छत्रपति शिवाजी महाराज
प्रिलिम्स के लियेछत्रपति शिवाजी, चौथ, सरदेशमुखी, काठी प्रणाली, मीरासदार, अष्टप्रधान, शाककार्ता, क्षत्रिय कुलवंत, हैंदव धर्मोधारक, पुरंदर की संधि, प्रतापगढ़ की लड़ाई, 1659; पवन खिंड की लड़ाई, 1660; सूरत की लड़ाई, 1664; पुरंदर की लड़ाई, 1665; सिंहगढ़ की लड़ाई, 1670; कल्याण की लड़ाई, 1682-83; संगमनेर की लड़ाई, 1679 मेन्स के लियेछत्रपति शिवाजी के अंतर्गत मराठा साम्राज्य और राजस्व तथा सैन्य नीतियाँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, भारत के राष्ट्रपति ने छत्रपति शिवाजी महाराज को श्रद्धांजलि दी।
- इस वर्ष की शुरुआत में गोवा सरकार ने मराठा राजा के राज्याभिषेक दिवस (6 जून) की वर्षगांठ के अवसर पर छत्रपति शिवाजी पर एक लघु फिल्म जारी की।
प्रमुख बिंदु
- जन्म:
- उनका जन्म 19 फरवरी, 1630 को वर्तमान महाराष्ट्र राज्य में पुणे ज़िले के शिवनेरी किले में हुआ था।
- उनका जन्म एक मराठा सेनापति शाहजी भोंसले के घर हुआ था, जिनके अधिकार में बीजापुर सल्तनत के तहत पुणे और सुपे की जागीरें थीं तथा उनकी माता जीजाबाई, एक धर्मपरायण महिला थीं, जिनके धार्मिक गुणों का उन पर गहरा प्रभाव था।
- आरंभिक जीवन:
- इन्होंने वर्ष 1645 में पहली बार अपने सैन्य उत्साह का प्रदर्शन किया, जब किशोर उम्र में ही इन्होंने बीजापुर के अधीन तोरण किले (Torna Fort) पर सफलतापूर्वक नियंत्रण प्राप्त कर लिया।
- इन्होंने कोंडाना किले (Kondana Fort) पर भी अधिकार किया। ये दोनों किले बीजापुर के आदिल शाह के अधीन थे।
महत्त्वपूर्ण युद्ध:
प्रतापगढ़ का युद्ध, 1659 |
|
पवन खिंड का युद्ध, 1660 |
|
सूरत का युद्ध, 1664 |
|
पुरंदर का युद्ध, 1665 |
|
सिंहगढ़ का युद्ध, 1670 |
|
कल्याण का युद्ध, 1682-83 |
|
संगमनेर की युद्ध, 1679 |
|
मुगलों के साथ संघर्ष:
- मराठों ने अहमदनगर के पास और वर्ष 1657 में जुन्नार में मुगल क्षेत्र पर छापा मारा।
- औरंगज़ेब ने नसीरी खान को भेजकर छापेमारी का जवाब दिया, जिसने अहमदनगर में शिवाजी की सेना को हराया था।
- शिवाजी ने वर्ष 1659 में पुणे में शाइस्ता खान (औरंगज़ेब के मामा) और बीजापुर सेना की एक बड़ी सेना को हराया।
- शिवाजी ने वर्ष 1664 में सूरत के मुगल व्यापारिक बंदरगाह को अपने कब्ज़े में ले लिया।
- जून 1665 में शिवाजी और राजा जय सिंह प्रथम (औरंगजेब का प्रतिनिधित्व) के बीच पुरंदर की संधि (Treaty of Purandar) पर हस्ताक्षर किये गए।
- इस संधि के अनुसार, मराठों को कई किले मुगलों को देने पड़े और शिवाजी, औरंगज़ेब से आगरा में मिलने के लिये सहमत हुए। शिवाजी अपने पुत्र संभाजी को भी आगरा भेजने के लिये तैयार हो गए।
शिवाजी की गिरफ्तारी:
- जब शिवाजी वर्ष 1666 में आगरा में मुगल सम्राट से मिलने गए, तो मराठा योद्धा को लगा कि औरंगज़ेब ने उनका अपमान किया है जिससे वे दरबार से बाहर आ गए।
- जिसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर बंदी बना लिया गया। शिवाजी और उनके पुत्र का आगरा से भागने की कहानी आज भी प्रामाणिक नहीं है।
- इसके बाद वर्ष 1670 तक मराठों और मुगलों के बीच शांति बनी रही।
- मुगलों द्वारा संभाजी को दी गई बरार की जागीर उनसे वापस ले ली गई थी।
- इसके जवाब में शिवाजी ने चार महीने की छोटी सी अवधि में मुगलों के कई क्षेत्रों पर हमला कर उन्हें वापस ले लिया।
- शिवाजी ने अपनी सैन्य रणनीति के माध्यम से दक्कन और पश्चिमी भारत में भूमि का एक बड़ा हिस्सा हासिल कर लिया।
दी गई उपाधि:
- शिवाजी को 6 जून, 1674 को रायगढ़ में मराठों के राजा के रूप में ताज पहनाया गया।
- इन्होंने छत्रपति, शाककार्ता, क्षत्रिय कुलवंत और हैंदव धर्मोधारक की उपाधि धारण की थी।
- शिवाजी द्वारा स्थापित मराठा साम्राज्य समय के साथ बड़ा होता गया और 18वीं शताब्दी की शुरुआत में प्रमुख भारतीय शक्ति बन गया।
मृत्यु:
- इनकी 3 अप्रैल, 1680 को मृत्यु हो गई।
शिवाजी के अधीन प्रशासन
- केंद्रीय प्रशासन:
- इसकी स्थापना शिवाजी द्वारा प्रशासन की सुदृढ़ व्यवस्था के लिये की गई थी जो प्रशासन की दक्कन शैली से काफी प्रेरित थी।
- अधिकांश प्रशासनिक सुधार अहमदनगर में मलिक अंबर (Malik Amber) के सुधारों से प्रेरित थे।
- राजा राज्य का सर्वोच्च प्रमुख होता था जिसे 'अष्टप्रधान' के नाम से जाना जाने वाले आठ मंत्रियों के एक समूह द्वारा सहायता प्रदान की जाती थी।
- पेशवा, जिसे मुख्य प्रधान के रूप में भी जाना जाता है, मूल रूप से राजा शिवाजी की सलाहकार परिषद का नेतृत्व करता था।
- राजस्व प्रशासन:
- शिवाजी ने जागीरदारी प्रणाली को समाप्त कर दिया और इसे रैयतवारी प्रणाली से बदल दिया तथा वंशानुगत राजस्व अधिकारियों की स्थिति में परिवर्तन किया, जिन्हें देशमुख, देशपांडे, पाटिल एवं कुलकर्णी के नाम से जाना जाता था।
- शिवाजी उन मीरासदारों (Mirasdar) का कड़ाई से पर्यवेक्षण करते थे जिनके पास भूमि पर वंशानुगत अधिकार थे।
- राजस्व प्रणाली मलिक अंबर की काठी प्रणाली (Kathi System) से प्रेरित थी, जिसमें भूमि के प्रत्येक टुकड़े को रॉड या काठी द्वारा मापा जाता था।
- चौथ और सरदेशमुखी आय के अन्य स्रोत थे।
- चौथ कुल राजस्व का 1/4 भाग था जिसे गैर-मराठा क्षेत्रों से मराठा आक्रमण से बचने के बदले में वसूला जाता था।
- यह आय का 10 प्रतिशत होता था जो अतिरिक्त कर के रूप में होता था।
- सैन्य प्रशासन:
- शिवाजी ने एक अनुशासित और कुशल सेना का गठन किया।
- सामान्य सैनिकों को नकद में भुगतान किया जाता था, लेकिन प्रमुख और सैन्य कमांडर को जागीर अनुदान (सरंजम या मोकासा) के माध्यम से भुगतान किया जाता था।
- मराठा सेना में इन्फैंट्री सैनिक, घुड़सवार, नौसेना आदि शामिल थीं।
रायगढ़ किला
- इस किले को पहले रायरी कहा जाता था, 12वीं शताब्दी में यह मराठा वंश शिर्के का गढ़ था।
- ब्रिटिश राजपत्र में कहा गया है कि इस किले को आरभिक यूरोपियों द्वारा पूर्व के ज़िब्राल्टर के रूप में जाना जाता था।
- वर्ष 1656 में, छत्रपति शिवाजी ने इसे जावली के मोरे से प्राप्त कर लिया, जो आदिलशाही सल्तनत के अधीन था।
- वर्ष 1662 में, शिवाजी ने औपचारिक रूप से किले का नाम बदलकर रायगढ़ कर दिया और इसमें कई संरचनाएं जोड़ीं।
- 1664 तक, किला शिवाजी की सरकार के गढ़ के रूप में उभरा था।
- किले ने न केवल शिवाजी को आदिलशाही वंश की सर्वोच्चता को चुनौती देने में मदद की बल्कि अपनी शक्ति के विस्तार के लिये कोंकण की ओर मार्ग भी खोल दिया।
- जैसे ही शिवाजी के नेतृत्त्व में मराठों ने मुगलों के खिलाफ अपने संघर्ष में ताकत हासिल की उनके द्वारा एक संप्रभु, स्वतंत्र राज्य की घोषणा की गई।
राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण पुरस्कार
प्रिलिम्स के लिये:BEE, राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस,NECA, ग्रीनहाउस गैस मेन्स के लिये:ऊर्जा दक्षता और ऊर्जा संरक्षण से संबंधित पहलें |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ऊर्जा दक्षता और संरक्षण में भारत की उपलब्धियों को प्रदर्शित करने के लिये ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (BEE) ने राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस (14 दिसंबर) के अवसर पर विभिन्न औद्योगिक इकाइयों, संस्थानों और प्रतिष्ठानों को 31 वें राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण पुरस्कार (NECA) से सम्मानित किया।
- एक नए पुरस्कार - राष्ट्रीय ऊर्जा दक्षता नवाचार पुरस्कार (NEEIA) को भी संस्थागत रूप दिया गया है।
ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (BEE)
- ऊर्जा दक्षता ब्यूरो(BEE), विद्युत मंत्रालय के अंतर्गत ऊर्जा संरक्षण अधिनियम, 2001 के प्रावधानों के तहत स्थापित एक वैधानिक निकाय है।
- यह भारतीय अर्थव्यवस्था के ऊर्जा आधिक्य को कम करने के प्राथमिक उद्देश्य के साथ विकासशील नीतियों और रणनीतियों विकसित करने में सहायता करता है।
- BEE अपने कार्यों को करने में मौजूदा संसाधनों एवं बुनियादी ढाँचे की पहचान तथा उपयोग करने के लिये नामित उपभोक्ताओं, एजेंसियों व अन्य संगठनों के साथ समन्वय करता है।
प्रमुख बिंदु
- परिचय:
- विद्युत मंत्रालय ने वर्ष 1991 में एक योजना शुरू की, जिसका उद्देश्य ऐसे उद्योगों और प्रतिष्ठानों को पुरस्कृत कर राष्ट्रीय मान्यता प्रदान करना था, जिन्होंने अपने उत्पादन को बनाए रखते हुए ऊर्जा की खपत को कम करने के लिये विशेष प्रयास किये हैं।
- राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण पुरस्कार पहली बार 14 दिसंबर, 1991 को दिया गया था, तभी से 14 दिसंबर को 'राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस' के रूप में घोषित किया गया है।
- यह पुरस्कार उद्योगों, प्रतिष्ठानों और संस्थानों में कुल 56 उप-क्षेत्रों के तहत ऊर्जा दक्षता उपलब्धियों को मान्यता प्रदान करता है।
- विद्युत मंत्रालय ने वर्ष 1991 में एक योजना शुरू की, जिसका उद्देश्य ऐसे उद्योगों और प्रतिष्ठानों को पुरस्कृत कर राष्ट्रीय मान्यता प्रदान करना था, जिन्होंने अपने उत्पादन को बनाए रखते हुए ऊर्जा की खपत को कम करने के लिये विशेष प्रयास किये हैं।
- भारत में ऊर्जा दक्षता:
- ऊर्जा दक्षता का अर्थ है किसी कार्य को करने के लिये कम ऊर्जा का उपयोग करना अर्थात् ऊर्जा की बर्बादी को समाप्त करना। ऊर्जा दक्षता कई तरह के लाभ प्रदान करती है जैसे- ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन को कम करना, ऊर्जा आयात की मांग को कम करना और घरेलू तथा अर्थव्यवस्था-व्यापी स्तर पर लागत को कम करना।
- भारत का ऊर्जा क्षेत्र सरकार की हाल की विकासात्मक महत्त्वाकांक्षाओं के साथ परिवर्तन के लिये तैयार है, उदाहरण के लिये:
- वर्ष 2022 तक अक्षय ऊर्जा की स्थापित क्षमता 175 गीगावाट, सभी के लिये 24X7 बिजली, वर्ष 2022 तक सभी के लिये आवास, 100 स्मार्ट सिटी मिशन, ई-मोबिलिटी को बढ़ावा देना, रेलवे क्षेत्र का विद्युतीकरण, घरों का 100% विद्युतीकरण, कृषि पंप सेटों का सौरीकरण (Solarisation) और स्वच्छ भोजन पकाने की स्थितियों को बढ़ावा देना।
- भारत महत्त्वाकांक्षी ऊर्जा दक्षता नीतियों के कार्यान्वयन के साथ वर्ष 2040 तक बिजली उत्पादन हेतु 300 गीगावाट के नए निर्माण से बच सकता है।
- ऊर्जा दक्षता उपायों के सफल कार्यान्वयन ने वर्ष 2017-18 के दौरान देश की कुल बिजली खपत में 7.14% की बिजली बचत और 108.28 मिलियन टन CO2 के उत्सर्जन में कमी लाने में योगदान दिया।
- ऊर्जा दक्षता और ऊर्जा संरक्षण से संबंधित पहलें:
- भारतीय पहलें:
- ऊर्जा संरक्षण अधिनियम, 2001:
- यह अधिनियम ऊर्जा संरक्षण हेतु कई कार्यों के लिये नियामकीय अधिदेश प्रदान करता है जैसे: उपकरणों के मानक निर्धारण और उनकी लेबलिंग; वाणिज्यिक भवनों के लिये ऊर्जा संरक्षण भवन कोड; ऊर्जा गहन उद्योगों के लिये ऊर्जा की खपत के मानदंड।
- प्रदर्शन, उपलब्धि और व्यापार (PAT) योजना:
- प्रदर्शन, उपलब्धि और व्यापार (Perform, Acheive and Trade-PAT) के तहत ऊर्जा बचत के प्रमाणीकरण के माध्यम से ऊर्जा गहन उद्योगों की ऊर्जा दक्षता सुधार में लागत प्रभावशीलता बढ़ाने के लिये एक संबद्ध बाज़ार आधारित तंत्र के साथ व्यापार किया जा सकता है।
- मानक और लेबलिंग:
- यह योजना वर्ष 2006 में लॉन्च की गई थी और वर्तमान में रूम एयर कंडीशनर (फिक्स्ड/वेरिएबल स्पीड), सीलिंग फैन, रंगीन टेलीविज़न, कंप्यूटर, डायरेक्ट कूल रेफ्रिजरेटर आदि उपकरणों पर लागू होती है।
- ऊर्जा संरक्षण भवन कोड (ECBC):
- इसे वर्ष 2007 में नए वाणिज्यिक भवनों के लिये विकसित किया गया था।
- यह 100kW (किलोवाट) के कनेक्टेड लोड या 120 KVA (किलोवोल्ट-एम्पीयर) और उससे अधिक की अनुबंध मांग वाले नए वाणिज्यिक भवनों के लिये न्यूनतम ऊर्जा मानक निर्धारित करता है।
- मांग पक्ष प्रबंधन (DSM):
- DSM आशय इलेक्ट्रिक मीटर की मांग या ग्राहक-पक्ष को प्रभावित करने वाले उपायों के चयन, नियोजन और उनके कार्यान्वयन से है।
- ऊर्जा संरक्षण अधिनियम, 2001:
- वैश्विक पहलें:
- अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA):
- IEA एक सुरक्षित और स्थायी भविष्य के लिये ऊर्जा नीतियों को आकार एवं दिशा प्रदान करने हेतु विश्व भर के देशों के साथ काम करती है।
- सस्टेनेबल एनर्जी फॉर आल (SEforALL):
- यह एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है जो जलवायु पर पेरिस समझौते के अनुरूप सतत विकास लक्ष्य-7 की उपलब्धि की दिशा में तेज़ी से कार्रवाई करने के लिये संयुक्त राष्ट्र और सरकार के नेताओं , निजी क्षेत्र, वित्तीय संस्थानों और नागरिक समाज के साथ साझेदारी में काम करता है।
- पेरिस समझौता (Paris Agreement):
- यह जलवायु परिवर्तन पर कानूनी रूप से बाध्यकारी अंतर्राष्ट्रीय संधि है। इसका लक्ष्य पूर्व-औद्योगिक स्तर की तुलना ग्लोबल वार्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस से कम, अधिमानतः 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करना है।
- मिशन इनोवेशन (Mission Innovation-MI):
- यह स्वच्छ ऊर्जा नवाचार में तेज़ी लाने के लिये 24 देशों और यूरोपीय आयोग (यूरोपीय संघ की ओर से) की एक वैश्विक पहल है।
- अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA):
- भारतीय पहलें:
- ऊर्जा दक्षता में सुधार के लिये सुझाव:
- ऊर्जा उपयोग व्यवहार में परिवर्तन:
- जीवन को आसान बनाने वाले उपकरणों के साथ आरामदायक वातानुकूलित स्थानों में रहने और काम करने की नागरिकों की उच्च महत्त्वाकांक्षाओं से ऊर्जा खपत में कई गुना वृद्धि होगी।
- भविष्य में ऊर्जा की मांग को रोकने के लिये ऊर्जा दक्षता कार्यक्रमों के माध्यम से ऊर्जा उपयोग व्यवहार के तरीकों को बदलने हेतु एक दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
- शून्य ऊर्जा भवन कार्यक्रम पर अधिक ध्यानाकर्षण:
- भारत के लिये निर्माण क्षेत्र के सभी क्षेत्रों में लगभग शून्य ऊर्जा भवन (NZEB) कार्यक्रम के विस्तार पर ज़ोर देना महत्त्वपूर्ण है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य पारंपरिक भवनों के लिये प्रति इकाई क्षेत्र में कम ऊर्जा उपयोग प्राप्त करने हेतु एक ढाँचा विकसित करना है।
- विद्युत अधिनियम में संशोधन:
- इसके अलावा भारत के विद्युत् क्षेत्र में विद्युत् अधिनियम के संशोधन के माध्यम से कई नीतिगत स्तर के बदलाव के साथ सुधार की उम्मीद है।
- स्मार्ट मीटर की स्थापना:
- कम बिलिंग क्षमता के कारण राजस्व हानि, भारी संचरण और वितरण हानि, विद्युत् खपत की निगरानी आदि जैसे मुद्दों के समाधान के रूप में प्रमुख पहलों में से एक स्मार्ट मीटर की स्थापना है।
- तेज़ गति से स्मार्ट मीटरों की स्थापना से भारत को बड़े पैमाने पर ऊर्जा दक्षता हस्तक्षेपों को सुविधाजनक बनाने में मदद मिल सकती है।
- ऊर्जा दक्षता हस्तक्षेप:
- ऊर्जा दक्ष जीवनशैली अपनाने से भारत की ऊर्जा प्रणाली में बेहतरी के लिये परिवर्तन की दिशा में सकारात्मक प्रोत्साहन मिलेगा। कम कार्बन संक्रमण प्राप्त करने हेतु ऊर्जा दक्षता हस्तक्षेप सबसे अधिक लागत प्रभावी साधनों में से एक है।
- ऊर्जा उपयोग व्यवहार में परिवर्तन:
स्रोत-पीआईबी
डिफॉल्ट बेल
प्रिलिम्स के लिये:अनुच्छेद 21, राष्ट्रीय जांच एजेंसी, सर्वोच्च न्यायालय मेन्स के लिये:डिफॉल्ट बेल एवं गिरफ्तारी से संबंधित संवैधानिक प्रावधान |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राष्ट्रीय जांँच एजेंसी (National Investigation Agency-NIA) ने बॉम्बे सर्वोच्च न्यायालय के उस आदेश के खिलाफ अपील दायर की गई है जिसमे वकील-कार्यकर्त्ता सुधा भारद्वाज को डिफॉल्ट/वैधानिक जमानत (Statutory Bail) दी गई थी।
- जमानत कानूनी हिरासत में रखे गए व्यक्ति की सशर्त/अनंतिम रिहाई है (ऐसे मामलों में जिन पर अभी न्यायालय द्वारा निर्णय दिया जाना बाकि हो) जिसमें उस व्यक्ति द्वारा आवश्यकता पड़ने पर अदालत में पेश होने का वादा किया जाता है।
प्रमुख बिंदु
- डिफॉल्ट बेल के बारे में:
- कानूनी स्रोत: यह ज़मानत का अधिकार है जो तब प्राप्त होता है जब पुलिस न्यायिक हिरासत में लिये किसी व्यक्ति के संबंध में एक निर्दिष्ट अवधि के भीतर जांँच पूरी करने में विफल रहती है।
- इसे वैधानिक जमानत के रूप में भी जाना जाता है।
- यह दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 167(2) में निहित है।
- सर्वोच्च न्यायालय का फैसला: वर्ष 2020 में बिक्रमजीत सिंह मामले , में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा देखा गया कि आरोपी को 'डिफ़ॉल्ट जमानत' का एक अपरिहार्य अधिकार प्राप्त है, यदि उसके द्वारा किसी अपराध की जांच के लिये अधिकतम अवधि समाप्त होने के बाद और चार्जशीट दायर करने से पहले आवेदन किया करता है।
- CrPC की धारा 167 (2) के तहत डिफ़ॉल्ट जमानत का अधिकार, न केवल एक वैधानिक अधिकार, बल्कि अनुच्छेद 21 के तहत कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया का हिस्सा भी है।
- अंतर्निहित सिद्धांत: सामान्य तौर पर, जांँच एजेंसी की चूक पर जमानत के अधिकार को 'अपरिहार्य अधिकार' माना जाता है, लेकिन उचित समय पर इसका लाभ उठाया जाना चाहिये।
- डिफॉल्ट बेल एक अधिकार है जिसमें अपराध की प्रकृति को बेल का आधार न माना जाता है।
- इसकी निर्धारित अवधि जिसके भीतर आरोप पत्र दायर किया जाना है, उस दिन से शुरू होती है तथा जब आरोपी को पहली बार रिमांड पर लिया जाता है तब तक होती है।
- CrPC की धारा 173 के तहत, पुलिस अधिकारी किसी अपराध की आवश्यक जांँच पूरी होने के बाद रिपोर्ट दर्ज़ करने के लिये बाध्य है। इस रिपोर्ट को आम बोलचाल की भाषा में चार्जशीट (Charge Sheet) कहा जाता है।
- समय अवधि: डिफ़ॉल्ट बेल/जमानत का मुद्दा वहाँ उठता है जहांँ पुलिस के लिये 24 घंटे में जांँच पूरी करना संभव नहीं है, पुलिस संदिग्ध को अदालत में पेश करती है और पुलिस न्यायिक हिरासत के लिये आदेश मांँगती है।
- अधिकांश अपराधों के लिये, पुलिस के पास जांँच पूरी करने और न्यायालय के समक्ष अंतिम रिपोर्ट दाखिल करने हेतु 60 दिनों का समय होता है।
- हालांँकि जहांँ अपराध में मौत की सजा या आजीवन कारावास, या कम से कम 10 साल की जेल की सजा होती है, वहांँ यह अवधि 90 दिन है।
- दूसरे शब्दों में एक मजिस्ट्रेट किसी व्यक्ति की न्यायिक रिमांड के लिये 60-या 90-दिन की सीमा से अधिक अधिकृत नहीं कर सकता है।
- इस अवधि के अंत में, यदि जांँच पूरी नहीं होती है, तो न्यायालय उस व्यक्ति को रिहा कर देगी "यदि वह जमानत देने के लिय तैयार है और स्वयं को प्रस्तुत करता है"।
- विशेष मामले: 60 या 90 दिन की सीमा केवल सामान्य दंड कानून के लिये है। विशेष अधिनियम (Special Enactments) पुलिस को जांँच पूरी करने में अधिक छूट देते हैं।
- नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट 1985 में, यह अवधि 180 दिन है, जिसे एक वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है।
- गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम 1967 में, डिफ़ॉल्ट सीमा केवल 90 दिन है, जिसे और 90 दिनों तक बढ़ाया जा सकता है।
- इसका विस्तार केवल लोक अभियोजक (Public Prosecutor) द्वारा एक रिपोर्ट के आधार पर किया सकता है जिसमें जांच में की गई प्रगति का संकेत दिया गया हो और आरोपी को निरंतर हिरासत में रखने के कारण बताए गए हों।
- इन प्रावधानों से पता चलता है कि डिफॉल्ट बेल की अवधि का विस्तार नहीं किया जा सकता है बल्कि इसके लिये न्यायिक आदेश की आवश्यकता होती है।
- कानूनी स्रोत: यह ज़मानत का अधिकार है जो तब प्राप्त होता है जब पुलिस न्यायिक हिरासत में लिये किसी व्यक्ति के संबंध में एक निर्दिष्ट अवधि के भीतर जांँच पूरी करने में विफल रहती है।
भारत में अन्य प्रकार की ज़मानत:
- अग्रिम जमानत: यह न्यायालय (देश के भीतर किसी भी न्यायालय) द्वारा एक ऐसे व्यक्ति को रिहा करने का निर्देश है जो पहले से ही गिरफ्तार किया गया है और पुलिस हिरासत में रखा गया है। ऐसी जमानत के लिये व्यक्ति सीआरपीसी की धारा 437 और 439 के तहत आवेदन कर सकता है।
- अंतरिम जमानत: न्यायालय द्वारा एक अस्थायी और छोटी अवधि के लिये ज़मानत दी जाती है जब तक कि अग्रिम ज़मानत या नियमित ज़मानत की मांग करने वाला आवेदन न्यायालय के समक्ष लंबित न हो।
- अग्रिम जमानत: किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किये जाने से पहले ही जमानत पर रिहा करने का निर्देश जारी किया जाता है। ऐसे में गिरफ्तारी की आशंका बनी रहती है और जमानत मिलने से पहले व्यक्ति को गिरफ्तार नहीं किया जाता है।
- ऐसी जमानत के लिये कोई व्यक्ति दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 438 के तहत आवेदन दाखिल कर सकता है। यह केवल सत्र न्यायालय और उच्च न्यायालय द्वारा जारी की जाती है।
गिरफ्तारी से संबंधित संवैधानिक प्रावधान:
- अनुच्छेद 22 गिरफ्तार या हिरासत (निरोध) में लिये गए व्यक्तियों को सुरक्षा प्रदान करता है। निरोध दो प्रकार का होता है- दंडात्मक और निवारक।
- दंडात्मक निरोध का आशय किसी व्यक्ति को उसके द्वारा किये गए अपराध के लिये अदालत में मुकदमे और दोषसिद्धि के बाद दंडित करने से है।
- वहीं दूसरी ओर, निवारक निरोध का अर्थ किसी व्यक्ति को बिना किसी मुकदमे और अदालत द्वारा दोषसिद्धि के हिरासत में लेने से है।
- अनुच्छेद 22 के दो भाग हैं- पहला भाग साधारण कानून के मामलों से संबंधित है और दूसरा भाग निवारक निरोध कानून के मामलों से संबंधित है।
दंडात्मक निरोध के तहत दिये गए अधिकार |
निवारक निरोध के तहत दिये गए अधिकार |
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
स्रोत-द हिंदू
रूस-यूक्रेन संघर्ष
प्रिलिम्स के लियेरूस और यूक्रेन की भौगोलिक अवस्थिति, काला सागर मेन्स के लियेरूस-यूक्रेन संघर्ष और भारत के लिये इसके निहितार्थ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अमेरिकी खुफिया रिपोर्टों में कहा गया है कि रूस-यूक्रेन सीमा पर तनाव इस क्षेत्र में एक बड़ा सुरक्षा संकट पैदा कर सकता है।
- यूक्रेन का कहना है कि रूस ने सीमा पर करीब 90,000 सैनिक तैनात किये हैं।
प्रमुख बिंदु
- पृष्ठभूमि
- यूक्रेन और रूस सैकड़ों वर्षों के सांस्कृतिक, भाषाई और पारिवारिक संबंध साझा करते हैं।
- रूस और यूक्रेन में कई समूहों के लिये देशों की साझा विरासत एक भावनात्मक मुद्दा है जिसका चुनावी और सैन्य उद्देश्यों के लिये प्रयोग किया गया है।
- सोवियत संघ के हिस्से के रूप में, यूक्रेन रूस के बाद दूसरा सबसे शक्तिशाली सोवियत गणराज्य था और रणनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक रूप से काफी महत्त्वपूर्ण था।
- यूक्रेन और रूस सैकड़ों वर्षों के सांस्कृतिक, भाषाई और पारिवारिक संबंध साझा करते हैं।
- संघर्ष के कारण
- शक्ति संतुलन: जब से यूक्रेन सोवियत संघ से अलग हुआ है, रूस और पश्चिम दोनों ने इस क्षेत्र में सत्ता संतुलन को अपने पक्ष में रखने के लिये लगातार संघर्ष किया है।
- पश्चिमी देशों के लिये बफर ज़ोन: अमेरिका और यूरोपीय संघ के लिये यूक्रेन रूस और पश्चिम के बीच एक महत्त्वपूर्ण बफर ज़ोन है।
- रूस के साथ तनाव बढ़ने से अमेरिका और यूरोपीय संघ यूक्रेन को रूसी नियंत्रण से दूर रखने के लिये दृढ़ संकल्पित हैं।
- ‘काला सागर’ में रूस की रुचि: काला सागर क्षेत्र का अद्वितीय भूगोल रूस को कई भू-राजनीतिक लाभ प्रदान करता है।
- सबसे पहले यह पूरे क्षेत्र के लिये एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है।
- काला सागर तक पहुँच सभी तटीय एवं पड़ोसी राज्यों के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- दूसरे, यह क्षेत्र माल एवं ऊर्जा के लिये एक महत्त्वपूर्ण पारगमन गलियारा है।
- यूक्रेन में विरोध प्रदर्शन:
- यूरोमैदान आंदोलन: यूरोमैदान (यूरोपीय स्क्वायर) यूक्रेन में प्रदर्शनों और नागरिक अशांति की एक लहर थी, जो नवंबर 2013 में कीव (यूक्रेन) में ‘नेज़ालेज़्नोस्ती’ मैदान (‘स्वतंत्रता स्क्वायर’) में सार्वजनिक विरोध के साथ शुरू हुई थी।
- रूस और यूरेशियन आर्थिक संघ के साथ घनिष्ठ संबंधों को बढ़ावा देने के साथ यूरोपीय संघ के साथ समझौते पर हस्ताक्षर को निलंबित करने के यूक्रेनी सरकार के फैसले के साथ विरोध तेज़ हो गया था।
- अलगाववादी आंदोलन: पूर्वी यूक्रेन का डोनबास क्षेत्र (डोनेट्स्क और लुहान्स्क क्षेत्र) वर्ष 2014 से रूसी समर्थक अलगाववादी आंदोलन का सामना कर रहा है।
- यूक्रेन सरकार के अनुसार, आंदोलन को रूसी सरकार द्वारा सक्रिय रूप से समर्थन दिया जाता है और रूसी अर्द्धसैनिक बल यूक्रेन सरकार के खिलाफ अलगाववादियों की संख्या 15% से 80% के बीच है।
- यूरोमैदान आंदोलन: यूरोमैदान (यूरोपीय स्क्वायर) यूक्रेन में प्रदर्शनों और नागरिक अशांति की एक लहर थी, जो नवंबर 2013 में कीव (यूक्रेन) में ‘नेज़ालेज़्नोस्ती’ मैदान (‘स्वतंत्रता स्क्वायर’) में सार्वजनिक विरोध के साथ शुरू हुई थी।
- क्रीमिया पर आक्रमण:
- रूस ने यूक्रेन से क्रीमिया को जब्त कर लिया था, जो कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पहली बार किसी यूरोपीय देश ने किसी अन्य देश के क्षेत्र पर अपना अधिकार स्थापित किया।
- यूक्रेन के क्रीमिया प्रायद्वीप (Crimean Peninsula) पर कब्ज़ा, क्रीमिया में रूसी सैन्य हस्तक्षेप के बाद हुआ। यह वर्ष 2014 की यूक्रेनी क्रांति के बाद हुआ जो दक्षिणी और पूर्वी यूक्रेन में व्यापक अशांति का हिस्सा था।
- क्रीमिया के आक्रमण और उसके बाद के विलय ने रूस को इस क्षेत्र में समुद्रतटीय लाभ दिया है।
- यूक्रेन की नाटो सदस्यता: यूक्रेन ने उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) से गठबंधन में अपने देश की सदस्यता में तेज़ी लाने का आग्रह किया है।
- रूस ने इस तरह के एक कदम को "रेड लाइन" घोषित कर दिया है और अमेरिका के नेतृत्त्व वाले सैन्य गठबंधनों तक इसकी पहुँच के परिणामों के बारे में चिंतित है।
- काला सागर बुल्गारिया, जॉर्जिया, रोमानिया, रूस, तुर्की और यूक्रेन से घिरा है। ये सभी नाटो देश हैं।
- नाटो देशों और रूस के बीच इस टकराव के कारण काला सागर सामरिक महत्त्व का क्षेत्र है और एक संभावित समुद्री फ्लैशपॉइंट है।
- मिन्स्क (Minsk) समझौते:
- Minsk I: यूक्रेन और रूसी समर्थित अलगाववादियों ने सितंबर 2014 में बेलारूस की राजधानी में 12-सूत्रीय युद्धविराम समझौते पर सहमति व्यक्त की।
- इसके प्रावधानों में कैदी का आदान-प्रदान, मानवीय सहायता की डिलीवरी और भारी हथियारों की वापसी शामिल थी।
- दोनों पक्षों द्वारा उल्लंघन के बाद यह समझौता शीघ्र टूट गया।
- Minsk II: वर्ष 2015 में फ्राँस और जर्मनी की मध्यस्थता के तहत 'मिन्स्क II' शांति समझौते पर हस्ताक्षर किये जाने के बाद एक खुला संघर्ष टल गया था।
- इसे विद्रोही क्षेत्रों में लड़ाई को समाप्त करने और सीमा को यूक्रेन के राष्ट्रीय सैनिकों को सौंपने के लिये डिज़ाइन किया गया था।
- इस पर रूस, यूक्रेन के प्रतिनिधियों, सुरक्षा और यूरोप में सहयोग के लिये संगठन (Organisation for Security and Cooperation in Europe- OSCE) दो रूसी समर्थक अलगाववादी क्षेत्रों के नेताओं द्वारा हस्ताक्षर किये गए थे।
- OSCE विश्व का सबसे बड़ा सुरक्षा-उन्मुख अंतर सरकारी संगठन है। इसके जनादेश(Mandate) में हथियार नियंत्रण, मानवाधिकारों को बढ़ावा देना, प्रेस की स्वतंत्रता और निष्पक्ष चुनाव जैसे मुद्दे शामिल हैं।
- Minsk I: यूक्रेन और रूसी समर्थित अलगाववादियों ने सितंबर 2014 में बेलारूस की राजधानी में 12-सूत्रीय युद्धविराम समझौते पर सहमति व्यक्त की।
- वर्तमान स्थिति:
- रूस अमेरिका से आश्वासन मांग रहा है कि यूक्रेन को नाटो में शामिल नहीं किया जाए। हालांँकि अमेरिका ऐसा कोई आश्वासन देने को तैयार नहीं है।
- इसने देशों के मध्य गतिरोध की स्थिति उत्पन्न कर दी है, जिस कारण हज़ारों रूसी सैनिक यूक्रेन पर आक्रमण करने के लिये तैयार हैं।
- पश्चिमी देशों से प्रतिबंधों में राहत और अन्य रियायतें प्राप्त करने के लिये रूस यूक्रेन की सीमा पर तनाव बढ़ा रहा है।
- रूस के खिलाफ अमेरिका या यूरोपीय संघ द्वारा किसी भी प्रकार की सैन्य कार्रवाई विश्व के समक्ष एक बड़ा संकट उत्पन्न कर देगी और अब तक इसमें शामिल किसी भी पक्ष द्वारा इसपर विचार या बातचीत नहीं की गई है।
- रूस अमेरिका से आश्वासन मांग रहा है कि यूक्रेन को नाटो में शामिल नहीं किया जाए। हालांँकि अमेरिका ऐसा कोई आश्वासन देने को तैयार नहीं है।
- भारत का रुख:
- पश्चिमी शक्तियों द्वारा क्रीमिया में रूस के हस्तक्षेप को लेकर भारत निष्पक्ष बना हुआ है।
- नवंबर 2020 में भारत ने संयुक्त राष्ट्र (United Nations-UN) में यूक्रेन द्वारा प्रायोजित एक प्रस्ताव के विरुद्ध मतदान किया, जिसमें क्रीमिया में कथित मानवाधिकारों के उल्लंघन की निंदा की गई थी, जबकि इस मुद्दे पर पुराने सहयोगी रूस द्वारा समर्थन किया गया था।
काला सागर
- काला सागर पूर्वी यूरोप और पश्चिमी एशिया के बीच स्थित है।
- यह दक्षिण, पूर्व और उत्तर में क्रमशः पोंटिक, काकेशस और क्रीमियन की पहाड़ियों से घिरा हुआ है।
- काला सागर भी कर्च जलडमरूमध्य द्वारा आज़ोव सागर से जुड़ा हुआ है।
- तुर्की जलडमरूमध्य प्रणाली- डारडेनेल्स, बोस्फोरस और मरमारा सागर- भूमध्यसागर तथा काला सागर के बीच एक ट्रांज़ीशन ज़ोन के रूप में कार्य करती है
- काला सागर के सीमावर्ती देशों में- रूस, यूक्रेन, जॉर्जिया, तुर्की, बुल्गारिया और रोमानिया शामिल हैं।
- काला सागर के जल में ऑक्सीजन की भारी कमी है।
आगे की राह
- स्थिति का एक व्यावहारिक समाधान मिन्स्क शांति प्रक्रिया को पुनर्जीवित करना है। अत: इसके लिये अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों को दोनों पक्षों को बातचीत फिर से शुरू करने तथा सीमा पर सापेक्ष शांति बहाल करने के लिये मिन्स्क समझौते के अनुसार अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने हेतु प्रेरित करना चाहिये।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
65वाँ महापरिनिर्वाण दिवस
प्रिलिम्स के लिये:महापरिनिर्वाण दिवस, बौद्ध धर्म, बाबासाहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर मेन्स के लिये:डॉ. भीमराव अंबेडकर का संक्षिप्त परिचय एवं महत्त्वपूर्ण योगदान |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में प्रधानमंत्री ने महापरिनिर्वाण दिवस पर बाबासाहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर को श्रद्धांजलि दी।
प्रमुख बिंदु
- महापरिनिर्वाण दिवस के बारे में:
- परिनिर्वाण जिसे बौद्ध धर्म के लक्ष्यों के साथ-साथ एक प्रमुख सिद्धांत भी माना जाता है, यह एक संस्कृत का शब्द है जिसका अर्थ है मृत्यु के बाद मुक्ति अथवा मोक्ष है।
- बौद्ध ग्रंथ महापरिनिब्बाण सुत्त (Mahaparinibbana Sutta) के अनुसार, 80 वर्ष की आयु में हुई भगवान बुद्ध की मृत्यु को मूल महापरिनिर्वाण माना जाता है।
- यह 6 दिसंबर को डॉ. भीमराव अंबेडकर द्वारा दिये गए सामाजिक योगदान और उनकी उपलब्धियों को याद करने के लिये मनाया जाता है। बौद्ध नेता के रूप में डॉ. अंबेडकर की सामाजिक स्थिति के कारण उनकी पुण्यतिथि को महापरिनिर्वाण दिवस के रूप में जाना जाता है।
- परिनिर्वाण जिसे बौद्ध धर्म के लक्ष्यों के साथ-साथ एक प्रमुख सिद्धांत भी माना जाता है, यह एक संस्कृत का शब्द है जिसका अर्थ है मृत्यु के बाद मुक्ति अथवा मोक्ष है।
- बाबासाहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर:
- जन्म: 14 अप्रैल, 1891 को मध्य प्रांत (अब मध्य प्रदेश) के महू में।
- संक्षिप्त परिचय:
- डॉ. अंबेडकर एक समाज सुधारक, न्यायविद, अर्थशास्त्री, लेखक, बहु-भाषाविद और तुलनात्मक धर्म दर्शन के विद्वान थे।
- वर्ष 1916 में उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की और यह उपलब्धि हासिल करने वाले पहले भारतीय बने।
- उन्हें भारतीय संविधान के जनक (Father of the Indian Constitution) के रूप में जाना जाता है। वह स्वतंत्र भारत के प्रथम कानून/विधि मंत्री थे।
- डॉ. अंबेडकर एक समाज सुधारक, न्यायविद, अर्थशास्त्री, लेखक, बहु-भाषाविद और तुलनात्मक धर्म दर्शन के विद्वान थे।
- संबंधित जानकारी:
- वर्ष 1920 में उन्होंने एक पाक्षिक (15 दिन की अवधि में छपने वाला) समाचार पत्र ‘मूकनायक’ (Mooknayak) की शुरुआत की जिसने एक मुखर और संगठित दलित राजनीति की नींव रखी।
- उन्होंने बहिष्कृत हितकारिणी सभा (1923) की स्थापना की, जो दलितों के बीच शिक्षा और संस्कृति के प्रचार-प्रसार हेतु समर्पित थी।
- वर्ष 1925 में बॉम्बे प्रेसीडेंसी समिति द्वारा उन्हें साइमन कमीशन में काम करने के लिये नियुक्त किया गया था।
- हिंदुओं के प्रतिगामी रिवाज़ों को चुनौती देने के लिये मार्च 1927 में उन्होंने महाड़ सत्याग्रह (Mahad Satyagraha) का नेतृत्त्व किया।
- वर्ष 1930 के कालाराम मंदिर आंदोलन में अंबेडकर ने कालाराम मंदिर के बाहर विरोध प्रदर्शन किया, क्योंकि दलितों को इस मंदिर परिसर में प्रवेश नहीं करने दिया जाता था। इसने भारत में दलित आंदोलन शुरू करने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- उन्होंने तीनों गोलमेज सम्मेलनों (Round-Table Conferences) में भाग लिया।
- वर्ष 1932 में उन्होंने महात्मा गांधी के साथ पूना समझौते (Poona Pact) पर हस्ताक्षर किये, जिसके परिणामस्वरूप वंचित वर्गों के लिये अलग निर्वाचक मंडल (सांप्रदायिक पंचाट) के विचार को त्याग दिया गया।
- हालाँकि दलित वर्गों के लिये आरक्षित सीटों की संख्या प्रांतीय विधानमंडलों में 71 से बढ़ाकर 147 तथा केंद्रीय विधानमंडल में कुल सीटों का 18% कर दी गई।
- वर्ष 1936 में वह बॉम्बे विधानसभा के विधायक (MLA) चुने गए।
- 29 अगस्त, 1947 को उन्हें संविधान निर्मात्री समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया।
- उन्होंने स्वतंत्र भारत के पहले मंत्रिमंडल में कानून मंत्री बनने के प्रधानमंत्री नेहरू के आमंत्रण को स्वीकार किया।
- उन्होंने हिंदू कोड बिल (जिसका उद्देश्य हिंदू समाज में सुधार लाना था) पर मतभेदों के चलते वर्ष 1951 में मंत्रिमंडल से त्याग-पत्र दे दिया।
- वर्ष 1956 में उन्होंने बौद्ध धर्म को अपनाया।
- 6 दिसंबर, 1956 को उनका निधन हो गया।
- वर्ष 1990 में उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
- चैत्य भूमि भीमराव अंबेडकर का एक स्मारक है जो मुंबई के दादर में स्थित है।
- महत्त्वपूर्ण कृतियाँ: समाचार पत्र मूकनायक (1920), एनिहिलेशन ऑफ कास्ट (1936), द अनटचेबल्स (1948), बुद्धा ऑर कार्ल मार्क्स (1956), बुद्धा एंड हिज़ धम्म (1956) इत्यादि।
- उद्धरण::
- “लोकतंत्र केवल सरकार का एक रूप नहीं है। यह मुख्य रूप से जुड़े रहने का एक तरीका है, संयुग्मित संचार अनुभव का। यह अनिवार्य रूप से साथी पुरुषों के प्रति सम्मान और श्रद्धा का दृष्टिकोण है।”
- मैं एक समुदाय की प्रगति को उस प्रगति डिग्री से मापता हूँ जो महिलाओं ने हासिल की है।”
- “मनुष्य नश्वर है। उसी तरह विचार भी नश्वर हैं। एक विचार को प्रचार-प्रसार की ज़रूरत होती है जैसे एक पौधे को पानी की ज़रूरत होती है। अन्यथा दोनों मुरझा जाएँगे और मर जाएँगे ”
स्रोत: पी.आई.बी
भारत-पाक युद्ध: 1971
प्रिलिम्स के लियेराष्ट्रीय कैडेट कोर, वर्ष 1971 का भारत-पाकिस्तान युद्ध मेन्स के लियेभारत-पाक युद्ध के निहितार्थ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राष्ट्रीय कैडेट कोर (NCC) ने ‘आज़ादी का अमृत महोत्सव’ (भारत की स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगाँठ) के हिस्से के रूप में 'आज़ादी की विजय शृंखला और संस्कृतियों का महासंगम' कार्यक्रम आयोजित करने की घोषणा की है।
- ‘आज़ादी की विजय शृंखला और संस्कृतियों का महासंगम’ कार्यक्रम के तहत भारत-पाकिस्तान वर्ष 1971 युद्ध के वीरों को पूरे देश में 75 स्थानों पर सम्मानित किया जा रहा है।
- संस्कृतियों का महासंगम नई दिल्ली में एक विशेष राष्ट्रीय एकता शिविर आयोजित करेगा, जिसमें देश भर के उम्मीदवार सांस्कृतिक आदान-प्रदान में भाग लेंगे।
प्रमुख बिंदु
- भारत-पाकिस्तान युद्ध 1971 की समयरेखा:
- राजनीतिक असंतुलन: 1950 के दशक में पाकिस्तान की केंद्रीय सत्ता पर पश्चिमी पाकिस्तान का दबदबा था। पाकिस्तान पर सैन्य-नौकरशाही का राज था जो पूरे देश (पूर्वी एवं पश्चिमी पाकिस्तान) पर बेहद अलोकतांत्रिक ढंग से शासन कर रहे थे।
- शासन की इस प्रणाली में बंगालवासियों का कोई राजनीतिक प्रतिनिधित्व नहीं था किंतु वर्ष 1970 के आम चुनावों के दौरान पश्चिमी पाकिस्तान के इस प्रभुत्व को चुनौती दी गई थी।
- अवामी लीग की विजय: वर्ष 1970 के आम चुनाव में पूर्वी पाकिस्तान के शेख मुज़ीबुर्र रहमान की अवामी लीग को स्पष्ट बहुमत प्राप्त था, जो प्रधानमंत्री बनने के लिये पर्याप्त था।
- हालाँकि पश्चिमी पाकिस्तान पूर्वी पाकिस्तान के किसी नेता को देश पर शासन करने देने के लिये तैयार नहीं था।
- सांस्कृतिक अंतर: तत्कालीन पश्चिमी पाकिस्तान (वर्तमान पाकिस्तान) ने ‘याहया खान’ के नेतृत्व में पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) के लोगों का सांस्कृतिक रूप से दमन करने की कोशिश की। उन्होंने पूर्वी पाकिस्तान पर भाषा पहनावा-ओढ़ावा इत्यादि को लेकर तानाशाही रवैया अपनाना शुरू किया। ज्ञातव्य है कि पूर्वी पाकिस्तान बंगाल से काटकर बनाया गया था अतः यहाॅं की भाषा मुख्यतः बंगाली थी जबकि, पश्चिमी पाकिस्तान की भाषा मुख्यतः उर्दू थी।
- राजनीतिक वार्ता विफल होने के बाद जनरल याहया खान के नेतृत्त्व में पाकिस्तानी सेना ने पूर्वी पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई शुरू करने का फैसला किया।
- ऑपरेशन सर्चलाइट: 26 मार्च, 1971 को पश्चिम पाकिस्तान ने पूरे पूर्वी पाकिस्तान में ऑपरेशन सर्चलाइट शुरू की।
- इसके परिणामस्वरूप लाखों बांग्लादेशी भारत भागकर भारत आ गए। मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल, असम, मेघालय और त्रिपुरा जैसे राज्यों में क्योंकि ये राज्य बांग्लादेश के सबसे करीबी राज्य हैं।
- विशेष रूप से पश्चिम बंगाल पर शरणार्थियों का बोझ बढ़ने लगा और राज्य ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उनकी सरकार से भोजन और आश्रय के लिये सहायता की अपील की।
- इंडो-बांग्ला सहयोग: बांग्लादेश के स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ने वाली 'मुक्तिवाहिनी सेना' एवं भारतीय सैनिकों की बहादुरी से पाकिस्तानी सेना को मुॅंह की खानी पड़ी। ज्ञातव्य है कि मुक्तिवाहिनी सेना में बांग्लादेश के सैनिक, अर्द्ध-सैनिक और नागरिक भी शामिल थे। ये मुख्यत: गुरिल्ला पद्धति से युद्ध करते थे।
- पाकिस्तानी सेना की हार: 16 दिसंबर, 1971 को पूर्वी पाकिस्तान के मुख्य मार्शल लॉ प्रशासक और पूर्वी पाकिस्तान में स्थित पाकिस्तानी सेना बलों के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल आमिर अब्दुल्ला खान नियाज़ी ने ‘इंस्ट्रूमेंट ऑफ सरेंडर’ पर हस्ताक्षर किये।
- द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सबसे अधिक 93,000 से अधिक पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय सेना और बांग्लादेश मुक्ति सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। भारत के हस्तक्षेप से मात्र 13 दिनों के इस छोटे से युद्ध से एक नए राष्ट्र का जन्म हुआ।
- भारतीय हस्तक्षेप ने 13 दिनों में युद्ध को समाप्त कर दिया और इस प्रकार एक नए राष्ट्र का जन्म हुआ।
- राजनीतिक असंतुलन: 1950 के दशक में पाकिस्तान की केंद्रीय सत्ता पर पश्चिमी पाकिस्तान का दबदबा था। पाकिस्तान पर सैन्य-नौकरशाही का राज था जो पूरे देश (पूर्वी एवं पश्चिमी पाकिस्तान) पर बेहद अलोकतांत्रिक ढंग से शासन कर रहे थे।
- भारत के लिये भारत-पाकिस्तान युद्ध का महत्त्व:
- एक साथ दो मोर्चों पर युद्ध का खतरा: भविष्य में कभी भी पाकिस्तान से युद्ध होने पर भारत को दोनों मोर्चों से युद्ध का खतरा था। पूर्वी पाकिस्तान के विद्रोह से भारत को इस खतरे को समाप्त करने का बहाना मिल गया।
- यद्यपि वर्ष 1965 में पूर्वी मोर्चा काफी हद तक निष्क्रिय रहा, लेकिन इसने पर्याप्त सैन्य संसाधनों को अपने पास रोक लिया था जो पश्चिमी मोर्चे पर अधिक प्रभावशाली हो सकता है।
- गुटनिरपेक्षता की नीति में बदलाव: भारत-पाकिस्तान युद्ध अगस्त 1971 में भारत-सोवियत संधि पर हस्ताक्षर से पहले हुआ था, जिसने भारत को कूटनीतिक रूप से बढ़ावा दिया था।
- इस जीत ने विदेशी राजनीति में भारत की व्यापक भूमिका सुनिश्चित की।
- संयुक्त राज्य अमेरिका सहित दुनिया के कई देशों ने महसूस किया कि शक्ति संतुलन दक्षिण एशिया में भारत में स्थानांतरित हो गया है।
- एक साथ दो मोर्चों पर युद्ध का खतरा: भविष्य में कभी भी पाकिस्तान से युद्ध होने पर भारत को दोनों मोर्चों से युद्ध का खतरा था। पूर्वी पाकिस्तान के विद्रोह से भारत को इस खतरे को समाप्त करने का बहाना मिल गया।