संतुलित क्रिप्टोकरेंसी विनियमन की आवश्यकता
प्रिलिम्स के लिये:क्रिप्टोकरेंसी, ब्लॉकचेन, बिटकॉइन, मनी लॉन्ड्रिंग, डिजिटल रुपया, कराधान मेन्स के लिये: |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
अमेरिकी प्रशासन ने क्रिप्टो परिसंपत्तियों को अपनाया है, जिससे वैश्विक वित्त में उनकी जगह मज़बूत हुई है। जबकि वियतनाम जैसे देश स्पष्ट विनियमनों पर जोर दे रहे हैं और यूरोपीय संघ MiCA के साथ वैश्विक मानक निर्धारित कर रहा है, भारत अभी भी डिस्कशन पेपर की प्रतीक्षा कर रहा है।
क्रिप्टोकरेंसी क्या है?
परिचय
- क्रिप्टोकरेंसी एक डिजिटल या वर्चुअल करेंसी है जो लेनदेन को सुरक्षित करने के लिये क्रिप्टोग्राफी का उपयोग करती है। यह एक विकेंद्रीकृत मुद्रा है ( किसी सरकार या संस्था द्वारा नियंत्रित नहीं)।
- क्रिप्टोकरेंसी के साथ किये गए लेन-देन को ब्लॉकचेन नामक सार्वजनिक डिजिटल खाताबही में दर्ज किया जाता है।
- इस खाताबही का रखरखाव विश्व भर के कंप्यूटरों के नेटवर्क द्वारा किया जाता है, तथा प्रत्येक नए लेनदेन को इन कंप्यूटरों द्वारा सत्यापित किया जाता है तथा ब्लॉकचेन में जोड़ा जाता है।
- क्रिप्टोग्राफी के विकेंद्रीकरण और उपयोग से किसी के लिये भी मुद्रा या ब्लॉकचेन पर रिकॉर्ड किये गए लेनदेन में हेरफेर करना कठिन हो जाता है।
- क्रिप्टोकरेंसी के कुछ उदाहरणों में बिटकॉइन, एथेरियम और लाइटकॉइन शामिल हैं।
क्रिप्टोकरेंसी, ई-मनी, भौतिक मुद्रा के बीच अंतर
श्रेणी |
क्रिप्टोकरेंसी |
ई-मनी |
भौतिक मुद्रा (रु. में) |
अभिगम्यता |
अधिकांशतः इंटरनेट कनेक्शन तक सीमित |
मोबाइल फोन और एजेंट नेटवर्क जैसे ई-डिवाइस तक पहुँच |
नकदी, ATM और बैंक शाखाओं तक भौतिक पहुँच |
मूल्य |
आपूर्ति, मांग और प्रणाली में विश्वास द्वारा निर्धारित |
इलेक्ट्रॉनिक रूप में विनिमय की गई फिएट मुद्रा की मात्रा के बराबर |
सरकार द्वारा समर्थित, मौद्रिक नीति द्वारा निर्धारित |
ग्राहक ID |
अनाम |
पर्याप्त ग्राहक पहचान आवश्यक |
लेन-देन के लिये आवश्यक नहीं, लेकिन बैंक खातों के लिये आवश्यक |
उत्पादन/ जारीकर्त्ता |
गणितीय रूप से उत्पन्न ("Mined") डेवलपर्स के समुदाय द्वारा, जिन्हें "माइनर्स" कहा जाता है |
RBI द्वारा केंद्रीय प्राधिकरण की फिएट मुद्रा के बराबर मूल्य की रसीद के विरुद्ध डिजिटल रूप से जारी किया गया |
केंद्रीय बैंक (RBI) |
विनियामक या निरीक्षण |
अधिकतर अनियमित |
केंद्रीय बैंक/बोर्ड |
केंद्रीय बैंक (RBI) |
विनियम
- वैश्विक: अधिकांश क्रिप्टोकरेंसी राष्ट्रीय सरकार के नियमों के बाहर काम करती हैं, तथा राज्य की मौद्रिक नीतियों से परे वैकल्पिक मुद्राओं के रूप में काम करती हैं।
- स्विट्ज़रलैंड ने एक सुपरिभाषित विनियामक ढाँचे के साथ क्रिप्टो को अपनाया है, जिससे ब्लॉकचेन नवाचार को बढ़ावा देते हुए निवेशकों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
- सितंबर 2021 में, अल साल्वाडोर बिटकॉइन को कानूनी मुद्रा के रूप में अपनाने वाला पहला देश बन गया।
- भारत: भारत में क्रिप्टोकरेंसी अनियमित है लेकिन विशेष रूप से प्रतिबंधित नहीं है।
- समयरेखा:
भारत को क्रिप्टोकरेंसी की नीति की आवश्यकता क्यों है?
- प्रतिभा पलायन की रोकथाम: क्रिप्टोकरेंसी पर पूर्ण प्रतिबंध से महत्त्वपूर्ण प्रतिभा पलायन हो सकता है, साथ ही पूंजी का पलायन भी हो सकता है, जैसा कि RBI के 2018 के प्रतिबंध के बाद देखा गया था, जहाँ ब्लॉकचेन विशेषज्ञ क्रिप्टो-फ्रेंडली देशों में पलायन करने लगे और भारत में ब्लॉकचेन नवाचार रुद्ध हो गया था।
- वैश्विक वित्तीय पारिस्थितिकी तंत्र में एकीकरण: क्रिप्टोकरेंसी को अपनाकर भारत स्वयं को वैश्विक वित्तीय पारिस्थितिकी तंत्र में एक प्रमुख अभिकर्त्ता के रूप में स्थापित कर सकता है, निवेश आकर्षित कर सकता है तथा 'क्रिप्टो निर्यात क्षेत्र' जैसी पहलों के माध्यम से क्रिप्टो स्टार्टअप में वृद्धि को बढ़ावा दे सकता है।
- नई प्रौद्योगिकी और सेवाओं का लाभ: स्केलेबिलिटी, सुरक्षा और एनालिटिक्स में ब्लॉकचेन अनुप्रयोगों की बढ़ती मांग से भारत के लिये क्रिप्टो प्रौद्योगिकियों में विशेषज्ञता के साथ एक व्यापक प्रतिभा पूल विकसित करने का अवसर मिलेगा, जिससे तकनीकी उन्नति को बढ़ावा मिलता है।
- वित्तीय नवाचार को प्रोत्साहित करना: ब्लॉकचेन प्रौद्योगिकी की गतिशील प्रकृति नवीन व्यवसाय मॉडल और अनुप्रयोगों के लिये व्यापक संभावनाएँ प्रदान करती है, जिसके दीर्घकालिक प्रभाव विभिन्न क्षेत्रों में क्रांतिकारी बदलाव ला सकते हैं, जिसके लिये एक संतुलित नियामक दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है।
- निवेशक सुरक्षा बढ़ाना: निवेशकों की सुरक्षा के लिये, भारत को अनुचित बिक्री के खिलाफ सुदृढ़ शिक्षा और दिशा-निर्देश लागू करने, क्रिप्टो परिसंपत्तियों को वस्तुओं के रूप में विनियमित करने की आवश्यकता है, जिससे कर आधार में विस्तार के साथ सरकारी कर राजस्व को भी बढ़ावा मिल सकता है।
- रैनसमवेयर हमलों और निवेश घोटालों सहित परिष्कृत धोखाधड़ी योजनाओं में उनके उपयोग को रोकने के लिये भी सख्त निगरानी की आवश्यकता है।
क्रिप्टोकरेंसी के समक्ष क्या चुनौतियाँ हैं?
- बाज़ार में अस्थिरता: क्रिप्टोकरेंसी की प्रवृत्ति अत्यंत अप्रत्याशित है, जिससे बड़ी मात्रा में निवेश करने पर मूल्य में महत्त्वपूर्ण उतार-चढ़ाव और भारी नुकसान की संभावना होती है।
- दुरुपयोग का जोखिम: बिना किसी जवाबदेही के क्रिप्टोकरेंसी को सीमा पार स्थानांतरित करने की सुगमता से इसका धन शोधन और आतंकवाद के वित्तपोषण के लिये उपयोग में लाए जाने का जोखिम बढ़ जाता है।
- स्केलेबिलिटी संबंधी मुद्दे: ब्लॉकचेन के बढ़ते डेटा आकार से इसकी क्षमता सीमित होने से बड़े पैमाने पर तीव्र लेन-देन चुनौतीपूर्ण (विशेष रूप से राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान) हो जाता है।
- आर्थिक असंतुलन: क्रिप्टोकरेंसी बाज़ार के उदय से भारतीय अर्थव्यवस्था में धन का चक्रीय प्रवाह बाधित हो सकता है, जो पारंपरिक नकदी प्रक्रियाओं से काफी भिन्न है।
- नियामक निरीक्षण का अभाव: क्रिप्टो परिसंपत्तियों के लिये एक समर्पित मंच या शिकायत निवारण तंत्र की अनुपस्थिति से उपभोक्ताओं की लेन-देन एवं सूचना संबंधी जोखिमों के प्रति संवेदनशीलता बढ़ती है।
आगे की राह
- विनियामक स्पष्टता: एक व्यापक क्रिप्टो विनियमन विधेयक के माध्यम से क्रिप्टो परिसंपत्तियों के विनियमन को स्पष्ट करना चाहिये।
- निवेशक संरक्षण: विवाद समाधान, धोखाधड़ी की रोकथाम एवं जोखिम प्रकटीकरण के लिये तंत्र स्थापित करने से यह सुनिश्चित होगा कि खुदरा निवेशकों को सुरक्षा दी जा सके।
- स्टेबलकॉइन और CBDC एकीकरण: भारत की डिजिटल रुपया पहल (CBDC) और क्रिप्टो परिसंपत्तियों को सह-अस्तित्व (बशर्ते स्पष्ट नियामक अंतर और अंतर-संचालन संबंधी दिशानिर्देश हों) में रखा जा सकता है।
- इसके अतिरिक्त सरकार, क्रिप्टो परिसंपत्तियों के उपयोग के लिये चरण-आधारित दृष्टिकोण अपना सकती है जिससे जोखिम मूल्यांकन, नियामक तत्परता तथा तकनीकी प्रगति के आधार पर चरणबद्ध एकीकरण की अनुमति मिल सके।
- कराधान सुधार: क्रिप्टो से संबंधित उच्च कर व्यवस्था से व्यवसाय अन्य देशों की तरफ आकर्षित हो रहे हैं। अधिक संतुलित कर संरचना से सरकारी राजस्व में वृद्धि होने के साथ घरेलू नवाचार को प्रोत्साहन मिल सकता है
- सार्वजनिक-निजी सहयोग: उद्योग जगत के नेताओं, ब्लॉकचेन स्टार्टअप्स और अंतर्राष्ट्रीय नियामक निकायों के साथ जुड़ने से भारत को ऐसी नीतियाँ बनाने में मदद मिलेगी जिससे जोखिमों को कम करने के साथ नवाचार को बढ़ावा मिल सकेगा।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: भारत में क्रिप्टोकरेंसी से संबंधित मौजूदा विनियामक ढाँचे पर चर्चा कीजिये। इससे संबंधित चुनौतियों का मूल्यांकन करते हुए ऐसा संतुलित दृष्टिकोण सुनिश्चित करने के उपाय बताइये जिससे निवेशकों की सुरक्षा के साथ नवाचार को बढ़ावा मिल सके। |
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्स प्रश्न: “ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी” के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020) यह एक सार्वजनिक बहीखाता है जिसका निरीक्षण हर कोई कर सकता है, लेकिन जिसे कोई एकल उपयोगकर्त्ता नियंत्रित नहीं करता है। ब्लॉकचेन का स्ट्रक्चर और डिज़ाइन ऐसा है कि इसमें मौजूद सारा डेटा क्रिप्टोकरेंसी के बारे में ही होता है। ब्लॉकचेन की बुनियादी सुविधाओं पर निर्भर एप्लीकेशन बिना किसी की अनुमति के विकसित किये जा सकते हैं। उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (A) केवल 1 उत्तर: (D) प्रश्न. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त युग्मों में से कौन-सा/से सही सुमेलित है/हैं? (a) केवल 1 और 3 उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न: चर्चा कीजिये कि किस प्रकार उभरती प्रौद्योगिकियाँ और वैश्वीकरण मनी लॉन्ड्रिंग में योगदान करते हैं। राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर मनी लॉन्ड्रिंग की समस्या से निपटने के लिये किये जाने वाले उपायों को विस्तार से समझाइये। (2020) प्रश्न: क्रिप्टोकरेंसी क्या है? यह वैश्विक समाज को किस प्रकार प्रभावित करती है? क्या यह भारतीय समाज को भी प्रभावित कर रही है? (2019) |
उचित वर्गीकरण परीक्षण
प्रिलिम्स के लिये:उचित वर्गीकरण, अनुच्छेद 14, विशेष न्यायालय, सत्र न्यायालय, उच्च न्यायालय, सर्वोच्च न्यायालय। मेन्स के लिये:उचित वर्गीकरण सिद्धांत का विकास एवं सामाजिक न्याय प्रदान करने में इसका महत्त्व। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत अनवर अली सरकार मामला, 1952 द्वारा "उचित वर्गीकरण" परीक्षण का आधार तैयार हुआ।
- यह परीक्षण अब कानूनों की संवैधानिकता के मूल्यांकन के लिये एक मानक बन गया है।
उचित वर्गीकरण परीक्षण क्या है?
- परिचय: यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत एक विधिक सिद्धांत है जो स्पष्ट मतभेदों के आधार पर व्यक्तियों या संस्थाओं के समूहीकरण की अनुमति देकर निष्पक्ष व्यवहार सुनिश्चित करने पर केंद्रित है।
- मनमाने भेदभाव को रोकने के साथ इसके तहत स्वीकार किया गया है कि सभी मामले एक जैसे नहीं होते हैं।
- विशेषताएँ:
- वर्गीकरण स्पष्ट एवं उचित अंतर पर आधारित होना चाहिये।
- यह अंतर तार्किक रूप से कानून के उद्देश्य से जुड़ा होना चाहिये।
- वर्गीकरण में अधिकारों का उल्लंघन किये बिना सामाजिक या नीतिगत आवश्यकताओं को ध्यान में रखा जाना चाहिये।
- बड़े समूहों को मनमाने ढंग से अलग-अलग व्यवहार के लिये नहीं चुना जा सकता (कोई वर्ग विधान नहीं) है। इसके तहत उपचार में यादृच्छिक नहीं, बल्कि उचित अंतर सुनिश्चित करना चाहिये।
- महत्त्व:
- विशिष्ट विनियमों का समर्थन: यह अलग-अलग सामाजिक स्थितियों के लिये अनुरूप विधियों की अनुमति देता है, यह सुनिश्चित करता है कि समान व्यवहार से अनुचितता न हो।
- यह अतार्किक परिणामों को रोकने के लिये विधियों की व्याख्या करने में विधिनिर्माताओं और न्यायाधीशों का मार्गदर्शन करता है।
- वैधता परीक्षण: यह विधियों की वैधता का आकलन करता है, तर्कसंगतता सुनिश्चित करता है और विधिक चुनौतियों को कम करता है।
- न्यायिक समीक्षा के लिये मानक: यह न्यायालयों के लिये तर्कहीन या अविवेकपूर्ण प्रशासनिक कार्यों की समीक्षा करने तथा उन्हें निरस्त करने के लिये एक मानक प्रदान करता है, जिससे विधायी जवाबदेही सुनिश्चित होती है।
- विशिष्ट विनियमों का समर्थन: यह अलग-अलग सामाजिक स्थितियों के लिये अनुरूप विधियों की अनुमति देता है, यह सुनिश्चित करता है कि समान व्यवहार से अनुचितता न हो।
- सीमाएँ:
- अनुचित विभेदीकरण का जोखिम: यदि इसे उचित रूप से लागू नहीं किया गया तो इससे अन्यायपूर्ण भेदभाव को बढ़ावा मिलेगा तथा मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हो सकता है।
- व्यक्तिपरकता: वर्गीकरण कारक (जैसे, आयु, लिंग, शारीरिक शक्ति ) व्यक्तिपरक हो सकते हैं, जिससे सिद्धांत की असंगत न्यायिक व्याख्या हो सकती है।
अनवर अली सरकार केस, 1952 क्या है?
- पृष्ठभूमि: वर्ष 1950 में, अनवर अली सरकार को अलीपुर सत्र न्यायालय द्वारा पश्चिम बंगाल विशेष न्यायालय अधिनियम, 1950 के तहत दोषी ठहराया गया और आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।
- सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय (1952): सर्वोच्च न्यायालय ने विशेष न्यायालयों को मामलों को मनमाने ढंग से संदर्भित करने की अनुमति देने वाली विधि को यह कहते हुए अमान्य कर दिया कि वर्गीकरण में वैध उद्देश्य के साथ तार्किक संबंध का अभाव है।
- इस निर्णय ने “उचित वर्गीकरण” परीक्षण की स्थापना की, जो कुछ शर्तों के तहत अनुच्छेद 14 के तहत समता के अपवाद की अनुमति देता है।
अनुच्छेद 14 (विधि के समक्ष समता)
- परिचय: किसी भी व्यक्ति को, चाहे वह नागरिक हो या विदेशी, भारत में विधि के समक्ष समता या विधियों के समान संरक्षण से वंचित नहीं किया जा सकता।
- विधि के समक्ष समता किसी भी विशेष विशेषाधिकार को सुनिश्चित नहीं करती है, सभी पर समान विधियाँ लागू होती हैं। विधियों का समान संरक्षण समान परिस्थितियों में समान व्यवहार की गारंटी देता है।
- उचित वर्गीकरण: अनुच्छेद 14 के अंतर्गत वर्ग विधान का निषेध किया गया है, लेकिन बोधगम्य भिन्नताओं (पहचाने योग्य भेद) के आधार पर उचित वर्गीकरण किये जाने का प्रावधान किया गया है।
युक्तियुक्त वर्गीकरण के सिद्धांत पर न्यायिक रुख
- सौरभ चौधरी केस, 2004: सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दो प्रमुख सिद्धांत निर्धारित किये गए:
- सुबोध विभेद: वर्गीकरण किसी समूह को अलग करने के लिये स्पष्ट और विशिष्ट कारणों पर आधारित होना चाहिये।
- तर्कसंगत संबंध: वर्गीकरण का विधि के उद्देश्य से तार्किक संबंध होना चाहिये।
- श्री राम कृष्ण डालमिया, 1958: कोई कानून संवैधानिक हो सकता है यदि वह विशेष दशाओं के कारण किसी विशिष्ट व्यक्ति पर लागू होता है, तथा उन्हें एक वर्ग के रूप में मानता है।
- इसमें संवैधानिकता की धारणा है, तथा यह सिद्ध करने का दायित्व आक्षेप कर रहे व्यक्तियों पर है कि यह संवैधानिक मानकों का उल्लंघन है।
निष्कर्ष
अनवर अली सरकार केस, 1952 से अनुच्छेद 14 के तहत "युक्तियुक्त वर्गीकरण" परीक्षण की नींव स्थापित हुई, जिससे निष्पक्षता और समानता सुनिश्चित हुई। यह ऐसे कानूनों को सक्षम बनाता है जिसमें अलग-अलग समूहों के लिये अलग-अलग प्रवाधान किये गए हों लेकिन तार्किक औचित्य की आवश्यकता होती है, जिससे सामाजिक न्याय को बढ़ावा देते हुए मनमाने भेदभाव को रोका जा सकता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. न्यायिक दृष्टिकोण के साथ युक्तियुक्त वर्गीकरण के सिद्धांत की व्याख्या कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नमेन्स:प्रश्न. संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत के संविधानों में समता के अधिकार की धारणा की विशिष्ट विशेषताओं का विश्लेषण कीजिये। (2021) प्रश्न. ‘आधारिक संरचना’ के सिद्धांत से प्रारंभ करते हुए न्यायपालिका ने यह सुनिश्चित करने के लिये कि भारत एक उन्नतिशील लोकतंत्र के रूप में विकसित हो, एक उच्चतः अग्रलक्षी (प्रोऐक्टिव) भूमिका निभाई है। इस कथन के प्रकाश में लोकतंत्र के आदर्शों की प्राप्ति के लिये हाल के समय में ‘न्यायिक सक्रियतावाद’ द्वारा निभाई भूमिका का मूल्यांकन कीजिये। (2014) |