नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 9 दिसंबर से शुरू:   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली न्यूज़

  • 08 Mar, 2021
  • 47 min read
कृषि

CSIR का फ्लोरीकल्चर मिशन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (Council of Scientific and Industrial Research-CSIR) के “फ्लोरीकल्चर मिशन” (Floriculture Mission) को भारत के 21 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में लागू करने की मंज़ूरी दी गई है।

  • इसके अतिरिक्त एंड्रायड ऐप के साथ CSIR सामाजिक पोर्टल (CSIR’s Societal Portal ) भी जारी किया गया।

प्रमुख बिंदु:

मिशन के बारे में:

  • फ्लोरीकल्चर, बागवानी (Horticulture) विज्ञान की एक शाखा है जो छोटे या बड़े क्षेत्रों में सजावटी पौधों की खेती, प्रसंस्करण और विपणन से संबंधित है। यह आसपास के  वातावरण को सुहावना बनाने तथा बगीचों व उद्यानों के रखरखाव में सहायक है।
  • इस मिशन के तहत  मधुमक्खी पालन हेतु वाणिज्यिक फूलों की खेती, मौसमी/वर्ष भर होने वाले  फूलों की खेती, जंगली फूलों की खेती  पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
    • कुछ लोकप्रिय फूलों की खेती में ग्लैडियोलस (Gladiolus), कन्ना (Canna), कार्नेशन (Carnation), गुलदाउदी (Chrysanthemum), जरबेरा (Gerber), लिलियम (Lilium), गेंदा (Marigold), गुलाब (Rose), ट्यूबरोज (Tuberose) आदि शामिल हैं।
  • इस मिशन में वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद के संस्थानों में उपलब्ध जानकारियों का उपयोग किया जाएगा जो देश के किसानों तथा  उद्योगों की  निर्यात ज़रूरतों  को पूरा करने में सहायक होगी । 
    • वर्ष 2018 में भारतीय फूलों की खेती का बाज़ार मूल्य 15700 करोड़ रुपए का था। जिसके वर्ष 2019-24 के दौरान  47200 करोड़ रुपए तक होने का अनुमान है।
  • इस मिशन के कार्यान्वयन में CSIR के साथ निम्नलिखित अन्य एजेंसियाँ ​​शामिल हैं:

अभियान का महत्त्व:

  • आय में वृद्धि: फ्लोरीकल्चर में नर्सरी लगाने, फूलों की खेती तथा उत्पादों के व्यापार हेतु उद्यमिता विकास, मूल्य संवर्द्धन और निर्यात के माध्यम से बड़ी संख्या में लोगों को रोज़गार प्रदान करने की क्षमता है।
  • कृषि जलवायु विविधता: विविध कृषि-जलवायु और इडेफिक परिस्थितियों (मिट्टी के भौतिक, रासायनिक और जैविक गुण) तथा पौधों की समृद्ध विविधता जैसे कारक विद्यमान होने के बावजूद भी वैश्विक पुष्प कृषि बाज़ार में भारत का केवल 0.6% ही योगदान है।
  • आयात प्रतिस्थापन: विभिन्न देशों से हर वर्ष कम से कम 1200 मिलियन अमेरिकी डाॅलर के पुष्प उत्पाद का आयात किया जा रहा है 
  • अभियान में उल्लेखित  एपीकल्चर (मधुमक्खी पालन) को फ्लोरीकल्चर को सम्मिलित करने पर अधिक लाभ प्राप्त होगा 

अन्य संबंधित पहल (एकीकृत बागवानी विकास मिशन):

  • एकीकृत बागवानी विकास मिशन (Mission for Integrated Development of Horticulture- MIDH) बागवानी क्षेत्र को कवर करने के उद्देश्य से एक केंद्र प्रायोजित योजना है जिसके अंतर्गत फलों, सब्जियों, जड़ और कंद फसलों, मशरूम, मसाले, फूल, सुगंधित पौधों, नारियल, काजू, कोको और बाँस को शामिल  किया जाता है।

 CSIR’s के सामाजिक पोर्टल के बारे में: 

  • इस पोर्टल को CSIR द्वारा द्वारा MyGov की मदद से विकसित किया गया है।
  • यह पोर्टल के माध्यम से सामाजिक समस्याओं का समाधान वैज्ञानिक और तकनीकी हस्तक्षेपों के माध्यम से किया जाएगा।   
  • यह समाज में विभिन्न हितधारकों के समक्ष उपलब्ध चुनौतियों और समस्याओं पर इनपुट से संबंधित पहला प्रयास है।

वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद

  • भारत सरकार द्वारा इसे विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अंतर्गत सितंबर 1942 में एक स्वायत्त निकाय के रूप में स्थापित किया गया था।
  • इसे विज्ञान और प्रौद्योगिकी से संबंधित विभिन्न क्षेत्रों में अत्याधुनिक अनुसंधान एवं विकास के लिये जाना जाता है।
  • CSIR को नेचर रैंकिंग रैंकिंग -2020 में पहले स्थान पर रखा गया है।
    • नेचर इंडेक्स संस्थागत, राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर उच्च-गुणवत्ता वाले शोध परिणामों एवं सहयोग के संदर्भ वास्तविक समय परिपत्र प्रदान करता है।

स्रोत: पी.आई.बी


शासन व्यवस्था

क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग बाइ सब्जेक्ट 2021

चर्चा में क्यों?

‘क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग बाइ सब्जेक्ट’ के नवीनतम संस्करण (11वें) के अनुसार, भारत में उच्च शिक्षा संस्थानों के 25 सब्जेक्ट को उनकी संबंधित विषय श्रेणियों में दुनिया के शीर्ष 100 में स्थान प्राप्त हुआ है।

प्रमुख बिंदु:

  • क्वाक्वरेली साइमंड्स (QS): यह महत्त्वाकांक्षी पेशेवरों को उनके व्यक्तिगत और व्यावसायिक विकास को आगे बढ़ाने के लिये प्रोत्साहित’ करने वाला एक प्रमुख ‘ग्लोबल कॅरियर और एजूकेशन नेटवर्क’ है।
    • क्यूएस, संस्थानों की गुण वत्ता की पहचान करने के लिये तुलनात्मक डेटा संग्रह और विश्लेषण के तरीकों को विकसित करके उन्हें सफलतापूर्वक लागू करता है।
  • क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग्स: इस यूनिवर्सिटी रैंकिंग्स का प्रकाशन वार्षिक स्तर पर होता है जिसमें वैश्विक रूप से समग्र सब्जेक्ट रैंकिंग शामिल हैं।
    • मूल्यांकन के लिये छह मापदंड और उनका वेटेज:
      1. अकादमिक प्रतिष्ठा (40%)
      2. नियोक्ता प्रतिष्ठा (10%)
      3. संकाय/छात्र अनुपात (20%)
      4. उत्कृष्टता प्रति संकाय (20%)
      5. अंतर्राष्ट्रीय संकाय अनुपात (5%)
      6. अंतर्राष्ट्रीय छात्र अनुपात (5%)
  • क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग बाइ सब्जेक्ट: इसके प्रदर्शन की गणना चार मापदंडों के आधार पर की जाती है-
    1. अकादमिक प्रतिष्ठा
    2. नियोक्ता प्रतिष्ठा
    3. अनुसंधान प्रभाव (प्रति पेपर उत्कृष्टता) 
    4. किसी संस्थान के शोध संकाय की उत्पादकता।

शीर्ष प्रदर्शक:

  • वैश्विक रूप से ‘मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी’ और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी शीर्ष प्रदर्शक हैं, जबकि रूस तथा चीन ने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया है।

भारत का प्रदर्शन:

  • इसमें भारत के 52 भारतीय उच्च शिक्षा संस्थानों के 51 अकादमिक विषयों के 253 कार्यक्रमों के प्रदर्शन पर स्वतंत्र आँकड़ों को प्रस्तुत किया गया।
  • इस वर्ष शीर्ष 100 शीर्ष सब्जेक्ट रैंकिंग में भारतीय विश्वविद्यालयों/संस्थानों की संख्या 8 से बढ़कर 12 हो गई है।
    • 12 भारतीय संस्थान जिन्हें विश्व के शीर्ष 100 संस्थानों में स्थान मिला है- IIT बॉम्बे, IIT दिल्ली, IIT मद्रास, IIT खड़गपुर, IISC बंगलुरु, IIT गुवाहाटी, IIM बंगलुरु, IIM अहमदाबाद, JNU, अन्ना विश्वविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय और ओपी जिंदल विश्वविद्यालय।
    • IIT बॉम्बे ने किसी भी अन्य भारतीय संस्थान की तुलना में शीर्ष 100 में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया है
  • एक को छोड़कर सभी 25 कार्यक्रम राज्य या संघ सरकार द्वारा संचालित संस्थानों में हैं। हालाँकि पिछले वर्ष यह संख्या 26 थी।
    • विश्व स्तर पर स्थान प्राप्त 25 विषयों में से 17 भारतीय इंजीनियरिंग संस्थानों से संबंधित हैं। IIT-Madras के पेट्रोलियम इंजीनियरिंग कार्यक्रम ने भारतीय संस्थानों के कार्यक्रमों में सबसे अच्छा प्रदर्शन दर्ज किया- विश्व में 30वें स्थान पर।
  • सरकार द्वारा संचालित इंस्टीट्यूशन ऑफ एमिनेंस (IoE) से संबंधित संस्थानों ने निजी संस्थानों की तुलना में रैंकिंग में काफी बेहतर प्रदर्शन किया है।
    • ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी ने विधि (76वें) के लिये वैश्विक रूप से शीर्ष -100 में स्थान प्राप्त किया है। यह एक निजी IoE द्वारा शीर्ष-100 में प्राप्त एकमात्र स्थान है।
    • IoE: यह 20 संस्थानों (सार्वजनिक क्षेत्र से 10 और निजी क्षेत्र से 10) को विश्व स्तरीय शिक्षण और अनुसंधान संस्थानों के रूप में स्थापित करने तथा उन्हें अपग्रेड करने के लिये विनियामक ढाँचा प्रदान करने की सरकारी योजना है।
  • अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, जीवन विज्ञान और चिकित्सा के क्षेत्र में शीर्ष 300 में एकमात्र संस्थान बना रहा, लेकिन इसका स्थान पहले से लगभग 10 स्थान कम हो गया

विश्लेषण:

  • भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है- उच्च गुणवत्ता वाली तृतीयक शिक्षा प्रदान करना। इस समस्या को पिछले वर्ष की राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) में पहचाना गया तथा वर्ष 2035 तक 50% सकल नामांकन अनुपात का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया गया। 
    • चिंता का एक कारण यह भी है कि 51 अकादमिक विषयों से संबंधित भारतीय कार्यक्रमों की संख्या वास्तव में पिछले वर्ष से कम हो गई है- 235 से 233
  • भारत के निजी रूप से संचालित ‘इंस्टीट्यूशंस ऑफ एमिनेंस’ के कई कार्यक्रमों ने इस वर्ष प्रगति की है, इन संस्थानों की सकारात्मक भूमिका से यह स्पष्ट होता है कि अच्छी तरह से विनियमित निजी संस्थान भी भारत के उच्च शिक्षा क्षेत्र को बढ़ाने में सहायक सिद्ध हो सकते हैं।
  • वैश्विक पर्यावरण विज्ञान अनुसंधान क्षेत्र में भारत सबसे आगे है। आँकड़े यह इंगित करते हैं कि भारत इस क्षेत्र में अनुसंधान के मामले में केवल जर्मनी, चीन, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद 5वें स्थान पर है। 
  • सुधार करने वाले राष्ट्रों और नहीं करने वाले राष्ट्रों के बीच समानताएँ (तीन कारक):
    • पहला, एक अंतर्राष्ट्रीय दृष्टिकोण, संकाय निकाय और अनुसंधान के संदर्भ में बेहतर प्रदर्शन किया है। 
    • दूसरा, उभरते विश्वविद्यालयों को विशेष रूप से चीन, रूस और सिंगापुर के विश्वविद्यालयों को पिछले एक दशक में सरकारों द्वारा मज़बूत लक्षित निवेश प्राप्त हुआ है। 
    • तीसरा  बेहतर रोज़गार, अनुसंधान और नवाचार परिणामों का उद्योग क्षेत्र के साथ संबंधों में सुधार देखा गया है।

राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क:

  • मानव संसाधन विकास मंत्रालय (अब शिक्षा मंत्रालय) ने सितंबर, 2015 में राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क (NIRF) की स्थापना की।.
  • शैक्षणिक संस्थानों की रैंकिंग करने के लिये कुछ विशेष मानक तय किये गए हैं। इन मानकों में आम तौर पर ‘शिक्षण, शिक्षा और संसाधन’ (Teaching, Learning and Resources), ‘अनुसंधान और व्यावसायिक अभ्यास (Research and Professional Practices), ‘स्नातक परिणाम’ (Graduation Outcomes), ‘आउटरीच और समावेशिता’ (Outreach and Inclusivity) और ‘अनुभूति’ (Perception) आदि को शामिल किया जाता हैं।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-स्वीडन आभासी शिखर सम्मेलन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत के और स्वीडन के प्रधानमंत्री ने एक आभासी शिखर सम्मेलन में भाग लिया। इस शिखर सम्मेलन के दौरान दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों ने विभिन्न द्विपक्षीय मुद्दों तथा आपसी हित के अन्य क्षेत्रीय एवं बहुपक्षीय मुद्दों पर चर्चा की।

  • इस शिखर सम्मेलन ने दोनों देशों को अंतर्राष्ट्रीय स्थिति पर चर्चा करने और महामारी के साथ-साथ आपसी महत्त्व के क्षेत्रीय एवं वैश्विक मुद्दों, सतत् विकास, लैंगिक समानता, आतंकवाद और आपदा लचीली अवसंरचना सहित अन्य मुद्दों पर प्रतिक्रिया देने का अवसर प्रदान किया।

Sweden

प्रमुख बिंदु

शिखर सम्मेलन की हाइलाइट्स:

  • आर्थिक सहयोग:
    • दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों ने भारत-स्वीडन सहयोगात्मक औद्योगिक अनुसंधान एवं विकास कार्यक्रम (India-Sweden Collaborative Industrial Research & Development Programme) के तहत स्मार्ट एंड सस्टेनेबल सिटीज़, परिवहन प्रणाली, स्वच्छ प्रौद्योगिकियाँ और डिजिटलाइजेशन और इंटरनेट ऑफ थिंग्स के क्षेत्र में दूसरी बार संयुक्त औद्योगिक अनुसंधान एवं विकास के निर्णय का स्वागत किया।
    • दोनों देशों द्वारा वर्ष 2021 के दौरान स्वास्थ्य और जीवन विज्ञान तथा वेस्ट टू वेल्थ यानि अपशिष्ट से धन के विषयवस्तु सहित चक्रीय अर्थव्यवस्था पर द्विपक्षीय अनुसंधान एवं नवाचार को बढ़ावा देने की महत्त्वाकांक्षा की पुष्टि की गई।
  • अन्य क्षेत्रों में सहयोग:
    • इस आभासी सम्मेलन के दौरान AIIMS-जोधपुर में भारत-स्वीडन हेल्थ हब के निर्माण का स्वागत किया गया।
    • दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों ने हाइड्रोजन अनुसंधान और इसके संभावित अनुप्रयोगों (अर्थात् ऊर्जा और अन्य प्रमुख उद्योगों में) के संदर्भ में हुई प्रगति का उल्लेख किया।
  • बहुपक्षीय मंचों पर सहयोग:
    • भारत ने अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (International Solar Alliance- ISA) में शामिल होने के स्वीडन के फैसले का स्वागत किया।
    • स्वीडन ने वर्ष 2021-2022 के लिये संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के निर्वाचित सदस्य के रूप में भारत के आठवें कार्यकाल पर बधाई दी।
    • दोनों देशों ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UN Security Council- UNSC) में तत्काल सुधार के महत्त्व के विचार का समर्थन किया, जिसके तहत UNSC के विस्तार का उद्देश्य न केवल बहुपक्षवाद की विश्वसनीयता को बनाए रखना है बल्कि मानवता के समक्ष विद्यमान विभिन्न गंभीर चुनौतियों का सामना करना भी है।
    • भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में भारत की स्थायी सदस्यता के लिये स्वीडन को समर्थन हेतु धन्यवाद दिया।
    • साथ ही भारत ने यूरोपीय सुरक्षा एवं सहयोग संगठन (OSCE) की अध्यक्षता प्राप्त करने को लेकर स्वीडन को बधाई दी।
  • जलवायु कार्रवाई:
    • सम्मेलन के दौरान पेरिस समझौते में अमेरिका के पुन:प्रवेश का स्वागत किया गया, जो कि यूनाइटेड किंगडम के ग्लासगो में आयोजित होने वाली COP26 से पूर्व वैश्विक जलवायु कार्रवाई को नई गति प्रदान करेगा।
    • इस दौरान भारत-स्वीडन संयुक्त पहल- लीडरशिप ग्रुप ऑन इंडस्ट्री ट्रांजिशन- में देशों बढ़ती सदस्यता का उल्लेख किया गया।
      • इसे सितंबर 2019 में संयुक्त राष्ट्र जलवायु कार्रवाई शिखर सम्मेलन के दौरान न्यूयॉर्क में लॉन्च किया गया था।
    • वैश्विक पर्यावरण संरक्षण और जलवायु परिवर्तन से संबंधित चुनौतियों का सामना करने के लिये आर्कटिक परिषद के सदस्यों के मध्य सहयोग को आगे बढ़ाने पर सहमति व्यक्त की गई।
  • सुरक्षा
    • गोपनीय सूचना के आदान-प्रदान और पारस्परिक सुरक्षा पर वर्ष 2019 के सामान्य सुरक्षा समझौते को अंतिम रूप देने का स्वागत किया गया, जिससे सभी रक्षा क्षेत्रों में एक व्यापक साझेदारी सक्षम हो सकेगी।
    • भारतीय प्रधानमंत्री ने स्वीडिश रक्षा फर्मों को ‘मेक इन इंडिया कार्यक्रम’ में हिस्सा लेने के लिये आमंत्रित किया (विशेष तौर पर तमिलनाडु एवं उत्तर प्रदेश के दो रक्षा उत्पादन गलियारों में निवेश हेतु)।

भारत-स्वीडन संबंध 

  • राजनीतिक संबंध: पहला भारत-नॉर्डिक शिखर सम्मेलन वर्ष 2018 में आयोजित किया गया था।
    • स्वीडन के राजा और रानी ने दिसंबर, 2019 में भारत का शाही दौरा किया था।
  • आर्थिक और वाणिज्यिक संबंध: वर्तमान में दोनों देशों के बीच लगभग 2 बिलियन डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार होता है। चीन और जापान के बाद, भारत एशिया में स्वीडन का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है।
    • भारत द्वारा स्वीडन में निर्यात की जाने वाली मुख्य वस्तुओं में शामिल हैं- वस्त्र एवं सहायक सामग्री; कपड़े का धागा,धातु निर्माण से संबंधित वस्तु; वाहन; सामान्य औद्योगिक मशीनरी और उपकरण आदि।
    • स्वीडन से भारत में आयात होने वाली मुख्य वस्तुओं में शामिल हैं- कागज़ की लुगदी, वाहन, कागज बोर्ड, सामान्य औद्योगिक मशीनरी और उपकरण आदि।
  • यूरोपीय संघ का सदस्य होने के नाते, स्वीडन यूरोपीय संघ (EU) और यूरोपीय संघ के देशों के साथ भारत की साझेदारी को मज़बूत करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
  • दोनों देशों के बीच निकट संबंध लोकतांत्रित मूल्यों, कानून के शासन, बहुलवाद, समानता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मानवाधिकारों को और मज़बूत करेंगे।

प्रथम भारत-नॉर्डिक शिखर सम्मेलन

  • यह अप्रैल, 2018 में आयोजित किया गया था।
  • इसका उद्देश्य भारत और पाँच नॉर्डिक देशों- स्वीडन, नॉर्वे, फिनलैंड, आइसलैंड और डेनमार्क के बीच सहयोग को और अधिक मज़बूत करना था।
  • भारत के लिये नॉर्डिक का महत्त्व
    • सुरक्षा, आर्थिक विकास और जलवायु परिवर्तन जैसे प्रमुख मुद्दों पर वार्ता।
    • भारत सार्वजनिक क्षेत्र, निजी क्षेत्र और शिक्षाविदों के बीच एक मज़बूत सहयोग के माध्यम से नवाचार के लिये नॉर्डिक दृष्टिकोण को अपना सकता है।
    • स्वच्छ प्रौद्योगिकी, समुद्री समाधान, बंदरगाह आधुनिकीकरण, खाद्य प्रसंस्करण, स्वास्थ्य, जीवविज्ञान और कृषि जैसे क्षेत्रों में, नॉर्डिक समाधान उपयोगी हो सकते हैं।

लीडरशिप ग्रुप ऑन इंडस्ट्री ट्रांजिशन

  • लीडरशिप ग्रुप ऑन इंडस्ट्री ट्रांजिशन (LeadIT) उन देशों और कंपनियों का एक समूह है, जो पेरिस समझौते को प्राप्त करने हेतु कार्रवाई के लिये प्रतिबद्ध हैं।
  • इसे सितंबर 2019 में संयुक्त राष्ट्र जलवायु कार्रवाई शिखर सम्मेलन में स्वीडन और भारत द्वारा लॉन्च किया गया था और यह विश्व आर्थिक मंच द्वारा समर्थित है।
  • इस समूह के सदस्य इस धारणा का समर्थन करते हैं कि वर्ष 2050 तक शुद्ध-शून्य कार्बन उत्सर्जन को प्राप्त करने के उद्देश्य से, ऊर्जा-गहन उद्योग निम्न कार्बन लक्ष्य प्राप्त करने की दिशा में प्रगति कर सकता है।

स्रोत: पी.आई.बी.


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

ईरान का गिरता रुपया रिज़र्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय व्यापारियों ने ईरान के रुपए के घटते  भंडार पर सावधानी बरतते हुए ईरानी खरीदारों के साथ नए निर्यात अनुबंधों पर हस्ताक्षर करना लगभग बंद कर दिया है।

  • इससे पहले वर्ष 2020 में भारतीय विदेश मंत्रालय ने सूचित किया था कि अब वह  ईरान की फरज़ाद-बी गैस क्षेत्र परियोजना (Farzad-B Gas field Project) में शामिल नहीं है। इसका कारण ईरानी सरकार द्वारा नीतिगत परिवर्तन, ईरान के अनिश्चित वित्त और संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रतिबंधों (USA sanctions) को बताया गया था।
  • ईरान ने वर्ष 2020 में एक विधेयक पारित किया, जिसके अनुसार ईरानी मुद्रा रियाल (Rial) में चार स्लैब अर्थात चार शून्य तक की कटौती की गई। इस विधेयक से ईरान की वर्तमान मुद्रा रियाल को बदलकर तोमान (Toman) किया गया।

Iran

प्रमुख बिंदु

गिराता हुआ रिज़र्व:

  • ईरान का रुपया भारत के UCO और IDBI बैंक में आरक्षित है, ये दोनों बैंक रुपया व्यापार को सुविधाजनक बनाने के लिये अधिकृत हैं।

रिज़र्व में गिरावट का कारण:

  • ईरान तेल की बिक्री के लिये संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रतिबंधों से अमेरिकी डॉलर का उपयोग करने में असमर्थ है।
  • ईरान ने पहले रुपए के बदले भारत को तेल बेचने के लिये एक सौदा किया था, जिसका उपयोग उसने कृषि वस्तुओं सहित महत्त्वपूर्ण वस्तुओं का आयात करने हेतु किया, लेकिन भारत ने मई 2019 में अमेरिकी प्रतिबंधों की समय सीमा समाप्त होने के बाद से तेहरान का तेल खरीदना बंद कर दिया।
  • ईरान ने भारत से सामान खरीदने हेतु अपने रुपए का उपयोग जारी रखा, लेकिन ईरान के कच्चे तेल की बिक्री  22 महीने तक नहीं होने से उसके रुपए के भंडार में गिरावट आई है।
    • ईरान का भंडार काफी कम हो गया है और जल्द ही खत्म हो जाएगा क्योंकि इसका व्यापार बंद हो गया है।

निहितार्थ:

  • निर्यातकों की आशंका:
    • निर्यातकों को विश्वास नहीं है कि उन्हें नए शिपमेंट के लिये समय पर भुगतान किया जाएगा और वे ईरान से भुगतान में देरी होने के कारण समझौता करने से बच रहे हैं।
  • भारतीय निर्यात में गिरावट:
    • भारत द्वारा ईरान को किया जाना वाला समग्र निर्यात वर्ष 2020 में 42% गिरकर एक साल पहले 2.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर गो गया, जो एक दशक में सबसे कम था।
    • वर्ष 2021 में भी गिरावट जारी है और इस साल जनवरी में एक साल पहले की तुलना में निर्यात घटकर 100.20 मिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है।
  • चीन का बढ़ता प्रभाव:
    • हाल ही में ईरान और चीन के बीच हस्ताक्षरित समझौते से बैंकिंग, दूरसंचार, बंदरगाह, रेलवे आदि परियोजनाओं में चीनी की उपस्थिति का ईरान में विस्तार होगा।
  • भारत के हितों की सुरक्षा:
    • भारत के 400 अरब अमेरिकी डॉलर के समझौते को चीन और ईरान के बीच हुआ रणनीतिक समझौता बाधित कर सकती है, जिसके अंतर्गत भारत चाबहार (Chabahar) बंदरगाह के माध्यम से अफगानिस्तान और फिर अंतर्राष्ट्रीय उत्तर दक्षिण परिवहन गलियारे (International North South Transportation Corridor) से तथा जुड़ना चाहता है, हालाँकि ईरान द्वारा अभी तक इन परियोजनाओं से अलग होने का कोई संकेत नहीं दिया गया है। 
  • भारत की क्षेत्र में भूमिका:
    • भारत द्वारा ईरान से संबंध बनाये रखना, सऊदी अरब और इज़रायल के साथ-साथ पश्चिम एशिया में अपनी संतुलन नीति को बनाये रखना चुनौतीपूर्ण होगा।
  • सांप्रदायिक तनाव से बचना:
    • भारत में शिया और सुन्नी दोनों मुसलमानों की बड़ी संख्या रहती है, जिससे भारत इस क्षेत्र में किसी भी सांप्रदायिक तनाव से खुद को अलग करना चाहता है। अतः भारत को ईरान के साथ ना तो पूरी तरह से नाता तोड़ना चाहिये और ना ही अमेरिका की खुलकर आलोचना करनी चाहिये।
  • भारत की ऊर्जा सुरक्षा:
    • भारत इस्लामिक राष्ट्र से आयात होने वाले कुल तेल का 90% हिस्सा ईरान से आयात करता था, जिसको अब रोक दिया गया है।
      • भारत वर्ष 2018 के मध्य तक चीन के बाद ईरान से तेल आयात करने वाला प्रमुख देश था।
  • शांतिपूर्ण अफगानिस्तान:
    • भारत, अफगानिस्तान में निवेश करने वाला एक प्रमुख देश है, इसलिये वह अफगानिस्तान में निर्वाचित, लोकतांत्रिक, संप्रभु और शांतिपूर्ण व्यवस्था चाहता है।
    • भारत, अफगानिस्तान के पड़ोस में विकसित हो रहे ईरान - पाकिस्तान - चीन धुरी को एक ऐसे क्षेत्र के रूप में देख रहा है जहाँ आतंकवादियों को शरण दी जाएगी।
  • पाकिस्तान का प्रभाव:
    • पाकिस्तान की सक्रियता मध्य-पूर्व (Middle-East) में अधिक है। वह इस्लामिक सहयोग संगठन (Organisation of Islamic Cooperation) के प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल कर और अरब देशों के साथ संबंध बनाकर कश्मीर मुद्दे पर उनका समर्थन हासिल करने की कोशिश कर रहा है।  

आगे की राह

  • भारत सरकार का वर्ष 2019 में ईरान से तेल आयात को रोकने का निर्णय भारत-अमेरिका संबंधों को देखते हुए लिया गया था, लेकिन भारत को आज एक ऐसे मार्ग की ज़रूरत है जिस पर चल कर वह या तो अमेरिका से ईरान से व्यापार को बनाये रखने पर छूट प्राप्त कर ले या फिर उसके प्रतिबंधों को दरकिनार करके अपनी ऊर्जा जरूरतों तथा क्षेत्रीय विदेश नीति के उद्देश्यों को देखते हुए ईरान के साथ अपना व्यापार जारी रखे जैसा कि वर्ष 2012-13 में किया गया था।
  • भारत अपनी ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने के लिये मध्य पूर्व के तेल और गैस पर अत्यधिक निर्भर है। अतः इसे ईरान, यूएई, कतर और सऊदी अरब के साथ-साथ इराक सहित प्रमुख ऊर्जा आपूर्तिकर्त्ताओं के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू


सामाजिक न्याय

रोड टू जेंडर इक्वेलिटी: UNDP

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (United Nations Development Programme- UNDP) की प्रकाशित नवीनतम रिपोर्ट "प्रोटेक्टिंग वुमन्स लाइवलीहुड्स इन टाइम्स ऑफ पेंडेमिक: टेंपरेरी बेसिक इनकम एंड द रोड टू जेंडर इक्वेलिटी" (Protecting Women's Livelihoods in Times of Pandemic: Temporary Basic Income and the Road to Gender Equality) में विकासशील देशों की गरीब महिलाओं हेतु एक अस्थायी मूल आय (Temporary Basic Income- TBI) का प्रस्ताव दिया गया है।

  • इस प्रस्ताव को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस (8 मार्च) से पहले प्रस्तुत किया गया है

प्रमुख बिंदु:

लिंग असमानता:

  • अवैतनिक श्रम:
    • अवैतनिक श्रम अर्थात् देखभाल और घरेलू कार्यों में पुरुषों की तुलना में महिलाएंँ औसतन प्रतिदिन 2.4 घंटे अधिक व्यतीत करती हैं
    • वैतनिक अर्थव्यवस्था में भाग लेने वाले लोगों में महिलाएंँ, भुगतान और अवैतनिक कार्य करने वाले पुरुषों की तुलना में प्रतिदिन औसतन चार घंटे अधिक कार्य करती हैं।
  • विभेदपूर्ण नीतियाँ:
    • जटिल लैंगिक मानदंडों के अलावा, महिलाएंँ समान वेतन, सवैतनिक मातृत्व अवकाश, सार्वभौमिक स्वास्थ्य, बेरोज़गारी और देखभाल लाभ के रूप में प्राप्त होने वाले मुआवज़े जैसी नीतियों के कारण भी आर्थिक भेद्यता का सामना करती हैं।
  • कोविड का प्रभाव:
    • महामारी के कारण आय में कमी होने तथा नौकरियाँ छूटने के कारण महिलाएँ पुरुषों की तुलना में अधिक प्रतिकूल रूप से प्रभावित हो रही है 
      • यह भेद्यता लैंगिक असमानता के कारण है
    • अत्यधिक गरीबी में महिलाओं के रहने की संभावना पुरुषों की तुलना में 25% अधिक है।  
    • कोविड-19 ग्लोबल जेंडर रिस्पांस ट्रैक के अनुसार, दस देशों में से केवल एक में ही महिलाओं की आर्थिक सुरक्षा ज़रूरतों से संबंधित नीतियों का निर्माण किया गया है।
      • कोविड-19 ग्लोबल जेंडर रिस्पांस ट्रैकर, संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) और यूएन वीमेन (UN Women) की एक पहल है, जो महामारी के दौरान सामाजिक सुरक्षा और नौकरियों में बड़े पैमाने पर महिलाओं की ज़रूरतों की अनदेखी को प्रदर्शित करती है

मुख्य प्रस्ताव:

  • अस्थायी मूल आय (Temporary Basic Income):
    • अस्थायी मूल आय (TBI) हर दिन कोरोना वायरस महामारी के प्रभावों से निपटने में  विश्व की लाखों गरीब महिलाओं के समक्ष आने वाले आर्थिक दबाव की चुनौतियों को कम करने में सहायक रही है। 
    • विकासशील देशों के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 0.07-0.31% का मासिक निवेश गरीबी में रहने वाली 613 मिलियन कामकाजी वृद्ध महिलाओं को विश्वसनीय वित्तीय सुरक्षा प्रदान कर सकता है।
    • इस तरह के सार्थक निवेश का लाभ न केवल महिलाओं और उनके परिवारों को महामारी के तनाव  से बाहर निकलने में मदद कर सकता है, बल्कि महिलाओं को आय, आजीविका और जीवन विकल्पों के बारे में स्वतंत्र निर्णय लेने में भी सशक्त बनाता है।
  • महिलाओं के अनुकूल नीतियाँ:
    • सभी श्रमिकों, पुरुषों और महिलाओं की ज़रूरतों को पहचानने हेतु नीतियों का निर्माण होना चाहिये, ताकि कार्य के भुगतान के साथ-साथ अपने घरेलू दायित्वों को भी पूरा किया जा सके तथा ज़िम्मेदारी के रूप में संस्थागत देखभाल और घरेलू कार्यों को अधिक वितरित रूप से साझा करने की ज़रूरत है 
    • ऐसी नीतियों में गारंटीकृत सवैतनिक मातृत्व अवकाश, विस्तारित पितृत्व अवकाश और इनका सुचारू क्रियान्वयन शामिल है।
    • अंशकालिक कार्य या कार्यस्थल पर स्तनपान सुविधाओं जैसी व्यवस्था स्थापित करने के माध्यम से माता-पिता को बच्चे के जन्म के बाद शीघ्र ही कार्यबल में वापस आने हेतु सहायता प्रदान करता है।
  • श्रम बाजार में सुधार: 
    • भुगतान किये गए कार्यों और पारिवारिक ज़िम्मेदारियों के मध्य  सामंजस्य के अलावा सरकारों को श्रम बाज़ार में लैंगिक और अंतर के अन्य स्रोतों क्षैतिज और ऊर्ध्वाधर अलगाव जैसी अन्य कारकों पर ध्यान दिया जाना चाहिये तथा भेदभाव-विरोधी कानून और सकारात्मक कार्रवाई की पहल शामिल की जानी चाहिये।
      • सामान्य तौर पर क्षैतिज अलगाव (Horizontal Segregation) को विभिन्न प्रकार की नौकरियों में पुरुषों और महिलाओं के संदर्भ में  परिभाषित किया जा सकता है।
      • ऊर्ध्वाधर अलगाव उस स्थिति का सूचक  है जिससे किसी कंपनी के भीतर एक विशेष लिंग के लिये कॅरियर में प्रगति के अवसर सीमित होते  हैं।

अन्य देशों की पहल:

  • फिलीपींस
    • विस्तारित स्तनपान संवर्द्धन अधिनियम, 2009।
  • मेक्सिको: 
    • मेक्सिको द्वारा  सामाजिक सुरक्षा कानून में सुधार किया गया जिससे पुरुषों को चाइल्ड केयर सेवाओं का उपयोग करने की अनुमति मिली
  • बोस्निया & हर्जेगोविना और बोलीविया: 
    • इन देशों में माता-पिता को कोविड -19 में परिवार की देखभाल हेतु काम के घंटे को कम करने की अनुमति दी गई है।
  • केप वर्डे, उत्तर मैसेडोनिया और त्रिनिदाद & टोबैगो:
    • इन देशों द्वारा कर्मचारियों को देखभाल की ज़िम्मेदारियों के साथ वर्क फ्रॉम होम से ही कार्य करने की सुविधा प्रदान की है।

लिंग समानता को बढ़ावा देने हेतु भारत में प्रावधान:

  • महिला एवं बाल विकास मंत्रालय:
    • महिलाओं के रोज़गार को बढ़ावा देने के उद्देश्य से वर्ष 2006 में एक अलग मंत्रालय की स्थापना की गई थी।
  • मातृत्व लाभ (संशोधन) अधिनियम, 2017
    • यह गर्भवती महिलाओं को कुल 26 सप्ताह का अवकाश प्रदान करता है, जिसमें प्रसव पूर्व 8 सप्ताह का अवकाश शामिल है
    • मातृत्व अवकाश पर जाने से पूर्व महिला को तीन महीने हेतु अपने दैनिक वेतन का  लाभ प्राप्त होता है 
  • कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013:
    • यह सभी महिलाओं को सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों में कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से सुरक्षा प्रदान करता है
  • सामाजिक सुरक्षा संहिता, व्यावसायिक सुरक्षा पर संहिता, व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थिति संहिता तथा औद्योगिक संबंध संहिता, 2020:
    • इन संहिताओं के तहत, महिलाओं को रात्रि में सभी क्षेत्र में कार्य  करने की अनुमति दी गई है, लेकिन यह सुनिश्चित किया गया है कि महिलाओं की सुरक्षा का प्रावधान नियोक्ता द्वारा किया जाए साथ ही रात्रि में कार्य करने से पहले महिलाओं की सहमति लेना आवश्यक है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


सुरक्षा

सॉलिड फ्यूल डक्टेड रैमजेट टेक्नोलॉजी

चर्चा में क्यों?

हाल ही में रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (Defence Research and Development Organisation- DRDO) ने सॉलिड फ्यूल डक्टेड रैमजेट (Solid Fuel Ducted Ramjet) टेक्नोलॉजी का सफल परीक्षण किया है। यह परीक्षण लंबी दूरी की हवा-से-हवा में मार करने वाली मिसाइल के स्वदेशी संस्करण के विकास हेतु महत्त्वपूर्ण है।

प्रमुख बिंदु

सॉलिड फ्यूल डक्टेड रैमजेट टेक्नोलॉजी: 

  • यह टेक्नोलॉजी एक मिसाइल प्रणोदन प्रणाली है जो रैमजेट इंजन (Ramjet Engine) सिद्धांत की अवधारणा पर आधारित है।
  • यह प्रणाली एक ठोस ईंधन पर आधारित है जो ईंधन के दहन के लिये आवश्यक ऑक्सीजन को हवा से लेती है, जिसको एयर एयर-ब्रीदिंग (Air-breathing)  कहते हैं
    • ठोस-प्रणोदक रॉकेटों के विपरीत, रैमजेट उड़ान के दौरान वायुमंडल से ऑक्सीजन लेता है। इस प्रकार यह वजन में हल्का है और अधिक ईंधन क्षमता वाला होता है।
  • DRDO ने वर्ष 2017 में SFDR को विकसित करना शुरू किया और जिसका वर्ष 2018 और वर्ष 2019 में सफल परीक्षण किया गया।

महत्त्व:

  • DRDO को SFDR तकनीक का सफल परीक्षण लंबी दूरी की हवा से हवा में मार करने वाली स्वदेशी मिसाइल विकसित करने में सक्षम करेगा।
  • वर्तमान में ऐसी तकनीक दुनिया के कुछ देशों के पास ही उपलब्ध है।
  • हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइलें SFDR तकनीक का उपयोग करके लंबी दूरी हासिल कर सकती हैं क्योंकि उन्हें ऑक्सीडाइज़र की आवश्यकता नहीं होती है।
  • SFDR पर आधारित मिसाइल सुपरसोनिक गति से उड़ान भरती है।

रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन:

रैमजेट

  • रैमजेट इंजन (Ramjet Engine), एयर ब्रीदिंग इंजन का ही एक रूप है जो वाहन की अग्र गति (forward motion) का उपयोग कर आने वाली हवा को बिना घूर्णन संपीडक (rotating compressor) के दहन (combustion) के लिये संपीड़ित करता है।
  • रैमजेट 3 मैक (ध्वनि की गति से तीन गुना) के आसपास सुपरसोनिक गति पर सबसे कुशलता से काम करते हैं और अधिकतम मैक 6 की गति तक इनका इस्तेमाल किया जा सकता है।
  • जब वाहन हाइपरसोनिक गति पर पहुँच जाता है तो रैमजेट इंजन की दक्षता कम होने लगती है।

एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम

  • इसकी स्थापना का विचार प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम द्वारा दिया गया था।
  • इसका उद्देश्य मिसाइल प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करना था।
  • रक्षा बलों द्वारा विभिन्न प्रकार की मिसाइलों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए इस कार्यक्रम के तहत पाँच मिसाइल प्रणालियों को विकसित करने की आवश्यकता को मान्यता दी गई।
  • IGMDP को औपचारिक रूप से 26 जुलाई, 1983 को भारत सरकार की मंज़ूरी मिली।
  • IGMDP के अंतर्गत विकसित मिसाइल हैं:
    • पृथ्वी - सतह-से-सतह पर मार करने में सक्षम कम दूरी वाली बैलिस्टिक मिसाइल।
    • अग्नि – सतह-से-सतह पर मार करने में सक्षम मध्यम दूरी वाली बैलिस्टिक मिसाइल।
    • त्रिशूल – सतह-से-आकाश में मार करने में सक्षम कम दूरी वाली मिसाइल।
    • आकाश – सतह-से-आकाश में मार करने में सक्षम मध्यम दूरी वाली मिसाइल।
    • नाग -  तीसरी पीढ़ी की  टैंक भेदी मिसाइल।

स्रोत: पी.आई.बी.


close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow