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डेली न्यूज़

  • 07 Sep, 2024
  • 25 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत बना मक्के का शुद्ध आयातक

प्रिलिम्स के लिये:

इथेनॉल उत्पादन, न्यूनतम समर्थन मूल्य, श्वेत क्रांति, इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल, इथेनॉल उत्पादन के लिये गन्ने का प्रयोग  

मेन्स के लिये:

कृषि वस्तुओं, खाद्य सुरक्षा, कृषि संसाधनों पर इथेनॉल मिश्रण का प्रभाव

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में भारत द्वारा इथेनॉल उत्पादन, विशेष रूप से मक्का आधारित इथेनॉल उत्पादन को बढ़ाने के प्रयास ने देश को एशिया के शीर्ष मक्का निर्यातक से शुद्ध आयातक में बदल दिया है।

  • यह महत्त्वपूर्ण बदलाव स्थानीय उद्योगों को प्रभावित कर रहा है और वैश्विक मक्का आपूर्ति शृंखला में बदलाव ला रहा है।

मक्का के संदर्भ में मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • परिचय: मक्का (Zea mays L.) एक अत्यंत बहुपयोगी फसल है, जिसे इसकी उच्च आनुवंशिक उपज क्षमता के कारण ‘अनाज की रानी/Queen of cereals’ के रूप में जाना जाता है।
    • विश्व स्तर पर मक्का अनाज उत्पादन में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है और संयुक्त राज्य अमेरिका इसका सबसे बड़ा उत्पादक देश है तथा इसकी उत्पादकता भी सर्वाधिक है।
    • भारत में मक्का तीसरी सबसे महत्त्वपूर्ण खाद्यान्न फसल है, जो राष्ट्रीय खाद्यान्न में लगभग 9% का योगदान देती है तथा कृषि सकल घरेलू उत्पाद में 100 बिलियन रुपए से अधिक का योगदान देती है।
    • इस फसल का उपयोग भोजन, पशु आहार और औद्योगिक उत्पादों सहित विभिन्न क्षेत्रों में किया जाता है।
  • उपज के अनुकूल स्थितियाँ: मक्का विभिन्न प्रकार की मिट्टी में उगती है, जिसमें दोमट रेतीली मिट्टी से लेकर चिकनी दोमट मिट्टी तक शामिल है। इसके लिये अनुकूलतम स्थितियाँ अच्छी जल निकासी वाली मृदा, उच्च कार्बनिक पदार्थ और तटस्थ PH वाली मृदा हैं।
    • उत्पादकता बनाए रखने के लिये खराब जल निकासी और उच्च लवणता वाले खेतों से बचना महत्त्वपूर्ण है। 
    • वर्षा: 50-100 सेमी.
  • मौसमी खेती: भारत में मक्का खरीफ, रबी और वसंत तीनों ऋतुओं में उगाया जा सकता है।
    • वर्षा आधारित परिस्थितियों और जैविक/अजैविक कारकों के कारण रबी मक्का की तुलना में खरीफ मक्का की उत्पादकता कम है।
  • वैश्विक रैंकिंग: भारत विश्व में मक्का का 5वाँ सबसे बड़ा उत्पादक (दिसंबर 2023 तक) और 14वाँ सबसे बड़ा निर्यातक (2022) है।
    • मक्का की आपूर्ति के लिये भारत के रणनीतिक लाभों में साल भर उत्पादन, एक प्रभावी बीज तंत्र और सुलभ बंदरगाह शामिल हैं। हालाँकि उच्च घरेलू मांग इसके वर्तमान निर्यात महत्त्व को सीमित करती है।  
  • प्रमुख उत्पादक राज्य: कर्नाटक, मध्य प्रदेश, बिहार, तमिलनाडु, तेलंगाना, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश।
  • पहल:

भारत शुद्ध मक्का आयातक क्यों बन गया है?

  • इथेनॉल ब्लेंडिंग लक्ष्य: भारत द्वारा वर्ष 2025-26 तक गैसोलीन में इथेनॉल की मात्रा 20% बढ़ाने के प्रयास से मक्का आधारित इथेनॉल की मांग बढ़ गई है।
    • जैव ईंधन पर राष्ट्रीय नीति (NPB) 2018 मक्का और अनाज आधारित इथेनॉल के ब्लेंडिंग की अनुमति देती है, जिससे बढ़ती मांग को पूरा करने के लिये इथेनॉल उत्पादन क्षमता को बढ़ावा मिलेगा।
  • गन्ने से मक्का की ओर संक्रमण: अनावृष्टि के कारण सरकार ने ईंधन के लिये गन्ने के प्रयोग पर रोक लगा दी, जिससे इथेनॉल डिस्टिलरियों को विकल्प के रूप में मक्का की ओर रुख करना पड़ा।
    • भारत ने वर्ष 2023-24 में 34.6 मिलियन टन (mt) मक्का का उत्पादन किया, जिसकी आपूर्ति-मांग के अंतर को कम करने के लिये उत्पादन को दोगुना करने की योजना है।
  • घरेलू आपूर्ति पर प्रभाव: इथेनॉल के लिये मक्का का प्रयोग करने की ओर संक्रमण ने पोल्ट्री और स्टार्च उद्योगों में कमी उत्पन्न कर दी है, जिससे दशकों में देश में पहली बार मक्का का आयात हुआ है।

मक्के के अत्यधिक आयात से स्थानीय उद्योगों पर क्या प्रभाव पड़ रहा है?

  • मक्के के लिये प्रतिस्पर्द्धा: परंपरागत रूप से भारत के पोल्ट्री और स्टार्च उद्योग देश के मक्का उत्पादन के प्राथमिक उपभोक्ता रहे हैं। बाज़ार में इथेनॉल डिस्टिलरी की शुरुआत के साथ इन उद्योगों को अब आपूर्ति के लिये कड़ी प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना पड़ रहा है।
  • मक्के की बढ़ती कीमतें: मक्का की बढ़ती मांग ने स्थानीय कीमतों को वैश्विक बेंचमार्क से कहीं ऊपर ला दिया है, जिससे पोल्ट्री उत्पादकों, जो फीड के लिये मक्का पर बहुत अधिक निर्भर हैं, पर दबाव बढ़ गया है।
  • जोखिम में कुक्कुट पालन उद्योग: फीड की बढ़ती लागत, जो उत्पादन व्यय का तीन-चौथाई हिस्सा है, ने पोल्ट्री उत्पादकों को वित्तीय संकट में डाल दिया है।
    • अखिल भारतीय पोल्ट्री ब्रीडर्स एसोसिएशन ने आयात शुल्क हटाने और फीड के लिये आनुवंशिकतः रूपांतरित (GM) मक्का को मंज़ूरी देने का आह्वान किया है। 
    • उत्पादन लागत पोल्ट्री के विक्रय मूल्य से अधिक होने के कारण, उद्योग को अस्थिर घाटे का जोखिम है। छोटे पैमाने के पोल्ट्री उत्पादक लागत कम करने के लिये टूटे हुए चावल और गेहूँ के डंठल के अवशिष्ट जैसे वैकल्पिक फीड स्रोतों का सहारा ले रहे हैं।
  • मक्के की कृषि के लिये प्रोत्साहन: मक्के की ऊँची कीमतें किसानों को अपने मक्के के रकबे को बढ़ाने के लिये प्रोत्साहित कर रही हैं, गर्मियों में बोई जाने वाली मक्के की खेती का रकबा वर्ष 2023 से 7% बढ़ा है। 
    • किसान वर्तमान ऊँची कीमतों से लाभान्वित हो रहे हैं, लेकिन छोटे पोल्ट्री उत्पादक नए सीज़न की आपूर्ति के साथ कीमतों के स्थिर होने तक उत्पादन को कम करने के लिये मज़बूर हैं।

भारत द्वारा मक्का के अत्यधिक आयात के कारण वैश्विक निहितार्थ क्या हैं?

  • व्यापार गतिशीलता में बदलाव: भारत, जो कभी एशिया का शीर्ष मक्का निर्यातक था, अब मुख्य रूप से म्याँमार और यूक्रेन से मक्का आयात कर रहा है। इसका वैश्विक मक्का की कीमतों पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है, जो पहले लगभग चार वर्ष के निचले स्तर पर रही थीं।
  • निर्यातक देशों में कीमतों में वृद्धि: भारतीय मांग में वृद्धि ने म्याँमार में मक्का की कीमतों को 220 अमेरिकी डॉलर से बढ़ाकर लगभग 270 अमेरिकी डॉलर प्रति मीट्रिक टन कर दिया है, जिससे वहाँ के किसान अधिक मक्का की फसल बोने के लिये प्रोत्साहित हुए हैं।
    • हालाँकि बढ़ती लागत घरेलू उद्योगों, जो परंपरागत रूप से सस्ती मक्का आपूर्ति पर निर्भर रहे हैं, के लिये चुनौती बन रही है।
  • आपूर्ति शृंखला समायोजन: वियतनाम, बांग्लादेश, नेपाल और मलेशिया जैसे भारतीय मक्का के पारंपरिक क्रेता अब अपनी आपूर्ति के लिये दक्षिण अमेरिका एवं संयुक्त राज्य अमेरिका की ओर रुख कर रहे हैं, क्योंकि भारतीय मक्का बहुत महँगा हो गया है।
  • स्थायी आयातक का दर्जा: NITI आयोग का अनुमान है कि वर्ष 2024-25 तक इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल (EBP) की 1,016 करोड़ लीटर की अपेक्षित मांग को पूरा करने के लिये भारत की इथेनॉल उत्पादन क्षमता का विस्तार करने की आवश्यकता है।
    • इसके लिये मक्का आधारित इथेनॉल से बहुत बड़े योगदान की आवश्यकता होगी, जो मक्का को भारत के जैव ईंधन उद्योग के लिये एक महत्त्वपूर्ण संसाधन के रूप में स्थापित करेगा। विशेषज्ञों का अनुमान है कि घरेलू उत्पादन क्षमताओं से अधिक मांग में तेज़ी से वृद्धि के कारण भारत सालाना मक्का का आयात करना जारी रखेगा।

भारत में मक्का उत्पादन बढ़ाने के लिये क्या कदम उठाने की आवश्यकता है?

  • तकनीकी अभिग्रहण: भारत की विविध कृषि-पारिस्थितिक स्थितियों के लिये विभिन्न क्षेत्रों और मौसमों में मक्का की उत्पादकता बढ़ाने के लिये अनुकूलित तकनीकी समाधानों की आवश्यकता है।
    • बायोटेक विशेषताओं को अपनाकर, विशेष रूप से फॉल आर्मीवर्म (FAW) जैसे कीटों के प्रति प्रतिरोधी और उच्च उपज देने वाले एकल-क्रॉस संकर के अंतर्गत क्षेत्र का विस्तार करके, भारत संभावित रूप से अपनी मक्का उत्पादकता को दोगुना कर सकता है।
      • अमेरिका ने बायोटेक विशेषताओं के 100% कवरेज के साथ रिकॉर्ड मक्का की पैदावार हासिल की है, जिसमें प्रति हेक्टेयर 11 टन से अधिक की कटाई की गई है, जबकि भारत में मक्के की खेती के तहत 110 लाख हेक्टेयर होने के बावजूद, भारत की औसत उपज केवल 3.3-3.8 टन प्रति हेक्टेयर है, जो वैश्विक औसत का लगभग आधा है।
  • विविधीकरण और गहनता: मक्का भविष्य-आधारित समाधान प्रदान करती है क्योंकि चावल की निरंतर कृषि से इंडो-गंगा मैदान में जल स्तर कम हो जाता है।
    • पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे सिंचित क्षेत्रों में मक्का की खेती करने से संसाधनों का संरक्षण हो सकता है तथा उत्पादन में वृद्धि हो सकती है, क्योंकि मक्का को चावल की तुलना में 90% कम विद्युत ऊर्जा एवं 70% कम जल की आवश्यकता होती है। 
    • मौजूदा सिंचाई प्रणालियों के साथ 1,200 मिमी. से कम वर्षा वाले क्षेत्रों में लंबी अवधि की एकल क्रॉस हाइब्रिड मक्का की खेती उच्च उपज दे सकती है और विद्युत ऊर्जा एवं जल पर सरकारी सब्सिडी बचा सकती है।
  • सरकारी सहायता: E20 ब्लेंडिंग लक्ष्य के लिये मक्के की 165 लाख टन वाली एक बहुत बड़ी मात्रा की आवश्यकता है, जो भारत के वर्तमान उत्पादन का लगभग आधा है। 
    • मौजूदा मक्का आपूर्ति में बदलाव किये बिना इस मांग को पूरा करने के लिये भारत को वर्ष 2024-25 तक उत्पादन को 346 लाख टन से बढ़ाकर 420-430 लाख टन तथा वर्ष 2029-30 तक 640-650 लाख टन करने की आवश्यकता है। 
    • उचित न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP), खरीद आश्वासन और परिवहन रियायतें देकर किसानों को मक्का की खेती को बढ़ावा देने के लिये प्रोत्साहित किया जा सकता है। 
  • मुर्गी पालन और पशु आहार: मक्का को बहुपयोगी अनाज के रूप में अधिक प्रयोग करके लक्ष्य प्राप्त करने में मदद मिल सकती है, जिससे कुक्कुट पालन उद्योग और पशु आहार की बढ़ती मांग को पूरा किया जा सकता है। 
    • उच्च प्रोटीन से युक्त घुलनशील पदार्थों वाले शुष्क डिस्टिलर्स अनाज (DDGS) का उत्पादन करके मक्का E20 इथेनॉल की आवश्यकता को भी पूरा किया जा सकता है, जिससे सतत् भोजन, चारा और ईंधन सुरक्षा में योगदान मिलता है।
      • DDGS इथेनॉल उत्पादन का प्रमुख उपोत्पाद है और मवेशियों के लिये एक अच्छा प्रोटीन और ऊर्जा आहार है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत के इथेनॉल ब्लेंडिंग लक्ष्यों के कारण मक्का उत्पादन और आयात गतिशीलता पर पड़ने वाले प्रभावों का मूल्यांकन कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. नीचे चार ऊर्जा फसलों के नाम दिये गए हैं। इनमें से किसकी खेती इथेनॉल के लिये की जा सकती है? (2010)

(a) जट्रोफा
(b) मक्का
(c) पोंगामिया
(d) सूरजमुखी

उत्तर: (b)


प्रश्न. भारत की जैव-ईंधन की राष्ट्रीय नीति के अनुसार, जैव-ईंधन के उत्पादन के लिये निम्नलिखित में से किनका उपयोग कच्चे माल के रूप में हो सकता है? (2020)

  1. कसावा 
  2. क्षतिग्रस्त गेहूँ के दाने 
  3. मूँगफली के बीज 
  4. कुलथी (Horse Gram) 
  5. सड़ा आलू 
  6. चुकंदर

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये-

(a) केवल 1, 2, 5 और 6
(b) केवल 1, 3, 4 और 6
(c) केवल 2, 3, 4 और 5 
(d) 1, 2, 3, 4, 5 और 6

उत्तर: (a)


भारतीय अर्थव्यवस्था

चिप निर्माण हेतु 15 बिलियन अमेरिकी डॉलर की योजना

प्रिलिम्स के लिये:

सेमीकंडक्टर, माइक्रोस्कोपिक स्विच, इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्रालय (MeitY) 

मेन्स के लिये:

भारत के सेमीकंडक्टर चिप क्षेत्र का महत्त्व और चुनौतियाँ।

स्रोत :इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों?

भारत चिप निर्माण प्रोत्साहन नीति (भारत सेमीकंडक्टर मिशन के तहत) के दूसरे चरण के लिये 15 बिलियन अमरीकी डॉलर का निवेश करने हेतु तैयार है। इसने पहले इस योजना के पहले चरण के लिये 10 बिलियन अमरीकी डॉलर का निवेश करने की प्रतिबद्धता जताई थी।

  • सरकार ने तीन असेंबली और परीक्षण संयंत्रों को भी स्वीकृति दी है, जिन्हें चिप की भाषा में असेंबली, टेस्टिंग, मार्किंग , पैकेजिंग (ATMP) और आउटसोर्स्ड सेमीकंडक्टर असेंबली एवं टेस्ट (OSAT) कहा जाता है, जो फैब्रिकेशन प्लांट की तुलना में कम जटिल हैं।

सेमीकंडक्टर चिप्स क्या हैं?

  • सेमीकंडक्टर चिप सेमीकंडक्टर सामग्री (आमतौर पर सिलिकॉन या जर्मेनियम) से बना एक छोटा इलेक्ट्रॉनिक उपकरण है, जो अधिकांश इलेक्ट्रॉनिक सर्किट के मूल निर्माण खंड के रूप में कार्य करता है।
    • इन चिप्स में एक नाखून से भी छोटी चिप पर अरबों सूक्ष्म स्विच हो सकते हैं।
  • सेमीकंडक्टर चिप का मूल घटक एक सिलिकॉन वेफर है, जो छोटे ट्रांजिस्टर के साथ उकेरा गया है, जो विभिन्न कम्प्यूटेशनल निर्देशों के अनुसार विद्युत के प्रवाह को नियंत्रित करता है।
    • यह विभिन्न कार्य करता है, जैसे डेटा को प्रोसेस करना, जानकारी संगृहीत करना या इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को नियंत्रित करना।
  • निर्माण प्रौद्योगिकी: यह चिप्स और ट्रांजिस्टर जैसे अर्धचालक उपकरणों को बनाने की प्रक्रिया को संदर्भित करता है और इसमें वेफर निर्माण, फोटोलिथोग्राफी, एचिंग, डोपिंग और पैकेजिंग सहित कई प्रमुख चरण शामिल हैं।

सेमीकंडक्टर चिप्स उद्योग की स्थिति क्या है?

  • वैश्विक स्तर पर ताइवान और अमेरिका सेमीकंडक्टर चिप्स उद्योग के बाजार में आगे हैं।
    • अमेरिका ने लगभग 50 बिलियन अमरीकी डॉलर के आवंटन के साथ एक सेमीकंडक्टर प्रोत्साहन योजना लागू की है।
    • इसी तरह यूरोपीय संघ ने भी अमेरिका के समान पैमाने के प्रोत्साहन कार्यक्रम की घोषणा की है।
  • भारत की वर्तमान में सेमीकंडक्टर चिप निर्माण क्षेत्र में लगभग नगण्य उपस्थिति है।
    • भारत के चिपमेकिंग उद्योग को विकसित करने की आवश्यकता:
      • घरेलू निर्माण संयंत्र भारत के आर्थिक और रणनीतिक हितों को मज़बूत करने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, यह देखते हुए कि चिप्स का उपयोग रॉकेट से लेकर कार में पावर स्टीयरिंग से लेकर रसोई के टोस्टर तक लगभग सभी डाउनस्ट्रीम उद्योगों में किया जाता है।
      • अमेरिका और चीन वैश्विक प्रौद्योगिकी मूल्य शृंखला में दो सबसे महत्त्वपूर्ण राष्ट्र हैं। वैश्विक मंच पर बढ़ते भू-राजनीतिक तनावों के बीच, भारत सरकार द्वारा वित्त पोषित पहलों के माध्यम से अपने घरेलू उद्योग को मज़बूत करने के लिये उभरते अवसरों का लाभ उठाना चाहता है।

चिपमेकिंग के संबंध में भारत में हालिया घटनाक्रम

  • हाल ही में भारत ने सिंगापुर के साथ एक चिप डील पर हस्ताक्षर किये हैं, जिसके पास मेमोरी चिप्स और लॉजिक प्रोसेसर में विशेषज्ञता है। इनका इस्तेमाल कई इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस और ऑटोमोबाइल में किया जाता है।
  • टाटा भारत का पहला वाणिज्यिक निर्माण संयंत्र बनाने के लिये ताइवान की पावरचिप सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कॉरपोरेशन (PSMC) के साथ सहयोग कर रही है।
  • इससे पहले वर्ष 2023 में अमेरिका स्थित कंपनी माइक्रोन टेक्नोलॉजी ने अहमदाबाद के पास 22,500 करोड़ रुपए की लागत वाली सेमीकंडक्टर इकाई स्थापित करने के लिये गुजरात राज्य सरकार के साथ एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किये थे।
    • इस परियोजना का उद्देश्य मेमोरी चिप निर्माण में भारत की आत्मनिर्भरता में योगदान देना है।

भारत के सेमीकंडक्टर चिपमेकिंग उद्योग की चुनौतियाँ क्या हैं?

  • उच्च पूंजी आवश्यकताएँ: सेमीकंडक्टर फैब्रिकेशन प्लांट या फैब्स के लिये पर्याप्त पूंजी निवेश की आवश्यकता होती है। इन सुविधाओं को स्थापित करने और बनाए रखने की उच्च लागत घरेलू अभिकर्त्ताओं को रोकती है और उद्योग के विस्तार को सीमित करती है।
  • प्रौद्योगिकी और विशेषज्ञता की कमी: सेमीकंडक्टर उद्योग को अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी और अत्यधिक कुशल कार्यबल की आवश्यकता है। भारत वर्तमान में उन्नत सेमीकंडक्टर अनुसंधान, डिज़ाइन और निर्माण क्षमताओं में पिछड़ा हुआ है, जिसके कारण विदेशी प्रौद्योगिकी पर निर्भरता बढ़ रही है।
  • अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा: विश्वसनीय विद्युत आपूर्ति, जल संसाधन और रसद सहित मज़बूत बुनियादी ढाँचे की अनुपस्थिति सेमीकंडक्टर फैब्स की स्थापना एवं सुचारू संचालन में बाधा डालती है। इसके अतिरिक्त इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण के लिये विशेष औद्योगिक क्षेत्रों की कमी एक महत्त्वपूर्ण बाधा है।
  • उच्च प्रवेश बाधाएँ: चिप विनिर्माण में प्रवेश के लिये उच्च बाधाएँ स्पष्ट हैं, क्योंकि अत्याधुनिक चिप्स के उत्पादन के लिये प्रौद्योगिकी भारत में अभी भी अविकसित है और ताइवान सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कंपनी लिमिटेड (TSMC) जैसे प्रतिस्पर्धी को अत्यधिक लाभ होता है।

आगे की राह

  • वैश्विक सहयोग और रणनीतिक गठबंधन: द्विपक्षीय व बहुपक्षीय सहयोग से प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, संयुक्त उद्यम और अनुसंधान एवं विकास साझेदारी में सहायता मिल सकती है।
    • अमेरिका और ताइवान के साथ भारत का सहयोग सही दिशा में उठाया गया कदम है, जो घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने के सरकार के लक्ष्य के अनुरूप है और इससे वैश्विक सेमीकंडक्टर निर्माता के रूप में भारत की स्थिति मज़बूत होने की उम्मीद है।
    • इसी प्रकार भारत को सेमीकंडक्टर चिप निर्माण उद्योग में अपनी क्षमताओं को बढ़ाने के लिये दक्षिण कोरिया के साथ अपने राजनयिक संबंधों का लाभ उठाना चाहिये।
  • स्टार्टअप्स और SME को प्रोत्साहित करना: सरकार को फंडिंग, इनक्यूबेशन और मेंटरशिप कार्यक्रमों की पेशकश करके सेमीकंडक्टर क्षेत्र में स्टार्टअप्स और SME के लिये अनुकूल तंत्र बनाना चाहिये।
  • स्थिरता और हरित विनिर्माण: सेमीकंडक्टर विनिर्माण में ऊर्जा और जल की खपत को कम करने जैसे संधारणीय पद्धतियों पर ज़ोर देना महत्त्वपूर्ण होगा। हरित प्रौद्योगिकियों में निवेश करना और यह सुनिश्चित करना कि पर्यावरण संबंधी नियम उद्योग के विकास के साथ संरेखित हों, इस क्षेत्र की दीर्घकालिक व्यवहार्यता को बढ़ाएगा।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत के सेमीकंडक्टर उद्योग की वर्तमान स्थिति का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिये तथा इन चुनौतियों पर काबू पाने और सेमीकंडक्टर प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिये  आवश्यक रणनीतिक कदमों पर चर्चा कीजिये?


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