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सामाजिक न्याय

पोस्ट-कोविड शिक्षा हेतु नया दृष्टिकोण

  • 17 May 2021
  • 7 min read

चर्चा में क्यों?

कोविड-19 संक्रमण की दूसरी लहर के कारण पूरे देश में छात्रों की शिक्षा प्रभावित हुई है।

प्रमुख बिंदु:

चिंताएँ:

  • ऑनलाइन शिक्षा की उपलब्धता:
    • ऑनलाइन शिक्षा की कल्पना शिक्षा के प्रसार के वैकल्पिक साधन के रूप में की गई थी, लेकिन भारतीय छात्रों के लिये वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए यह भी विफल हो जाती है।
    • इस प्रणाली की उपलब्धता और वहनीयता अब एक बाधा के रूप में उभरी है।
    •  ‘ई-शिक्षा’ उच्च और मध्यम वर्ग के छात्रों हेतु एक विशेषाधिकार के रूप में  उभरी है, यह निम्न मध्यम वर्ग के छात्रों और गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों के लिये एक बाधा सिद्ध हुई है।
  • इंटरनेट पर दीर्घकालिक निर्भरता:
    • छोटे बच्चों के लिये इंटरनेट पर लंबे समय तक संपर्क के अन्य निहितार्थ भी हैं।
    • यह युवा पीढ़ी की सोचने की क्षमता संबंधी प्रक्रिया के विकास में बाधा उत्पन्न कर सकता है।
  • विश्लेषणात्मक क्षमता में कमी:
    • अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न ऑनलाइन शिक्षा से सीखने के परिणामों के संबंध में उत्पन्न हुए हैं।
    • गूगल सभी प्रश्नों के उत्तर के लिये प्रमुख और एकमात्र मंच है, इसके परिणामस्वरूप छात्रों की स्वयं की सोचने की क्षमता प्रभावित हो रही है।
      • भारत में आधुनिक शिक्षा की स्थापना के समय से ही वैज्ञानिक दृष्टिकोण के प्रमुख मानदंड पर बल दिया गया था।
  • छात्र अलगाव में वृद्धि:
    • महामारी और भौतिक कक्षा शिक्षण की कमी के कारण छात्रों के मन में अलगाव की एक अजीबोगरीब भावना विकसित हो रही है। यह बहुत गंभीर मुद्दा है। दूसरी लहर का आघात छात्रों के मन पर गहरी छाप छोड़ेगा।
    • शारीरिक संपर्क और गतिविधियाँ पूरी तरह से अनुपस्थित रही हैं और यह भी नई समस्याओं में योगदान दे सकती है।

संभावित समाधान:

  • अवसंरचनात्मक उपयोग:
    • बुनियादी ढाँचे का पूरी तरह से उपयोग किया जाना चाहिये और यदि आवश्यक हो तो शिक्षा प्रदान करने हेतु कई अन्य उपायों पर निवेश करना चाहिये।
      • कक्षा के माध्यम से शिक्षण हमें सूचना के अलावा और भी बहुत कुछ प्रदान करने का अवसर देता है।
  • नई सामग्री;
    • संस्थानों के मौजूदा पाठ्यक्रम के ढाँचे के भीतर कक्षा शिक्षण की अनुपस्थिति को दूर करने के लिये प्रत्येक विषय हेतु नई सामग्री निर्माण पर विचार करना चाहिये।
    • यह सामग्री एक नए प्रकार की होगी जो आत्म-व्याख्यात्मक होगी, और कक्षा के निम्नतम IQ को देखते हुए इसे आकर्षक होना चाहिये।
    • सामग्री का छात्रों के दिमाग पर वही प्रभाव पैदा होना चाहिये, जैसे कि अच्छी किताबें सोचने की क्षमता प्रदान करती है।
  • व्यक्तिगत पर्यवेक्षण:
    • शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों को काम की निगरानी के लिये साप्ताहिक आधार पर छात्रों से संबंधित क्षेत्रों (स्कूल क्षेत्र में और आसपास) का दौरा करना चाहिये।
    • उन्हें पठन सामग्री को समझने में छात्रों के सामने आने वाली समस्याओं पर ध्यान देना चाहिये और यह भी कि क्या संबंधित सामग्री उन तक समय पर पहुँच रही है।
  • नई मूल्यांकन प्रणाली:
    • मूल्यांकन विश्लेषण की क्षमता पर आधारित होना चाहिये और प्रश्नों को इस तरह से तैयार किया जाना चाहिये कि छात्रों को प्रत्येक विषय पर प्रश्नों के उत्तर देने हेतु दिमाग लगाने की आवश्यकता हो।
  • टीकाकरण को प्राथमिकता देना:
    • इसके अलावा सरकार को इस सीखने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिये जितनी जल्दी हो सके पूरे शिक्षण समुदाय का टीकाकरण करने की ज़िम्मेदारी लेनी चाहिये।

ई-लर्निंग से संबंधित सरकारी पहलें:

  • E-PG पाठशाला:
    • अध्ययन हेतु ई-सामग्री प्रदान करने के लिये मानव संसाधन विकास मंत्रालय की एक पहल।
  • स्वयम् (SWAYAM):
    • यह ऑनलाइन पाठ्यक्रमों के लिये एक एकीकृत मंच प्रदान करता है।
  • नीट (NEAT):
    • इसका उद्देश्य सीखने वाले की आवश्यकताओं के अनुसार सीखने को अधिक व्यक्तिगत और अनुकूलित बनाने के लिये आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग करना है
  • प्रज्ञाता दिशा-निर्देश:
    • मानव संसाधन विकास मंत्रालय (MHRD) ने प्रज्ञाता (PRAGYATA) शीर्षक से डिजिटल शिक्षा पर दिशा-निर्देश जारी किये।
    • PRAGYATA दिशा-निर्देशों के तहत किंडरगार्टन, नर्सरी और प्री-स्कूल के छात्रों के माता-पिता के साथ बातचीत करने के लिये प्रतिदिन केवल 30 मिनट स्क्रीन टाइम की सिफारिश की जाती है।
  • प्रौद्योगिकी वर्द्धन शिक्षा पर राष्ट्रीय कार्यक्रम (NPTEL):
    • NPTEL भारतीय विज्ञान संस्थान बंगलूरू के साथ सात भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (आईआईटी) द्वारा शुरू की गई MHRD की एक परियोजना है।
    • इसे वर्ष 2003 में शुरू किया गया था और इसका उद्देश्य इंजीनियरिंग, विज्ञान और प्रबंधन में वेब और वीडियो कोर्स कराना था।

आगे की राह:

  • कोविड -19 ने दर्शाया है कि भारतीय शिक्षा प्रणाली किस हद तक असमानताओं से ग्रस्त है।
  • इस प्रकार निजी और सार्वजनिक शिक्षा क्षेत्र के बीच तालमेल के लिये नई प्रतिबद्धताओं की आवश्यकता है। इस संदर्भ में शिक्षा को एक सामान्य वस्तु बनाने की आवश्यकता है और डिजिटल नवाचार इस उपलब्धि को हासिल करने में मदद कर सकता है।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस

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