैन्य तथा सामान्य अनुप्रयोगों में व्यापक रूप से प्रयोग किया जाता है।
    • इसे साइक्लोनाइट या हेक्सोज़न के नाम से भी जाना जाता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्र. विस्फोटकों एवं खतरनाक सामग्रियों के लिये भारत के वर्तमान नियामक परिदृश्य पर 1884 के विस्फोटक अधिनियम जैसे औपनिवेशिक युग के कानून के प्रभाव का विश्लेषण करें।


कृत्रिम सामान्य बुद्धिमता

प्रिलिम्स के लिये:

कृत्रिम बुद्धिमत्ता, दुर्बल Al, AI के प्रकार

मेन्स के लिये:

प्रौद्योगिकी का स्वदेशीकरण और नई प्रौद्योगिकी का विकास, AI के फायदे और नुकसान विभिन्न क्षेत्रों में AI का अनुप्रयोग, जनरेटिव AI

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में एक साक्षात्कार के दौरान ओपनAI के CEO ने कृत्रिम सामान्य बुद्धिमता (Artificial General Intelligence- AGI) की उन्नति में निवेश के प्रति अपने समर्पण को को उजागर किया।

  • AGI अत्यधिक उन्नत है, इसका दायरा अधिक है और यह वर्तमान समय में उपयोग होने वाले कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence - AI) की तुलना में अधिक सक्षम है।

कृत्रिम सामान्य बुद्धिमता (AGI) क्या है?

  • परिचय:
    • यह आमतौर पर उपयोग किये जाने वाले AI की तुलना में अत्यधिक उन्नत और अधिक सक्षम है।
    • AGI बुद्धिमत्ता के एक व्यापक, अधिक सामान्यीकृत रूप की कल्पना करता है जो किसी विशेष कार्य तक सीमित नहीं है।
    • इसका लक्ष्य ऐसी मशीनें तैयार करना है जो विभिन्न प्रकार के कार्यों के लिये मानव जैसी बुद्धि या समझ रखती हों।
      • इसमें तर्क, सामान्य ज्ञान, अमूर्त सोच, पृष्ठभूमि ज्ञान, स्थानांतरण शिक्षा, कारण और प्रभाव के बीच अंतर करने की क्षमता आदि शामिल हैं।
    • AGI का लक्ष्य मानव संज्ञानात्मक क्षमताओं का अनुकरण करना है ताकि यह उसे अपरिचित कार्य करने, नए अनुभवों से सीखने और अपने ज्ञान को नए तरीकों से लागू करने की अनुमति दे सके।
  • विशेषताएँ:
    • सामान्यीकरण: AGI विभिन्न कार्यों और डोमेन में ज्ञान और कौशल को सामान्यीकृत कर सकता है, नई समस्याओं को हल करने के लिये एक संदर्भ से सीख को लागू कर सकता है।
    • जटिल तर्क का समाधान: AGI जटिल तर्क और समस्या-समाधान में संलग्न हो सकता है।
    • कौशल: AGI मज़बूत सीखने की क्षमता प्रदर्शित करता है, जो इसे डेटा, अनुभव या निर्देश से ज्ञान और कौशल प्राप्त करने की अनुमति देता है।
    • आत्म जागरूकता और चेतना: AGI अपने अस्तित्व के प्रति जागरूक होगा और लक्ष्य निर्धारित करने में सक्षम होगा।
    • मानव-स्तर की क्षमताएँ: AGI की क्षमताएँ मानव बुद्धि/समझ से समानता रखेंगी या उससे बेहतर होंगी।
    • सृजनात्मकता: AGI नए समाधान, विचार या कलाकृतियाँ उत्पन्न करके रचनात्मकता का प्रदर्शन करता है जो स्पष्ट रूप से पूर्वनिर्मित या पूर्वनिर्धारित नहीं हैं।
  • AGI के अनुप्रयोग:
    • स्वास्थ्य सेवाः स्वास्थ्य सेवा सहित विभिन्न क्षेत्रों में AGI के कई सकारात्मक प्रभाव हैं। 
      • विभिन्न प्रकार के डेटासेट का विश्लेषण करने और व्यक्तिगत उपचार विकल्पों को इंगित करने की AGI की क्षमता अनुकूलित दवा में काफी सुधार ला सकती है, जो प्रत्येक रोगी के अद्वितीय लक्षणों के लिये चिकित्सा देखभाल को अनुकूलित करती है।
    • वित्त और व्यापार:
      • AGI में विभिन्न कार्यों को स्वचालित करने और निर्णय लेने में सुधार करने, वास्तविक समय विश्लेषण तथा सटीक बाज़ार पूर्वानुमान प्रदान करने की क्षमता है।
    • शिक्षा क्षेत्र:
      • AGI में छात्रों की वैयक्तिक आवश्यकताओं को पूरा करने वाले अनुकूल शिक्षण मंचों में क्रांति लाने की क्षमता है, जिससे संभावित रूप से वैयक्तिक शिक्षा विश्वभर के लोगों के लिये सुलभ हो जाएगी।
    • अंतरिक्ष अन्वेषण:
      • यह अंतरिक्ष अन्वेषण और अनुसंधान के लिये स्वायत्त प्रणालियों को संचालित करके अंतरिक्ष उद्योग को बढ़ावा दे सकता है। 
      • AGI अंतर्दृष्टि विकसित करने और खोजों में योगदान करने के लिये अंतरिक्ष मिशनों से डेटा का विश्लेषण भी कर सकता है।
    • सैन्य और रक्षा: AGI का विशिष्ट उपयोग निगरानी, सैन्य भागीदारी, युद्ध के मैदान पर वास्तविक समय की रणनीतियों और युद्ध प्रणालियों को बढ़ाना होगा।

कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) क्या है?

  • AI कंप्यूटर विज्ञान के एक व्यापक क्षेत्र को संदर्भित करता है जहाँ मशीनों को उन विशेष कार्यों को संपादित करने के लिये डिज़ाइन किया गया है जिनको क्रियान्वित करने के लिये आमतौर पर मानव बुद्धि/समझ की आवश्यकता होती है। 
  • AI के कार्यों में भाषाओं का अनुवाद, छवि पहचान, निर्णय लेना आदि शामिल हो सकते हैं।
  • इन्हें "संकीर्ण या कमज़ोर AI" भी कहा जाता है क्योंकि वे कुछ कार्यों में बहुत अच्छे हैं लेकिन उनकी संज्ञानात्मक क्षमताएँ सीमित हैं। ये AI प्रौद्योगिकियाँ कुछ कार्यों और पूर्व निर्धारित उद्देश्यों के लिये अनुकूलित हैं।
  • उदहारण:
    • चैटबॉट: AI-संचालित चैटबॉट ग्राहकों की पूछताछ संबंधी कार्यों की निगरानी रख सकते हैं।
    • अनुशंसा प्रणाली: AI एल्गोरिदम वैयक्तिकृत सामग्री (उदाहरण के लिये, नेटफ्लिक्स अनुशंसाएँ) का सुझाव देता है।
    • छवि पहचान: AI छवियों में वस्तुओं की पहचान करता है।
  • कुछ प्रमुख AI उपकरण: चैटजीपीटी चैटबॉट, गूगल बार्ड, चैटबॉट। 

AGI से संबंधित कुछ चिंताएँ क्या हैं?

  • पर्यावरणीय चिंता: AGI सिस्टम विकसित करने के लिये आवश्यक महत्त्वपूर्ण कंप्यूटर उपयोग, ऊर्जा खपत तथा ई-कचरा उत्पादन सहित पर्यावरणीय प्रभाव के विषय में चिंताएँ बढ़ाता है।
  • नौकरियों की हानि और बेरोज़गारी: AGI के परिणामस्वरूप रोज़गार के अवसरों में अत्यधिक कमी आने तथा व्यापक सामाजिक एवं आर्थिक असमानता उत्पन्न होने की संभावना है, साथ ही AGI का अत्यधिक उपयोग करने वालों व्यक्तियों में शक्ति का संकेंद्रण हो सकता है।
  • मानव निरीक्षण और उत्तरदायित्व: AGI की विशाल संज्ञानात्मक क्षमताएँ संभावित रूप से, इसे सूचनाओं को नियंत्रित करने तथा परिणामों को प्रभावित करने में सक्षम बना सकती हैं, विशेषतः चुनाव जैसे महत्त्वपूर्ण विषयों पर।
  • बुनियादी मानव कौशल और रचनात्मकता की हानि: छोटे-छोटे कामों में भी मनुष्य की AGI का उपयोग करने की प्रवृत्ति से रचनात्मकता हानि होगी।
    • मानवीय भागीदारी को कम करने से कार्य की रचनात्मकता प्रभावित हो सकती है तथा AGI का कार्य मानव कार्यों की नवोन्मेषी प्रतिलिपि हो सकता है।
  • अस्तित्व संबंधी संकट: AGI मानव बुद्धिमत्ता से आगे निकलकर संभावित रूप से मानव अस्तित्व के लिये संकट उत्पन्न कर सकता है। इसकी क्षमताएँ मानवों से बेहतर हो सकती हैं, साथ ही इसके व्यवहार को समझना एवं अनुमान लगाना अधिक चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
    • इसका परिणाम एक ऐसी स्थिति में हो सकता है जहाँ यह उस सीमा तक स्वतंत्र हो जायेगा कि मनुष्य के पास इसे नियंत्रित करने क्षमता नहीं होगी।
  • नैतिक दुविधाएँ: AGI की उन्नति से नैतिक चुनौतियों में वृद्धि होती है, जैसे; उत्तरदायित्व, गोपनीयता तथा पक्षपातपूर्ण निर्णय लेने के जोखिम से संबंधित चिंताएँ।
    • यह सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है कि अनपेक्षित परिणामों और असमानताओं कम करने के लिये AGI सिस्टम नैतिक मानदंडों का अनुपालन करेंगे।

आगे की राह 

  • मज़बूत नैतिक ढाँचे: AGI की ज़िम्मेदारीपूर्ण उन्नति और उपयोग को संचालित करने के लिये संपूर्ण नैतिक दिशानिर्देश एवं नियम बनाना तथा लागू करना आवश्यक है।
    • सुरक्षा, पारदर्शिता व जवाबदेही पर ज़ोर देने वाले दिशानिर्देश बनाने के लिये सरकार, उद्योग हितधारकों एवं शोधकर्त्ताओं के मध्य सहयोगात्मक प्रयास आवश्यक हैं।
  • पारदर्शिता एवं जवाबदेही: समझने योग्य तथा सत्यापन योग्य निर्णय लेने की प्रक्रियाओं को सुनिश्चित करने के लिये AGI प्रणालियों में पारदर्शिता और व्याख्या को प्राथमिकता देना आवश्यक है, जो बदले में विश्वास स्थापित करने में सहायता करता है, साथ ही अनपेक्षित परिणामों के जोखिम को भी कम करता है।
  • निरंतर निगरानी एवं निरीक्षण: AGI से जुड़े संभावित जोखिमों की पहचान करने और उनका समाधान करने के लिये निरंतर निगरानी एवं निरीक्षण के लिये प्रभावी तंत्र स्थापित करना महत्त्वपूर्ण है। AI सिस्टम के नियमित मूल्यांकन होने वाले दुरुपयोग को रोकने और सामाजिक मूल्यों के साथ संरेखण सुनिश्चित करने में सहायता मिल सकती है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के दो पहलू, लाभ और हानि दोनों हैं। विवेचना कीजिये कि हम कैसे सुनिश्चित कर सकते हैं कि AI विकास नैतिक और उत्तरदायित्वपूर्ण है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा प्रश्न, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. विकास की वर्तमान स्थिति में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence), निम्नलिखित में से किस कार्य को प्रभावी रूप से कर सकती है?  (2020)

  1. औद्योगिक इकाइयों में विद्युत् की खपत कम करना
  2. सार्थक लघु कहानियों और गीतों की रचना
  3. रोगों का निदान
  4. टेक्स्ट से स्पीच (Text-to-Speech) में परिवर्तन
  5. विद्युत् ऊर्जा का बेतार संचरण

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये :

(a) केवल 1,2, 3 और 5
(b) केवल 1,3 और 4
(c) केवल 2,4 और 5
(d) 1,2,3,4 और 5

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. भारत के प्रमुख शहरों में आई.टी. उद्योगों के विकास से उत्पन्न होने वाले मुख्य सामाजिक-आर्थिक प्रभाव क्या हैं ? (2021)

प्रश्न. "चौथी औद्योगिक क्रांति (डिजिटल क्रांति) के प्रादुर्भाव ने ई-गवर्नेन्स को सरकार का अविभाज्य अंग बनाने में पहल की है"। विवेचन कीजिये। (2020)


सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी

प्रिलिम्स के लिये:

सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI), क्रिप्टोकरेंसी, फिएट मुद्रा, अनौपचारिक अर्थव्यवस्था, साइबर सुरक्षा।

मेन्स के लिये:

सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी का महत्त्व एवं चुनौतियाँ।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर ने भारत की सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (Central Bank Digital Currency- CBDC), जिसे ई-रुपी भी कहा जाता है, के लिये विकसित की जा रही नवीन सुविधाओं पर ज़ोर दिया।

  • उन्होंने उपयोगकर्त्ता की गोपनीयता को बढ़ावा देने के लिये स्थायी लेनदेन हटाने जैसी सुविधाओं की क्षमता पर ज़ोर दिया।

सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (Central Bank Digital Currency- CBDC) क्या है?

  • परिचय:
    • CBDC केंद्रीय बैंक द्वारा डिजिटल रूप में जारी की गई एक कानूनी निविदा है।
      • निज़ी क्रिप्टोकरेंसी के विपरीत, CBDC को सेंट्रल बैंक द्वारा समर्थित किया जाता है, जो स्थिरता व विश्वास सुनिश्चित करता है।
    • यह फिएट मुद्रा के समान है और फिएट मुद्रा के साथ एक-से-एक विनिमय योग्य है।
      • फिएट एक राष्ट्रीय मुद्रा है जो सोने या चाँदी जैसी किसी वस्तु की कीमत से जुड़ी नहीं होती है।
    • डिजिटल फिएट मुद्रा या CBDC को ब्लॉकचेन द्वारा समर्थित वॉलेट का उपयोग करके लेनदेन किया जा सकता है।
    • हालाँकि CBDC की अवधारणा सीधे तौर पर बिटकॉइन से प्रेरित थी, यह विकेंद्रीकृत आभासी मुद्राओं व क्रिप्टो परिसंपत्तियों से भिन्न है, जो राज्य द्वारा जारी नहीं की जाती हैं, जिनमें 'कानूनी निविदा' स्थिति का अभाव है।
  • उद्देश्य:
    • इसका मुख्य उद्देश्य जोखिमों को कम करना एवं नोटों के रख-रखाव, गंदे नोटों को चरणबद्ध तरीके से हटाने तथा परिवहन, बीमा आदि की लागत को कम करना है।
      • यह लोगों को धन हस्तांतरण के साधन के रूप में क्रिप्टोकरेंसी से भी दूर रखेगा।
  • वैश्विक रुझान:
    • बहामास 2020 में अपना राष्ट्रव्यापी CBDC अर्थात् सैंड डॉलर लॉन्च करने वाली पहली अर्थव्यवस्था थी।
    • नाइजीरिया 2020 में eNaira प्रारंभ करने वाला दूसरा देश है।
    • अप्रैल 2020 में चीन डिजिटल मुद्रा e-CNY का संचालन करने वाला विश्व की पहली प्रमुख अर्थव्यवस्था बन गया।

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CBDC के प्रमुख लाभ क्या हैं?

  • उन्नत सुरक्षा: CBDC डिजिटल सुरक्षा उपायों का लाभ उठाते हैं, जिससे नकदी मुद्रा की तुलना में जालसाज़ी और चोरी का खतरा संभावित रूप से कम हो जाता है।
  • बेहतर दक्षता: डिजिटल लेनदेन को त्वरित गति एवं कुशलता से निपटाया जा सकता है, जिससे तेज़ और अधिक लागत प्रभावी भुगतान की सुविधा मिलती है।
  • वित्तीय समावेशन: CBDC का एक सुरक्षित और सुलभ डिजिटल भुगतान विकल्प के रूप में प्रयोग से संभावित रूप से बैंक रहित और कम बैंकिंग सुविधा वाली आबादी तक पहुँच बनाई जा सकती है।
    • CBDC के बढ़ते हुए उपयोग का प्रयोग अन्य आर्थिक गतिविधियों जैसे अनौपचारिक अर्थव्यवस्था को औपचारिक क्षेत्र में परिवर्तित करने एवं कर तथा नियामक अनुपालन सुनिश्चित करने के लिये किया जा सकता है।
  • उन्नत अनामिकता: उपयोगकर्त्ताओं के नकद लेनदेन की अनामिकता सुनिश्चित करने के लिये स्थायी लेनदेन विवरण को हटाने की संभावनाओं का पता लगाया जा रहा है।
  • ऑफलाइन कार्यक्षमता: ई-रुपए  को ऑफलाइन तौर पर लेन-देन योग्य बनाने की परिकल्पना की गई है, जिसे संभावित रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में बिना इंटरनेट कनेक्टिविटी के भी प्रयोग किया जा सकता है।
  • प्रोग्रामिंग क्षमता: सरकारी लाभों के वितरण को सक्षम बनाने तथा वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने एवं विशिष्ट वित्तीय व्यवहार को प्रोत्साहित करने के लिये CBDC की प्रोग्रामिंग सुविधाओं का प्रयोग किया जा सकता है।
  • सीमा-पार लेन-देन: CBDC में अद्वितीय विशेषताएँ हैं जो सीमा पार लेन-देन में क्रांति ला सकती हैं।
    • CBDC की त्वरित निपटान सुविधाएँ एक काफी लाभदायक हैं, जो सीमा-पार से भुगतान को किफायती, तीव्र और अधिक सुरक्षित बनाती हैं।
  • पारंपरिक और अभिनव: CBDC मुद्रा प्रबंधन लागत को कम करके धीरे-धीरे आभासी मुद्रा की ओर एक सांस्कृतिक बदलाव ला सकता है।
  • मौद्रिक नीति में सुधार: केंद्रीय बैंकों का CBDC के साथ मुद्रा आपूर्ति और ब्याज दरों पर अधिक नियंत्रण हो सकता है। यह अधिक लक्षित और प्रभावी मौद्रिक नीति हस्तक्षेपों की अनुमति दे सकता है।

CBDC से जुड़ी चुनौतियाँ क्या हैं?

  • साइबर सुरक्षा संबंधी चिंताएँ: ई-रुपया प्रणाली को साइबर हमलों से बचाने के लिये मज़बूत सुरक्षा उपाय महत्त्वपूर्ण हैं।
  • निजता से जुड़े मुद्दे:धन-शोधन (Money Laundering) विरोधी उपायों और आतंकवाद के वित्तपोषण का मुकाबला करने की आवश्यकता के साथ उपयोगकर्त्ता की निजता को संतुलित करना एक महत्त्वपूर्ण पहलू है।
    • नकदी के विपरीत इसकी इलेक्ट्रॉनिक प्रकृति के कारण CBDC की गोपनीयता को लेकर चिंताएँ बनी हुई हैं।
  • UPI वरीयता और अंतरसंचालनीयता: CBDC को बढ़ावा देने के प्रयासों के बावजूद, खुदरा उपयोगकर्त्ताओं के बीच UPI को लगातार प्राथमिकता दी जा रही है।
    • RBI ने इस प्रवृत्ति में बदलाव की उम्मीद जताई है तथा CBDC और UPI अंतरसंचालनीयता को सुविधाजनक बनाने के अपने प्रयासों पर ध्यान दिया।
  • गैर-लाभकारी CBDC: RBI ने बैंक मध्यस्थता के संभावित जोखिमों को कम करने के लिये CBDC को गैर-लाभकारी और गैर-ब्याज वाला बना दिया।
    • हालाँकि, वितरण और मूल्य वर्धित सेवाओं तक अपनी पहुँच का लाभ उठाने के लिये गैर-बैंकों को CBDC प्रयोग में शामिल किया गया है।
  • निजी बैंकों से प्रतिस्पर्धा: CBDC संभावित रूप से जमा के लिये निज़ी बैंकों के साथ प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं, जिससे उनकी उधार देने और निवेश करने की क्षमता प्रभावित हो सकती है। 
    • CBDC के लिये आवश्यक है कि उसका समन्वय मौज़ूदा वित्तीय प्रणाली के साथ हो।
  • मौद्रिक नीतिः ब्याज दरों जैसे मौद्रिक नीति उपकरणों पर CBDC का प्रभाव स्पष्ट नहीं है। 
    • केंद्रीय बैंकों को CBDC को प्रभावी ढंग से समायोजित करने के लिये अपनी नीतियों को अनुकूलित करने की आवश्यकता होगी। 

निष्कर्ष: 

तकनीकी और विधायी माध्यमों से CBCD से जुड़ी गोपनीयता संबंधी चिंताओं को दूर करने की RBI की प्रतिबद्धता डिजिटल मुद्रा के सफल कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के प्रति उसके समर्पण को दर्शाती है।

  • पहुँच और कार्यक्षमता बढ़ाने के प्रयासों के साथ-साथ अनामिता बनाए रखने पर यह ज़ोर, उभरते डिजिटल मुद्रा परिदृश्य को अपनाने में भारत के प्रगतिशील रुख को इंगित करता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत में केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्रा (CBDC) की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं और यह पारंपरिक मुद्रा प्रणालियों से कैसे भिन्न है? भारतीय अर्थव्यवस्था पर CBDC के संभावित प्रभाव एवं वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने में इसकी भूमिका पर चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्राओं के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2023)

  1. यू.एस. डॉलर या एस.डब्ल्यू.आई.एफ.टी. प्रणाली का प्रयोग किये बिना डिजिटल मुद्रा में भुगतान करना संभव है। 
  2. कोई डिजिटल मुद्रा इसके अंदर प्रोग्रामिंग प्रतिबंध, जैसे कि इसके व्यय के समय-ढाँचे के साथ वितरित की जा सकती है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा /से सही है/हैं?

(a) केवल 1                             
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों                
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर:(c)


भारत का विमानन क्षेत्र

प्रिलिम्स के लिये:

क्षेत्रीय संपर्क योजना-उड़ान (UDAN), ओपन स्काई समझौता, वस्तु एवं सेवा कर (GST), कार्बन तटस्थता, डिजी यात्रा 

मेन्स के लिये:

भारत के विमानन क्षेत्र का परिवर्तन, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों? 

भारतीय विमानन क्षेत्र में लंबे समय तक अग्रिम भूमिका निभाने वाली कंपनी इंडिगो अब भारतीय हवाई अड्डों से बिना-रुके, लंबी दूरी और कम लागत वाली उड़ानों के साथ विश्वस्तर पर अपनी पहचान बनाने का प्रयास कर रही है।

  • हालाँकि, लंबी दूरी एवं कम लागत वाला एयरलाइन मॉडल कई एयरलाइनों के लिये एक चुनौती रहा है, जिसमें कई एयरलाइनों की विफलताएँ तथा कुछ एयरलाइनों का अपेक्षाकृत स्थिर एवं लाभदायक संचालन शामिल हैं।

लंबी दूरी, कम लागत वाला हवाई यात्रा मॉडल क्या है?

  • परिचय:
    • लंबी दूरी, कम लागत वाला हवाई यात्रा मॉडल कम लागत वाले वाहक विमानों (LCC) द्वारा छोटी दूरी के घरेलू और क्षेत्रीय मार्गों से अलग परिचालन का विस्तार करने तथा न्यूनतम किराए पर नॉन-स्टॉप, लंबी अवधि की उड़ानों का परिचालन करने का एक प्रयास है।
      • इस मॉडल का लक्ष्य लंबी दूरी की यात्रा के संचालन के लिये समान व्यावसायिक रणनीतियों एवं प्रक्रियाओं को लागू करके छोटी दूरी के विमान यात्रा संचालन क्षेत्र में LCC द्वारा प्राप्त की गयी सफलता को दोहराना है।
  • चुनौतियाँ:
    • लंबी दूरी के मार्गों पर बड़े विमानों के संचालन के लिये उच्च ईंधन लागत।
      • बड़े विमानों के लिये परिचालन लागत में वृद्धि, जैसे अधिक चालक दल, रखरखाव तथा हवाईअड्डा शुल्क आदि।
    • विमान संचालन के विस्तार से तीव्र आवागमन तथा विमान उपयोग के उच्च स्तर को बनाए रखने में कठिनता होती है, परंतु यही विशेषता LCC बिज़नेस मॉडल की सफलता के लिये महत्त्वपूर्ण है।
    • लंबी दूरी यात्राओं पर यात्रियों के आराम एवं सुविधाओं की आवश्यकता को LCC की भाँति लागत कम करते हुए संतुलित करना।
    • एक व्यवहारिक नेटवर्क और उड़ान समयसारणी स्थापित करना, जो लंबी दूरी तथा कम घनत्व वाले मार्गों पर यात्रियों की संख्या तथा आर्थिक लाभप्रदता को बनाए रख सके।
    • लंबी दूरी के अंतरराष्ट्रीय मार्गों पर, पूर्वस्थापित मज़बूत ब्रांड पहचान वाले विमाननसेवा वाहकों से प्रतिस्पर्धा करना।
  • उदाहरण:
    • स्कूटर, जेटस्टार और फ्रेंच B जैसे कुछ लंबी दूरी के LCC स्थिर और लाभदायक विमान संचालन करने में सफल रहे हैं।
    • प्रमुख रणनीतियों में प्रीमियम/बिज़नेस क्लास सुविधाओं के साथ उपहार देना, कम यातायात वाले मार्गों को लक्षित करना तथा मज़बूत घरेलू/क्षेत्रीय नेटवर्क का लाभ उठाना शामिल है।

भारत के विमानन क्षेत्र की प्रगति क्या है?

  • भारत के विमानन क्षेत्र में अत्यधिक वृद्धि:
    • संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बाद भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा घरेलू विमानन बाज़ार बनकर उभरा है।
      • विमानन उद्योग ने एक उल्लेखनीय प्रगति करते हुए अपनी पूर्व सीमाओं को पार कर लिया है तथा यह एक जीवंत और प्रतिस्पर्द्धी क्षेत्र के रूप में विकसित हो रहा है।
    • सरकार की सक्रिय नीतियों और रणनीतिक पहलों ने विमानन क्षेत्र के विकास को प्रेरित किया है, विस्तार एवं नवाचार के लिये अनुकूल वातावरण को बढ़ावा दिया है।
  • बुनियादी ढाँचे का विकास:
    • भारत के हवाई नेटवर्क में एक उल्लेखनीय परिवर्तन देखा गया है, इसके परिचालन हवाई अड्डों की संख्या वर्ष 2014 में 74 की तुलना में दोगुनी होकर अप्रैल 2023 में 148 हो गई है, जिससे लोगों की हवाई यात्रा तक पहुँच में वृद्धि हुई है।
      • क्षेत्रीय कनेक्टिविटी योजना-UDAN: 
        • क्षेत्रीय संपर्क योजना-उड़े देश का आम नागरिक (RCS-UDAN) वर्ष 2016 में शुरू की गई थी ताकि देश में वायुसेवा का विस्तार किया जा सके। 
        • इस योजना का उद्देश्य मौजूदा हवाई पट्टियों और हवाई अड्डों को पुनर्जीवित करना, अलग-थलग समुदायों तक आवश्यक हवाई यात्रा की पहुँच में वृद्धि करना और क्षेत्रीय आर्थिक विकास को बढ़ावा देना है।
        • 517 RCS मार्गों के संचालन और 76 हवाई अड्डों को जोड़ने के साथ, उड़ान ने 1.30 करोड़ से अधिक लोगों के लिये हवाई यात्रा की सुविधा प्रदान की है, जिससे आर्थिक विकास को बढ़ावा मिला है।
  • यात्री वृद्धि:
    • यात्री मांग में वृद्धि के साथ, विमानन उद्योग कोविड के बाद उल्लेखनीय पुनरुत्थान का अनुभव कर रहा है।
      • जनवरी से सितंबर 2023 तक, घरेलू एयरलाइंस ने 112.86 मिलियन यात्रियों का परिवहन किया, जो वर्ष 2022 से इसी अवधि की तुलना में 29.10% अधिक है।
      • अंतर्राष्ट्रीय एयरलाइंस ने जनवरी और सितंबर 2023 के बीच 45.99 मिलियन यात्रियों का परिवहन किया, जो वर्ष 2022 से इसी अवधि की तुलना में 39.61% अधिक है।
  • कार्बन तटस्थता:
    • नागरिक उड्डयन मंत्रालय (MoCA) ने देश में हवाई अड्डों पर कार्बन तटस्थता और शुद्ध शून्य कार्बन उत्सर्जन प्राप्त करने की दिशा में काम करने की पहल की है।
      • हवाईअड्डा संचालकों को कार्बन उत्सर्जन का मानचित्रण करने और चरणबद्ध तरीके से कार्बन तटस्थता एवं शुद्ध शून्य उत्सर्जन की दिशा में कार्य करने की सलाह दी गई है।
    • ग्रीनफील्ड हवाई अड्डों को अपनी विकास योजनाओं में कार्बन तटस्थता और शुद्ध शून्य उत्सर्जन को प्राथमिकता देने के लिये प्रोत्साहित किया जा रहा है।
      • दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद और बंगलूरू जैसे हवाई अड्डों ने लेवल 4+ ACI मान्यता प्राप्त कर ली है तथा कार्बन तटस्थ बन गए हैं।
      • 66 भारतीय हवाई अड्डे 100% हरित ऊर्जा पर काम कर रहे हैं।

भारत के विमानन उद्योग के सामने क्या चुनौतियाँ हैं?

  • उच्च ईंधन लागत:
    • विमान टर्बाइन ईंधन (ATF) का खर्च किसी एयरलाइन की परिचालन लागत का 50-70% हो सकता है और आयात कर वित्तीय बोझ को बढ़ाते हैं।
  • डॉलर पर निर्भरता:
    • डॉलर की दर में उतार-चढ़ाव का असर लाभ पर पड़ता है क्योंकि विमान अधिग्रहण और रखरखाव जैसे प्रमुख खर्च डॉलर में होते हैं।
  • आक्रामक मूल्य निर्धारण:
    • यात्रियों को आकर्षित करने के लिये एयरलाइंस अक्सर आक्रामक मूल्य प्रतिस्पर्धा में संलग्न रहती हैं, जिससे उच्च परिचालन लागत के बीच लाभ मार्जिन कम हो जाता है।
  • सीमित प्रतिस्पर्धा: 
    • वर्तमान में इंडिगो और एयर इंडिया के पास विमानन सेवा क्षेत्र में बहुमत हिस्सेदारी है, संभवतः संयुक्त रूप से लगभग 70% के करीब। शक्ति का यह संकेंद्रण इनमें से निम्न को जन्म दे सकता है:
      • सीमित प्रतिस्पर्धाः कम अभिकर्त्ताओं के साथ, मार्गों पर कम प्रतिस्पर्धा का जोखिम है, जिससे संभावित रूप से उपभोक्ताओं के लिये अधिक किराया हो सकता है। 
      • मूल्य निर्धारण शक्तिः प्रमुख एयरलाइनों के पास टिकट की कीमतों को प्रभावित करने के लिये अधिक अर्जित लाभ हो सकता है, खासकर अगर वे रणनीतियों का समन्वय करते हैं।
  • जमींदोज जहाज़ी बेड़ा: 
    • सुरक्षा चिंताओं और क्षमता में बाधा बनने वाले वित्तीय मुद्दों के कारण भारतीय हवाई जहाज़ों का एक बड़ा हिस्सा (एक चौथाई से अधिक) उड़ान से बाहर है।
  • पर्यावरणीय चिंता:
    • कार्बन उत्सर्जन को कम करने और सतत् प्रथाओं को अपनाने का दबाव विकास रणनीतियों में कठिनाई उत्पन्न कर सकता है।

विमानन उद्योग से संबंधित भारत की पहल:

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आगे की राह

  • ईंधन स्रोतों का विविधीकरण: ईंधन मिश्रण में जैव ईंधन को शामिल करने, पारंपरिक ATF पर निर्भरता और आयात करों के प्रभाव को कम करने के लिये पहल करने की आवश्यकता है।
    • ईंधन की कीमतों की अस्थिरता को प्रबंधित करने के लिये ईंधन के बचाव (fuel hedging) की रणनीतियों को लागू करना, जो कई अंतर्राष्ट्रीय एयरलाइनों द्वारा उपयोग की जाने वाली व्यवस्था है।
  • सहायक राजस्व धाराएँ: लाभ बढ़ाने के लिये कार्गो सेवाओं, इन-फ्लाइट बिक्री और प्रीमियम सेवाओं जैसी सहायक राजस्व धाराएँ विकसित करने की आवश्यकता है।
  • प्रतिस्पर्धी मूल्य निर्धारण रणनीतियाँ: मूल्य निर्धारण को अनुकूलित करने के लिये उन्नत उपज प्रबंधन प्रणालियों का उपयोग करना और नुकसानदेह मूल्य प्रतिस्पर्द्धा (detrimental price wars) में शामिल हुए बिना लाभप्रदता बनाए रखना है।
    • दोबारा व्यापार को प्रोत्साहित करने और आक्रामक मूल्य निर्धारण रणनीति की आवश्यकता को कम करने के लिये ग्राहक निष्ठा कार्यक्रमों को मज़बूत करने की आवश्यकता है ।
  • विनियामक सुधार: विनियामक सुधारों की वकालत करना जो नए प्रवेशकों को प्रोत्साहित करने और उद्योग में एकाधिकारवादी प्रथाओं को नियंत्रित करने की आवश्यकता है। 
  • मार्ग युक्तिकरण: एयरलाइनों को कम सेवा वाले मार्गों का पता लगाने के लिये प्रोत्साहित करना, जिससे प्रतिस्पर्द्धा बढ़ेगी और उपभोक्ताओं को अधिक विकल्प प्राप्त हो सकेंगे।
    • परिचालन को लचीला बनाए रखने और जहाज़ी बेड़े के स्वामित्व की वित्तीय बोझ को कम करने के लिये, विमानों के लिये पट्टे की संभावनाओं को ध्यान में रखना।
  • कार्बन ऑफसेट कार्यक्रम: पर्यावरणीय प्रभाव को मापने और कम करने के लिये कार्बन उत्सर्जन कैलकुलेटर जैसे कार्बन ऑफसेट कार्यक्रम को लागू करना।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. बुनियादी ढाँचे के विकास, यात्री वृद्धि और सरकारी नीतियों के प्रभाव जैसे कारकों पर विचार करते हुए भारत के विमानन क्षेत्र की प्रगति का मूल्यांकन कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स

प्रश्न. सार्वजनिक-निज़ी भागीदारी (पीपीपी) मॉडल के तहत संयुक्त उद्यमों के माध्यम से भारत में हवाई अड्डों के विकास की जाँच कीजिये। इस संबंध में अधिकारियों के सामने क्या चुनौतियाँ हैं?  (2017)